Adultery खूबसूरत डकैत(completed)

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विक्रांत एक गहरी परेशानी में अपने कमरे में बैठा हुआ था,और वही पूनम और कनक भी आने ही ख्यालों में थे,
कालिया रोशनी के साथ सुकून से लेटा था लेकिन उसके दिमाग में भी कई विचार चल रहे थे,कनक ने पूनम को वो बतलाया जो उसके साथ हुआ था,
पूनम शायद इस बात को नही संमझती अगर उसने भी इसका अनुभव नही किया होता लेकिन अब वो कनक की बात को समझ सकती थी ,
विक्रांत के कमरे का दरवाजा खुला,इसने इसी कमरे में ना जाने कितनो की इज्जत लूटी थी ,कितनो को नंगा किया था लेकिन आज वो अजीब से कसमकस में फंसा हुआ था,उसे प्यार कैसे हो सकता है वो तो खुद को शैतान समझता था,कमरे के खुलने की आवाज से वो चौका ..
सामने खड़ी दुल्हन सी सजी हुई पूनम उसके सामने खड़ी हुई थी ………
"आप फिर से मुझे जलाने आ गई "
वो बौखलाया नही बल्कि हल्की आवाज में बोला,पता नही आज उसे जोर से बोलने पर भी तकलीफ हो रही थी …
पुमन मुस्कुराते हुए उसके बाजू में आकर बैठ गई ..
"तुम मेरे देवर हो लेकिन आज तक हमारा रिश्ता कभी देवर भाभी का नही बन पाया ,क्योकि तुम्हारे लिए मैं भाभी से ज्यादा बस तुम्हारे भइया की लूट का समान थी ,इस घर में औरतो को तो ऐसे भी कोई इज्जत नही मिलती ,और मैं ये भी जानती हु की तुम दोनो ही भाईयों के लिये औरत बस एक जिस्म है जिसका भोग करना और इस्तेमाल करने के अलावा तुम कुछ जानते ही नही ,शायद इसीलिए हमारे बीच भी ये दूरी है की हम एक दूसरे से बात भी नही करते …"
विक्रांत ने पहले संचमे कभी ऐसे अपनी भाभी से बात नही किया था असल में उसने तो कभी पूनम की ओर ध्यान भी नही दिया था,वो थी जिसे उसका भाई उठाकर ले आया था पहले तो अपनी ऐयासी के लिये फिर जाने क्या सोचकर उसे अपनी बीवी बना लिया था उससे ज्यादा पूनम का कोई अस्तित्व विक्रांत के लिया नही था…
"तो आज क्यो आयी हो ये बात याद दिलाने की हम कितने बड़े शैतान है …"
पूनम के होठो में एक हल्की सी मुस्कुराहट जाग गई
"नही ये याद दिलाने के लिए की इस शैतान के अंदर एक इंसान अभी भी जिंदा है ….तूम अपने भाई से हमेशा से ही अलग थे ,तुम्हे कभी भी जबरदस्ती करना पसंद नही आया और तुम्हारे भाई ने कभी बिना जबरदस्ती के काम ही नही किया ,तुम्हरे दिल में जाने अनजाने ही मानवता थी,हा तुम्हारी परवरिश ऐसी हुई की तुम शैतान बन गए लेकिन तुम्हारे अंदर इंसानियत है और आज वही इंसानियत के कारण तुम प्यार में पड़ गए …"
विक्रांत आश्चर्य से पूनम की ओर देखने लगा…
"मुझे कनक ने सब कुछ बताया,जैसे तुम डरे हुए हो वैसे वो भी डरी हुई है…उसे भी कभी उम्मीद नही थी की वो तुम्हारे बारे में ऐसा महसूस करने लगेगी लेकिन जो होना होता है उसे कौन रोक सकता है …"
विक्रांत कुछ कहता उससे पहले ही पूनम ने अपना हाथ उसके सर पर रख दिया ,विक्रांत ने पहले ऐसी फीलिंग कभी महसूस नही की थी आज दिन में दूसरी बार था जब उसका प्यार से हो रहा था ,अपनत्व से हो रहा था,उसके आंखों में अनायास ही आंसू आ गए ,उसका दिमाग जोरो से कह रहा था की प्यार तेरे लिए नही है तू शैतान है,लेकिन फिर दिल का एक कोना इतना ज्यादा डॉमिनेटिंग हो रहा था की वो भावनाओ में बहने लगा था,दिमाग के ऊपर दिल छा गया था और वो ना चाहते हुए भी पूनम से जा लिपटा,
पूनम उसके बालो को इतने प्यार से सहला रही थी की विक्रांत में कुछ अजीब से भाव जागे ,वो अपनत्व वो प्यार ..शायद इन्ही सबकी तलाश उसे बचपन से ही थी लेकिन कभी उसने इसे खोजा ही नही था,उसे लगा जैसे उसे वो सब मिल गया जो वो बचपन से अनेक चीजों में खोजता हुआ फिर रहा था,कभी उसे माँ की गोद नसीब नही हुई थी ,बाप भी उसका प्राण की तरह ही था,और कोई बहन भी नही थी ,ऐसा कोई दोस्त नही जो उसे प्यार कर सके ,थी तो बस लडकिया जिसे वो भोगा करता था लेकिन वो जिस्म तक ही सीमित रह जाती ….
अनजाने में ही विक्रांत बहुत प्रयास करता की वो लड़कियों के जिस्म से भी पार पहुचे वँहा जिसे इश्क कहते है जो बढ़ने पर इबादत बन जाती है लेकिन लकड़ियों के लिए भी वो बस एक ऐसा जमीदार ही रह जाता था जो पैसे या ताकत के बल पर उन्हें अपना रहा था …
वो लड़कियों से बहुत ही सलीके से पेश आता लेकिन किसी के प्यार में पड़ने के लिए इतना काफी भी तो नही होता ,लडकिया अंदर से तो ये जानती थी की वो मजबूर है उसकी बांहो में जाने के लिए…
आज उसे लग रहा था की उसे वो मिल ही गया ,एक अजीब सी संतुष्टि उसे पूनम के छातियों से लगकर हो रही थी ,वो वासना नही प्रेम था,एक भाभी का अपने देवर के लिए जैसा एक बहन का अपने भाई के लिए होता है ,...
असल में प्यार का स्वरूप एक ही है बस उसको जताने का तरीका अलग होता है,पति पत्नी या प्रेमी अपने प्यार को जिस्म के मिलन के जरिये जताते है तो माँ और बहने अपने बेटे की फिक्र स्नेह करके ,वही बाप अपने बच्चे को डांट कर भी अपना प्यार जता जाता है,...
ये प्रेम जब जीवन में उतरता है और जब किसी को इसका अहसास किसी भी रूप में होता है वो सबसे पहला काम होता है वो है व्यक्ति का रूपांतरण …..
कहा गया है की प्रेम होता नही है प्रेम में गिरा जाता है ,और जो गिर गया उसके लिए पूरी दुनिया ही प्रेम हो जाती है ..विक्रांत प्रेम में गिर चुका था ,और उसके अंदर एक रूपांतरण होने लगा था,और शायद इसी लिए वो रो रहा था ,पूनम के सीने से लगे हुए बच्चों की तरह रो रहा था,...
दरवाजे पर खड़ी कनक की आंखों में भी आंसू थे ,उसे भी पता था की विक्रांत किस दर्द से गुजर रहा है ,लेकिन हर रूपांतरण एक दर्द के साथ ही शुरू होता है ,व्यक्तित्व का बदलना कोई खेल नही होता ,पुराने हर आदत जब बेकार लगने लगती है,जीवन बिल्कुल सुना सा लगने लगता है,लगता है की जीवन में जो भी किया वो बेकार था फिजूल था,और जब इतना समय बिता देने की ग्लानि होती है,पुरानी सड़ी हुई व्यक्तित्व की परते सामने आती है तो दर्द तो होता ही है …….आंसू तो निकलते ही है ………..
 
