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अध्याय 79
रात की रंगीनियां थी और हल्की सी सर्दी,बिस्तर में विजय लेटा हुआ बस सोनल को निहार रहा था,आंखों में अपने बहन का वो मचलता रूप था जिसे देखकर शायद मर्दो की जांघो के बीच कुछ कुछ होने लगे, लेकिन विजय के लिए उसकी बहन बस हवस मिटाने का कोई जरिया नही थी,वो उसकी परी थी,वो उसे प्यार भरी निगाहों से निहार रहा था ,उसकी आंखों में सोनल की उज्वल छटा थी,उसका वो रोशन चहरा ,चांद सा चमकदार लेकिन बिना किसी दाग के,वो मुस्कुराती हुई विजय के पास आई ,अभी अभी वो नहा कर निकली थी,सिर्फ अपने भाई के लिए ,.......सिर्फ अपने प्यारे भाई के लिए उसने वो महंगी सुगंध अपने शरीर में लगाई थी,सिर्फ अपने भाई के लिए उसने वो झीना सा कपड़ा पहना था जिसमे उसके जिस्म का हर भराव नजर आता,सिर्फ अपने भाई के लिए वो अपने शादी से पहले उसके साथ सोने को राजी थी जबकि वो जानती थी की कुछ भी हो सकता है,वो जानती थी की अगर विजय आगे बढेगा तो वो रोक नही पाएगी,वो क्या चाहती थी….?शायद कुछ भी नही ,...विजय क्या चाहता था..???
शायद कुछ भी नही …
बस दोनो को ही एक दूजे का साथ चाहिए था,एक दूजे का अहसास जो जिस्म से होकर मन की गहराइयों में चली जाती थी,एक एक छुवन जो ऊपरी त्वचा के गहरे पहुचता था…….
उसकी मुस्कुराहट ही तो थी जो विजय के दिल का सुकून थी ,उस मर्द कहलाने वाले विजय के आंखों में ना जाने कब आंसू की बूंदे छलकने लगी थी,सोनल के लिए ना जाने आज उसे ऐसा क्या प्यार आ रहा था,वो बार बार उसके जुदा होने के अहसास से भर जाता था,..
सोनल भी जानती थी की उसका भाई उसे कितना प्यार करता है,वो उसके लिए कुछ भी कर सकता था,कुछ ही दिनों में किसी और की हो जाने का अहसास जंहा सोनल के दिल में एक झुरझुरी सी पैदा करता था वही अपने भाई से जुदाई की बात सोच कर भी वो सहम उठती थी,लेकिन वो अपने को सम्हाल लेती ,क्योकि उसे विजय को सम्हालना था,वो मचलती हुई विजय के पास आयी और बिस्तर में पसरते हुए विजय की गोद में जा गिरी…
विजय के सामने अब उसका चहरा था,रात में भी सोनल अपने होठो में लाली लगाना नही भूली थी ,वो भी उसके भाई के लिए ही तो था,विजय उसके बालो में हाथ डालकर उसे अपनी ओर खिंचा लेकिन सोनल के उपर उठाने से विजय का नीचे होना ज्यादा सहूलियत भरा था,सोनल थोड़ी आकाश में उठी तो विजय भी थोड़ा नीचे झुका,दोनो के ही होठ मिले,रुकने का ठहराने का कोई भी इरादा किसी का भी नही था,होठो को होठो में ही मिलाए हुए दोनो ही बिस्तर में लेट चुके थे,विजय सोनल के बाजू में आकर लेटा था,होठ मिले हुए ही थे और सांसे भी मिलने लगी थी,आंखों में आंसू की थोड़ी थोड़ी धारा समय समय पर बह जाती थी…
"सोनल आई लव यू "
विजय ने उसके होठो को छोड़ते हुए कहा,
"ये कोई बोलने की बात है क्या भाई "सोनल हल्के से मुस्कुरा दी ,दोनो फिर से प्यार के सागर में गोते खाने लगे थे,विजय का शरीर अब सोनल और अपने कपड़ो की दूरी बर्दस्त नही कर पा रहा था ,धीरे धीरे ही सही लेकिन एक एक कपड़े जिस्म से उतरते जा रहे थे,कुछ ही देर में दोनो के बदन के बीच कोई भी दीवार नही बची थी,विजय के लिंग ने सोनल की योनि को छूना शुरू कर दिया था,अपने भाई की बेताबी को सोनल बखूबी समझती थी,लेकिन कुछ करना भी तो पाप होता,वो दोनो कुछ भी नही करना चाहते थे,वो बस होने देना चाहते थे,किसी ने इतनी जहमत नही की कि लिंग को उसकी मंजिल तक पहुचाये,सोनल की योनि में उगे हुए हल्के हल्के बाल जब जब विजय के लिंग से टकरा कर रगड़ खाते दोनो का मुह खुल जाता था,योनि ने अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया था,वही विजय का मुह सोनल के भरे है स्तनों का मसाज अपने होठो से कर रहा था,निप्पलों में जैसे कोई रस भरा हुआ वो विजय उसे चूसें जा रहा है,सोनल के हाथ विजय के सर को सहला रहे थे ,वो कभी विजय के ऊपर आती तो कभी नीचे इसी गहमा गहमी में दोनो के शरीर की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,जंहा विजय अपने कमर को हिलाने लगा था वही सोनल भी अपने कमर को उचकाए जा रही थी लेकिन लिंग था की अंदर जाने का नाम ही नही लेता,वो बस सोनल के योनि के से रगड़ खाये जा रहा था,विजय का कमर थोड़ा ऊपर हुआ ,सीधे तने लिंग ने योनि की गहराइयों के ऊपर की दीवार पर थोड़ी जगह बनाई,इस बार योनि इतनी गीली थी की लिंग को भिगोने लगी विजय किसी माहिर खिलाड़ी की तरह बेलेंस बनाये हुए कमर को नीचे करता गया,सोनल ने भी अपने शरीर को सीधा ही रखा था ताकि लिंग की दिशा भटक ना जाए,थोड़ा अंदर जाने पर ही सोनल ने विजय को मजबूती से पकड़ लिया उसके दोनो हाथ विजय के नितम्भो पर टिककर उसे जोर दे रहे थे,और विजय बड़े ही एकाग्रता से अपने लिंग को बिना छुवे ही सोनल की योनि में प्रवेस करा रहा था,गीलेपन के कारण विजय का लिंग जल्दी ही सोनल की गहराइयों में समा गया ,
"आह भाई "सोनल के मुझ से मादकता भरी सिसकी निकली ,
"ओह ओह आह आह भाई ओह"उसके हाथ अब विजय के सर में तो कभी उसकी कमर में घूम रहे थे विजय ने अपने होठो को सोनल के होठो में डाल दिया और उसकी कमर एक निश्चित लय में सोनल के जांघो के बीच चलने लगी,दोनो ही अपने होश में नही रहे थे,सिसकिया और आनन्द के अतिरेक से निकलने वाली किलकारियों से कमरा गूंजने लगा था ………
कमरे के बाहर खड़ी दो काने इन आवाजो को सुन रही थी और अपने प्यार की याद में गुम थी उसकी आंखों में आंसू था,वो निधि थी,..सोनल और विजय की आवाजो ने उसके मन में एक बेचैनी सी जगा दी थी ,वो भी अपने भइया से वैसा ही प्यार करना चाहती थी जैसा सोनल कर रही थी लेकिन ,,,,,,,,,,,
लेकिन वक्त ने दोनो को बहुत दूर कर दिया था...
रात की रंगीनियां थी और हल्की सी सर्दी,बिस्तर में विजय लेटा हुआ बस सोनल को निहार रहा था,आंखों में अपने बहन का वो मचलता रूप था जिसे देखकर शायद मर्दो की जांघो के बीच कुछ कुछ होने लगे, लेकिन विजय के लिए उसकी बहन बस हवस मिटाने का कोई जरिया नही थी,वो उसकी परी थी,वो उसे प्यार भरी निगाहों से निहार रहा था ,उसकी आंखों में सोनल की उज्वल छटा थी,उसका वो रोशन चहरा ,चांद सा चमकदार लेकिन बिना किसी दाग के,वो मुस्कुराती हुई विजय के पास आई ,अभी अभी वो नहा कर निकली थी,सिर्फ अपने भाई के लिए ,.......सिर्फ अपने प्यारे भाई के लिए उसने वो महंगी सुगंध अपने शरीर में लगाई थी,सिर्फ अपने भाई के लिए उसने वो झीना सा कपड़ा पहना था जिसमे उसके जिस्म का हर भराव नजर आता,सिर्फ अपने भाई के लिए वो अपने शादी से पहले उसके साथ सोने को राजी थी जबकि वो जानती थी की कुछ भी हो सकता है,वो जानती थी की अगर विजय आगे बढेगा तो वो रोक नही पाएगी,वो क्या चाहती थी….?शायद कुछ भी नही ,...विजय क्या चाहता था..???
शायद कुछ भी नही …
बस दोनो को ही एक दूजे का साथ चाहिए था,एक दूजे का अहसास जो जिस्म से होकर मन की गहराइयों में चली जाती थी,एक एक छुवन जो ऊपरी त्वचा के गहरे पहुचता था…….
उसकी मुस्कुराहट ही तो थी जो विजय के दिल का सुकून थी ,उस मर्द कहलाने वाले विजय के आंखों में ना जाने कब आंसू की बूंदे छलकने लगी थी,सोनल के लिए ना जाने आज उसे ऐसा क्या प्यार आ रहा था,वो बार बार उसके जुदा होने के अहसास से भर जाता था,..
