Erotica Lagi Lund Ki Lagan Mai Chudi Sabhi Ke Sang

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UPDATE-28
खलास होने के बाद मैं रितेश के ऊपर लेट गई।
दो मिनट बाद रितेश का लंड मुरझा कर मेरी चूत से बाहर आ चुका था।
लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था कि मानो मेरी चूत की खुजली मिटी नहीं थी।

एक तो यह था कि आज मैं और रितेश मियाँ-बीवी थे और दूसरा कल रात जो हमारे और रितेश के बीच हुआ विशेषकर वो पेशाब वाली बात उसकी वजह से मुझे रितेश पर बहुत प्यार आ रहा था और मैंने मन ही मन ये प्रण कर लिया था कि जिस समय रितेश मेरे जिस छेद की डिमांड करेगा मैं खुशी-खुशी अपने उस छेद को उसके हवाले कर दूँगी।

मैं मन ही मन ये सोच रही थी और खुश हो रही थी जिसकी वजह से मेरी मुस्कुराहट बढ़ती जा रही थी।
तभी रितेश ने मुझे झकझोरा और मैं ख्याली दुनिया से बाहर आई तो रितेश पूछने लगा- कहाँ खो गई थी?

मैंने उसके कान को हल्के से काटते हुए कहा- जानू, मेरी चूत की खुजली अभी शान्त नहीं हुई है।
तो वो मेरे बालों में हाथों को फेरते हुए बोला- जानू मेरा लंड तुम्हारी चूत के लिये ही बना है, जब चाहो तुम इसको अपनी चूत में ले सकती हो। पर इस समय ये भी थक कर मुरझा गया है।

मेरी चूत का रस उसके लंड पर और उसके लंड का रस मेरे चूत के अन्दर था।
पर मैं इस सब को भुलाकर 69 की पोजिशन में आ गई और अपनी चूत को रितेश के मुँह में रख दिया और रितेश के लंड को चूसने लगी।
मैं अपने ही माल को चाट रही थी और रितेश अपने माल को चाट रहा था।

थोड़ी देर ऐसे करते ही रहने से रितेश का लंड खड़ा हो गया और फिर मैं उतर कर घोड़ी बन गई और रितेश को पीछे से चूत चोदने के लिये बोली।

हम दोनों बिना आवाज किये चुदाई का खेल खेल रहे थे और हम लोग काफी मस्ती में आ गये थे।

रितेश अपनी पूरी ताकत से मेरी ड्रिलिंग कर रहा था और मेरी चूची को कस कर दबा रहा था।
मैं सिसिया रही थी लेकिन मेरी कोशिश भी यही थी कि आवाज बाहर न जाये।

काफी देर तक धक्के मारने के बाद अन्त में रितेश ने अपना माल मेरे अन्दर छोड़ दिया।

चुदाई खत्म होते ही रितेश ने मेरी सलवार से मेरी चूत और अपने लंड को साफ किया और फिर मेरी सलवार को सूंघने लगा और उसके बाद सलवार को मेरी तरफ हवा में उड़ा दिया।

तब तक मैं कुर्ती पहन चुकी थी, मैंने अपनी उड़ती हुई सलवार को हवा में ही लपक लिया और सूंघने लगी।
क्या मस्त खुशबू मेरी और रितेश के प्यार की थी।

तभी बाहर से कुन्डी पीटने की आवाज आने लगी, मैंने जल्दी से सलवार पहनी, तब तक रितेश ने भी अपने कपड़े पहन लिये और हम दोनों ही बाहर आ गये।

सामने अमित ही खड़ा था।
एक बार उसने फिर द्विअर्थी अंदाज में बोला- अगर तुम दोनों ने कबड्डी का खेल खेल लिया हो तो चलो खाना खा लो।
मैं शर्मा के रसोई में आ गई, जबकि रितेश सफाई दे रहा था और बाकी लोग उसकी खींच रहे थे।

अमित की इस हरकत से मुझे काफी गुस्सा आ रहा था पर बोल मैं कुछ सकती नहीं थी।
एक तो मैं नई शादीशुदा थी तो मर्यादा भंग नहीं कर सकती थी दूसरा अमित इस घर का दमाद था और इधर तीन चार दिन से जो मैं देख रही थी, उसके रौब के आगे किसी की कुछ नहीं चलती थी।
 

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