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हवेली से निकलने का प्लान बन चुका था ,अब बस आखिरी फैसले का इंतजार था,
इधर ठाकुर प्राण ने भी कुछ खास ना पता चलते देख अटैक करने का प्लान करना शुरू कर दिया ,इसी बीच कालिया और पूनम के बीच बात बढ़ने लगी …..
कालिया पूनम के बांहो में था,कालिया मैं जानती हु की तुम लोग यहां से निकलने वाले हो लेकिन क्या जाते जाते मुझे कोई तोहफा नही दोगे…
कालिया ने पूनम को प्यार से निहारा ..
"तुम कौन कहता है की मैं तुम्हे छोड़कर चला जाऊंगा "
"नही कालिया मैं इस हवेली को तभी छोडूंगी जब मैं प्राण की मौत देख लू "
पूनम की बात से कालिया स्तब्ध रह गया,उसने प्यार से उसके बालो को सहलाया ..
"तुहारी वो ख्वाहिश भी पूरी करूंगा लेकिन अभी बताओ क्या चाहिए तुम्हे तोहफे में .."
पूनम हल्के से मुस्कराई ..
"तुम्हारा बच्चा "
पूनम बोल कर शर्मा गई लेकिन कालिया किसी सोच में पड़ गया..
"प्राण तुम्हे मार डालेगा .."
"नही वो नही मरेगा...उसकी इतनी हिम्मत नही की तुम्हारे और मेरे बच्चे को हाथ लगा दे "
कालिया ने पूनम को जोरो से जकड़ा और उसके होठो में अपने होठो को घुसा दिया,दोनो ही मस्त हो चुके थे एक दूसरे के जिस्म की प्यास दोनो में बढ़ने लगी थी,पूनम कालिया का हाथ पकड़कर उसे एक दूसरे कमरे में ले गई,ये आलीशान कमरा था जंहा बड़े से प्रेम में प्राण और पुमन की फ़ोटो लगी थी …
"तो ये तुम्हारा कमरा है ,"
पूनम ने हा में सर हिलाया
वो बड़ा सा गोलाकार बिस्तर जिस्म कम से कम 4 लोग सो जाए ,कालिया ने पूनम का हाथ पकड़कर उसे उस बिस्तर में पटक दिया,दोनो के होठ मील और जिस्म भी मिलते गए ……..
 
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कनक और रोशनी अपनी तैयारी में बैठे थे ,विक्रांत भी उनका साथ देने को तैयार था,लेकिन वो हवेली छोड़कर नही जाना चाहता था ,वो अपने भइया से आशीर्वाद लेकर ही कनक को अपनाना चाहता था,उसे पता था की प्राण उससे कितना प्यार करता है,कनक घबराई जुरूर लेकिन अपने प्यार पर उसे पूरा भरोषा था,
"अगर मरेंगे तो साथ ही मरेंगे "विक्रांत ने उससे कहा

इधर
प्राण से अब बर्दास्त नही हो रहा था,परमिंदर के मना करने के बाद भी वो नही रुका ,बड़े बड़े स्पीकर में अब पूनम की सिसकियां गूंज रही थी ,और दूसरी ओर उसका भाई उसके दुश्मन की बहन से शादी करने की बात सोच रहा था ,
प्राण ने पिस्तोल उठाई और अपने कमरे की ओर चल दिया…

*************
पूरे हवेली में घेरा बंदी शुरू हो गई थी,ठाकुर के सभी लोग सचेत थे ,ये सब समय से पहले हो रहा था,कालिया की जल्दबाजी का ही नतीजा था ,कालिया के लोगो ने जब देखा की हवेली को घेरा जा रहा है,तुरंत ही डॉ और त्तिवारी से संपर्क किया ,जल्दबाजी में ही गिरोह के सभी लोग वँहा पहुच गए और अपने सरदार को वँहा से निकालने का प्लान बनाने लगे ,गिरोह का नेतृत्व चिराग कर रहा था…

********
हवेली के बाहर जितनी गहमा गहमी मची थी वैसी ही गहमा गहमी हवेली के अंदर प्राण सिंग के बिस्तर में भी मची हुई थी ,कालिया और पूनम एक दूसरे के नंगे जिस्म में दोहरे हुए जा रहे थे,कालिया ने जोर लगाया और अपना गर्म लावा पूनम के गर्भी में डाल दिया …..
पूनम को लगा कि जैसे उसे जन्नत मिल गई हो …….
कालिया तैयार हुआ और रोशनी और कनक के पास पहुच गया,पूनम भी तैयार होकर कमरे से बाहर निकली थी की…
प्राण उसके सामने खड़ा था उसकेआंखों में जैसे अंगारे थे …..
पूनम को देखते ही उसने गोलियां चला दी …….
गोलियों की आवाज पूरे माहौल में गूंज गई थी ……
पूनम लुढ़ककर नीचे गिरते गई …..
चारो ओर खून फैला था,और एक गजब की शांति पूरे वातावरण में छा गई …..


हवेली में बस ठाकुर के सिपाहियों के जूते की आवाज गुंजने लगी ,कालिया उसकी बहन और पत्नी घिर चुके थे,विक्रांत उसे बचता हुआ सामने चल रहा था ,वो उन्हें गेट तक ले गया जंहा से कालिया ने बाहर निकलने का रास्ता बनाया हुआ था,बचाव में कलिया के लोग भी फायरिंग करने लगे थे और कुछ अंदर भी आ चुके थे ,
परमिंदर सामने ही खड़ा हुआ था,विक्रांत को देखकर उसकी आंखे चौड़ी हो गई ..
"सामने से हट जाओ छोटे ठाकुर वरना आज मेरे हाथो से नही बच पाओगे .."
"मैं मर जाऊंगा पर्मिदंर लेकिन इन्हें तुम नही रोक सकते "
विक्रांत के पीछे खड़े कालिया ने अपने पिस्तौल में अपनी हाथ मजबूत की ,चारो तरफ शोर शराबा था लेकिन ठाकुर का किला कालिया के लोगो के लिए अभेद्य ही रहा ,कालिया के लोग गोलियां खा रहे थे शिकस्त नजदीक दिखाई पड़ रही थी ,जैसे तैसे विक्रांत के सहारे वो गेट तक पहुच गए जिसे दीवाल तोड़कर बनाया गया था ,बाहर कालिया के लोग थे और अंदर ठाकुर के गोलियां ही दोनो ओर के लोगो की रक्षा कर रही थी ,विक्रांत के कारण ठाकुर का कोई आदमी उनपर गोली नही चला रहा था यंहा तक की परमिंदर भी रुक गया था ,
प्राण जब बाहर आया और सामने का नजारा देखकर बौखला गया उसका ही भी उसके दुश्मन की ढाल बना हुआ है ,उसने आव देखा ना ताव और गोलिया चला दी जो सीधे सामने खड़े हुए विक्रांत के सीने में जा धंसी …
"विक्रांत …"
कनक की चीख निकली लेकिन कालिया उसे खिंचता हुआ हवेली के पार जा चुका था,दोनो ओर से गोलियों की बरसात सी हो गई ,प्राण अपने दिल के अजीज भाई को इस हालत में देखकर खुद को रोक नही पाया और गोलिया बरसते हुए गेट के बाहर तक आ गया जिसे पर्मिदंर ही खिंच कर अंदर लाया ………
कालिया और ठाकुर दोनो के कई लोगो को गोलिया लगी थी और कुछ ही देर में माहौल में शमशान की तरह की शांति छा गई थी ………..
 
