मेरा नाम विराज है, विराज सिंह बघेल। मुम्बई में रहता हूॅ और यहीं एक मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी करता हूॅ। कम्पनी में मेरे काम से मेरे आला अधिकारी ही नहीं बल्कि मेरे साथ काम करने वाले भी खुश रहते हैं। सबके सामने हॅसते मुस्कुराते रहने की आदत बड़ी मुश्किल से डाली है मैंने। कोई आज तक ताड़ नहीं पाया कि मेरे हॅसते मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे मैंने ग़मों के कैसे कैसे अज़ाब पाल रखे हैं।
अरे मैं कोई शायर नहीं हूं बस कभी कभी दिल पगला सा जाता है तभी शेरो शायरी निकल जाती है बेतुकी और बेमतलब सी। मेरे खानदान में कभी कोई ग़ालिब पैदा नहीं हुआ। मगर मैं..????न न न न
अच्छा ये ग़ज़ल मैंने ख़ुद लिखी है ज़रा ग़ौर फ़रमाइए.....
ज़िन्दगी भी क्या क्या गुल खिलाती है।
कितने ग़म लिए हाॅथ में मुझे बुलाती है।।
कोई हसरत कोई चाहत कोई आरज़ू नहीं,
मेरी नींद हर शब क्यों ख़्वाब सजाती है।।
ख़ुदा जाने किससे जुदा हो गया हूॅ यारो,
किसकी याद है जो मुझे आॅसू दे जाती है।।
मैंने तो हर सू फक़त अपने क़ातिल देखे,
किसकी मोहब्बत मुझे पास बुलाती है।।
हर रोज़ ये बात पूॅछता हूं मौसमे ख़िज़ा से,
किसकी ख़ुशबू सांसों को मॅहका जाती है।।
हा हा हा हा बताया न मैं कोई शायर नहीं हूं यारो, जाने कैसे ये हो जाता है.?? मैं खुद हैरान हूॅ।
छः महीने हो गए हैं मुझे घर से आए हुए। पिछली बार जब गया था तो हर चीज़ को अपने हिसाब से ब्यवस्थित करके ही आया था। कभी कभी मन में ख़याल आता है कि काश मैं कोई सुपर हीरो होता तो कितना अच्छा होता। हर नामुमकिन चीज़ को पल भर में मुमकिन बना देता मगर ये तो मन के सिर्फ खयाल हैं जिनका वास्तविकता से दूर दूर तक कोई नाता नहीं। पिछले दो सालों में इतना कुछ हो गया है कि सोचता हूं तो डर लगता है। मैं वो सब याद नहीं करना चाहता मगर यादों पर मेरा कोई ज़ोर नहीं।
माॅ ने फोन किया था, कह रही थी जल्दी आ जाऊॅ उसके पास। बहुत रो रही थी वह, वैसा ही हाल मेरी छोटी बहेन का भी था। दोनो ही मेरे लिए मेरी जान थी। एक दिल थी तो एक मेरी धड़कन। बात ज़रा गम्भीर थी इस लिए मजबूरन मुझे छुट्टी लेकर आना ही पड़ रहा है। इस वक्त मैं ट्रेन में हूॅ। बड़ी मुश्किल से तत्काल का रिज़र्वेशन टिकट मिला था। सफ़र काफी लम्बा है पर ये सफर कट ही जाएगा किसी तरह।
ट्रेन में खिडकी के पास वाली सीट पर बैठा मैं खिड़की के बाहर का नज़ारा कर रहा था। काम की थकान थी और मैं सीट पर लेट कर आराम भी करना चाहता था, इस लिए ऊपर वाले बर्थ के भाई साहब से हाॅथ जोड़ कर कहा कि आप मेरी जगह आ जाइए। भला आदमी था वह तुरंत ही ऊपर के बर्थ से उतर कर मेरी जगह खिड़की के पास बड़े आराम से बैठ गया। मैं भी जल्दी से उसकी जगह ये सोच कर बैठ गया कि वो भाई साहब मेरी जगह नीचे बैठने से कहीं इंकार न कर दे।
पूरी सीट पर लेटने का मज़ा ही कुछ अलग होता है। बड़ा सुकून सा लगा और मैंने अपनी आंखें बंद कर ली। आॅख बंद करते ही बंद आॅखों के सामने वही सब दिखना शुरू हो गया जो न देखना मेरे लिए दुनियां का सबसे कठिन कार्य था। इन कुछ सालों में और कुछ दिखना मानो मेरे लिए कोई ख़्वाब सा हो गया था। इन बंद आॅखों के सामने जैसे कोई फीचर फिल्म शुरू से चालू हो जाती है।
चलिए इन सब बातों को छोंड़िए अब मैं आप सबको अपनी बंद आॅखों में चल रही फिल्म का आॅखों देखा हाल बताता हूॅ।
जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूॅ कि मेरा नाम विराज है, विराज सिंह बघेल। अच्छे परिवार से था इस लिए किसी चीज़ का अभाव नहीं था। कद कठी किसी भी एंगल से छः फीट से कम नहीं है। मेरा जिस्म गोरा है तथा नियमित कसरत करने के प्रभाव से एक दम आकर्षक व बलिस्ठ है। मैंने जूड़ो कराटे एवं मासल आर्ट्स में ब्लैक बैल्ट भी हासिल किया है। ये मेरा शौक था इसी लिए ये सब मैंने सीखा भी था मगर मेरे घर में इसके बारे में कोई नहीं जानता और न ही कभी मैंने उन्हें बताया।
मेरा परिवार काफी बड़ा है, जिसमें दादा दादी, माता पिता बहेन, चाचा चाची, बुआ फूफा, नाना नानी, मामा मामी तथा इन सबके लड़के लड़कियाॅ आदि।
कहने को तो मैं इतने बड़े परिवार का हिस्सा हूं मगर वास्तव में ऐसा नहीं है। ख़ैर कहानी को आगे बढ़ाने से पहले आप सबको मैं अपने पूरे खानदान वालों का परिचय दे दूॅ।
मेरे दादा दादी का परिवार.....
गजेन्द्र सिंह बघेल (दादा67) एवं इन्द्राणी सिंह बघेल (दादी60)
1, अजय सिंह बघेल (दादा दादी के बड़े बेटे)(50)
2, विजय सिंह बघेल (दादा दादी के दूसरे बेटे)(45)
3, अभय सिंह बघेल (दादा दादी के तीसरे बेटे)(40)
4, सौम्या सिंह बघेल (दादा दादी की बड़ी बेटी)(35)
5, नैना सिंह बघेल (दादा दादी की सबसे छोटी बेटी)(28)
कहानी जारी रहेगी,,,,,,
1, अजय सिंह बघेल का परिवार.....
अजय सिंह बघेल (मेरे बड़े पापा)(50)
प्रतिमा सिंह बघेल (बड़े पापा की पत्नी)(45)
● रितू सिंह बघेल (बड़ी बेटी)(24)
● नीलम सिंह बघेल (दूसरी बेटी)(20)
● शिवा सिंह बघेल (बेटा)(18)
2, विजय सिंह बघेल का परिवार....
विजय सिंह बघेल (मेरे पापा)(45)
गौरी सिंह बघेल (मेरी माॅ)(40)
● विराज सिंह बघेल (राज)....(मैं)(20)
● निधि सिंह बघेल (मेरी छोटी बहेन)(^^)
3, अभय सिंह बघेल का परिवार....
अभय सिंह बघेल (मेरे चाचा)(40)
करुणा सिंह बघेल (मेरी चाची)(37)
● दिव्या सिंह बघेल (मेरे चाचा चाची की बेटी)(^^)
● शगुन सिंह बघेल (मेरे चाचा का बेटा जो दिमाग से डिस्टर्ब है)(^^)
4, सौम्या सिंह बघेल का परिवार.....
सौम्या सिंह बघेल (मेरी बड़ी बुआ35) जो कि शादी के बाद उनका सर नेम बदल गया। अब वो सौम्या सिंह बस हैं।
* राघव सिंह (सौम्या बुआ के पति और मेरे फूफा जी)(38)
● अनिल सिंह (सौम्या बुआ का बेटा)(^^)
● अदिति सिंह (सौम्या बुआ की बेटी)(^^)
5, नैना सिंह बघेल (मेरी छोटी बुआ 28) जो शादी के बाद अब नैना सिंह हैं। इनकी शादी अभी दो साल पहले हुई है। अभी तक कोई औलाद नहीं है इनके। नैना बुआ के पति का नाम आदित्य सिंह(32) है।
तो दोस्तों ये था मेरे खानदान वालों का परिचय। मेरे नाना नानी लोगों का परिचय कहानी में आगे दूंगा जहां इन लोगों का पार्ट आएगा।
मेरे दादा जी के पास बहुत सी पुस्तैनी ज़मीन जायदाद थी। दादा जी खुद भी दो भाई थे। दादा जी अपने पिता के दो बेटों में बड़े बेटे थे। उनके दूसरे भाई के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं। दादा जी बताया करते थे कि उनका छोटा भाई राघवेन्द्र सिंह बघेल जब 20 वर्ष का था तभी एक दिन घर से कहीं चला गया था। पहले सबने इस पर ज्यादा सोच विचार नहीं किया किन्तु जब वह एक हप्ते के बाद भी वापस घर नहीं आया तो सबने उन्हें ढूॅढ़ना शुरू किया। ये ढूॅढ़ने का सिलसिला लगभग दस वर्षों तक जारी रहा मगर उनका कभी कुछ पता न चला। किसी को ये भी पता न चल सका कि राघवेन्द्र सिंह आख़िर किस वजह से घर छोंड़ कर चला गया है? उनका आज तक कुछ पता न चल सका था। सबने उनके वापस आने की उम्मीद छोंड़ दी। वो एक याद बन कर रह गए सबके लिए।
दादा जी उस जायदाद के अकेले हक़दार रह गए थे। समय गुज़रता गया और जब मेरे दादा जी के बेटे पढ़ लिख कर बड़े हुए तो सबने अपना अपना काम भी सम्हाल लिया। बड़े पापा पढ़ने में बहुत तेज़ थे उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की और सरकारी वकील बन गए। मेरे पिता जी पढ़ने लिखने में हमेशा ही कमज़ोर थे, उनका पढ़ाई में कभी मन ही नहीं लगता था। इस लिए उन्होंने पढ़ाई छोंड़ दी और घर में रह कर इतनी बड़ी जमीन जायदाद को अकेले ही सम्हालने लगे। छोटे चाचा जी बड़े पापा की तरह तो नहीं थे किन्तु पढ़ लिख कर वो भी सरकारी स्कूल में अध्यापक हो गए।
उस समय गाॅव में शिक्षा का बहुत ज्यादा क्रेज नहीं था। किन्तु इतना कुछ जो हुआ वो सब दादा जी के चलते हुआ था। आगे चल कर सबकी शादियां भी हो गई। बड़े पापा सरकारी वकील थे वो शहर में ही रहते थे, और शहर में ही उन्हें एक लड़की पसंद आ गई जिससे उन्होंने शादी कर ली। हलाॅकि बड़े पापा के इस तरह शादी कर लेने से दादा जी बहुत नाराज़ हुए थे। किन्तु बड़े पापा ने उन्हें अपनी बातों से मना लिया था।
छोटे चाचा जी ने भी वही किया था यानि अपनी पसंद की लड़की से शादी। दादा जी उनसे भी नाराज़ हुए किन्तु फिर उन्होंने कुछ नहीं कहा। चाचा जी से पहले मेरे पिता जी ने दादा जी की पसंद की लड़की से शादी की। मेरे पिता पढ़े लिखे भले ही नहीं थे लेकिन मेहनती बहुत थे। वो अकेले ही सारी खेती बाड़ी का काम करते थे और इतना ज्यादा ज़मीनों से अनाज की पैदावार होती कि जब उसे शहर ले जा कर बेचते तो उस समय में भी हज़ारो लाखों का मुनाफ़ा होता था।
मेरे पिता जी बहुत ही संतोषी स्वभाव वाले इंसान थे। सबको ले कर चलने वाले ब्यक्ति थे, सब कहते कि विजय बिलकुल अपने बाप की तरह ही है। मेरी माॅ एक बहुत ही सुन्दर लेकिन साधारण सी महिला थीं। वो खुद भी पढ़ी लिखी नहीं थी लेकिन समझदार बहुत थी। मेरे माता पिता के बीच आपस में बड़ा प्रेम था। बड़े पापा बड़े ही लालची और मक्कार टाईप के इंसान थे। वो हर चीज़ में सिर्फ़ अपना फायदा सोचते थे। जबकि छोटे चाचा ऐसे नहीं थे। वो ज्यादा किसी से कोई मतलब नहीं रखते थे। अपने से बड़ों की इज्ज़त करते थे। लेकिन ये भी था कि अगर कोई किसी बात के लिए उनका कान भर दे तो वो उस बात को ही सच मान लेते थे।
बड़े पापा सरकारी वकील तो थे लेकिन उस समय उन्हें इससे ज्यादा आमदनी नहीं हो पाती थी। वो चाहते थे कि उनके पास ढेर सारा पैसा हो और तरह तरह का ऐसो आराम हो। लेकिन ये सब मिलना इतना आसान न था। दिन रात उनका दिमाग इन्हीं सब चीज़ों में लगा रहता था। एक दिन किसी ने उन्हें खुद का बिजनेस शुरू करने की सलाह दी थी। लेकिन बिजनेस शुरू करने के लिए सबसे पहले ढेर सारा पैसा भी चाहिए था। जिसने उन्हे खुद का बिजनेस शुरू करने की सलाह दी थी उसन उन्हें बिजनेस के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी भी दी थी।
बड़े पापा के दिमाग में खुद का बिजनेस शुरू करने का जैसे भूत सवार हो गया था। वो रात दिन इसी के बारे में सोचते। एक रात उन्होंने इस बारे में अपनी बीवी प्रतिमा को भी बताया। बड़ी मां ये जान कर बड़ा खुश हुईं। उन्होंने बड़े पापा को इसके लिए तरीका भी बताया। तरीका ये था कि बड़े पापा को खुद का बिजनेस शुरू करने के लिए दादा जी से पैसा माॅगना चाहिए। दादा जी के पास उस समय पैसा ही पैसा हो गया था ये अलग बात है कि वो पैसा मेरे पिता जी की जी तोड़ मेहनत का नतीजा था।
अपनी बीवी की ये बात सुन कर बड़े पापा का दिमाग दौड़ने लगा। फिर क्या था दूसरे ही दिन वो शहर से गाॅव दादा जी के पास पहुंच गए और दादा जी से इस बारे में बात की। दादा जी उनकी बात सुन कर नाराज़ भी हुए और पैसा देने से इंकार भी किया। उन्होंने कहा कि तुमने अपनी नौकरी से आज तक हमें कितना रुपया ला कर दिया है? हमने तुम्हें पढ़ाया लिखाया और इस काबिल बनाया कि आज तुम शहर में एक सरकारी वकील बन गए तथा अपनी मर्ज़ी से शादी भी कर ली। हमने कुछ नहीं कहा। सोच लिया कि चलो जीवन तुम्हारा है तुम जैसा चाहो जीने का हक़ रखते हो। मगर ये सब क्या है बेटा कि तुम अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं? और खुद का कारोबार शुरू करना चाहते हो जिसके लिए तुम्हें ढेर सारा पैसा चाहिए?
दादा जी की बातों को सुन कर बड़े पापा अवाक् रह गए। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि दादा जी पैसा देने की जगह ये सब सुनाने लगेंगे। कुछ देर बाद बड़े पापा ने उन्हें समझाना शुरू कर दिया। उन्होंने दादा जी को बताया कि वो ये बिजनेस साइड से शुरू कर रहे हैं और वो अपनी नौकरी नहीं छोंड़ रहे। बड़े पापा ने दादा जी को भविष्य के बारे में आगे बढ़ने की बहुत सी बातें समझाईं। दादा जी मान तो गए पर ये जरूर कहा कि ये सब रुपया विजय(मेरे पिता जी) की जी तोड़ मेहनत का नतीजा है। उससे एक बार बात करना पड़ेगा। दादा जी की इस बात से बड़े पापा गुस्सा हो गए बोले कि आप घर के मालिक हैं या विजय? किसी भी चीज़ का फैसला करने का अधिकार सबसे पहले आपका है और आपके बाद मेरा क्योंकि मैं इस घर का सबसे बड़ा बेटा हूं। विजय होता कौन है कि आपको ये कहना पड़े कि आपको और मुझे उससे बात करना पड़ेगा?
बड़े पापा की इन बातों को सुनकर दादा जी भी उनसे गुस्सा हो गए। कहने लगे कि विजय वो इंसान है जिसकी मेहनत के चलते आज इस घर में इतना रुपया पैसा आया है। वो तुम्हारे जैसा ग्रेजुएट होकर सरकरी नौकरी वाला भले ही न बन सका लेकिन तुमसे कम नहीं है वह। तुमने अपनी नौकरी से क्या दिया है कमा कर आज तक ? जबकि विजय ने जिस दिन से पढ़ाई छोंड़ कर ज़मीनों में खेती बाड़ी का काम सम्हाला है उस दिन से इस घर में लक्ष्मी ने अपना डेरा जमाया है। उसी की मेहनत से ये रुपया पैसा हुआ है जिसे तुम माॅगने आए हो समझे ?
दादा जी की गुस्से भरी ये बातें सुन कर बड़े पापा चुप हो गए। उनके दिमाग में अचानक ही ये ख़याल आया कि मेरे इस प्रकार के ब्योहार से सब बिगड़ जाएगा। ये ख़याल आते ही उन्होंने जल्दी से माफी माॅगी दादा जी से और फिर दादा जी के साथ मेरे पिता जी से मिलने खेतों की तरफ बढ़ गए।
खेतों में पहुॅच कर दादा जी ने मेरे पिता जी को पास बुला कर उनसे इस बारे में बात की और कहा कि अजय(बड़े पापा) को खुद का कारोबार शुरू करने के लिए रुपया चाहिए। इस पर पिता जी ने कहा कि वो इन सब चीज़ों के बारे में कुछ नहीं जानते आप जो चाहें करें। आप घर के मुखिया हैं हर फैसला आपको ही करना है। पिता जी की बात सुन कर दादा जी खुश हो गए। उन्हें मेरे पिता जी पर गर्व भी हुआ। जबकि बड़े पापा मन ही मन मेरे पिता को गालियां दे रहे थे।
ख़ैर उसके बाद बड़े पापा ने खुद का कारोबार शुरू कर दिया। जिसके उद्घाटन में सब कोई शामिल हुआ। हलाकि उन्होंने मेरे माता पिता को आने के लिए नहीं कहा था फिर भी मेरे माता पिता खुशी खुशी सबके साथ आ गए थे। दादा जी के पूछने पर बड़े पापा ने बताया था कि एक शेठ की वर्षों से बंद पड़ी कपड़ा मील को उन्होंने सस्ते दामों में ख़रीद लिया है अब इसी को नए सिरे से शुरू करेंगे। दादा जी ने देखा था उस कपड़ा मील को, उसकी हालत ख़राब थी। उसे नया बनाने में काफी पैसा लग सकता था।
चूॅकि दादा जी देख चुके थे इस लिए मील को सही हालत में लाने के लिए जितना पैसा लगता दादा जी देते रहे। करीब छः महीने बाद कपड़ा मिल सही तरीके चलने लगी। ये अलग बात थी उसके लिए ढेर सारा पैसा लगाना पड़ा था।
इधर मेरे पिता जी की मेहनत से काफी अच्छी फसलों की पैदावार होती रही। वो खेती बाड़ी के विषय में हर चीज़ का बारीकी से अध्ययन करते थे। आज के परिवेश के अनुसार जिस चीज़ से ज्यादा मुनाफा होता उसी की फसल उगाते। इसका नतीजा ये हुआ कि दो चार सालों में ही बहुत कुछ बदल गया। मेरे पिता जी ने दादा जी की अनुमति से उस पुराने घर को तुड़वा कर एक बड़ी सी हवेली में परिवर्तित कर दिया।
कहानी जारी रहेगी,,,,,
हलाॅकि दो मंजिला विसाल हवेली को बनवाने में भारी खर्चा लगा। घर में जितना रुपया पैसा था सब खतम हो गया बाॅकि का काम करवाने के लिए और पैसों की ज़रूरत पड़ गई। दादा जी ने बड़े पापा से बात की लेकिन बड़े पापा ने कहा कि उनके पास रुपया नहीं है उनका कारोबार में बहुत नुकसान हो गया है। दादा जी को किसी के द्वारा पता चल गया था कि बड़े पापा का कारोबार अच्छा खासा चल रहा है और उनके पास रुपयों का कोई अभाव नहीं है।
बड़े पापा के इस प्रकार झूॅठ बोलने और पैसा न देने से दादा जी बहुत दुखी हुए। मेरे पिता जी ने उन्हें सम्हाला और कहा कि ब्यर्थ ही बड़े भइया से रुपया माॅगने गए थे। हम कोई दूसरा उपाय ढूंढ़ लेंगे।
छोटे चाचा स्कूल में सरकारी शिक्षक थे। उनकी इतनी सैलरी नहीं थी कि वो कुछ मदद कर सकते। मेरे पिता जी को किसी ने बताया कि बैंक से लोंन में रुपया ले लो बाद में ब्याज के साथ लौटा देना।
उस आदमी की इस बात से मेरे पिता जी खुश हो गए। उन्होंने इस बारे में दादा जी से बात की। दादा जी कहने लगे कि कर्ज़ चाहे जैसा भी हो वह बहुत ख़राब होता है और फिर इतनी बड़ी रकम ब्याज के साथ चुकाना कोई गुड्डा गुड्डी का खेल नहीं है। दादा जी ने कहा कि घर का बाकी का बचा हुआ कार्य बाद में कर लेंगे जब फसल से मुनाफ़ा होगा। मगर मेरे पिता जी ने कहा कि हवेली का काम अधूरा नहीं रहने दूंगा, वो हवेली को पूरी तरह तैयार करके ही मानेंगे। इसके लिए अगर कर्ज़ा होता है तो होता रहे वो ज़मीनों में दोगुनी मेहनत करेंगे और बैंक का कर्ज़ चुका देंगे।
दादा जी मना करते रह गए लेकिन पिता जी न माने। सारी काग़ज़ी कार्यवाही पूरी होते ही पिता जी को बैंक से लोंन के रूप में रुपया मिल गया। हवेली का बचा हुआ कार्य फिर से शुरू हो गया। मेरे पिता जी पर जैसे कोई जुनून सा सवार था। वो जी तोड़ मेहनत करने लगे थे। जाने कहां कहां से उन्हें जानकारी हासिल हो जाती कि फला फसल से आजकल बड़ा मुनाफ़ा हो रहा है। बस फिर क्या था वो भी वही फसल खेतों में उगाते।
इधर दो महीने के अन्दर हवेली पूरी तरह से तैयार हो गई थी। देखने वालों की आंखें खुली की खुली रह गईं। हवेली को जो भी देखता दिल खोल कर तारीफ़ करता। दादा जी का सिर शान से उठ गया था तथा उनका सीना अपने इस किसान बेटे की मेहनत से निकले इस फल को देख कर खुशी से फूल कर गुब्बारा हुआ जा रहा था।
हवेली के तैयार होने के बाद दादा जी की अनुमति से पिता जी ने एक बड़े से भण्डारे का आयोजन किया जिसमें सम्पूर्ण गाॅव वासियों को भोज का न्यौता दिया गया। शहर से बड़े पापा और बड़ी माॅ भी आईं थीं।
बड़े पापा ने जब हवेली को देखा तो देखते रह गए। उन्होंने स्वप्न में भी उम्मीद न की थी कि उनका घर कभी इस प्रकार की हवेली में परिवर्तित हो जाएगा। किन्तु प्रत्यक्ष में वे हवेली को देख देख कर कहीं न कहीं कोई कमी या फिर ग़लती निकाल ही रहे थे। बड़ी माॅ का हाल भी वैसा ही था।
हवेली को इस प्रकार से बनाया गया था कि भविष्य में किसी भी भाई के बीच किसी प्रकार का कोई विवाद न खड़ा हो सके। हवेली का क्षेत्रफल काफी बड़ा था। भविष्य में अगर कभी तीनो भाईयों का बॅटवारा हो तो सबको एक जैसे ही आकार और डिजाइन का हिस्सा समान रूप से मिले। हवेली काफी चौड़ी तथा दो मंजिला थी। तीनो भाईयों के हिस्से में बराबर और समान रूप से आनी थी। हवेली के सामने बहुत बड़ा लाॅन था। कहने का मतलब ये कि हवेली ऐसी थी जैसे तीन अलग अलग दो मंजिला इमारतों को एक साथ जोड़ दिया गया ह
बड़े पापा ने जब हवेली को देखा तो देखते रह गए। उन्होंने स्वप्न में भी उम्मीद न की थी कि उनका घर कभी इस प्रकार की हवेली में परिवर्तित हो जाएगा। किन्तु प्रत्यक्ष में वे हवेली को देख देख कर कहीं न कहीं कोई कमी या फिर ग़लती निकाल ही रहे थे। बड़ी माॅ का हाल भी वैसा ही था।
हवेली को इस प्रकार से बनाया गया था कि भविष्य में किसी भी भाई के बीच किसी प्रकार का कोई विवाद न खड़ा हो सके। हवेली का क्षेत्रफल काफी बड़ा था। भविष्य में अगर कभी तीनो भाईयों का बॅटवारा हो तो सबको एक जैसे ही आकार और डिजाइन का हिस्सा समान रूप से मिले। हवेली काफी चौड़ी तथा दो मंजिला थी। तीनो भाईयों के हिस्से में बराबर और समान रूप से आनी थी। हवेली के सामने बहुत बड़ा लाॅन था। कहने का मतलब ये कि हवेली ऐसी थी जैसे तीन अलग अलग दो मंजिला इमारतों को एक साथ जोड़ दिया गया हो।
अब आगे..........
