रंगीला लाला और ठरकी सेवक

Member

0

0%

Status

Offline

Posts

10

Likes

1

Rep

0

Bits

166

4

Years of Service

LEVEL 1
95 XP
रंगीला लाला और ठरकी सेवक

मित्रो एक और कहानी नेट से ली है इसे आशु शर्मा ने लिखा है मैं इसे हिन्दी फ़ॉन्ट मे आरएसएस पर पोस्ट कर रहा हूँ मेरी ये कोशिस आपको कैसी लगती है अब ये देखना है और आपका साथ भी सबसे ज़रूरी है जिसके बगैर कोई भी लेखक कुछ नही कर सकता हमारी मेहनत तभी सफल है जब तक आप साथ हैं ................ चलिए मित्रो कहानी शुरू करते हैं ................



झुक कर बैठक में झाड़ू लगा रही रंगीली को जब ये एहसास हुआ कि उसके पीछे कोई है, तो वो झट से खड़ी होकर पलटी,

अपने ठीक सामने खड़े अपने मालिक, सेठ धरमदास को देख वो एकदम घबरा गयी, और अपनी नज़र झुका कर थर-थराती हुई आवाज़ में बोली-

क.क.ककुउच्च काम था मालिक…?

धरमदास ने आगे बढ़कर उसके दोनो बाजुओं को पकड़कर कहा – हां हां ! बहुत ज़रूरी काम है हमें तुमसे, लेकिन सोच रहे हैं तुम उसे करोगी भी या नही..

रंगीली ने थोड़ा अपने बाजुओं को उनकी गिरफ़्त से आज़ाद करने की चेष्टा में अपने बाजुओं को अपने बदन के साथ भींचते हुए कहा – मे तो आपकी नौकर हूँ, हुकुम कीजिए मालिक क्या काम है..?

सेठ धरमदास ने उसके बाजुओं को और ज़ोर्से कसते हुए कहा – जब से तुम हमारे यहाँ काम करने आई हो, तब से तुमने मेरे दिन का चैन, रातों की नींद हराम कर रखी है…

लाख कोशिशों के बाद भी तुम अभी तक हमसे दूर ही भागती रहती हो,
ये कहकर उसने एक झटके से रंगीली को अपने बदन से सटने पर मजबूर कर दिया,

वो सेठ जी की चौड़ी चकली छाती से जा लगी..

उसके गोल-गोल चोली में क़ैद, कसे हुए कच्चे अमरूद ज़ोर्से सेठ की मजबूत छाती से जा टकराए, उसको थोड़ा दर्द का एहसास होते ही मूह से कराह निकल गयी…

आअहह… मलिक छोड़िए हमें, झाड़ू लगाना है, वरना मालकिन गुस्सा करेंगी…

रंगीली के हाथ से झाड़ू छुटकर नीचे गिर चुका था, उसने अपने दोनो हाथों को सेठ के सीने पर रख कर, ज़ोर लगाकर सेठ को अपने से अलग करते हुए बोली –

य.य.यईए…आप क्या कर रहे हैं मालिक, भगवान के लिए ऐसा वैसा कुच्छ मत करिए मेरे साथ..

हम तुम्हें बहुत प्यार करते हैं रंगीली, आओ हमारी बाहों में समा जाओ, ये कहकर उसने फिरसे उसे अपनी ओर खींच लिया, और उसके सुडौल बॉली-बॉल जैसे चुतड़ों को अपने बड़े-2 हाथों में लेकर मसल दिया…

दर्द से बिल-बिला उठी वो कमसिन नव-यौवना, आआययईीीई…माआ…, फिर अपने मालिक के सामने गिड-गिडाते हुए बोली –

भगवान के लिए हमें छोड़ दीजिए मालिक, हम आपके हाथ जोड़ते हैं,

लेकिन उसकी गिड-गिडाहट का सेठ धरमदास पर कोई असर नही हुआ, उल्टे उनके कठोर हाथों ने उसके नितंबों को मसलना जारी रखा…

फिर एक हाथ को उपर लाकर उसके एक कच्चे अनार को बेदर्दी से मसल दिया…

दर्द से रंगीली की आँखों में पानी आगया, अपनी ग़रीबी और बबसी के आँसू पीकर उसने एक बार फिरसे प्रतिरोध किया, और सेठ को धक्का देकर अपने से दूर कर दिया…

फिर झाड़ू वही छोड़कर लगभग भागती हुई वो बैठक से बाहर चली गयी….!


[size=x-small]सेठ अपने चेहरे पर मक्कारी भरी हँसी लाकर, अपने आधे खड़े लंड को धोती के उपर से मसल्ते हुए मूह ही मूह में बुद्बुदाया…


कब तक बचेगी रंगीली, तेरी इस मदभरी कमसिन जवानी का स्वाद तो हम चख कर ही रहेंगे, भले ही इसके लिए हमें कुच्छ भी करना पड़े,



तुझे पाने के लिए ही तो हमने इतना बड़ा खेल खेला है, अब अगर तू ऐसे ही निकल गयी तो थू है मेरी जवानी पर ………



बात 70 के दसक की है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक गाओं, जहाँ के सेठ धरम दास जो इस गाओं के ही नही आस-पास के तमाम गाँव में सबसे धनी व्यक्ति थे…



वैसे तो इनके पिता की छोड़ी हुई काफ़ी धन दौलत थी इनके पास फिर भी ये गाओं और आस पास के सभी वर्गों के लोगों को सूद पर धन देकर, उससे सूद इकट्ठा करके अपने धन में और दिनो-दिन बढ़ोत्तरी करते जा रहे थे.



ब्याज दर ब्याज, जो एक बार इनके लपेटे में आ गया, समझो कंगाल ही हो गया..



घर, ज़मीन गिरबी रख कर भी उसे छुटकारा नही मिला और आख़िरकार वो उसे गँवा देनी ही पड़ी…



इस तरह से ना जाने कितनी ही एकर ज़मीन सेठ धरमदास अपने नाम कर चुके थे.



धर्म दास की पत्नी पार्वती देवी, एक मध्यम रंग रूप की छोटे से कद की मोटी सी, बड़ी ही खुर्राट किस्म की औरत थी.



किसी तरह से इनके 3 बच्चे पैदा हो गये थे, जिनमें सबसे बड़ा बेटा कल्लू था.



उसके बाद दो लड़कियाँ पैदा हुई, क्रमशः कल्लू से 4 और 6 साल छोटी थी…



माँ का दुलारा कल्लू, पढ़ने लिखने में बस काम चलाऊ ही था, किसी तरह से पास हो जाता था… लेकिन लड़कियाँ काफ़ी तेज थीं.



सेठ का मन अपनी सेठानी से तो कब का ऊब चुका था, अब तो वो अपने पैसे के दम पर बाहर ही अपनी मलाई निकालते रहते थे…



कभी कभी तो किसी बेचारी ग़रीब दुखियारी औरत को ही, इनका सूद पटाने के चक्कर में इनके लंड के नीचे आना पड़ जाता था…



सूद तो खैर क्या पटना था, बदले में उसे आए दिन किस्त जमा करने आना ही पड़ता था…और अगर वो सेठ को ज़्यादा दिन तक नज़र नही आई, तो उनके मुस्टंडे जा धमकते उसके घर बसूली के बहाने…



अब थोड़ा सेठ धरमदास के व्यक्तित्व का भी जिकर हो जाए…



38 वर्स के सेठ धरम दास, गोरा लाल सुर्ख रंग, 5’8” की मध्यम हाइट, पेट थोड़ा सा बाहर को निकला हुआ, लेकिन इतना नही कि खराब दिखे…



हल्की-हल्की मूँछे रखते थे, हर समय एक फक्क सफेद धोती, के नीचे एक घुटने तक का पट्टे का घुटन्ना (अंडरवेर) ज़रूर पहनते थे..



उपर एक सफेद रंग की हाथ की सिली हुई फातूरी (वेस्ट) जिसमें पेट पर एक बड़ी सी जेब होती थी…



घर पर वो ज़्यादा तर इसी वेश-भूसा में पाए जाते थे, लेकिन कहीं बाहर जाना हो तो, उपर एक हल्के रंग का कुर्ता डाल लेते थे.



इतनी सारी खूबियों के बावजूद उनका सुबह-2 का नित्य करम था, कि नहा धोकर लक्ष्मी मैया की पूजा करके, माथे पर इनके सफेद चंदन का तिलक अवश्य पाया जाता था…



देखने भर से ही सेठ बड़े भजनानंदी दिखाई देते थे, लेकिन थे नंबरी लंपट बोले तो ठरकी...



जहाँ सुंदर नारी दिखी नही कि, इनकी लार टपकना शुरू हो जाती थी…



सेठ की तीन मंज़िला लंबी चौड़ी हवेली, गाओं के बीचो बीच गाओं की शोभा बढ़ाती थी…



मेन फाटक से बहुत सारा लंबा चौड़ा खुला मैदान, उसके बाद आगे बारादरी, जिसके बीचो-बीच से एक गॅलरी से होते हुए अंदर फिर एक बड़ा सा चौक, जिसके चारों तरफ बहुत सारे कमरे…



सेठ की गद्दी (बैठक) हवेली के बाहरी हिस्से में थी, एक बड़े से हॉल नुमा कमरे के बीचो-बीच, एक बड़े से तखत के उपर मोटे-मोटे गद्दे, जिसपर हर समय एक दूध जैसी सफेद चादर बिछि होती थी,



तीन तरफ मसंद लगे हुए, और तखत के आगे की तरफ एक 3-4 फीट लंबी, 1फीट उँची, डेस्क नुमा लकड़ी की पेटी, जिसके उपर उनके बही खाते रखे होते थे…!


[size=x-small]अपनी बसूली की श्रंखला में ही एक दिन दूर के गाओं में इनकी नज़र रंगीली पर पड़ गयी…



[size=x-small][size=x-small]गोरा रंग छर्हरे बदन <18 वर्ष की रंगीली रास्ते के सहारे अपने जानवरों के वाडे में घन्घरा-चोली पहने अपने पशुओं के गोबर से उपले बना रही थी…


बिना चुनरी के उसके सुन्दर गोले-गोरे अल्पविकसित उभार उसकी कसी हुई चोली से अपनी छटा बिखेर रहे थे,



पंजों के उपर बैठी जब वो उस गोबर को मथने के लिए आगे को झुकती तो उसके अनारों के बीच की घाटी कुच्छ ज़्यादा ही अंदर तक अपनी गहराई को नुमाया कर देती…



रास्ते से निकलते सेठ धरमदास की ठरकी नज़र उस बेचारी पर पड़ गयी…, वो तुरंत वहीं ठिठक गये, और खा जाने वाली नज़रों से उसकी कमसिन अविकसित जवानी का रस लेने लगे…



उन्हें खड़ा होते देख, साथ चल रहे उनके मुनीम भी रुक गये और अपने मालिक की हरकतों को परखते ही चस्मे के उपर से उनकी नज़रों का पीछा करते हुए रसीली की कमसिन जवानी को देखते ही अपनी लार टपकाते हुए बोले –



ये बुधिया बघेले की बेटी है मालिक,



सेठ – कॉन बुधिया…?



मुनीम – वोही, जिसकी ज़मीन और मकान दोनो ही हमारे यहाँ गिरबी रखे हैं…



ये सुनकर सेठ की आँखें रात के अंधेरे में जगमगाते जुगनुओ की मानिंद चमक उठी…



मुनीम की बात सुनते ही सेठ के लोमड़ी जैसे दिमाग़ ने वहीं खड़े-खड़े इस कमसिन सुंदरी को भोगने का एक बहुत ही शानदार प्लान बना लिया…, और उनकी आँखें हीरे की तरह चमक उठी…



अपने सेठ की आँखों की चमक को पहचानते ही मुनीम बोला – बुधिया को बुलाऊ सरकार…



सेठ ने मुस्कुराती आँखों से अपने मुनीम की तरफ देखा और अपनी धोती को उपर करने के बहाने, अंगड़ाई ले चुके लंड को मसलते हुए बोले –



तुम सचमुच बहुत समझदार हो मुनीम जी…. चलो बुधिया के पास चलते हैं…



बुधिया का घर उसके जानवरों के बाँधने वाली जगह यानी घेर से थोड़ा चल कर गाओं के अंदर था,



कच्चे मिट्टी के अपने छोटे से घर के आगे बने चबूतरे पर चारपाई पर बैठा बुधिया, अपने दो पड़ौसीयों के साथ हुक्का गडगडा रहा था,



सबेरे-सबेरे जन्वरी फेब्रुवरी के महीने में खेती-किसानी का कोई खास काम तो होता नही, गाओं में लोग बस ऐसे ही आपस में बैठ बतिया कर समय पास करते हैं…



हुक्का गडगडाते हुए उसकी नज़र उसके घर की तरफ आते हुए सेठ धरमदास और उसके मुनीम पर पड़ी…



बेचारे के तिर्पान काँप गये, सोचने लगा, आज सबेरे-सबेरे ये राहु-केतु मेरे घर की तरफ क्यों आ रहे हैं, अभी कुच्छ महीने पहले ही तो बसूली करके ले गये हैं..



अब अगर इन्होने कोई माँग रख दी, तो.. ? ये सोचकर वो अंदर तक काँप गया…

4 बच्चों और खुद दो प्राणी को पालने लायक ही अनाज बचा था बेचारे के पास,



अब और इसको कुच्छ देना पड़ा तो…, भूखों मरने की नौबत आ सकती है…!



अभी वो हुक्के की नई (नली का सिरा जिसे मूह में देकर धुए को सक करते हैं) को उंगली के सहारे मूह पर लगाए इन्ही सोचों में डूबा हुआ ही था, तब तक वो दोनो उसके चबूतरे तक पहुँच गये,



बुधिया के दोनो पड़ौसी सेठ को देख कर चारपाई से खड़े होकर दुआ-सलाम करने लगे, तब जाकर उसकी सोच को विराम लगा,



वो फ़ौरन हुक्के को छोड़ खड़ा हुआ और अपनी खीसें निपोर कर बोला – राम-राम सेठ जी, आज सबेरे-सबेरे कैसे दर्शन दिए…?



सेठ – राम-राम बुधिया… कैसे हो भाई… सब कुशल मंगल तो है ना…?



बुधिया– आप की कृपा से सब कुशल मंगल है सेठ जी…आइए, कैसे आना हुआ..?



सेठ – बस ऐसे ही गाओं में आए थे, कुच्छ लोगों से हिसाब-किताब वाकी था, सोचा एक बार तुम्हारे हाल-चाल भी पुच्छ लें…



बुधिया हिसाब-किताब की बात सुनकर फिर एक बार अंदर ही अंदर काँप गया, लेकिन अपने दर्र पर काबू रखने की भरसक कोशिश करने के बाद भी उसकी आवाज़ काँपने लगी और हकलाते हुए बोला –



ल .ल्ल्लेकींन…सेठ जी मेने तो इस बरस का हिसाब कर दिया था…



सेठ उसकी स्थिति भली भाँति समझ चुके थे, सो उसे अस्वस्त करते हुए बोले – अरे तुम्हें फिकर करने की ज़रूरत नही है बुधिया…तुमसे तो बस ऐसे ही हाल-चाल जानने चले आए…!



सेठ जी की बात सुनकर उसकी साँस में साँस आई, और एक लंबी गहरी साँस छोड़ते हुए बोला – तो फिर बताइए सेठ जी ये ग़रीब आपकी क्या सेवा कर सकता है..



सेठ – सेवा तो हम तुम्हारी करने आए हैं बुधिया, सुना है तुम्हारी बेटी जवान हो गयी है, शादी-वादी नही कर रहे हो उसकी…!



भाई बुरा मत मानना, जवान बेटी ज़्यादा दिन घर में रखना ठीक बात नही है..



बुधिया – हां सेठ जी शादी तो करनी है, लेकिन ग़रीब आदमी के पास इतना पैसा कहाँ है,



अब आपसे तो कुच्छ छुपा हुआ नही है, जो होता है उसमें से आपका क़र्ज़ चुकाने के बाद उतना ही बच पाता है, कि बच्चों के पेट पाल सकें…



शादी में लड़के वालों को लेने-देने, उनकी खातिर तबज्जो करने में बहुत खर्चा लगता है,


[size=x-small][size=x-small]अब नया क़र्ज़ लूँ तो उसे चुकाने के लिए कहाँ से आएगा, यही सब सोचकर अभी तक चुप बैठा हूँ…!

[size=x-small][size=x-small][size=x-small]बुधिया की बात सुनकर, सेठ जी ने एक अर्थपूर्ण नज़र से अपने मुनीम की तरफ देखा, और फिर बड़े ही अप्नत्व भाव से बोले –



देखो बुधिया, तुम्हारी बेटी इस गाओं की बेटी, अब हमारा संबंध इस गाओं से भी है, तो बेटी की शादी में मदद करना हमारा भी कुच्छ फ़र्ज़ बनता है..