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प्राण अपने घर की खमोशी को महसूस कर रहा था,हाथो में जाम लिए वो परेशान दिख रहा था,कालिया से खेल खेलने की सजा में उसे अपने बीवी और भाई को खोना पड़ा था,दोनो ही अभी हॉस्पिटल में थे और जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे थे,परमिंदर उसकी खामोशी को समझ सकता था ,लेकिन वो कह कुछ भी नही सकता था,शायद ये सभी उसकी ही गलती के कारण हुआ था,वो सर झुकाए बाहर जा रहा था की प्राण ने उसे रोक लिया…
"परमिंदर यार ये क्या हो गया ...इतनी दौलत शोहरत अब किस काम की जब घर में कोई अपना ही नही …"
दरवाजे पर खड़ा प्राण के पहली बीवी का बेटा रणधीर सब सुन रहा था प्राण ने उसे देखा और अपने पास बुलाया ...उसके सर पर हाथ फेरा ,
"पापा माँ कहा है "
वो अभी बहुत छोटा था की इन सभी चीजों को समझ सके लेकिन उसकी माँ के गुजर जाने के बाद से पूनम उसे बहुत प्यार देती थी ,बच्चा छोटा था लेकिन प्यार को तो समझ ही सकता था,प्राण नही चाहता था की उस पर पूनम का साया ज्यादा पड़े क्योकि वो उसे भी अपनी तरह बनाना चाहता था लेकिन फिर भी आज उसकी बात सुनकर प्राण का दिल कचोट गया…
"वो कही गई है आ जाएगी जाओ तुम अपने कमरे में "
उसके जाते ही प्राण ने एक और पेग बनाया ...और गहरी सांस ली ..
"मैं उस औरत को कभी माफ नही करूंगा ...चाहे तुम कुछ भी कहो ना ही अपने भाई को ...लेकिन उस औरत को अपने पास जरूर रखूंगा ,ताकि कालिया की सारी जिंदगी उसे मेरे कैद से छुड़ाने में निकल जाए .."
उसने एक ही बार में अपना पूरा पेग खत्म कर दिया ……
 
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विक्रांत और पूनम की हालत में बहुत सूधार आ चुका था ,प्राण ने विक्रांत को कह दिया था की तू कनक से इस शर्त पर शादी कर सकता है की तुझे हवेली और जायजाद दोनो को छोड़ना होगा …
विक्रांत पड़ा लिखा था और अपने दम में कनक को पाल सकता था उसने हामी भर दी ,वही पूनम के पेट में गोली लगने से उसका गर्भाशय भी क्षति ग्रस्त हो चुका था,डॉ ने कह दिया था की वो कभी माँ नही बन पाएगी ,प्राण को ना जाने क्यो लेकिन ये सुनकर बेहद खुसी हुई ,क्योकि वो जानता था की पूनम के गर्भ में कालिया का बीज है …
दोनो के हॉस्पिटल से छूटने के बाद विक्रांत कनक से शादी कर हवेली छोड़कर शहर चला जाता है वही पूनम को प्राण अपने साथ ले आता है,पूनम एक जिंदा लाश सी हो गई थी,कालिया ने उससे मिलने की और उसे छुड़ाने की बहुत कोशिस की लेकिन सभी असफल रही …
ठाकुर और डाकुओं के बीच की जंग वैसे ही चल रही थी ,और ठाकुर को एक खबर मिली …
कालिया बाप बन गया है ,मानो ठाकुर के आंखों में चमक आ गई ,
वो अभी पूनम के कमरे में था …
"तुम्हे कालिया का बच्चा चाहिए था ना "
पूनम जैसे सपने से जागी ...वो आंखे फाड़ कर ठाकुर को देख रही थी ,
"सुना ही उसे जुड़वा लडकिया हुई है,उसकी बीवी और बहन को तो मैं अपनी रांड नही बना पाया लेकिन उसकी बेटियों को जरूर बनाऊंगा …"
ठाकुर की भद्दी हँसी से पूनम के प्राण कांप गए …
ठाकुर जा चुका था,कालिया को पिता बने लगभग 6 महीने हो चुके थे कालिया ने दोनो बेटियों का नामकरण किया चम्पा और मोंगरा ,ठाकुर के लोग दोनो पर नजर रखे हुए थे और एक दिन आया जब वो मोंगरा को कालिया के पहरे से चुराने में कामियाब रहे ,ठाकुर ने मोंगरा को लाकर पूनम की झोली में डाल दिया …
कालिया बौखलाया बहुत खून भी बहा लेकिन आखिर उसे हार का सामना ही करना पड़ा,ठाकुर अपनी जायजाद का काफी हिस्सा हवेली की सुरक्षा पर खर्च कर रहा था,उसने हवेली को और अपनी सुरक्षा को अभेद्य बना दिया था,पुलिस और राजनीति में उसके ही लोग थे ,वो दिन ब दिन ताकतवर हो रहा था ,नए नए हथियार और टेक्नालॉजी के इस्तेमाल के कारण वो कलिया जैसे डाकुओं के गिरोहों के पहुच से बहुत बाहर था ,हा वो कालिया को मरना चाहता था लेकिन उसमे उसे भी कुछ कामयाबी हासिल नही हो रही थी,लेकिन कालिया जंहा जंगल का बादशाह था वही जंगल के बाहर ठाकुर का राज था……..
पूनम ने मोंगरा को बेहद प्यार दिया ,लेकिन वो जानती थी की ठाकुर उसे किस लिए बड़ी कर रहा है ,वो उसे या तो अपने बेटे की रांड बना देगा या फिर उसे अपने ही पिता के खिलाफ इस्तेमाल करेगा…
लेकिन पूनम को एक उम्मीद सी दिखी वो था बलवीर का मोंगरा के प्रति प्रेम …
पूनम जानती थी ठाकुर को गिरना है तो परमिंदर को पहले गिरना होगा और परमिंदर की सबसे बड़ी कमजोरी थी उसका इकलौता बेटा बलवीर …
पूनम ने एक कठोर फैसला लिया और पूनम और बलवीर के प्यार को बढ़ावा दिया,वही रणधीर की नजर भी जवान होती मोंगरा पर टिकी रही ,वक्त बढ़ता रहा,चम्पा कालिया के गिरोह में तो मोंगरा ठाकुर के हवेली में बढ़ती गई ,दोनो ही जवानी की दहलीज पर पहुच गई थी और बला की खूबसूरत थी ,
मोंगरा को लेकर अक्सर ही बलवीर और रणधीर में लड़ाई होने लगी ये परमिंदर और प्राण दोनो के लिए चिंता का सबब बन चुका था,बलवीर ताकतवर था और बेहद ही गुसैल भी ,अगर वो परमिंदर का बेटा ना होता तो प्राण उसे कब का मरवा चुका होता ,लेकिन अब रणधीर की मोंगरा को पाने की बेताबी ,और बलवीर आ उसके प्रति बेहद प्यार ने दोनो बापो को चिंता में डाल दिया था,पूनम अब अधेड़ हो चुकी थी और उनकी हालत पर मुस्कुराया करती थी लेकिन उसे ये डर हमेशा ही रहता की मोंगरा किसी मुसीबत में ना फंस जाए,अब मोंगरा का हवेली में रहना उसे खतरे से खाली नही लग रहा था,लेकिन कैसे वो उसे यंहा से आजाद करे ……..
उसके दिमाग में एक बात कौंधी …
 
