Adultery पत्नी खुश तो पति भी खुश (लघु कथा)

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" अब मूड बन गया है "


कारेल मिया हस्ते हुए गुंजन को फिर से पीठ के बल लिटा के लन्ड घुसा के बाहों में भर लिया । और मुस्कुरा के बोला " तो मेरी भाभीजी को बड़ा लन्ड चाहिए मेरा "

" बकवास मत करो । बोहोत देर हो गई है । कोई नौकर यहां आ गया तो " गुंजन की आवाज में अब गुसा थी

" कोई नही आयेगा अभी तो सिर्फ 7 बजे है इस वक्त खाना थोड़ी बन के तैयार होगा । बोलो चाहिए ना मेरा "

" चाहिए इसलिए तो बोल रही हूं "

कारेल ने उसकी आंखो में देख के खींच के जोरदार झटका मारा जिससे गुंजन गला फाड़ के चिंख पड़ी । जितनी तकलीफ हुई थी उससे कोई गुना ज्यादा उसे मजा आई थी उस झटके से और वो खुद कारेल की होंठ चूसने लगी थी । और कारेल तेजी से चोदने लगे ।


l" भाभीजी आपका नशा गायब हो गया क्या "

" हांहहह अब सही से दिखाई दे रहा है उन्ह्ह्ह । प्लीज रुकना मत "

कारेल सोच रहा था इतनी जल्दी नशा खत्म हो गया मेंने तो 8 बंद डाले थे । लगता है सेक्स की जोश के कारण असर कम हो गया होगा । मुझे तो आज इसकी पूरी रात लेनी है ।


गुंजन फिर गर्म हो गई थी । कारेल के सहनशीलता देख के कायल हो गई थी । दोनो के पसीने निकल रहे थे बंद बंद । यूं तो गुंजन किसी दूसरे मर्द की पसीने की गंध से उल्टी आने को होती थी l
 
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लेकिन कारेल की मर्दानी महक उसे इतना भा रही थी की वो कारेल के गर्दन पे नाक रगड़ के उसके महक को जहन में उतर रही थी । और खुद नीचे से कमर उछाल रही थी । कारेल भी पूरे जोश में था । एक दूसरे को मात देने की कशिश कर रहे थे ।


" भाभीजी तुम्हे मजा आ रहा है ना "

" हां हरामी ,आह्ह्ह्ह आप से तुम पे उन्न्ह्ह आ गए । प्लीज रुकना मत उह्ह्ह्ह "

" शिंता मत करो । तुम्हारे पति की तरह तुम्हे अधूरा नही छोड़ूंगा ।"

" हुन्ह्ह "

" किस्से ज्यादा मजा आ रहा है अब बताओ जरा भाभीजि । आपके पति से , उनके खिलौने से याह मेरे से " ये बोल के उसने खींच के फटका मारा


गुंजन की सांस फिर से चढ़ गई थी । सांस लेना मुस्किल हो गई थी उसकी । वो झाड़ने की क़रीब थी । बेशर्मी से कारेल चेहरे को दोनो हाथों में ले के उसके आखों में आंखे डाल के बोली । " जाहिर हैंहह्ह्ह्ह । आह्ह्ह आपके जैसा उन्ह्ह्ह मजा नही दे पाते वो । ओन्ह्हह कुछ भी कहो आपका हथियार कमाल का हां "

" तुम्हे आज पूरी रात चोदूंगा "
" फट जायेगी मेरी हुन्ह्ह तो आह्ह्ह्ह "

" फटने के लिए ही बना है । देखना सुबह उठने लायक नही चोडूंगा भाभीजी तुम्हे "

" हाहाहाहा देखते हे उह्ह्ह्ह में मर गई "

" देखना भाभीजी रात को तुम्हे इतना थका दूंगा की तुम जिंदगी भर इस कारेल मिया नही भूलोगी ।"

" ओःःह्ह्ह । ओःह्ह्ह्ह में गई कुत्तेतेतेतेते "


कारेल मिया का भी बदन अकड़ने लगे । और वो भी डहार मार के झाड़ गए गुंजन की चूत की गहराई में दबा के गर्म लावा छोड़ दिया । दोनो बुरी तरह से हाफने लगे ।
 
