Incest पापी परिवार की पापी वासना

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जिन निप्पलों से बचपन में उसने दूध पिया था, अब उन्हीं को जय अपने पापी हाथों से निचोड़ रहा था। टीना जी ने भी अपना एक हाथ नीचे की ओर सरका कर अपनी गोरी-गोरी उंगलियों को बेटे के काले लन्ड पर फेरा। जय का लन्ड अब साईज मे दुगुना हो चला था और टीना जी के हाथ में भी नहीं समा पा रहा था। वासना ने लन्ड पर फैल रही नसों को रक्त से लबालब कर दिया था। काले कोबरा नाग जैसा फन उठाये था और टीना जी की गोरी उंगलियों में जब्त। उंगलियों पर लंबे नाखून और लाल रंग की नेलपालिश उनके मन्झे हुए हाथ जय के लन्ड के सिरे को अपनी गीली पन्टी से सटा कार चूत पर रगड़ा रहे थे। चूत के टीके-नुमा आकार पर ऊपर से नीचे वे लन्ड को मसल रहीं थीं। अपनी पैन्टी पर रगड़-रगड़ कर अपने ही पुत्र के तनतनाते लन्ड से हस्तमैथुन करवाने और उससे निप्पल निचुड़वाने का ये दृश्य उनके मन को रोमांचित कर रहा था। |

सोच रहीं थीं कि मन में इतना रोमांच आखिर क्यों है ? हमारे समाज ने कुछ रिश्तों को कड़ी हदों में बाम्ध कर कुछ हदें तय कर दी हैं। पर प्राक्रितिक प्रेम इन हदों को नहीं पहचानता। प्रकृति के नियम तो हर प्राणी को दुसरे प्राणी पर, जब तक दोनों की मर्जी हो, हर तरह से प्रेम व्यक्त करने को बाध्य करते हैं। माता और पुत्र का दिव्य प्रेम भी समाज की इन हदों से कहीं परे है। मातृ- प्रेम की पराकाष्ठा ही टीना जी को यह रोमांच दे रही थी। अपने ही बेटे को सैक्स कला का पाठ सिखते हुए बेटे से जिस्म की भूख मिटाने में उसे कुटिल और औरप्रत्याशित मज़ा आ रहा था। योनि में झुम झुम के सैक्स -हॉरमॉन बह रहे थे। उसे अचानक याद आया कि जय के जिस्म के लिये वासना पहले भि उसमें एक बार जागी थी। काम के ज्वर ने उसके बदन के रोम-रोम को तपा कर रख दिया था पर तब उसने उसे हवाई कल्पना कह के भुला दिया था।

स्विमिंग पूल में छलांग लगाते समय जय का स्विमिंग-ट्रक सरक कर नीचे गिर पड़ा था। उसकी जाँघों और गाँड की फड़कती माँसपेशियों को देख कर उसने क्या लुफ्त उठाया था। और जब वो हड़बड़ाया सा दुबकियाँ लगा कर अपना ट्रन्क पूल में खोजने लगा तो उसकी ट्रन्क लेकर तैरती हुई उसके पास पहुंची थी वो। फिर अचानक ही पानी कि सतह पर वो उभरा था तो उसके गरम लन्ड ने उसकी ठण्डी देह पर स्पर्ष से एक करन्ट सा कौन्ध गया था। टीना जी के भीतर के सैक्स पशु ने उन्हें लपक कर लन्ड को दबोचने को उकसाया तो बहुत पर जैसे तैसे उन्होंने खुद पर काबू पाया था। पर मर्यादा से ज्यादा देर वहीं खड़े रह कर जय के लन्ड को अपनी जाँघों पर मसलने दिया था। अब मालूम होता था कि जय तभी से उनके जिस्म का भूखा था। अपने ही बेटे को इस तरह अपने कामुक बदन पर आकर्षित कर पाने से टीना जी
और भी कामोत्तेजित हो रहीं थीं।
 