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मोंगरा अब 16 साल की हो चुकी थी और पुरषों में मुह में उसे देखकर ही लार आ जाती थी ,पूनम ने इरादा बनाया की वो मोंगरा को वो गुर सिखाएगी जो एक बेबाक और मजबूत लड़की में होना चाहिए,लड़को को अपने इशारे पर चलाने का गुर …
वो जानती थी की मोंगरा इतनी हसीन है की वो किसी भी मर्द की नियत को खराब कर दे लेकिन उसे ट्रेनिंग की जरूरत थी वैसी ट्रेनिंग जो एक जिस्म का धंधा करने वाली लड़की लेती है,या एक सीक्रेट सर्विस में काम करने वाली महिला ,किसी को हुस्न के जाल में फसाना और जब काम हो जाए तो उसे मौत के घाट उतने पर भी पीछे ना रहना …..
वो उस मासूम लड़की को खतरनाक बनाना चाहती थी ताकि वो एक नागिन सी जहरीली और मादक हो सके …
पूनम को मोंगरा को बचाने और उसे इस दलदल में भी कमल की तरह खिलाने का यही रास्ता दिखा,
वो अपने काम में लग गई थी ……...

"ये मुझे ऐसे क्यो देख रही है…"
मोंगरा के मादक मुस्कान को देखकर रणधीर आश्चर्य में पड़ गया था ..
"अरे ठाकुर साहब आखिर कब तक अपना मुह फुलएगी ,आप तो मालिक ही हो कभी ना कभी तो उसे आपकी ही होना है .."
रणधीर के खास चापलूस मनोहर ने कहा ,और अपनी बत्तीसी निकाली ..
मनोहर की चापलूसी रणधीर की छाती चौड़ी हो गई और अपनी जमीदार वाली अकड़ में वो अपने मूंछो को ताव देने लगा..
मोंगरा उसके इस प्रतिक्रिया पर खुद में हँस पड़ी …
'साले को लग रहा है की इसके रोब में फंस गई मोंगरा साले की अक्ल ठिकाने लगाती हु '
मोंगरा ने मन में सोचा और उसकी ओर मुह मटका कर ऐसे किया जैसे उससे उसे चिढ़ हो और बलवीर को हाथो से इशारा कर उसकी ओर चल दी ..
रणधीर ना सिर्फ मायूस हो गया बल्कि गुस्से से भी भर गया,जंहा उसे पाने की हवस में वो जला रहा रहा था मोंगरा थी की उसे कोई भाव ही नही देती थी ,आज पहली बार वो उसे देखकर मुस्कुराई थी लेकिन फिर ना जाने उसे क्या हो गया..उसकी छाती फिर से सिकुड़ गई …
वो मोंगरा के मटकते हुए पिछवाड़े को देख रहा था ,पता नही लेकिन आज जैसे मोंगरा के कमर में कुछ ज्यादा ही लचक थी जैसे उसे ललचा रही हो ,रणधीर के मुह से लार दी टपक गई वो मचल कर रह गया ,मोंगरा को उभरे हुए पिछवाड़े को देख कर उसे लग रहा था जिसे अभी उसे पकड़ कर भर दे लेकिन …
उत्तेजना उसके चहरे में दिख रही थी वो आंखे फाडे हुए उसे देख रहा था,जो लड़की उससे लगभग 10 साल छोटी थी,उसके सामने ही बड़ी हुई और आज उसका ही खड़ा करने में आमादा थी ,27 साल के रणधीर ने ना जाने कितनी लड़कियों को अपने नीचे लिटाया था लेकिन मोंगरा उसके लिए हसरत थी एक ख्वाब थी जिसे वो हर हालत में पूरा करना चाहता था …
वो नजर टिकाए हुए ही था की मोंगरा पलटी और उसने फिर से एक मुस्कान रणधीर को दी,मायूस रणधीर की जैसे बांछे खिल गई ,उसके दिल में एक लहर सी उठी ,इतने दिनों तक जिसे पाने को उसने इतने पापड़ बेले आज वो पहली बार उसे देखकर ऐसे मुस्कुराई थी ,लगा की मॉंगरा को पाने की मंजिल अब ज्यादा दूर नही रह गया है…
 
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रोज की तरह ही मॉंगरा बलवीर के साथ चली गई ,लेकिन आज रणधीर को ज्यादा गुस्सा नही आया क्योकि आज उसे वो मिला जो उसे कभी नही मिला था मॉंगरा की तरफ से एक इशारा..

*******
मॉंगरा अभी बलवीर के गोद में लेटी थी ,दोपहर का वक्त था और ठाकुर के हवेली के बगीचे में लगे हुए आम के पेड़ ने नीचे दोनो की ही फुर्सत का ठिकाना था,वो अक्सर ही यंहा आते थे,बलवीर की उम्र भी रणधीर जितनी ही थी लेकिन मोंगरा को देखने का नजरिया उसके बिल्कुल ही विपरीत …
वो रणधीर से कही ज्यादा बलशाली था,गठीला शरीर और रौबदार चहरा ...कोई भी लड़की उसे देखते ही रह जाती लेकिन आज तक बलवीर के जेहन में मोंगरा के अलावा और कोई नही आ पाई थी …
"वो साला कुत्ता तुझे आज फिर ऐसे देख रहा था ,जी करता है साले की आंखे निकाल दु …:
मोंगरा हल्के से हँसी ,जैसे वो बलवीर को अधीर देखकर अधिकतर करती थी ..
"क्यो तुम्हे इतनी जलन क्यो होती है उससे "
मोंगरा के सवाल पर बलवीर ने एक बार उसे घूरा लेकिन कुछ भी नही कहा ..
"तुम मेरे भाई हो क्या "
बलवीर जैसे झुंझला गया
"किसने कहा "
"सब कहते है की बलवीर और मोंगरा भाई बहन की तरह रहते है "
"नही मैं तेरा भाई नही हु"
मोंगरा के चहरे पर एक हल्की मुस्कान आई …
"तो क्या हो ,..मेरे घरवाले .."
मोंगरा खिलखिलाई ,लेकिन बलवीर हड़बड़ा गया
"छि कैसी बात करती हो ,शर्म नही आती क्या,शर्म बेच खाई हो क्या "
बलवीर की भोली बाते मोंगरा को बहुत अच्छी लगती थी ,बलवीर उससे उम्र में ही बड़ा था लेकिन समझ में वो मोंगरा को बच्चा ही लगता था,या ये कहे की बलवीर अपनी समझदारी मोंगरा पर नही झाड़ता था ..
"तो ऐसे क्यो जलते हो ,देखने दो अगर देखता है तो .."
बलवीर गुस्सा में आ गया ,वो खड़ा होने लगा ..
"तो जा उसी के पास ,तुझे तो उसका देखना अच्छा लगता है ना कैसे उसके सामने ही कमर मटका के चल रही थी …"
मोंगरा फिर से हँस पड़ी लेकिन बलवीर गंभीर था उसके चहरे से गुस्सा टपक रहा था,वो जाने को हुआ और मोंगरा जल्दी से उठाकर पीछे से उसके जकड़ ली ..और अपना सर उसके पीठ पर टीका दिया …
"छोड़ मुझे ..पैसे का बहुत प्यार हो गया है तो जा उसी के साथ ..हम कौन है तेरे "
"नही …"मोंगरा की आवाज बहुत ही धीमी थी
"मुझे क्यो पकड़ती है जा ना उसी के पास ..उसका देखना तुझे अच्छा लगता है ना "
बलवीर की बात से मोंगरा सिसकने लगी ,उसकी सिसकियां सुनकर बलवीर फिर से हड़बड़ाया,बलवीर कभी मोंगरा को रोता हुआ नही देख सकता था वो पलटा और उसे अपने बांहो में उठाकर फिर से उस आम के छाव में ले गया,वो किसी गुड़िया सी मोंगरा को उठाये हुए था,अब मोंगरा बलवीर के छाती से लगी सिसक रही थी और उसकी गोद में बैठे हुई थी ..
बलवीर ने उसके सर पर प्यार से अपने हाथ फेरे ..
"मेरी बात का इतना बुरा मान गई क्या ,तुझे पता है ना की मैं तुझे रोता हुआ नही देख सकता "
उसकी बात सुनकर मॉंगरा थोड़ी और उसके छाती से लग गई ..
"तुम्हे क्या लगता है की पैसा मेरे लिए तुझसे ज्यादा जरूरी है ,या तू ये सोचता है की तेरी जगह कोई और ले सकता है …मैं अगर यंहा हु तो सिर्फ तेरे और माँ की वजह से वरना कब की मर गई होती ,कैसे देखते है मुझे ये हवेली के लोग ,कोई मारने की बात करता है तो कोई कलंक कहता है,यंहा मुझे कोई भी पसंद नही करता बलवीर लेकिन एक तू ही है जो मुझे सच्चे मन से अपना मानता है…"
मोंगरा के कहने से बलवीर भी भावुक हो गया था,वो जोरो से उसे अपने गले से लगा लेता है ..
"तुझे कोई और देखे ना दिल जल जाता है मेरा पता नही क्या हो जाता है .."
मोंगरा के आंसुओ से भरे नयना में भी मुस्कुराहट झलक गई…
"इतना प्रेम है मुझसे .."
बलवीर सोच में पड़ गया
"प्रेम का तो नही पता लेकिन जो भी है बस ऐसा ही है .."
मोंगरा ने अपना चहरा ऊपर किया ..
"उसे देखकर अपनी कमर मटकाने या उसे देखकर मुस्कुराने में मुझे मजा नही आता बलवीर ना ही उसे ही मुझे दूसरी औरतो की तरह उसके पैसे चाहिए जो उसके साथ जा के सो जाऊ...लेकिन उसके सहारे मुझे इस कैद से आजाद होना है …"
बलवीर उसकी बात सुनता ही रह गया उसे समझ नही आ रहा था की आखिर वो करना क्या चाहती है ..
"तू करना क्या चाहती है मोंगरा "
मोंगरा के होठो में रहस्यमयी हँसी आ गई ..
"तू बस देखता जा लेकिन कभी अपनी मोंगरा की नियत पर संदेह मत करना ,और कभी मुझसे नाराज नही होना..चाहे कुछ भी हो जाए ..कसम खा मेरे सर की "
मोंगरा ने बलवीर के हाथो को अपने सर पर रख दिया ,बलवीर बस किसी कठपुतली उसे कसम दे बैठा..
बलवीर को इस कसम की कीमत बहुत महंगी चुकानी पड़ी ,लेकिन वो मोंगरा के प्रति उसका प्यार ही था की उसने कभी उफ तक नही किया ……...

