Adultery खूबसूरत डकैत(completed)

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"सर इसे अगर चेनल में चला दे तो हाहाकार मच जाएगा …"
मेरी अभी डॉ चुतिया के बाजू में बैठी हुई थी दोनो मोंगरा के इंटरव्यू वाले वीडियो को ध्यान से देख रहे थे
"ह्म्म्म"
डॉ बस इतना ही बोला
"आपकी जान को भी खतरा हो सकता है "
"ह्म्म्म"
डॉ ने एक अंगड़ाई ली,और कमरे में उपस्थित दोनो लोगो को देखा जिनमे से एक मेरी थी और एक वो कैमरामैन जिसने वीडियो रिकार्ड किया था …
"ये बात बाहर नही जानी चाहिए की मोंगरा ने कोई इंटरव्यू दिया है ...ये वीडियो मेरे पास सही सलामत रहेगा वक्त आने पर ही इसे बाहर निकलेंगे "
दोनो ने डॉ की बात में सहमति में सर हिलाया …

****************
दिन भर अजय के होठो में एक मुस्कान रही और शाम होते ही वो अपने कस्बे से कुछ दूर एक छोटे शहर की दुकान में पहुच गया और लड़कियों के कुछ कपड़े खरीदने लगा,उसने एक दो सलवार सूट और 2 साड़ियां ली ,लेकिन उसे याद आया की वो ब्लाउज तो लिया ही नही ,और चम्पा तो अंडरगारमेंट भी नही पहनती,ये सोचकर ही अजय के होठो में मुस्कान आ गई जिसे हम लोग समाज में गलत मानते है और अंगप्रदर्शन कहते है वो उस जंगल की लड़की के लिए बिल्कूल प्राकृतिक और नैसर्गिक है..
लेकिन अगर उसे बाहर अपने साथ घूमना था तो उसे कुछ समाज में प्रचलित कपड़े देने होंगे …
उसने कुछ अंडरगारमेंट्स भी ले लिए और एक दो ब्लाउज भी लेकिन उसे उसके शरीर के सही माप का अंदाज भी तो नही था,वो बस अपने अंदाजे से ही कपड़े ले रहा था ,लेकिन फिर भी वो संतुष्ट था ..
वो सारे कपड़े पकड़ कर घर आया दिन भर उसे बस चम्पा ही चम्पा याद आ रही थी और साथ ही उसके द्वारा कही गई बाते,वो काम तो कर रहा था लेकिन दिमाग कही और ही लगा हुआ था,वो उसकी बातो को याद करके कभी गंभीर हो जाता तो कभी हँस लेता ..
सुबह बस उसे चम्पा से मिलने का ही इंतजार था ……..
 
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रात के अंधियारे में हल्की केंडल की रौशनी बिखर रही थी और बलवीर अपनी सरदार के शरीर की मालिश कर रहा था ,
मोंगरा अभी बस एक पेटीकोट पहने हुए बैठी थी,ऊपर का बदन पूरा नंगा ही था , उसके बड़े और घने बाल ही उसके वक्षो को छुपा रहे थे ,और बलवीर उसके पीछे बैठा हुआ उसके पीठ पर तेल मल रहा था ,उसके हाथो की फिसलन से चम्पा को बेहद ही सुकून मिल रहा था ..
ऐसे तो बलवीर को मोंगरा अपना सब कुछ ही दिखा चुकी थी लेकिन फिर भी एक पर्दा जरूर रखती थी क्योकि उसे पता था की वो उसकी सरदार है और अगर वो अपनी इज्जत नही करेगी तो गिरोह के लोग उसकी इज्जत कैसे करेंगे …
वो अपने मर्जी से मजे करती थी ना की किसी के जबरदस्ती या दवाब में ,चाहे दबाव प्यार का ही क्यो ना हो …
ऐसा बलवीरर के लिए तो वो उसकी मां थी माना की गिरोह के सभी सदस्य मोंगरा से उम्र और बल में बड़े थे लेकिन फिर भी उसका प्रभाव ऐसा था की वो उसे मां मानते थे ,और मोंगरा अपने गिरोह के सभी सदस्यों को अपना बेटा…
ये अलग बात थी की ये बस एक प्रतीक ही था और सब कुछ मोंगरा के ऊपर ही था………
बलवीर के गर्म हाथो के स्पर्श से मोंगरा के जिस्म की गर्मी भी बढ़ रही थी लेकिन फिर भी ना जाने वो आजकल खुद को क्यो बलवीर से दूर रख रही थी ,बलवीर के दिमाग में ये बात भी चलती थी लेकिन वो फिर भी था बड़ा ही वफादार साथी,
"सरदार आप कुछ अलग सी लग रही हो कुछ दिनों से "
मोंगरा के चहरे में थोड़ी मुस्कान आ गई वो जानती थी की आखिर बलवीर ऐसा क्यो कह रहा है …फिर भी उसने कहा
"क्यो.."
बलवीर को कुछ भी बोलते नही बना ,वो क्या बोलता की हमारे बीच जिस्मानी संबंध नही बन पा रहे है?
मोंगरा को भी पता था की बलवीर ये नही बोल पायेगा ,मोंगरा पलट कर लेट गई ,उसके घने काले बाल अब भी उसके वक्षो को ढंके थे लेकिन अब उसका चहरा बलवीर के चहरे के नीचे था,दोनो की ही आंखे मिल रही थी ..
मोंगरा ने अपना हाथ आगे किया ,बलवीर इशारे को समझता हुआ उसकी ओर झुका,मोंगरा ने अपने हाथो से बलवीर का सर पकड़ लिया और अपने सीने से लगा लिया ,बलवीर जैसे आनन्द के सागर में डूब गया हो ,उसकी आंखे बंद हो गई ,
बाल अभी भी मोंगरा के छाती पर फैले हुए थे और बलवीर के चहरे से रगड़ खा रहे थे ,लेकिन बलवीर ने कोई भी शिकायत नही की ,वो मोंगरा के ऊपर जबरदस्ती नही कर सकता था,चाहे पूरे गिरोह में उससे बलशाली कोई नही था लेकिन मोंगरा के सामने वो बस एक गुलाम की तरह वफादार था और एक बच्चे के तरह मासूम ..
बलवीर का विशाल शरीर मोंगरा के ऊपर छा गया था और मोंगरा के इशारे से वो उसके वक्षो में अपने जीभ को रगड़ता हुआ उसका दूध निचोड़ने लगा था ,मोंगरा की भी आंखे मजे में बंद हो जाती लेकिन फिर वो बस शून्य को देखने लगती जैसे कोई लाश हो ,बलवीर जब कुछ देर तक उसे ऐसे ही लेटे हुए महसूस किया तो वो उठकर मोंगरा के आंखों को देखने लगा जो की अभी भी शून्य को ही घूरे जा रही थी ..
"क्या हुआ सरदार .."
जैसे मोंगरा की तंद्रा टूट गई…
"उस इंस्पेक्टर का समझ नही आ रहा है"
"चम्पा को तो उसके पीछे लगाया है ना अपने "
"हा लेकिन वो इतना अच्छा है की चम्पा भी उसके प्यार में पड़ने लगी है…"
उसकी बात सुनकर बलवीर के चहरे का भी रंग उड़ने लगा …
"रास्ते से ही हटा देते है "
बलवीर थोड़ा धीरे से ही कहा लेकिन मोंगरा के चहरे पर डर के भाव आ गए
"नही हमने कसम खाई थी की किसी बेगुनाह को नही मरेंगे "
"लेकिन वो हमारी सबसे बड़ी मुसीबत बन सकता है "
मोंगरा थोड़ी देर यू ही चुप रही
"उसे चम्पा ही अपने प्यार से सम्हालेगी…"
बलवीर थोड़ा चिंतित तो था लेकिन मोंगरा के सामने वो क्या कह सकता था ...
 
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जोरो की बारिश सुबह से ही हो रही थी और अजय चम्पा से मिलने को बेताब था,वो अपनी बाइक उठाकर सुबह ही चम्पा से मिलने चला गया ,वँहा जाकर देखा तो उसके दिल में खुसी की लहर दौड़ गई और साथ ही एक टीस भी उठी ,खुसी इसलिए क्योकि चम्पा एक पेड़ के नीचे दुबकी हुई खड़ी थी ,बारिश बहुत ही तेज थी ,जंगल की बारिश ऐसे भी बहुत ही डरावनी होती है वो भी तब जब अभी सूरज पूरी तरह से नही निकला हो ,और टिस उसके दिल में इसलिए उठी क्योकि उसे देख कर ही लग रहा था की वो सिर्फ इसलिए आयी थी क्योकि वो जानती थी की अजय भी यंहा आएगा ,उसके चहरे में हल्का गुस्सा था और वो झूठी नाराजगी का भाव जिसमें बहुत सा प्यार मिला हो ,नाराजगी इसलिए क्योकि अजय को आने में देर हो गई थी …
अजय मुस्कुराते हुए उसके पास पहुचा ,वो ठंड से कांप रही थी ,अजय ने तुरंत ही अपने बेग जो वो अपने साथ लाया था उसे खोलकर एक रेनकोट निकाला और उसे पहना दिया ,
"कितनी देर लगा दी ??"
चम्पा ने तुरंत ही कहा
"तुम्हे क्या जरूरत थी इतनी बारिश में इतनी सुबह यंहा आने की "
दोनो ने एक दूसरे को देखा
चम्पा के चहरे में हल्की सी मुस्कान आ गई
"क्योकि मुझे पता था की तुम यंहा जरूर आओगे .."
चम्पा के आंखों से एक आंसू भी निकला था जो बारिश में धूल गया ,अब उसके होठो में बस एक मुस्कान थी ,अजय का मन किया की वो वही उसके होठो से अपने होठो को मिला दे लेकिन उसने अपने को काबू कर लिया था..
"तो अब तो पूरी ही भीग गई हो ,और ठंड से कांप भी रही हो चलो तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ दु "
चम्पा जोरो से हँस पड़ी
"मेरे घर तक ये मोटर नही जाएगी साहेब …"
"तो मेरे घर चल ऐसे भी तेरे लिए बहुत से कपड़े लाया हु "
अजय की बात से चम्पा अपनी बड़ी बड़ी आंखों से अजय को देखने लगी ,
उसका रूप देखकर अजय हमेशा की तरह ही मोहित था ,बारिश की झमाझम के शोर में उस जंगल में दोनो ही एकांत में थे कोई और होता हो जरूर ही कोई फायदा उठाने की कोशिस करता,ऐसे अजय के लिंग ने भी विद्रोह कर दिया था वो भी अपने पूरी ताकत से खड़ा हुआ था ,और वही चम्पा की योनि ने भी पानी छोड़ा था ,जो की बारिश के पानी से भीगी उसकी साड़ी में कही गुम होकर रह गई थी ..
लेकिन दोनो ने ही अपने को काबू में रखा था ,पता नही कब और कौन सी एक चिंगारी उस ज्वालामुखी को फोड़ देती,
"तुम्हारे घर जाना क्या सही रहेगा .लोग क्या बोलेंगे "
चम्पा थोड़ी शर्मायी
"हम लोगो की फिक्र करेंगे तो लोग हमे जीने ही नही देगें ,जो बोलना है बोले ,मेरे सामने तो नही कह सकते ना,जब मैं सही हु तो मैं क्यो डरु"
अजय की बात सुनकर चम्पा का चहरा खिल गया ..
"और अगर तुम अपने घर लेजाकर मेरे साथ कुछ ...यानी वो सब ..यानी कुछ करने की कोशिस करोगे तो "
चम्पा बुरी तरह से शर्मा रही थी और अजय बस उसकी अदाओं में खो गया था,दोनो ही बस चाह रहे थे की कोई तो शुरवात करे कोई भी पीछे नही हटता लेकिन शुरुवात करना ही तो सबसे बड़ी मुश्किल होती थी …
"अगर करना होता तो यही नही कर लेता …"
अजय ने हल्के से कहा और चम्पा और भी शर्मा गई ..
चम्पा की मौन स्वीकृति मिल चुकी थी ,अजय भीगता हुआ गया और अपनी बाइक स्टार्ट कर दी..
चम्पा भी उसके पीछे आकर बैठ गई…
ये पहला मौका था जब अजय को चम्पा पर शक हुआ ..
क्योकि चम्पा ऐसे बाइक में बैठी जैसे उसे बाइक में बैठना आता हो …
अजय भले ही चम्पा के नशे में था लेकिन फिर भी उसका खोजी दिमाग जो की एक इंस्पेक्टर का होना चाहिए और जिसके लिए उसे ट्रेनिगं मिली थी वो बार बार कह रहा था की कुछ तो झोल है,क्या उसे चम्पा से पूछना चाहिए की जंगल में रहते हुए ऐसा कोन है जिसके साथ वो बाइक में बैठी है ???
लेकिन उसे इतनी हिम्मत नही हो पा रही थी ..
दोनो ही आगे निकल गए और चम्पा ने अपना हाथ अजय के कमर में कस दिया ,उन जंगली उबड़ खाबड़ रास्तों में चलते हुए अजय की उत्तेजना का भाव कही गायब हो गया था वो चम्पा की हर एक मूवमेंट को बड़े ही ध्यान से नोटिस कर रहा था ,वही शायद चम्पा को भी उसके दिल की बात समझ में आ गई थी ..
"सालो के बाद किसी के साथ बैठी हु ..पहले पिता जी ले जाय करते थे,जबसे पिता जी का देहांत हुआ और मोंगरा डाकू बन गई बाहर की दुनिया देखने को भी नसीब नही हुआ "
अजय के मन में उठ रहे विचार अचानक ही शांत हो गए ..
लगा जैसे सभी सवालों का जवाब मिल गया हो …
दोनो ही अजय के सरकारी क्वाटर तक पहुचने तक शांत ही रहे ..
अजय ने जल्दी से घर को खोला
लगभग 5.30 हो चुका था लेकिन बारिश रुकने का नाम ही नही ले रही थी दोनो ही पूरी तरह से भीग चुके थे साथ ही ठंड के मारे कांप रहे थे ..
अंदर आते ही अजय ने वो कपड़े चम्पा के सामने रख दिए जिसे उसने उसके लिए लाये थे ,उसे देखकर चम्पा के चहरे में मुस्कान आ गई लेकिन वो कुछ भी नही बोली
"तुम्हे जो पसंद है वो पहन लो ,और मैं चाय बनाता हु बहुत ठंड लगी है "
चम्पा हँस पड़ी
"क्या हुआ ???"
अजय ने बड़े ही सवालिया नजरो से उसे देखा
"सामने शराब की बोतल रखी है और तुम चाय के पीछे पड़े हो "
वो और भी जोरो से हँसी, अजय के कमरे के टेबल में एक आधी विस्की की बोतल रखी थी ,
"तुम पीती हो ??"
अजय ने सवालिया अंदाज में चम्पा से कहा
"बड़े अजीब मर्द हो तुम भी जवान लड़की सामने है और गर्मी लाने की लिए तुम चाय और विस्की की सोच रहे हो"
अजय दंग सा वही खड़ा रहा लेकिन चम्पा मुस्कुराते हुए चुपचाप एक साड़ी उठाकर एक कमरे के अंदर चली गई ……
 