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15 माता-पुत्र मिलन

जय के हाथ अब मिसेज शर्मा के नितंबों पर थे। उनके स्तनों को के बाद अब उनकी छिकनी गोल गाँड के माँस को निचोड़ कर दबाने का मजा वो ले रहा था। उसका लन्ड टिन्ना जी की पैन्टी लिप्त चूत पर और भी टाईट रगड़ रहा था। अपनी माँ की मटकेदार गाँड को हाथों में भर कर अपने तने लन्ड को उनकी चूत पर ठेलते हुए उसके जिस्म में जानवरों सी सैक्सोत्तेजना जाग रहीं थी।

गाँड़ पर जय के हाथ पाकर टीना जी के मुँह से दबी सी चीख निकल गई और वो पीछे बिस्तर कि तरफ़ जय को अपनी तरफ़ खेंचते हुए ले गयीं। जैसे ही टीना जी के तलुवे बिस्तर के किनारे को छुए तो वे पीठ के बल बिस्तर पर गिर पड़ी और जय को अपनी देह के करीब झुकाते हुए नीचे को खींच दिया। औरत जैसे ही ताकतवर पुरुष को जांगों के बीच पाती है तो खुद-ब-खुद टांगें खोल देती है। लिहाजा बेटे के लिये टीना जी ने मचलते हुए जाँघों को चौड़ा कर चूत के कपाट का ताला जय के दनदनाते लन्ड के लिये खोल दिया।

जय ने गर्व से अपने विशाल लन्ड के साये में अपनी माँ के मचलते जिस्म को, जिसे आज उसके लन्ड ने फ़तह किया था, एक नज़र देखा। उनका सल्वार सूट कमर पर इकट्ठा हुआ पड़ा था, गोरे-गोरे मम्मे उसके निचोड़ने से लाल होकर दो रसीले खरबूजों की तरह बाहर झांक रहे थे। अपने सर को माँम की छुहाति पर झुका कर निप्पलों को चूसता हुआ मातृ प्रेम का रसास्वादन करने लगा। । “ओह ! जय चूस ले मम्मी के स्तन। मुझे निहाल कर दे मेरे लाल ।” टीना जी ने जंगली लहजे में अपने कुल्हों को बेटे के घोड़े जैसे लन्ड पर रगड़ते हुए कहा।

जय का लन्ड ने साँप की तरह अपने बिल की टोह खुद ही ले रहा था। और इस बार लन्ड से चूत के अलौकिक स्पर्श के दैवी आनन्द ने कामोत्तेजित जय के सब्र का बाँध ही तोड़ दिया। वो अपनी माँम की पैन्टी से लिपटी चूत पर दे लगा मारने अपना लन्ड। टीना जी ने पैन्टी के महीण सैटिन के कपड़े से अपनी चूत के चोचले पर अपने बेटे के शक्तिशाली लन्ड के प्रहारों को पड़ते हुए महसुस्स किया।

“मादरचोद ने बैल जैसा ताकत्वार लन्ड पाया है! पैन्टी को चीर कर जैसे अभी चूत में घुसा जाता है !” इस बेहयाई से भरे खयाल ने उसके सब्र के बाँध को भी तोड़ दिया।
“ऊह्ह जय !!” अपनी चूत की गहरयीं मे अब मस्ती की लहरें उछलती महसूस कर रही थी।
“जय बेटे! हे ईश्वर! मैं तो ..! जय! मम्मी अब झड़ रही है !”
 
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माँ के कुल्हे उचक उचक कर जय के लन्ड को टक्कर दे रहे थे। जैसे जैसे उसका जिस्म जय के नीचे मचल रहा था, वैसे वैसे उसका मुँह मस्ती एक निःशब्द चीख में खुला हुआ था। जय ने और जोर से अपने लन्ड को टीना जी की फुदकती चूत पर दनादन मारा। उसके टट्टे वासनना की आग में उबलते वीर्या से लबालब को कर ऐंथ रहे थे। उसने आज तक किसी स्त्री को सैक्स के चरम आनन्द (ऑरगैसम) में मचलते हुए नहीं देखा था। और उसके किशोर मन को इस बात ने और भी चौंका दिया था कि बिना लन्ड के चूत में डाले ही कैसे वो झर कर ऑरगैसम प्राप्त चुकी थी।