अगर तुम्हें कोई एतराज ना हो, तो हम तुम्हें वो रास्ता बता सकते हैं, जिससे तुम्हारे उपर कोई भार भी ना पड़े, और लड़की भी एक सुखी परिवार में पहुँच जाए…



सेठ की बात सुनकर बुधिया को लगा कि आज उसके यहाँ सेठ के रूप में साक्षात भगवान पधारे हैं, सो उनके हाथ जोड़कर बोला – वो क्या रास्ता है सेठ जी,



अगर ऐसा हो गया तो जीवन भर में आपके चरण धो-धोकर पियुंगा…



सेठ जी मुस्कुरा कर बोले – अरे नही भाई, ये तो हम गाओं की बेहन-बेटी के नाते कर रहे हैं..., तुम्हारी बेटी सुखी रहे बस…



हमारे गाओं के रामलाल को तो तुम जानते ही होगे, अरे वोही जिसका बेटा रामू रेलवे में नौकरी करता है,



उसके पास कुच्छ ज़मीन जयदाद भी है, तुम्हारी बेटी राज करेगी वहाँ…

अगर हां कहो तो हम रामलाल से बात चलायें,



बुधिया - पर सेठ जी, वो लड़का तो कद में छोटा है, और कुच्छ रंग भी हेटा है..मेरी बेटी रंगीली तो उससे ज़्यादा लंबी है और रंग की भी बहुत सॉफ है, जोड़ी कुच्छ अजीब सी नही लगेगी.



सेठ जी – देखलो भाई, हमने तो सोचा था, रामलाल भी अपना आदमी है, तुम भी हमारे अपने ही हो, लेन-देन की कोई बात नही रहेगी,



और रही बात बारातियों की खातिर तबज्ज़ो की, अगर तुम ये रिस्ता मंजूर करते हो, तो उसका खर्चा एक बेटी के कन्यादान स्वरूप हम अपनी तरफ से उठा लेंगे…!



इतना अच्छा प्रस्ताव सुनकर बुधिया सोच में पड़ गया, अब वो सोचने लगा कि चलो थोड़ा बहुत जोड़ा 19 -20 भी हो तो क्या हुआ,



4 बच्चों में से एक लड़की का जीवन तो संवर जाए, और सेठ जी की कृपा से शादी भी फोकट में हो जाएगी… !



सेठ – किस सोच में पड़ गये बुधिया, भाई मुझे तो अपने लोगों की चिंता है इसलिए इतना कहा है, वरना मुझे क्या पड़ी… तुम्हारी लड़की जब तक चाहो घर में बिठाकर रखो…



बुधिया – नही ऐसी बात नही है सेठ जी, आप तो हमारे अन्न दाता हैं, मे रंगीली की माँ से एक बार बात करके आपको जबाब देता हूँ, वैसे आप मेरी तरफ से तो हां ही समझो…



उसकी बात सुनकर सेठ के मन में लड्डू फूटने लगे, उसको पता था, कि इतने अच्छे प्रस्ताव को ये ग़रीब आदमी ठुकराने से रहा और रामलाल वही करेगा जो हम कहेंगे…



सेठ – अच्छा तो बुधिया हम चलते हैं, अपनी पत्नी से बात कर्लो, फिर तसल्ली से बता देना, उसके बाद ही हम रामलाल से बात करेंगे, ठीक है..



बुधिया हाथ जोड़कर – जी सेठ जी राम – राम…..



दो महीने बाद ही रंगीली रामू की पत्नी के रूप में शादी करके सेठ के गाओं आ गयी,



अब यहाँ रामू के घर परिवार के बारे में बताना भी ज़रूरी है…



रामलाल के भी 4 बच्चे थे, दो बेटियों की शादी करदी थी जो रामू से बड़ी थी…



सबसे बड़ा एक लड़का और है भोला नाम का जो कम अकल, किसी काम का नही बस गाय भैसे चराने के मतलव का ही है…



कम अकल होने की वजह से कोई अपनी लड़की ब्याहने को तैयार नही हुआ सो बेचारा कुँवारा ही रह गया…



रामू सबसे छोटा था, जो बचपन से काम के बोझ का मारा, ज़्यादा लंबा ही नही हो पाया, यही कोई 5 फुट के आस-पास ही रह गया, जबकि रंगीली की हाइट 5’4” के करीब थी…



पक्का रंग, रेलवे यार्ड में खल्लासी का काम करता है, सारे दिन माल गाड़ियों से समान ढोते-ढोते बेचारे की शाम तक कमर लचक जाती है, ब मुश्किल दो दिन की छुट्टी लेकर दूल्हा बना था…



रंगीली की सखी सहेलियाँ दूल्हे को देख कर कुच्छ दुखी हुई, बेचारी के भाग ही फुट गये, हम सब सहेलिओं में सुंदर है,



और इसका दूल्हा…, अब होनी को कॉन टाल सकता है, भाग में जैसा लिखा है, होकर रहता है… पर चलो जीजा जी कुच्छ कमाते तो हैं…, रंगीली सुखी रहेगी.



खैर रंगीली ने अपने दूल्हे की सुंदरता के बारे में अपनी सहेलियों से ही सुना, देखने का मौका उसे सीधा उसकी सुहाग रात को ही मिला वो भी शादी के तीन दिन बाद सारे देवी-देवताओं की मान-मुनब्बत करने के बाद…



वो भी एक छोटी सी केरोसिन की डिब्बी के उजाले में, सो सही सही अनुमान भी नही लगा कि रंग काला है या पीला.. हां थोड़ी लंबाई ज़रूर कम लगी…


[size=x-small][size=x-small][size=x-small]फिर जब सेज सैया पर (एक चरमराती चारपाई) नये बिच्छावन के साथ, पति के साथ संसर्ग हुआ… तो उसे बड़ा झटका सा लगा…

[size=x-small][size=x-small][size=x-small][size=x-small]सहेलियाँ तो कहती थी, कि प्रथम मिलन में बड़ी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ता है, खून ख़राबा तक हो जाता है,

लेकिन यहाँ तो उसके पति ने सीधा उसका लहंगा उपर किया और अपनी लुल्ली अंदर डाल दी, उसे लगा जैसे किसी ने उसकी चूत में उंगली डाल कर 10-15 बार अंदर बाहर की हो,

नयी नवेली मुनिया, शुरू के एक दो बार उसे हल्का सा दर्द फील हुआ, जिसे वो पैर की उंगली में लगी किसी ठोकर समझ कर झेल गयी…

फिर कुच्छ झटकों के बाद जब उसे भी थोड़ा मज़ा सा आना शुरू हुआ ही था कि तब तक उसका पल्लेदार पति, अपना पानी छोड़ कर उसके उपर पड़ा भैंसे की तरह हाँफने लगा…..!

माँ के घर से विदा होते वक़्त रंगीली की माँ और दूसरी बड़ी-बूढ़ी समझदार औरतों ने उसे कुच्छ ज्ञान की बात कहीं थी, मसलन :

पति की आग्या का पालन करना, सास ससुर की सेवा…, पति परमेश्वर होता है, वो जैसा रखे उसी को मान सम्मान देते हुए स्वीकार कर लेना…बल्ला..बल्ला..बल्लाअ..

सौ की एक बात, उन बातों को ध्यान में रखते हुए रंगीली अपने नये परिवार में अपने आप को ढालने की कोशिश करने लगी…

कुच्छ दिन तो उसकी बड़ी ननदे उसके पास रही, जिसकी वजह से उसका दिल एक नयी जगह पर लगा रहा, लेकिन जब वो अपने-अपने घर चली गयी, तो उसे वो घर काटने को दौड़ने लगा…

5 फूटिया 45 किलो का पति, सुवह 5 बजे ही अपनी मेहनत मजूरी के लिए निकल जाता, सारे दिन गधे की तरह रेलवे यार्ड में लदता, देर रात को आख़िरी गाड़ी से लौटता, खाना ख़ाता और 5 मिनिट में ही उसके खर्राटे गूंजने लगते…!

नव-यौवना रंगीली, जो ठीक तरह से ये भी नही जान पाई कि चुदाई होती क्या है, सुहागरात के नाम पर उसके पति परमेश्वर ने उसकी सोई हुई काम-इक्षा से उसका परिचय करा दिया था.

इससे अच्छा तो उसके व्याह से पहले ही थी, कम से कम उसकी मुनिया सिर्फ़ मूतना ही जानती थी,

लेकिन अब उसे उसके असली उपयोग के बारे में भी पता लगवा दिया था…!

बमुश्किल वो उसके उपर हफ्ते दस दिन बाद एक बार ही सवारी करता, वो भी जब तक वो दौड़ने के लिए तैयार होती उससे पहले ही खुद खर्राटे लेते हुए सो जाता, रंगीली बेचारी रात भर जिस्म की आग में तड़पति रहती…

अब बेचारी अपनी दूबिधा कहे तो किससे कहे, बूढ़े सास-ससुर जो वक़्त की मार ने समय से पहले ही उन्हें और बूढ़ा कर दिया था, वो अपनी पुत्र बधू की दूबिधा को भला क्या समझते…

बस कभी कभार नहाते समय, थोड़ा बहुत हाथ से सहला लेती जिससे उसकी काम इच्छा और ज़्यादा भड़कने लगती,

उसको तो अभी तक ये भी पता नही था कि उंगली डालकर भी जिस्म की आग शांत की जा सकती है, उसके दिमाग़ में तो यही था, कि मर्द जब अपना लंड डालता और निकालता है…बस उतना ही है,

असल मज़ा किसे कहते हैं कोई बताने वाला भी तो नही था…

रामू की ज़मीन भी लाला के यहाँ गिरबी पड़ी थी, उसे कोई करने वाला भी नही था, ससुर अपने पागल बेटे को लेकर थोड़ा बहुत लगा रहता…

सेठ का कर्ज़ा बदस्तूर जारी ही था, रामू मेहनत मजूरी करके जो कुच्छ कमाता, उसमें से आधी किस्त ब्याज के नाम पर लाला हड़प लेता…

घर के काम काज, सास ससुर की सेवा ही रंगीली की दिनचर्या बन गयी थी...,

अभी शादी को 2 महीने भी नही बीते थे कि एक दिन लाला आ धम्के उसके घर, मुनीम ने लंबा चौड़ा वही-ख़ाता खोल कर उनके सामने रख दिया,

बेचारे रामू और उसके माँ-बाप की सिट्टी-पिटी गुम, तभी दयालु ह्र्दय लाला ने ही उन्हें एक राह सुझाई….!

रामलाल, क्यों ना अपनी बहू को हमारे घर काम करने के लिए भेज दे, उसकी एबज में हम तुमसे ब्याज नही लिया करेंगे, और रामू की कमाई से तुम्हारा घर अच्छे से चलने लगेगा…

अँधा क्या चाहे – दो आँखें, ये बात फ़ौरन उन तीनो के भेजे में घुस गयी, और उसी शाम उन्होने रंगीली को लाला के यहाँ काम पर जाने के लिए राज़ी कर लिया…!

घूँघट में खड़ी अपने पति के परिवार की व्यथा जानकार उसने अपना सर हिलाकर हामी भर दी, सोचा नयी जगह पर काम करने से कुच्छ तो मन भटकने से बचेगा…

गाओं की नयी-नवेली बहू, गली गलियारे का भी पता नही होगा, लाला का घर कैसे मिलेगा यही सोच कर दूसरे दिन सास खुद अपने साथ लेजा कर उसे लाला की हवेली छोड़ आई….

लाला धरमदास ने अपनी सेठानी को रंगीली के बारे में पहले ही बता दिया था... सो उसके पहुँचते ही उसे काम बता दिए गये,

अब बेचारी पर काम की दोहरी ज़िम्मेदारी पड़ने लगी, पति के काम पर जाने से 1 घंटा पहले उठना यानी 4 बजे… उसके लिए खाने का डिब्बा तैयार करना,

घर का झाड़ू कटका करके 8 बजे तैयार होकर लाला के घर पहुँचना, शाम तक सेठानी उससे ढेरों काम करती, हां लेकिन दूसरे नौकरों की तरह दोपहर का खाना पीना उसका वहाँ हो जाता था…!
 
OP
S
Member

0

0%

Status

Offline

Posts

10

Likes

1

Rep

0

Bits

166

4

Years of Service

LEVEL 1
95 XP
कुच्छ पुरानी खुर्राट नौकरानियाँ जो बस सेठानी की चापलूसी में ही लगी रहती, और अपने हिस्से का काम भी रंगीली जैसी सीधी-सादि नयी नौकर से ही करवाती..

फिर कुच्छ दिन बाद सेठ ने धीरे से सेठानी को बातों में लगा कर रंगीली को अपने निजी कामों, जैसे बैठक की साफ-सफाई, बही खातों को व्यवस्थित करना आदि कामों के लिए लगवा लिया…

अब वो जब अपने कामों में व्यस्त रहती, और सेठ जी उसके नव-यौवन का रसस्वादन बोले तो चक्षु-चोदन करते रहते…

काम के बहाने अपने बही खातों को इधर से उधर रखवाने के बहाने वो उसके शरीर का स्पर्श भी करने लगे…

निश्चल मन, अल्हड़ रंगीली, लाला के मनोभावों को भला क्या पढ़ पाती, बस उसे स्वाभिवीक बात समझ कर नज़र अंदाज कर दिया करती…!

धीरे-धीरे सेठ ने उसे घूँघट ना करने पर भी राज़ी कर लिया, ये कहकर कि मेरे लिए तो तेरे मायके और ससुराल वाले एक जैसे हैं…!

लाला की गद्दी के पीछे की तरफ दीवार से लगी हुई एक लाइन से लकड़ी की अलमारियाँ बनी हुई थी, जिनमे उनके बाप दादाओं के जमाने तक के बही खाते भरे हुए थे…!

एक दिन लाला ने रंगीली से उन बही खातों से धूल साफ करने के लिए कहा – वो उसका जहाँ तक हाथ पहुँच सकता था उस उँचाई से धूल सॉफ करने लगी…!

लाला – अरे पहले उपर से सॉफ कर वरना बाद में नीचे धूल लगेगी…!

रगीली उनकी बात सुनकर बैठक से बाहर की तरफ जाने के लिए मूडी, लाला ने उसका मन्तव्य समझते ही फ़ौरन कहा – अरे कहाँ चली…?

उसने कहा – मालिक हम कोई स्टूल लेकर आते हैं, वरना उपर तक हाथ नही पहुँचेगा…!

लाला – अरे तो हम हैं ना, तू फिकर क्यों करती है, फूल सी बच्ची को तो मे ऐसे ही आराम से उठा लूँगा, तू सॉफ कर देना…

लाला की बात पर वो हिच-किचाई, और बोली – नही मालिक, आप हमें उठाएँगे, अच्छा नही लगेगा…

लाला – अरी बाबली ! हमसे क्या शरमाना, मे तो तेरे पिता जैसा हूँ, क्या कभी अपने बाप की गोद में नही बैठी तू…?

रगीली अपनी नज़रें नीची किए हुए ही बोली – वो तो हम बचपन में बहुत बार बापू की गोद में खेले रहे… पर अब आपकी गोद में कैसे…

नही नही ! हमें बहुत लाज आएगी, हम स्टूल ही लिए आते हैं..

लाला को लगा कि मामला उल्टा होता नज़र आ रहा है, सो फ़ौरन अपनी आवाज़ में रस घोलते हुए अपने शब्दों को चासनी में लिपटा कर बोले –

तू तो खमखाँ शर्म कर रही है बिटिया…, है ही कितनी जगह, 4-6 खाने ही तो हैं, उसके लिए इतने भारी स्टूल को उठाकर लाएगी, और फिर ना जाने कहाँ पड़ा होगा…!

चल तू झाड़ू और कपड़ा पकड़, हम तुझे सहज ही उठा लेंगे, है ही कितना वजन..? फूल सी बच्ची ही तो है…!

लाला की ऐसी रस भरी बातें सुनकर रंगीली की झिझक कुच्छ कम होती जा रही थी, सो वो हँसते हुए बोली –

क्या बात कर रहे हैं मालिक, इतनी हल्की भी नही हूँ मे, एक मन (40किलो) से तो बहुत ज़्यादा हूँ…!

लाला – कोई बात नही, तू चिंता ना कर हम तुझे आराम से संभाल लेंगे.., अब ज़्यादा बात ना बना और जल्दी काम शुरू कर…

सरल स्वाभाव रंगीली सेठ की बातों में आ गई, अपनी चुनरी के पल्लू को कमर में खोंस कर अपनी चोली को ढक लिया, और बोली – ठीक है मालिक फिर उठाइए हमें…!

लाला – ज़रा रुक, हम अपनी धोती को निकाल कर अलग रख देते हैं नही तो धूल गिरने से गंदी होगी, और हां तू भी अपनी चुनरी को अलग रख्दे, धूल चढ़ेगी बेकार में…!

ये कहकर लाला ने अपनी धोती उतार कर गद्दी पर रख दी, और मात्र अपने पट्टे के घुटने में आ गये,

बातों में फँसाकर उन्होने रंगीली की चुनरी भी अलग रखवा दी..,

और फिर रंगीली के पीछे जाकर उसे अपनी बाहों में लेने के लिए तैयार हो गये….!

सेठ धरमदास ने रंगीली को पीछे से उठाने के लिए जैसे ही अपने हाथ आगे किए, रंगीली बोली – देखना मालिक कहीं हम गिर ना जाएँ…!

