Incest जिम्मेदारी (कुछ नयी कुछ पुरानी)

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अध्याय 20

आज सुबह कुछ अजीब थी ,ना जाने कल रात क्या हुआ था की एक मदहोशी ने विजय और अजय का अपने बहनों से सम्बन्ध की परिभाषा ही बदल दि थी ,वो आज भी उन्हें उतना ही प्यार करते थे जितना की पहले किया करते थे पर बस प्यार करने का तरीका बदल गया था,वो अब और जादा अपने प्यार की गहराईयो ने जा सकते थे ,
शादी के खत्म होने से घर में एक तूफान के बाद आया सन्नाटा था वही अजय को आज डॉ और मेरी की मेहमान नवाजी करनी थी ,नाश्ते के टेबल पर आज सभी मौजूद थे जो कभी कभी ही होता था,मेरी विजय को देख देख कर मुस्कुरा रही थी ,वही किशन सुमन से आँखे ही नहीं मिला पा रहा था पर सुमन जरुर उसे चुपके चुपके देख लिया कर रही थी,सीता मौसी घर के मुखिया के खुर्सी में बैठी थी उसके बाजु में बाली फिर डॉ और मेरी बाली के सामने अजय और विजय ,चंपा समेत घर की सभी लडकिय उन्हें नाश्ता दे रही थी और पास ही खड़ी थी ,निधि अभी तक वहा नहीं पहुची थी,सीता मौसी का स्थान इस घर में बहुत जादा था माना की वो ठाकुर नहीं थी पर उसको इतना महत्व आखिर कारन क्या था ,कारन तो सभी को पता था ,की उनके बेटे ने वीर की जान बचाने के लिए अपने सीने में गोली खायी थी ,सीता को वीर और बाली भी अपनी माँ जैसा मानते थे ,

डॉ ने आखिर वो पुरानी बात छेड़ ही दि ,वो बाली की तरफ देखते हुए बोले ,
"क्यों बाली कलवा कही दिखाई नहीं दे रहा है ,"कलवा का नाम सुनते ही सभी थोड़ी देर के लिए चुप हो गए ,अजय ने सीता के तरफ देखा जिसकी आँखों में पानी आ चूका था ,बाली भी थोडा उदास सा हो गया आखिर उसने भी तो हमेशा ही कलावा को अपने छोटे भाई की तरह ही माना था,
"डॉ साहब वो यहाँ नहीं रहता कुछ सालो से पता नहीं उसे क्या हुआ है ,घर की तरफ आता ही नहीं यही पास में जो जंगल है वहा एक पहाड़ पर छोटी सी कुटिया बना कर रहता है ,कहता है सब कुछ माया है ,और मुझे इसमें नहीं पड़ना है ,सन्यासी बन गया है ,साला "बाली ने साला तो कह दिया पर अचानक उसे अहसास हुआ की सीता भी वही बैठी है और वो उसे देखकर झेप गया ,सीता ने बाली को देखकर हलके से मुस्कुरा दि ,पर उसके चहरे का वो दर्द जो एक माँ के अपने बेटे से बिछड़ने पर होता है उसके चहरे पर साफ़ दिखाई दे रहे थे ,अजय ने अपने हाथो को बड़ा कर सीता के कंधे पर रख दिया ,जिसे सीता ने चूम लिया ,उसके आँखों में अतीत की सारी बाते एकाएक ही तैर गयी ,

बात तब की थी जब जब 9 अगस्त 1942 को भारत छोडो आन्दोलन चलाया गया ,सीता के पिता ने उसमे बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया जोकि तब बच्चे ही थे ,,देश आजाद हुआ और सीता ने भी एक नए भारत को बनते देखा ,उसकी शादी जमीदार तिवारियो के खानदान के ही एक व्यक्ति से हुई जोकि खुद भी तिवारी था और जमीदारो का वफादार था ,सीता के पिता एक समाज सेवक थे और हमेशा से गरीबो और पिछडो की मदद को तैयार रहते थे ,उन्ही के गाव में ठाकुरों का परिवार था जोकी गरीबो की मदद को हमेशा तैयार रहता ,वीर और बाली के पिता सीता के पिता के सहयोगी बन चुके थे ,बात कुछ खासी जादा नहीं बढही थी जब तक की 1967 में नक्सलबाड़ी की घटना नहीं हुई ,सीता अपने पिता के आदर्शो और पति की वफादारी के बीच पिसती रही थी ,वीर और बाली जब 5-6 साल के थे तब सीता ने भी दो बच्चो को जन्म दिया जिनका नाम कलवा और बजरंगी रखा गया ,1967 में नक्सलबाड़ी की घटना हुई जहाँ भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 मे सत्ता के खिलाफ़ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की। मजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसकों में से थे और उनका मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं जिसकी वजह से उच्च वर्गों का शासन तंत्र और फलस्वरुप कृषितंत्र पर वर्चस्व स्थापित हो गया है। इस न्यायहीन दमनकारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रांति से ही समाप्त किया जा सकता है।(विकिपीडिया से लिया गया है)

इस घटना का प्रभाव ठाकुरों पर भी दिखाई देने लगा और उन्होंने भी जमीदारो के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत कर दि ,बात बढ़ने लगी और जमीदारो ने आन्दोलन को कुचलने में अपनी पूरी ताकत झोक दि ,सबसे पहले उन्होंने इसके नेता की हत्या की जो की बाली और वीर के माता पिता थे ,इससे सीता के पिता को दुःख तो हुआ पर वो अहिंसा का रास्ता अपनाने वालो में से थे उन्होंने ठाकुरों को रोका भी था पर कोई फायदा नहीं हुआ ,आखिरकार वही हुआ जिसका डर था ,भयानक नरसंहार कई मासूम और निर्दोष लोगो मारे गए ,जिसका पूरा जिम्मा सीता के पति पर था ,सीता उसके इस दानवी स्वरुप को देख उससे नफरत करने लगी लेकिन लेकिन फिर भी वो वहा से जा नहीं पायी,उसके पिता ने उसे लाने की कोसिस की और आख़िरकार 18 साल की सीता अपने एक बच्चे कलवा के साथ अपने पिता के पास चली आई लेकिन बजरंगी को उसका पति छोड़ने को तैयार नहीं हुआ ,बजरंगी बिना माँ के और फिर बिना बाप के बड़ा हुआ और तिवारियो का सबसे बड़ा वफादार साबित हुआ वही सीता के पिता के रहते और उनके मौत के बाद भी सीता ने ही वीर बाली और कलवा को शेरो की तरह बड़ा किया ,वीर और बाली की जोड़ी ने जहा जमीदारो का वर्चस्व खत्म कर दिया वही कलवा उनका सबसे बड़ा वफादार दोस्त भाई और लगभग सेनापति बनकर उभरा ,जिसने एक बार वीर को बचने के लिए गोली तक खायी और ना जाने कितनी चोटे खायी ,आज बजरंगी तो तिवारियो के यहाँ उनकी सेवा में था पर कलवा शांति की तलाश में ,,,,,,,,,,,,,……..डॉ की आवाज से सीता अपने सपने से बहार आई ,
"ह्म्म्म चलो आज कलवा से मिल कर आते है ,क्यों अजय चलोगे हमारे साथ "अजय भी उसी खयालो में डूबा था जिसमे सीता ,वो अचानक हुए प्रश्नों से हडबडा गया ,और वो कुछ बोल पाता उससे पहले ही निधि की आवाज आई ,
"वाओ कलवा चाचा के पास मैं भी जाउंगी "निधि एक हाफ निकर और टी-शर्ट में जो की घर में उसका परिधान ही था ,में निचे आई चहरे से लग रहा था अभी अभी जगी हो ,वो आकर सीधे अजय के पीछे खड़ी हो चुकी थी ,जब डॉ ने सवाल किया था ,और जवाब देते हुए उसने अजय के गले में अपना हाथ डाल दिया ,अजय ने मुस्कुराते हुए देखा वो आकार अजय की गोदी में बैठ गयी और उसके ही प्लेट से नाश्ता करने लगी ,उसकी इस बचकाना हरकत को देख कर सभी के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी ,

"कब बड़ी होगी रे मेरी ये गुडिया ,"सीता मौसी ने अपने हाथ को निधि के सर पर फेरते हुए कहा ,……..
कालवा से मिलने जाने सभी तैयार हो चुके थे ,लेकिन विजय और किशन को कुछ काम आ गया था ,वही मेरी ने तबियत ख़राब होने का बहाना बनाया और सुमन को मेरी की देखभाल के लिए छोड़ दिया गया ,निधि ,डॉ,अजय ,सोनल रानी और बाली तैयार होकर कलवा से मिलने चल दिए …………..
 
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अध्याय 21

सभी के जाने के बाद विजय और किशन ही बचे थे ,मेरी और सुमन मेरी के कमरे में चले गए क्योकि मेरी ने कहा की उसके सर में दर्द हो रहा है ,
"भाई आज तू अकेला ही चले जा ना ,मेरे सर में थोडा दर्द हो रहा है,"विजय ने अपना सर पकड़ते हुए कहा ,किशन ने एक बार विजय को देखा ,
"क्या बात है आपका और मेरी मेडम का सर एक साथ दर्द दे रहा है ,"विजय के चहरे में भी एक मुस्कान आ गयी ,जिसे किशन समझ चूका था ,

"भाई बचकर वो हमारी मेहमान है ,कोई उलटी सीधी हरकत मर कर देना "
"अबे साले हरकत तो पहले ही हो चुकी है आज तो घमासान होगा ,"विजय हसने लगा ,किशन को कुछ समझ आ चूका था की बंदी इससे पट चुकी है ,
"ओके भाई ऐश करो ,मैं भी एक दो घंटे में आ जाऊंगा "किशन के जाने के बाद विजय ने जल्दी से मेरी के रूम का रुख किया वहा सुमन को देखकर वो थोडा उदास हो गया ,
"अरे विजय आओ आओ तुम्हारा ही इन्तजार कर रही थी ,"मेरी ने बड़े ही मादक अंदाज में उसका स्वागत किया सुमन ने दोनों के चहरे के भावों को पढ़ लिया वो नर्वस सी हो गयी ,

"साला पूरा परिवार ही ठरकी है इनका "सुमन ने मन में ही सोचा विजय आकर मेरी के साथ एक खुर्सी में बैठ गया मेरी ने एक लाल रंग की साड़ी पहने हुए थी ,जो हमेशा की तरह उसके अंगो को छुपा कम और दिखा जादा रहा था,उसके नीले कलर के ब्लाउज में उसके बड़े बड़े स्तनों को समाने की ताकत नहीं थी फिर भी बेचारी पूरी तरह फैले हुए उन्हें समाने की कोसिस कर रहे थे,अंदर कोई अन्तःवस्त्र नहीं पहने होने के कारन उसके निप्पल का उभार साफ दिख रहा था,मेरी पास की खुर्सी पर बैठी थी और उसके पैर सुमन के हाथो में था जो की निचे बैठे उन्हें दबा रही थी ,सुमन उसके एडियो की मसाज कर रही थी ,विजय ललचाई नजरो से मेरी के स्तनों को देखता है पर सुमन का लिहाज उसे कुछ करने या कहने नहीं देता ,
"ये सुमन बहुत एक्सपर्ट है कितने अच्छे से मसाज करती है की मेरे सर का दर्द पूरी तरह से खत्म हो गया ,"
विजय में सुमन को देखा वो अपने सर निचे किये हुए बड़े प्यार से मसाज कर रही थी ,विजय की बेचैनी बढ़ रही थी उससे अब इन्तजार नहीं हो रहा था,
"बहन एक काम करो तुम आराम करो मैं यहाँ मेडम के साथ हु,किसी चीज की जरुरत होगी तो तुम्हे बुला लूँगा ,"सुमन ने सर उठा कर विजय को देखा आज फिर इस परिवार के एक शख्स ने उसे बहन कहा था ,कैसा परिवार है ये कोई इतने प्यार से बहन बोलकर मान देता है तो दूसरा उसे रंडी कहकर उसकी इज्जत पर हाथ डालता है ,ऐसे उसके दिल में अब किशन के लिए कोई भी द्वेष नहीं था ,वो जानती थी की किशन अपने किये पर कितना पछता रहा है और उसके कारण ही उसके दिल में उसके लिए एक सम्मान का जन्म हो चूका था ,वो इस परिवार से प्यार करने लगी थी सभी उसे इतना प्यार और सम्मान देते है जो उसे अपनी जिंदगी में कभी नहीं मिला था ,वो तो बस आभाव की जिंदगी जानती थी ,उसका जन्म किसी रहिस आदमी के हवस का नतीजा थी जिसने उसकी माँ को माँ बनाया था और फिर पता नहीं कहा चला गया ,और उन्हें छोड़ गया तकलीफों को भोगने के लिए और उसनके हिस्से में आई बस तकलीफे…सुमन के आँखों में आंसू की कुछ बुँदे आ गयी जिसे विजय और मेरी दोनों ने देख लिया था ,दोनों ही ऐसे तो सेक्स के भूखे थे पर एक मासूम सी लड़की के आँखों से बहते हुए आंसू ने उन्हें कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया ,विजय चाहे कितना कमीना क्यों ना हो उसका दिल बहुत ही नर्म था ,वही मेरी का भी यही हाल था ,मेरी ने झुक कर सुमन के चहरे को उठाया ,सुमन को अपने गलती का अहसास हुआ और वो अपने आंसुओ को पोछने लगी ,

"क्या हुआ बहन रो क्यों रही है कुछ तकलीफ है क्या यहाँ तुझे ,"विजय ने अपना चहरा उसके पास लाते हुए कहा ,
"नहीं भईया कोई तकलीफ नहीं है बस आपलोगों का प्यार देखकर मुझे रोना आ गया ,इतना सम्मान और प्यार मुझे कभी किसी ने नहीं दिया ,कोई इतने प्यार से मुझे कभी भी बहन नहीं बुलाया जितना आप और अजय भईया ने बुलाया है ,"विजय ने उसके कंधे पर अपना हाथ रखा और उसे सांत्वना दिया वो कुछ बोला नहीं क्योकि उसे खुद भी समझ नहीं आया की अपनी बहनों के अलावा उसने कभी किसी को इतने प्यार से कभी भी बहन नहीं बुलाया था ,वही मेरी के दिमाग में एक बात आ गयी
"और किशन ने वो तुझे बहन नहीं बुलाता क्या ,"मेरी के चहरे पर एक मुस्कान भी फ़ैल गयी ,वो जब से आई थी वो किशन और सुमन को नोटिस तो कर रही थी सुमन का उसे देखना और किशन का यु उससे भागना कुछ तो था इनके बीच ,,ऐसे बात तो विजय को भी समझ आ गयी थी क्योकि किशन ने इसका हिंट पहले ही दे दिया था ,उसने बात को सम्हाला
"कोई बात नहीं ठीक है अपने कमरे में जाओ आराम करो और हम सब हमेशा तुम्हारे साथ है ,और तू इतनी प्यारी और समझदार है की तू इस प्यार और सम्मान की हक़दार भी है "सुमन के चहरे पर एक ख़ुशी के भाव आये और वो अपने कमरे के लिए चले गयी उसके जाते ही विजय ने कमरे का किवाड़ बंद किया और मेरी के तरफ घुमा ,उसके मन में एक ही बात आई ,
"सनी लीओन इन साड़ी "

