Incest पापी परिवार की पापी वासना

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हाँ, हाँ बेटी, क्यों नहीं, तू भी तो मेरी बेटी जैसी है, फिर तेरी घर पर भी तो मर्द होंगे जिन्हें कभी तेरी गाँड मारनी होगी !” सोनिया ने दो उंगलियों में वैसलीन भरकर उनकी गाँड के सुराख़ पर लथेड़ दी।

अरे बेटा, सिरफ़ बाहर नहीं, अंदर भी डालो, ये तेरे बाप का हिजड़ा लन्ड नहीं है, मेरे बेटे की तोप है, गाँड चिकनी होगी तभी तो दनादन दारोगी!”, रजनी जी ने हिदायत दी। सोनिया ने दोनो उंगलियों पर और वैसलीन ली और उनकी गाँड में घुसा दी, फिर अंदर मल-मल कर चारों ओर चुपड़ा दी। ऐसे मुस्कुरा मुस्कुरा कर मल रही थी सोनिया, पहली बार गाँड में उंगल करने पर उसे खूब मस्ती आ रही थी। जब ठीक से रजनी जी की गाँड में वैसलीन मल चुकी, तो उनके चूतड़ों पर एक चपत लगा कर बोली, “चल मेरे घोड़े, हो गयी तेरी घोड़ी रैडी !”

। “अब देख जब मैं गाँड मारूंगा, तो बीच में वैसलीन कम पड़ जाती है, जब मैं तुझसे बोलू , तो होशियारी से मेरे लन्ड पर बाहर खींचते समय लथेड़ देना और वैसलीन। और हाँ, हाथ बचा के, जाब गाँड मारता हूँ तो भगवान की कसम, माँ बहन का भी लिहाज़ नहीं करता हूँ !”, राज ने भी सोनिया को कुछ गुर सिखाये।

बक़ौल रजनी जी, बेटे का लन्ड चूसने से ज्यादा कमीनी हरकत तो अपने मुंह में बेटे से मुठ मरवाना था। अपने मुँह में मुठ मारते बेटे के लन्ड दो देख इस वक़्त उनके जेहन में ऐसे कमीनगी भरे खयाल आ रहे थे कि उनकी चूत हवस के मारे फड़कने लगी थी। राज ने एक हाथ अपनी मम्मी जान के सर के पीछे लगाया और अपने लन्ड को उनके मुंह में डाल धुआँदार घिसने लगा। सुपाड़े पर चमड़ी तो कटी हुई थी, सो अपनी मम्मी के होठों ही उसके सुपाड़े को गुदगुदाते हुए सुरूर दे रहे थे। | रजनी जी ने अपने बेटे के लन्ड के पुट्टेदार गोश्त को अपने होठों के दरम्यान ठोस होते पाया तो खुशी की आह उनके मुंह से निकल पड़ी। उन्होंने ऊपर देखकर राज की आँखों से आँखें मिलायीं, फिर उसके लन्ड को देखा और मुँह को नीचे धकेल कर उसकी ऊपर की आधी लम्बाई को मुंह में निगल गयीं। नीचे के हिस्से को राज अब भी मुट्ठी में दबोचे लगाथार रगड़े जा रहा था, जब वो लन्ड को बाहर खींचता तो उसकी मुट्ठी रजनी जी के होठों से टकराती, और जब अंदर को खींचता तो उसके टट्टों पर टकराती।

झटके-दर-झटके, राज का मर्दाना लन्ड अपनी पुरानी बुलंदी को परवान चढ़ने लगा। रजनी जी ने भी अपने होठों को अब सिरफ़ उसके सुपाड़े पर जकड़ा हुआ था। जल्द ही राज का लन्ड ने अपनी मुक़म्मल बुलन्दी को हासिल कर लिया।

“देख सोनिया बेटी, देखा खालिस लन्ड !”, रजनी जी कराहीं, उनके दिमाग पर शैतानी हवस सवार थी। उन्होंने बेटे के लन्ड से अपने होंठ जुदा किये और किसी लावारिस कुतिया जैसी हाथों और खुटनों के बल बिस्तर पर बैठ गयीं। उन्होंने अपनी गाँड को राज की ओर उचका कर अच्छा खासा खोल रखा था।

आजा मादरचोद, ले खोल दी मैने अपनी गाँड, दिखा अपनी मर्दानगी, लन्ड में दम है तो मार मम्मी की गाँड, मैं भी देखें कैसा शेर जना है मैने !”, रजनी जी ने बेटे को ललकारा।
 
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79 दरवज्जा खुल्ला छोड़ आयी



79 दरवज्जा खुल्ला छोड़ आयी ::

राज ने चेहरे पर लटके अपने बालों को हाथ से हटाया, और मुस्तैदी से अपनी मम्मी की मोटी कमर को हाथों में दबोचकर, उनके चूतड़ों को पीछे अपने बेलगाम लन्ड पर खींचा। फिर अपने फूले सुपाड़े को उनकी गाँड के झुरींदार सुराख़ पर दागा। राज का जवाँ लन्ड वालिदा की चिपचिपी गाँड में ऐसे इत्मिनान से अंदर फिसलता चला गया, मानो गरम चाकू मक्खन की डली को काट रहा हो। रजनी जी और अपने बेटे के लम्बे लन्ड की मोटाई को पीछे की ओर झपट-झपट कर अपनी गाँड की तपती गहराई में निगलती हुईं, गहरा सुकून पा रही थीं, और घायल शेरनी सी कराहती जा रही थीं।

“ऊ :: ऊहहह ... ऊहह :: या ऊपर वाले! आँहह ... ! मेरे जिगर, मम्मी को जन्नत का मजा आ रहा है ! जन्नत का !”, वे चीखीं, और निहायत बेहयाई से अपने चूतड़ों को बेटे के लोहे की छड़ जैसे कड़े लन्ड पर पीट पीट कर मारने लगीं।

