Incest पापी परिवार की पापी वासना

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जय इन्द्रीय सुख के मारे कराहा, फिर अपनी माता के मुख के साथ योनि की भांति संभोग क्रिया करने लगा। वो अपने लिंग के शीर्ष को मिसेज शर्मा के उदर में निर्दयता से बलपूर्वक ठेलने लगा। । “उँहहगहह! मम्मी! चूस कस के! खा जा मेरे काले मोटे लन्ड को, मेरी भोंसड़ी वाली मम्मी! पुच::: पुच, साली चूस बेटे का लन्ड !” |

मिसेज़ शर्मा को अपने पुत्र की निर्लज्ज भाष बहुत प्यारी लगी, जिस तरह से वो देधड़क हो कर अपनी इच्छा व्यक्त कर रहा था, और उन्हें अपने कठोर युवा लिंग को चुसने का आदेश दे रहा था, मानो वो उसकी माँ नहीं बल्कि दो कौड़ी की रखैल हों।

“लन्ड पर थूक दे! हाँ! अब थूक को नीचे तक मल ! ऐसे! बस अब झड़ने वाला हूँ मम्मी, फिर छक कर पी जाना !”

“अब तक तो डैडी के लन्ड से पिया है, अब मेरे लन्ड को भि चख !”

“कैसे लार टपका रही है तू मम्मी! आऊच! काटती है कुतिया मम्मी, एक ही तो लन्ड है तेरे मादरचोद बेटे का !”

मिसेज शर्मा को तो इस गाली-गलौज का बड़ा मजा ले रही थीं! वे तो चाहती थी कि कामसूत्र की हर मुद्रा में अपने पुत्र के साथ संभोग करें, उनके मुँह में, योनि में, और तो और, गुदा में भी! इतनी कामोत्तेजित हो चली थीं कि मन तो करता था कि बदन का हर छिद्र किसी तरह पुत्र-लिंग से भर जावे, और उनका जवान बेटा प्रजण्ड साँड जैसे उनके साथ पाश्विकता से सैक्स करे। उनकि योनि में कामाग्नि सुलग रही थी, उसके नम, रोमदर होंठ वासना के मारे सूज कर फूल गये थे, और चोंचला एक टाईट गाँठ जैसा अकड़ गया था। जय के घुटनों की ठोकरों से टीना जी की योनि - कोपलें पर बराबर चोट हो रही थी, किन्तु उन्हें कोई वेदना नही अनुभव हो रही थी, इस समय उन्हें अपने पुत्र के गाढे, उबलते वीर्ये के अलावा और कुछ नहीं सूझ रहा था।

जय भी ऊँचे स्वर में कराह रहा था, और अपनी माँ का सर अपने दोनो हाथों में लिये हुआ अपने अण्डकोष के बीच से उठते हुए प्रचण्ड ज्वार-भाटे का अनुभव कर रहा था।

अहहह ! ओहहह ! मम्मी मैं झड़ने वाला हूँ ! पी जा रॉड! पी जा पुरा वीर्य! आहहऽ ! झड़ गया !” | मिसेज शर्मा अपनी बाहें उसके नंगे नितम्बों पर लिपटा कर कस के अपने बेटे से चिपक गयीं और जय और अधीक तीव्रता से अपना लिंग उनके मुँह में झटकाता गया। अपनी जिह्वा को टीना जी ने कस के अपने पुत्र के लिंग के तने पर लगा दी, और अपनी पूरी क्षमता से उसके फड़कते, झटकते युवा लिंग-माँस को चूसने लगीं। जब उसका वीर्य स्खलित हुआ तो जय का बदन सर से पाँव तक झकजोर गया, और उसके मुंह से एक जोरदार चीक निकली। वो अपने गरमा-गरम गाढ़े वीर्ये की बौछार के बाद बौछार फेंकता हुआ अप्नी माँ के मुँह को लबालब भरने लगा।