मोंगरा की गर्म सांसे रणधीर के चहरे में पड़कर रणधीर के दिल को पिघला रही थी , जीवन में पहली बार वो मोंगरा के इतने नजदीक था ,दिल की धड़कने किसी ट्रेन की तरफ दौड़ रही थी ,ये रणधीर का ही कमरा था जंहा से निकलते हुए मोंगरा को उसने बस इतना कहा था की 'रानी इधर भी आ जाओ '
हर बार की तरह उसने सोचा था की मोंगरा बुरा सा मुह बनाकर चली जाएगी लेकिन मोंगरा अंदर आ गई ,ना सिर्फ आयी बल्कि रणधीर से चीपक कर खड़ी हो गई,मोंगरा की उन्नत छतिया रणधीर के सीने में धंस रही थी ,और रणधीर अपनी सांसे रोके हुए खड़ा था,रणधीर ने अब तक मोंगरा को लेकर कई ख्वाब देखे थे ,वो सोचता था की जब मौका मिलेगा तब वो उसे दबोच लेगा,लेकिन आज मौका था जो खुद मोंगरा ने दिया था लेकिन रणधीर किसी भीगी हुई बिल्ली की तरह सहम गया था,वो असल में मोंगरा के इस अचानक बदले व्यव्हार से ही घबरा गया था क्योकि इसकी तो उसने कभी कल्पना भी नही की थी …
उसके सब ख्वाब बस ख्वाब ही रह गए थे,
वही मोंगरा को पता था की रणधीर की ऐसी ही हालत होगी ,ये उसकी मुह बोली माँ पूनम ने उसे पहले ही बता दिया था,आखिर इतने सालो से वो रणधीर को जानती थी ..
रणधीर की सांसे अटकी हुई थी और मोंगरा के होठो में एक कातिल मुस्कान थी ,वो अच्छे से सिख रही थी…
"क्या बोलना है ठाकुर साहब ,रोज बुलाते हो आज आ गई तो ऐसे क्यो घबरा रहे हो,कभी लड़की नही छुई क्या …"
रणधीर जल्दी से जगह बना कर थोड़ा अलग हुआ ..
"तुझमे ना जाने इतना करेंट कहा से आया "
वो हड़बड़ाकर बोल गया ,और मोंगरा हँस पड़ी ..
"करेंट तो हमेशा से था इसलिए तो आज तक तू मुझे नही छू पाया,बस मुझे घूरता रहा,छेड़ता रहा लेकिन …"
"वो ...वो तो मैं पिता जी और माँ के कारण …"
"ओहो बहाने तो देखो ,,"मोंगरा फिर से मुस्कुराई लेकिन तब तक रणधीर सम्हाल चुका था और उसके लिंग ने फुंकार मारनी शुरू कर दी ,
जब इंसान अपने लौड़े की सुनने लगता है तो डर कोसो दूर भाग जाती है,रणधीर भी मोंगरा के पास आकर उसके कमर को अपने हाथो में फंसा उसे अपने से सटा लेता है,
मोंगरा जिसने एक नई फ्रॉक पहनी थी जिसे बलवीर ने उसे लाके दिया था,उसे अपने जांघो के बीच रणधीर की मर्दानगी का अहसास होने लगा,उसका लिंग लोहे से कड़ा हो गया था,
उसकी सांसे उखड़ी हुई थी शायद वो अपने ख्वाब को पूरा करना चाहता था ,उसकी लुंगी से उसका लिंग बाहर झकने लगा था ..
मोंगरा ने उसके कमर को अपनी ओर और खिंच लिया और उसका लिंग मोंगरा के जांघो के बीच से होता हुआ उसके पेट तक रगड़ खा गया ..
"आह …"
रणधीर की आंखे बंद हो गई क्योकि मोंगरा ने उसे ऐसे जकड़ा था की उसके लिंग की चमड़ी भी खिसक गई थी ,सूखे हुए कपड़े में रगड़ खाने से उसे थोड़ा दर्द तो हुआ लेकिन मजे के असीम आकाश में वो दर्द कही गुम ही हो गया था,
मोंगरा ने उसे थोडा और पीछे किया और उसके खड़े हुए लिंग को अपने हाथो में भर लिया,रणधीर बस उस हसीना के अदांओ पर आश्चर्यचकित हुआ आंखे फाडे अपने किस्मत पर इठला रहा था,वो क्या करने वाली थी इसका अंदाज लगा पाना उसके दिमाग के बाहर ही था..
मोंगरा ने मुस्कुराते हुए उसे देखा ,
"यही सब कुकर्मो की जड़ है बोल तो इसे काट दु "
मोंगरा के हाथ में पास ही पड़ा हुआ एक चमकदार चाकू था जिसे उसने अभी अभी उठाया था ,रणधीर का डर से बुरा हाल हो गया ,जिसका पता उसके लिंग के तनाव से ही पता लग रहा था वो ऐसे सिकुड़ा जैसे गुबबरे से हवा निकल रही हो ..
मोंगरा जोरो से हँसी ,इतने जोरो से की पूरे कमरे में सिर्फ उसकी हँसी गूंजने लगी…
उसने रणधीर के लिंग को छोड़ दिया और उसके चहरे का भाव अचानक ही बदलने लगा ,वो दृढ़ हो चुका था आंखे जैसे अंगारे थी ..
"मोंगरा को पाने के लिए शेर का दिल चाहिए,तेरे जैसे गीदड़ का नही जो बात बात पर डर जाए,जब ऐसी हिम्मत हो तो मेरे पास आना ,सब कुछ दूंगी तुझे .."
रणधीर बस उसे जाते हुए देखता रहा उसके मोंगरा के इस रूप को देखकर उसका चहरा पसीने से तर हो चुका था ...
 
