Incest जिम्मेदारी (कुछ नयी कुछ पुरानी)

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अध्याय 1
शांत माहोल इतना भयावक की डर ही लग जाये,मानसून की हलकी फुहारे,भीगे हुए लोगो की भीड़ और भीगे हुए नयन,शमसान की सी शांति में कुछ सिसकते बच्चे और बिच में पड़ी हुई दो लाशे,ये वीर ठाकुर और उनकी पत्नी की लाश थी जो एक सडक हादसे का शिकार हो गये थे,वीर ठाकुर पुरे इलाके के सबसे ताकतवर और रुशुखदार व्यति थे,आज पूरा गाव अपने देवता के लिए आंसू बहा रहा था..लेकिन एक शख्स वहा मोजूद नहि था,बाली ठाकर,वीर ठाकुर का छोटा भाई,वीर और बाली की जोड़ी की मिशाले दी जाती थी,दोनों भाइयो कि सांडो सी ताकत वीर का तेज दिमाग और दयालुता न्याय प्रियता और बाली का भाई के लिए कुछ भी कर गुजरने का जूनून इन दोनों को खास बनाता था,
इनके माँ बाप की जमीदार तिवारीओ से खानदानी दुश्मनी थी तिवारीयो ने उन्हें मरवा दिया,लेकिन बिन माँ बाप भी ये बच्चे शेरो जैसे बड़े हुए और जमीदारो के समानातर अपना वजूद खड़ा कर दिया…आज उनका सिक्का पुरे इलाके में चलता था,

वीर की शादी तिवारीयो के परिवार में हुआ था एक बड़े ही तामझाम के साथ और खून की नदियों की बाड में उनकी शादी हुई थी..सुलेखा रामचंद्र तिवारी की बेटी थी,दोनों में प्यार पनपा और वीर ने शादी के मंडप से ही सुलेखा को उठा लिया,इस बात पर खूब खून खराबा हुआ जिसका नतीजा हुआ सुलेखा के सबसे छोटे भाई वीरेंदर की मौत, आखिर कार मुख्यमंत्री के बीच बचाव और रामचंद्र की समझदारी से मामला शांत हो गया,समय के साथ मामला तो शांत हो गया पर दुश्मनी बरकरार रही…बाली लंगोट का कच्चा था जिसका सहारा लेकर तिवारियो अपने गाव की ही चंपा को बाली से जिस्मानी सम्बन्ध बनवाया और आखीर चंपा बाली के बच्चे की माँ बन गयी और उसके माँ बाप ने वीर के आगे गुहार लगायी आखीरकार मजबूरन वीर ने अपने वसूलो का सम्मान करते हुए बाली की शादी चंपा से करा दिया,चंपा ने आते ही अपना रंग दिखाना सुरु किया और बाली को घर से अलग होने के लिए मजबूर करने लगी,बाली ने उसे मारा पिटा और प्यार से समझाने की कोसिस की पर सब बेकार बाली मजबूर था की उसके भाई की इज्जत का सवाल था वरना उसे कव का मर के फेक दिया होता,
वीर ने बाली को परेसान देख उसे अपने से ही लगा हुआ अलग घर बनवा दे दिया और चंपा से वादा किया की वो और बाली अलग अलग काम करेंगे…इस फिसले से किसी को कोई फर्क ना पड़ा क्योकि सभी जानते थे बाली और वीर अलग दिखे पर अलग नहीं हो सकते….

वीर और सुलेखा के 4 बच्चे थे जो इनके प्यार की निसानी थे सबसे बड़ा था अजय फिर सोनल और विजय जुड़वाँ थे फिर निधि ,बाली और चंपा के 2 बच्चे थे पहला उनकी हवास की निशानी किशन और दूसरी मजबूरी की निशानी रानी…तो क्रम कुछ ऐसा था की=अजय फिर 2 साल छोटे सोनल विजय फिर एक साल बाद किशन फिर एक साल बाद रानी फिर 2 साल बाद निधि…
अजय में पूरी तरह से वीर के गुण थे अपने भाई बहनों पे अपनी जान छिडकता था वही विजय और किशन बाली जैसे थे अपने भाई की हर बात को सर आँखों पर रखते थे,विजय तो पूरा ही बाली जैसा था अपने चाचा की तरह ही भाई भक्त और ऐयाश और बलशाली…
इस सन्नाटे में ये सब बच्चे ही थे किनके सिसकियो की आवाजे आ रही थी,बाली बदहवास सा आया और अपने भाई भाभी की लाश देख मुर्दों सा वही बैठ गया जैसे उसे समझ ही ना आ रहा हो क्या हो गया,अचानक से ही किशन और रानी अपने पापा को देख रो पड़े और बाली की और दौड़ पड़े की चंपा ने उन्हें पकड़ लिया और खीचते हुए ले जाने लगी,"अरे इतने काम पड़ा है घर का तुम लोग यहाँ तमाशा लगा रहे हो जो मर गया वो मर गया अब चलो यहाँ से "

चंपा के ये बोल बाली को जैसे जगा गए उसकी आँखों में अंगारे थे,वो गरजा जैसे शेर को गुस्सा आ गया हो सारा गाव बार डर से कपने लगा,"मदेरचोद तेरे ही कारन मैं अपने भाई भईया से अलग रहा ,मेरे भाई ने तुझ जैसी दो कौड़ी की लड़की को इस घर की बहु बना दिया नहीं तो तुझ जैसी के ऊपर तो मैं थूकता भी नहीं,तेरे कारन मैं अपने भातिजो से नहीं मिल पता आज तक तुझे मेरे भाई ने बचाया था देखता हु आज तुझे मुझसे कोन बचाता है," बाली ने पास पड़ी कुल्हाड़ी उठाई,और चंपा की तरफ दौड़ गया,उसको रोकने की हिम्मत तो किसी में नहीं थी…उसने पुरे ताकत से वार किया.लेकिन ये क्या,,एक हाथ कुल्हाड़ी की धार को पकड़ के रोके है बाली ने जैसे ही उस शख्स को देखा उसका गुस्सा जाता रहा,वो अजय था,
बाली को उसकी आँखों में वही धैर्य वही तेज दिखा जैसा उसे वीर की आँखों में दिखता था,आज अचानक ही जैसे अजय जवान हो गया हो,
'चाचा,चाची मेरा परिवार है,मेरे भाई बहन मेरे परिवार है ,इनपे कोई भी हाथ नहीं उठा सकता ,आप भी नहीं ,अब मेरे पापा के जाने के बाद मैं इनकी जिम्मेदारी लेता हु 'अजय का इतना बोलना था की बाली उसके पैरो को पकड कर रोने लगा,
'मेरे भईया ,मेरे भईया वापस आ गए ….'सारे गाव के आँखों में चमक आ गयी सभी बच्चे दौड़ते हुए अजय से लिपट कर रोने लगे चंपा स्तब्ध सी अपने जगह पर खड़ी थी ,उसने मौत को इतने करीब से छूकर जाते देखा की उसकी रूह अब भी काप रही थी ,और अजय ,अजय एक शून्य आकाश में देखता लाल आँखों से अब आंसू सुख चुके थे ,मन बिक्लुत शांत था और चहरे पर दृढ़ता के भाव उसके द्वारा ली जिम्मेदारी का अभाश दिला रहे थे ,…..

शांत माहोल इतना भयावक की डर ही लग जाये,मानसून की हलकी फुहारे,भीगे हुए लोगो की भीड़ और भीगे हुए नयन,शमसान की सी शांति में कुछ सिसकते बच्चे और बिच में पड़ी हुई दो लाशे,ये वीर ठाकुर और उनकी पत्नी की लाश थी जो एक सडक हादसे का शिकार हो गये थे,वीर ठाकुर पुरे इलाके के सबसे ताकतवर और रुशुखदार व्यति थे,आज पूरा गाव अपने देवता के लिए आंसू बहा रहा था..लेकिन एक शख्स वहा मोजूद नहि था,बाली ठाकर,वीर ठाकुर का छोटा भाई,वीर और बाली की जोड़ी की मिशाले दी जाती थी,दोनों भाइयो कि सांडो सी ताकत वीर का तेज दिमाग और दयालुता न्याय प्रियता और बाली का भाई के लिए कुछ भी कर गुजरने का जूनून इन दोनों को खास बनाता था,

इनके माँ बाप की जमीदार तिवारीओ से खानदानी दुश्मनी थी तिवारीयो ने उन्हें मरवा दिया,लेकिन बिन माँ बाप भी ये बच्चे शेरो जैसे बड़े हुए और जमीदारो के समानातर अपना वजूद खड़ा कर दिया…आज उनका सिक्का पुरे इलाके में चलता था,



वीर की शादी तिवारीयो के परिवार में हुआ था एक बड़े ही तामझाम के साथ और खून की नदियों की बाड में उनकी शादी हुई थी..सुलेखा रामचंद्र तिवारी की बेटी थी,दोनों में प्यार पनपा और वीर ने शादी के मंडप से ही सुलेखा को उठा लिया,इस बात पर खूब खून खराबा हुआ जिसका नतीजा हुआ सुलेखा के सबसे छोटे भाई वीरेंदर की मौत, आखिर कार मुख्यमंत्री के बीच बचाव और रामचंद्र की समझदारी से मामला शांत हो गया,समय के साथ मामला तो शांत हो गया पर दुश्मनी बरकरार रही…बाली लंगोट का कच्चा था जिसका सहारा लेकर तिवारियो अपने गाव की ही चंपा को बाली से जिस्मानी सम्बन्ध बनवाया और आखीर चंपा बाली के बच्चे की माँ बन गयी और उसके माँ बाप ने वीर के आगे गुहार लगायी आखीरकार मजबूरन वीर ने अपने वसूलो का सम्मान करते हुए बाली की शादी चंपा से करा दिया,चंपा ने आते ही अपना रंग दिखाना सुरु किया और बाली को घर से अलग होने के लिए मजबूर करने लगी,बाली ने उसे मारा पिटा और प्यार से समझाने की कोसिस की पर सब बेकार बाली मजबूर था की उसके भाई की इज्जत का सवाल था वरना उसे कव का मर के फेक दिया होता,

वीर ने बाली को परेसान देख उसे अपने से ही लगा हुआ अलग घर बनवा दे दिया और चंपा से वादा किया की वो और बाली अलग अलग काम करेंगे…इस फिसले से किसी को कोई फर्क ना पड़ा क्योकि सभी जानते थे बाली और वीर अलग दिखे पर अलग नहीं हो सकते….