मिसेज शर्मा ने भी भूखों जैसे पुत्र-वीर्य की प्रत्येक बून्द को निगलकर अपने गले को तर किया। बड़ी कठिनाई से वे अपने बेटे के लिंग से स्फुटित होते हुए शक्तिशाली वीर्य - प्रवाह का मुक़ाबला कर पा रही थीं। वीर्य तो थमने का नाम ही नहिं ले रहा था, और जब उनका मुँह पूरा भर कर छलकने को आया, तो उनके पुत्र का थोड़ा सा मलाईदार वीर्य उनके भींचे हुए लाल-लाल होंठों के बीच से बाहर निकल कर बहने लगा।
 
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51 मातृ-दीक्षा

“ओहूह, हा! चोद्दी! ऐसे ही! चुसती रह, पीती जा मम्मी! कैसा लगा बेटे का वीर्य ?”, वो कराहा।

टीना जैसे निगल - निगल कर किसी वैक्यूम - पम्प की तरह अपने पुत्र के लिंग से वीर्य - पान कर रही थीं, किशोर जय अपनी माँ के मुँह का क्रमवार कसाव अपने लिंग पर अनुभव कर रहा था। उनकी नंगी जाँघों और नितम्बों पर भी योनि द्रव की धाराएं अपनी चिपचिपी गर्माहट फैला रही थीं। वे भी अब अपनी कामसन्तुष्टि के कगार पर आकर कुर्सी पर बैठी-बैठी बदन को कसमसा रहीं थीं।

जब टीना जी ने अपने पुत्र के धीमे-धीमे फड़कते लिंग से वीर्य की अन्तिम बून्द चूस ली,

तब उनका बदन लुहार की भट्टी जैसा तपतपा रहा था। जय ने अपनी निगाहें उनकी निर्लज्जता से फैली हुई जाँघों के बीच फेरीं, और अपनी माँ की योनि की चमचमाती दरार को एकटक देखने लगा। वे अपनी टांगें चौड़ी फैलाये बैठी थीं, और जय ने सम्मोहित होकर सुर्ख लिसलिसे माँस को उत्तेजना के मारे फड़कते और कसते हुए देखा। वो टीना जी की योनि की भीगी हुई कोपलों को स्पष्ट रूप से मारे लालसा के सिकुड़ता देख रहा था। माता की कामुक देह के मोहपाश में बढ़ कर, जय ने उन्हें छूने के लिये अपना एक हाथ आगे बढ़ा दिया। जय की उंगलिया गीले मुलायम योनि-माँस में ऐसे घुसीं जैसे मक्खन की डलि में छुरी। ।

“मम्मी, तू तो गजब की गर्मा रही है !”, वो हाँफ़ा। “मम्मी, तेरी चूत कितनी गरम और भीगी हुई है !”,

टीना जी ने अपने मुख से अर्ध-कठोर लिंग को अलग करते हुए चेहरे को उठाकर आग्नेय नेत्रों से जय को देखा।
“गर्माऊगी क्यूं नहीं साले !”, वे कराहीं, “मेरे लाडले बेटे का लन्ड जो आज नसीब हो रहा है! ::: अब झट-पट फिर से खड़ा करवा दे ना इसे, मेरे रँडुए पूत! जानता नहीं मम्मी की गरम-गरम चूत तेरे काले मोटे लन्ड से चुदने को कितनी बेसब्र है! अ अ अह अह, बेसरम, तेरी मादरचोद उंगलियाँ तो मुझे पागल कर देंगी !” ।
 
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जय ने अपनी माँ को ऐसी भाषा का प्रयोग करते हुए पहले कभी नहीं सुना था, और टीना जी के यह बेशर्मी भरे वचन उसे और अधी उत्तेजित कर रहे थे। जरूर मम्मी की टाईट, रसीली योनि में फेंटती हुई उसकी उंगलियों का असर होगा। अगर इसी ढंग से मम्मी उससे बतें करती रहीं, तो वो तुरन्त ही मातृ-देह से संभोग के लिये तैयार हो जायेगा!