| और ऑरगैसम भी क्या धड़ाके का। कमाल का पन्च था इस ऑरगैसम में। सच कहते हैं। सैक्स - संतुष्टी शारीरिक से अधिक एक मानसिक स्तिथी है। सैक्स - सतुष्टी प कर वो कंपकंपा गई थी और आंखें मूंछ कर निर्जीव सी वहीं लेट गयी थी। बिस्तर पर अपने ही बेटे के सामने नन्गी पसरी हुई थी - उसका लन्ड अब भी उसकी चूत से सटा हुआ और गाँड आधी बिस्तर से बाहर। अपने जिस्म पर आच्छादित हौली-हौली कोमल अनुभुतियों से ओत-प्रोत हो कर उसने जय के हाथ अपनी कमर को जकड़ते महसूस किये। वो उसकी गीली पैन्टी को उसकी कंपकंपाती जाँघों के ऊपर से सरका रहा था। सैक्स - संतुष्टी मिल जाने के बाद उसे बाकायदा बेटे से सैक्स क्रीड़ा कर के इस रिश्ते की आखिरि हद को तोड़ने में अब एक झिझक लग रही थी।

बेटे के लन्ड से हस्तमैथुन करना एक बात थी, और पुर्णतयः सैक्स सम्बंध स्थापित करना दूसरी बात। । बहरहाल, जय ने मिसेज शर्मा के सूट को उनके सिर के ऊपर निकाल कर उतार डाला था। अब उनका पूरी तरह से नण्गा, हाँफ़ता जिस्म अपने बेटे के सामने पड़ा था। उसका लन्ड फूँकारता हुआ पाप का डंक मारने को बेकरार हो रहा था। माँ के कमजोर से विरोध को नजरअंदाज कर के जय उनकी खुली हुई जाँघों के बीच लपका और हाथों से पकड़ कर अपने लन्ड के लाल बल्बनुमा सिरे को कोख़ के द्वार पर टेक दिया। |

उसी कोख़ पर जिससे उसने शिशु रूप में जनम लिया था। और आज वो पुरुष रूप में अपनी जन्मजाता कोख में वापस घुसने आया था। क्या वो घुस कर अपना जीवन -बीज वीर्य उस कोख में उडेलेगा ? स्वयं के जनन और इस सैक्स क्रिया के बीच के अलौकिक सम्बंध के बारे में इस विचार ने उसे सर से पाँव तक सिहरा दिया।

एक पल उसने घने झांटों के बीच से झांकती लालिमा से भरी चूत को देखा। अब भी जैसे कांपती सी उसके आधे गड़े फूले हुए सुपाड़े को चपड़-चपड़ चूम चूम कर चूसती हुई अपने अन्दर लेना चाह रही हो।
 
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16 पुत्र ने सीखा

मिसेज शर्मा ने ऊपर जय के चेहरे पर देखा तो उसकी आंखों में माँ के प्रति पुत्र का निश्छल प्यार उमड़ता पाया। फिर उन्होंने उसके काले फड़कते लन्ड के सुपाड़े को अपनी लाल चूत के होंठों को पाटे हुए देखा। पुत्र को इस घोर पाप का कृत्य करने जाते देख उनके होश उड़ गए। हालंकि उनकी माद इड़ियाँम चीख-चीख कर उन्हें उकसा रहीं थीं, पर उनके मन में कहीं तो समाज का डर था जो प्रेम की इस अभिव्यक्ति को पाप की संज्ञा देता था।

“रुको जय! हम ... हम ऐसा नहीं कर सकते !” मिसेज शर्मा ने पुत्र को दूर हटाने की एक दुर्बल सी चेष्टा की। पर पुत्र प्रेम ने उनके तन को दुर्बल कर दिया था। इससे पहले कि वो अगला लफ़्ज़ कह पायें जय ने निर्दयता से एक ही झटके में अपना पूरा लन्ड माता की योनि में घुसा डाला।