राज ने अपने लन्ड को अपनी मम्मी की कस के भींचती गाँड में पम्प करना शुरू कर दिया, और उनकी कमर पर राज के पुट्ठों की ताक़तवर झटकों की वजह से रजनी जी के चूतड़ों पर माँस के लोथड़े फुदक रहे थे, और उनके मोटे-मोटे मम्मे बेहूदगी से झूल रहे थे। रजनी जी कराहती रहीं, हौले-हौले, जनाना अदा से , अपने बेटे के झाँटेदार टट्टों की अपनी चूत पर सिलसिलेवार टक्कर से उन्हें बेहद मज़ा आ रहा था।

टट्टों का हर पुरतशद वार उनके फड़कते चोंचले में हवस की टीस उठा देता था। | मम्मी की सुकून भरी कराहों ने राज में और भी जोश भर दिया, वो और फुर्ती से उनकी गाँड मारने लगा। उनकि कुलबुलाती, मोटी कमर को हाथों में दबोचकर वो अपने लन्ड को उनकी कास के जकड़ती गाँड में लम्बे, तगड़े और सफ़्फ़काना ठेले देकर पम्प करने लगा, जिसकी हैवानी कुव्वत ने रजनी जी के तंदुरुस्त बदन को भी झकझोर रखा था।

“मार मेरी गाँड मादरचोद! बहा दे अपना वीर्य मेरी गाँड में, मेरी कोख के लाल ! भर दे मम्मी जान की गाँड को अपने वीर्य से, मेरे आशिक़ !”, भर्रायी आवाज में रजनी जी बोली थीं।

रजनी जी का बदन अब पसीने की महीन परत की वजह से दमकने लगा था। राज का भी ऐसा ही हाल था • • • जल्द ही रजनी जी के चिकने चूतड़ों का माँस उनके बेटे की मजबूत पुट्ठेदार जाँघों पर थपेड़े मारने लगा। अपने हवस के गुनाह की मीठी-मीठी सजा, जो उन्हें इन थपेड़ों से मिल रही थी, बेशक़ रजनी जी को बेहिसाब लुफ्त दे रही थी।

“साला लन्ड आराम से नहीं फिसल रहा, सोनिया वैसलीन !”, राज ने ताक़ीद की। सोनिया ने झट से हाथ में रखी वैसलीन की डिबिया से उंगलियों पर और वैसलीन निकाली और राज के लन्ड के उस हिस्से पर, जो ठेलते-ठेलते रजनी जी की गाँड से बाहर नजर आता था, लथेड़ दिया। राज का लन्ड लथेड़ी हुई वैसलीन को अंदर घुसते वक़्त अपने साथ गाँड में ले चलता था। जब चिकनायी वापस बरक़रार हो गयी, तो राज ने खुशी से सोनिया को आँख मारी और बोला:
* देख मम्मी, कैसी होशियारी से काफ़िर लौन्डी गाँड चुदाई सीख गयी है !”

रजनी जी ने गर्दन घुमा कर पूरा वाक़या देख लिया था, देखकर उनकी जाँघे कॉपी और गाँड सिकुड़ गयी। राज ने उन्हें आहें भरते सुना, एक बाद एक भरी हुई साँसों का सिलसिला। उसने अपने ठेलों की ताल को जरा धीमा कर दिया। वो अपनी मम्मी को झड़ने के कगार पर ले आया था, और कगार पर ही रोक कर उन्हें तड़पाना चाहता था।

अपनी जिम्मेवारी निबाह कर सोनिया और डॉली ने फिर से आपस में चूत चटायी शुरू कर दी थी। दोनो पागलों जैसी एक दूसरे की चूतों को चाटती, चूसती और उंगली घुसाती जा रही थीं, और अपनी गैर-कुदरती हवस के सुलगते जुनून में पूरी तरह मसरूफ़ हो गयी थीं। राज ने गाँड मारने की रफ़्तार धीमी करके अपनी बहन को देखा, जो जीभ बाहर को लटकाये हुए किसी कुतिया के माफ़िक सोनिया की सुर्ख - लाल चूत को चाटे जा रही थी।
 
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“चूस मेरी चूत , डॉली !” सोनिया चीखी, उसका बदन तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रहा था। “चूस जहाँ मेरे बाप ने मुझे चोदा है! चाट मेरी बुर को! ओहहह, डॉली, डॉली, डॉली ! और मत तड़पा ! रन्डी, कैसी-कैसी कमीनगी भरी है तेरे खानदान में ! चूस हरामजादी !”

राज ने देखा, कि सोनिया ने अपना मुँह उसकी बहन डॉली की चूत पर दबाया, और अपनी जीभ से उसकी अंधेरी उमस भरी चूत के दर को खोलकर, बार-बार अंधाधुंध अंदर, और अंदर मारने लगी: ‘सोनिया उसकी बहन की गरम, उबलती चूत को नये जोश से चाट रही थी और अंदर टटोल रही थी। दोनो नाजनीने मुंह से बेहूदी ‘सुपड़-चुपड़ - सड़ाप्प' आवाजें निकालती हुई भूखों की तरह एक दूसरे की रिसती चूतों को चूस चूस कर चाटते जा रही थीं।

इस दौरान, राज ने अपने लन्ड को मम्मी की गरम, पिघलती गाँड में ठेलना जारी रखा था, जिससे रजनी जी मारे मस्ती के कुलबुला रही थीं। जाहिर था कि वे तरस रहीं थी झड़ने के लिये। उनका बेटा उन्हें ऑरगैस्म के कगार पर रोके हुए बड़ी अदा से उन्हें सता रहा था। रजनी जी अपने गुनाहगार बदन की हवस की प्यास से हर हाल में निजात पाने के लिये बेचैन हो चली थीं!

