Member
LEVEL 1
95 XP
रंगीला लाला और ठरकी सेवक
मित्रो एक और कहानी नेट से ली है इसे आशु शर्मा ने लिखा है मैं इसे हिन्दी फ़ॉन्ट मे आरएसएस पर पोस्ट कर रहा हूँ मेरी ये कोशिस आपको कैसी लगती है अब ये देखना है और आपका साथ भी सबसे ज़रूरी है जिसके बगैर कोई भी लेखक कुछ नही कर सकता हमारी मेहनत तभी सफल है जब तक आप साथ हैं ................ चलिए मित्रो कहानी शुरू करते हैं ................
झुक कर बैठक में झाड़ू लगा रही रंगीली को जब ये एहसास हुआ कि उसके पीछे कोई है, तो वो झट से खड़ी होकर पलटी,
अपने ठीक सामने खड़े अपने मालिक, सेठ धरमदास को देख वो एकदम घबरा गयी, और अपनी नज़र झुका कर थर-थराती हुई आवाज़ में बोली-
क.क.ककुउच्च काम था मालिक…?
धरमदास ने आगे बढ़कर उसके दोनो बाजुओं को पकड़कर कहा – हां हां ! बहुत ज़रूरी काम है हमें तुमसे, लेकिन सोच रहे हैं तुम उसे करोगी भी या नही..
रंगीली ने थोड़ा अपने बाजुओं को उनकी गिरफ़्त से आज़ाद करने की चेष्टा में अपने बाजुओं को अपने बदन के साथ भींचते हुए कहा – मे तो आपकी नौकर हूँ, हुकुम कीजिए मालिक क्या काम है..?
सेठ धरमदास ने उसके बाजुओं को और ज़ोर्से कसते हुए कहा – जब से तुम हमारे यहाँ काम करने आई हो, तब से तुमने मेरे दिन का चैन, रातों की नींद हराम कर रखी है…
लाख कोशिशों के बाद भी तुम अभी तक हमसे दूर ही भागती रहती हो,
ये कहकर उसने एक झटके से रंगीली को अपने बदन से सटने पर मजबूर कर दिया,
वो सेठ जी की चौड़ी चकली छाती से जा लगी..
उसके गोल-गोल चोली में क़ैद, कसे हुए कच्चे अमरूद ज़ोर्से सेठ की मजबूत छाती से जा टकराए, उसको थोड़ा दर्द का एहसास होते ही मूह से कराह निकल गयी…
आअहह… मलिक छोड़िए हमें, झाड़ू लगाना है, वरना मालकिन गुस्सा करेंगी…
रंगीली के हाथ से झाड़ू छुटकर नीचे गिर चुका था, उसने अपने दोनो हाथों को सेठ के सीने पर रख कर, ज़ोर लगाकर सेठ को अपने से अलग करते हुए बोली –
य.य.यईए…आप क्या कर रहे हैं मालिक, भगवान के लिए ऐसा वैसा कुच्छ मत करिए मेरे साथ..
हम तुम्हें बहुत प्यार करते हैं रंगीली, आओ हमारी बाहों में समा जाओ, ये कहकर उसने फिरसे उसे अपनी ओर खींच लिया, और उसके सुडौल बॉली-बॉल जैसे चुतड़ों को अपने बड़े-2 हाथों में लेकर मसल दिया…
दर्द से बिल-बिला उठी वो कमसिन नव-यौवना, आआययईीीई…माआ…, फिर अपने मालिक के सामने गिड-गिडाते हुए बोली –
भगवान के लिए हमें छोड़ दीजिए मालिक, हम आपके हाथ जोड़ते हैं,
लेकिन उसकी गिड-गिडाहट का सेठ धरमदास पर कोई असर नही हुआ, उल्टे उनके कठोर हाथों ने उसके नितंबों को मसलना जारी रखा…
फिर एक हाथ को उपर लाकर उसके एक कच्चे अनार को बेदर्दी से मसल दिया…
दर्द से रंगीली की आँखों में पानी आगया, अपनी ग़रीबी और बबसी के आँसू पीकर उसने एक बार फिरसे प्रतिरोध किया, और सेठ को धक्का देकर अपने से दूर कर दिया…
फिर झाड़ू वही छोड़कर लगभग भागती हुई वो बैठक से बाहर चली गयी….!
[size=x-small]सेठ अपने चेहरे पर मक्कारी भरी हँसी लाकर, अपने आधे खड़े लंड को धोती के उपर से मसल्ते हुए मूह ही मूह में बुद्बुदाया…
कब तक बचेगी रंगीली, तेरी इस मदभरी कमसिन जवानी का स्वाद तो हम चख कर ही रहेंगे, भले ही इसके लिए हमें कुच्छ भी करना पड़े,
तुझे पाने के लिए ही तो हमने इतना बड़ा खेल खेला है, अब अगर तू ऐसे ही निकल गयी तो थू है मेरी जवानी पर ………
बात 70 के दसक की है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक गाओं, जहाँ के सेठ धरम दास जो इस गाओं के ही नही आस-पास के तमाम गाँव में सबसे धनी व्यक्ति थे…
वैसे तो इनके पिता की छोड़ी हुई काफ़ी धन दौलत थी इनके पास फिर भी ये गाओं और आस पास के सभी वर्गों के लोगों को सूद पर धन देकर, उससे सूद इकट्ठा करके अपने धन में और दिनो-दिन बढ़ोत्तरी करते जा रहे थे.
ब्याज दर ब्याज, जो एक बार इनके लपेटे में आ गया, समझो कंगाल ही हो गया..
घर, ज़मीन गिरबी रख कर भी उसे छुटकारा नही मिला और आख़िरकार वो उसे गँवा देनी ही पड़ी…
इस तरह से ना जाने कितनी ही एकर ज़मीन सेठ धरमदास अपने नाम कर चुके थे.
धर्म दास की पत्नी पार्वती देवी, एक मध्यम रंग रूप की छोटे से कद की मोटी सी, बड़ी ही खुर्राट किस्म की औरत थी.
किसी तरह से इनके 3 बच्चे पैदा हो गये थे, जिनमें सबसे बड़ा बेटा कल्लू था.
उसके बाद दो लड़कियाँ पैदा हुई, क्रमशः कल्लू से 4 और 6 साल छोटी थी…
माँ का दुलारा कल्लू, पढ़ने लिखने में बस काम चलाऊ ही था, किसी तरह से पास हो जाता था… लेकिन लड़कियाँ काफ़ी तेज थीं.
सेठ का मन अपनी सेठानी से तो कब का ऊब चुका था, अब तो वो अपने पैसे के दम पर बाहर ही अपनी मलाई निकालते रहते थे…
कभी कभी तो किसी बेचारी ग़रीब दुखियारी औरत को ही, इनका सूद पटाने के चक्कर में इनके लंड के नीचे आना पड़ जाता था…
सूद तो खैर क्या पटना था, बदले में उसे आए दिन किस्त जमा करने आना ही पड़ता था…और अगर वो सेठ को ज़्यादा दिन तक नज़र नही आई, तो उनके मुस्टंडे जा धमकते उसके घर बसूली के बहाने…
अब थोड़ा सेठ धरमदास के व्यक्तित्व का भी जिकर हो जाए…
38 वर्स के सेठ धरम दास, गोरा लाल सुर्ख रंग, 5’8” की मध्यम हाइट, पेट थोड़ा सा बाहर को निकला हुआ, लेकिन इतना नही कि खराब दिखे…
हल्की-हल्की मूँछे रखते थे, हर समय एक फक्क सफेद धोती, के नीचे एक घुटने तक का पट्टे का घुटन्ना (अंडरवेर) ज़रूर पहनते थे..