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जैसे तूफान थमने के बाद ठंडी हवाई के साथ शांत परिवेश बन जाता हैं ठीक उसी तरह दोनों के बीच के माहोल शांत हो गए थे । कारेल मिया तो जैसे मखमल रेशम बिस्तर पे अराम फॉर्माने लगे । उसकी सकुनह भरी आह की स्वर से शायरी निकल गई "
कितना भी कर ले, चाँद से इश्क़
रात के मुक़द्दर मे, अँधियारे ही लिखे हैं "

लेकिन गुंजन के लिए ये शायरी किसी हेवन की निष्ठ गलीज जुबां लगी । अपनी अकड़े हूए शरीर को ले के लड़खड़ाती हुई खड़ी हो गई और किसी तरह
कपरे समेत के पहनने लगी । उसे कपरे पहनते हुए देख के कारेल मिया बोल पड़े "आर इतनी जल्दी क्या हैं । थोरी दूर रुको तो सही थोर बात सीट हो जाए "

लेकिन गुंजन के कोई जवाब नहीं दिए । वो कपरे पहन केव चली गई नीचे । और नीचे जाते ही एक नौकरानी को बुला ली ।

" जी मालकिन "
" एक काम करो कोई ठंडी सी खट्टा शर्बत लाना अभी "
" जी मालकिन । लाती हूँ मालकिन आप कुछ ठीक नहीं लग रहे हैं तबीयत तो ठीक हैं न आपकी "
"हाँ ठीक हूँ में बस थोरी ज्यादा पी ली "


नौकरानी वोहा से चली गई । गुंजन बैथ्टब में ठंडे पानी में डूबकी लगाने लगी । उसका ज्वार फट चुका हैं । जो भी हूया उसका एहसास होने लगा । जब भी इंसानगलती करता हैं तो सबसे पहले गलती के परिणाम के बारे मे सोचता हैं । गुंजन भी अपने किए गलती के परिणाम बके बारे मे सोचने लगी जिससे दुख से ज्यादा वो खौफ से घबराने लगे । वो जानती थी जिस रिश्ते मे बंधन थी उस रिश्ते मे आज की शाम दरारे लाएगी ।
 
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जब मन में बेचैनी हो तो जिंदगी उजड़ने में जरा भी वक्त नही लगता । जब खुद को ही भूल जाए जो खुद ही गम में खो जाए अपनों को क्या खुशी देगा क्या रिश्ता निभायेगा । और उस प्रकृति की तरह गुंजन खुद को शिकारना नही चाहती थी ।

गुंजन के स्वभाव में खुद को औचित्य साबित करने का स्वभाव नही थे । वो हर बात को गहराई से सोचती थी किसी बात का नतीजा क्या हो सकता है सोच समझ के फैसला लेना जानती थी ।

जो हुआ उसके बारे में विस्तार से सोचने लगी । उसे आभास हुआ कि भले ही उस हरामी ने उसका फायदा उठाया गलत तरीकें से चल कपट से लेकिन उसे एहसास थी कही ना कही वो भी बहक गई थी । अन्त में उस गैर मर्द का साथ दे रही थी ।

पछतवाबे के अलावा उसे खुद पर शर्म आ रही थी की वो इतनी गिर कैसे गई । उसे दर होने लगा अब वो निष्ठावान पत्नी की तरह अपने पति से किसे नजरे मिलाएगी । क्या वो अपने पति के पेड़ो में गिर के माफी मांगेगी क्या माफी मांगने से काफी होगा । उसका पति जब इसके बारे में पाता चलेगा तो वो टूट जायेगा उसको जो ढेस पोहोचेगा वो कभी नही उभरेगा । अब वो क्या करे उसे कुछ समझ नही आ रहा था । हिमालय की शिखर में चढ़ के शरीर नही अपने मन को बर्फीली ठंड और तूफान में शांत करना चाहती थी ।

बेवफाई का जाग लग चुका है इसके मर्यादा में जो अब कभी नही मिटने वाले हे । कुलंकित का खुद को ही नही अपनों को नजरो में गिरा देता हे । गुंजन चीख पड़ी " मैंने ऐसा क्यों किया क्यू क्यू "

ठंडे पानी से निकाल के तोलिए से अपनी बदन को पॉच के श्रृंगार - पटल के सामने जा के खड़ी हो गई । आम तौर पर वो नहा धो के मॉइचर क्रीम लॉसन बगेरा लगा श्रिंगर करती लेकिन वो अपनी खुद की दागी परसाई देख रही थी सीसे के सामने ।