मेरी भी मुस्कुराते हुए उसे देखने लगी और अपनी अदाओ का जाल फेकना शुरू किया ,उसने एक मादक अंगड़ाई ली और अपने उंगलियों को अपने मुह के अंदर बहार करने लगी विजय भी देर ना करता हुआ उसके पास पंहुचा और उसे उठा कर सीधे बिस्तर में पटक दिया ,
"अरे राजा इतनी क्या बेचैनी है ,"
"क्या करू मेरी रानी तुझपर टूटने के लिए तो कब से इन्तजार कर रहा हु ,"
"चल झूठे कही के ऐसा होता तो कल रात में ही आ जाता ना "रात की बात याद करके विजय को हसी आ गयी और सोनल का चहरा भी सामने आ गया उसने अपने सर को एक झटका दिया ,
"अरे जानेमन छोडो कल की बाते कल की बात पुरानी ,"विजय मेरी के ऊपर खुद पड़ता है और उसके गालो को अपने मजबूत हाथो से दबाकर उसके लाल रसदार होठो को चूसने लगता है ,मेरी को इससे ही उसके ताकत का अहसास हो जाता है और उसके मन में एक उमंग जग जाती है ,
"हाय तेरे जैसे मर्द के लिए ही तो मैं बनी हु,कब से तडफ रही थी तेरी बांहों में कुचले जाने के लिए ,"
"तो कुचल देते है ना "विजय ने अपने हाथो को उसके बड़े बड़े कबुतारो पर ले गया और उसे निचोड़ने लगा ,उसके ब्लाव्स को जैसे फाड़ता हुआ अलग किया और उन मखमली पहाड़ो को अपने दांतों से काटने लगा ,
"आह्ह्ह आह्ह अह कमीने साले काट मत ना "
"चुप मदरचोद ,"विजय हवस के नशे में बोखला गया था उसका लिंग इतना तना हुआ था की उसे भी दर्द होने लगा था ,उसने उरोज को चुसना नहीं खाना शुरू किया उसके दांतों के निशान मेरी के दुधिया उरोजो को लाल कर रहे थे उसके निप्पल विजय के थूक से भीगे हुए तन कर विजय के दांतों में आ जाते और वो उन्हें हलके से काटकर मेरी को जन्नत में पंहुचा देता ,

"आहा हम्म आह मम मम्म आः अह्ह्ह्हह "मेरी ने जोर जोर से अपने वासना की अभिवक्ति की विजय भी अपने सर को निचे ले जाने लगा ,मेरी के सपाट पेट पर आकर रुक गया,उसकी गहरी नाभि में उसने अपने जीभ डाली और थूक से उसे गिला कर दिया ,मेरी के साड़ी को खोलने तक का सब्र विजय में नहीं था वो अपने हाथ निचे कर मेरी के साड़ी को ऊपर सरका दिया उसके ,गोर गोरे जांघ अपनी पूरी गोलइयो में अब विजय के सामने थे वो अपने जीभ से उनका स्वाद चख रहा था वही मेरी अपने आनद के शिखर पर अपनी आँखे बंद किये उसके दांतों को अपने जन्घो पर महसूस कर रही थी,उसने अपने दांत गडा दिए ,
"अआः मादर आह बहन चोओओओओ द "मेरी दर्द और लिज्जत से चीख पड़ी विजय अपने सर को उसकी साड़ी के अंदर घुसा दिया बिलकुल साफ सुथरी चिकनी और पानी से भीगी हुई रसदार मलाई की तरह उसकी चुद की पंखुडियो ने विजय को अपना रस पिने का आमंत्रण दिया ,उसकी मादक गंध विजय के लिए असहनीय हो रही थी ,वो उनपर ऐसे टुटा जैसे कोई भूखा कुत्ता हड्डी पर टूटता है ,उसने उसे मुह में भरकर अपनी जीभ से पूरा काम रस पि गया ,
"आआआआ आआआआअ आआआ आआआआअ म्म्मम्म्म्मम्म म्मम्मम्मम्म विजय आआअ आअह्ह्ह्ह विजय "मेरी के मादक लिज्जत भरी सिसकिया पुरे कमरे को भर रही थी ,विजय ने चूसते हुए ही अपने कपडे उतारे उसका लिंग ऐसे अकड़े था जैसे कोई लोहे का गर्म सरिया हो,वो जल्दी से उठा और पाने सरिये को मेरी के नर्म नर्म और गर्म गर्म छेद में घुसा दिया ,

"आअह्ह्ह्ह कितना टाइट है तेरा "विजय के मुह से अचानक ही निकल पड़ा ,ना जाने कितने दिनों बाद उसने इतने टाइट योनी में अपना लिंग घुसाया था ,
"अआह्ह्ह मेरे मालिक ,आआह्ह्ह "मेरी की एक चीख निकली और वो निढल होकर गिर पड़ी उसने अपने कामरस से विजय के लिंग को भीगा दिया था ,लेकिन खेल तो अभी शुरू हुआ था ,विजय के धक्के तो अभी अभी शुरू हुए थे ,वो अपने लिंग को बहार निकल कर पहले अच्छे से उसके चिपचिपे कामरस में भिगोता है और फिर से अपना मुसल उसके योनी में घुसा देता है ,
"आआह्ह्ह्ह विजय आह्ह्ह "
"मेरी रंडी आज तो तुझे तबियत से चोदुंगा "विजय ने अपनी स्पीड बडाई हर धक्का रक सिसकारी छोड़ जाती थी कभी कभी विजय का ताकतवर धक्का मेरी की चीख भी निकल देता था ,
"ह्ह्ह्ह ह्ह्हम्म्म्म ह्म्म्म आह्ह आह्ह आह्ह्ह नहीं नहीं आह्ह अहहह विजय आह्ह विजय माँ माँ मर गयी आह्ह आह्ह नहीं नहीं धीरे ना कमीने आह जोर से जोर से "मेरी बडबडा रही थी
"आह्ह मदेरचोद आह्ह तेरी माँ की आह्ह "विजय भी अपनी पूरी ताकत से उसे पेले जा रहा था,

विजय उसे पलटता है ,कभी दीवाल से लगता है कभी जमीन पर ,कभी बिस्तर के कोने में ,कभी कुतिया की तरह कभी पर उठाकर ,विजय जैसे मन में आता उसे वैसे भोगे जा रहा था ,लेकिन साला झड नहीं रहा था ,मेरी को भी इसकी चिंता होने लगी की ये झड क्यों नहीं रहा है ,वो एक समय के बाद बिलकुल बेसुध सी हो गयी थी ऐसी हैवानियत भरी चुदाई का उसके लिए पहला अनुभव था ,वो कई बार झड चुकी थी और अब उसे दर्द भी होने लगा था पर वो विजय के झाडे बिना ये खेल खत्म नहीं करना चाहती थी ,विजय ने जब देखा की ये बहुत जादा दर्द में है तो किसी तरह अपने को सम्हाला ,और उसके होठो में अपने होठो को घुसा दिया ,
"आआह्ह पता नहीं जान आज क्यों नहीं झड पा रहा हु ,"मेरी और विजय की सांसे उखड़ी हुई थी मेरी निढल होने के बावजूद आपने हाथो को उसके सर पर ले आती है और उसके बालो को सहलाती है ,

"जितना समय लेना है ले लो पर अब थोडा प्यार से आराम से करो ना "विजय के चहरे पर एक मुस्कान आ जाती है वो उसके चहरे को देखता है और उसे जोरदार किस करता है ,अब वो उठकर एक तेल की शीशी लाता है और अपने लिंग में तेल की मालिश कर उसे फिर से उसके अंदर घुसता है ,
"इससे तुम्हे दर्द कम होगा "मेरी बड़े प्यार से उसके सर को अपनी ओर खिचती है दोनों अपने होठो को एक दुसरे के होठो में समां लेते है और विजय अब धीरे धीरे अंदर बहार करने लगता है ,नहीं पता कितने देर तक जब तक की वो उसके अंदर झड नहीं जाता ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,………………..
 
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अध्याय 22

इधर सभी लोग जंगल में पहुच जाते है ,वो पहाड़ी इलाका है जिसमे घने तो नहीं पर मध्यम और आबादी वाले जंगल है ,कही कही कुछ बस्तिया मिल जाती है पर जादा आबादी नहीं है ,निधि बार बार गाड़ी से झाककर बाहर की ओर देख रही थी ,बाहर का मौसम और नजारा बहुत ही सुहाना था,छोटे छोटे पहाड़ जो की निधि ने अपने घर से देखे थे ,लेकिन कभी उसे इनके पास जाने का मौका ही नहीं मिला गाड़ी पहसो को कटते हुए बने सडक पर चल रही थी ,ये अटल बिहारी की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का परिणाम था की देश के सुदूर इलाको में भी पक्की सड़के बन गयी है ,ऐसे यहाँ आवाजाही कम ही होती है पर जरुरत तो है ,ये जगह नक्साली और खतरनाक जंगली जानवरों के प्रकोप से बची हुई थी ,इसलिए यहाँ घुमना भी बहुत अच्छा सौदा था,उनके घर से कुछ 5-6 किलोमीटर दूर ही एक पहाड़ो में चदते हुए वो एक पहाड़ी के पास रुके ,जो लोग ऐसे इलाको में जा चुके है उन्हें ये पता होगा की सडको के किनारे पर से निचे की खाई को देखना कितना अद्बुत नजारा होता है, पहाड़ी तक बस गाड़ी जाती थी आगे उन्हें खुद ही चढ़ाई करनी थी बार बार चलने और दुपहिया वाहनों की आवाजाही के कारन एक पगडण्डी सी पेड़ो के बीच से बनी थी ,बाली ने सभी को पहाड़ी के ऊपर बने एक मंदिरनुमा जगह को दिखाया ,
"वो देखो वहा मिलेगा कलवा "सभी के चहरे पर एक ख़ुशी के भाव तैर गए,
"लेकिन चाचू वहा तक जायेंगे कैसे ,वो तो बहुत ऊपर दिख रहा है ,"निधि ने स्वाभाविक सा प्रश्न दागा,क्योकि वो कभी इस इलाके में नहीं आई थी उसका ये प्रश्न स्वाभाविक था

"अरे रास्ता है ना ,सीढि नहीं है पर चढ़ जाओगे फिकर मत करो ,जादा दूर नहीं है ,"सभी वहा चड़ने लगे पास में ही एक मनमोहक सा झरना था जिसके कलकल की आवाजे सभी के कानो तक पहुच रही थी ,निधि ने ये झरना देखने की जिद की पर अजय ने उसे मना लिया पहले चाचा से मिलकर आते है ,
जैसे तैसे सभी ऊपर पहुचे डॉ और लडकियों की हालत ही ख़राब हो चुकी थी ,बाली और अजय तो मेहनत करके ही बड़े हुए थे और उनका रहना बसना भी इसी इलाके में हुआ था ,उनके लिए तो ये बच्चो का खेल था ,पर बाकियों की सांसे फुल गयी थी ,वो थककर चूर हो जाते,और आराम करने बैठ जाते ,कोई सीढि नहीं होने के कारन उनके लिए ये और भी मुस्किल हो रहा था ,
लेकिन वहा पहुचने के बाद प्रकृति का नजारा और वहा बहती ताज़ी और ठंडी हवा ने सबकी थकान मिटा दि ,एक छोटा सा मंदिरनुमा ईमारत थी ,वो एक आश्रम की तरह लग रहा था ,कुछ स्थानीय गाव वाले भी वहा दिखाई दे रहे थे ये वही लोग होंगे जिनकी गाड़िया निचे खड़ी थी ,वो वह प्रवेश किये देखा की वहा एक साधू जैसा दिखने वाला शख्स बैठा है और उसके आसपास कुछ लोगो की भीड़ लगी हुई है ,बाली आगे बढकर उसे प्रणाम करता है जिसका अनुसरण सभी लोग करते है ,सभी वैसे ही वह बैठ जाते है जैसे की बाकि सभी बैठे थे ,वहा कोई मूर्ति नहीं थी बस ये साधू ही थे ,बढ़ी हुई दाढ़ी विशाल सीना जिसमे बालो का जंगल था ,बड़े बड़े बाल जो फैले हुए थे माथे पर चन्दन का टिका और बस एक धोती पहने हुए ,चहरे का तेज ही उनकी सिद्दी का बयान कर रहा था,आँखे अधमुंदी सी थी मानो गहरे ध्यान की अवस्था में बैठे हो ,तेज ऐसा था की वहा पहुचने पर ही सभी के मन में शांति के भाव आ गए ,वो वहा बैठे ही थे की एक वक्ती आकर बाली के सामने हाथ जोड़कर उसे प्रणाम करता है बाली उसे देखकर मुस्कुराता है पर किसी में कोई बात नहीं होती बाली सबको इशारा कर वही बैठने को कहता है और उसके साथ बहार आ जाता है,

