Elite Leader
LEVEL 5
80 XP
"मुझे ही कुच्छ करना होगा" ऋषभ ने मन ही मन सोचा और उस स्वर्णिम मौके को भुनाते हुवे अति-शीघ्र अपनी मा के चूतड़ो के पाट पुनः चौड़ा देता है, इसके उपरांत ही उसने अपना चेहरा उसके चूतड़ो की दरार के भीतर घुसा दिया. इतनी देर से जिस छिद्र के साथ वह अठखेलियाँ कर रहा था, उसे अपनी आँखों के नज़दीक पा कर उसकी उत्तेजना में अविश्वसनीय गति से वृद्धि होने लगी थी और ममता की परवाह किए बगैर वह अपनी लंबी जिह्वा को बिना किसी अतिरिक्त भय के अपनी मा की गान्ड के छेद से सटा देने पर विवश हो जाता है.
"उफफफफ्फ़! नही .. उंघह" आकस्मात ही ममता की आँखें चौड़ी गयी, उसके गुदा-द्वार पर टिकी हुवी वास्तु बेहद गीली व लचीली थी और जो उसके पुत्र की उंगली तो कदापि नही हो सकती थी.
"तो क्या! रेशूउऊउउ" ममता की चीख से कॅबिन गूँज उठा मगर उसकी चीख उसके पुत्र पर कोई विशेष प्रभाव नही छोड़ पाती. अब ऋषभ आनंदित था और अपनी जीभ को अपनी मा के दानेदार मल-छिद्र पर गोल-गोल घुमाना शुरू कर देता है.
"आईईई! माँ .. मान जा रेशू, वहाँ बहुत गंदा है" ममता ने दोबारा चिल्लाते हुवे कहा मगर उसके स्वर में कपकपाहट की प्रचूरता व्याप्त हो गयी थी और जिससे परिचित होते ही ऋषभ के कान खड़े हो जाते हैं, यक़ीनन उसकी जीभ का स्पर्श उसकी मा को सिहरन से भर रहा था.
"अपनी पलकें मूंद लो मा और खुद को नीचे गिरने से बचाना" कह कर ऋषभ अपनी जीभ को छिद्र से ऊपर की ओर ले जाने लगता है, पसीने से लथपथ अपनी मा की झाटें चाट कर उसकी जिह्वा नमकीन होती जा रही थी. कुछ देर तक झांतो में उलझे रहने के बाद वह पुनः नीचे की तरफ अपनी जीभ को लौटा लाता है, उसकी आँखों के ठीक सामने उसकी मा की गान्ड का अत्यंत मुलायम, गहरे कथ्थयि रंगत का छेद था. उसने सॉफ महसूस किया कि बार-बार उसकी मा तेज़ सांसो के ज़रिए अपने गुदा-द्वार को सिकोड कर अंदर की तरफ खीच रही थी और फिर स्वतः ही वह छेद अपने आप ढीला पड़ता जा रहा था.
"उफफफफ्फ़! नही .. उंघह" आकस्मात ही ममता की आँखें चौड़ी गयी, उसके गुदा-द्वार पर टिकी हुवी वास्तु बेहद गीली व लचीली थी और जो उसके पुत्र की उंगली तो कदापि नही हो सकती थी.
"तो क्या! रेशूउऊउउ" ममता की चीख से कॅबिन गूँज उठा मगर उसकी चीख उसके पुत्र पर कोई विशेष प्रभाव नही छोड़ पाती. अब ऋषभ आनंदित था और अपनी जीभ को अपनी मा के दानेदार मल-छिद्र पर गोल-गोल घुमाना शुरू कर देता है.
"आईईई! माँ .. मान जा रेशू, वहाँ बहुत गंदा है" ममता ने दोबारा चिल्लाते हुवे कहा मगर उसके स्वर में कपकपाहट की प्रचूरता व्याप्त हो गयी थी और जिससे परिचित होते ही ऋषभ के कान खड़े हो जाते हैं, यक़ीनन उसकी जीभ का स्पर्श उसकी मा को सिहरन से भर रहा था.
"अपनी पलकें मूंद लो मा और खुद को नीचे गिरने से बचाना" कह कर ऋषभ अपनी जीभ को छिद्र से ऊपर की ओर ले जाने लगता है, पसीने से लथपथ अपनी मा की झाटें चाट कर उसकी जिह्वा नमकीन होती जा रही थी. कुछ देर तक झांतो में उलझे रहने के बाद वह पुनः नीचे की तरफ अपनी जीभ को लौटा लाता है, उसकी आँखों के ठीक सामने उसकी मा की गान्ड का अत्यंत मुलायम, गहरे कथ्थयि रंगत का छेद था. उसने सॉफ महसूस किया कि बार-बार उसकी मा तेज़ सांसो के ज़रिए अपने गुदा-द्वार को सिकोड कर अंदर की तरफ खीच रही थी और फिर स्वतः ही वह छेद अपने आप ढीला पड़ता जा रहा था.
Mink's SIGNATURE