Incest एक अधूरी प्यास

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वह ऊपर से ही खुबसुरत लगती है। अपने पति को कैसे खुश कीया जाता है यह कला उसमे बिल्कुल भी नहीं है एकदम ठंडी है ठंडी,,,,,,,,,, मेरी तो नसीब खराब थी जो मेरी शादी उसके साथ हो गई मुझे तो तुम्हारी जैसी बीवी चाहिए थी,एकदम गरम जो बिस्तर पर अपने पति को कैसे खुश कीया जाता है अच्छी तरह से जानती हे।
( इतना कहते हुए अशोक ब्लाउज के ऊपर से ही रीता की चुचियों को दबाने लगा,,,, रीता चूचियों पर अशोक की हथेली का दबाव पाकर मस्त होने लगी वह अशोक की बातें सुनकर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी। रीता यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि अशोक,,,,, कंपनी का मालिक उसकी खूबसूरती का दीवाना है और इस बात का वह पूरी तरह से फायदा उठातीे थी। एक मर्द की उन्नति और बर्बादी के पीछे औरत का ही हाथ होता है। अशोक भी औरतों के पीछे कंपनी का अच्छा खासा फायदा लुटा चुका था और लुटाता आ रहा था। रीता की माली हालत अच्छी नहीं थी वह बड़ी गरीबी में जी रही थी और ऐसे में उसकी शादी उसके मां बाप ने ऐसे लड़के से कर दी जो कि कुछ भी कमाता नहीं था। शादी के बाद उसकी जिंदगी और बदतर होने लगी क्योंकि उसका पति तो कुछ कमाता नहीं था।

एक दिन अखबार में रीता नौकरी का इश्तेहार पढ़ कर अशोक के ऑफिस पहुंच गई। इंटरव्यू लेते लेते बातों ही बातों में उसने रीता की माली हालत का पूरी तरह से जायजा ले लिया,,,, अशोक ऐसी ही औरत और लड़कियों को अपनी असिस्टेंट लगता था कि उसकी हालत खराब हो जो कि पैसों के लिए अशोक की सारी इच्छाएं पूरी कर सके। रीता की मजबूरी को पूरी तरह से फायदा उठाते हुए उसने उसे नौकरी पर रख लिया और एडवांस मे हीं ₹5000 उसके हाथ में थमाते हुए,, ऑफिस में ही उसे अपनी बाहों में भर कर उसके होठों को चूमने लगा। एडवांस मे हीं 5000 मिलने की मेहरबानी को रीता अशोक कीे ईस हरकत से अच्छी तरह से जान गई लेकिन उसके सामने भी कोई दूसरा रास्ता नहीं था तो वह अशोक को ईन्कार ना कर सकी और इंटरव्यू के दिन ही नौकरी और एडवांस में ₹5000 मिलने की खुशी में वह ऑफिस में ही अशोक से चुदवा ली । उस दिन से लेकर आज तक रीता अपने बदन का जलवा अशोक को दिखाते हुए धीरे-धीरे उसने अशोक के पैसे से अपने लिए एक घर और घर के अंदर सुख सुविधाओं का सारा सामान बसा ली।
अशोक धीरे-धीरे रीता के ब्लाउज के बटन को खोलने लगा,,, और रीता भी अपने हाथों से अशोक के पेंट के बटन को खोलकर उसके चेन को नीचे सरकाने लगी,, यही अदा रीता को अशोक की नजर में निर्मला से अलग करती थी। क्योंकि रीता अच्छी तरह से जानती थी कि एक मर्द को खुश करने के लिए औरत को क्या करना चाहिए। अशोक रीता के ब्लाउज के सारे बटन खोल चुका था और ब्लाउज के ऊपर से ही उसके संतरों को दबा रहा था। रीता तो अशोक की ईस हरकत की वजह से गरम हुए जा रही थी और उसके मुंह से लगातार सिसकारी की आवाज आ रही थी।

सससससहहहहहहह,,,,,,,,, आााहहहहहहहहह,,,,,,,, अशोक मेरे राजा ऐसे नहीं पहले मेरी ब्रा और ब्लाउज दोनों को निकाल दो और फिर मेरी चुचियों को मुंह में भर भर कर दबा-दबा कर पीअो,,,,,, रुको मै हीं निकाल देती हूं मेरे राजा,,,,,,( इतना कहने के साथ ही वह ब्लाउज को अपनी बाहों से निकाल सके और अपने दोनों हाथों की से ले जाकर ब्रा के हुक को खोल दी,,,,, और रीता ने ब्रा को भी निकाल फेंकी। ब्रा कोे बदन से दूर होते ही रीता की गोल-गोल नारंगीया अशोक की आंखों में चमकने लगी,,, वह नंगी चूचियों को देख कर पागल सा हो गया और सीधे अपने मुंह को चुचियों के बीच डालते हुए बोला।।


ओह मेरी जान मेरी तो तुम्हारी यही अदा तो मुझे तुम्हारा दीवाना बना दि है। यही सब अदा तो मेरी बीवी निर्मला में नहीं है तभी तो मुझे वह बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती।। क्योंकि खूबसूरती ही सब कुछ नहीं होती औरतों को अपने पति को कैसे खुश करना है यह भी आना चाहिए जो कि निर्मला को बिल्कुल भी नहीं आता। ( इतना कहने के साथ ही अशोक रीता की चूची को मुंह में भर कर चूसने लगा,,,,,, और रीता अशोक की इस हरकत से सिसकारी लेते हुए बोली।)
सससससहहहहहहह,,,,,,, आहहहहहहह,,,,,, अअशोक,,,,,, मैं हूं ना मेरी जान मैं तुम्हें सारा सुख दूंगी,,,, (इतना कहने के साथ ही रहता अंडर वियर में तने हुए लंड को अंडरवियर के ऊपर से ही मसलने लगी,,,, और रीता के ईस हरकत पर अशोक गरम आहें भरने लगा।,,,)

आहहहह,,,,,, रीता,,,,,, ( अशोक के मुंह से बस इतना ही निकला था कि वह रीता की दूसरी चूची को मुंह में भर कर पीने लगा।
अशोक इसी तरह से अपने ऑफिस में रीता के साथ रंगरेलियां मनाता था। लेकिन आज तक इस बात की भनक ऑफिस में काम कर रहे किसी भी कर्मचारी को नहीं लगी। रीता के साथ ही क्या इससे पहले भी जितने भी औरतों के साथ अशोक के संबंध रहे हैं आज तक इस बात की भनक किसी को भी नहीं लग पाई क्योंकि ऑफिस में अशोक हमेशा सख्ती से पेश आता था और जिन औरतों के साथ उसके शारीरिक संबंध होते थे उनके साथ भी दूसरों के सामने वह बड़े ही शख्ती से पेश आता था। इसलिए कभी भी किसी को इस बात की बिल्कुल भी मन नहीं लग पाती इसलिए अशोक के उसके पर्सनल असिस्टेंट के साथ शारीरिक संबंध है।

अशोक रीता की दोनो चुचियों को बारी-बारी से मुंह में भरकर पीने का आनंद ले रहा था। रीता मस्त हुए जा रही थी,वो अपनी चूचियों को चुसवाते हुए धीरे से अशोक के अंडर बीयर को नीचे सरकाई और उसके हथियार को बाहर निकाल कर मुठीयाने लगी,,,, अशोक भी एकदम से चुदवासा हुए जा रहा था।रीता की हर एक हरकत पर अशोक पागलों की तरह ऊससे लिपट चिपट रहा था। रीता बड़े ही उत्तेजक तरीके से अशोक के खड़े लंड को मुट्ठी में भरकर आगे पीछे कर रही थी। अशोक दीवानों की तरह रीता की चुचीयो पर टूट ही पड़ा था।

ओहहहहह,,,, अशोक,,,, मेरे राजा,,,,, आहहहहहहह,,,, और जोर के पियो,,,, खूब जोर जोर से दबाओ,,,,,,,( अशोक भी रीता की बात मानते हुए जोर जोर से दबाना शुरु कर दिया) सससससहहहहहहह,,,,, ओहहहहह,,,,, अशोक,,,,, बस ऐसे ही दबाते रहो बहुत मजा आ रहा है।

कुछ देर तक अशोक रीता की चुचियों से ही अपनी प्यास बुझाता रहा। रीता की दोनों चुचीयां उत्तेजना के असर में अपने आकार से थोड़ी बड़ी हो चुकी थी और अशोक के द्वारा मसलने की वजह से एकदम लाल लाल टमाटर की तरह हो गई थी। रीता तो अशोक के लंड से ही खेल रही थी उसे हल्के हल्के मुठीयाते हुए अशोक को पूरी तरह से गर्म कर चुकी थी।
दोनों पूरी तरह से गर्म हो चुके थे रीता अपनी चुचियों पर से अशोक का मुंह हटाते हुए उसकी आंखों में आंखें डाल कर बड़ी ही नशीली अंदाज में अपने दांत से होठों को दबाते हुए एकटक देखने लगी। अशोक तो रीता की नशीली आंखें देखकर नशे में डूबने लगा और देखते ही देखते रीता उसके होठो को चुंबन करते हुए धीरे धीरे नीचे की तरफ आने लगी और आते-आते उसके शर्ट के बटन खोलते जा रही थी। धीरे-धीरे रीता अशोक की शर्ट के सारे बटन को खोलते हुए घुटनों के बल बैठ गई अशोक कुछ समझ पाता इससे पहले ही रीता ने उसके टनटनाए हुए लंड को अपने मुंह में भर कर चुसना शुरु कर दी। रीता की इस गरम हरकत की वजह से अशोक की तो हालत खराब हो गई उसके मुंह से गरम आहे निकलने लगी।
 
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आहहहहहह,,,,,, रीता,,,, ( अशोक एकदम से उन्माद मैं भर चुका था उसकी आंखें सुख की अनुभूति करते हुए बंद होने लगी। उसका गला सुर्ख होने लगा। रीता को तो जैसे कोई आइसक्रीम कौन मिल गई हो इस तरह से ऊसे मुंह में भर कर चुसे जा रहीे थी। रीता कि यह अदा अशोक को पागल किए जा रही थी और इसी अदा पर तो अशोक पूरी तरह से फ़िदा था। यही सब बातों की वजह से निर्मला दूसरी औरतों से बिल्कुल अलग थी और जिस प्रकार से रीता अपनी अदाओं से अशोक को संपूर्ण रूप से संतुष्टि प्रदान कर रही थी यही अदा वह निर्मला में देखना चाहता था। बिस्तर पर निर्मला को वाह इसी रूप में देखना चाहता था जिस तरह से रीता बिना कुछ बोले अपने आप से ही अशोक को संपूर्ण रुप से संतुष्टि देते हुए खुद ही उसके अंगों से खेल रही थी और उसके लंड को मुंह में लेकर चूस रही थी यही सारी अदाएं वह निर्मला से चाहता था लेकिन निर्मला अपने आप को इस कला में परिपूर्ण नहीं कर पाई। अशोक के कई बार दबाव देने पर निर्मला ने रीता की तरह अशोक को खुश करने की कोशिश की लेकिन उससे यह सब नहीं किया गया वह जब भी अशोक के लंड को अपने मुंह में लेती तो उसका जी मचलने लगता उसे उबकाई आने लगती और फिर वह उल्टी कर देती थी जिससे अशोक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता था और वहां निर्मला को खरी-खोटी सुनाकर उसका अपमान करते हुए उसी हालत में छोड़कर चला जाता था।
रीता धीरे-धीरे अशोक के पूरे लंड को अपने गले तक उतारकर चुशना शुरू कर दी। अशोक तो उसके मुंह को ही ऊसकी बूर समझ कर धक्के देना शुरु कर दिया था।
रीता भी उसके धक्कों का जवाब देते हुए अपने मुंह को ही आगे पीछे करके जोर-जोर से ऊसके लंड को चुसना शुरु कर दी । दोनों कामातूर हो चुके थे कुछ देर तक यूं ही रीता अशोक के लंड को चुसती रही और उसके बाद अशोक को लगने लगा कहीं ऊसका पानी ना निकल जाए इसलिए वह रीता के मुंह में से अपने लंड को बाहर खींच लिया। रीता की सांसे ऊपर-नीचे हो रही थी अशोक एक पल भी रुके बिना रीता की बाहों को पकड़कर उपर की तरफ उठाया और उसे टेबल पर बिठा दिया,,,, टेबल पर बैठते ही रीता को समझ में आ गया कि उसे क्या करना है इसलिए उसने झट से अपनी साड़ी को धीरे-धीरे सरकाते हुए अपने कमर तक चढ़ा ली और अपनी जांघों को फैला दी। अशोक तो यह नजारा देख कर एकदम कामातुर हो गया उससे रहा नहीं गया और वह घुटनों के बल बैठ कर. रीता की पैंटी को एक छोर से पकड़ कर दूसरी तरफ कर दिया जिससे कि उसकी फुली हुई बुर उभरकर एकदम सामने आ गई। रस से भरी रसमलाई को देखकर अशोक अपना मुंह सीधे उस रसमालाई में डाल दिया,,, और जीभ से नमकीन रात को चाटना शुरू कर दिया। रीता तो पागल हुए जा रही थी उसके बदन में उन्माद का संचार बड़ी तेजी से हो रहा था। जैसे-जैसे अशोक की जीभ रीता की रसीली बुर पर इधर उधर घूम रही थी वैसे वैसे रीता की सिसकारी और तेज होती जा रही थी और साथ ही वह अपने दोनों हाथ से अशोक का सिर पकड़कर उसका दबाव अपनी जांघों के बीच बढ़ा रही थी।
अशोक को इस तरह से काफी अरसा बीत चुका था निर्मला की बुर को चाटे। शुरु-शुरु में वह इसी तरह से निर्मला से प्यार करता था लेकिन धीरे-धीरे यह प्यार निर्मला के लिए कम होता है गया। इसी तरह के प्यार के लिए निर्मला तड़प रही थी उसके मन में भी यही होता था कि अशोक उसके साथ ऐसा ही प्यार करें जैसा कि वह रीता के साथ कर रहा था।