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इधर रणधीर मॉंगरा के रूप जाल में फंसता जा रहा था तो वही हवेली के बाहर की स्तिथि भी गर्म थी,कालिया के ऊपर लोगो का भरोषा बढ़ने लगा था,तिवारी की मदद से कुछ पुलिस वाले भी अब उसके मददगार थे,कुछ अधिकारियों तक उसका पैसा जाता था जिससे वो उसका थोड़ा मोड़ा सहयोग कर दिया करते थे,देखा जाय तो कालिया की धाक और ताकत अब भी प्राण के मुकाबले कुछ भी नही थी लेकिन फिर भी प्राण के लिए तो एक सर दर्द ही था,और दूसरी सर दर्द उसके घर में ही पल रही थी ,अगर प्राण को पता होता की ये लड़की आगे जाकर उसकी इतनी गांड मारने वाली है तो शायद वो उसे रंडी बनाने के सपने नही देखता कब का मार चुका होता,लेकिन प्राण ने भी वही भूल कर दी जो अधिकतर लोग कर जाते है ,औरत को कम समझने की भूल …
रणधीर मोंगरा के रूप जाल में तो फंस ही चुका था लेकिन उसे जो चीज ज्यादा तकलीफ दे रही थी वो थी उसका व्यंग बाण जो उसने रणधीर के ऊपर छोड़ा था,मोंगरा के शब्द रणधीर के कलेजे पर तीर की तरह चुभ गए थे,लेकिन उसकी ये समझ के परे था की ये तीर कितने दूर की सोच कर लगाई गई थी ,मोंगरा और पूनम भी चाहती थी की ऐसे शब्द बोले जाय जो रणधीर को सोचने पर मजबूर कर दे ,साथ ही उसका ये भरम भी मिट जाए की मोंगरा कोई ऐसी वैसी लड़की है ,वो उसे मोंगरा के लिए पागल कर देना चाहते थे,लेकिन वो नशा कुछ अलग होने वाला था..
मोंगरा ने रणधीर की ओर देखना भी बंद कर दिया था,अब वो उससे बात करने की कोशिस करता,जैसे कुछ बदल गया था ,वो उसे इम्प्रेस करने की कोशिस करता लेकिन उसकी कोई भी बात मोंगरा को इम्प्रेस कर पाने में नाकाम होती …
"आखिर तुम चाहती क्या हो "
एक दिन उसने मोंगरा का रास्ता ही रोक दिया..
मोंगरा ने उसे पहले तो गुस्से से घूरा लेकिन देखते ही देखते उसके चहरे में एक अजीब सी मुस्कान खिल गई ..
"पूछ तो ऐसा रहे हो जैसे जो बोलूं दे ही दोगे ,चलो हटो मेरे रास्ते से .."
"अरे बोल कर तो देखो .."
रणधीर बेहद ही कांफिडेंस में था ,मोंगरा ने एक बार आसपास देखा वँहा कोई भी नही था..
"बलवीर बता रहा था की बाहर शहर में सिनेमा घर है और वँहा बहुत बड़ा पर्दा है ….."
मोंगरा ने ऐसे कहा जैसे किसी दूसरी दुनिया की बात कर रही हो ..रणधीर के होठो में मुस्कान आ गई
"तुम्हे देखना है "
मोंगरा के तेवर अचानक ही बदल गए..वो ललचाई आंखों से उसे देखने लगी ..
"तुम सच में दिखा सकते हो ,लेकिन ठाकुर साहब तो मुझे हवेली से बाहर जाने ही नही देते .."
"मैं भी तो ठाकुर हु "
"लेकिन …"
"जाना है ...की नही .."
"हा "मोंगरा ने धीरे से कहा
"तो चलो लेकिन मुझे क्या मिलेगा "
रणधीर का डर जैसे चला गया था,
"हर चीज के लिए तुम्हे कुछ देना ही पड़ेगा क्या ..?"
मोंगरा शरारत से बोली जैसे सब कुछ ठीक हो गया हो …
"तुमने ही तो कहा था तुम्हारी बन जाऊंगी .."
"ओ हो बड़े आये .."
वो थोड़ी देर चुप रही
"अच्छा चलो कुछ दे दूंगी ,लेकिन बलवीर भी हमारे साथ जाएगा "
बलवीर का नाम सुनकर रणधीर के चहरे का रंग उड़ गया वो थोड़ा मायूस दिखा ..
"अरे उसे दूर बिठा देंगे और हम साथ बैठ जाएंगे ,अब वो मेरा इतना अच्छा दोस्त है मैं उसके बिना कैसे जाऊंगी .."
रणधीर अचानक से ही चौका लेकिन फिर उसके दिमाग में आया ,यार ये दोस्त भी तो हो सकते है..हो सकता है की वो जैसा सोचता हो वैसा ना हो..
"लेकिन वो तुम्हे मेरे साथ देखके बुरा नही मान जाएगा .."
रणधीर ने अपना शक बोल ही दिया ..
"क्यो मानेगा,वो मेरा दोस्त है ..सबसे अच्छा दोस्त और मुझे खुश देखकर उसे तो खुसी ही होगी..और उसे भी फ़िल्म देखने मिल जाएगा,.."
रणधीर कुछ सोच में पड़ा था..
"देखो रणधीर मैं तुम्हे पसंद करती हु ,और मुझे नही लगता की बलवीर को इसमें कोई दिक्कत होगी ,वो तो तुम पर इसलिए गुस्सा करता था क्योकि तुम मुझे ऐसा वैसा कहते थे,लेकिन कुछ दिनों से तुम्हारे व्यव्हार में आये बदलाव ने उसे भी तुम्हारे प्रति एक नया नजरिया दे दिया ,कल तो उसने ही कहा की रणधीर से जाकर बात कर ले वो परेशान सा दिख रहा है…."
रणधीर को यकीन ही नही हुआ की बलवीर उसके बारे में ऐसा बोलेगा ..
"हम सब साथ ही तो बड़े हुए है फिर हमारे बीच काहे का बैर …"
कहते कहते ही मोंगरा की नजर थोड़ी आगे बढ़ गई जंहा से बलवीर आ रहा था ,
वो बलवीर को देखकर उसके सीने से लग गई और पूरी बात बता दी ..बलवीर गंभीर था लेकिन उसने रणधीर की ओर हाथ बड़ा दिया ..
"मेरी मोंगरा का ख्याल रखना ,अगर इसको चोट पहुचाई तो सोच ले ..मैं नही देखूंगा की तू किसका बेटा है .."
"तूम फिर शुरू हो गए ..बस एक फ़िल्म तो देखना चाहते है हम साथ में शादी थोड़ी ना कर रहे है.."मोंगरा खिलखिला दी,बलवीर के होठो में भी एक मुस्कान आयी और दोनो के चहरे में आये भाव ने रणधीर को भी थोड़ा सहज किया
 
