पूरे परिवार की वधु

Member

0

0%

Status

Offline

Posts

180

Likes

16

Rep

0

Bits

597

5

Years of Service

LEVEL 1
100 XP
*****************************************************

यह थोड़ी छोटी पर प्यारी सी कहानी है। इसको मैंने एक व्यवसायिक वेबसाइट पर अंग्रेजी में लिखा था। पर कई महीनो से इसे हिंदी लिपि में लिखने का विचार मस्तिष्क से निकाल  नहीं पायी। वैसे भी अंग्रेजी कहानी का परिपेक्ष्य भी थोड़ा नहीं पर काफी सा ग्रामीण था। सो इस कहानी को मुझे समृद्ध धनवान गाँव के परिवार के प्रसंग में डालने में थोड़ी सी ही देर लगी। हाँ एक बात ज़रूर है की इस कहानी में काफी सारे  क्षण और प्रकरण है जो अंग्रेजी की कहानियों में बिना किसी को बहुत ठेस पहुंचाते हुए लिख सकतीं हूँ पर यहाँ शायद कुछ पाठकों को थोड़ी सी तकलीफ हो उन्हें पढ़ कर। तो चलिए शुरू में ही संकेत, चेतावनी, इशारा और सावधानी बरतने की सूचना दे दी है। यदि  इस कहानी को किसी को भी समर्पित करनी  पड़े तो ज़रूर ऋतू जी का पहला नंबर होगा। मुझे लगता है कि इस कहानी के कई अंश उनकी इच्छाओं के आस पास होंगें।  आशा है अधिकांश पाठक इस कहानी का आनंद  उठाएंगें।
**********************************************************************************************************
 
OP
S
Member

0

0%

Status

Offline

Posts

180

Likes

16

Rep

0

Bits

597

5

Years of Service

LEVEL 1
100 XP
**********************************************************************************


                              सुनी की  यंत्रणा
***********************************************************************************
मैं बिस्तर पर पूरे नंगी लेती तड़प रही थी। मेरे पति दूर चीन में व्यवसाय के लिए कई महीनो के लिए गए हुए थे। मैं अकेली उनके आभाव में कामाग्नि में जल रही थी। मैंने उनके सिवाय किसी  और मर्द के साथ संसर्ग नहीं किया था और उनके साथ सम्भोग से मेरी जलती काया को काफी सतुष्टि मिल जाती थी।
मेरे बड़े बड़े भारी चूचियाँ मेरी छाती पर मेरे हाथों की रफ़्तार के साथ ताल मिला कर हिल रहीं थी। मेरे उँगलियाँ मेरी गीली भूखी रेशमी झांटों से ढकी चूत में जितनी तेज़ी से  हाथ चल सकते थे उतनी तेज़ी से अंदर बाहर आ जा रहीं थी।  मेरा दूसरा हाथ  मेरे चूचियों और चूचुकों को मसल रहा था।  मेरा अंगूठा मेरे मोटे  सूजे लम्बे भग-शिश्न को निर्ममता से रगड़ रहा था।
मेरे चूतड़ बिस्तर से ऊपर उठ पड़ते जैसे ही मेरा छोटा काम-आनंद  मेरे शरीर में बिजली जैसे कौंध पड़ता।
दस मिनिंतों बाद छोटे छोटे रति-निष्पत्ति के प्रभाव से मेरा शरीर अचानक धनुष की तरह तन गया। मेरे उंगलिया और भी ज़ोर से मेरी योनि के मार्ग में आगे पीछे आवागमन करने लगीं। मेरे अंगूठे ने मेरे दर्दीले भगांकुर को और  बेदर्दी से मसल दिया। मैंने खुद ही  अपनी चुचूक को कस कर मरोड़  दोिया और दर्द से चीख उठी।  मेरे शरीर में तूफ़ान सा जाग उठा। और फिर एक तेज़ बारिश की बौछार मेरे शरीर में जलती अग्नि के ऊपर भगवन की कृपा से बरस  गयी। मेरी साँसें मेरे तूफानी चरम-आनंद से गहरे हो गयीं।  मैं बहुत देर तक शिथिल बिस्तर पर धलक गयी।
मेरी थकन से बंद  होती आँखें मेरी कुछ दिनों  की ज़िंदगी का अतितावलोकन कर , मेरी स्मृति को जगाने लगीं थीं।

                                ********************************************
                                      सुनी का अतितावलोकन [ फ़्लैश बैक ]
          **********************************************