शाम ढल चुकी थी रात रस रही थी । लेकिन गुंजन की जीवन में अब चांदनी रात सकून मिटा के बेचैन होने वाली थी ।

जब 9 बजे दामुदार ने डिनर के लिए बुलाए तो गुंजन का बिलकुल भी मन नही कर रही थीं डिनर को । लेकिन उसे दर था कि नौकरको को मालूम था कि वो शाम को उस मेहमान के साथ थी अब अगर वो नीचे नही गई तो कुछ गलत संदेह होगा । इस्लिए वो नीचे गई और कारेल मिया के साथ डिनर की जबरस्ती ।

कारेल मियां के मुंह खाते वक्त भी चुप नही था । बक बक किए जा रहा था । गुंजन को बोहोत परेशानी हो रही थी उसको झेलने में लेकिन नौकरों के आगे वो मजबूर थी ।
 
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डिनर के बाद गुंजन फीकी मुस्कान के साथ कारेल मिया को शुभरात्रि विश कर के अपने कमरे में चली गई ।

बिस्तर पे लेट के यही सोच रही थी की वो अपने पति के नजरों में अब किसे नजर मिला पाएगी । वो अब मैली हो गई हे । क्यों किया उसने । खुद को बहकने से क्यों रोक नही पाई । क्या वो इतनी कमजोर थी ।

रात चामा बांध रही थी लेकिन गुंजन की आखों में नींद नही थी बल्कि लाल हो के सुंज गई थी । तभी दरवाजे पे दस्तक हुई । उसे लगा दामुदार पानी देने आया हे ।

वो दरवाजे पे गई और दरवाजा आधे से ज्यादा खोल दी । लेकिन वो शोक गई क्यू की सामने कारेल हाथ में एक खास कारीगरी किए हुए पिटल की जग ले के खड़ा था ।

" आप । आप यहां क्या कर रहे है । "

" जी मुझे आपसे कुछ बात करनी थी । क्या में अंदर आ सकता हूं भाभीजी "

" नही । कोई बात नही होगी । काल सुबह आप मेरे घर से दफा जो जाना । यही आपके लिए अच्छा होगा । "

गुंजन उसके मुंह पे दरवाजा बन्द करना चाहती थी लेकिन कारेल मिया हाथ से दरवाजा बंद होने से रोका और दो कदम बढ़ा के अंदर आ गया और तो और दरवाजा भी बंद कर दिया ।

गुंजन अब गुस्से में आ गई । " आकी इतनी हिम्मत । खुद को बोहोत बड़ा तुर्रम खान समझते हो क्या । चलिए निकलिए वरना आपके लिए बोहोत बुरा होगा । मत भूलिए की ये घर आपके मालिक का घर है जिसकी वजह से आपके घर मे अन्न आता हे "

" अरे भाभीजी आप तो खमखा गुस्सा हुऐ जा रहे हे । में तो बस माफी मांगने आया हूं ।*

" इस तरह से आधी रात को किसी औरत की कमरे में जबरदस्ती घुस के माफी मांगने आए है । और वैसे भी आपने जो किया उसका कोई माफी नही । कानूनी कारवाई हुई तो आप सलाखों के पीछे होंगे । मुझे मजबूर मत करो पुलीस बुलाने में । सीधे तरीके से मेरे कमरे में निकल जाओ "

" शांत शांत भाभीजी । में बस ये पानी देने आया हूं । भाभीजी ये पर बाबा की दुआ पढ़ाया पवित्र पानी है ये बोहोत असर दार हे पिरित रूह के लिए आजादी दिलाने में । लीजिए ये आपकी मन शांत कर देगा और इससे किए गए पाप से भी मुक्ति मिल जाती है । "

गुंजन का दिमाग और ज्यादा गर्म हो गया । वो गुस्से में अंगारे बन गई " सुवार का बच्चा पाप कर के गंगा डुबकी लगा के सजा से बचना चाहते हो । या फिर से मुझे नशा पिलाने आए हो ताकि फिर से आप मेरी फायदा उठा सकों । " उसने वो जग कारेल की हाथों से चीन के फर्ज पे पटक दिया ।

