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LEVEL 6
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जिन निप्पलों से बचपन में उसने दूध पिया था, अब उन्हीं को जय अपने पापी हाथों से निचोड़ रहा था। टीना जी ने भी अपना एक हाथ नीचे की ओर सरका कर अपनी गोरी-गोरी उंगलियों को बेटे के काले लन्ड पर फेरा। जय का लन्ड अब साईज मे दुगुना हो चला था और टीना जी के हाथ में भी नहीं समा पा रहा था। वासना ने लन्ड पर फैल रही नसों को रक्त से लबालब कर दिया था। काले कोबरा नाग जैसा फन उठाये था और टीना जी की गोरी उंगलियों में जब्त। उंगलियों पर लंबे नाखून और लाल रंग की नेलपालिश उनके मन्झे हुए हाथ जय के लन्ड के सिरे को अपनी गीली पन्टी से सटा कार चूत पर रगड़ा रहे थे। चूत के टीके-नुमा आकार पर ऊपर से नीचे वे लन्ड को मसल रहीं थीं। अपनी पैन्टी पर रगड़-रगड़ कर अपने ही पुत्र के तनतनाते लन्ड से हस्तमैथुन करवाने और उससे निप्पल निचुड़वाने का ये दृश्य उनके मन को रोमांचित कर रहा था। |
सोच रहीं थीं कि मन में इतना रोमांच आखिर क्यों है ? हमारे समाज ने कुछ रिश्तों को कड़ी हदों में बाम्ध कर कुछ हदें तय कर दी हैं। पर प्राक्रितिक प्रेम इन हदों को नहीं पहचानता। प्रकृति के नियम तो हर प्राणी को दुसरे प्राणी पर, जब तक दोनों की मर्जी हो, हर तरह से प्रेम व्यक्त करने को बाध्य करते हैं। माता और पुत्र का दिव्य प्रेम भी समाज की इन हदों से कहीं परे है। मातृ- प्रेम की पराकाष्ठा ही टीना जी को यह रोमांच दे रही थी। अपने ही बेटे को सैक्स कला का पाठ सिखते हुए बेटे से जिस्म की भूख मिटाने में उसे कुटिल और औरप्रत्याशित मज़ा आ रहा था। योनि में झुम झुम के सैक्स -हॉरमॉन बह रहे थे। उसे अचानक याद आया कि जय के जिस्म के लिये वासना पहले भि उसमें एक बार जागी थी। काम के ज्वर ने उसके बदन के रोम-रोम को तपा कर रख दिया था पर तब उसने उसे हवाई कल्पना कह के भुला दिया था।
स्विमिंग पूल में छलांग लगाते समय जय का स्विमिंग-ट्रक सरक कर नीचे गिर पड़ा था। उसकी जाँघों और गाँड की फड़कती माँसपेशियों को देख कर उसने क्या लुफ्त उठाया था। और जब वो हड़बड़ाया सा दुबकियाँ लगा कर अपना ट्रन्क पूल में खोजने लगा तो उसकी ट्रन्क लेकर तैरती हुई उसके पास पहुंची थी वो। फिर अचानक ही पानी कि सतह पर वो उभरा था तो उसके गरम लन्ड ने उसकी ठण्डी देह पर स्पर्ष से एक करन्ट सा कौन्ध गया था। टीना जी के भीतर के सैक्स पशु ने उन्हें लपक कर लन्ड को दबोचने को उकसाया तो बहुत पर जैसे तैसे उन्होंने खुद पर काबू पाया था। पर मर्यादा से ज्यादा देर वहीं खड़े रह कर जय के लन्ड को अपनी जाँघों पर मसलने दिया था। अब मालूम होता था कि जय तभी से उनके जिस्म का भूखा था। अपने ही बेटे को इस तरह अपने कामुक बदन पर आकर्षित कर पाने से टीना जी
और भी कामोत्तेजित हो रहीं थीं।
सोच रहीं थीं कि मन में इतना रोमांच आखिर क्यों है ? हमारे समाज ने कुछ रिश्तों को कड़ी हदों में बाम्ध कर कुछ हदें तय कर दी हैं। पर प्राक्रितिक प्रेम इन हदों को नहीं पहचानता। प्रकृति के नियम तो हर प्राणी को दुसरे प्राणी पर, जब तक दोनों की मर्जी हो, हर तरह से प्रेम व्यक्त करने को बाध्य करते हैं। माता और पुत्र का दिव्य प्रेम भी समाज की इन हदों से कहीं परे है। मातृ- प्रेम की पराकाष्ठा ही टीना जी को यह रोमांच दे रही थी। अपने ही बेटे को सैक्स कला का पाठ सिखते हुए बेटे से जिस्म की भूख मिटाने में उसे कुटिल और औरप्रत्याशित मज़ा आ रहा था। योनि में झुम झुम के सैक्स -हॉरमॉन बह रहे थे। उसे अचानक याद आया कि जय के जिस्म के लिये वासना पहले भि उसमें एक बार जागी थी। काम के ज्वर ने उसके बदन के रोम-रोम को तपा कर रख दिया था पर तब उसने उसे हवाई कल्पना कह के भुला दिया था।
स्विमिंग पूल में छलांग लगाते समय जय का स्विमिंग-ट्रक सरक कर नीचे गिर पड़ा था। उसकी जाँघों और गाँड की फड़कती माँसपेशियों को देख कर उसने क्या लुफ्त उठाया था। और जब वो हड़बड़ाया सा दुबकियाँ लगा कर अपना ट्रन्क पूल में खोजने लगा तो उसकी ट्रन्क लेकर तैरती हुई उसके पास पहुंची थी वो। फिर अचानक ही पानी कि सतह पर वो उभरा था तो उसके गरम लन्ड ने उसकी ठण्डी देह पर स्पर्ष से एक करन्ट सा कौन्ध गया था। टीना जी के भीतर के सैक्स पशु ने उन्हें लपक कर लन्ड को दबोचने को उकसाया तो बहुत पर जैसे तैसे उन्होंने खुद पर काबू पाया था। पर मर्यादा से ज्यादा देर वहीं खड़े रह कर जय के लन्ड को अपनी जाँघों पर मसलने दिया था। अब मालूम होता था कि जय तभी से उनके जिस्म का भूखा था। अपने ही बेटे को इस तरह अपने कामुक बदन पर आकर्षित कर पाने से टीना जी
और भी कामोत्तेजित हो रहीं थीं।