वीर और सुलेखा के 4 बच्चे थे जो इनके प्यार की निसानी थे सबसे बड़ा था अजय फिर सोनल और विजय जुड़वाँ थे फिर निधि ,बाली और चंपा के 2 बच्चे थे पहला उनकी हवास की निशानी किशन और दूसरी मजबूरी की निशानी रानी…तो क्रम कुछ ऐसा था की=अजय फिर 2 साल छोटे सोनल विजय फिर एक साल बाद किशन फिर एक साल बाद रानी फिर 2 साल बाद निधि…

अजय में पूरी तरह से वीर के गुण थे अपने भाई बहनों पे अपनी जान छिडकता था वही विजय और किशन बाली जैसे थे अपने भाई की हर बात को सर आँखों पर रखते थे,विजय तो पूरा ही बाली जैसा था अपने चाचा की तरह ही भाई भक्त और ऐयाश और बलशाली…

इस सन्नाटे में ये सब बच्चे ही थे किनके सिसकियो की आवाजे आ रही थी,बाली बदहवास सा आया और अपने भाई भाभी की लाश देख मुर्दों सा वही बैठ गया जैसे उसे समझ ही ना आ रहा हो क्या हो गया,अचानक से ही किशन और रानी अपने पापा को देख रो पड़े और बाली की और दौड़ पड़े की चंपा ने उन्हें पकड़ लिया और खीचते हुए ले जाने लगी,"अरे इतने काम पड़ा है घर का तुम लोग यहाँ तमाशा लगा रहे हो जो मर गया वो मर गया अब चलो यहाँ से "



चंपा के ये बोल बाली को जैसे जगा गए उसकी आँखों में अंगारे थे,वो गरजा जैसे शेर को गुस्सा आ गया हो सारा गाव बार डर से कपने लगा,"मदेरचोद तेरे ही कारन मैं अपने भाई भईया से अलग रहा ,मेरे भाई ने तुझ जैसी दो कौड़ी की लड़की को इस घर की बहु बना दिया नहीं तो तुझ जैसी के ऊपर तो मैं थूकता भी नहीं,तेरे कारन मैं अपने भातिजो से नहीं मिल पता आज तक तुझे मेरे भाई ने बचाया था देखता हु आज तुझे मुझसे कोन बचाता है," बाली ने पास पड़ी कुल्हाड़ी उठाई,और चंपा की तरफ दौड़ गया,उसको रोकने की हिम्मत तो किसी में नहीं थी…उसने पुरे ताकत से वार किया.लेकिन ये क्या,,एक हाथ कुल्हाड़ी की धार को पकड़ के रोके है बाली ने जैसे ही उस शख्स को देखा उसका गुस्सा जाता रहा,वो अजय था,

बाली को उसकी आँखों में वही धैर्य वही तेज दिखा जैसा उसे वीर की आँखों में दिखता था,आज अचानक ही जैसे अजय जवान हो गया हो,

'चाचा,चाची मेरा परिवार है,मेरे भाई बहन मेरे परिवार है ,इनपे कोई भी हाथ नहीं उठा सकता ,आप भी नहीं ,अब मेरे पापा के जाने के बाद मैं इनकी जिम्मेदारी लेता हु 'अजय का इतना बोलना था की बाली उसके पैरो को पकड कर रोने लगा,

'मेरे भईया ,मेरे भईया वापस आ गए ….'सारे गाव के आँखों में चमक आ गयी सभी बच्चे दौड़ते हुए अजय से लिपट कर रोने लगे चंपा स्तब्ध सी अपने जगह पर खड़ी थी ,उसने मौत को इतने करीब से छूकर जाते देखा की उसकी रूह अब भी काप रही थी ,और अजय ,अजय एक शून्य आकाश में देखता लाल आँखों से अब आंसू सुख चुके थे ,मन बिक्लुत शांत था और चहरे पर दृढ़ता के भाव उसके द्वारा ली जिम्मेदारी का अभाश दिला रहे थे ,…..
 
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अध्याय 2
वक़्त को गुजरते देर नहीं लगी अजय अब *** का हो चला था ,उनका पालन पोषण उनकी माँ समान सीता मौसी ने किया बच्चो और पति से चंपा की दूरी बरकरार थी पर वो किसी से कुछ नही कहा करती ,उसने अजय से माफ़ी मांगने की कोसिस की पर हिम्मत ही नही जुटा पाई,बाली और अजय ने पूरा काम मिला लिया था ,पर अजय बाली को कुछ करने नहीं देता बस सलाह लेता था ,घर का कोई लड़का पढ़ नहीं पाया इसलिए अजय अपनी बहनों को ही पढ़ना चाहता था ,सोनल और रानी को उसने कॉलेज की पढाई के लिए बड़े शहर भेज दिया था ,वहा एक घर भी खरीद दिया था ताकि उन्हें कोई भी तकलीफे ना हो ,और एक काम करने वाली भी साथ में भेजी गयी थी ,वही निधि अभी स्कूल में थी ,निधि अजय के सबसे करीब थी ,अजय के साथ ही सोना ,खाना यहाँ तक की नहाना तक अजय के साथ ही करने की जिद करती थी,अजय की वो जान थी इसलिए सबसे जिद्दी और नकचड़ी भी थी ,शरीर तो जवान हो चूका था पर उसका बचपना अभी भी बाकि था ,और वही अजय को भी पसंद था ,सभी भाई बहन उसे बहुत जादा चाहते थे और पूरे घर की लाडली निधि ने अजय से शहर जाने से साफ इंकार कर दिया ,वो अजय को किसी भी हाल में नहीं छोड़ना चाहती थी ,इसलिये अजय ने रूलिंग पार्टी को फंड देकर अपने गाव में ही कॉलेज खुलवाने का फैसला किया ,पर सरकार तिवारियो के भी दबाव में थी इसलिए फैसला हुआ की कॉलेज दोनों गांवो में ना खोलकर पास के कस्बे में खोला जाय….विजय और किशन दोनों बिलकुल देहाती और एयियाश हो चले थे पुरे के पुरे बाली पर गए थे ,पर किशन बाकि दोनों भाइयो की अपेक्षा थोडा कमजोर था,और अपने माँ के थोडा करीब भी था ,पर दोनों अजय के भक्त थे जो अजय कहे बिना सोचे करना ही उनका काम था ,चाहे किसी को मारना हो या मार ही देना हो ,



इधर तिवारियो का मुखिया रामचन्द्र अभी भी जिन्दा था पर कभी अपने नाती नातिन की सकल भी देखने नहीं गया ,गजेन्द्र उसका बड़ा बेटा था जिसने उसके पुरे कारोबार को सम्हाल लिया था ,गजेन्द्र के दो बच्चे थे और और उसके छोटे भाई महेंद्र के तीन इंट्रो बाद में होगा सबका ,गजेन्द्र अपने भाई अविनाश की मौत का बदला लेबा चाहता था और ठाकुरों को पुर्री तरह तबाह कर देना चाहता था ,जिसने उनकी छोटी बहन और भाई को छीन लिया ,पर रामचंद की सोच ऐसी नहीं थी इसलिए दोनों में जादा बनती नहीं थी ,

कहानी शुरू करते है आम के बगीचे से ,ये आम का बगीचा ठाकुरों का था और एक बड़े इलाके में फैला हुआ था ,और उनके खेतो से लगा हुआ था ,सुखी पत्तियों पर किसी के दौड़ाने की आवाजे और साथ में घुंघरू की आवाजे उस शांत माहोल में दूर तक फ़ैल रही थी ,वही किसी लड़की के जोर से हसने की आवाजे आई और ,

'हाय से दयिया ,ठाकुर जी आज इतने बेताब काहे है ,'रेणुका ने एक पेड़ पर खुदको छुपाते हुए कहा ,

'आजा मेरी रानी कल रात को भी तेरी माँ उठ गयी थी साला अब सबर नहीं होता ,'विजय ने दौड़ के उसे पकड़ने की कोसिस की पर ना कामियाब रहा ,



'अब कोई दूसरी ढून्ढ लो ,आज मुझे देखने लड़के वाले आ रहे है ,मेरी शादी हो गयी फिर क्या करोगे ,और इतना खोल दिया है आपने अपने पति को क्या दूंगी ,'विजय ने उसे पीछे से दबोच ही लिया ,और उसके चोली को फेक कर उसके उजोरो को मसालने लगा ,रेणुका भी मतवाली हो गयी वो विजय के ही हम उम्र थी और उस सांड को अपने चौदहवे सावन से झेल रही थी,विजय के सम्बन्ध ऐसे तो कई लडकियों से थे पर रेणुका उसकी खास थी ,और घर में काम करने वाले नौकर की बेटी थी ,

'अरे मेरी जान तू चली जाएगी तो मेरा क्या होगा ,तू ही तो है जो मुझे सही तरीके से झेल लेती है,'विजय अब अपने हाथ से घाघरे का नाडा खोल रहा था ,गाव की लडकिया कोई अन्तःवस्त्र नहीं पहनती थी,तो घाघरा खुलना यानि काम हो जाना ,