मेरा नाम सुनीता है।  मैं तीन महीने पहले पूरे बीस साल की हो गयी थी। मैं जबसे मुझे होश आया तब से अनाथ थी।  मेरा पालन-पोषण मेरे नाना और नानी  ने किया था। लेकिन वो भी चार साल पहले स्वर्ग सिधार गए थे। यदि मेरी दोस्ती निर्मल से ना हुई होती तो मैं शायद इस कहानी को किसी के लिए भी नहीं लिख पाती । निर्मल मेरे कॉलेज में मेरे सीनियर थे। निर्मल मुझसे छह  साल बड़े हैं। उनका परिवार बहुत धनशाली था और गाँव से ही कृषि-आधारित उद्योग , एग्रो-इंडस्ट्री , से धनवान बने थे। निर्मल बहुत ही प्रतिभाशाली और अपूर्व बुद्धि के स्वामी हैं। उन्होंने बीसवां लगते ही एम. बी. ए.  [ MBA  ] कर के एक बहुत ही सम्मानित थीसिस भी लिख दी थी। उन्होंने मेरे साथ जैसे ही मैं उन्नीस साल की हुई शादी कर ली. मेरा सम्पूर्ण परिवार मेरे पति थे।
लेकिन जबसे उन्होंने एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में शामिल होने का निश्चय किया था उनके परिवार और उनमे अलगाव सा हो गया। और इसी वजह से निर्मल ने गुस्से में अपने परिवार में से हमारी शादी पर किसी को भी नहीं बुलाया।
लेकिन उनके पिता जी ने कुछ हफ़्तों बाद ही पिता होने के नाते निर्मल को माफ़ कर सुलह कर ली। और जैसे मेरा भाग्य  या ये कहूं दुर्भाग्य है निर्मल  को चीन जाना पड़ गया। यह सब सिर्फ सात महीनों में हुआ था। निर्मल कितने भी व्यस्त हों मेरे साथ वो हर रात संसर्ग ज़रूर करते थे। और मैं भी उनके लण्ड के बिना अपने आप को खाली - खाली  महसूस करती थी।
निर्मल के पिता जी ने जैसे ही उन्हें पता चला की निर्मल को निर्देश दिया कि उनकी बहु शहर  रहेगी और गाँव की हवेली में उनके साथ रहेगी।  मेरे अनाथ और कोई  होने से मुझे परिवार के बीच में रहने की तीव्र उत्कंठा हो चली और मैंने बिना हिचक निर्मल को बताया की मैं उनके गाँव में उनके परिवार के साथ ख़ुशी से रहूंगी।
" इस से शहर के घर का खर्चा भी नहीं होगा और आपको मेरी फ़िक्र भी नहीं करनी पड़ेगी ," मैं अपने पति के प्रेम में डूबी उनकी ख़ुशी और तरक्की के लिए कुछ भी कर सकती थी।
ठीक पांच महीने पहले मैं निर्मल के  गाँव में आयी।  निर्मल के पिताजी मुझे शहर के हवाई-अड्डे से लेने आये।  मैंने उन्हें उनकी फोटो से पहचान लिया। मैंने सिर्फ उनका चेहरा ही देखा था। पर उनको वास्तविक रूप में देख कर मैं रुआँसी हो गयीं। निर्मल के पिता राज पाल सिंह साढ़े  छह फुट ऊँचे भीमकाय अकार के  पुरुष हैं। उनके चौड़े कंधे बलशाली भुजाएँ बहुत भारी और चौड़ी थीं। कई पुरुषों की जांघें भी मेरे ससुरजी की भुजाओं से हल्की होतीं हैं।
मेरे निर्मल छह फुट से कुछ इंच छोटे और नरम लचीले बदन के मालिक हैं। उनका चेहरा बहुत ही सुंदर है। अपने ससुरजी को देख कर मुझे समझ आ गया कि मेरे पति का सुंदर चेहरा किस बीज से उपजा था।
मेरे रुआंसा होने की वजह अचानक मेरे दिल में हुक सी उठी इच्छा की वजह से थी। मेरे दिमाग में अचानक तीव्र ईर्ष्या जाग उठी और मैंने सोचा की मेरे सौभाग्य में मेरे ससुरजी जैसा पिता नहीं लिखा भगवान् ने।
ससुरजी ने मुझे ढूँढ लिया और खुल कर मुस्कुराते हुए खुली बाँहों से मेरी ओर तेज़ी से बढ़ कर मुझे अपनी बलशाली भुजाओं में भर लिया।  मेरे रुआंसापन अब ससुरजी की प्यार भरे आलिंगन में अपने को छुपा दबा पा कर खुल कर रोने की इच्छा में बदल गया। और मैं बिलख कर  कर रो उठी।
 