टीना जी के स्नायूओं में कामुकता के प्रवाह का मुख्य करण तो अपने हट्टे-कट्टे युवा पुत्र के साथ सैक्स-क्रीड़ा का वर्जित होना ही था। सगे पुत्र के साथ वर्जीत सैक्स , वो भी अपने ही किचन में! एक ऐसा रोमाँचकारी खतरा था इस करतूत में, जो उनके तड़पते बदन के रोम-रोम में एक के बाद एक थरथराहट कौन्धा रहा था।

“कहो ना, मम्मी! : जो भी कुछ मुझसे करवाना चाहती हो, कह दो। आपकी बातें सुनकर मेरा लन्ड फिर खड़ा होने लगा है !”, जय ने आह भरी, और अपने हाथ को माँ की रस से सरोबर योनी की लम्बाई पर ऊपर से नीचे तक फेरता हुआ बोला। ।

“ओहहह! जियो मेरे लाल !”, टीना जी चीखीं , अपनी उन्मत्तता में उन्होंने जय की बात ठीक से सुनी भी नहीं थी, “ रगड़ मादचूद, मम्मी की चूत को प्यार से रगड़, जोर से मसल !”

उनके बेटे ने आज्ञा का पालन किय। टीना जी कुर्सी पर पीछे को पसर गयीं और अपने नितम्बों को कुर्सी के सिरे पर टिका दिया, इस मुद्रा में उनकी योनि जय की उंगलियों के आवाजाही के लिये पूर्ण रूप से प्रस्तुत हो गयी थी। इसके बाद उसकी माँ को कोई अतिरिक्त निर्देश देने की अवश्यकता नहीं पड़ी, जय अब अधीर हो गया था।

“तेरे साथ और क्या-क्या करूं, मम्मी ? झिझकती क्यों हो, बोल भी डालो ना अपने मन की बात !”

 
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इस बार टीना जी को उसकी बात समझ में आ गयी। उन्हें थोड़ी हैरानी अवश्य हो रही थी, कि उनका बेटा, उन्हीं के मुख से, सैक्स के विषय में उनके अन्तर्मन की सर्वाधिक गोपनीय कल्पनाओं का विस्तृत ब्यौरा सुनाने की इच्छा रखता था। पर अधिक हैरानी उन्हें इस बात की थी, कि वो भी उससे सब कुछ कह डालने के लिये उतावली थीं!
“मममममम! हाँ जय! मम्मी को ऐसे बड़ा मज़ा आता है! मेरी चूत को मसल , मेरे लाल ! अपनी उंगलियों से मम्मी की चूत को चोद। क्या तू मेरी चूत को अपनी उंगलियों पर कसता हुआ महसूस कर रहा है, मेरे बच्चे ?”, टीना जी ने दाँत भींचते हुए पूछा। ।

“ओहहह, भोंसड़चोद, हाँ मम्मी!”, जय कराहा, “आपकी चूत ऐसी टाइट और गरमागरम है, अब तो जी करता है कि बस अन्दर घुसेड़े अपना लन्ड और चोद डालें फिर एक बार !”

“चोद लेना, मम्मी की चूत कहाँ भगती है, उसकी माँ ने जय के सर की ओर बढ़ते हुए उत्तर दिया, “मैं चाहती हूं कि चोदने के पहले तू मेरी चूत को चाटे। बोल बेटा, चाटेगाअ ना अपनी प्यारी मम्मी की चूत ?”

“क्यों नहीं मम्मी!”, जय ने गरमजोशी से उत्तर दिया। टीना जी ने प्रसन्नता से नोट किया कि उनके इस वार्तालाप के उपरांत उनके पुत्र के लिंग की मोटायी में अच्छी वृद्धि हो गयी थी। पुत्र - लिंग को हाथ में लेकर उन्होंने उसे दुलार-भरे ढंग से ऊपर और नीचे रगड़ा। । जय की आँखों में आँखें डाल कर उन्होंने अपना अश्लील वार्तालाप जारी रखा।