“ जय! क्या चीर डालेगा माँ को ?” पुत्र के भीमकाय लिंग को एक ही बलशाली झटके में अपनी योनि की गहराइयों में उतरता महसूस कर के टीना जी बोलीं।
आहिस्त! मादरचोद आहिस्ता से! दर्द होता है! मेरे लाल प्लीज जरा धीरे-धीरे।”

** ओह अम्मा! कितनी टाईट हो तुम! सालः . जय खुल कर बोल नहीं पाया।

बोल जय! खुल कर बोल मम्मी से !”

“म मैं कह रहा था! साली चूत तो इलास्टिक जैसी टाइट है!” अपने बेटे के मुंह से बेधड़क बेशर्मी से निकलती रंडीखाने वाली भाशा ने टीना जी को और अधिक उत्तेजित कर दिया। माता ने अपने कूल्हे उचका कर पुत्र के अधीर लिंग की पूर्ण लम्बाई को अपनी गहरी योनि में निगल लिया।

जाँघों के बीच देखा तो पाया कि पुत्र का काला मोटा लिंग उनकी योनि के फैले हुए होंठों के बीच चपा-चप्प आवाज करता हुआ कोख की गहराईयों को छू रहा है। । “हरामजादा! बाप जितना बड़ा है!” बेटे के पौरुष तथा बल पर एक आश्चर्य हो रहा था उन्हें। आश्चर्य के साथ ही आनन्द भी। उनके सत्रह बरस के पुत्र का लिंग उनकी लचीली योनि सामान्य से कुछ अधिक खींच कर एक मीठा दर्द दे रहा था।

आश्चर्य जय को भी था। माता की योनि शिशु के जनं के बाद कुच बड़ी और ढीली हो जाती है। पर अनुमान के विपरीत योनि को तंग और लचीली पा कर उसे एक सुखद आश्चर्य हुआ था। इतनी तंग थी योनि कि उसकी एक- एक माँसपेशी, एक एक धमनी को अपने लिंग की संवेदनशील त्वचा पर अनुभर कर सकता था - जैसे रबड़ के दस्ताने पर।

जय ने अब माँ को बदस्तूर चोदना चालू किया। अपने ताकतवर शरीर का भार कोहनी पर टेक कर अपने कुल्हे आगे पीछे चलाने लगा, पहले तो साधारण गति में और फिर जैसे-जैसे माता के तरल मादा-द्रवों से लिंग और योनि का संगम स्थल चिकना होता चला गया, तो अधिक गति से।
। जय अपने लिंग को दनादन बलपूर्वक अंदर अपनी माता की योनि में मारता और बाहर खिंचता
 
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पुत्र के लिंग की घर्ष क्रिया में इतना बल था कि टीना जी काँटे पर फसी मछली जैसे हुए बिस्तर पर मचलते हुए हाँफ़ने लगीं। माता-पुत्र की सैक्स-क्रीड़ा में वो ऊर्जा थी की टीना जी सिसकियाँ लेने लगीं - मालूम नहीं मारे लज्जा के या मारे आनन्द के। जगली बिल्लि जैसे पंजों से बिस्तर की चादर को मुट्ठी में भिंचने लगीं। अपने कूल्हे को ऊपर उठा कर पुत्र के लिंग के हर बलशाली झटके को उतने ही प्रबल ममता भाव से ग्रहण करतीं। उन्माद से सर को पीट रहीं थीं जैसे बदन में प्रेतात्मा का कब्जा हो।

योनि की बाहरी संवेदनशील त्वचा पर पुत्र के मोटे लिंग की घर्ष क्रिया से उत्पन्न अनुभूतियों में उनका सर झूम रहा था। गाँड तो ऐसे चक्कर मार रही थी जैसे गन्ने का रस निकालने वालि मशीन। अपने उन्माद में उन्हें इस बात का बिल्कुल खयाल नहीं था कि उन्हें का सत्रह बरस का पुत्र उनकी काम-क्रीड़ा में सहभागी है।