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जवानी कितनी खूबसूरत हो सकती है अजय को आज ख्याल आया था,चम्पा बाथरूम से बाहर आ चुकी थी और अजय बस उसे घूर रहा था ,वो हल्के गर्म पानी से नहा कर निकली थी ,और बदन में एक मात्र टॉवेल था,जो उसकी भरी हुई जवानी को सम्हालने में नाकाम लग रहा था,बालो अब थोड़े सूखे थे उन्हें भी अच्छे से पोछा गया था,अजय ने सामने रखी विस्की की बोतल से दो पैक बनाये और एक चम्पा की ओर किया ,अजय की नजर को इसतरह घूरता हुआ देखकर चम्पा भी शर्मा गई थी लेकिन उसने झट से वो पैक पकड़ा और एक ही बार में हलक से उतार दिया ..
उसे देखकर अजय ने भी एक ही सांस में पूरा पैक गटक दिया ,लगा जैसे उसके आहारनली में आग सी लग गई हो ,ना पानी ना सोडा उसे याद भी नही आया वरना वो तो बर्फ डालकर आराम से पीने वाला शख्स था ,उसका बिगड़ा हुआ मुह देखकर चम्पा जोरो से हँस पड़ी ,उसके चहरे में आयी हुई चमक से वो और भी हंसीन हो गई थी …
"तुम तो बेवड़ी निकली "अजय के चहरे में मुस्कान था लेकिन उसके चहरे से पता लग रहा था की उसके जीभ का स्वाद अभी भी बिगड़ा हुआ है ..
चम्पा पास ही रखे बिस्तर पर बैठ गई ,
"हमारे गांव में तो इससे भी कड़वी शराब मिलती है,ये तो कुछ भी नही है "
अजय ने बिना कहे दूसरा पैक बना दिया लेकिन इस बार पानी के साथ ,दोनो ने फिर से उसे एक ही सांस में गटक दिया ,अब उसके जिस्म में गर्मी का संचार होना शुरू हो गया था ,
उस हल्के सुरूर में ऐसा लगा की मानो उनका शरीर हल्का हो गया ,अजय भी पूरी तरह से भीग चुका था वो भी एक टॉवेल पकड़ कर अंदर चला गया और फिर अपने कपड़े उतार कर बस टॉवेल में ही बाहर आया,अब उसे चम्पा से वो शर्म नही आ रही थी ,जब वो बाहर आया तो चम्पा भी उसके गठीले बदन को वैसे ही देख रही थी जैसे अजय चम्पा को देख रहा था,असल में अजय के अदंर रहते चम्पा ने दो पैक और लगा दिए थे और उसकी आंखों में नशा साफ दिख रहा था ,अजय का गोरा गठीला शरीर और चौड़ी छातियों में उगी हुई बालो का गुच्छा चम्पा को आकर्षित कर रहा था ,चम्पा उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बैठा ली और उसके लिए एक पैक बनाकर उसके सामने की जिसे अजय फिर से एक ही सांस में अंदर कर गया ,दोनो की निगाहे अब बिना रोक टोक और शर्म के एक दूसरे के बदन को घूर रही थी ,
अचानक ही अजय का हाथ चम्पा के पहने टॉवेल पर चला गया और उसने उसकी गांठ खोल दी ,वो बिना किसी रुकावट के गिर गया और पहली बार चम्पा का पूरा बदन उसके सामने छलक पड़ा दोनो की आंखों में नशा था और साथ ही वासना भी ,दोनो की ही आंखे आधी बंद हो चुकी थी ,
अजय का शर्मिलापन और चम्पा की चंचलता दोनो ही वासना और शराब के सुरूर में काफूर हो गई थी ,
अजय ने चम्पा को थोड़ा धक्का दिया और वो बिस्तर में गिरती चली गई ,वही अजय भी उसके ऊपर आ चुका था,ना जाने कब अजय ने अपने टॉवेल को भी निकाल फेका ,दोनो ठंडे बदन एक दूसरे से सट चुके थे और दोनो के शरीर गर्म होने लगे थे,अजय और चम्पा नंगे ही एक दूसरे से लिपटे सोए थे लेकिन एक चुम्बन भी दोनो के बीच नही हुआ था,चम्पा ने अजय के गले में हाथ डाला हुआ था और अजय भी अपनी भुजाओं से चम्पा का आलिंगन कर चुका था,लेकिन दोनो बस उसी अहसास में डूबे हुए थे ,
अजय का लिंग चम्पा की बालो से भरी हुई योनि से टकराता जरूर था लेकिन फिसल कर चम्पा के जांघो के बीच चला जाता ,दोनो में से किसी ने इतनी जहमत नही की कि अजय के लिंग को उसकी सह जगह में ले जाया जाय ,
इधर चम्पा के योनि से भी रिसाव बढ़ने लगा था और वो भी मस्त हो रही थी ,लेकिन किसी को तो पहल करनी ही थी ,आखिर अजय को अपने लिंग के फटने जैसा अहसास हुआ,वो पूरी तरह से तना हुआ था और खून का वेग उसके लिंग के नशों में तेजी से दौड़ रहा था ,साथ ही दिल भी बेहद जोरो से धड़कने लगा था मानो अब उससे बर्दास्त नही होगा,लेकिन अजय के साथ ये पहली बार हुआ था वो थोड़ा डरा भी की ये क्या हो रहा है,
अजय से जब सहा ही नही गया तो उसने अपने लिंग को बस हाथो से सही जगह सताया थोड़ा चम्पा की योनि में रगड़ने के बाद ही उसके लिंग का शिरा गीला होगा,एक बार फिर उसने हाथो के माध्यम से ही अपने लिंग को चम्पा की फूली हुई योनि के दोनो होठो के बीच चलाया,चम्पा की पकड़ और भी बढ़ गई थी और उसके मुह से सिसकारियां निकल रही थी ,अजय की कमर थोड़ी हिली और उसे ऐसा लगा जैसे उसके लिंग की चमड़ी फ़टी जा रही है,वो दर्द से कहारा लेकिन तब तक देर हो चुकी थी ,योनि के दोनो होठ खुल चूके थे और उसके लिंग का आगे का भाग चम्पा की योनि के द्वार पर घुस चुका था,साथ ही चम्पा की एक बड़ी ही आह भी उसके कानो में पड़ी जैसे वो भी कहार रही हो,
अजय को लगा की उसके लिंग को उन दो नरम और गीली चमड़ी ने इतने जोरो से जकड़ा हुआ है की वो थोड़ा भी नही हिल पायेगा लेकिन ये अजय का वहम बस था,योनि से रिसने वाले गीले और चिपचिपे पानी में भीगते ही फिर से उसके लिंग को मानो जगह मिल गई और वो थोड़ा और अंदर चला गया,फिर से एक कहार दोनो के होठो से निकल गई …
लेकिन इस बार अजय ने अपने दांत चम्पा के वक्षो पर गड़ा दिए थे,वो उनसे अभी तक खेला ही नही था और फुर्सत ही किसे थी ..
इस बार चम्पा भी उसकी इस हरकत से तेज आह के साथ उसके बालो को अपने ओर और भी जोर से खिंचा और फिर कुछ ही सेकंड में उसका सर उठाकर उसके होठो को अपने होठो में भीच लिया ..
दोनो के होठ भी एक दूसरे में घुलने लगे थे ,और अजय ने फिर से थोड़ी ताकत लगाई इस बार अजय की ताकत ज्यादा ही लग गई थी और उसका लिंग पूरे का पूरा ही चम्पा की योनि में धंस गया …
"आआहह "चम्पा के मुह से जोर की आह निकली और उसने उसे रोकने के एवज में अजय के होठो के निचले हिस्से में अपन दांत ही गड़ा दिया ..
दोनो ने ही थोड़ी देर सांस लेने में बेहतरी समझी और एक दूसरे की आंखों में देखा,दोनो को ऐसा लगा जैसे जन्म जन्म से बस इसी की तलाश में थे ,मानो दोनो ही खुसी से पागल हो गए और एक दूसरे को बेतहासा चूमने चाटने लगे ,और इसके साथ ही अजय के कमर की रफ्तार भी बढ़ गई और दोनो की सिसकियों की भी ..
कमरे में फच फच और आह ओह की आवाजे ही गूंज रही थी ,दोनो ही जंहा दांत लगता गड़ा देते थे और दोनो ही अपनी आंखे बंद किये इस सुख की दुनिया में मस्त हो गए थे …………..
 
