पूरे परिवार की वधु

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"देवर जी बच्चों को नहाने के लिए कपड़ों की क्या ज़रुरत।  कपड़ो की ज़रुरत तो मर्दों और स्त्रियों को पड़ती है ," मैंने वीनू को चिड़ाते हुए कहा।
ऐसी बात है तो यह लो भाभी ," वीनू ने मुझे गुड़िया की तरह उठा कर तरणताल में फेंक दिया।  पहले तो मैं थोड़ा पानी  पी गयी पर शीघ्र ही मैं नियंत्रण में थी पर मैंने बार बार डुबकी लगा कर ऐसा दिखाया जैसे मुझे तैरना नहीं आता।
वीनू का चेहरा देखने वाला था।  बेचारे  हड़बड़ा के ताल में कूद पड़ा और जल्दी से मुझे बाहों में भर कर सतह के ऊपर ले आया।
मैंने मछली की तरह फिसल कर उसकी बाहों से निकल गयी और डुबकी लगा कर उसके नीचे तैरने लगी। जब तक वीनू संभल पाटा मैंने उसके शॉर्ट्स का नाड़ा ढून्ढ लिया और एक झटके में उसकी गाँठ खोल कर अपनी उँगलियाँ उसके शॉर्ट्स के कमरबन्द में फंसा ली। जैसे ही वीनू ने दूर जाने के लिए हाथ मारे उसकी शॉर्ट्स मेरे हाथ।  मैंने खिलखिलाते हुए वीनू की शॉर्ट्स को विजय-पटका की तरह फहराते हुए उन्हें दूर फेंक दिया। वीनू ने शुक्र है नीचे पतली कच्छी सी पहन राखी थी।
"वीनू भैया , अब आप बच्चों की तरह ताल में तैर सकते हैं।  भाभी आपका ख्याल रखेगी ," मुझे पूरे जीवन में ऐसा प्यार भरा आनंद कभी भी नहीं मिला था।
"भाभी तुम तैयार हो जाओ ," वीनू ने धमकी दी। मैंने तेज़ तैरना शुरू कर दिया।
पर वीनू के साढ़े छह फुट के विशाल शक्तिशाली शरीर के आगे मेरी क्या बिसात थी। शीघ्र ही उसने मुझे पकड़ लिया। मैं पूरी ताकत से उस से छूटने के लिए झपटी और फड़फड़ाई पर  वीनू एक बलशाली हाथ से मुझे काबू में कर एक ही झटके  से मेरी टीशर्ट उतार कर दूर  फेंक दी। जब तक मैं संभल पाती उसके हाथ मेरी शॉर्ट्स में अटके हुए थे। मेरे झट्पटाने से वीनू को और भी मदद मिली और उसने नीचे गोटा लगाया और मेरी शॉर्ट्स भी उसके हाथ में थी। अब मैं कच्छी और ब्रा में थी।
मैंने बच्ची की तरह चिढ़  कर उसकी पीठ पर छिपकली की तरह चिपक गयी। मेरे बड़े भारी भारी उरोज़ वीनू की पीठ और मेरे वज़न के बीच में दब गए।  वीनू ने तेज़ी से एक तरफ से दूसरी तरफ तैरना शुरू कर दिया। यदि मेरा वज़न उसे धीमा कर रहा था तो बहुत नामालूम  सा। 
मैं खिलखिला कर हंस रही थी और उसे घोड़े की तरह और तेज़ तैरने के लिए उत्साहित कर रही थी।  आखिरकार तीस चक्कर के बाद वीनू ने किनारे पहुँच कर मपलट कर मुझे अपनी बाँहों में जकड़  लिया। मेरे पानी की बूँदों से सजे स्तन वीनू की आँखों के सामने थे। मेरी बाहें उसके गले के इर्द गिर्द थीं।
" भाभी इतनी मेहनत करने का तो कोई इनाम मिलना चाहिए ," वीनू की आँखें मेरी आँखों में गड रहीं थीं।
"देवर को किस भाभी ने रोका है इनाम  लेने से? " मैं शर्म से लाल हो रही थी, " क्या इनाम चाहिए  मेरे देवर राजा को ?"
"एक भाभी का प्यार भरा चुंबन ," वीनू ने फुसफुसा कर कहा।
"कितनी बार तो चूम चुके हो अपनी भाभी को आज।  अब क्या खास चुम्बन चाहिए ,"मैंने आँखें मटका कर कहा। मेरी जाँघे अब वीनू की मज़बूत कमर के दोनों और थीं।  मेरी घुंघराले झांटों से ढकी चूत उसके मांसल पेट से रगड़ रगड़ कर गीली होने लगी थी। 
"भाभी यह तो खास चुम्बन होगा जैसा भैया को देती हो ," वीनू ने झिझकते हुए कहा और मेरी साँसे तेज़ हो गयीं।
"देवर जी आपको खुद लेना होगा भाभी तो खुद देने से रही ," मैंने शरमाते हुए कहा और खुद बेखबरी से मुंह से निकले अपने द्विअर्थिय शब्दों से शर्मा गयी।
"भाभी अब तो आपने खुद न्यौता दे दिया है। जब सही मौका होगा तब मैं ज़रूर ले लूंगा।  अब तो सिर्फ चुम्बन से ही काम चला लूंगा ," वीनू ने मौका हाथसे जाने नहीं दिया। उसके होंठ मेरे गहरी सांस लेते  अधखुले मुंह के ऊपर चिपक गए।  स्वतः ही मेरा मुंह और भी खुल गया।  वीनू की गरम गीली जीभ मेरे होंठो के द्वार से टकराने लगी।  मेरी जिव्हा खुद-ब-खुद उसकी जीभ से अटक गयी। शीघ्र ही वीनू की जीभ मेरे मुंह के अंदर थी और मेरी जीभ उसकी जीभ से सवाल-जवाब करने लगी।
भाभी-देवर का गीला प्यारा चुम्बन ना जाने कितनी देर तक चला। मेरे स्तन वीनू के मांसल सीने से रगड़ खा कर सख्त हो गए। वीनू के हाथ मेरी कमर से फिसल कर मेरे गोल चौड़े मुलायम चूतड़ों के नीचे थे। मेरी योनि रस से भर गयी।
हम दोनों एक कुत्ते की दूर से आती भौंकने की आवाज़ से चौंक गए।
" विक्कू भैया वापस आ रहें हैं भाभी," वीनू ने मुझे मुक्त कर दिया अपनी प्यारी बाँहों के प्यार भरी जेल से।
"वीनू पहले मुझे कपडे पहनने दो फिर बाहर निकलना ," मैं शर्म से लाल थी। मैं लपक कर बाहर निकल गयी। वीनू मेरे पीछे  पूरा  निरिक्षण कर रहा था। मैंने जल्दी से गीले कपडे पहन लिए।
"अब भाभी भी मुड़  जाओ मैं बहार आ रहा हूँ, " वीनू ने पुकारा।
"अरे बच्चों को क्या छुपाना है जो मैं मुड़  जाऊं ," मैंने चिढ़ाया  तो वीनू को ,पर जैसे उसका साढ़े छह फुट का भीमकाय शरीर पानी से ऊपर आया तो मैं खुद ही मुड़  गयी।
वीनू ने भी गीले कपडे पहन लिए।
जब हम दोनों बाहर  आये तो एक मेरे सबसे बड़े देवर घोड़े को दौड़ते हुए हमारी तरफ आ रहे थे।  उनके घोड़े के साथ एक बहुत लम्बा, ऊंचा बहुत सुंदर कुत्ता आराम से घोड़े के बराबरी से दौड़ रहा था।
वो लम्बा ऊंचा विशाल घोडा ठीक हमारे सामने रुक गया। साथ में दौड़ता कुत्ता वीनू के ऊपर प्यार जताने के लिए कूदने लगा। वीनू ने उसको बाँहों में भर कर झुक कर  अपना मुंह चूमने चाटने दिया।
" भाभी मैं माफ़ी मांगता हूँ।  मुझे आज दूर के खेतों का निरिक्षण करना था इसिलए ना चाहते हुए भी नुझे देर हो गयी ," मेरे सामने ससुरजी और वीनू के साढ़े छह फुट से भी तीन इंच ऊँचे और ससुरजी जैसे भीमकाय शरीर और सारे भाइयों जैसे सूंदर मोहक चेहरे के मालिक विक्रम यानि विक्कू मेरे सबसे बड़े देवर मेरे सामने खड़े थे। विक्कू तब मेरे पति और अपने बड़े भैया से दो साल छोटे, मुझसे तीन साल बड़े, तेईस साल के थे।
" भैया माफ़ी मांगने की कोई ज़रुरत नहीं है। मैं तो आभारी हूँ आप सबकी जो इतने प्यार से मुझे अपने घर में रहने के लिए बुलाया है। " मैं जब तक कुछ और कह पाती मेरे भीमकाय देवर ने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया।
"वीनू, क्या किसी ने भी भाभी को नहीं बताया  की भाभी इस घर की मेहमान नहीं इस घर की मालकिन हैं ," विक्कू ने मेरे शर्म से लाल मुंह को चूम लिया।
" विक्कू भैया वीनू ने बिलकुल यही कहा था।मुझे आज रात  तक मेहमान बने रहने की इज़ाज़त है।  इसी लिए  कल से मैं कोई भी ऐसी बात नहीं करूंगी। कल से मैं अपने सारे देवरों को खूब परेशान  करूंगीं और रात दिन खूब मेहनत करवाऊंगीं ," मैंने आँखे मटकाते हुए कहा।
" भाभी तुम्हारे सारे  देवर तुम्हारे लिए रात दिन मेहनत  नहीं हटेंगें। बस सिर्फ भाभी तुम्हरा इशारा भर चाहिए ," विक्कू ने मेरे अनजाने और जल्दी से निकले शब्दों को शरारत से मेरी ओर मोड़ दिया।
विक्कू ने मुझे गीला देख कर आखिर कार में पूछा , "वीनू क्या छोटे भाई पहले दिन ही भाभी को ताल में धकेल दिया ?"