उपर एक सफेद रंग की हाथ की सिली हुई फातूरी (वेस्ट) जिसमें पेट पर एक बड़ी सी जेब होती थी…
घर पर वो ज़्यादा तर इसी वेश-भूसा में पाए जाते थे, लेकिन कहीं बाहर जाना हो तो, उपर एक हल्के रंग का कुर्ता डाल लेते थे.
इतनी सारी खूबियों के बावजूद उनका सुबह-2 का नित्य करम था, कि नहा धोकर लक्ष्मी मैया की पूजा करके, माथे पर इनके सफेद चंदन का तिलक अवश्य पाया जाता था…
देखने भर से ही सेठ बड़े भजनानंदी दिखाई देते थे, लेकिन थे नंबरी लंपट बोले तो ठरकी...
जहाँ सुंदर नारी दिखी नही कि, इनकी लार टपकना शुरू हो जाती थी…
सेठ की तीन मंज़िला लंबी चौड़ी हवेली, गाओं के बीचो बीच गाओं की शोभा बढ़ाती थी…
मेन फाटक से बहुत सारा लंबा चौड़ा खुला मैदान, उसके बाद आगे बारादरी, जिसके बीचो-बीच से एक गॅलरी से होते हुए अंदर फिर एक बड़ा सा चौक, जिसके चारों तरफ बहुत सारे कमरे…
सेठ की गद्दी (बैठक) हवेली के बाहरी हिस्से में थी, एक बड़े से हॉल नुमा कमरे के बीचो-बीच, एक बड़े से तखत के उपर मोटे-मोटे गद्दे, जिसपर हर समय एक दूध जैसी सफेद चादर बिछि होती थी,
तीन तरफ मसंद लगे हुए, और तखत के आगे की तरफ एक 3-4 फीट लंबी, 1फीट उँची, डेस्क नुमा लकड़ी की पेटी, जिसके उपर उनके बही खाते रखे होते थे…!
[size=x-small]अपनी बसूली की श्रंखला में ही एक दिन दूर के गाओं में इनकी नज़र रंगीली पर पड़ गयी…
[size=x-small][size=x-small]गोरा रंग छर्हरे बदन <18 वर्ष की रंगीली रास्ते के सहारे अपने जानवरों के वाडे में घन्घरा-चोली पहने अपने पशुओं के गोबर से उपले बना रही थी…
बिना चुनरी के उसके सुन्दर गोले-गोरे अल्पविकसित उभार उसकी कसी हुई चोली से अपनी छटा बिखेर रहे थे,
पंजों के उपर बैठी जब वो उस गोबर को मथने के लिए आगे को झुकती तो उसके अनारों के बीच की घाटी कुच्छ ज़्यादा ही अंदर तक अपनी गहराई को नुमाया कर देती…
रास्ते से निकलते सेठ धरमदास की ठरकी नज़र उस बेचारी पर पड़ गयी…, वो तुरंत वहीं ठिठक गये, और खा जाने वाली नज़रों से उसकी कमसिन अविकसित जवानी का रस लेने लगे…
उन्हें खड़ा होते देख, साथ चल रहे उनके मुनीम भी रुक गये और अपने मालिक की हरकतों को परखते ही चस्मे के उपर से उनकी नज़रों का पीछा करते हुए रसीली की कमसिन जवानी को देखते ही अपनी लार टपकाते हुए बोले –
ये बुधिया बघेले की बेटी है मालिक,
सेठ – कॉन बुधिया…?
मुनीम – वोही, जिसकी ज़मीन और मकान दोनो ही हमारे यहाँ गिरबी रखे हैं…
ये सुनकर सेठ की आँखें रात के अंधेरे में जगमगाते जुगनुओ की मानिंद चमक उठी…
मुनीम की बात सुनते ही सेठ के लोमड़ी जैसे दिमाग़ ने वहीं खड़े-खड़े इस कमसिन सुंदरी को भोगने का एक बहुत ही शानदार प्लान बना लिया…, और उनकी आँखें हीरे की तरह चमक उठी…
अपने सेठ की आँखों की चमक को पहचानते ही मुनीम बोला – बुधिया को बुलाऊ सरकार…
सेठ ने मुस्कुराती आँखों से अपने मुनीम की तरफ देखा और अपनी धोती को उपर करने के बहाने, अंगड़ाई ले चुके लंड को मसलते हुए बोले –
तुम सचमुच बहुत समझदार हो मुनीम जी…. चलो बुधिया के पास चलते हैं…
बुधिया का घर उसके जानवरों के बाँधने वाली जगह यानी घेर से थोड़ा चल कर गाओं के अंदर था,
कच्चे मिट्टी के अपने छोटे से घर के आगे बने चबूतरे पर चारपाई पर बैठा बुधिया, अपने दो पड़ौसीयों के साथ हुक्का गडगडा रहा था,
सबेरे-सबेरे जन्वरी फेब्रुवरी के महीने में खेती-किसानी का कोई खास काम तो होता नही, गाओं में लोग बस ऐसे ही आपस में बैठ बतिया कर समय पास करते हैं…
हुक्का गडगडाते हुए उसकी नज़र उसके घर की तरफ आते हुए सेठ धरमदास और उसके मुनीम पर पड़ी…
बेचारे के तिर्पान काँप गये, सोचने लगा, आज सबेरे-सबेरे ये राहु-केतु मेरे घर की तरफ क्यों आ रहे हैं, अभी कुच्छ महीने पहले ही तो बसूली करके ले गये हैं..
अब अगर इन्होने कोई माँग रख दी, तो.. ? ये सोचकर वो अंदर तक काँप गया…
4 बच्चों और खुद दो प्राणी को पालने लायक ही अनाज बचा था बेचारे के पास,
अब और इसको कुच्छ देना पड़ा तो…, भूखों मरने की नौबत आ सकती है…!
अभी वो हुक्के की नई (नली का सिरा जिसे मूह में देकर धुए को सक करते हैं) को उंगली के सहारे मूह पर लगाए इन्ही सोचों में डूबा हुआ ही था, तब तक वो दोनो उसके चबूतरे तक पहुँच गये,
बुधिया के दोनो पड़ौसी सेठ को देख कर चारपाई से खड़े होकर दुआ-सलाम करने लगे, तब जाकर उसकी सोच को विराम लगा,
वो फ़ौरन हुक्के को छोड़ खड़ा हुआ और अपनी खीसें निपोर कर बोला – राम-राम सेठ जी, आज सबेरे-सबेरे कैसे दर्शन दिए…?
सेठ – राम-राम बुधिया… कैसे हो भाई… सब कुशल मंगल तो है ना…?
बुधिया– आप की कृपा से सब कुशल मंगल है सेठ जी…आइए, कैसे आना हुआ..?