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दोनो ने ही थोड़ी देर सांस लेने में बेहतरी समझी और एक दूसरे की आंखों में देखा,दोनो को ऐसा लगा जैसे जन्म जन्म से बस इसी की तलाश में थे ,मानो दोनो ही खुसी से पागल हो गए और एक दूसरे को बेतहासा चूमने चाटने लगे ,और इसके साथ ही अजय के कमर की रफ्तार भी बढ़ गई और दोनो की सिसकियों की भी ..
कमरे में फच फच और आह ओह की आवाजे ही गूंज रही थी ,दोनो ही जंहा दांत लगता गड़ा देते थे और दोनो ही अपनी आंखे बंद किये इस सुख की दुनिया में मस्त हो गए थे …………..
अजय और चम्पा की आंखे मिली और दोनो ही थोड़े से शर्मा गए,शराब का नशा टूट चुका था और वासना की आग भी अब बुझ चुकि थी ,लेकिन दोनो ही अब एक दूसरी के प्रति एक अजीब से बंधन महसूस कर रहे थे ,
दोनो जल्दी से उठे और अपने अपने कपड़े पहनने लगे ,ना जाने कितने देर तक ये खेल चला था और उसके बाद आयी नींद ने दोनो को अपने आगोश में ले लिया था ..
शायद दोपहर हो गई थी और दोनो को ही जोरो की भूख लग रही थी ,
चम्पा अपने टॉवेल को सम्हाला और फिर अजय के द्वारा लाये गए कपड़ो को देखने लगी वही अजय जल्दी से बाथरूम में घुस गया था ..
चम्पा उसके द्वारा लाये सामानों को देखते देखते ही पता नही कहा खो गई ,जब अजय बाहर आया तो उसने चम्पा की आंखों को वही अटका पाया वो समान को देखे जा रही थी ,हल्के हाथो से छू छू कर और उसे ऐसे सहला रही थी जैसे कोई बहुत ही प्यारी चीज मिल गई हो ,लेकिन उसके आंखों में आंसू था …
वो उसके पास आया और मानो उसके मन की बात जानने के लिए पूछा
"क्या हुआ ??"
"ये मेरा सपना था बाबु की मैं भी कभी ऐसे कपड़े पहन पाऊ जिसे मेरे लिए मेरा मर्द लाया हो ,और ये चूड़ियां …"
वो फफक पड़ी थी ,अजय को समझने में देर नही लगी की आखिर चम्पा कहना क्या चाहती थी ,
उसने उसे पीछे से जकड़ लिया और उसके गले में एक चुम्मन कर दिया ..
"मैं अब तो तेरा मर्द बन चुका हु ना "
चम्पा के रोते हुए चहरे में मुस्कुराहट तो आ गई लेकिन अब भी आंखों में उदासी थी ..
"नही बाबू ना जाने मेरे कारण आपको क्या क्या सहना पड़े मैं आपको इन सब तकलीफो में नही डाल सकती ,मेरे लिए ये एक सुखद सपना ही अच्छा है जिसे मैं जीना चाहती हु ,जब नींद खुलेगी तो असली दुनिया में चली जाऊंगी लेकिन जब तक ये भ्रम रहेगा तब तक कम से कम खुस हो लेती हु "
चम्पा की बातो में सच में एक अजीब सा दर्द था
"लेकिन मैं तो तुझे अपनी औरत मान चुका हु .."
अजय ने अपनी गिरफ्त बड़ा दी और चम्पा जैसे उसके बांहो में सिमट गई ,वो अपने हाथो से उसे चूड़ियां पहनने लगा,चम्पा का पूरा शरीर ही उसके चौड़े सीने से ठिका हुआ था ,जैसे वो कोई भी बल नही लगा रही थी और अजय भी उसे प्यार से चूड़ियां पहना रहा था ,अजय ने उसके टॉवेल को फिर इस निकाल फेका चम्पा कोई भी विरोध नही कर रही थी असल में उसके चहरे में कोई भाव आ ही नही रहे थे ,बस आंखों में पानी था जैसे वो किसी सपने में हो…
अजीब सा माहौल था ये चम्पा के जिस्म में कपड़े नही थे लेकिन हाथो में लाल चमकदार चूड़ियां थी ,जो उसके गोरे कलाइयों में बहुत ही फब रही थी..
अजय ने उसे एक बड़े आईने के सामने बिठा दिया था,सम्पूर्ण शरीर ही चमक रहा था,चम्पा भी अपने को जैसे सालो बाद देखी हो वो अपने ही आकर्षण से मुग्ध हो गई थी ..
हाथो की लाल चुड़िया जो हर कलाई को आधे से ज्यादा भरे हुए थे ,और उसका गोरा गठिला शरीर उस आईने में खिलाकर कह रहा था की ये रूप की देवी है ,उसके काले और लंबे बाल बिखरे हुए थे ,चहरा दीप्त था ,और आंखों में आंसू ..
अजय बड़े ही प्यार से उसके बालो में कंघी कर रहा था ,उसके प्यार को देखकर चम्पा और भी उसकी हो जा रही थी ,वो बस अजय के प्यार को महसूस करती और उसके आंखों का पानी और भी बढ़ जाता,अजय के लिए प्यार हर पल ही बढ़ रहा था,और वो खुद का अस्तित्व ही मिटा कर सिर्फ अजय की हो जाना चाहती थी ,बालो को संवारने के बाद अजय ने उसका माथा चूमा और उसके कपड़ो की तरफ बढ़ गया ,
उसने एक पेंटी और ब्रा उठाई जिसे उसने बड़े ही मेहनत से चुना था ,वो भी लाल रंग की ही थी ,उसका कपड़ा रेशमी और मुलायम था जो हाथो में पड़कर भी बहुत ही सुख देता था,अजय ने इसपर भी अच्छे पैसे खर्च किये थे ..
उसने पहले अपनी रानी के वक्षो को ब्रा से ढंका और फिर वो लाल पेंटी पहनाई ,
चम्पा तो बड़े ही आश्चर्य से ये सब देख रही थी लेकिन उस लाल जोड़े में जो की बस उसकी गुप्तांगों के लिए था ,वो और भी मोहक सुंदर और मादक हो गई थी ,
अजय तो एक बार उसकी इस सौंदर्य को बस देखता ही रह गया और चम्पा उसकी नजरो से ही शर्मा गई ,उसका चहरा लाल हो गया असल में उसे भी कभी महसूस नही हुआ था की वो इतनी सुंदर है ,और बिना अजीब बात ये थी की बिना कपड़ो की चम्पा इन दो कपड़ो में और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी ,
उसका यौवन खिलकर सामने आ रहा था …
अजय ने फिर से कपड़ो की ओर रुख किया और उसके ब्लाउज पेटीकोट और एक साड़ी उसे पहनाई ,ब्लाउज थोड़ी कड़ी जरूर हुई लेकिन उससे चम्पा के वक्षो का भरपूर सौंदर्य सामने आया ,,
सच ही था की नंगेपन से ज्यादा छुपी हुई चीज सुदर होती है ,
वो बस चम्पा को देखता ही रह गया था उसे नही पाता था की चम्पा इतनी भी खूबसूरत हो सकती है,ना ही अजय ने ना ही चम्पा ने ये कभी सोचा था …
अजय भी अब तैयार होने लगा जब तक चम्पा ने उसके किचन की कमान सम्हाली और कुछ अच्छा थोड़ी रोटी सब्जी बना दिया और कुछ बनाना तो उसे भी नही आता था ..
लेकिन अजय को लगा मानो वो स्वर्ग का खाना खा रहा हो सालो से वो बस अपने ही हाथो का खा रहा था ..
दोनो में बाते बहुत ही कम हो रही थी लेकिन एक दूसरे की हर अदा पर वो प्यार से भर जरूर जा रहे थे ,ऐसे माहौल में बात करके वो इसे बर्बाद नही करना चाहते है ,
अजय ने उसे अपने बाइक के पीछे बैठाया चम्पा ने एक कपड़ा अपने चहरे में बांध लिया था लेकिन फिर भी वो इतनी सुंदर दिख रही थी की सभी लोग एक बार तो उसे देख ही लेते थे,अजय अपनी बुलेट को शहर की ओर बड़ा दिया ,चम्पा भी उसके कमर पर अपने हाथो को कसे हुए शायद सालो बाद इस आजादी का अनुभव कर रही थी वो भी अपने प्यार के साथ…
वो अजय के कंधे में अपना सर चीपका चुकी थी ये समर्पण का भाव था जो एक लड़की के अंदर आता है जब वो लड़के पर सबसे ज्यादा भरोसा करने लगती है …
************
अजय के कहने पर चम्पा ने अपना स्कार्फ खोल लिया था ,लेकिन उसे अब भी डर था की कोई उसे कुछ कह या कर ना दे ,लेकिन अजय निश्चिंत था ,वो उसे उसी माल में ले गया जंहा से उसने चम्पा के लिए कपड़े ख़रीदे थे वो और भी कुछ समान उसे दिलाना चाहता था ,उसके चहरे की रौनक को देखकर तो हर लड़का ही उसकी ओर देखे बिना नही रह पा रहा था ,शायद वँहा सभी मोंगरा को जानते थे और कई तो उसका चहरा भी पहचानते थे लेकिन शायद ही किसी को इस बात पर शक हुआ हो की ये लड़की ही मोंगरा है ,असल में वो इतनी सुंदर और सभ्य लग रही थी की किसी को मोंगरा का ख्याल भी नही आया होगा …
वो बिना किसी रोक टोक के ही समान खरीदते रहे खाना खाया और अजय ने उसे फ़िल्म भी दिखाई,चम्पा तो बड़े ही आश्चर्य से उस बड़े पर्दे को देखने लगी ..
जब फ़िल्म शुरू हुई तो चिल्ला उठी
"इतना बड़ा सर .."
इससे पहले की सभी उसकी ओर देखने लगे ,अजय ने तुरंत ही हंसते हुए उसके उसे समझाया और चम्पा अपनी गलती को समझ कर शर्मा गई और अजय के कंधे में सर लगा कर देखने लगी ,फ़िल्म के दौरान ना जाने कितनी बार ही अजय को चम्पा पर प्यार आया और वो उसके होठो को अपने होठो में समा लिया ,ये अब उनके लिए एक सामान्य सी बात हो चुकी थी ,दोनो ही इस नए नए रिश्ते की मस्ती में मस्त हो चुके थे ,दोपहर से शाम हो चुकी थी और दोनो अभी अभी फ़िल्म से निकल कर माल में ही बने रेस्टारेंट में नाश्ता कर रहे थे ,चम्पा के लिए ये सभी चीज अजीब थे इस तरह के कपड़े ,फ़िल्म और ऐसा खाना लेकिन वो सबको इन्जॉय भी कर रही थी …
 