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रणधीर मोंगरा को फ़िल्म दिखाने के लिए मान तो गया था लेकिन उसे बलवीर अब भी खटक रहा था,उसने अपने खास लोगो से थिएटर को घेरने को कहा और अपने खास चापलूस मनोहर को भी अपने साथ ले गया,थिएटर पूरी तरह के खाली था,बलवीर और मनोहर को बालकनी की सबसे आगे वाली सीट पर बिठाया गया वही मोंगरा और रणधीर आखरी लाइन में एक बड़े से सोफे जैसे सीट में बैठे जिसे रणधीर की खास फरमाइश में वँहा लगाया गया था ,वो सीट उसके लिए ही थी ..
"ये पूरा थियेटर खाली क्यो है कोई बकवास फ़िल्म तो नही ले आये मुझे"
मोंगरा की बात पर रणधीर थोड़ा मुस्कुराया
"अरे मेरी जान जब हम फ़िल्म देखते है तो बस हम ही देखते है ,पूरी टिकिट हमने ही खरीद ली है "
मोंगरा के होठो में मुस्कान थी ..
बलवीर मनोहर को घूर के देख रहा था,मनोहर की बलवीर से ऐसे भी फटती थी लेकिन क्या करे मालिक ने हुक्म जो दिया था निभाना तो पड़ेगा ही …
बलवीर के मन में मोंगरा को लेकर चिंताएं गहरा रही थी लेकिन वो जानता था की मोंगरा जो भी कर रही थी वो सही ही होगा ,उसे अपने से ज्यादा मोंगरा पर भरोषा था,
फिर भी वो मुड़ मुड़ कर देख ही लेता,दोनो अभी बात ही कर रहे थे,वो बहुत दूर थे लेकिन फिर भी बलवीर को वो दिख रहे थे,जब रणधीर ने बलवीर को पलट कर देखते हुए देखा उसने बस एक इशारा गेट पर खड़े हुए गार्ड की ओर किया ,कुछ ही मिनट में थियेटर की लाइट बंद हो गई और फ़िल्म शुरू हो गई ,अब बलवीर को दोनो स्पष्ट नही दिख रहे थे,लेकिन फिर भी फ़िल्म के लाइट में दोनो का थोड़ा आभस जरूर हो रहा था,
मोंगरा ने अपने जांघो में रणधीर के हाथ का आभास किया ..
जो उसे हल्के हल्के से रगड़ रहा था..
"बहुत जल्दी है तुम्हे .."
मोंगरा की बात व्यंग्यात्मक थी ..उसने रणधीर के हाथो को जकड़ लिया था,
"अरे मेरी जान थोड़ी तो जल्दी है मुझे ,ऐसे भी तुम्हारी ये अदा ही हमे मार डालती है.."
मोंगरा खिलखिलाई,
"अच्छा तो इतने दूर क्यो हो पास आ जाओ नही खाऊँगी तुम्हे "
मोंगरा ने रणधीर के कॉलर को पकड़कर उसे अपने पास खिंच लिया..
रणधीर उसके इस प्रहार से स्तब्ध था लेकिन अब उसे ऐसे झटकों की आदत हो चुकी थी वो समझ चुका था की ये लड़की कोई भी झटका दे सकती है …
मोंगरा की सांसे अब रणधीर की सांसों से टकरा रही थी ,रणधीर मन मुग्ध होकर उसके उस काया को देख रहा था,सच में कितनी सुंदर थी मोंगरा कभी कभी उसे ऐसा लगने लगता था की उसे इस हसीना से प्यार हो गया है लेकिन फिर वो अपने को सम्हालने की कोशिस करता था..
मोंगरा भी उसकी आंखों में देख रही थी …
"क्या हुआ मेरे ठाकुर साहब आंखों में ही खो जाओगे क्या "
मोंगरा की बात में अजीब सा आकर्षण था,उसने इसे बहुत ही होले से कहा था जैसे उसकी सांसे ही आवाज का रूप लेकर निकल रही हो ,कानो के पास कही गई इस बात में हल्की सी मदहोशी भी थी और हल्की सी शरारत भी ,
ये रणधीर के लिंग में नही बल्कि दिल के किसी कोने में चोट कर गई ,
"लगता है जीवन भर तेरी आंखों को ऐसा ही देखता रहू .."
मोंगरा हल्के से हँसी लेकिन उस हँसी में अजीब सा दर्द था..
"कितनी लड़कियों से ये बात कह चुके हो ठाकुर साहब ,जो करने आये हो वही करो,क्यो प्यार का झूठा शगूफा फैलाने की कोशिस कर रहे हो .."
रणधीर मोंगरा की बात को समझ चुका था,उसका सर नीचे हो गया..
"मैं जानता हु मोंगरा तुम मेरी बात का भरोसा नही करोगी लेकिन यही सच है की तुम्हारे लिए मेरे दिल में कुछ अजीब सा है जो किसी दूसरी लड़कियों के लिए नही होता,तुम्हे पाने की इच्छा तो मेरी है लेकिन जबरदस्ती नही .."
मोंगरा मुस्कुराई
"जबरदस्ती कर भी नही सकते,मुझे क्या ऐसी वैसी लड़की समझ कर रखा है.."
इस बार रणधीर भी मुस्कराया
"तू तो सब से अलग है मेरी जान ,और मैं तो तेरा दीवाना हु "
रणधीर ने अपना हाथ मोंगरा की साड़ी के झांकती हुई कमर में डाल दिया और उसे अपनी ओर खिंच लिया,और मोंगरा के फुले हुए गाल में एक बेहद ही संवेदनशील और प्यार से भरा हुआ चुम्मन झड़ दिया,
मोंगरा उसके आभस से थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन खो सी गई ,उसमें एक अजीब सी मिठास थी लेकिन मोंगरा ने तुरंत ही अपने सर को झटका दिया ,तभी रणधीर ने अगला किस मोंगरा के गले में कर दिया था,वो कसमसाई और रणधीर को थोड़ा और अपनी ओर खिंच लिया,यंहा फ़िल्म तो चल रही थी लेकिन कोई भी फ़िल्म देखने नही आया था सबका एक अलग ही उद्देश्य था,बलवीर बार बार पीछे पलटता था लेकिन अंधेरे में उसे कुछ भी दिखाई नही दे रहा था लेकिन जो परछाई उसे दिख रही थी उसमे उसे इतना तो आभस हो चुका था की दोनो गले मिले हुए है ,उसके दिल में एक दर्द उठा,अचानक उसकी नजर मनोहर से मिली जो अपनी दांत निकाले हुए हँस रहा था शायद उसने भी पीछे देखा था,बलवीर ने एक जोर का घूंसा उसके मुह में दे मारा,मनोहर की दो दांत टूटकर उसके हाथ में आ गई और मुह से खून फेक दिया ,वो सहमे हुए गुस्से से भरे हुए बलवीर को घूर रहा था..
"निकल यंहा से मादरचोद "
बलवीर की बात सुनकर वो दौड़ाता हुआ रणधीर के पास पचूच गया,रणधीर अभी मोंगरा के कंधे पर अपने चुम्मन की बरसात कर रहा था जिससे मोंगरा भी मदहोश हो रही थी और उसका साथ दे रही थी ,की ..
"ठाकुर साहब बलवीर ने देखो क्या किया मेरे दांत तोड़ दिए .."
रणधीर को उसकी बात सुनकर बेहद गुस्सा आया और उसने उसके गाल पर एक जोर की चपात लगा दी ,
"मादरचोद देख नही रहा है की मैं बिजी हु भाग यंहा से "
मनोहर की ये हालत देखकर मोंगरा जोरो से हँस पड़ी ..
"तुम जाओ और किसी से मरहम पट्टी करवा लो मैं बलवीर से बात कर लुंगी …"
"अरे जान रुको ना कहा जा रही हो ,"
"वो गुस्से में रहा तो कुछ भी कर देगा "
"वो कुछ नही करेगा इस साले की शक्ल ही ऐसी है की कोई भी इसे मार दे तुम आओ ना मेरे पास ,तू जा भोसड़ीके और चहरा मत दिखाना फ़िल्म खत्म होते तक "
मनोहर मायूस सा वँहा से निकल गया ,और रणधीर ने मोंगरा का हाथ खिंचकर फिर से उसे अपने से सटा लिया ,वो खिलखिलाते हुए उसके गोद में जा समाई ..
रणधीर ने मोंगरा के छातियों को छुपाए हुए साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दिया और उसके सीने की शुरुवात में अपने होठो को लगा दिया,वो नीचे जा रहा था जंहा मोंगरा के स्तनों को उसके ब्लाउज ने बड़ी ही मुश्किल से सम्हाल कर रखा था,स्तनों के ब्लाउज से झांकते हुए खुले भाग पर अब रणधीर के होठ थे ,उसे अपनी किस्मत पर यकीन ही नही हो पा रहा था की जिसे वो जीवन में सबसे जायद पाने की कोशिस और चाहत करता था आज वो उसके पास है,वो पूरी तरह से मोंगरा के रस को पीना चाहता था,उसका लिंग भी अब अपनी तैयारी में था,वो मोंगरा के खुले हुए कमर को अपने हाथो से मसलने लगा था ,दोनो की ही सांसे अब तेज थी जो संकेत थी की दोनो ही अपनी मदहोशी को अब काबू नही करना चाहते ,रणधीर ने अपने शर्ट को खोल कर फेक दिया ,मोंगरा के हाथ अब उसके सीने के बालो से खेल रहे थे,मोंगरा की आंखे भी अब नशीली हो चुकी थी वो अपने हाथो से अब मोंगरा के गदराए हुए सीने में फले हुए आमो को जोरो से दबाने लगा था,वो जैसे उसे निचोड़ ही देना चाहता था..
"आह धीरे करो ना .."मोंगरा की सिसकियां गूंजने लगी थी
"अब सहा नही जा रहा है जान ,मोंगरा के ब्लाउज का एक बटन टूट कर गिर गया और अब रणधीर का हाथ उसके खाली जगह में घुस गया,मोंगरा ने कोई भी ब्रा जैसी चीज नही पहने थे ,रणधीर का हाथ सीधे ही उसके निप्पलों से टकराया ,
"ओह "मोंगरा ने ताकत लगा कर उसके सर को अपने सीने से लगा लिया,मोंगरा की ताकत इतनी थी की रणधीर को लगा की इन गोल भारी गुब्बारों के बीच उसका दम ही निकल जाएगा,वो छटपटा रहा था लेकिन मोंगरा की गिरफ्त तब भी बहुत मजबूत थी ,मोंगरा उसे देखकर मुस्कुराई और अपने हाथो से अपने एक कबूतरो को आजाद कर दिया ,मोंगरा ने अपने ब्लाउज के सारे बटन ही खोल दिए ,दोनो ही पर्वत बाहर झूलने लगे जिसमे से एक को मोंगरा ने रणधीर के मुह में ठूस दिया,वो सांस ना ले पाने के कारण छटपटा तो रहा था लेकिन फिर भी अपने मुह से उसके स्तनों को बाहर नही निकलना चाहता था,मोंगरा उसकी इस स्थिति को देखकर थोड़ा हँसी और उसे अपने गिरफ्त से आजाद कर दिया,रणधीर अब एक हाथ से उसके स्तन को दबा रहा था वही मुह में भर कर पूरा रस भी चूस रहा था,मोंगरा की हालत भी खराब थी और वो उसके बालो को चूम रही थी ,उसकी सिसकी से रणधीर और भी मदहोश होकर स्तनों को निचोड़ता ,.......
तभी थियेटर का दरवाजा खुला और अचानक ही लाइट जल गई ,मोंगरा हड़बड़ाया कर जल्दी से अपने साड़ी के पल्लू से अपने सीने को ढक लिया,रणधीर गुस्से से गेट की ओर देखा लेकिन फिर उसका गुस्सा डर में बदल गया था ..
वही हाल बलवीर का था,वो पहले मोंगरा को देखकर दुखी हो गया लेकिन फिर दरवाजे में खड़े शख्स को देखकर चौक गया ..
गेट पर पर्मिदंर खड़ा हुआ था और बहुत ही गुस्से में लग रहा था…..
 