* मादरचोद जय! माँ का दूध पिया है तो चोद अपने काले मोटे लन्ड से मम्मी की चूत !” टीना जी ने दाँत भींचते हुए नागिन सा फुफकारा।।

जय ने नीचे अपनी माँ की पटी हुई जाँघों के बीच अपने लिंग को मातृ योनि में भीतर-बाहर फिसलते हुए देखा। लिंग बाहर को खिंचता तो घने रोमदार योनि-पटल उससे चिपके हुए बाहर दिखते, जब लिंग भीतर को लपकता तो अपने साथ उन्हें भी अंदर छिपा देता। वो लचीली मातृ योनि को अपने लिंग पर लिपटता और उससे खिंचता देख भी सकता था और अनुभव कर सकता था। इस लाजवाब खयाल ने उसकी उत्तेजना को हज़ार गुना बढ़ा दिया था।

कराहते और हुंकारते हुए मिसेज शर्मा ने अपनी टांगें ऊपर को उठा कर अपने घुटने छाती से लगाये और पुत्र के लिंग से अपने जननांगों के संगम स्थल को और तंग भींच दिया। उनके पति को यह कामासन अति प्रिय था। स्त्री जब अपनी टांगें ऊपर को उठा कर घुटनों को स्तनों पर भींचती है तो योनि सबसे अधिक फैली होती है। योनि के अति संवेदनशील शिरा भाग के पुरुष की हड्डी के ऐन नीचे होने से स्त्री को भी अत्यंत आनन्द मिलता है। यह पाश्विक मुद्रा पुरुष को अचानक और बहुत उत्तेजित कर सकती है। साथ ही जननांगों का संगम भी बहुत गहरा होने के कारं गर्भ धारण के लिये भी उत्तम आसन है यह।

| जय के झूलते उदर का सीधा प्रहार उनकी टंगों के द्वारा अब टीना जी की छाती पर हो रहा था जो उनके फेफड़ों से हवा को पम्प की तर्ह निकाल फेंकता था। हाँफ़ते हुए भी माँ ने अपनी कोख के लाल को लाड़ से गालियाँ देना जारी रखा।

“कुतिया की औलाद! चोद अपनी माँ का भोंसड़ा! देखें कितना जोर है !” “साले पिल्ले अपनी छाती से तुझे दूध पिलाया था इसी दिन के लिये !” आज तेरे टट्टे नहीं सुखा दिये तो कुत्ते का सड़का पियूँगी !” हरामजादे एक सैकन्ड भी रुका तो गाँड फाड़ दूंगी।” बाहर क्या हिला रहा है ? और अंदर घुसा !” मादरचोद तेरे बाप का लन्ड था यहाँ कल रात ।” उन्ह उन्ह उन्ह उन्ह ! आउच! उन्घ्ह उन्ह उन्ह उन्ह उन्ह” मम्मी! देख तेरा बेटा तुझे चोद रहा है!”

मम्मी! मेरा लन्ड आपकी चूत में बहने वाला है !” * इंह आह ! इंह आह्ह! इंह आह !” ऊह्ह्ह! जय बेटा! उडेल दे अपने टट्टों का तेल मेरी चूत में! मेरी चूत तेरे गरम वीर्य की प्यासी है! बस बेटा ऐसे ही! अब झड़ने ही वाली हूं! और जोर से! ओह मादरचोद !”
 