वीनू हंस कर बोलै , "विक्कू भैया भाभी ने चुनौती दे दी।  और हमारी भाभी अपने किसी देवर को ललकार से दूर भागने की अपेक्षा नहीं करेंगी। बस मैंने तो भाभी के आदर  के लिए ही सब किया। "
मैं हँसते हुए बोली, "वह मेरे दुसरे नंबर के देवर।  अपनी भाभी को पहले डुबोया फिर लगभग नंगा कर दिया और वो सब उसके आदर करने के लिए। वीनू भैया आपका जवाब नहीं है। "
विक्कू भी हंस दिए , "भाभी ध्यान रखना तुम्हारे चारों देवर बहुत शैतान है। "
मैंने मोहक मुस्कान विक्कू की तरफ फेंकी , "विक्कू भैया बस चारों ! क्या मेरे पांचवे देवर संत महात्मा की तरह धर्मात्मा हैं ?"
"नहीं भाभी मौका तो दो तुम्हारा पांचवा  देवर तो इतनी शैतानी कर सकता है की तुम चकित रह जाओगी।  यदि मैं वीनू की जगह होता तो ……….. ,"  विक्कू ने अपना वाक्य अनकहे इशारे से आधा ही छोड़ दिया। 
"तो क्या विक्कू भैया ? " मैं धीरे से फुसफुसाई।  मुझे अपनी जांघों के बीच में अपने योनि रस का गीलापन महसूस होने लगा था।
" भाभी एक बार मौका दो फिर बता दूंगा," विक्कू ने भी  फुसफुसा कर कहा और फिर ज़ोर से बोले , "भाभी चलो आपको हमारे घर के प्यारे शेरू से मिलवाएं।"
शेरू बहुत लम्बा, ऊंचा भारी बहुत सूंदर डोबरमैन और ग्रेट डेन का मिश्रण था।  उसने शीघ्र ही पूंछ हिलते हुए मेरे हाथों को फिर दोनों पिछले पंजों पे खड़े हो कर मेरे मुंह को चाट चूम कर गीला कर दिया।
" भाभी यह लीजिए आपका छठा देवर भी आपका दीवाना हो गया है ," वीनू ने फिर से शरारत की।
"  मुझे भी अपना छठा देवर बहुत प्यारा लगा पर देवर जी तुम फिर से आप-शाप पर आ गए। " मैंने वीनू को चिढ़ाया।
" और यह है हमारा सबसे होशियार और समझदार तूफ़ान। इसने जब बबलू की टांग टूट गयी थी और वो बेहोश हो कर हिल भी नहीं पाया तो तूफ़ान ने वीनू को खेतों से ढून्ढ कर बबलू के पास ले गया था," विक्कू ने प्यार से पांच हाथ ऊंचे सात टन भारी गहरे भूरे रंग के खूबसूरत घोड़े के प्रेम और ईमानदारी से दमकते मुँह को सहलाया।
"तूफ़ान यह हमारी  भाभी हैं।  और इस घर की मालकिन।  इनका ध्यान भी तुम्हें और शेरू को रखना है ," तूफ़ान ने विक्कू भैया की बात सुन कर मानों समझ कर सर हिलाया और धीरे धीरे मेरे हाथ बदन को गहरी साँसों से सूंघा। फिर अचानक जीभ निकल कर मेरे चेहरे को चाट  लिया।
"भाभी तूफ़ान  भी तुम्हारा ग़ुलाम बनने को तैयार है ," विक्कू बोले और वीनू ने भी हाँ में हाँ मिलायी।
"देवर भैया और कौन है जो मेरा ग़ुलाम बनने के लिए तैयार हैं ?" मैं अब अपने देवरों के प्यार से भावुक और उत्तेजित हो चली थी।
" और कौन तुम्हारे पांच देवर ," विक्कू बोले।
"पांच नहीं भैया ..  सात। तूफ़ान और शेरू को भूले तो दोनों नाराज़ हो जाएंगें। " वीनू ने मुझे आँख मार कर कहा।
वीनू चलो तुम भाभी को अंदर ले चलो मैं तूफ़ान को अस्तबल में रख कर और खिला कर आता हूँ ," विक्कू अस्तबल  की तरफ और वीनू और मैं घर की तरफ चल पड़े।  शेरू ने जैसे मुझे अपना लिया हो।  वो मेरे से चिपक कर चल रहा था।
 
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रात के खाने से पहले शाम के ड्रिंक्स की परंपरा थी मेरे ससुराल में। ससुरजी ने स्कॉच चुनी। विक्कू भैया ने भी स्कॉच चुनी। वीनू और राजू ने लाल और मैंने सफ़ेद मदिरा [वाइन ] चुनी। टीटू और बबलू की अभी क़ानूनी तौर से पीने की उम्र नहीं थी पर उन्हें थोड़ी सी मात्रा में पीने के इज़ाज़त थी।
मेरे पाँचों  देवर हंसी मज़ाक में माहिर निकले। मैंने उन्हें अपनी जीवन की कहानी सुनाई और ससुरजी ने अपने परिवार की।  मेरे पति निर्मल व्यव्हार से अपने पिता और भाइयों से बहुत अलग थे।
खाने की मेज पर भी हंसी मज़ाक चलता रहा।
" पापा , भाभी को नए घर में डर लगेगा , क्या मैं उनके साथ आज रात  सो जाऊं ?" राजू ने बच्चों जैसे मासूमियत से पूछा।
वीनू ने हंस कर कहा ," राजू तुम्हारे कमरे में होते और कौनसा डर  भाभी को परेशान कर सकता है ? तुम तो सबसे बड़े डर हो। "
राजू ने ने उदास सा मुंह बने नाटकीय अंदाज़ में।
शेरू सारी  शाम मेरे बगल में ही बैठा रहा।
ससुरजी ने कहा , "बेटी तुम्हारे घर में आने देखो आधे ही दिन से कितनी रौनक आ गयी है। "
" पापाजी मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में इतनी ख़ुशी एक दिन में कभी नहीं महसूस  की जितनी आज ," मैंने भावुक ना  होने का निश्चय  कर लिया था।
आखिर सोने का समय आ गया, " बेटे हम किसानों की तरह थोड़ा जल्दी उठते हैं पर तुम जब मन चाहे तब उठना। रसोई में सब कुछ साफ़ साफ़ इंगित है। "
जैसा मैंने सुना था उस लिहाज़ से मैंने ससुरजी के पैर छूने चाहे तो उन्होंने मुझे बीच में ही रोक लिया , " बेटी यह पुरातन  रिवाज़ है। तुम तो हमारी लक्ष्मी हो। तुम्हारे चरण पवित्र है। बस तुम्हारा प्यार ही हमारे लिए प्रसाद के सामान है। " ससुरजी ने इतनी प्रगतिशील विचारों से मेरे ह्रदय बिलकुल जीत लिया।
मैं उनसे गले लग गयी।  ससुरजी ने प्यार से मुझे चूमा और फिर शुभरात्रि कह कर अपने कमरे चले गए।
मेरे पाँचों देवरों ने भी गले मिल कर शुभरात्रि कहने के लिए पंक्ति बना ली।  मैं हंस हंस कर शुभरात्रि बोलती रही।  विक्कू ने मेरे नितम्ब  कस कर सहलाए। वीनू ने मेरी पीठ सहलाई और अपने सीने से मेरे चूचियों को दबाया। राजू ने मेरे कान में फुसफुसाया , "भाभी मेरा कमरा दुसरे गलियारे में तीसरा है।  जब भी मन करे बुला लेना। "
मैंने हँसते हुए हुए राजू को प्यार से दूर धकेला। बबलू और टीटू ने मुझे आगे और पीछे से पकड़ लिया और दोनों ने मुझे चूम कर शुभरात्रि कहा।
मैं ख़ुशी प्रेम से भरी अपने कमरे में गुनगुनाती हुई कपड़े उतारने लगी।  तब मुझे शेरू की उपस्थिति का आभास हुआ।
मैंने हंस कर कहा , "शेरू तुम तो सबसे चालक देवर निकले। "
मैंने बिना कुछ पहने ही बिस्तर में कूद गयी। शेरू कुछ देर तक नीचे ही बैठा रहा फिर कूद कर बिस्तर के पैर की ओर जगह बना कर सोने लगा।  मेरे कमरे का बिस्तर भी बहुत विशाल था। शायद सुपरकिंग से भी बड़ा।
मैंने न जाने कब अपनी चूचियाँ सहलाते सहलाते अपनी योनि में ऊँगली डालनी शुरू कर दी। मैं अब गहरी गहरी सांस ले रही थी। मेरे चुचूक सख्त हो चले, मेरा रति-रस मेरी यौनि से बहने लगा। मेरा भगशेफ सूज कर लम्बा और मोटा हो गया।
मेरे मुंह से सिसकारियाँ निकलने लगी।
शेरू के कान मेरी सिसकारियों को सुन कर हिलने लगे। मेरी उंगलिया अब बेदर्दी से मेरी चूत मार रहीं थीं। मैं जैसे जैसे झड़ने लगी मैंने कोशिश की कि  मस्तिष्क में अपनी और अपने पति की चुदाई की कल्पना की छवि को फोटो की तरह देख सकूँ।  वैसे ही अचानक मेरे दिमाग में मेरे देवरों की छवि आ गयी। मेरी उँगलियाँ और भी तेज़ी से मेरी चूत को छोड़ने लगीं। जैसे ही मैं हलकी सी चीख  मार कर झड़ने लगी तो मेरे आँखों के सामने मेरे ससुरजी का मोहक सूंदर मरदाना चेहरा था।
मेरी चीख सुन कर शेरू तुरंत उठ गया और मेरा मुंह चाटने लगा। शायद उसे लगा की मैं दर्द से चीख उठी थी।
"शेरू यह दर्द बहुत मीठा है। काश मैं तुझे समझा सकती। पर तू बहुत प्यारा देवर है मेरा ," मैंने उसके मुंह को चूमा , "ठीक मेरे बाकि देवरों जैसा प्यारा। "
शेरू अब मेरे तकिए के पास ही लेट गया। और फिर हम दोनों गहरी नींद  सो गए।
 
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सुबह जब मैं उठी तो शेरू बिस्तर से गायब था। मैंने देखा की सुबह के आठ बज रहे थे। मैंने एक  हल्के से सिल्क  का एक साया [ गाउन ] पहना और रसोई की तरफ चल दी।
मैंने चाय बनाई शुरू की और अपनी ससुराल में बितायी पहली रात के बारे में सोचने लगी। तभी पीछे से किसी ने मुझे बाँहों में जकड़ लिया। मेरे  इतने लम्बे थे की मेरा सर उनके सीने तक मुश्किल से पहुँच पता था।
" भाभी शुभप्रभात ," यह राजू की आवाज़ थी।
मैंने भी मुस्करा कर अपना सर राजू  टिका दिया ,"देवर जी तुम्हें भी बहुत बहुत शुभप्रभात। "
"देवर जी तुम्हारे लिए भी चाय बनाऊं ?" मैंने राजू से पूछा।
"भाभी आपके हाथ का तो मैं ज़हर भी प्रसाद की तरह पी लूंगा ," राजू ने नौटंकी के अंदाज़ में कहा।
"ज़हर पियें  तुम्हारे दुश्मन। देखो अपनी भाभी के सामने ऐसी दिल दुखने  कभी भी नहीं करना ," मैंने प्यार से राजू का हाथ सहलाया।
राजू ने तुरंत मेरे गाल चूम कर बिना बोले माफ़ी सी मांग ली। चाय का कप भर कर मैंने कहा , "राजू चीनी कितने चम्मच ?"