उसके एक हाथ में झाड़ू और दूसरे में एक मोटा सा कपड़ा था, उसने जैसे ही अपने दोनो हाथ उपर उठाए, सेठ के बड़े-बड़े हाथ उसकी बगलों पर जम गये…!

रंगीली के लिए तो ये शायद साधारण सी बात रही होगी, लेकिन लाला के बदन में मादकता से परिपूर्ण बिजली की भाँति एक लहर सी दौड़ गयी…!

मजबूर और छिनाल औरतों के साथ मूह काला करते रहने वाले लाला के हाथों में एक कमसिन कली का बदन आते ही उसके बदन में अजीब सी कंपकपि सी दौड़ने लगी…!

एक नव-यवना के सानिध्य के एहसास ने उसके खून में उबाल पैदा कर दिया, और बादाम युक्त दूध और हलवा खाने वाले लाला का लंड एक सेकेंड में ही उछल कर खड़ा हो गया…

लाला के शरीर में ताक़त की कोई कमी नही थी, सो उसने ब-मुश्किल 48-50 किलो की रंगीली को किसी बच्ची की तरह उठा लिया…!

हाथों के अंगूठे और तर्जनी उंगली के बीच की गोलाई वाला भाग उसकी कांख (आर्म्पाइट) पर फिट होगया,


[size=x-small]लाला के बड़े-बड़े हाथों की उंगलियाँ रंगीली की कच्चे अमरूदो जैसी अविकसित गोलाईयो के बगल से उनकी कठोरता का स्वाद लेने लगी…!

शायद ही किसी मर्द के हाथों का स्पर्श अभी तक हुआ हो उसकी इन गोलाईयों पर, सो लाला की उंगलियों का स्पर्श पाकर वो अंदर तक सिहर गयी…, और उसका पूरा बदन बिजली के झटके की तरह झन-झना गया…!

आज शायद पहली बार उसे ये एहसास हुआ, कि उसके सीने के ये उभार भी खाली दिखाने या बच्चे को दूध पिलाने के लिए नही है, इनका भी शायद कोई ज़रूरी उपयोग होता होगा…!

लाला की लंबाई, रंगीली से 4-5” ज़्यादा थी, वो उसे कोई एक फुट ही उपर उठा पाया था,

धरम लाला का 7” लंबा और खूब मोटा लंड एकदम सीधा खड़ा होकर रंगीली के कुल्हों और जांघों के जोड़ों के बीच जा घुसा…!

रगीली के नितंब और जांघें किसी अधेड़ औरत की तरह इतने मांसल तो नही थे, फिर भी एक कोमलांगी के बदन का मखमली एहसास लाला के लंड की साँसें रोकने के लिए काफ़ी था…!

भले ही वो घाघरा पहने थी, फिर भी लाला का घोड़ा ऐसा मस्त अस्तबल पाकर हिनहिनने लगा…!

रंगीली अपनी जांघों के जोड़ों के बीच किसी सोट जैसी चीज़ को फँसा पाकर सोच में पड़ गयी,

मालिक के दोनो हाथ तो उसकी बगलों के नीचे लगे हुए हैं, फिर ये तीसरी चीज़ क्या है…, लेकिन जल्द ही उसे मर्द के शरीर की भौगौलिक स्थिति का भान हुआ…!

वो बुरी तरह सिहर गयी, मन ही मन सोचने लगी, हे राम ये क्या है…, लंड तो उसने अपने पति का भी देखा था, वो तो उंगली से थोड़ा ही मोटा था, फिर ये ?

नही..नही ! ये वो नही हो सकता.. ये तो कुच्छ और ही चीज़ होगी…

अभी वो इस असमंजस से बाहर भी नही निकल पाई, कि लाला ने उसे थोड़ा सा नीचे को कर दिया,

इसी के साथ रंगीली की छोटी सी गान्ड की दरार किसी बबूल के डंडे की खूँटि जैसे लंड पर टिक गयी…!
गान्ड के छेद पर दबाब पड़ते ही रंगीली की चूत में सुरसूराहट सी होने लगी...,

ये देखकर वो हैरान रह गयी, कि ये आज उसे कैसे-कैसे अजीब तरह के एहसास हो रहे हैं…!

उसे सेठ के लंड पर गान्ड रखने में बहुत अच्छा लग रहा था, इधर उसकी गोलाईयों पर उनकी उंगलियों का एहसास दूसरी तरह की मस्ती दे रहे थे…

वो एक अजीब तरह की मस्ती में डूबती जा रही थी…!

इससे पहले कि वो इस मस्ती को कुच्छ देर और फील करती, की लाला जी बोले - हाथ पहुँच गया तेरा रंगीली उपर तक…?

वो जैसे नींद से जागी हो, और अपनी चेतना में लौटते हुए बोली – अभी थोड़ा और उपर उठाना पड़ेगा मालिक, अलमारी के उपर की धूल दिखाई नही दे रही…!

लाला – भाई, इस तरह से तो और उँचा नही कर सकता मे तुम्हें, एक काम करते हैं, दूसरी तरह से उठाता हूँ, इतना कहकर उसने धीरे-2 रंगीली को नीचे उतारा…!

जैसे-जैसे उसका भार लाला जी के लंड पर पड़ता जा रहा था, वो नीचे को अपनी गर्दन झुकाने पर मजबूर होता चला गया,

रंगीली की गान्ड की दरार पर एक साथ ही दबाब और बढ़ा और उसके मूह से ना चाहते हुए एक सिसकी निकल गयी…!

लंड उसकी दरार में घिस्सा लगाते हुए उसकी कमर पर जा लगा..., इसी के साथ उसके पैर ज़मीन पर टिक गये…!

अब रंगीली के मन में ये तीव्र जिग्यासा हुई, कि आख़िर वो खूँटे जैसी चीज़ थी क्या, सो नीचे आते ही वो फ़ौरन लाला जी की तरफ घूम गयी,

और जैसे ही उसकी नज़र अपने मालिक के घुटन्ने में क़ैद कालिया नाग पर पड़ी…, वो अंदर तक सिहर गयी…!

हे राम ! ये तो वोही चीज़ है, शायद मेरी सहेलियाँ ऐसे ही किसी लंड के बारे में बोलती थी, कि बहुत दर्द देता है, खून ख़राबा तक होता है…!

रंगीली को अपने लंड पर नज़र गढ़ाए हुए देख कर सेठ धरमदास के चेहरे पर एक अर्थपूर्ण मुस्कान तैर गयी, वो उसका हाथ पकड़ कर बोले –

क्या देख रही है रंगीली…?

लाला की बात सुनकर वो एकदम हड़बड़ा गयी, बोली – कककुकच्छ नही मालिक, चलो अब कैसे उपर उठाओगे…

लाला – हां चल, उठाता हूँ, और फिर उन्होने अलमारी की तरफ अपनी पीठ कर ली और उसको अपनी तरफ पलटकर जांघों के बाहर से हाथ लपेट कर उसे उपर उठा लिया…!

अब रंगीली आसानी से अलमारी की उपरी सतह को भी अच्छे से देख सकती थी, लेकिन इस स्थिति में लालजी का मूह ठीक उसके उभारों की घाटी के मुहाने पर था…

रंगीली ने सबसे पहले झाड़ू से उस सतह की धूल सॉफ की, ना जाने कितने दिनो से उसे सॉफ नही किया था, सो ढेर सारी धूल जमा हो रही थी…!

उसने जैसे ही झाड़ू से धूल को नीचे गिराया, आधी धूल उन दोनो के उपर गिरी,

चूँकि रंगीली का सर तो उपर था, सो धूल का भाग उसके उपर तो कम गिरा..

लेकिन सेठ जी की खोपड़ी धूल से अट गयी, कुच्छ धूल के कन उनकी आँखों में भी चले गये…!

बिलबिला कर उन्होने अपनी आँखें मींच ली और अपने धूल से सने चेहरे को रंगीली की चोली से रगड़ते कुए बोले –
ये क्या गजब कर दिया तूने, सारी धूल मेरे उपर ही डाल दी…

क्षमा करना मालिक ग़लती से गिर गयी, लेकिन मे भी क्या करती, उपर हाथ किए हुए अंदाज़ा नही लगा..., आप छोड़ दीजिए हमें और अपना चेहरा सॉफ कर लीजिए…

सेठ भला ऐसे मौके को हाथ से कैसे जाने देता, सो अपनी नाक को उसके उभारों के बीच रगड़ते हुए बोला –

कोई बात नही रंगीली, अब गंदे तो हो ही गये है, तुम ठीक से उपर की सफाई कर्लो…!

जितनी देर उसने उपर की सफाई की, उतनी देर लाला जी उसके अविकसित उभारों में अपना मूह डाले अपने होठों, नाक, गालों और कभी-कभी जीभ से भी उसी घाटी को चाटते रहे, रगड़ते रहे…

मालिक की इस हरकत से रंगीली भी खुमारी में डूबने लगी थी…

[size=x-small]फिर जब उपर का पोर्षन अच्छे से सॉफ हो गया, तो वो बोली – मालिक उपर का हो गया, अब हमें थोड़ा नीचे कर्लो…!

हरामी लाला ने पहले से ही अपने हाथो से उसे इस तरह से पकड़ा था, कि उसका घाघरा घुटनों तक आ गया था,

फिर जैसे ही उसने रंगीली को थोड़ा और नीचे को सरकाया, वो सरक कर उसकी जांघों तक चढ़ गया…!

और सबसे ख़तरनाक काम ये हुआ कि उनका खूँटा उसकी चूत के ठीक नीचे पहुँच गया…!

अपनी मुनिया के मुलायम होठों के उपर लोहे जैसी शख्त चीज़ का एहसास होते ही, रंगीली तड़प उठी…, सोने पे सुहागा, नीचे सरकते हुए उसके कच्चे अमरूद लाला की कठोर छाती से रगड़ गये…

उसने अपने कुल्हों को थोड़ा पीछे को किया ये सोचकर की शायद उस खूँटे से अपनी मुनिया को अलग कर लेगी, लेकिन ठीक इसके उलट उसका टोपा उसकी फांकों के बीच आगया,

वो कराहते हुए बोली – आअहह…मालिक ! थोड़ा उपर उठाओ ना…!

लाला की मस्ती धीरे-2 चरम पर पहुँच रही थी, सो उसने उसकी बात को अनसुना करते हुए उसे और ज़ोर्से कस लिया,

और उसकी गान्ड के नीचे एक हाथ रखकर वो अपनी कमर को आगे पीछे करने लगे…, हवा में लटकी रंगीली कुच्छ करने की स्थिति में नही थी,

खूँटे जैसे लंड की ठोकर उसकी मुनिया के होठों पर पड़ रही थी, शुरू के लम्हों में उसे लंड के दबाब ने कुच्छ परेशान किया लेकिन धीरे-2 अप्रत्याशित रूप से उसकी मुनिया गीली होने लगी, जिसका उसे कतयि अंदाज़ा नही था…

उसे लगा, कहीं उसे मासिक धर्म (पीरियड) तो नही होने लगे, सो कराह कर बोली – आअहह मालिक हमें नीचे उतारो, सॉफ हो गया...!

लाला अपने चरम पर पहुँच चुके थे, सो उसे थोड़ी देर और कसकर जकड़े कमर चलाते हुए बोले – आहह… थोड़ा और अच्छे से सॉफ होने दे…,

रंगीली की मुनिया से भी लगातार रस बरसने लगा था, लाला ने दो चार बार ज़ोर्से कमर चलाई…और फिर आख़िरकार अपनी पिचकारी घुटन्ने (अंडरवेर) में ही छोड़ दी…!

इस घटना के बाद रंगीली को अपने शरीर के अंगों की एहमियत का पता चलने लगा, एकांत मिलते ही वो उनपर नये-नये प्रयोग करने लगी, मसलन,

अपनी कच्ची चुचियों को हाथ से सहला कर देखती, और फिर लाला जी के साथ हुई घटना के दौरान जो आनंद आया था, उससे उसकी तुलना करती…,

फिर अपनी मुनिया को सहलाती, कभी ज़ोर्से रगड़ती, लेकिन उतना मज़ा नही आता, जितना वो उस दिन ली थी…

उसने इस सब का यही निष्कर्ष निकाला, कि मर्द के साथ करने और अपने हाथ से करने में ज़मीन आसमान का अंतर है,

अब वो जब भी मौका लगता, सोते हुए अपने पति का हाथ अपने अंगों पर रखकर दबाती, लेकिन नारी सुलभ, वो खुलकर बोल नही पाती की ऐसा सब उसके साथ करो…

ना जाने वो उसके बारे में क्या सोचने लगे…, इधर उसे अपनी माँ की सीख भी याद आती, इस वजह से वो दूसरे मर्द के बारे में तो अपने मन में कोई बुरा ख्याल भी नही आने देती…!

उधर लाला की लालसा रंगीली को पाने के लिए दिनो दिन बल्बति होती जा रही थी, उस दिन के उनके प्रयास से उन्हें लगने लगा कि वो भी शायद यही चाहती है,

लेकिन जब वो उनके सामने आती, और वो कुच्छ इशारों-इशारों में उसको कुच्छ बोलना चाहते थे इस बारे में.., जिसे वो बेचारी अंजान कली भला क्या समझ पाती..!

वो तो लाला जी की आदत समझ कर अपने काम में लग जाती..., पर हां ! अब वो उनकी नीयत को पहचानने लगी थी…!

वो समझने लगी थी, कि उसका लंपट, ठरकी मालिक उससे क्या चाहता है.., जिसे वो किसी भी कीमत पर नही होने दे सकती…!

भले ही उसका मरियल थकेला पति उसकी प्यास बुझाने में असमर्थ हो लेकिन वो किसी गैर मर्द को अपने पास नही फटकने देगी…

इधर दिनो-दिन लालजी का लंड बग़ावत करने पर उतारू होता जा रहा था, वो उसे देखते ही किसी बिगड़ैल घोड़े की तरह उनके घुटन्ने में भड़क उठता, जिसे वो किसी तरह तोड़-मरोड़कर शांत करते रहते…!

लाला चाहे कितना ही लंपट सही, लेकिन अपनी सेठानी से उसकी गान्ड बहुत फटती थी, इस वजह से वो कम से कम घर के अंदर किसी भी नौकरानी के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती नही कर सकते थे…

खैर किसी तरह दिन निकल रहे थे, जो ख़ासकर लाला के लिए बड़े भारी गुजर रहे थे… !

आख़िरकार वो दिन भी आगया, जो इस कथानक के इन दोनो पात्रों की जिंदगी ही बदल देने वाला था…!

बैठक में झाड़ू लगा रही रंगीली को देख कर सेठ धरमदास चुपके से बैठक में घुस आए,

झुकने से उसके गोल-गोल नितंब उसके घाघरे से उभरकर उनके मन को ललचा रहे थे, फिर जब उनसे कंट्रोल नही हुआ,

तो चुप-चाप जाकर वो उसके पीछे खड़े हो गये और उसके बॉली-बॉल जैसे नितंब को सहला दिया…

रंगीली चोंक कर खड़ी हो गयी, उन्होने उसे ज़बरदस्ती अपनी बाहों में जकड लिया, और उसके अंगों से खेलने लगे…

वो मिन्नतें करती रही, भगवान की दुहाई देकर अपने आप को छोड़ने के लिए बोलती रही, लेकिन उन्होने उसे अपनी मजबूत गिरफ़्त से आज़ाद नही होने दिया…

अंततः उसने मालिक और नौकर के लिहाज को ताक पर रख कर विरोध करना शुरू कर दिया, और जैसे तैसे अपने को उनकी गिरफ़्त से आज़ाद किया, और मौका लगते ही फ़ौरन वहाँ से भाग गयी…

वहाँ से सीधी वो अपने घर पहुँची, और अपने कोठे में चारपाई पर औंधे मूह पड़कर अपनी बेबसी पर सूबक-सूबक कर रोने लगी…!

अपनी बहू को तेज़ी से घर में घुसते हुए, और फिर इतनी देर से कोठे से बाहर ना आते देख उसकी सास दुलारी कुच्छ अनिष्ट की आशंका लेकर उसके कोठे में आई,

बहू को यूँ औंधे मूह पड़े सूबक-सूबक कर रोते देख वो घबरा उठी…!

उसने उसकी पीठ पर हाथ रख कर सहलाते हुए पुछा – क्या हुआ बहू….? ऐसे क्यों रो रही है, सेठानी ने कुच्छ कहा क्या…?

रोते – रोते अपनी सास के सवालों का क्या जबाब दे रंगीली सोचने लगी, अगर वो इन्हें सच्चाई बता भी देती है, और अगर लाला ने नकार दिया,

और अगर उल्टे उसी पर कोई चोरी-चाकारी का इल्ज़ाम लगा दिया तो, वो और ज़्यादा परेशान कर सकता है, ये सोचकर अपने घर को मुसीबतों से बचाने की गर्ज से सुबक्ते हुए बोली –

माँ-बापू की याद आ रही है, अपने भाई बहनों को इतने दिन से नही देखा है, मुझे अपने घर भिजवा दीजिए…!

दुलारी – अरे बहू तो इसमें रोने की क्या बात है, शाम को रामू आएगा, उसको बोलकर कल उसे लेकर चली जाना…!