इसी तरह सबके साथ हॅसी खुशी समय गुज़रता रहा। बड़े पापा और बड़ी माॅ का ब्यौहार दिन प्रतिदिन बदलता जा रहा था। उनका रहन सहन सब कुछ बदल गया था। इस बीच उनको एक बेटी भी हुई जिसका नाम रितु रखा गया, रितु सिंह बघेल। बड़े पापा और बड़ी माॅ अपनी बच्ची को लेकर शहर से घर आईं और दादा दादी जी से आशीर्वाद लिया। उन्होंने एक बढ़िया सी कार भी ख़रीद ली थी, उसी कार से वो दोनों आए थे।
दादा जी बड़े पापा और बड़ी माॅ के इस बदलते रवैये से अंजान नहीं थे किन्तु बोलते कुछ नहीं थे। वो समझ गए थे कि बेटा कारोबारी आदमी हो गया है और उसे अब रुपये पैसे का घमण्ड होने लगा है। दादा जी ये भी महसूस कर रहे थे कि उनके बड़े बेटे और बड़ी बहू का मेरे पिता के प्रति कोई खास बोलचाल नहीं है। जबकि छोटे चाचा जी से उनका संबंध अच्छा था। इसका कारण शायद यह था कि छोटे चाचा भले ही किसी से ज्यादा मतलब नहीं रखते थे लेकिन स्वभाव से बहुत गुस्से वाले थे। वो अन्याय बरदास्त नहीं करते थे बल्कि वो इसके खिलाफ़ लड़ पड़ते थे।
अपने अच्छे खासे चल रहे कारोबार के पैसों से बड़े पापा ने शहर में एक बढ़िया सा घर भी बनवा लिया था जिसके बारे में बहुत बाद में सबको पता चला था। दादा जी बड़े पापा से नाराज़ भी हुए थे इसके लिए। पर बड़े पापा ने उनको अपनी लच्छेदार बातों द्वारा समझा भी लिया था। उन्होंने दादा जी को कहा कि ये घर बच्चों के लिए है जब वो सब बड़े होंगे तो शहर में इसी घर में रह कर यहाॅ अपनी पढ़ाई करेंगे।
समय गुज़रता रहा, और समय के साथ बहुत कुछ बदलता भी रहा। रितु दीदी के पैदा होने के चार साल बाद बड़े पापा को एक और बेटी हुई जबकि उसी समय मैं अपने माता पिता द्वारा पैदा हुआ। मेरे पैदा होने के एक दिन बाद ही बड़े पापा को दूसरी बेटी यानी नीलम पैदा हुई थी। उस समय पूरे खानदान में मैं अकेला ही लड़का था। मेरे पैदा होने पर दादा जी ने बहुत बड़ा उत्सव किया था तथा पूरे गाॅव वालों को भोज करवाया था। हलाॅकि मेरे माता पिता ये सब बिल्कुल नहीं चाहते थे क्यों कि इससे बड़े पापा और बड़ी माॅ के दिल ओ दिमाग में ग़लत धारणा पैदा हो जानी थी। लेकिद दादा जी नहीं माने बल्कि इन सब बातों की परवाह किए बग़ैर वो ये सब करते गए। इसका परिणाम वही हुआ जिसका मेरे माता पिता जी को अंदेशा था। मेरे पैदा होने की खुशी में दादा जी द्वारा किये गए इस उत्सव से बड़े पापा और बड़ी माॅ बहुत नाराज़ हुईं। उन्होंने कहा कि जब उनको बच्चियां पैदा हुई तब ये जश्न क्यों नहीं किया गया? जिसके जवाब में दादा जी ने नाराज़ हो कर कहा कि तुम लोग हमें अपना मानते ही कहाॅ हो? सब कुछ अपनी मर्ज़ी से ही कर लेते हो। कभी किसी चीज़ के लिए हमारी मर्ज़ी हमारी पसंद या हमारी सहमति के बारे में सोचा तुम लोगों ने? तुम लोगों ने अपनी मर्ज़ी से शहर में घर बना लिया और किसी को बताया भी नहीं, अपनी मर्ज़ी या पसंद से गाड़ी खरीद ली और किसी को बताया तक नहीं। इन सब बातों का कोई जवाब है तुम लोगों के पास? क्या सोचते हो तुम लोग कि तुम्हारी ये चीज़ें कहीं हम लोग माॅग न लें? या फिर तुमने ये सोच लिया है कि जो तुमने बनाया है उसमे किसी का कोई हक़ नहीं है?
दादा जी की गुस्से से भरी ये सब बातें सुन कर बड़े पापा और बड़ी माॅ चुप रह गए। उनके मुख से कोई लफ्ज़ नहीं निकला। जबकि दादा जी कहते रहे, तुम लोगों ने खुद ही हम लोगों से खुद को अलग कर लिया है। आज तुम्हारे पास रुपया पैसा आ गया तो खुद को तोप समझने लगे हो। मगर ये भूल गए कि जिस रुपये पैसे के नशे में तुमने हम लोगों को खुद से अलग कर लिया है उस रुपये पैसे की बुनियाद हमारे ही खून पसीने की कमाई के पैसों से तैयार की है तुमने। अब चाहे जितना आसमान में उड़ लो मगर याद रखना ये बात।
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,
दादा जी और भी जाने क्या क्या कहते रहे । बड़े पापा और बड़ी माॅ कुछ न बोले। दूसरे दिन वो लोग वापस शहर चले गए। लेकिन इस बार अपने दिल ओ दिमाग में ज़हर सा भर लिया था उन लोगों ने।
छोटे चाचा और चाची सब जानते थे और उनकी मानसिकता भी समझते थे लेकिन सबसे छोटे होने के कारण वो बीच में कोई हस्ताक्षेप करना उचित नहीं समझते थे। वो मेरे माता पिता की बहुत इज्ज़त करते थे। वो जानते थे कि ये सब कुछ मेरे पिता जी के कठोर मेहनत से बना है। हमारी सम्पन्नता में उनका ही हाॅथ है। मेरी माॅ और पिता बहुत ही शान्त स्वभाव के थे। कभी किसी से कोई वाद विवाद करना मानो उनकी फितरत में ही शामिल न था।
मेरे जन्म के दो साल बाद बड़े पापा और बड़ी माॅ को एक बेटा हुआ था। जिसका नाम शिवा सिंह रखा गया था। उसके जन्म पर जब वो लोग घर आए तो दादा जी ने शिवा के जन्म की खुशी में उसी तरह उत्सव मनाया तथा पूरे गाॅव वालों को भोज करवाया जैसे मेरे जन्म की खुशी में किया था। मगर इस बार का उत्सव पहले के उत्सव की अपेक्षा ज़्यादा ताम झाम वाला था क्योंकि बड़े पापा यही करना या दिखाना चाहते थे। दादा जी इस बात को बखूबी समझते थे।
समय गुज़रता रहा और यूं ही पाॅच साल गुज़र गए। मैं पाॅच साल का हो गया था। सब घर वाले मुझे बहुत प्यार करते थे। मेरे जन्म के चार साल बाद ही मुझे मेरे माता पिता द्वारा एक बहेन मिल गई थी। उसका नाम निधि रखा गया। छोटे चाचा और चाची को भी एक बेटी हो गई थी जो अब एक साल की थी। उसका नाम दिव्या था। दिव्या ऊम्र में मेरी बहेन निधि से मात्र दस दिन छोटी थी। दोनों एक साथ ही रहती। उन दोनों की किलकारियों से पूरी हवेली में रौनक रहती। दिव्या बिल्कुल चाची पर गई थी। एक दम गोरी चिट्टी सी। दिन भर मैं उनके साथ खेलता, वो दोनो मेरा खिलौना थीं। हमेशा उनको अपने पास ही रखता था।
बड़े पापा और बड़ी माॅ मेरी बहेन निधि और चाचा चाची की बेटी दिव्या दोनो के जन्म पर उन्हें देखने आए थे। खास कर छोटे चाचा चाची की बेटी को देखने। सबकी मौजूदगी में उन्होंने मुझे भी अपना प्यार दिया। वो सबके लिए उपहार स्वरूप कपड़े लाए थे। इस बार उनका रवैया तथा वर्ताव पहले की अपेक्षा बहुत अच्छा था। वो सबसे हॅस बोल रहे थे। उनकी बड़ी बेटी रितु जो मुझसे चार साल बड़ी थी वो बिल्कुल अपनी माॅ पर गई थी। उसके स्वभाव में अपनी माॅ की तरह ही अकड़ूपन था जबकि उसकी छोटी बहेन जो मेरी ऊम्र की थी वो उसके विपरीत बिलकुल साधारण थी। ख़ैर दो दिन रुकने के बाद वो लोग वापस शहर चले गए।
मैं पाॅच साल का हो गया था इस लिए मेरा चाचा जी के स्कूल में ही पढ़ाई के लिए नाम लिखवा दिया गया था। मेरा अपने खिलौनों अर्थात् निधि और दिव्या को छोंड़ कर स्कूल जाने का बिलकुल मन नहीं करता था जिसके लिए मेरी पिटाई भी होती थी। छोटे चाचा को उनके गुस्सैल स्वभाव के चलते सब डरते भी थे। मैं भी डरता था उनसे और इसी डर की वजह से मुझे उनके साथ ही स्कूल जाना पड़ता। हलाॅकि चाचा चाची दोनों ही मुझ पर जान छिड़चते थे लेकिन पढ़ाई के मामले में चाचा जी ज़रा स्ट्रिक्ट हो जाते थे।
मेरे माता पिता दोनो ही पढ़े लिखे नहीं थे इस लिए मेरी पढ़ाई की जिम्मेदारी चाचा चाची की थी। चाचा चाची दोनो ही मुझे पढ़ाते थे। इसका परिणाम ये हुआ कि मै पढ़ाई में शुरू से ही तेज़ हो गया था। जब मैं दो साल का था तब मेरी बड़ी बुआ यानी सौम्या सिंह की शादी हुई थी जबकि छोटी बुआ नैना सिंह स्कूल में पढ़ती थीं। मेरी दोनों ही बुआओं का स्वभाव अच्छा था। छोटी बुआ थोड़ी स्ट्रिक्ट थी वो बिलकुल छोटे चाचा जी की तरह थीं। मैं जब पाॅच साल का था तब बड़ी बुआ को एक बेटा यानी अनिल पैदा हुआ था।
पूरे गाॅव वाले हमारी बहुत इज्ज़त करते थे। एक तो गाॅव में सबसे ज्यादा हमारे पास ही ज़मीनें थी दूसरे मेरे पिता जी की मेहनत के चलते घर हवेली बन गया तथा रुपया पैसा हो गया। हमारे घर से दो दो आदमी सरकारी सर्विस में थे। खुद का बहुत बड़ा करोबार भी चल रहा था। उस समय इतना कुछ गाॅव में किसी और के पास न था। दादा जी और मेरे पिता जी का ब्यौहार गाॅव में ही नहीं बल्कि आसपास के गावों में भी बहुत अच्छा था। इस लिए सब लोग हमें इज्ज़त देते थे।
इसी तरह समय गुज़रता रहा। कुछ सालों बाद मेरे छोटे चाचा चाची और बड़ी बुआ को एक एक संतान हुईं। चाचा चाची को एक बेटा यानी शगुन सिंह बघेल और बड़ी बुआ को एक बेटी यानी अदिति सिंह हुई। चाचा चाची का बेटा शगुन बड़ा ही सुन्दर था। उसके जन्म में भी दादा जी ने बहुत बड़ा उत्सव मनाया तथा पूरे गाॅव वालों को भोज कराया। बड़े पापा और बड़ी माॅ ने भी कोई कसर नहीं छोंड़ी थी खर्चा चरने में। सबने बड़ी बुआ को भी बहुत सारा उपहार दिया था। सब लोग बड़ा खुश थे।
कुछ सालों बाद छोटी बुआ की भी शादी हो गई। वो अपने ससुराल चली गईं। हम सभी बच्चे भी समय के साथ बड़े हो रहे थे।
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,,
बड़े पापा और बड़ी माॅ ज्यादातर शहर में ही रहते। वो लोग तभी आते थे गाॅव जब कोई खास कार्यक्रम होता। उनके कारोबार और उनके पैसों से किसी को कोई मतलब नहीं था। मेरे माता पिता के प्रति उनके मन में हमेशा एक द्वेश तथा नफरत जैसी बात कायम रही। हलाॅकि वो इसका कभी दिखावा नहीं करते थे लेकिन सच्चाई कभी किसी पर्दे की गुलाम बन कर नहीं रहती। वो अपना चेहरा किसी न किसी रूप से लोगों को दिखा ही देती है। दादा जी सब जानते और समझते थे लेकिन बोलते नहीं थे कभी।
मेरे माता पिता के मन में बड़े पापा और बड़ी माॅ के प्रति कभी कोई बुरी भावना या ग़लत विचार नहीं रहा बल्कि वो हमेशा उनका आदर तथा सम्मान ही करते थे। मेरे पिता जी उसी तरह ज़मीनों में खेती करके फसल उगाते थे, अब फर्क ये था कि वो ये सब मजदूरों से करवाते थे। ज़मीनों में बड़े बड़े आमों के बाग़ हो गए थे, साग सब्जियों की भी पैदावार होने लगी थी। खेतों के बीच एक बड़ा सा घर भी बनवा लिया गया था। कहने का मतलब ये कि हर सुविधा हर साधन हो गया था। पहले जहाॅ दो दो बैलों के साथ हल द्वारा खेतों की जुताई होती थी अब वहाॅ ट्रैक्टर द्वारा जुताई होने लगी थी। हमारे पास दो दो ट्रैक्टर हो गए थे। दादा जी के लिए पिता जी ने एक कार भी खरीद दी थी तथा छोटे चाचा जी के लिए एक बुलेट मोटर साइकिल जिससे वे स्कूल जाते थे। दादा दादी बड़े गर्व व शान से रहते थे। मेरे पिता जी से वो बहुत खुश थे।
मगर कौन जानता था कि इस हॅसते खेलते परिवार की खुशियों पर एक दिन एक ऐसा तूफ़ान कहर बन कर बरपेगा कि सब कुछ एक पल में आईने की तरह टूट कर बिखर जाएगा????
अपडेट हाज़िर है दोस्तो, आप सबका सहयोग तथा आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा।
मेरे माता पिता के मन में बड़े पापा और बड़ी माॅ के प्रति कभी कोई बुरी भावना या ग़लत विचार नहीं रहा बल्कि वो हमेशा उनका आदर तथा सम्मान ही करते थे। मेरे पिता जी उसी तरह ज़मीनों में खेती करके फसल उगाते थे, अब फर्क ये था कि वो ये सब मजदूरों से करवाते थे। ज़मीनों में बड़े बड़े आमों के बाग़ हो गए थे, साग सब्जियों की भी पैदावार होने लगी थी। खेतों के बीच एक बड़ा सा घर भी बनवा लिया गया था। कहने का मतलब ये कि हर सुविधा हर साधन हो गया था। पहले जहाॅ दो दो बैलों के साथ हल द्वारा खेतों की जुताई होती थी अब वहाॅ ट्रैक्टर द्वारा जुताई होने लगी थी। हमारे पास दो दो ट्रैक्टर हो गए थे। दादा जी के लिए पिता जी ने एक कार भी खरीद दी थी तथा छोटे चाचा जी के लिए एक बुलेट मोटर साइकिल जिससे वे स्कूल जाते थे। दादा दादी बड़े गर्व व शान से रहते थे। मेरे पिता जी से वो बहुत खुश थे।
मगर कौन जानता था कि इस हॅसते खेलते परिवार की खुशियों पर एक दिन एक ऐसा तूफ़ान कहर बन कर बरपेगा कि सब कुछ एक पल में आईने की तरह टूट कर बिखर जाएगा????
अब आगे.....
"ओ भाई साहब! क्या आप मेरे इस समान को दरवाज़े तक ले जाने में मेरी मदद कर देंगे ?" सहसा किसी आदमी के इस वाक्य को सुन कर मैं अपने अतीत के गहरे समंदर से बाहर आया। मैंने ऊपर की सीट से खुद को ज़रा सा उठा कर नीचे की तरफ देखा।
एक आदमी ट्रेन के फर्स पर खड़ा मेरी तरफ देख रहा था। उसका दाहिना हाॅथ मेरी सीट के किनारे पर था जबकि बाॅया हाॅथ नीचे फर्स पर रखी एक बोरी पर था। मुझे कुछ बोलता न देख उसने बड़े ही अदब से फिर बोला "भाई साहब प्लेटफारम आने वाला है, ट्रेन बहुत देर नहीं रुकेगी यहाॅ और मेरा सारा सामान यहीं रह जाएगा। पहले ध्यान ही नहीं दिया था वरना सारा सामान पहले ही दरवाजे के पास ले जा कर रख लेता।"
उसकी बात सुन कर मुझे पूरी तरह होश आया। लगभग हड़बड़ा कर मैंने अपने बाएं हाॅथ पर बॅधी घड़ी को देखा। घड़ी में दिख रहे टाइम को देख कर मेरे दिलो दिमाग़ में झनाका सा हुआ। इस समय तो मुझे अपने ही शहर के प्लेटफार्म पर होना चाहिए। मैं जल्दी से नीचे उतरा, तथा अपना बैग भी ऊपर से निकाला।
"क्या ये ट्रेन गुनगुन पहुॅच गई ?" फिर मैंने उस आदमी से तपाक से पूॅछा।
"बस पहुॅचने ही वाली है भाई साहब।" उस आदमी ने कहा "आप कृपा करके जल्दी से मेरा ये सामान दरवाजे तक ले जाने में मेरी मदद कर दीजिए।"
"ठीक है, क्या क्या सामान है आपका?" मैंने पूॅछा।
"चार बोरियाॅ हैं भाई साहब और एक बड़ा सा थैला है।" उसने अपने सभी सामानों पर बारी बारी से हाॅथ रखते हुए बताया।
मैंने एक बोरी को एक हाॅथ से उठाया किन्तु भारी लगा मुझे। मैंने उस बोरी को ठीक से उठाते हुए उससे पूछा कि क्या पत्थर भर रखा है इनमें? वह हॅसते हुए बोला नहीं भाई साहब इनमें सब में गेहूॅ और चावल है। पिछली रबी बरसात न होने से हमारी सारी फसल बरबाद हो गई। अब घर में खाने के लिए कुछ तो चाहिए ही न भाई साहब इस लिए ये सब हमें हमारी ससुराल वालों ने दिया है। ससुराल वालों से ये सब लेना अच्छा तो नहीं लगता लेकिन क्या करें मुसीबत में सब करना पड़ जाता है।"
ट्रेन स्टेशन पर पहुॅच ही चुकी थी लगभग, हम दोनों ने मिल कर सीघ्र ही सारा सामान दरवाजे पर रख चुके थे। थोड़ी ही देर में ट्रेन प्लेटफार्म पर पहुचकर रुक गई। वो आदमी जल्दी से उतरा और मैंने ऊपर से एक एक करके उसका सामान उसे पकड़ाता गया। सारा सामान सही सलामत नीचे उतर जाने के बाद मैं भी नीचे उतर गया। वो आदमी हाॅथ जोड़ कर मुझे धन्यवाद करता रहा। मैं मुस्कुरा कर एक तरफ बढ़ गया।
स्टेशन से बाहर आने के बाद मैंने बस स्टैण्ड जाने के लिए एक आॅटो पकड़ा। लगभग बीस मिनट बाद मैं बस स्टैण्ड पहुॅचा। यहाॅ से बस में बैठ कर निकल लिया अपने गाॅव 'हल्दीपुर'।
हल्दीपुर पहुॅचने में बस से दो घण्टे का समय लगता था। बस में मैं सीट की पिछली पुस्त से सिर टिका कर तथा अपनी दोनो आॅखें बंद करके बैठ गया। आॅख बंद करते ही मुझे मेरी माॅ और बहन का चेहरा नज़र आ गया। उन्हें देख कर आॅखें भर आईं। बंद आॅखों में चेहरे तो और भी नज़र आते थे जो मेरे बेहद अज़ीज़ थे लेकिन मैं उनके लिए अब अज़ीज़ न था।
सहसा तभी बस में कोई गाना चालू हुआ। दरअसल ये बस वालों की आदत होती है जैसे ही बस किसी सफर के लिए निकलती है बस का ड्राइवर गाना बजाना शुरू कर देता है ताकि बस में बैठे यात्रियों का मनोरंजन भी होता रहे।
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,
अरे! ये ग़ज़ल तो ग़ुलाम अली साहब की है। ग़ुलाम अली साहब मेरी रॅग रॅग में बस गए थे आज कल। आप क़यामत तक सलामत रहें खान साहब आपकी ग़ज़लों ने मुझे एक अलग ही सुकून दिया है वरना दर्द-दिल और दर्दे-ज़िंदगी ने कब का मुझे फना कर दिया होता। फिर आ गया हूॅ उसी शहर उसी गली कूचे में जिसने जाने क्या क्या अता कर दिया है मुझे। उफ्फ़ ये बस का ड्राइवर भी यारो, क्या मेरे दिल का हाल जान गया था जो उसने मुझे सुकून देने के लिए ये ग़ज़ल शुरू करके सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझे सुनाने लगा था? अच्छा ही हुआ कुछ पल ही सही सुकून तो मिल जाएगा मुझे। चलो अब कुछ न कहूॅगा, ग़ज़ल सुन लूॅ पहले फिर आगे का हाल सुनाऊॅगा आप सबको।
हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफ़िर की तरह।
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे।।
मेरी मंज़िल है कहाॅ, मेरा ठिकाना है कहाॅ,
सबहो तक तुझसे बिछड़ कर मुझे जाना है कहाॅ।
सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे।। हम तेरे शहर में.....
