Adultery खूबसूरत डकैत(completed)

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खूबसूरत डकैत

1
पुलिस थाने में सुबह से हलचल थी ,बड़े बड़े पुलिस के अधिकारी सुबह से वहां जमावड़ा लगाए बैठे थे ,साथ ही थे बहुत से प्रेस वाले ,
अभी भी इंस्पेक्टर प्रभात ठाकुर का सर पुलिस स्टेशन के गेट पर लटक रहा था ,वँहा का स्टाफ ख़ौफ़ज़दा दिखाई पड़ रहा था ,जिला S.P. बाकी के अधिकारियों के साथ विचार विमर्श में लगे हुए थे …
तभी गाड़ियों का काफिला वँहा आकर रुक गया
कई गनमैन निकले और सभी अधकारी उठकर खड़े हो गए ,सामने से आ रहे थे केशरगड के जमीदार और विधायक साहब ठाकुर प्राण सिंह …
चहरे के रौब से अच्छे अच्छे थर्रा जाए लेकिन आज उनके ही आदमी को इस बेरहमी से मार दिया गया था ,
"आइए ठाकुर साहब "
जिला S.P. खड़ा हो गया था
"हम यंहा बैठने नही आये है एस .पी. कब पकड़ोगे तुम मोंगरा देवी को "
मॉंगरा का नाम सुनकर ही सभी की बोलती बंद हो गई ..
"हम पूरी कोशिस कर रहे है ठाकुर साहब "
"अरे मा चुदाएं तुम्हारी कोशिशें तुम लोगो से कुछ भी नही होगा"
ठाकुर के मुह से गली सुनकर एस.पी. भी भड़क गया
"हमे गली देने से क्या होगा आपके पास भी तो बाहु बल है बहुत बाहुबली बने फिरते हो आप ही क्यो नही पकड़ लेते उसे ,प्रभात आपका ही तो आदमी था "
ठाकुर को मानो झटका लगा ,जैसे उसे किसी ने दर्पण दिखा दिया था ,वो सकपकाया और चिढ़ते हुए वँहा से चला गया …
इस सब घटनाक्रम को वँहा पदस्थ नया इंस्पेक्टर अजय देख रहा था ,उसे आज ही बुलाया गया था ताकि तुरंत ही जॉइन कर ले ,बेचारा अभी अभी तो सब इंस्पेक्टर की ट्रेनिंग से इंपेक्टर बना था नई नई उम्र थी और ऐसी जगह ट्रांसफर कर दिया गया जंहा कोई भी नही आना चाहता था …
अजय ने डरते हुए वँहा के हेड कांस्टेबल राधे तिवारी से कहा
"पंडित जी ये मोंगरा कौन है "
"मत पूछिये इंस्पेक्टर साहब नाक में दम कर के रखा है इस लड़की ने ,कभी इसी गांव की एक नाजुक सी भोली भली परी हुआ करती थी,लेकिन हालात ने ऐसी पलटी खाई की आज लोग उसे खूबसूरत डकैत के नाम से जानते है .."
अजय के मुह से आश्चर्य से निकाला
"खूबसूरत डकैत ???"
 