रंगीली – उन्हें तो अपने काम से ही छुट्टी कहाँ मिलती है, मुझे अभी जाना है, ससुरजी को बोलो छोड़ आएँगे, दूर ही कितना है.. एक घंटे में पहुँच जाएँगे…

दुलारी – चल ठीक है, पूछती हूँ उनको, अब चुप हो जा…

कुच्छ देर के बाद रंगीली सर पर समान की पोटली लिए घूँघट निकाले अपने ससुर के पीछे-2 अपने गाओं की तरफ चल दी…
 
OP
S
Member

0

0%

Status

Offline

Posts

10

Likes

1

Rep

0

Bits

166

4

Years of Service

LEVEL 1
95 XP
आने-जाने के साधन कुच्छ थे नही, सो बेचारे कडकती धूप में पैदल ही चल दिए, और डेढ़-दो घंटे का सफ़र तय करने के बाद वो अपने मैके पहुँच गयी…

खूब रोई वो अपनी माँ के गले से लगकर…, माँ को भी इतने दिन अपनी बेटी के बिछड़ने से रोना आ ही गया…!

ससुर को वापस भेज दिया ये कहकर, अब वो कुच्छ दिन अपनी माँ के पास ही रहेगी..., इसमें कोई विशेष बात भी नही थी…

शादी के बाद पहली बार वो अपने घर आई थी, आमतौर पर शादी के बाद 6-8 महीने लड़कियाँ अपने मैके में रह ही जाती हैं, सो ससुर उसे छोड़ कर कर चले गये…!

उधर जब एक दो दिन रंगीली काम पर नही आई, तो चौथे दिन मुनीम आ धमका रामलाल के यहाँ, तब पता चला कि वो तो अपने मैके चली गयी…!

जब ये बात लाला को पता चली कि उसने अपने घर उस घटना के विषय में कुच्छ नही बताया है, तो वो समझने लगा,

कि कहीं ना कहीं रंगीली उसके साथ ये रिस्ता बनाना चाहती है, लेकिन झिझक रही है जिसे अब उसे जल्द से जल्द दूर करना होगा.

उधर श्रवण मास शुरू होने को था, तो धीरे-धीरे करके गाओं की दूसरी नव विवाहित सखी सहेलियों का भी आना शुरू हो गया,

जब वो आपस में मिल बैठकर अपनी ससुराल और पति के साथ बिताए हुए पलों के बारे में बातें करती, इससे रंगीली अपने दुख को भूल इन बातों में अपनी रूचि लेने लगी…

कोई-कोई कोरी गप्प भी मारती थी, अपनी ससुराल और पति के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बताती…, जो भी हो अच्छा टाइम पास होता उसका दोपहर के वक़्त..

इसी दौरान रंगीली की एक खास सखी चमेली एक दिन उसके घर आई, उसकी शादी भी रंगीली से कुच्छ दिन पहले ही हुई थी…

सुंदरता में वो रंगीली के कहीं आस-पास भी नही फटकती थी, शादी के पूर्व एक सुखी-ठितूरी सी युवती थी…!

लेकिन आज उसे देखते ही रंगीली मूह बाए उसे देखती ही रह गयी, क्या रंग-रूप निखर आया था उसका…

जहाँ उसका शरीर हड्डियों का ढाँचा नज़र आता था, वहीं चन्द महीनों में ही उसका बदन भर गया था, और वो 32-28-34 के फिगर की एक पटाखा माल नज़र आ रही थी, जो किसी भी मर्द का लंड खड़ा कर्दे..!

ख़ासकर उसकी गोलाइयाँ जहाँ नीबू के आकर की हुआ करती थी, आज वो इलाहाबादी अमरूद जैसी हो गयी थी, और गान्ड तो बस पुछो ही मत…

जब कसे हुए घाघरे में कमर मटका कर चलती, तो मानो दो फुटबॉल आपस में मिला दिए हों…!

रंगीली उसे देखते ही हाथ पकड़ कर अंदर ले आई और दोनो सखियाँ एक दूसरे को बाहों में लिए पूरे आँगन में नाचने लगी…
इसी दौरान रंगीली के हाथ उसके नाज़ुक अंगों पर चले गये और उनका आकार और पुश्टता मापते हुए बोली –

अरी चमेली ! तू तो कितनी सुंदर हो गयी है री, ये हड्डियों का ढाँचा इतना जल्दी एक भरपूर औरत में कैसे तब्दील हो गया…?

चमेली – लेकिन तू कुच्छ बुझी-बुझी सी लग रही है, क्या बात है…जीजाजी तुझे अच्छे से प्यार नही करते…? या खाने पीने को अच्छा नही मिलता…?

रंगीली – ऐसी कोई बात नही है, सब मुझे अच्छे से रखते हैं, और सभी प्यार करते हैं…

चमेली – अरी में सभी की बात नही कर रही, मे तो बस तेरे पति के बारे में पूछ रही हूँ, क्या वो तुझे बिस्तर पर पूरा सुख देते हैं…?

रंगीली – पूरा सुख से तेरा क्या मतलव है…?

चमेली – अब तुझे कैसे समझाऊ…? अच्छा छोड़ पहले ये बता तेरी सुहागरात कैसी थी, कितना मज़ा किया तुम दोनो ने…?

चमेली की बात सुनकर रंगीली थोड़ा शरमा गयी, वो अपने होंठ काटते हुए बोली – मुझे नही पता,

पता नही तू क्या बात कर रही है, ऐसे भी कोई बता सकता है भला अपनी सुहागरात के बारे में..

चमेली समझ गयी की रंगीली को कुच्छ तो दुख है, वो उसकी शादी के वक़्त मौजूद तो नही थी, लेकिन दूसरी सहेलियों से उसने उसके पति के बारे में सब सुन रखा था…

इसलिए उसने भाँप लिया कि उसका पति उसे वो सुख नही दे पा रहा जो उसे मिल रहा है, अतः वो उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर बोली –

अरी उसमें क्या शरमाना, ये तो सभी लड़कियों के साथ होता है, बताना क्या-क्या किया.., हम भी तो सुनें मेरी प्यारी सखी ने कैसे कैसे मज़े लिए..? उसके बाद मे भी अपने बारे में सब बताउन्गी…!

ना चाहते हुए भी रंगीली को वो सब बताना पड़ा जो उसकी सुहागरात और फिर उसके बाद उसके साथ उसके पति द्वारा किया जा रहा था…

उसकी सुहागरात का किस्सा सुनकर चमेली को बड़ा दुख हुआ…, वो बड़े दुखी स्वर में बोली – इसलिए तू इतनी बुझी-बुझी सी लग रही है,

एक औरत शादी के बाद वाकी सारे दुखों को दरकिनार कर सकती है, अगर उसे उसका पति बिस्तर पर सच्चा सुख दे सके,

वरना उसके बदन की आग अंदर ही अंदर उसे जलाती रहती है, और वो औरत किसी गीली लकड़ी की तरह जीवन भर सुलगती रहती है…

चमेली के द्वारा कहे गये शब्द उसे एकदम अपने उपर सही फिट बैठते दिखाई दे रहे थे, और उसकी हिरनी जैसी कजरारी आँखें अनायास ही नम हो उठी,

लेकिन तुरंत ही अपने मनोभावों पर काबू करते हुए बोली – ये सब छोड़, तू अपने बारे में तो बता, तेरी सुहागरात कैसी रही…..?


चमेली मुस्कुराती हुई, उसके हाथों को पकड़कर बोली – अच्छा तुझे मेरी सुहागरात के बारे में सुनना है,

तो चल कहीं एकांत में बैठकर बताती हूँ, यहाँ चाची आगयि तो बात पूरी नही हो पाएगी…!

फिर वो उसका हाथ पकड़कर अपने घेर (जहाँ जानवरों को रखा जाता है) में लेगयि, उसकी मस्तानी चाल से उसके कलश जैसे मटकते चूतड़ देखकर रंगीली अपने कुल्हों पर हाथ लगाकर देखने लगी लेकिन वहाँ उसे इतनी थिरकन नही लगी…

वो मन ही मन सोचने लगी कि सुखी लकड़ी जैसी चमेली के चूतड़ इतने मोटे-मोटे कैसे हो गये…, काश मेरे भी ऐसे होते…!

घेर में पहुँचकर दोनो सखियाँ एक झाटोले सी चारपाई पर बैठकर बातें करने लगी, चमेली अपनी सुहागरात के बारे में बताते हुए इतनी एक्शिटेड थी, खुशी उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी…

चमेली – तुझे तो पता ही है, मेरे पति एक फ़ौजी हैं, थोड़ा कड़क मिज़ाज हैं, और सच कहूँ तो मर्द कड़क स्वाभाव ही होना चाहिए, तभी तो वो मर्द कहलाता है..

खैर, सुहाग सेज पर मे सिकुड़ी सिमटी सी बैठी थी, कि तभी किसी के आने की आहट मुझे सुनाई दी, मेने फ़ौरन अपना घूँघट निकाल लिया और घूँघट की ओट से ही दरवाजे की तरफ देखा…

मेरे पति हल्के से शराब के नसे में झूमते हुए मेरे पास आकर बैठ गये, और मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा, मे डर और लज्जावस अंदर तक सिहर गयी…

मेरा शरीर काँपने लगा, तो वो बोले – अरे, तुम इस तरह काँप क्यों रही हो..? तबीयत ठीक नही है क्या तुम्हारी…!

मेने मूह से जबाब देने की बजाय, गर्दन ना में हिला दी, वो समझे कि मे कह रही हूँ कि तबीयत सही नही है, सो बोले.. तो चलो तुम्हें डॉक्टर के पास ले चलता हूँ..

फिर मुझे बोलना ही पड़ा – नही जी मे ठीक हूँ, मुझे कुच्छ नही हुआ…

वो – तो इस तरह काँप क्यों रही हो…?

मे – बस ऐसे ही, थोड़ा डर सा लग रहा है…

वो हंस कर बोले – किससे, यहाँ मेरे अलावा तो कोई नही है, फिर किससे डर रही हो?

मे – जी आपसे, मेरी सहेलियाँ कहती थी कि पहली रात को पति बहुत परेशान करते हैं..

मेरी बेवकूफी भरी बात सुनकर वो ठहाका मार कर हँसने लगे, मे उनके चेहरे को देखने लगी…

फिर उन्होने मेरा घूँघट हटा दिया, और मेरे गालों को बड़े प्यार से सहलाते हुए बोले – तुम्हारी सहेलियाँ ठिठोली कर रही होंगी, आज के बाद तुम्हारा सारा डर दूर हो जाएगा..

ये कहकर उन्होने मुझे पलग पर लिटा दिया, और खुद मेरे बगल में बैठ कर अपने हाथ से मेरे गालों को सहलाया, फिर गर्दन, फिर मेरे सीने को…

इस तरह बिना कपड़े निकाले उन्होने मेरे पूरे बदन पर अपने हाथ से सहलाया..

तू विस्वास नही करेगी, उनके हाथ के स्पर्श से ही मेरे पूरे बदन में अजीब सी सनसनाहट फैल गयी, डर का तो कहीं नामो-निशान भी नही रहा..

मेरा विरोध ना जाने कहाँ चला गया… फिर उन्होने एक एक करके मेरे सारे कपड़े निकाल दिए, और खुद भी निवस्त्र होकर मेरे बगल में लेट गये…

मे तो किसी कठपुतली की तरह बस पड़ी थी…
मेरे सूखे से बदन को देखकर वो बोले – तुम तो बहुत कमजोर हो, पता नही मुझे कैसे झेल पाओगी..

मेने झट से कह दिया – हम देखने के लिए ही कमजोर लगते हैं, शक्ति बहुत है, सारे काम कर लेते हैं..

वो हंस कर बोले – अच्छा, देखते हैं कितनी शक्ति है तुम्हारे अंदर…

उसके बाद वो मेरे नग्न शरीर को सहलाने लगे, आअहह…क्या बताऊ रंगीली, उनके हाथ का स्पर्श पाकर मेरा शरीर उत्तेजना से भरता चला गया,

मे किसी जल बिन मछलि की तरह तड़पने लगी…, मेरी टाँगों के बीच में खुजली सी होने लगी, और उन्हें मेने कसकर भींच लिया…!

वो मेरे हल्के से फूले हुए गालों को चाटने लगे, और फिर मेरे होठों का चुंबन लेकर उन्हें चूसने लगे,

वो बोले, तुम भी मेरा साथ दो चमेली, मज़ा आएगा…, तो मे भी ऐसे ही उनके होठों को चूसने लगी,

फिर उन्होने मेरे मूह में अपनी जीभ डाल दी, हाई री दैया… क्या बताऊ, जैसे ही उनकी जीभ मेरी जीभ से टकराई, अपने आप मेरी जीभ उनकी जीभ के साथ अठखेलियाँ करने लगी…

मुझे इस खेल में अजीब सा आनंद मिलने लगा…,

5 मिनिट के बाद वो नीचे की तरफ बढ़े और मेरी नीबू जैसी कच्ची चुचियों के आस-पास अपनी जीभ से चाटने लगे…

मज़े के मारे अपने आप मेरे मूह से सिसकियाँ निकलने लगी…सस्स्सिईईई….आअहह…
और मे अपने पैरो को भींचे, एडियों को बिस्तेर पर रगड़ने लगी..

फिर जैसे ही उन्होने अपने बड़े-बड़े हाथों में मेरे नीबुओं को क़ैद करके मसला.. एक मीठे दर्द की लहर मेरे बदन में दौड़ गयी…

लेकिन तू विश्वास नही करेगी रंगीली, उस दर्द में भी मुझे एक अलग ही मज़ा आ रहा था… वो जैसे –जैसे मेरे नीबुओं को मसल रहे थे, मेरी चूत से पानी सा निकलने लगा…

अब वो मेरी कच्ची चुचियों को मूह में भरकर चूसने लगे और एक हाथ मेरी चूत के उपर फिराया जो एकदम गीली हो चुकी थी…

मेरी तो साँसें ही अटकी पड़ी थी, फिर जैसे ही उन्होने मेरी चूत में अपनी एक मोटी सी उंगली डाली, मे दर्द से बिला-बिला उठी,

वो समझ गये कि मेरी चूत एकदम कोरी है, इसका उद्घाटन उंगली से करना ठीक नही है…सो वो मेरी टाँगों के बीच में आकर बैठ गये…

मे उन्हें किसी अजूबे की तरह बस देखे जा रही थी, क्योंकि उनकी एक-एक हरकत मुझे जन्नत की सैर करा रही थी, तो बीच में अपनी टाँग अड़ाकर दोनो का मज़ा क्यों खराब करती…

रंगीली, चमेली की सुहागरात के सीन में एकदम खो चुकी थी, वो इस समय चमेली की जगह अपने आप को रखकर इमेजिन कर रही थी…

फिर जैसे ही चमेली ने कहा कि उसके पति ने उसकी गीली चूत को जीब से चाटा…

रंगीली के मूह से सिसकी निकल पड़ी…सस्सिईईई…..आअहह…उसकी खुद की चूत गीली होने लगी थी…

चमेली ने उसके कंधे पकड़ कर हिलाते हुए कहा – तुझे क्या हुआ रंगीली..?

वो झेंपकर बोली – कुछ नही तू आगे सुना…

वो मेरी चूत को चाटते हुए जब उसके दाने (भज्नासा) को अपने होठों में दबाकर चूस्ते, मुझे ऐसा लगता की में बिना कुच्छ अंदर डाले ही झड़ने लगूंगी..

और हुआ भी यही, मे ज़्यादा देर तक अपने आपको नही रोक पाई, और उनके मूह में मेने अपना पानी छोड़ दिया…

हाई री रंगीली, जानती है, वो मेरा सारा चूतरस पी गये, और एक-एक बूँद को चाट लिया…मेरी तो हालत ही खराब थी, जिंदगी में पहली बार इतना पानी निकला था मेरी मुनिया से…

फिर उन्होने अपना 7” लंबा और खूब मोटा सोट जैसा कड़क लंड मेरे हाथ में पकड़ा दिया..., पहली बार मेने किसी मर्द का खड़ा लंड देखा था…,

मेरे तो तिर्पान काँप गये…, एक हाथ अपने मूह पर रख कर बोली – हाईए…दैयाआ….ये क्या है जी…,

वो हंस कर बोले – इसे लंड कहते हैं मेरी जान, अब ये तुम्हारी चूत के अंदर जाने वाला है

मेने डरते हुए कहा – हाई राम इसे कैसे झेल पाउन्गि, मेरी चूत तो इतनी छोटी सी है…, प्लीज़ इसे मत डालो, नही तो मे मर जाउन्गि…

उन्होने प्यार से मेरे गाल को सहलाया, और बोले – आज तक कोई मरा है, जो तुम मर जाओगी, ये अंग तो लचीले होते हैं, ज़रूरत के हिसाब से अपना आकार बना लेते हैं..

हां पहली बार थोड़ी सी तकलीफ़ तो हर किसी को होती है, पर तुम चिंता मत करो, मे बड़े प्यार से इसे अंदर कर दूँगा, अब तुम थोड़ा इसे अपने मूह में लेकर गीला करो..