“ऊँह ऊँह ऊँह ऊहहह, राज ! मेरे भगवान, राज ! और कस के चोद मुझे, बेटा! खूब कस के मार मम्मी की गाँड! ऊहह, अपनी गुनाहगार मम्मी की गाँड को सजा दे, बेटा! मेरे अंदर तेरा लन्ड कितना मोटा, कितना गरम और कितना मजबूत है !”

“और तेज हिला, नामर्द! और तेज! आँह ‘आँहह शाबाश! बहुत खूब, राज ! मुझे चोद, बेटा! मेरी गाँड मार, मेरे आशिक़ !”

“देख बेटी सोनिया, मेरी चूत से पैदा हुआ है ये पिल्ला, और आज मेरी गाँड मार रहा है! ", इस तरह वे कराहती रहीं, अपने संगीन गुनाह की हवस की आग में डूब गयी थीं रजनी जी। । राज अपने पूरे हौसले से अपनी मम्मी की कसी हुई और मुलायम गाँड को चोदे जा रहा थे, उसका अंग-अंग अब अपने दिमाग में बैठा शैतान के क़ाबू में था। रजनी जी भी लगातार उसपर अपनी चूतड़ों को पटके जा रही थीं, हर जोरदार झटके के साथ उनकी गाँड पर दो मोटे माँस के लोथड़े हिल- हिल कर झूलते थे, और उनकी छाती के नीचे उनके तरबूजों जैसे मम्मे झूम-झूम कर फुदकते थे।

ओहहहह! शाबाश! मार मेरी गाँड राज ! जोर-जोर से, खूब गहरा चोद अपनी रन्डी मम्मी की गाँड को !” वे मन्तर जपने लगीं, “ऊ ऊ ऊ ऊह, मेरे पिल्ले ! ऊपर वाले, तुझसे गाँड मरवाने में खूब मस्ती आ रही है, हरामजादे, ऊपर वाले तुझे इस नेकी का सवाब दे !”

“अंहह अँह उँहह, ऊपर वाले! सच मम्मी, गाँड हो तो ऐसी, साली रन्डी गाँड मेरे लन्ड को निचोड़ रही है, कसम से ऐश हो रही है !” राज जोर से कराहा। | मेरी भी ऐश हो रही है, मादरचोद ! अब ज्यादा बक मत, मुझे मेरे मम्मों के दूध का सवाब चाहिये, कुछ तेरे लन्ड में दम है या नहीं ?” हाँफ़ते हुए रजनी जी ने ललकारा, हवस के मारे उनकी आवाज भर्रा रही थीं और साँसें उखड़ रही थीं।
 
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80 चढ़ गया ऊपर रे •••

राज अपनी पूरी ताक़त और हिम्मत से अपने लन्ड को अपनी मम्मी की कस के चूसती गाँड में ठेले जा रहा था, जिसके कारण वे बिलबिलाती हुई आहें भर रही थीं। राज आगे झुका और उनके झूलते मम्मों को अपने हाथों में भर लिया, और उन्हें झूलते हुए महसूस कराता हुआ लन्ड को और फुर्ती से गाँड में मारने लगा।

रजनी जी ने अपने कन्धे झुका कर बिस्तर पर टेक दिये, और अपनी गाँड को उचका कर बेटे के दमदार झटकों को झेलने लगीं। राज के हाथों ने उन्हें दुरुस्ती से दबोचा हुआ था, मानो अपनी मम्मी की तंग और जकड़ती गाँड को अपने लन्ड पर खींच-खींच कर अपनी मोटी चमचमाती काली छड़ को उनकी उचकती गाँड के सुराख में सिलसिलेवार घोंपे जा रहा था।

“शाबाश मम्मी! देख ले सोनिया, ये है खानदानी रन्डी, देख किस अदा से बेटे के सामने सजदा कर के गाँड मरवा रही है! कुछ सीख धन्धे के गुर मेरी मम्मी से ! शाबाश मम्मी, फेंक अपनी गाड मेरे लन्ड पर !”, ऐसे जलील अल्फ़ाज़ बोल कर वो कराहा, “या ऊपर वाले, मेरे लन्ड को तो मम्मी की गाँड में ही सुकून मिलता है !”

राज ने खुद को अपने सर में बैठे शैतान के हवाले कर दिया था, जो उसकी जाँघों के बीच उससे इन्तेहाई गुनाह को अंजाम दे रहा था। हवस की आग की लपटे उसके गहरे घुपे हुए लन्ड की लम्बाई पर ऊपर और नीचे लपक रही थीं, लगता था जैसे टट्टे अलाव पर सेक ले रहे हों। गुनाहगार हवस किसी बहते पिघले लोहे के समान उसके बदन में फूटी और उसके दिमाग में धमाका कर गयी। टट्टों से निकल कर आग का भंवर उसके पूरे बदन पर फैल रहा था। उसकी आँखें चकाचौंध हुईं, पलकों पर अंधेरा छा गया, और मन में भयानक जलजला आ गया।

तभी उसके लन्ड से गरम, उबलते वीर्य का एक सैलाब फूटा और उसकी प्यारी मम्मी की टाइट और उचकती गाँड के सुराख को लीटर-दर-लीटर भरने लगा।

रजनी जी उछलती और फुदकती हुई, अपने चूतड़ों को अपने बेटे के वीर्य उगलते लन्ड पर लपकाने लगीं। राज ने झड़ते हुए, अपने पहलवान लन्ड को उनकी जकड़ती गाँड में पूरा का पूरा अंदर उतार लिया था। रजनी जी हवस के सुरूर में झूलती हुई कराह रही थीं, उन्होंने अपने निचले होंठ को दाँतों तले दबा रखा था।