"भाभी आपके होते चीनी की क्या ज़रुरत है. बस मेरी चाय झूठी कर दीजिये वैसे ही बहुत मीठी हो जाएगी ," राजू ने मेरे पेट को सहलाते हुए कहा।
मैं हंस दी।  पर मैंने फिर भी राजू के कप से एक घूंट भर कर उसको कप थमा दिया, " देखो अब भी मीठी नहीं हो तो और चीनी डाल  दूँगी। "
राजू ने एक घूंट पी कर कहा, " भाभी और चीनी डाल  दो। " राजू ने अपने होंठों को मेरी ओर बढ़ा दिया।
मैंने मुस्करा राजू के होंठों को प्यार से चूम  लिया।  राजू ने चटकारा मार कर एक घूंट और पिया और बोलै , "यह तो अब अमृत से भी मीठी हो गयी है भाभी। "
मैं खिलखिला कर हंस दी।
मेरा ध्यान राजू की आँखे देख कर मेरे खुले ढीले साये पर पड़ा। दोनों बड़े उरोज़ लगभग बाहर निकल रहे थे।
"देवर जी चाय मीठी भाभी के होंठो से हुई या आपके नज़रों के सामने के  नज़ारे से ," राजू ने उदास मुंह बनाया जैसे ही मैंने अपना साया फिर से अच्छे से बाँध लिया।
"राजू सुबह सुबह शेरू बंद दरवाज़े से कैसे निकल गया ?" अचानक मुझे विचार आया।
"भाभी शेरू बहुत होशियार है पर हमारे घर के दरवाज़े वो नहीं खोल सकता।  ज़रूर विक्कू भैया या पापा ने उसे आपके कमरे से बाहर निकाला  होगा।  बेचारा को सुबह सवेरे की सू-सू भी तो आई होगी।”
मैं शर्म से लाल हो गयी। कल रात मैं हस्तमैथुन के बाद नंगी ही सो गयी थी। राजू और मैं काफी देर तक बात करते रहे। राजू ने मुझे परिवार के व्यवसाय के बारे में बहुत कुछ समझाया।
फिर हम दोनों तैयार होने चले गए।
नहाते हुए जैसे मेरी कामवासना के तो पर लग गए थे। ससुरजी या अपने सबसे बड़े देवर ने मुझे सम्पूर्ण नग्न देखा होगा, इस  शर्म और उत्तेजना का विचित्र मिश्रण हो रहा था। मेरी उँगलियाँ फिर से मेरी योनि में घुस गईं। मैंने इस बार निर्मम रफ़्तार और बेदर्दी  से अपनी  चूत मारी।  थोड़ी देर में ही मैं चीख मार  कर ज़ोरों से झड़  गयी।
 
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मैं नाश्ता करके बाहर निकली तो ससुरजी घर की तरफ ही आ थे। मुझे देख कर उनके चेहरे पर ख़ुशी की मुस्कान आ गयी, " बेटे मैं शहर जा रहा हूँ कुछ खरीदना हो तो चलो मेरे साथ। "
मैंने लपक कर कहा , " पापाजी मैं सोच रही थी की कुछ दूसरी तरह के कपडे खरीद लूँ। "
"ज़रूर बेटा, चलो मैं ट्रक की चाभी ले कर अभी आता हूँ ," ससुरजी ने अंदर की तरफ जाते हुए कहा।
शहर में सबसे कीमती दुकान  मैंने कई चोलियां , लहंगे , दुपट्टे , और भारी  जीन्स और मोटी सूती चारखाने की कमीज़ें खरीदी।
ससुरजी और मैंने अच्छे रेस्तौरांत में लंच किया घर वापस चलने से पहले।
फिर मुझे ना जाने कहाँ से प्रेरणा आई और मैंने जब ससुरजी अपने एक दोस्त से बातें कर रहे थे तो पास के पुस्तकालय में जा कर भूजाल  [ इंटरनेट ] पर अपने पति के लण्ड नाप का एक शिश्न  का प्रतिरूप [ डिलडो ]  ख़रीदा।  छह इंच लम्बा और पांच इंच की परिधि,  वेब बेस्ड यानि  भूजाल-की दुकान इसको पार्सल से भेज देगी।
जैसे ससुरजी रास्ते  पर ध्यान देते हुए ट्रक चला रहे थे वैसे ही मैं उन्हें कनखियों से प्यार भरी निगाहों से देख रही थी। ससुरजी छयालिस साल के हृष्ट पुष्ट भीमकाय कामकरषक पुरुष थे। मुझे उन्होंने कोई भी संकेत नहीं दिया की सुबह वो मेरे कमरे में शेरू को बाहर निकलने के लिए आये थे।
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जब मैं वापस कमरे पहुंची तो चकित रह गयी।  मेरे सारे कपड़े बारे सलीके से अलमारियों और दराज़ों में थे। फिर मेरी नज़र मेज़ पर एक छोटे सी चिठ्ठी पर पड़ी।
"भाभी बुरा मत मानियेगा मैंने सोचा की आपकी सेवा करने की इच्छा से मैंने आपके कपड़े सम्भाल कर तरतीब से रख दिए हैं। इनाम [ खुद ही मैंने अपना इनाम भी तय कर लिया ] के एवज़ में मैंने आपकी पहनी हुई कच्छी और ब्रा रख ली है। आप जब चाहे अपनी दूसरी पहनी हुई ब्रा और कच्छी इनकी जगह छोड़ कर इन्हे ले जाएँ।  आपका सेवक देवर राजू "
मैं पहले शरमाई फिर मुझे ध्यान आया की कल की ब्रा और कच्छी तो पूरे दिन के सफर से मेरे शरीर के रसों से भरी होगी।  मेरा दिल अपने छोटे देवर की शरारत से प्यार से भर गया।
मै फिर से गरम हो गयी। तभी मुझे एक चालाक  विचार आया। मुझे राजू ने अपना कमरा कौनसा है कल रात ही बताया था। मैं उसके कमरे में धीरे से घुसी। मेरी कच्छी और ब्रा राजू के तकिए पर थी। मेरी कच्छी के आगे और पीछे के हिस्से पूरे गीले थे। राजू ने ज़रूर उन्हें चूस चूस कर……………  मुझे इस की कल्पना से ही रोमांच हो गया। 
मैंने भी राजू के स्नानघर में जा कर उसका कल का कच्छा ढून्ढ लिया। फिर एक छोटी सी चिठ्ठी लिखी " राजू कच्छी के बदले में कच्छा , तुम्हारी भाभी। "
जैसे ही मैं कमरे पहुंची तभी शेरू दौड़ता हुआ कमरे में दाखिल हो गया। मैंने कमरा बंद किया और कपडे जल्दी से उतार कर बिस्तर पर फ़ैल कर लेट गयी। मैंने राजू के कच्छे के आगे वाले हिस्से की जगह की सुगंध को सूंघा और मेरी उँगलियाँ स्वतः मेरी चूत को ढूंढने लगीं। मेरी चूत मेरे रति-रस से लबालब भरी थी।
मेरी आँखे बंद होने लगी। तभी मुझे अपनी उँगलियों के ऊपर गीली जीभ का अहसास हुआ।  शेरू सूंघता सूंघता मेरी चूत के रस की सुगंध से प्रभावित हो गया था। उसकी लम्बी खुरदुरी जीभ ने जैसे ही  मेरी सम्पूर्ण चूत को चाटा तो मेरी सिसकारी में आनंद और आश्चर्य मिला जुला था।
"हाय शेरू ऐसा तो तेरे भैया ने भी कभी नहीं किया ," मैं वासना के आनंद में गोते लगाते हुए बुदबुदाई।
 
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शेरू ने एक बार फिर से अपनी खुरदुरी लम्बी जीभ से मेरी तड़पती प्यासी चूत को नीचे  से लेकर ऊपर तक फिर से चाटा।  जैसे ही उसकी जीभ ने मेरे भग -शिश्न को रगड़ा मेरी सिसकारी फूट  पड़ी।
"हाय शेरू तूने ऐसा कहाँ से सीखा," मैं अब कामाग्नि से जल रही थी।  मुझे निर्मल के लण्ड से चुदे  चार दिन हो चले  थे।
मैंने अपनी टाँगे मोड़ कर और फैला दीं।  शेरू ने अब मेरी चूत को तेज़ी से चाटना शुरू कर दिया। उसकी लम्बी जीभ कभी-कभी स्वतः मेरी कोमल योनि की सुरंग में अंदर  चली जाती जैसे मुलायम लण्ड हो।
मैं अब बिस्तर से चूतड़ उठा उठा कर अपनी चूत शेरू की जीभ के लिए और भी आसान बनाने का प्रयास करने लगी। 
शेरू की लम्बी खुरदुरी जीभ के कमाल से मैं कुछ ही मिनटों में झड़ गयी।  पर शेरू ना तो धीमा हुआ और ना  ही रुका। मेरी सिसकारियों से कमरा गूँज उठा। मैं अब बार बार झड़ रही थी। शेरू अब और भी तेज़ी से मेरी चूत  को अपनी जीभ  से  चाट रहा था।
अब शेरू ने मेरी चूत को बड़ी निपुणता से चाट रहा था। मैंने उसका सुंदर सर अपनी चूत  के ऊपर दबा दिया। मैं ना जाने कितनी बार झड़ चुकी थी। मेरी  चूत अनेकों बार झड़ने से अतिसंवेदनशील हो चली थी और अब शेरू के चाटने से मीठा मीठा अजीब सा दर्द हो रहा था।
"हाय शेरू अब रुक जाओ। मैं बहुत बार झड़ चुकी हूँ। मेरी चूत अब दर्द कर रही है ," मैं काम-वासना के ज्वर से जलती बुदबुदाई जैसे शेरू मेरी हर बात समझ लगा।