मेने चोन्क्ते हुए कहा – क्याअ…?? मूह में..?? नही नही मुझसे ये नही होगा…

मेरे वो बोले – क्यों इसमें ऐसा क्या विष लगा है, मेने भी तो तुम्हारी चूत चाटी
ना.., लो नखरे मत करो, सभी लड़कियाँ इसे चुस्ती हैं, तुम्हें भी अच्छा लगेगा..

ना चाहते हुए, बुरा सा मूह बनाकर मेने उसे पहले चाटा, उसके मूह पर एक सफेद पानी की बूँद जैसी लगी थी, जो मेरे मूह में जाकर घुल गयी,

उसका कसैला सा स्वाद मुझे अच्छा लगा, और में उसे मन लगाकर चूसने लगी..


[size=x-small]थोड़ी देर लंड चुस्वा कर वो फिर से मेरी टाँगों के बीच आए, और अपना मूसल जैसा लंड मेरी गीली चूत के बंद होंठों के उपर रगड़ दिया…

उत्तेजना में मेरी तो कमर ही हिलने लगी, फिर उन्होने जैसे तैसे करके मेरी चूत के छोटे से छेद को खोला, और उसके मूह पर अपने लंड का मोटा टमाटर जैसा सुपाडा रखकर दबा दिया…

मेने कस कर अपनी आँखें बंद करली, और आने वाली मुसीबत का सामना करने के लिए अपने आप को तैयार करने लगी…….!

मेने कस कर अपनी आँखें बंद करली, और आनेवाली मुसीबत का सामना करने के लिए अपने आप को तैयार कर लिया…….!

रंगीली चमेली की सुहागरात के सीने में इस कदर खोई हुई थी, मानो चमेली की नही उसकी सील टूटने वाली हो, सो उसने एक झुर झुरी सी अपने अंदर महसूस की,

उसने अपनी जांघों के बीच गीलापन बढ़ता महसूस किया.., चमेली अपनी कथा सुनने में मगन थी, और रंगीली किसी गूंगे के गुड के स्वाद की तरह बस उसके चेहरे पर नज़रें गढ़ाए हुए थी…

चमेली ने आगे एक नज़र अपनी प्यारी सखी पर डाली, जो इस समय अपनी टाँगों को कस कर भींचे हुए बस उसे ही देखे जा रही थी…!

एक सेक्सी स्माइल करते हुए चमेली बोली – तुझे में क्या बताऊ रंगीली, उनके लंड का एकदम गरम दहक्ता सा सुपाडा इतना ज़्यादा मोटा था की मेरी मुनिया के छेद को चौड़ा करके उसके उपर रखने के बाद भी वो मेरी चूत की पतली पतली फांकों के बाहर तक निकला हुआ महसूस कर रही थी मे…

मेरी साँसें इतनी तेज़ी से चल रही थी मानो मीलों दौड़ लगाके आई हूँ…

उन्होने मेरी पतली मुलायम जांघों को अपने मजबूत कसरती पाटों के उपर रखा हुआ था, मेरे नीबुओं को सहला कर वो मेरे उपर झुके, और मेरे रसीले, डर से थर-थर काँप रहे होंठों पर अपने होंठ रख दिए…

मेने अपनी आँखें खोलकर उनकी तरफ देखा, उनका लंड मेरी मुनिया के मूह पर अटका हुआ ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे किसी ने ज़बरदस्ती किसी का मूह बंद कर रखा हो…

उनके मेरे उपर झुकने से उनके लंड का दबाब मेरी चूत पर बढ़ गया, जिससे मेरी कराह निकल गयी….आअहह…माआ…

उन्होने मेरे होंठों को कस कर अपने होंठों में जप्त करते हुए हल्का सा झटका अपनी कमर में लगा दिया…!

मूह के अंदर ही अंदर मेरी चीख निकल गयी, और उनका लंड मेरी चूत की झिल्ली पर जा अटका…, मेरी तो जैसे जान ही अटक गयी,

उनके बालों को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर मेने उनके चेहरे को अपने से अलग करना चाहा लेकिन कामयाब नही हो पाई…,

मेने फिर से कस कर अपनी आँखें मींच ली, उन्होने अपने लंड को थोड़ा सा बाहर निकाला, मुझे कुच्छ राहत सी हुई, कि चलो जान बची, शायद इन्हें मेरे उपर दया आ गई होगी…

लेकिन मेरा सोचना एकदम ग़लत साबित हुआ, क्योंकि तभी उन्होने एक तेज धक्का मेरी चूत में मार दिया….च्चाअरररर…की आवाज़ के साथ उनका लंड मेरी चूत की झिल्ली को फाड़ता हुआ, तीन-चौथाई अंदर समा चुका था…

ना जाने कहाँ से मुझमें इतनी शक्ति आ गई, उनका मूह ज़ोर देकर पीछे को हटा दिया, और अपने होंठों को आज़ाद करते ही मे बुरी तरह से चीख पड़ी…

अररीई….मैय्ाआ…र्रिि….मररर…गाइिईई…रीईई….बचाऊओ…मुझीए…

उन्होने झट से एकबार फिर मेरे होंठों को जप्त कर दिया… लेकिन आगे धक्का नही लगाया, और मेरे नीबुओं को सहलाने लगे…

मेरे छोटे-छोटे चुचकों (निपल्स) को अपनी उंगली के पोर से सहलाया…, ऐसा करने से मेरे चूत के दर्द में कुच्छ राहत सी लगी, और वो गीली होने लगी…

उन्होने मेरे होंठों को चूसना अब बंद कर दिया…, मेने लगभग हान्फ्ते हुए कहा – बहुत जालिम हैं आप, मेरी जान निकाल दी…

उन्होने मेरे गालों को सहलाते हुए कहा – अरे मेरी रानी, तुम्हारी जान निकालकर मुझे क्या मिलेगा…, ये तो पहली बार सबको झेलना ही होता है…,

थोड़ी देर ठहर कर उन्होने अपने लंड को बाहर निकाला, मेरी चूत अंदर से कुच्छ खाली सी हो गयी, लेकिन अगले ही पल और एक तगड़ा सा धक्का मार दिया…

मे एक बार फिर दर्द से तड़प उठी, लेकिन इस बार मेने चीखना बेहतर नही समझा, क्योंकि जो होना है वो तो होकर ही रहेगा, तो हाइ-तौबा करने से ही क्या लाभ..

लेकिन दर्द से मेरी आँखों में आँसू आ गये…अब मुझे उनका लंड एकदम अपने पेडू यहाँ, चमेली ने अपने पेट की निचली सतह पर हाथ लगा कर बताया, महसूस हो रहा था…

उनका वो मोटा ताज़ा लंड मेरी छोटी सी चूत में ना जाने कैसे समा गया, और ऐसा फिट हो गया, मानो बिना खड्डा किए कोई खूँटा ज़मीन में गाड़ दिया हो…

मेरी चूत के पतले-पतले होंठ, उनके लंड के चारों तरफ इस तरह कस गये थे मानो किसी रब्बर की रिंग में एक मोटी सी रोड जबदस्ती फिट कर दी हो…!

दर्द से मे अंदर ही अंदर छ्ट-पटा रही थी, मेरी आँखों से पानी निकल रहा था…, लेकिन उन्होने मुझ पर कोई रहम नही किया, और धीरे-धीरे अपने खूँटे को अंदर-बाहर करने लगे…

हाए रंगीली, तुझे मे कैसे बताऊ, दो-चार बार के अंदर बाहर करने से तो मुझे ऐसा लगा, कि मेरी चूत की अंदर की चमड़ी भी उनके खूँटे के साथ ही बाहर ना चली जाए…

लेकिन फिर कुच्छ ही देर में मेरी चूत के श्रोत से पानी फूटना शुरू हो गया, जिससे उनका लंड आराम से अंदर बाहर होने लगा, और साथ ही मेरा दर्द ना जाने कहाँ छूमन्तर हो गया, और मुझे मज़ा आने लगा…
 
OP
S
Member

0

0%

Status

Offline

Posts

10

Likes

1

Rep

0

Bits

166

4

Years of Service

LEVEL 1
95 XP
अब मेरे दर्द भरी कराह सिसकियों में बदल गयी, मे भी अपनी गान्ड उठा-उठाकर चुदाई का मज़ा लेने लगी…

जो लंड कुच्छ देर पहले मुझे 1-1 इंच लेना भारी पड़ रहा था, अब में खुद उसे ज़्यादा से ज़्यादा अंदर लेने के लिए कोशिश करने लगी…!

उनके धक्के अब लगातार तेज और तेज होते जा रहे थे, उसी ले में मेरी गान्ड भी नीचे से अपने आप उचक-उचक कर लंड लेने के लिए उछल्ने लगी…

हम दोनो पसीने से तर-बतर हो गये थे, फिर मुझे लगा जैसे मेरे अंदर से किसी ने पानी का मुहाना खोल दिया हो..

मेने अपनी टाँगें उनकी गान्ड के उपर लपेट ली, और उन्हें कस कर जकड़ते हुए मे झड़ने लगी…

कम से कम दो-तीन मिनिट तक लगातार मेरा पानी निकलता रहा, तब जाकर में शांत हुई,

आअहह… वो क्या सुख था मेरी सखी, मन कर रहा था जैसे इसी सुख में ही मेरी जान क्यों ना निकल जाए लेकिन ये लम्हा कभी ख़तम ना हो…!

उन्होने भी दो-चार तगड़े धक्के लगाए और उन्होने भी मेरी चूत की गहराइयों में अपने गाड़े-गाड़े वीर्य की धार छोड़ दी…,

हाए ही दैयाअ….ऐसा लगा जैसे किसी ने जलती भट्टी में पानी का छिड़काव कर दिया हो…

मेरी चुत की गर्मी एक दम शांत हो गयी, और मे बेसूध होकर उनकी बाहों में पड़ी रह गयी…
मुझे ये होश नही रहा कि कब वो मेरे उपर से उतरकर बगल में आ गये,

फिर उन्होने मेरी सफेद रंग की कच्छी से ही अपना लंड साफ किया जिसपर खून और मेरा कामरस लगा हुआ था…

जब वो मेरी खून और वीर्य से सराबोर चूत को साफ करने लगे, तब मुझे एक टीस सी लगी और मेने अपनी आँखें खोलकर उनकी तरफ देखा…

मेरी बगल में आकर वो फिर से मेरे बदन को सहलाने लगे.., लेकिन अब मुझे अपनी चूत में कुच्छ दर्द का आभास हो रहा था…

लेकिन जैसे-जैसे उनके हाथ मेरे बदन पर चल रहे थे, मेरे बदन में फिर एक बार सनसनी सी दौड़ने लगी…

उन्होने मेरी पतली कमर को अपने हाथों में लिया और मुझे पकड़ कर पलटा दिया, और बिस्तर पर घोड़ी की तरह घुटनों पर कर दिया…

खुद मेरी गान्ड के पीछे आ गये, उन्होने मेरी छोटी सी गान्ड को सहलाया, फिर उसे चूमा, चाटा, अपना मूह मेरी गान्ड की दरार में डाल दिया और पीछे से मेरी गान्ड और चूत को चाटने लगे…

मे अपनी चूत के दर्द को भूलकर फिर से मस्ती में भर उठी, और अपनी गान्ड मटकाते हुए अपनी चूत और गान्ड चटवाने लगी…!

कुच्छ देर चाटने के बाद उन्होने फिर अपने लंड को पीछे से मेरी चूत के छेद पर रखा, और धीरे-धीरे करके पूरा लंड जड़ तक अंदर डाल दिया…

मे एक बार फिर दर्द से कराह उठी, लेकिन अब पहले जैसा दर्द नही हुआ, कुच्छ देर वो पूरा अंदर करके यूँही ठहरे रहे, और फिर धीरे-2 धक्के लगाने शुरू कर दिए…

कुच्छ ही धक्कों के बाद मुझे भी मज़ा आने लगा, और मे भी अपनी गान्ड पटक-पटक कर उनके लंड को लेने लगी…!

मीज-मीज कर उन्होने मेरी छोटी सी चुचियों को लाल कर दिया था, लेकिन मुझे दर्द के साथ-साथ मज़ा भी आ रहा था…

उस दिन के बाद से दो महीने तक वो रहे, हम दोनो सारी-सारी रात भरपूर चुदाई का मज़ा उठाते रहे,

उन्हें पीछे से चोदने में ही ज़यादा मज़ा आता था, उसी का परिणाम तू देख मेरी गान्ड और चुचियाँ कैसी हो गयी हैं…

सच कहूँ रंगीली, इस दुनिया में किसी औरत के लिए अगर कोई परम सुख है, तो वो एक भरपूर मर्द के मोटे तगड़े लंड से चुदने में है…!

उनके चले जाने के बहुत दिनो तक मेरी चूत की खुजली रात-रात भर मुझे सोने नही देती थी, जैसे-तैसे मन मसोस कर दिन गुज़ारे मेने,

फिर एक दिन मेने चुपके से एक चिट्ठी उनको लिख ही दी, वो एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आगये… और उस एक हफ्ते, मेने उन्हें सोने ही नही दिया…!

चमेली की चुदाई की दास्तान सुनकर रंगीली की मुनिया गरम होकर लगातार रस बहाती रही, फिर जब चमेली अपने घर चली गयी,

वो दौड़कर नाली पर पहुँची और अपना घाघरा उठाकर देखा, उसकी दोनो जांघें उसके कामरस से चिपचिपा रही थी..

चमेली की बातें याद करके रंगीली फिर से दुख के सागर में डूब गयी… वो सोचने लगी कि काश ! उसका पति भी उसे ऐसे ही सुख दे पाता…!

बहरहाल चमेली और गाओं की दूसरी सखी सहेलियों से बात-चीत करके रंगीली का समय पास हो रहा था, लेकिन वो अब रात के सुनेपन से बुरी तरह जूझ रही थी..

जबसे उसने चमेली और दूसरी लड़कियों से उनके रति सुख के बारे में सुना था, तबसे वो तिल-तिल अपने जिस्म की आग में झुलस रही थी…!

लाला जी के साथ हुई सफाई के दौरान की छेड़-छाड़ को याद करके वो अप्रत्याशित रूप से गरम हो जाती,

उसे लाला का अपने उभारों के पास वो स्पर्श, उनके घुटन्ने में फुफ्कार्ता हुआ उनका कालिया नाग, उसकी अपनी मुनिया के होंठों पर महसूस होने वाली उसकी वो ठोकर, वो रगड़..

सोचकर ही उसकी चूत गीली होने लगती..., मन के किसी कोने में उसे लगने लगा, कि अगर चमेली जैसा शारीरिक सुख लेना है, तो लाला के अतिरिक्त और कोई चारा उसके पास नही है…

लेकिन दूसरे ही पल वो अपने माँ-बापू के दिए संस्कारों में उलझ जाती, और उसे फिर से उसका पतिव्रत धर्म दिखाई देने लगता…

उसका काम में मन नही लगता, अपने छोटे भाई-बहनों के प्रति भी वो उदासीन रहने लगी…

अपनी बेटी की मनो-दशा देख कर उसकी माँ व्यथित हो गयी, उसने उससे इसका कारण जानना चाहा, लेकिन उसने इसका कोई ठोस जबाब नही दिया…!

उधर सेठ धर्मदास ने जबसे रंगीली के बदन का स्पर्श सुख लिया था, तभी से उनका दिलो-दिमाग़ बस उसी को पाने के लिए सोचता रहता,

वो अगर चाहते तो उसे जोरे जबदस्ती उठवा कर भी भोग सकते थे, लेकिन वो उसके मामले में प्यार से हल निकालना चाहते थे…!

उसके कई सारे कारण उनके दिल और दिमाग़ ने पेश कर दिए :

1) वो उसे दिल से चाहने लगे थे, उनके जीवन में, उनके दिल पर रंगीली जैसी कमसिन बाला ने पहली बार दुस्तक दी थी,

2) रंगीली के सामने उसकी व्यक्तिगत कोई मजबूरी नही थी, जिसके चलते वो उनकी जबदस्ती को सहन करती…

अगर उसने विरोधाभास आत्महत्या करने जैसा कदम उठा लिया तो….लाला मुसीबत में पड़ सकते थे, समाज में उनका अस्तित्व ख़तम हो सकता था…

भले ही वो पैसे के दम पर बच निकलें लेकिन फिर कोई रंगीली उनके जीवन में संभव नही थी…

इन सब कारणों को ध्यान में रखकर लाला सब्र से काम लेना चाहते थे…!

इसी बीच एक दिन उनका दौरा रंगीली के गाओं में हुआ, अपने काम निपटाकर वो बुधिया के घर की तरफ निकल लिए…

इस आस में की शायद कोई बात बन जाए…

लाला को आया देखकर बुधिया एक पैर पर खड़ा हो गया, और क्यों ना हो, लाला की मेहरबानी की वजह से उसकी बेटी का ब्याह जो फोकट में हो गया था…

दुआ सलाम के बाद लाला ने रंगीली की बात चला ही दी, फिर खैर खबर लेने के बाद वो बोले –
बुधिया, तुम्हारी बेटी कहाँ है, हमें उससे मिलना था, उसके पति की एक सूचना देनी थी उसको…!

संकोच वस भला एक पिता कैसे पुछ्ता कि उसके पति ने उसके लिए क्या संदेशा भेजा है, सो अपनी पत्नी को कहकर लाला की एक अकेले कोठे में मुलाकात करवा दी…!