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रात के अंधियारे में झींगुरों की आवाजे फैल रही थी
छोटी छोटी पहाड़ियों के बीच कुछ लोग हथियारों के साथ खड़े या बैठे हुए थे एक छोटी सी गुफा नुमा जगह में एक बहुत ही हसीन लेकिन भरे हुए बदन की औरत लेटी हुई थी ,उसके पैरो के पास ही एक लंबा चौड़ा मर्द बैठा हुआ था जो उस लड़की के पैरो को दबा रहा था,कमरे में मशालों से थोड़ा उजाला था ,
उस आदमी की छाती चौड़ी और बालो से भारी हुई थी उसका बदन नंगा था और मशाल की रौशनी में चमक रहा था,वो कोई काम का देवता ही प्रतीत हो रहा था वही वो महिला भी किसी काम की प्रतिमा सी दिखाई दे रही थी ,बिल्कुल मांसल दार अंग जो की अपने गोर रंग और तेल के कारण चमक रहा था,हर अंगों में संतुलित भराव था,लेकिन कही भी मांस या चर्बी की अधिकता नही थी ,वो मर्द भी उसे ललचाई निगाहों से देख रहा था लेकिन किसी सेवक की तरह ही पेश आ रहा था,लड़की की आंखे बंद थी और उसका लहंगा उसके घुटने तक उठा हुआ था वही उसके ब्लाउज मे कोई भी चुन्नी नही थी जिससे उसके उन्नत उजोरो के बीच की खाई आसानी से दिख पा रही थी ,
वो मर्द उसके घुटनो तक ही तेल के साथ मालिस कर रहा था लेकिन लड़की के चहरे पर कोई भाव नही था जैसे वो कही खोई हुई हो ,आंखे तो बंद थी लेकिन चहरे पर एक चिंता की लकीर भी थी …
"सरदार आज कुछ चिंता में लग रही हो ,लगता है मेरे हाथो ने भी तुमपर कोई असर नही किया "
मॉंगरा के चहरे में मुस्कान आ जाती है ..
"हा रे बलवीर आज प्रभात सिंह को मारने के बाद भी मुझे चैन नही मिला ,पता नही ये चैन कब पड़ेगा …"
बलवीर जैसे धधक उठा था
"जब आप उस जमीदार के खून से नहाओगी "
मोंगरा उठ कर उसके सर को बड़े ही प्यार से सहलाने लगी
"सच कहा तूने "
वो उस लंबे चौड़े दानव की देह वाले मर्द को किसी बच्चे की तरह पुचकार रही थी ,और वो मर्द भी जैसे अपने मां के सामने बैठा हो ,वो किसी देवी की तरह उसे देख रहा था ,उसके आंखों में प्रतिशोध की ज्वाला थी लेकिन मोंगरा की आंखों में उसके लिए ममतामई प्रेम ही दिख रहा था ,चाहे वो कितनी भी क्रूर हो ,चाहे सरकार भी उससे ख़ौफ़ खाती हो लेकिन अपने गिरोह के लिए वो 22-23 साल की लड़की किसी देवी से कम नही थी और वो भी अपने गांव और गिरोह के सदस्यों को अपने बच्चों की तरह प्यार करती थी ,यंहा तक की 35 साल का भरा पूरा मर्द बलवीर भी उसके आगे उसका बच्चा लग रहा था …
वो उसे अपने सीने से लगा लेती है ,जैसे बलवीर उसकी बड़ी बड़ी छातियों में धंस जाता है ,वो अपने ब्लाउज के आगे के बटन खोलने लगती है और मानो दो फुटबाल उछाल कर बाहर आ गए हो ,जैसे उन्हें जबरदस्ती ही कस कर बांध दिया गया था ,
बलवीर जैसे सदियों से प्यासा था ,वो उसके निप्पल को चूसने लगा,लेकिन मोंगरा के चहरे पर वासना की लकीर भी नही खिंची वो बलवीर को अपने बच्चे की तरह अपने सीने से और भी जोर से चीपका कर उसे अपने स्तनों का रस पिलाने लगी ,उसके बाल बलवीर का चहरा ढंके हुए थे और उसके हाथ बलवीर के सर को सहलाते हुए उसे अपना प्यार दे रहे थे,बलवीर किसी भूखे बच्चे की तरह मोंगरा की भरी छातियों को चूस रहा था ,उसके आंखों में आंसू था ,और मोंगरा की भी ममता जैसे छलक रही हो वो भी उस मजे में आंसू बहा रही थी…
ना जाने ये कैसा अजीब सा रिश्ता था इन दोनो के बीच का…
बहुत देर तक वो बस ऐसे ही उसकी छातियों को चूसता रहा…
जब दोनो ही थक गए तो वो अलग हुआ और कुछ सोचता हुआ बोला…
"सरदार एक नया इंस्पेक्टर आया है प्रभात की जगह पर "
"तो क्यो मुश्किल है क्या ???"
"हा है तो "
"क्या "
"बहुत ईमानदार है "
मोंगरा जोरो से हँस पड़ी और उसके चहरे में एक गजब की आभा छा गई जिसे बलवीर देखता ही रह गया जैसे उसमे खो जाएगा
"हा ईमानदार है तब तो सच में मुश्किल है ,लेकिन देखे तो उसकी ईमानदारी कितनी है और किस चीज की है ,जो पैसे से नही बिकते वो डर के बिक सकते है ,जो डरते भी ना हो वो औरत के जिस्म के आगे बिक जाते है "
मोंगरा थोड़ी गंभीर हो चुकी थी
"सरदार जंहा तक मुझे पता चला है वो ना तो आजतक पैसे में बिका ना ही किसी से डरा इसलिए एस.पी.ने आपको पकड़ने यंहा भेजा है ,लेकिन औरत का पता नही …"
मोंगरा के चहरे में मुस्कान आ गई
"ठीक है उसे भी आजमा लेंगे "
 
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सुबह सुबह जब सूर्य भी नही निकला था ,अजय अपनी आदत के मुताबिक दौड़ाने निकल पड़ा उसे सुबह का माहौल बहुत पसंद था साथ ही उसे पसंद थी सुबह की हवा ,और पसीने में तर होता हुआ शरीर ..
अभी 4 ही बजे होंगे,जगह नई थी लेकिन सुहानी थी ,जंगलों और पहाड़ो से घिरा हुआ जगह था,दूर दूर तक कोई बस्ती नही ,वो दौड़ाता हुआ जंगल में बने पगडंडियों में आगे निकल आया था ,थककर एक जगह रुक गया जहां पानी की कलरव ध्वनि सुनाई दे रही थी ,लगा जैसे पास ही कोई झरना होगा,वो अपनी सांसों को काबू में करता हुआ था आगे जाने लगा,
उसे किसी लड़की की मधुर आवाज सुनाई देने लगी …
झाड़ियों के कारण उसे कुछ दिखाई तो नही दे रहा था लेकिन वो उस ओर बढ़ता गया,सूरज अभी अभी अपनी लालिमा फैला रहा था,उसे घर से निकले 1-1.30 घण्टे तो हो ही गए होंगे …
मौसम में ठंड अभी भी थी ,लेकिन वो पसीने से भीग चुका था ,उसे इस जंगल के सुहाने मौसम में पता ही नही लगा की वो कितना आगे आ गया है ,
सामने के दृश्य को देखकर अजय का युवा मन आनंदित हो उठा ,वो कौतूहल से सामने देखे जा रहा था ..