सेठ – बस ऐसे ही गाओं में आए थे, कुच्छ लोगों से हिसाब-किताब वाकी था, सोचा एक बार तुम्हारे हाल-चाल भी पुच्छ लें…
बुधिया हिसाब-किताब की बात सुनकर फिर एक बार अंदर ही अंदर काँप गया, लेकिन अपने दर्र पर काबू रखने की भरसक कोशिश करने के बाद भी उसकी आवाज़ काँपने लगी और हकलाते हुए बोला –
ल .ल्ल्लेकींन…सेठ जी मेने तो इस बरस का हिसाब कर दिया था…
सेठ उसकी स्थिति भली भाँति समझ चुके थे, सो उसे अस्वस्त करते हुए बोले – अरे तुम्हें फिकर करने की ज़रूरत नही है बुधिया…तुमसे तो बस ऐसे ही हाल-चाल जानने चले आए…!
सेठ जी की बात सुनकर उसकी साँस में साँस आई, और एक लंबी गहरी साँस छोड़ते हुए बोला – तो फिर बताइए सेठ जी ये ग़रीब आपकी क्या सेवा कर सकता है..
सेठ – सेवा तो हम तुम्हारी करने आए हैं बुधिया, सुना है तुम्हारी बेटी जवान हो गयी है, शादी-वादी नही कर रहे हो उसकी…!
भाई बुरा मत मानना, जवान बेटी ज़्यादा दिन घर में रखना ठीक बात नही है..
बुधिया – हां सेठ जी शादी तो करनी है, लेकिन ग़रीब आदमी के पास इतना पैसा कहाँ है,
अब आपसे तो कुच्छ छुपा हुआ नही है, जो होता है उसमें से आपका क़र्ज़ चुकाने के बाद उतना ही बच पाता है, कि बच्चों के पेट पाल सकें…
शादी में लड़के वालों को लेने-देने, उनकी खातिर तबज्जो करने में बहुत खर्चा लगता है,
[size=x-small][size=x-small]अब नया क़र्ज़ लूँ तो उसे चुकाने के लिए कहाँ से आएगा, यही सब सोचकर अभी तक चुप बैठा हूँ…!
[size=x-small][size=x-small][size=x-small]बुधिया की बात सुनकर, सेठ जी ने एक अर्थपूर्ण नज़र से अपने मुनीम की तरफ देखा, और फिर बड़े ही अप्नत्व भाव से बोले –
देखो बुधिया, तुम्हारी बेटी इस गाओं की बेटी, अब हमारा संबंध इस गाओं से भी है, तो बेटी की शादी में मदद करना हमारा भी कुच्छ फ़र्ज़ बनता है..
अगर तुम्हें कोई एतराज ना हो, तो हम तुम्हें वो रास्ता बता सकते हैं, जिससे तुम्हारे उपर कोई भार भी ना पड़े, और लड़की भी एक सुखी परिवार में पहुँच जाए…
सेठ की बात सुनकर बुधिया को लगा कि आज उसके यहाँ सेठ के रूप में साक्षात भगवान पधारे हैं, सो उनके हाथ जोड़कर बोला – वो क्या रास्ता है सेठ जी,
अगर ऐसा हो गया तो जीवन भर में आपके चरण धो-धोकर पियुंगा…
सेठ जी मुस्कुरा कर बोले – अरे नही भाई, ये तो हम गाओं की बेहन-बेटी के नाते कर रहे हैं..., तुम्हारी बेटी सुखी रहे बस…
हमारे गाओं के रामलाल को तो तुम जानते ही होगे, अरे वोही जिसका बेटा रामू रेलवे में नौकरी करता है,
उसके पास कुच्छ ज़मीन जयदाद भी है, तुम्हारी बेटी राज करेगी वहाँ…
अगर हां कहो तो हम रामलाल से बात चलायें,
बुधिया - पर सेठ जी, वो लड़का तो कद में छोटा है, और कुच्छ रंग भी हेटा है..मेरी बेटी रंगीली तो उससे ज़्यादा लंबी है और रंग की भी बहुत सॉफ है, जोड़ी कुच्छ अजीब सी नही लगेगी.
सेठ जी – देखलो भाई, हमने तो सोचा था, रामलाल भी अपना आदमी है, तुम भी हमारे अपने ही हो, लेन-देन की कोई बात नही रहेगी,
और रही बात बारातियों की खातिर तबज्ज़ो की, अगर तुम ये रिस्ता मंजूर करते हो, तो उसका खर्चा एक बेटी के कन्यादान स्वरूप हम अपनी तरफ से उठा लेंगे…!
इतना अच्छा प्रस्ताव सुनकर बुधिया सोच में पड़ गया, अब वो सोचने लगा कि चलो थोड़ा बहुत जोड़ा 19 -20 भी हो तो क्या हुआ,
4 बच्चों में से एक लड़की का जीवन तो संवर जाए, और सेठ जी की कृपा से शादी भी फोकट में हो जाएगी… !
सेठ – किस सोच में पड़ गये बुधिया, भाई मुझे तो अपने लोगों की चिंता है इसलिए इतना कहा है, वरना मुझे क्या पड़ी… तुम्हारी लड़की जब तक चाहो घर में बिठाकर रखो…
बुधिया – नही ऐसी बात नही है सेठ जी, आप तो हमारे अन्न दाता हैं, मे रंगीली की माँ से एक बार बात करके आपको जबाब देता हूँ, वैसे आप मेरी तरफ से तो हां ही समझो…
उसकी बात सुनकर सेठ के मन में लड्डू फूटने लगे, उसको पता था, कि इतने अच्छे प्रस्ताव को ये ग़रीब आदमी ठुकराने से रहा और रामलाल वही करेगा जो हम कहेंगे…
सेठ – अच्छा तो बुधिया हम चलते हैं, अपनी पत्नी से बात कर्लो, फिर तसल्ली से बता देना, उसके बाद ही हम रामलाल से बात करेंगे, ठीक है..
बुधिया हाथ जोड़कर – जी सेठ जी राम – राम…..
दो महीने बाद ही रंगीली रामू की पत्नी के रूप में शादी करके सेठ के गाओं आ गयी,
अब यहाँ रामू के घर परिवार के बारे में बताना भी ज़रूरी है…
रामलाल के भी 4 बच्चे थे, दो बेटियों की शादी करदी थी जो रामू से बड़ी थी…
सबसे बड़ा एक लड़का और है भोला नाम का जो कम अकल, किसी काम का नही बस गाय भैसे चराने के मतलव का ही है…
कम अकल होने की वजह से कोई अपनी लड़की ब्याहने को तैयार नही हुआ सो बेचारा कुँवारा ही रह गया…
रामू सबसे छोटा था, जो बचपन से काम के बोझ का मारा, ज़्यादा लंबा ही नही हो पाया, यही कोई 5 फुट के आस-पास ही रह गया, जबकि रंगीली की हाइट 5’4” के करीब थी…
पक्का रंग, रेलवे यार्ड में खल्लासी का काम करता है, सारे दिन माल गाड़ियों से समान ढोते-ढोते बेचारे की शाम तक कमर लचक जाती है, ब मुश्किल दो दिन की छुट्टी लेकर दूल्हा बना था…
रंगीली की सखी सहेलियाँ दूल्हे को देख कर कुच्छ दुखी हुई, बेचारी के भाग ही फुट गये, हम सब सहेलिओं में सुंदर है,
और इसका दूल्हा…, अब होनी को कॉन टाल सकता है, भाग में जैसा लिखा है, होकर रहता है… पर चलो जीजा जी कुच्छ कमाते तो हैं…, रंगीली सुखी रहेगी.