शेरू ने मुझे अनसुना कर मेरी अतिसंवेदनशील योनि को लगातार चाटता रहा। मैं कसमसा उठी। मैं अनगिनत रतिनिष्पति के प्रभाव से शिथिल भी हो चली थी।
मैं झट से पेट के बल पलट गयी। मैं  बिस्तर के  किनारे पे तो थी ही शेरू ने बिना हिचक मेरे नितिम्बों  को चाटना शुरू कर दिया।  मुझे उसका चूतड़ों को चाटना भी बहुत रोचक लगा। उसकी जीभ कभी कभी मेरे चूतड़ों की दरार में घुस जाती और मेरी गांड को भी चाट लेती।  मैं आनंद के सागर में डूबती जा रही थी। अचानक शेरू की जीभ ने मुझे चाटना बंद कर दिया।
शेरू ने बिस्तर के ऊपर अपने अगले पंजे रख रखे मेरी सीने के दोनों ओर और मेरा मुंह चाटने लगा।
"हाय शेरू तुम तो मेरे सारे देवरों से भी आगे निकल गए। काश मैं भी तेरे लिए कुछ कर पाती ," मैं मंद मंद आनंद प्राप्ति की संतुष्टि से मुस्कुराते हुए फुसफुसाई।
शेरू ने अपना पिछवाड़ा जैसे जैसे कि  कुकुरजाति के सदस्य करते हैं अपनी मालिक की टांगों के साथ  मैं समझी शेरू उत्साहित हो कर अपनी वैसे ही कर रहा था। पर मुझे अचानक अपनी योनि के द्वार पर एक मोटा सख्त लण्ड महसुस हुआ।  शेरू का साठ किलो का वज़न मेरे ऊपर था। उसके लण्ड की ठोकर कभी मेरे चूतड़ों पर और कभी मेरे चूत के दाईं या बाईं और ज़ोर से दर्द कर रही थी।
"शेरू यह क्या कर रहा है ," मैं छटपटाई । जब तक मैं सम्भल पाती  एकाएक मेरी गीली रस भरी योनि में शेरू का मोटा लोहे जैसा सख्त लण्ड एक ही झटके से जड़ तक घुस गया। दर्द के मारे मैं बिलबिला उठी। इतना लम्बा मोटा लण्ड भी दुनिया में है ,इसकी कल्पना भी नहीं की थी कभी मैंने।
मेरे पतिदेव का लण्ड छह इंच लम्बा और पांच इंच की परिधि वाला था और मुझे वो बहुत लम्बा और मोटा लगता था। शेरू ने मेरी चीख को नज़रअंदाज़ कर फिर से एक और धक्का मारा।  मेरी दर्द भरी चीख के साथ मेरी आँखों में आंसू भी भर गए।
मुझे उस दिन पता चला की शेरू की कुकुरजाति के सदस्य बिजली की रफ़्तार से चोदते  हैं। मानव पुरुषों की तरह वो अपनी गति या निर्मम धक्कों को बदलते नहीं।
शेरू ने किसी मशीन के पिस्टन की तरह मेरी चूत को मरना शुरू किया तो ना ही शेरू धीमा हुआ या रुका।
"हाय राम ……. अन्न्न्न्न्न्न ……… शेरू ….ऊऊऊऊ उन्न्नन्नन्नन …..धीरे …ए …ए … ए … ए … ए … ए ….. ए ,"  मैं दर्द भरे कामवासना के अतिरेक से चीखी।  पर शेरू ने मेरा मुंह चाटते हर मेरी छूट का लतमर्दन निरंतर जारी रखा।
शेरू का लण्ड मेरे गर्भाशय के ऊपर जब ठोकर मरता तो मेरे निचले पेट में एक अजीब सा दर्द और हलचल उठ जाती। पर उस दर्द से मुझे एक नया काम-विकृत [परवेर्टेड] आनंद आ रहा था।
शेरू का लण्ड बहुत गरम वीर्य शुरू से ही मेरी चूत में छोड़ने लगा था। और लगातार सारी  चुदाई के दौरान मेरी चूत में अपना गरम वीर्य भरता रहा।
अब मैं शेरू के नीचे दबे उसकी स्त्री की तरह बन गयी , " शेरू और ज़ोर से चोद मुझे।  मेरे शेरू।  हाय ऐसे ही मैं झड़ने  वाली हूँ शेरू। "
और मैं सिसकारी मारते हुए भरभरा के झड़ गयी। पहली बार मुझे किसीने इतनी बार एक दिन में झाड़ा था। और मैं दुसरे रतिनिष्पति की ओर अगर्सर हो चली थी।
शेरू का लण्ड अब अंदर तक बिजली के रफ़्तार से मेरी चूत छोड़ रहा था। अब मेरी योनि खुल कर उसका मोटा लम्बा लण्ड लेने में सक्षम हो गयी थी। लेकिन मेरे बच्चेदानी के ऊपर शेरू के लण्ड की ठोकर मेरे कामनन्द को और भी परवान चढ़ा रही थी। मेरी चूत में से अब चपक चपक की अश्लील आवाज़ें निकल रहीं थीं।  मैं फिर से झड़ गयी।
" शेरू चोदो  मुझे हाय राम उन्न्नन्नन्न आर्र्र्र्र्र्र् गघह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ," मैं सिस्कारती, बिलबिलाती कामोन्माद के सागर में गोते लगा रही थी। मुझे आज पहली बार सम्भोग के उन्नत सुख का अनुभव हो रहा था। मैं तो सोच भी नहीं सकती थी की मैं एक चुदाई में छ सात बार झड़ सकती हूँ।  और अभी मेरी चुदाई पूरी भी नहीं हुई थी।
शेरू अब मुझे चोद ही नहीं रहा था  पर रगड़ कर रोंद भी  रहा था।  उसका खुला मुंह मेरे मुंह के ऊपर गहरी गहरी साँसे ले रहा था। उसकी लम्बी लटकती जिव्हा मेरा मुंह चाट  रही थी। उसका लण्ड मेरी चूत में आधे घंटे से भी ज़्यादा देर से चोद रहा था।
अचानक मैं जब एक बार फिर से झड़ रही थी तो मुझे लगा की शेरू का लण्ड तेज़ी से और भी मोटा होता जा रहा था।  मैं काम -वासना से ग्रस्त  थी और कामोन्माद के अतिरेक में कुछ समझने और करने में असक्षम थी।
कुछ ही क्षणों में  शेरू का लण्ड लगभग तिगुना मोटा हो गया।  मुझे लगा कि जैसे किसी मर्द ने अपना मोटी मुठ्ठी मेरी चूत में घुसा दी हो। मैं दर्द से बिलबिला उठी।  भगवान् की दया से शेरू ने एक ही झटके से अपना नया मोटा लण्ड जड़ तक घुसा कर मुझसे चिपक गया। अब बस उसका लण्ड मेरी तड़पती योनि में कपकपा रहा था । अब शेरू और भी उत्सुकता से मेरा मुंह चाट रहा था। मैं दर्द के आंसुओं को पीने की कोशिश कर रही थी की मेरे शरीर ने मुझे धोका दे दिया।  मैं दर्द से बिलबिलाते हुए भी शेरू के मोटे लण्ड के सिर्फ मेरी चूत में  कांपने  के प्रभाव से भरभरा कर झड़ गयी।
शेरू जब भी मेरे अंदर से निकलने की कोशिश करता मैं दर्द से बिलबिला उठती पर शेरू मेरे दर्द को समझ गया और मुझे निकलने की कोशिश बंद कर दी। मैं हर कुछ मिनटों में शेरू के लण्ड की गर्मी और कम्पन के प्रभाव से झड़ती रही। शेरू का लण्ड मेरी चूत में गरम वीर्य की बौछार लगातार करता रहा।
लगभग आधे घंटे के बाद शेरू लण्ड फिर से अपने पहले अकार का होने  लगा और शेरू ने अपने लण्ड को मेरी चूत से बाहर निकल लिया।
मैं उसी तरह लेती गहरी साँसे लेती कामानन्द के अतिरेक से शिथिल लेती रही।  शेरू  चाट कर मेरे रति रस और अपने वीर्य
से लिसे लण्ड को साफ़ करने लगा।
मैंने जब कुछ होश सम्भाला तो कंप्यूटर को शुरू कर इंटरनेट पर शेरू के कमाल की चुदाई के बारे में ढूड़ने लगी।
शेरू की जाति में लंड  नौ इंचों से भी लम्बे होते है। उनके लण्ड की मोटाई लगभग पांच से छ इंच तक और ज़्यादा हो सकती है। उनकी गाँठ जब बनती है तो उनके लण्ड की जड़ तीन गुनी तक मोटी हो जाती है।  जैसे किसी मर्द की मुठ्ठी या और भी मोटी। उनके लण्ड पूरी चुदाई में वीर्य के बरसात करते रहतें हैं।  अब मैं शेरू की चुदाई की कलाकारी से प्रभावित और समझदार हो गयी थी।
मैंने शेरू को प्यार से चूमा  बोली , "शेरू तुम्हें किसने सिखाया ये सब ?" जवाब ने शेरू में मेरे मुंह को चूमा प्यार से।
 
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मैं और निर्मल रोज़ ईमेल या टेक्स्ट से एक दुसरे का हाल चाल पूछते थे। मेरी ईमेल और टेक्स्ट लम्बे और वार्तालापी  होते  थे पर निर्मल के जवाब छोटे और मतलब से सम्पादित होते। मैंने उनके परिवार की  बड़ाई के पुलंदे बाँध दिए।
शेरू अब मेरा हमराज़ और अंतरंग मित्र बन गया था। हमने उस दिन एक बार और सम्भोग किया। शाम के खाना  मेरे निरिक्षण में बना और सभी ने सराहा। एक ही दिन में  मैं पाँचों देवरों और ससुरजी से बिलकुल खुल गयी थी। शाम के ड्रिंक्स पीते हुए मैं ससुरजी की गोद  में बैठ गयी अपने देवरों को चिढ़ाने के लिए।