"नमस्कार ठाकुर साहब बड़े दिनों बाद पधारे आप "
"हा यार कलवा से मिलने आये है सभी कहा है वो "
"अरे वो तो पता नहीं धयान में बैठा होगा कही पर आप यहाँ महाराज के पास बैठिये मैं लड़के भेज देता हु उसे बुलाने के लिए "वो उस आश्रम का एक सेवक था जैसे कलवा भी वहा एक सेवक की तरह ही रहता था ,बाली फिर जाकर अपने स्थान में बैठ गया ,अजय और डॉ की आँखे बंद हो चुकी थी इतनी शांति इतना गहरा अनुभव दे रही थी जैसे दुनिया में कुछ और ना हो बस बस बस सांसे हो ,धड़कने हो ,एक भाव हो और आप हो ……………..
आधे घंटे कैसे बीते किसी को कुछ पता ही नहीं चला ,बाबा आँखे खोल चुके थे पर अभी भी गहरे ध्यान से उठाने के कारन उनकी आँखे अधखुली ही थी बड़ी मुस्किल से वो अपनी आँखों को खोल पा रहे थे ,जैसे संसार को देखना उनकी मज़बूरी हो वरना बस समधी में चले जाते ,वह मौजूद लोग बारी बारी से उनसे मिलाने लगे किसी ने कोई प्रश्न किया कोई अपना दुखड़ा रो रहा था ,किसी की कोई मांग थी बाबा सभी की बातो को ध्यान से सुनते और आराम से उत्तर देते थे ,लगभग आधे धंटे और निकल चुके थे बाबा की आँखे भी अब पूरी तरह से खुल चुकी थी और उनके बोलने में एक तीव्रता भी आ चुकी थी ,सभी के जाने के बाद बस ठाकुर परिवार ही वहा बचा था बाली ने जाकर उनके चरण स्पर्श किये सभी ने फिर उसका अनुकरण किया ,
"कहो बाली कैसे हो "
"सब आपकी कृपा है बाबा कालवा से मिलाने आये थे ,"बाबा के चहरे पर एक मुस्कान आ गई
"ह्म्म्म और तुम कैसे हो अजय "
"अच्छा हु बाबा "
"बहुत दिन हुए इधर आये हुए ,"अजय ने अपना सर झुका लिया

"हा बाबा बहुत दिन हो गए "बाली ने डॉ और बाकियों का परिचय दिया उन्होंने सभी का अभिवंदन किया ,डॉ आज बहुत प्रसन्न दिख रहे थे ,किसी महात्मा से मिलाना और आजकल तो महात्मा मिलना ही बहुत बड़ा सौभाग्य होता है ,
"आप कुछ कहना चाहते है डॉ साहब "बाबा ने धयन से डॉ को देखा
"आपसे मिलने के बाद सारे प्रश्न खत्म हो गए प्रभु "डॉ ने अनुग्रह के भाव से बाबा को देखा बाबा के आँखों में भी एक स्नेह डॉ के लिए छलक पड़ा ,तभी कलवा भी आ चूका था वो सभी को देख बहुत खुश हुआ ,सभी उससे मिलाने बहार आये और एक बरगद के पेड़ के निचे बने चबूतरे में बैठे बाते हरने लगे पर डॉ अब भी वही बैठे थे ,
"तो तुम कलवा को ले जाने आये हो "
"हा बाबा आज उसके परिवार को उसकी जरुरत है ,कोई तो है जो इस परिवार को बहुत ही नुकसान पहुचना चाहता है ,और मैं जनता हु जब तक कलवा रहेगा इस परिवार को कोई हाथ नहीं लगा पायेगा ,"बाबा जोरो से हस पड़े
"डॉ जो होना है वो तो हो कर रहेगा ,कलवा के रहते भी तो वीर और उसकी पत्नी की मौत हो गयी ना ,उन्हें तो वो नहीं बचा पाया ,ना ही अपने भाभी और उसके बच्चो को आजतक ढूंढ पाया और देखो आज उसके दुःख ने उसे प्रभु के शरण में ला दिया ,और तुम कितने सालो बाद आये यहाँ "
दोनों के चहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान आ गयी मतलब साफ़ था की डॉ यहाँ पहले भी कई बार आ चुके थे ,
"हा बाबा आपसे दूर रहने का तो मन मुझे भी नहीं करता ,मैं भी चाहता हु की आपके शरण में आकर अपने को ध्यान की गहराईयो में डूबा हु पर क्या करू ,ध्यान मजबूर होकर तो नहीं किया जा सकता ना जैसे आज कलवा कर रहा है "
"बेटा जो ध्यान करता है उसके लिए कोई मज़बूरी होती ही नहीं है "बाबा ने एक मनमोहक मुस्कान दि ,

"जाओ कलवा से मिल लो "डॉ उठकर बाबा के चरणों को स्पर्श करते है और बहार कलवा से मिलने चले जाते है ,कलवा डॉ को देखकर आगे बढता है और उसके गले लग जाता है ,कलवा के चहरे पर एक अदुतीय तेज दिखाई दे रही थी जो उसके साधना के कारन उसके चहरे पर खिली थी ,शारीर से वो किसी पौरुष की मूर्ति लगता ही था ,डॉ ने अजय और बाली को इशारे से कुछ कहा दोनों ही समझ गए की ये अकेले हे कलवा से कुछ बात करना चाहते है ,अजय ने सभी को झरना दिखने के बहाने निचे ले गया साथ ही बाली भी हो लिया ,
"कहिये डॉ साहब बहुत दिनों बाद याद किया लगता है कुछ काम आ पड़ा है ,"डॉ के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी
"हा काम तो आ पड़ा है ,ऐसे भी अब मैं अकेला सा हो गया हु ,तुन्हें मेरे साथ चलना चाहिए "
"भूल जाओ डॉ बस अब और नहीं ऐसे भी दुनिया में मेरा अब है ही कौन और किसके लिए करू मैं ये सब ,एक माँ है जो उस परिवार में है जहा उसे इतना प्यार और सम्मान मिलता है और एक भाई है (बजरंगी )जो मुझे देखना भी पसंद नहीं करता अब बचा ही क्या है ,और मेरी काबिलियत ही क्या है डॉ देखो ना ,ना ही मैं वीर भईया और भाभी को बचा पाया और ना ही अपनी भाभी और उनके मासूम बच्चो को ढूंड पाया ,"डॉ थोडा गंभीर हो जाते है
"कलवा ये तुम्हारी गलती नहीं थी ,वीर का एक्सीडेंट का तो मैंने भी पता नहीं लगा पाया और तुम्हारी भाभी और उसके बच्चे वो तुम्हारी गलती नहीं थे ,बजरंगी ने उनके साथ क्या किया ये किसी को नहीं पता वो बेचारे तो तिवारियो के साजिस का शिकार हो गए ,"
"साजिश कोई भी रचे पर मैं तो अपने भाई को नहीं समझा पाया ना की मेरी भाभी पवित्र है ,नहीं डॉ अब मुझसे ये नहीं हो पायेगा अब मैं नहीं कर सकता ये सब ,अब आप ही सम्हालो इन समस्याओ को मुझे यहाँ बहुत शुकून है मैं यहाँ ध्यान करता हु अपने आप के पास रहता हु ,खुश हु और मेरी मनो तो आप भी यहाँ आ जाओ शांति से बढकर कोई चीज नहीं है दुनिया में "डॉ के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी
"किस शांति की बात कर रहे हो कलवा अच्छा ये बताओ की आँखे बंद करने पर क्या तुझे वीर और सुशीला (बजरंगी की बीवी और कलवा की भाभी ) का चहरा नहीं दीखता "

कलवा एक गहरे सोच में पड़ जाता है ,मानो डॉ ने जो कहा वो सच ही था ,
"अभी तुम्हारी जरुरत है इस परिवार को ,अजय पर बहुत खतरा है ,और मुझे कुछ अनहोनी की भी आशंका दिख रही है ,पता नहीं दिल क्यों कहता है की तुम्हे इनके साथ होना चाहिए ,"
कलवा अब भी गहरे सोच में पड़ा था ,
"डॉ बजरंगी कैसा है "डॉ के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी
"आज भी उससे प्यार करते हो "
"भाई है डॉ वो मेरा "कलवा के आँखों में आंसू आ जाते है और डॉ उसके कंधे पर हाथ रखता है कलवा के आँखों के सामने बिता हुआ कल घुमने लगता है ,
बचपन में ही कलवा को उसकी माँ सीता उसके नाना के पास ले आई और कलवा और बजरंगी अलग हो गए कलवा वीर और बाली के साथ बड़ा हुआ,लेकिन दोनों भाइयो में गजब का प्रेम था जो सभी को पता था ,कलवा कभी कभी छुप कर बजरंगी से मिलने जाता था और बजरंगी भी उससे मिलने ठाकुरों के गाव आया करता था ,समय बिता और ठाकुरों और तिवारियो में दुश्मनी बढती गयी बजरंगी तिवारियो का तो कलवा ठाकुरों के सेनापति की हैसियत में आ चुके थे दोनों भाइयो का सामना अकसर होता रहता था लेकिन सभी को पता था की ये एक दुसरे पर हाथ नहीं उठा सकते दोनों अपने अपने खेमे के वफादार थे और इसपर किसी को कोई भी संदेह नहीं था ,दोनों अपने जिम्मेदारियों से हटकर शहर में मिला करते थे वीर के खास दोस्त डॉ चुतिया भी थे ,वीर डॉ कलवा और बजरंगी सभी अपनी जिम्मेदारियों और आपसी रंजिश से दूर शहर आकर मौज मस्ती करते थे ,वक़्त ने करवट ली और वीर ने सुलेखा से शादी कर ली दोनों परिवारों में तनाव इतना बढ़ गया की कलवा और बजरंगी का मिलना लगभग बंद ही हो गया पर ,पर दोनों कभी कभी छुपकर शहर में जाकर मिल ही लिया करते थे ,वही वक अनाथ लड़की से बजरंगी को प्यार हो गया और उसने वही उससे शादी भी कर ली ,ये बात सिर्फ उसे और कलवा को ही पता था ,लड़की का नाम था सुशीला ,सुसीला और बजरंगी एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे और सुशीला ने दो बच्चो को जन्म दिया ,लेकिन ये बात तिवारियो तक पहुच गयी वो सीधे तो बजरंगी को कुछ नहीं बोल सकते थे पर उन्होंने एक साजिस रची ये ही एक ऐसा मौका था जिससे कलवा और बजरंगी में दुश्मनी करा कर वो ठाकुरों को तबाह करने के लिए बजरंगी का उपयोग कर सकते थे ,उन्होंने बजरंगी के दिमाग में शक का कीड़ा डाला और अपनी साजिस के तहत बहुत ही आराम से इसे पनपने दिया ,एक दिन जब बजरंगी शहर पहुचा तो वहा कलवा को देखकर भड़क गया कलवा उसे समझाता रहा की सुशीला उसके लिए माँ के समान है पर ……..बजरंगी अपने बीवी बच्चो के साथ वहा से चला गया उसके बाद उनका कुछ भी पता कलवा को नहीं चल पाया ,बजरंगी ने सुशीला से भी सम्बन्ध खत्म कर लिया ,और ऐसा बोखलाया की ठाकुरों और कलवा के खिलाफ एक जंग सी छेड़ दि ,और इसी का नतीजा हुआ की एक बार लड़ाई में उसने वीर पर गोली चला दि वो गोली कलवा ने अपने सीने में खाई और दोनों भाइयो का रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो गया वो कभी मिलते नहीं थे ,और अगर किसी काम से मिलते भी तो बात नहीं करते ,कलवा ने बाली और वीर को सभी बाते बताई डॉ के साथ मिलकर उसने अपने भाभी को ढूंढने की भी बहुत कोसिस की पर कोई नहीं मिला ,उन्हें लगा की बजरंगी ने उन्हें मार दिया हो उसका गुस्सा था ही ऐसा ,पर कलवा आज भी अपने बड़े भाई से बहुत प्यार करता था और वीर की मौत के बाद से ही वो सब कुछ छोड़कर आश्रम में आ गया था,

कलवा की आँखे नम थी और वो शून्य आकाश को देखे जा रहा था,डॉ ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा
"जो हो चूका है उसे याद करने से क्या मतलब है ,घर चलो अपने परिवार के साथ रहो अजय में मुझे वीर की छबि दिखाती है सायद तुम भी उसमे वीर को ढूंड पाओ "कलवा डॉ के गले से लग गया ,थोड़ी देर में ही उसने मनो कुछ फैसला कर लिया था ,
"आऊंगा डॉ घर भी आऊंगा पर अभी नहीं कुछ दिनों के बाद "कलवा के चहरे पर एक मुस्कान खिल गयी थी ,
 
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अध्याय 23

इधर घर में विजय और मेरी का घमासान जारी था,की तभी किशन भी वापस आ गया सबसे पहले उसके मन में विजय और मेरी के बारे में ही विचार आया ,वो मेरी के कमरे की तरफ जाने को हुआ ,लेकिन उसने देखा की सुमन बगीचे में एक पेड़ के निचे अकेले ही बैठी है दोनों की नजरे मिली और किशन ने अपनी नजरे झुका ली और अंदर चला गया ,मेरी के रूम में पहुचने पर उसने दोनों की आहे सुनी और मजे लेने लगा तभी उसे लगा की कोई उसके पीछे है उसने मुड़कर देखा तो सुमन खड़ी थी ,सुमन को देखकर वो फिर से झेपा और वहा से जाने लगा लेकिन सुमन ने दौड़कर उसका हाथ थाम लिया ,किशन अब भी अपने चहरे को झुकाए खड़ा था ,
"आपसे कुछ बात करनी है "
"हा कहो "
"यहाँ नही गार्डन में चले "सुमन उसके जवाब का इतजार करे बिना ही उसे अपने साथ गार्डन की तरफ ले जाने लगी वो किसी पुतली सा उसके पीछे पीछे आने लगा,क्या था इस लड़की में जिसने किशन जैसे कमीने लड़के को इतना कमजोर बना दिया था ,दोनों बगीचे में पहुचे उसी पेड़ के निचे जहा पर सुमन बैठी हुई थी ,पूरा बगीचा खाली था और हलकी धुप में मौसम बड़ा ही सुहाना और मनमोहक लग रहा था,किशन अब भी सर गडाए वही खड़ा था ,