खैर रंगीली ने अपने दूल्हे की सुंदरता के बारे में अपनी सहेलियों से ही सुना, देखने का मौका उसे सीधा उसकी सुहाग रात को ही मिला वो भी शादी के तीन दिन बाद सारे देवी-देवताओं की मान-मुनब्बत करने के बाद…
वो भी एक छोटी सी केरोसिन की डिब्बी के उजाले में, सो सही सही अनुमान भी नही लगा कि रंग काला है या पीला.. हां थोड़ी लंबाई ज़रूर कम लगी…
[size=x-small][size=x-small][size=x-small]फिर जब सेज सैया पर (एक चरमराती चारपाई) नये बिच्छावन के साथ, पति के साथ संसर्ग हुआ… तो उसे बड़ा झटका सा लगा…
[size=x-small][size=x-small][size=x-small][size=x-small]सहेलियाँ तो कहती थी, कि प्रथम मिलन में बड़ी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ता है, खून ख़राबा तक हो जाता है,
लेकिन यहाँ तो उसके पति ने सीधा उसका लहंगा उपर किया और अपनी लुल्ली अंदर डाल दी, उसे लगा जैसे किसी ने उसकी चूत में उंगली डाल कर 10-15 बार अंदर बाहर की हो,
नयी नवेली मुनिया, शुरू के एक दो बार उसे हल्का सा दर्द फील हुआ, जिसे वो पैर की उंगली में लगी किसी ठोकर समझ कर झेल गयी…
फिर कुच्छ झटकों के बाद जब उसे भी थोड़ा मज़ा सा आना शुरू हुआ ही था कि तब तक उसका पल्लेदार पति, अपना पानी छोड़ कर उसके उपर पड़ा भैंसे की तरह हाँफने लगा…..!
माँ के घर से विदा होते वक़्त रंगीली की माँ और दूसरी बड़ी-बूढ़ी समझदार औरतों ने उसे कुच्छ ज्ञान की बात कहीं थी, मसलन :
पति की आग्या का पालन करना, सास ससुर की सेवा…, पति परमेश्वर होता है, वो जैसा रखे उसी को मान सम्मान देते हुए स्वीकार कर लेना…बल्ला..बल्ला..बल्लाअ..
सौ की एक बात, उन बातों को ध्यान में रखते हुए रंगीली अपने नये परिवार में अपने आप को ढालने की कोशिश करने लगी…
कुच्छ दिन तो उसकी बड़ी ननदे उसके पास रही, जिसकी वजह से उसका दिल एक नयी जगह पर लगा रहा, लेकिन जब वो अपने-अपने घर चली गयी, तो उसे वो घर काटने को दौड़ने लगा…
5 फूटिया 45 किलो का पति, सुवह 5 बजे ही अपनी मेहनत मजूरी के लिए निकल जाता, सारे दिन गधे की तरह रेलवे यार्ड में लदता, देर रात को आख़िरी गाड़ी से लौटता, खाना ख़ाता और 5 मिनिट में ही उसके खर्राटे गूंजने लगते…!
नव-यौवना रंगीली, जो ठीक तरह से ये भी नही जान पाई कि चुदाई होती क्या है, सुहागरात के नाम पर उसके पति परमेश्वर ने उसकी सोई हुई काम-इक्षा से उसका परिचय करा दिया था.
इससे अच्छा तो उसके व्याह से पहले ही थी, कम से कम उसकी मुनिया सिर्फ़ मूतना ही जानती थी,
लेकिन अब उसे उसके असली उपयोग के बारे में भी पता लगवा दिया था…!
बमुश्किल वो उसके उपर हफ्ते दस दिन बाद एक बार ही सवारी करता, वो भी जब तक वो दौड़ने के लिए तैयार होती उससे पहले ही खुद खर्राटे लेते हुए सो जाता, रंगीली बेचारी रात भर जिस्म की आग में तड़पति रहती…
अब बेचारी अपनी दूबिधा कहे तो किससे कहे, बूढ़े सास-ससुर जो वक़्त की मार ने समय से पहले ही उन्हें और बूढ़ा कर दिया था, वो अपनी पुत्र बधू की दूबिधा को भला क्या समझते…
बस कभी कभार नहाते समय, थोड़ा बहुत हाथ से सहला लेती जिससे उसकी काम इच्छा और ज़्यादा भड़कने लगती,
उसको तो अभी तक ये भी पता नही था कि उंगली डालकर भी जिस्म की आग शांत की जा सकती है, उसके दिमाग़ में तो यही था, कि मर्द जब अपना लंड डालता और निकालता है…बस उतना ही है,
असल मज़ा किसे कहते हैं कोई बताने वाला भी तो नही था…
रामू की ज़मीन भी लाला के यहाँ गिरबी पड़ी थी, उसे कोई करने वाला भी नही था, ससुर अपने पागल बेटे को लेकर थोड़ा बहुत लगा रहता…
सेठ का कर्ज़ा बदस्तूर जारी ही था, रामू मेहनत मजूरी करके जो कुच्छ कमाता, उसमें से आधी किस्त ब्याज के नाम पर लाला हड़प लेता…
घर के काम काज, सास ससुर की सेवा ही रंगीली की दिनचर्या बन गयी थी...,
अभी शादी को 2 महीने भी नही बीते थे कि एक दिन लाला आ धम्के उसके घर, मुनीम ने लंबा चौड़ा वही-ख़ाता खोल कर उनके सामने रख दिया,
बेचारे रामू और उसके माँ-बाप की सिट्टी-पिटी गुम, तभी दयालु ह्र्दय लाला ने ही उन्हें एक राह सुझाई….!
रामलाल, क्यों ना अपनी बहू को हमारे घर काम करने के लिए भेज दे, उसकी एबज में हम तुमसे ब्याज नही लिया करेंगे, और रामू की कमाई से तुम्हारा घर अच्छे से चलने लगेगा…
अँधा क्या चाहे – दो आँखें, ये बात फ़ौरन उन तीनो के भेजे में घुस गयी, और उसी शाम उन्होने रंगीली को लाला के यहाँ काम पर जाने के लिए राज़ी कर लिया…!
घूँघट में खड़ी अपने पति के परिवार की व्यथा जानकार उसने अपना सर हिलाकर हामी भर दी, सोचा नयी जगह पर काम करने से कुच्छ तो मन भटकने से बचेगा…
गाओं की नयी-नवेली बहू, गली गलियारे का भी पता नही होगा, लाला का घर कैसे मिलेगा यही सोच कर दूसरे दिन सास खुद अपने साथ लेजा कर उसे लाला की हवेली छोड़ आई….
लाला धरमदास ने अपनी सेठानी को रंगीली के बारे में पहले ही बता दिया था... सो उसके पहुँचते ही उसे काम बता दिए गये,
अब बेचारी पर काम की दोहरी ज़िम्मेदारी पड़ने लगी, पति के काम पर जाने से 1 घंटा पहले उठना यानी 4 बजे… उसके लिए खाने का डिब्बा तैयार करना,
घर का झाड़ू कटका करके 8 बजे तैयार होकर लाला के घर पहुँचना, शाम तक सेठानी उससे ढेरों काम करती, हां लेकिन दूसरे नौकरों की तरह दोपहर का खाना पीना उसका वहाँ हो जाता था…!