रात के सोने के समय मेरा हमराज़ शेरू फिर से मेरे बिस्तर में था। इस बार जैसे ही मैं नग्न हुई शेरू की नाक मेरी जांघों के बीच में थी।  इस बार मैंने उसे लिटाया और उसके लण्ड की जगह का निरिक्षण किया। मैंने उसके बालों से भरे अंडाशय को सहलाया और धीरे धीरे उसका गुलाबी लण्ड बाहर आने लगा। उसकी पूंछ बिना रुके हिल रही थी।
मैंने शेरू लण्ड  के भीतर की हड्डी को महसूस किया और धीरे धीरे उसका लण्ड सहलाने लगी। शेरू  का मुंह खुला था और शेरू हांफ था। थकान से नहीं पर वासना के आनंद से।
शेरू  बिस्तर पर कोने पे लेता था।  मैं खुंटनों के बल कालीन पर बैठी थी। मैंने उसके गुलाबी रेशम जैसे चिकने  सख्त लण्ड को मुथियाना शुरू कर दिया।  मेरा मुंह भी खुद ब खुद हवस के अतिरेक से खुल कर ज़ोर ज़ोर से साँसे लेने लगा। मैंने जैसे ही पहली वीर्य की बून्द शेरू के चपटे से लण्ड के सुपाड़े के बीच में पेशाब के छेद के ऊपर देखी ना जाने कहाँ से मेरे कामोत्तेजना ने मेरे मस्तिष्क को काबू में कर  लिया।
मैंने शेरू का लण्ड का सुपाड़ा मुंह में ले लिया। शेरू का वीर्य मर्दों के वीर्य से पतला था पर बहुत गरम और खारा था। मैंने हौले हौले झिझकते हुए शेरू का लण्ड चूसना शुरू कर दिया। मैं शेरू को अपनी चूत चाटने का धन्यवाद दे रही थी। शेरू ने मशीन जैसी हलकी सी गुर्राहट निकाली पर उसकी पूंछ लगातार तेज़ी से फहरा रही थी। यह कुकुरजाति का मानव जाती का सिसकारी मारने जैसा था शायद।
शेरू का लण्ड और भी लम्बा और मोटा हो चला।  मेरे मुंह में उसका पतला पर बहुत गरम वीर्य लगातार उसके लण्ड से झड़ रहा था।  मैं जैसे ही मेरा मुंह भर जाता मैं गटक कर फिर से उसका लण्ड चूसना शुरू कर देती। शेरू अब कमर आगे पीछे करते हुए मेरा मुंह चोदने का प्रयास कर रहा था। मैंने एक हाथ से उसके लण्ड के पास के पेट पर रख कर उसे स्थिर रखने में सफल थी।
आधे घंटे के बाद मैंने देखा की शेरू की गाँठ बनने लगी।  मेरी आँखे फैट गयीं जब उसका लण्ड की जड़ दुगनी शायद तिगुनी मोटी हो गयी। ना जाने कैसे शेरू की गाँठ ने मेरी चूत नहीं फाड़ी।
मैंने  हाथ से उसकी गाँठ की तुलना उसके मोठे लण्ड से की।  मेरे दोनों हाथ बड़ी कोशिश करने  के बावज़ूद भी उसकी गाँठ की परिधि को घेर नहीं पाये।
अचानक शेरू ने  कांपते हुए हलकी से गुर्राया और ज़ोर से मेरे मुंह में अपना झड़ता  लण्ड धकेल दिया। मेरे हलक से ुबकैजैसी अव्वज निकली और शेरू का लण्ड मेर मुंह से बाहर निकल गया। उसके गरम वीर्य की धार मेरे माथे, मुंह और बालों पे गिर पड़ी।  मैंने नादीदे पन  से शेरू का वीर्य की बौछार करते लण्ड को फिर से मुंह में ले लिया।
शेरू का लण्ड से वीर्य की बौछार धीरे धीरे थम गयी।  जब उसकी आखिरी बून्द भी मेरे मुंह में गिर गयी तो मैंने जल्दी से शेरू का लण्ड छोड़ कर नापने का फीता उठाया और अपने कौतुहल को शांत करने के लिए शेरू का लण्ड और उसकी गाँठ का माप लिया।
मैं मुंह खुला का खुला रह गया। शेरू का लण्ड लगभग दस इंच लम्बा था। और छ इंच की परिधि के बराबर मोटा  था। लेकिन उसकी गाँठ लगभग दुगनी थी। मेरे निरमल का लण्ड शेरू से बहुत छोटा ओर पतला था।  निर्मल से मुझे जितना भी आनंद मिलता था लेकिन उनकी खड़ा लण्ड मुश्किल चार पांच मिनट ही चोद पाता  था।
मैं ने शेरू जो अब मेरा मुंह चाटने की कोशिश कर रहा था उसे प्यार से चूमा। मैंने बिस्तर के किनारे पर चूतड़ रख कर टांगें नीचे गिरा  दीं। मैंने अपनी दोनों पुष्ट भारी जगहों को पूरा फैला कर शेरू को उकसाया , " शेरू मेरा अच्छा देवर चलो अब भाभी की चूत नहीं चाटोगे ?"
 
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मैंने अपनी घुंघराली झांटों को के नीचे छुपे चूत के गुलाबी भगोष्ठों को फैला दिया।  मेरी चूत से रति-रस अविरल बह रहा था। शेरू की अत्यन्त विकसित संवेदन शील सूंघने की क्षमता ने मेरे योनि से निकलते सम्भोग के कस्तूरी की सौंधी सुगंध को तुरंत ढूंढ लिया।  शेरू ने मेरी टांगों के बीच फर्श पर खड़े हो कर मेरी चूत को पहले सूंघा फिर उसकी काबिल लम्बी खुरदुरी मतवाली जीभ ने मुझे एक मिनट में ही पागल कर दिया मेरी चूत  में जानलेवा हलचल मचा कर।
उसकी जीभ मेरे बहते रति रस को चूसने चाटने लगी।  उसकी जीभ मेरी पूरी खुली चूत को चाटते हुए मेरे संवेदनशील भग्नशे को रगड़ देती।
मैं ज़ोर से सिसकारियाँ मारने लगी। मैंने अपनी चूत के कपोट ओर भी खींच कर अपनी चूत को शेरू की जीभ के लिए खोल दिया।
मैं सिसकारियाँ भरती शेरू का सर एक हाथ से सहला रही थी। मेरा दूसरा हाथ मेरी चूचियों को बेदर्दी से मसल रहा था। मैं खुद अपने चुचूक मरोड़ कर दर्द के मारे  हलके से चीख पड़ती।
शेरू ने कुछ ही मिनटों में मुझे चरम-आनंद के कगार पर ला पटक दिया। उसकी जीभ की अगली शोर से मेरे भग-शेफ की रगड़ ने मुझे कगार  फेंक दिया।
" हाय शेरू…. ऊऊऊऊ….. मैं आ गयी …..ई …..ई…… ई ……..  ई  … ई ………… ई ……. अन्नन्नन्नन्न ," मैं बिस्तर से अपने चूतड़ ऊपर फैंकने लगी। मेरे चूत में संसर्ग रस का सैलाब उठ गया।
शेरू पहले की तरह मुझे चूसता चाटता रहा।  मैं अगले दस पंद्रह मिनटों में चार पांच बार झड़ गयी। उस दिन मुझे पता चला कि  उन स्त्रियों में से हूँ जिनका चरम-आनंद की प्रितिक्रिया अत्यन्त तीव्र और शीघ्र हो जाती है। और जब मैं एक बार आ जतिन हूँ तो फिर यदि कोई मुझे चोदता रहे तो मेरे चरमानंद एक दुसरे से मिल कर लम्बी कड़ी बन लेते हैं। इसीसलए मेरे पति मुझे पांच दस मिनटों में भी काफी संतुष्टि देने में सफल हो जाते थे। पर शेरू में मेरे उत्तेजना को कई और बहुत ऊंची मंज़िल पर पहुँच दिया था।
मैं भरभरा कर झड़ रही थी।  मेरी चूत अनेकों बार झड़ने से अत्यन्त संवेदनशील हो चली थी। और आधे घंटे के बाद शेरू की जीभ आनंद के साथ-साथ मीठा दर्द भी करने लगी।
मैंने एक दिन पहले की तरह पलटी नहीं  मारी।  मैंने शेरू का सर उठा कर उसे चूमा और उसे इशारे से अपने ऊपर आने के लिए उत्साहित करने लगी।  मेरी इच्छा थी कि शेरू मुझे सामने से चोदे।  शेरू ने मेरे बिस्तर पर हाथ मारने के इशारे को समझ लिया और उछल कर उसने अपने अगले पंजें मेरी छाती के दोनों ओर बिस्तर पर जमा दिये।  मुझे उसका फड़कता हुआ मोटा लम्बा लण्ड साफ़ साफ़ दिख रहा था। मेरी साँसें तेज़ हो गईं।
मैंने शेरू को कुछ मौके दिए खुद से मेरी चूत के द्वार को अपने लण्ड से ढूंढने के लिए।  फिर बेसब्री से उसके लण्ड को अपने हाथ से अपनी खुली चूत के फलकों के बीच टिका दिया।
शेरू ने अगले भीषण धक्के से एक झटके में अपना लण्ड मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया। मैं दर्द के मारे चीख उठी।
शेरू ने अपनी प्रजाति और नसल के सलीके से बिना एक क्षण गवायें अपना लण्ड बाहर निकाला और बिजली की तेज़ी से फिर से जफ=डी तक मेरी चूत में धकेल दिया। शेरू का लम्बा मोटा लण्ड का सुपाड़े ने मेरे गर्भाशय के द्वार पर ज़ोर से टक्कर मारी। मैं बिना किसी संयम के बिलबिला कर चीख उठी। पर उस हिला देने वाले दर्द में आने वाले आनंद के बीक का आभास नुझे तब भी हो रहा था। शायद इसीको स्त्री-अंतर्ज्ञान कहा जाता है।