OP
S
Member

0

0%

Status

Offline

Posts

180

Likes

16

Rep

0

Bits

597

5

Years of Service

LEVEL 1
100 XP
***********************************************************

**********************************************************
     
              ********************************************
                                      सुनी का अतितावलोकन
          **********************************************

ससुरजी ने अपनी बलशाली बाँहों में मुझे हवा में उठा लिया और मैंने अपनी बाहें  उनकी गर्दन के इर्द-गिर्द कस कर डाल  दीं और उनके कंधे में मुंह छुपा कर सबक सबक कर रो पड़ी।
काफी सारे लोगों ने समझा कि पिता-बेटी का मिलन बहुत समय बाद हो रहा है इसी लिए बेटी इतनी भावुक हो गयी है।
ससुरजी ने मुझे अपने से चिपका कर हवा में उठाये हुए पास के कैफ़े में ले गए और मुझे अपनी गोद  में बच्चे की तरह बिठा कर  चिपका लिया।
जब मैं बड़ी देर बाद अपने पर संयम रख पायी तब मैंने अपने आसुओं को ससुरजी के पहले से ही गीले कुर्ते से पोंछ कर असुओं से गीली मुस्काराहट के साथ बोली, " पापाजी मुझे माफ़ कर दीजिये।  मैं आपको देख कर अपना आपा खो बैठी। मुझे अचानक अपने अनाथ, पितृहीन होने का दर्द सहा नहीं गया। मैं वायदा करती हूँ कि मैं रोने धोने  वाली लड़की नहीं हूँ। "
मेरे ससुरजी ने मुझे बाँहों में जकड कर मेरे गीले चहरे को कई बार चूमा , " बेटा मैं तुम्हारे जन्म देने वाले पिता को तो नहीं वापस ला सकता पर जब तक मैं जिन्दा हूँ तुम पितृहीन  नहीं हो। तुम जिस दिन से तुमने निर्मल से विवाह किया  हमारे परिवार की शोभा और हमारी बेटी बन गयी हो। बेटी और वायदा करो अपने पिता के साथ की यदि कोई दुविधा होगी तुम्हें तो रोने से पहले तुम हमें बताओगी। हम पूरी कोशिश करेंगें कि हमारी इतनी सूंदर बहु के चेहरे पर कभी भी आंसुओं की धार न बहे।"
मुझे जीवन में पहली बार अपने नाना नानी को खोने  बार फिर सर  के ऊपर साया होने का आभास होने लगा।
ससुरजी ने मुझे ढृढ़ आग्रह कर लम्बा सा मिल्कशेक पिलाया और खुद तीखी काली कॉफी पी।
मेरा सामान उठा कर ससुरजी कार पार्क की ओर चल दिए। मैं सिर्फ पांच फुट चार इंच लम्बी थी पर ससुरजी के साथ चलते हुए मेरा कद के बारे में  ' लम्बी ' शब्द के जगह ' नन्ही या छोटी ' ज़्यादा उचित लग रहा था।
ससुरजी की कार  वाकई एक ट्रक जैसी थी। उन्होंने वॉक्सवैगन [ VOLKSWAGEN ] का ट्रक ऍमरॉक [AMROCK ] था।
"बेटी गाँव के लिए शहरी  कारें नहीं काम करतीं इसलिए हमारे लिए ऐसे ट्रक ही काम के हैं " ससुरजी ने शरमाते हुए मुझसे कहा।
"पापाजी आप भी वायदा कीजिये कि मुझे शहरी इतराई बेटी नहीं पर अपने घर में बढ़ी -पोसी बेटी की तरह मुझे जब मैं गलत हूँ तो डाट कर ठीक कर देंगें ," मैंने अपने नन्हे हाथों से ससुरजी के विशाल नहों को सहलाते हुए भावुक सी आवाज़ में कहा।
" चलो बेटा अब हम दोनों एक दूसरे के साथ पिता-बेटी के वायदों से जुड़ गएँ हैं।  अबसे तुम हमारी बेटी पहले और बहु बाद में ," ससुरजी ने मुझे ट्रक का दरवाज़ा खोल कर अंदर बैठने में मदद की, " चलो अब घर पहुँच कर तुम्हें तुम्हारे शैतान देवरों से मिलवाएं।”
" और हाँ बेटा हमारे घर की देखभाल चंपा करती है।  चंपा अपनी दोनों बेटियों, नंदी और रूपा के साथ कुछ दिनों के लिए अपने मायके गयी हुई है," ससुरजी ने बताया।
 