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तभी कुछ लोग वँहा आये आश्चर्य की बात थी की उनके हाथो में बड़े बड़े लाठियां थी कोई खुलेआम रिवाल्वर को अपने हाथो में घुमा रहा था लेकिन किसी ने उन्हें रोकने की हिम्मत नही की ,वो लगभग 10-15 की संख्या में थे ,एक लड़का उनके सामने चल रहा था और एक जैकेट पहने हुए था,सभी लोग उन्हें शक और डर की नजर से देख रहे थे ..वो लोग सीधे आये और लड़के ने चम्पा के सर पर गन टिका दी ,चम्पा और अजय दोनो के लिए के बिल्कुल ही अप्रत्याशित था ,बाकी के लड़के उन्हें घेर कर खड़े हो गए ,पूरी तरह से शांति पूरे माहौल में छा गई थी …
"ये क्या बतमीजी है "
अजय गुस्से से चीखा
"तुम्हारा खेल खत्म हुआ मोंगरा बाई "लड़के के चहरे में क्रोध साफ दिख रहा था ..
लेकिन उसकी इस बात पर अजय बस जोरो से हँस दिया लकड़ा उसे अजीब निगाहों से घूरा ..
"मुझे अभी तक इस बात पर शक हो रहा था की किसी ने इसे देखकर मोंगरा क्यो नही कहा ..लेकिन अब समझ आया की अभी तक क्यो नही कहा क्योकि जमीदार साहब को खबर करना था...और फिक्र मत करो ये मोंगरा नही उसकी बहन चम्पा है"
लड़के के चहरे में अविश्वास के भाव आये
"मैं तुम्हारे इलाके का नया इंस्पेक्टर हु अजय ...जमीदार साहब मुझे पहचानते है "
अजय ने उसे कांफिडेंस में लाने के लिए कहा ..
लेकिन उस लड़के ने अभी भी वो गन नही हटाया था चम्पा खामोश सी बैठी थी जैसे उसे पता था की ये होने वाला है …
लड़के ने एक फोन किया
"पिता जी ये तो चम्पा है ,और वो नए इंस्पेक्टर के साथ है .."
उधर से भी कुछ कहा गया और लड़के ने फोन अजय को दे दिया लेकिन इस दौरान भी चम्पा के सर से किसी ने भी गन नही हटाई थी …
अजय वँहा से उठा और थोड़ी दूर जाकर बात करने लगा
"हम ठाकुर प्राण बोल रहे है "
:जी ठाकुर साहब "
"ये क्या है इंसपेक्टर हमने तुम्हे मोंगरा को पकड़ने के लिए भेजा था लेकिन तुम उसकी हमशक्ल के साथ रंगरलियां मना रहे हो "
"ठाकुर साहब ये ही मेरे काम का ही हिस्सा है ,आप भी जानते है की दोनो ही बहने हमशक्ल है,लेकिन पता नही की अभी तक जितने भी लोग यंहा उसे पकड़ने आये वो इस बात का फायदा क्यो नही उठा पाये ,मैं इस बात का फायदा उठाकर उसे पकडूँगा, ये मेरे प्रेम जाल में पूरी तरह से फंस चुकी हैं, इसके जरिए ही इसकी बहन तक पहुचा जा सकता हैं"
ठाकुर ने शाबासी के कई वाक्य कह डाले
"बहुत बढ़िया अजय ,तुम बस उस कुतिया को हमारे हवाले करो और मुह मांगा इनाम तुम्हारा …और चम्पा को फसाने में जितनी भी मदद लगे हम देंगे "
अजय के चहरे में कुटिल मुस्कान खिल गई
"फिलहाल तो 1 लाख ही भेज दो ,साली को पटाने में बहुत पैसा खर्च होगा…."
दोनो तरफ से हँसी गूंज गई …..

मोंगरा के जिस्म में लगे हुए घाव को देखकर बलवीर के मन में अजीब सी तिलमिलाहट हो रही थी,लेकिन वो कर भी क्या सकता था आखिर मोंगरा थी तो उसकी सरदार …
बलवीर बड़े ही प्यार से उस जख्म को छुआ..
"आउच "मोंगरा के चहरे में एक दर्द की लहर आने की बजाए खुसी झलकने लगी,आंखों में मस्ती के बादल थे और होठो में हल्की सी मुसकान….
बलवीर की चिढ़ इसे देखकर और भी बढ़ गई थी …
अचानक ही चम्पा की नींद खुली और अब भी उसके होठो में वही मुस्कान थी और थोड़ी शर्म भी …
"लगता है की चम्पा सरदार पर भारी पड़ रही है,सरदार भूलिए मत की आप चम्पा नही मोंगरा है,शायद उस इंस्पेक्टर ने आपके अंदर वो सारे अरमान जगा दिए है जो एक साधारण लड़कियों के अंदर होते है और आज तो हद ही कर दी आपने अपना मिशन भूलकर उसके साथ ……"
वो चुप था ,लेकिन मोंगरा के होठो में अभी भी वही मुस्कान थी,
बलवीर और भी बुरी तरह से झल्ला गया
"जिस्म की हवस मिटाने तक तो ठीक था सरदार लेकिन तुम तो ...तुम तो ऐसा लग रहा है जैसे तुम उसके प्यार में पड़ गई हो "
बलवीर का चहरा रूवासु हो गया जिसे देखकर मोंगरा खिलखिला कर हँस पड़ी …
"वाह बलवीर बहुत बड़ी बड़ी बाते करने लगा है तू तो ...लगता है की तु भी हमसे प्यार करने लगा है …"
मोंगरा की बात सुनकर बलवीर थोड़ा घबरा सा गया लेकिन कुछ भी नही कहा ..
"घबरा क्यो रहे हो ,बलवीर मैं हमेशा से जानती हु और तुमसे मैं सिर्फ अपने जिस्म की प्यास ही बुझती थी लेकिन फिर भी तुम्हारे प्यार के कारण मेरे अंदर भी प्यार की लहरे उठानी शुरू हो गई मैं तुम्हे चाहती हु लेकिन अपने बेटे की तरह …"
बलवीर की आंखों में पानी था,
"तुम ये क्या कह रही हो सरदार "
"सच ही कह रही हु ,"मोंगरा के आंखों में भी आंसू आ गए थे वो बलवीर के बालो पर प्यार से हाथ फेर रही थी
"सरदार उस अजय का कोई भी भरोसा करना ठिक नही है हो सकता है की वो आपको जमीदार के हवाले कर दे ,क्या पता सरकारी आदमी है हम उसके बारे में जानते भी नही है और वो हो सकता है की जमीदार से मिला हुआ होगा "
मोंगरा के होठो में एक मुस्कान आ गई
"नही बलवीर मेरा अजय ऐसा नही है "
बलवीर को मोंगरा का अजय के प्रति इतना अपनापन चुभ सा गया ..
"क्या पता की आपके अजय के मन में क्या चल रहा होगा "
अचानक ही बलवीर उठ खड़ा हुआ और मोंगरा के हाथो को अपने सर पर लगा लिया
"आपको मेरी कसम है की अपनी असलियत उसे नही बताओगी "
मोंगरा थोड़ी मचल गई
"सुनो सरदार तुमने ये नाटक किया था क्योकि तुम उस अजय को फंसा कर जमीदार तक पहुचना चाहती थी लेकिन अब तो हद हो गई है आप तो खुद ही उसके प्यार में फंसती जा रही है ...क्या आप वो सब भूल गई जो उस हरामजादे जमीदार ने आपके और आपके परिवार के साथ किया था ...याद करो सरदार उस दर्द को जो उसने आपको दिया है…"
बलवीर के चहरे की नशे खिंच गई थी ,लेकिन मोंगरा के आंखों में बस दर्द ही था…
"वी दर्द मैं कैसे भूल सकती हु ...लेकिन पता नही क्यो अजय के प्यार के आगे लगता है की वो सब चीजों को भूल कर बस उसकी बांहो में झूलती रहूं ………."
अब शायद बलवीर से ये असहनीय हो चुका था वो उठ खड़ा हुआ ..
"आप वो सरदार नही रही जो अपने लोगो के लिए जिया मरा करती थी "
बलवीर उठकर जाने लगा था,मोंगरा ने उसका हाथ पकड़ लिया..
"रुको …मैं जानती हु की तुम क्या चाहते हो ,और फिक्र मत करो तुम्हारी सरदार में अभी भी इतनी ताकत है की वो अपने लक्ष्य के सामने अपने प्यार को आने नही देगी ...लेकिन तुम जो सोच रहे हो वो भी सच है की मैं अजय के प्यार में बौरा सी गई हु ...उसमे मुझे मेरा भविष्य दिखाई देता है,लेकिन अपने भविष्य के लिए मैं तुम लोगो की भावनाओ से नही खेल सकती …"
मोंगरा अब भी बलवीर को किसी आशा से देख रही थी ऐसे तो उसका हुक्म ही इस गुट का नियम था लेकिन फिर भी मोंगरा अपने सभी सदस्य साथियों का समान सम्मान करती थी……
"चम्पा को अपने प्यार से प्यार करने दो इस बात पर मुझे मत रोको लेकिन मोंगरा अपना इंतकाम लेगी ...और क्या पता शायद अजय भी हमारे किसी काम आ जाए …"
मोंगरा की बात सुनकर बलवीर ने एक गहरी सांस ली ,उसके चहरे में संतोष के भाव तो अभी भी नही आये थे लेकिन फिर भी वो थोड़ा शांत जरूर दिख रहा था…….
 