और सीधे उल्टे हाथ से अनगिनत थप्पड़ मारने लगी । कारेल मिया की कुर्ते फाड़ दिए गुस्से में और उसके चाटी पे पीटने लगे जिससे कोई खरोसे आई कारेल मिया को । लेकिन कारेल मियां ने उफ्फ तक नही किए । लगता है गए गुजरा इंसान था जलील होने पर भी उसे कोई फर्क नही पड़ रहा था ।।।

गुंजन उसे पीट पीट के थक गई और जमीन पे घुटने टेक के बेताशा रोने लगी । " क्यू किया मेरे साथ ऐसा अब ने अपने पति को क्या मुंह दिखाऊंगी । क्यू किया मेरे साथ ऐसा हरामी तूने । "

कारेल मियां उसकी बाह पकड़ के बिस्तर पे बिठा दिया । और अपने साथ लाए हुए साही पानी की जग से एक ग्लास पानी से गुंजन को दिया ।

लेकिन गुंजन ने मुंह फेर ली ।

" अपनी अम्मी की कसम खा के कहता हूं इसमें कोई नशा या धोका नही है । सच में ये पवित्र पानी हे भाभीजी । आप चाहे तो नॉर्मल पानी पी ही पी लीजिए आपको हिसकी भी आ रहीं है"

गुंजन को इतना रोने की वजह से हिस्की आनी शुरू हुई तो उसने भी पानी ग्लास से थोड़ा पानी पी गई ।

कारेल मियां सम्मोहित बरकत से धैर्य से गुंजन को विस्तार पे लिटा दिया और खुद उसके बगल में करवट लिया । गुंजन अभी भी सुबक रही थी ।

" ये आप क्या कर रहे है । कहा ना आप जाइए यहां से " वो करेल मियां को धकेलने लगी ।

लेकिन कारेल मियां ने उसकी दोनो कलाई पकड़ के उपड़ चढ़ के उससे हावी होने की कशिश कर रहे थे । गुंजन भी अपार सक्ति लगा के विरोध करने की कशिश कर रही थी । लेकिन जब उसकी दोनो हाथ कारेल मिया की काबू में थे तो बेचारी कुछ नही कर पा रही थी । लेकिन काफी देर तक उसने लड़ा । कारेल की संगल से निकलने की बोहोत कशिशे की ।

गुंजन की जब सारी ताकत चली गई तो वो थक हार के आखों से आखरी बूंद बहा के शांत पड़ गई । " प्लीज आपसे विनती कर रही हूं । चले जाइए एहा से प्लीज । मुझे और शर्मिंदा मत करिए "
 
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कारेल मिया उसकी थरथराती हुई गुलाबी लबों को सिद्धत से चूसने लगा । गुंजन बस बेजान पड़ी रही थी ।

मन भर के रस पीने के बाद बोला " भाभीजी में बस आज की रात रंगीन बनाना चाहता हूं । काल सुबाह में पक्का यहां से चला जाऊंगा और कभी आपसे इस तरह से नही मिलूंगा बड़ा करता हूं । बस आज की रात आप भी अपनी बंधन से मुक्त हो जाइए और खुद को बेह जाने दीजिए । "

गुंजन नम्रता से बोली । " आपको जरा भी दया नही आ रही है क्या मुझ पर । किस मुंह से अपने पति का सामना करूंगी में "

" भाभीजी ये इक्कीस सदी हे । जमाना बदल गया हे शरीर की जरूरतें पूरा करने में कोई बुराई नही है "

" आपकी सोच घटिया है । चलिए हटिए । पता नही क्यों आपको अभी भी आप बोल के इतनी इतजत दे रही हूं ।"

" क्यू को आपको खुद को अभी तक नही पहचान पाए है "

कारेल मिया उसकी गर्दन चूमने लगा बाहों में भर भींचने लगा अपनी मजबूद बाहों में । उसका भारी बदन गुंजन की मखमली जिस्म बुरी तरह से सिमट के दब्ची जा रही थी । ना चाहते हुए एक दमदार मर्द की एहसास ने उसे धीरे धीरे कमजोर पड़ने में मजबूर कर रही थी ।

जब वासना पूरे जिस्म पे हावी होती हे तो दिल दिमाग की सूज बुज खतम हो जाती है । कारेल मिया उसकी लबों को फिर पीने लगा । गुंजन भी उसका साथ देने लगी जीव से जीव लड़ा के सलीवा मिश्रन करते हुए ।
 

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