एक परी सी हसीन लड़की साड़ी में लिपटी हुई छोटे से झरने के पास खड़ी थी ,वो उससे अभी दूर ही थी लेकिन अजय की नजर उसपर जम गई ,
साड़ी उसके शरीर से चिपकी हुई थी और गोरा रंग खिलकर दिख रहा था.पूरी तरह भीगी हुई अपने धुन में गाने गा रही थी,वो मस्त थी और उसकी मस्ती को देखकर अजय भी मस्त हुए जा रहा था …
दूर से ही उसे लड़की के स्तनों का आभास हुआ ,उसने कोई भी अंतःवस्त्र नही पहने थे ,अजय का दिल धक कर रह गया …
लेकिन उसे अचानक ख्याल आया की वो क्या कर रहा है ,एक स्त्री के रूप से ऐसा मोहित होकर उसे इस तरह छुप कर देखना क्या सही होगा ,उसके अंदर की नैतिकता अचानक से जाग गई और वो मुडकर तुरंत ही जाने लगा…
झाड़ियों में हुए शोर से जैसे लड़की का ध्यान उधर गया ,और उसका गाना बंद हो गया ,
अजय जैसे ठिठक गया और मुड़ा..
लड़की उसे डरकर घूरे जा रही थी साथ ही उसने अपने हाथो से अपने स्तनों को भी छुपा लिया था जैसे उसे अंदेशा हो की हो ना हो वो उसे ही घूर रहा था …
ऐसे उसके जिस्म का हर अंग घूरने के लायक था,उसके पुष्ट पिछवाड़े भी निकल कर सामने आ रहे थे,और पेट में नाभि की गहराई भी खिल रही थी ,लेकिन अजय को बस उसकी आंखे दिखी ..
बड़ी बड़ी आँखे जैसे अजय को सम्मोहित ही कर जाएगी ..
और उसमे लिपटा हुआ डर देखकर अजय को अपने स्थिति का बोध हुआ ..
वो वही से चिल्लाया
"डरो नही मैं गलती से यंहा आ गया था,मुझे माफ करो "
ये बोलता हुआ अजय वँहा से चला गया लेकिन लड़की के होठो में मुकुरहट फैल गई ….
अजय को पास ही एक छोटा सा मंदिर दिखा,छोटे से चबूतरे में एक पत्थर रखा हुआ था,जिसपर लोगो ने तिलक लगा दिया था,वो जगह साफ सुथरी थी जिससे ये अनुमान लग रहा था की यंहा लोग अक्सर आते होंगे,आस पास किसी बस्ती का नामोनिशान नही था बस वो झरना था और दूर तक बस जंगल का फैलाव …
अजय पास ही एक पत्थर में जा बैठा ..
तभी उसे पायलों की आवाज सुनाई दी ,झम झम की आवज से अजय जैसे मोहित ही हो गया ,उसने देखा वही लड़की थी ,और वही साड़ी पहने आ रही थी ,वो साड़ी अब भी गीली थी थी और उसके बदन से चिपकी हुई भी थी लेकिन लड़की के चहरे में अजय को देखकर भी डर नही था बल्कि एक मुसकान थी ,उसके हाथो में एक छोटा सा पात्र था ,वो आकर पहले तो उस छोटे पत्थर पर जल चढ़ाती है ,और फिर थोड़ी देर हाथ जोड़े जैसे भाव मग्न हो जाती है …
अजय उसके उस सौदर्य को बाद देखता ही रह गया ,गोरा कसा हुआ बदन लेकिन बेहद ही मासूम सा और आकर्षक चहरा था उसका ,चहरे के नीचे ठोड़ी में गोदना था,जो की हल्के नीले रंग में कुछ बिंदियों की तरह दिख रहा था ,नाक में छोटी सी नथनी उसके सौदर्य को और भी बढ़ा रही थी ,हाथ पाव भरे हुए थे लेकिन कही से भी चर्बी की अधिकता नही थी ,लग रही थी जैसे जंगल में जंगल की देवी उतर आयी हो ,पाव में पायल था और छोटी सी एक साड़ी उसके शरीर का एक मात्रा कपड़ा था,वो भी गीला ही था और उसके शरीर से चीपक कर उसके एक एक अंग को निखार कर सामने ला रहा था …
सबसे आकर्षक थे उसकी आंखे ,तेज आंखे,बड़ी बड़ी और बिल्कुल काली पुतलियां,अजय के जेहन में अभी भी वो आंखे घूम रही थी जो उसने झरने में देखी थी …
थोड़ी देर तक लड़की यू ही बैठी रही और अजय भी फिर वो खड़ी हुई और पास पड़ी झाड़ू उठाकर उस जगह में पड़े कुछ पत्तो को झड़ने लगी …
पास से ही कुछ फूल तोड़ लायी और उस पत्थर में चढ़ा दिया ..
फिर अजय की ओर मुड़ी जो बहुत देर से युही बैठा हुआ बस उसे ही देख रहा था…
और जाकर उसके पास बैठ गई ,अजय को जैसे कोई करेंट लगा हो ,
वो हड़बड़ाया और लड़की जोरो से हँस पड़ी .उसके साफ चमकते दांतो की पंक्तियां अजय के आंखों में झूम गई …
"अब तुम मुझसे डर रहे हो ,मैं कोई बहुत थोड़ी हु "
"तुम यंहा अकेले ..इतने घने जंगल में "
"जंगल तुम्हारे लिए होगा हमारे लिए तो घर है "
लड़की ने ऐसे कहा की अजय को अपनी ही बात पर पछतावा हुआ
"ओह और ये पत्थर "
अजय ने उस उस पत्थर की ओर इशारा किया जिसे अभी अभी वो लड़की पूज रही थी
"अरे ये पत्थर नही है ये तो देवी है जंगल की देवी ,और हमारी कुल देवी "
"ओह मुझे लगा की इस जंगल की देवी तुम हो "
अजय के मुह से अनायास ही निकल पड़ा ,
"क्या क्या कहा "
"कुछ कुछ नही "
थोड़ी देर तक कोई कुछ भी नही बोल पाया
"तुम्हारा नाम क्या है ,कहा रहती हो "
"चंपा ...मैं पास के ही कबिले के सरदार की बेटी हु और तुम ...तुम तो शहरी लगते हो यंहा क्या कर रहे हो "
"मैं इस चौकी का इंस्पेक्टर हु "
लड़की ने अजीब निगाह से उसे देखा
"ओह तुम हो नए इंस्पेक्टर ...लेकिन तुम तो पुलिस वाले नही लगते "
उसके चहरे में एक अजीब सी मुस्कान थी
"क्यो ??"
अजय को भी उसकी बात पर आश्चर्य हुआ
"क्योकि तुम इतने जवान हो और फिर भी तुमने मुझे नहाते देखकर मुह फेर लिया और यंहा के पुलिस वाले तो औरतों को देखकर लार टपकाते है ,वो पुराना इंस्पेक्टर भी वैसा ही था,सही किया मोगरा ने जो उसे मार दिया "
अजय बिल्कुल अवाक रह गया था ,वो हमेशा से शहरों में रहा था औऱ ये जगह भी उसके लिए अनजानी थी ,वो सोच रहा था की पुलिस को लेकर यंहा के लोगो का नजरिया ऐसा है …
"सभी लोग एक जैसे थोड़ी होते है "
उसने अपने बचाव में कहा
"हा लगता तो ऐसा ही है"
उस नाजुक बाला ने अपने बड़े बड़े नयनो में ऐसे चंचलता से नचाया की उसकी निगाहे सीधे अजय के दिल को छेद कर गई ,और वो उठकर भागने लगी अजय बस उसके रूप में खोया हुआ हुआ ठगा सा बैठा रह गया ...
 