ओहहहहहह,,,,, अशोक,,,,,, मेरे राजा,,,,,,, बस ऐसे ही ऐसे ही,,,,,, जोर जोर से चाटो । मेरे राजा मेरी बुर का सारा रस पी जाओ अपनी जीभ से,,,,,,,आहहहहहहह,,,,,,, बहुत मजा आ रहा है अशोक यही मजा पाने के लिए तो मैं तुम्हारे पास आती हुं,,,,,, मेरा पति कभी भी मुझे इस तरह से प्यार नहीं करता,,,,,,, ससससससहहहहहह,,,,, ओोोहहहहहहहहहह,,,,,, म्मांं,,,,,,,, मर गई रे मुझसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा है मेरे राजा,,,,,,,,बस अब बिल्कुल भी देर मत करो,, अपना मोटा लंड डालकर मेरी बुर की खुजली मिटा दो बहुत पानी छोड़ रही है जो चोदोे अशोक चोदो,,,,,

मेरी प्यासी बुर तड़प रही है तुम्हारे लंड के लिए,,,,
 
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ओहहहहहह,,,,, अशोक,,,,,, मेरे राजा,,,,,,, बस ऐसे ही ऐसे ही,,,,,, जोर जोर से चाटो । मेरे राजा मेरी बुर का सारा रस पी जाओ अपनी जीभ से,,,,,,,आहहहहहहह,,,,,,, बहुत मजा आ रहा है अशोक यही मजा पाने के लिए तो मैं तुम्हारे पास आती हुं,,,,,, मेरा पति कभी भी मुझे इस तरह से प्यार नहीं करता,,,,,,, ससससससहहहहहह,,,,, ओोोहहहहहहहहहह,,,,,, म्मांं,,,,,,,, मर गई रे मुझसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा है मेरे राजा,,,,,,,,बस अब बिल्कुल भी देर मत करो,, अपना मोटा लंड डालकर मेरी बुर की खुजली मिटा दो बहुत पानी छोड़ रही है जो चोदोे अशोक चोदो,,,,,

मेरी प्यासी बुर तड़प रही है तुम्हारे लंड के लिए,,,,

रीता एकदम से चुदवासी हो चुकी थी । अशोक जिस तरह से उसकी बुर की चटाई कर रहा था ।उससे उसकी काम ज्वाला और ज्यादा भड़क चुकी थी। एेसे मादक माहौल में रीता की गंदी बातें माहौल को और ज्यादा गर्म कर देती थी और यही बात अशोक को बेहद प्यारी लगती थी जो कि एसी ही उम्मीद वह निर्मला से करता था लेकिन निर्मला नें कभी भी ऐसे उत्तेजक मौके पर गंदी बातें कभी भी नहीं की।
माहौल पूरी तरह से गर्म हो चुका था ऑफिस के टेबल पर रीता लगभग नंगी ही अपनी जांघों को फैलाए बैठी हुई थी,,,, उसके बदन पर अभी भी साड़ी थी लेकिन उसके बदन के सारे नाजुक अंग जो कि कपड़ों के भीतर छुपे होने चाहिए वह सब कुछ नजर आ रहे थे।
आज छुट्टी का दिन वह पूरी तरह से अशोक के साथ ही बिताना चाहतेी थी, वह भी घर से यही कह कर आई थी कि ऑफिस में ज्यादा काम है इसलिए देर शाम को लौटेंगी,,,,
रीता को तड़पती देखकर राहुल भी उतावला हो चुका था अपने लंड को दहकती हुई बुर में डालने के लिए इसलिए वह अपना मुंह उसकी रसीली बुर पर से हटा लिया और खड़ा हो गया। रीता की बुर से नमकीन रस टपक रहा था जिसे देखकर अशोक से रहा नहीं गया और वह तुरंत एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर सीधे रीता के बुर पर टिका दिया,,,,, रीता की हालत खराब होने लगी और देखते ही देखते ही रीता कि बुर ने अशोक के पूरे समुचे लंड को अपने अंदर उतार ली।।
अशोक का लंड रीता की बुर में पूरी तरह से अंदर समा चुका था। अशोक धीरे-धीरे अपने लंड को सीता की बुर में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। रीता की तो हालत खराब होने लगी उसके मुंह से तो सिसकारीयो की जैसे की फुहार छूटने लगी हो,,,,,
ससससससहहहहहह,,,,, आााहहहहहह,,,,,, आहहहहहहह,,,,, मेरे राजा मेरे अशोक,,,,, और जोर जोर से चोदो मुझे,,,,, आहहहह जोर से,,,,,, अपने लंड को मेरी बुर में पेलो,,,, मेरी बुर को पानी पानी कर दो,,, बस एेसे ही,,,,, आहहहहहहह,,,,, ़अशोक,,,,,,,

रीता की ऐसी गंदी बातें सुनकर अशोक जोर-जोर से रीता की चुदाई कर रहा था।
ओह रीता जैसा तुम खुल कर चुदवाती हो वैसा मेरी बीबी कभी भी नही चुदवाती इसलिए तो मुझे मेरी बीवी से ज्यादा मजा तुमसे मिलता है इसलिए तो मैं तुम्हारा दीवाना हो चुका हूं। आाााहहहहहह मेरी रानी,,,, आहहहहहहह,,,,,,

दोनों की सांसे तेज गति से चल रही थी दोनों मस्त हो चुके थे अशोक धक्के पर धक्का लगाए जा रहा था,,,, और रीता भी धक्के का जवाब राहुल को अपनी बाहों में भींच कर दे रही थी। करीब 10 मिनट ही बीता होगा कि अशोक और रीता दोनों की सबसे तेज होने लगी और एक साथ दोनों का बदन अकड़ने लगा। और दोनों एक साथ झड़ गए,,,,,

अशोक इसी तरह से घर के बाहर मस्ती किया करता था वह अपने बदन की प्यास इसी तरह से रीता जेसी औरतों से बुझाया करता था और निर्मला को नजरअंदाज करते हुए उसे प्यासी ही तड़पने को छोड़ देता था। अभी तो महफील की शुरुआत हुई थी यह महफिल तो रात 8:00 बजे तक चलने वाली थी। बरसों से ऑफिस के काम के बहाने अशोक बाहरी औरतों के साथ गुलछर्रे उड़ाता आ रहा था। जिसकी भनक तक निर्मला को इतने सालों में नहीं लग पाई थी।

निर्मला घर के सारे काम कर चुकी थी और उसने शुभम को खाना भी खिला चुकी थी और उसके आग्रह करने पर खुद भी थोड़ा खा चुकी थी। निर्मला को आज थोड़ी शॉपिंग करनी थी इसलिए शुभम के जाने के बाद वह भी मार्केट के लिए निकल गई।
दोपहर हो चुकी थी शुभम खेल के मैदान में पहुंच चुका था लेकिन उसके सारे दोस्त एक ही स्थान पर बैठकर गप्पे लड़ा रहे थे। शुभम कभी भी किसी से दोस्ती नहीं करता था लेकिन क्रिकेट खेलने की वजह से सोसाइटी के लोगों से ही दोस्ती हो चुकी थी। जितने लोगों के साथ में क्रिकेट खेलता था सभी अच्छे घर पर थे और अच्छी-अच्छी महंगे स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे। किसी की मम्मी टीचर की तो किसी के पापा इंजीनियर तो किसी के पापा डॉक्टर इस तरह से सभी लड़कों के मां बाप अच्छे खासे पढ़े लिखे और अच्छे पद पर नियुक्त थे। इसलिए इनसे दोस्ती करने में शुभम को कोई भी हर्ज नहीं था क्योंकि वह हमेशा गंदे और छिछोरे लड़कों से दूर ही रहता था। हां थोड़ी बहुत मजाक मस्ती यह लड़के भी कर लेते थे। लेकिन आज वह जो बातें मजाक मजाक में इन लड़कों के मुंह से सुन रहा था ऐसी बातें वह आज तक कभी भी अपने कानों में नहीं पड़ने दिया था । शुभम पहुंचते ही उन लड़कों से बोला।

क्या यार आज तुम लोग इस तरह से क्यों बैठे हुए हो मैं तो क्रिकेट खेलने आया था लेकिन तुम लोग क्रिकेट ना खेल कर बस ऐसे ही बैठे हुए हो।
( शुभम की बातें सुनकर उनमें से एक लड़का बोला)

हां यार कर भी क्या सकते हैं क्रिकेट खेलने तो हम भी आए थे लेकिन गेंद ही हो गई,,,,,,,,

यार सारा मूड ऑफ हो गया आज छुट्टी का दिन था तो सोचा चलो क्रिकेट खेल कर टाइम पास कर लेंगे लेकिन यहां तो सब गड़बड़ हो गया है।( शुभम उदास होता हुआ बोला लेकिन तभी उसकी बात करते हुए एक लड़का जो कि अच्छे घर से होने के बावजूद भी लफंगों की तरह रहता था वह बोला,,,,,,)

कोई बात नहीं सुबह बात हो गई तो क्या हुआ( दूसरे लड़के की तरफ उंगली से इशारा करते हुए) अपनी रोहित की मम्मी है ना इसके दोनों बड़े बड़े गेंद कब काम आएंगे,,,,, उनसे ही एक दिन के लिए उधार मांग लेते हैं दबा दबा कर खेलेंगे हम सब,,,,( तभी उसकी बात सुनकर जिसको वह बोल रहा था वही रोहित हंसते हुए बोला।)

तेरी मम्मी के पास भी तोे दो गेंदे है मस्त-मस्त चलो ऊनसे ही मांग लेते हैं। ( रोहित की बात सुनकर लफंगे जैसा दिखने वाला मोहन बोला।)