'अरे छोडो छोटे ठाकुर मेरी शादी तो अजय भईया करा के रहेंगे ,ये मछली तो आप के हाथ से गयी ,आह कितना बड़ा है ,पता नहीं शादी के बाद मैं क्या करुँगी ,आःह आअह्ह्ह्ह ठाकुर ,विजय अपना लिंग उसकी बालो से भरी योनी में रगड़ रहा था पर अन्दर नहीं डाल रहा था,वो लडकियों को गरम करने के बाद ही अपना काम करता था,उसने अपने हाथो से उसके ऊपर का कपडा भी खोल दिया ,और उसके शारीर को पीछे से चुमते हुए निचे उस करधन तक आया जो उसने ही रेणुका हो दिया था ,

'आआअह्ह्ह मार डाआआअ लोगे क्या 'विजय अपनी जिब से उसके भारी निताम्भो को चाटने लगा,और मुह आगे बड़ा कर उसके योनी में जीभ घुसा दि ,



'आआह्ह्ह आअह्ह्ह्ह अआह्ह्ह हूमम्म विजय ,'योनी को भरपूर गिला करने के बाद रेणुका को उठा के एक पेड़ के निचे बिछे चादर में ले जा लिटा दिया ,और उसके पैरो को अपने कंधे में रखता हुआ अपना पूरा लिंग एक बार में ही उसके अंदर कर दिया ,

'ईईईईई माँआआअ 'एक चीख पुरे वातावरण में फ़ैल गयी और धक्को की आवाजे सिस्कारियो और चपचप की आवाजे एक लयबद्ध रूप से आने लगी ,ये तूफान तब तक चला जब तक की रेणुका कई बार अपने चरम को पा चुकी थी और विजय अपनी सांड सी ताकत से उस मांसल और बलशाली लड़की के आँखों से आंसू नहीं निकल दिया ,विजय अपने चरम पर उसके उजोरो को अपने दांतों से काट लिया और उसके अन्दर एक लम्बी और गाढ़ी धार छोड़कर उसके ऊपर ही सो गया ,रेणुका के आँखों में आंसू तो थे पर चहरे पर अपरिमित सुख झलक रहा था ,उसने अपने बांहों में विजय को ऐसे पकड़ा था जैसे वो उसे कभी नहीं छोड़ेगी,
 
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अध्याय 3
विजय जब घर पहुचता है तो वह रेणुका की माँ और लड़के वाले बैठे होते है ,बड़े से कमरे में,बीचो बीच एक बड़े से सोफे पर अजय बैठा होता है,बाकि सब हाथ मोडे छोटी छोटी खुर्सियो में बैठे होते है ,तभी विजय वह पहुचता है,..

विजय लड़के को देखता है ,'साला चुतिया,ये मेरी रेणुका को क्या संतुस्ट करेगा,'विजय मन ही मन उस पतले दुबले से लड़के को देख कर बोलता है,

'तो आप बताइए लड़की आपको पसंद है ना,'अजय लड़के के पिता को देखते हुए कहते है,



'ठाकुर साहब ये आप क्या कह रहे है,आप तो हमारे लिए भगवान है,आपका हाथ जिस लड़की पर है उसे हम कैसे मना कर सकते है,'लड़के के पिता ने थोडा डरते हुए कहा ,

'हम्म्म ठीक है ,तो शादी की तारीख तय कर लो क्यों मौसी क्या कहती हो ,'अजय ने सीता मौसी की तरफ मुह कर पुचा जो उस समय पास के सोफे में बैठी सुपारी काट रही थी ,

'हा कर दो लेकिन एक शर्त है,रेणुका कही नहीं जाएगी ,इस लड़के को यही नौकरी पर रख लो ,अगर ये भी चली गयी तो इसकी माँ का क्या होगा ,बेचारी का पति भी नहीं है,अकेले हो जाएगी क्यों रे,और तेरे तो 3 बेटे है ,ये निकम्मा यहाँ काम भी कर लेगा ,'मौसी ने लड़के के बाप को देखते हुए कहा,



'और ऐसे भी (विजय को देखते हुए ) रेणुका जो काम करती ही वो कोई नहीं कर सकती ना ..' विजय के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी जिसे अजय ने भी देख लिया उसे और मौसी को उसके सभी करतूतों का पता होता था ,पर इसे वो जाहिर नहीं होने देते थे,

'जैसा आप कहे मौसी जी ,ये बनवारी आज से आपका हुआ ,आप जब कहे शादी कर देंगे ,'अजय ने पंडित से तारीख निकलने को कहा और वह से उठ कर चल दिया ,सभी हाथ जोड़े खड़े हो गए ,मौसी को छोड़ …

'मौसी बहुत बहुत धन्यवाद आपका आपने मेरी बेटी का जीवन सवार दिया,'रेणुका के माँ के आँखों में पानी आ गए थे ,

'अरे तू भी ना रे विमला ,रेणुका मेरी भी तो बेटी है ना,और विजय सारी जिम्मेदारी तुझे ही उठानी है शादी की ,पूरी तयारी अच्छे से होनी चाहिए 'सभी चले जाते है बस विजय और मौसी वह रह जाते है,

विजय मौसी के गोद में जा कर लेट जाता है ,

'मौसी जी थैंक् आपने तो रेणुका को यही रख लिया ,'



'अरे मेरे छोटे ठाकुर ,क्या मुझे पता नहीं की वो तुम्हारी जरुरत है ,और मेरा तो काम ही है तुम्हारी जरूरतों को पूरा करना ,बस अपने भाई के इज्जत में कालिक मत पोतना,नहीं तो अजय सब सहन करेगा पर इज्जत से खिलवाड़ नहीं,जो करना देख के ही करना ,"

विजय उठकर मौसी के गालो को चूम लेता है ,और वहा से भागता हुआ चला जाता है ,मौसी हस्ती हुई सुपारी कटते रहती है ,

"पागल लड़का "मौसी के मुह से अनायास ही निकल पड़ता है,

 
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अध्याय 4
एक शांत कमरा जो अजय ने अपने पढाई के लिए ही बनवाया था,जिम्मेदारियों के भोझ तले वो खुद तो नहीं पढ़ पाया पर उसे पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए उसने अपने घर में एक लिब्रेरी बनवा रखी थी,वो वह बैठ के पढ़ा करता था ,वो चाहता था की उसके छोटे भाई भी वहा पढाई करे पर किसी को इसमें कोई खासी दिलचस्पी ही नहीं थी,अजय बड़े ही मन से एक पुस्तक पढने में लगा था की किसी की पायल की आवाज से उसका धयान भंग हुआ ,वो समझ चूका था की ये निधि ही होगी ,निधि छमछम करते उसके पास आती है उसे देखकर अजय के चाहरे पर एक मुस्कान आ जाती है,निधि एक लहनगा चोली पहने हुए थी ,और किसी गुडिया की तरह सुंदर लग रही थी ,आज जरुर किसी के कहने पर उसने ये रूप लिया होगा ,अजय के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी ,16 साल की निधि का शारीर अपने यौवन के उचाईयो पर था पर दिल और दिमाग से वो किसी बच्चे की तरह मासूम थी ,खासकर अपने भाइयो के सामने ,उसका मासूम सा चहरा देख अजय के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी ,वो देख रहा था की कैसे निधि बड़ी मुस्किल से अपने लहंगे को सम्हाल रही थी,वो देहाती लहंगा जो शायद रेणुका का लग रहा था ,उसके लिए आफत ही था पर बड़ी ही उम्मीद से वो उसे पहने हुए अपने भाई को दिखने आ रही थी ,अजय ने अपनी किताब पर एक पेन रख कर उसे बंद किया और उसकी और मुड कर उसे देखने लगा .वो उसके पास पहुची तब तक निधि के चहरे में भी एक मुस्कान ने जन्म ले लिया था,

'भईया देखो मैं कैसे लग रही हु ,'एक उत्सुकता और चंचलता से निधि ने पूछा ,



'ये क्या नया शौक चढ़ा है तुझे ,'अजय उसी मुस्कान से अपनी सबसे लाडली और प्यारी बहन को देखते हुए कहा,

'बताओ ना भाई ,कितने मुस्किल से पहन कर आई हु और आप 'निधि थोड़े गुस्स्से में आते हुए बोली

'अरे मेरी प्यारी बहना ,तू जो भी पहन लेगी वो अच्छा ही होगा ना ,बहुत प्यारी लग रही है ,'अजय उसके गालो पर एक हलकी सी चपत मरते हुए बोला ,निधि उछल पड़ी

'भईया जानते हो मैं ना यही पह्नुगी रेणुका दीदी की शादी में ,'

'हम्म्म अभी से तयारी और ये देहाती वाला लहंगा क्यों पहनेगी मेरी बहन,तेरे लिए तो शहर से डिजायनर लहंगा ला देंगे,खरीददारी करने शहर जाना है ना ,'अजय की बात सुनकर निधि फिर उछल पड़ी ,

'सच्ची भईया,'



'हा और रानी और सोनल को भी तो लाना है ना ,'

'वाओ' निधि उछल कर अजय के गले लग जाती है,जब वो थोड़ी सामान्य होती है तो अजय से दूर होती है ,

'तो भईया इसे मैं दीदी को वापस कर देती हु,'अजय को हसी आ जाती है ,

'तो ये रेणुका का है ,'

'हा तो और क्या मैं भी अब बड़ी हो गयी हु ,मैं भी अब दीदी की शादी में लहंगा पहनूंगी 'निधि फिर से सम्हालते हुए बहार निकलने लगी तभी किशन अंदर आता है ,निधि को ऐसे चलता हुआ देख वो हस पड़ता है ,



'अरे बहना ,पहले ढंग से सम्हाल तो ले फिर शादी में पहनना ,'किशन की बात से निधि को गुस्सा आ जाता है ,

'मैं सम्हाल लुंगी समझे ,बड़े आये आप 'निधि मुह बनाकर वहा से चली जाती है ,किशन हसता हुआ अजय के पास आता है …

'भईया वो बनवारी के बारे में पता कर लिया है ,सीधा साधा लड़का है ,'

'ह्म्म्म ठीक है फिर उसे भी घर में रख सकते है ,और एक दो दिन में ही शहर जायेंगे,रानी और सोनल को लाने और समान भी खरीद लायेंगे ,सबके कपडे वगेरह ,तू चलेगा ,'

'भईया यहाँ भी तो किसी को रहना पड़ेगा ना ,विजय भईया जाने को कह रहे है तो मैं यही रह जाऊँगा ,

'ठीक है फिर ,दो गाड़िया जाएँगी और दो ड्राईवर ,तीन नौकर और 5-6 पहलवान भी रहेंगे किसे भेजना है देख लेना ,'

'ठीक है भईया ,'अजय फिर से अपने किताब को उठा कर उसमे खो जाता है …..
 