अपनी आखों में छुपा रखे हैं जुगनूॅ मैंने,
अपनी पलकों पे सजा रखे हैं आॅसू मैंने।
मेरी आखों को भी बरसात का मौका दे दे।। हम तेरे शहर में.....
आज की रात मेरा दर्दे-मोहब्बत सुन ले,
कॅपकपाते हुए होठों की शिकायत सुन ले।
आज इज़हारे-ख़यालात का मौका दे दे।। हम तेरे शहर में.....
भूलना था तो ये इक़रार किया ही क्यों था?
बेवफ़ा तूने मुझे प्यार किया ही क्यों था ?
सिर्फ़ दो चार सवालात का मौका दे दे।। हम तेरे शहर में......
अरे! क्यों बंद हो गई ये ग़ज़ल? खान साहब कुछ देर और गाते न...मेरे लिए। हाय, क्या कहूॅ अब किसी को? दिल में इक तूफान मानो इंकलाब ज़िन्दाबाद का नारा सा लगाने लगा था। बहुत सी बातें बहुत सी यादें दिलो दिमाग़ को डसने लगी थी। मैं शायर तो नहीं उस दिन भी कहा था आप सबसे, आज भी कहता हूॅ। ऐसा लगता है जैसे मेरा दिल खुद ही लफ्ज़ों में पिरो कर अपना हाल आप सबको सुनाने लगेगा। मगर अभी नहीं दोस्तो, अपनी खुद की लिखी ग़ज़ल आगे कहीं सुनाऊॅगा।
ख़ैर वक़्त को तो गुज़रना ही था आख़िर, सो गुज़र गया और मैं अपने गाॅव हल्दीपुर पहुॅच गया। ये वही गाॅव है जिसके किसी छोर पर मेरे पिता जी द्वारा बनवाई गई हवेली मौजूद है। मगर मैं,मेरी माॅ और बहन अब उस हवेली में नहीं रहते। मेरे पिता जी तो अब इस दुनियाॅ में हैं ही नहीं। जी हाॅ दोस्तो मेरे पिता जी अब इस जहां में नहीं हैं।
हम तीन लोग यानी मैं मेरी माॅ और बहन अब खेतों के पास बने घर में रहते हैं। मगर बहुत जल्द हम लोगों का अब यहाॅ से भी तबादला होने वाला है।
उस समय शाम होने लगी थी जब मैं अपनी माॅ बहन के पास पहुॅचा। मुझे देख कर दोनो ही मुझसे लिपट गईं और फूट फूट कर रोने लगीं। मैंने थोड़ी देर उन्हें रोने दिया। फिर दोनो को खुद से अलग करके पास ही रखी एक चारपाई पर बैठा दिया। मेरी छोटी बहन निधि ने पास ही रखे एक घड़े से ग्लास में मुझे पानी दिया।
"माॅ, क्या फिर बड़े पापा ने?" अभी मेरी बात पूरी भी न हुई थी कि माॅ ने कहा "बेटा अब हम यहाॅ नहीं रहेंगे। हमें अपने साथ ले चल। हम तेरे साथ मुम्बई में ही रहेंगे। यहाॅ हमारे लिए कुछ नहीं है और न ही कोई हमारा है।"
"माॅ, क्या फिर बड़े पापा ने आपको कुछ कहा है?" मेरे अंदर क्रोध उभरने लगा था।
"सब भाग्य की बातें हैं बेटा।" माॅ ने गंभीरता से कहा "जब तक हमारे भाग्य में दुख तक़लीफें लिखी हैं तब तक ये सब सहना ही पड़ेगा।"
"माॅ चुप बैठने से कुछ नहीं होता।" मैंने कहा "किसी के सामने झुकना अच्छी बात है लेकिन इतना भी नहीं झुकना चाहिये कि हम झुकते झुकते एक दिन टूट ही जाएं। अपने हक़ के लिए लड़ना पड़ता है माॅ। ये मान मर्यादा की बातें सिर्फ़ हम ही बस क्यों सोचें? वो क्यों नहीं सोचते ये सब?"
"सब एक जैसे अच्छे विचारों वाले नहीं होते बेटा।" माॅ ने कहा "अगर वो ये सब सोचते तो क्या हमें इस तरह यहाॅ रहना पड़ता?"
"यहाॅ भी कहाॅ रहने दे रहे हैं माॅ।"मैं आवेश मे बोला "उन्होंने हमें इस तरह निकाल कर बाहर फेंक दिया है जैसे कोई दूध पर गिरी मक्खी को निकाल कर फेंक देता है। सारा गाॅव जानता है कि वो हवेली मेरे पिता जी के खून पसीना बहा कर कमाए हुए रुपयों से बनी है। और उनका वो कारोबार भी मेरे पिता जी के रुपयों की बुनियाद पर ही खड़ा है। ये कहाॅ का न्याय है माॅ कि सब कुछ छीन कर हमें दर दर का भिखारी बना दिया जाए?"
"हमें कुछ नहीं चाहिए बेटे।" माॅ ने कहा "मेरे लिए तुम दोनों ही मेरा सब कुछ हो।"
"आपकी वजह से मैं कुछ कर नहीं पाता माॅ।" मैंने हतास भाव से कहा"वरना इन लोगों को इनकी ही ज़ुबान से सबक सिखाता मैं।"
"किसी को कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है बेटे।" माॅ ने कहा "जो जैसा करेगा उसे वैसा ही एक दिन फल भी मिलेगा। ईश्वर सब देखता है।"
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,,
"तो क्या हम हर चीज़ के लिए ईश्वर का इन्तज़ार करते बैठे रहें ?" मैने कहा "ईश्वर ये नहीं कहता कि तुम कोई कर्म ही न करो। अपने हक़ के लिए लड़ना कोई गुनाह नहीं है।"
"भइया कल बड़े पापा ने।" निधि ने अभी अपनी बात भी पूरी न की थी कि माॅ ने उसे चुप करा दिया "तू चुप कर, तुझे बीच में बोलने को किसने कहा था?"
"उसे बोलने दीजिए माॅ।" मैंने कहा मुझे लगा निधि कुछ खास बात कहना चाहती है। "तू बता गुड़िया क्या किया बड़े पापा ने कल ?"
"कुछ नहीं बेटा ये बेकार ही जाने क्या क्या अनाप सनाप बकती रहती है।" माॅ ने जल्दी से खुद ही ये कहा।
"मैं अनाप सनाप नहीं बक रही हूॅ माॅ।" इस बार निधि की आखों में आॅसू और लहजे में आवेश था बोली "कब तक हर बात को सहते रहेंगे हम? कब तक हर बात भइया से छिपाएंगी आप? इस तरह कायर बन कर जीना कहाॅ की समझदारी है?"
"तो तू क्या चाहती है?" माॅ ने गुस्से से कहा "ये कि ऐसी हर बातें तेरे भाई को बताऊं जिससे ये जा कर उनसे लड़ाई झगड़ा करे? बेटा उन लोगों से लड़ने का कोई फायदा नहीं है। उनके पास ताकत है पैसा है हम अकेले कुछ नहीं कर सकते। लड़ाई झगड़े में कभी किसी का भला नहीं हुआ मेरे बच्चों। मैं नहीं चाहती कि किसी वजह से मैं तुम लोगों को खो दूॅ।"
कहने के साथ ही माॅ रोने लगी। मेरा कलेजा हाहाकार कर उठा। माॅ को यूं बेबसी में रोते देख मुझे ऐसा लग रहा था कि सारी दुनिया को आग लगा दूॅ। मेरे माता पिता जैसा दूसरा कोई नहीं था। वो हमेशा दूसरों की खुशी के लिए जीते थे। कभी किसी की तरफ आॅख उठा कर नहीं देखा। कभी किसी को बुरा भला नहीं कहा।
"हम कल ही यहाॅ से कहीं दूर चले जाएंगे बेटा।" माॅ ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा "मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए, दो वक़्त की रोटी कहीं भी रह कर कमा खा लेंगे।"
"ठीक है माॅ।" मैं भला कैसे इंकार करता। "जैसा आप कहेंगी वैसा ही होगा। यहाॅ जो भी आपका और गुड़िया का ज़रूरी सामान हो वो ले लीजिए। हम कल सुबह ही निकलेंगे।"
"वैसे तो कोई ज़रूरी सामान यहाॅ नहीं है बेटा।" माॅ ने कहा "बस पहनने वाले हमारे कपड़े ही हैं।"
"और आपके गहने जेवर वगैरा ?" मैंने पूॅछा।
"गहने जेवर मुझ विधवा औरत के किस काम के बेटा?" माॅ ने कहा।
"भइया कल बड़े पापा और बड़ी मां यहां आईं थी।" निधि ने कहा "वो माॅ के सब जेवर उठा ले गईं और बहुत ही बुरा सुलूक किया हमारे साथ। और पता है भइया वो शिवा मुझे गंदे तरीके से छू रहा था। बड़े पापा भी माॅ को बहुत गंदा बोल रहे थे।"
"क् क्या ?????" मेरा पारा एक पल में चढ़ गया। "उन लोगों की ये ज़ुर्रत कि वो मेरी माॅ और बहन के साथ इस नीचता के साथ पेश आएं? छोड़ूॅगा नहीं उन हरामज़ादों को मैं।"
"न नहीं बेटा नहीं।" माॅ ने मुझे सख़्ती से पकड़ कर कहा "उनसे उलझने की कोई ज़रूरत नहीं है। वो बहुत ख़राब लोग हैं, हम कल यहाॅ से चले जाएंगे बेटा बहुत दूर।"
माॅ ने मुझे सख़्ती से पकड़ा हुआ था, जबकि मेरी रॅगों में दौड़ता हुआ लहू उबाल मार रहा था। मुझे लग रहा था कि अभी जाऊं और सबको भूॅन कर रख दूॅ।
"मुझे छोंड़ दीजिए माॅ।" मैंने खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा "मैं इन कमीनों को दिखाना चाहता हूं कि मेरी माॅ और बहन पर गंदी हरकत करने का अंजाम क्या होता है?"
"न नहीं बेटा तू कहीं नहीं जाएगा।" माॅ ने कहने के साथ ही मेरा दाहिना हाॅथ पकड़ कर अपने सिर पर रखा और कहा "तुझे मेरी क़सम है बेटा। तू उन लोगों से लड़ने झगड़ने का सोचेगा भी नहीं।"
"मुझे अपनी कसम दे कर कायर और बुज़दिल न बनाइए माॅ।" मैंने झुंझला कर कहा "मेरा ज़मीर मेरी आत्मा मर जाएगी ऐसे में।"
"सब कुछ भूल जा मेरे लाल।" माॅ ने रोते हुए कहा "एक तू ही तो है हम दोनों का सहारा। तुझे कुछ हो गया तो क्या होगा हमारा?"
माॅ ने मुझे समझा बुझा कर शान्त कर दिया। मैं वहीं चारपाई पर आॅखें बंद करके लेट गया। जबकि माॅ वहीं एक तरफ खाना बनाने की तैयारी करने लगी और मेरी बहन निधि मेरे ही पास चारपाई में आ कर बैठ गई।
इस वक़्त जहाॅ हम थे वो खेत वाला घर था। घर तो काफी बड़ा था किन्तु यहाॅ रहने के लिए भी सिर्फ एक कमरा दिया गया था। बांकी हर जगह ताला लगा हुआ था। खेतों में काम करने वाले मजदूर इस वक़्त नहीं थे और अगर होंगे भी तो कहीं नज़र नहीं आए। पता नहीं उन लोगों के साथ भी जाने कैसा वर्ताव करते होंगे ये लोग?
ख़ैर जो रूखा सूखा माॅ ने बनाया था उसी को हम सबने खाया और वहीं सोने के लिए लेट गए। चारपाई एक ही थी इस लिए उसमें एक ही ब्यक्ति लेट सकता था। मैंने चारपाई पर माॅ को लिटा दिया हलाॅकि माॅ नीचे ही ज़मीन पर सोने के लिए ज़ोर दे रही थी पर मैं नहीं माना और मजबूरन माॅ को ही चारपाई पर लेटना पड़ा। नीचे ज़मीन पर मैं और निधि एक चादर बिछा कर लेट गए।
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,
मेरी आॅखों में नींद का कहीं दूर दूर तक नामो निशान न था। यही हाल सबका था। मुझे रह रह कर गुड़िया की बात याद आ रही थी कि बड़े पापा और उनके बेटे ने मेरी माॅ और बहन के साथ गंदा सुलूक किया। इन सब बातों से मेरा ख़ून खौल रहा था मगर माॅ की क़सम के चलते मैं कुछ कर नहीं सकता था।
मगर मैं ये भी जानता था कि माॅ की ये क़सम मुझे कुछ करने से अब रोंक नहीं सकती थी क्योंकि इन सब चीच़ों से मेरा सब्र टूटने वाला था। मेरे अंदर की आग को अब बाहर आने से कोई रोंक नहीं सकता था। मैं अब एक ऐसा खेल खेलने का मन बना चुका था जिससे सबकी तक़दीर बदल जानी थी।
दोस्तो अपडेट दे दिया है,,,
आशा करता हूॅ कि आप सबको पसंद आएगा और अगर न पसंद आए तो बेझिझक आप सब अपनी बात कह कर मेरी ग़लतियों तथा कमियों से मुझे अवगत करा दीजिएगा। आप सबकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।
धन्यवाद !!
दोस्तो, मुझे लगता है कि आपको मेरी ये कहानी पसंद नहीं आ रही है। क्योंकि अपडेट देने के बाद भी आप लोग अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। आप में से बहुत से लोग खुद भी लेखक हैं और यहाॅ पर कहानियाॅ लिखकर सभी का मनोरंजन कर रहे हैं। आप जानते हैं कि एक लेखक अपने पाठकों से क्या चाहता है ?
एक अपडेट को हिन्दी में लिख कर तथा उसे तैयार करने में कम से कम दो से तीन घंटे तक का समय लगता है, और उस पर जब किसी की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती तो एक लेखक को कैसा लगता होगा? सोचिए.....!
मैंने कई साइट्स पर इस बात को भी देखा है कि दूसरा लेखक आपकी कहानी को पढ़ता तो ज़रूर है लेकिन आपकी उस कहानी पर कोई प्रतिक्रिया देना जैसे वह अपनी तौहीन समझता है। इस बात से आप क्या सोचेंगे...क्या ये कि वो सिर्फ अपनी कहानी के लिए लोगों की प्रतिक्रिया चाहता है, या फिर ये कि वो खुद को बहुत बड़ा तीसमारखां समझता है जिसके तहत उसे किसी दूसरे लेखक की कहानी पर कोई प्रतिक्रिया देना अपनी शान के खिलाफ लगता है?
ख़ैर ये तो अपनी अपनी सोच की बात है किन्तु है ज़रूर सोचने वाली बात। वैसे इस सवाल पर आपको ये जवाब भी मिल सकता है कि उनके पास इस सबके लिए समय ही नहीं मिल पाता जिससे वो किसी की कहानी पर कोई प्रतिक्रिया दे सकें। मगर जनाब ये जवाब तो फिर हर लेखक दे सकता है आपके लिए। क्योंकि आज के समय में हर ब्यक्ति किसी न किसी काम में उलझा हुआ है, फालतू वक्त किसी के पास नहीं है। ख़ैर जाने दीजिए.....
कहानी पर अगर किसी की कोई प्रतिक्रिया न मिले तो एक लेखक का उत्साह खत्म हो जाता है, उसका दिल नहीं करता फिर कि वह इतनी मेहनत करके कहानी को आगे बढ़ाए। एक अपडेट तैयार करने में समय के साथ साथ दिलो दिमाग़ को कितना मॅथना पड़ता है ये किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है। आपने तो पाॅच मिनट में अपडेट पढ़ लिया और आपका काम खत्म।
अंत में यही कहूॅगा कि बग़ैर किसी की प्रतिक्रिया के मैं कहानी को आगे नहीं बढ़ा पाऊॅगा। ये बात सिर्फ यहीं बस की नहीं है बल्कि हर साइट्स की भी है। हर जगह यही हाल है। बेचारे लेखक....! धैर्य या संयम की बात नहीं है वो तो बहुत होता है जनाब मगर ये सब जो चीज़ें हैं न वो नहीं होनी चाहिए,इससे बड़ा दुख होता है। ख़ैर कोई बात नहीं। मेरी इन बातों से अगर किसी महानुभाव को बुरा लगा हो तो प्लीज मुआफ़ कर देना,,,,
मेरी आॅखों में नींद का कहीं दूर दूर तक नामो निशान न था। यही हाल सबका था। मुझे रह रह कर गुड़िया की बात याद आ रही थी कि बड़े पापा और उनके बेटे ने मेरी माॅ और बहन के साथ गंदा सुलूक किया। इन सब बातों से मेरा ख़ून खौल रहा था मगर माॅ की क़सम के चलते मैं कुछ कर नहीं सकता था।
मगर मैं ये भी जानता था कि माॅ की ये क़सम मुझे कुछ करने से अब रोंक नहीं सकती थी क्योंकि इन सब चीच़ों से मेरा सब्र टूटने वाला था। मेरे अंदर की आग को अब बाहर आने से कोई रोंक नहीं सकता था। मैं अब एक ऐसा खेल खेलने का मन बना चुका था जिससे सबकी तक़दीर बदल जानी थी।
अब आगे..........
दूसरे दिन लगभग आठ बजे। विराज अपनी माॅ गौरी और बहन निधि को लेकर घर से बाहर निकल कर आया ही था कि सामने से उसे एक मोटर साइकिल आती नजर आई।
"फिर आ गया कमीना।" निधि ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा।
"गुड़िया।" माॅ यानि गौरी ने लगभग डाटते हुए निधि से कहा__"ऐसे गंदे शब्द किसी को भी नहीं बोलना चाहिए और वो तो फिर भी तुम्हारा भाई है।"
"माॅ शिवा भइया ने भाई होने का कौन सा फर्ज़ निभाया है?" निधि ने कहा__"और वो हमें अपना समझते ही कहाॅ हैं? उनके लिए तो हम बाजार की रं....।"
"गुड़िया.....।" गौरी जोर से चीखी थी। अभी वह कुछ और भी कहती कि उससे पहले ही उसने देखा कि सामने से मोटर साईकिल से आता हुआ शिवा पास आ गया था। उसने शख्ती से अपने होंठ भींच लिए।
शिवा ने एक एक नज़र उन सब पर डाली और बहुत ही कमीने ढंग से मुस्कुराते हुए बोला__"अरे भाई भी आ गया। वाह भाई वाह लगता है धंधे का समय हो गया है तुम लोगों का। सुबह सुबह दुकान तो सभी खोलते हैं मगर मुझे जरा ये तो बताओ कि तुम लोगो की दुकान किस जगह खुलेगी? वो दरअसल क्या है न कि मैं सोच रहा हूॅ कि तुम लोगों की दुकान की बोहनी मैं ही कर दूॅ अपने कुछ दोस्तों को साथ लाकर।"
शिवा की बातें ऐसी नहीं थी जिनका मतलब उनमें से कोई समझ न सकता था। विराज का चेहरा गुस्से से आग बबूला हो चुका था। उसकी मुट्ठियाॅ कस गई थीं। ये देख गौरी ने फौरन ही अपने बेटे का हाॅथ पकड़ लिया था। उसे पता था कि विराज ये सब सहन नहीं कर सकता और गुस्से में न जाने क्या कर डाले।
"देखो तो कैसे फड़फड़ा रहा है भाई।" विराज को गुस्से में उबलता देख शिवा ने चहकते हुए कहा__"अरे ठंड रख भाई ठंड रख। तुम्हारे इस धंधे में इसकी कोई जरूरत नहीं है। बल्कि इस धंधे में तो बडे प्यार और धैर्य की ज़रूरत होती है। ज़बान में शहद सी मिठास डालनी होती है जिससे ग्राहक को लुभाया जा सके। ख़ैर छोंड़ो ये बात..सब सीख जाओगे भाई। धीरे धीरे ही सही मगर धंधा करने का तरीका आ ही जाएगा। अच्छा ये तो बता दो यार कि अपनी माॅ बहन को लेकर किस जगह दुकान खोलने वाले हो?"
"आपको ज़रा भी शर्म नहीं आती भइया ऐसी बातें कहते हुए।" निधि ने रुॅधे गले से कहा__"आपको ज़रा भी एहसास नहीं है कि हम आपके अपने हैं और आप अपनों के लिए ही ऐसा बोल रहे हैं?"
"अलेलेलेले।" शिवा ने पुचकारते हुए कहा__"मेरी निधि डार्लिंग ये कैसी बातें कह रही है? मैं तो अपना समझ कर ही ऐसा बोल रहा हूॅ। तुम सबका भला चाहता हूॅ तभी तो चाहता हूॅ कि तुम्हारी दुकान की बोहनी सबसे पहले मैं ही करूॅ।"
इससे पहले कि कोई कुछ और बोल पाता शिवा मोटर साईकिल से नीचे औंधा पड़ा नज़र आया। उसके मुह से खून की धारा बहने लगी थी। किसी को समझ ही नहीं आया कि पलक झपकते ही ये कैसे हो गया। गौरी और निधि हैरत से आंखें फाड़े शिवा को देखने लगी थी। होश तब आया जब फिज़ा में शिवा की चीखें गूॅजने लगी थी। दरअसल शिवा की अश्लीलतापूर्ण बातों से विराज ने गुस्से से अपना आपा खो दिया था और माॅ के हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर शिवा पर टूट पड़ा था। गौरी को तो पता भी नहीं चला था कि विराज ने उसके हाथ से अपना हाथ कब छुड़ाया और कब वह शिवा की तरफ झपटा था?
उधर शिवा की दर्दनाक चीखें वातावरण में गूॅज रही थी। विराज बुरी तरह शिवा की धुनाई कर रहा था। ऐसा नही था कि शिवा कमजोर था बल्कि वह खुद भी तन्दुरुस्त तबियत का था किन्तु विराज मासल आर्ट में ब्लैक बैल्ट होल्डर था। शिवा उसे छू भी नही पा रहा था जबकि विराज उसे जाने किस किस तरह से मारे जा रहा था। गौरी और निधि मुह और आखें फाड़े देखे जा रही थी। निधि की खुशी का तो कोई ठिकाना ही न था। उसने ऐसी मार धाड़ भरी फाइटिंग फिल्मों में ही देखी थी और आज तो उसका अपना सगा बड़ा भाई खुद ही किसी हीरो की तरह फाईटिंग कर रहा था। उसका मन कर रहा था कि वह ये देख कर खुशी से नाचने लगे किन्तु माॅ के रहते उसने अपने जज़्बातों को शख्ती से दबाया हुआ था।
"न नहीं.....।" अचानक ही गौरी चीखी, उसे जैसे होश आया था। दोड़ कर उन दोनो के पास पहुॅची वह और विराज को पकड़ने लगी__"छोंड़ दे बेटा उसे। भगवान के लिए छोंड़ दे। वो मर जाएगा तुझे मेरी कसम छोंड़ दे उसे।"
माॅ की कसम सुनते ही विराज के हाथ पाॅव रुक गए। मगर तब तक शिवा की हालत ख़राब हो चुकी थी। लहूलुहान हो चुका था वह। जिस्म का ऐसा कोई हिस्सा नही बचा था जहाॅ से खून और चोंट न नज़र आ रही हो। अधमरी सी हालत में वह जमीन पर पड़ा था। मुह से कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी शायद बेहोश हो चुका था वह।
विराज के रुकते ही गौरी ने जाने किस भावना के तहत विराज के दोनो गालों पर थप्पड़ों की बरसात कर दी।
"ये तूने क्या किया, तू इतना क्रूर और निर्दयी कैसे हो गया?" गौरी रोए जा रही थी__"क्या मैंने तुझे यही संस्कार दिए थे कि तू किसी को इस तरह क्रुरता से मारे?"