"आप मेरे साथ ऐसे क्यों बिहेव कर रहे है ठाकुर साहब ,आपके इस बिहेब को घर के सभी लोग केयर कर रहे है आज ही मेरी मेडम ने भी मुझे ये पूछ लिया ,प्लीज मन की आप अपने किये पर दुखी होंगे पर मुझे किश्मत से ये परिवार मिला है ऐसी कोई हरकत मत कीजिये की किसी को आपपर शक को और वो मुझे यहाँ से निकल दे "
सुमन की बातो से किशन चौक पड़ा और पहली बार उसके खून की धार थोड़ी तेज हुई
"तुम्हे क्या लगता है मेरी हरकत के बारे में जानकर मेरे परिवार के लोग तुम्हे निकल देंगे और मुझे शबासी देंगे ,तुमने समझ के क्या रखा है मेरे परिवार को ,यहाँ लड़की की इज्जत के बहुत मायने है ,हा हा हम कमीने है हा हम लडकियों के साथ सब कुछ करते है पर उनकी मर्जी से ,हम ठाकुर है हम बलात्कार नहीं करते ,"
अपने परिवार के बारे में बोलकर किशन का चहरा खिल गया था और सुमन के होठो पर एक मुस्कान आ गयी थी
"अच्छा तो वो क्या था जो आप ने मेरे साथ किया "सुमन के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी वही किशन झेप सा गया
"वो वो तो तुम मुझे अच्छी लगती हो इसलिए ,माफ़ी तो मांगी ना तुमसे नजर भी नहीं मिला पा रहा हु "किशन आज कुछ बोल पाया था ,सुमन खिलखिलाकर हस पड़ी किशन ने अपना चहरा उठाकर उसके चहरे को देखा पता नहीं क्या आकर्षण था उस लड़की में जो किशन उसकी तरफ खीचा जा रहा था,उसकी पर्सनल रखेल लाली भी उससे कही जादा सुन्दर थी पर कभी कभी सुन्दरता ही सब कुछ नहीं होता उसके व्यक्तित्व में एक निखर था ,एक दृढ़ता थी जो किशन को उसकी ओर आकर्षित करती थी ,किशन उसके चहरे को ऐसे देख रहा था अब झेपने की बारी सुमन की थी उसका चहरे पर शर्म उतर आई ,उसने अपने बालो की लटो से खेलना शुरू कर दिया ,उसका सावला चहरा रंगत से भर गया था,वही उसके आँखों का काजल किशन के दिल में छुरिया चला रहा था ,आजतक कोई भी लड़की ने उसके दिल पर ऐसा जादू नहीं किया था जो उसे हो रहा था ,वो आगे बढ़ना चाहता था पर अपनी आदत से बिलकुल विपरीत वो घबरा रहा था ,उसने अपने हाथ आगे कर उसके गालो को छूने की कोसिस की पर फिर कुछ सोचकर वापस खीच लिया ,ये देख सुमन के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी ,
"क्या हुआ ठाकुर साहब आज आप इस कनीज को छूने से भी डर रहे है "सुमन फिर खिलखिला उठी उसका खिलखिलाना जैसे किशन के दिल में जाकर लग गया उसने सुमन के कमर को पकड़ा और अपने तरफ खीचा वो कटपुतली सी उसके तरफ खिची चली आई ,सुमन की सांसे ही रुक गयी उसकी धड़कने बाद रही थी पर वो कुछ भी नही कर रही थी बस किशन का चहरा देखे जा रही थी ,किशन ने अपना चहरा उसके चहरे के पास लाया ,किशन की सांसे उसके सांसो से टकराने लगी ,दोनों की सांसो में गर्मी का अहसास आ रहा था,उसनके होठ एक दुसरे के नजदीक जा रहे थे ,सुमन के होठ फडफडाने लगे थे ,

तभी किशन उससे अलग हो गया उसने अपना सर झटका,जैसे सुमन को भी होश आया हो ,वो लाज से गडी जा रही थी पर उसने हिम्मत करके बोला
"किशन मुझे माफ़ कर दो मेरा मतलब वो नहीं था,"
उसकी बाते किशन को समझ ही नहीं आई
"मतलब ,तुम क्यों माफ़ी माग रही हो माफ़ी तो मुझे मंगनी चाहिए "
"मतलाब की मेरा इरादा वो नहीं था की आपको अकेले में लाकर ,,,,यानि आपको फसाऊ ,आप मुझसे नजरे चुराते थे वो मुझे पसंद नहीं आ रहा था इसलिए मैंने आपको अकेले में बुला लिया "
किशन चौक सा गया उसने तो कभी ऐसा सोचा भी नहीं था ,
"फसाऊ मतलब ,तुम मुझे कैसे फसा सकती हो ,मेरा मतलब है की तुमने ऐसा कैसे सोचा की मैं ऐसा सोचूंगा "
सुमन की आखे कुछ भीग गयी थी,
"शायद आप नहीं जानते पर जब एक गरीब लड़की किसी आमिर लड़के के प्यार में पड़ जाती है तो लोग कहते है की लड़की ने लड़के हो अपने जाल में फसाया है ,आप करोडो के मालिक है और मैं आपके पैरो की जुती की तरह हु,मैं वो गलती नहीं कर सकती जो मेरी माँ ने किया था एक अमीर लड़के से प्यार ,मेरे बाप ने ही उन्हें ये कहकर छोड़ दिया की तुमने मुझे मेरे पैसो के लिए फसाया है ,"
सुमन के आँखों से पानी की धार बहने लगी किशन से ये बर्दास्त नहीं हुआ और उसने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपनी ओर खीच लिया ,वो उसके गले से लग गयी लेकिन वो अपने को छुड़ाने की कोसिस करने लगी
"नहीं ठाकुर साहब मुझ गरीब पर दया करो मुझसे प्यार ना दिखाओ ,मैं कोई ऐसा सपना नहीं देखना चाहती जो पूरा ना हो ,"
किशन उसके चहरे को बड़े ही प्यार से अपने हाथो से सहलाता है सुमन की आँखे गंगा जमुना बहा रही थी ,वो उसकी आँखों के पानी को अपने होठो में भर लेता है सुमन एक और जोरदार कोसिस छूटने की करती है ,वो प्यार में नहीं पड़ना चाहती थी ,उसे किशन का खालिस पाक प्यार साफ साफ महसूस हो रहा था,

किशन ने उसके झटपटाते जिस्म को अपनी बांहों में भरा और उसके होठो में अपने होठ को डाल दिया ,सुमन रोती हुई कुछ देर तक उसका विरोध करती रही पर उसके प्यार भरे अहसास से वो टूट गयी और किशन के बांहों में समां गयी वो किशन के सर को पकडे उसका साथ देने लगी …………. दोनों जब अलग हुए तो दोनों के आँखों में पानी और होठो में मुस्कान थी,सुमन फिर किशन के बांहों में आकर समां गयी वो पेड़ के निचे बैठ गए ,
"किशन सोच लो प्यार की राह आसान नहीं होती ,कही तुम मेरा दिल ना तोड़ देना ,बहुत टूटी हु अब और नहीं सह पाऊँगी ,"
किशन उसके बालो में अपनी उंगलिया फिरता है
"प्यार अगर करने से होता तो क्या बात थी ,ये तो बस हो जाता है ,और जब तक मेरी सांसे है तब तक तुम्हारे साथ रहूँगा ,मुझे कसम है मेरे परिवार की मेरे बहनों की ,हां अगर ये सांसे ही अटक गयी तो …"
सुमन ने अपने उंगलिया उसके होठो पर रख दिए किशन उसे देख कर अपने आँखे से हसने लगा ,सुमन बिना कुछ कहे उसके पास आई और उसके होठो के निचले फांको को काट लिया ,
"ख़बरदार आप आईंदा ऐसा बोले तो ,"दोनों ने एक दुसरे की आँखों में देखा
"और हा मैं आपसे वो सब नहीं करूंगी ,वो सब शादी के बाद ,"सुमन इठलाते हुए बोली
"क्या सब "किशन भी उसके मजे लेने की फ़िराक में बोल पड़ा
"अरे वही सब जो आप उसदिन मेरे साथ करना चाहते थे और आज विजय भईया मेरी मेडम के साथ कर रही है ,और आप कमीने कही के कान लगा कर सुन रहे थे "सुमन ने एक मुक्का उसे मारा किशन हस पड़ा
"अरे मेरी जान उसमे बहुत मजा है ,"
"होगा पर मेरे साथ नहीं करोगे शादी से पहले "
"तो किसके साथ करूँगा"
"किसी के साथ नहीं "किशन की आँखे चौड़ी हो गयी

"यार लेकिन मुझे तो इसकी आदत है हर सप्ताह एक दो बार तो करना पड़ता है ,जान या तो तुम मान जाओ या ………"सुमन ने अपनी आँखे बड़ी करके उसे देखा
"कितने कमीने हो आप लोग बस वही चलता है ना आपके दिमाग में ,"वो थोड़ी देर के लिए शांत हो गयी
"अच्छा मैं आपको इतना प्यार दूंगी की आपको उसकी जरुरत ही नहीं पड़ेगी और अगर पड़ेगी तो कर लेना किसी से भी मैं मना नहीं करुँगी "किशन उसे बड़े प्यार से देखता है
"सच्ची"
"मुच्ची"
किशन फिर उसे पकड़कर अपनी ओर खिचता है वही सुमन भी खिलखिलाते हुए उससे चिपक जाती है और किशन उसके होठो में अपने जीभ को घुसा देता है ,
ये दो प्यार के पंछी अपने में मस्त थे वही दो आँखे इन्हें देखे जा रही थी,घर की गेलरी से चंपा अपने बेटे को देख रही थी ,चंपा विजय और किशन के करतूतों के बारे में तो जानती थी पर आज मामला कुछ अलग था ,वो सुमन के लिए किशन के प्यार को पहचान पा रही थी वही उसके चहरे पर एक सुखद आश्चर्य के भाव आ गए थे ,की उसका कमीना बेटा आज प्यार में पड़ गया है ,वो दोनों को दुवाए देती अंदर चली जाती है ,
 
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अध्याय 24

शाम होने को थी और डॉ और मेरी सभी से विदा लेकर वापस शहर चले जाते है ,चंपा का मिजाज बड़ा ही खुश था की उसके बेटे को प्यार हो गया है वही अजय और विजय अपने बहनों से सम्बन्ध को लेकर दुविधा में थे की ये क्या हो गया है ,बस होठो से होठो का मिलना ही इतनी बेचैनी ला सकता है ये किसी को भी अहसास नहीं था,निधि अब बस अपने खयालो में खोयी थी तो सोनल भी बस विजय के सपने देख रही थी,वही कुसुम और किशन एक दूजे के ख्वाबो में थे और अजय और विजय निधि और सोनल के ,पूरा घर बस एक प्यार का मंदिर सा हो गया था ,जहा किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की आखिर हो क्या रहा है ,क्या ये सही है या गलत ,………बस सभी अपने अपने ही दुनिया में भटक रहे थे ,मेरी ने बड़े ही गंभीरता से और नम आँखों से विजय को विदा किया था जो सोनल को और दुसरे सदस्यों को भी दिखाई दे रहा था,पर सोनल के दिल में एक कसक सी उठी थी की आखिर क्यों ये हुआ ,क्यों मेरे भाई के लिए मुझसे भी जादा प्यार एक लड़की लिए हुए है ,…………
शाम ढलने को थी और सभी एक अजीब उदासी के साए में थे फिर से रात आने को थी ,और कोई भी उसका सामना करने को तैयार ना था,केवल निधि को छोड़कर क्योकि निधि के लिए ये बस प्यार का एक नया आयाम था जबकि बाकियों के लिए प्यार की नयी परिभाषा ,,,………..
निधि हमेशा की तरह अजय के रूम में जाती है वही सोनल और विजय अपने अपने कमरों में थे ,अजय और निधि आपस में लिपटे पड़े थे,निधि मासूम बच्ची सी नींद के आगोश में थी वही अजय उसे अपने सीने से लगाये पुचकार रहा था ,अपनी जान से भी जादा प्यारी बहन को अपनी बांहों में कसा हुआ बस उसके अहसास में गुम था,निधि हमेशा की तरह ही एक झीनी सी nighty में ही थी और हमेशा की तरह बिना किसी अंतःवस्त्रो के थी ,अजय के हाथ उसे सहला रहे थे और निधि गहरी नींद में भी अपने भाई को जकड़े हुए सो रही थी,अजय के हाथ धीरे धीरे निधि के कमर के निचे आते है ,nighty के ऊपर से भी उसके निताम्भो की गोलइयो का आभास अजय कर पा रहा था,नाजुक और नर्म नर्म उसके नितंभ कितने मखमली और मुलायम लग रहे थे की अजय वहा से अपने हाथ ही नहीं हटा पा रहा था,वो धीरे धीरे उसे सहलाने लगा,अजय ने हलके से जोर लगाया और निधि नींद में ही कसमसा गयी ,

"भईया ह्म्म्म " निधि ने मचलते हुए कहा
अजय सर उठाकर उसे देखता है पर निधि की आँखे अभी भी बंद थी और वो नींद में ही थी ,
अजय फिर से उसकी निताम्भो में अपने हाथ ले जाकर सहलाता है ,पर इस बार वो nighty के निचे से हाथो को ले जाता है ,,निधि के नग्गे निताभो का अहसास अजय के जिस्म में एक कपकपी सी दौड़ जाती है ,उसे यकीं नहीं हो रहा था की वो ये सब कर रहा है वो भी अपनी सबसे प्यारी बहन के लिए क्या ये गलत है ,,,,,,,,,,,,,
अजय ने अपने हाथो को पीछे खीचा और निधि को अपने से अलग करने की कोशिस की पर निधि ने उसे और भी जोरो से जकड लिया ,,
"हम्म्म "
अजय की धड़कने बढ़ रही थी वो ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता था जिससे की उसके प्यार भरे इस रिश्ते की मर्यादा पर आंच आये, वो बेचैन सा वहा लेटा होता है ,आंखे तो खुली हुई थी, नींद का नामोनिशान नहीं था,….वो यही सोच में था की उसे आखिर क्या हो गया है क्या वो अपनी बहन को प्यार भी नहीं कर सकता ,…पर क्या ये प्यार था या वासना थी …

नहीं नहीं मैं कभी अपने बहन के बारे में ऐसा नहीं सोच सकता ,ये प्यार ही है ,बस ये प्यार अब थोडा जिस्मानी हो रहा है ,और क्या हो रहा है हम तो हमेशा से ही ऐसे रहते है इसमें गलत क्या है की मैं अपनी बहन के जिस्मो से खेल रहा हु मैं उसे पसंद करता हु ,उसे प्यार करता हु इसमें कुछ भी गलत नहीं है ,,मैं उसके बिना नहीं रह सकता वो भी मुझसे दूर नहीं रह सकती तो दिक्कत क्या है , मैं क्यों इतना सोच रहा हु इस बारे में क्यों मैं तकलीफ में हु,…मैं अपनी बहन को सब तरह से प्यार करूँगा ,जो उसे अच्छा लगेगा मैं करूँगा कभी भी उसे अपने से अलग नहीं होने दूंगा .वो मेरा प्यार है मेरी चाहत है मेरी जान है मैं हमेशा ही उसका रहूँगा …..
अजय अपने खयालो में खोया था उसके आँखों से आंसू की बुँदे छलकने लगी,निधि के मासूम चहरे को देखता हुआ वो ये बाते अपने मन में अपने आप से कह रहा था ,वो उसके लिए सबसे इम्पोर्टेंट थी और अब उसके मन में कोई भी गलानी के भाव नहीं थे वो जनता था की प्यार में सब जायज है ,पर प्यार की परिभाषा क्या है ,???????????