OP
S
Member

0

0%

Status

Offline

Posts

180

Likes

16

Rep

0

Bits

597

5

Years of Service

LEVEL 1
100 XP
२ contd

********************************************
                            मेरे ससुराल का घर घर नहीं था। पूरा महल था।  शहर से दूर और गाँव के बहुत बाहर नदी के पास बीस कमरों की हवेली कहना चाहे तो शायद हवेली  थी। घर के चारों  ओर ऊँचे पेड़ों की प्राकर्तिक सीमा थी। ससुरजी ने कई एकड़ का बगीचा घर के चारों  ओर बनाया हुआ था।  बगीचे में  फल के अनगिनत पेड़ और फूलों की झाड़ियां थी।  सब कुछ नैसर्गिक और प्रकर्ति के समर्थन से प्रभावित था।
ट्रक के रुकते ही दो लम्बे सुंदर मोहक चेहरे वाले जुड़वां लड़के दौड़ कर आये।  दरवाज़ा खोल कर उन्होंने हँसते हुए 'भाभी भाभी ' चिल्लाते हुए मुझे बाँहों में भर लिया।
" बेटे यह तुम्हारे सबसे छोटे शैतान देवर हैं। बबलू और टीटू ," मैं उन दोनों किशोरों के बीच में दबी खिलखिला कर हंस दी। बबलू यानि विवेक और टीटू यानि विकास जुड़वाँ  भाई थे।  उनके जन्म के बाद ही कुछ बुरी बीमारी  होने से मेरी सासूमाँ स्वर्ग सिधार गयीं थी।
मेरे सबसे छोटे देवर जिन्होंने मुश्किल से किशोरावस्था  का दूसरा साल पूरा भी नहीं  किया  था मुझसे पूरे एक हाथ से भी लम्बे थे। दोनों लगभग छह फुट के होने चले थे और अभी उन्हें पन्द्रहवां मुश्किल से लगा था। मेरे निर्मल का शहर की अप्राकृतिक कृत्रिम जीवनचर्या और पढ़ाई के बोझ से शायद पूरा विकास नहीं हो पाया था।
तब ही एक और नवयुवक उतना ही लम्बा और चौड़ा जल्दी से बाहर निकला , "भाभी यह राजू है। " टीटू और बबलू ने मुझे अभी भी अपनी बाँहों में घेर रखा था। दोनों ने मेरा मुंह चूम चूम कर गीला कर दिया था।  मेरा ह्रदय इतने प्यार को सम्भाल पाने में असमर्थ था।  मैं प्रसन्नता से रोना चाह  रही थी। लड़कियों की कमज़ोरी - दुःख में, ख़ुशी में रोने की आदत।
" यदि तुम दोनों खरगोशों ने मेरी भाभी को नहीं मुक्त किया तो मैं तुम दोनों को घोड़े के पीछे दस मील तक दौड़ाऊंगा ," राजेश यानि राजू ने हँसते हुए अपने छोटे भाइयों को प्यार भरी धमकी दी।  टीटू और बबलू ने मुझे तीन चार बार और चूमा और फिर मैंने अपने आप को छह फुट तीन इंच लम्बे तीसरे देवर की बाँहों में अपने आप को पाया।  राजू कुछ महीनो पहले ही उन्नीस साल का हुआ था।
" चलो बेटे अब अपनी भाभी का सामान उनके कमरे में ले जाओ , " ससुरजी ने वात्सल्य भरी शब्दों में अपने हीरे जैसे बेटों को आदेश दिया।
मैं तीनो देवरों के प्रेम भरे शब्दों में डूब गयी। काश मैं ऐसे भाइयों  के साथ बड़ी हुई होती , मैंने फिर से कल्पना में गोते लगाना शुरू कर दिया।
मैं अचानक जाग गयी जब मैंने सुना , " पापा पहली बार भाभी घर में घुस रहीं हैं। यदि भैया होते तो वो इन्हें चला कर घर में थोड़े ही ले कर जाते। " हम सब ससुरजी जैसे भारी मीठी आवाज़ की तरफ मुड़  गए।
 
OP
S
Member

0

0%

Status

Offline

Posts

180

Likes

16

Rep

0

Bits

597

5

Years of Service

LEVEL 1
100 XP
***********************************************************

**********************************************************
     
              ********************************************
                                      सुनी का अतितावलोकन
          **********************************************