मित्रो एक और कहानी नेट से ली है इसे आशु शर्मा ने लिखा है मैं इसे हिन्दी फ़ॉन्ट मे आरएसएस पर पोस्ट कर रहा हूँ मेरी ये कोशिस आपको कैसी लगती है अब ये देखना है और आपका साथ भी सबसे ज़रूरी है जिसके बगैर कोई भी लेखक कुछ नही कर सकता हमारी मेहनत तभी सफल है जब तक आप साथ हैं ................ चलिए मित्रो कहानी शुरू करते हैं ................
झुक कर बैठक में झाड़ू लगा रही रंगीली को जब ये एहसास हुआ कि उसके पीछे कोई है, तो वो झट से खड़ी होकर पलटी,
अपने ठीक सामने खड़े अपने मालिक, सेठ धरमदास को देख वो एकदम घबरा गयी, और अपनी नज़र झुका कर थर-थराती हुई आवाज़ में बोली-
क.क.ककुउच्च काम था मालिक…?
धरमदास ने आगे बढ़कर उसके दोनो बाजुओं को पकड़कर कहा – हां हां ! बहुत ज़रूरी काम है हमें तुमसे, लेकिन सोच रहे हैं तुम उसे करोगी भी या नही..
रंगीली ने थोड़ा अपने बाजुओं को उनकी गिरफ़्त से आज़ाद करने की चेष्टा में अपने बाजुओं को अपने बदन के साथ भींचते हुए कहा – मे तो आपकी नौकर हूँ, हुकुम कीजिए मालिक क्या काम है..?
सेठ धरमदास ने उसके बाजुओं को और ज़ोर्से कसते हुए कहा – जब से तुम हमारे यहाँ काम करने आई हो, तब से तुमने मेरे दिन का चैन, रातों की नींद हराम कर रखी है…
लाख कोशिशों के बाद भी तुम अभी तक हमसे दूर ही भागती रहती हो,
ये कहकर उसने एक झटके से रंगीली को अपने बदन से सटने पर मजबूर कर दिया,
वो सेठ जी की चौड़ी चकली छाती से जा लगी..
उसके गोल-गोल चोली में क़ैद, कसे हुए कच्चे अमरूद ज़ोर्से सेठ की मजबूत छाती से जा टकराए, उसको थोड़ा दर्द का एहसास होते ही मूह से कराह निकल गयी…
आअहह… मलिक छोड़िए हमें, झाड़ू लगाना है, वरना मालकिन गुस्सा करेंगी…
रंगीली के हाथ से झाड़ू छुटकर नीचे गिर चुका था, उसने अपने दोनो हाथों को सेठ के सीने पर रख कर, ज़ोर लगाकर सेठ को अपने से अलग करते हुए बोली –
य.य.यईए…आप क्या कर रहे हैं मालिक, भगवान के लिए ऐसा वैसा कुच्छ मत करिए मेरे साथ..
हम तुम्हें बहुत प्यार करते हैं रंगीली, आओ हमारी बाहों में समा जाओ, ये कहकर उसने फिरसे उसे अपनी ओर खींच लिया, और उसके सुडौल बॉली-बॉल जैसे चुतड़ों को अपने बड़े-2 हाथों में लेकर मसल दिया…
दर्द से बिल-बिला उठी वो कमसिन नव-यौवना, आआययईीीई…माआ…, फिर अपने मालिक के सामने गिड-गिडाते हुए बोली –
भगवान के लिए हमें छोड़ दीजिए मालिक, हम आपके हाथ जोड़ते हैं,
लेकिन उसकी गिड-गिडाहट का सेठ धरमदास पर कोई असर नही हुआ, उल्टे उनके कठोर हाथों ने उसके नितंबों को मसलना जारी रखा…
फिर एक हाथ को उपर लाकर उसके एक कच्चे अनार को बेदर्दी से मसल दिया…
दर्द से रंगीली की आँखों में पानी आगया, अपनी ग़रीबी और बबसी के आँसू पीकर उसने एक बार फिरसे प्रतिरोध किया, और सेठ को धक्का देकर अपने से दूर कर दिया…
फिर झाड़ू वही छोड़कर लगभग भागती हुई वो बैठक से बाहर चली गयी….!
[size=x-small]सेठ अपने चेहरे पर मक्कारी भरी हँसी लाकर, अपने आधे खड़े लंड को धोती के उपर से मसल्ते हुए मूह ही मूह में बुद्बुदाया…
कब तक बचेगी रंगीली, तेरी इस मदभरी कमसिन जवानी का स्वाद तो हम चख कर ही रहेंगे, भले ही इसके लिए हमें कुच्छ भी करना पड़े,
तुझे पाने के लिए ही तो हमने इतना बड़ा खेल खेला है, अब अगर तू ऐसे ही निकल गयी तो थू है मेरी जवानी पर ………
बात 70 के दसक की है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक गाओं, जहाँ के सेठ धरम दास जो इस गाओं के ही नही आस-पास के तमाम गाँव में सबसे धनी व्यक्ति थे…
वैसे तो इनके पिता की छोड़ी हुई काफ़ी धन दौलत थी इनके पास फिर भी ये गाओं और आस पास के सभी वर्गों के लोगों को सूद पर धन देकर, उससे सूद इकट्ठा करके अपने धन में और दिनो-दिन बढ़ोत्तरी करते जा रहे थे.
ब्याज दर ब्याज, जो एक बार इनके लपेटे में आ गया, समझो कंगाल ही हो गया..
घर, ज़मीन गिरबी रख कर भी उसे छुटकारा नही मिला और आख़िरकार वो उसे गँवा देनी ही पड़ी…
इस तरह से ना जाने कितनी ही एकर ज़मीन सेठ धरमदास अपने नाम कर चुके थे.
धर्म दास की पत्नी पार्वती देवी, एक मध्यम रंग रूप की छोटे से कद की मोटी सी, बड़ी ही खुर्राट किस्म की औरत थी.
किसी तरह से इनके 3 बच्चे पैदा हो गये थे, जिनमें सबसे बड़ा बेटा कल्लू था.
उसके बाद दो लड़कियाँ पैदा हुई, क्रमशः कल्लू से 4 और 6 साल छोटी थी…
माँ का दुलारा कल्लू, पढ़ने लिखने में बस काम चलाऊ ही था, किसी तरह से पास हो जाता था… लेकिन लड़कियाँ काफ़ी तेज थीं.
सेठ का मन अपनी सेठानी से तो कब का ऊब चुका था, अब तो वो अपने पैसे के दम पर बाहर ही अपनी मलाई निकालते रहते थे…
कभी कभी तो किसी बेचारी ग़रीब दुखियारी औरत को ही, इनका सूद पटाने के चक्कर में इनके लंड के नीचे आना पड़ जाता था…
सूद तो खैर क्या पटना था, बदले में उसे आए दिन किस्त जमा करने आना ही पड़ता था…और अगर वो सेठ को ज़्यादा दिन तक नज़र नही आई, तो उनके मुस्टंडे जा धमकते उसके घर बसूली के बहाने…
अब थोड़ा सेठ धरमदास के व्यक्तित्व का भी जिकर हो जाए…
38 वर्स के सेठ धरम दास, गोरा लाल सुर्ख रंग, 5’8” की मध्यम हाइट, पेट थोड़ा सा बाहर को निकला हुआ, लेकिन इतना नही कि खराब दिखे…
हल्की-हल्की मूँछे रखते थे, हर समय एक फक्क सफेद धोती, के नीचे एक घुटने तक का पट्टे का घुटन्ना (अंडरवेर) ज़रूर पहनते थे..