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,,,
"ये इसी लायक था माॅ।" माॅ का मारना जब रुक गया तो विराज कह उठा, उस पर गुस्सा अब भी विद्यमान था बोला__"इसने आपको और मेरी गुड़िया को कितना गंदा बोला था माॅ। किसी के सामने इतना भी नहीं झुक सकता मैं। मेरे सामने कोई आपको और गुड़िया को ऐसी सोच के साथ अपशब्द कहे मैं हर्गिज भी बरदास्त नहीं करूॅगा। मैं ऐसी गंदी जुबान बोलने वाले का किस्सा ही खतम कर दूॅगा।"
"ये तूने ठीक नहीं किया बेटे।" गौरी की आखें नम थी__"उसकी हालत तो देख। ऐसी हालत में उसे जब उसके माॅ बाप देखेंगे तो वो चैन से नहीं बैठेंगे।"
"क्या करेंगे वो?" विराज के लहजे मे पत्थर सी कठोरता थी__"मैं किसी से नहीं डरता। जिसे जो करना है करे अब मैं भी पीछे हटने वाला नहीं हूॅ माॅ और.....और आप भी अब मुझे अपनी कसम देकर रोकेंगी नहीं। हर बार आपकी कसम मुझे कुछ भी करने से रोंक लेती है। आपको ये एहसास भी नहीं है माॅ कि उस हालत में मुझ पर क्या गुज़रती है? मुझे खुद से ही नफरत होने लगती है माॅ। मैं अपने आपसे नज़रें नहीं मिला पाता। मुझे ऐसे बंधन में मत बाॅधा कीजिए माॅ वरना मैं जी नहीं पाऊॅगा।"
"नहीं मेरे बच्चे।" गौरी उसे अपने सीने से लगा कर रो पड़ी__"ऐसा मत कह मैं माॅ हू तेरी। तुझे कुछ हो न जाए इस लिए डर कर तुझे अपनी कसम में बाॅध देती हूॅ। मुझे माफ कर दे मेरे लाल, मैं जानती हूॅ कि मेरा बेटा एक सच्चा मर्द है। मेरी कसम में बॅध कर तेरी मरदानगी व खुद्दारी को चोंट लगती है। मगर, मैं तेरे पिता और अपने सुहाग को खो चुकी हूॅ अब तुझे नहीं खोना चाहती। तू हम दोनो मां बेटी का एक मात्र सहारा है बेटा। इस दुनिया में कोई हमारा नहीं है।"
"मुझे कुछ नहीं होगा माॅ।" विराज ने माॅ के सीने से अलग हो कर तथा अपने दोनों हाथों से मां का मासूम सा चेहरा सहलाते हुए बोला__"इस दुनिया की कोई भी ताकत मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अब समय आ गया है ऐसे बुरे लोगों को उनके किये की सज़ा देने का।"
"ये तू क्या कह रहा है बेटा ?" गौरी के चेहरे पर न समझने वाले भाव उजागर हो उठे__"नही नही, हमें किसी को कोई सज़ा नहीं देना है बेटा। हम यहाॅ अब एक पल भी नहीं रुकेंगे। इससे पहले कि शिवा की हालत के बारे में किसी को कुछ पता चले हमें यहाॅ से निकल जाना चाहिए।"
"माॅ सही कह रही हैं भइया।" निधि ने भी पास आते हुए कहा__"अब हमें यहाॅ एक पल भी नहीं रुकना चाहिए। आप नहीं जानते हैं हम लोगों की पल पल की ख़बर बड़े पापा को होती है और इसमें कोई शक नहीं कि उन्हें अब तक ये न पता चल गया हो कि यहाॅ क्या हुआ है?"
"हाॅ बेटा चल जल्दी चल यहा से।" गौरी ने घबराते हुए कहा__"उनका कोई भरोसा नहीं है कि वो कब यहा आ जाएं।"
"मैं भी देखना चाहता हूं माॅ कि बड़े पापा क्या कर लेंगे मेरा और आप दोनों का?" विराज ने कहा__"बहुत हो गया अब। वो समझते होंगे कि हम उनसे डरते हैं। आज मैं उन्हें दिखाऊंगा कि मैं कायर और डरपोंक नहीं हूॅ। अब तक इस लिए चुप था क्योंकि आपने मुझे अपनी कसम से बाॅधे रखा था। मगर अब और नही माॅ, मैं कायर और डरपोंक नहीं बन सकता। मेरा ज़मीर मुझे चैन से जीने नहीं देगा। क्या आप चाहती हैं माॅ कि मैं घुट घुट कर जिऊॅ?"
"नहीं मेरे लाल।" गौरी मानो तड़प उठी, बोली__"मैं ये कैसे चाह सकती हूं भला कि मेरे जिगर का टुकड़ा मेरी आॅखों का नूर यूॅ घुट घुट कर जिये वो भी सिर्फ मेरी वजह से? मगर तू तो जानता है बेटा कि मै एक माॅ हूं, दुनिया की कोई भी माॅ ये नहीं चाहती कि उसके लाल के ऊपर किसी भी तरह का कोई संकट आए।"
"फिक्र मत कीजिए माॅ।" विराज ने कहा__"आपका प्यार और आशीर्वाद इतना कमज़ोर नहीं है जिससे कोई बला मुझे किसी तरह का नुकसान पहुॅचा सके।"
"बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगा है तू तो।" गौरी ने विराज के चेहरे को अपने दोनो हाथों में लेकर कहा__"लगता है मेरा बेटा अब बड़ा हो गया है।"
"हाॅ माॅ, भइया अब बहुत बड़े हो गए हैं।" निधि ने मुस्कुराते हुए कहा__"और इतना ही नहीं मेरे भइया किसी सुपर हीरो से कम नहीं हैं। मेरे अच्छे और प्यारे भइया।" कहने के साथ ही निधि विराज की पीठ से चिपक गई।
"ये कितना ही बड़ा हो गया हो गुड़िया।"गौरी ने कहा__"मगर मेरे लिए तो ये आज भी मेरा छोटा सा बच्चा ही है।"
"और मैं?" निधि ने विराज की पीठ से चिपके हुए ही शरारत से कहा।
"तू तो हम सबकी छोटी सी गुड़िया है।" विराज ने कहा और उसे अपनी पीठ से खींच कर गले से लगा लिया। ये देख गौरी की आखें भर आईं।
"ऐसे ही तुम दोनो भाई बहन में स्नेह और प्यार बना रहे मेरे बच्चों।"गौरी ने अपनी छलक आई आखों को अपने आॅचल के छोर से पोंछते हुए कहा__"मगर इस स्नेह और प्यार में अपनी इस अभागन माॅ को न भूल जाना तुम दोनो।"
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,
विराज ने अपनी माॅ की इस बात को जब सुना तो उसने अपना एक हाथ फैला दिया। गौरी ने जब ये देखा तो वो भी अपने बेटे के चौड़े सीने से जा लगी। कुछ देर यू ही सब एक दूसरे से गले मिले रहे फिर सब अलग हुए।
"अब हमें चलना चाहिए बेटा।" गौरी ने गंभीर भाव से कहा__"ज्यादा देर यहाॅ पर रुकना अब ठीक नहीं है।"
"पर माॅ, ।" विराज अपनी बात भी न पूरी कर पाया था कि गौरी ने उसकी बात को काटते हुए कहा__"अभी यहां से चलो बेटा। अभी सही समय नहीं है ये किसी चीज़ के लिए। यहाॅ हम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योकि यहा उनकी ताकत ज्यादा है। पुलिस प्रसासन भी उनका ही कहना मानेंगे इस लिए कह रही हूं कि यहां रह कर कुछ भी करना ठीक नहीं है। मैं जानती हूं कि तुम्हारे अंदर प्रतिशोध की आग है और जब तक वो आग तुम्हारे अंदर रहेगी तुम चैन से जी नही सकोगे। इस लिए अब मैं तुम्हें किसी बात के लिए रोकूॅगी नहीं, हाॅ इतना जरूर कहूॅगी कि जो कुछ भी करना ये ध्यान में रख कर ही करना कि तुम्हारे बिना हम माॅ बेटी का क्या होगा?"
"आप दोनो की सुरक्षा मेरी पहली प्राथमिकता होगी माॅ।" विराज को जैसे उसकी मन की मुराद मिल गई थी। अंदर ही अंदर कुछ भी करने की आज़ादी के एहसास को महसूस करके ही वह खुश हो गया था किन्तु प्रत्यक्ष में बोला__"अब वह होगा माॅ जिससे आपको अपने इस बेटे पर गर्व होगा। चलिए अब चलते हैं यहाॅ से।"
इसके बाद तीनों ही चल पड़े वहाॅ से। सामान ज्यादा कुछ था नहीं। पैदल चलते हुए लगभग बीस मिनट में तीनो मेन रोड के उस जगह पहुॅचे जहाॅ से बस मिलती थी। हलाकि ये जगह उनके गाॅव के पास की नहीं थी किन्तु गौरी ने ही घूम कर इधर से आने को कहा था। शायद उसके मन में इस बात का अंदेशा था कि अगर शिवा की पिटाई का पता उसके घर वालों को हो गया होगा तो वो लोग उसे ढूॅढ़ते हुए आ भी सकते थे।
हलाकि ये गौरी के मन का वहम ही साबित हुआ। क्योकि अभी तक कोई भी उन्हें ढंढ़ने नहीं आया था जबकि वो बस में सवार हो कर शहर के लिए निकल भी चुके थे। कदाचित शिवा की हालत के बारे में अब तक किसी को पता न चला था। वरना अब तक वो शहर के लिए निकल न पाते। मगर गौरी के मन में उन लोगों के आ जाने का ये डर तब तक बना ही रहा जब तक कि ट्रेन में बैठ कर मुम्बई के लिए निकल न गए थे। जबकि विराज और निधि ऐसे वर्ताव कर रहे थे जैसे उन्हें इस सबका कोई भय ही न था।
ट्रेन जब स्टेशन से बहुत दूर निकल गई तब जा कर गौरी के मन से थोड़ा भय कम हुआ और वह भी सामान्य हो गई। दिलो दिमाग मे विचारों का बवंडर सा चल रहा था। कैसा समय आ गया था उनके जीवन में जिसकी शायद उन्होंने स्वप्न में भी कल्पना न की थी। अपने ही घर से बेदखल कर दिया गया था उन्हें और आज ये आलम था कि उन्हें अपनी जान तथा इज्जत बचाने के लिए भी बहुत दूर कहीं छिप जाने पर बिवस होना पड़ रहा था। गौरी विचारों के सागर में गोते लगा रही थी। उसका चेहरा बेहद ही विचलित और उदास हो उठा था। आखों में आसू तैरने लगे थे। विराज अपनी माॅ को ही देखे जा रहा था। उसे एहसास था कि उसकी माॅ के दिलो दिमाग मे इस समय क्या चल रहा है। उसके माता पिता हमेशा ही उसके लिए एक आदर्श थे। वह अपनी माॅ और बहन को एक पल के लिए भी विचलित या उदास नहीं देख सकता था। उसकी बहन निधि उसकी एक बाह थामे उसके कंधे में अपना सिर टिकाए बैठी थी। आज उसे अपने बड़े भाई पर पहले से कहीं ज्यादा स्नेह और प्यार आ रहा था। उसे लग रहा था कि उसके भइया के रहते अब दुनिया की कोई बला उन पर अपना असर नहीं दिखा सकती थी।
विराज का चेहरा एकाएक पत्थर की तरह शख्त हो गया। मन ही मन उसने शायद कोई संकल्प सा ले लिया था। आखों में खून सा उतरता हुआ नजर आया। नथुने फूलने पिचकने लग गए थे। सहसा गौरी की नजर अपने बेटे पर पड़ी। बेटे की हालत का अंदाजा होते ही उसकी आखें भर आईं। उसने शीघ्रता से विराज को अपने सीने में छुपा लिया। माॅ का ह्रदय ममता के विसाल सागर से भरा होता है जिसकी ठंडक से तुरंत ही विराज शान्त हो गया। 'फिक्र मत कीजिए माॅ अब ऐसा तांडव होगा कि हमारा बुरा करने वालों की रूह काॅप जाएगी।' विराज ने मन ही मन कहा और अपनी आखें बंद कर ली।
विराज का चेहरा एकाएक पत्थर की तरह शख्त हो गया। मन ही मन उसने शायद कोई संकल्प सा ले लिया था। आखों में खून सा उतरता हुआ नजर आया। नथुने फूलने पिचकने लग गए थे। सहसा गौरी की नजर अपने बेटे पर पड़ी। बेटे की हालत का अंदाजा होते ही उसकी आखें भर आईं। उसने शीघ्रता से विराज को अपने सीने में छुपा लिया। माॅ का ह्रदय ममता के विसाल सागर से भरा होता है जिसकी ठंडक से तुरंत ही विराज शान्त हो गया। 'फिक्र मत कीजिए माॅ अब ऐसा तांडव होगा कि हमारा बुरा करने वालों की रूह काॅप जाएगी।' विराज ने मन ही मन कहा और अपनी आखें बंद कर ली।
अब आगे.......
विराज अपनी माॅ और बहन को लेकर मुम्बई के लिए निकल चुका था। जबकि यहाॅ हवेली में माहौल बड़ा ही गर्म था। शिवा का जब शाम तक कोई अता पता न चला तो उसके पिता अजय सिंह तथा माॅ प्रतिमा को चिंता हुई। अजय सिंह ने अपने आदमियों को शिवा की तलाश मे पूरे गाॅव तथा आस पास के गावों में भेज दिया और खुद अपने खेत में बने मकान की तरफ चल दिया। उसके साथ कुछ आदमी और थे।
अजय सिंह अपनी वकील की नौकरी छोंड़ चुका था। अब वह बिजनेस मैन था तथा सारी जमीनों पर मजदूरों द्वारा फसल उगाता था। उसने अपने सबसे छोटे भाई अभय को भी अपनी तरफ कर लिया था। ये कैसे हुआ ये तो खैर बाद में पता चलेगा।
अजय सिंह अपने आदमियों के साथ जब खेत वाले मकान पर पहुचा तो वहा का नजारा देख कर हक्का बक्का रह गया। मकान में जो कमरा विराज की माॅ और उसकी बहन के लिए दिया गया था वो खुला पड़ा था और बाहर शिवा की मोटर साईकिल एक तरफ पड़ी थी। कुछ दूरी पर अजय सिंह का बेटा अधमरी हालत मे पड़ा था खून से तथपथ। अपने बेटे की ऐसी हालत देख कर अजय सिंह की मानो नानी मर गई।
अजय सिंह को समझ न आया कि उसके बेटे की ये हालत कैसे हो गई? उसने शीघ्र ही अपने बेटे को उठाया और अपनी गोंद मे लिया। एक आदमी जल्दी ही ट्यूब बेल से पानी लाया और शिवा के चेहरे पर हल्के हल्के छिड़का। थोड़ी ही देर मे शिवा को होश आ गया। अजय सिंह ने अपने आदमियों से कह कर उसे अपनी कार मे बिठाया और हास्पिटल की तरफ बढ़ गया।
रास्ते में अजय सिंह के पूछने पर शिवा ने सुबह की सारी राम कहानी अपने पिता को बताई। अजय सिंह ये जान कर चौंका कि उसका भतीजा विराज यहा आया था और उसने ही शिवा की ये हालत की है। इतना ही नही वो ये सब करने के बाद उसकी जानकारी में आए बग़ैर बड़ी आसानी से अपनी माॅ और बहन को अपने साथ ले भी गया। अजय सिंह को ये सब जानकर बेहद गुस्सा आया। उसने तुरंत ही किसी को फोन लगाया और कुछ देर बात करने के बाद फोन काट दिया।
"तुम फिक्र मत करो बेटे।" फिर उसने शिवा से कहा__"बहुत जल्द वो हरामज़ादा तुम्हारे कदमों के नीचे होगा। मैंने पुलिस को इनफार्म कर दिया है और कह दिया है कि उन सबको किसी भी हालत में पकड़ कर हमारे पास ले कर आएॅ।"
"उस कमीने ने मुझे बहुत मारा है डैड।" शिवा ने कराहते हुए अपने पिता से कहा__"मैं उसे छोड़ूॅगा नहीं, जान से मार दूॅगा उस हरामजादे को।"
"चिन्ता मत करो बेटे।" अजय सिंह ने भभकते हुए लहजे में कहा था__"सबका हिसाब देना पड़गा उसे। अभी तक मै नरमी से पेश आ रहा था। मगर अब मै उन्हें दिखाऊगा कि मुझसे और मेरे बेटे से उलझने का अंजाम क्या होता है?"
"मालिक हम हास्पिटल पहुॅच गए हैं।" ड्राइविंग करते हुए एक आदमी ने कहा।
उस आदमी की बात सुन कर अजय सिंह ने कार से उतर कर शिवा को भी सहारा देकर नीचे उतारा और हास्पिटल के अंदर की तरफ बढ़ गया।
एक घंटे बाद अजय सिंह अपने बेटे के साथ हवेली मे पहुचा। शिवा की हालत अब बेहतर थी क्योकि हास्पिटल में उसकी ड्रेसिंग हो गई थी। अजय सिंह ने अपनी पत्नी प्रतिमा को सब बताया कि क्या क्या हो गया है आज। सारी बाते सुन कर प्रतिमा की भी भृकुटी तन गई। उसने तो सर पर आसमान ही उठा लिया।
"ये सब आपकी वजह से हो रहा है।" प्रतिमा ने गुस्से से कहा__"मैं तो उस दिन भी कह रही थी कि नाग नागिन और उनके सॅपोलों को कुचल दीजिए मगर आप ही नहीं माने।"
"धीरे बोलो प्रतिमा।" अजय ने सहसा तपाक से बोला__"दीवारों के भी काॅन होते हैं।"
"मुझे किसी की परवाह नही है।" प्रतिमा ने कहा__"आज अगर मेरे बेटे को कुछ हो जाता तो आग लगा देती इस हवेली को।"
"मैने उनका इंतजाम कर दिया है।"अजय सिंह ने कहा__"वो हमसे बच कर कहीं नही जा पाएंगे। बस इंतजार करो वो सब तुम्हारे सामने होंगे फिर जो दिल करे करना उन सबके साथ।"
"डैड मैं तो बस निधि को चाहता हू।" शिवा कमीने ढंग से मुस्कुराया था बोला__"बाकी का आप और माॅम जानो।"
"जो कुछ करना सोच समझ कर करना बेटे।" अजय सिंह ने राजदाराना लहजे में कहा__"तुम्हारे दादा दादी की चिन्ता नहीं है हमें। बस अपने चाचा अभय से जरा सावधान रहना। उसे ये सब पता न चल पाए कि हम क्या कर रहे हैं? हमने बड़ी मुश्किल से उसे अपनी तरफ किया है।"
"वो तो ठीक है डैड।" शिवा ने कहा__"लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? आखिर चाचा लोगो को हम अपने सभी कामों मे शामिल कब करेंगे?"
"बेटा ये इतना आसान नहीं है।" अजय ने कहा__"तुम्हारे चाचा और चाची लोग जरा अलग तबियत के हैं।"
"अगर ऐसा नही हो सकता तो।" प्रतिमा ने कहा__"तो फिर हमारे पास एक ही रास्ता है।"
"हमें कोशिश करते रहना चाहिए।"अजय ने कहा__"तुम भी करुणा पर कोशिश करती रहो।"
तभी अजय का मोबाइल बजा।
"लो लगता है उन लोगों को ढूॅढ़ लिया गया है।" अजय सिंह ने अपनी कोट की जेब से मोबाइल निकालते हुए कहा और मोबाइल की काॅल को रिसीव कर कान से लगा लिया। उधर से जाने क्या कहा गया जिसे सुन कर अजय सिंह के चेहरे पर गुस्से के भाव आ गए।
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,
"ऐसा कैसे हो सकता है?"अजय सिंह गुर्राया__"वो लोग ट्रेन से कैसे गायब हो गए? तुम उन्हें ढूॅढ़ो और शीघ्र हमारे पास लेकर आओ वरना ठीक नहीं होगा समझे?"
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"अरे जाएगे कहाॅ?" अजय ने कहा__"ठीक से ढूॅढ़ो उन्हें।" कहने के साथ ही अजय ने फोन काट दिया।
"क्या हुआ?" प्रतिमा ने पूछा__"किससे बात कर रहे थे आप?"
"डीसीपी अशोक पाठक से।" अजय ने बताया__"उसका कहना है कि विराज अपनी माॅ और बहन सहित ट्रेन से गायब हैं।"
"क् क्या...???" प्रतिमा और शिवा एक साथ उछल पड़े___"ऐसा कैसे हो सकता है भला? वो सब मुम्बई के लिए ही निकले थे।"
"हो सकता है कि वो लोग ट्रेन में बैठे ही न हों।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा__"कदाचित उन्हे ये अंदेशा रहा हो कि उनकी करतूत का पता चलते ही उन्हे पकड़ने के लिए आप उनके पीछे पुलिस को या अपने आदमियों को लगा देंगे। इस लिए वो ट्रेन से सफर करना बेहतर न समझे हों।"
"ऐसा नहीं है।" अजय ने कहा__"क्योकि विराज ने तत्काल रिज़र्वेशन की तीन टिकटें ली थीं। रेलवे कर्मचारियों के पास इसका सबूत है कि उन्होने तत्काल रिजर्वेशन की तीन टिकटें ली थी मुम्बई के लिए।"
"तो फिर वो कहाॅ गायब हो गए?" शिवा ने कहा__"उन्हे ये जमीन खा गई या आसमान निगल गया?
"चिंता मत करो।" अजय सिंह ने कहा__"हम उन्हें जरूर ढूंढ् लेंगे।"
"ऐसा नहीं है।" अजय ने कहा__"क्योकि विराज ने तत्काल रिज़र्वेशन की तीन टिकटें ली थीं। रेलवे कर्मचारियों के पास इसका सबूत है कि उन्होने तत्काल रिजर्वेशन की तीन टिकटें ली थी मुम्बई के लिए।"
"तो फिर वो कहाॅ गायब हो गए?" शिवा ने कहा__"उन्हे ये जमीन खा गई या आसमान निगल गया?
"चिंता मत करो।" अजय सिंह ने कहा__"हम उन्हें जरूर ढूंढ् लेंगे।"
अब आगे,,,,,,,
उधर विराज अपनी माॅ और बहन को ट्रेन से उतार कर अब बस पकड़ चुका था। उसका खयाल था कि बस से वह किसी अन्य शहर जाएगा और फिर वहाॅ से किसी दूसरी ट्रेन से मुम्बई जाएगा।
"तुम हमें ट्रेन से उतार कर बस में क्यों लाए बेटा?" माॅ गौरी ने सबसे पहले यही सवाल पूछा था।
"ट्रेन में जाने से खतरा था माॅ।" विराज ने कहा__"बड़े पापा ने हमें पकड़ने के लिए अपने आदमी भेजे थे जो सभी जगह चेक कर रहे थे।"
"क् क्या..???" गौरी बुरी तरह चौंकी___"पर तुम्हें कैसे पता?"