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17 आवेश

मिसेज शर्मा का पूरा बदन जवान बेटे के अद्भुत जोशीले कामबल को झेल-झेल कर निरंकुश वासना से जल रहा था। लन्ड के बाहर खिंचने पर उनकी योनि उस पर लिपटती जाती और लन्ड के वापस उनके अन्दर झोंकने पर योनि फैल कर कठोर पुर्षाग के हर इंच को निगल लेती।

टीना जी ने अपनी जाँघे पूरी फैला कर योनि को अपने उन्मत्त पुत्र के दनदनाते लन्ड के झटकों के लिये समर्पित कर रखा था। अपने बुरी तरह से चुदती हुई योनि की गहराईयों से अगले ऑरगैसम की उमड़ती गर्माहट ने उनके होंठों से एक सिसकी निकाल दी थी। बेटे के चेहरे की तरफ़ पलके फड़का कर जब उन्होंने अपनी आँखें खोली तो पाया कि जय की भी आँखों में वैस ही शुरूर था। जाहिर था कि वो भी अब झड़ने ही वाला था।

“ऊउंह! चोद! ओओओओ, चोद डाल मम्मी को! मैं तो झड़ी !” टीना जी चीखीं। काम -संतुष्टी की लहरें उनकी धमकती ऐंठती योनि के हिरोबिन्दु से बाहर पुरे बदन पर उमड़-उमड़ कर फैल रहीं थीं।

माँ की वासना भरी बेशरम चीखें सुन कर जय और अधिक उतावला हुआ और अपनी माता को और बल से चोदने लगा। उसके कूल्हे दे पटक पटक ऊपर-नीचे हरकत कर रहे थे। जय का कठोर लिंग माता की फड़कती योनि की नर्म गहराईयों में पुत्र- प्रेम की पावन भावना से गर्माहाट उड़ेले देता था।

अपने प्रति पुत्र के हृदयानुराग की इस अभिव्यक्ति ने माँ को निहाल कर दिया। अपनी सिहरती कोख़ पर पुत्र के बलशाली लिंग के हथौड़े जैसे प्रहारों के तले टीना जी को अपनी जाँघे मोम की तरह पिघलती सी लगीं, नेत्रों के सामने चरमानन्द की धुंधलाहट छाने लगी। वे अपनी ऐंठती कमर को ऊंचा उठा कर योनि के संवेदनशील शिरोबिन्दु को पुत्रलिंग पर मसलते हुए झड़ने लगीं। पुत्र से सम्पन्न हुई पाशविक संभोग के आनन्द - भंवर में डुबती सी चली जा रहीं थीं।
 
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“मेरे लाल! ओहह, जय” मिसेज शर्मा कईं बार कराहीं थीं। जय की उखड़ती साँसों, मन्द पलकों और भिंचते जबड़े से उस पर बड़ता तनाव साफ़ जाहिर होता था। टीना जी ने चर्मानन्द की दिव्य अनुभुति में उसके फुदकते हुए नितम्बों को ने अपनी बाहों के मातृ पाश में ले कर अपनी कोख में और अन्दर खेंच लिया। काम क्रीड़ा के परमानन्द के अन्तिम पलों में उनका पूरा बदन थरथरा उठा। स्फुटित होती आनन्द तरोंगों से योनि जकड़- जक्ड़ कर पुत्र के दीर्घ लिंग को भिंचती जाती थी। अपनी चीख को दबाने के लिये टीना जी ने निचले होंठ को दाँतों से काट खाया। उनके तीखे नाखुन जय कि भींची हुई गाँड पर निर्दयता से कसे जाते थे। |

अपनी वासना लिप्त माँ के मादा जानवर जैसे ऐंठते तन को देख कर जय के सब्र का बाँध टूट पड़ा। हाँफ़ता हुआ, साँड सा हुंकारता हुआ, अपने सर को पिच्छे कि तरफ़ फेंकता हुआ अपने गरम, खौलते वीर्य की लबालब बौछारें माँ कि योनि की गहराईयों मे उडेलने लगा। पुत्र के वीर्य की फुहार ने टीना जी कि योनि में उन्माद की कईं फड़कती थरथराहटें पैदा कर दी। योनि के जकड़ाव - फैलाव की तीव्रता और बढ़ गई। वीर्य स्खलन के आवेग में जय के हाथ लपक कर माँ के पसीने से तर स्तनों पर जकड़ गये थे और उनके मातृ - गौरव को निचोड़ रहे थे। साथ ही वो अपने पौरुष के पिघलते मलाईदार वीर्य से माता की योनि को लबालब भरे देता था। टीना जी चीख पड़ीं - चीख में उनके पाप - कृत्य से उत्पन्न लज्जा और अभूतपूर्व वासना सम्मिश्रित थी। उनका पुत्र उनकी योनि में वीर्य स्खलित कर रहा था। उन्होंने अपने ही पुत्र को काम - क्रिया का सहभागी बनाया था। कितना उत्तेजक था यह कृत्य! जैसे ही पुत्र-वीर्य की पहली बौछार का अनुभव उन्हें हुआ था, उन्होंने जय के फौव्वारे से लिंग को कस के भींच लिया था, कहीं उनके जवान बेटे के उपजाऊ वीर्य की एक भी बूंद व्यर्थ न हो जाए। बेटे जय को और उकसाते हुए बोलीं थीं वे :