यार मांग तो लु लेकीन मेरी मम्मी कि दोनों गेंदे छोटी छोटी है उनसे क्रिकेट खेलने में मजा नहीं आएगा मजा तो तेरी मम्मी की दोनों गेंदों में आएगा जब मैं उनको अपने हाथों में भरकर अपने कपड़े पर रगड़ते हुए बॉलिंग करुंगा।
( उसकी बात सुनते ही सभी लड़की हंसने लगे और वह लड़का भी हंसने लगा जिसको वह उसकी मम्मी के बारे में कह रहा था। शुभम तो मोहन की बात सुनते ही आश्चर्यचकित हो जा रहा था और साथ ही उसके मन में अजीब सी भावना जन्म लेने लग रही थी ना चाहते हुए भी उसके मन में रोहित की मम्मी की कल्पना में जन्म लेने लगी थी,, शुभम उन लोगों की गेंद वाली बात का मतलब अच्छी तरह से समझ रहा था इसलिए उसकी कल्पना में रोहित की मम्मी की बड़ी बड़ी चूचियां आने लगे जिनका ख्याल होकर ही उसके बदन में न जाने कैसी अजीब सी अनुभूति होने लगी। शुभम की भी हंसी छूट गई उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह लोग इस तरह की बातें कर सकते हैं। तभी दूसरे लड़के ने उनमें से ही एक लड़के के बारे में संबोधित करते हुए बोला।

यार रोहित की मां को छोड़ अपने राहुल की मां को देख
कितनी बुड़ी बुड़ी चुचीयां है और कपड़े तो ऐसे पहनती है जैसे कि दूसरों को ललचा रही हो। कसम से जब भी देखता हूं तो मेरा तो लंड खड़ा हो जाता है। ( ऊस लड़के की बात सुनकर शुभम की तो हालत खराब होने लगी उसने इस तरह की खुली और गंदी बातें कभी भी नहीं सुना था। क्योंकि वह कभी भी गंदी छोकरो के साथ घूमता ही नहीं था लेकिन आज सोसाइटी के ऐसे अच्छे लड़कों के मुंह से ऐसी बातें सुनकर वह दंग हो गया था।
लंड खड़े होने की बात से तो ऊसके पेंट मे भी सुरसुराहट सी महसूस होने लगी थी। तभी वह लड़का बोल पड़ा किसकी मम्मी के बारे में दूसरे लड़के ने इतनी गंदी बात कही थी।)

तेरी मां को भी तो देखकर मेरा भी हाल यही होता है, तेरी मम्मी भी जब गांड मटकाते हुए चलती है तो मेरा लंड खड़ा हो जाता है देखना एक दिन किताब लेने के बहाने तेरे घर आऊंगा तो तेरी मम्मी को चोद कर जाऊंगा।
( उसकी बात सुनकर एक बार फिर से सभी टांके मार के हंसने लगे और बड़े आश्चर्य की बात यह थी कि जिसके बारे में यह सब बातें हो रही थी वह भी ईन लोगों की हंसी में शामिल हो जाता था। सभी लोग एक दूसरे की मां के बारे में गंदी बातें कर के मजे ले रहे थे शुभम तो आश्चर्य से खड़ा होकर ऊन लोगों की बातें सुन रहा था और अजीब-अजीब से ख्याल उसके मन में आ रहे थे। मुझे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि लड़की एक दूसरे की मम्मी के बारे में ऐसी गंदी बातें भी करके मजा लेते होंगे। तभी उनमें से एक लड़के ने शुभम को खामोश खड़ा हुआ देखकर बोला।

यार शुभम तु क्यों खामोश खड़ा है तू भी तो कुछ बोल।
( तभी बीच में दूसरा लड़का बोल पड़ा)

यारों क्या बोलेगा दूसरों की मम्मी की बात सुनकर उसे अपनी मम्मी याद आ गई होगी। ( उस लड़की की बात सुनकर शुभम को गुस्सा आ गया वह उसे अपनी हद में रहने के लिए बोला लेकिन वह नहीं माना।)
 
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अच्छा दूसरों की मम्मी की गंदी बात सुनकर तो तू खूब मजा ले रहा था और अपनी मम्मी की बारी आई तो गुस्सा करता है। ( उस लड़के के सुर में सुर मिलाता हुआ दूसरा लड़का बोला।)
हां यार शुभम यह बात तो सच है पूरी सोसाइटी में तेरी मम्मी जैसी हाय क्लास दूसरी कोई औरत नहीं है। मुझे पता है जब तेरी मम्मी सोसाइटी से गुजरती है तो सभी की नजरें तेरी मम्मी पर टिकी होती है। तेरी मम्मी की बड़ी बड़ी चूचियां बड़ी-बड़ी गोल गोल गांड देखकर तो सब का लंट खड़ा हो जाता है। ( इतना सुनते ही शुभम गुस्सा करने लगा और उस लड़की को चुप रहने को बोला लेकिन वह लड़का कहां मानने वाला था।)
यार गुस्सा क्यों करता है सही बात तो है तेरी मम्मी को चोदने के लिए तो ना जाने कितने लोग तड़पते रहते हैं।
और सच कहूं तो तेरी मम्मी की गंदी बातें सोच सोच कर मैंने ना जाने कितनी बार लंड हिला कर मुठ मारा हुं।
( उस लड़के की बात सुनकर सभी लोग ठहाका मार कर हंसने लगे अपनी मां के बारे में ऐसी गंदी बातें सुनकर शुभम उस लड़के से हाथापाई कर लिया बड़ी मुश्किल से सभी ने उन दोनों को छुड़ाया और शुभम गुस्से में अपने घर की तरफ जाने लगा।)
निर्मला मार्केट में खरीदी करने गई थी। शाम होने वाली थी वहां से सब्जियां खरीद रही थी कि तभी उसकी नजर पास के ही ठेले पर से सब्जी खरीद रही शीतल पर गई, तो निर्मला के पास गई,,, शीतल भी निर्मला को देखकर खुश हो गई और उससे बोली।

अरे वाह ब्यूटी इधर मार्केट में क्या कर रही हो।
( शीतल के इस सवाल का जवाब निर्मला मुस्कुराकर देते हुए बोली।)

जो तुम यहां कर रही हो वही मैं भी करने आई हूं।

मैं तो यहां बेगन ले रही हूं।( एक मोटे ताजे और लंबे बेगन को अपनी मुट्ठी में लेकर) देखो कितना ताजा है। आज तो मजा ही आ जाएगा।
( शीतल धीमी आवाज में बातें कर रही थी जोकी सिर्फ निर्मला ही सुन पा रही थी। बैगन की तरफ देखते हुए निर्मला बोली।)

मैं क्या करूंगी बेगन लेकर के मुझे बेगन पसंद ही नहीं है और वैसे भी मेरे पति और मेरा शुभम खाता ही नहीं है।

अरे मेरी प्यारी निर्मला (बेगन को थेली में रखते हुए)
मुझे भी कहां बेगन पसंद है, लेकिन जरा इसके आकार पर गौर तो कर ।
( निर्मला के हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि शीतल क्या कहना चाह रही है इसलिए वह आश्चर्य से बोली।)

क्या मतलब!

अरे यार तुम ना एकदम बुद्धू हो। अच्छा थोड़ा आगे चलो मैं तुम्हें समझाती हूं।( इतना कहते हुए वह निर्मला को ठेले से थोड़ी दूरी पर ले गई। और थेली में से उसी दमदार बैंगन को निकालते हुए और निर्मला को दिखाते हुए बोली।)
देखो इस के आकार को( निर्मला थी उस दमदार बेगन को देखने लगी लेकिन उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।) इसे देखकर कुछ समझ मे आ रहा है तुम्हें।

यार शीतल तुम इस तरह से पहेलियां क्यों बुझा रही हो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। ( निर्मला आश्चर्य से बोली।)

यार तुम सच में एकदम बुध्धु हो पता नहीं बिस्तर पर अपने पति को कैसे खुश करती होगी। ( शीतल के मुंह से यह बात सुनकर वो थोड़ा उदास हुई लेकिन जल्द ही अपने आप को संभाल ली ।)
देखो निर्मला इसकी लंबाई को इसकी मोटाई को देखो है ना एकदम मर्दों के हथियार जेसा।
( शीतल की बात सुनकर निर्मला एकदम दंग रह गई और वह थोड़ा गुस्सा और थोड़ी मुस्कुराहट के साथ बोली।)

यार शीतल सच में तुम्हारे दिमाग में एकदम गंदगी भरी हुई है इन सब्जियों में भी तुम अपने ही मतलब की चीज ढुंढ़ती रहती हो। जब तुम्हें भी बैगन पसंद नहीं है तो आखिर ली क्यों?

निर्मला जरूरी तो नहीं कि इसे सिर्फ खाया ही जाए इससे दूसरे भी तो काम लिए जा सकते हैं।
( निर्मला फिर से उसे आश्चर्य से देखने लगी उसे अभी भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इसलिए वह फिर बोली।)

दूसरे काम मतलब! एक तो तुम पहेलियां बुझाना बंद करो और साफ-साफ मुझे बताओ क्योंकि मुझे भी सब्जियां खरीदने में देर हो रही है।
( निर्मला की बात सुनकर कामुक शीतल मुस्कुराने लगी और वह उससे बोली।)

यार तुम्हें अभी भी समझ में नहीं आया इतनी तो बात आजकल की लड़कियां भी समझ जाती है और तुम इतनी खेली खाई हो करके भी इतना मतलब नहीं समझ पा रही हो।

नहीं सच में,,,,, सच में मुझे बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रहा है कि तुम कहना क्या चाहती हो।

मुझे लगता है कि तुम्हें खुलकर ही समझाना पड़ेगा।
देखो बेगन की लंबाई और चौड़ाई एकदम लंड के ही जैसी होती है। ( निर्मला शीतल की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी) तो सोचो यह औरतों की कितने काम की चीज है। अगर कभी चुदवाने की इच्छा हो तो घर पर पति ना हो तो क्या करोगे उंगली से तो मजा आएगा नहीं।,,,,( शीतल के मुझे ऐसी बातें सुनकर निर्मला गंनगना गई,,,, वह शर्म के मारे इधर उधर देखने लगी कि कहीं कोई सुन तो नहीं रहा है। शीतल बात को आगे बढ़ाते हुए बोली।) अंगुली से अपने जैसी औरतों की बुर की प्यास बुझाने वाली नहीं है और किसी गैर मर्द के लंड से चुदने से बदनामी का डर लगा रहता है और ऐसे में सबसे बेहतर और अच्छा इलाज यही है,,, यह बेगन,,,

ईसी को अपनी बुर में डाल कर अंदर बाहर करते हुए अपनी बुर खुद ही चोदो देखो कितना मजा आता है।,,,
 
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( शीतल की बात सुनकर निर्मला की तो हालत खराब होने लगी उसके मन में अजीब सी गुदगुदी होने लगी,,,, निर्मला कभी सपने में भी नहीं सोच रही थी कि बेगन का इस तरह का भी उपयोग किया जाता है। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें उसे शर्म भी महसूस होने लगी थी। ना चाहते हुए भी निर्मला के मुंह से निकल ही गया,,,,,)

तो क्या,,,,,,, शीतल,,,,,, ततततत,,,,,तुम भी,,,,,,,,,

तो यह किस लिए ले रही हूं खाने के लिए थोड़ी ले रही हूं। ( शीतल बेझिझक जवाब देते हुए बोली। शीतल का जवाब सुनकर तो निर्मला दंग रह गई उसे यकीन नहीं हो रहा था कि शीतल ईस तरह की हरकत भी करती होगी। वह शीतल को एतराज जताते हुए बोली।)

छी,,,, छी,,,,, शीतल तुम इतनी गंदी हरकत कैसे कर सकती हो आखिरकार तुम एक टीचर हो,,,,,,

सबसे पहले मैं एक औरत हूं और औरतों की भी ख्वाहिश होती है । (शीतल मुस्कुराते हुए जवाब दी)
और वैसे भी मेरे पति बिजनेस टूर पर गए हुए हैं ऐसे मैं अगर ईच्छा हो जाए तो क्या करें।
( निर्मला को भी शीतल की यह बातें अच्छी लग रही थी लेकिन वह ऊपर से ही ऐतराज जता रही थी। शीतल की ऐसी बातें सुनकर उसे ना जाने अजीब सी सुख की अनुभूति हो रही थी उस की उत्सुकता और ज्यादा बढ़ती जा रही थी बेगन के बारे में जानने की। इसलिए वह बोली।)

शीतल किसी दिन तुम्हारे पति को यह सब पता चल गया ना तो तुम्हारी हालत खराब हो जाएगी।

