UPDATE-24 शायद अमित की यह बात सुनकर रितेश थोड़ा झिझक गया और अमित को थोड़ा सा धकियाते हुए बोला- जीजा, अब जाओ ना!
अमित ने एक बार फिर रितेश को आँख मारी और कमरे से बाहर चला गया।
रितेश ने कमरे को बन्द कर लिया।
रितेश के पास बैठते ही मैं हल्के गुस्से के साथ बोली- यार, तुम्हारा जीजा मुझे सही आदमी नहीं लगा। पूरी शादी में वो मुझे टच करने की लगातार कोशिश करता रहा और अब ये द्विअर्थी बाते कि दूध अच्छी तरह से पिलाना नहीं तो मैं पी जाऊँगा।
रितेश हंसा और मेरी चूची को कस कर दबाते हुए बोला- ठीक ही तो कह रहा था… देखो अपनी चूची को, कितनी बड़ी और मस्त हो गई है, कोई भी इसको पीने के लिये मचलेगा ही ना!
जब रितेश ने ऐसी बात बोली तो मैं भी उसे चिढ़ाने की गरज से बोली- फिर दूध पूरा ही पी लेना, नहीं तो तुम्हारे जीजा को पिला दूँगी। 'मुझे कोई ऐतराज नहीं… पर कोई मुझे अपना दूध पिलायेगी तो फिर तुम क्या करोगी?'
उसकी इस बात को सुनकर मैंने बड़े प्यार से रितेश को चूमा और बोली- जब कोई मेरा दूध पी सकता है और तुम्हें ऐतराज नहीं तो फिर कोई तुम्हें अपना दूध पिलाये तो मुझे भी ऐतराज नहीं।
हम लोगों ने एक दूसरे को वचन दिया कि हम दोनों कभी भी किसी से कोई बात नहीं छिपायेंगे।
बात करते-करते कब हम दोनों के कपड़े हमारे जिस्म से गायब हो गये पता ही नहीं चला, हम बिल्कुल नंगे हो चुके थे।
रितेश का हाथ मेरी चूत को सहला रहा था और मेरे हाथ में रितेश का लंड था।
मेरी चूत हल्की सी गीली हो चुकी थी। रितेश ने मुझे बाँहों में जकड़ रखा था और मेरी पीठ को और चूतड़ को सहला रहा था।
सुहागरात से पहले मैं रितेश से कई बार चुद चुकी थी, लेकिन आज रितेश के बाँहों में मुझे एक अलग सा आनन्द मिल रहा था और मैं अपनी आँखें मूंदे हुए केवल रितेश के बालों को सहला रही थी।
रितेश मुझसे क्या कह रहा था, मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था, मुझे आज अपनी चुदी हुई चूत एक बार फिर से कुंवारी नजर आ रही थी।
तभी रितेश मेरे कान में बोला- आकांक्षा… मेरी जान, आज तुम्हें तुम्हारा वादा पूरा करना है। आज तुम्हारी गांड चुदने वाली है।
मैंने भी बहुत ही नशीली आवाज में कहा- जानू, ये गांड ही क्या, मैं तो तब भी पूरी तुम्हारी थी और आज भी तुम्हारी हूँ। तुम एक हजार बार मेरी गांड मार लो, मैं उफ भी नहीं करूँगी। बस उदघाटन मेरी चूत से ही करना।
मेरी बात सुनते ही उसने मुझे धीरे से बिस्तर पर सीधा लेटा दिया और मेरी चूची चूसते हुए उसने मेरी नाभि में अपनी जीभ घुसेड़ दी और धीरे धीरे मेरी चूत की तरफ बढ़ने लगा, मेरी चूत को सूँघने लगा और अपनी जीभ मेरी चूत पर लगा दी।
आज पहली बार पता नहीं मुझे क्या हुआ कि मैंने रितेश को अपनी चूत से अलग कर दिया।
मैं नहीं चाहती थी कि मेरी पनियाई हुई चूत को वो चाटे।
मुझे बड़ा अजीब लग रहा था।
लेकिन रितेश को पता नहीं क्या हुआ, उसने मेरे दोनों हाथों को कस कर पकड़ा और अपनी जीभ को मेरी चूत से सटा दिया।
मैं छटपटा रही थी पर अपने आपको रितेश से छुड़ा नहीं पा रही थी।
वो मेरी चूत को चाटता ही जा रहा था।
मैं अपना होश खो रही थी और रितेश के आगे अपने आपको समर्पण करने लगी।
अब मेरी टांगें खुद-ब-खुद खुल गई, मेरे हाथ अब रितेश के सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर और दबाव दे रहे थे।
थोड़ी देर तक वो मेरी चूत चाटता रहा और फिर उठा और एक झटके में उसने बड़ी तेजी के साथ अपने लंड को मेरी चूत की गुफा में प्रवेश करा दिया।