"मुझे इस बात का पहले से अंदेशा था माॅ।" विराज ने कहा__"इस लिए मैंने अपने एक दोस्त को बड़े पापा की हर गतिविधि की खबर रखने के लिए कह दिया था फोन के जरिए। जब हम लोग ट्रेन मे बैठ कर चले थे तब तक ठीक था। आप जानती है ट्रेन वहा से निकलने के बाद एक जगह रुक गई थी और फिर छ: घंटे रुकी रही। क्योंकि उसमें कोई तकनीकी खराबी थी। मेरे दोस्त का फोन शाम को आया था उसने बताया कि बड़े पापा ने हमे ढूढ़ने के लिए हर जगह अपने आदमी भेज दिये हैं। मुझे पता था ट्रेन मे उनके आदमी हमे बड़ी आसानी से ढूढ़ लेंगे क्योकि उन्हे रेल कर्मचारियो से हमारे बारे में पता चल जाता और हम पकड़े जाते। इस लिए मैंने आप सबको ट्रेन से उतार कर किसी अन्य तरीके से मुम्बई ले जाने का सोचा।"
"आपने बहुत अच्छा किया भइया।"निधि ने कहा__"अब वो हमें नही ढूढ़ पाएंगे।"
"इतना लम्बा चक्कर लगाने का यही मतलब है कि वो हमें उस रूट पर ढूढ़ेगे जबकि हम यहा हैं।" विराज ने कहा__"मैं अकेला होता तो ये सब नही करता बल्कि खुल कर उन सबका मुकाबला करता मगर आप लोगों की सुरक्षा जरूरी थी।"
"अभी मुकाबला करने का समय नही है बेटा।" गौरी ने कहा__"जब सही समय होगा तब मैं खुद तुझे नही रोकूॅगी।"
"आप बस देखती जाओ माॅ।" विराज ने कहा__"कि अब क्या करता हूॅ मैं?"
"हाॅ भइया आप उन्हें छोंड़ना नहीं।" निधि ने कहा__"बहुत गंदे लोग हैं वो सब। हमे बहुत दुख दिया है उन्होने।"
"फिक्र मत कर मेरी गुड़िया।" विराज ने कहा__"मैं उन सबसे चुन चुन कर हिसाब लूॅगा।"
ऐसी ही बातें करते हुए ये लोग दूसरे दिन मुम्बई पहुॅच गए। विराज उन दोनो को सुरक्षित अपने फ्लैट पर ले गया। ये फ्लैट उसे कम्पनी द्वारा मिला था जिसमें दो कमरे एक ड्राइंग रूम एक डायनिंग रूम एक लेट्रिन बाथरूम तथा एक किचेन था। पीछे की तरफ बड़ी सी बालकनी थी। कुल मिलाकर इन सबके लिए इतना पर्याप्त था रहने के लिए।
विराज चूॅकि यहाॅ अकेला ही रहता था इस लिए वो साफ सफाई से ज्यादा मतलब नही रखता था। हलाॅकि सफाई वाली आती थी लेकिन वो सफाई नही करवाता था ऐसे ही रहता था। फ्लैट की गंदी हालत देख कर दोनो माॅ बेटी ने पहले फ्लैट की साफ सफाई की। विराज ने कहा भी कि सफर की थकान है तो पहले आराम कीजिए, सफाई का काम वह कल करवा देगा जब सफाई वाली बाई आएगी तो लेकिन माॅ बेटी न मानी और खुद ही साफ सफाई में लग गईं।
इस बीच विराज मार्केट निकल गया था किराना का सामान लाने के लिए। हलाकि कंपनी से रहने खाने का सब मिलता था लेकिन विराज बाहर ही होटल मे खाना खाता था। फ्लैट में गैस सिलेंडर और चूल्हा वगैरा सब था किन्तु राशन नही था। दो कमरों मे से एक कमरे में ही एक बेड था। किचेन बड़ा था जिसमें एक फ्रिज़ भी था। ड्राइंग रूम मे एक बड़ा सा एल सी डी टीवी भी था।
लगभग दो घंटे बाद विराज मार्केट से लौटा। उसने देखा कि फ्लैट की काया ही पलट गई है। हर चीज अपनी जगह ब्यवस्थित तरीके से रखी गई थी। विराज को इस तरह हर जगह आॅखें फाड़े देखता देख निधि ने कहा__"न आप खुद का खयाल रखते हैं और न ही किसी और चीज का। लेकिन अब ऐसा नही होगा, अब हम आ गए हैं तो आपका अच्छे से खयाल रखेंगे।"
"ओहो क्या बात है।"विराज मुस्कुराया__"हमारी गुड़िया तो बड़ी हो गई लगती है।"
"हाॅ तो?" निधि विराज के बगल से सट कर खड़ी हो गई__"देखिए आपके कंधे तक बड़ी हो गई हूॅ।"
"हाॅ हाॅ तू तो मेरी भी अम्मा हो गई है न।" गौरी ने कहा__"धेले भर की तो अकल है नहीं और बड़ी बड़ी बाते करने लगी है।"
"देखिए भइया जब देखो माॅ मुझे डाॅटती ही रहती हैं।"निधी ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा।
"मत डाॅटा कीजिए माॅ गुड़िया को।" विराज ने निधि को अपने सीने से लगाते हुए कहा__"ये जैसी भी है मेरी जान है ये।"
"सुन लिया न माॅ आपने?" निधि ने विराज के सीने से सिर उठा कर अपनी माॅ गौरी की तरफ देख कर कहा__"मैं भइया की जान हूॅ और हाॅ...भइया भी मेरी जान हैं...हाॅ नहीं तो।"
"अच्छा ठीक है बाबा।" गौरी ने हॅस कर कहा__"अब भाई को छोंड़ और जा जाकर नहा ले, फिर मुझे भी नहाना है और खाना भी बनाना है।"
"मैं खाना बाहर से ही ले आया हूॅ माॅ।" विराज ने कहा__"आप लोग खा पी कर आराम कीजिए कल से यहीं खाना पीना बनाना।"
"अब ले आया है तो चल कोई बात नहीं।" गौरी ने कहा__"लेकिन आज के बाद बाहर का खाना पीना बंद। ठीक है न??"
"जैसा आप कहें माॅ।" विराज ने कहा और सारा सामान अंदर किचन में रख दिया।
गौरी के कहने पर निधि नहाने चली गई। जबकि विराज वहीं ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठ गया। अचानक ही उसके चेहरे पर गंभीरता के भाव गर्दिश करने लगे थे। गौरी किचेन में सामान सेट कर रही थी।
विराज के मोबाइल पर किसी का काॅल आया। उसने मोबाईल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देखा तो होठों पर एक अजीब सी मुस्कान उभर आई।
"मैं आ गया हूॅ।" विराज ने कहा__"और अब मैं तैयार हूॅ उस काम के लिए, बोलो कहाॅ मिलना है?""
"__________________"
"ठीक है फिर।" विराज ने कहा और फोन काट दिया। 'अजय सिंह बघेल अब अपनी बरबादी के दिन गिनने शुरू कर दे क्योकि अब विराज दि ग्रेट का क़हर तुम पर और तुमसे जुड़ी हर चीज़ पर टूटेगा'
विराज के मोबाइल पर किसी का काॅल आया। उसने मोबाईल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देखा तो होठों पर एक अजीब सी मुस्कान उभर आई।
"मैं आ गया हूॅ।" विराज ने कहा__"और अब मैं तैयार हूॅ उस काम के लिए, बोलो कहाॅ मिलना है?""
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"ठीक है फिर।" विराज ने कहा और फोन काट दिया। 'अजय सिंह बघेल अब अपनी बरबादी के दिन गिनने शुरू कर दे क्योकि अब विराज दि ग्रेट का क़हर तुम पर और तुमसे जुड़ी हर चीज़ पर टूटेगा'
अब आगे........
उस ब्यक्ति का नाम जगदीश ओबराय था। ऊम्र यही कोई पचपन(55) के आसपास की। सिर के नब्बे प्रतिशत बाल सिर से गायब थे। शरीर भारी भरकम था उसका किन्तु उसे मोटा नही कह सकते थे क्योकि कद की लम्बाई के हिसाब से उसका शरीर औसतन ठीक नजर आता था। भारी भरकम शरीर पर कीमती कपड़े थे। गले में सोने की मोटी सी चैन तथा दाएं हाॅथ की चार उॅगलियों में कीमती नगों से जड़ी हुई सोने की अॅगूठियाॅ। इसी से उसकी आर्थिक स्थित का अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह निहायत ही कोई रुपये पैसे वाला रईश ब्यक्ति था।
"तो तुम तैयार हो बरखुर्दार?" जगदीश ओबराय ने कीमती मेज के उस पार कीमती सोफे पर बैठे विराज की तरफ एक गहरी साॅस लेते हुए पूछा।
"जी बिलकुल सर।" विराज ने सपाट स्वर में कहा।
"तुम हमें सर की जगह अंकल कह सकते हो विराज बेटे।" जगदीश ने अपनेपन से कहा__"वैसे भी हम तुम्हें अपने बेटे की तरह ही मानते हैं। बल्कि ये कहें तो ज्यादा अच्छा होगा कि तुम हमारे लिए हमारे बेटे ही हो।"
"आप मुझे अपना समझते हैं ये बहुत बड़ी बात है अंकल।"विराज ने गंभीर होकर कहा__"वर्ना अपने कैसे होते हैं ये मुझसे बेहतर कौन जानता होगा?"
"इस युग में कोई किसी का नहीं होता बेटे।" जगदीश ने कहा__"हर इंसान अपने मतलब के लिए रिश्ते बनाता है और रिश्तों को तोड़ता है। हम भी इसी युग में हैं इस लिए हमने भी अपने मतलब के लिए तुमसे एक रिश्ता बना लिया। ये आज के युग की सच्चाई है बेटे।"
"आपके मतलबीपन में एक अच्छाई है अंकल।"विराज ने कहा__"आप अपने मतलबीपन में किसी का अहित नहीं करते हैं और न ही किसी को तकलीफ देकर खुद के लिए कोई खुशी हासिल करते हैं।"
"ये तुम्हारा नज़रिया है बेटा।" जगदीश ने कहा__"जो तुम हमारे बारे में ऐसा बोल रहे हो। मगर सोचो सच्चाई तो कुछ और ही है, हम जो करते हैं उससे भी तो सामने वाले को तकलीफ होती है फिर भले ही वह खुद कोई देश समाज के लिए किसी अभिशाप से कम न हो।"
"बुरे लोगों को मार कर या उन्हें तकलीफ देकर अच्छे लोगों को खुशिया देना कोई अपराध तो नहीं है।"विराज ने कहा।
"ख़ैर, छोड़ो इन बातों को।" जगदीश ने पहलू बदला__"हम अपने मुख्य विषय पर बात करते हैं।"
"जी अंकल।" विराज ने अदब से कहा।
"हमने सारे कागजात तैयार करवा दिये हैं बेटे।" जगदीश ने बड़ी सी मेज पर रखे अपने एक छोटे से ब्रीफकेस को खोलते हुए कहा__"तुम एक बार खुद देख लो। फिर हम आगे की बात करेंगे।"
"इसकी क्या जरूरत थी अंकल।" विराज ने कहा।
"जरूरत थी बेटे।" जगदीश ने कहा__"इतने बड़े बिजनेस एम्पायर को हमारे बाद सम्हालने वाला हमारा अपना कोई नहीं है। तुम तो सब जानते हो कि एक हादसे ने हमारा सब कुछ तबाह कर दिया था। हम नहीं जानते कि हमारे साथ ईश्वर ने ऐसा क्यों किया? हमने तो कभी किसी का बुरा नहीं चाहा...हाॅ शायद ये हो सकता है कि हमारे पिछले जन्मों में किये गए किन्हीं पापों का ये फल मिला है हमें।"
विराज कुछ न बोला, बस देखता रह गया उस शख्स को जिसके चेहरे पर इस वक्त ज़माने भर का ग़म छलकने लगा था।
"तुम हमारी कंपनी में दो साल पहले आए थे।" जगदीश ओबराय कह रहा था__"तुम्हारे काम से हर कोई प्रभावित था जिसमे हम भी शामिल थे। कंपनी की जो ब्राॅच अत्यधिक नुकसान में चल रही थी वो तुम्हारी मेहनत और लगन से काफी मुनाफे के साथ आगे बढ़ गई। तुमने उन सभी का पर्दाफाश किया जो कंपनी को नुकसान पहुॅचा रहे थे और मज़े की बात ये कि किसी को पता भी नहीं चल पाया कि किसने उनका भंडाफोड़ कर दिया।" जगदीश ने कुछ पल रुक कर एक गहरी साॅस ली फिर बोला__"हम तुमसे बहुत प्रभावित थे बेटे और बहुत खुश भी। हमने तुम्हारे बारे में अपने तरीके से पता लगाया और जो जानकारी हमें मिली उससे हमें बहुत दुख भी हुआ। हमें तुम्हारे बारे में सब कुछ पता चल चुका था। हम जान चुके थे कि सबके सामने खुश रहने वाला ये लड़का अंदर से कितना और क्यों दुखी है? हमारा हमेशा से ही ये ध्येय रहा था कि हम हर उस सच्चे ब्यक्ति की मदद करेंगे जो अपनो तथा वक्त के द्वारा सताया गया हो। हमने फैसला किया कि हम तुम्हारे लिए कुछ करेंगे। हम एक ऐसे इंसान की तलाश में भी थे जिसे हम खुद अपना बना सकें और जो हमारे इतने बड़े बिजनेस एम्पायर को हमारे बाद सम्हाल सके।"
"आज के समय में किसी ग़ैर के लिए इतना कुछ कौन सोचता और करता है अंकल?" विराज गंभीर था बोला__"जबकि आज के युग में अपने ही अपने अपनों का बुरा करने में ज़रा भी नहीं सोचते या हिचकिचाते हैं। मेरे साथ मेरे अपनों ने जो कुछ किया है उसका हिसाब मैं सिर्फ अपने दम पर करना चाहता था अंकल।"
"हम तुम्हारी हिम्मत और बहादुरी की कद्र करते हैं बेटे।" जगदीश ने कहा__"लेकिन ये हिम्मत और बहादुरी बिना किसी मजबूत आधार के सिर्फ हवा में लाठियाॅ घुमाने से ज्यादा कुछ नहीं होता। तुम जिनसे टकराना चाहते हो वो आज के समय में तुमसे कहीं ज्यादा ताकतवर हैं। उनके पास ऊॅची पहुॅच तथा किसी भी काम को करा लेने के लिए रुपया पैसा है। जबकि तुम इन दोनो चीज़ों से विहीन हो बेटे। किसी से जब भी जंग करो तो सबसे पहले अपने पास एक ठोस और मजबूत बैकप बना के रखो जिससे तुम्हारे आगे बढ़ते हुए कदमों पर कोई रुकावट न आ सके।"
विराज कुछ न बोला जबकि जगदीश ने उसके चेहरे पर उभर रहे सैकड़ों भावों को देखते हुए कहा__"हम जानते हैं कि तुम खुल कर पूरी निडरता से उनका मुकाबला करना चाहते हो वो भी उनके ही तरीके से। कुछ चीज़ें अनैतिक तथा पाप से परिपूर्ण तो हैं लेकिन चलो कोई बात नहीं। तुम सब कुछ अपने तरीके से करना चाहते हो मतलब 'जैसे को तैसा' वाली तर्ज पर।"
"मैं आपके कहने का मतलब समझता हूॅ अंकल।" विराज ने अजीब भाव से कहा___"और यकीन मानिये ये सब करने में मुझे कोई खुशी नहीं होगी पर फिर भी वही करूॅगा जिसे आप अनैतिक और पाप से परिपूर्ण कह रहे हैं। आज के समय में जैसे को तैसा वाली तर्ज पर अमल करना पड़ता है अंकल तभी सामने वाले को ठीक से समझ और एहसास हो पाता है कि वास्तव में उसने क्या किया था।"
"खैर छोड़ो इन बातों को।" जगदीश ने पहलू बदला__"ये बताओ कि उनके खिलाफ तुम्हारा पहला कदम क्या होगा?"
"मेरा पहला कदम उनके उस ताकत और पहुॅच का मर्दन करना होगा जिसके बल पर वो ये सब कर रहे हैं।"विराज ने कठोर स्वर में कहा।
"तुम्हारी सोच ठीक है।" जगदीश ने कहा__"मगर हम ये चाहते थे कि तुम वैसा करो जिससे उन्हें ये पता ही न चल सके कि ये क्या और कैसे हुआ?"
"पता तो ऐसे भी न चलेगा अंकल।" विराज ने कहा__"आप बस वो कीजिएगा जो करने का मैं आपको इशारा करूॅ।"
"ठीक है बेटे।" जगदीश ने कहा__"वही होगा जो तुम कहोगे। हम तुम्हारे साथ हैं।" कहने के साथ ही जगदीश ने विराज की तरफ एक कागज बढ़ाया__"इस कागज पर साइन कर दो बेटे और अपने पास ही रखो इसे।"
"इस सबकी क्या जरूरत है अंचल?" विराज ने कागज को एक हाॅथ से पकड़ते हुए कहा।
"हमारे जीवन का कोई भरोसा नहीं है बेटे।" जगदीश ने कहा__"दो बार हमें हर्ट अटैक आ चुका है, अब कौन जाने कब अटैक आ जाए और हम इस दुनियाॅ से......"
"न नहीं अंकल नहीं।" विराज तुरंत ही जगदीश की बात काटते हुए बोल पड़ा__"आपको कुछ नहीं होगा। ईश्वर करे आपको मेरी उमर लग जाए। आप हमेशा मेरे सामने रहें और मेरा मार्गदर्शन करते रहें।"
"हा हा हा बेटे तुम्हारी इन बातों ने हमें ये बता दिया है कि तुम्हारे दिल में हमारे लिए क्या है?" जगदीश के चेहरे पर खुशी के भाव थे__"तुम हमें यकीनन अब अपना मानने लगे हो और हमें ये जान कर बेहद खुशी भी हुई है। एक मुद्दत हो गई थी अपने किसी अज़ीज़ के ऐसे अपनेपन का एहसास किये हुए। तुम मिल गए तो अब ऐसा लगने लगा है कि हम अब अकेले नहीं हैं वर्ना इतने बड़े बॅगले में तन्हाईयों के सिवा कुछ न था। सारी दुनिया धन दौलत के पीछे रात दिन भागती है बेटे वो भूल जाती है कि इंसान की सबसे बड़ी दौलत तो उसके अपने होते हैं।"
"ये बातें कोई नहीं समझता अंकल।" विराज ने कहा__"समझ तथा एहसास तब होता है जब हमें किसी चीज़ की कमी का पता चलता है। जिनके पास अपने होते हैं उन्हें अपनों की अहमियत का एहसास नहीं होता और जिनके पास अपने नहीं होते उन्हें संसार की सारी दौलत महज बेमतलब लगती है, वो चाहते हैं कि इस दौलत के बदले काश कोई अपना मिल जाए।"
"संसार में हमारे पास किसी चीज़ का जब अभाव होता है तभी हमें उसकी अहमियत का एहसास होता है बेटे।" जगदीश ने कहा__"हलाॅकि दुनियाॅ में ऐसे भी लोग हैं जिनके पास सब कुछ होता है मगर वो सबसे ज्यादा अपनों को अहमियत देते हैं, धन दौलत तो महज हमारी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने का जरिया मात्र होती है।"
विराज कुछ न बोला ये अलग बात है कि उसके चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते और लुप्त होते नज़र आ रहे थे।
"हम चाहते हैं कि।" जबकि जगदीश कह रहा था__"तुम अपनी माॅ और बहन के साथ अब हमारे साथ इसी घर में रहो बेटे। कम से कम हमें भी ये एहसास होता रहेगा कि हमारा भी अब एक भरा पूरा परिवार है।"
"मैं इसके लिए माॅ से बात करूॅगा अंकल।" विराज ने कहा।
"हम खुद चल कर तुम्हारी माॅ से बात करेंगे बेटे।" जगदीश ने गंभीरता से कहा__"हम उससे कहेंगे कि वो हमें अपना बड़ा भाई समझ कर हमारे साथ ही रहे।"
"आप फिक्र न करें अंकल।" विराज ने कहा__"मैं माॅ से बात कर लूॅगा। वो इसके लिए इंकार नहीं करेंगी।
"ठीक है बेटे।" जगदीश ने कहा__"हम तुम सबके यहाॅ आने का इंतज़ार करेंगे।"
कुछ देर और ऐसी ही कुछ बातें हुईं फिर विराज वहाॅ से अपने फ्लैट के लिए निकल गया। विराज ने अपनी माॅ गौरी से जगदीश से संबंधित सारी बातें बताई, जिसे सुन कर गौरी के दिलो दिमाग में एक सुकून सा हुआ।
"आज के समय में इतना कुछ कौन करता है बेटा?" गौरी ने गंभीरता से कहा__"मगर हमारे साथ हमारे अपनों ने इतना कुछ किया है जिससे अब आलम ये है कि किसी पर भरोसा नहीं होता।"
"जगदीश ओबराय बहुत अच्छे इंसान हैं माॅ।" विराज ने कहा__"इस संसार में उनका अपना कोई नहीं है, वो मुझे अपने बेटे जैसा मानते हैं। अपनी सारी दौलत तथा सारा कारोबार वो मेरे नाम कर चुके हैं, अगर उनके मन में कोई खोट होता तो वो ऐसा क्यों करते भला?"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" गौरी बुरी तरह चौंकी__"उसने अपना सब कुछ तुम्हारे नाम कर दिया?"
"हाॅ माॅ।" विराज ने कहा__"यही सच है और इस वक्त वो सारे कागजात मेरे पास हैं जिनसे ये साबित होता है कि अब से मैं ही उनके सारे कारोबार तथा सारी दौलत का मालिक हूॅ। अब आप ही बताइए माॅ...क्या अब भी उनके बारे में आपके मन में कोई शंका है?"
"यकीन नहीं होता बेटे।" गौरी के जेहन में झनाके से हो रहे थे, अविश्वास भरे लहजे में कहा उसने__"एक ऐसा आदमी अपनी सारी दौलत व कारोबार तुम्हारे नाम कर दिया जिसके बारे में न हमें कुछ पता है और न ही हमारे बारे में उसे।"
"सब ऊपर वाले की माया है माॅ।" विराज ने कहा__"ऊपर वाले ने कुछ सोच कर ही ये अविश्वसनीय तथा असंभव सा कारनामा किया है। जगदीश अंकल इसके लिए मुझे बहुत पहले से मना रहे थे किन्तु मैं ही इंकार करता रहा था। फिर उन्होंने मुझे समझाया कि बिना मजबूत आधार के हम कोई लड़ाई नहीं लड़ सकते। उन्होंने ये भी कहा कि उनकी सारी दौलत उनके बाद किसी ट्रस्ट या सरकार के हाॅथ चली जाती। इससे अच्छा तो यही है कि वो ये सब किसी ऐसे इंसान को दे दें जिसे वो अपना समझते भी हों और जिसे इसकी शख्त जरूरत भी हो। मैं उनकी कंपनी में ऐज अ मैनेजर काम करता था, वो मुझसे तथा मेरे काम से खुश थे। उनके दिल में मेरे लिए अपनेपन का भाव जागा। उन्होंने मेरे बारे में सब कुछ पता किया और जब उन्हें मेरी सच्चाई व मेरे साथ मेरे अपनों के किये गए अन्याय का पता चला तो एक दिन उन्होंने मुझे अपने बॅगले में बुला कर मुझसे बात की।"
"तुमने ये सब मुझे पहले कभी बताया क्यों नहीं बेटा?" गौरी ने विराज के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा__"इतना कुछ हो गया और तमने मुझसे छिपा कर रखा। क्या ये अच्छी बात है?"
"आपने भी तो मुझसे वो सब कुछ छुपाया माॅ।" विराज ने सहसा गमगीन भाव से कहा__"जो बड़े पापा और छोटे चाचा लोगों ने आपके और मेरी बहन के साथ किया। मेरे पिता जी की मौत कैसे हुई ये छुपाया गया मुझसे। मगर मैं सब जानता हूॅ माॅ, आपने भले ही मुझसे छुपाया मगर मैं सब जानता हूॅ।"
"क् क् क्या जानते हो तुम?" गौरी हड़बड़ा गई।
"जाने दीजिये माॅ।" विराज ने फीकी मुस्कान के साथ कहा__"अब इन सब बातों का समय नहीं है, अब समय है उन लोगों से बदला लेने का।"
"जाने कैसे दूॅ बेटा?" गौरी ने अजीब भाव से कहा__"मुझे जानना है कि तुम्हें ये सब कैसे पता चला?"