अरे किसी को नहीं पता चलेगा आखिर सब्जी ही तो है मैं सब्जी घर ले जा रही हूं,,,, ना की किसी मर्द को,,,,
औरतों को खुद ही संतुष्टि प्राप्त करने का यह सबसे सुरक्षित तरीका है और तो और निर्मला इसकी साईज, ईसकी मोटाई मर्दों के लंड से भी ज्यादा दमदार है। सच में जब भी नहीं इसका उपयोग करती हूं तो मुझे तो बेहद आनंद की प्राप्ति होती है ऐसा मजा मिलता है कि वैसा मजा तो मुझे अपने पति से भी नहीं आता।
( शीतल की बातों से निर्मला की जांघो के बीच रसीली बुर में सुरसुराहट बढ़ने लगी। ओर निर्मला को बुर मे से रिसाव सा महसूस होने लगा। वह तो बस मंत्रमुग्ध सी शीतल की बातें सुने जा रही थी। इससे पहले भी इसी तरह निर्मला के सामने खुलकर बहुत सी बातें शेयर की है लेकिन आज की बात निर्मला के अंदर एक अजीब सी कामना का एहसास करा रही थी। बेगन को लेकर निर्मला की उत्सुकता कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही थी।
 
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( शीतल की बातों से निर्मला की जांघो के बीच रसीली बुर में सुरसुराहट बढ़ने लगी। ओर निर्मला को बुर मे से रिसाव सा महसूस होने लगा। वह तो बस मंत्रमुग्ध सी शीतल की बातें सुने जा रही थी। इससे पहले भी इसी तरह निर्मला के सामने खुलकर बहुत सी बातें शेयर की है लेकिन आज की बात निर्मला के अंदर एक अजीब सी कामना का एहसास करा रही थी। बेगन को लेकर निर्मला की उत्सुकता कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही थी।
लेकिन शाम ढलने लगी थी और अभी भी निर्मला को सब्जी खरीदनी थी वह शीतल से कुछ और पूछ पाती इससे पहले ही शीतल बोली।)

अच्छा निर्मला मुझे देर हो रही है मुझे घर जाना है और भी बहुत काम है मैं चलती हूं कल स्कूल में मिलूंगी,,,,,,
( निर्मला उससे कुछ और पूछ पाती इससे पहले ही वह चली गई । उसके जाने के बाद निर्मला ठेले पर से जरूरी की सब्जियां खरीदने लगी। तभी उसकी नजर एक दम ताज़े मोटे और लंबे बेगन पर पड़ी,,,,,और ऊसपर नज़र पड़ते ही निर्मला को जांगो के बीच सुरसुराहट और तेज होती महसूस होने लगी। उसे शीतल की बात याद आने लगी कि बैगन को सिर्फ खाना ही नहीं जाता बल्कि उसे अपने लिए सही उपयोग में भी लाया जाता है।
बैगन निर्मला को भी कतई पसंद नहीं था ना ही उसके परिवार में कोई खाता था लेकिन ना चाहते हुए भी शीतल के बताए हुए तरीका की वजह से और उसकी बातों का असर उस पर ऐसा छाया की,,,,, ना चाहते हुए भी निर्मला ठेले पर से लंबे लंबे बेगन को उठाकर सब्जीवाले के तराजू में डालने लगी,,,,,,, बेगन को हाथ में लेते ही उसके बदन में झनझनाहट सी महसूस होने लगी,,,, तराजू में डालते समय वह शर्म के मारे ठेलेवाले से नजर नहीं मिला पा रही थी । ना जाने आज उसे डेगन को हाथ में लेने भर से ही उसे शर्म महसूस हो रही थी उसे ऐसा लग रहा था कि वह बैगन को नहीं बल्कि किसी के लंड को हाथ से पकड़ी हुई है। इस वजह से शर्मीली और संस्कारी निर्मला का चेहरा शर्म के मारे लाल लाल हो गया जो कि उसकी खूबसूरती को और ज्यादा निखार रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि वह बेगन नहीं बल्कि किसी गंदी चीज को चुपके से खरीद रही हो। खैर जैसे तैसे करके वह सब्जियां खरीद कर अपने घर की तरफ जाने लगी।

दूसरी तरफ शुभम अपने कमरे में कसरत कर रहा था।
ऊसके बदन पर मात्र एक अंडर वियर ही था, बाकि के कपड़े उसने उतार फेंके थे । वह हमेशा अंडर वियर में ही कसरत किया करता था। कसरत तो वह कर रहा था लेकिन आज कसरत करने में उसका मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा था,,, बार-बार उसे खेल के मैदान में दोस्तों की गंदी बात याद आ रही थी ना चाहते हुए भी उसका दिमाग उन बातों को याद कर रहा था। बार-बार उसका ध्यान कसरत पर से हट जा रहा था।
उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि वह लड़की उसकी मां के बारे में इतने गंदे ख्यालात रखते हैं। शुभम को लड़कों की बात से गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन ना जाने उसके बदन में एक अजीब सी हलचल मच जा रही थी जब वह उन लड़कों की गंदी बाते याद कर रहा था। ना चाहते हुए भी उसका ध्यान उसकी मां के बड़े बड़े चुचियों और उसकी भरावदार गांड पर चले जा रहा था। शुभम ने कभी अपनी मां को गलत निगाह से नहीं देखा था हां लेकिन इतना जरुर जानता था कि उसकी मां बहुत खूबसूरत है। उसकी दोस्तों की बातें उसके जेहन में बार-बार उसकी मां का ख्याल और उसके भरावदार नितंब और बड़ी-बड़ी चूचियों दृश्य को चलित कर रहे थे। जिसकी कल्पना मन में होते ही उसकी जांघों के बीच अजीब सी हलचल होने लग रही थी। उस लड़के की बात जिस ने यह कहा था कि तेरी मां के खूबसूरत बदन और उसकी बड़ी बड़ी चूचियां और बड़ी बड़ी गांड के बारे में सोच कर बहुत बार मुठ मारा हूं,,,, उस बात को याद करके आज पहली बार उसे अपने लंड में तनाव महसूस हो रहा था। वैसे तो सुबह सुबह जब उसकी नींद खुलती थी तो उसका लंड हमेशा खड़ा ही रहता था लेकिन उस और उसका ध्यान कभी भी नहीं जाता था।

बार बार उन लड़कों के द्वारा एक दूसरे के मां के प्रति कहीं कोई गंदी बातें उसके कानों में गूंज रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे वह लोग अपनी मां की गंदी बातें मुस्कुराकर और हंस कर सुन रहे थे और एक साथ सभी मजे से ठहाके ले रहे थे। वह मन में ही सोचने लगा कि कैसे वह लड़का उस की मां को मौका मिलते ही चोदने की बात कर रहा था और वह जिसकी मां के बारे में वह बात कर रहा था वह कितना खुश हो रहा था। हम लोगों को एक दूसरे की मां की गंदी बातें करने में बहुत आनंद आ रहा था तभी तो वह लोग बिना एतराज जताया बेझिझक एक दूसरे की मां के बारे में गंदी बातें कर भी रहे थे ओर सुन भी रहे थे।
शुभम को यह सब बातें बहुत ही अजीब लग रही थी और खराब भी लेकिन ना जाने उसका मन के कोने में यह सब बातें ऊसे आनंद भी दे रही थी। शुभम कभी भी नहीं सोचा था कि वह लड़के उसकी मां के बारे में भी ऐसी ही ख्याल रखते हैं और गंदी बातें सोचते हैं। और ना ही कभी शुभम अपनी मां के बारे में गंदी बातें सुनना पसंद करता था इसलिए तो वह उस लड़के के मुंह से अपनी मां के बारे में गंदी बात सुनते ही वह उससे भिड़ गया और हाथापाई पर उतर आया।
बार-बार शुभम का मन विचलित हुआ जा रहा था बार-बार उसका ध्यान उसकी मां के भरावदार अंगो पर चले जा रहे थे ।बार बार उसकी कल्पना मैं उसे उसकी मां के बदन का ही ख्याल आ रहा था। जिससे उसके बदन में का जीवन प्रकार की सुख की अनुभूति हो रही थी रह-रहकर उसकी सांसे भारी हो जा रही थी। कसरत करने में उसका मन जरा भी नहीं लग रहा था। शुभम का कसरती बदन बहुत ही गठीला था अगर इस अवस्था में कोई लड़की या औरत उसे देख ले तो सच में उसकी दीवानी हो जाये। लेकिन बिना कपड़ों के शुभम को आज तक किसी लड़की या किसी औरत में नहीं देख पाई थी। यहां तक कि उसकी मां भी नहीं देख पाई थी।
क्योंकि जब से वह अपने हाथों से ही अपना सारा काम करने लगा था तब से बिना कपड़ों के उसे निर्मला भी नहीं देखी थी हां कभी-कभार उसे इस का मौका जरूर मिल गया था जब वह दरवाजा खोल कर कसरत करता था और उसे बुलाने निर्मला अचानक पहुंच जाती थी लेकिन कभी भी निर्मल आपके मन में भी शुभम के बदन को लेकर के कोई हलचल नहीं हुई थी।
लेकिन आज शुभम को निर्मला के बदन को लेकर के एक अजीब प्रकार की हलचल मची हुई थी। इस हलचल का सार शुभम को ठीक तरह से समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसके बदन में इस तरह की गुदगुदी क्यों हो रही है। वह बार-बार अपनी मां पर से अपना ध्यान हटाने की कोशिश करता और कसरत करने में मरना चाहता लेकिन बार-बार उसका मन भटक जा रहा था। और भटकता भी क्यों नहीं आखिर अच्छे-अच्छो का मन निर्मला को देखकर भटक जा रहा था और यह शुभम तो अभी जवानी की दहलीज पर कदम लग रहा था।
इस तरह के कामुक ख्याल उसके बदन में अजीब सी हलचल पैदा करते हुए उसके लंड के तनाव को पूरी तरह से बढ़ा चुका था। उसके अंडर वियर में तंबू सा बन चुका था। उसकी नजर अपनी ही चड्ढी में इस तरह के बने तंबू को देख कर चौधिया गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार यह सब हो क्या रहा है। इससे पहले उसने कभी भी अपने अंडर वियर में इस तरह के तूफान को आता नहीं देखा था। शुभम भी इतना ज्यादा शर्मिला था कि उसने आज तक खुद के खड़े लंड को नहीं देखा था। उसे इस बात का ज्ञान बिल्कुल भी नहीं था कि अगर एक लंड पूरी तरह से खड़ा होता है तो कैसा दिखता है और बदन में कैसी हलचल होती है। अपने अंडरवियर में बने तंबू को देखकर उसका बदन अजीब सी कपकपी महसूस कर रहा था। उसकी दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी उसकी सांसे भारी हो चली थी। उसे इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वह अपनी चड्डी को नीचे सरका कर अपने टनटनाए हुए लंड का दीदार कर सके उसे जी भर कर देख सके और उसे अपने हाथ में अपनी मुट्ठी में लेकर के सहला सके।
क्योंकि निर्मला के संस्कार शुभम में उतर आए थे इसलिए शुभम के संस्कार इस बात की गवाही नहीं दे रहे थे कि वह अपनी चड्डी को नीचे सरका कर अपने खड़े लंड का दीदार कर सकें। कमरे में वह कसरत करने के लिए रूका था लेकिन उसके सामने अजीबोगरीब समस्या आन पड़ी थी। उसे ऐसी हालत में, इस तरह की व्यवस्था में क्या करना है कैसे करना है इसका बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था। उन लड़कों की उम्र का हो करके भी शुभम उन लड़कों के सेक्स ज्ञान के मुकाबले बिल्कुल ही अज्ञान था। शुभम अपने कमरे में खड़े होकर के एकटक अपने अंडरवीयर में बने तंबू को देखे जा रहा था। उसका मन हड़बड़ा भी रहा था कि कैसे वह अपने अंडर वियर की स्थिति को पहले की तरह सामान्य कर दे। लेकिन उस तूफान को थामने का शांत करने का शुभम के पास कोई भी हुनर नहीं था इसलिए वह उत्सुकता वश बस अपनी चड्डी में बने तंबू को ही देखे जा रहा था।
और दूसरी तरफ निर्मला सब्जी लेकर अपने घर पर पहुंच चुकी थी वह चाबी से मुख्य दरवाजे को खोलकर कमरे में प्रवेश कर चुकी थी वह जानती थी कि इस समय से तुम अपने कमरे में कसरत कर रहा होगा वह दरवाजे की घंटी बजा कर वह उसे परेशान नहीं करना चाहती थी।