ससुरजी ने अपनी बलशाली बाँहों में मुझे हवा में उठा लिया और मैंने अपनी बाहें  उनकी गर्दन के इर्द-गिर्द कस कर डाल  दीं और उनके कंधे में मुंह छुपा कर सबक सबक कर रो पड़ी।
काफी सारे लोगों ने समझा कि पिता-बेटी का मिलन बहुत समय बाद हो रहा है इसी लिए बेटी इतनी भावुक हो गयी है।
ससुरजी ने मुझे अपने से चिपका कर हवा में उठाये हुए पास के कैफ़े में ले गए और मुझे अपनी गोद  में बच्चे की तरह बिठा कर  चिपका लिया।
जब मैं बड़ी देर बाद अपने पर संयम रख पायी तब मैंने अपने आसुओं को ससुरजी के पहले से ही गीले कुर्ते से पोंछ कर असुओं से गीली मुस्काराहट के साथ बोली, " पापाजी मुझे माफ़ कर दीजिये।  मैं आपको देख कर अपना आपा खो बैठी। मुझे अचानक अपने अनाथ, पितृहीन होने का दर्द सहा नहीं गया। मैं वायदा करती हूँ कि मैं रोने धोने  वाली लड़की नहीं हूँ। "
मेरे ससुरजी ने मुझे बाँहों में जकड कर मेरे गीले चहरे को कई बार चूमा , " बेटा मैं तुम्हारे जन्म देने वाले पिता को तो नहीं वापस ला सकता पर जब तक मैं जिन्दा हूँ तुम पितृहीन  नहीं हो। तुम जिस दिन से तुमने निर्मल से विवाह किया  हमारे परिवार की शोभा और हमारी बेटी बन गयी हो। बेटी और वायदा करो अपने पिता के साथ की यदि कोई दुविधा होगी तुम्हें तो रोने से पहले तुम हमें बताओगी। हम पूरी कोशिश करेंगें कि हमारी इतनी सूंदर बहु के चेहरे पर कभी भी आंसुओं की धार न बहे।"
मुझे जीवन में पहली बार अपने नाना नानी को खोने  बार फिर सर  के ऊपर साया होने का आभास होने लगा।
ससुरजी ने मुझे ढृढ़ आग्रह कर लम्बा सा मिल्कशेक पिलाया और खुद तीखी काली कॉफी पी।
मेरा सामान उठा कर ससुरजी कार पार्क की ओर चल दिए। मैं सिर्फ पांच फुट चार इंच लम्बी थी पर ससुरजी के साथ चलते हुए मेरा कद के बारे में  ' लम्बी ' शब्द के जगह ' नन्ही या छोटी ' ज़्यादा उचित लग रहा था।
ससुरजी की कार  वाकई एक ट्रक जैसी थी। उन्होंने वॉक्सवैगन [ VOLKSWAGEN ] का ट्रक ऍमरॉक [AMROCK ] था।
"बेटी गाँव के लिए शहरी  कारें नहीं काम करतीं इसलिए हमारे लिए ऐसे ट्रक ही काम के हैं " ससुरजी ने शरमाते हुए मुझसे कहा।
"पापाजी आप भी वायदा कीजिये कि मुझे शहरी इतराई बेटी नहीं पर अपने घर में बढ़ी -पोसी बेटी की तरह मुझे जब मैं गलत हूँ तो डाट कर ठीक कर देंगें ," मैंने अपने नन्हे हाथों से ससुरजी के विशाल नहों को सहलाते हुए भावुक सी आवाज़ में कहा।
" चलो बेटा अब हम दोनों एक दूसरे के साथ पिता-बेटी के वायदों से जुड़ गएँ हैं।  अबसे तुम हमारी बेटी पहले और बहु बाद में ," ससुरजी ने मुझे ट्रक का दरवाज़ा खोल कर अंदर बैठने में मदद की, " चलो अब घर पहुँच कर तुम्हें तुम्हारे शैतान देवरों से मिलवाएं।”
" और हाँ बेटा हमारे घर की देखभाल चंपा करती है।  चंपा अपनी दोनों बेटियों, नंदी और रूपा के साथ कुछ दिनों के लिए अपने मायके गयी हुई है," ससुरजी ने बताया। 