पहले तो रंगीली मुलाकात करने से मना करने वाली थी, लेकिन फिर कुच्छ सोचकर वो मिलने के लिए तैयार हो गयी…

रंगीली को सामने देख कर लाला ने बड़े मीठे शब्दों में उससे पुछा –

काम पर क्यों नही आ रही रंगीली, पता है तेरे बिना मेरे मन-मुताविक काम कोई नही कर पाता…!

रंगीली – मुझे अपने मैके की याद आ रही थी, सो चली आई, कुच्छ दिन रहकर आउन्गि, तभी काम पर लौट सकूँगी…

लेकिन मालिक ! अब मे आगे से आपकी बैठक का काम नही करूँगी, चाहे आप काम पर रखो या निकाल दो…!

रंगीली के ये शब्द सुनकर लाला को अपनी योजना धारसाई होती नज़र आने लगी.., लेकिन वो हार मानने वालों में से नही थे, सो बोले –

क्यों..? मेरी बैठक का काम करने में तुझे क्या आपत्ति है..? उल्टा और काम कम करना पड़ता है, तू कहे तो वाकी के सभी काम बंद करवा दूँगा…

रंगीली अपनी नज़रें झुकाए हुए ही बोली – हमें आपसे डर लगने लगा है..

लाला – डर..! किस बात से ? क्या तू उस्दिन की बात को लेकर चिंतित है…? देख रंगीली, अब तू चाहे माने या ना माने, हम तुझे सच्चे दिल से चाहने लगे हैं..

अब तेरे बिना जी नही लगता, तेरे लिए हम कुच्छ भी करने को तैयार हैं, बस तू एक बार हां करके देख, फिर जो कहेगी वैसा ही होगा…!

लाला की बात सुनकर रंगीली ने एक बार अपनी नज़र उठाकर उनकी तरफ देखा…, और बोली – किस बात के लिए हां कर दूँ…?

लाला – हम तुझे अपनी बाहों में लेकर प्यार करना चाहते हैं रंगीली, इसके एबज में सारे जहाँ की खुशियाँ हम तेरी झोली में डाल देंगे…

रंगीली – मेरे पति और समाज का क्या करेंगे आप…?

लाला – वो तुम सब हम पर छोड़ दो, हम वादा करते हैं, अपने प्यार की भनक हम किसी को नही लगने देंगे…!

रंगीली – जिसे आप प्यार कह रहे हैं, वो आपकी हमारे जिस्म को पाने की ललक भर है, इसे प्यार नही हवस कहते हैं मालिक…

और जब दिल भर जाता है, हवस शांत हो जाती है तब हम जैसी औरतों को आप चूसे हुए आम की गुठली की तरह कूड़े करकट में फेंक देते हो..!

रंगीली झोंक-झोंक इतनी तीखी बात कह तो गयी, लेकिन फिर उसे डर सताने लगा, क्योंकि लाला अगर अपनी पर आ गया, तो वो उसके दोनो परिवारों को तबाह कर सकता है,

यही नही, वो जब चाहे उसे भी रौंद सकता है, और चाहकर भी कोई कुच्छ नही कर पाएगा…
इसी डर में डूबी अब वो लाला की प्रतिक्रिया जानने का इंतेज़ार कर रही थी, उसे पूरा विश्वास था, कि अब लाला अपना असली रूप ज़रूर दिखाएगा..…!

लेकिन इसके ठीक उलट लाला उसके सामने अपने घुटनों पर बैठ गये, और हाथ जोड़कर बोले –

तो फिर तुम्ही बताओ, कैसे यकीन दिलाएँ कि हम तुम्हें सच्चे दिल से पाना चाहते हैं…, मानता हूँ कि मे हवस का पुजारी हूँ, लेकिन तुम्हारे लिए वोही हवस दीवानगी का रूप ले चुकी है..

चाहो तो हम स्टंप पेपर पर लिख कर दे सकते हैं, हम तुम्हें हमेशा यूँ ही प्यार करते रहेंगे…, जैसे तुम रहना चाहोगी वैसे रखेंगे…!

रंगीली को लाला से ऐसे व्यवहार की बिल्कुल अपेक्षा नही थी, वो समझ गयी, कि सेठ धरमदास उसे सच्चे दिल से पाना चाहते हैं,

और फिर वो भी तो कहीं ना कहीं यही चाहती है.., क्षण मात्र के लिए ही सही, उसके मन में भी तो ये ख़याल आया ही था…

सो हाथ जोड़कर बोली – बस कीजिए मालिक भगवान के लिए आप खड़े हो जाइए, हमें आप की बात मंजूर हैं…!

उसके मूह से ये शब्द सुनते ही लाला खड़े हो गये, और लपक कर उसके कंधे पकड़कर बोले – तुम्हारे मूह से ये शब्द सुनने के लिए हमारे कान तरस गये थे रंगीली, तुम नही जानती आज हम कितने खुश हैं..

रंगीली ने उनके सीने पर अपने हाथ का दबाब देकर अपने से अलग करते हुए कहा – लेकिन हमारी भी कुच्छ बातें आपको माननी पड़ेंगी…!

लाला तपाक से बोले – तुम जो कहोगी वैसा ही होगा, बोलो क्या चाहती हो हमसे…?

रंगीली – हमारे दोनो परिवारों के बही-खाते आपको जलाने होंगे, और वादा करना होगा कि आज के बाद कभी उनसे क़र्ज़ बसूली नही करेंगे…,

और मुझे जो काम अच्छा लगेगा वही करूँगी…, मेरे घर में जब मेरी ज़रूरत होगी कोई रोक-टोक नही होगी…

लाला ने लपक कर उसे अपने सीने से लगा लिया, और बोले – हम पहले ही कह चुके हैं, जैसा तुम चाहोगी वैसा ही होगा, हम तुम्हारे सामने वो सब बही खाते जला देंगे…

रंगीली – फिर ठीक है, अभी आप हमें छोड़िए, और यहाँ से जाइए, जन्माष्टमी करके हम अपनी ससुराल लौट जाएँगे… तब तक आपको हमारा इंतेज़ार करना पड़ेगा…

लाला – तुमने हां कर दी, हमारे लिए यही बहुत है, अब हम तुम्हारा बेसब्री से अपनी हवेली पर इंतेज़ार करेंगे…

इतना कहकर लाला कोठे से बाहर निकल गये…, और रंगीली कुच्छ देर वहीं खड़ी आनेवाले समय के बारे में सोचती रही…, लेकिन अब उसे किसी बात की कोई ग्लानि नही थी…!

उसके लिए ये घाटे का सौदा नही था, एक तरफ तो वो अपने जिस्म की अंबूझी प्यास से जूझ रही थी उससे निजात मिल सकती थी, दूसरे उसके दोनो परिवार उसके इस बलिदान से सुख से जीवन व्यतीत कर सकेंगे…!

उसके दिलो-दिमाग़ ने उसके द्वारा लिए गये इस फ़ैसले को सही ठहराया, उसने अब इसके लिए अपना मन पक्का कर लिया था,

अपने इस निर्णय से वो पूरी तरह संतुष्ट होकर खुशी खुशी अपने घर के कामों में लग गयी……….!
इसी बीच रंगीली की आँखों के सामने एक ऐसी घटना घटित हुई, जिसके कारण उसे अपने निर्णय को और बल मिल गया…,

एक दिन वो सुबह ही सुबह अपने जानवरों को चारा डालने अपने घेर की तरफ जा रही थी, भोर का हल्का सा अंधेरा अभी वाकी था…

उसके घेर से पहले पारो चाची का घेर था, जिसमें जानवरों के भूसा रखने के लिए एक छोटी सी कोठरी बनी हुई थी, जिसका एक रोशनदान रास्ते की तरफ था…!

जैसे ही रंगीली उनके उस कोठे के बराबर से गुज़री, अंदर से कुच्छ अजीब सी आवाज़ों को सुनकर उसके पैर ठिठक गये…!

ध्यान से सुनने पर पता लगा कि अंदर से एक मर्द और औरत की बात-चीत की आवाज़ें आ रही थी..

उसने सोचा पारो चाची और चाचा कुच्छ काम कर रहे होंगे, ये सोचकर वो जैसे ही आगे बढ़ी….

आअहह….जेठ जी, और ज़ोर से पेलो…, फाड़ डालो मेरी चूत को, आपके भाई से तो कुच्छ नही हो पाता…!

पारो चाची की ऐसी कामुक आहें सुनकर वो भोंचक्की सी रह गयी, और अंदर का नज़ारा देखने की तीव्र इच्छा उसके मन में जाग उठी…

उसने फ़ौरन उचक कर रोशनदान को पकड़ा और अंदर झाँक कर देखा, अंदर का नज़ारा देख कर उसकी आँखें फटी रह गयी,

पारो चाची अपना लहंगा उठाए घोड़ी बनी हुई थी और उनके जेठ पीछे से ढकधक उनकी चूत में अपना लंड पेल रहे थे…

जेठ – ले साली छिनाल कुतिया, कितनी बड़ी चुड़ैल है तू, रात को शमु का लंड लिया होगा, और सुबह-सुबह मेरे पास आगयि…

पारो – आअहह… क्या करूँ जेठ जी, उनके छोटे से लंड से मेरी प्यास नही बुझ पाती, और वैसे भी वो जल्दी ही अपना पानी निकालकर हाँफने लगते हैं…

जेठ – हुन्न..हहुऊन्ण…चल ठीक है, हुउन्ण.. ले तू मेरा मूसल ही ले, तेरी जेठानी भी तो साली हुउन्न्ं…एक ही बार में गान्ड फैलाक़े सो जाती है… और फिर मुझे मूठ मारकर सोना पड़ता है..

पारो – हाए राम, मे क्या मर गयी हूँ जेठ जी, जो आप मूठ मारकर सोते हो, इशारा कर दिया करो, आपके लिए कभी मना किया है मेने…!

इस तरह चुदाई के बारे में बातें करते करते वो दोनो अपनी चुदाई में लगे थे,

उधर रोशनदान से गरमा-गरम चुदाई का सीन देख कर रंगीली की हालत खराब होने लगी…!

अब उसे अपने पंजों पर उचक कर रोशनदान पकड़ना भारी होने लगा…, इससे पहले कि उनकी चुदाई का समापन हो पाता, वो वहाँ से निकल ली…
अपने घेर में आकर वो भूसे के ढेर पर पसर गयी, उसकी खुद की साँसें भी सबेरे-सबेरे ऐसा गरमा-गरम नज़ारा देख कर उखड़ने लगी थी…

ना चाहते हुए भी उसका एक हाथ अपने घान्घरे के अंदर चला गया, और वो अपनी मुनिया को कच्छि के उपर से ही सहलाने लगी…

दूसरे हाथ से अपने एक अमरूद को मसल्ते हुए सोचने लगी, हाए राम ये पारो चाची अपने ही जेठ के साथ मूह काला कर रही है…

कहाँ तो ये मेरी विदाई के वक़्त कितना ज्ञान छोड़ रही थी साली, और यहाँ देखो कैसी अपने ही जेठ के सामने गान्ड औंधी करके खड़ी थी…

अपने लिए इसका पतिव्रत धर्म कहाँ चला गया, जो दूसरों को ज्ञान देती फिरती है साली हरामजादि छिनाल रंडी कहीं की…!

फिर उसे उसके शब्द याद आए, आपके भाई के छोटे से लंड से मेरी प्यास नही बुझती, और वैसे भी जल्दी ही पानी छोड़ कर हाँफने लगते है, मुझे अधूरा छोड़ कर सो जाते हैं…!

रंगीली सोचने लगी … उसके साथ भी तो यही सब हो रहा था…

रंगीली की काम वासना अपने अंगों को मसल्ने से बढ़ती ही जा रही थी, कभी उसे पारो चाची की मोटी गान्ड दिखाई देती, दूसरे ही पल उनके जेठ का वो काला सोट जैसा लंड..

जो उनकी चूत में अंदर बाहर हो रहा था, ये सब सोच कर ना जाने कब उसका हाथ अपनी कच्छी के अंदर चला गया, उसकी मुनिया उसके कामरस से भीग चुकी थी…

उसे ये होश ही नही रहा कि कब उसकी एक उंगली उसकी चूत के अंदर समा गयी जिसे वो सिसकते हुए अंदर बाहर करने लगी…

अपनी चोली के अंदर हाथ डालकर वो अपने चुचक (निपल) को मरोड़ने लगी, उत्तेजना के मारे उसकी आँखें बंद हो चुकी थी,

तेज़ी से अपनी उंगली को अपनी चूत में चलाते हुए रंगीली के मूह से अस्फुट से शब्द फूटने लगे…आअहह….सस्स्सिईइ….मालिक…चोदो..मुझीए…. आआईयईई… म्माआ…आआईयईईईईईईईईई..उउउफ़फ्फ़…और तेज़ी से पेलो….हहाआंन्न….आअंग्ग्घह… इसके साथ ही उसकी मुनिया ने ढेर सारा पानी उसके हाथ पर फेंक दिया…!

आज पहली बार उसकी चूत से इतना कामरस निकला था, वो आँखें बंद किए बुरी तरह हाँफ रही थी…!

फिर जब उसकी उत्तेजना पूरी तरह से शांत हो गयी, तो उसके चेहरे पर एक शुकून भरी मुस्कान आगयि…!

उसे झड़ने से पहले उसके मूह से निकले शब्द याद पड़ गये…और वो खुद से ही बुरी तरह शर्मा उठी…

वो सोचने लगी, कि जब लाला जी की कल्पना मात्र से ही इतना मज़ा आया है तो वो जब उसके उपर चढ़कर उसे चोदेन्गे तब क्या हाल होगा उसका…! सोच कर ही उसकी मुनिया फिर से फड़कने लगी…

अब उसने अटल निश्चय कर लिया, कि चाहे जो भी हो अब वो अपने बदन की अधूरी प्यास की आग में नही जलेगी…

उउन्न्ह….! पतिव्रत धर्म, नियम क़ानून, भाड़ में जाओ सब, तेल लागाएँ ऐसे नियम क़ानून जो जीवन भर एक ही लुल्ली से बाधे रहें…

ये सब किताबी और मन बहलाने की बातें हैं.. जो सिर्फ़ दूसरों पर ही लागू होती हैं, अपने बारे में कोई इन बातों को नही मानता…!

“पर उपदेश कुशल बहुतेरे..”

अब वो सारी बातें भूलकर मस्त रहने लगी, मौका लगते ही अपने अंगों के साथ खेलती रहती, और हर वो तरीक़ा इस्तेमाल करती जो उसे ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा दे सकता था…!

लेकिन अपने मैके में रहते हुए किसी और मर्द से वो संबंध नही बनाना चाहती थी, जिससे उसके माँ-बाप को शर्मिंदा होना पड़े…

ऐसा नही था, कि गाओं के मर्द उसे अच्छे नही लगते थे, या उसे कोई पसंद नही करता था.

रंगीली जैसी नमकीन लड़की को भोगने की कामना तो इस गाओं का हर युवा पाले बैठा था…,

कुच्छेक ने तो उसका रास्ता रोक कर अपने मन की बात ही बोल दी थी, लेकिन उसने अभी तक किसी को घास नही डाली…!
वो अब अपने आपको सजने सँवरने भी लगी थी, गाओं के सीमित संसाधनों से जितना हो सकता था, वो उतने से ही अपने शरीर को किसी भी मर्द के आकर्षण के लायक बनाने का हर संभव प्रयत्न करती…!

आख़िर वो दिन भी आ पहुँचा जब उसे अपने ससुराल वापस जाना था, अपने पति को उसने खबर भिजवा दी थी कि उस दिन आकर वो उसे विदा करा ले जाए…

उधर लाला ने रंगीली के घर का काम छोड़ कर जाने का ठीकरा अपनी सेठानी के सर मढ़ दिया,

कि वो और उसकी चमचियाँ उस बेचारी सीधी सादी लड़की को परेशान करती थी, उससे ज़्यादा काम लेती थी, इसलिए वो काम छोड़ कर चली गयी…,

उसके बिना अब उनकी बैठक फिर से एक कबाड़े का डिब्बा हो गयी है, वो कितने अच्छे से उसे व्यवस्थित रखती थी…

जब सेठानी ने कहा कि आप अपने काम के लिए किसी और को ले लो, वो बैठक को सही कर देगी तो वो बोले –

कोई ज़रूरत नही हैं, सब की सब साली कामचोर और नकारा हैं,

हमने रामलाल को बोल दिया है कि उसे मनाकर वापस काम पर भेजे, अब हम उससे अपने हिसाब से ही काम कराएँगे, कोई और उसपर हुकुम नही चलाएगा…

वो मान भी गयी है, और अपने मायके से वापस आकर वो हमारे यहाँ काम पर वापस आ जाएगी..,

लेकिन याद रहे, अब कोई भी उसके काम में दखल नही देगा, हम उसे बताएँगे कि उसे क्या करना है और क्या नही…

इस तरह से रंगीली के आने से पहले ही सेठ धरमदास ने उसकी शर्त के मुतविक हवेली में मामला सेट कर दिया…!