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निर्मला घर में प्रवेश कर चुकी थी। उसके हाथ में सब्जियों से भरा थैला था वह जिसमें था बैंगन जो कि वह किसी का भी पसंदीदा ना होने के बावजूद और निर्मला के ना चाहते हुए भी शीतल की वजह से उसके मन में एक अजीब सी कामना जाग गई थी, और इसी कामना के चलते ना चाहते हुए भी निर्मला को भी बड़े-बड़े और लंबे बेगन को खरीदना पड़ा। बैगन को लेकर के निर्मला के मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी। उसने आज तक बेगन कि इस तरह की उपयोगिता के बारे में कभी न सुनी थी और ना देखी थी। शीतल के मुंह से बेगन की औरतों के लिए ऐसी फायदेमंद उपयोगिता को सुनकर निर्मला पूरी तरह से दंग हो गई थी, और ना चाहते हुए भी उसने बेगन को खरीद ली थी वह सब्जी के ठेले को लेकर के सीधे रसोई घर में गई और उसे फ्रिज खोल कर जल्दी-जल्दी अंदर रखने लगी और बेगन को उसने सब्जियों से सबसे नीचे ढंककर रखी ताकि कोई देख ना ले। क्योंकि सबको पता था कि घर में बैगन कोई भी पसंद नहीं करता था। निर्मला जल्दी-जल्दी हड़बड़ाहट में एक बैगन नीचे ही छोड़ दी जोकि फ्रीज के नीचे की तरफ पड़ा हुआ था, ओर वह जल्दी से रसोई घर से बाहर आ गई। बाहर आते ही उसने दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखी तो समय कुछ ज्यादा हो चुका था क्योंकि इतने समय से पहले सुबह कसरत कर कर अपने कमरे से बाहर आ जाया करता था और थोड़ी बहुत काम में निर्मला का हाथ बटाया करता था। इसलिए उसे नीचे नापा करके निर्मला शुभम के कमरे की तरफ आगे बढ़ने लगी वह अपने कदम शुभम के कमरे की तरफ बढ़ा तो जरूर रही थी लेकिन बेगन को लेकर के उसके मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी,,, जिसकी वजह से उसकी बुर से बार बार रीसाव हो रहा था और उसके चलते उसकी पैंटी गीली हो चुकी थी जो कि उसे साफ-साफ महसूस हो रही थी। निर्मला काफी अरसे से बहुत प्यासी थी इसलिए जरा सा भी ऊन्मादक माहौल होते ही या ख्यालों में उन्माद जगते ही उसकी पेंटी गीली होने लगती थी।
पैंटी में फैल रही गीलेपन की वजह से निर्मला का हाथ बार-बार जांगो के बीच पैंटी को एडजस्ट करने के लिए पहुंच जा रहा था। जो कि निर्मला की यह अदा बड़े ही कामोत्तेजक लग रही थी। अगर कोई इस नजारे को देख कर ले तो उसकी हालत अपने आप खराब हो जाए वह तो सोच-सोच कर ही अपने लंड से पानी छोड़ दे की निर्मला अपनी नाजुक उंगलियों से अपने कौन से नाजुक अंग को बार बार साड़ी के उपर से छु रही है। वैसे भी निर्मला की हर एक अदा बड़ी ही कामोत्तेजक नजर आती थी यहां तक कि उसका सांस लेना भी लोगों के सांस ऊपर नीचे कर देता था। धीरे-धीरे निर्मला शुभम के कमरे की तरफ बढ़ रही थी और शुभम कमरे के अंदर अपने टनटनाए हुए लंड को लेकर के बड़ा ही उत्सुक और चिंतित भी लग रहा था। उसका लंड उसकी चड्डी के अंदर अभी भी पूरी तरह से टनटना कर खड़ा था जो की चड्डी के आगे वाले भाग को किसी तंबू की तरह नुकीला करके अपनी मजबूत ताकत का प्रदर्शन कर रहा था। शुभम के हाथों में वजनदार डंबल था जिसे वह बड़े आराम से ऊपर नीचे करते हुए कसरत कर रहा था लेकिन कसरत करते हुए भी बार बार उसकी नजर चड्डी में तो नहीं तंबू पर ही टिकी हुई थी जिससे उसका मन बार बार भटक जा रहा था। उसका बदन पूरी तरह से पसीने से तरबतर हो चुका था। चड्डी में बने तंबू को देखते हुए बार-बार उसे उसकी मां के भरावदार बदन का ख्याल आ रहा था,,,, बार-बार उसकी आंखों के सामने निर्मला की बड़ी बड़ी चूचियां और उसकी बड़ी बड़ी गांड और उसका गोरा बदन तैर जा रहा था। जिसकी वजह से उसके पूरे बदन में उत्तेजना का प्रसार बड़ी तेजी से हो रहा था उसकी सांसे गहरी गहरी और लंबी चल रही थी। आज पहली बार उसे इस तरह की अजीब हालात का सामना करना पड़ रहा था ।कमरे में अकेला होने के बावजूद भी शुभम की इतनी भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह खुद की चलती को नीचे सरका कर अपने खड़े लंड को देख सके या युं कह लो इस हालात में उसे चड्डी सरका के खुद के खड़े लंड को देखने मे उसकी तहजीब और संस्कार रोक रहे थे।
शुभम काम उत्तेजना के मारे बुरा हाल था लेकिन वह इस उत्तेजना के सार को समझ नहीं पा रहा था। आकर्षण और उत्तेजना की प्रति वह बिल्कुल ही अज्ञान था। आकर्षण और आकर्षण के चलते बदन में फेल रहे कामोत्तेजना का अनुभव वह अपने बदन में पहली बार महसूस कर रहा था।
ऐसी ही कामोतेजना का अनुभव अगर कोई दूसरा लड़का करता है तो वह कब का ही मुठ मारकर अपने आप को और अपने खड़े लंड को शांत कर चुका होता। लेकिन शुभम दूसरे लड़को से बिल्कुल अलग था उसे ना तो उत्तेजना का मतलब पता था ना ही आकर्षण से अभी तक पाला ही पड़ा था इसलिए उत्तेजना के उन्माद में बहकर मुठ मारने की कला से अभी वह कोसों दूर था। इसलिए तो वह आज इस अवस्था में बुरी तरह से तड़प रहा था उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें कि उसकी चड्ढी में आया तुफान शांत हो जाए। वह उसी तरह से बेईमान डंबल को हाथों में लिए ऊपर नीचे करते हुए कसरत करने की कोशिश कर रहा था। और दूसरी तरफ अपने बदन में भी कामोतेजना कि हम चल दिए हुए निर्मला देवगन के बारे में सोचते हुए शुभम के कमरे के बिल्कुल करीब पहुंच चुकी थी । वह दरवाजे की तरफ कदम बढ़ा ही रही थी कि तभी हल्की सी खुली खिड़की में से कमरे के अंदर खड़ा शुभम नजर आ गया। निर्मला उत्सुकतावश खिड़की के पास खड़ी होकर की हल्कि सी खुली खिड़की में से अंदर की तरफ झांकने लगी,, निर्मला की नजर उसके गठीले बदन पर फीर रही थी। एकदम गठीला और कसरती बदन शुभम की खूबसूरती को और ज्यादा निखारता था। निर्मला की नजर शुभम के गठीले बदन के दर्शन करके चौंधिया सी गई थी। निर्मला को तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसका बेटा इतने आकर्षक और गठीले बदन का मालिक है। निर्मला अपने बेटे के बदन को देखकर आकर्षीत हुए जा रही थी। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आज वह अपनी बेटे के ही तरफ इतना ज्यादा क्यों आकर्षित हुए जा रही है। निर्मला खिड़की के बाहर खड़ी अंदर के दृश्य को निहार रही थी। शुभम के हाथों में वजनदार डंबल को देखकर और जिस तरह से वह बड़े ही आराम से डंबल को ऊपर नीचे करते हुए कसरत कर रहा था। ऊसे देखकर निर्मला का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। निर्मला की नजरें शुभम के बदन पर फिसलते हुए धीरे धीरे नीचे की तरफ जा रही थी। जैसे ही निर्मला की नजर कमर के नीचे पहुंची तो वहां का नजारा देखकर निर्मला सन्न रह गई।

अब तक निर्मला की नजर शुभम के गठीले बदन के ऊपरी हिस्से पर ही फिर रही थी। अपने बेटे के मजबूत और कसरती बदन को देखकर निर्मला रोमांचित हुए जा रही थीे । आज पहली बार उसे अपने बेटे का बदन देखकर एक अजीब सा रोमांच महसूस हो रहा था जिसके बारे में सोच कर वह खुद हैरान थी। ऐसा उसके साथ पहले कभी नहीं हुआ था।
खिड़की के बाहर खड़ी होकर के निर्मला अंदर के दृश्य को बड़े ही रोमांच के साथ निहार रही थी अंदर का एक एक दृश्य उसे कामुकता का एहसास करा रहा था। लेकिन जैसे ही उसकी नजर शुभम के कमर के नीचे वाले हिस्से पर गई तो वहां का नजारा देखकर वह दंग रह गई उसके बदन में एकाएक उत्तेजना का संचार बड़ी तेजी से होने लगा। उसके मुंह से दबी आवाज में सिसकारी के साथ बस इतना ही निकल पाया।

बाप रे बाप,,,,,,,,,

( निर्मला के मुंह से यह अचानक निकला था उसे खुद समझ में नहीं आया कि उसके मुंह से आखिर ऐसा क्यों निकल गया यह सब असर उस बैगन का था जिसके बारे में पूरी तरह से विस्तार में शीतल में निर्मला को समझाई थी और उसे लंबे बेगन के ही चलते उसके बदन में एक नई कामुकता का एहसास जगा था।
अपने बेटे के चड्डी में बने लंबे तंबू को देखकर उसकी जांघों के बीच अजीब सी सुरसुराहट होने लगी। शुभम का अंडरवियर अच्छा खासा तनकर तंबू बन चुका था।
जिस तरह से शुभम की चड्डी खड़े लंड की वजह से तन कर सामने की ओर तंबू बनाए हुए था उस लंबे तंबू को देखकर निर्मला के लिए यह अंदाजा लगा पाना बड़ा मुश्किल हो रहा था कि आखिरकार शुभम का लंड कितना बड़ा है। निर्मला की नजर पूरी तरह से उसके बेटे की चड्डी के ऊपर मानो जम सी गई थी। शुभम था कि बस आश्चर्य के साथ अपनी चड्डी में बने तंबू को देखते हुए बेमन से उसे डंबल को ऊठाए जा रहा था।
अपने बेटे की वर्तमान स्थिति को देखकर निर्मला इतना तो समझ ही गई थी कि उसका बेटा अपने बदन में उत्तेजना का अनुभव कर रहा है तभी तो उसका लंड भी इस कदर टंनटनाकर खड़ा था।
शुभम की स्थिति से वह अपने पति की स्थिति का अनुमान लगाते हुए एक अजीब सी उलझन महसूस कर रही थी क्योंकि उसे इतना जरूर मालूम था कि,,, शुरू के दिनों में जब भी कभी उत्तेजित अवस्था में अशोक उससे प्यार करता था तब,,,,, निर्मला को अच्छी तरह से याद है कि उस समय उत्तेजना की वजह से जब भी अशोक के लंड में तनाव आता था तो उसका अंडर वियर इस हद तक तंबू नहीं बना पाता था। बल्कि लंड वाले स्थान पर बस हल्का सा उभरा हुआ नजर आता था लेकिन निर्मला इस समय अपने बेटे की चड्डी के अंदर जिस नजारे को देख रही है वह काफी हैरान करने वाला था। शुभम के अंडरवीयर में लंड वाले स्थान पर हल्का सा ऊभरा हुआ नहीं बल्की ऐसा मालूम पड़ रहा था कि उसने अंडर वियर में किसी मोटे लकड़े को ठुंश रखा है, तभी तो निर्मला की भी हालत सिर्फ देखकर खराब हुए जा रही थी कि अगर हल्के से उभरे हुए अंडरवियर के अंदर तगड़ा हथियार हो सकता है तो यहां तो पूरी की पूरी अंडरवियर तनकर तंबू हो चुकी है तो इसके अंदर कितना तगड़ा और मजबूत हथियार होगा। यह सोचकर ही निर्मला की बुर में गुदगुदी सी लगने लगी और उसकी पैंटी कुछ ज्यादा ही गीली होने लगी।
निर्मला आकर्षण के चलते यह भी भूल गई कि वह शुभम को रसोई में मदद करने के लिए बुलाने आई थी लेकिन यहां आकर के शुभम की हालत को देखकर वह सब कुछ भूल गई। शुभम की गठीले पतन और चड्डी में बने तंबू का आकर्षण का खुमार पूरी तरह से निर्मला की आंखों में उतर आया था। निर्मला ललचाई आंखों से अपने बेटे को ही निहार रही थी। निर्मला जीस तरह से ऊन्माद और कामोतेजना का अनुभव करते हुए अपने बेटे को ललचाई आंखों से देख रही थी यह उसकी प्रकृति के बिल्कुल विरुद्ध था। लेकिन इस समय वह सब कुछ भूल चुकी थी खिड़की के बाहर खड़ी होकर के वह अपने बदन में चुदास पन का बेहद तीव्र गति से अनुभव कर रही थी।
 