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'कितने आदमी थे रे कालिया '
'सरदार 2'
'और तुम 3 फिर भी खाली हाथ आ गए ,क्या सोचा था सरदार खुस होगा शाबासी देगा …'
एक ब्लैक एंड वाइट tv में शोले का ये डायलॉग सुनकर मोंगरा बच्चों की तरफ खुस हो रही थी ,और अचानक उसने tv बंद कर दिया और खुद खड़ी हो गई …
"तो कितने आदमी थे रे कालिया "
सभी लोग अपनी सडी हुई दांत निकाल कर हँसने लगे
"अरे सरदार मेरा नाम कालिया नही लखन है "
सामने खड़ा हुआ एक 50 साल का पतला दुबला सा आदमी हँस पड़ा ,
"हमने कह दिया ना की तू कालिया तो तू ही कालिया है बताओ कितने आदमी थे "
"सरदार दो ही थे और वो आपके सामने है "
लखन ने दांत दिखाते हुए कहा ,मॉंगरा अभी आर्मी जैसे कपड़ो में थी और हाथ में एक बड़ा सा बंदूख पकड़े हुए थी ,
उसके सामने दो आदमी एक जैसे फिरंगी औरत थी और दूसरा देशी पतला दुबला मर्द उनके आंखों में पट्टियां बंधी हुई थी …
"अच्छा खोल दो दोनो को "
थोड़ी ही देर में दोनो के हाथ और आंखों की पट्टियां हटा दी गई ,
पट्टी हटते ही फिरंगी जैसे दिखने वाली लड़की का मुह खुला का खुला रह गया …
"अरे ऐसे क्या देख रही हो मेडम जी "
मॉंगरा ने अपने अंदाज में कहा
"वाओ आप तो बहुत सुंदर हो "
सच में मॉंगरा इस समय किसी नई नई जवान अटखेलिया करती हुई लड़की सी लग रही थी ,उसके लंबे खुले हुए बाल लहरा रहे थे जिसे उसने बंधने की भी कोशिस नही की थी …
लकड़ी की तारीफ से वो किस नजाकत से भरी हुई लड़की के जैसे शर्मा गई …
"तुम्हारी हिंदी तो बड़ी अच्छी है हमे तो लगा तुम फ़िरंगन हो "
"नही मैं तो भारत की ही हु बस मेरे पिता जी फिरंगी थे "
"ओह नाम क्या है तुम्हारा "
"मेरी "
"मेरी?? ये कैसा नाम है "
"बस ऐसा ही नाम है मेरा ,तो इंटरव्यू शुरू करे मॉंगरा देवी "
मेरी के होठो में बड़ी प्यारी मुस्कान थी जिसे देखकर मॉंगरा को भी बड़ी खुसी हुई
"बिल्कुल लेकिन ऐसा क्या हो गया की आपको हमारा इंटरव्यू लेना है "
"अरे आपको नही पता की आप इंस्पेक्टर प्रभात को मारकर कितनी फेमस हो गई हो ,सभी आपके बारे में और भी ज्यादा जानना चाहते है इसलिए हमने सोचा की आपका इंटरव्यू ले ले "
"अच्छा ऐसा है क्या तो फिर चलो ,ऐसे मैं तो सिर्फ डॉ साहब के कहने पर इंटरव्यू दे रही हु ,क्योकि उन्होंने आपको भेजा है ,और ये क्या उनका क्लिनिक अच्छे से नही चलता क्या जो वो न्यूज़ चैनल खोल रहे है "
दोनो ही जोरो से हँस पड़े
"अरे वो डॉ चुतिया है उनका कोई भी भरोसा नही है ,पहले मैं उनकी सेकेट्री थी अब न्यूज़ चैनल की एंकर बना दिया है मुझे ,कहते है की पहले मोंगरा की स्टोरी लाओ उसके जीवन में जो हुआ उसे दुनिया को दिखाना जरूरी है "
मोंगरा उसकी बात को सुनकर थोड़ी शांत हो गई और उसके आंखों में आंसू की कुछ बूंदे आ गई …
"हा डॉ साहब जानते है की मेरे साथ क्या बीती है और किन परिस्थितियों में मैंने हथियार उठाने का फैसला किया ,लेकिन उन्हें इन सबसे दूर ही रहने को कहना क्योकि अगर मैं नंगी हो जाऊ तो कई लोगो के कपड़े उतर जाएंगे,और इससे डॉ को भी दिक्कत हो सकती है क्योकि वो कभी नही चाहेंगे की मेरी कहानी दुनिया तक पहुचे …."
मोंगरा थोड़ी देर तक बस ऐसे ही रही ,फिर अपने आंसू पोछने लगी
"अच्छा चलो शुरू करते है "
 