"इतना कुछ हो गया।" विराज कह रहा था__"एक हॅसता खेलता संसार कैसे इस तरह तिनका तिनका हो कर बिखर गया? मैं कोई बच्चा नहीं था माॅ जिसे इन सब बातों का एहसास नहीं था बल्कि सब समझता था मैं।"
"हमारे भाग्य में यही सब कुछ लिखा था बेटे।" गौरी की आॅखें छलक पड़ी__"शायद ऊपरवाला हमसे ख़फा हो गया था।"
"कोई बात नहीं माॅ।" विराज ने कहा__"अब उन लोगों का भाग्य मैं लिखूॅगा। साॅपों से खेलने का बहुत शौक है न तो मैं उन्हें बताऊगा कि साॅप को जो दूध पिलाते हैं एक दिन वही साॅप उन्हें भी डस कर मौत दे देता है।"
"क्या कहना चाहते हो तुम?" गौरी मुह और आखें फाड़े देखने लगी थी विराज को।
"हाॅ माॅ।" विराज कह रहा था__"मुझे सब पता है। मेरे पिता जी की मौत सर्प के काटने से हुई थी लेकिन वो स्वाभिक रूप से नहीं हुआ था बल्कि सब कुछ पहले से सोचा समझा गया एक प्लान था। एक साजिश थी माॅ, मेरे पिता जी को अपने रास्ते से हमेशा के लिए हटा देने की।"
"ये तुम क्या कह रहे हो बेटे?" गौरी उछल पड़ी, आखों से झर झर आॅसू बहने लगे उसके__"ये सब उन लोगों की साजिश थी?"
"हाॅ यही सच है माॅ।" विराज ने कहा__"आपको इस बात का पता नहीं है लेकिन मुझे है। मैं तो ये भी जानता हूॅ माॅ कि ये सब क्यों हुआ?"
"क् क् क्या जानते हो तुम?" गौरी के चेहरे पर अविश्वास के भाव थे।
"वही जो आप भी जानती हैं।" विराज ने अपनी माॅ गौरी की आखों मे झाॅकते हुए कहा__"कहिये तो बता भी दूॅ आपको।"
"न नहीं नहीं" गौरी के चेहरे पर घबराहट के साथ साथ लाज और शर्म की लाली छाती चली गई। उसका सिर नीचे की तरफ झुक गया।
"आपको नजरें चुराने की कोई जरूरत नहीं है माॅ।" विराज ने अपने दोनों हाथों से माॅ गौरी का शर्म से लाल किन्तु खूबसूरत सा बेदाग़ चेहरा थामते हुए कहा__"आपने ऐसा कोई काम नहीं किया है जिससे आपको मुझसे ही नहीं बल्कि किसी से भी नज़रें चुराना पड़े। आप तो गंगा की तरह पवित्र हैं माॅ, जिसकी सिर्फ पूजा की जा सकती है।"
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,,
"ब बेटे।" गौरी बुरी तरह रोते हुए अपने बेटे के चौड़े सीने से जा लगी। उसने कस कर विराज को जकड़ा हुआ था। विराज ने भी माॅ को छुपका लिया फिर बोला__"नहीं माॅ, अब आप रोएंगी नहीं। रोने धोने वाला वक्त गुज़र गया। अब तो रुलाने वाला वक्त शुरू होगा।"
"कितनी नासमझ थी मैं।" गौरी ने विराज के सीने से लगे हुए ही गंभीरता से कहा__"मैं जिस बेटे को छोटा और अबोध समझ रही थी तथा ये भी कि वो बहुत मासूम है नासमझ है अभी, मगर वो तो अपनी छोटी सी ऊम्र में भी कहीं ज्यादा समझदार और जिम्मेदार हो गया है। मैंने सब कुछ अपने बेटे से छुपाया, सिर्फ इस लिए कि मैं अपने बेटे को खो देने से डरती थी।"
"आप एक माॅ हैं माॅ।" विराज ने कहा__"और आपने जो कुछ भी किया अपनी ममता से मजबूर हो कर किया। इस लिए इसके लिए मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है। लेकिन हाॅ एक शिकायत जरूर है।"
"अच्छा।" गौरी ने विराज के सीने से अपना सिर अलग किया तथा ऊपर बेटे के की आखों मे प्यार से देखते हुए कहा__"ऐसी क्या शिकायत है मेरे बेटे को मुझसे, जरा मुझे भी तो पता चले।"
"शिकायत यही है कि।" विराज ने कहा__"आप हर पल खुद को दुखी रखती हैं और अपनी आॅखों पर तरस खाने की बजाय उन्हें रुलाती रहती हैं। ये हर्गिज़ भी अच्छी बात नहीं है।"
"अब से ऐसा नहीं होगा।" गौरी ने मुस्कुराते हुए कहा__"अब मैं न तो खुद को दुखी रखूॅगी और न ही अपनी आखों को रुलाऊॅगी। अब ठीक है न?"
"यही बात आप मेरी कसम खा कर कहिए।" विराज ने कहने के साथ ही माॅ गौरी का दाहिना हाॅथ पकड़ कर अपने सिर पर रखा।
"न नहीं नहीं।" गौरी ने विराज के सिर से तुरंत ही अपना हाॅथ खींच लिया__"मैं इसके लिए तुम्हारी कसम नहीं खा सकती मेरे लाल। तुम तो जानते हो एक माॅ अपने बच्चों के लिए कितना संवेदनशील होती है। उसका ममता से भरा हुआ ह्रदय इतना कोमल और कमजोर होता है कि अपने बच्चों के लिए एक पल में पिघल जाता है। सीने में पल भर में भावना का ऐसा तूफान उठ पड़ता है कि उसे रोंकना मुश्किल हो जाता है, और आंखें तो जैसे इस इंतजार में ही रहती हैं कि कब वो छलक पड़ें।"
विराज माॅ की बात सुन कर मुस्करा उठा। माॅ के सुंदर चहरे और नील सी झीली आखों में खुद के लिए बेशुमार स्नेह व प्यार देखता रहा और हौले से झुक कर पहले उन आखों को फिर माॅ के माॅथे को प्यार से चूॅम लिया।
"क्या बात है?" गौरी विराज के इस कार्य पर मुस्कुराई तथा अपनी आखों की दोनो भौहों को ऊपर नीचे करके कहा__"आज अपनी इस बूढ़ी माॅ पर बड़ा प्यार आ रहा है मेरे बेटे को।"
"प्यार तो हमेशा से था माॅ।" विराज ने कहा__"और हमेशा रहेगा भी। मगर आपने खुद को बूढ़ी क्यों कहा?"
"अरे पगले! अब मैं बूढ़ी हूॅ तो बूढ़ी ही कहूॅगी न खुद को।" गौरी ने हॅस कर कहा।
"नहीं माॅ।" विराह कह उठा__"आप बूढ़ी बिलकुल भी नहीं हैं। आप तो गुड़िया की बड़ी बहन लगती हैं। आप खुद देख लीजिए।" कहने के साथ ही विराज ने माॅ गौरी को कमरे में एक तरफ दीवार से सटे एक बड़े से आदम कद आईने के सामने ला कर खड़ा कर दिया।
"ये ये सब क्या कर रहा है बेटा?" गौरी हॅसते हुए बोली, उसने सामने लगे आईने में खुद को देखा। उसके पीछे ही विराज उसे उसके दोनो कंधों से पकड़े हुए खड़ा था।
"अब गौर से देखिए माॅ।" विराज ने आईने में अपनी माॅ को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा__"देखिए अपने आपको। आप अब भी मेरी माॅ नहीं बल्कि मेरी बड़ी बहन लगती हैं न?"
"हे भगवान!" गौरी ने हॅसते हुए कहा__"तुम्हें मैं तुम्हारी बड़ी बहन लगती हूॅ? कोई और सुने तो क्या कहे?"
"मुझे किसी से क्या मतलब?" विराज ने कहा__"जो सच है वो बोल रहा हूॅ। गुड़िया आपकी ही फोटो काॅपी है माॅ। मतलब आप जब गुड़िया की उमर में रहीं होंगी तब आप बिलकुल गुड़िया जैसी ही दिखती रही होंगी।"
"हाॅ तुम्हारी ये बात तो सच है बेटे कि गुड़िया मुझ पर ही गई है।" गौरी ने कहा__"सब कोई यही कहता था कि गुड़िया की शक्लो सूरत मुझसे मिलती जुलती है। लेकिन मैं उसके जैसी अल्हड़ और मुहफट नहीं थी।"
"वो अभी बच्ची हैं माॅ।"विराज ने कहा__"उसमें अभी बहुत बचपना है। उसे यूॅ ही हॅसने खेलने दीजिए, वो ऐसे ही अच्छी लगती हैं।"
"उसकी उमर में मैंने जिम्मेदारी और समझदारी से रहना सीख लिया था बेटा।" गौरी ने सहसा गंभीर होकर कहा__"अब वो बच्ची नहीं रही, भले ही दिल और दिमाग से वह बच्ची बनी रहे। मगर,,,,,"
"वैसे दिख नहीं रही वो।" विराज ने कहा__"कहाॅ है वह?"
"ऊपर छत पर गई थी कपड़े डालने।" गौरी ने कहा।
"कोई हमें याद करे और हम तुरंत उसके सामने न आएं ऐसा कभी हो सकता है क्या?" सहसा कमरे के दरवाजे से अंदर आते हुए निधि ने कहा__"वैसे किस लिए याद किया गया है हमें? जल्दी बताया जाए क्योंकि हम बहुत बिजी हैं, हमें अभी कपड़े डालने जाना है ऊपर छत पर।"
"इस लड़की का क्या करूॅ मैं?" गौरी ने अपना माथा पीट लिया।
"बस प्यार कीजिए माॅ प्यार।" निधि ने अपने दोनो हाॅथों को इधर उधर घुमाते हुए कहा__"हम आपके बच्चे हैं, हमें बस प्यार कीजिए।"
"तू रुक अभी तुझे बताती हूॅ मैं।" गौरी उसे मारने के लिए निधि की तरफ लपकी, जबकि निधि जिसे पहले ही पता था कि क्या होगा इस लिए वह तुरंत ही विराज के पीछे जा छुपी और बोली__"भईया बचाइए मुझे नहीं तो माॅ मारेंगी मुझे। मैं आपकी जान हूॅ न? अब बचाइये अपनी जान को, हाॅ नहीं तो।"
"रुक जाइए माॅ।" विराज ने माॅ को रोंक लिया__"मत मारिए इसे। आपने देखा न इसके आते ही वातावरण कितना खुशनुमा हो जाता है।"
"हाॅ माॅ।" निधि तुरंत बोल पडी__"मेरी बात ही अलग है। आप समझती ही नहीं हैं जबकि भइया मुझे अच्छे से समझते हैं, हाॅ नहीं तो।"
"तेरे भइया ने ही तुझे बिगाड़ रखा है।" गौरी ने कहा__"अब जा कपड़े डाल कर आ जल्दी।"
"आपकी जान का इतना बड़ा अपमान।" निधि ने पीछे से विराज की तरफ अपना सिर करते हुए कहा__"बड़े दुख की बात है कि आप कुछ नहीं कर सकते मगर, हम चुप नहीं रहेंगे एक दिन इस बात का बदला जरूर लेंगे, देख लीजियेगा, हाॅ नहीं तो।"
"क्या बड़बड़ा रही है तू?" गौरी ने आखें दिखाते हुए कहा।
"कुछ नही माॅ।" निधि ने जल्दी से कहा__"वो भइया को हनुमान चालीसा का रोजाना पाठ करने को कह रही थी।"
"वो क्यों भला?" गौरी के माॅथे पर बल पड़ता चला गया। जबकि निधि की इस बात से विराज की हॅसी छूट गई। वो ठहाके लगा कर जोर जोर से हॅसने लगा था। निधि अपनी हॅसी को बड़ी मुश्किल से रोंके इस तरह मुॅह बनाए खड़ी थी जैसे वो महामूर्ख हो। इधर विराज के इस प्रकार हॅसने से गौरी को कुछ समझ न आया कि उसका बेटा किस बात इतना हॅसे जा रहा है?
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,,,,,
आशा करता हूॅ कि आप सबको पसंद आएगा,,,,,,,,
"क्या बड़बड़ा रही है तू?" गौरी ने आखें दिखाते हुए कहा।
"कुछ नही माॅ।" निधि ने जल्दी से कहा__"वो भइया को हनुमान चालीसा का रोजाना पाठ करने को कह रही थी।"
"वो क्यों भला?" गौरी के माॅथे पर बल पड़ता चला गया। जबकि निधि की इस बात से विराज की हॅसी छूट गई। वो ठहाके लगा कर जोर जोर से हॅसे जा रहा था। निधि अपनी हॅसी को बड़ी मुश्किल से रोंके इस तरह मुह बनाए खड़ी थी जैसे वो महामूर्ख हो। इधर विराज के इस प्रकार हॅसने से गौरी को कुछ समझ न आया कि उसका बेटा किस बात इतना हॅसे जा रहा है?
अब आगे,,,,,,
इसी तरह एक हप्ता गुज़र गया। इस बीच विराज अपनी माॅ और बहन को लेकर जगदीश ओबराय के बॅगले में आकर रहने लगा था। जगदीश ओबराय इन लोगों के आने से बहुत खुश हुआ था। गौरी को अपनी छोटी बहन के रूप में पाकर उसे बेहद खुशी हुई, गौरी भी उसे अपने बड़े भाई के रूप में पाकर खुश हो गई थी। निधि तो सबकी लाडली थी ही, अब जगदीश के लिए भी वह एक गुड़िया ही थी।
निधि का स्वभाव चंचल था। उसमें बचपना था तथा वह शरारती भी बहुत थी किन्तु पढ़ाई लिखाई में उसका दिमाग बहुत तेज़ था। उसने दसवीं क्लास 90% मार्क्स के साथ पास किया था। इसके आगे वह पढ़ न सकी थी क्योकि तब तक हालात बहुत खराब हो चुके थे। गाॅव में दसवीं तक ही स्कूल था। आगे पढ़ने के लिए उसे पास के शहर जाना पड़ता, हलाॅकि शहर जाने में उसको कोई समस्या नहीं थी किन्तु हालात ऐसे थे कि उन माॅ बेटी का घर से निकलना मुश्किल हो गया था। आए दिन अजय सिंह का बेटा शिवा गलत इरादों से उसे छेंड़ता था। ये दोनो बाप बेटे एक ही थाली में खाने वाले थे। अजय सिंह की नीयत गौरी पर खराब थी। जबकि गौरी उसके मझले स्वर्गीय भाई विजय सिंह की बेवा थी तथा निधि उसकी बेटी समान थी। ये दोनो बाप बेटे अपने ही घर की इज्जत से खेलना चाहते थे। पैसे और ताकत के घमंड में दोनो बाप बेटे रिश्तों की मान मर्यादा भूल चुके थे।
जगदीश ओबराय ने निधि की पढ़ाई को ध्यान में रखते हुए उसका एडमीशन सबसे अच्छे स्कूल में करवा दिया था। अभी वक्त था इस लिए स्कूल में दाखिला बड़ी आसानी से हो गया था। अब निधि रोजाना स्कूल जाती थी। अपनी पढ़ाई के पुनः प्रारम्भ हो जाने से निधि बहुत खुश थी।
विराज अब चूॅकि खुद ही जगदीश ओबराय की सारी सम्पत्ति का इकलौता मालिक था इस लिए अब वह कंपनी में मैनेजर के रूप में नहीं बल्कि कंपनी के एम डी के रूप में जाता था। कंपनी में काम करने वाला हर ब्यक्ति ये जान कर आश्चर्य चकित था कि कंपनी में काम करने वाला एक मैनेजर आज इस कंपनी का मालिक है, यानी उन सबका मालिक। किसी को ये बात हजम ही नहीं हो रही थी। हर ब्यक्ति विराज और विराज की किस्मत से रक़्श कर रहा था। विराज के उच्च अधिकारी जो पहले विराज को हुक्म देते थे तथा उसे तुच्छ समझते थे वो अब विराज के सामने उसके महज एक इशारे से किसी गुलाम की तरह सर झुकाए खड़े हो जाते थे। कोई भी उच्च अधिकारी विराज के सामने किसी गुलाम की तरह झुकना नही चाहता था और न ही उसको अपना बाॅस मानना चाहता था किन्तु अब ये संभव नही था। सच्चाई सबके सामने थी और उस सच्चाई को स्वीकार करके उसको अपनाना सभी के लिए अब अनिवार्य था। विराज ये सब बातें अच्छी तरह जानता था। इस लिए उसने सबसे पहले एक मीटिंग रखी जिसमें कंपनी के सभी उच्च अधिकारी शामिल थे। मीटिंग में विराज ने बड़ी शालीनता से सबके सामने ये बात रखी कि अगर किसी के दिलो दिमाग में कोई बात है तो वो खुल कर जाहिर करे। वो अब ओबराय कंपनीज का मालिक है इससे अगर किसी को कोई तकलीफ हो तो वो बता दे अन्यथा बाद में किसी का भी गलत ब्यौहार या किसी भी तरह की गलत बात का पता चलते ही उसे कंपनी से आउट कर दिया जाएगा।
विराज ने ये भी कहा कि आज वह भले ही ओबराय कंपनीज़ का मालिक बन गया है लेकिन वह कंपनी में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को हमेशा अपना दोस्त या भाई ही समझेगा।
विराज की इन बातों से मीटिंग रूम में बैठे काफी उच्च अधिकारी प्रभावित हुए और कुछों के चेहरे पर अब भी अजीब से भाव थे। सबके चेहरों के भावों को बारीकी से जाॅचने के बाद विराज ने अंत मे ये भी कहा कि अगर किसी के दिलो दिमाग में ऐसी बात है कि वो इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर रहे हैं तो वो शौक से अपना अपना स्तीफा देकर जा सकते हैं।
कुछ लोग हालातों से बड़ा जल्दी समझौता करके आगे बढ़ जाते हैं किन्तु कुछ ऐसे भी होते हैं जो बिना मतलब का खोखला सम्मान और गुरूर लेकर खाली हाॅथ बैठे रह जाते हैं। कहने का मतलब ये कि मीटिंग के बाद एक हप्ते के अंदर अंदर कंपनी के काफी उच्च अधिकारियों ने स्तीफा दे दिया। विराज जैसे जानता था कि यही होगा। इस लिए उसने पहले से ही ऐसे लोगों को उनकी जगह फिट किया जो उसकी नज़र में इमानदार व वफादार होने के साथ साथ उसके अपने मित्र भी थे।
ऐसे ही पन्द्रह बीस दिन गुज़र गए। विराज अब कुशलतापूर्वक कंपनी का सारा कारोबार सम्हालने लगा था। जगदीश ओबराय उसकी हर तरह से मदद भी कर रहा था। उसने एक ग्राण्ड पार्टी रखी जिसमें शहर के सभी बड़े बड़े लोग आमंत्रित थे। यहाॅ तक कि मंत्री मिनिस्टर तथा पुलिस महकमें के उच्च अधिकारी वगैरा सब। इस पार्टी को रखने का एक खास मकसद था और वो था विराज को सबके सामने प्रमोट करना। जगदीश ने स्टेज में जा कर तथा एनाउंसमेन्ट कर सबको बताया कि उसकी सारी मिल्कियत का अब से विराज ही अकेला वारिस तथा मालिक है। सब ये सुन कर हैरान भी थे और खुश भी। सभी बड़े बड़े लोगों से विराज को मिलवाया गया।
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,
अब विराज कोई आम इंसान नहीं रह गया था बल्कि अब उसे सारा शहर जानता था। प्रेस और मीडिया वालों को कुछ सोचकर जगदीश ने पार्टी में आने नहीं दिया था। अब उसका सम्मान और रुतबा वैसा ही हो गया था जैसे खुद जगदीश ओबराय का था। गौरी व निधि इस सबसे बहुत ही खुश थीं। उनके मन में जगदीश के प्रति बड़ा आदर और सम्मान हो गया था। अब ये सब जगदीश को पूरी तरह अपना मानने लगे थे। उन्होंने ये ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि ऐसा असंभव कार्य भी कभी होगा लेकिन सच्चाई अब उनके सामने थी। आज गौरी का बेटा हज़ारों करोड़ों रूपये की सम्पत्ति का मालिक था। गौरी इस बात के लिए भगवान का लाख लाख शुक्रिया अदा कर रही थी।
जगदीश ओबराय हार्ट का मरीज़ था। उसने अपने जीवन में एक ही झटके में अपनों को खोया था। उसके एक ही बेटा था, अमरीश ओबराय। अमरीश की नई नई शादी हुई थी और वो अपनी बीवी के साथ हनीमून के लिए इटली जा रहा था। किन्तु इटली जा रहा विमान क्रैस हो गया और एक ही झटके में विमान में बैठे सभी पैसेंजर मौत को प्राप्त हो गए थे। उस हादसे से जगदीश की मुकम्मल दुनिया ही तबाह हो गई। उसका अपना कोई नहीं बचा था। उसकी इतनी बड़ी दौलत और इतने बड़े कारोबार को सम्हालने वाला कोई नहीं बचा था। उसकी पत्नी तो पहले ही गुज़र गई थी जिससे वह बेहद प्यार करता था। इस सबसे जगदीश दिल का मरीज़ बन गया था, उसे दो बार दिल का दौरा पड़ चुका था जिसमें वह बड़ी मुश्किल से बचा था। वह रात दिन इसी सोच में मरा जा रहा था कि उसके बाद उसकी मिल्कियत का अब क्या होगा? उसके कम्पटीटर कहीं न कहीं इस बात से खुश थे और जो उसके घनिष्ठ मित्र थे वो जगदीश की इस हालत से दुखी थे। वह चाहता तो इस उमर में भी दूसरी शादी कर सकता था जिसके लिए उसके खास चाहने वाले मित्रों ने सुझाव भी दिया था। किन्तु जगदीश ने दूसरी शादी करने से साफ मना कर दिया था। उसका कहना था कि इस उमर में वह किसी से शादी नहीं करेगा, लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे कि उसने अपनी बेटी की उमर वाली लड़की से शादी की।
अपनों के खोने का दुख और उसके द्वारा रात दिन सोचते रहने की वजह से वह दिल का मरीज़ बन गया था। इतने बड़े बॅगले में वह अकेला रहता था, ये अकेलापन उसे किसी सर्प की भाॅति रात दिन डसता रहता था। नौकर चाकर तो बहुत थे लेकिन जिनसे उसके मन को तथा आत्मा को सुकून व त्रप्ति मिलती वो उसके अपने नहीं थे। विराज के आने से उसे ऐसा लगा जैसे उसे उसका खोया हुआ बेटा अमरीश मिल गया था। उसने विराज के बारे में गुप्त रूप से सारी मालुमात की थी। विराज के अपनों ने उसके और उसकी माॅ बहन के साथ क्या अत्याचार किया ये उसको पता चला था। विराज का नेचर उसे बहुत अच्छा लगा। विराज एक होनहार तथा मेहनती लड़का था। जगदीश ने फैसला कर लिया था कि विराज ही अब उसका 'अपना' होगा। उसने विराज को अपने बॅगले में बुलवाया और तसल्ली से उससे बात की। उसने विराज से उसके बारे में सब बातें पूछी और खुद भी अपने मन की बात विराज को बताई कि वह क्या चाहता है। अपने बाॅस व मालिक की ये बातें सुन कर विराज चकित था, उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई ऐसा भी कर सकता है।
विराज ने जगदीश की बातें सुनकर ये कहा कि उसे सोचने के लिए वक्त चाहिए। जगदीश ने उसे वक्त दिया और विराज वहाॅ से चला आया था। उसने अकेले में इस बारे में बहुत सोचा। उसे जगदीश के प्रति ऐसा कुछ भी नहीं लगा कि इस सबके पीछे जगदीश का कोई गलत इरादा या मकसद हो। कंपनी में काम करने वाले सभी कर्मचारियों की तरह वह भी ये बात जानता था कि उसके मालिक जगदीश ओबराय निहायत ही एक सच्चे व नेकदिल इंसान हैं। उनकी नेकनीयती व नरमदिली का कंपनी के कुछ उच्च अधिकारी लोग ग़लत फायदा उठा रहे थे। जिनका उसने बड़ी सफाई से पर्दाफाश किया था। किसी को इस बात का पता तक न चला था। विराज ने पक्के सबूत इकट्ठा करके सीधा जगदीश ओबराय के सामने रख दिया था। जगदीश ओबराय विराज के इस कार्य और उसकी इस इमानदारी से बेहद प्रभावित हुए थे। उन्होंने विराज को अपनी सभी कंपनियों की गुप्तरूप से जाॅच पड़ताल का काम सौंप दिया किन्तु प्रत्यक्ष रूप में वह कंपनी का एक मैनेजर ही रहा।
जगदीश ओबराय के द्वारा सौंपे गए इस गुप्त कार्य को उसने बड़ी ही कुशलता तथा सफाई से अंजाम दिया। एक महीने के अंदर अंदर ही उन सबको तगड़े नोटिश के साथ कंपनी से तत्काल निकाल दिया गया। किसी को कुछ सोचने समझने का मौका तक नहीं मिला और न ही किसी को ये समझ आया कि ये अचानक उनके साथ क्या और कैसे हो गया? सबूत क्योंकि पक्के थे इस लिए उन सबको वो सब भारी हरजाने के साथ देना पड़ा जो उन सबने कंपनी से खाया था। एक झटके में ही सबके सब भीख माॅगने की हालत में आ गए थे। बात अगर इतनी ही बस होती तो भी ठीक था किन्तु उनके द्वारा किये गए इन कार्यों के लिए उन सबको जेल का दाना पानी भी मिलना नसीब हो गया था।
विराज द्वारा किये गए इस अविश्वसनीय कार्य से जगदीश ओबराय बहुत खुश हुए। उनके मन में विचार आया कि विराज के बारे में उन्होंने जो फैसला लिया है वो हर्गिज भी ग़लत नही है।
दोस्तो आप सब समझ सकते हैं कि ये सब बताने के पीछे मेरा क्या मकसद हो सकता है? और अगर नहीं समझे हैं तो बता देता हूॅ,,, दरअसल बात ये है कि किन परिस्थितियों की वजह से विराज को आज ये सब प्राप्त हुआ ? आखिर विराज में जगदीश को ऐसा क्या नज़र आया कि उसने उसे अपना सब कुछ मान भी लिया और सब कुछ दे भी दिया? हलाॅकि आज के युग की सच्चाई ये है कि आप भले ही किसी के लिए अपना सब कुछ निसार कर दीजिए किन्तु बदले में आपको कुछ मिलने की तो बात दूर आपके द्वारा किये गए इस बलिदान का कोई एहसान तक नहीं मानता। ख़ैर, जाने दीजिए.....हम कहानी पर चलते हैं।
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,,
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"डैड मुझे इसके आगे की पढ़ाई मुम्बई से करना है।"नीलम ने बड़ी मासूमियत से कहा था__"मेरी सब दोस्त भी वहीं जा रही हैं।"
"अरे बेटा।" अजय सिंह चौंका था__"मगर यहाॅ क्या परेशानी है भला? यहाॅ भी तो पास के शहर में बहुत अच्छा काॅलेज है?"
