OP
Member
LEVEL 7
240 XP
अध्याय 20
आज सुबह कुछ अजीब थी ,ना जाने कल रात क्या हुआ था की एक मदहोशी ने विजय और अजय का अपने बहनों से सम्बन्ध की परिभाषा ही बदल दि थी ,वो आज भी उन्हें उतना ही प्यार करते थे जितना की पहले किया करते थे पर बस प्यार करने का तरीका बदल गया था,वो अब और जादा अपने प्यार की गहराईयो ने जा सकते थे ,
शादी के खत्म होने से घर में एक तूफान के बाद आया सन्नाटा था वही अजय को आज डॉ और मेरी की मेहमान नवाजी करनी थी ,नाश्ते के टेबल पर आज सभी मौजूद थे जो कभी कभी ही होता था,मेरी विजय को देख देख कर मुस्कुरा रही थी ,वही किशन सुमन से आँखे ही नहीं मिला पा रहा था पर सुमन जरुर उसे चुपके चुपके देख लिया कर रही थी,सीता मौसी घर के मुखिया के खुर्सी में बैठी थी उसके बाजु में बाली फिर डॉ और मेरी बाली के सामने अजय और विजय ,चंपा समेत घर की सभी लडकिय उन्हें नाश्ता दे रही थी और पास ही खड़ी थी ,निधि अभी तक वहा नहीं पहुची थी,सीता मौसी का स्थान इस घर में बहुत जादा था माना की वो ठाकुर नहीं थी पर उसको इतना महत्व आखिर कारन क्या था ,कारन तो सभी को पता था ,की उनके बेटे ने वीर की जान बचाने के लिए अपने सीने में गोली खायी थी ,सीता को वीर और बाली भी अपनी माँ जैसा मानते थे ,
डॉ ने आखिर वो पुरानी बात छेड़ ही दि ,वो बाली की तरफ देखते हुए बोले ,
"क्यों बाली कलवा कही दिखाई नहीं दे रहा है ,"कलवा का नाम सुनते ही सभी थोड़ी देर के लिए चुप हो गए ,अजय ने सीता के तरफ देखा जिसकी आँखों में पानी आ चूका था ,बाली भी थोडा उदास सा हो गया आखिर उसने भी तो हमेशा ही कलावा को अपने छोटे भाई की तरह ही माना था,
"डॉ साहब वो यहाँ नहीं रहता कुछ सालो से पता नहीं उसे क्या हुआ है ,घर की तरफ आता ही नहीं यही पास में जो जंगल है वहा एक पहाड़ पर छोटी सी कुटिया बना कर रहता है ,कहता है सब कुछ माया है ,और मुझे इसमें नहीं पड़ना है ,सन्यासी बन गया है ,साला "बाली ने साला तो कह दिया पर अचानक उसे अहसास हुआ की सीता भी वही बैठी है और वो उसे देखकर झेप गया ,सीता ने बाली को देखकर हलके से मुस्कुरा दि ,पर उसके चहरे का वो दर्द जो एक माँ के अपने बेटे से बिछड़ने पर होता है उसके चहरे पर साफ़ दिखाई दे रहे थे ,अजय ने अपने हाथो को बड़ा कर सीता के कंधे पर रख दिया ,जिसे सीता ने चूम लिया ,उसके आँखों में अतीत की सारी बाते एकाएक ही तैर गयी ,
बात तब की थी जब जब 9 अगस्त 1942 को भारत छोडो आन्दोलन चलाया गया ,सीता के पिता ने उसमे बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया जोकि तब बच्चे ही थे ,,देश आजाद हुआ और सीता ने भी एक नए भारत को बनते देखा ,उसकी शादी जमीदार तिवारियो के खानदान के ही एक व्यक्ति से हुई जोकि खुद भी तिवारी था और जमीदारो का वफादार था ,सीता के पिता एक समाज सेवक थे और हमेशा से गरीबो और पिछडो की मदद को तैयार रहते थे ,उन्ही के गाव में ठाकुरों का परिवार था जोकी गरीबो की मदद को हमेशा तैयार रहता ,वीर और बाली के पिता सीता के पिता के सहयोगी बन चुके थे ,बात कुछ खासी जादा नहीं बढही थी जब तक की 1967 में नक्सलबाड़ी की घटना नहीं हुई ,सीता अपने पिता के आदर्शो और पति की वफादारी के बीच पिसती रही थी ,वीर और बाली जब 5-6 साल के थे तब सीता ने भी दो बच्चो को जन्म दिया जिनका नाम कलवा और बजरंगी रखा गया ,1967 में नक्सलबाड़ी की घटना