* शाबाश बेटा जय! उडेल दे सारा जूस मम्मी की गरम चूत में !” ।
हरामी कैसे चूस चूस कर निप्पल से दूध पीता था! अब वैसे ही तेरे लन्ड को निचोड़ दूगी !”

देखें कितने लीटर स्टोर कर रखा था टट्टों में !” * मेरी कोख़ लबालब कर दे मेरे लाल !”
 
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जय कराहता हुआ अपने अडकोष को निचोड़- निचोड़ कर सर्र- सर्र माता की योनि में विर्या को खाली कर रहा था। टीना जी हर बौछार को गिनती जा रही थीं:

“आठ! आह! नौ! एक और बार! दस्स !” हर बौछार के साथ टीना जी जय के नितम्बों को पंजों में जकड़े अपनि योनि के और भीतर धकेले देती थीं।

. ' 'तेरह ।” टीना जी हैरान थीं कि वीर्य की आखिरी बौछार के बाद भी जय ने काम-क्रीड़ा बन्द नहीं की थी। अलौकिक सैक्स- संतुष्टि के बाद भी उसका लिंग काफ़ी कठोर था। यही तो अन्तर है जवान लड़कों में और मेरे पति में - झड़ने के बाद तुरन्त दूसरी बार लन्ड तन जाता

“ऊ, जय लाजवाब सैक्स था !” टिन्न जी ने कमर मटकाते हुए चहचहा कर कहा।

मुस्टन्डे! मम्मी की चूत में एक दर्जन बौछारें उन्डेली और तेरा लन्ड अभी भी तना हुआ है! लगता है ये लन्ड मांगे मोर ?” ।

“ये प्यास है बड़ी!” दोनों पेप्सी-कोला के विज्ञापन की इन लाइनों को दुहरा कर खिलखिलाते हुए हस पड़े।

जय बड़े लाड़ से अपने लिंग की लम्बाई को माँ की योनि के अन्दर आगे-पीछे सड़प - सड़प फिसलाने लगा। टीना जी की योनि सैक्स के उपरान्त स्त्राव के लिप्त हो कर गरम और लिसलिसी हो गई थी। उनकि चूत का चोचला एक गुलाबी जीभ की तरह लपक कर उनके बेटे के काले लन्ड को चाट रहा था। मिसेज शर्मा को विश्वास नहीं हो रहा था कि इतने शीघ्र ही उनका बेटा उन्हें फिर उत्तेजित कर लेगा। कुछ सैकेन्दों में उन्हें फिर वही मीठा सा दर्द अपनी इन्द्रीयों मे उमड़ता सा प्रतीत हुआ। सिर्फ आधे घन्टे में ही क्या वे तीसरी बार झड़ने वाली थीं
 
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18 एक वादा

* अहा जय! फिर चोदो न मुझे !” मिसेज शर्मा ने उखड़ती साँसों में फ़र्माईश की।

जय की कमर के हर झटके के साथ उसके अंडकोष थप्प-थप्प कर माँ के उठे हुए नितम्बों पर टक्कर करते थे। टीना जी एक अंगड़ाईं लेकर बिस्तर पर पीछे लेट गयीं और अपने बदन को पुत्र के कामवेश में समर्पित कर दिया। दोनों में सैक्स के लिये बराबर उतावलापन था। कूल्हे उचका कर उन्होंने अपनी योनि को पुत्र के सनसनाते लिंग पर कसा और अजगर की तरह जकड़ - जकड़ कर अपनी मांद मे निगला।

उसके जवान बेटे का जिस्म उसे वासना से अभिबूत कर देता था। जरा सी देर में काम-कला में कैसी महारत हासिल कर ली थी उसने! क्या जबर्दस्त मर्दानगी थी मुस्टन्डे चोदू में! स्माज इसे पाप कहाता हो तो कहे, उसे समाज की परवाह नहीं। कितना आनन्द था इस पाप में। दो पल की तो जिन्दगानी है, जितना मज़ा लूट सकती है, लूट ले! किसी से भी, कहीं भी चुदवा ले! और इस बात कि भनक भी किसे पड़ सकती है ? क्या लाजवाब लन्ड है जय का - लम्बा और मोटा। ऐसे लन्ड से चुदने का लुफ्त क्यों छोड़े वो ?

| ऐसे खयाल उसके मस्तिष्क में कौन्ध रहे थे। और उसी “लाजवाब लन्ड” ने उसे फिर बहुत आनन्द दिया। पुत्र के प्रचण्ड पुरुषांग से कामदेव ने अपना मीठे बाणों से अनेक बार उनकी वासनेन्द्रियों पर मीठा प्रहार किया। उसके प्रबल युवा अंडकोश ने फिर एक बार गाढ़े मलाईदार तरो-ताज वीर्या की कईं धाराएँ माँ की प्यासी कोख में बहा दीं। इस बार तो जय का यौवन - बल भी सम्पूर्तः व्यय हो चुका था। उसका थका हुआ शरीर माँ की छाती पर गिर पड़ा। टीना जी ने अचानक अपनी छाती पर पड़े इस भार से एक गुर्राहट निकाली। उनकी ऊपर उठी हुई टांगें फिसल कर उसके बदन के दोनों तरफ़ बिस्तर के नीचे लटक पड़ीं। बड़े ही लाड़ से उन्होंने अपने दोनों हाथों से उसकी पसीने से तर पीठ को सहलाया। ममता भरे आलिंगन में बाँध कर
पसीने से तर नंगे जिस्म से कस कर चिपटाया। दोनों कछ मिनटों तक बिस्तर पर सुस्ताते रहे, फिर जय बिस्तर से उठ कर नीचे फ़र्श पर बैठ गया।
 
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“मम्मी, ठीक तो हो ?” अपनी माँ की आँकों में शर्म देख कर वो बोला।

मैं तो ठीक हूं बेटे। पर हमें ये सब नहीं करना था। मैं खुद पर काबू नहीं रख पाई। अब क्या होगा ?”

“क्यों मम्मी ? क्या आपको बिल्कुल मजा नहीं आया ?” ।

“अरे बाबा! उसी की तो चिंता है। इतना मजा तो लाईफ़ में कभी नहीं आया! पर माँ और बेटे के बीच ऐसा सोचना भी पाप है, और मैने तुझे भी इस पाप में भागीदार बना डाला !” टीना जी उठते हुए बोलीं।

“पर मम्मी, अगर दोनो अपनी मर्जी से ऐसा करते हैं तो इसे पाप क्यों कहा जाए ? कब से बेटे का माँ पर प्यार जताना पाप हो गया ?”

जय के उस इस तर्क का जवाब टीना जी के पास नहीं था।

तेरी बात में एक मासूम सच है जय। पर सोच तेरे डैडी को पता चले तो क्या बोलेंगे ?” *

उन्हें भला कैसे पता छलेगा मम्मी ?” जय ने बदमाशी से आँख मारते हुए कहा।

डैडी का बेटा! बड़ा चालाक बनता है।” मिसेज़ शर्मा ने अपनी पैन्टी को अपनी माँसल जाँघों पर से ऊपर चढ़ाते हुए मन ही मन कहा
 

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