मैंने अपनी बाँहों से शेरू की गर्दन को जकड़ लिया।  शेरू की जीभ मेरे मुंह को चुम चाट रही थी।  उसकी जीभ की नोक मेरे फड़कते नथुनो ने भी चली जाती। मेरे खुले मुंह में उसकी जीभ का गरम गीला स्वाद भर गया।
मैं सुबक - सुबक कर शेरू को अपनी चूत के दर्दीले लतमर्दन का निमंत्रण लगातार देती रही।  शेरू के पिछली कमर अब किसी बरमे या छेदन-यंत्र यानि ड्रिल के पिस्टन की तरह आगे पीछे हो रही थी। शेरू सिर्फ एक रफ़्तार से चोदना  जानता था - बहुत तेज़, और उससे भी ज़्यादा तेज़। मेरी चूत में शीघ्र रति रस का सैलाब फिर से आ गया।
"शेरू ऊ……ऊ ……..ऊ …… ऊ …..ऊ ……ऊ ….. चोदो हाय धीरे …..अन्न्न्न्न्न्न कितना दर्द …..  अन्नन्नन्नन्न उन्न्नन्नन्नन्न ,"मैं सुबकती रही और शीघ्र मेरी सिसकारियाँ कमरे में गूंजने लगीं ।
भीषण दर्दीली चुदाई के भीतर छुपे वासनामय आनंद के सूर्य का उदय हो चला। अब मेरे शरीर में कामोत्तेजना की किरणे दौड़ने लगीं।
" हाय राम शेरू बहुत अच्छा …….  उन्न्नन्न …………. ज़ोर से चोदो शेरू ………………. अन्न्न्न्न्न्न ,"अब मेरे शरीर का हर हिस्सा शेरू के दर्दीले के लण्ड के दर्दीले प्रहारों  का खुला स्वागत कर रहा था। और मैं शीघ्र चीख मार कर झड़ने लगी।
अब मैं जब तीखे दर्द के उबाल से उभर आई तो मुझे अब अपनी चूत में शेरू के गरम गरम वीर्य की बौछार की जलन भी महसूस होने लगी। लकिन मेरे कामोन्माद की उड़ान जब एक बार परवान हुई तो नीचे नहीं आई। मैं लगातार झड़ रही थी। कभी सैफ सिसक उठती या कभी हलकी सी चीख मार उठती पर दोनों के पीछे  वासना के आनंद का अतिरेक था।
शेरू का लण्ड अब मेरी रस से लबालब चूत तीव्र गतिमान रेल के इंजन के पिस्टन की तरह तेज़ी से मेरी चूत फचक फचक फचक की अश्लील आवाज़ें पैदा  करते हुआ मुझे चोद रहा था।
मैंने शेरू को जकड़ पर पकड़ लिया।  मेरा शरीर अनगिनत बार झड़ कर अकड़ने लगा। मेरी मस्तिष्क पर परकामोन्माद  के अतिरेक की उत्तेजना से निश्चेतता के बदल मंडराने लगे। शेरू हलकी - हलकी गुर्राहट की आवाज़ें निकलने लगा।
उसके गरम वीर्य की जलन मेरी तड़पती चूत की कोमल दीवारों को जला रही थी। फिर अचानक उसकी गाँठ बनने लगी।  मेरा शिथिल दिमाग बहुत धीमा था।  जब तक मैं सफल पाती शेरू ने अपनी मोटी पूरी परवान चढ़ी गाँठ को मेरी चूत में ठूंस दिया।
"शेरू ……. ऊऊऊ …….. ऑन्नन्नन्नन …… नहीं ई …….ई …… ई ….. ई …. ई ….. ई  उन्न्नन्नन मर गयी .... ई ….ई ….. ई ……. ई ….. ई …….. ई  ," मैं दर्द से तो चीखी पर मेरी चरम-आनंद का बाँध टूट गया।  मैं कपकंपा के इतने ज़ोर से झड़ी की मारा शरीर धनुष जैसा अकड़ गया।
मेरे रति-निष्पत्ति की कड़ी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।  शेरू का बदन भी काँप रहा था। उसके लण्ड से अब गाढ़े वीर्य की बौछार मेरे चूत को भर रही थी। उसकी मोटी गाँठ मेरी चूत को दर्दीले ढंग से बुरी तरह चौड़ा रही थी।
मैं आनंद की उत्तेजना से निश्चेत हो गयी और बिस्तर पर धलक गयी।
जब मुझे होश आया शेरू की गाँठ ढीली हो रही थी।  शेरू ने कुनमुना कर अपना लण्ड मेरी चूत  से बाहर निकल लिया।
मैं बड़ी मुश्किल से अपने थके शरीर को बिस्तर के ऊपर खींच कर तकियों तक पहुंची और तुरंत शेरू से लिपट कर गहरी सतुष्टि की नींद में गिर कर सो गयी।
 
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मैंने अपनी घुंघराली झांटों को के नीचे छुपे चूत के गुलाबी भगोष्ठों को फैला दिया।  मेरी चूत से रति-रस अविरल बह रहा था। शेरू की अत्यन्त विकसित संवेदन शील सूंघने की क्षमता ने मेरे योनि से निकलते सम्भोग के कस्तूरी की सौंधी सुगंध को तुरंत ढूंढ लिया।  शेरू ने मेरी टांगों के बीच फर्श पर खड़े हो कर मेरी चूत को पहले सूंघा फिर उसकी काबिल लम्बी खुरदुरी मतवाली जीभ ने मुझे एक मिनट में ही पागल कर दिया मेरी चूत  में जानलेवा हलचल मचा कर।
उसकी जीभ मेरे बहते रति रस को चूसने चाटने लगी।  उसकी जीभ मेरी पूरी खुली चूत को चाटते हुए मेरे संवेदनशील भग्नशे को रगड़ देती।
मैं ज़ोर से सिसकारियाँ मारने लगी। मैंने अपनी चूत के कपोट ओर भी खींच कर अपनी चूत को शेरू की जीभ के लिए खोल दिया।
मैं सिसकारियाँ भरती शेरू का सर एक हाथ से सहला रही थी। मेरा दूसरा हाथ मेरी चूचियों को बेदर्दी से मसल रहा था। मैं खुद अपने चुचूक मरोड़ कर दर्द के मारे  हलके से चीख पड़ती।
शेरू ने कुछ ही मिनटों में मुझे चरम-आनंद के कगार पर ला पटक दिया। उसकी जीभ की अगली शोर से मेरे भग-शेफ की रगड़ ने मुझे कगार  फेंक दिया।
" हाय शेरू…. ऊऊऊऊ….. मैं आ गयी …..ई …..ई…… ई ……..  ई  … ई ………… ई ……. अन्नन्नन्नन्न ," मैं बिस्तर से अपने चूतड़ ऊपर फैंकने लगी। मेरे चूत में संसर्ग रस का सैलाब उठ गया।
शेरू पहले की तरह मुझे चूसता चाटता रहा।  मैं अगले दस पंद्रह मिनटों में चार पांच बार झड़ गयी। उस दिन मुझे पता चला कि  उन स्त्रियों में से हूँ जिनका चरम-आनंद की प्रितिक्रिया अत्यन्त तीव्र और शीघ्र हो जाती है। और जब मैं एक बार आ जतिन हूँ तो फिर यदि कोई मुझे चोदता रहे तो मेरे चरमानंद एक दुसरे से मिल कर लम्बी कड़ी बन लेते हैं। इसीसलए मेरे पति मुझे पांच दस मिनटों में भी काफी संतुष्टि देने में सफल हो जाते थे। पर शेरू में मेरे उत्तेजना को कई और बहुत ऊंची मंज़िल पर पहुँच दिया था।
मैं भरभरा कर झड़ रही थी।  मेरी चूत अनेकों बार झड़ने से अत्यन्त संवेदनशील हो चली थी। और आधे घंटे के बाद शेरू की जीभ आनंद के साथ-साथ मीठा दर्द भी करने लगी।
मैंने एक दिन पहले की तरह पलटी नहीं  मारी।  मैंने शेरू का सर उठा कर उसे चूमा और उसे इशारे से अपने ऊपर आने के लिए उत्साहित करने लगी।  मेरी इच्छा थी कि शेरू मुझे सामने से चोदे।  शेरू ने मेरे बिस्तर पर हाथ मारने के इशारे को समझ लिया और उछल कर उसने अपने अगले पंजें मेरी छाती के दोनों ओर बिस्तर पर जमा दिये।  मुझे उसका फड़कता हुआ मोटा लम्बा लण्ड साफ़ साफ़ दिख रहा था। मेरी साँसें तेज़ हो गईं।
मैंने शेरू को कुछ मौके दिए खुद से मेरी चूत के द्वार को अपने लण्ड से ढूंढने के लिए।  फिर बेसब्री से उसके लण्ड को अपने हाथ से अपनी खुली चूत के फलकों के बीच टिका दिया।
शेरू ने अगले भीषण धक्के से एक झटके में अपना लण्ड मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया। मैं दर्द के मारे चीख उठी।
शेरू ने अपनी प्रजाति और नसल के सलीके से बिना एक क्षण गवायें अपना लण्ड बाहर निकाला और बिजली की तेज़ी से फिर से जफ=डी तक मेरी चूत में धकेल दिया। शेरू का लम्बा मोटा लण्ड का सुपाड़े ने मेरे गर्भाशय के द्वार पर ज़ोर से टक्कर मारी। मैं बिना किसी संयम के बिलबिला कर चीख उठी। पर उस हिला देने वाले दर्द में आने वाले आनंद के बीक का आभास नुझे तब भी हो रहा था। शायद इसीको स्त्री-अंतर्ज्ञान कहा जाता है।