रिश्तो की परिभाषा क्या है और समाज कोण होता है हमें ये बताने वाला की किस रिश्ते को हम किस तरह निभाए..हमारी मर्यादाओ का ठेका लेने वाला समाज हमें एक वक्त की रोटी भी नहीं खिला सकता तो मैं उसकी फिकर क्यों करू ….
अजय निधि के चहरे के पास अपने चहरे को ले जाता है और उसके होठो को अपने होठो में रखकर उसके निचले होठो को चूसने लगता है ,निधि नींद में कसमसाती है पर वो अपने भाई का साथ देने लगती है ,अजय की बेताबी अब और भी बढ़ रही थी वो अपनी फूलो सी नाजुक बहन की पूरी नाजुकता को महसूस करना चाहता था ,उस अनखिले फुल की नाजुक कोमलता को प्यार से खिलाना चाहता था ,उसके सुगंध से भर जाना चाहता था ….वो निधि के होठो को जोर से चूसने लगता ही की निधि की नींद भी खुल जाती है अजय की आंखे बंद थी और वो उसके होठो को चुसे जा रहा था ,निधि भी उसके सर को अपने हाथो से जकड़कर उसे अपनी ओर खीच लेती है और उसका साथ देते हुए अपने जीभ को अजय के होठो से भीतर जाने देती है ……..

"पुच पुच पुच ,"दोनों के होठ आपस में जंग लड़ रहे थे ,अजय अपने पुरे बल का प्रयोग कर उसे खाने लगा था ,निधि की हालत भी ख़राब थी वो अजय की बेताबी से अचंभित तो थी पर अपने भाई को पूरा प्यार देने के लिए उसका साथ पुरे दिल से दे रही थी ,अजय उसके जीभ को अपने होठो से अंदर खिचता है और फिर अपने दांतों में गडा लेता है ,अजय उसके होठो के नाजुक कलियों को बस अपने दांतों और होठो से खाने की कोशिस करने लगता है ,,…..निधि भी बेताब सी उसके सर को अपने चहरे पर पूरी ताकत से दबाये हुए उसका साथ दे रही थी ,जब अजय रुका तो निधि उसपर टूट पड़ी और उसके होठो को खाने लगी ,अजय के हाथ उसके निताम्भो पर आ गए उसने उसके नग्गे निताम्भो को अपने हाथो में भरा और उस मखमली दो पहाड़ो को दबाने लगा ,अजय का ऐसा करना निधि के लिए एक उत्तेजक प्रहार था ,वो अपने को अपने भाई के हाथो सौप चुकी थी हमेशा से ही निधि अजय की ही थी ,आज अजय को भी इसका आभास हो गया ,निधि और अधिक उत्तेजित होकर उसके होठो को चूसने लगाती है और फिर दोनों तब तक अलग नहीं होते जब तक निधि बेहोश होने की हद तक नहीं आ जाती ,निधि का साँस फूलने लगा था पर वो अपने भाई से अलग नहीं होना चाहती थी ,वही अजय निधि के होठो को ऐसे पकडे हुए था की ना ही वो खुद भी सांसे ले पा रहा था ना ही निधि ही ले पा रही थी ,दोनों अलग हुए दोनों ही हाफ रहे थे एक दुसरे को देखकर वो खिलखिला पड़े और जैसे ही थोडा होश सम्हाल के उनकी सांसे सामान्य हुई वो फिर एक दुसरे के ऊपर टूट पड़े ,अब अजय का हाथ निधि के सर पर चला गया था ,उसे लगाने लगा की निधि के होठ ही इतने नशीले और आनद दायक है की उससे मन भरने में ही उसे बहुत समय लग जायेगा ,ना जाने कैसा रस था उनके होठो में जो खत्म ही नहीं हो रहा था और कैसा जनून था की वो होठो से आगे ही नहीं बढ़ पा रहे थे …………..एक प्यार की लहरों सा जो रेला चला था दोनों उसकी लहरों में सवार बस उस सफ़र का आनद ले रहे थे ….
 
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अध्याय 25

आज सोनल और रानी के जाने का दिन था ,सभी बहुत उदास थे, रेणुका अभी भी ससुराल से नहीं आई थी,छुट्टियों इतनी जल्दी खत्म हो जाती है किसी को भी पता नहीं चलता ,दोनों ही तैयार होकर निचे आते है इसबार किशन और विजय उन्हें छोड़ने शहर जाते है साथ में सुमन भी थी वो भी अपने माँ और भाई से मिलना चाहती थी ,साथ में कुछ पहलवान भी होते है जो अलग गाड़ी से जाने वाले थे ………….आँखों में आंसू लिए पूरा परिवार उन्हें विदा करने बहार आता है ,
"घर फिर से सुना हो जायेगा ,तुम लोगो के बिना "अजय सोनल के सर पर हाथ रखकर कहता है
"भईया आप लोग कभी कभी आया करो ना हमसे मिलने और कभी वहा भी रहा करो,"
"हा सोच तो मैं भी रहा था ,पर यहाँ का काम भी बहुत हो जाता है ना ,और ये तो हमारी मिटटी है इसे छोड़कर कहा जायेंगे ,तुम लोग अच्छे से पढाई करो निधि का भी एडमिशन इस सत्र से कॉलेज में करा दूंगा ,कम से कम वो तो मेरे पास रहेगी "सोनल और रानी अजय से लिपट जाते है ,

"वी मिस यु भईया,"
अजय भी दोनों के माथे पर एक किस करता है और उन्हें बिदा करता है ,
दोनों गाड़िया अपने रफ़्तार में थी ,जिस गाड़ी में विजय और बाकि लोग थे वो आगे चल रहा था वही पहलवानों की गाडी पीछे थी ,की अचानक ही पहलवानों की गाड़ी का चक्का हिलने लगता है ड्राईवर गाड़ी स्लो करता है और सर बहार निकल कर देखता है ,
"अरे यार साला टायर पंचर हो गया "डाइवर गाड़ी रोककर निचे उतरता है सभी पहलवान निचे उतर जाते है ,विजय की गाड़ी इतनी तेजी से जा रही थी की उन्हें ये भान भी नहीं रहा की दूसरी गाड़ी पीछे रह गयी है ,दूसरी गाड़ी के ड्राईवर ने विजय को काल कर बताया की गाड़ी पंचर है ,
"ठीक है हम लोग यही रुकते है तुम लोग स्टेपनी लगा कर आओ ,"विजय ने चिंतित स्वर में कहा
वो घने जंगल के बीचो बीच थे दूसरी गाड़ी लगभग 2-3 किलो मीटर ही दूर थी ,एक घना सन्नाटा सभी ओर पसरा था ,वही गाड़ी में बैठी लडकियों की आवाज से वो शांति का वातावरण ध्वनित हो रहा था ,

तभी कही से एक भाला फेका गया जो आकर सीधे गाड़ी के कांच को तोड़ता हुआ ड्राईवर के सीने में घुस गया कोई कुछ समझ पाते इससे पहले कोई एक दर्जन लोग हाथो में हथियार लिए गाड़ी को घेर कर खड़े हो जाते है कुछ वक्ती टंगिये से गाड़ी के सीसे पर वार करते है ,लडकियों के चिल्लाने की आवाजे पुरे माहोल में फ़ैल रही थी ,विजय इस अचानक हुए हमले से स्तब्ध था ड्राईवर के खून के छीटे अभी भी उसके चहरे पर थे ,सभी सिमट कर एक साथ हो गए थे वही कुल्हाडियो से कांच को तोड़ने की कोसिस जारी थी ,विजय फोन निकल कर सीधे पहलवानों को फोन करता है ,सभी पहलवान गाड़ी को वही छोड़कर भागते है वही दूसरी गाड़ी का ड्राईवर अजय को कॉल कर देता है ,इधर विजय अपनी पिस्तौल ढूंढता है पर आज उसकी किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी पिस्तौल उसके पास नहीं थी ,गाड़ी के सीसे टूटने को थे विजय बाहर निकल कर लड़ भी नहीं सकता है पूरी गाड़ी उनसे घिरी हुई थी और बहार निकलने का मतलब होगा की बहा बैठी लडिकियो पर वो सीधे आक्रमण करते …..विजय और किशन की आँखे मिली और जैसे उन्होंने इशारे में ही कुछ बात कर ली किशन पीछे से एक सरिया निकलकर विजय को देता है विजय अपनी तरफ के टूट रहे काच से उस सरिये को घुसा कर सामने वाले को अपने दरवाजे से हटने को मजबूर कर देता है ,जैसे ही उसे थोडा गेप मिलता है वो फुर्ती से अपने तरफ का दरवाजा खोलता है और बहार आते ही दरवाजा बंद कर देता है किशन भी फुर्ती दिखा उसे अंदर से लॉक कर देता है ,अब विजय बाहर था,कुछ लोग उसपर तलवारों से वार करते है वो अपने सरिये से उसे रोकता है सभी उसे गाड़ी से दूर ले जाने का प्रयास कर रहे थे ताकि जल्दी से जल्दी गाड़ी का कांच तोडा जा सके और अंदर आक्रमण किया जा सके ,
लेकिन विजयी उन्हें गाड़ी से दूर रखने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रहा था ,लेकिन वो दूसरी तरफ ड्राईवर सिट का शीशा तोड़ने में सफल रहे और गाड़ी को अनलोक कर दिया दूसरी तरफ से आक्रमण होने लगे सभी का बहार निकलना जरुरी हो गया था सभी विजय की तरफ बहार निकल गए किशन और विजय एक रक्षा कवच की तरह तीनो लडकियों को घेरे थे दोनों के हाथो में बस एक सरिया था ,ऐसे तो विजय बहुत ताकती था पर लडकियों को बचाने के कारण वो खुलकर नहीं लड़ पा रहा था ,उसका पहला उद्देश्य था की कैसे लडकियों को सेफ रखा जा सके थोड़ी देर तक किशन और विजय के बचाव के कारन कोई भी उन्हें छू नहीं पाया तभी पहलवानों की चिल्लाने की आवाजे सुनाई देने लगी वो पास आ चुके थे ,की उनमे से एक व्यक्ति ने इशारा किया और सभी उन्हें वही छोड़कर भागने लगे उनकी मद्दत वहा से कुछ दूर पर बैठे कुछ व्यक्ति तीर कमान से कर रहे थे उनके कारण विजय उनके पीछे भी नहीं जा पाया ,पहलवानों के आते ही विजय लडकियों को पहलवानों के सुपुर्द कर उनलोगों के पीछे भागता है पर तब तक वो दूर निकल चुके थे ,

साफ़ था की योजना बड़े ही इत्मिनान से बनायी गयी थी ,और योजना बनाने वाले को पता था की वो कब निकलेंगे और किस गाड़ी से जायेंगे,
सभी शहर वाले घर में बैठे थे ,डॉ चुतिया,बाली और अजय भी वहा पहुच चुके थे ,दोनों ही चिंतित लग रहे थे ,
"पूरी प्लानिंग के साथ आये थे साले "विजय चिंतित होकर कहता है
"डॉ साहब अब मुझे लगता है की बहनों को गाव में ही रहने दिया जाय ,यह अकेले है खतरा भी बढ़ रहा है ,आज इतना बड़ा हमला हो गया पता नहीं आगे क्या होगा,"अजय भी चिंतित स्वर में कहता है ,
"यहाँ अगर हमला होना होता तो हो चूका होता ,यहाँ लडकिय सुरक्षित है ,फ़िक्र की कोई भी बात नहीं है ,लेकिन मुझे लगता है अब हमें कलवा को वापस लाना ही पड़ेगा,वही है जो शायद इसका पता लगा पाय की ये खेल कौन खेल रहा है," डॉ ने संजीदगी से कहा
"आप समझ नहीं रहे है डॉ ये हमारे परिवार का मामला है "विजय की आवाज थोड़ी जोर से हो गयी थी ,
"विजय डॉ साहब भी हमारे परिवार का ही हिस्सा है," अजय ने उसे शांत करते हुए कहा ,विजय बस झुंझलाकर रह गया …
"ह्म्म्म सही कहा डॉ अब कलवा को भी वापस आना ही होगा ,"बाली एक गहरी साँस लेता हुआ कहता है ,
"मैं साले इन तिवारियो को छोडूंगा नहीं मेरे परिवार पर हमला करते है ,भईया अब समय आ गया है की खून की होली खेली जाय ,एक लड़ाई आर पार की "विजय की आँखों में खून सवार था …की डॉ के जोरो से हसने की आवाज गूंज गयी सभी आश्चर्य से उन्हें देखने लगते है ,
"तो तुम्हे अब भी लगता है की ये हमला तिवारियो ने करवाया है ,हा हा हा "सभी की निगाहे डॉ पर थी वो आगे कहते है ,