********************************************
                            मेरे ससुराल का घर घर नहीं था। पूरा महल था।  शहर से दूर और गाँव के बहुत बाहर नदी के पास बीस कमरों की हवेली कहना चाहे तो शायद हवेली  थी। घर के चारों  ओर ऊँचे पेड़ों की प्राकर्तिक सीमा थी। ससुरजी ने कई एकड़ का बगीचा घर के चारों  ओर बनाया हुआ था।  बगीचे में  फल के अनगिनत पेड़ और फूलों की झाड़ियां थी।  सब कुछ नैसर्गिक और प्रकर्ति के समर्थन से प्रभावित था।
ट्रक के रुकते ही दो लम्बे सुंदर मोहक चेहरे वाले जुड़वां लड़के दौड़ कर आये।  दरवाज़ा खोल कर उन्होंने हँसते हुए 'भाभी भाभी ' चिल्लाते हुए मुझे बाँहों में भर लिया।
" बेटे यह तुम्हारे सबसे छोटे शैतान देवर हैं। बबलू और टीटू ," मैं उन दोनों किशोरों के बीच में दबी खिलखिला कर हंस दी। बबलू यानि विवेक और टीटू यानि विकास जुड़वाँ  भाई थे।  उनके जन्म के बाद ही कुछ बुरी बीमारी  होने से मेरी सासूमाँ स्वर्ग सिधार गयीं थी।
मेरे सबसे छोटे देवर जिन्होंने मुश्किल से किशोरावस्था  का दूसरा साल पूरा भी नहीं  किया  था मुझसे पूरे एक हाथ से भी लम्बे थे। दोनों लगभग छह फुट के होने चले थे और अभी उन्हें पन्द्रहवां मुश्किल से लगा था। मेरे निर्मल का शहर की अप्राकृतिक कृत्रिम जीवनचर्या और पढ़ाई के बोझ से शायद पूरा विकास नहीं हो पाया था।
तब ही एक और नवयुवक उतना ही लम्बा और चौड़ा जल्दी से बाहर निकला , "भाभी यह राजू है। " टीटू और बबलू ने मुझे अभी भी अपनी बाँहों में घेर रखा था। दोनों ने मेरा मुंह चूम चूम कर गीला कर दिया था।  मेरा ह्रदय इतने प्यार को सम्भाल पाने में असमर्थ था।  मैं प्रसन्नता से रोना चाह  रही थी। लड़कियों की कमज़ोरी - दुःख में, ख़ुशी में रोने की आदत।
" यदि तुम दोनों खरगोशों ने मेरी भाभी को नहीं मुक्त किया तो मैं तुम दोनों को घोड़े के पीछे दस मील तक दौड़ाऊंगा ," राजेश यानि राजू ने हँसते हुए अपने छोटे भाइयों को प्यार भरी धमकी दी।  टीटू और बबलू ने मुझे तीन चार बार और चूमा और फिर मैंने अपने आप को छह फुट तीन इंच लम्बे तीसरे देवर की बाँहों में अपने आप को पाया।  राजू कुछ महीनो पहले ही उन्नीस साल का हुआ था।
" चलो बेटे अब अपनी भाभी का सामान उनके कमरे में ले जाओ , " ससुरजी ने वात्सल्य भरी शब्दों में अपने हीरे जैसे बेटों को आदेश दिया।
मैं तीनो देवरों के प्रेम भरे शब्दों में डूब गयी। काश मैं ऐसे भाइयों  के साथ बड़ी हुई होती , मैंने फिर से कल्पना में गोते लगाना शुरू कर दिया।
मैं अचानक जाग गयी जब मैंने सुना , " पापा पहली बार भाभी घर में घुस रहीं हैं। यदि भैया होते तो वो इन्हें चला कर घर में थोड़े ही ले कर जाते। " हम सब ससुरजी जैसे भारी मीठी आवाज़ की तरफ मुड़  गए।
 
