Erotica Lagi Lund Ki Lagan Mai Chudi Sabhi Ke Sang

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अचानक हुए इस हमले से मेरी चीख निकल गई।

तभी रितेश के बहन-बहनोई की आवाज आई सील टूट गई।

रितेश मुझे देखकर मुस्कुराने लगा।
मैं भी समझ गई थी कि रितेश ने ऐसा क्यों किया।
वो जानता था कि उसके जीजा और बहन बाहर खड़े होकर मेरी चीख का बेसबरी से इन्तजार कर रहे होंगे।

एक तेज झटका मारने के बाद रितेश मेरे ऊपर लेट गया और मुझसे बोला- यह तरीका टोनी ने मुझे बताया था।

उसके बाद हम दोनों फिर गुत्थम-गुत्था हो गये और रितेश मुझे तेज धक्के लगाता रहा।
धक्के लगाने के बीच में कभी मेरी चूत को चाटता तो कभी मेरे मुँह में लंड डाल देता।

मैं बिस्तर पर सीधी लेटी रही और वो मुझे चोदता रहा, मेरी चूचियों को मसलता रहा।

अब उसके धक्कों की स्पीड बढ़ती जा रही थी कि अचानक उसका शरीर अकड़ने लगा और फिर निढाल होकर मेरे ऊपर गिर पड़ा।

ठीक उसी समय मुझे भी ऐसा महसूस हुआ कि मेरे अन्दर से कुछ बाहर आ रहा है।
हालाँकि रितेश के गर्म गर्म माल को भी मैं महसूस कर सकती थी।

थोड़ी देर तक मेरे ऊपर लेटे रहने के बाद वो मुझसे अलग होकर मेरे बगल में सीधा लेट गया।
उसके मेरे ऊपर से हटते ही मेरा हाथ चूत पर चला गया और मेरी उंगलियों पर चिपचिपा सा लग गया।

मैंने चादर से ही अपनी चूत साफ की और रितेश के लंड को शादी वाली साड़ी जो मेरे बगल में पड़ी थी, उससे साफ किया।
उसके बाद मैंने अपनी टांग रितेश के ऊपर चढ़ा दी और उसके सीने पर अपना सर रख दिया।

वो मेरे बालों को सहलाता रहा, मेरी उंगलियाँ उसकी छाती के बालों को सहला रही थी।
हम दोनों के बीच एक खामोशी सी थी।

इस समय रितेश में बिल्कुल भी हरकत नहीं थी, वो निढाल सा पड़ा हुआ था।
मैं ही उसके सीने के बालों से खेल रही थी और बीच में उसके निप्पल को काट लेती थी।
वो चिहुँक उठता और मुझे हल्की सी चपत लगा देता।

थोड़ी देर ऐसा करते रहने के बाद रितेश अब मेरी तरफ मुड़ा और मेरी टांग़ को अपने कमर के उपर रख दिया और अपने होंठों को मेरे होंठो से सटा दिया।
अपने हाथों का इस्तेमाल वो बड़ी अच्छी तरीके से कर रहा था, मेरे चूतड़ सहलाता, मेरी गांड के छेद को कुरेदता, चूत में उंगली करता और पुतिया को मसल देता, जिसके कारण हल्की सी चीख निकल जाती थी।

थोड़ी देर तक तो ऐसे ही चलता रहा।
फिर हम दोनों 69 की पोज में आ गये, वो मेरी चूत और गांड चाटता रहा और मैं उसके लंड को लॉलीपॉप समझ कर चूसती रही और उसके अंडों से खेलती रही।

मेरी गांड चुदाई
उसने मेरी गांड चाट-चाट कर काफी गीली कर दी और उसमे उंगली कर दी।
उंगली करते करते रितेश बोला- अब असली सुहागरात होने वाली है, अब तुम्हारी गांड का उदघाटन करूंगा।

मैं भी उसके हौंसले को बढ़ाते हुई बोली- मेरी जान, मैं भी कब से चाह रही हूँ… मेरी गांड में अपना लंड डालो।
तभी उसने मुझे अपने से अलग किया।
मैं भी पलंग से उतर कर अपने हाथों को पलंग पर इस तरह से सेट करके झुक कर खड़ी हो गई कि मेरी गांड हल्की सी खुल जाये।
इसी बीच रितेश ने ढेर सारी क्रीम मेरे गांड में मल दी और लंड को एक झटके से डाल दिया।