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अजय के हाथो में रुमाल में लिपटी हुई नोट की दो गड्डिया थी ,वो उसे अपने हाथ में झूला रहा था,मन बिल्कुल शांत ऐसा लग रहा था जैसे वो इसे तौल रहा हो …
मन में कई विचार एक साथ चल रहे थे ,
"साहब साहब "
तिवारी की आवाज से जैसे वो चौका और फिर तुरंत ही उन गड्डियो को एक दराज में डालकर बाहर आया …
"अरे पंडित जी आप यंहा "
"साहब आप कल से दिखे नही तो सोचा की चलो हलचल पूछ आऊ ,तबियत तो ठीक है ना "
"ओह वो हा मैं ठीक हु ,"
वो थोड़ी देर तक सोचता ही रहा
"अच्छा तिवारी जी एक बात बताइये की क्या आपको चम्पा का घर पता है "
तिवारी एक गहरी मुस्कान में मुस्कुराया
"क्या बात है साहब बड़ी बेताबी हो रही है उससे मिलने की .."
अजय अपनी ही बात को सम्हालता हुआ बोला
"ऐसा तो कुछ नही बस ...बस सोचा की जो लड़की खतरनाक डाकू की बहन हो उसे अपनी नजर में रखना ही चाहिए "
तिवारी जैसे उसके मन के दशा को समझ गया था
"अच्छा चलिए लिए चलता हु आपको भी ,आप भी इस शक को दूर कर ही लो की वो दोनो एक नही दो है "
अजय थोड़ा झेंपा जरूर लेकिन वो उसके पीछे हो चला,दोनो ही अजय के बुलेट से जा रहे थे,एक समय के बाद रास्ता भी बंद हो गया था ,इतना घना जंगल देख कर तो अजय को थोड़ा डर भी लगा ,गाड़ी वही खड़ा कर वो दोनो ही एक बड़े बड़े पेड़ो के बीच से होते हुए उबड़ खाबड़ रास्तों पर चलने लगे ,और थोड़ी ही देर में उन्हें कुछ झोपड़ियां दिखाई दो ,मुश्किल से 7-8 झोपड़ियां थी ..
वँहा पहुचते ही लोग उन्हें अजीब निगाहो से देखने लगे ,वो अजय को ऐसे देख रहे थे जैसे की वो किसी दूसरे ग्रह से आया हुआ हो,तिवारी उनके लिए नया नही लग रहा था …
हर घर बड़ी दूर दूर में बसा हुआ था ,और बड़ी ही शांति पसरी हुई थी ,
अजय और तिवारी दूसरे छोर तक पहुचे एक छोटी सी झोपडी थी जो की अन्य घरों के मुकाबले थोड़ी और अलग थलग थी ,घर के बाहर एक बुड्डा बैठे हुए बीड़ी पी रहा था ,चारो ओर अथाह शांति फैली थी बस झींगुरों की आवाजे फैली थी या तो पत्तो की सरसराहट,कभी कभी कुछ बच्चों की हँसी भी सुनाई दे जाती थी ,
बरामदे में घुसते ही एक मादक सी गंध अजय के नाक में पड़ी जिसने उसे मदहोश सा कर दिया था,ये गंध थी महुए ही ,महुआ जो की आदिवासियों के द्वारा बनाया गई शराब थी जो की वो लोग खुद ही बनाते है ,बिल्कुल ही शुद्ध..
तिवारी जाकर बुजुर्ग के पैर पड़ता है
"चम्पा दिखाई नही देती ,हमारे नए साहब है महुआ पीने आये है .."
बुजुर्ग ने थोड़ी देर तक अजय को घूरा फिर अदंर चला गया ,अजय को उसका व्यवहार थोडा अजीब लगा लेकिन वो बुजुर्ग थोड़ी ही देर में एक मटकी जैसे पात्र लिए कोई पेय लेकर उपस्तिथ हुआ ,
अजय के नाक में वही गंध फिर से फैल गई लेकिन इस बार वो थोड़ी ज्यादा ही थी ,
फिर उस बुजुर्ग ने 3 ग्लास लाये और पूरी तरह से महुए से भर दिया ,तिवारी ने तिरछी निगाहों से अजय की ओर देखा और मुस्कराया ,
तीनो ने ही ग्लास थाम लिया ये अजय के जीवन में पहली बार था जब वो हाथ से बनी हुई शराब चख रहा था,उसे लगा जैसे आजतक उसने जो महंगी से महंगी शराब पी है वो भी इसकी मादकता और पवित्रता के सामने फीकी है ,बिल्कुल ही ओरिजनल और साफ …
पहला ही ग्लास अजय के दिमाग में एक सुरुर पैदा कर चुका था ……..
दूसरे के बाद से उसकी आंखे बंद होनी शुरू हो गई ,
"चम्पा कहा है "
उसने अपनी लड़खड़ाती हुई आवाज में कहा
"वो अभी जंगल में महुआ बीनने गई है ,लकड़ी वगेरह इकठ्ठा करके ही आएगी…"
बुड्ढे ने पहली बार कुछ सही कहा था ,तीसरा ग्लास भी भर दिया गया था लेकिन अजय समझदार व्यक्ति था उसने उसे प्यार से मना कर दिया वो जो पता करने आया था वो नशे में समझ ही नही सकता था,
थोड़ी ही देर में एक लड़की एक साड़ी पहने आती हुई दिखाई दी,बस सूती साड़ी का एक कपड़ा और वही तराशा हुआ जिस्म जिसे देख कर अजय जैसा मर्द भी मदहोश हो गया था ,अजय की आंखों में चमक आ गई क्योकि सामने से आने वाली लड़की उसकी चम्पा थी,,,
चम्पा पास आयी और बड़े सलीके से उसने दोनो के सामने हाथ जोड़े और कमरे में चली गई ,
"लो मिल लो यही है चम्पा "
तिवारी अच्छे नशे की हालत में आ चुका था ,थोड़ी ही देर में चम्पा बाहर आयी और अजय को देखकर मुस्कुराने लगी ,
अजय को इस नशे की हालत में चम्पा और भी हसीन दिखाई देने लगी थी ,चम्पा भी उसे यू देखता हुआ देखकर मुस्कुराई,साथ ही उसके चहरे में नारी सुलभ शर्म फैल गया,
"अरे सर एक और हो जाए अब तो देख ही लिया ना अपने "
तिवारी की बात सुनकर अजय ने एक ग्लास और ले ही लिया ,लेकिन इससे वो पूरी तरह से घूम चुका था और आखिर में तिवारी ने ही उसे उठाकर वँहा से उसके घर छोड़ा ….
शाम जब उसकी आंखे खुली तो होठो के एक मुस्कान थी वो चम्पा से मिलना चाहता था और फिर से वो उसके घर के ओर चल दिया ,
वँहा चम्पा उसे बच्चों के साथ खेलते हुए मिली शाम ढलने को थी और चम्पा उसे देखकर भागते हुए अपने घर के अंदर घुस गई ..
"अरे रुको तो सही "
वो उसके पीछे ही भागा था लेकिन बाहर उसके बाप को देखकर वो वही रुक गया ,लेकिन देखा की वो चिलम जला कर रखा था और पूरे नशे में था,
अजय जाकर उसके पैर छुवे
"फिर से पीने चले आये"
बुजुर्ग की बात सुनकर वो थोड़ा मुस्कुराया
और मन में सोचा
'पीने तो आया हु लेकिन शराब नही शबाब '
थोड़ी ही देर हुई थी की चम्पा अपने हाथो में एक मटकी लेकर आ गई ,और एक ग्लास में शराब भर कर अजय की ओर बड़ा देती है ,उसके चहरे में शर्म की मुस्कान थी अजय भी उसे घूरे जा रहा था ,
"ऐसे क्या देख रहे हो "
उसकी प्यारी आवाज से अजय जैसे फिर से होशं में आया
"बहुत प्यारी लग रही हो "
वो और शर्मा गई
"खाना खा के जाना आपके लिए देशी मुर्गा बना देती हु "
चम्पा ने हल्के से कहा
"ओह पति देव की इतनी सेवा "
"चुप रहो"
चम्पा घबराकर अपने बापू की ओर देखी लेकिन वो तो नशे में धुत पड़ा था और फिर हल्के से मुस्कुराई और अजय के कंधे पर एक चपत मार दी ,
"चलो जल्दी से इसे खत्म करो जल्दी से खाना बना देती हुई बापू तो लगता है आज ऐसे ही रहेंगे "
"वाओ तो आज रात में …"
अजय इतना ही बोलकर रुक गया लेकिन चम्पा के चहरे में मुस्कराहट और भी बढ़ गई लेकिन साथ ही शर्म भी ,वो भागते हुए वँहा से अंदर चली गई लेकिन उसकी अदा से ही अजय के दिल में गुदगुदी उठ गई,और वो बेख़ौफ़ ही उठा और कमरे के अंदर चला गया ,उसे देखते ही चम्पा घबराई और थोड़ी पीछे हो गई ,अजय उसके करीब जा खड़ा हो गया था दोनो की ही सांसे तेज थी और एक दूसरे के चहरे से टकरा रही थी ,
चम्पा एक दम से शांत हो गई थी और अपनी नजर नीचे किये हुई थी ,वही अजय की भी नजर बस उसके चहरे में जा टिकी थी ..
"ऐसे क्या देख रहे हो ,बाहर बापू बैठे है"
चम्पा की बात को जैसे अजय ने अनसुना कर दिया और अपने चहरे को उसके पास लाते हुए उसके गालो को चूमने की कोशिस की लेकिन चम्पा ने अपना चहरा सरका लिया ,उसके होठो में मुस्कुराहट थी लेकिन दिल जोरो से धड़क रहा था …
अजय ने अपने हाथो से उसके चहरे को अपनी ओर किया अब चम्पा के माथे पर पसीना था ,वो कोई विरोध नही कर रही थी उसकी आंखे बंद थी ,अजय ने अपने होठो को चम्पा के होठो के पास लाया और चम्पा की सांसे और भी तेज होने लगी उसके होठो भी फड़फड़ाने लगे लेकिन,वो जड़वत बस वही खड़ी रही और अजय ने बड़े ही इत्मीनान से उसके होठो को अपने होठो में ले लिया ..
चम्पा की तो जैसे सांसे ही रुक गई थी उसे लगा जैसे उसके शरीर में कोई भी ताकत बाकी नही है और वो गिर जाएगी उसने खुद को अजय के बांहो में डाल दिया ,अजय भी प्यार से उसके बदन को सहलाते हुए फिर से उसके चहरे को उठाया और उसके चहरे को ध्यान से देखने लगा,
इतना मोहक रूप अजय ने देखा ही नही था,वो फिर से अनायास ही उसके होठो में खुद के होठो को भिड़ा दिया ,इस बार चम्पा के हाथ अजय के सर पर जा टिके थे और वो उसके बालो को सहला रही थी वही अजय भी अपने जज़बातों की तूफान को होठो के जरिये चम्पा के अंदर धकेल रहा था …..
चम्पा का कसा हुआ बदन अजय के बदन से मिल चुका था ,चम्पा की गोल उभरी छतियो का मुलायम अहसास अजय के सीने में हो रहा था,अजय ने चम्पा की साड़ी हो उसके कंधे से हटाया और अपने होठो को उसके कंधे पर लगा दिया ,
लेकिन अजय को एक और आश्चर्य हुआ की वो सब घाव कहा गए जो उसने कल चम्पा को दिए थे ,जबकि चम्पा के दांतो के निशान अब भी अजय के कंधे पर जिंदा थे…
लेकिन अजय ने अभी ये सभी चीजे सोचने की फिक्र ही नही की और अजय ने फिर से चम्पा के कंधों को चूमना शुरू कर दिया ,चम्पा भी अपने अस्तित्व को अजय को सौपने लगी थी दोनो के जिस्म की गर्मी एक दूसरे में मिल रही थी …
और दोनो ही एक दूसरे में खोना चाहते थे …
लेकिन तभी …
गोली की आवाज पूरे वातावरण में गूंज गई …
अजय तुरंत ही सतर्क हो उठा वही चम्पा के चहरे में ख़ौफ़ साफ साफ दिख रहा था ……...
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"ये क्या था "चम्पा बुरी तरह से चौकी
अजय तुरंत ही उठा और झोपड़े से बाहर की ओर गोली की दिशा में जाने लगा ,पहले तो चम्पा ने उसका हाथ पकड़ लिया था लेकिन फिर अजय ने उसे शांत किया,अजय तो चम्पा को बहुत ही निडर लड़की समझ रहा था लेकिन चम्पा का इस तरह से घबराना उसे दुखी कर गया …
वो भागता हुआ जंगल में पहुच चुका था किसी के दौड़ाने की आवाज का पीछा करने लगा उसे कुछ लोग दिखाई दिए …
"रुको "अजय जोर से चिल्लाया जिसे सुनकर सभी रुक गए और अजय की ओर देखने लगे…
"तुम कौन हो और जंगल में क्या कर रहे हो "उस रौबदार आदमी ने अजय से सवाल किया ,उसके साथ 2 लोग और थे सभी के हाथो में बड़ी बन्दूखे थी …
"मैं इंस्पेक्टर अजय हु ,यंहा का इंचार्ज …"अजय अपने सांसों को काबू में करता हुआ बोला
"ओह इंस्पेक्टर साहब ,मैं यंहा का रेंजर हु ,पता लगा था की कुछ लोग यंहा पर शिकार कर रहे है तो उन्हें पकड़ने चले आया था ,लेकिन सालो ने गोली चला दी,उन्ही का पीछा कर रहे थे …"
तो ये भी सरकारी आदमी था अजय को सुकून मिला
"कौन लोग थे मैं कुछ मदद करू "
"कहा सर वो लोग तो अब निकल चुके ….मोंगरा गैंग के लोग होंगे नही तो यंहा किसके पास बन्दूखे होती है "
"ओह"
अजय बस इतना ही बोल पाया था
"नाक में दम कर रखा है सालो ने ऊपर से भी प्रेशर रहता है ,क्या क्या देखे "
रेंजर तिलमिला गया था
"काम ही ऐसा है सर ,मेरी कोई मदद लगे तो बेहिचक कहिएगा ,मुझे भी उन्हें पकड़ना है ,आप की भी मदद लगेगी"
"बिल्कुल बिल्कुल और आप तो इसी लिए बुलाये गए है,जमीदार साहब ने तो आपको ऊपर बात करके बुलवाया है...चलिए आज आपसे मुलाकात भी हो गई "
दोनो ने हाथ मिलाया अजय फिर से चम्पा के झोपड़े की ओर चल पड़ा ,शांत जंगल में बस झींगुरों की आवाजे आ रही थी वो दौड़ाता हुआ दूर निकल गया था ,अब वो बिल्कुल ही अकेला था और रात के अंधेरे में सरसराता जंगल ,लेकिन फिर भी उसे डर नही लग रहा था,बल्कि वो तो चम्पा से मिलने को रोमांचित हुआ जा रहा था,
वो थोड़ी दूर ही आया था की उसे फिर से किसी के कदमो की आहत सुनाई दी ,वो सतर्क हो गया था ,और बड़े ही धीरे धीरे कदम बड़ा रहा था ,चांद के मध्यम प्रकाश में उसे रास्ते का इल्म तो हो रहा था लेकिन फिर भी दूर तक दिखाई नही दे रहा था…
"मेरे जानू …"
एक बहुत ही मदभरी और मीठी आवाज ने उसे चौका दिया वो इस आवाज को अच्छे से पहचान सकता था,वो चम्पा की आवाज थी …
वो इधर उधर देखने लगा लेकिन जंगल के बड़े बड़े पेड़ो में उसे कोई दिखाई नही दिया ,तभी उसे खिलखिलाने की आवाज आई ,वो समझ चुका था की चम्पा ही उसके साथ मस्ती कर रही है..
"कहा छुपी हो तूम सामने आओ ना "
अजय बेचैन होकर बोला
"तुम ढूंढो मुझे "
चम्पा फिर से खिलखिलाई ,अजय के चहरे में भी मुसकान आ गई ,
'कहा ये लड़की अभी इतना डर रही थी और कहा ये मेरे पीछे पीछे आ गई ,ना जाने ये क्या क्या खेल दिखाएगी '
वो हसंते हुए उस आवाज का पीछा करने लगा ,चम्पा के भागने से उसके पायलों की आवाज से पूरा जंगल ही गूंज उठा था ,छम छम की आवाज के पीछे अजय भी भागा जा रहा था लेकिन चम्पा को वो पकड़ ही नही पाया ..
भागते भागते उसकी सांसे फूल गई थी और आखिर वो उस झील के पास पहुच गया था जंहा चम्पा उसे पहली बार और फिर कई बार मिली थी …
चम्पा झील के किनारे ही एक बड़े पत्थर पर बैठी हुई थी ,उसके शरीर पर अब भी वही एक साड़ी थी जिसे उसने थोड़ी देर पहले पहना था लेकिन हाथो में बोतल थी जिसे वो अपने मुह से लगा रही थी,ये भी चम्पा का एक अलग ही रूप था ,उसके पैरो में पायल थे जो काले रंग के थे जैसा यंहा की आदिवासी महिलाएं पहनती है ,उसका गोरा और खिला हुआ रूप चांद की रौशनी में चमक रहा था,वो इठला रही थी बलखा रही थी और इतरा रही थी…
अजय उसके अदांओ में मोहित होकर उसके ओर खिंचा चला जा रहा था,जैसे एक चुम्बक दूसरे चुम्बक की ओर खिंचा चला जाता है ,उसे शराब का नशा फिर से मदहोश कर रहा था जिसे वो कुछ देर से भुला हुआ था ,
अजय पत्थर के पास पहुच गया और चम्पा के पैरो को पकड़ कर उसे चूमने लगा जिससे चम्पा खिलखिलाई ,
लेकिन फिर उसे प्यार से देखने लगी ,अजय ने ही अपना सर उठाया और उसे देखने लगा ,दोनो की नजर मिली और चम्पा थोड़ी शर्मा गई ,और नजर नीचे कर लिया …
अजय अपने स्थान से उठकर चम्पा की कमर को पकड़ कर उसे पत्थर से नीचे ले आया ,अब वो अजय के सामने खड़ी थी लेकिन उसका शरीर अब भी पत्थर से ठिका हुआ था ,दोनो के ही जिस्म आपस में सटे हुए थे ,चम्पा के हाथो से अजय ने शराब की बोतल को ले कर अपने मुह से लगाया ,उससे वही महुवे की खुश बू आ रही थी ,वो एक ही बार में आधी बोतल पी गया क्योकि आधी तो चम्पा ने ही खत्म कर दी थी,बोलत फेकने के बाद अजय फिर से चम्पा को देखने लगा जो की उसे ही देख कर मुस्कुरा रही थी ,
"क्या हुआ "
उसने बस अपना सर ना में हिलाया और अजय के पास थोड़ी और सरक गई ,ऐसे दोनो के बीच कोई जगह तो नही बची थी लेकिन फिर भी चम्पा जितना हो सके उतना अजय को अपने से सटाकर रखना चाहती थी ,दोनो के जिस्म उस हल्की ठंड में भी गर्म थे और एक दूसरे को अपनी गर्मी पहुचा रहे थे ,चम्पा का चहरा अजय के सीने के पास था ,अजय ने थोड़ा झुककर चम्पा एक होठो के पास अपने होठो को लाया ,दोनो की सांसे एक दूसरे से टकराने लगी और होठो हल्के हल्के ही एक दूसरे को छू रहे थे ,दोनो के ही होठो में फड़फड़ाहट थी ,
अजय हल्के से अपने सर को आगे करके चम्पा के होठो को अपने होठो में भर लिया ,
चम्पा का भी हाथ अजय के बालो में कस चुका था ,दोनो के जिस्म मिल चुके थे और एक दूसरे में सामने का पूरा प्रयास कर रहे थे ,
चम्पा की सुडौल भरी हुई दूध की थैलियां अजय के सीने में धंस रही थी और अजय उसके बालो को पकड़ कर उसे अपने मुह में सामने की कोशिस कर रहा था ,
अजय उसके होठो से निकल कर उसके चहरे और कंधे तक आ गया ,उसने चम्पा के एक मात्रा वस्त्र का पल्लू उसके सीने से सरका दिया,अब चम्पा का जिस्म ऊपर से पूरी तरह से नग्न था,अजय अपने एक हाथ से उसके उजोरो को सहलाने में लग गया ,
"आह……आह ...."
चम्पा हल्के हल्के से सिसकियां ले रही थी अजय उसके गले को चूमता हुआ उसके कंधे तक पहुचा और उसके जीभ ने कुछ खुरदुरा सा महसूस किया ,जिससे चम्पा की आह ही निकल गई ..
अजय थोड़ा रुक कर उस जख्म को देखने लगा ,जो उसके कंधे पर था …
"ये .."अजय की आंखे आश्चर्य से बड़ी हो गई थी क्योकि कुछ देर पहले जब उसने चम्पा के कंधे पर अपने होठ फेरे थे तक ये जख्म नही थे,वो दांतो के गढ़ने से बने हुए जख्म थे जो उसके कंधे पर भी थे …
अजय की बात पर चम्पा हल्के से हँसी ..
"कल की बात भूल गए क्या ,जानवरो की तरह कई जगह पर काट लिया था और अब ऐसे मासूम बन रहे हो .."
अजय का सर घुमा ,मतलब साफ था की वो मोंगरा और चम्पा दोनो के साथ रह चुका था इन दो लड़कियों में से एक मोंगरा थी और दूसरी चम्पा ….
लेकिन ……..
लेकिन दोनो में भेद कैसे किया जाए ???
दिखते एक जैसे है ,बाते एक जैसी,अदाएं भी एक जैसी ,और जो के मात्रा पहचान तिवारी ने उनके अलग होने की बताई थी वो भी दोनो में था …
शायद यही मोंगरा है ...अजय के दिमाग ने कहा,क्योकि इस लड़की में वो शर्म नही थी जो की दूसरे के अंदर थी …
लेकिन ..???
लेकिन ये भी हो सकता था की शर्म बस दिखावा हो ,
अजय के दिमाग ने फिर से कहा ,वो बेचैन हो गया लेकिन अपनी बेचैनी भर जाहिर नही किया और अपने होठो से चम्पा/मोंगरा के कंधे को चूमता रहा ,
'अगर ये मोंगरा है तो इसका मतलब की मैं एक डाकू के साथ जिसे मैं पकड़ने आया हु ,उसके साथ रात बिताई है ,लेकिन मैंने इसकी आंखों में भी तो वही प्यार देखा था जो मैंने उस दूसरी लड़की के आंखों में देखा था '
अजय बुरी तरह से घबरा गया था,और उसकी घबराहट चम्पा से ज्यादा देर तक छुपी नही रह पाई ..
"क्या हुआ ??आप थोड़े बेचैन लग रहे हो "
"कुछ नही कुछ भी तो नही "अजय हड़बड़ाया
"बताइये ना "
अजय ने उसके चहरे को देखा ,चांद की रोशनी में अब भी उसका चहरा चमक रहा था,वही प्यारा चहरा और आंखों में अजय के लिए वही प्यार ,अजय के दिल ने कहा यही चम्पा है ,कोई भी लड़की झूट बोल सकती है लेकिन किसी की आंखे नही ,वो प्यार से भारी आंखे जो अजय को निहार रही थी वो कैसे झूट बोल सकती है ….
अजय का दिमाग तो कहता था की यही मोंगरा है लेकिन दिल उसे चम्पा ही समझ रहा था ,अजय ने दिल की सुनने की ठान ली और चम्पा के गालो में एक चुम्बन झड़ दिया ..
"चम्पा मैं एक परेशानी में हु "
अजय ने एक दाव खेलने की सोच ली
"क्या "
"यही की तुम और मोंगरा एक ही तरह दिखती हु ,अगर कभी मोंगरा मेरे सामने आ गई तो मैं तुम दोनो में से तुम्हे कैसे पहचान पाऊंगा "
चम्पा थोड़ी गंभीर हो गई थी …
"उसका नाम मेरे सामने मत लो ,और उसे पहचानना कोई मुश्किल काम भी नही है ,बस उसकी आंखों में देखना,मेरी आंखों में आपके लिए बेपनाह प्यार दिखेगा और उसकी आंखों में बस शैतानियत ,वो किसी से प्यार नही कर सकती वो तो बस खून की प्यासी है "
चम्पा का चहरा तमतमा गया था
"तो तुम उसे पसंद नही करती "
"बिल्कुल नही ..कहने को तो हम दोनो ही बहने है लेकिन मेरे लिए तो वो कब की मर चुकी है .."
"फिर भी अगर वो मेरे सामने आयी तो कैसे .."
चम्पा थोड़ी देर तक उसे देखती है और मुस्कुराती है ..
"बहुत ही आसान है ,उसके ठोड़ी पर ये गोदना नही है ,इसे बापू ने मेरे ठोड़ी में तब गुदवाया था जब उन्होंने मुझे गोद लिया "
चम्पा अपने ठोड़ी में बने हुए गोदने को अजय को दिखाने लगी
लेकिन अजय को पता था की दोनो ही लड़कियों के चहरे पर उसी जगह पर वैसा ही गोदना है
"लेकिन अगर मोंगरा ने भी पोलिश से बचने के लिए यही पर ऐसा ही गोदना गुदवा लिया हो तो "
चम्पा के चहरे पर बहुत ही नैसर्गिक चिंता आ गई ,कोई देखकर कह ही नही सकता था की ये झूट बोल रही है या सच …
"तब क्या करेंगे "चम्पा ने मासूमियत से कहा
"मेरे पास एक तरकीब है शायद यही अच्छा रहे "
अजय उसे देखने लगा लेकिन उसके चहरे का कोई भी भाव नही पढ़ पाया ..
"बोलिये "
"मैं तुम्हे एक गुप्त कोड बताऊंगा ,जिसे बस तुम्हे ही पता हो ,इसे तुम किसी और को मत बताना ,जब जब हम मिलेंगे तो तुम उस कोड को मुझे बता देना ,मुझे पता चल जाएगा की ये तुम हो वो नही "
चम्पा मानो खुसी से उछाल गई
"हा यही सही रहेगा "
"तो तुम्हारा गुप्त कोड है 7745 "
चम्पा कुछ देर तक उसे बार बार बोलकर उसे याद कर लेती है
"चलो बहुत रात हो गई अब घर चलते है "अजय की बात से चम्पा का मुह छोटा हो गया
"अभी तो आये है और कुछ किया भी तो नही है "
अजय के चहरे में मुस्कुराहट आ गई थी ..
करना तो वो भी बहुत कुछ चाहता था लेकिन दोनो के पहचान के कन्फ्यूसन में उसकी सारी उत्तेजना और प्यार जाता रहा ...वो मोंगरा के साथ कुछ भी नही करना चाहता था और अभी उसे बस यही पता करना था की आखिर कौन मोंगरा है और कौन चम्पा ,7745 से उसे ये तो पता चल ही जाएगा की ये वो लड़की है जिसके साथ उसने जिस्मानी रिश्ते बनाये थे,...
अजय ने उसके सर पर छोटा से चुम्मन दिया…
"अभी मैं थक चुका हु ,फिर कभी "
चम्पा मायूस तो थी लेकिन फिर भी उसने अजय को पहले अपने बांहो में भर लिया और फिर उसके होठो में हल्का से चुम्मन दिया …..
"मैं तो हमेशा के लिए आपकी हो चुकी हु कब चाहे जो चाहे कर लेना …"
अजय उसे प्यार से देखता है और अपने घर की ओर निकल जाता है ……
 