बौछार-दर-भौछार, उसके उपजाऊ जवाँ टट्टे अपनी माँस की थैली की कैद में झटक-झटक कर उसकी मम्मी की तरसती गाँड के सुराख में वीर्य उडेल रहे थे। रजनी जी को महसूस हुआ जैसे जन्नत में पहुँच कर सैक्स का सुकून ले रही हों, ऐसा सुकून जो कभी न थमे, ऐसी जन्नत जिसका बादशाह उनका बेटा राज हो। उनकी गाँड ने राज के लन्ड को इस कदर कस के जकड़ रखा था, और लन्ड इस क़दर ठूसा हुआ था, कि जल्द ही राज का वीर्य गाँड से छलक कर बाहर रिसने लगा। हर नयी फुहार उनकी कस कर खिंची हुई गाँड के सुराख़ से हलके पीले रंग के वीर्य की धार बहा कर निकाल देती थी।

अपनी गाँड में गहरे गड़े और वीर्य उगलते लन्ड के अहसास से रजनी जी दुनिया जहान भुला बैठी थीं। उन्होंने अपने जब्त को आखिरकार तोड़ दिया। ‘भाड़ में जाये साले पड़ोसी', रजनी जी ने सोचा, और गला फाड़ कर खूब देर चीखीं। अपने भीतर बैठे वीर्य थूकते लन्ड से उनकी गाँड गुदगुदा रही थी। वे हवस की बेसुधी और जिस्मानी लुफ्त की नशीली शराब में गोते लगा रही थीं।
 
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“आहहह! मादरचोद! माँ के बड़वे! अँहहहह !” रजनी जी बेहद खुश थीं अपने बेटे के मोटे को लन्ड को अपनी गाँड में झड़ा लेने पर। चीख-चीख कर उसे शह दिये जा रही थीं।

“और जोर से! लगा दम मादरचोद पिल्ले ! मार अपनी कुतिया माँ की गाँड !” | राज ने ठीक वैसा ही किया, झड़ते-झड़ते वो अपनी पूरी ताक़त लगा कर अपनी मम्मी की कुलबुलाती गाँड में लन्ड को पीटता चला गया।

“अँहह ... अँहह ... ऊँहहह! रन्डी ले मेरा वीर्य, तेरी गाँड उधेड़ दूंगा कुतिया! पुच्च पुच्च, निचोड़ मेरे लन्ड से वीर्य, हाँ, ऐसे, और निचोड़, अरे सिकोड़ ना अपनी गाँड, हाँ, चूस ले, अभी और थोड़ा बचा है। टटों में, उसे भी चूस, सिकोड़ कुतिया, पुच्च, ये भी गया तेरी गाँड में !” ।

राज के लन्ड से मम्मी की गाँड में वीर्य का बहाव थम जाने के बाद भी, वो उनकी तंग, जकड़ती, वीर्य से लबालब गाँड को उसी बेरहमी से चोदता रहा। उसने हाथ को नीचे बढ़ाकर अपनी तीन उंगलियों को अपनी मम्मी की भीगी चूत में घुसेड़ दिया। उनकी चूत में घुसायी उंगलियों पर उसे अपने गाँड में गड़े लन्ड के उभार का अहसास हो रहा था।

अपने बेटे के चूत को मसलते हुए हाथ के तले रजनी जी बेबस होकर बेसुधी में ऐंठती और कराहती जा रही थीं। वो अपनी उंगलियाँ उनकी बुर में घोंपता जाता और अपने अंगूठे से चोंचले को मसलता कुचलता जाता, साथ में अपने अब भी तने हुए लन्ड को उनकी गाँड में ठेलता भी जाता। ये सब हरकतें रजनी जी की बर्दाश्त के बाहर थीं, सो वे भी झड़ने लगीं, चीख-चीख कर पूरे मोहल्ले में अपने जिस्मानी सुकून का ऐलान करने लगीं।

अहहहह! ऊँहहहह! ऊपर वालेहह! मा :: दर :: चोद !”

रजनी जी अपनी गाँड में बेटे के खम्बेनुमा लन्ड को गड़ाहे हुए, बावली जैसी ऐंठ रही थी। राज अपनी उंगलियों को उनकी चूत में गहरा अंदर डाले करोद रहा था, और उनके छोटे से फड़कते चोंचले को अपने अंगूठे से मसल रहा था।

राज ने दो-चार मिनट और अपनी मम्मी को चोदा, फिर जब बेहद थक गया, तो थम गया। उसके बदन की सारी अकड़न अब ढीली पड़ चुकी थी, जैसे लन्ड से बह कर निकल गयी हो, बड़ी मुश्किल से खुद को उनपर गिरने से रोक पाया था वो।

जैसे उसका लन्ड धीमे-धीमे ढीला पड़ने लगा, राज आगे को झुका और उनके लम्बे बालों को परे हटाकर गर्दन को चूमने लगा। रजनी जी उसके मलाईदार वीर्य की चिपचिपाहट को अपनी गाँड के अंदर महसूस कर रही थीं। इस वाक़ये का ख़याल कर के वे अक्सर मस्ती के मारे झूम जाती थीं। अर्से से उन्होंने अपने बेटे के साथ हर तरह और तरतीब से सैक्स का तजुर्बा कर लिया था, पर सब से ज्यादा पसन्द था उन्हें राज से गाँड मरवाना। और गाँड मरवाने के बाद अपनी गाँड से उसके वीर्य को जगह-जगह बेहयाई से टपकाना!