पहली बार की तरह इस बार उसका लंड अपने जगह से नहीं भटका।
मुझे अहसास हुआ की उसके लंड का कुछ हिस्सा मेरी गांड में धंस चुका है।
मेरे मुँह से चीख निकलने वाली थी लेकिन अपने आपको संयम में रखते हुए अपने होंठो को मैंने भींच लिया ताकि आवाज बाहर न जा सके।
 

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UPDATE-26
मुझे अहसास भी था कि जिस तरह जब पहली बार मेरी चूत चुदी तो मुझे कितना दर्द हुआ था, लेकिन बाद मैं चुदाई का बहुत मजा आने लगा, इसलिये इस दर्द को भी मैं बर्दाश्त कर रही थी।


इधर रितेश को भी मालूम था कि कैसे गांड में लंड डालना है।
इसलिये वो जब भी मेरे मुंह से हल्की भी आवाज सुनता तो रूक जाता और फिर मेरी पीठ को चाटता और मेरी चूची को मसलता।

इस तरह करीब तीन बार करने से उसका लंड पूरी तरह से मेरी गांड में चला गया था।
अब धीरे-धीरे उसके लंड की स्पीड बढ़ती जा रही थी और मेरे गांड का छेद भी खुलता जा रहा था।

कोई चार से पांच मिनट तक रितेश धक्के लगाता रहा और फिर उसका गर्म गर्म माल मेरी गांड के अन्दर गिरने लगा।
मुझे दर्द तो बहुत हो रहा था पर मजा भी बहुत आया।

आज की चुदाई की खास बात यह थी कि न तो रितेश और न ही मैंने एक दूसरे के माल को चखा।

लेकिन एक ऐसी घटना घटी की न चाहते हुये वो करना पड़ा, जिसकी पक्षधर न तो मैं थी और न ही रितेश!

हुआ यूँ कि चुदने के बाद मुझे पेशाब बहुत तेज लगी थी।
मैंने रितेश को यह बात बताई तो उसने भी बताया कि उसे भी पेशाब लगी है।
लेकिन समस्या यह थी कि कमरे में अटैच बाथरूम नहीं था और मूतने के लिये बाहर जाना था।
और अगर मैं कपड़े पहनने से समय गवांती तो मेरी मूत वहीं निकल जाती।

मेरे जिस्म की हरकत बता रही थी कि मैं एक सेकेण्ड भी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी।

रितेश ने मेरी दशा को समझते हुए तुरन्त ही मुझे चादर इस प्रकार औढ़ा दी कि कहीं से मेरा जिस्म खुला न दिखे और खुद उसने जल्दी से लोअर पहन लिया।
फिर रितेश ने दरवाजे की कुंडी खोल दी।

पर यह क्या… दरवाजा बाहर से भी बंद था।
किसी ने दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया।

अब मेरे बर्दाश्त से बाहर था और हल्के सा मूत चूत के बाहर निकल चुका था और देर होने की स्थिति में मेरे अन्दर का तूफान पूरे वेग से बाहर निकल सकता था।

रितेश ने बहुत कोशिश की पर दरवाजा नहीं खुला।

हारकर रितेश ने मुझे सुझाव दिया कि मैं कमरे में ही मूत लूँ, लेकिन कमरे में मूतने पर बाद जो उससे बदबू आती तो वो भी सुबह हमारा मजाक बनता।

कोई रास्ता न देख रितेश घुटने के बल नीचे बैठ गया और मेरी चूत के सामने अपना मुंह खोल दिया और मेरी गांड को सहलाते हुए मुझे मूतने का इशारा किया।

मैं क्या करूँ, इससे पहले मैं समझती कि मेरी चूत ने धार छोड़ दी जो सीधा रितेश के मुँह के अन्दर जाने लगी।

रितेश बड़े ही प्यार के साथ मेरे पेशाब को पी गया।

मुझे गुस्सा भी बहुत आ रहा था, पता नहीं मेरे दिमाग में यह बात कहाँ से आई कि हो न हो रितेश के जीजा अमित ने ही बाहर से कमरा बंद किया है।
मैंने रितेश को यह बात बताई तो उसने भी हामी भरी।

मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था, उसी गुस्से में मैंने रितेश को बोला- जब भी मुझे मौका लगा तो इसी तरह तेरे जीजा के मुँह में भी मूतूंगी।

रितेश मुस्कुराया और मुझे चिपकाते हुए बोला- मूत लेना यार… अभी क्यों गुस्सा कर रही हो, अपनी सुहागरात का मजा लो।
 

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