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इधर
चौकी में अजय बस चंपा के ख्यालों में खोया हुआ था ,तभी राधे तिवारी आता है
"कहा खोए हो सर,जो काम करने आपको यंहा भेजा गया है उसपर भी कुछ ध्यान देते है "
वो हड़बड़ाया
"अरे हा पंडित जी ,तो पहले मुझे मोंगरा की तस्वीर तो दिखाइए "
तिवारी एक फाइल उसके सामने पटक देता है..
और अजय फाइल खोलते ही उस तस्वीर को बस देखता रह जाता है ….
वही चहरा जिसे वो दिन भर से याद कर रहा था ,उसके खुले हुए बाल और पासपोर्ट फ़ोटो में भी वही मादकता ,वो अपना सर पकड़ लेता है …
"हे भगवान "
"अरे क्या हुआ सर "
"अरे इसे तो मैं आज ही झरने के पास मिला था ,साली मुझे बना के चली गई "
अजय अपना सर जोरो से ठोकने लगता है लेकिन तिवारी आश्चर्य होने के बदले जोरो से हँसने लगता है ..
"अरे सर वो चंपा होगी "
अजय की आंखे फट जाती है
"तूम उसे जानते हो ...लेकिन ये तस्वीर "
"चंपा ,मोंगरा की जुड़वा बहन है ...जब से जमीदार ने उनके माता पिता को मार डाला था तबसे पास के कबीले के सरदार में उसे गोद ले लिया और मोंगरा को डाकु चिराग सिंग अपने साथ ले गए ,दोनो में जमीन आसमान का अंतर है "
अजय बस अजीब सी मनोदशा में उसकी बातो को सुनता रहा
"लेकिन तब तो बड़ी दिक्कत होती होगी ,अगर मोंगरा की जगह किसी के चंपा को मार दिया तो या उसे जेल में डाल दिया तो …"
"नही सर हम यहां के निवासी है तो हमे कोई भी दिक्कत नही है ,हमे ये पहले से पता ही की वो दोनो जुड़वा है ,और इसलिए कबिले के सरदार ने चंपा के ठोड़ी में 3 बड़े बिंदी बनवाये है ,जो की एक टेटू की तरह है जिसे यंहा पर गोदना कहा जाता है वही सबसे बड़ा अंतर है दोनो में .."
अजय के नजरो में चंपा की तस्वीर उभर गई ,सचमे चंपा के ठोड़ी पर वो गोदना था जिसे देखकर वो सुबह मोहित हो गया था ……
"लेकिन फिर भी ,अगर मॉंगरा ऐसा गोदना बनवा ले तो "
"अरे साहब फिर भी दोनो को पहचानना बहुत ही आसान है ,मॉंगरा एक डाकू है उसके चहरे में वो उजाड़पन है लेकिन चंपा के चहरे में एक कोमलता है,चंपा में एक नाजुकता है जबकि मॉंगरा सामने हो तो अच्छे अच्छे का मुत ही निकल जाता है ,और सबसे बड़ी बात की मोंगरा ने कभी अपने को छिपाया नही अगर वो सामने होगी तो वो खुद ही बता देती है की वो क्या है ,उसके पास इतना जिगर है की वो खुद को कभी नही छिपाती ,और हा मोंगरा चंपा से थोड़ी पतली भी तो है "
अजय को समझ नही आ रहा था की इन सबसे वो कैसे दोनो में भेद कर पायेगा लेकिन तिवारी बड़ा ही काँफिडेंट लग रहा था क्योकि उसने बचपन से दोनो को देखा था …

"अच्छा अच्छा ठीक है लेकिन चंपा को और कबिले के सरदार को कह देना की वो सतर्क रहे "
"वो हमेशा ही सतर्क रहते है इसलिए बेचारी चंपा कही आती जाती भी नही ,बस घर से जंगल और जंगल से घर बाहर गांव या दूसरी जगह इसी डर से नही निकलने दिया जाता क्योकि कोई उसे मोंगरा समझकर मार ही ना दे "
अजय को जाने क्यो लेकिन चंपा के ऊपर बहुत दया आई ,उसने उसके हुस्न को देखा था ,उसकी टपकती हुई जवानी को देखा था,उसे वो मदमस्त होकर नाचना था लेकिन बेचारी अपनी बहन की वजह से बस एक जेल सी जिंदगी जी रही थी ….
अजय थोड़ी देर बस सोचता रहा
"तो कहा से शुरू किया जाए ,मुखबिरों को सूचना भेज दो ,और पता करो की अब मोंगरा कहा मिल सकती है …"
तिवारी भी कुछ सोच रहा था
"साहब एक बात पुछु बुरा तो नही मानोगे "
"हा बोलो ना "
"आप चंपा से कहा मिल गए "
तिवारी के होठो में मुस्कान थी
"वो जंगल के अंदर एक झरना है वही ,वो वँहा जंगल देवी की पूजा कर रही थी ,मैं सुबह दौड़ाता हुआ वँहा पहुच गया था "
अजय ने चंपा के नहाने के बात को पूरी तरह छुपा लिया
"ओह ये बात मैंने पहले किसी इंस्पेक्टर से नही कही लेकिन आपसे कह रहा हु …"
अजय उसके चहरे को बस देखे जा रहा था
"क्योना चंपा का इस्तेमाल मॉंगरा को पकड़ने के लिए किया जाए …"
अजय चौका
"नही नही ...वो एक सीधी साधी सी लड़की है उसे इन सब झमेलो से दूर ही रखो तो अच्छा है "
तिवारी के होठो में एक मुस्कान आ गई
"एक ही दिन में बहुत कुछ जान लिया साहब आपने "
अजय झेप गया
"चलिए कोई बात नही लेकिन मेरी बात पर ध्यान जरूर देना "
अजय बस सर हिला कर रह गया ….
 