चल फिर, मैं चाहती हूँ कि तू अपनी जीब मम्मी की चूत में घुसेड़े।”, वे नागिन जैसे फुफकारती हुई बोलीं, “जितनी अन्दर घुसती है, घुसेड़ना। घुसेड़कर चूसना। मेरी चूत के चोंचले को भी चूसना पुत्तर! जोर-जोर से चूसते रहना, जब तक मैं तेरे मुँह में झड़ न जाऊँ। तुझे पाल-पोस कर बड़ा किया है, इतना करना तो तेरा फ़र्ज बनता है, है ना जानेमन ?” अपना कथन स्माप्त करते-करते उनकी योनि अब बेसब्री के मार निरंकुश होकर कंपकंपा रही थी।

बिलकुल मम्मी! तेरे दूध का बदला तो जरूर दूंगा। आप कहें तो पूरी रात आपकी गरम और रसीली चूत को चूसता रहूं”, अपनी माँ के अश्लील और बेहया निर्देशों को सुनकर जय की आँखों में उत्साह के दीपक टिमटिमा रहे थे।
 
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52 सन्तान सुख

ना! ना! ऐसा न करना मेरे लाल !”, मिसेज शर्मा ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया, “मुझे अपने मुंह में झड़ाने के बाद तो रात और बाकी होगी। फिर मैं चाहती हूँ कि तू अपने साड जैसे काले मुस्टन्डे लन्ड को लेकर मेरी चुतिया में ठूष दे, जिताना गहरा खुसता हो, मम्मी की चूत में घुसेड़ना !”, टीना जी ने एक सैकन्ड को रुक कर अपने बेटे के उतावले नेत्रों के भीतर झाँक कर देखा। “फिर मेरे लाल, तू मुझे अच्छी तरह से चोदनाअ! बोल मुन्ने, चोदेगा ना मम्मी की चूत को ? देखें कितना दम है मेरे लौन्डे में, आज तेरा टेस्ट हो जाये, कितनी देर तक चोद सकता है। ठीक बात ?”

इस बात की कल्पना से ही जय का लिंग लम्बी कुलाचे भरने लगा। उसे सुबह अपनी माता की योनि के कसाव और ऊष्मा का स्मरण हुआ। मातृ-देह से संभोग करने की इच्छा उसके मन में अब बहुत प्रबल हो चुकी थी।

“मम्मी, आज तुझे चोदकर दिखा ही दूंगा, कि मैने अपनी माँ की छाती से दूध पिया है!”, वो दम्भी स्वर में, अपने पूर्ण - लम्बवत्त लिंग को माँ के मुख की ओर झुकाता हुआ बोला, “तेरी चूत में इतना वीर्य भर दूंगा, कि मेरा बाप तेरी चूत से हफ़्तों तक वीर्य पियेगा।”, टीना जी कंपकंपायीं, ‘हरामी दीपक तो इतना बेशरम है, कि अगर मैं कहूं तो शायद पी भी जाये अपने ही बेटे का वीर्य अपनी ही पत्नि की चूत से!', ऐसा सोचते हुए उन्होंने अपनी उंगलियों के बीच में उसके लिंग के कठोर तनाव का अनुभव किया।

“आजा मेरे पहलवान ,”, जय की माँ लम्बी साँसें भरती हुई बोलीं, “उतर जा मैदान में और दिखा दे माँ को कि उसके दूध में कितना जोर था !”

जय तुरन्त अपने घुटनों के बल बैठ कर उनकी जाँघों के बीच लपका। टीना जी अपने पुत्र के श्वास को अधिक व्याकुलता और व्यग्रता से चलता हुआ सुन रही थीं। किशोर जय बड़ी आतुरता से अपनी आँखों को माँ की चौड़ी पटी हुई योनि-गुहा के द्वार पर सेक रहा था। टीना जी को इस अश्लील और वासना-लिप्त दृइष्य को देख कर एक दुष्टता भरी चुलबुलाहट अनुभव हो रही थी। जिस प्रकार अपनी सारी लज्जा और मर्यादा को त्याग कर वे अपनी ही कोख से जने पुत्र को अपनी नग्न देह निहारने का अवसर दे रही थीं, वह उनकी कामोत्तेजना में ईंधन का काम कर रहा था। कामुकता उअर पाप भरे अनेक विचार उनके मस्तिष्क में कौंध रहे थे, जो उनके मन को और अधिक उत्कट वासना से भरते जा रहे थे। उन्होंने नीचे झुक अर अपने पुत्र की चिकनी युवा जाँघों के मध्य से निकल कर गगन चूमते विशाल लिंग को देखा और उसे अपनी काम-व्यग्र, क्षुधा - पीड़ीत योनि में आक्रामक वार करते हुए, उनके अपने नन्हे जय को खुद से संभोगरत मुद्रा में उनकी योनि को लिंग द्वारा खींचते-तानते हुए कल्पित किया।
 