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अजय के दिल में जोरदार हलचल चल रही थी ,एक तरफ भोली भाली चम्पा थी जिससे वो दिलोजान से मोहोब्बत करता था तो दुसर्री तरफ थी खतरनाक और चालक मोंगरा….
दोनो के बाद उसे सरकार और ठाकुर का भी प्रेशर था की वो जल्द से जल्द ही मोंगरा को पकड़ने की दिशा में काम करे,दिन भर वो उसी उधेड़ बन में लगा रहा था ..
रात में वो तिवारी के साथ बैठा हुआ शराब पी रहा था …
"सर जी कोई मुखबिर कोई भी सूचना नही दे रहा है और s.p. साहब और ठाकुर रोज ही फोन करके पूछते है की आखिर क्या क्या काम कर लिया मोंगरा को पकड़ने के लिए ,क्या करे सर जी ऐसे हाथ पर हाथ तो धरे बैठे नही रह सकते कुछ तो करना ही होगा …"
तिवारी की बात से अजय के माथे पर चिंता की सिलवटे पड़ गई
"हम्म्म्म तिवारी जी समझ तो मुझे भी कुछ नही आ रहा है ,लेकिन अगर हमे मोंगरा को पकड़ना है तो उसकी कहानी शुरू से जाननी होगी की आखिर मोंगरा ,डाकू मोंगरा कैसे बनी …"
अजय की बात सुनकर तिवारी के होठो में मुस्कान आ गई और उसने पूरा ग्लास एक ही बार में हलक के अंदर धकेल दिया ..
"अब की ना सर अपने सही बात ,मैं इसी इलाके में पैदा हुआ हु और मैंने मोंगरा के बचपन को भी देखा है ,और उसके इस रूप को भी ,जमीदार साहब के मोंगरा के परिवार पर किये हुए जुल्म को भी ,और फिर मोंगरा के विद्रोह को भी लेकिन आज तक किसी ने इसपर कोई भी दिलचस्पी नही दिखाई बस मोंगरा को पकड़ने के अंधी दौड़ में लग गए,ऐसे भी यंहा उसे कोई पकड़ने में दिलचस्पी नही रखता सभी बस उसे मार कर ठाकुर से मुँहमाँगा इनाम पाना चाहते है …"
"लेकिन मुझे सब कुछ जानना है और पूरे डिटेल से जानना है ,मोंगरा में मुझे खासी दिलचस्पी जाग गई है "
अजय की बात सुनकर तिवारी फिर से मुस्कुराया ..
"मोंगरा पे या चम्पा पे "
अजय बुरी तरह से झेंप गया और तिवारी खिलखिलाकर हँस पड़ा ..
"इसमें आपका कुसूर नही है साहब,कुसूर तो आपकी उम्र और चम्पा की जवानी का है ,इस उम्र में अगर ऐसी जवान मदमस्त लड़की सामने हो तो कोई भी फिसल जाए या प्यार में पड़ जाए "
तिवारी अब भी हल्के हल्के मुस्कुराते हुए मजे ले रहा था …
"वो सब छोड़िए तिवारी जी आप मुझे वो बतलाइए जो की जरूरी है ,आखिर मोंगरा डाकू कैसे बनी .."
तिवारी का चहरा गंभीर होने लगा ….
"बात तब की है जब मैं नया नया पोलिस में लगा था और पास ही के गांव में मेरी पोस्टिंग थी ,देखने को तो यंहा पर सभी कुछ ठीक था लेकिन असल में ऐसा नही था जमीदार का यंहा पर एकछत्र राज हुआ करता था,यंहा के निवासी भी इस बात को स्वीकार कर चुके थे की न्याय और कानून से ऊपर ठाकुर है और उसकी बात है आसपास के 20-25 गांव का कानून था ,सभी कुछ अच्छा था जब तक बड़े ठाकुर यानी प्राण सिंह के पिता का देहात ना हो गया ,लेकिन प्राण सिंह के हाथो में ताकत आते ही उसने इसका गलत उपयोग करना शुरू कर दिया ,उसे बस दो ही नशे थे एक तो शराब का और दूसरा लड़की का ,और इसका शिकार गांव की कई औरते हुई …………."