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निर्मला आकर्षण के चलते यह भी भूल गई कि वह शुभम को रसोई में मदद करने के लिए बुलाने आई थी लेकिन यहां आकर के शुभम की हालत को देखकर वह सब कुछ भूल गई। शुभम की गठीले पतन और चड्डी में बने तंबू का आकर्षण का खुमार पूरी तरह से निर्मला की आंखों में उतर आया था। निर्मला ललचाई आंखों से अपने बेटे को ही निहार रही थी। निर्मला जीस तरह से ऊन्माद और कामोतेजना का अनुभव करते हुए अपने बेटे को ललचाई आंखों से देख रही थी यह उसकी प्रकृति के बिल्कुल विरुद्ध था। लेकिन इस समय वह सब कुछ भूल चुकी थी खिड़की के बाहर खड़ी होकर के वह अपने बदन में चुदास पन का बेहद तीव्र गति से अनुभव कर रही थी।
उसकी नस-नस में लहू की जगह उन्माद और कामोत्तेजना का संचार हो रहा था। निर्मला आज बिल्कुल अलग और अजीब किस्म के सुखद अहसास का अनुभव कर रही थी। जिसके बारे में उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
शुभम बार-बार अपनी चड्डी में तने हुए तंबू को देख रहा था और डंबल को ऊपर नीचे करते हुए कसरत भी किए जा रहा था उसका पूरा बदन पसीने से तरबतर हो चुका था सांसो की गति तेज चल रही थी। जिसकी वजह से उसका चौड़ा सीना बड़े ही उन मादक तरीके से सांसो के साथ साथ ऊपर नीचे हो रहा था जिसे देखकर निर्मला की बुर गिली हुई जा रही थी।
शुभम कसरत करते हुए एकदम डंबल को नीचे रख दिया,,,, और बड़ी ही प्यारी नजर से अपनी चड्डी की तरफ देखने लगा यह देख कर निर्मला की भी उत्सुकता बढ़ने लगी उसके मन में एक अजीब सी चाहत ने जन्म लेना शुरु कर दिया था। निर्मला अपने बेटे के तने हुए लंड को देखना चाहती थी। वह देखना चाहती थी कि उसके बेटे का खड़ा लंड कैसा दिखता है कितना लंबा है कितना मोटा है उसका सुपाड़ा किस आकार का है यह सब बातें जानने और देखने की उत्सुकता ने निर्मला को एकदम से चुदवासी बना दिया था। उसकी बुर से काम रस की बूंदे धीरे-धीरे टपक रही थी जिसकी वजह से उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी वह बार-बार उसी स्थान पर हाथ लगाकर अपनी बुर की स्थिति का जायजा लें ले रही थी। काम रस की बूंदों ने जिस तरह से निर्मला की पैंटी को गीली कर दी थी अगर किसी और की नजर उसकी पैंटी वाले हिस्से पर पड़े तो वह यही समझेगा कि निर्मला पेशाब कर दि है।

निर्मला की कामोत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी और कमरे के अंदर एक हाथ में डंबल लिए शुभम कसरत करते हुए अजीबो किस्म की कशमकश में लगा हुआ था। बार-बार उसका हाथ तंबू के करीब आ कर के फिर पीछे हट जा रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। और शुभम की यही कश्मकश को देखकर निर्मला की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उसे लगने लगा था कि शुभम जरूर कुछ करेगा। निर्मला की दिली ख्वाहिश यही थी कि शुभम अपने हाथों से अपनी अंडरवियर को नीचे सरका कर अपने खड़े लंड को नंगा कर दे ताकि वह अपने बेटे के लंड को जी भर कर देख सके। निर्मला के साथ-साथ शुभम की भी उत्सुकता अपने लंड को लेकर के बढ़ती जा रही थी क्योंकि उसने भी आज तक अपने खड़े लंड का दीदार नहीं किया था।
सिर्फ पेशाब करते समय उसे अपने हाथों में ले करके उसकी गर्मी को महसूस किया था लेकिन बस औपचारिकतावश इससे आगे शुभम को कुछ भी महसूस हुआ और ना ही कुछ अनुभव ही मिला। जिस तरह की कशमकश कमरे के अंदर थी उससे भी ज्यादा खत्म कर कमरे के बाहर खिड़की पर थी क्योंकि शुभम तो नादान था नासमझ था। कामावेश के अध्याय से बिल्कुल भी अनजान वह अपने अंदर मच रही खलबली को कैसे शांत करें इसमें लगा हुआ था लेकिन बाहर खड़ी निर्मला तो अनुभवी थी। वह अच्छी तरह से जानती थी कि कमरे के अंदर जिस तरह की प्रकृति से उसका बेटा गुजर रहा है वह कामातुर हो चुका है उत्तेजना की पराकाष्ठा उसके बदन में गुदगुदी मचा रही है। वह पुरी तरह से चुदवासा हो चुका है ।
शुभम बार बार अपना हाथ अंडर वियर पर लाकर हटा दे रहा था उसकी स्थिति को निर्मला अच्छी तरह से भांप चुकी थी। वह अच्छी तरह से समझ चुकी थी कि काम के ज्ञान में जिस तरह से वहां इस उम्र में आकर भी अज्ञानी है उसी तरह शुभम भी जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुए इस अध्याय में अभी बिल्कुल अनजान है। दोनों की स्थिति को देखकर साफ-साफ लग रहा था कि दोनों एक ही नाव में सवार है। काम नाव की पतवार दोनों में से किसी के भी हाथ में नहीं थी । यह नाव अपने आप ही उत्तेजना के समंदर में गोते लगाते हुए किस छोर पर ले जाएगी दोनों इस बात से बिल्कुल भी अनजान थे।
बाहर प्यासी निर्मला उत्सुक थी अपने बेटे के खड़े लंड का दीदार करने के लिए और कमरे के अंदर शुभम को आगे क्या करना है इस बात से बिल्कुल भी बेखबर था लेकिन फिर भी उसकी भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी बार-बार उसका हाथ अंडरवियर तक आ करके वापिस चला जा रहा था। लंड के सुपाड़े वाला स्थान पूरी तरह से भीग चुका था। वह भी अपने अंडर वियर पर चिपचिपा सा महसूस कर रहा था। निर्मला की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसका भी हाथ बार-बार जांघो के बीच पहुंचा रहा था। वह अपनी हथेली से बुर वाले स्थान को दबा दे रही थी जिससे उसकी कामाग्नि और ज्यादा बढ़ जा रही थी। निर्मला आज खुद अपने स्थिति को ले करके बहुत ज्यादा परेशान हो चुकी थी क्योंकि उसे आज तक ऐसी स्थिति का सामना कभी नहीं करना पड़ा था। इस समय जिस प्रकार की उत्तेजना और चुदासपन का अनुभव अपने बदन में कर रही थी ऐसा अनुभव ऊसे पहले कभी नहीं हुआ था ।वह पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी उसकी गीली और प्यासी बुर में खलबली सी मची हुई थी।
शुभम के मन में ना जाने क्या हुआ कि उसने दूसरे डंबल को भी नीचे रख दिया। उसका बदन पूरी तरह से पसीने से तरबतर हो चुका था सांसो की गति बड़ी तेज चल रही थी। उसकी मां को लेकर उसके मन में द्वंद युद्ध चल रहा था। उसके लंड के खड़े होने का एक ही कारण था कि बार-बार उसकी आंखों के सामने उसकी मां के गोरे बदन और उसकी बड़ी बड़ी चूचियां और भरावदार गांड नजर आ जा रही थी जिसकी वजह से ना चाहते हुए भी उसका लंट टनटना कर खड़ा हो चुका था । ऐसे हालात की वजह से उसकी हालत खराब होते जा रहे थे उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह अपनी मां के बारे में इस तरह की गंदे ख्याल अपने दिमाग में जाएगा लेकिन उसके दोस्तों की बातों ने उसका मन पूरी तरह से बदल दिया था वह ना चाहते हुए भी अपनी मां के अंगों के बारे में सोचने लगा था। यह निर्मला के खूबसूरत बदन और उसके उभार दार और कामुकता से भरे हुए कटावदार अंगों का ही कमाल था कि शुभम का लंड ढीला पड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था ।
बाहर निर्मला जो रह रहकर अपनी जांघो के बीच हाथ लगा ले रही थी अब वह कामोत्तेजना के असर में पूरी तरह से बहकर हल्के हल्के से अपने बुर को साड़ी के ऊपर से ही लना शुरु कर दी थी,, जिसकी वजह से उसकी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी।

निर्मला का दिल जोरो से धड़क रहा था उसकी सांसे भारी हो चली थी। सांसों के बहाव में उसकी बड़ी बड़ी चूचियां भी बड़े ही उत्तेजक तरीके से ऊपर नीचे हो रही थी। निर्मला को इंतजार था सुभम के लंड के देखने के लिए जो कि उसकी तरसीे निगाहें शुभम पर ही टिकी हुई थी वह चाहती थी कि शुभम जल्द से जल्द अपने लंड का दीदार कराएं लेकिन सुबह में था कि अपने अंदर बीयर को नीचे उतारने में भी घबरा रहा था उसके अंदर अजीब सी घबराहट हो रही थी। वह बार-बार अपनी मां का ख्याल करके उत्तेजित हुए जा रहा था। यही उत्तेजना के चलते उससे रहा नहीं गया और वह अपने दोनों हाथ को अपने अंडर वियर के अगल-बगल रखकर
अंडरवियर को सरका कर अंदर का नजारा देखने के लिए तैयार हो चुका था। शुभम की इस हरकत ने निर्मला के अंदर गुदगुदी सी फैलाने लगा। उसके बदन में उत्तेजना से कम चार बड़ी तेजी से हो रहा था वह सबसे ज्यादा जांघों के बीच बुर के अंदर चुनचुनाहट मची हुई थी जिसे वह अपनी हथेली से मसल रही थी।
शुभम का गला उत्तेजना के मारे सुख रहा था। और वह धीरे-धीरे अपने अंडर वियर को नीचे करने लगा,,,, यह देखकर निर्मला के मुंह से गरम आहे निकलने लगी।
तभी शुभम ने अपनी अंडरवियर को एक झटके से जांगो तक सरका दिया। चड्डी के नीचे सरकते ही जो नजारा सामने आया उसे देखकर शुभम आश्चर्यचकित हो गया उसके मन में घबराहट सी होने लगी,,,,,, उसे कुछ समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है लेकिन खिड़की के बाहर खड़ी निर्मला सब कुछ समझ गई थी कि क्या हो रहा है। उसका मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह हकीकत देख रही है या सपना। इतना मोटा तगड़ा और लंबा लंड भी हो सकता है वह कभी कल्पना भी नहीं कर पाई थी क्योंकि उसने आज तक अशोक के ही लंड को देखी थी और उसी से काम चला रही थी जोकि शुभम के लंड से आधा ही था और पूरी तरह से टनटना कर खड़ा था। उसके लंड में जरा सा भी लचक नहीं था जरा सा भी ढीला पन नजर नहीं आ रहा था। उसका सुपाड़ा ऊपर छत की तरफ मुंह उठाए खड़ा था।
यह नजारा देखकर उत्तेजना के मारे निर्मला भी पसीने से तरबतर हो चुकी थी। उसकी हथेली जोर-जोर से बुर ं पर चल रही थी,,,, उसकी पैंटी लगातार काम रस के रिसाव की वजह से गीली होती जा रही थी।
शुभम को कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह कांपती उंगलियों को खड़े लंड की तरफ बढ़ाया और उस पर हल्कैसे रखा ही था कि उसका कड़कपन और गर्माहट महसूस करके वह एक दम से चौंक गया और झट से अपना हाथ हटाकर के अंडरवीयर को फिर से पहन लिया,,,,, और दो कदम पीछे जाकर के बिस्तर पर बैठकर हांफनें लगा,,,,,
बाहरी निर्मला जी भरकर इस नजारे को देखने से पहले ही परदा पड़ चुका था उसके लिए अब खिड़की पर ज्यादा देर तक खड़े रहना उचित नहीं था इसलिए वह अपनी प्यास और ज्यादा बढ़ा कर वापस लौट गई।
 