उपर एक सफेद रंग की हाथ की सिली हुई फातूरी (वेस्ट) जिसमें पेट पर एक बड़ी सी जेब होती थी…
घर पर वो ज़्यादा तर इसी वेश-भूसा में पाए जाते थे, लेकिन कहीं बाहर जाना हो तो, उपर एक हल्के रंग का कुर्ता डाल लेते थे.
इतनी सारी खूबियों के बावजूद उनका सुबह-2 का नित्य करम था, कि नहा धोकर लक्ष्मी मैया की पूजा करके, माथे पर इनके सफेद चंदन का तिलक अवश्य पाया जाता था…
देखने भर से ही सेठ बड़े भजनानंदी दिखाई देते थे, लेकिन थे नंबरी लंपट बोले तो ठरकी...
जहाँ सुंदर नारी दिखी नही कि, इनकी लार टपकना शुरू हो जाती थी…
सेठ की तीन मंज़िला लंबी चौड़ी हवेली, गाओं के बीचो बीच गाओं की शोभा बढ़ाती थी…
मेन फाटक से बहुत सारा लंबा चौड़ा खुला मैदान, उसके बाद आगे बारादरी, जिसके बीचो-बीच से एक गॅलरी से होते हुए अंदर फिर एक बड़ा सा चौक, जिसके चारों तरफ बहुत सारे कमरे…
सेठ की गद्दी (बैठक) हवेली के बाहरी हिस्से में थी, एक बड़े से हॉल नुमा कमरे के बीचो-बीच, एक बड़े से तखत के उपर मोटे-मोटे गद्दे, जिसपर हर समय एक दूध जैसी सफेद चादर बिछि होती थी,
तीन तरफ मसंद लगे हुए, और तखत के आगे की तरफ एक 3-4 फीट लंबी, 1फीट उँची, डेस्क नुमा लकड़ी की पेटी, जिसके उपर उनके बही खाते रखे होते थे…!
[size=x-small]अपनी बसूली की श्रंखला में ही एक दिन दूर के गाओं में इनकी नज़र रंगीली पर पड़ गयी…
[size=x-small][size=x-small]गोरा रंग छर्हरे बदन <18 वर्ष की रंगीली रास्ते के सहारे अपने जानवरों के वाडे में घन्घरा-चोली पहने अपने पशुओं के गोबर से उपले बना रही थी…
बिना चुनरी के उसके सुन्दर गोले-गोरे अल्पविकसित उभार उसकी कसी हुई चोली से अपनी छटा बिखेर रहे थे,
पंजों के उपर बैठी जब वो उस गोबर को मथने के लिए आगे को झुकती तो उसके अनारों के बीच की घाटी कुच्छ ज़्यादा ही अंदर तक अपनी गहराई को नुमाया कर देती…
रास्ते से निकलते सेठ धरमदास की ठरकी नज़र उस बेचारी पर पड़ गयी…, वो तुरंत वहीं ठिठक गये, और खा जाने वाली नज़रों से उसकी कमसिन अविकसित जवानी का रस लेने लगे…
उन्हें खड़ा होते देख, साथ चल रहे उनके मुनीम भी रुक गये और अपने मालिक की हरकतों को परखते ही चस्मे के उपर से उनकी नज़रों का पीछा करते हुए रसीली की कमसिन जवानी को देखते ही अपनी लार टपकाते हुए बोले –
ये बुधिया बघेले की बेटी है मालिक,
सेठ – कॉन बुधिया…?
मुनीम – वोही, जिसकी ज़मीन और मकान दोनो ही हमारे यहाँ गिरबी रखे हैं…
ये सुनकर सेठ की आँखें रात के अंधेरे में जगमगाते जुगनुओ की मानिंद चमक उठी…
मुनीम की बात सुनते ही सेठ के लोमड़ी जैसे दिमाग़ ने वहीं खड़े-खड़े इस कमसिन सुंदरी को भोगने का एक बहुत ही शानदार प्लान बना लिया…, और उनकी आँखें हीरे की तरह चमक उठी…
अपने सेठ की आँखों की चमक को पहचानते ही मुनीम बोला – बुधिया को बुलाऊ सरकार…
सेठ ने मुस्कुराती आँखों से अपने मुनीम की तरफ देखा और अपनी धोती को उपर करने के बहाने, अंगड़ाई ले चुके लंड को मसलते हुए बोले –
तुम सचमुच बहुत समझदार हो मुनीम जी…. चलो बुधिया के पास चलते हैं…
बुधिया का घर उसके जानवरों के बाँधने वाली जगह यानी घेर से थोड़ा चल कर गाओं के अंदर था,
कच्चे मिट्टी के अपने छोटे से घर के आगे बने चबूतरे पर चारपाई पर बैठा बुधिया, अपने दो पड़ौसीयों के साथ हुक्का गडगडा रहा था,
सबेरे-सबेरे जन्वरी फेब्रुवरी के महीने में खेती-किसानी का कोई खास काम तो होता नही, गाओं में लोग बस ऐसे ही आपस में बैठ बतिया कर समय पास करते हैं…
हुक्का गडगडाते हुए उसकी नज़र उसके घर की तरफ आते हुए सेठ धरमदास और उसके मुनीम पर पड़ी…
बेचारे के तिर्पान काँप गये, सोचने लगा, आज सबेरे-सबेरे ये राहु-केतु मेरे घर की तरफ क्यों आ रहे हैं, अभी कुच्छ महीने पहले ही तो बसूली करके ले गये हैं..
अब अगर इन्होने कोई माँग रख दी, तो.. ? ये सोचकर वो अंदर तक काँप गया…
4 बच्चों और खुद दो प्राणी को पालने लायक ही अनाज बचा था बेचारे के पास,
अब और इसको कुच्छ देना पड़ा तो…, भूखों मरने की नौबत आ सकती है…!
अभी वो हुक्के की नई (नली का सिरा जिसे मूह में देकर धुए को सक करते हैं) को उंगली के सहारे मूह पर लगाए इन्ही सोचों में डूबा हुआ ही था, तब तक वो दोनो उसके चबूतरे तक पहुँच गये,
बुधिया के दोनो पड़ौसी सेठ को देख कर चारपाई से खड़े होकर दुआ-सलाम करने लगे, तब जाकर उसकी सोच को विराम लगा,
वो फ़ौरन हुक्के को छोड़ खड़ा हुआ और अपनी खीसें निपोर कर बोला – राम-राम सेठ जी, आज सबेरे-सबेरे कैसे दर्शन दिए…?
सेठ – राम-राम बुधिया… कैसे हो भाई… सब कुशल मंगल तो है ना…?
बुधिया– आप की कृपा से सब कुशल मंगल है सेठ जी…आइए, कैसे आना हुआ..?