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अध्याय 5
अजय अपने कमरे में कसरत कर रहा होता है ,रात सोने से पहले उसे व्ययाम की आदत थी उसका विशाल सीना घने बालो से ढका हुआ था ,भुजाओ की गोलाई और चौड़ाई किसी पहलवान की तरह थी,बिक्लुल सपाट पेट जिसमे 6पेक वाली धरिया साफ़ दिख रही थी,

उसका रूम किसी राज महल के विशाल कक्ष जैसे बड़ा था,जहा पर एक कोने में कसरत के कुछ समान रहे थे,आदमकद का शीशा लगा था जिसपर से उसे अपने आप को देखने की सुविधा होती थी ,अजय अपने में सम्मोहित सा दर्पण में अपने को घुर रहा था और पसीने से भीगा हुआ उसका बदन कमरे की दुधिया रोशनी में चमक रही थी,भार उठाने पर उसकी मसपेशिया फुल सी जाती थी जिससे उसकी विशाल काया और भी विशाल हो जाती थी ,अपनी ताकत को वो वह पूरी तरह से खपाने में आमादा था,जैसे इसके बाद दुनिया खत्म ही हो जानी है,तभी उसे हलके हलके से किसी पायल की आवाज आई जिससे उसके चहरे पर एक मुस्कान घिर गयी ,वो जानता था की ये पायल किसकी है ,उसने मुड़कर देखा निधि उसकी ओर ही बढ़ी आ रही थी ,निधि ने एक झीनी सी सफ़ेद कलर की nighty पहन रखी थी जो पूरी तरह से पारदर्शी था और उसका साचे में ढला बदन उसे साफ़ साफ दिखाई दे रहा था ,वो पगली कभी अन्तःवस्त्र भी तो नहीं पहनती थी ,अजय की नजर जब उसके मादक शारीर पर गयी तो उसने अपना सर पकड़ लिया और मन में ,



"ये लड़की कब बड़ी होगी ,इतना बड़ा कमरा बना के दिया हु इसे और ये मेरे पास ही सोती है,इतनी बड़ी हो गयी है और ऐसे कपडे पहन के घुमती है,इसे कब शर्म का आभास होगा,कब इसे पता लगेगा की वो अब बच्ची नहीं रह गयी है ,क्या उसे सचमे नहीं पता ,नहीं ऐसा तो नहीं है ,सभी तो कहते है की गुडिया बड़ी हो गयी है समझदार हो गयी है,पर मेरे ही सामने ये क्यों बच्ची बन जाती है ,मेरी प्यारी सी गुडिया देखो कितनी खूबसूरत लग रही है ,किसी की नजर ना लग जाए इसे ,इतनी प्यारी इतनी नाजुक है मेरी बच्ची,कैसे दूर कर पाउँगा इसे ,लेकिन कब तक आज नहीं तो कल तो इसे किसी और की होना ही है ना,फिर क्या करूँगा कैसे रहूँगा इसके बिना ,नहीं कुछ भी हो जाए मैं इसे अपने से अलग नहीं करूँगा ,पर एक भाई का फर्ज भी तो अदा करना है ना मुझे ,"अजय के आँखों में पानी आ गया था,जिसे देख निधि मुस्कुरा पड़ी उसे पता था उसका भाई उसे देख के ही उसके लिए प्यार से भर गया है,अजय कितना भी बलशाली क्यों ना हो और कितना भी गंभीर क्यों ना हो वो हमेशा अपने बहनों के लिए और खाशकर निधि के लिए बहुत ही नर्म दिल का था निधि ने उसे कई बार अकेले में रोते हुए देखा था,या ये कहे की सिर्फ निधि ने उसे रोते हुए देखा था,क्योकि अजय और किसी के सामने नहीं रोता,पर निधि ही उसके सबसे करीब थी और निधि ही उसके पास अधिकतर समय गुजरती थी ,माँ बाप के मौत के बाद से निधि के लिए उसका भाई ही उसकी जिंदगी था ,पता नहीं क्यों इतने बड़े हो जाने पर भी निधि को उसके साथ रहने पर निधि की समझदारी जाती रहती है और वो बच्चो जैसे हो जाती है ,जबकि निधि में बहुत समझदारी थी वो इतनी भी भोली नहीं थी जीतनी वो दिखाती थी ,

"भईया आप क्यों रो रहे हो ,"निधि ने मजे लेने के लिए कहा

"मै कहा रो रहा हु,और तू ऐसे कपडे क्यों पहन के घूम रही है ,अब तू बड़ी हो गयी है समझी "अजय को अपनी आँखों से बहते मोती का आभास हो गया और उसने अपने हाथो से उसे पोछा,



"कहा घूम रही हु आपके ही पास तो आ रही हु अपने कमरे से और बाजु में तो है आपका कमरा,और मैं अभी बच्ची हु समझ गए ना आप ,मुझे बड़ी नहीं होना है और आपके लिए तो कभी भी नहीं ,"निधि की प्यारी प्यारी सी आवाज ने अजय के चहरे पर एक मुस्कान फैला डी ,सच में कितनी प्यारी है मेरी बहना…

"अच्छा अब तो तेरी शादी करने की उम्र हो गयी है मेरी बच्ची जी ,"अजय पुलअप मारते हुए कहा,निधि ने बुरा सा मुह बनाया और अजय के कमर को पकड लिया और उसमे झूल गयी अजय के लिए तो निधि फूल सी थी वो उसे भी अपने साथ ऊपर उठा लिया जिससे निधि को बहुर मजा आने लगा ,मगर 6-7 बार के बाद अजय की हिम्मत जवाब देने लगी वो उतरने वाला था पर निधि ने उसे टोक दिया,

"भईया मजा आ रहा है करते रहो ना "अजय अपनी बहन की बात को कैसे टाल सकता था,वो फिर पुलअप करना सुरु किया 10 लेकीन निधि का मन नहीं भरा था 15 अजय के बाईसेप और सोल्डर में दर्द भर चूका था मसल्स में तनाव बाद रहा था जैसे अभी ही फट जाने को है ,वो सामान्यतः 10-15 के रेप लेता था पर निधि का वजन भी काफी था,लेकिन अजय की हिम्मत नहीं टूटी उसने आँखे बंद की और एक गहरी साँस लेकर पूरी ताकत लगा दि ,उसने महसूस की निधि की ख़ुशी को उसके चहरे की हसी वो खिलखिलाना जब वो ऊपर जाता है ,उसका वो चहकना अजय के अन्दर पता नहीं कहा से इतनी ताकत आ गयी की वो लगातार पुलअप करने लगा 20,30,अजय के मसल्स तनाव में फटने को थे पर अजय को दर्द का कोई भी आभास ही नहीं हो रहा था,उसके चहरे पर एक मुस्कान थी और आँखे बंद थी वो निधि के चहरे को निहारे जा रहा था ,अचानक की निधि ने अजय की हालत देखि और अपने जिद पर उसे बड़ा दुःख हुआ अजय के एक एक नश जैसे फटने वाले हो वो तुरंत अजय को छोड़ डी और अजय को भी रोक दिया अजय जब निचे उतरा उसका हाथ पूरी तरह से अकड़ गया था,निधि ने उसका हाथ सीधा करना चाहा तो अजय के मुख से एक आह निकली ,निधि के आँखों में पानी आ गया वही अजय को अपनी गलती का आभास हो गया की उसकी बहन डर गयी है ,और उसने दर्द की जगह अपने चहरे में मुस्कान ला लिया ,और निधि की आँखों के पानी को अपने हाथो से साफ़ करने के लिए आगे बढ़ाया,पर निधि ने उससे पहले ही अजय के सीने में आ चिपकी…



"दर्द दे रहा था तो बोले क्यों नहीं ,भईया आप कैसे करते हो कितने गंदे हो "निधि उसकी छाती में मुक्के मरने लगी ,अजय के पसीने से उसका चहरा भी गिला हो गया ,वो उसके शारीर से चिपकी और उसका शारीर अजय के पसीने से गिला होने लगा ,वो अजय से आते मर्दाना खुसबू के आभास में डूबी हुई अजय को और जकड ली,ये खुसबू उसके लिए मर्द होने की निशानी था ,उसके भाई की निशानी था,जो उसे बहुत पसंद थी ,अजय दर्द को नजर अंदाज करता हुआ अपने अपने हाथो को निधि के सर पर रखा,

"मेरी बहन कुछ बोले और मैं उसे पूरा ना करू ऐसा हुआ है क्या कभी ,"अजय उसके सर को चूमता है,और निधि को अलग करता है ,

"चल अब मैं नहा के आता हु ,जल्दी सोना है आज कल फिर शहर जाना है,"निधि भी मुस्कुराते हुए अजय से फिर चिपक जाती है ,रुको ना अच्छा लग रहा है ,अजय उसके सर में हाथ फिरता है ,

"पूरी रात तो लिपट के ही सोएगी ना अब नहाने दे ना बहन ,"निधि मुस्कुराती हुई अलग होती है और अपनी एडी उठा कर अपने भाई के गालो पर एक किस कर लेती….
 