"अगर तिवारियो ने ये हमला कराया होता तो हमलावरों के पास कम से कम एक पिस्तौल तो होती ,लेकिन नहीं थी तलवार ,तीर कमान ,और भाले ,कौन लड़ता है ऐसे आजकल ,जरुर कोई गरीब आदमी होगा ,जिसके पास या तो पैसे नहीं या दिमाग नहीं है ,लेकिन दिमाग तो है इतनी अच्छी प्लानिग किया ,तुम्हे भी पता है की कितना मुस्किल होता है ऐसे किसी पर हमला करना ,जब साथ में 7-8 प्रशिक्षित पहलवान हो हथियारों से लेस हो ,ना जाने कितने दिनों का इन्तजार किया गया होगा इसके लिए की कैसे दो गाडियों को अलग किया जाय ,और अब उनके लिए और भी कठिन हो गया है हमला करना क्योकि वो जानते है की अब तुम लोग सुरक्षा और भी बड़ा दोगे ….सोचो कितने दिनों तक इन्तजार किया होगा इस आदमी ने ये जो भी हो ……….तुम्हारे माँ बाप के ऊपर हमला हुए ही 12-13 साल हो चुके है ,ये दूसरा हमला है ,कितना धैर्य इतनी समझ …….."डॉ फिर चुप हो गए और सोच में गुम हो गए ,वही डॉ की बातो से बाकि लोग भी सोच में गम हो गए ,ये बात तो सही थी की जो भी किया गया बहुत धैर्य के साथ किया गया था ,और उनके परिवार पर होने वाला दूसरा हमला था…डॉ ने फिर से कहना शुरू किया
"अजय तुम्हे सुरक्षा की फ़िक्र करने की जरुरत नहीं है ,तुम्हारे पास आज भी पर्याप्त सुरक्षा है ,और हमेशा से रही है ,वो तुम्हारा या तुम्हारे परिवार का कुछ भी नहीं बिगाड़ पायेगा और ये बात उसे भी पता हो गयी होगी ,मुझे नहीं लगता की तुम्हारे ऊपर अब कोई दूसरा हमला होगा,इतने दिनों में उसे भी पता चल ही गया होगा की तुम्हारा सुरक्षा घेरा कितना मजबूत है…वो तुम्हे दुसरे तरीको से मारने की कोशिस करेगा ,पहले तो ये पता लगाओ की आखिर अंदर की बाते उन्हें पता कैसे चल रही है ,क्या कोई ऐसा है जो तुम्हारे घर में रह रहा हो और किसी दुसरे के लिए काम कर रहा हो ,"
"डॉ साहब हमारे घर में तो सभी पुराने लोग ही है ,बाकि हम किसी को काम पर रखते ही नहीं "
"कही सुमन "विजय के मुह से अनायास ही निकल गया
"नही वो लड़की नहीं हो सकती ,कोई और ही है …….."डॉ बोलते बोलते सोच में पड़ जाते है …
तभी सुमन वहा आती है ,
";भईया मैं घर जाना चाहती थी माँ और भाई से मिल लेती "सभी उसे घुर कर देखते है विजय अब भी उसे शक के नजरो से देख रहा था पर डॉ और अजय को उसपर भरोसा था ,
"ठीक है तैयार हो जाओ मैं छुडवा दूंगा "अजय कहता है
"ठीक है भईया "सुमन वहा से चली जाती है ,उसके जाते ही विजय फिर से अपनी बात पर जोर देता है
"हमारे घर में सभी लोग पुराने ही है बस यही है जो अभी अभी आई है ,भईया एक बार चेक करने में क्या जाता है ,"
"हा अजय ,विजय की बात ठीक ही है एक बार इसके साथ जा कर चेक किया जाय की इसका बेकग्राउंड कैसा है ,मैं इसके साथ जाता हु आज मुझे यहाँ की समझ भी है पता लगाना आसान हो जायेगा ,"डॉ की बात से सभी सहमत हो जाते है ,
थोड़ी देर में डॉ सुमन के साथ उसके घर की ओर चल देते है ,एक पतली बस्ती में उसका घर था ,डॉ के लिए जगह चिर परिचित थी लेकिन बहुत दिनों से वो वहा आये नहीं थे ,गाड़ी उन्हें घर से कुछ दूर ही छोड़ना पड़ा ,झुग्गी जैसी बस्ती में सुमन और डॉ चलते गए ,पहले तो सुमन ने मना किया था की बहार ही छोड़कर चले जाय पर डॉ ने साथ चलने की जिद कर ली ,…एक छोटा सा मकान का छोटा सा दरवाजा और गलियों के हालात ही डॉ को ये बता रहे थे की इनकी आर्थिक स्थिति क्या होगी ,मकान बस एक कमरा ही था बस एक ही कमरा और सभी चीजे सलीके से जमी हुई थी ,लगता था की सुमन ने ही इस छोटे से एक कमरे के घर को ऐसा सजाया होगा ,खिडकियों के आभाव में कमरे में एक अजीब सी नमी और गंध थी ,कमरे में दवाइयों की गंध फैली हुई थी जो किसी बीमार की मौजूदगी का संकेत देती थी,प्रकाश का साधन केवल एक छोटा सा माध्यम रौसनी से जलता हुआ बल्ब थी था ,जिसका दुधिया प्रकाश कमरे में दुधिया उजाला कर रहा था ,दो बिस्तर जमीन में लगे हुए थे ,जिनमे एक को सलीके से फोल्ड कर रखा गया था जिससे कमरे में थोड़ी जगह बने ,दुसरे बिस्तर में एक महिला उम्र कोई 35-40 की दिखाई दि ,समझते देर नहीं लगी की यही सुमन की माँ है ,वक़्त के थपेड़े ने उसे इतना मारा था जो उसके चहरे और उसकी काय से साफ ही पता लग रहा था ,कुछ किताबे एक और पड़ी हुई थी ,पूरा घर साफ़ सुथरा था ,जो गरीबी के बाद भी खुद्दारी और आत्मविश्वास की निशानी था ,
सुमन को देखते ही महिला उठी और आकर उसे अपने सीने से लगा लिया ,पर जब उसे भान हुआ की साथ में कोई और भी है वो उस वक्ती को देखती है और अपने किये पर शर्मिंदा होती है ,

"डॉ साहब आइये ना ,माफ़ कीजिये हमारे घर में आपको बैठाने के लिए खुर्शी भी नहीं है ,यहाँ आइये "सुमन ने बड़े प्यार और इज्जत से डॉ को बिस्तर पर बैठने का इशारा किया डॉ बहुत ही ख़ुशी से इस आग्रह कोई स्वीकार करते है ,
"माँ ये डॉ चु….ये डॉ साहब है हमारे मालिक के खास दोस्त है और यहाँ के जाने माने इंसान है,और डॉ साहब ये मेरी माँ है "
डॉ के चहरे पर एक हलकी सी मुस्कान आ गयी लेकिन उन्होंने बता ही दिया ,
"नमस्ते मेरा नाम डॉ चुन्नीलाल है लोग मुझे प्यार से चुतिया डॉ कहते है "जहा डॉ की बात से सुमन शर्मिंदा सी हो गयी और डॉ को गुस्से से देखती है डॉ एक मुस्कान सुमन की ओर देते है वही सुशीला के चहरे का भाव बदलने लगता है ,
"चुतिया डॉ "उसकी माँ हलके आवाज में कहती है मानो अतीत की किसी यादो में कोई भुला हुआ सा याद ढूंड रही हो ,उसके चहरे के भाव को दोनों जन पढ़ लेते है ,
"क्या हुआ माँ "सुमन थोड़ी सी घबरा जाती है ,
"आप ही डॉ चुतिया है ,"वो बड़े ही आश्चर्य से डॉ को देखती है ,
"जी हा क्या आप मुझे जानती है "
"हा हा यानि नहीं जानती तो नहीं पर मैंने आपके बारे में बहुत सुना है "वो बहुत ही उत्तेजित होकर कहती है जैसे उसे कोई पुरानी बात याद आ गयी हो
"किससे "डॉ उसे इस तरह व्यवहार करता देख उत्सुकता से पूछता है
वो बताना शुरू करती है ,उसकी आँखों में पानी की धार थी जो कडवे अतीत की यादो से आई थी वही सुमन को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की क्या बाते हो रही है और क्यों …लेकिन डॉ ……डॉ के चहरे पर एक ख़ुशी साफ़ तौर से खिल गयी थी उसका चहरा चमकने लगा था ……..
 
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इधर घर में अजय के पास फोन आता है जिसे सुनकर उसका चहरा ख़ुशी से खिल जाता है ,बाली उसके चहरे के भाव देखकर
"क्या हुआ अजय खुश लग रहे हो "
"हा चाचा कलवा चाचा इस घटना के बारे में जानकर वापस आ गए है ,"
बाली भी ख़ुशी से झूम गया
"अब कलवा आ गया है तो कोई फिकर नहीं है मुझे ,डॉ को फोन लगा तो "
जी चाचा ,अजय डॉ को काल करता है
"हल्लो अजय "
"डॉ साहब कलवा चाचा वापस आ गए "
"वो तो होना ही था ,वो आज भी उस घर का वफादार है और तुम्हारे परिवार पर कुछ आंच आये और वो ना आये ये तो नहीं हो सकता ना "
"जी डॉ हम लोग आज ही गाँव निकल रहे है ,आप भी चले कलवा चाचा आपको देखकर खुश हो जायेंगे "
"नहीं अजय मैं एक दो दिन में आता हु ,सुमन को लेकर और यार तुम भी बाद में जाना क्या जल्दी है बूढ़े के लिए अपने बूढ़े बाली चाचा को भेज दे,तू आया है तो थोडा एन्जॉय करके जाना "अजय को हसी आ गयी बाली वही बैठा उसे पूछता है क्या हुआ वो कुछ नहीं में सर हिलाता है ,
"नहीं डॉ साहब अभी एन्जॉय करने का समय नहीं है मैं और बाली चाचा गांव को निकल रहे है,किशन और विजय को दो दिनों के लिए यही छोड़ रहा हु,आप लोग साथ ही आ जाना "
"अच्छा ठीक है "

अजय और बालि गांव को निकल जाते है वही अब विजय और किशन भी थोड़े रिलेक्स हो जाते है ,कलवा का आना ही काफी था सभी को रिलेक्स करने के लिए ….दिन भर की थकान ने सभी को जल्द ही नींद के आगोश में सुला दिया ,,,
सुबह से ही सोनल और रानी कॉलेज के तैयार होने लगे वही विजय और किशन को समझ नहीं आ रहा था की वो आज क्या करे ,
"अरे भाई हमारे साथ कॉलेज चलो ना ,पर किसी को मत बताना की आप हमारे भाई हो "सोनल ने रानी को आँख मरते हुए कहा
"लेकिन हम वहा क्या करेंगे और हम तो आजतक कॉलेज नहीं गए हम अखंड देहाती लोग है वह तुम्हारे दोस्तों के सामने तुम्हारी इज्जत जाती रहेगी ,"किशन ने यु ही कहा जिसपर सोनल की आँखों में गुस्सा भर गया ,
"किसकी इतनी हिम्मत है की मेरे भाइयो को कुछ बोल दे ,तुम लोग हमारी शान हो समझे ,और अब चुप चाप चलो हमारे साथ ,"सोनल के गुस्से को देखकर विजय को हसी आ गयी और वो उसे पीछे से पकड़ लिया ………
"अरे मेरी जान को गुस्सा आ गया ,ठीक है हम साथ चलेंगे पर तुम अपने दोस्तों से क्या कहोगी हम कोण है ,बॉयफ्रेंड "
"अरे यार भाई तुम लोग भी ना कौन पूछेगा यहाँ ,और बोल देंगे दोस्त हो "सोनल विजय की बांहों में मचलते हुए बोलती है ,
"ओके दीदी हम लोग भी तो बोर हो रहे है चलो कम से कम आपकी सहेलियों को ही लाईन मार लेंगे "किशन की बात सुनकर रानी और सोनल जोरो से हस पड़े विजय और किशन को समझ नहीं आया की क्या हुआ
"भाई माँ ने हमें सब बता दिया है की कैसे तू और सुमन ….ही ही ही अब भी लाइन मरना है किसी को …ही ही "रानी हस्ते हुए बोली और सोनल ने उसका साथ दिया
वही विजय और किशन हस्तप्रद से खड़े थे ,किशन के दिमाग में ये नहीं आ रहा था की माँ को कैसे पता चला वही विजय को ये नहीं समझ आ रहा था की आखिर इस कमीने के कर क्या दिया जो चाची को भी पता चल गया….
"माँ ने यानि क्या बता दिया "

"अरे यही उस दिन गार्डन में …."रानी बोलती हुई किशन के बांहों में झूल जाती है और उसका चहरा अपने हाथो में भर लेती है ,
"भाई मैं बहुत खुश हु की तुझे प्यार हो गया ,गार्डन में माँ ने तुम्हे देख लिया था ,सुमन अच्छी लड़की है और माँ भी इससे बहुत खुश है और मैं भी आखिर पहली बार मेरे कमीने भाई को किसी लड़की से प्यार हुआ "रानी की आँखों में आंसू था वही वो उसके चहरे को चूम रही थी ,विजय सोनल को पकडे हुए था, सोनल उनका प्यार देख खुद को रोक नहीं पायी और अपना सर उठाकर विजय को देखती है सोनल के भीगे हुए नयना विजय को प्यार का संकेत दे रहे थे वो अपना सर झुकता है और अपने होठो को उसके होठो के पास लाता है ,वो दोनों ये भी भूल जाते है की यहाँ किशन और रानी भी है सोनल भी तड़फती हुई अपने होठो को विजय के होठ से लगाती है विजय का जीभ अपने आप ही सोनल के होठो में चला जाता है ……….दोनों एक दुसरे की गहरइयो में गोते लगाने लगते है वो प्यार के अहसास में दुनिया को भूल चुके होते है ,विजय सोनल को पीछे से पकड़ा था उसके हाथ सोनल के कमर को जकड़े हुए थे वही सोनल के हाथ विजय के सर को पकडे हुए थे ,
वही रानी और किशन दोनों को आँखे फाडे देख्र रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे ये दोनों कोई प्रेमी युगल हो ….हा वो प्रेमी तो थे पर एक रिश्ते के बंधन में बंधे हुए …रानी किशन को देखती है उसकी आँखों में एक अजीब सा आश्चर्य होता है जैसे पूछ रही हो ये क्या हो रहा है किशन भी रानी को देख कर अपने कंधे उचकता है ,पर दोनों को इस तरह से देखना उनके मनो को भी थोडा भीगा देता है ,,,रानी किशन से चिपकी हुई ही खड़ी थी वो ऊपर उठकर किशन के होठो को चूम लेती है ,किशन उसे झूठे गुस्से से देखता है वही रानी उसे एक मुस्कान देती है ,जब तक विजय और सोनल भी अलग हो जाते है दोनों को जब ये आभास होता है की सामने रानी और किशन है दोनों शर्म से गड जाते है ………
"ओह हो प्रेमी जोड़ा ,शर्म नहीं आती आप लोगो को आप भाई बहन हो या बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड जो होठो में होठो को भरकर चूस रहे हो ,और विजय भईया आपतो इमरान हासमी बन गए हो ऐसा लग रहा था दीदी के होठो को खा ही जाओगे "रानी हलके झूटे गुस्से और एक मुस्कान के साथ कह गयी ,सोनल शर्म से लाल हो गयी थी वही विजय भी अपनी नजरे नीची किये खड़े थे ,किशन अब भी आँखे फाडे उन्हें देख रहा था उसे समझ ही नहीं आ रहा था की क्या कहू और क्या करू …..ये गलत है या सही है उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था ,
"क्यों क्या हुआ अब सर झुकाए क्यों खड़े हो आप लोग "रानी ने फिर से कहा
"वो रानी वो बहन "सोनल कुछ बोलने की कोसिस करती है पर कुछ बोल नहीं पाती
"हा क्या हुआ बोलो बोलो "