यंहा से कहानी फेलशबेक में चलेगी
प्राण सिंह का आतंक इतना था की लडकिया घर से निकलना ही छोड़ चुकी थी ,ना जाने किस मनहूस घड़ी में ठाकुर की नजर उसपर पड़ जाए और वो उसे उठा कर ले जाए ,किसी के पास इतनी हिम्मत भी तो नही थी की उसके खिलाफ कुछ कह सके …
प्राण सिंह आतंक का दूसरा पर्याय बन चुका था ,जो भी उसके खिलाफ बोलता या कोशिस भी करता तो उसकी एक ही सजा होती थी उसकी और उसके घर वालो की मौत………..
आखिर कुछ गांव के सरपंच मिलकर पोलिश के पास जाने की सोचते है …

पुलिस स्टेशन में
"साहब, ठाकुर के लोग जब चाहे किसी के भी घर घुसकर लड़कियों को उठा लेते है ,हमारे घर की बहु बेटियों का जीना मुहाल कर रखा है ,गांव छोड़कर जाना चाहते है तो भी नही जा सकते ठाकुर के लोग फिर से गांव में लाकर पटक देते है ,इनकी ही मजदूरी करते है और इनके ही गुलाम बन गए है ,साहब हमारी भी कुछ इज्जत है ,लकड़ियों को तालाब में ही नंगा कर देते है ,वही पर ……"
एक बुजुर्ग बोलते बोलते ही फफक कर रो पड़ा …
टेबल में इंस्पेक्टर बैठा था वही सभी सरपंच हाथ जोड़े जमीन में बैठे थे ,पास ही तिवारी खड़ा था जिसके माथे पर ये सब सुनकर पसीना आ चुका था ,इंस्पेक्टर अभी पान खाने के बाद अपने दांतो को लकड़ी से साफ कर रहा था ,
"ह्म्म्म तो इसमें क्या हो गया कोई नई बात थोड़ी है ,और तुम्हारी बहु बेटियों को कभी ना कभी तो चुदवाना ही है ,लडकिया है तो कोई ना कोई तो चोदेगा,फिर ठाकुर साहब या उसके किसी आदमी ने चोद लिया तो क्या फर्क पड़ गया …"
इंस्पेक्टर के इस बयान से वो सभी बस एक दूसरे के चहरे को देखने लगे ….
तभी भर कार आने की आवज आई ,एक साथ ही कई कार आकर रुकते गए ..
इंस्पेक्टर हड़बड़ाया और तुरत ही अपने को सीधा किया और खड़ा हो गया ,इधर प्राण ठाकुर रौब से आ रहा था ,उसे देखकर सभी खड़े हो गए और हाथ जोड़ लिए वही सभी के चहरे पर पसीना भी था …
"क्यो बे मादरचोदों तुमलोग यंहा क्या कर रहे हो,इस मादरचोद से मेरी शिकायत करने आये हो .."
उसने इंस्पेक्टर की तरफ उंगली की ,इंस्पेक्टर ने गली सुनकर भी अपने दांत दिखाए ..
लेकिन प्राण सिंह भड़का
"तुम सालो की बेटियां ,बहुये,हमारी रखैल है ये बात समझ लो जिसे जब चाहे तब उठाकर लाएंगे और रोक सको तो रोक लेना "
वो बुजुर्ग जो उस समझ इंस्पेक्टर से बात कर रहा था वो फिर से ठाकुर की बात सुनकर फफक कर रो पड़ा ..
"ठाकुर साहब रहम ,हम आपकी बात पर सहमत है लेकिन हमारी लड़कियों के साथ यू मारपीट ना किया जाए ,जो आपको पसंद है वो आपके हवेली भेज देंगे इस तरह घर को उजाड़ा ना जाए बस यही विनती है …"
एक दूसरा सरपंच हाथ जोड़े बोला ..
ठाकुर कुछ देर सोचता रहा
"ह्म्म्म ठीक है लेकिन तुम्हारे गांव की हर लड़की को एक बार सबसे पहले मुझसे फिर मेरे सभी आदमियों से चुदना होगा,फिर अगर ठिक लगे तो उसे रखेंगे या भेज देंगे ,लेकिन हमारे बिना कोई लड़की जवान नही होगी ना ही कोई बहु यंहा हमारे हवेली में आये बिना अपने पति के घर जाएगी ...बोलो मंजूर ………"
मजबूरी की हद हो चुकी थी लेकिन फिर भी उसे सहने के अलावा उनके पास कोई चारा भी तो नही था ...सरपंचों ने एक साथ हा में सर हिलाया …
प्राण सिंह के होठो में एक शैतानी हँसी नाच गई ….
 