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अध्याय 6
दूसरे दिन सभी लोग शहर की ओर निकल पड़े निधि अजय और विजय के साथ एक गाड़ी में कुछ लठैत भी थे, अजय सोनल और रानी को सरप्राइस देना चाहता था इसलिए सीधे घर न जाकर वह एक होटल में रुक गए, निधि ने शहर में pab के बारे में बहुत सुन रखा था, उसने अजय और विजय से एक डिस्को में चलने की इजाजत मांगी अजय को उसको इनकार करते भी ना बना, दिन भर के थके होने के कारण wo सो गए और शाम को तैयार होकर पास के ही एक डिस्को में चले गए, निधि एक जींस टॉप पहनी थी जिसमें उसका शरीर बहुत ही आकर्षक लग रहा था,



इधर सोनाला रानी अपने कुछ दोस्तों के साथ एक डिस्को में बैठी हुई इंजॉय कर रही थी, उसकी एक दोस्त किसी लड़के को बड़े देर से घूरे जा रही थी, सोनल ने उसे देखते ही उसकी नजर का पीछा किया कोई 6 फुट 2 इंच का लंबा चौड़ा गबरु जवान लड़का जो पीछे से बहुत ही हैंडसम लग रहा था सोनल समझ गई की खुशबू उसी लड़के को देख रही है, उसने खुशबू को कोहनी मारते हुए कहा,

" क्या बात है मेरी जान तू तो कभी किसी लड़के को भाव भी नहीं देती और आज घूरे जा रही है,"

" क्या करूं यार लगता है उस लड़के से मुझे प्यार हो गया इतना हैंडसम असली मर्द लग रहा है," सोनल ने उसका चेहरा देखना चाहा पर नाकामयाब हुई, कुछ ही देर में एक हट्टा-कट्टा भारी भरकम शरीर का लड़का बार के काउंटर पर जोर से गिरा वहां मौजूद सभी लोगों का ध्यान उसकी तरफ ही चला गया, सोनल और रानी मुंह खोल कर उन्हें देख रहे थे, वही खुशबू एक सम्मोहित निगाह से उस लड़के को देख रही थी जिसने उस भारी भरकम लड़के को बार के काउंटर पर पटक दीया था, wo wahi लड़का था जिसे खुशबू इतनी देर से घूरे जा रही थी, अनायास ही सोनल और रानी के मुंह से निकला "भैया…."



डिस्को में आते ही निधि अपनी मस्ती में झूमने लगी वही अजय और विजय पास ही बार में बैठे चुस्कियां लेने लगे, तभी किसी लड़के ने आकर निधि को छेड़ना शुरू कर दिया जिसे देख अजय का खून खौल गया, अजय ने सीधा जाकर उस लड़के को उठाकर बार के काउंटर में पटक दिया, पास खड़े कुछ और लड़के जो कि उनके ग्रुप के थे वहां आ गए लेकिन अजय और विजय के सामने कौन टिक सकता था, उनकी ताकत के आगे सभी छोटे लग रहे थे, जब तक लड़ाई खत्म हुई निधि ने सोनल और रानी को देख लिया था वह दौड़ कर उनके पास गई और उनसे लिपट गई, जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता हो कि उनके भाई लड़ रहे हैं, वह जानती थी कि अजय और विजय को हराना किसी के बस की बात नहीं..

दोनों ने मिलकर सबकी हड्डियां तोड़ दी वहां खड़े सोनल के दोस्त जिनमें कुछ लड़कियां और कुछ लड़के थे आंखें फाड़े उन्हें देख रहे थे, अजय और विजय भी अब उनके पास आ गए थे.. सोनल और रानी दौड़ कर उनसे लिपट गए, सोनल को अजय का कपड़ा देख कर समझ आ गया यह वही लड़का है जिसे खुशबू ghur रही थी,

" भैया आप लोग यहां" सोनल ने अजय से लिपटते हुए पूछा,



" हां बहन रेणुका की शादी है और हम तुझे सरप्राइज देना चाहते थे इसलिए पहले घर नहीं आए लेकिन तुम तो यही मिल गई"

" भैया मुझे आपको किसी से मिलाना है," सोनल अजय और विजय को अपने दोस्तों के पास ले गई और सब से मिलवाया खुशबू अभी भी अजय को घूर रही थी, सोनम ने हल्के से उसे कोहनी मारी थोड़ी देर बाद सब जाने को हुए, तो खुशबू ने सोनल को थोड़ी देर के लिए अपने पास रोक लिए,

" यार तेरे भैया तो बहुत हैंडसम है, मैं तो लगता है उनकी दीवानी हो जाऊंगी क्या नाम है तेरे भाई लोगों ka,"



" जिनकी तो दीवानी हो रही है वह अजय है अजय ठाकुर और छोटे भैया विजय विजय ठाकुर, चल अब जा रही हूं देर हो रही है भैया राह देख रहे होंगे,तू भी चल ना हमारे साथ "खुशबु कुछ सोचते हुए ना में सर हिलाया , सोनल तो वहां से चले गई पर दोनों का नाम सुनते ही खुशबू की आंखों में पानी आ गया उसकी आंखें लाल हो गई जैसे खून उतर आया हो, खुशबू बस उनको जाते हुए देखने लगी और सोचने लगी, जिंदगी में पहली बार किसी से प्यार हुआ कोई लड़का पसंद आया किसी को दिल दिया मोहब्बत की उसे अपना बनाना चाहा पर किसे, अपनी बुआ के लड़के को उस लड़के को जिसके खून के प्यासे मेरे घरवाले है, उस लड़के को जिस के परिवार ने मेरे मां-बाप को रुलाया, जिसके पिता ने मेरे चाचा को मारा खुशबू रोती हुई और अपने आंखों में पानी की धार लेते hui वहीं बैठ गई…………….
 
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अध्याय 7
सभी शहर वाले घर आ जाते है ,सोनल और रानी बहुत खुस थे की रेणुका की शादी लग गयी है और वो घर में ही रहेगी ,तीनो बहन मिलकर समान की लिस्ट बनाते है,अजय का शहर वाला घर भी काफी अच्छा था,अजय किशन या विजय को वहा भेजना चाहता था ,ताकि शहर का कारोबार भी देखा जा सके पर दोनों को गाव से ही प्यार था ,और उनकी मस्तिय भी गाव में ही चल सकती थी ,अजय अपने भाइयो पर बेवजह का बोझ भी नहीं डालना चाहता था,आखिर सब खाना खाने बैठे,सोनल और रानी ने अपने हाथो से खाना बनाया था,

"भाई कैसा है खाना ,"सोनल बड़े ही प्यार से अजय से पूछ रही थी,

"हम्म बढ़िया है,"अजय थोडा गंभीर लग रहा था जैसा वो हमेशा ही लगता था,



"हमें भी पूछ लिया करो मैं भी तो तेरा भाई हु,"विजय ने हलके से कहा सोनल उसे आँखे दिखने लगी

"तुझे तो जो भी दे दो बस रेणुका के हाथ का ही अच्छा लगता है "सोनल धीरे से उसे कह गयी ,विजय जैसे उछल गया और चुप रहने का इशारा किया रानी और सोनल दोनों हस पड़े वही निधि एक अजनबी निगाहों से उन्हें देखने लगी,अजय ने सुना तो सब और समझा भी सब पर कुछ प्रतिक्रिया नहीं दि ,

"सोनल तुम पड़ी लिखी हो और समझदार भी हो गयी हो ,पर मैंने सोचा नहीं था की तुम यु डिस्को में बैठी शराब पीती हुई मिलोगी,और वो लड़के लडकिया तुम्हारे दोस्त है ,कैसे कपडे पहने थे उन सबने ,देखो मैं तुम्हे डाट नहीं रहा हु बस तुम लोग अब बड़ी हो गयी हो और अपना अच्छा बुरा समझती हो मुझे कहने का यु तो कोई हक़ नहीं है पर ,…"अजय का इतना बोलना था की सोनल फफक कर रो पड़ी वही रानी की भी सुबकिया अजय को सुनाई दि ,उसे इस बात का इल्म ही नहीं था की वो कुछ गलत बोल गया है ,उसने सर उठा कर अपनी बहनों को देखा सोनल तो रो रही थी और निधि उठकर उसके पास जा चुकी थी और उसे दिलशा दे रही थी,सोनल सुबकते हुए बोल पायी

"भईया आप ऐसे क्यों बोल रहे हो की हम पर आपका कोई हक़ नहीं है,क्या हम शहर में रहकर पढाई करते है तो हम आप के लिए पराये हो गए ,भईया आप हमारे लिए भगवन हो ,आपने हमें पाला पोसा है ,आप ही हमारे बाप हो और माँ भी आप ने हमें कोई भी दुःख नहीं होने दिया ,अपनी हर खुशियों को हमारे बाद ही समझा है ,आपको क्या लगता है की हम पढ़ लिख कर ये सब भूल जायेंगे ,हम जाहिल नहीं है भईया जो आपने किया उसे भूल जाय ,और आप ऐसे क्यों बोल रहे हो ,आपको बुरा लगा तो हमें डाटो मरो पर पराया मत करो भईया ,"सोनल बड़ी मुस्किल से ये बोल पायी की अजय को भी ये अहसास हो चूका था की वो कुछ गलत बोल गया है,वो उठा और सोनल और रानी को एक साथ अपनी बांहों में भर लिया दोनों मोम की गुडिया जैसे उसके तरफ खिसकती चली गयी और उसके सीने में समां गयी ये देखकर निधि भी अपने को नहीं रोक पायी और दौड़कर उनसे लिपट गयी ,ऐसे तो विजय का भी बड़ा मन कर रहा था पर अजय के कारन वो वही खड़ा रहा पर सोनल ने अपने हाथो से उसे इशारा किया और वो भी दौड़कर सोनल के पीछे से ही उन्हें अपने बांहों में भर लिया ,थोड़ी देर में जब सब सामान्य हुआ तो सभी अलग हुए लेकिन सोनल अभी भी अजय को जकड़े हुई थी ,अजय सोनल से पहले कभी ऐसे प्यार नहीं जताया था ,असल में रानी और सोनल,किशन और विजय के बहुत ही करीब थे और चारो अजय से थोडा डरते भी थे वही निधि को बस अजय ही समझ आता था बाकियों से वो उतनी घुली मिली नहीं थी ,निधि कभी भी अजय से नहीं डरी,सारे भाई बहान उसे भईया की चमची कहते थे,लेकिन आज अजय की बांहों में सोनल को बहुत सुकून मिल रहा था,वो इसे छोड़ना नहीं चाहती थी,अजय भी अपना हाथ सोनल के सर पर ले गया ,