हुई जहाँ भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 मे सत्ता के खिलाफ़ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की। मजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसकों में से थे और उनका मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं जिसकी वजह से उच्च वर्गों का शासन तंत्र और फलस्वरुप कृषितंत्र पर वर्चस्व स्थापित हो गया है। इस न्यायहीन दमनकारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रांति से ही समाप्त किया जा सकता है।(विकिपीडिया से लिया गया है)
इस घटना का प्रभाव ठाकुरों पर भी दिखाई देने लगा और उन्होंने भी जमीदारो के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत कर दि ,बात बढ़ने लगी और जमीदारो ने आन्दोलन को कुचलने में अपनी पूरी ताकत झोक दि ,सबसे पहले उन्होंने इसके नेता की हत्या की जो की बाली और वीर के माता पिता थे ,इससे सीता के पिता को दुःख तो हुआ पर वो अहिंसा का रास्ता अपनाने वालो में से थे उन्होंने ठाकुरों को रोका भी था पर कोई फायदा नहीं हुआ ,आखिरकार वही हुआ जिसका डर था ,भयानक नरसंहार कई मासूम और निर्दोष लोगो मारे गए ,जिसका पूरा जिम्मा सीता के पति पर था ,सीता उसके इस दानवी स्वरुप को देख उससे नफरत करने लगी लेकिन लेकिन फिर भी वो वहा से जा नहीं पायी,उसके पिता ने उसे लाने की कोसिस की और आख़िरकार 18 साल की सीता अपने एक बच्चे कलवा के साथ अपने पिता के पास चली आई लेकिन बजरंगी को उसका पति छोड़ने को तैयार नहीं हुआ ,बजरंगी बिना माँ के और फिर बिना बाप के बड़ा हुआ और तिवारियो का सबसे बड़ा वफादार साबित हुआ वही सीता के पिता के रहते और उनके मौत के बाद भी सीता ने ही वीर बाली और कलवा को शेरो की तरह बड़ा किया ,वीर और बाली की जोड़ी ने जहा जमीदारो का वर्चस्व खत्म कर दिया वही कलवा उनका सबसे बड़ा वफादार दोस्त भाई और लगभग सेनापति बनकर उभरा ,जिसने एक बार वीर को बचने के लिए गोली तक खायी और ना जाने कितनी चोटे खायी ,आज बजरंगी तो तिवारियो के यहाँ उनकी सेवा में था पर कलवा शांति की तलाश में ,,,,,,,,,,,,,……..डॉ की आवाज से सीता अपने सपने से बहार आई ,
"ह्म्म्म चलो आज कलवा से मिल कर आते है ,क्यों अजय चलोगे हमारे साथ "अजय भी उसी खयालो में डूबा था जिसमे सीता ,वो अचानक हुए प्रश्नों से हडबडा गया ,और वो कुछ बोल पाता उससे पहले ही निधि की आवाज आई ,
"वाओ कलवा चाचा के पास मैं भी जाउंगी "निधि एक हाफ निकर और टी-शर्ट में जो की घर में उसका परिधान ही था ,में निचे आई चहरे से लग रहा था अभी अभी जगी हो ,वो आकर सीधे अजय के पीछे खड़ी हो चुकी थी ,जब डॉ ने सवाल किया था ,और जवाब देते हुए उसने अजय के गले में अपना हाथ डाल दिया ,अजय ने मुस्कुराते हुए देखा वो आकार अजय की गोदी में बैठ गयी और उसके ही प्लेट से नाश्ता करने लगी ,उसकी इस बचकाना हरकत को देख कर सभी के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी ,
"कब बड़ी होगी रे मेरी ये गुडिया ,"सीता मौसी ने अपने हाथ को निधि के सर पर फेरते हुए कहा ,……..
कालवा से मिलने जाने सभी तैयार हो चुके थे ,लेकिन विजय और किशन को कुछ काम आ गया था ,वही मेरी ने तबियत ख़राब होने का बहाना बनाया और सुमन को मेरी की देखभाल के लिए छोड़ दिया गया ,निधि ,डॉ,अजय ,सोनल रानी और बाली तैयार होकर कलवा से मिलने चल दिए …………..