OP
S
Member

0

0%

Status

Offline

Posts

180

Likes

16

Rep

0

Bits

597

5

Years of Service

LEVEL 1
100 XP
*****************************************************

***************************************************
            ********************************************
                                      सुनी का अतितावलोकन
          **********************************************

" बेटे यह तुम्हारे दुसरे नंबर का देवर है वीनू ," मैं एक बार फिर से एक भीमकाय देवर की बाँहों में थी।  इस बार विनय यानि वीनू ने मुझे बाँहों में उठा लिया।  मैं खिलखिला कर  थी।  वीनू ने मेरे हँसते मुंह को चूम कर कहा , " भाभी आपका हमारे घर में स्वागत है।  लेकिन आप बस एक रात ही मेहमान की तरह हैं। कल सुबह से आप इस घर की मालकिन हैं। नहीं पापा ?"
मैं फिर से  रोने जैसी होने लगी , "वीनू बेटा  यह भी कोई कहने की बात है। बहू  ही तो घर की मालकिन है।  तुम्हारी माँ के बाद इस घर में बहू के  पवित्र चरणों से इस घर के भाग्य खुल जाएंगें। चलो अब बहू को उसके कमरे तो दिखा दो। फिर जब वो चाहे तब पूरा घर, दालान  और अस्तबल भी दिखा देना, " ससुरजी ने मेरे सर के ऊपर प्यार से हाथ फेरा , " बहु मैं अब तुम्हें तुम्हारे देवरो के ऊपर छोड़ कर नहाने जाता हूँ। तुम भी तारो-ताज़ा हो जाओ। "
मैं हंस हंस कर पागल हो चली थी। दोनों जुड़वां देवर और राजू एक दुसरे से लगातार  नोक झोंक कर रहे थे।
" देख राजू तूने भाभी को हमसे कई बार ज़्यादा चूमा है। तूने रौब दिखा कर हमसे चोरी की है। " टीटू बबलू  दोनों जुड़वां भाइयों की तरह एक साथ बोलने में माहिर थे।
मेरा कमरा कमरा नहीं विशाल दो कमरों  का सुइट था। आगे का कमरा बैठक सी थी और फिर विशाल शयन घर और उस से जुड़ा स्नानघर।
"मेरे प्यारे देवर जी अब आप मुझे नीचे उतार सकते हैं ," मेरी  बाहें अभी भी वीनू के गले का हार बनी हुई थीं, "मैं अब नहा धो कर  शाम का खाना बनाना शुरू देतीं हूँ। "
वीनू ने मुझे बाँहों में उठाये हुए कहा ," पहली बात आज आप मेहमान है।  तो खाने का काम बावर्चियों का है।  दूसरी बात आपके नहाने के बाद मुझे आपको घरबार का पूरा दौरा करवाना है। तीसरी बात क्या आपको नहाने धोने में मदद की ज़रुरत नहीं है ?" मेरे देवर ने मेरी आँखों में  अपनी शरारतभरी खूबसूरत हल्की भूरी आँखें  डाल कर पूछा।
मैं खुल कर हंस दी , " नहीं देवर जी। आप बेशक मुझ से एक साल बड़े हैं पर मुझे भी नहाना धोना आता है। यदि आपको कभी पीछे की सफाई करने में मुश्किल हो तो भाभी को आवाज़ दे देना। "
वीनू ने मुझे हँसते हुए नीचे उतार  दिया।
" भाभी बिलकुल नहले पर दहला ," टीटू और बबलू ने इकट्ठे हँसते हुए तालियां बजाते  हुए कहा।
राजू ने अपने बड़े भाई का साथ दिया , " भाभी वीनू तो सीख गया है पर मुझे अभी भी पीछे सफाई में मदद  की ज़रुरत है। मैं आपको बुलाऊँ कल ?"
मुझे राजू के सीधे मुंह से कहे शरारती शब्दों से रोमांच उठ चला, " बुला तो लेना देवर जी पर उस काम की फीस [ शुल्क  ] भी देनी पड़ेगी। "
राजू पीछे हटने वाला देवर नहीं था, " भाभी आपके देवर तो बिना मिले ही आपके ग़ुलाम बन गए थे अब उनके पास है ही क्या अपनी सूंदर भाभी की फीस देने के लिए। "
मेरा दिल पिघल गया राजू की बात से। मेरे से पूरा एक साल छोटा मेरा देवर कितना चतुर था बातें बनाने में।
" देवर जी यदि मेरी ननंद होती तो मैं उसे सीखा देती अपने भैया के पीछे की सफाई करना।  लेकिन  मेरा ऐसा भाग्य कहाँ ? " राजू को कुछ और नहीं सूझा और मेरे तीनों देवर अपने भाई के लाजवाब होने पर हंस रहे थे।
मेरे चारों देवर आखिर में मुझे तैयार होने के लिए अकेला छोड़ कर चले गए।