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सुबह के इंतजार में अजय रात भर बेचैन रहा उसे चम्पा से मिलने की बहुत इच्छा हो रही थी ,बार बार उसका वो रूप उसकी आंखों के सामने आ रहा था वही मोंगरा का भी अहसास हो जाता,उसे बार बार याद आ जाता था की मोंगरा भी चम्पा की तरह ही दिखती है …

आज वो 4 बजे से पहले ही घर से निकल गया ,और दौड़ाता हुआ उसी जगह पहुच गया जंहा झरना था,उसने झड़ियो के ओट से देखा तो चम्पा अभी अभी आयी मालूम हुई ,उसका शरीर अभी पानी से भीगा नही था,थोड़ी सी आहट और पता नही क्या जो चम्पा को अजय के होने का अहसास दिला गया …
वो उसकी ओर मुड़ी तो अजय डर के कारण तुरंत ही पलट कर छुपने लगा ,लेकिन उसे चम्पा की जोरो की हँसी सुनाई दी ..
"हा हा हा इंस्पेक्टर बाबु बाहर आ जाइये ये क्या शहरी लोगो की तरह छुप छुप कर देख रहे हो देखना है तो सामने से ही देख लो ,जंगल में आये हो तो जंगल के कानून से रहो...
मैं कोई शहर की लड़की नही जंगल की लड़की हु और ये जंगल ही मेरा घर है ,तो फिक्र मत करो इस एकांत में भी एक मर्द को देखकर मैं डरूँगी नही …"
वो फिर खिलखिलाई लेकिन अजय को लगा जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो ,वो बाहर आया ,
"यंहा आओ "
वो उसके पास जाकर रेत में बैठ गया और वो पानी में जाने लगी,मौसम में अभी भी ठंड थी लेकिन उसके पानी में जाने से अजय के माथे पर पसीना आने लगा,सिर्फ एक छोटी सी साड़ी का टुकड़ा उनके शरीर में था,सिर्फ साड़ी और कुछ भी नही ,उसने औरत को कभी इतना निर्भीक नही देखा था,लेकिन ये जंगल था ,और चम्पा के शरीर में भी कोई अंतःवस्त्र या पेटीकोट जैसी चीज नही थी,मात्रा एक साड़ी थी जो भीगने के साथ साथ उसके शरीर से चीपक गई और उसकी जवान भरी हुई देह की एक एक करवट अजय के आंखों के सामने आ गई ,साड़ी छातियों से ऐसे चिपके जैसे उसके शरीर का ही कोई अंग हो ,उसके उन्नत स्तनों की गोलाई का पूरा आभास होने लगा था ,सही कहा था पंडित जी ने चम्पा थोड़ी मोटी थी लेकिन उसे मोटा नही गदराया कहा जाता है,
भरा पूरा देशी शरीर ,और हर एक अंग से मादकता का झलकना,अजय के लिए तो खुद को सम्हालना भी मुश्किल हो रहा था,अजय उसके देह के जादू में फंस रहा था लेकिन उसकी नैतिकता ने ही उसे आगे बढ़ने से रोके रखा था ..

वो बिना किसी भी परवाह के बड़े ही चैन से नहा रही थी,अपने हर अंग को अपने हाथो से रगड़ती हुई,अजय के चहरे में पसीने की एक धार आ गई ..
"बाबुजी लगता है आपको बहुत गर्मी लग रही है आप भी आ जाइये पानी बहुत ठंडा है "
वो कुछ नही कह पाया लेकिन और उसे शांत देख वो बाहर आ गई ,अजय उसके हुस्न को बस एकटक देखता ही रह गया ,वो अजय के पास आयी और उसके हाथो को पकड़ कर पानी में खिंचने लगी,उसे आज समझ आया की जंगल की लड़की की ताकत क्या है ,वो सच में बलशाली थी अजय जैसा जवान और गठीला मर्द भी मानो उसके सामने बच्चा ही लग रहा था,लेकिन अजय के मन के किसी कोने में उठाने वाले अहसासों ने उसे और भी कमजोर बना दिया था क्योकि वो खुद भी तो उसके साथ जाना चहता था ,ऊपर से तो ऐसे ही दिखा रहा था की उसे नही जाना है लेकिन अंदर से मन के किसी कोने से वो जाने को बेताब ही था…
उसके पैर चम्पा के थोड़े ही प्रयास से चलाने लगे और वो अपने स्पोर्ट शूज़ तथा कपड़ो की फिक्र किये बिना ही पानी में चला गया ..
चम्पा ने सही कहा था की पानी ठंडा था,लेकिन चम्पा के पास होने के अहसास से उसके शरीर में थोड़ी गर्मी तो आ ही गई थी ,उसका दिल उतना धड़क रहा था जितना तो उसने कभी दौड़ाते हुए भी महसूस नही किया था …
डॉक्टरों ने सच ही कहा है की सेक्स सबसे अच्छे कार्डियो में से एक है ...लेकिन उसे करने वाला मजबूत होना चाहिए और उस आग की पूर्णता में सेक्स किया जाना चाहिए …

अजय का शरीर ठंडे पानी में भी आग की तरह जलने लगा था,बचपन से वो एक शर्मिला लड़का था और ये उसके लिए किसी लड़की का प्रथम स्पर्श था ,वो भी ऐसे मौसम में वो भी इतनी हसीन लड़की का वो भी ऐसी जगह जंहा दूर दूर तक कोई ना हो ,और वो भी उस अप्सरा की इस अवस्था में जबकि अजय खुद ही उसपर मोहित हुए बिना नही रह पाया था…

चम्पा का पूरा बदन पानी से गीला था और उसने अजय के हाथो को अपने कमर पर टिका दिया अजय की दशा देखकर वो खिलखिलाई ,उसके दांतो की पंक्ति ने अजय को और भी मोहित कर दिया था ,वही अजय उसके गीले कमर को अपने जलते हुए हाथो से महसूस कर पा रहा था ,उसने एक चांदी की पतली करधन पहनी थी जो की उसके नाभि के नीचे लटक रही थी ,चम्पा को जैसे कोई फर्क ही नही पड़ रहा हो वो अजय से थोड़ा अगल हुई और अजय के ऊपर पानी फेकने लगी ,वो किसी बच्चे की तरह व्यहार कर रही थी ,उसकी मासूमियत ने अजय के दिल में प्यार का एक झोंका सा चला दिया ,जिस्म की हवस कुछ पलो के लिए ही सही लेकिन प्यार की मिठास में बदल गई थी ,अजय बड़े ही धयन से उसे देख रहा था और उसके होठो में एक मुस्कान आ गई ,वो प्यार की छोटी सी मिठास भी बड़ी ही काम की थी क्योकि उसने अजय को चम्पा के रूप को देखने का एक नया ढंग दे दिया था ,वो अब उसके चहरे की मासूमियत उसकी अल्हड़ अदाओं में खो रहा था ,चम्पा के द्वारा फेके गए पानी से वो पूरी तरह से गीला हो गया था और अब वो भी अपने शर्म को हटाकर उसके साथ खेलना चाहता था ,उसने भी पानी को चम्पा की तरफ फेकना शुरू कर दिया दोनो ही खिलखिला रहे थे और उस सन्नाटे से भरे हुए जंगल में दोनो की अठखेलियों से उठाने वाली हँसी की आवाजे गूंज रही थी …