"सॉरी बहन गलती हो गयी ,मुझे लगा की मेरी बहने शहर आकर बदल गयी होंगी और जैसा वह का माहोल था और जैसे तुम लोग लडको के साथ बैठे थे मुझे सच में तुम लोगो का वह होना अच्छा नहीं लगा ,पर क्या करू बहन मैं एक भाई हु ना वो भी एक जाहिल गाव का लड़का,"सोनल अजय के मुह पर अपना हाथ रख दिया ,



"मेरे भाइयो से जादा अच्छा वहा कोई भी नहीं था,वहा जो लोग थे वो अपने बाप की दौलत उड़ने वाले थे ,पर मेरे भाई तो कई लोगो को आश्रय देने वाले है,भईया हमें माफ़ कर दीजिये हम वहा कभी नहीं जायेंगे ,और भईया हम शराब नहीं पि रहे थे वो एक दोस्त का बर्थ डे था इसलिए चले गए ,और वो सभी लड़के लडकिय मेरे कॉलेज के दोस्त है ,सॉरी भईया ,और आप मेरे भाई सबसे बेस्ट है ,:सोनल अजय के गाल पर एक किस देकर उससे अलग हुई ,रानी भी दौड़कर आई और अजय को किस कर दि ,अजय हलके से मुस्कुरा दिया वही विजय ने सोनल को अपने गाल पर उंगली रखते हुए इशारा किया ,सोनल ने जीभ दिखा के इशारे में हलके से रेणुका कहा और हसने लगी ,ये देखकर निधि ने जाकर विजय को एक किस दे दिया ,विजय बहुत खुश हुआ और सोनल को चिढाने लगा ,तभी निधि बोली

"हमारे भईया सबसे बेस्ट है तभी तो आपकी सब फ्रेंड्स इन्हें लाइन मार रही थी ,और खासकर वो खुसबू कैसे अजय भईया को घुर रही थी ,"निधि ने मुह बनाते हुए कहा ,लेकिन सब थोड़े असहज हो गए जिसे अजय ने महसूस कर लिया था ,

"कौन खुसबू ,"

"वही पिंक कपड़ो वाली "निधि ने फिर चिड़ते हुए कहा ,

"भईया वो मेरी बहुत अच्छी दोस्त है ,वो अपने परिवार के साथ यही रहती है ,"सोनल ने बात सम्हाला

"कौन कौन है उसके परिवार में "अजय ने यु ही पूछ लिया

"उसके माता पिता तो यहाँ नहीं रहते ,उसने बताया की वो विदेश में रहते है यहाँ उसके दो भाई और उसकी एक बहन है,एक भाई अभी छोटा है स्कूल में है वो अपने दादा जी के पास गांव में रहता है ,"अजय सब धयान से सुन रहा था ,

"अच्छा कोण से गांव के है वो "

"वो तो मुझे नहीं पता भईया "

"ह्म्म्म ठीक है ,दोस्तों का चयन हमेशा सम्हाल के करना, जानती हो ना हमारे कितने दुसमन है ,चलो अब सो जाओ कल मुझे किसी से काम है ,पापा के पुराने दोस्त है उनसे मिलाना है ,मैं सोने जा रहा हु और तुम लोग भी जादा बाते मत करना ठीक है ना ,"सब ने सर तो हिला दिया पर वो कहा सोने वाले थे ये तो उन्हें भी पता था ,और अजय को भी ,अजय के जाने के बाद उनकी मस्ती चालू हो गयी लेकिन पहले निधि के जाने का वेट कर रहे थे ,थोड़ी देर में निधि भी बोर होकर अजय के कमरे में चली गयी ,और उसके जाते ही ,



"कैसे रे कमीने अपनी महबूबा की शादी करा रहा है ,"सोनल ने विजय का कॉलर पकड़कर कहा,विजय और सोनल जुड़वाँ थे वही किशन और रानी भी इनके हमउम्र इसलिए इनके बीच कुछ भी छिपा हुआ नहीं था ,खासकर सोनल और विजय के बीच ,

"क्या करू यार मौसी और भईया की बात कोई टाल सकता है क्या ,लेकिन एक चीज तो अच्छी है कि वो अपने पास ही रहेगी "

"यानि तेरी तो ऐश है ,कमीना साला बहुत ही लक्की है तू "सोनल ने हस्ते हुए कहा यु तो रानी को सब कुछ पता था पर वो थोडा असहज महसूस कर रही थी अगर किशन होता तो अलग बात थी ,उसे किशन की बहुत याद आ रही थी,

"दीदी मैं चली सोने आपलोग को शर्म तो है नहीं की छोटी बहन बैठी है,और ऐसे बात कर रहे हो "रानी ने बुरा सा मुह बनाया ,सोनल हस पड़ी वही विजय ने उसे ऊपर से निचे तक घुर के देखा

"ऐसे हमारी छोटी बहन अब बहुत बड़ी हो गयी है ,है ना सोनल "और सोनल को आँख मार दिया ,रानी उसका मतलब समझ कर शर्मा गयी विजय को एक मुक्का मार कर झूठा गुस्सा दिखाते हुए वहा से चली गयी वही सोनल की हसी छुट गयी ,रानी के जाते ही सोनल विजय की बांहों में आ गयी ,विजय सोफे में बैठा था और सोनल उसपर झुक बैठ गयी थी विजय ने उसे अपने बांहों में भर लिया ,और उसके सर को किस किया ,

"निधि कितनी लकी है ना विजय की घर में ही रहती है ,और एक हम है जो अपने भाइयो से मिलने के लिए भी तडफते रहते है ,कितने दिन हो गए तेरी बांहों में नहीं सोयी हु,मुझे तो निधि से जलन होती है कभी-कभी, हमेशा भईया से चिपकी रहती है और हम है भाई के गले लगने के लिए भी सोचते है ,और उनसे डरते है ,

विजय उसके सर को सहलाता है

"भईया से गले लगने को तो मैं भी तडफता हु मेरी जान ,वो देवता है उनकी पूजा करो पर प्यार ना दिखाओ ,और निधि तो बच्ची है ,प्यारी सी गुडिया "सोनल उसे कस लेती है

"हा वो तो अब भी तुम्हारी प्यारी सी गुडिया है ,तुम्हारी प्यारी गुडिया के हर चीज बड़े हो रहे है कभी देखा भी है "विजय उसे एक चपात उसके सर में मार देता है की सोनल आऊ कर जाती है ,

"मैं अपनी गुडिया के देखूंगा ,कामिनी कही की "सोनल फिर हस देती है

"हा हा मेरा राजा भाई तो बहुत शरीफ है ना ,जैसे उसे कुछ पता ही नहीं गाव की ना जाने कितनी लडकियों को तुमने ,….और अभी सरीफ बन रहा है ,हां अब तो तू रेणुका का ही देखता होगा मैं तो भूल गयी थी ,"विजय उसे जोर से जकड लेता है की सोनल के मुह से आह निकल जाती है और वो छूटने के लिए छटपटाने लगती है ,

"आजकल बहुत बोल रही है ,और वो आयटम कौन थी मस्त थी क्या नाम था हा खुसबू ,"सोनल अपना सर उठा के देखती है

"कमीने वो भाभी है तेरी समझे ,"

"अच्छा जैसे भईया उसे घास भी डालेंगे "

"क्यों नहीं डालेंगे ,मैं उसकी मदत करुँगी ना भईया को पटाने में,कब तक मेरे भईया हमारी जिम्मेदारियों के बोझ में दबे रहेंगे हमें भी तो उनके लिए कुछ करना चाहिए ना,और खुसबू से अच्छी कोई हो सकती है क्या ,और मैंने खुसबू की निगाहों में देखा है वो तो बस पगला गयी है भाई को देखकर ,"

"अरे हमारे भईया किसी हीरो से कम है क्या ,चल ठीक है हम भी मदद करेंगे और उसके चरण धो के पियूँगा अगर भईया ने उसे हमारी भाभी मान लिया तो ,चल जान अब सोना है कल भाई जल्दी उठा देंगे पापा के किसी दोस्त से मिलने जाना है ,"

"ओके पर मेरे और रानी के साथ ही सोयेगा तू ,कितने दिन हो गए तुझसे लिपट के सोये हुए ,और जबसे ये रेणुका जवान हुई है मेरे भाई को ही छीन ली "सोनल हलके गुस्से से बोली



"अरे मेरी जान रेणुका क्या कोई भी लड़की मेरे बहनों की जगह नहीं ले सकती समझी चल अब चलते है ,"सोनल मुस्कुरा कर अपने भाई के बांहों से निकलती है और उसके गालो में प्यारी सी पप्पी दे देती है ,विजय भी मुस्कुरा देता है ,

"और ये कोण दोस्त है पापा के जिससे मिलने जाना है ,"

"अरे है कोई बड़ा अजीब नाम है ,बाली काका ने कहा है की मिलके आ जाना ,क्या नाम है ….

हा डॉ चुन्नीलाल तिवारी यरवदा वाले "सोनल आँखे फाडे देखती है

"डॉ चुतिया "

"डॉ चुतिया ये कैसा नाम है "

"अरे बहुत नाम है उनका इस शहर में उन्हें सब चुतिया डॉ कहते है ,कल मिल लेना तुम्हे भी पता चल जायेगा …"सोनल मुस्कुराती हुई विजय का हाथ पकडे अपने रूम में जाती है ….
 