जन्माष्टमी के दो दिन बाद ही रंगीली अपने पति रामू के साथ अपनी ससुराल आ गयी, अब वो पहले से ज़्यादा खुश और खिली हुई थी…!

उस रात उसने अपने पति को हर संभव खुशी देने की कोशिश की, उसको दुनिया दारी के कुच्छ गुण बताए, अपनी पत्नी के प्रति उसके क्या कर्तव्य हैं बताती रही..

अपनी एकाध सहेली का उदाहरण देकर उसे समझाया…, परिणाम स्वरूप आज रामू ने अपनी यथाशक्ति अनुसार उसके साथ दो बार सहवास किया…!

लेकिन बात वही थी, पन्चर टाइयर में हवा भरने का कोई ज़्यादा लाभ नही होता..

खैर दो दिन अपने घर रहकर तीसरे दिन वो लाला की हवेली पहुँची, सुबह-सुबह उसका खिला स्वरूप देख कर लाला का दिन ही बन गया…

उनके मन में रंगीली के मिलन को लेकर लड्डू फुट रहे थे…!

मौका देख कर उन्होने उससे बात की, उसने आज रात को आने का वादा किया और सारे दिन उनके बताए कामों में लगी रही….!

आज रंगीली थोड़ा जल्दी अपने घर आगयि, जल्दी-जल्दी अपना काम धंधा निपटाया, सास ससुर और अपने पति रामू को समय से पहले ही उसने खाना खिला दिया…!

लाला ने उसे चुपके से नींद की दवा दे दी थी, जिसे उसने उचित मात्रा में सबके खाने में मिला दिया…

9 बजते ही सारे घर में ख़र्राटों की आवाज़ें गूंजने लगी, उसका पति तो बेचारा वैसे ही काम से थक जाता था,

उसे तो इस दवा की भी ज़रूरत नही थी, लेकिन फिर भी एहतियातन उसने खिला ही दी, ताकि बीच में उसकी नींद ना खुले…!

उसके बाद रंगीली जितना सज-संवर सकती थी, उतना अपने को सजाया, आज उसने घाघरा चोली नही पहनी, अपने शादी के जोड़े में वो किसी दुल्हन जैसी लग रही थी.

अपने को छोटे से शीशे में निहारा, वो अपनी ही सुंदरता पर मोहित हो उठी…मन ही मन खुश होकर बुदबुदाई….

आज मे भी देखती हूँ लाला जी, मर्द की हवस जीतती है, या एक औरत का यौवन ?

आज उसने लाला को पूरी तरह अपने रूप यौवन का रस्पान करके अपने जाल में फँसाने का मन बना लिया था…!

पूरी तरह सज-सँवरने के बाद उसने एक सरसरी नज़र अपने पल्लेदार पति पर डाली, और बुदबुदाते हुए बोली – माफ़ करना पतिदेव, अब मे और अपनी इस चढ़ती जवानी का अपमान नही कर सकती…

फिर वो अपने कोठे से बाहर आई, और चौक में पड़े अपने बूढ़े सास ससुर पर नज़र डाली, वो दोनो भी घोड़े बेचकर सोए हुए थे…

पागल जेठ तो जानवरों के बाडे में ही पड़ा रहता था..,

लगभग 10 बजे का वक़्त रहा होगा, गाओं की अंधेरी गलियों में इतनी रात गये किसी के मिलने की तो कोई संभावना ही नही थी,

वो दबे पाँव घर से निकली, बाहर से दरवाजे की सांकल लगाई और चल दी लाला जी के पास, जहाँ वो अपनी प्रेयशी का बड़ी बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे थे…

आज रंगीली उनके आगोस में आने वाली है, इसी एहसास से उनका नाग, उनके घुटन्ने में रह-रह कर फुंफ़कारें मार रहा था,

और मारे भी क्यों ना, आज उसे रोज़ की तुलना में ज़्यादा खुराक जो मिल चुकी है, आज लाला ने 8-10 बादाम और ज़्यादा जो घोंट लिए थे दूध के साथ…!

जब वो ज़रूरत से ज़्यादा बबाल मचाने लगा, तो लाला ने अपना घुटन्ना ही उतार दिया, और खाली धोती पहन ली…!

अपने लौडे को बिठाते लाला, रंगीली का इंतेज़ार करते हुए बैठक में इधर से उधर किसी पिंजरे में बंद शेर की तरह टहल रहे थे…!

बॉक्सिंग के कोर्ट जितनी गद्दी पर लाला ने आज नये गद्दे और एक भक्क सफेद चादर बिच्छवा दी थी, शहर से मँगवाए ताजे फूलों के गुलदुस्ते गद्दी के आजू-बाजू महक रहे थे…

बैठक इस समय इंद्र लोक सी प्रतीत हो रही थी…, एक तरफ दीवार से सटा टेबल जहाँ केपर मिश्रित तेल के दिए जगमगा रहे थे…

जल्दी से आजा रंगीली मेरी जान, क्यों इतना तडपा रही है, देख तेरे इंतेज़ार में मेरे लंड की क्या हालत हो रही है, साला मरोड़-मरोड़ के दर्द करने लगा है…!

थक कर लाला, गद्दी पर अपनी गांद टिकाए ही थे कि दरवाजे पर हल्के से दस्तक हुई...! जिसे सुनकर लाला का मन मयूर नाच उठा…!

लपक कर दरवाजा खोला, सामने सोलह शृंगार किए हुए अपने सपनों की रानी को खड़े देखकर मानो उनकी हृदय गति ही थम सी गयी…

वो टक-टॅकी लागाय उसके सुंदर रूप लावण्य में खो गये…, उन्हें ये भी होश नही रहा कि दरवाजा चौपट खुला हुआ है…!
रंगीली कुच्छ देर बाबलों की तरह उसे घूर रहे सेठ को देखती रही, फिर हल्की सी मुस्कान अपने होंठों पर लाकर वो मूडी और खुद ही उसने दरवाजे को बंद किया…

लाला की तंद्रा भंग हुई, और वो जैसे ही उनकी तरफ मूडी, लपक कर उन्होने उसे अपनी बाहों में लेना चाहा…

रंगीली ने अपने हाथ का इशारा करके उन्हें रुकने को कहा, लाला अपनी जगह ठिठकते हुए बोले –

अब मत रोको हमें रंगीली रानी, बहुत सब्र कर लिया, अब नही कर पाएँगे…!

रंगीली – मे भी अपना तन-मन आपको सौंपने ही आई हूँ मालिक, लेकिन सबसे पहले अपना वादा तो पूरा करिए…!

धरमदास – कॉन सा वादा…? ओह्ह्ह्ह…वो..! अभी लो, इतना कहकर वो गद्दी की ओर मुड़े, और अपनी डेस्क के उपर रखे कुच्छ बही-खाते उन्होने रंगीली के हाथ पर रख दिए…

लो ये रहे तुम्हारे दोनो घरों के लेन-देन का हिसाब-किताब, देख लो बराबर है कि नही, और जो जी में आए वो इनका करो…!
 
OP
S
Member

0

0%

Status

Offline

Posts

10

Likes

1

Rep

0

Bits

166

4

Years of Service

LEVEL 1
95 XP
[size=x-small]रंगीली बेचारी ज़्यादा पढ़ी-लिखी तो नही थी, बस पाँचवी तक अपने गाओं के मदरसे में गयी थी,

फिर भी उसने लाला को दिखाने के लिए वो बही खाते खोल लिए, और यूँही पन्ने उलट-पलट कर कुच्छ देर देखती रही…!

लाला – विश्वास करो हमारा रानी, हम तुम्हारे साथ कोई धोखा नही करेंगे…

बही खातों को पकड़े हुए वो मेज की तरफ बढ़ गयी, खातों को बैठक के एक कोने में पटका, वहाँ से एक दिया उठाकर उसका तेल उनपर छिड़का और उसी दिए से उनमें आग लगा दी…!

फिर उन्हें जलता देखकर उसने एक गहरी साँस ली, मानो उसके दिल से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो…!

उसने आज अपने दोनो परिवारों को लाला के क़र्ज़ से मुक्त करा लिया था…!

उसके बाद वो लाला के पास लौटी, और उनकी आँखों में आँखें डालकर बोली – अब ये दासी आपकी गुलाम है मालिक, जैसे जी में आए वैसे भोग सकते हैं…!

लाला ने उसकी कमर में हाथ डालकर अपने सीने से चिपका लिया, उनका मूसल जो अभी भी किसी बॉर्डर के जवान की तरह सीना ताने जंग लड़ने के लिए तैयार खड़ा था, उसकी कमर में जा अड़ा…

उसकी सख्ती महसूस कर रंगीली के मूह से सिसकी निकल गयी…!

लाला ने प्यार से उसके होंठों पर अपनी उंगली घूमाते हुए कहा – तुम हमारी दासी नही हो रंगीली, हमारे दिल की मलिका हो… आज से हमें अकेले में कभी मालिक मत कहना…!

रंगीली सेठ के चौड़े चाकले सीने से लगी उनकी छाती के बालों में अपनी उंगलियाँ फेरती हुई बोली –

मे तो आपकी नौकर हूँ, और अब अपना तन भी आपको सौंप रही हूँ, तो आप मेरे मालिक ही हुए ना…!

लाला – ओह्ह्ह..रानी, छोड़ो ये मालिक नौकर का झंझट, आओ गद्दी पर चलते हैं, इतना कहकर उन्होने उसे किसी बच्ची की तरह अपनी गोद में उठा लिया, और उसे लेकर गद्दी पर आकर बैठ गये…

वो अभी भी उनकी गोद में सिकुड़ी सिमटी सी बैठी थी…, लाला ने उसके हल्की सी लाली लगे होंठों को चूमते हुए उसके कठोर उरोजो को सहला कर कहा –

हम तुम्हारे लिए कुच्छ लेकर आए हैं, ये कहकर पास के ही डेस्क से एक पॅकेट निकाल कर उसे थमाते हुए बोले – इसमें तुम्हारे लिए अधोवस्त्र हैं,

हमारी इच्छा है कि तुम गुसल खाने में जाकर इन्हें पहनो, और उन्ही में हमारे पास आओ…!

जी मालिक हम अभी आए, और पॅकेट लेकर वो बैठक की साइड में बने गुसलखाने में चली गयी…!

लाला बड़ी बेसब्री से गुसलखाने की तरफ दृष्टि जमाए उसके निकलने का इंतेज़ार करने लगे…!

उधर गुसलखाने में जब रंगीली ने वो पॅकेट खोलकर देखा, उसमें गुलाबी रंग की नये जमाने की अंगिया और कच्छी (ब्रा-पेंटी) को देखकर खुद ही उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया…

हाए राम, इतने छोटे कपड़े पहन कर हम मालिक के सामने कैसे जा पाएँगे..? नही नही हमसे ये नही हो पाएगा…!

पर अब तो हम अपना सबकुच्छ सौंपने आही गये हैं, ये भी कपड़े तो निकालने ही पड़ेंगे, तो फिर इन्हें पहनने में ही क्या हर्ज़ है..

देखें तो सही इनमें लगते कैसे हैं…? लेकिन ये बताएगा कॉन…? इसी उधेड़-बुन में उसने अपनी साड़ी का पल्लू गिरा दिया…,

एक-एक करके सारे कपड़े उसके बदन से अलग हो गये, आज उसने अपने यौनि
प्रदेश को भी साफ किया था, सो अपनी छोटी सी मुनिया के पतले-पतले चिकने होंठों को सहलाते हुए वो खुद ही शर्म से पानी-पानी होने लगी…!

फिर जी कड़ा करके उसने वो अधोवस्त्र पहन लिए और उपर से बिना पेटिकोट और ब्लाउस के ही साड़ी लपेटकर वो बाहर आ गयी….!

लाला ने उसे देखते ही झुँझलाकर कहा – ओहू.., तुम तो उन्ही कपड़ों में हो अभी भी, हमारी ज़रा सी इच्छा पूरी नही कर सकती…!

वो धीरे-धीरे चलते हुए उनके पास तक आई, और उनके गले में अपनी पतली-पतली बाहें डालकर, नीचे के होंठ को दाँतों तले दबाकर बोली –

अब ये परदा तो आपको ही उठाना पड़ेगा हुज़ूर, लीजिए.. ये कहकर अपनी साड़ी का एक छोर उन्हें पकड़ा दिया…!

लाला उसकी बात समझ गये, और उसकी साड़ी को उसके बदन से अलग करने के लिए दुशासन की तरह खींचने लगे…!

उनके सारी खींचते ही वो भी गोल-गोल घूमने लगी, और दूसरे ही पल उसकी साड़ी द्रौपदी के चीर की तरह उसके बदन से अलग हो गयी, जिसे लाला ने दूर उछाल दिया…

अब उनकी आँखों के सामने जो रंगीली खड़ी हुई थी, वो किसी मेनका से कम नही थी, जो किसी भी विश्वामित्र तक का तप भंग कर्दे, यहाँ तो एक लंपट लाला था…!

उसे पिंक कलर की ब्रा-पैंटी में देखकर लाला की बान्छे खिल उठी और उन्होने उसे अपनी बाहों में भर लिया…………!

धरम दास, अपने सपनो की रानी को मात्र दो छोटे से कपड़ों में देखकर बाबला हो उठा, कितनी ही देर वो उसके रूप को निहारता रहा,

लंबे काले घने बालों के बीच उसका गोल सुंदर पूनम के चाँद सा चेहरा, जिसपर पहली बार नज़र पड़ते ही वो मर मिटा था,

बड़ी बड़ी हिरनी जैसी कजरारी आँखों के बीच माथे पर छोटी सी बिंदिया…, यौं तो रंगीली उसे बहुत सुंदर लगती थी, लेकिन आज वो कुच्छ बन संवर के भी आई थी, इस वजह से उसकी सुंदरता में और चार चाँद लग गये थे…

लंबी सुराइदार गर्दन के नीचे एक छोटी सी ब्रा में क़ैद उसके छोटे-छोटे अमरूद, एकदम गोलाई लिए हुए…, लंबा सपाट पतला सा पेट…जिसपर एक कतरा भी मास का नही था…

हल्की गहराई लिए उसकी नाभि, और उसके नीचे नज़र डालते ही लाला दीन दुनिया ही भूल गये…, एकदम पतली कमर जिसे लाला जैसा मर्द अपने हाथों के बीच समा सकता था…

दो पतली-पतली मक्खन जैसी कोमल जांघों के बीच उसका यौनी प्रदेश जो इस समय उस चार अंगुल की पैंटी में क़ैद था,

उसकी यौनी की पतली-पतली फाँकें हल्की सी उठान लिए उस पैंटी में अपनी उपस्थिति का आभास करा रही थी…!

[size=x-small]कमर को दोनो हाथों के बीच लेकर लाला ने रंगीली को पलटा दिया, और उसके छोटे-छोटे, गोल मटोल नितंबों को सहला कर अपनी मुट्ठी में भींच लिया…

आआहह………मालिक…. दर्द होता है, बोली रंगीली….!

लाला ने फिर से उसे अपनी बाहों में भर लिया… और चारों ओर घूमते हुए, बैठक के चक्कर लगाते हुए खुशी से नाचने लगे…!

[size=x-small]रंगीली की सारी हिचक अबतक जा चुकी थी, खिल-खिलाकर वो बोली – मालिक हमें उतारिये, आपको चक्कर आ जाएँगे….!



[size=x-small]एक दो चक्कर लगाकर धरम दास उसे अपनी गोद में लेकर गद्दी पर बैठ गये, उनका लंड अपनी पूरी क्षमता के साथ रंगीली की गान्ड के नीचे अटका पड़ा था…



[size=x-small]लगता था, जैसे उसने अपने लिए ज़मीन चुनकर उसपर कब्जा जमा रखा हो…!



[size=x-small]किसी बच्ची की तरह गोद में बिठाए लाला ने रंगीली के होंठों को चूमते हुए कहा…, आज तुम्हें पाकर हमारी सारी तमन्ना पूरी होगयि…



[size=x-small]औरतों के पीछे भागने वाली हमारी दौड़ आज यहीं ख़तम हो गयी.., हम तुमसे वादा करते हैं, आज के बाद तुम्हारे अलावा, किसी दूसरी औरत के पास नही जाएँगे…!



[size=x-small]रंगीली – सच मालिक ! आप हमें इतना चाहते हैं, लाला ने हूंम्म करके जबाब दिया तो वो बोली – तो आज के बाद हम भी आपको कभी निराश नही होने देंगे…!



[size=x-small]लेकिन वादा करिए, हमारा ये मिलन हमेशा पर्दे में ही रहेगा…!



[size=x-small]लाला – हम तुम्हें वचन दे चुके हैं मेरी रानी, ये कहकर लाला ने उसे गद्दी पर लिटा दिया, और उसके माथे से शुरू करते हुए पैरों तक चूमते चले गये…



[size=x-small]रंगीली के बदन में सनसनी सी दौड़ रही थी, उसे अपनी सहेली चमेली के शब्द याद आने लगे…



[size=x-small]एक बार उपर से नीचे तक चूमने चाटने के बाद उन्होने उसे पलटा दिया…और वो उसके उपर आगये…



[size=x-small]लाला ने एक मात्र अपनी धोती को भी निकाल फेंका, अब उनका कोब्रा, पूरी तरह आज़ाद खुली हवा में साँस लेकर खुलकर फुफ्कार रहा था,



[size=x-small]इस समय वो अपने लिए बिल की तलाश में लाला के शरीर के साथ साथ इधर से उधर घूम रहा था, लाला ने अस्थाई तौर पर उसे रंगीली की मुलायम केले के तने जैसी जांघों के बीच वाली खाली जगह दे दी…



[size=x-small]वो उसकी गर्दन को चूमते हुए नीचे की तरफ बढ़े, पीठ को चूम कर उन्होने उसकी ब्रा के हुक्स को अपने दाँतों में कस लिया, और बिना हाथ की मदद के दाँतों से उसके हुक्स खोल दिए…!