मैंने अपनी बाँहों से शेरू की गर्दन को जकड़ लिया।  शेरू की जीभ मेरे मुंह को चुम चाट रही थी।  उसकी जीभ की नोक मेरे फड़कते नथुनो ने भी चली जाती। मेरे खुले मुंह में उसकी जीभ का गरम गीला स्वाद भर गया।
मैं सुबक - सुबक कर शेरू को अपनी चूत के दर्दीले लतमर्दन का निमंत्रण लगातार देती रही।  शेरू के पिछली कमर अब किसी बरमे या छेदन-यंत्र यानि ड्रिल के पिस्टन की तरह आगे पीछे हो रही थी। शेरू सिर्फ एक रफ़्तार से चोदना  जानता था - बहुत तेज़, और उससे भी ज़्यादा तेज़। मेरी चूत में शीघ्र रति रस का सैलाब फिर से आ गया।
"शेरू ऊ……ऊ ……..ऊ …… ऊ …..ऊ ……ऊ ….. चोदो हाय धीरे …..अन्न्न्न्न्न्न कितना दर्द …..  अन्नन्नन्नन्न उन्न्नन्नन्नन्न ,"मैं सुबकती रही और शीघ्र मेरी सिसकारियाँ कमरे में गूंजने लगीं ।
भीषण दर्दीली चुदाई के भीतर छुपे वासनामय आनंद के सूर्य का उदय हो चला। अब मेरे शरीर में कामोत्तेजना की किरणे दौड़ने लगीं।
" हाय राम शेरू बहुत अच्छा …….  उन्न्नन्न …………. ज़ोर से चोदो शेरू ………………. अन्न्न्न्न्न्न ,"अब मेरे शरीर का हर हिस्सा शेरू के दर्दीले के लण्ड के दर्दीले प्रहारों  का खुला स्वागत कर रहा था। और मैं शीघ्र चीख मार कर झड़ने लगी।
अब मैं जब तीखे दर्द के उबाल से उभर आई तो मुझे अब अपनी चूत में शेरू के गरम गरम वीर्य की बौछार की जलन भी महसूस होने लगी। लकिन मेरे कामोन्माद की उड़ान जब एक बार परवान हुई तो नीचे नहीं आई। मैं लगातार झड़ रही थी। कभी सैफ सिसक उठती या कभी हलकी सी चीख मार उठती पर दोनों के पीछे  वासना के आनंद का अतिरेक था।
शेरू का लण्ड अब मेरी रस से लबालब चूत तीव्र गतिमान रेल के इंजन के पिस्टन की तरह तेज़ी से मेरी चूत फचक फचक फचक की अश्लील आवाज़ें पैदा  करते हुआ मुझे चोद रहा था।
मैंने शेरू को जकड़ पर पकड़ लिया।  मेरा शरीर अनगिनत बार झड़ कर अकड़ने लगा। मेरी मस्तिष्क पर परकामोन्माद  के अतिरेक की उत्तेजना से निश्चेतता के बदल मंडराने लगे। शेरू हलकी - हलकी गुर्राहट की आवाज़ें निकलने लगा।
उसके गरम वीर्य की जलन मेरी तड़पती चूत की कोमल दीवारों को जला रही थी। फिर अचानक उसकी गाँठ बनने लगी।  मेरा शिथिल दिमाग बहुत धीमा था।  जब तक मैं सफल पाती शेरू ने अपनी मोटी पूरी परवान चढ़ी गाँठ को मेरी चूत में ठूंस दिया।
"शेरू ……. ऊऊऊ …….. ऑन्नन्नन्नन …… नहीं ई …….ई …… ई ….. ई …. ई ….. ई  उन्न्नन्नन मर गयी .... ई ….ई ….. ई ……. ई ….. ई …….. ई  ," मैं दर्द से तो चीखी पर मेरी चरम-आनंद का बाँध टूट गया।  मैं कपकंपा के इतने ज़ोर से झड़ी की मारा शरीर धनुष जैसा अकड़ गया।
मेरे रति-निष्पत्ति की कड़ी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।  शेरू का बदन भी काँप रहा था। उसके लण्ड से अब गाढ़े वीर्य की बौछार मेरे चूत को भर रही थी। उसकी मोटी गाँठ मेरी चूत को दर्दीले ढंग से बुरी तरह चौड़ा रही थी।
मैं आनंद की उत्तेजना से निश्चेत हो गयी और बिस्तर पर धलक गयी।
जब मुझे होश आया शेरू की गाँठ ढीली हो रही थी।  शेरू ने कुनमुना कर अपना लण्ड मेरी चूत  से बाहर निकल लिया।
मैं बड़ी मुश्किल से अपने थके शरीर को बिस्तर के ऊपर खींच कर तकियों तक पहुंची और तुरंत शेरू से लिपट कर गहरी सतुष्टि की नींद में गिर कर सो गयी।


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                                      सुनी का अतितावलोकन
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मैं सुबह देर से उठी।  मेरा हर अंग और जोड़ दर्द से अकड़ा था।  मीठे दर्द से और मोहक अकड़ से। मैंने प्यार भरी मुस्कान लिए अभी भी आँखें  बंद किये  शेरू को हाथों से टटोला। शेरू मेरे पास लिपट कर सोया था। वो फिर बिस्तर से गायब था। फिर मुझे झटके से होश आया।
हाय राम। मेरे देवरों और ससुरजी में से कोई एक फिर मेरे कमरे में से शेरू को सुबह की प्राकर्तिक ज़रूरतों की संतुष्टि के लिए बाहर  ले गया था। मैं एक बार फिर नपत नंगी बिस्तर पे थी। फिर मुझे ज़ोर से धक्का लगा। मेरे बालों में , मुंह पर , जांघों के बीच में शेरू का वीर्य जमा हुआ था।  मैं शर्म से लाल हो गयी।  हाय जो भी थे  वो मेरे बारे में क्या सोचते होंगे।
मैं हार मान कर नाहा धो कर तैयार हो गयी।  इस बार मैंने अपनी नयी खरीदारी में से हलकी नीली चोली और सरसों जैसा गहरा बसंती पीला लहंगा पहना।  मुझे खुद पर अपनी सुंदरता से बिना चाहे नाज़ आने लगा। मैंने अपने सर झटका और रसोई की ओर बढ़  गयी।
मैं चाय बनाते बनाते रात की यादों की खुमारी  में इतनी खो गयी की मुझे वीनू की पदचाप बिलकुल भी नहीं सुनीं। जब उसके मज़बूत बाहें मेरे पेट के ऊपर लपट गयी और उसका साढ़े छह फूटा शरीर मेरे शरीर के पिछवाड़े से चुपक गया तो मुझे होश आया।
"भाभी तुम्हारे विचारों के लिए एक रुपया ," वीनू ने झुक कर  मेरे गाल को चूमा।
" मेरे विचारों में तो बस मेरा एक ख़ास देवर रात दिन छाया रहता है , "मैंने मटक कर मुस्कुराते हुए कहा।
"भाभी विश्वास रखें उस देवर के दिमाग में भी तुम्हारी मुस्कुराती खूबसूरत मूरत  दिन रात बसी रहती है ," वीनू ने मेरा पेट सहलाते हुए अपने हाथ ऊपर सरकाये  धीरे धीरे।
" वाकई देवर जी ? आपको कैसे पता ? ," मैंने अपने चौड़े गोल गोल भारी चूतड़ पीछे कर वीनू की जांघों से रगड़ने लगी।
वीनू के हाथ अब मेरे उन्नत विशाल चूचियों के ऊपर थे। उसकी हथेलियां मेरे अकड़ते मोठे चूचुकों को सहलाने लगीं।
" वाकई भाभी , रात में सोने से पहले और सुबह उठते  ही पहला विचार  आपके नाम का होता है ,"नीनू ने हलके से मेरे उरोजों को दबाया।
मैंने मुश्किल से सिसकारी दबाई और चिड़ाते , " पर वीनू भैया मैं तो शेरू के बारे  रही थी।  वो ही तो मेरा सबसे मतवाला देवर है।  मेरा पूरा भक्त है।  सात में मेरे साथ सोता है मेरी देखभाल करने के लिए और जब देखो मेरे पीछे पूंछ  हिलाता घूमता रहता है।”
वीनू ने हंस कर कहा , "भाभी मेरी तो किस्मत ही फुट गयी आपकी बात सुन कर। अरे मुझे मौका तो दीजिये मैं भी आपके आगे पीछे पूंछ हिलता घूमता रहूँगा। मेरे पास पीछे वाली पूंछ तो नहीं है पर आगे वाली पूंछ आपकी लिए हमेशा फहरती रहेगी ," वीनू ने अपनी 'आगे वाली पूंछ ' मेरी पीठ में गड़ाई।
" वीनू भैया , पहले तो आप अपनी भाभी की एक सीधे से अनुरोध का पालन तो कीजिये।  आप बार बार भूल जातें हैं और मुझे ' आप - शाप ' की गालियां देने लगते हैं। " मैंने हँसते हुए वीनू को ताना  दिया।
वीनू ने मेरे दोनों चूचियों को अपने बड़े बड़े हाथों में भर कर कस कर मसलते हुए कहा , " भाभी, तुम से तो मैं बातों में कभी भी नहीं जीत सकता। चलिए मैं हार मान रहा हूँ। "
"हाय देवर जी कैसी हार मान  रहे हो ? अपनी भाभी के कोमल स्तनों को बेदर्दी से मसल मसल कर ?" मैंने इठला कर कहा।
"भाभी आखिर देवर हूँ तुम्हारा।  थोड़ा सा तो हक़  बनता है मेरा भी भैया के ख़ज़ाने के ऊपर ," वीनू ने फिर से मेरी चूचियों को मसलते हुए गुहार दी।
" पहले अपने भैया से लिखी हुई अनुमति दिखाओ फिर उनके ख़ज़ाने पर हक़ जमाना ," मैंने बलखाते हुए वीनू की गिरफ्त से फिसल गयी, "अच्छा बोलो चाय पियोगे या नहीं?"