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अध्याय 8
अजय और विजय डॉ चुतिया के क्लिनिक पहुचाते है ,जाने से पहले उन्होंने सभी को तैयार रहने के लिए कहा था ताकि जल्द ही सारी शोपिंग करके पूरा काम निपटा लिया जाय,वो क्लिनिक पहुचते है,एक छोटा सा क्लिनिक था उनका अंदर जाने पर वह कोई भी मरीज नहीं दीखता ,डॉ अपने केबिन में बैठे हुए थे ,अजय केबिन के बहार से ही दरवाजा खोलता है और अंदर झाकता है,डॉ उसे अपने लेपटोप में कुछ काम करते हुए दिखाई देते है,

"क्या मैं अंदर आ सकता हु,"डॉ बिना डॉ उठाये ही कहते है

"हा हा आ जाओ अजय ,"अजय और विजय दोनों आश्चर्य से अंदर जाते है ,एक सावले रंग का पतला दुबला सा शख्स चेयर पर बैठा होता है ,चहरे की आभा उसके ज्ञान को बतला रही थी ,उम्र कोई 40-45 की वही एक 29-30 साल की महिला जो दिखने में सेकेटरी जैसे पोसख पहने थी ,जिसके उन्नत वक्ष उसके तने हुए कपड़ो से बहार आने को बेताब थे और कुलहो के उभार ऐसे थे जिसे देख कर विजय के मुह में पानी आ गया वही अजय थोडा असहज सा हो गया ,



"हा बैठो बैठो "डॉ ने सर उठाते हुए कहा ,

"वाह तो तुम अजय हो और तुम विजय ,बिलकुल अपने बाप पर गए हो ,वीर ठाकुर साले की क्या पर्सनाल्टी थी ,बिलकुल तुम्हारी तरह और बाली तुम तो उसके जीरोक्स लगते हो विजय ,"दोनों डॉ को आश्चर्य से देख रहे थे ,की पापा और चाचा को इतने अच्छे से जानने वाले शख्स को ये जानते ही नहीं ,

"वो डॉ साहब काका ने आपसे मिलने को कहा था ,कोई काम था क्या ,"

"ह्म्म्म काम तो नहीं था बस मैं तुमसे मिलना चाहता था,वीर के जाने के बाद मैं वह कभी नहीं आ पाया ,सोचा उसके बच्चो से ही मिल लू,और तुम्हारी बहने कैसी है ,यही कॉलेज में पड़ती है ना,बाली ने मुझे बताया था,"

"जी यही है ,"अजय ने एक छोटा सा उत्तर दिया वही विजय नजर बचा के उस महिला को देख रहा था जिसे डॉ ने भाप लिया .

"ये मेरी सेकेटरी है ,मेरी मारलो "

विजय को खासी आ गयी ,

"कोई बात नहीं इसका नाम सुनकर सभी को ऐसा ही होता है ,ऐसे तुम इसे मेरी बुला सकते हो,मेरी विजय को थोडा बहार ले जाओ और पानी पिला देना ,देखो पानी ही पिलाना "डॉ और मेरी के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी वही अजय को चिंता होने लगी क्योकि वो विजय को अच्छे से जानता था और ये उनका गाव नहीं था,उनके जाते ही डॉ अजय के तरफ मुखातिब हुआ,

"अजय बात कुछ ऐसी है की मैं तुम्हे विजय के सामने नहीं बता सकता,बात असल में ये है और ऐसी है की मैंने आज तक बाली से भी ये बार छुपा के रखी थी,अब तुम बड़े हो चुके हो और मेरा मानना है की तुम अब समझदार हो तो तुम्हे ये बात बता सकता हु,पर मेरी बात को बड़े ही धयन से सुनना और इसका जिक्र किसी से नहीं करना ,"अजय के चहरे पर चिंता के भाव गहरा गया था,जिस वक्ती को उसने कभी देखा नहीं था वो उसे क्या बताने वाला है जो उसने इतने दिनों तक छिपा रखा था,



"अजय देखो जिस दिन तुम्हारे पापा मम्मी का एक्सीडेंट हुआ था वो मेरे पास ही आ रहे थे "अजय चौक गया ,

"हा अजय बात ऐसी है की ये कोई हादसा नहीं था ,बल्कि सोची समझी चाल थी ,और ये एक मडर था,वो दोनों अकेले ही शहर के लिए निकले है ये बात किसी ने उन्हें बताई थी ,और उन्हें प्लानिंग से एक्सीडेंट कराया गया था,"अजय की आँखे लाल हो चुकी थी वो जानता था की किसने ये बताया होगा और किसने उनका एक्सीडेंट कराया होगा …

"मैं जानता हु डॉ ये किसने किया होगा ,ये मेरी ही चाची और तिवारियो की मिली भगत होगी "डॉ उसे लाल होते देख थोडा घबराया पर उसने उसे शांत रहने को कहा ,

"अजय पहले तो मुझे भी ऐसा ही लगा था,इसलिए मैं तुम्हे शांत रहने को कह रहा हु,जल्दबाजी में लिया गया फैसला कई जिन्दगिया बर्बाद कर सकता है,और अब तुम अकेले तो नहीं हो तुम्हारे ऊपर कई जिम्मेदारिय भी तो है,"डॉ की बात से अजय चौक गया और डॉ को घूरने लगा

"डॉ हमारे परिवार का एक ही दुसमन है और वो है तिवारी,उनके सिवाय ये काम कौन कर सकता है ,और आपने ये फैसला कैसे किया की वो गुनाहगार नहीं है,आप जानते ही क्या है हमारे परिवार के बारे में ,"अजय के चहरे से मनो खून उतर आया हो लेकिन डॉ शांत थे और उनकी शांति ही अजय को शांत रहने को मजबूर कर रही थी,वो चाह कर भी अपने को बेकाबू नहीं कर पा रहा था,ये कैसे हो रहा था ये तो उसे भी नहीं पता था बस उसे लग रहा था की जैसे कोई ताकत उसे शांत कर रही थी ,ये डॉ का ही ओरा था ,उनका ही प्रभाव था की अजय कुछ नहीं कर पा रहा था,

"हा अजय मैं तुम्हारे परिवार की स्तिथि को नहीं जानता ,इसलिए मैं इतने सालो से तुम्हारे माँ पिता के कातिलो को ढूँढ रहा हु,तुमने सही कहा की मेरा तुम्हारे परिवार से कोई रिश्ता नहीं है है ना,इसलिए तुम्हारे परिवार को बचाने के लिए मैं बाली से सच छिपा के रखा था,मैंने सोचा था की तुम समझदार होगे ,अगर तुम्हे मेरे बात पर भरोषा नहीं है तो ठीक है ,जाओ मार दो अपनी चाची को और बहा दो खून की नदिया तिवारियो के लेकिन असली गुनाहगार का क्या ,जो आज भी तुम्हारे परिवार को बर्बाद करने की सपथ लिए बैठा है,तुम्हे क्या लगता है, तुम्हारी बहनों पर यहाँ कोई भी खतरा नहीं है,तुम और तुम्हारा परिवार आज भी खतरे में है ये समझ लेना तुम ,मैं सालो से तुम्हारे परिवार पर नजर रखे हु,जब वीर जिन्दा था तब भी मैंने उसे आगाह किया था की तुमपर खतरा है,मेरे बच्चे जो गलती तुम्हारे पिता ने की वो तुम मत करो "डॉ की बाते सीधे अजय के दिल में लगी उसे डॉ के अहसानों का मतलब समझ आया वो उठा और डॉ के चरणों में बैठ गया ,अब उसकी आँखों मर आंसू था ,

"अंकल मुझे नहीं पता की मैं क्या करू पर आपने जो कहा अगर वो सच है तो मैं उसे तबाह कर के रहूँगा जिसने मेरे परिवार को उजड़ने की कोसिस की है ,कोण है वो "



डॉ ने उसे उठाया और फिर से उसे खुर्सी में बैठाया

"यही तो पता नहीं चल पा रहा है ,मैंने जीतनी जाच अभी तक की है उसमे इतना ही पता चल पाया है की वो ना तो तिवारी है ना तुम्हारी चाची,इनफोर्मेसन देने वाला कोण है ये पता नहीं चल रहा पर हा एक्सीडेंट जिस ट्रक से हुआ था उसका ड्राइवर से मैं मिला उसकी अब मौत हो चुकी है ,उसे बस किसी ने अच्छे खासे पैसे दिए थे वो कोण था ये उसे नहीं पता,"

"पर आपको कैसे पता चला की तिवारियो का इसमें कोई हाथ नहीं है,"

"जब तुम्हारे पापा जिन्दा थे तभी से हमने तिवारियो के यहाँ अपने आदमी बिठा के रखे थे ,उन्होंने ही मुझे ये बताया था की उस दिन कोई भी कही नहीं गया और ना ही उसके कुछ दिन पहले ही कोई ऐसी हरकत हुई की कोई शक उनपर जाए ,माना वो लोग तुम लोगो के सबसे बड़े दुसमन है ,पर तुम्हारी माँ उस घर्र की ही तो बेटी है ,और रामचंद्र कभी अपनी इकलौती बेटी को नहीं मार सकता ,वो तो आज भी उसे बहुत प्यार करता है ,और तुम लोगो को भी वरना उसके बेटे यु चुप रहने वालो में से तो नहीं है ,"अजय को डॉ की बात पर भरोषा होने लगा

"पर अंकल अब हम क्या करेंगे "डॉ के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी

"कुछ भी नहीं ,बस इन्तजार ….ताकि वो कुछ करे और हमारे हत्थे चढ़े …"डॉ एक शून्य आकाश में देखते हुए बोला …

तभी एक चीख आई वो चीख मेरी की थी,अजय और डॉ अपने खयालो से निकले अजय जैसे ही उठने को हुआ डॉ ने अपनी जगह से उठकर उसे रोक लिया और उसका हाथ पकड़ कर मुस्कुरा दिया …

"डॉ साहब सॉरी वो विजय "

"कोई बात नहीं आज मेरी को भी कोई असली मर्द मिल ही गया जो उसकी चीख निकल सके "अजय ने अपना सर निचे कर लिया और डॉ के पैर पढ उनसे आशीर्वाद लिया

"अंकल हमें जाना होगा वो बहाने भी वेट कर रही होंगी "डॉ कुछ नहीं बोले और अपने सिट पर बैठ गए ,अजय अपना सर निचे किये ही कमरे से बाहर आया
 
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अध्याय 9
इधर …..