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उसने बस तीनो को बाहर आने का इशारा किया और वँहा से निकल गया ,रणधीर जल्दी से अपने कपड़े पहन कर बाहर भागा ..
बलवीर भी मोंगरा के साथ हो ली ,
"ये इतनी जल्दी कैसे आ गए .."
मोंगरा ने बलवीर को हल्के से पूछा ,पहले तो बलवीर ने उसे गुस्से से देखा ..
"मुझे क्या पता माँ ने बापू को शायद जल्दी ही बता दिया ..और तुम तो ये सब इतनी जल्दी नही करने वाली थी ना,अगर बापू नही आते तो .."
बलवीर के गुस्से को देखकर मोंगरा मुस्कुरा उठी और बलवीर के गालो को प्यार से चूम लिया ..
"क्या करू मैं भी थोड़ा बहक गई थी ,अब जल्दी चलो देखते है हमारी इस हरकत से हवेली में क्या कोहराम मचेगा .."
चटाक ….
प्राण गुस्से से कांप रहा था,वही रणधीर के लिए ये शाररिक से जायद मानसीक और भावनात्मक दर्द था,हवेली का माहौल तनावपूर्ण था,पिता ने अपने पुत्र पर पहली बार हाथ उठाया था,
"तुम इस रांड के कारण हमारे नियमो को तोड़ दिया,क्या तुम्हे पता नही की इसे बाहर जाने की इजाजत नही है …"
प्राण ने कांपते हुए कहा ..
रणधीर की नजर नीचे थी ..
"ठाकुर साहब आप खामख्वाह डर रहे है मैं कहा भाग जाऊंगी जो आप मुझे बांध कर रखना चाहते है ,और रणधीर ने जो भी किया वो मेरे कारण किया सजा मुझे मिलनी चाहिए…"
मोंगरा की निडरता से प्राण और भी बौखला गया ..
"चुप कर रांड …ये हमारे घर का मामला है "
प्राण चिल्लाया
"पिता जी आप उसे बार बार यू रांड कहना बंद कीजिये वो रांड नही है "
रणधीर की इस बात से सभी स्तब्ध रह गए वही मोंगरा और पूनम के होठो में दबी हुई मुस्कान आ गई ,प्राण स्तब्ध सा रणधीर को देख रहा था ..
वो गुस्से में उसके ऊपर फिर से हाथ उठाने ही वाला था कि परमिंदर ने उसे रोक लिया ,
"चले जाओ यंहा से "
प्राण कांपते हुए बस इतना ही कह पाया …
 

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