"अपने हाथ से पिलयोगी तो तभी पियूँगा। " वीनू ने भी मुस्करा कर चुनौती दी।
" ठीक है पर अपने हाथों को काबू में रखोगे तभी! ," मैंने भी नियम की सीमा बाँध दी।
"भाभी के हाथों से अमृत पीने के लिए तो जो तुम कहो मंज़ूर है ," वीनू ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
" अब तुम इतने अच्छे बच्चे बन गए हो तो चलो भाभी से इनाम भी ले लो ," मैं वीनू की गोद  में बैठ गयी और उसे अपने ही कप से चाय पिलाने लगी।  भाभी और देवर ने एक कप दो कप चाय पी धीरे धीरे।  मेरे वीनू  की गोद  में बैठने के प्रभाव से उसका मुस्टंडा लण्ड आधा खड़ा हो गया , " देवर भैया इस चाय का कमाल तो देखो तुम्हारा बजरंगबली कैसा उछल मचल रहा है। "
" भाभी यह चाय का नहीं भाभी के जानलेवा निटिम्बों का कमाल है ," वीनू के हाथ मेरी ओर  बड़े।
मैं इठला कर वीनू की गोद से कूद कर अलग हो गयी , "चलो देवर जी अब छोटे अच्छे बच्चे की तरह स्नानघर में जा कर अपने मूसल की हाथ से सेवा करो।  यह ठंडा हो जाये तो फिर आना अपनी भाभी के पास। "
मैं हँसते हुए ताज़ा चाय कप लिए रसोई से बाहर चल पड़ी।
अगले दो दिन ऐसे ही हंसी ख़ुशी से भरे गुजर गए।  रोज़ की तरह मैंने अपने निर्मल को लम्बे लम्बे तीन टेक्स्ट, दो ईमेल भेजी। निर्मल ने हमेशा की तरह थोड़ी संक्षिप्त से जवाब भेजे। पर मेरे लिए उसमे अनमोल प्यार बसा था।
रात में हमेशा की तरह शेरू मेरे बिस्तर में सोता  पहले अपनी भाभी की चूत चाट कर मुझे अनगिनत बार झाड़ कर फिर बेदर्दी से घंटे भर चोदता और मैं लगभग बेहोशी के आलम में सो जाती। मेरी वासना की संतुष्टि शेरू के हाथों में थी या कहूं की पंजों में।
दिन की शुरुआत एक या दुसरे देवर के चुहल बाजी करते हुए शुरू होती। शाम और रात  के खाने के समय ससुरजी की गोद में बैठना का तो नियम सा बन गया।
दिन में जिस को मौका मिलता वो देवर मुझसे लिपटने का कोई मौका नहीं छोड़ता। सिर्फ विक्कू भैया के अलावा।  विक्कू भैया बातों से कभी कभी शैतानी की बातें ज़रूर करते थे पर वो वाकई थोड़े शांत और स्थिर व्यवहार के पुरुष थे। मैं इतनी ख़ुशी अपनी याद में कभी भी नहीं महसूस की थी।  बड़े प्यार भरे परिवार के सुख की ख़ुशी।

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वर्तमान काल [कहानी के  दिवस में वापसी ]
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१२
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मैंने गहरी सांस ले कर उठी और वापस पिछले दिनों की मीठी यादों से वापस वर्तमान में वापस आ गयी। कल रात शेरू मेरे कमरे में नहीं आया था। सारी  रात में उलट  पलट कर सोयी। रसोई में इस बार टीटू और बबलू ने मुझे  दूध पीते हुए मुझे सुबह के लिप्त छुप्ती की। मैं रात में बिना शेरू के लण्ड से चुदे वैसे हीअसंतुष्ट  थी। टीटू और बबलू के कमसिन खूबसूरत चेहरों और उनके शैतान भटकते हाथों  ने मेरी वासना की अग्नि को और भी प्रज्ज्वलित कर दिया।
मैं जब बाहर आई तो सारे देवर किसी न किसी खेत पर काम की निगरानी के लिए जा चुके थे। ससुरजी भी कहीं नहीं दिखे। शेरू तभी दौड़ता हांफता कहीं से आया और मेरे ऊपर उछल उछल कर मुझे चूमने का प्रयास करने लगा।
मैं भी शेरू को देख कर खिल उठी।  मेरी चूत बेशर्मी से रति रस से भर गयी। मैं घर में शेरू के साथ दिन में कमरे में नहीं जाना छह रही थी।  घर की नौकरानियां कमरे साफ़ करने में लगीं होंगीं। मैं शेरू को अपने साथ अस्तबल की और ले चली। पिछले दिनों के अनुभव के हिसाब अस्तबल में इस समय कोई भी नहीं होता था।
मैं और शेरू तूफ़ान के बड़े तबले के दूसरी और चले गए। उस और एक खिड़की थी जिस से रौशनी भी आती और बहार नज़र भी रखने में आसानी हो जाती।
मैंने शेरू को गले लगा लिया, " शेरू मेरे देवर राजा।  इस जगह में मैं लेट नहीं सकती।  तुम्हे मेरी चूत चाटने की भी ज़रुरत नहीं है। मैं वैसे ही बहुत गीली हूँ।  बस तुम्हारे भीमकाय लण्ड की प्यासी हूँ। "
मैं अपनी बैटन से खुद ही शर्मा गयी। मैंने हाथों से शेरू के लण्ड को सहलाया और बिना कोई समय बर्बाद किये शेरू का लण्ड तनतना  कर उसके पेट से टकरा रहा था।
मैं एक ठीक ऊँचाई के भूसे के गठ्ठे पर औंधी लेट गयी। मैंने अपना लहंगा ऊपर उठा कर कमर से बाँध लिया था।  पुआल ले ऊपर पेट टिका कर मैंने अपनी टांगें चौड़ा लीं।
शेरू को और क्या निमंत्रण चाहिए था? शेरू  एक झलांग में में मेरे ऊपर चढ़ गया।  उसके अगले  पंजें भूसे के पुआल पर मेरे सीने के दोनों और जम गए। दो तीन बार अंधें धक्के मारने के बाद शेरू के फड़कते विशाल लण्ड ने निशाना ढूंढ लिया। और एक निर्मम धक्के से अपना पूरा मोटा लण्ड मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया।  मैं पूरी कोशिश करने के बावजूद चीख उठी। शेरू ने हमेशा की तरह तूफ़ान रेल-गाड़ी के इंजन के पिस्टन की तेज़ी से मेरी चूत  मारना शुरू किया तो मैं बदहवासी के आलम में खो गयी। उसका लण्ड फचक फचक कर मेरी रस से भरी चूत का लतमर्दन करने लगा। मुझे अपने पहले चरम-आनंद के विस्फोट का ज़्यादा इन्तिज़ार नहीं करना पड़ा। चार पांच मिनटों में मैं चीख कर भरभरा कर झड़ गयी। और फिर मैं अपने कामोन्माद की गिनती भी नहीं रखपाई।  मानों शेरू भी रात की भूख का बदला मुझसे निकाल रहा था। उसने बिना रुके बिजली के धक्कों से चोद - चोद कर अनगिनत बार झाड़ दिया। मैं शिथिल पड़ी शेरू के लण्ड की गरम वीर्य के फव्वारों को अपनी चूत की दीवारों के ऊपर महसूस कर और भी वासनामयी  हो गयी। जब शेरू की गाँठ मेरी चूत में दर्दीले प्रहार से घुसी तो मैं अपने रति-निष्पत्ति सेअतिरेक  से लगभग बेहोश हो गयी थी। बस मेरा सारा भ्रमाण्ड अपनी चूत  में फंसे शेरू की फड़कतइ  दर्दीली मोटी गाँठ और उसके लण्ड से लगातार उबलती गरम वीर्य की बारिश और मेरे बिना टूटी चरम आनंद की लम्बी कड़ी तक सिमट चला था। उस थकन और आनंद के तूफ़ान में मैं तो कभी भी नहीं जान पाती  की दो हलकी भूरी गहरे सोच में डूबीं पर प्यार भरी आँखें शेरू और मेरे संसर्ग को निहार रहीं थीं।
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जब मैं घर के निकट पहुंची तो दो बलशाली बाहों ने मुझे एक भीमकाय शरीर के साथ लिपटा लिया। यह मेरे सबसे बड़े देवर विक्कू भैया थे।
" भाभी, तुम्हे अपने देवर से  क्या भेंट चाहिए अपने जनम-दिन के ऊपर ?" विक्कू ने मुझे  कर पुछा।
मेरा ध्यान तीन दो दिन बाद के जनम दिवस के ऊपर गया। मेरा जनम दिन और ससुरजी का जनम दिन एक ही दिन था।  इस बात से ससुरजी बहुत भावुक हो गए थे।
" विक्कू भैया पापाजी का भी तो जनम दिन है उस दिन," मैंने कहा।
" हमें पता है की पापा को क्या चाहिए।  मैं तो तुम्हारे बारे में सोच सोच कर थक गया।" विक्कू ने मेरे पेट को सहलाते हुए कहा।
" विक्कू भैया आपकी भाभी के लिए तो उसके पांच देवर सबसे बड़ा तोहफा हैं। उसके ऊपर पापाजी को जोड़ लो  और कौन बहु इतनी भाग्यशाली होगी? " मैंने मुस्करा कर विक्कू भैया के मर्दाने विशाल हाथों को सहलाते हुए कहा, " भैया यदि पापाजी दिखें तो उनसे कहना की यदि वो शहर की और जाने की सोच रहें हों तो मैं भी उनके साथ जाऊंगी। मुझे जनम दिन के केक के लिए खरीदारी करनी है। "
मैं अभी भी शेरू  की भीषण चुदाई के प्रभाव से उत्तेजित थी। मेरी चूत अभी भी बिलबिला रही थी उसके मोठे लण्ड और  गाँठ की प्रतारणा से।  मेरे उरोज मेरे अनगिनत चरम-आनंद की वजह से सूजे सूजे  और नर्म  और नाज़ुक महसूस हो रहे थे।
विक्कू भैया ने मुझे छोड़ते छोड़ते अपने हाथों से मेरे संवेदन शील चूचियों को हलके से सहला दिया , जैसे अंजाने में हुआ हो।



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