सेठ – बस ऐसे ही गाओं में आए थे, कुच्छ लोगों से हिसाब-किताब वाकी था, सोचा एक बार तुम्हारे हाल-चाल भी पुच्छ लें…
बुधिया हिसाब-किताब की बात सुनकर फिर एक बार अंदर ही अंदर काँप गया, लेकिन अपने दर्र पर काबू रखने की भरसक कोशिश करने के बाद भी उसकी आवाज़ काँपने लगी और हकलाते हुए बोला –
ल .ल्ल्लेकींन…सेठ जी मेने तो इस बरस का हिसाब कर दिया था…
सेठ उसकी स्थिति भली भाँति समझ चुके थे, सो उसे अस्वस्त करते हुए बोले – अरे तुम्हें फिकर करने की ज़रूरत नही है बुधिया…तुमसे तो बस ऐसे ही हाल-चाल जानने चले आए…!
सेठ जी की बात सुनकर उसकी साँस में साँस आई, और एक लंबी गहरी साँस छोड़ते हुए बोला – तो फिर बताइए सेठ जी ये ग़रीब आपकी क्या सेवा कर सकता है..
सेठ – सेवा तो हम तुम्हारी करने आए हैं बुधिया, सुना है तुम्हारी बेटी जवान हो गयी है, शादी-वादी नही कर रहे हो उसकी…!
भाई बुरा मत मानना, जवान बेटी ज़्यादा दिन घर में रखना ठीक बात नही है..
बुधिया – हां सेठ जी शादी तो करनी है, लेकिन ग़रीब आदमी के पास इतना पैसा कहाँ है,
अब आपसे तो कुच्छ छुपा हुआ नही है, जो होता है उसमें से आपका क़र्ज़ चुकाने के बाद उतना ही बच पाता है, कि बच्चों के पेट पाल सकें…
शादी में लड़के वालों को लेने-देने, उनकी खातिर तबज्जो करने में बहुत खर्चा लगता है,
[size=x-small][size=x-small]अब नया क़र्ज़ लूँ तो उसे चुकाने के लिए कहाँ से आएगा, यही सब सोचकर अभी तक चुप बैठा हूँ…!
[size=x-small][size=x-small][size=x-small]बुधिया की बात सुनकर, सेठ जी ने एक अर्थपूर्ण नज़र से अपने मुनीम की तरफ देखा, और फिर बड़े ही अप्नत्व भाव से बोले –
देखो बुधिया, तुम्हारी बेटी इस गाओं की बेटी, अब हमारा संबंध इस गाओं से भी है, तो बेटी की शादी में मदद करना हमारा भी कुच्छ फ़र्ज़ बनता है..
अगर तुम्हें कोई एतराज ना हो, तो हम तुम्हें वो रास्ता बता सकते हैं, जिससे तुम्हारे उपर कोई भार भी ना पड़े, और लड़की भी एक सुखी परिवार में पहुँच जाए…
सेठ की बात सुनकर बुधिया को लगा कि आज उसके यहाँ सेठ के रूप में साक्षात भगवान पधारे हैं, सो उनके हाथ जोड़कर बोला – वो क्या रास्ता है सेठ जी,
अगर ऐसा हो गया तो जीवन भर में आपके चरण धो-धोकर पियुंगा…
सेठ जी मुस्कुरा कर बोले – अरे नही भाई, ये तो हम गाओं की बेहन-बेटी के नाते कर रहे हैं..., तुम्हारी बेटी सुखी रहे बस…
हमारे गाओं के रामलाल को तो तुम जानते ही होगे, अरे वोही जिसका बेटा रामू रेलवे में नौकरी करता है,
उसके पास कुच्छ ज़मीन जयदाद भी है, तुम्हारी बेटी राज करेगी वहाँ…
अगर हां कहो तो हम रामलाल से बात चलायें,
बुधिया - पर सेठ जी, वो लड़का तो कद में छोटा है, और कुच्छ रंग भी हेटा है..मेरी बेटी रंगीली तो उससे ज़्यादा लंबी है और रंग की भी बहुत सॉफ है, जोड़ी कुच्छ अजीब सी नही लगेगी.
सेठ जी – देखलो भाई, हमने तो सोचा था, रामलाल भी अपना आदमी है, तुम भी हमारे अपने ही हो, लेन-देन की कोई बात नही रहेगी,
और रही बात बारातियों की खातिर तबज्ज़ो की, अगर तुम ये रिस्ता मंजूर करते हो, तो उसका खर्चा एक बेटी के कन्यादान स्वरूप हम अपनी तरफ से उठा लेंगे…!
इतना अच्छा प्रस्ताव सुनकर बुधिया सोच में पड़ गया, अब वो सोचने लगा कि चलो थोड़ा बहुत जोड़ा 19 -20 भी हो तो क्या हुआ,
4 बच्चों में से एक लड़की का जीवन तो संवर जाए, और सेठ जी की कृपा से शादी भी फोकट में हो जाएगी… !
सेठ – किस सोच में पड़ गये बुधिया, भाई मुझे तो अपने लोगों की चिंता है इसलिए इतना कहा है, वरना मुझे क्या पड़ी… तुम्हारी लड़की जब तक चाहो घर में बिठाकर रखो…
बुधिया – नही ऐसी बात नही है सेठ जी, आप तो हमारे अन्न दाता हैं, मे रंगीली की माँ से एक बार बात करके आपको जबाब देता हूँ, वैसे आप मेरी तरफ से तो हां ही समझो…
उसकी बात सुनकर सेठ के मन में लड्डू फूटने लगे, उसको पता था, कि इतने अच्छे प्रस्ताव को ये ग़रीब आदमी ठुकराने से रहा और रामलाल वही करेगा जो हम कहेंगे…
सेठ – अच्छा तो बुधिया हम चलते हैं, अपनी पत्नी से बात कर्लो, फिर तसल्ली से बता देना, उसके बाद ही हम रामलाल से बात करेंगे, ठीक है..
बुधिया हाथ जोड़कर – जी सेठ जी राम – राम…..
दो महीने बाद ही रंगीली रामू की पत्नी के रूप में शादी करके सेठ के गाओं आ गयी,
अब यहाँ रामू के घर परिवार के बारे में बताना भी ज़रूरी है…
रामलाल के भी 4 बच्चे थे, दो बेटियों की शादी करदी थी जो रामू से बड़ी थी…
सबसे बड़ा एक लड़का और है भोला नाम का जो कम अकल, किसी काम का नही बस गाय भैसे चराने के मतलव का ही है…
कम अकल होने की वजह से कोई अपनी लड़की ब्याहने को तैयार नही हुआ सो बेचारा कुँवारा ही रह गया…
रामू सबसे छोटा था, जो बचपन से काम के बोझ का मारा, ज़्यादा लंबा ही नही हो पाया, यही कोई 5 फुट के आस-पास ही रह गया, जबकि रंगीली की हाइट 5’4” के करीब थी…
पक्का रंग, रेलवे यार्ड में खल्लासी का काम करता है, सारे दिन माल गाड़ियों से समान ढोते-ढोते बेचारे की शाम तक कमर लचक जाती है, ब मुश्किल दो दिन की छुट्टी लेकर दूल्हा बना था…
रंगीली की सखी सहेलियाँ दूल्हे को देख कर कुच्छ दुखी हुई, बेचारी के भाग ही फुट गये, हम सब सहेलिओं में सुंदर है,
और इसका दूल्हा…, अब होनी को कॉन टाल सकता है, भाग में जैसा लिखा है, होकर रहता है… पर चलो जीजा जी कुच्छ कमाते तो हैं…, रंगीली सुखी रहेगी.