[size=x-small]अपने गले और फिर पीठ पर लाला के लिजलिजे होंठों का स्पर्श पाकर रंगीली का बदन थरथरा उठा, वो किसी नागिन की तरह लहरा उठी…,



[size=x-small]उन्माद में उसकी आँखें बंद हो चुकी थी, वो बंद आँखों से सोचने लगी, कि काश ये सुख वो अपने पति के साथ अपनी सुहाग सेज पर ले पाती…!



[size=x-small]पर ये वक़्त अब ये सब सोचने का नही था, और वो फिर से मस्ती की रेल में हिचकोले खाने लगी…!



[size=x-small]लाला ने उसकी कमर को चूमते हुए उसके गोल-गोल नितंबों को सहलाया और कमर के दोनो तरफ उसकी पैंटी की एलास्टिक में अपनी उंगलिया फँसा दी…!



[size=x-small]रंगीली के बदन से ये आख़िरी आवरण भी हटने जा रहा था, ये सोचकर उसकी मुनिया ने अपने होंठ कस कर बंद कर लिए, जिससे उसके अंदर की पासीजन इकट्ठा होकर बूँदों के रूप में उसके बंद होंठों से बाहर टपकने लगी…!



[size=x-small]लाला ने पैंटी को नीचे करना शुरू किया, रंगीली की कमर अपने आप उपर हो गयी, जो पैंटी को नीचे आने में सहायक सिद्ध हुई…







[size=x-small]पैंटी को घुटनो तक लाकर लाला के हाथ उसके नितंबों की गोलाई और पुश्टता देख कर रुक गये, और उन्होने झुक कर उसके नितबो के शिखर को बारी-बारी से चूम लिया…



[size=x-small]लाला का मन किया कि इन खरबूजों को चखा जाए, सो उसने हल्के से अपने दाँत उसके नितंब के शिखर पर गढ़ा दिए….



[size=x-small]आआययययीीई….काटटू..मत मालिक…,



[size=x-small]लाला ने मुस्करा कर उस जगह को जीभ से चाट लिया…, फिर वो उसकी जांघों को चूमते हुए उन्हें सहलाने लगे…



[size=x-small]जांघों को सहलाते हुए उनका हाथ बीच में चला गया, और उसकी मुनिया के पास पहुँचते ही वो उसके कामरस से सन गया…!



[size=x-small]अनुभवी लाला समझ गये कि रंगीली कितनी गरम हो चुकी है, खुद उनका भी हाल बहाल था, पल-पल कंट्रोल रखना भारी हो रहा था…



[size=x-small]लेकिन वो अपने प्रथम मिलन को यादगार बनाना चाहते थे, नही चाहते थे, उन दोनो के मज़े में कोई कमी रह जाए…!



[size=x-small]अब उन्होने रंगीली को पलटा कर सीधा कर दिया…, वो कठपुतली की तरह अपनी आँखें बंद किए हुए पड़ी थी…,



[size=x-small][size=x-small][size=x-small]उपरवाले की इस असाधारण कारीगरी को लाला कुच्छ देर तक उसके पैरों में बैठे निहारते रहे…, शारीरिक तौर पर रंगीली अभी भी एक कमसिन कली जैसी ही थी…

[size=x-small][size=x-small][size=x-small][size=x-small]जब कुच्छ देर लाला की तरफ से कोई हरकत नही हुई तो उसने हौले से अपनी आँखें खोल कर देखा, लाला से नज़र मिलते ही वो बुरी तरह शरमा गयी, और उसने फ़ौरन अपनी आँखें कस कर बंद करली…

लाला उसके चेहरे पर झुके, साथ ही उनका कालिया, जिसका फन अब कुछ गीला-गीला सा होने लगा था, उसकी जांघों से होता हुआ कमर तक रगड़ता चला गया…!

उन्होने रंगीली के होंठों पर अपने दहक्ते होंठ रख दिए, आज चमेली की सीख उसके काम आ रही थी, सो उसने भी अपने होंठों को हल्का सा खोल दिया, और वो दोनो एक दूसरे के होंठों को चूमने चाटने लगे…

लाला का एक हाथ उसके उभारों पर चला गया, और उसने उसके कच्चे अमरूदो को मसल डाला…!

रंगीली चिंहूक कर रह गयी, उसे आज तक उसके उभारों को इस तरह किसी ने नही मसला था, हल्के से दर्द के एहसास के साथ उसके शरीर के तार झंझणा उठे…!

लाला लगातार उसके अनारों को कभी प्यार से सहला देते, तो कभी ज़ोर्से मींज देते.., जिससे उसकी एडीया गद्दी पर अपने आप रगड़ने लगती…,

अब उसकी मुनियाँ में खुजली सी होने लगी थी…, उसे लगने लगा मानो हज़ारों च्चेंटियाँ मिलकर उसकी रसगागर के अंदर इधर से उधर चल रही हों…,

वो अपनी जांघों को कसते हुए बोली – आआहह….मालिकक्कक…अब कुछ करो...

अनुभवी लाला को ये समझते देर नही लगी, कि लौंडिया अब पूरी तरह उनका मूसल लेने के लिए तैयार है, लोहा दहकने लगा है, अब चोट मारने में ही फ़ायदा है…!

ये सोचकर वो उसकी टाँगों के बीच आकर बैठ गये…, एक बार अपने चौड़े से हाथ से उसकी रसीली मुनिया को सहलाया…., रंगीली की सिसकी तेज हो गयी…!

आअहह…..म्म्मलिकक्कक….अब जल्दी से डालो नाअ….,

लाला ने उसकी केले जैसी जांघों को अपने मजबूत पाटों पर रखा, फिर उसके पेट से सहलाते हुए हाथों से उसकी छोटी सी चुचियों को मुट्ठी में लेकर मसल्ते हुए बोले – क्या डालूं रानी,

रंगीली शरमा कर बोली – हमें नही पता…, जानबूझ कर सता रहे हैं, सब समझते हैं आप…, प्लीज़ अंदर करो ना… आहह…सबर नही होता अब…

लाला ने मुस्कराते हुए उसकी मुनियाँ के होंठों को खोलकर एक हाथ से अपने लौडे को एक-दो बार आगे पीछे करके, उसकी चूत के होंठों पर रखकर आगे पीछे करके दोनो की अच्छे से पहचान कराई…

फिर अपने मोटे टमाटर जैसे सुपाडे को उसके छोटे से छेद के उपर रख कर एक जोरदार धक्का अपनी कमर में लगा दिया….!


आअर्र्र्ृिई…..आआमम्म्माआअ…..माररररर…गायईयीई…र्ररिइ….,

वो लाला की छाती पर अपना हाथ अड़ाते हुए कराह कर बोली – आहह…मालिक…थोड़ा रूको…वरना हमारी जान चली जाएगी…!

रंगीली की इतनी कसी हुई चूत देखकर लाला आश्चर्य में पड़ गये…, एक शादी सुदा लड़की की चूत इतनी कसी हुई कैसे, ये तो एकदम कोरी ही लग रही है…

फिर उन्होने नीचे नज़र डालकर अपने लंड की तरफ देखा, जो लगभग 3-4थाई उसके बिल में चला गया था,

उन्होने रंगीली के बगलों में हाथ डालकर उसे गद्दी से उपर उठा कर अपने सीने से लगा लिया और उसके होंठों को चूमते हुए बोले – दर्द ज़्यादा हो रहा है मेरी रानी को…

दर्द के मारे उसकी पलकों की कोरों में आँसुओं की बूँदें छलक आई थी, उन्होने उसकी आँखों के खारे पानी को चाट कर उसकी पलकों को चूम लिया…!

लाला उसकी पीठ सहलाते हुए बोले – तुम्हें इतना दर्द क्यों हुआ, क्या अभी तक तुम्हारे पति ने तुम्हें नही भोगा…?

वो उनके चौड़े सीने में मूह छिपा कर बोली – उनका बहुत छोटा सा है, बिल्कुल आपकी उंगली के बराबर का, और आपका ये…, इतना कहकर वो शरमा गयी…!

लाला का सर फक्र से उँचा हो गया, वो मन ही मन अपने आपको दाद देने लगे…

वाह रे धरमदास, क्या किस्मत पाई है, एक कोरी कन्या आज तेरी बाहों में है…!

फिर उन्होने उसे फिर से गद्दी पर लिटा दिया, और उसकी कच्चे अनार जैसी कठोर चुचियों को सहलाने लगे, उसके निपल्स को उंगली में पकड़ कर हल्के हाथों से खेलने लगे..

रंगीली को ना जाने और कितना सीखना वाकी था, लाला उसके बदन के साथ जो जो करतब करते, उसे उतने ही प्रकार का अलग ही मज़ा मिलने लगता…

लिहाजा अब उसका चूत फटने का दर्द कम हो गया था…,

लाला ने अब अपना मूसल जैसा लंड धीरे से बाहर निकाला…अपने लंड पर खून के धब्बे देखकर वो समझ गये कि रंगीली की झिल्ली सही मायने में आज ही फटी है.

उन्हें उसपर और प्यार आया, और उसके होंठ चुस्कर उन्होने फिर से एक धक्का लगा दिया…, लंड एक इंच और पहले से ज़्यादा अंदर चला गया, रंगीली के मूह से एक बार फिर से कराह निकल गयी…

कुच्छ देर धीरे-धीरे वो उतनी ही लंबाई को अंदर बाहर करते रहे…, एकदम कसी हुई चूत ने उनके लंड को जैसे जकड रखा था, इस वजह से उनका लंड जबाब देता जा रहा था…!



वैसे उसकी भी बेचारे की क्या ग़लती थी, पिछले एक घंटे से वो अपने लिए बिल की आस लगाए हुए था, अब जाकर मिला तो आराम करने की सोचेगा ही…

लेकिन सेठ नही चाहते थे कि ये साला बीच रास्ते में धोका दे जाए, और उनकी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ जायें, अगर ऐसा हुआ तो वो रंगीली के सामने कभी नज़र नही मिला पाएँगे…!

आज वो उसके उद्घाटन समारोह में अच्छी ख़ासी धूम मचाना चाहते थे, जिसे रंगीली जीवन भर याद करे, और हमेशा उसके लंड का लोहा मानती रहे,

इसलिए उन्होने उसे बाहर खींच लिया…, रंगीली को तो अभी थोडा-थोड़ा मज़ा आना शुरू हुआ था, तो जैसे ही उन्होने अपने नाग को उसकी बांबी से बाहर निकाला, एक प्रश्नवाचक निगाहों से वो उन्हें देखने लगी…!
उन्होने उसकी मुनिया के होंठों पर लगे खून के धब्बों को उसकी पैंटी से सॉफ किया, और अपनी जीभ लगाकर उसे चाट लिया…!


आअहह…रंगीली को जैसे ठंडक पड़ गयी…, दहकती चूत पर जीभ लगते ही

वो सिसक उठी….सस्स्सिईईई…आआहह…यईए…क्य्ाआ कर रहे हैं..आप्प्प्प…?



धरम दास ने मुस्कुराकर उसकी तरफ देख और बोले – तुम बस देखती जाओ हमारा कमाल, ये कह कर उन्होने अपने उपर के होंठों को उसके नीचे के होंठों पर टिका दिया….!







मस्ती से रंगीली की आँखें बंद हो गयी, और उसने अपने आपको लाला के हवाले कर दिया, क्योंकि अब तक वो जो भी कर रहे थे उनसे वो आनंद की नयी-नयी उँचाइयों को पार करती जा रही थी,



जिनके बारे में उसने ना तो कभी सोचा था और ना ही सुना था….!



लाला ने एक बार उसकी मुनिया को बड़े प्यार से किस किया, और फिर उसकी फांकों को जुदा करके उसके अंदर की लाल सुर्ख परतों को जीभ से चाट लिया….



सस्सिईईईई….आआहह…..म्माल्ल्लीइीकककक….बहुत मज़ाअ…आअत्त्ताअ…है ऐसे…तो..,,



कुच्छ देर इसी तरह चाटने के बाद उन्होने उसके भज्नासा जो अब कुच्छ कड़क होकर उसकी फांकों से बाहर निकल आया था, को अपने होंठों में दबाकर चूस डाला…!



यही नही, अपनी मोटी वाली उंगली भी उसके सुराख में डाल कर उसे अंदर बाहर करने लगे…



रंगीली की मज़े के कारण कमर थिरकने लगी, और वो अपनी गान्ड उचका-उचका कर उनकी उंगली को और अंदर तक लेने की कोशिश करने लगी…!



इस तरह से वो जल्दी ही अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी, और अंत में एक मस्ती की किलकारी मारते हुए उसने अपनी कमर को धनुष की तरह उठा लिया,



उसकी चूत ने अपना कामरस छोड़ दिया था, जिसे लाला जलेबी की चासनी समझ कर चाट गये…!



रंगीली इतने से मज़े की खुमारी से ही तृप्त होकर आँखें बंद किए सुकून से पड़ी थी, की तभी लाला ने फिर से उसकी टाँगें उठाकर अपनी जांघों पर रख ली और उसके उपर पसर कर उसके होंठों को चूमकर बोले –



कैसा लग रहा है मेरी जान…?



उसने एक बार उनकी आँखों में देखा, और फिर शरमा कर अपना सर एक तरफ को करके बोली – हमें नही पता…!



लाला ने मुस्करा कर उसके अमरूदो को मसल दिया…और उसके निप्प्लो को अंगूठे से मसल्ते हुए एक हाथ से अपने शेर को फिर से उसकी गुफा के द्वार तक ले गये…



अब वो कुच्छ खुल चुका था, सो अपने गरम दहक्ते सुपाडे को जगह तलाश करने में ज़्यादा परेशानी नही हुई…!



हल्का सा धक्का देकर लाला ने अपने 2” मोटे सुपाडे को उसकी सन्करि गुफा में प्रवेश करा दिया…,



थोड़ी देर पहले हुए छिड़काव के कारण अब उसे पहले जितनी मुश्किल नही आ रही थी, सो वो प्रथम प्रयास में की गयी खुदाई तक आराम से पहुँच गया…!



लाला कुच्छ देर तक उसी गहराई तक हल्के हल्के धक्के लगाते रहे, रंगीली की चूत में फिर से संकुचन शुरू होने लगा, और वो मस्ती से भर उठी…



अब उसकी भी कमर नीचे से उठने का प्रयास करती दिखी, तभी लाला ने एक और फाइनल स्ट्रोक मार दिया और उनका लंड जड़ तक उसकी चूत में समा गया…



एक साथ हुए हमले से रंगीली एक बार फिर बिल-बिला उठी, लेकिन इस बार उसने अपनी चीख को होंठों से बाहर नही आने दिया…!



अब वो नही चाहती थी, कि मालिक अब रुकें, आज वो अपने जिस्म की प्यास को पूरी तरह से शांत कर लेना चाहती थी…!



लाला का लंड वो अपनी गुफा के अंतिम छोर तक महसूस कर रही थी, जहाँ पहुँच कर उसने अपनी ठोकर से उसके काम श्रोत का ढक्कन हिला दिया…



अब उसकी मुनिया कुच्छ ज़्यादा ही तर होती लग रही थी…, रसीली दीवारों की चिकनाई पाकर लाला का लंड खुशी से झूम उठा, और अब वो पूरी लंबाई तक सतसट अपने सफ़र को तय करने लगा…



रंगीली का दर्द ना जाने कब छूमनतर हो चुका था, और ना जाने कब और कैसे उसकी कमर उचक-उचक कर लाला के लंड को अपने अंदर और अंदर तक लेने की कोशिश करने लगी…!



लाला की चतुराई काम आगयि थी, अब वो पूरी सिद्दत से उसकी प्यास बुझाने में लगे हुए थे, इधर रंगीली भी मज़े की पराकाष्ठा तक पहुँचने की कोशिश में थी…



दोनो ही एक दूसरे को संतुष्ट करने का भरसक प्रयास कर रहे थे, और इसी प्रयास में दोनो के मूह से अजीब अजीब सी आवाज़ें, कराहें निकल रही थी..


[size=x-small][size=x-small][size=x-small][size=x-small]वो दोनो पसीने से तर हो चुके थे…
 
  • Like
Reactions: shivkrkewat
Member

0

0%

Status

Offline

Posts

3

Likes

0

Rep

0

Bits

6

4

Years of Service

LEVEL 1
100 XP
aaj hi maine ye thread padhna suru kiya aur aaj hi khatam bhi kar diya ... bahut hi interesting hai... plz keep updating......
 

56,302

Members

323,934

Threads

2,714,233

Posts
Newest Member
Back
Top