 
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डॉली और सोनिया बिस्तर पर उनके करीब होती सरगर्मियों से पूरी तरह बेख़बर थीं। दोनो अपने खुद के ऑरगैस्मों की कगार पर आ चुकी थीं, और एक दूसरे की टपकती और कस के फैलायी बुर को बेसुध होकर चाटती, टटोलती और चूसती जा रही थीं।

डॉली ने हर नस्ल की औरतों की चूत को चाट रखा था, पर जवान सोनिया की चूत का जायका जरा हट के था, और जिस से सोनिया उसका जवाब दे रही थी, उससे तो यही अन्दाजा लगाया जा सकता था, कि उस मासूम लड़की ने भी चूत चटाई में महारत हासिल कर ली थी।

सोनिया की जिस्मानी प्यास अब बस बुझने वाली ही थी। डॉली के तपते, चूसते होंठ कस के उसके फड़कते चोंचले को दबाये हुए थे और वो उस अट्ठारह बरस की नाजनीना को अपनी उंगलियों पर नचा रही थी! वो अपनी नाजुक कमर को छोटे-छोटे चक्कर लगाती हूई घुमा रही थी, और अपनी चूती बुर को बड़ी लड़की के चेहरे पर मसलती जा रही थी, और साथ में मस्ती भरी कराहें भी निकाल रही थी। डॉली भी अपनी टपकती झाँटेदार बुर को गोरी डॉली के शौक़ से चूसते होठों पर चुपड़ती जा रही थी।

दोनो चूत चाटती हसीनाएं आपस में चूसती, चुपड़ती और जीभ से चोदती - चोदती कुदरत के खिलाफ़ सैक्स करती हई दोजख की गहराइयों में उतर रही थीं। भूखी बिल्लियों जैसी एक दूसरे की चूत चाटती हईं, आखिरकार दोनो झड़ गयीं, कराहती, कुलबुलाती और काँपती हुई दोनों एक दूसरे की चूत के बहाव को चाट चाट कर निगलने लगीं। और आखिर में ठंडी पड़कर बिल्लियों जैसी ही कराहती हुई एक दूसरे की चूत के चारों ओर चाट - चाट कर सफ़ाचट्ट करने लगीं।

जब दोनो लड़कियाँ एक दूसरे की गिरफ्त से जुदा होकर उठीं, तो उन्होंने रजनी जी और राज को उनके चूत के रिसाव से चुपड़े चेहरों की ओर देखकर मुस्कुराते हुए पाया।

साली रन्डियों! खूब मस्ती से चूत चाट रही थीं? हम मर्दो का ख़याल कौन रखेगा ?”, राज हँस कर बोला। सोनिया ने निचले होंठ को दाँतों तले दबाया, और नजरें अदा से उसके ढीले लन्ड पर झुकायीं और बोली, हुजूर, आपका लन्ड तो आपकी मम्मी की गाँड मारते-मारते थक कर बेहाल हो गया है। अगर इस बेवफ़ा लन्ड के सहारे जियें तो हमारी चूत तो सूनी ही रह जायेगी। भई हमसे तो नहीं होता सब्र !”, वो पलट कर मुस्कुरायी। | पुरा कमरा तीनों के ठहाकों से गूंज उठा, और सब एक दूसरे के गले मिल गये। फिर सोनिया ने पिछली रात उसके घर में हुए वाक़ये को उनसे कह दिया, ये भी खुलासा किया कि कितनी आसानी से उसने अपने घरवालों को चुदाई के लिये रजामन्द कर लिया था।

... फिर जय और डैडी, दोनो ने मिल कर मुझे चोदा। खूब मजा आया। उम्मीद से दुगुना !”, सोनिया ने चटखारे लेते हुए दास्तन बयान की। उसकी हवस भरी दास्तान खत्म होते-होते, रजनी जी और डॉली की चूतें फिर से गर्म हो गयी थीं और रिसने लगी थीं, और राज का लन्ड भी बाक़ायदा तनने लगा था।
 
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अब आगे का क्या प्रोग्राम है?”, राज ने पूछा। “आगे-आगे देखिये हजूर, होता है क्या। मैं घर जाकर मम्मी और डैडी को तुम सब के लिये हमारे फ़ार्म हाऊस में एक पार्टी रखने के लिये मना लूंगी, सोनिया मुस्कुरायी, “आने वाला इतवार ठीक रहेगा। फिर जिसकी जैसी क़िस्मत, मंजूर ?”

बेशक़, मंजूर !”, राज ने कहा। वो अचानक सोनिया की ग़जब की हसीन माँ को चोदने के ख़याल से गर्मा गया।

डॉली और रजनी जी भी मिस्टर शर्मा और जय के ताजातरीन लन्डों पर झपटने का मौक़ा ताड़ कर बड़े उतावले हो रहे थे, लन्ड की मोहताज रहने वाली हसीनायें अपने जिस्मों की तड़प को ठन्डा करने के नये जरीये को, और मुँह में चूसने के वास्ते गैर मर्दो के मोटे गोश्त को पाकर फूली नहीं समा रही थीं।

राज का लन्ड खुद-ब-खुद उठने लगा, जिससे डॉली सबसे पहले आगाह हुई। उसने झपट्टा मारकर अपने भाई के लन्ड पर अपना दावा ठोक दिया।

“अब मेरी बारी, मम्मी !”, वो खिलखिलायी, और राज को धकेल कर बिस्तर पर पीठ के बल लिटाती हुई, उसके मजबूत पुढेदार कूल्हों पर आसन जमाकर बैठ गयी।

डॉली ने उसके लन्ड को पकड़ कर अपनी बुर में पैठ बनायी, और नीचे को खिसकती हुई अपने भाई के बुलन्द लन्ड को अंदर निगलने लगी। जैसे जैसे वो छड़नुमा काला चमचमाता कटुवा लन्ड उसकी सैक्स की भूखी बुर में गहरा घुसता रहा, डॉली मस्ती से कराहती रही और उसके घोंपते लन्ड पर ऊपर और नीचे फुदकने लगी।