"मैं सोनल से बहुत प्यार करता हु ,और ठीक है की वो मेरी बहन है पर मुझे इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता ,और तू भी मेरी बहन है तुझे अगर ये गलत लगता है तो हमें सजा दे तेरा पूरा हक़ है हमपर …तू मार दे या जान से ही मार दे बहन अगर प्यार करना और जाताना गलत है तो हा हमसे बहुत बड़ी गलती हुई है और हम ये गलती हमेशा करेंगे "विजय ने अपने ठोस से शब्द रख दिए उसके बोलने में एक विस्वास था जो सभी को हिला कर रख दिया,
रानी के आँखों में आंसू आ गए और सोनल ने विजय को अपनी बांहों में भर लिया ,और उसकी छाती में सर छुपा कर अपने को उसके हवाले कर दिया जैसे अब उसे कोई भी नहीं रोक सकेगा ,
"भाई मैं जानती हु आप एक दूजे से बहुत जादा प्यार करते हो ,और आप कुछ भी करो वो गलत नहीं हो सकता ,क्योकि प्यार में कुछ भी गलत नहीं होता,पर ये दुनिया की नजरो में गलत है आप हमारे सामने ये कर दिए पर दुनिया के सामने ना करे ,ये दुनिया प्यार को नहीं समझ पाती,अगर भाई बहन भी एक पार्क में बैठे बाते कर रहे हो तो भी लोग उसे गलत निगाहों से ही देखते है ,और मैं तो हमेशा चाहती हु की हमारा प्यार ऐसे ही बना रहे"रानी की आँखों से आसू आ रहे थे विजय सोनल को छोड़कर रानी को अपनी ओर खिचता है और अपनी बांहों में भर लेता है वही किशन की आँखों में भी आंसू आ जाते है और सोनल उसके गले से लग कर उसके गालो में एक चुम्मन देती है ,किशन के चहरे पर एक शरारती मुस्कान आती है और वो अपने होठो पर उंगली रखकर सोनल को इशारा करता है की यहाँ ,सोनल झुटा गुस्सा दिखा कर उसे एक मुक्का मरती है और उसके सीने से लग जाती है , सभी हसने लगते है ,किशन सोनल के बालो को सहलाता है और तभी सोनल अपना सर उठाकर किशन के होठो पर हलके से किस करती है और मुस्कुराते हुए फिर उसके छाती पर अपने चहरे को छुपा लेती है ,किशन भी मुस्कुराता हुआ उसके सर पर एक किस करता है………………
 
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अध्याय 27

अजय घर पंहुचा सभी कलवा के आने से बहुत खुश दिख रहे थे ,खासकर सीता मौसी …
सीता मौसी और चंपा आज एक साथ ही बैठे थे पास ही कलवा भी बैठा था,वही निधि भी कान में हैडफ़ोन डाले चंपा के गोद में सोयी थी ,अजय और बाली ने जब ये सब देखा तो वो भी दिल से खुश हो गए ,ये पहली बार था जबकी बाली ने चंपा को अपनी भतीजियो पर यु दुलार दिखाते देखा था,कलवा के आने से घर में एक सकारात्मक उर्जा का संचार हो रहा था ,कालवा ने जब दोनों को देखा तो अपनी बांहे फैला कर खड़ा हो गया दोनों उसके गले से लग गए ,जब सब कुछ सामान्य हुआ तो सभी बैठकर मस्तिया करने लगे थे ,कलवा को घर के बाकी बच्चो की याद सता रही थी ,अजय ने उसे भरोसा दिया की वो बस दो दिनों में ही वापस आ जायेंगे …..सबसे खास बात आज ये थी की चंपा भी सबके साथ साथ थी ,वो किसी किसी बात पर हलके से मुस्कुरा देती ,बाली चोर नजरो से उसे देख लिया करता कभी वो चोर नजरो से बाली को देख लेती ,पर दोनों के बीच कुछ भी बाते नहीं होती ,सालो का वैमनस्य था दोनों के बीच ऐसे कैसे ठीक हो जाता ,वही कलवा दोनों की इस दुविधा को समझ रहा था ,
कालवा से आश्रम के बारे में सुन सुन कर वह की खूबसूरती की बाते सुन सुन कर निधि को फिर से वहा जाने का मन करता है और वो चंपा के गोदी से उठकर जाकर अजय को पकड़ लेती है ,
"भाई मुझे फिर से आश्रम जाना है "
"हा चलेंगे ना "

"अभी "
"पागल है क्या अभी कहा जायेंगे ,कितना समय हो गया है शाम होने वाली है "
"नहीं अभी "निधि अजय को कसकर पकड़ लेती है ,जिसे देख सभी हस पड़ते है
"और चड़ा के रख अपनी इस दुलारी को,कितनी जिद्दी हो गयी है "सीता मौसी उसकी टांग खिचती है ,सभी हस पड़ते है पर निधि को जैसे किसी की बातो से कोई भी फर्क नहीं पड़ रहा था,अजय की दुविधा देख कलवा कहता है
"बेटा अभी नहीं जा सकते वहा और अगर चले भी गए तो क्या ही देख पाओगे ,कल सुबह चले जाना ताकि दिनभर घूम के आ जाओ "
"अरे काका कल तो कोई भी नहीं आया होगा ,कुछ दिन बाद चल देंगे जब सभी आ जायेंगे "
"आप लोग मुझे कही नहीं घुमाने नहीं ले जाते ,मैं घर में बैठी बोर हो जाती हु , मुझे आज के आज जाना है मैं कुछ नहीं जानती ,फिर मेरा कॉलेज चालू हो जाएगा तो कहोगे की पढाई करो ,कॉलेज छोड़कर कहा जाओगी ,"निधि का मुह फुल चूका था ,अजय को बुरा तो लगा पर वो जानता था की शाम होने को है और वहा जाना खतरों से खाली नहीं है ,और वो रात तक वापस भी नहीं आ सकते …अजय को देखकर कलवा उसे अलग से बुलाता है ,
"देखो अजय अगर निधि जिद ही कर रही है तो तू उसे वहा ले जा ,वहा आश्रम में रात को सोने का इंतजाम हो जायेगा और वहा नहीं जाना चाहोगे तो मेरी एक झोपडी है ,जहा मैं रहता था , तुम वहा रुक जाना ,जो झरना तुमने देखा था बस उसके पास ही है ,तुमने देखा भी होगा ,"
"हा काका देखा है पर ,निधि को लेकर जाना और अकेले ,मुझे सही नही लग रहा है ,और आप तो जानते है की हमारे आने जाने पर कोई नजर रखे हुए है ,हमले का डर हमेशा लगा रहता है ,और इस पागल लड़की के जिद में मैं इसे मुस्किल में नहीं डाल सकता "कलवा के चहरे पर मुस्कान आ गयी
"तुम सही कह रहे हो पर एक काम करो की तुम उसे मना कर दो ,वो रोती हुई नाराज होकर अपने कमरे में चली जायेगी तब कुछ देर बाद तुम उसके पास जाना और उसके साथ पीछे के गेट से निकल जाना ,जाने के लिए कोई ऐसी बाइक ले जाओ जिसे कोई भी पहचाने और अपने कपडे भी बदल लो ,ऐसे उस इलाके में अभी शांति है और मुझे तुम पर पूरा भरोषा है की अगर कुछ हुआ भी तो तुम सब सम्हाल लोगे ,और तुम्हे कुछ परेशानी हो गयी तो तुम बाबा जी के पास मदद को जा सकते हो ,किसी की इतनी हिम्मत नहीं है की उनके आश्रम में घुस जाए ,"
कलवा की बात अजय को समझ आ गयी और वो जाकर निधि को डांटकर मना कर देता है और सचमे निधि मुह फुलाकर वहा से चली जाती है ,

जब सब चले गए बस कलवा और बाली ही गार्डन में रह गए थे,
"अब चंपा पहले जैसी नहीं रह गयी ,मैं जब से आया हु मुझे ये देख कर ख़ुशी हुई की वो कैसे निधि को माँ जैसा प्यार कर रही थी ,"कलवा बाली की ओर देखता हुआ कहता है ,दोनों बचपन के दोस्त थे वही कलवा ही था जो चंपा को को भी बाली की शादी से पहले से जानता था,असल में तो उसे ने ही दोनों को मिलाया था क्योकि वो बजरंगी से मिलने तिवारियो के गाव जाता रहता था ,
"हा यार बात तो सही है ,मुझे भी ये देख कर बहुत ख़ुशी होती है ,पर काश वो हमेशा से ऐसी रहती तो …"बाली की आँखे नाम हो चुकी थी ,कलवा उसके कंधे पर हाथ रखता है ,

"भाई जब जागो तभी सवेरा,तुमने भी बहुत पाप किये है अपनी जिंदगी में समझ ले ये उसका ही परिणाम था ,अब उसके साथ अच्छा बरताव किया कर ,उससे बात किया कर ,और उसने जो भी किया वो तिवारियो के भड़काने पर किया था ,लेकिन जब से वीर भईया गए है ,वो उनके संपर्क में नहीं रही ,इतने सालो से वो सबसे दूर रही है ,यही उसकी सजा सजा है मेरे भाई "कलवा की बातो से बाली की मन की दुविधा जाती रही ,कुछ दिनों से वो चंपा को देख रहा था और उसका गुस्सा उसके लिए धीरे धीरे कम हो रहा था,जो अब पूरी तरह से कम हो चूका था ,पर एक दुविधा सी उसके मन में जरुरु थी जो की अब कलवा के समझाने से कम हो चुकी थी ,
"तू तो पूरा ही बाबा बन गया बे "बाली ने मजाक में कहा और दोनों हसने लगे
"चल आज मेरा भाई आया है आज दारू पीते है ,पहले की तरह ही शुद्ध देसी वाला मउहा,जगलो में जाकर ,देशी मुर्गे के साथ बिलकुल शुद्ध और प्राकृतिक ,क्या बोलता है फिर से जवानी के दिन जीते है "कलवा भी हस पड़ा
"साले तू अभी भी इन सबके शौक रखता है "

"क्या करू भाई जब से तू गया है किसके साथ जाता ,सब छुट गया है ,याद है पहले कैसे हम दोनों भईया से छुपकर जगलो में जाया करते थे ,देसी मऊहा ,देसी मुर्गा ,और देसी लडकियों के साथ ,….हा हा हा क्या दिन थे यार वो भी ,"बाली याद कर थोडा इमोशनल सा हो जाता है ,
"हा यार क्या दिन थे ,पर अब नहीं ये सब छोड़ चूका हु मैं ,यही शराब थी जिसने ना जाने कितने गलत काम कराये है हमसे ,वीर भईया ने हमें कभी भी मन नहीं किया पर इसका हमने क्या फायदा उठाया ,पता नहीं कितनी लडकियों की जिंदगी से खेल गए ,"कवला थोडा उदास सा हो जाता है ,
"क्या गलत किया था भाई ,क्या कभी किसी लड़की को बिना उसकी मर्जी के कुछ किया है हमने ,"
"हा नहीं किया पर क्या हमने जो किया वो सही था "
"अबे वो हमारी जवानी थी ,लडकिय भी तो अपने कपडे हमारे लिए ऐसे ही खोल दिया करती थी ,हा हा हा "
बाली की बात सुन कर कलवा भी मुस्कुरा देता है ,
"चल बस हो गया अब हम भी बड़े हो चुके है और हमारे बच्चो के दिन आ गए है ,तू चंपा से जाकर बात तो कर ,अब उम्र के इस पड़ाव में भी क्या तू और वो अकेले ही रहोगे ,जिंदगी भर तो तूने उसे प्यार नहीं दिया अब दे दे ,"कलवा की बात बाली को समझ में तो आ चुकी थी पर इसपर अमल करना थोडा मुस्किल मामला था ……….क्योकि सालो से दोनों ने आपस में बात नहीं किया था …
 
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अध्याय 28

इधर शहर में ………..
सोनल ,रानी ,किशन और विजय कॉलेज के लिए निकल जाते है ,किशन ने जहा एक ब्लू टी-शर्ट पहना था वही विजय ने ब्लैक वही किशन जहा ब्लैक जींस में था वही विजय डेनिम ब्लू जींस में ,,,,,कातिल और क्लासिक कॉम्बिनेशन लेकिन विजय के सामने किशन फीका ही दिख रहा था ,उनकी बहनों ने अपने भाइयो के लिए इस्पेसल शोपिंग की थी ,ये उनकी ही चॉइस थी ,विजय का गोरा रंग काले रंग में और भी खिलकर आ रहा था ,वो किसी रियासत के राजकुमार सा लग रहा था ,बस माथे पर लाल टिका और हाथो में एक तलवार की कमी थी,….उसका लम्बा चौड़ा शारीर उसमे ऐसे खिल रहा था की कोई भी देखे तो बस थोड़ी देर के लिए देखता ही रह जाय ,ऐसे तो दोनों के परिधान बहुत ही सोबर थे पर उनकी पर्सनाल्टी को देख कर माडल भी जलन खा जाते ,विजय के कसे हुए डोले चौड़ा सीना और सपाट पेट ,दुधिया गोरा तेजमय उसका शारीर ,और उसकी लम्बाई ……दूसरो की बात छोडो दोनों बहनो की ही नजर अपने भाइयो से नहीं हट रही थी ,विजय की पर्सनाल्टी के सामने किशन टिक नहीं पा रहा था लेकिन वो किसी चोकलेटी बॉय सा लुक कर रहा था ,उसका शारीर विजय जितना चौड़ा तो नहीं था पर लम्बाई और गोरा रंग मासूम सा छरहरा बदन उसे चोकलेटी लुक दे रहे थे ,उसके चहरे में वो तेज नहीं था जो विजय और अजय के रंग में था ……….
जब चारो कॉलेज में इंटर हुए तो शायद ही कोई होगा जिसने इन दोनों नए लडको को मुड कर और घुर कर नहीं देखा हो ,सोनल और रानी तो थोड़े घबरा भी गए थे ,क्योकि उन्हें पता नहीं था की उनके भाई इतने ज्यादा हैण्डसम है,की लडकिय तो लडकिय लड़के भी उन्हें घुर रहे थे ,खासकर विजय को ,एक तो उसकी लम्बाई और शारीर ही ऐसा था की वो अलग से ही दिख जा रहा था ,ऊपर से उसके अंदर का वो तेज जो शहर में रहने वाले लडको ने शायद कभी जाना ही नहीं था ,एक आजीब सा तेज होता है जो बयां नहीं किया जा सकता ये तेज आता है ,सही खाने पिने से ,व्ययाम से ,निश्चिन्त दिनचर्या से ,और कुछ कुछ अपने खानदान से …सोनल और रानी उन्हें केंटिन में ले गयी ,उनके लगभग सभी दोस्त अजय और विजय से मिल चुके थे इसलिए उन्होंने सच्चाई नहीं छुपाई और उन्हें सबसे इंट्रो कराया ,विजय उस दिन तो अजय के साथ था और इसलिए बड़ी ही शराफत से सबसे मिल रहा था पर आज इतनी लडकियों को देखकर वो बहुत ही खुश था ,ऐसा लग रहा था की शेर को खरगोशो का झुण्ड मिल गया हो ,वही किशन अब प्यार का मारा हो गया था उसे सभी के बीच सुमन की ही याद आ जाती है ,विजय अपने रंग में आ रहा था ,सोनल उसे बार बार आँख दिखाती और वो थोडा चुप हो जाता ,पता नहीं क्या था साले में की सभी लडकिय उससे जोक की तरह चिपकी जा रही थी,ऐसे की सोनल रानी किशन और खुसबू (सोनल की बेस्ट फ्रेंड जो अजय की दीवानी थी )दुसरे ही टेबल में आ गए ,और विजय सभी लडकियों से घिरा हुआ दुसरे टेबल में था ,