"यहाॅ के काॅलेजों में कितनी अच्छी शिक्षा मिलती है ये तो आप भी अच्छी तरह जानते हैं डैड।" नीलम ने कहा__"मुझे अपनी डाक्टरी की बेहतर पढ़ाई के लिए बेहतर शिक्षा की आवश्यकता है।"
"अच्छी बात है बेटी।" अजय सिंह ने कहा__"लेकिन मुम्बई से अच्छा तो तुम्हारे लिए दिल्ली रहेगा। क्योकि दिल्ली में तुम्हारी बड़ी बुआ भी है। तुम अपनी सौम्या बुआ के साथ रह कर वहाॅ बेहतर पढ़ाई कर सकती हो।"
"नहीं डैड।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया__"मैं मुम्बई में अपनी मौसी के यहाॅ रह कर पढ़ाई करूॅगी। आप तो जानते हैं कि मौसी की बड़ी बेटी अंजली दीदी आजकल मुम्बई में ही एक बड़े हास्पिटल में एज अ डाक्टर काम करती हैं। उनके पास रहूॅगी तो उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को भी मिलेगा।"
"ये सही कह रही है डैड।" रितु ने कहा__"अंजली दीदी के पास रह कर इसे अपनी पढ़ाई के लिए काफी कुछ जानने समझने को भी मिल जाएगा। आप इसे बड़ी मौसी के पास ही जाने दीजिए।"
"ठीक है बेटी।" अजय सिंह ने कहा__"तुम्हारी भी यही राय है तो नीलम अब मुम्बई ही जाएगी।"
"ओह थैंक्यू सो मच डैड एण्ड।" नीलम ने खुश हो कर अजय सिंह से कहने के बाद रितू की तरफ पलट कर कहा__"एण्ड थैंक्स यू टू दीदी।"
"कौन कहाॅ जा रहा है डैड?" बाहर से ड्राइंग रूम में आते हुए शिवा ने कहा।
"तुम्हारी नीलम दीदी मुम्बई जा रही है अपनी बड़ी मौसी पूनम के पास।" अजय सिंह ने कहा__"ये वहीं रह कर अपनी डाक्टरी की पढ़ाई करेगी।"
"क क्या..???" शिवा उछल पड़ा__"नीलम दीदी मुम्बई जाएंगी? नहीं डैड आप इन्हें मुम्बई कैसे भेज सकते हैं? जबकि आप जानते हैं कि हमारा सबसे बड़ा दुश्मन विराज मुम्बई में ही है।"
"अरे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता बेटे।" अजय सिंह ने कहा__"और उससे डरने की भी कोई जरूरत नहीं है। और वैसे भी उसे क्या पता चलेगा कि नीलम कहाॅ है? वो तो किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धो रहा होगा। उसे इस काम से फुर्सत ही कहाॅ मिलेगी कि वो नीलम को खोजेगा?"
"हा हा हा आप सच कहते हैं डैड।" शिवा ठहाका लगा कर जोरों से हॅसते हुए कहा__"वो यकीनन किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट ही धो रहा होगा।"
"ख़ैर छोंड़ो।" अजय सिंह ने नीलम की तरफ देख कर कहा__"तो तुम्हें कब जाना है मुम्बई?"
"मैं तो कल ही जाने का सोच रही हूॅ डैड।" नीलम ने कहा__"मैंने सारी तैयारी भी कर ली है।"
"चलो ठीक है।" अजय सिंह ने कहा__"मैं तुम्हारे लिए ट्रेन की टिकट का बोल देता हूॅ।"
"जी डैड।" नीलम ने कहा और ऊपर अपने कमरे की तरफ पलट कर चली गई।
"तू भी कुछ करेगा कि ऐसे ही आवारागर्दी करता इधर उधर घूमता रहेगा?" सहसा किचेन से आती हुई प्रतिमा ने कहा__"सीख कुछ इनसे। ऐसे कब तक चलेगा?"
"इतना ज्यादा पढ़ लिख कर क्या करना है माॅम?" शिवा ने बेशर्मी से खीसें निपोरते हुए कहा__"डैड की दौलत काफी है मेरे उज्वल भविष्य के लिए। मैंने सही कहा न डैड?" अंतिम वाक्य उसने अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा था।
"बात तो तुम्हारी ठीक है शहज़ादे।" अजय सिंह पहले मुस्कुराया फिर थोड़ा गंभीर हो कर बोला__"लेकिन जीवन में उच्च शिक्षा का होना भी बहुत जरूरी होता है। माना कि मैने तुम्हारे लिए बहुत सारी दौलत बना कर जोड़ दी है लेकिन ये दौलत कब तक तुम्हारे लिए बची रहेगी? दौलत कभी किसी के पास टिकी नहीं रहती। उसको बनाए रखने के लिए काम करके उसे कमाना भी जरूरी है। आज जितना हम उसे खर्च करते हैं उससे कहीं ज्यादा उसे प्राप्त करना भी जरूरी है।"
"ओह डैड आप तो बेकार का लेक्चर देने लगे मुझे।" शिवा ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा__"इतना तो मुझे भी पता है कि दौलत को पाने के लिए काम करना भी जरूरी है और अच्छे काम के लिए अच्छी शिक्षा का होना जरूरी है। तो डैड, मैं पढ़ तो रहा हूॅ न?"
"जिस तरह की तुम पढ़ाई कर रहे हो न।" प्रतिमा ने तीखे लहजे में कहा__"उसका पता है मुझे।"
"ओह माॅम अब आप भी डैड की तरह लेक्चर मत देने लग जाना।" शिवा ने कहा।
"ये लेक्चर तुम्हारे भले के लिए ही दिया जा रहा है बेटे।" अजय सिंह ने कहा__"इस पर ग़ौर करो और अमल भी करो।"
"जी डैड कर तो रहा हूॅ न?" शिवा ने कहा और सोफे से उठ कर अपने कमरे की तरफ चला गया। किन्तु वह ये न देख सका कि उसके पैन्ट की बाॅई पाॅकेट से उसकी कौन सी चीज़ गिर कर सोफे पर रह गई थी।
अजय सिंह और प्रतिमा की नज़रें एक साथ उस चीज़ पर पड़ीं। और उस चीज़ को पहचानते ही दोनो अपनी अपनी जगह बैठे उछल पड़े। प्रतिमा ने अपना हाॅथ आगे बढ़ा कर उस चीज को उठा लिया। वो कण्डोम का पैकिट था। पैकिट खुला हुआ था मतलब उसमे मौजूद कण्डोमों में से कुछ का इस्तेमाल हो चुका था। प्रतिमा ने अपने पति अजय सिंह की तरफ अजीब भाव से देखा।
"ये है आपके शहजादे की पढ़ाई।" प्रतिमा के लहजे में कठोरता थी बोली__"और ये सब सिर्फ आपके लाड प्यार का नतीजा है।"
"इस उमर में ये नेचुरल बात है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"क्या तुम भूल गई कि हम दोनों ने खुद शादी के पहले इसका कितना इस्तेमाल किया था?"
"हाॅ मगर तब आप नौकरी पेशा थे।" प्रतिमा के चेहरे पर कुछ पल के लिए शर्म की लाली छाई थी किन्तु उसने शीघ्र ही खुद को नाॅर्मल करते हुए कहा था__"लेकिन शिवा अभी पढ़ रहा है। अगर इसी तरह चलता रहा तो वो क्या कर पाएगा भविश्य में?"
"तुम बेवजह छोटी सी बात को इतना तूल दे रही हो यार।" अजय सिंह ने कहा__"मुझे तुमसे ज्यादा चिंता है उसके भविश्य की, अगर नहीं होती तो ये सब नहीं करता। और अब इस बारे में कोई बात नही होगी समझी न?"
प्रतिमा कुछ न बोली। इसके साथ ही ड्राइंग रूम में सन्नाटा छा गया। कुछ देर की ख़ामोशी के बाद अजय सिंह ने कहा__"अब यूॅ मुह न फुलाओ मेरी जान, आज रात तुम्हें खुश कर दूॅगा चिन्ता मत करो।"
"क्या सच में?" प्रतिमा के चेहरे पर खुशी छलक पड़ी__"लेकिन दो राउण्ड से पहले नहीं सोने दूॅगी मैं आपको ये सोच लेना।"
"ठीक है मेरी जान।" अजय सिंह मुस्कुराया__"एक एक राउण्ड तुम्हारे आगे पीछे से अच्छे से लूॅगा।"
"अच्छा जी?" प्रतिमा मुस्कुराई__"आप तो जब देखो मेरे पिछवाड़े के पीछे ही पड़े रहते हो।"
"औरत को पीछे से रगड़ रगड़ कर ही ठोंकने में हम मर्दों को मज़ा आता है डियर।" अजय सिंह ने कहा__"और तुम्हारे पिछवाड़े की तो बात ही अलग है यार।"
"और किसके किसके पिछवाड़े की बात अलग है?" प्रतिमा ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा__"ज़रा ये भी तो बताइए।"
"तुम अच्छी तरह जानती हो मेरी जान।" अजय सिंह के चेहरे पर अजीब से भाव थे__"फिर क्यों पूॅछ रही हो?"
"बताने में हर्ज़ ही क्या है?" प्रतिमा हॅसी__"बता ही दीजिए।"
"तुम्हारे बाद अगर किसी और के पिछवाड़े में अलग बात है तो वो है हमारी बड़ी बेटी रितू। हाय क्या पिछवाड़ा है ज़ालिम का बिलकुल तुम्हारी तरह ही है उसका पिछवाड़ा।"
"अपनी ही बेटी पर नीयत बुरी है आपकी?" प्रतिमा ने कहने के साथ ही मैक्सी के ऊपर से अपने एक हाॅथ से अपनी चूॅत को बुरी तरह मसला फिर बोली__"मगर ये जान लीजिए कि रितू का पिछवाड़ा इतनी आसानी से मिलने वाला नही है आपको।"
"यही तो रोना है यार।" अजय सिंह आह सी भरते हुए बोला__"तुमको मेरी ख्वाहिश का पता है फिर भी अब तक कुछ नहीं किया।"
"चिंता मत कीजिए।" प्रतिमा ने कहा__"आपके लिए एक नई चूॅत और एक नए पिछवाड़े का इंतजाम कर दिया है मैंने।"
"क् क्या सच में..???"अजय सिंह खुशी से झूम उठा__"ओह डियर आखिर तुमने कर ही दिया। मगर, ये तो बताओ किसकी चूत और पिछवाड़े का इंतजाम किया है तुमने?"
"अभी थोड़ी कसर बाॅकी है जनाब।" प्रतिमा ने कहा__"मगर मुझे यकीन है कि एक दो दिन में काम हो जाएगा आपका।"
"काश! गौरी को हासिल कर पाता मैं।" अजय सिंह बोला__"उस पर तो मेरी तब से नज़र थी जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी। एक झलक उसके जिस्म की देखी थी मैंने। एक दम दूध सा गोरा रंग था उसका और बनावट ऐसी कि उसके सामने कुदरत की हर कृति फीकी पड़ जाए।"
"कम से कम मेरे सामने उसकी खूबसूरती का बखान मत किया कीजिए आप।" प्रतिमा ने तीखे भाव से कहा__"आपको कितनी बार ये कहा है मैने। फिर भी आप उस हरामजादी की तारीफ करके मेरा खून जलाने से बाज नहीं आते हैं।"
"क्या करूॅ मेरी जान?" अजय सिंह कह उठा__"तुम्हारे बाद मुझे अगर किसी से प्यार हुआ है तो वो थी गौरी। मैं चाहता तो कब का उसकी खूबसूरती का रसपान कर लेता किन्तु मैने ऐसा नही किया। मैं उसे प्यार से हासिल करना चाहता था। तभी तो मैंने ये सब किया, उसको इतने दुख दिए और उसके लिए सारे रास्ते बंद कर दिए। मगर फिर भी कुछ हासिल नहीं हुआ और अब होगा भी कि नहीं क्या कहा जा सकता है?"
"आपने तो उन लोगों की खोज में अपने आदमी लगाए थे न?" प्रतिमा ने कहा__"उन लोगों ने क्या रिपोर्ट दी उनके बारे में?"
"मेरे आदमी खाली हाॅथ वापस आ गए थे।" अजय सिंह के चेहरे पर कठोरता के भाव उजागर हुए__"वो हरामी की औलाद विराज बड़ा ही चतुर व चालाक निकला। उसने अपनी माॅ और बहन को किसी दूसरे शहर के रूट से उन्हें मुम्बई ले जाने में कामयाब हो गया था।"
"शायद उसे अंदेशा था कि आप उन्हें पकड़ने के लिए अपने आदमियों को भेजेंगे।" प्रतिमा ने सोचपूर्ण भाव से कहा।
"हाॅ यही बात रही होगी।" अजय सिंह बोला__"वर्ना वो ऐसा काम क्यों करता? मगर कब तक मुझसे छिपा कर रखेगा वो अपनी माॅ और बहन को? मैं चैन से बैठा नहीं हूॅ प्रतिमा, बल्कि आज भी मेरे आदमी उनकी खोज में मुम्बई की खाक़ छान रहे हैं।"
"ये आपने अच्छा किया है।" प्रतिमा ने सहसा आवेशयुक्त स्वर में कहा था__"जब आपके आदमी उन सबको पकड़ कर यहा लाएंगे तो मैं अपने हाॅथों से उस कुत्ते को गोली मारूंगी जिसने उस दिन मेरे बेटे का वो हाल किया था।"
"तुम्हारी ये इच्छा जरूर पूरी होगी डियर।" अजय सिंह ने भभकते लहजे में कहा__"और अब मैं भी गौरी को बीच चौराहे पर रगड़ रगड़ कर ठोंकूॅगा। अब बात प्यार की नहीं रह गई बल्कि अब प्रतिशोध की है। मेरे उस प्रण की है जो मैंने वर्षों पहले लिया था।"
"किस प्रण की बात कर रहे हैं डैड?" रितू ऊपर से सीढ़िया उतरते हुए पूछी।
"कुछ नहीं बेटी बस ऐसे ही बात कर रहे थे हम लोग।" प्रतिमा ने जल्दी से बात को टालने की गरज से कहा। जबकि अजय सिंह अपनी बड़ी बेटी को एकटक देखे जा रहा था।
रितू नहा धो कर तथा एक दम फ्रेस होकर आई थी। इस वक्त उसके गोरे किन्तु मादकता से भरे जिस्म पर एक दम टाइट फिटिंग वाले कपड़े थे। जिसमें उसकी भरपूर जवानी साफ उभरी हुई नजर आ रही थी। अजय सिंह मंत्रमुग्ध सा उसे देखे जा रहा था। उसकी आखों में हवस और वासना के कीड़े गिजबिजाने लगे थे। अपने पति को अपनी ही बेटी की तरफ यूं हवस भरी नज़रों से देखते देख प्रतिमा ने तुरंत ही उसे खुद की हालत को सम्हाल लेने की गरज से कहा__"आपको आज पिता जी और माता जी से मिलने जाना था न?"
अजय सिंह प्रतिमा के इस वाक्य को सुन कर चौंका तथा तुरंत ही वास्तविक माहौल में लौटते हुए कहा__"हाॅ जाना तो है। क्या तुम साथ नहीं चलोगी?"
"नहीं आप हो आइए।" प्रतिमा ने कहा__"पिछली बार गई थी उनसे मिलने आपके साथ। उनसे मिलने का कोई फायदा तो है नहीं। न वो कुछ बोलते हैं और न ही हिलते डुलते हैं फिर क्या फायदा उनसे मिलने का?"
"डैड क्या कुछ संभावना है कि कब तक दादा दादी ठीक होंगे?" रितू ने पूछा।
"बेटा डाॅ. की तरफ से यही कहना है कि कुछ कहा नहीं जा सकता इस बारे में।" अजय सिंह बोला__"याददास्त का मामला होता ही ऐसा है।"
"डैड आपके दोस्त कमिश्नर अंकल तो अब तक पता नहीं लगा पाए कि दादा दादी की कार को किसने और क्यों टक्कर मारी थी?" रितू ने सहसा तीखे भाव से कहा__"आज दो साल हो गए इस बात को और पुलिस के हाॅथ कोई छोटा सा सुराग तक नहीं लगा। बड़ा गुस्सा आता है मुझे अपने देश की इस निकम्मी पुलिस पर। आज अगर मैं होती पुलिस डिपार्टमेन्ट में तो इस केस को कब का क्लियर करके मुजरिमों को जेल की सलाखों के पीछे पहुॅचा दिया होता। लेकिन कोई बात नहीं डैड...जल्द ही इस निकम्मी पुलिस के बीच मुझ जैसी एक तेज़ तर्रार पुलिस आफिसर इन्ट्री करेगी। फिर मैं खुद इस केस पर काम करूॅगी, और केस को पूरा साल्व करूॅगी।"
रितू की ये बातें सुनकर अजय सिंह और प्रतिमा को साॅप सा सूॅघ गया। चेहरे पर घबराहट के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे। किन्तु जल्द ही उन दोनों ने खुद को सम्हाला।
"मतलब मेरे लाख मना करने और समझाने पर भी तुमने पुलिस फोर्स ज्वाइन करने का अपना इरादा नहीं बदला?" अजय सिंह ने नाराज़गी भरे स्वर में कहा__"तुम जानती हो बेटी कि मुझे तुम्हारा पुलिस फोर्स ज्वाइन करने का फैसला बिलकुल भी पसंद नहीं है। तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं थी कोई नौकरी करने की, भला क्या कमी की है हमने तुम्हें कुछ देने में?"
"ये नौकरी मैं किसी चीज़ के अभाव में नहीं कर रही हूॅ डैड।" रितू ने शान्त भाव से कहा__"आप जानते हैं कि पुलिस आफिसर बनना मेरा एक ख्वाब था। पुलिस आफिसर बन कर मैं उन लोगों का वजूद मिटाना चाहती हूं जो इस देश और समाज के लिए अभिशाप हैं।"
"तुम ये भूल रही हो बेटी कि तुम एक लड़की हो, एक औरत ज़ात जिसे खुद कदम कदम पर किसी मर्द के द्वारा मजबूत सुरक्षा की आवश्यकता होती है।" प्रतिमा ने समझाने वाले भाव से कहा__"और पुलिस फोर्स तो ऐसी है कि इसमें रोज़ एक से बढ़ कर एक खतरनाक अपराधियों का सामना करना पड़ता है जिसका मुकाबला करना तुम्हारे लिए बेहद मुश्किल है।"
"आप मुझे एक आम लड़की समझकर कमजोर समझती हैं माॅम जबकि रितू सिंह बघेल कोई आम लड़की नहीं है।" रितू के चेहरे पर कठोरता थी__"बल्कि मैं मिस्टर अजय सिंह बघेल की शेरनी बेटी हूॅ। और मुझसे टकराने में किसी अपराधी को हजार बार सोचना पड़ेगा। आप जानती हैं न माॅम कि मैंने मासल आर्ट्स में ब्लैक बैल्ट हासिल किया है। क्योंकि मुझे पता है कि एक आम लड़की पुलिस में किसी अपराधी का सामना नहीं कर सकती। इसी लिए मैंने किसी भी तरह के अपराधियों से डॅटकर कर मुकाबला करने के लिए मासल आर्ट्स की ट्रेनिंग ली थी।"
अजय सिंह और प्रतिमा दोनों जानते थे कि रितू अपने कदम अब वापस नहीं करेगी। इस लिए चुप रह गए किन्तु अंदर से ये सोच सोच कर घबरा भी रहे थे कि अगर रितू ने पुलिस आफिसर के रूप में अपने दादा दादी के एक्सीडेंट वाला केस अपने हाॅथ में लिया तो क्या होगा?????"