रजनी जी पीछे रहने वाली नहीं थीं, कराहती हुई अपने बेटे के चेहरे पर जा बैठीं, और अपनी टपकती चूत को उसके खुले मुंह पर जमा दिया। राज जीभ फटका - फटका कर अपनी मम्मी की लजीज बुर को चूसने और चाटने लगा ... जैसे रेगिस्तान में भटके मुसाफ़िर को दरिया मिल गया हो। जल्द ही पसीने से सने जिस्मों के दरम्यान होती हवस भरी मशक्कत और सैक्स की गरम, चुपड़ती आवाजें उस बेडरूम में गूंजने लगीं।

सोनिया का मन तो बड़ा किया, कि सरगर्मियों में शामिल हो, पर उसकी खुराफ़ाती खोपड़ी में नयी तरक़ीब और मनसूबे बंध रहे थे। शैतानी मुस्कान देती हुई, हसीन जवान लड़की बिस्तर से लपक कर उठी और झटपट कपड़े पहना कर, इतवार की पार्टी के इन्तजामात के बारे में सोचती हुई अपने घर को रवाना हो गयी।
 
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बड़ी सहजता से सोनिया ने अपनी माँ को शर्मा परीवार को फ़ार्म-हाऊस में पार्टी के लिये निमन्त्रित करने के लिये सहमत करा लिया। मिसेज शर्मा ने झट से हाँ कह दिया जब सोनिया ने संकेतात्मक रूप में उन्हें यह सूचित करा दिया कि राज उनपर लट्टू है। उनके तो मन में लड्डू फूटने लगे। अर्से से उनकी निगाह पड़ोस के बाँके नवयुवक पर थी, और अब उनके कुटुम्ब की नवी नवेली लैंगिक स्वतंत्रता के परिवेश में, उन्हें अपनी वर्जित कल्पनाएं साकार करने का अद्भुत अवसार हाथ लगा था।

जब उसके पिता दफ़्तर से घर लौटे, तो सोनिया ने उन्हें भी पट्टी पढ़ा दी। उन्हें बस ऐसा विश्वास दिला दिया कि डॉली उनके पौरुष की कायल है। उसे अपने सदैव कामतत्पर रहने वाले भाई को तो कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं थी, उसके नेत्रों के दीपक तो स्वतः ही प्रज्वलित हो गये। कितनी ही बार वो माँ-बेटी को अपनी ब्रा और पैन्टी सुखाने के लिये रस्सी पर टांगते हुए देख चुका था, ब्रा इतनी बड़ी होगी, तो स्तन कैसे विशाल होंगे ? स्वयं अपने अनुमान की तुष्टि करने के लिये वो आतुर हो उठा।

शहर से बत्तीस किलोमीटर दूर, मिस्टर शर्मा की पुश्तैनी जमीन थी, जिसे अब उन्होंने एक आलीशान फ़ार्महाऊस में तब्दील कर दिया था, थोड़ी खेती थी, और भैंसें पाल रखी थीं। अंदर ड्राइंग रूम, दो बड़े बेडरूम, अटैच बाथ, और एक स्विमिंग पूल भी था। इतवार की शाम छह बजे, निर्धारित समय पर शर्मा परिवार का फ़ार्म हाउस में आगमन हुआ। सैक्स और रोमांच की एक लहर शर्मा परिवार के हर सदस्य के हृदय में उमड़ रही थी। तीनों आरामदेह कपड़े पहनकर आये थे :: डॉली ने श्वेत रंग की कट-स्लीव्ज़ वाली सलवार-कमीज, जिसका लो-कट गला उसके भरपूर रसीले स्तनों को कठिनाई से ढाँक पा रहा था ::: मिस्टर शर्मा और जय ने बड़े हर्ष के साथ नोट किया कि जब भी वो नीचे को झुकती थी, तो स्तनों का वक्र आकार और लुभावनी क्लीवेज साफ़ दिखलाई देती थी। | रजनी जी ने हलके हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी जो उनकी हरी रंग की आँखों से खूब में खाती थी। साड़ी का ब्लाऊज बैकलेस था, पीछे केवल दो डोरों से बंधा हुआ, उनकी नंगी छरहरी पीठ का प्रदर्शन करता था। आगे से ब्लाऊज़ के महीन सूती कपड़े में बन्दी बने दो विशाल तरबूजों जैसे स्तन, जिनके सिर्फ़ निप्पल ही कपड़े से ढके हुए थे, ऊपर का आधा भाग अपने दूधिया रंग के आकर्षण से जय और मिस्टर शर्मा की आँखें चकाचौंध कर दे रहा था। उनके बदन में तनिक भी हरकत होती, तो दोनो स्तन झूलने लगते मानो अभी उछल कार ब्लाऊज की कैद से विमुक्त हो जायेंगे। राज ने टी-शर्ट और टाईट जीन्स पहन रखी थी, जिसे टीना जी तुरन्त ही घूरने लगी थीं। राज के तो फ़ार्म हाउस में पाँव पड़ते ही उनकी आँखें उसकी जाँघों के बीच स्थित भरपूर उभार पर गड़ गयी थीं। पहली बार उन्होंने गौर किया कि पड़ोस का ये जवान लड़का एक बाँके लिंग का स्वामी भी था!

“अरे राज !”, टीना जी बोलीं, वे अब भी प्रशंसात्मक निगाहों से उसे घूर रही थीं। “बाप रे बाप! देखते-देखते कितना बड़ा हो गया है रे तू !”

राज हँसा और पहलवानों जैसे बाजुएं फड़काता हुआ शक्ति -प्रदर्शन करने लगा। “माँ का दूध !”, वो हँसा।

रजनी जी टीना जी की ललचाई निगाहों को उनके पुत्र की जाँघों के बीच की दिशा में बार-बार फिसलते देख मुस्कुराईं।

“सच टीना, मालूम ही नहीं चला मेरी आँखों के सामने नालायक कब बड़ा हो गया। मेरा मुन्ना अब जवान हो गया है !” राज के चूतड़ों को हाथों में दबोच कर रजनी जी ने कहा।

“मम्मी जान !” राज ने उन्हें लताड़ा, “आप भी मुझसे बच्चों सा सुलूक करती हैं !”

“बदमाश! बड़ा आया जवान बनने, देखिये ना, सुबह से बच्चों जैसा आप सबसे मिलने को उतावला हो रहा है, डॉली और मुझे तो ठीक से कपड़े भी नहीं पहनने दिये, जबरन घसीटता ले आया, कि देर हो रही है, शर्मा आँटी इंतजार करती होंगी !”', रजनी जी हँसी और टीना जी के गले मिलकर बोली, “टीना जी, आपसे मिलकर बेहद खुशी हुई। हम सब आपके ऐहसानमन्द हैं कि आपने हमें इतनी मुहब्बत से अपने फ़ार्म हाउस बुलाया।”

टीना जी की योनि में बिजली सी कौन्ध गयी जब रजनी जी के स्तन उनके स्तनों से टकराये। ‘हे ईश्वर !' उन्होंने सोचा, “क्या मुझे सैक्स के इतने लाले पड़ गये, कि एक औरत का बदन मुझे मस्त कर दे रहा है ?' उन्होंने झट से खुद को सम्भाला और आतिथ्य दायित्व निभाती हुई शर्मा परिवार को फ़ार्म हाउस के ड्राइंग रूम में तशरीफ़ लेने को कहा।

शीघ्र ही दोनो परिवार आपस में घुलमिल गये और ड्राइंग रूम में प्रेम और मेलमिलाप का वातावरण बन गया, शिष्टाचार का स्थान बन्धुत्व और सहज अनौपचारिकता ने ले लिया। आदर्श मेजबान की तरह, मिस्टर शर्मा अपने अतिथीयों का सत्कार कर रहे थे - राज के लिये व्हिस्की, रजनी जी के लिये विदेशी शैम्पेन, और डॉली के लिये कोल्डड्रिक, बस किसी को हाथ में खाली गिलास थामे नहीं देख सकते थे। डॉली और सोनिया ने भी शैम्पेन । की माँग की तो जिन्दादिली के मूड में सहर्ष तैयार हो गये, जहाँ दो दिन पहले इसी बात पर आगबबूले हो पड़ते।
 
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सोनिया की सदैव कामतत्पर योनि मारे पूर्वानुभूति के मारे आर्द हो रही थी। पार्टी के असली कार्यक्रम के प्रारम्भ होने तक उससे संयम नहीं बरता जा रहा था, सो अपनी निडर प्रवृत्ति के अनुसार, उसने स्वयं श्रीगणेश करने की ठान ली।

“अरे! यहाँ अच्छा-खासा स्विमिंग पूल है, तो फिर हम ड्राइंग रूम में बैठे भला क्यों गप्पें मार रहे हैं? कौन मेरे साथ स्विमिंग पूल में खेलेगा ?” सोनिया अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुरा कर बोली।

लोगों ने शीघ्र उसके प्रस्ताव को मान लिया, और कपड़े बदलने को बाथरूम की ओर चले गये। जय जब सोफ़ा से उठकर बेडरूम की ओर चला, तो लगता था, किसी परेशानी से छुटकारा पा लिया हो। रजनी जी विलक्षण कामुक महिला थीं। जिस लुभावने अंदाज में वे बार-बार हाथों से अपने चेहरे पर गिरते बालों को समेटती, रह-रह कर अपने पल्लू को वक्षस्थल पर व्यवस्थित करतीं, लाल लिपस्टिक से सजे होठों से मुस्कुरातीं, खिलखिलातीं, और अपने हरे रंग के नटखट नैनों से उसकी ओर आमंत्रण भरे भाव से देखतीं, टाँग पर टाँग रखकर नुकीली हील वाली सैंडल को हिलातीं, जय की तो परेशानी बढ़ती चली गयी थी। उसे लगता था, अपनी पैंट में ही वीर्य स्खलित कर देगा।

बेडरूम में उसने स्विमिंग टूक पहना, और एक तौलिया लेकर, गलियारे से होता हुआ, स्विमिंग पूल की ओर चला। गलियारे से जाते हुए, उसकी निगाह दूसरे बेडरूम के अंदर पड़ी, आधे खुले दरवाजे में उसे एक नग्न नारी देह की झलक दिखी तो वो ठिठक कर खड़ा का खड़ा रह गया। वो एक कदम पीछे लौटा, और सावधानी से अंदर झाँकने लगा। जब उसने निकट आकर निरीक्षण किया तो पाया कि आकर्षक देह किसी ओर की नहीं, उसकी चहेती रजनी जी की है, जो कपड़े बदल रही थीं। उन्होंने साड़ी और पेटीकोट उतारा ही था, और आइने के सामने केवल ब्लाऊज और छोटी सी काले रंग की पैन्टी पहने खड़ी थीं।