खैर रंगीली ने अपने दूल्हे की सुंदरता के बारे में अपनी सहेलियों से ही सुना, देखने का मौका उसे सीधा उसकी सुहाग रात को ही मिला वो भी शादी के तीन दिन बाद सारे देवी-देवताओं की मान-मुनब्बत करने के बाद…
वो भी एक छोटी सी केरोसिन की डिब्बी के उजाले में, सो सही सही अनुमान भी नही लगा कि रंग काला है या पीला.. हां थोड़ी लंबाई ज़रूर कम लगी…
[size=x-small][size=x-small][size=x-small]फिर जब सेज सैया पर (एक चरमराती चारपाई) नये बिच्छावन के साथ, पति के साथ संसर्ग हुआ… तो उसे बड़ा झटका सा लगा…
[size=x-small][size=x-small][size=x-small][size=x-small]सहेलियाँ तो कहती थी, कि प्रथम मिलन में बड़ी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ता है, खून ख़राबा तक हो जाता है,
लेकिन यहाँ तो उसके पति ने सीधा उसका लहंगा उपर किया और अपनी लुल्ली अंदर डाल दी, उसे लगा जैसे किसी ने उसकी चूत में उंगली डाल कर 10-15 बार अंदर बाहर की हो,
नयी नवेली मुनिया, शुरू के एक दो बार उसे हल्का सा दर्द फील हुआ, जिसे वो पैर की उंगली में लगी किसी ठोकर समझ कर झेल गयी…
फिर कुच्छ झटकों के बाद जब उसे भी थोड़ा मज़ा सा आना शुरू हुआ ही था कि तब तक उसका पल्लेदार पति, अपना पानी छोड़ कर उसके उपर पड़ा भैंसे की तरह हाँफने लगा…..!
माँ के घर से विदा होते वक़्त रंगीली की माँ और दूसरी बड़ी-बूढ़ी समझदार औरतों ने उसे कुच्छ ज्ञान की बात कहीं थी, मसलन :
पति की आग्या का पालन करना, सास ससुर की सेवा…, पति परमेश्वर होता है, वो जैसा रखे उसी को मान सम्मान देते हुए स्वीकार कर लेना…बल्ला..बल्ला..बल्लाअ..
सौ की एक बात, उन बातों को ध्यान में रखते हुए रंगीली अपने नये परिवार में अपने आप को ढालने की कोशिश करने लगी…
कुच्छ दिन तो उसकी बड़ी ननदे उसके पास रही, जिसकी वजह से उसका दिल एक नयी जगह पर लगा रहा, लेकिन जब वो अपने-अपने घर चली गयी, तो उसे वो घर काटने को दौड़ने लगा…
5 फूटिया 45 किलो का पति, सुवह 5 बजे ही अपनी मेहनत मजूरी के लिए निकल जाता, सारे दिन गधे की तरह रेलवे यार्ड में लदता, देर रात को आख़िरी गाड़ी से लौटता, खाना ख़ाता और 5 मिनिट में ही उसके खर्राटे गूंजने लगते…!
नव-यौवना रंगीली, जो ठीक तरह से ये भी नही जान पाई कि चुदाई होती क्या है, सुहागरात के नाम पर उसके पति परमेश्वर ने उसकी सोई हुई काम-इक्षा से उसका परिचय करा दिया था.
इससे अच्छा तो उसके व्याह से पहले ही थी, कम से कम उसकी मुनिया सिर्फ़ मूतना ही जानती थी,
लेकिन अब उसे उसके असली उपयोग के बारे में भी पता लगवा दिया था…!
बमुश्किल वो उसके उपर हफ्ते दस दिन बाद एक बार ही सवारी करता, वो भी जब तक वो दौड़ने के लिए तैयार होती उससे पहले ही खुद खर्राटे लेते हुए सो जाता, रंगीली बेचारी रात भर जिस्म की आग में तड़पति रहती…
अब बेचारी अपनी दूबिधा कहे तो किससे कहे, बूढ़े सास-ससुर जो वक़्त की मार ने समय से पहले ही उन्हें और बूढ़ा कर दिया था, वो अपनी पुत्र बधू की दूबिधा को भला क्या समझते…
बस कभी कभार नहाते समय, थोड़ा बहुत हाथ से सहला लेती जिससे उसकी काम इच्छा और ज़्यादा भड़कने लगती,
उसको तो अभी तक ये भी पता नही था कि उंगली डालकर भी जिस्म की आग शांत की जा सकती है, उसके दिमाग़ में तो यही था, कि मर्द जब अपना लंड डालता और निकालता है…बस उतना ही है,
असल मज़ा किसे कहते हैं कोई बताने वाला भी तो नही था…
रामू की ज़मीन भी लाला के यहाँ गिरबी पड़ी थी, उसे कोई करने वाला भी नही था, ससुर अपने पागल बेटे को लेकर थोड़ा बहुत लगा रहता…
सेठ का कर्ज़ा बदस्तूर जारी ही था, रामू मेहनत मजूरी करके जो कुच्छ कमाता, उसमें से आधी किस्त ब्याज के नाम पर लाला हड़प लेता…
घर के काम काज, सास ससुर की सेवा ही रंगीली की दिनचर्या बन गयी थी...,
अभी शादी को 2 महीने भी नही बीते थे कि एक दिन लाला आ धम्के उसके घर, मुनीम ने लंबा चौड़ा वही-ख़ाता खोल कर उनके सामने रख दिया,
बेचारे रामू और उसके माँ-बाप की सिट्टी-पिटी गुम, तभी दयालु ह्र्दय लाला ने ही उन्हें एक राह सुझाई….!
रामलाल, क्यों ना अपनी बहू को हमारे घर काम करने के लिए भेज दे, उसकी एबज में हम तुमसे ब्याज नही लिया करेंगे, और रामू की कमाई से तुम्हारा घर अच्छे से चलने लगेगा…
अँधा क्या चाहे – दो आँखें, ये बात फ़ौरन उन तीनो के भेजे में घुस गयी, और उसी शाम उन्होने रंगीली को लाला के यहाँ काम पर जाने के लिए राज़ी कर लिया…!
घूँघट में खड़ी अपने पति के परिवार की व्यथा जानकार उसने अपना सर हिलाकर हामी भर दी, सोचा नयी जगह पर काम करने से कुच्छ तो मन भटकने से बचेगा…
गाओं की नयी-नवेली बहू, गली गलियारे का भी पता नही होगा, लाला का घर कैसे मिलेगा यही सोच कर दूसरे दिन सास खुद अपने साथ लेजा कर उसे लाला की हवेली छोड़ आई….
लाला धरमदास ने अपनी सेठानी को रंगीली के बारे में पहले ही बता दिया था... सो उसके पहुँचते ही उसे काम बता दिए गये,
अब बेचारी पर काम की दोहरी ज़िम्मेदारी पड़ने लगी, पति के काम पर जाने से 1 घंटा पहले उठना यानी 4 बजे… उसके लिए खाने का डिब्बा तैयार करना,
घर का झाड़ू कटका करके 8 बजे तैयार होकर लाला के घर पहुँचना, शाम तक सेठानी उससे ढेरों काम करती, हां लेकिन दूसरे नौकरों की तरह दोपहर का खाना पीना उसका वहाँ हो जाता था…!