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निर्मला के लिए अब खिड़की पर ज्यादा देर तक खड़े रहना उचित नहीं था। क्योंकि ऐसे में शुभम की नजर उस पर पड़ सकती थी और वह नहीं चाहती थी कि शुभम उसे उसको इस हालत में उसे देखते हुए देखे इसलिए धीरे से रसोई घर में आ गई । रसोईघर में आते ही वह राहत की सांस ली,,,,, लेकिन अभी भी उसकी सांसे भारी चल रही थी। वह किचन प्योर को पकड़कर जोर-जोर से सांसे लेते हुए अभी अभी जो उसने अपने बेटे के कमरे में देखकर आई उस बारे में सोचने लगी।
उसने जो देखी थी उसे देखते हुए भी,,, उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। भरोसा होता भी तो कैसे उसने आज तक ऐसा नजारा ना देखी थी ना देखने की उसे उम्मीद थी वह तो अनजाने में ही वह अपने बेटे को उसके कमरे में बुलाने गई और वह अंदर का गरम नजारा देख कर गर्म हो गई। कमरे के नजारे में उसके बदन में हलचल सी मचा रखी थी बार-बार उसकी आंखों के सामने उसके बेटे का गठीला कसरती बदन और उस के अंडरवीयर में बना हुआ तंबू तैर जा रहा था।
कसम की हालत उस बारे में सोच-सोच कर ही खराब हुए जा रही थी उसे अपनी जांघों के बीच रिसाव सा बड़ा साफ साफ महसुस हो रहा था । निर्मला को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसे ऐसा क्यों हो रहा है ।आज से पहले उसने कभी भी ऐसी स्थिति का सामना नहीं की थी। उत्तेजना के मारे उसके खुद का चेहरा सुर्ख लाल हो गया था।
बार बार निर्मला को उसके बेटे का बड़ा तंबू ही याद आ रहा था। वह अंडरवियर में बने तंबू की तुलना बाजार से लाए हुए बेगन से मन ही मन कर रही थी। उसे यह भी अच्छी तरह से मालूम था की बेगन का आकार और उसका साईज ज्यादा बड़ा था लगभग वह अपने पति के लंड से डबल साइज़ का और डबल मोटाई का ली थी। लेकिन जब उसने अपने बेटे के अंडरवीयर में तना हुआ वह हथियार देखी तो मन ही मन उसके आकार के बारे में कल्पना करके ही वह पूरी तरह से कांप गई,,,,, उसकी कल्पना उस क्षण हकीकत में बदल गई जब शुभम ने अपनी अंडर वियर को नीचे तक सरकाया,,,,, और जैसे ही उसने अपनी अंडर वियर को नीचे तक लाया उसका तो बड़ा मोटा और लंबा एकदम टनटना कर खड़ा लंड नजर आने लगा जो की निर्मला के वजूद को अंदर तक हिला दिया था। निर्मला तो बस देखती ही रह गई उसे तो कुछ समझ में नहीं आया कि आखिरकार यह हो क्या रहा है। वह मंत्रमुग्ध सी बस एक टक अपने बेटे के खड़े लंड को देखते ही रह गई। सुभम भीे आश्चर्यचकित हो करके अपने खड़े लंड को देख रहा था,,,,, जिस तरह से शुभम आश्चर्यचकित और उत्सुक हो करके अपने खड़े लंड को देख रहा था,,,, ऊसै देखकर निर्मला को भी आश्चर्य हुआ था। लेकिन जिस हालात से वह उस समय गुजर रही थी उस बारे में उसे सोचने का बिल्कुल भी मौका ही नहीं मिला था। कुछ ही सेकंड तक उसे अपने बेटे का लंट देखने का मौका मिला था। वह तो अभी जी भर के अपने बेटे के लंड का दीदार भी नहीं कर पाई थी कि शुभम ने तुरंत अपने अंदर वियर को वापस पहन लिया।
निर्मला को यह देखकर बहुत हैरानी हो रही थी कि उसके बेटे के लंड के साइज के बराबर ही उसने बड़े बड़े बेगन लेकर आई थी। इसलिए तो वह क्षण उसके दिमाग से निकल नहीं पा रहा था । बार-बार निर्मला का हाथ उसकी जांघों के बीच उसकी बुर को टटोलने के लिए चले जा रहा था,,,,, जो की पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। निर्मला की हालत पूरी तरह से खराब थी उसकी उत्तेजना का कोई ठिकाना ना था और उसने आज तक इस तरह की उत्तेजना अपने बदन में कभी महसूस नहीं की थी हां एसी उत्तेजना उसे तभी महसूस होती थी जब वह अपने पति के साथ बिस्तर पर होती थी लेकिन जिस तरह से,,,, वह अपने बिस्तर पर पति के होने के बावजूद भी प्यासी रह जाती थी इस समय भी उसका हाल ऐसा ही था उसकी उत्तेजना का कोई भी तोड़ नहीं था। शुभम का टनटनाया हुआ लंड निर्मला को बुरी तरह से परेशान किए हुए था। अपने हाथों से ही अपनी प्यास बुझाने का अद्भुत
हुनर निर्मला के हाथों में नहीं था या यूं कह सकते थे कि उसके संस्कार उसे हुनर को सीखने में अवरोध पैदा करते थे।
रसोई घर में होने के बावजूद भी खिड़की के पास से पैदा हुई उसकी उत्तेजना अभी तक शात नहीं हुई थी जिसकी वजह से उसका पूरा बदन पसीना पसीना हो गया था ।उसका गला सूख रहा था उससे जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो वह पंखा चालू कर दी,,,,, पंखे की ठंडी हवा जब उसके बदन को स्पर्श करने लगी तो उसे थोड़ी राहत महसूस हुई,,,,,, और वह फ्रिज खोल कर उसमें से ठंडे बोतल की पानी निकाल कर पीने लगी।
थोड़ी देर बाद निर्मला की स्थिति कुछ हद तक सामान्य होने लगी।,,,,,,

वह सब कुछ भूलकर रसोई में व्यस्त होने की पूरी कोशिश करने लगी लेकिन कुछ देर के लिए वह भूल भी जाती थी लेकिन फिर से उसका मन उसी घटना को याद करके फिर से बह़कने लगता था। वह सब कुछ भूल जाना चाहती थी इसलिए मन को थोड़ा कठोर करके वह रसोई का काम करने लगी।

दूसरी तरफ शुभम काफी परेशान था उसे भी मालूम था कि अब समय हो गया है रसोई घर में जाने का क्योंकि वह इस समय रसोई घर में जाकर अपनी मां की मदद किया करता था। लेकिन उसकी अवस्था इस समय घर से बाहर निकलने की बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि ऐसे जाने पर उसे इस बात का डर था कि उसकी मां की नजर उसके पजामे में बने तंबू पर जरूर जाएगी और अगर ऐसा हुआ तो वह क्या सोचेगी,,,,
यही सब सोचकर उसका मन और ज्यादा घबरा रहा था वह रसोईघर में जाना चाहता था अपनी मां की मदद करना चाहता था लेकिन ऐसे हाल में वह घर से बाहर भी नहीं निकल सकता था। दीवार पर टंगी घड़ी पर नजर जाते ही वह और घबराने लगा क्योंकि समय काफी हो चुका था और फिर डर था कि ऐसे में कहीं उसकी मां कमरे में ही ना आ जाए।
रसोई घर में जाने की जल्दी और घबराहट की वजह से उसके लंड में आया हुआ तनाव धीरे-धीरे शांत होने लगा।
वह मन ही मन भगवान को धन्यवाद देने लगा और जल्दी से अपने कपड़े पहन कर के रसोई घर में आ गया। आते ही वह अपनी मां से बोला जोंकि सब्जियां काट रही थी।

सॉरी मम्मी मुझे आज कसरत करने में देर हो गई,,,,,,
( शुभम की बातें सुनकर निर्मला कुछ बोली नहीं लेकिन उसे यह जरूर पता था कि कसरत करने में नहीं शायद कुछ और करने में ऊसे देरी हो गई थी। कसरत की बात से एक बार फिर से निर्मला को कमरे के अंदर का दृश्य याद आने लगा उसकी आंखों के सामने फिर से उसके अंडर वीयर में बना तंबू नजर आने लगा। उस अलौकिक और उन्मादक छण को याद करके एक बार फिर से उसकी बुर उसकी पैंटी को गीली करने लगी । उससे कुछ भी बोला नहीं जा रहा था।
( अपनी मां को शांत देखकर शुभम रसोई घर में प्रवेश करते हुए सीधे फ्रिज के करीब गया और वह भी उसमें से पानी की बोतल निकाल कर पीने लगा लेकिन तभी उसके हाथ से बोतल का ढ़क्कन नीचे गिर गया,,,,, वह ढक्कन को उठाने के लिए नीचे झुका तो उसकी नजर नीचे गिरे बेगन पर पड़ी और वह उसे उठा लिया जो कि एकदम ताजा मोटा और तगड़ा था बिल्कुल उसके लंड की तरह,,,,,,, बेगन को देख कर उसे आश्चर्य हुआ क्योंकि वह जानता था कि घर में बैगन कोई भी नहीं खाता था। वह पानी के बोतल को वापस फ्रिज में रखकर फ्रिज को बंद कर दिया,,,, लेकिन वह अपने हाथ में अभी भी उस मोटे तगड़े बेगन को लिया हुआ था इस बारे में निर्मला को कुछ भी मालूम नहीं था वह तो उत्तेजित अवस्था में सब्जी काटने में ही व्यस्त थी। वह उस कामुक क्षणों को याद करते हुए सब्जियां काटे जा रही थी कि तभी उसकी आंखों के सामने शुभम ने उस मोटे तगड़े लंबे बैंगन को लाकर दिखाने लगा,,,,,,,, निर्मला तो एक बैगन को देख कर एक दम से चौंक गई बैगन को सुभम ने अपने हाथों में पकड़ा हुआ था। निर्मला की आंखों के सामने बार बार वही दृश्य नजर आ रहा था इस वजह से एक पल को तो उसे ऐसा लगने लगा कि शुभम खुद अपने मोटे लंड को अपने हाथ से पकड़ कर हिलाते हुए उसे दिखा रहा है।यह पल उसे इतना ज्यादा उत्तेजित कर देने वाला लगा कि कुछ सेकंड के लिए उसकी बुर उत्तेजित अवस्था में फुलने पिचकने लगी और उसमें से दो चार बूंद मदन रस की नीचे टपक पड़ी ।
शुभम तो उस बैगन को अपनी मां को सिर्फ औपचारिक रुप से ही दिखा रहा था क्योंकि वह जानता था कि मैं कल घर में कोई खाता नहीं है तो बैगन किसने खरीद कर लाया। इसलिए वह अपनी मां को बेतन दिखाते हुए बोल रहा था कि,,,,,