चम्पा और अजय एक दूसरे को जायद से ज्यादा भिगाने की कोशिस कर रहे थे जबकि दोनो ही भीग चुके थे और इसी कोशिस में अजय चम्पा के पास आ चुका था और अचानक ही वो चम्पा के ऊपर गिर पड़ा ,पानी अभी उनके कमर तक ही था ,लेकिन अजय के यू गिर जाने से चम्पा उसे और खुद को सम्हालने में लग गई यही हाल अजय का भी था ,और उसने अपने हाथो से चम्पा की कमर को जोरो से जकड़ लिया दोनो ही जिस्म एक साथ एक दूसरे से लिपट कर पानी में जा गिरे और इसी दौरान चम्पा के वक्षो को ढका हुआ साड़ी का पल्लू जो की ऐसे भी बहुत छोटा ही था सरक गया और चम्पा के गुम्बदों से उन्नत और गोल लेकिन मुलायम वक्ष अजय के सीने में गड़ गए..

जैसे एक करेंट अजय के शरीर पर चल गया था ,वो ये सोचकर ही घबरा गया की एक लड़की की नंगी छतिया उसके सीने में धंसी जा रही है ,वो उन वक्षो के मुलायम अहसास को महसूस कर पा रहा था,चम्पा भी अब थोड़ी शांत हो गई शायद उसे भी ये अहसास हो गया था की आखिर उनके जिस्म अब जवान हो चुके थे और वो किसी मर्द की बांहों में इस स्तिथि में है …
लेकिन दोनो ही पानी में पड़े हुए थे और अब भी खुद को सम्हालने में लगे हुए थे ,अजय ने खुद को सम्हाल लिया और चम्पा को भी सहारा देकर खड़ा कर लिया ,अब भी दोनो के जिस्म मिले हुए ही थे लेकिन अजय को इतनी हिम्मत ना हुई की वो चम्पा के वक्षो को निहार सके ,वो उन्हें देखना चाहता था लेकिन नही देख पाया ,वो बस चम्पा के चहरे को ही देख रहा था जो की ऐसे शर्मा रही थी और उससे अलग भी नही हो पा रही थी,अजय ने भी चम्पा को पहले बार ऐसे शर्माते हुए पाया था ,वो उससे अलग होने को मचली ही थी की उसे अहसास हुआ की अजय ने उसे कसकर जकड़ लिया है ,अजय का हाथ अभी भी चम्पा के कमर पर कसे हुए था,और वो एकटक उसकी ओर देखे जा रहा था इससे चम्पा की शर्म और भी बढ़ गया थी ,अजय और चम्पा की सांसे एक दूसरे में टकरा रही थी और दोनो ही मूर्तियों की तरह वही जम चुके थे …
चम्पा का हाथ भी अभी तक अजय के गले में पड़ा हुआ था उसने अपना सर नीचे कर लिया और उसका चहरा लगभग अजय के गले से नीचे और सीने से थोड़ा उपर तक था,अजय को अपना सर हल्का सा नीचे करके उसे देखना पड़ रहा था ,अजय ने उसके बालो में ही चूम लिया ,अजय की इस हरकत से चम्पा ने सर उठाया और अजय को आश्चर्य से देखने लगी,अजय ने फिर से उसके माथे को चूम लिया ,जिससे चम्पा के होठो में एक हल्की शर्म से भरी हुई मुस्कान खिल गई ..
"क्या इरादा है बाबू जीवन भर ऐसे ही रहना है की छोड़ोगे भी"

चम्पा ने अपना हाथ उसके गले से हटाया और उसकी बात से अजय भी हड़बड़ाया और उसने तुरंत ही चम्पा के कमर को छोड़ दिया ,चम्पा ने तुरंत ही अपने साड़ी का पल्लू उठाकर अपने खुले हुए वक्षो को ढंक लिया लेकिन इस 1-2 सेकेंड में ही अजय के सामने चम्पा की जवानी का भरपूर खिला हुआ सबूत उसके गोल और बड़े वक्ष आ गए ,जो कुछ ही पलो के लिए उसके सामने रहे लेकिन अजय की नजर में ऐसे बस गए की उसके पूरे शरीर में झुनझुनी सी छूट गई …
अजय भी शर्म से भर गया और खुद ही नजर घुमा लिया और पानी से बाहर जाने लगा,उसकी इस हरकत से चम्पा के होठो में एक मुस्कान आ गई ना जाने को अजय का इस प्रकार उससे शर्माना उसे बहुत भा गया था ..
अजय ने नजर तो घुमा ली थी लेकिन उसके आंखों में अब भी चम्पा के वक्ष नाच रहे थे ,वो अपना सर झटकता लेकिन वो फिर के आ जाते ,और उसके लिंग में भी एक अजीब सी झुरझुरी का अहसास उसे हो रहा था ,वो अपने गुदाद्वार को ऊपर खिंच कर अपनी झुरझुरी पर काबू पाने की कोशिस कर रहा था जिसे उसे स्कूल में एक योग के शिक्षक ने सिखाया था जिसे मूलबन्ध कहा जाता है...लेकिन ना जाने क्यो आज अजय अपनी इस हल्की सी वासना को दूर भागना नही चाहता था जबकि वो उसके साथ हो जाना चाहता था…
वो जाकर उस चबूतरे के पास जा बैठा जिसपर पत्थर के रूप में जंगल की देवी विराजमान थी ,थोड़ी देर में चम्पा भी आ गई और चम्पा वँहा आ गई और फिर से फूल चढ़ा कर उस जगह को साफ करने लगी ………….
 