दोस्तो आपके सामने अपडेट हाज़िर है....आपकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,
"आप मुझे एक आम लड़की समझकर कमजोर समझती हैं माॅम जबकि रितू सिंह बघेल कोई आम लड़की नहीं है।" रितू के चेहरे पर कठोरता थी__"बल्कि मैं मिस्टर अजय सिंह बघेल की शेरनी बेटी हूॅ। और मुझसे टकराने में किसी अपराधी को हजार बार सोचना पड़ेगा। आप जानती हैं न माॅम कि मैंने मासल आर्ट्स में ब्लैक बैल्ट हासिल किया है। क्योंकि मुझे पता है कि एक आम लड़की पुलिस में किसी अपराधी का सामना नहीं कर सकती। इसी लिए मैंने किसी भी तरह के अपराधियों से डॅटकर कर मुकाबला करने के लिए मासल आर्ट्स की ट्रेनिंग ली थी।"
अजय सिंह और प्रतिमा दोनों जानते थे कि रितू अपने कदम अब वापस नहीं करेगी। इस लिए चुप रह गए किन्तु अंदर से ये सोच सोच कर घबरा भी रहे थे कि अगर रितू ने पुलिस आफिसर के रूप में अपने दादा दादी के एक्सीडेंट वाला केस अपने हाॅथ में लिया तो क्या होगा?????"
अब आगे,,,,,,,
अजय सिंह अपने आॅफिस के शानदार केबिन में रिवाल्विंग चेयर पर बैठा कुछ फाइलों को इधर उधर रख रहा था कि तभी उसके केबिन का डोर नाॅक हुआ।
"कम इन।" उसने बिना सर उठाए ही कहा।
इसके साथ ही केबिन का डोर खुला और एक ब्यक्ति अंदर दाखिल हुआ। पचास से पचपन की उमर का वो मोटा सा आदमी था, आखों पर मोटे लैंस का चश्मा लगा रखा था उसने। उसके दाहिने हाॅथ में एक फाइल थी। चेहरे पर बारह बजे हुए थे। बड़ी ही दयनीय स्थिति में अपनी जगह खड़ा था वह।
केबिन के अंदर पैना सन्नाटा छाया रहा। अजय सिंह को जब ध्यान आया कि अभी कोई उसके केबिन में आया है तो उसने सिर उठा कर सामने देखा। नज़र केबिन में आने वाले ब्यक्ति पर पड़ी, साथ ही उसकी वस्तुस्थिति पर, तो अजय सिंह चौंका।
"क्या बात है दीनदयाल?" अजय सिंह ने पूॅछा__"तुम्हारे चेहरे पर इतना पसीना क्यों आ रहा है? तुम्हारी तबियत तो ठीक है न?"
"स सर व वो वो।" दीनदयाल हकलाते हुए बोलना चाहा।
"क्या हुआ?" अजय सिंह बोला__"तुम इस तरह हकला क्यों रहे हो भई?"
"सर बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई।" दीनदयाल रो देने वाले लहजे में बोला__"हम बरबाद हो गए।"
"ये क्या बक रहे हो तुम?" अजय सिंह बुरी तरह चौंका__"तुम होश में तो हो न?"
"मैं पूरी तरह होश में हू सर।" दीनदयाल बोला__"सब कुछ बरबाद हो गया सर।"
"साफ साफ बोलो दीनदयाल।" अजय सिंह तीखे स्वर में बोला__"यू पहेलियाॅ न बुझाओ। ऐसा क्या हुआ है जिससे तुम सब कुछ बरबाद हो जाने की बात कर रहे हो?"
"सर पिछले महीने।" दीनदयाल बोला__"हमें जो करोड़ों का टेंडर मिला था वह सब महज एक फ्राड ही निकला।"
"क क्या मतलब?" अजय सिंह बुरी तरह चौंका था।
"मतलब साफ है सर।" दीनदयाल बोला__"हमें जिस फाॅरेन की पार्टी से करोड़ों का टेंडर मिला था वो सब झूॅठ था। हमें बरबाद करने के लिए यह किसी की सोची समझी चाल थी। हमने उस टेंडर के हिसाब से आज एक महीने से भारी मात्रा में कपड़े तैयार किये हैं जिसके लिए हमें करोड़ों की लागत का खर्च करना पड़ा किन्तु अब सब कुछ बरबाद हो गया।"
अजय सिंह ये सुनकर किसी स्टेचू की तरह बिना हिले डुले बैठा रह गया। ऐसा लग रहा था जैसे ये सब जानकर उसे साॅप सूॅघ गया हो। चेहरा निस्तेज हो गया था उसका।
"हमने यकीनन बहुत बड़ा धोखा खाया है सर।" दीनदयाल हतास भाव से बोला__"हमें इस बारे में सोचना चाहिये था। अब क्या होगा सर, हम इतने बड़े नुकसान की भरपाई कैसे कर सकेंगे?"
"उसके बारे में कुछ पता किया क्या तुमने?" अजय सिंह ने अजीब भाव से पूछा।
"एक हप्ते से मैं सिर्फ इसी काम में लगा हुआ था सर।" दीनदयाल ने कहा__"मगर उस फाॅरेनर का कहीं कुछ पता नहीं चल सका। उसकी हर एक बात झूठी ही साबित हुई सर। होटल सनशाइन में पता किया तो होटल के मैनेजर ने बताया कि स्टीव जाॅनसन व एॅजेला जाॅनसन नाम के कोई भी फाॅरेनर यहाॅ पिछले एक महीने से नहीं ठहरे थे। ये दोनो पति पत्नी जिस कंपनी को अपनी कह रहे थे उसका कहीं कोई वजूद ही नहीं, जबकि अब से एक हप्ते पहले कंपनी की बाकायदा वेबसाइट हमने खुद देखी थी, जिसमें सब डिटेल्स थी।"
"कौन ऐसा कर सकता है हमारे साथ?" अजय सिंह मानो खुद से ही पूछ रहा था__"हमारी तो किसी से इस तरह की कोई दुश्मनी भी नहीं है फिर कौन इतना बड़ा नुकसान कर सकता है हमारा?"
"जिसने भी ये सब किया है सर।" दीनदयाल बोला__"उसने इस सबकी तैयारी बहुत पहले से कर रखी थी। हर चीज़ सोची समझी थी। एक एक प्वाइंट को बारीकी से जाॅच कर उस पर काम किया गया था वर्ना क्या हमें कुछ पता न चलता? "
"नुकसान तो हो ही गया दीनदयाल।" अजय सिंह बोला__"लेकिन इसका पता करना भी सबसे ज्यादा जरूरी है। हमें हर हाल में पता करना होगा कि वो दोनों कौन थे तथा हमारे साथ इतना बड़ा धोखा करके आख़िर क्या मिला उन्हें?"
"एक बुरी ख़बर और भी है सर।" दीनदयाल दीन हीन लहजे के साथ बोला__"समझ में नहीं आता कि कैसे कहूॅ आपसे?"
"आज क्या हो गया है तुम्हें दीनदयाल?" अजय सिंह एक झटके से अपनी चेयर से उठते हुए बोला__"ये क्या मनहूस ख़बरें लेकर आए हो आज हमारे पास?"
"माफ़ कीजिए सर।" दीनदयाल ने सर झुका लिया__"मगर मैं क्या करूॅ? मुझे खुद भी समझ में नहीं आ रहा है कि ये सब क्या हो रहा है?"
"अब बताओ भी कि तुम्हारी दूसरी बुरी ख़बर क्या है?" अजय सिंह ने कहा।
"सर अरविंद सक्सेना जी हमारी कंपनी से अपनी पार्टनरशिप तोड़ रहे हैं।" दीनदयाल ने ये कह कर जैसे धमाका सा किया था।
"क् क्या..????"अजय सिंह बुरी तरह चौंका__"ये क्या कह रहे हो दीनदयाल? भला सक्सेना हमसे पार्टनरशिप क्यों तोड़ रहा है? उसने इसके बारे में हमसे तो कोई बात नहीं की अब तक? सक्सेना को फोन लगाओ हम उससे बात करेंगे अभी।"
"सर वो यहीं आ रहे हैं।" दीनदयाल ने कहा__"मुझे फोन करके उन्होंने मुझसे आपके बारे में पूछा की आप कहां हैं तो मैंने बता दिया कि आज आप यहीं हैं तो बोले ठीक है आ रहे हैं। उनका लहजा बड़ा अजीब था सर, मैंने वजह पूछी तो बोले कि आपसे पार्टनरशिप तोड़ना है। उनकी ये बात सुन कर मेरा तो दिमाग ही सुन्न पड़ गया था"
अभी अजय सिंह कुछ कहने ही वाला था कि केबिन के डोर में नाॅक हुआ। दीनदयाल ने कहा__"लगता है मिस्टर सक्सेना ही हैं।"
"ठीक है तुम जाओ अब।" हम बाद में तुमसे बात करेंगे।"
"ओके सर।" दोनदयाल ने कहा और केबिन का डोर खोला तो बाहर से सक्सेना अंदर दाखिल हुआ जबकि दीनदयाल सक्सेना को नमस्कार कर बाहर निकल गया।
"आओ आओ सकसेना।" अजय सिंह ने सक्सेना का इस्तकबाल करते हुऐ कहा और हैण्डशेक किया उससे।
"कैसे हो अजय सिंह?" सक्सेना ने हाॅथ मिलाने के बाद कहा।
"बेहतर।" अजय सिंह ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।
"मेरे यहाॅ आने की वजह तो तुम्हें पता चल ही गई होगी?" सक्सेना ने कहा।
"हाॅ मुझे दीनदयाल अभी यही बता रहा था।" अजय सिंह ने गंभीरता से कहा__"और ये जानकर दुख भी हुआ कि तुम मुझसे पार्टनरशिप तोड़ रहे हो। जहाॅ तक मेरा अंदाज़ा है मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है जिसकी वजह से तुम पार्टनरशिप तोड़ रहे हो।"
"मुझे पता है कि तुमने वाकई कुछ नहीं किया है।" सक्सेना ने सपाट लहजे में कहा__"लेकिन फिर भी मैं ये पार्टनरशिप तोड़ रहा हूॅ, क्योकि मुझे अब विदेश में सेटल होना है अपने परिवार के साथ। यहाॅ का सब कुछ बेच कर अब विदेश में ही रहूगा तथा वहीं कारोबार करूगा।"
"तो पार्टनरशिप तोड़ने की ये वजह है?" अजय सिंह ने कहा।
"बिलकुल।" सक्सेना ने कहा__"और अब मैं चाहता हूॅ कि तुम मेरा सब कारोबार खुद खरीद लो तथा मेरे हिस्से का जो कुछ है उसे मुझे देकर मुझे जाने दो।"
"यार ऐसा भी तो किया जा सकता है कि तुम विदेश में रह कर भी मेरे साथ पार्टनरशिप में ये कारोबार चला सकते हो।" अजय सिंह ने एक साॅस में ही सारी बात कर दी__"उसके लिए पार्टनरशिप तोड़ने की क्या बात है?"
"तुम्हारी बात अपनी जगह बिलकुल ठीक है अजय सिंह।" सक्सेना ने कहा__"लेकिन मेरा इरादा अब इस कारोबार को करने का बिलकुल भी नहीं है। कोई दूसरा कारोबार करने का सोचा है मैंने।"
"अब जब तुमने मन बना ही लिया है तो कोई क्या कर सकता है भला?" अजय सिंह बोला__"खैर कब जा रहे हो?"
"तुम हिसाब किताब क्लियर कर लो।"सक्सेना ने कहा__"तब तक मैं कुछ और इंतजाम कर लेता हूॅ"
"ठीक है सक्सेना।" अजय सिंह ने कहा__"हिसाब किताब भी हो जाएगा। मगर यार मेरा कुछ तो खयाल किया होता।"
"क्या करूॅ यार?" सक्सेना ने कहा__"तुम्हारे लिए अफसोस तो हो रहा है मगर अब और नहीं रुक सकता। ये सब तो मैं बहुत पहले से करने की सोच रहा था किन्तु हर बार तुम्हारा खयाल आ जाने से मैंने खुद को रोंके रखा।"
"हिसाब किताब तो ठीक है।" अजय सिंह ने कहा__"लेकिन कुछ समय की मोहलत चाहता हूॅ क्योंकि इस वक्त पैसे का बड़ा लोचा हो रखा है ये तो तुम्हें भी पता चल ही गया होगा?"
"हाॅ पता चला है मुझे इस बारे में।" सक्सेना ने कहा__"पर यार इतने नुकसान से क्या फर्क पड़ता है तुम्हें? और वैसे भी कारोबार में नफा नुकसान तो चलता ही रहता है।"
"बात ये नहीं है कि क्या फर्क पड़ता है?" अजय सिंह ने कहा__"बात है रेपुटेशन की। लोग क्या सोचेंगे कि अजय सिंह बघेल को कोई ब्यक्ति चुतिया बना कर चला गया और उसे इसका पता भी नहीं चला।"
"हाॅ ये तो सही कहा तुमने।"सक्सेना ने कहा__"इज्ज़त का कचरा हो गया।"
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,
"मैं उस हरामजादे को छोंड़ूॅगा नहीं सक्सेना।" अजय सिंह ने एकाएक गुस्से में बोला__"उसको ढूॅढ़ कर उसे ऐसी मौत दूॅगा कि उसकी रूह फिर दुबारा ऐसे किसी शरीर को धारण नहीं करेगी। मुझे अपने नुकसान का कोई ग़म नहीं है सक्सेना,ये करोड़ों का नुकसान मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता। मगर मेरी इज्ज़त को शहर भर में यूॅ दाग़दार करके उसने ये अच्छा नहीं किया। उसे इसकी कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ेगी।"
"उसके साथ ऐसा होना भी चाहिए अजय सिंह।" सक्सेना ने एक सिगरेट सुलगाई और फिर एक गहरा कस लेकर उसका धुआॅ ऊपर की तरफ उछालने के बाद कहा__"वैसे क्या लगता है तुम्हें, ये किसका काम हो सकता है?"
"ये तो पक्की बात है सक्सेना कि वो दोनों विदेशी नहीं थे।" अजय सिंह बोला__"बल्कि वो दोनों हमारे ही देश के और हमारे ही शहर के कोई पहचान वाले ही थे।"
"ये बात तुम इतने विश्वास और दावे के साथ कैसे कह सकते हो अजय सिंह?" सक्सेना हल्के से चौंका था फिर बोला__"जबकि तुम्हारे पास इस बात का कोई छोटा सा सबूत तक नहीं है।"
"ग़लती मेरी भी है सक्सेना।" अजय सिंह ने कहा__"एक महीने पहले जब उनसे हमें ये टेंडर मिला था तब हमें ये अंदाज़ा नहीं था, बल्कि हम सोच भी नहीं सकते थे कि हम इन लोगों द्वारा किसी साजिश का शिकार होने जा रहे हैं। हम तो खुश थे कि हमारे कपड़ों की खासियत से प्रभावित होकर कोई विदेशी हमसे डील कर रहा है और इतनी ज्यादा मात्रा में हमसे कपड़े की माॅग कर रहा है। उस समय दिलो दिमाग में यही था कि अब हमारा संबंध विदेशी लोगों से हो रहा है जिससे निकट भविश्य में हमारे कारोबार को और भी फायदा होगा। किसी साजिश का हम सोच ही नहीं सके थे क्योकि उन लोगों का सब कुछ परफेक्ट था। और वैसे भी हमें इससे क्या लेना देना था कि वो कितनी बड़ी कंपनी के मालिक थे, हमें तो उनकी डील से मतलब था जिसके लिए हमे करोड़ों का मुनाफ़ा होने वाला था।"
"वो सब तो ठीक है अजय।" सक्सेना बीच में ही अजय की बात काट कर कह उठा__"मगर तुम कह रहे हो कि वो विदेशी नहीं थे ये बात तुम दावे के साथ कैसे कह सकते हो?"
"मैं बताते हुए वहीं आ रहा था सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"ख़ैर अब जबकि ये सब हो गया उससे यही समझ आता है कि ये काम किसी फाॅरेनर का नहीं है। क्योंकि आज तक हमारा किसी भी तरह का लेन देन किसी विदेशी से नहीं हुआ और जब कोई लेन देन ही नहीं हुआ किसी विदेशी से तो किसी तरह की रंजिश के तहत किसी फाॅरेनर का ये सब करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। अब सोचने वाली बात है कि जब हमारा किसी विदेशी से कोई ब्यौसायिक संबंध ही नहीं था तो कोई विदेशी किस वजह से हमारे साथ इतनी बड़ी साजिश करके हमें धोखा देगा अथवा हमारा इतना बड़ा नुकसान करेगा?"
"तुम्हारा तर्क बिलकुल दुरुस्त है अजय।" सक्सेना सोचपूर्ण भाव के साथ बोला__"फिर तो यकीनन ये काम किसी ऐसे ब्यक्ति का है जो तुम्हें अच्छी तरह जानता भी है और तुम्हारा बुरा भी चाहता है। कौन हो सकता है ऐसा ब्यक्ति?"
"यही तो सोच रहा हूॅ सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"मगर जेहन में ऐसे किसी ब्यक्ति का चेहरा नहीं आ रहा।"
"ये काम तुम्हारे किसी कम्पटीटर का ही हो सकता है।" सक्सेना ने कहा__"ये एक ब्यौसायिक मामला है अजय। ब्यौसाय से जुड़े तुम्हारे किसी कम्पटीटर ने ही इस काम को अंजाम दिया हो सकता है, जिनके बारे में फिलहाल तुम ठीक से सोच नहीं पा रहे हो। इस लिए अच्छी तरह सोचो कि ये किसने किया हो सकता है?"
"मुझे तो कुछ और ही लगता है सक्सेना।" अजय सिंह ने सोचपूर्ण भाव से कहा__"ये काम मेरे किसी कम्पटीटर का भी नहीं है क्योकि इन सबसे मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" सक्सेना चौंका__"अगर ये सब तुम्हारे किसी कम्पटीटर का नहीं है तो फिर किसका है? कहीं तुम इन सबके लिए मुझे तो नहीं जिम्मेदार ठहरा रहे हो?"
"हाॅ ये भी हो सकता है सक्सेना।" अजय सिंह ने सपाट लहजे में कहा__"इस सब में सबसे पहले उॅगली तो तुम पर ही उठेगी। आख़िरकार तुम मेरे बिजनेस पाटनर हो"
"क्या मेरे बारे में तुम ऐसा सोचते हो कि मैं अपने घनिष्ठ मित्र के साथ ऐसा नीच काम करूॅगा?" सक्सेना ने कहा__"तुम मेरे बारे में अच्छी तरह जानते हो अजय कि मैं ऐसा किसी के भी साथ नहीं कर सकता। मेरी फितरत इस तरह किसी को धोखा देने की नहीं है।"
"रुपये पैसे के लिए कोई भी ब्यक्ति किसी के भी साथ कुछ भी कर सकता है सक्सेना।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा__"मैं तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं लगा रहा लेकिन इस तरह का सवाल तो खड़ा होगा ही। कानून का कोई भी नुमाइंदा तुमसे ये सवाल कर सकता है कि तुम अचानक ही अजय सिंह से पार्टनशिप तोड़ कर तथा अपना हिसाब किताब करके हमेशा के लिए विदेश क्यों जा रहे हो जबकि हाल ही में अजय सिंह के साथ ऐसा संगीन वाक्या हो गया?"
"तुम तो मुझ पर साफ साफ इल्जाम लगाते हुए कानून के लपेटे में डालने की बात कर रहे हो अजय सिंह।" सक्सेना दुखी भाव से बोला__"जबकि भगवान जानता है कि मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया।"
"भगवान तो सबके विषय में सब जानता है सक्सेना।" अजय सिंह ने कहा__"लेकिन इंसान नहीं जानता। इंसान तो वही जानता है जो उसे या तो नज़र आता है या फिर जो समझ आता है। आज जो हालात बने हैं उससे साफ तौर पर यही समझ आता है कि ये सब तुम्हारे अलावा दूसरा कौन और क्यों कर सकता है भला?"
अरविन्द सक्सेना मूर्खों की तरह देखता रह गया अजय सिंह को। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कि वह अभी अपने सिर के बाल नोंचने लगेगा।
"मुझे समझ नहीं आ रहा अजय सिंह कि मैं तुम्हें कैसे इस बात का यकीन दिलाऊॅ?" सक्सेना असहाय भाव से बोला__"कि ये सब मैं करने के बारे में सोच तक नहीं सकता। तुम जानते हो हम दोनो ऐसे हैं कि एक दूसरे का सब कुछ जानते हैं। हम दोनों के संबंध तो ऐसे हैं कि हम अपनी अपनी बीवियों को भी आपस में बाॅट लेते हैं। क्या कोई इतना भी घनिष्ठ मित्र हो सकता है किसी का? जिसके साथ ऐसे संबंध हों वो भला अपने दोस्त का इतना बड़ा अहित कैसे कर देगा यार?"
"तुम तो यार एक दम से सीरियस ही हो गए सक्सेना।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा__"मैं तो बस एक तर्कसंगत बात कह रहा था कि इस वाक्ये के बाद किसी भी ब्यक्ति के मन में सबसे पहले यही विचार उठेगा जो अभी मैने तर्क के द्वारा कहा था।"
"तुम मुझे जान से मार दो अजय सिंह मुझे ज़रा भी फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन ऐसे इल्जाम लगा कर मारोगे तो मैं मर कर भी कहीं चैन नहीं पाऊॅगा।" सक्सेना ने कहा।
"छोड़ो इस बात को और ये बताओ कि विदेश कब जा रहे हो?" अजय सिंह ने पूछा।
"दो दिन बाद।" सक्सेना ने कहा__"कल तक यहाॅ के सारे करोबार का रुपया मेरे एकाउंट में आ जाएगा और परसों यहाॅ से निकल जाऊॅगा। लेकिन.....।"
"लेकिन..??" अजय सिंह ने पूछा।
"लेकिन उससे पहले मैं चाहता हूॅ कि।" सक्सेना ने कहा__"हम लोगों का एक शानदार प्रोग्राम हो जाए।"
"जाने से पहले मेरी बीवी के मजे लेना चाहते हो।" अजय सिंह हॅसा।
"हाॅ तो बदले में तुम्हें भी तो मेरी बीवी से मजे लेना है।" सक्सेना ने भी हॅसते हुए कहा__"और वैसे भी मेरी बीवी तो रात दिन तुम्हारा ही नाम जपती रहती है। पता नहीं क्या जादू कर दिया है तुमने? साली मुझे बड़ी मुश्किल से हाॅथ लगाने देती है।"
"अच्छा ऐसा क्या?" अजय सिंह जोरों से हॅसा।
"हाॅ यार।" सक्सेना बोला__"और पता है विदेश जाने के लिए तो मान ही नहीं रही थी वो। जब मैने उसे ये कहा कि तुम हर महीने हमसे मिलने तथा मस्ती करने आओगे तब कहीं जाकर मानी थी वो।"
"मतलब कि अब मुझे हर महीने तुम्हारे पास इस सबके लिए आना पड़ेगा?"अजय सिंह मुस्कुराया।
"हाॅ बिलकुल।" सक्सेना ने कहा__"और वो भी भाभी जी के साथ।"
"सोचना पड़ेगा सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"और वैसे भी अभी मेरे पास सिर्फ एक ही अहम काम है, और वो है उन लोगों का पता लगाना जिनकी वजह से आज मुझे करोड़ों का नुकसान हुआ है तथा मेरी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ी हैं।"
"हाॅ ये तो है।" सक्सेना ने कहा__"अगर कभी मेरी ज़रूरत पड़े तो बेझिझक याद करना अजय, तुम्हारे एक बार के कहने पर मैं तुम्हारे पास आ जाऊॅगा।"
"ठीक है सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"कल तक मैं तुम्हारा हिसाब किताब करके तुम्हारे एकाउंट में पैसे डाल दूॅगा।"
ऐसी ही कुछ और औपचारिक बातों के बाद सक्सेना वहाॅ से चला गया। जबकि अजय सिंह ये न देख सका कि जाते समय सक्सेना के होठों पर कितनी जानदार मुस्कान थी?
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,