सोनल भी जानती थी की उसका भाई उसे कितना प्यार करता है,वो उसके लिए कुछ भी कर सकता था,कुछ ही दिनों में किसी और की हो जाने का अहसास जंहा सोनल के दिल में एक झुरझुरी सी पैदा करता था वही अपने भाई से जुदाई की बात सोच कर भी वो सहम उठती थी,लेकिन वो अपने को सम्हाल लेती ,क्योकि उसे विजय को सम्हालना था,वो मचलती हुई विजय के पास आयी और बिस्तर में पसरते हुए विजय की गोद में जा गिरी…
विजय के सामने अब उसका चहरा था,रात में भी सोनल अपने होठो में लाली लगाना नही भूली थी ,वो भी उसके भाई के लिए ही तो था,विजय उसके बालो में हाथ डालकर उसे अपनी ओर खिंचा लेकिन सोनल के उपर उठाने से विजय का नीचे होना ज्यादा सहूलियत भरा था,सोनल थोड़ी आकाश में उठी तो विजय भी थोड़ा नीचे झुका,दोनो के ही होठ मिले,रुकने का ठहराने का कोई भी इरादा किसी का भी नही था,होठो को होठो में ही मिलाए हुए दोनो ही बिस्तर में लेट चुके थे,विजय सोनल के बाजू में आकर लेटा था,होठ मिले हुए ही थे और सांसे भी मिलने लगी थी,आंखों में आंसू की थोड़ी थोड़ी धारा समय समय पर बह जाती थी…
"सोनल आई लव यू "
विजय ने उसके होठो को छोड़ते हुए कहा,
"ये कोई बोलने की बात है क्या भाई "सोनल हल्के से मुस्कुरा दी ,दोनो फिर से प्यार के सागर में गोते खाने लगे थे,विजय का शरीर अब सोनल और अपने कपड़ो की दूरी बर्दस्त नही कर पा रहा था ,धीरे धीरे ही सही लेकिन एक एक कपड़े जिस्म से उतरते जा रहे थे,कुछ ही देर में दोनो के बदन के बीच कोई भी दीवार नही बची थी,विजय के लिंग ने सोनल की योनि को छूना शुरू कर दिया था,अपने भाई की बेताबी को सोनल बखूबी समझती थी,लेकिन कुछ करना भी तो पाप होता,वो दोनो कुछ भी नही करना चाहते थे,वो बस होने देना चाहते थे,किसी ने इतनी जहमत नही की कि लिंग को उसकी मंजिल तक पहुचाये,सोनल की योनि में उगे हुए हल्के हल्के बाल जब जब विजय के लिंग से टकरा कर रगड़ खाते दोनो का मुह खुल जाता था,योनि ने अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया था,वही विजय का मुह सोनल के भरे है स्तनों का मसाज अपने होठो से कर रहा था,निप्पलों में जैसे कोई रस भरा हुआ वो विजय उसे चूसें जा रहा है,सोनल के हाथ विजय के सर को सहला रहे थे ,वो कभी विजय के ऊपर आती तो कभी नीचे इसी गहमा गहमी में दोनो के शरीर की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,जंहा विजय अपने कमर को हिलाने लगा था वही सोनल भी अपने कमर को उचकाए जा रही थी लेकिन लिंग था की अंदर जाने का नाम ही नही लेता,वो बस सोनल के योनि के से रगड़ खाये जा रहा था,विजय का कमर थोड़ा ऊपर हुआ ,सीधे तने लिंग ने योनि की गहराइयों के ऊपर की दीवार पर थोड़ी जगह बनाई,इस बार योनि इतनी गीली थी की लिंग को भिगोने लगी विजय किसी माहिर खिलाड़ी की तरह बेलेंस बनाये हुए कमर को नीचे करता गया,सोनल ने भी अपने शरीर को सीधा ही रखा था ताकि लिंग की दिशा भटक ना जाए,थोड़ा अंदर जाने पर ही सोनल ने विजय को मजबूती से पकड़ लिया उसके दोनो हाथ विजय के नितम्भो पर टिककर उसे जोर दे रहे थे,और विजय बड़े ही एकाग्रता से अपने लिंग को बिना छुवे ही सोनल की योनि में प्रवेस करा रहा था,गीलेपन के कारण विजय का लिंग जल्दी ही सोनल की गहराइयों में समा गया ,
"आह भाई "सोनल के मुझ से मादकता भरी सिसकी निकली ,
"ओह ओह आह आह भाई ओह"उसके हाथ अब विजय के सर में तो कभी उसकी कमर में घूम रहे थे विजय ने अपने होठो को सोनल के होठो में डाल दिया और उसकी कमर एक निश्चित लय में सोनल के जांघो के बीच चलने लगी,दोनो ही अपने होश में नही रहे थे,सिसकिया और आनन्द के अतिरेक से निकलने वाली किलकारियों से कमरा गूंजने लगा था ………
कमरे के बाहर खड़ी दो काने इन आवाजो को सुन रही थी और अपने प्यार की याद में गुम थी उसकी आंखों में आंसू था,वो निधि थी,..सोनल और विजय की आवाजो ने उसके मन में एक बेचैनी सी जगा दी थी ,वो भी अपने भइया से वैसा ही प्यार करना चाहती थी जैसा सोनल कर रही थी लेकिन ,,,,,,,,,,,
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