"तेरा भाई पागल है "खुसबू ने हस्ते हुए कहा
"तो तू भी जा ना उसी के साथ बैठ "सोनल चिड़ते हुए बोली
"अरे मैं तो तेरे अजय भईया की दीवानी हो गयी हु ,पता नहीं जब से उनको देखा है ….."खुशबु खो सी गयी अपने और अजय के बीच की गहराई को वो अच्छे से जानती थी ,वो जानती थी की अगर उनके बीच कुछ हुआ तो वही इतिहास फिर से दोहराया जाएगा जो उसके बुआ के समय में हुआ था ,वही कत्लेआम वही नफरत ………खुशबु के आँखों में फिर से पानी आ गया जिसे सोनल ने देख लिया ,
"अरे मेरी जान अब ऐसा भी क्या प्यार की जुदाई में रोना शुरू कर दो ,हा …मेरी गारंटी है की तू ही मेरी भाभी बनेगी ,"सोनल ने खुशबु के बाजुओ को हलके से चुटकी काटी की खुशबु हस पड़ी

"क्या पता बहन ,वक़्त को क्या मंजूर है ,"वो शून्य आकाश में देखने लगी थी
वही किशन एक अनजान नजरो से खुशबु को देख रहा था उसे समझ नहीं आया की आखिर ये हो क्या रहा है ,
"ये हमारी भाभी जी है,अजय भईया की गर्लफ्रेंड और होने वाली बीवी चलो पाओ छुओ "रानी को मजाक सुझा ,किशन को थोडा यकीं नहीं आया पर सोनल और खुशबू की बाते और खुसबू का इतनी गंभीरता दिखाना ….वो उठा और खुशबु के पैरो को छूता हुआ ,
"पाँव लागी भाभी जी "किशन के इस कारनामे से अपने खयालो में खोयी हुई खुशबू अचानक ही जागी और खड़ी हो गई ,उसने आसपास देखा रानी और सोनल पेट पकड़ कर हस रहे थे वही बेचारा किशन मासूम सा खड़ा था ,पुरे केंटिन में उसे देखने वाला और कोई नहीं था ,एक कोने में विजय के टेबल के आसपास लकिया ऐसे मंडरा रही थी जैसे वह कोई क्लास चल रही हो ,वो उन्हें पता नहीं क्या क्या कहानिया सुना रही थी लडकिय बीच बीच में जोरो से हस्ती ,वो किसी के गालो को किसी के बालो को छूता और वो लड़की शर्मा जाती वही बाकि जलने लगते ,ऐसा लग रहा था की कोई हैण्डसम सा प्रोफ़ेसर क्लास ले रहा हो …वही कुछ लड़के भी वहा बैठे उसे जलन की निगाहों से देख रहे थे ,
खुसबू और किशन को जब समझ आया की ये एक मजाक ही वो भी हसने लगे और खुशबु ने सोनल को एक हलके से मुक्का मारा ,
"तो तूने नितिन को बताया क्या अजय भईया के बारे में "सोनल ने बातो के दौर में ही पूछ लिया ,खुसबू ने उसे एक गंभीर सा चहरा बनाया और
"तूने बताया क्या ……….,"खुशबु का इतना ही बोलना था की सोनल ने अपनी आँखे बड़ी करके उसे रोक दिया जैसे कह रही हो कुछ भी मत कहना ,खुशबू समझ गयी थी की किशन पास ही और किसी को कुछ भी नहीं पता ,खुशबु ने टॉपिक पलट दिया
"तूने बताया क्या अजय को मेरे बारे में "सोनल और रानी ने राहत की साँस ली ,
"भाई देख ना ये विजय क्या कर रहा है ,हमें क्लास भी जाना है ,उसे बुला ला "
"अरे दीदी वो मेरी कहा सुनेगा "
"अरे जा ना क्यों नहीं सुनेगा "किशन उठकर विजय के पास चले जाता है ,सोनल खुशबु की तरफ रुख करती है ,
"तू पागल है क्या ,मैंने नितिन के बारे में अपने भाइयो को नहीं बताया है ,"सोनल ने धीरे से कहा ,खुशबू के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी
"हा कामिनी तो तूने कैसे सोच लिया की मैं अपने भाई को तेरे भाई के बारे में बताउंगी"सोनल के चहरे पर भी एक मुस्कान आ गयी
"हा यार ये भाई लोग बड़े अजीब होते है है ना ,बहनों के ऊपर जान छिडकते है ,कुछ भी करने को तैयार रहते है ,लेकिन जैसे ही किसी लड़के का नाम आया तो बस….सब प्यार की "सोनल बोलकर चुप हो जाती है ,थोड़ी देर बाद वो फिर कहती है
"एक हम बहन है जो अपने भाईयो के लिए लडकिय ढूंढते रहती है "सोनल थोडा सा चिढ जाती है ,
"अरे मेरी जान वो इसलिए क्योकि भाइ कभी भी अपनी बहनों को गलत हाथो में जाता नहीं देख सकता ,"खुशबु बड़े ही प्यार से कहती है ,
"ऐसे मुझे लगता है अजय भईया मेरे और नितिन के रिश्ते को लेकर मान जायेंगे उन्होंने कहा भी था की हम लोग जिसे पसंद करेंगे उससे हमारी शादी करा देंगे ,"सोनल ने चहकते हुए कहा ,वही खुशबु फिर अपने ही विचारो में खो गयी ,'तुझे क्या पता बहन की जब अजय को इस रिश्ते के बारे में पता चलेगा और ये पता चलेगा की हम कौन है ,ना जाने क्या भूचाल आएगा

इधर किशन विजय को बुलाने आता है ,विजय किशन का हाथ पकड़कर अपने पास खीच कर बैठा लेता है ,लेकिन किशन को इसमें कोई भी इंटरेस्ट नहीं था ,वो विजय के कानो में कहता है ,
"अबे इन्हें छोड़ बहार चल मस्त प्रोफ़ेसर है ,क्या फिगर है जैसे मेरी का था ,"विजय आँखे उठाकर किशन को देखता है ,वो जल्दी से सबको बाय कहता है और वहा से उठकर किशन के साथ हो लेता है ,मेरी का नाम सुनकर ही उसे कुछ कुछ होने लगता है ,किशन उसे सीधे सोनल के पास ले जाता है ,
"तो हो गए फुर्सत ,कमीने कही के कुछ तो बहनों की इज्जत का ख्याल करता "सोनल झुटा गुस्सा दिखाती है ,विजय किशन को घुर कर देखता है वो हलके हलके मुस्कुरा रहा था ,
"अरे मेरी बहना मैं तो तुम्हारी इज्जत बढ़ा रहा था ,अब देखना कितनी लडकिया तुम्हे मेरा नम्बर मांगती है "विजय सोनल के चहरे को प्यार से हाथो से पुचकारता है ,सोनल के होठो में एक मुस्कान आ जाती है ,
"भईया आप इतनी जल्दी लडकिय पटा कैसे लेते हो ,गाव में भी शहर में भी ,कम उम्र की भी और मेरी जैसी सेक्सी को भी "रानी हस्ते हुए कहती है ,मेरी का नाम सुनकर उसे किशन की याद आ जाती है ,
"बस बहनों तुम्हारा प्यार है तुम्हारे भाई पर ,मुझे किशन से अकेले में कुछ बात करनी है मैं आता हु "विजय किशन के कंधे को पकड़कर केंटिन से बहार ले जाता है ,किशन को पता था की वो उसे क्यों ले जा रहा है पर वो चुपचाप ही साथ चल देता है …और केंटिन से बहार निकलते ही दौड़ पड़ता है ,

"रुक साले तुझे बताता हु मैं "विजय भी किशन के पीछे पीछे दौड़ता है ,
इधर एक तेज रफ़्तार से आती हुई एक बाइक ,जिसमे दो लड़के सवार थे किशन के अचानक भागने से उनका बेलेंस डगमगा जाता है ,और तेजी से ब्रेक लगाते है ,किशन उनसे हल्का सा टकरा भी जाता है ,
"मादरचोद पागल है क्या,"बाइक चला रहे लड़के की आवाज आती है ,की विजय जाकर उसका कॉलर पकड़ लेता है ,बदले में वो शख्स भी विजय का कालर पकड लेता है
"गाली किसे दे रहा है मादरचोद …………."पूरा केम्पस बस उन दोनों को देख रहा था ,ऐसे लगा की दो पहाड़ एक दुसरे से टकराने वाले है ,विजय किसी पर्वत सा विशाल लग रहा था वही सामने वाला शख्स भी कम ना था ,लम्बाई चौड़ाई में वो लगभग विजय के ही बराबर था ,काले रंग की कमीज और डेनिम ब्लू जींस पहने ,माथे में लाल रंग का लम्बा तिलक उसके गोर और चमकीले रंग में खिल कर दिखाई दे रहा था ,चहरे से किसी राजकुमार सा लग रहा था ,छाती के घने बाल उसके शर्ट से झांक रहे थे वही उसके एक सफ़ेद धागा उन्ही बालो में से देखी पड़ रहा था ,जो उसका जनेऊ था,इससे पता चल रहा था की वो एक ब्राम्हण कुल का लड़का है ,दोनों के चहरो में एक सा तेज था जैसे लग रहा हो की इनका खून एक ही है ,उस लड़के के पीछे बैठा शख्स भी अब निचे उतर चूका था पर दोनों एक दुसरे का कालर नहीं छोड़े थे ,पुरे केम्पस में एक शांति फ़ैल गयी थी ,,,लेकिन दोनों में से कोई भी कुछ कर नहीं रहा था वो बस एक दुसरे की आँखों में देखे जा रहे थे ,जैसे आँखों से ही जंग जितना चाह रहे हो ,दोनों की आँखे लाल थी जैसा की खून उतर आया हो ,उन्हें लग रहा था की जैसे ये दुश्मनी आज की नहीं ये उनके खून में थी ,खून का उबाल उनके चहरे पर साफ दिख रहा था ,दोनों ने ही एक ही रंग के कपडे पहने थे ,एक ही कद काठी एक ही जैसा तेजस्वी चहरा ……………….दोनों ही रुके हुए थे किसी ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं की दो आवाजे जोर से आई …भईया रुको
लेकिन किसी को भी कोई फर्क नहीं पड़ा था,दोनों को किसी ने जोरो से हिलाया ..
"भईया भईया "दोनों अपनी बहनों के तरफ मुड़े …उनके कानो में एक दूर की आवाज सी सुनाई दि …"ये सोनल का भाई है " "ये खुशबु के भईया है "

दोनों ने एक दुसरे को छोड़ा पर दोनों की आँखे आपस में मिली ही थी ,वो खून का उबाल अभी भी शांत नहीं हुआ था ,ना जाने क्यों ये कैसा आकर्षण था जो दोनों ही समझ नहीं पा रहे थे ,,,,किशन,रानी ,सोनल ,खुशबु और वहा खड़ा हर शख्स उनकी इस हरकत को देखकर हैरान था ,की सोनल ने पानी की बोतल ली और एक एक करके दोनों के सर में डाल दिया …..
की जैसे कोई सपने से जागे हो दोनों ही हडबडा से गए …दोनों ने आस पास देखा और एक दुसरे को देखा सब तो ठीक था फिर हुआ क्या था ,…..
"क्या कर रहे हो तुम लोग ,पागल हो गए हो क्या …."सोनल की आवाज से दोनों का धयान उसकी तरफ गया
"नितिन ये मेरे भाई है विजय और किशन ,और विजय ये खुसबू के भाई है नितिन और राकेश "सभी एक दूजे से हाथ मिलते है सिवाय नितिन औरर विजय के दोनों अभी भी एक दूजे को देख रहे थे
"चलो हाथ मिलाओ क्या हुआ "सोनल फिर गुस्से से कहती है ,दोनों अपने हाथ आगे बढ़ाते है और एक दुसरे के हाथो को मजबूती से दबाते है सोनल और खुशबु ये देख कर डर ही जाते है ,सोनल तो हाल काफी अच्छा था पर खुसबू उसेकी तो रूह ही काप गयी ,,,वो जानती थी की ये क्यों हो रहा है ,खानदानी दुश्मनी इतनी ताकतवर होती है की खून भी अपना रंग दिखाना शुरू कर देता है ……उसके कानो में अपने दादा रामचंद्र तिवरी की बात गूंज रही थी ,"बेटा जिस दिन ये दोनों परिवार आपस मे दुशमनी छोड़कर प्यार से रहेंगे उसी दिन मेरा जीना सफल होगा,मैं अपने बच्चो के हाथो मजबूर हु पर बेटा अगर तुझे मौका मिले तो तू जरुर दोनों परिवारों को मिला देना ….मुझे मेरे नाती नतनिनो से मिला देना "
खुशबु को लगने लगा की उसके दादा का सपना कभी भी पूरा नहीं हो पायेगा,….
 

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