मैंने स्नानगृह में अपने कपड़े उतार  दिए। जीन्स और टीशर्ट की ओर देख कर मैंने अपने को वायदा किया कि मैं शहर से गाँव के माफिक  कपड़े खरीदूंगी।
मैंने विशाल स्नानगृह में छत से फर्श तक लगे शीशों में अपने आप को देखा। मेरे घुंघराले बाल बड़े घने और लम्बे हैं । मेरे कंधे चौड़े पर गोल और सुडौल हैं। मेरा सीना भरा भरा है और मेरी चूचियाँ मोटी भारी  अपने वज़न से थोड़ी ढलकी हैं। अड़तीस डी डी की ब्रा फर्श  पर पडी थी। निर्मल का कहना था की मेरा चेहरा देवियों जैसा सूंदर है। नानी ने मुझे मेरी माँ की फोटो दिखा कर बचपन से  ही मेरी तुलना मेरी माँ से करतीं थीं। [ "तेरी माँ से सुंदर मैंने कोई लड़की कभी पहले और आज तक नहीं देखी। तू बिलकुल अपनी माँ जैसी है " नानी हमेशा मेरे बाल बनाते  हुए मुझसे कहा करतीं ]
मेरी गोल कमर अट्ठाइस या उन्तीस  के आसपास थी फिर मेरे निटिम्ब पूरे पेंतालिस के थे। मैं कहीं से भी सूखी लकड़ी जैसी शहर की लड़कियों जैसी नहीं थी। निर्मल मेरे रेतघड़ी [आवरग्लास ] ढांचे की बड़ाई करते नहीं थकते थे। ना जाने क्यों मुझे बहुत फ़िक्र थी कि मेरे  भी मैं उतनी नहीं तो उससे कम से कम आधी सुंदर तो लगूं।
मैं नहा धो कर शॉर्ट्स और टी शर्ट में वापस आयी तो वीनू मेरे दरवाज़े के बाहर खड़ा मेरा इन्तिज़ार कर रहा था , "अरे वीनू भैया आप कबसे ऐसे खड़े हो? "
वीनू ने शॉर्ट्स और टीशर्ट पहनी हुई थी।
"भाभी मैं आपके  तीनो देवरों को खदेड़ कर अपनी देवी जैसी भाभी के स्वागत के लिए तैयार खड़ा हूँ। पर यह आपने भैया कहाँ से लगा दिया।  मैं कोई बूढ़ा देवर तो नहीं हूँ। "
"तो ठीक पहले आप मुझे आप कहना बंद करो।  फिर मुझे जब मैं आपका नाम लूँ तो वीनू भैया कहने का हक़ दो जब मैं आपको देवर बुलाऊंगी तो मैं भी तुम कहूँगी। आखिर में आप मुझसे एक साल बड़े हैं। और मुझे कभी भी न तो बड़े और छोटे भाइयों  का प्यार मिला है। पर देवर जी सबसे बड़े देवर जी को तो मैं हमेशा भैया कह कर ही बुलाऊंगी। " मैंने आँखे मटकते हुए कहा।
वीनू ने मुझे बाँहों में भर कर होंठों पर चूम लिया , "भाभी आज से आपके पांच देवर और पांच भाई हैं। "
" हाय पांच देवर सुन कर तो मुझे द्रौपदी की याद आ गयी ," मैंने भावुक  हल्का करने के लिए भाभी-देवर के बीच चलते सांकेतिक संसर्ग की ओर वार्तालाप मोड़ दिया।
" भाभी, जब आप कहें हम पाँचों जब तक भैया वापस नहीं आएं  आपकी द्रौपदी के पांडव बनने के लिए पूरे तैयार हैं, " वीनू ने फिर से मुझे चूम लिया।
"अच्छा तो मेरे भीम अब भाभी को घर तो दिखा दो और आप कहना बंद करो ," मैंने वीनू के बलशाली बाँहों को सहलाया।
वीनू हंस दिया और फिर मुझे उसने सारे घर का दौरा  करवाया।
पूरा घर दो मंज़िलों पर बना हुआ था।  ऊपर के दस कमरे महमानों के लिए थे। नीचे सब भाइयों के मेरे जैसे कमरे थे। जो दो गलियारों में फैले हुए  थे। ससुरजी का शयन कक्ष मेरे कमरे के आगे था। एक तरफ दो रसोई थीं  एक विशाल पहली रसोई और एक दूसरी छोटी रसोई। नौकरों के घर कमरे बगीचे के बाहर  छितरे हुए थे ।  घर से  तीन एकड़ के बाहर अस्तबल था। उसमे पांच सात घोड़े और तीन घोड़ियां थीं। वीनू ने सब घोड़ों और घोड़ियों के नाम ले कर मेरा परिचय करवाया। मानो सब जानवर वीनू की आवाज़ और शब्दों को समझते थे।
फिर वीनू ने घर के पीछे ढके तरणताल को दिखाया। बहुत लम्बा और चौड़ा तरन ताल था।
"भाभी हम सब पूल में  तैरने के लिए कोई कपड़े  पहनने की ज़रुरत नहीं समझते। तुम बता देना कि इस से कोई तकलीफ हो तो ," वीनू एक बार फिर से शरारत पर उतर आया।
 

56,302

Members

323,928

Threads

2,714,145

Posts
Newest Member
Back
Top