आज सुबह कुछ अजीब थी ,ना जाने कल रात क्या हुआ था की एक मदहोशी ने विजय और अजय का अपने बहनों से सम्बन्ध की परिभाषा ही बदल दि थी ,वो आज भी उन्हें उतना ही प्यार करते थे जितना की पहले किया करते थे पर बस प्यार करने का तरीका बदल गया था,वो अब और जादा अपने प्यार की गहराईयो ने जा सकते थे ,
शादी के खत्म होने से घर में एक तूफान के बाद आया सन्नाटा था वही अजय को आज डॉ और मेरी की मेहमान नवाजी करनी थी ,नाश्ते के टेबल पर आज सभी मौजूद थे जो कभी कभी ही होता था,मेरी विजय को देख देख कर मुस्कुरा रही थी ,वही किशन सुमन से आँखे ही नहीं मिला पा रहा था पर सुमन जरुर उसे चुपके चुपके देख लिया कर रही थी,सीता मौसी घर के मुखिया के खुर्सी में बैठी थी उसके बाजु में बाली फिर डॉ और मेरी बाली के सामने अजय और विजय ,चंपा समेत घर की सभी लडकिय उन्हें नाश्ता दे रही थी और पास ही खड़ी थी ,निधि अभी तक वहा नहीं पहुची थी,सीता मौसी का स्थान इस घर में बहुत जादा था माना की वो ठाकुर नहीं थी पर उसको इतना महत्व आखिर कारन क्या था ,कारन तो सभी को पता था ,की उनके बेटे ने वीर की जान बचाने के लिए अपने सीने में गोली खायी थी ,सीता को वीर और बाली भी अपनी माँ जैसा मानते थे ,
डॉ ने आखिर वो पुरानी बात छेड़ ही दि ,वो बाली की तरफ देखते हुए बोले ,
"क्यों बाली कलवा कही दिखाई नहीं दे रहा है ,"कलवा का नाम सुनते ही सभी थोड़ी देर के लिए चुप हो गए ,अजय ने सीता के तरफ देखा जिसकी आँखों में पानी आ चूका था ,बाली भी थोडा उदास सा हो गया आखिर उसने भी तो हमेशा ही कलावा को अपने छोटे भाई की तरह ही माना था,
"डॉ साहब वो यहाँ नहीं रहता कुछ सालो से पता नहीं उसे क्या हुआ है ,घर की तरफ आता ही नहीं यही पास में जो जंगल है वहा एक पहाड़ पर छोटी सी कुटिया बना कर रहता है ,कहता है सब कुछ माया है ,और मुझे इसमें नहीं पड़ना है ,सन्यासी बन गया है ,साला "बाली ने साला तो कह दिया पर अचानक उसे अहसास हुआ की सीता भी वही बैठी है और वो उसे देखकर झेप गया ,सीता ने बाली को देखकर हलके से मुस्कुरा दि ,पर उसके चहरे का वो दर्द जो एक माँ के अपने बेटे से बिछड़ने पर होता है उसके चहरे पर साफ़ दिखाई दे रहे थे ,अजय ने अपने हाथो को बड़ा कर सीता के कंधे पर रख दिया ,जिसे सीता ने चूम लिया ,उसके आँखों में अतीत की सारी बाते एकाएक ही तैर गयी ,
बात तब की थी जब जब 9 अगस्त 1942 को भारत छोडो आन्दोलन चलाया गया ,सीता के पिता ने उसमे बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया जोकि तब बच्चे ही थे ,,देश आजाद हुआ और सीता ने भी एक नए भारत को बनते देखा ,उसकी शादी जमीदार तिवारियो के खानदान के ही एक व्यक्ति से हुई जोकि खुद भी तिवारी था और जमीदारो का वफादार था ,सीता के पिता एक समाज सेवक थे और हमेशा से गरीबो और पिछडो की मदद को तैयार रहते थे ,उन्ही के गाव में ठाकुरों का परिवार था जोकी गरीबो की मदद को हमेशा तैयार रहता ,वीर और बाली के पिता सीता के पिता के सहयोगी बन चुके थे ,बात कुछ खासी जादा नहीं बढही थी जब तक की 1967 में नक्सलबाड़ी की घटना नहीं हुई ,सीता अपने पिता के आदर्शो और पति की वफादारी के बीच पिसती रही थी ,वीर और बाली जब 5-6 साल के थे तब सीता ने भी दो बच्चो को जन्म दिया जिनका नाम कलवा और बजरंगी रखा गया ,1967 में नक्सलबाड़ी की घटना हुई जहाँ भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 मे सत्ता के खिलाफ़ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की। मजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसकों में से थे और उनका मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं जिसकी वजह से उच्च वर्गों का शासन तंत्र और फलस्वरुप कृषितंत्र पर वर्चस्व स्थापित हो गया है। इस न्यायहीन दमनकारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रांति से ही समाप्त किया जा सकता है।(विकिपीडिया से लिया गया है)
इस घटना का प्रभाव ठाकुरों पर भी दिखाई देने लगा और उन्होंने भी जमीदारो के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत कर दि ,बात बढ़ने लगी और जमीदारो ने आन्दोलन को कुचलने में अपनी पूरी ताकत झोक दि ,सबसे पहले उन्होंने इसके नेता की हत्या की जो की बाली और वीर के माता पिता थे ,इससे सीता के पिता को दुःख तो हुआ पर वो अहिंसा का रास्ता अपनाने वालो में से थे उन्होंने ठाकुरों को रोका भी था पर कोई फायदा नहीं हुआ ,आखिरकार वही हुआ जिसका डर था ,भयानक नरसंहार कई मासूम और निर्दोष लोगो मारे गए ,जिसका पूरा जिम्मा सीता के पति पर था ,सीता उसके इस दानवी स्वरुप को देख उससे नफरत करने लगी लेकिन लेकिन फिर भी वो वहा से जा नहीं पायी,उसके पिता ने उसे लाने की कोसिस की और आख़िरकार 18 साल की सीता अपने एक बच्चे कलवा के साथ अपने पिता के पास चली आई लेकिन बजरंगी को उसका पति छोड़ने को तैयार नहीं हुआ ,बजरंगी बिना माँ के और फिर बिना बाप के बड़ा हुआ और तिवारियो का सबसे बड़ा वफादार साबित हुआ वही सीता के पिता के रहते और उनके मौत के बाद भी सीता ने ही वीर बाली और कलवा को शेरो की तरह बड़ा किया ,वीर और बाली की जोड़ी ने जहा जमीदारो का वर्चस्व खत्म कर दिया वही कलवा उनका सबसे बड़ा वफादार दोस्त भाई और लगभग सेनापति बनकर उभरा ,जिसने एक बार वीर को बचने के लिए गोली तक खायी और ना जाने कितनी चोटे खायी ,आज बजरंगी तो तिवारियो के यहाँ उनकी सेवा में था पर कलवा शांति की तलाश में ,,,,,,,,,,,,,……..डॉ की आवाज से सीता अपने सपने से बहार आई ,
"ह्म्म्म चलो आज कलवा से मिल कर आते है ,क्यों अजय चलोगे हमारे साथ "अजय भी उसी खयालो में डूबा था जिसमे सीता ,वो अचानक हुए प्रश्नों से हडबडा गया ,और वो कुछ बोल पाता उससे पहले ही निधि की आवाज आई ,
"वाओ कलवा चाचा के पास मैं भी जाउंगी "निधि एक हाफ निकर और टी-शर्ट में जो की घर में उसका परिधान ही था ,में निचे आई चहरे से लग रहा था अभी अभी जगी हो ,वो आकर सीधे अजय के पीछे खड़ी हो चुकी थी ,जब डॉ ने सवाल किया था ,और जवाब देते हुए उसने अजय के गले में अपना हाथ डाल दिया ,अजय ने मुस्कुराते हुए देखा वो आकार अजय की गोदी में बैठ गयी और उसके ही प्लेट से नाश्ता करने लगी ,उसकी इस बचकाना हरकत को देख कर सभी के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी ,
"कब बड़ी होगी रे मेरी ये गुडिया ,"सीता मौसी ने अपने हाथ को निधि के सर पर फेरते हुए कहा ,……..
कालवा से मिलने जाने सभी तैयार हो चुके थे ,लेकिन विजय और किशन को कुछ काम आ गया था ,वही मेरी ने तबियत ख़राब होने का बहाना बनाया और सुमन को मेरी की देखभाल के लिए छोड़ दिया गया ,निधि ,डॉ,अजय ,सोनल रानी और बाली तैयार होकर कलवा से मिलने चल दिए …………..