Incest माँ का चैकअप

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"मुझे ही कुच्छ करना होगा" ऋषभ ने मन ही मन सोचा और उस स्वर्णिम मौके को भुनाते हुवे अति-शीघ्र अपनी मा के चूतड़ो के पाट पुनः चौड़ा देता है, इसके उपरांत ही उसने अपना चेहरा उसके चूतड़ो की दरार के भीतर घुसा दिया. इतनी देर से जिस छिद्र के साथ वह अठखेलियाँ कर रहा था, उसे अपनी आँखों के नज़दीक पा कर उसकी उत्तेजना में अविश्वसनीय गति से वृद्धि होने लगी थी और ममता की परवाह किए बगैर वह अपनी लंबी जिह्वा को बिना किसी अतिरिक्त भय के अपनी मा की गान्ड के छेद से सटा देने पर विवश हो जाता है.

"उफफफफ्फ़! नही .. उंघह" आकस्मात ही ममता की आँखें चौड़ी गयी, उसके गुदा-द्वार पर टिकी हुवी वास्तु बेहद गीली व लचीली थी और जो उसके पुत्र की उंगली तो कदापि नही हो सकती थी.

"तो क्या! रेशूउऊउउ" ममता की चीख से कॅबिन गूँज उठा मगर उसकी चीख उसके पुत्र पर कोई विशेष प्रभाव नही छोड़ पाती. अब ऋषभ आनंदित था और अपनी जीभ को अपनी मा के दानेदार मल-छिद्र पर गोल-गोल घुमाना शुरू कर देता है.

"आईईई! माँ .. मान जा रेशू, वहाँ बहुत गंदा है" ममता ने दोबारा चिल्लाते हुवे कहा मगर उसके स्वर में कपकपाहट की प्रचूरता व्याप्त हो गयी थी और जिससे परिचित होते ही ऋषभ के कान खड़े हो जाते हैं, यक़ीनन उसकी जीभ का स्पर्श उसकी मा को सिहरन से भर रहा था.

"अपनी पलकें मूंद लो मा और खुद को नीचे गिरने से बचाना" कह कर ऋषभ अपनी जीभ को छिद्र से ऊपर की ओर ले जाने लगता है, पसीने से लथपथ अपनी मा की झाटें चाट कर उसकी जिह्वा नमकीन होती जा रही थी. कुछ देर तक झांतो में उलझे रहने के बाद वह पुनः नीचे की तरफ अपनी जीभ को लौटा लाता है, उसकी आँखों के ठीक सामने उसकी मा की गान्ड का अत्यंत मुलायम, गहरे कथ्थयि रंगत का छेद था. उसने सॉफ महसूस किया कि बार-बार उसकी मा तेज़ सांसो के ज़रिए अपने गुदा-द्वार को सिकोड कर अंदर की तरफ खीच रही थी और फिर स्वतः ही वह छेद अपने आप ढीला पड़ता जा रहा था.
 
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" न .. न .. रेशू नही उफफफ्फ़ ! वहाँ .. वहाँ नही बेटा" ममता की चीख अब सीत्कार ध्वनि में बदलते देर ना लगी. पुत्र की जीभ का गीला स्पर्श, उसकी थिरकन का एहसास अपनी गान्ड के कोमल छिद्र पर झेल पाना नामुमकिन था. इतने अधिक आनंद की कल्पना तो उसने कभी नही की थी, उसे तो पता तक नही था कि शरीर के इस गंदे छेद को भी चूसा या चाटा जा सकता है और सबसे बड़ी बात कि इस अप्राकृतिक कार्य से प्राप्त होती सिरहन तो वाकाई प्राणघातक थी.

ऋषभ उस छेद को काफ़ी गीला कर चुका था और अब वह उसे अपने होंठो में भीचते हुवे बड़ी कठोरता के साथ चूसना शुरू कर देता है, मानो उस छेद के भीतर से भी कोई तरल पदार्थ बाहर निकाल कर उससे अपना गला तर करना चाहता हो

"ओह्ह्ह! मान जा रेशू ..मैं मर जाउन्गि" ममता गिड़गिदाते हुवे बोली, उसका शरीर तो इस सुखमय एहसास से प्रफुल्लित होता जा रहा था परंतु मन ही मन वह बहुत घबरा रही थी. पहली बार उसके पति के अलावा कोई पराया मर्द उसके गुप्तांगो के इतने करीब था और उस पराए मर्द का उसका सगा बेटा होना ही उसकी लज्जा का प्रमुख विषय था. हलाकी प्रेम के मामले में आज ऋषभ ने अपने पिता को हरा दिया था मगर अब तक ममता तय नही कर पाई थी कि पति-पुत्र में से उसे किसका चुनाव करना था. यदि पति के पास जाती तो ता-उमर घुट'ते हुवे जीती और पुत्र के पास जा कर सुख तो मिलता मगर महज रंडी कहलाती. उसे इस बात का भी डर था की अब कैसे वह अपने पुत्र से अपनी आँख मिला सकेगी, ऋषभ उसकी गान्ड के छेद को चाटने व चूसने में बुरी तरह से व्यस्त हो चुका था मगर कभी ना कभी तो वह रुकता ही और उसके रुकने के पश्चात ममता की मौत निश्चित थी. अभी वह ठीक से विचार-मग्न भी नही हो पाई थी इससे पूर्व ही ऋषभ का विस्फोटक प्रश्न उसकी रूह कपा देता है.

"मा! क्या तुम्हारे गुदा-द्वार की पीड़ा मे कमी आई या अभी भी उसमें दर्द शेष है ?
 
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आज पहली बार मालूम हुआ कि गांड मारना भी एक कला है
 

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