डॉ के केबिन से निकलते ही मेरी की कातिल हसी ने विजय को मदहोश कर दिया वो उसके पीछे पीछे किसी पालतू की तरह जाने लगा,मेरी की बलखाती कमर और उभरे हुए गांड ने विजय की सांसे बढ़ा दि थी,एक तो मेरी का कातिल शारीर उसपर उसकी कातिल अदाए,विजय की हालत ही ख़राब थी,मेरी उसे बहार बने काउंटर पर ले गयी,और वही सोफे पर बैठा दिया,

"आप क्या पीना पसंद करेंगे,"बड़ी ही लिज्जत से अपने छातियो को विजय की ओर झुकाती हुई बोली ,विजय की निगाहे उसके बंद कबुतारो पर अटक गए जो बस फुदकने के लिए बेताब थे,विजय ने अपने सूखे गले से थूक को निगला और बड़ी मुस्किल में कह पाया ,

"जो आप पिला दे,"मेरी उसकी ये हालत देख जोर से हस पड़ी,और अपनी होठो पर अपनी जीभ फिर कर बोली ,



"चाय काफी या पानी क्या पियोगे,"विजय ने अपने मन में सोचा ,साली अगर मेरे गाव में होती तो अभी तक इसे पटक के चोद चूका होता,क्या करू भईया भी साथ है ,चांस लू या रहने दू,नहीं नहीं भाई को पता चल गया तो ,ये साली बहका रही है,कुछ तो हिम्मत दिखानी पड़ेगी हम भी ठाकुर है,विजय ने अपना गला साफ़ करते हुए अपने चहरे पर एक स्माइल लायी और

"मेडम जी दूध नहीं मिलेगा क्या,"विजय के चहरे पर एक हसी खिल चुकी थी की उसकी पूरी हिचक जाती रही ,वो पहले तो मेरी के बड़े बड़े बालो को देखा फिर उसके चहरे को मेरी के होठो में भी एक मुस्कान आ चुकी थी,

"नोटी बॉय ,दूध पीना पी तो टॉयलेट में आ जाओ,"विजय के तो जैसे बांछे खिल गए ,वो बड़ी बेताबी से मेरी के पीछे आया ,टॉयलेट में पहुचते ही मेरी ने दरवाजा बंद कर दिया ,और उसके ऊपर टूट पड़ी जैसे सदियों से पयासी हो ,ऊपर उसके शर्ट से बहार निकलते कबूतर विजय के लिए खास आकर्षण थे उसने देर नहीं करते हुए उसके शर्ट के बटन खोलने लगा ,पर मेरी ने उसका सर पकड़ कर अपने होठो के पास ले आई और उसके होठो को अपने होठो में भरकर चूसने लगी ,जैसे विजय को कुछ समझ नहीं आ रहा हो ,आज तक वो ही लडकियों पर भरी रहा था ,पर आज ये क्या हो रहा था ,एक औरत उसपर भरी हो रही थी ,विजय ने अपनी ताकत का इस्तमाल किया और मेरी को अपने दोनों हाथो से हवा में उठा दिया मेरी तो जैसे चुहक ही गयी ,विजय उसके कमर को पकड कर उसे किसी गुडिया की तरह उठा लिया और उसके जन्घो को अपने सर तक ले आया ,उसने उसकी स्कर्ट में अपने सर को घुसा दिया ,और बड़े ही सुखद आश्चर्य में पड़ गया क्योकि मेरी ने कोई भी अन्तःवस्त्र नहीं पहने था,उसकी कोरी बिना बालो की योनी उसके होठो के पास थी,उसने अपना सर उठाया और अपने होठो पर मेरी को बैठा दिया मेरी उसकी ताकत से हस्तप्रद सी हो गयी वही जैसे ही विजय ने अपनी नथुनों से उसकी योनी को जोर से सुंघा उसके नथुनों से आती हवा ने मेरी के योनी पर प्रहार किया और मेरी की योनी ने तेजी से पानी छोड़ना शुरू कर दिया विजय अपने जीभ को निकाल कर सीधे ही उसके योनी के दोनों फाको के बीच रगड़ने लगा,उसे उस नमकीन पानी का आभास हो गया मेरी विजय के सर में बैठी थी और उसके बालो को अपने हाथो से जकड रखा था,वो विजय के जानवरों जैसे ताकत और तरीके की दीवानी होती जा रही थी ,आज तक ना जाने कितने लोगो को उसने अपने जिस्म का स्वाद चखाया था पर ये पहला शख्स था जो मेरी पर भारी पड़ रहा था,और उसे अपने काबू में कर लिया था,मेरी के दिल से यही बात निकली साला मर्द तो यही है,बाकि सब तो …???



विजय अपने जीभ का कमाल दिखा कर मेरी को पागल ही कर दिया था,विजय के अंदर का जानवर जगाने लगा था जो की जब जाग जाये तो बड़ा ही खतरनाक हो जाता है ,विजय उसकी योनी को ऐसे खा रहा था जैसे कोई कुत्ता किसी चाकलेट केक को खाए ,अपने पूरा सर उसने उस छोटे से छेड़ में डालने की ठान ली थी,उसके दांत जब जब योनी को रगड़ते मेरी की आहे निकल पड़ती उसे इतना मजा आ रहा था की उसके आँखों से आंसू आने लगे ,

"अआह्ह्ह आह्ह ओ ओ ओ बेबी बेबी सक इट सक इट ,माय होली जीजस मैं मर जाउंगी ओह ओह ओह बेबी ,नो नो नो "विजय ने अपने दांतों से उसकी योनी की दीवारों को काटना चालू कर दिया हलके हलके किये वार ने मेरी की हालत इतनी ख़राब कर दि की वो विजय के बालो को नोचने लगी ,उसने पूरी ताकत से विजय के बालो को उखाड़ने लगी पर विजय नहीं माना वो रोने लगी ,हा लेकिन वो आंसू मजे के थे मजे के अतिरेक के ,वही विजय को पहली पबार इतनी दुधिया गोरी और चिकनी चुद मिली थी जिसके फांके भी गुलाबी थे वो उसे कैसे छोड़ देता ,मेरी अपने सर झुका के विजय के गले तक ले आई और उसके दांतों से जो भी चमड़ी आई उसने अपने दांत गडा दिए ,पर वो तो साला हवसी जानवर ,सांडो की ताकत वाला विजय था इस फूल का प्रहार उसपर क्या असर करता पडले में वो उसका कमर उठा कर अपने दांतों को उसकी योनी में रगड़ दिया ये प्रहार मेरी नहीं सह पायी और एक जोरदार चीख के साथ झड गयी ,उसे इसका भी भान नहीं रहा वो क्लिनिक में है,विजय का चहरा पूरी तरह से भीगा हुआ था उसने उसके पानी को चूस चूस कर पिया उसे भी इस बात का इल्म ना रहा था की वो क्लिनिक में है ,उसने मेरी को निचे उतरा तो मेरी जैसे मरी हुई थी,बिलकुल बेसुध लेकिन उसके चहरे पर तृप्ति के भाव थे पर विजय का डंडा तो अब पुरे जोर में खड़ा था जसने उसके स्कर्ट को निकल फेका पर मेरी की हालत देख थोडा रिलेक्स करने की सोची मेरी को अपने सीने में चिपका लिया ,मेरी बेसुध सी उसके ऊपर अपने को पूरी तरह से छोड़ चुकी थी ,थोड़ी देर बाद रिलेक्स होकर जैसे ही मेरी आँखे खोली उसने विजय को पकड़ कर एक जोर का किस उसके होठो में दिया

"थंक्स विजय तुमने जो किया वो कोई नहीं कर पाया "



"अरे थंक्स छोड़ अब मेरा भी…"विजय इतना ही बोला था की दरवाजे में खटखट हुई ,आवाज अजय की थी जिसे सुनकर विजय का खड़ा डंडा पूरी तरह से मुस्झा गया उसे याद आया की मेरी किस तरह चीखी थी,वो डर और शर्म से पानी पानी हो गयी वही मेरी की हसी निकल पड़ी,विजय ने उसका मुह दबाया और

"बस आता हु भईया दो मिनट "विजय बड़ी ललचाई नजरो से उसके योनी को देखा फिर उसके तरबूजो को ,उसका चहरा यु उदास हो गया था जैसे किसी बच्चे के हाथो से कोई चोकलेट छीन ले,मेरी उसकी ये स्थिति देख उसके गालो में बड़े ही प्यार से किस किया और

'कोई बात नहीं मेरी जान ,मेरी इस गुलाबो में आजतक सिर्फ दो ही मुसल गए है,एक तो डॉ का और एक मेरे पति का लेकिन तुझे भरोसा दिलाती हु तीसरा तेरा होगा,तूने तो मुझे खुस ही कर दिया "विजय को उसकी बात से थोड़ी रहत मिलती है वो जल्दी अपनी हालत दुरुस्त कर वह से निकलता है मेरी अब भी अंदर थी बहार अजय नहीं होता वो अपने भाई की इज्जत बचने के लिए क्लिनिक के बहार निकल गया था,विजय सर निचे किये हुए अजय के पास पहुचता है ,अजय उसके चहरे के डर को देखता है और उसे अपने भाई पर बड़ा प्यार आता है ,और उसके चहरे पर एक मुस्कान आ जाती है पर वो कुछ कहता नहीं और वो घर की ओर चल देते है,…..
 
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