मम्मी यह बेगन घर में कैसे आया अपने घर में तो बेगन किसी को पसंद ही नहीं है।,,,,,,
( निर्मला को अपने बेटे का यह सवाल का जवाब देना बड़ा ही मुश्किल लग रहा था ऐसा लग रहा है कि जैसे वह घर में बेगन लाकर कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दि हो,,,, उसे कोई भी जवाब सूझ नहीं रहा था आखिर वह अपने बेटे को क्या जवाब दें ईसी उधेड़बुन में लगी हुई थी। तभी वह हकलाते हुए बोली।)

कककककक,,,, कुछ,,,,, नही,,,,,,, बेटा मार्केट में सब्जियां खरीद रही तो,,,,,,तो,,,, बेगन मुझे बहुत,,,,,, बहोत,,,,,, अच्छे और ताजे लगे,,,,, तो मैंने उसे भी खरीद ली,,,,,,,,,,

लेकिन मम्मी बेगम तो कोई खाता ही नहीं,,,,,,( शुभम कहते हुए बेगन को ऊपर नीचे करते हुए हीला रहा था। यह देख निर्मला का गला सूखने लगा था क्योंकि जिस तरह से वह हिला रहा था,,,, ना जाने क्यों ऊसे ऐसा लग रहा था कि शुभम बेगन नहीं बल्कि अपना लंड उसे दिखाते हुए हिला रहा है ।
निर्मला की बुर में अजीब सी हलचल मचने लगी थी । वह अपने बेटे से आंख मिलाने से कतरा रही थी। अपने बेटे के सवाल का जवाब वह फिर से हकलाकर देते हुए बोली।

अरे,,,, तू तो सवाल पर सवाल किए जा रहा है मेरी सहेली थी जो मार्केट में मिल गई उसने मुझे बैगन बनाने का नया तरीका बताइ और यह भी बताई कि बड़ा ही स्वादिष्ट बनता है,,,,,, इसलिए बस ऐसे ही ट्राई करने के लिए ले ली,,,, अगर तुझे ऐतराज है तो रहने देती हूं,,,,,,,,

नहीं मम्मी मुझे कोई एतराज नहीं है मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था,,,,,,, ( इतना कहने के साथ वह फिर से फ्रिज के करीब गया और फ्रीज में उस बैगन को रख दिया,,,,,मम्मी आज मुझे देर हो गया ना इसलिए आपको सब्जी काटनीं पड़ रही है आप मुझे कोई और काम बताइए मैं कर दूंगा,,

शुभम अपनी मां के करीब आकर बोला निर्मला सब्जी काट रही थी लगभग वह सारी सब्जियां काट चुकी थी। वह कटी हुई सब्जी को एक तरफ रखते हुए बोली,,,,,

कोई बात नहीं बेटा मैं काम कर लूंगी,,,,, तुम जाओ जाकर पढ़ाई करो,,,,,,,
 
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नहीं मम्मी मुझे कुछ तो काम बोलो करने के लिए मैं आपका हाथ बटाना चाहता हूं।।। मुझे भी अच्छा लगता है जब मैं आपका हाथ बटाता हूं तो,,,,,, वैसे भी आप अकेले काम कर कर के थक भी जाती हैं और बोर भी हो जाती होंगी,,,,,

( शुभम की बात सुनकर निर्मला मुस्कुराने लगीे और बोली,,,)

अच्छा ठीक है तू मेरा हाथ बट़ाना चाहता है तो,,,, एक काम कर जाकर उस डीब्बे में से आटा निकाल कर ले आ,,,,,,
( निर्मला उंगली से निर्देश करते हुए शुभम से बोली लेकिन बोलते समय उसकी नजर शुभम की जांघों के बीच चली गई जहां पर उसने उत्तेजित कर देने वाला लंबा सा तंबू देखी थी।
जिसे देखते ही उसके बदन में कामोतेजना की लहर फैल गई थी जिसका असर उसे अब भी अपने बदन में देखने को मिल रहा था। हालांकि इस समय तो शुभम की जांघों के बीच का वह उभार शांत था।लेकिन फिर भी ऊस जगह पर निर्मला की नजर जैसे गई उसके बदन में एक बार फिर से उन्माद से भरी हुई हलचल होने लगी,,,,,,,, निर्मला झट से अपनी नजरें घुमा ली,, शुभम अपनी मां की बात सुनकर डीब्बे मै से आटा लेने के लिए गया। वह किचन के नीचे बड़े ड्रोवर में रखे हुए डिब्बे को बाहर निकाल कर ऊसमे से आटा निकालने लगा,,,,, और निर्मला आटा गूथने के लिए बर्तन किचन पर रखने लगी,,,,
बर्तन को किचन पर रखने की वजह से बार-बार निर्मला की हाथों की चूड़ियां खनक रही थी जिस पर शुभम का ध्यान जाते ही वह हटा निकालते हुए हैं नजरें घुमा कर अपनी मां को देखने लगा,,,,,, जैसे ही वह अपनी मां की तरफ देखा उसकी नजर सीधे निर्मला की बड़ी-बड़ी और भरावदार गांड पर गई,,,,, जो कि काम करने की वजह से बदन की हलन चलन उसके नितंबों में एक बड़े ही कामुक तरीके की थिरकन पैदा कर रही थी। जिससे उसकी बड़ी-बड़ी और नरम नरम लचीली गांड स्प्रींग की तरह हल्के हल्के ऊपर-नीचे हो करके एक अद्भुत उभार और थिरकन पैदा करते हुए माहौल को गर्म कर रही थी।
शुभम को तुरंत उसके दोस्तों की कही गई बात याद आने लगी जो कि उसकी मां की बड़ी बड़ी गांड के बारे में ही कह रहे थे। निर्मला अपनी साड़ी के किनारे को एक्साइट करके कमर में डाली हुई थी जिसकी वजह से वहां और भी ज्यादा खूबसूरत और कामुक लग रही थी। शुभम जो देखा तो देखता ही रह गया। वह ऐसा बिल्कुल भी नहीं करता लेकिन उसके दोस्तों की कही गई बात याद आते ही उसकी नजर उसकी मां की खूबसूरत नितंबों से हट ही नहीं रही थी।
वह मंत्रमुग्ध सा अपनी मां की खूबसूरत बदन और उसकी बड़ी बड़ी गांड को ही निहारने लगा,,,,,,, डिब्बे से आटा निकालना तो वह भूल ही चुका था। शुभम की जांघों के बीच उसके हथियार में जो की कुछ देर पहले ही शांत हुआ था एक बार फिर से सुरसुराहट होने लगी।
दूसरी तरफ निर्मला अपने बेटे के लंबे तगड़े लंड को याद करके फिर से उत्तेजित होने लगी थी,,,, वह जानती थी कि उसका बेटा उसके ही पीछे बने बड़े ड्रोवर में से आटे का डिब्बा निकालकर उसमें से आटा निकाल रहा है ।लेकिन वह फिर भी उससे नजरें मिलाने में शर्मा रही थी अजीब सी उत्तेजना का अनुभव करते हुए निर्मला का बदन कसमसा रहा था। फिर से उसकी बुर से नमकीन पानी का रिसाव होना शुरू हो गया था।
शुभम को आटा निकालने मे कुछ ज्यादा ही समय लग रहा था। इसलिए वह नजरें घुमा कर पीछे की तरफ देखीे तो वह शुभम को अपनी ही तरफ देखता हुआ पाई,,,,,, लेकिन जैसे ही निर्मला ने शुभम की नजरों के सिधान पर गौर की तो उसके बदन में हलचल सी मच गई क्योंकि उसके नजरों का सीधान सीधे ही उसकी बड़ी बड़ी गांड पर ही जा रहा था। निर्मला के बदन में हलचल सी मच गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार शुभम वाकई में उसके नितंबों को ही देख रहा है या कुछ और,,,,,,, फिर से गौर करने पर वह अच्छी तरह से समझ गई कि शुभम उसके बड़े बड़े नितंबो को ही घूम रहा था। एक पल के लिए तो इस तरह से अपने बेटे को अपनी नितंबों को घूरता पाकर उसके बदन में प्रचंड उत्तेजना का वेग दौड़ने लगा,,,,, उत्तेजना के मारे उसकी बुर फूलने पिचकने ं लगी उसकी आंखों के सामने एक बार फिर से उसके बेटे का टनटनाया हुआ लंड तैरने लगा। उत्तेजना पल पल उसके बदन को अपने कब्जे में ले रही थी और यही हाल
शुभम का भी था ।वह भी अपनी मां के नितंबों को देखकर एकदम से कामुक हो गया था ।बार-बार उसके दोस्तों की कही गई गंदी बातें जो कि उसकी मां के बारे में ही थी,,, वह याद आ रही थी और ऊन बातों का असर उसके बदन पर पूरी तरह से छाने लगा था। वह अपनी मां के आकर्षक नितंबों को देखने में ऐसा मत भूल हुआ कि उसे इस बात का जरा भी एहसास ही नहीं हुआ कि उसकी मां उसे देख रही है।
इसमें कोई शक नहीं था कि निर्मला बेहद खूबसूरत और बेहद ही गठीले और आकर्षक बदन की मालकिन थी। जिसे कोई भी देख ले तो बस देखता ही रह जाए। शुभम के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था,,, लेकिन आज मैदान में दोस्तों की बातों ने उसके मन को भी पूरी तरह से बहका दिया था।
यह पल बड़ा ही नाजुक पल था । दोनों ही एक-दूसरे के बदन के प्रति आकर्षित हो रहे थे। दोनो पूरी तरह से गर्म हो चुके थे एक हल्की सी भी चिंगारी उनके पवित्र रिश्ते को तार तार कर देने में सक्षम हो सकती थी। शुभम तो जैसे किसी ख्यालों में खो सा गया था वह आटे के डिब्बे में खाली अपना हाथ डाले अपनी मां के भरावदार बदन और उसके नितंबों को घुरे जा रहा था।
निर्मला के लिए भी यह पल बर्दाश्त के बाहर था उसके बदन में भी कामोत्तेजना पूरी तरह से अपना कब्जा जमा चुकीे थी।
लेकिन तभी वह अपने आप को संभाल ली और बोली,,,,

शुभम कितनी देर लगा रहे हो जल्दी लाओ रोटियां बनानी है।
( निर्मला शुभम की तरफ से अपनी नजरें हटाकर वापस बर्तनों को इधर उधर करने में लग गई क्योंकि मुझे शर्म सी महसूस हो रही थी ।शर्म और उत्तेजना के मारे उसका चेहरा सुर्ख लाल हो चुका था,,,, वाह अपने बेटे को उसकी हरकत के लिए डांट भी नहीं सकती थी क्योंकि शुभम जो हरकत किया था,,,,,, इस हरकत के बारे में उसे एहसास दिलाने में भी निर्मला को शर्म सी महसूस हो रही थी वह अपने बेटे को डांटे भी तो किस बात के लिए जाते या उसके मुंह से निकल पाना बड़ा असंभव सा लग रहा था। इसलिए तो वह अपनी नजरें दूसरी तरफ फेरकर शुभम को आटा जल्दी लाने के लिए बोली थी और शुभम भी जैसे मेरे से ज्यादा हो अपनी मां की बात सुनकर,,,,,, डीब्बे मै से जल्दी-जल्दी आटा निकालने लगा,,,,,, और जल्दी से वह घबराते हुए अाटा ला करके अपनी मम्मी को थमा दिया,,,,,, आटा थामते समय जैसे ही निर्मला की नजर शुभम की टांगों के बीच गई तो एक बार फिर से उसका बदन गनंगना गया। शुभम के पजामे मे फिर से लंबा सा तंबू बना हुआ था। जिसका एहसास होते ही शुभम शर्मा के रसोई घर से बाहर चला गया।
 

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