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इधर गांव में सरपंचों की बात आग की तरह फैल गई,पुरुष जमीदार के घर के नॉकर थे और महिलाये उनकी रखैल, ये ही उनकी नियति बन गई थी,
लेकिन इसे सभी तो स्वीकार नही कर सकते थे,बुराई जब अपने चरम में होती है तभी न्याय के लिए भी आवाज उठाई जाती है,विद्रोह के स्वर बुलंद होने लगे थे जिसमें सबसे ऊपर नाम था कालिया का…
सभी सरपंच जब सर गड़ाए बैठे थे तब कालिया दहाड़ रहा था,
"शर्म आती है मुझे तुम जैसे नपुंसको को अपना बुजुर्ग कहते हुए,उससे अच्छा अपनी बेटियों को मार ही डालो और साथ मे तुम लोग भी मर जाओ,यू नपुंसको की तरह जीने से तो कही अच्छा होगा कि तुम सभी मर जाओ,मुझे तुम्हारा फैसला स्वीकार नही है,तुम लोगो के हाथो में चूड़ियां होंगी लेकिन मैंने अपनी माँ का दूध पिया है और उसी दूध की कसम है मुझे किसी भी लड़की की ओर अगर ठाकुर या उसके आदमीयो ने छुआ भी तो उनके हाथ उखाड़ देंगे ,हम उनके खेतो में मजदूरी करते है उनके लिए फसल उगाते है,हमारी मेहनत से वो अमीर है और उसी पैसे के जोर पर हमारी ही इज्जत से खेल रहे है,कौन कौन मेरे साथ है हाथ उठाओ या नपुंसको की तरह अपनी जिंदगी चलाओ ,मेरे साथ आने पर तुम्हे अपना खून बहना पड़ेगा लेकिन मौत भी तुम्हारी शानदार होगी,"
कालिया के काले चहरे पर पसीने की बरसात हो रही थी,पूरा तन भीग चुका था,उसके एक एक शब्द मानो शोलो की तरह धधक रहे थे,गांव के कुछ नवजवान अपना हाथ उठाते है और उठकर कालिया के साथ हो जाते है,वँहा बैठे हुए बुजुर्ग बस देखते ही रहते है कि कैसे उनके बच्चे अपने हाथों में टंगिया भाले पकड़ कर ठाकुर के पिस्तौल का सामना करने निकल पड़े है,
महिलाएं जिन्होंने इन्हें दूध पिलाया था वो अपने बच्चों की बहादुरी पर अपना सीना फुलाये बैठे उन्हें दुवा दे रही थी लेकिन दिल के किसी कोने में वो डरी हुई भी थी,लगभग पूरे 3-4 गांव के कुछ जवान लड़के आगे आये ,
"उनके हाथो में बंदूख है और तुम्हारे हाथो में कुल्हाड़ी "
वही बुजुर्ग जो पुलिस स्टेशन में रोया था आंखों में पानी लाकर कालिया को देख रहा था
"बापू अब नही बहुत डर लिए हम लोग अब और नही ,उस ठाकुर ने तो हैवानियत पर उतर आया है,मैं मर जाना पसंद करूंगा लेकिन अपनी बहन और बीवी को उसके सामने नही परोसूंगा…."
कालिया की आंखे लाल थी लेकिन उसकी बात से घर के अंदर से झांकती उसकी बहन और बीवी की आंखों में भी पानी आ गया और दिल में कालिया के लिए सम्मान और भी बढ़ गया …
सभी युवक जो भी हथियार मिला उसे इकठ्ठा कर अपने अपने घरों में चले गए थे,लगभग सभी नवजवान कालिया के बात से सहमत था लेकिन वँहा कितने ही बचे थे ,सभी तो ठाकुर के पास बंधुआ मजदूर थे ,कुछ थोड़े से युवक गांव में थे …
रात की शांति में घोड़ो की आवाज ने सभी के कान खड़े कर दिए ,ठाकुर के हवस मिटाने के लिए उसके आदमी लड़की लेने आ चुके थे,आते ही उन्होंने दो तीन गोली आसमान में चला दी ,वो अभी सरपंच के ही घर के सामने थे जो की कालिया का पिता था ,
"अबे सरपंच निकल बाहर ,ठाकुर के पास कोई भी लड़की अभी तक क्यों नही पहुची …"
गरजती हुई आवाज से पूरा गांव ही गूंज गया ,नवजवानों ने पहले ही घात लगा लिया था ,वो बस इसी इंतजार में थे की कब वो लोग आये और उनपर हमला किया जाए ,20 युवक अपने हथियार के साथ कोई 10 बन्दूकधारी गुंडों का मुकाबला करने को तैयार थे ,कालिया ने एक पेड़ के ऊपर से अपने साथी को संकेत किया और उसके साथी जहर में अपने तीर को डूबा कर सीधे उस हट्टे कट्टे गुंडे के ऊपर निशाना साधा लेकिन चलाया नही ,तब तक बाकी के तीरंदाज भी अपने अपने जगह पर तीर कमान सम्हाले खड़े हो चुके थे ,कालिया के एक इशारे पर वँहा तीरों की बारिश को गई ,चीखे गूंजने लगी थी की कुछ युवक कुल्हाड़ी और लोहे के रॉड लेकर गुंडों के ऊपर टूट पड़े ,सभी इतने गुस्से में थे की उनके धड़ो से सर अलग कर भले की नोक मे लगा दिया गया था ,उत्साह उन्माद में बदल गया था और अपनी पहली जीत पर कालिया खून को अपने चहरे में मल रहा था ,,
सालो की दासता का अंत और आजादी की शुरुवात का जश्न मनाया जा रहा था ,घोड़े और बंदुखों को अपने पास रख लिया गया और एक घोड़े पर उसी गुंडे के सर को बांधकर ठाकुर के हवेली की ओर भेज दिया गया ……
पूरे गांव में मानो खुसी की लहर दौड़ गई थी ,लेकिन एक बूढ़ी आंख अभी भी चिंतित थी ,वो कालिया के पिता और गांव के सरपंच थे और कालिया के इस विद्रोह से उठाने वाली कत्लेआम को सोच कर सिहर जा रहे थे ……….
 
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कालिया की एक हरकत ने आग की ज्वाला भड़का दी थी ,रातों रात ये चर्चा आम हो चुकी थी कि किसी गांव के नवजवानों ने ठाकुर के लोगो को मार डाला ,और ना सिर्फ मारा बल्कि एक गाला काट कर ठाकुर को भी भेज दिया ,
इस हरकत से बाकी के सभी गांव के उन युवकों में जो की अभी ठाकुर की मजदूरी करते थे अब वो भी अपनी कायरता का अहसास करने लगे थे,
उन्हें भी लगने लगा था की वो अपने घर की औरतो की इज्जत को बचने के लिए अपनी जान भी दे देंगे ,और ठाकुर के बंधवा मजदूरों ने रातों रात ही विद्रोह कर दिया ,ठाकुर के कई लोग मारे गए वही ठाकुर ने भी अपना जोर लगाना शुरू कर दिया था ,उसने पुलिस की भी मदद ली और पुलिस ने आकर मजदूरों पर गोलियां चला दी जिससे कुल्हाड़ी और तीर कमान रखे कई लोग मारे गए ,खूनी खेल को वही दबा दिया गया और सरकारी तंत्र को पैसा और ख़ौफ़ के बल में ठाकुर ने खरीद लिया ,एक जीत से ठाकुर भी अहंकारी हो गया था और अब वो पुलिस की सहायता से कालिया और गांव वालो को सबक सिखाना चाहता था …….
इधर
"कालिया हमारी देखा देखी ठाकुर के पास रह रहे मजदूरों भाइयों ने भी ठाकुर के लोगो पर हमला कर दिया लेकिन सभी मारे गए ,ठाकुर के 20 लोगो को मार दिया था लेकिन ठाकुर ने पुलिस बुला दी और हमारे भाइयों को गोलियों से छल्ली कर दिया गया ,लगभग 50 मजदूर मारे गए …...कई घायल भी है ,एक ही रात में सब हो गया ,और आज इंस्पेक्टर और ठाकुर के लोग हमारे ऊपर टूटने वाले है ,हमारे एक फैसले से तबाही ही तबाही मचने वाली है ……"
कालिया अपने साथी की बात से गंभीर हो गया था ,अभी 3 घंटे ही हुए थे उसे ठाकुर के लोगो को मारे हुए रात अभी भी बाकी थी और उनके पास सिर्फ 10 बन्दूखे थी ,वही ठाकुर के पास पूरी फ़ौज थी ,अब कत्लेआम होना स्वाभाविक था ,साथ ही उसे अपने परिवार का भी डर था ,गांव की और भी लड़कियों का भी डर था ,लेकिन वो अपने फैसले से मुकर भी तो नही सकता था ,ना ही डरने का समय था ,अब तो उसे मासूम जिंदगियों को लूटने से बचना था ……..
वो उठा
"इससे पहले की वो हमपर हमला करे हमे उनपर कर देना चाहिए ,उन्हें मौका ही नही देना है सम्हालने का …"
कालिया ने अपने दोस्तो को तुरंत ही इकठ्ठा किया जिनकी संख्या अब और भी बढ़ गई थी ,वो 20 से 50 हो चुके थे आसपास के गांव के लोग भी उनके साथ हो चुके थे ,वो कुछ को गांव में छोड़कर अपने बाकी साथियों के साथ निकल गया ,उसका अगला मुकाम था पुलिस स्टेशन …
इंस्पेक्टर ने पहले ही पास की बटालियन से सिपाही बुला लिया थे …
"कालिया आज तो खून की होली खेलने वाले है ये लोग,देखो पुलिस के कितने लोग है सभी तैयारी कर रहे है साथ ही ठाकुर के भी आदमी है ,सभी हमारे गाँव की ओर जाने वाले है …"
कालिया के साथी की बात से सभी थोड़े डर गए थे ,लेकिन कालिया के चहरे में शिकन तक नही थी ,उन जैसे पुलिस के लोगो में से एक को पहचान कर अपने दोस्तो से कहा ,
"ये तो तिवारी भैया है ना ...पास के गांव वाले ,इन्हें कैसे भी करके मेरे पास लाओ "
"कालिया वो भी अब पुलिस वाला है "
"तो क्या हुआ है तो हमारे ही बीच के हमारी बात को समझ पाएंगे ,आखिर इनकी भी तो बहु बेटी,मा होगी जिनकी इन्हें फिक्र हो "
थोड़े देर में ही एक कंकड़ से तिवारी का ध्यान आकर्षित किया गया और जैसे ही तिवारी ने गांव के लोगो को देखा वो किसी बहाने से झड़ियो के पास आ गया
"भइया गांव वालो की जिंदगी आपके हाथो में है "
तिवारी कालिया को बेहद ही गुस्से से घूर रहा था
"ये सब कुछ तुम्हारे कारण हो रहा है और मैं क्या कर सकता हु मैं एक छोटा सा सिपाही ही तो हु "
"आप ही सोचो की अगर आपके बहन पर ये बात आती तो आप क्या करते ,भैया साथ दीजिये आप बहुत कुछ कर सकते हो "
तिवारी सोच में पड़ गया था
"मुझे बस इंस्पेक्टर तक पहुचाइए,ये इंस्पेक्टर ही है जो की ठाकुर का कुत्ता है अगर वो ही खत्म हो जाए तो पुलिस भले ही हमे ढूंढेगी लेकिन यंहा तुरंत ही बड़े अधिकारी जरूर आ जाएंगे और ठाकुर कुछ भी नही कर पायेगा ,"
तिवारी जैसे आग बबूला हो गया
"सालो तुम अपने को समझते क्या हो ,बड़े अधिकारी को क्या ठाकुर नही खरीद सकता गांव के गांव तुम्हारे कारण खत्म कर दिए जाएंगे "
"हा लेकिन अगर उन्हें पता हो की मैं कहा हु तो वो मुझे ढूंढेंगे ना की गांव वालो को परेशान करेंगे ,और अगर साथ में अखबार वाले भी हो जाए तो सब कुछ ठिक हो जाएगा "
तिवारी सोच में पड़ गया था
"अगर आज रात तक इन्हें गांव में जाने से रोक लिया जाए तो एक आदमी है जो की हमारी मदद कर सकता है .."
तिवारी को जैसे कुछ याद आ गया था
"कौन है एक सनकी लेकिन काम का आदमी मैं उसे शहर में मिला था वो तुम्हरी मदद जरूर कर सकता है ,वो अगर आ जाए हमारे साथ तो पुलिस गांव में जाकर तबाही नही करेगी लेकिन हा तुम्हे जरूर यंहा से कही दूर भागना पड़ेगा "
सभी मिलकर एक प्लान बनाते है
 

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