दहलीज पर खड़ा जय अपनी पड़ोसन को निहारने लगा, और उसी क्षण उसका लिंग स्विमिंग ट्रैक के भीतर उदिक्त होने लगा। उनकी हर हरकत पर जय की दृष्टि थी, उसके आग्नेय नेत्रों से वासना टपक रही थी। जय स्तब्ध होकर मुँह बाये रूपवती रजनी जी के नग्न स्तनों, और महीन पारदर्शी कपड़े की बनी पैन्टी के पार झलकते योनि स्थल को एकटक देखता ही रह गया। जय की उपस्थिति से अनभिज्ञ, रजनी जी गीत गुनगुनाती हुई आईने में अपने वक्ष स्थल को प्रशंसा पूर्वक निहार रही थीं, किसी मॉडल की तरह विभिन्न पोज दे-दे कर अपनी उंगलियाँ स्तनों पर फेर रही थीं। अपने अति - विशाल दूधिया स्तनों को हथेली पर टेक कर, आईने में अपनी ही मुस्कुराती छवि को भेंटपूर्वक अर्पित कर रही थीं। उंगलियाँ अपने लाल होठों पर रखकार उन्होंने स्वयं को एक हवाई चुंबन दिया और फिर एक हाथ अपनी जाँघों के मध्य गिरने दिया। जय को तो जैसे साँप सूंघ गया, उस महिला को अपनी उंगलियाँ पेड़ पर सहलाते देख , उसकी हृदय गति धौंकनी सी तेज हो गयी थी। ‘साली सच में बड़ी रन्डीबाज है', रजनी जी को अपनी लम्बी पतली उंगलियों द्वरा अपनी योनि कोपलों पर पैन्टी के नम वस्त्र को मलते देख कर को उसने विचार किया।

जय का लिंग शिला जैसा कठोर हो चला था, और वो अपनी दृष्टि को उनके झूलते स्तनों पर गाड़े, अपने स्विमिंग ट्रैक को लिंग की लम्बाई पर धीमे-धीमे रगड़ने लगा था। कुछ समय उपरान्त रजनी जी की सम्पूर्ण देह काँप उठी, और उन्होंने आईने का झुक कर सहारा लिया, उत्तेजना के मारे उनके घुटने झुक गये थे और वे अपने योनि स्थल को कस के अपने रगड़ते हाथों पर चिपटाये हुए थीं। जय हतप्रभ होकर उन्हें घूरता रहा!

* रन्डी साली, खुद ही चूत को रगड़-रगड़ कर झड़ा दिया !”, दबे स्वर में वो फुसफुसाया।

रजनी जी ने एक लम्बा दम भरकर अपने तमतमाये चेहरे को आईने में देखा, फिर अपनी उंगलियों को पैन्टी के इलास्टिक बैंद में अटका कर उस महीन वस्त्र को अपने चिकने चौड़े कूल्हों पर से सरका कर नीचे उतार दिया। उसके व्यूह में जैसे ही रजनी जी के नम योनि रोमों का दृष्य प्रकट हुआ, जय तो लगभग वीर्य स्खलित ही कर बैठा। रजनी जी ने अपनी टाँगें उठा कर पैन्टी को अपनी ऐड़ियों पर से उतारने के लिये आगे झुकीं, तो जय को उनकी भीगी, रोम मंडित योनि का अनवृद्ध दृष्य प्राप्त हुआ।

वे जय की ओर अपने नग्न नितम्ब किये हुए खड़ी थीं, और जब आगे झुकीं, तो उनकी नग्न जाँघों के मध्य से उसे योनि के लालिम मार्ग की झलक प्राप्त हुई, तो रोमांच के मारे जय ने एक आह भरी। भीगी पैन्टी को बिस्तर पर फेंक कर, रजनी जी ने स्विमिंग कॉस्टयूम की जाँघिया पहन ली। उस सूक्ष्म वस्त्र से उनकी देह का कितना कम हिस्सा की ढक पाता था, यह देख कर जय की बाछे खिल गयीं। बिकीनी का टॉप भी वैसा ही सूक्ष्म था, जिसे रजनी जी ने जैसे ही पहना, जय ने देखकर अपने होठों पर जिह्वा फेरी। वत्र के छोटे से टुकड़े से उनके निप्पल ही ढक पाये थे,

अलबत्ता अति उदारता से विशाल स्तनों की दूधिया कोमलता का प्रदर्शन अवश्य हो रहा था। जय उन्हें ये लिबास पहने स्विमिंग पूल में तैरता देखने को बेसब्र हो रहा था, जब भीगी बिकीनी उनकी कामुक देह से चिपकी हुई हो। यह तो उन्हें फिर से नग्नावस्था में देखने के समतुल्य ही होगा। फ़र्क केवल इतना की स्विमिंग पूल में वो जितना चाहे, उनके समीप आकर, जितनी देर चाहे, निहार सकता था।
 
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जय का लिंग वज्र सा कठोर होकर उसकी उंगलियों के बीच में उग्रता से फड़क रहा था। रजनी जी के ललचाते प्रदर्शन ने नवयुवक की देह में प्रचण्ड कामग्नि प्रज्वलित कर दी थी। रजनी जी की बिकीनी पहनी देह पर एक अंतिम निगाह फेरकर, अपनी युवा देह में सुलग पड़ी तीव्र कामाग्नि को शांत करने के ध्येय से, वो बाथरूम की दिशा में पलट गया। उसे विश्वास था कि बस कुछ ही मिनटों के लिये उनके कामुक बदन पर ध्यान लगा कर हस्तमैथुन करने के उपरांत वो वीर्य का प्रचुर स्खलन करता हुआ यौन तृप्ति प्राप्त कर लेगा। ना ही कोई उसकी पूल पर अनुपस्थिति पर अधिक ध्यान देने वाला था :: : वैसे भी, अपनी स्विमिंग ट्रंक में उदिक्त लिंग के बोझ को ढोकर बाहर जाना भी संभव कहाँ था ?

जय दबे पाँव बाथरूम गाया और उसका हड़बड़ाहट में दरवाजा बन्द कर चिटखनी लगाने की चेष्टा करने लगा। परन्तु व्यर्थ, क्योंकि चटकहनी तो जाम हो गयी थी! जय खीज उठा, पर उसे समस्या का हल मिल गया, जब उसने देखा कि टॉयलेट और स्नानघर के मध्य एक शटर था, जिसे यदि कोई और बाटरूम में आये, तो वो आराम से बंद कर सकता था।
 

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