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अजय बस उसे एकटक देखता रहा और चम्पा अपने काम में व्यस्त रही ,लेकिन कहने को ही वो काम कर रही थी असल में उसका पूरा ध्यान ही अजय की ओर था उसे पता था कि वो उसे घूर रहा है,लेकिन जैसे ही वो पलटती थी अजय अपनी नजरे फेर लेता था ,वो मंद मंद मुस्कुराती लेकिन कुछ नही कहती थी ,
आखिर में वो अजय के पास आकर बैठी ,
और उसे देखने लगी,अजय थोडा असहज हो गया ...और इधर उधर देखने लगा
"क्यो बाबुजी ऐसा क्या खास है मुझमें जो आपकी नजर मुझसे हट ही नही रही "
अजय बुरी तरह से झेंपा
"नही नही तो …"
चम्पा मुस्कुराई ,,,वो पहले की तरह खिलखिलाकर हँसी नही,उसकी मुस्कान में एक दर्द की झलक अजय को साफ दिख रही थी…
"क्या हुआ तुम उदास हो "
"नही बाबू बस सोच रही हु की मर्द कैसे जिस्म से आकर्षित हो जाते है और उसे ही प्यार समझने लगते है ,चाहे तुम जैसा अच्छा मर्द ही क्यो ना हो…"
अजय को ऐसा लगा मानो किसी ने उसे आईना दिखा दिया हो ..
वो बिल्कुल ही चुप हो गया ,उसके मन में एक ग्लानि का भाव उभरा और उसकी नजर झुक गई …
चम्पा ने बड़े ही प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा ..
"बाबू तुम बहुत ही अच्छे हो इसलिए नही चाहती की तूम किसी दलदल में फंस जाओ ,जिस्म के आकर्षण को प्यार मत समझ बैठना,यंहा बहुत से शहरी लोग आते है जो यंहा की औरतो के जिस्म से मोहित हो जाते है ,कुछ तो उनसे प्यार की बाते करते है और भोली भाली लड़कियों को बहला कर उनके जिस्म से खेलकर वापस चले जाते है,कुछ को लगता है की वो प्यार में पड़ गए है लेकिन वो बस हवस में होते है…
तुम इन दोनो में से कोई नही हो तुम अच्छे हो ,तुम्हारा दिल साफ है ,इसलिए तुम जिसे अपना मानोगे उसे कभी धोखा नही दोगे ,इसलिए समझा रही हु ,प्यार और जिस्म के आकर्षण में पहले फर्क करना सिख लो फिर आगे जाने की सोचना …."
अजय ने कभी सोचा ना होगा की ये जंगल की सीधी साधी सी लगने वाली लड़की इतने ज्ञान की बाते करेगी ,लेकिन वो खुस था की चम्पा ने सब कुछ क्लियर कर दिया था उसके मन में भी उठाने वाले अंतर्द्वंद जैसे खत्म से हो गए थे उसे थोड़ा हल्का महसूस हुआ …
वो चम्पा के दमकते हुए चहरे को देखने लगा ,चम्पा के चहरे में अब भी मुस्कान थी लेकिन वो उदास नही थी जैसे की वो अपने दिल की बात कहकर बोझ से मुक्त हो गई हो …
अजय ने हा में सर हिलाया
"हा लेकिन इन सबका मतलब ये नही है की तुम यंहा आ नही सकते असल में तुम्हारे आने से मुझे बहुत अच्छा लगता है वरना मैं तो बोर ही हो जाती हु ,पूरा जीवन मानो अकेलेपन में ही निकल रही है "
"तूम अपने को अकेला मत समझो चम्पा मैं हु ना ,और तुमने बिल्कुल सही कहा मुझे इस बात की खुसी है की तुमने मुझे फंसने से बचा लिया ,ये मेरे जीवन में पहली बार हुआ है की मैं किसी से आकर्षित महसूस कर रहा हु,और मुझमें तो इतनी हिम्मत भी नही थी की मैं तुमसे कुछ कह पाऊ,शायद मैं इसे ही प्यार समझ लेता लेकिन तुम तो मुझसे बहुत ही ज्यादा समझदार निकल गई तुमने मुझे सोचने का मौका दिया की ये क्या था,......मैं तुम्हारा हमेशा इस बात के लिए आभारी रहूंगा चम्पा "
इस बार चम्पा खिलखिलाकर हँस पड़ी
"क्या अजीबोगरीब बाते करते हो बाबू आप भी ,संचमे आप बहुत ही शरीफ हो ,पता नही इंस्पेक्टर कैसे बन गए "
उसकी हँसी देखकर अजय भी मुस्कुरा उठा,
"पता नही कैसे बन गया बस गलती से एग्जाम निकल गया था "
इस बार दोनो ही जोरो से हँस पड़े …
"तुम मेरे साथ बाहर हमने चलोगी"
अजय ने हल्के से कहा
"नही बाबा ,अगर बाहर निकली तो लोग मुझे मोंगरा समझकर डरने लगेंगे या कोई हमला भी कर दे "
"अरे मैं तो हु ना तुम्हारे साथ कुछ नही होगा "
चम्पा सोच में पड़ गई ..
बहुत देर तक ऐसी ही शांति छाई रही
"क्या हुआ "
"मेरे पास सिर्फ दो साड़ी है "
अजय को उसकी बात समझ आ गई थी ,
"कोई बात नही ...मैं तुम्हे कपड़े ला दूंगा "
चम्पा मानो खुसी से झूम गई
"सच में "
और अजय के गले से लग गई ,फिर एक बार दोनो के जिस्म मिल गए और अजय को अपने सीने में मुलायम लेकिन बड़े स्तनों का आभस हुआ ,चम्पा ने खुद को काबू में किया ,जब वो अलग हुई तो उसके चहरे में शर्म फैली हुई थी ……….
 

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