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जय ने अपनी नाक को माता के खेस जैसे योनि-रोमों पर दबाया और एक लम्बी साँस भरी। मातृ-कस्तूरी की मादक सुगन्ध उसके नथुनों में समा गयी, और उसके मस्तिष्क की दिशा में पाश्विक दुराग्रह के संकेत भेजने लगी। क्षुधा- रंजित मादा-योनि की सुगन्धि तो प्रत्येक नर को आकर्षित करती ही है, पर यदि पाठकगण , आपको कामदेव अपनी माता की योनि सूंघने का सुअवसर प्रदान करें, तो वो अनुभव आपको स्वर्ग सा आनन्द पृथ्वी पर ही दे सकता है। । “सच कहूं मम्मी, आपकी चूत तो बिलकुल बोंसड़दान है! दर्जन कुत्तों से चुदी कुतिया जैसी स्मेल है आपकी ! मन तो करता है की मैं भी इसे कुत्ते जैसा चाटने लगू !”, जय बुदबुदाया और कुंडली मारे हुए नाग जैस अपनी जिह्वा को मुँह से बाहर निकाल कर लाल लिसलिसी योनी की ओर बढ़ा। टीना जी धैर्य नहीं धर पा रही थीं। उनकी कमर काँप रही थी, और उनकि योनि तो यदि कुछ और क्षण क्रिया-वंचित रहती तो जैसे चूर-चूर ही हो जाती।

“रब्बी! ओहहह मेरे भगवान! कितना तड़पा रहा है मुझे मादरचोद! मेरे लाल, चाट मुझे अब ! प्लीज मेरी चूत को चूस! अब नहीं रुका जाता !”, अपने दोनो हाथों से पुत्र के सर को पकड़ कर उन्होंने आग्रह किया, और जय की जिह्वा को अपनी फड़कती, द्रव - लिप्त योनि-माँद में बलपूर्वक ढूंस दिया।

“अमम्म मम्प्फ़म! अँहहममम !”, जैसी ही उसकी माँ की योनि की कोपलें उसपर टकरायीं, उसका मुँह स्वतः ही खुल गया। टीना जी की गोरी-गोरी माँसल जाँघे उसके कानों पर कसी हुई थीं और उसे अपना लाचार बन्दी बनाये हुए थीं। ऐसा बन्दी जो केवल उनकी बहती योनी के प्रचण्ड द्रव - प्रवाह को चाट और चूस सकता था। जय ने सहारे के लिये माता के सुडौल गोलाकार नितम्बों को हाथों में जकड़ा। टीना जी उचक-उचक कर अपने कूल्हों को कसमसाते हुए अपने पुत्र के चूसते मुँह पर दबा रही थीं। इतनी किशोर आयु में भी जय उपेक्षा से अधिक कुशलता क स्राहनीय प्रदर्शन कर रहा था। क्षुधित मुख से अपनी वासना की पात्र माँ की तपती, टपकती योनि को निरन्तर चूसता और चाटता हुआ जय, मजाल है कि एक बार भी साँस लेने के लिये रुका हो।

जय अपने मुँह को अपने जननस्थल में जैसे जैसे घुसेड़-घुसेड़ कर उनके संवेदनशील योनिमाँस को लपड़ - लपड़ करके निपुणता से चाटता हुआ गुदगुदा रहा था, टीना जी तो वैसे ही काम-तृइप्ति के समीप पहुँच गयी थीं। उनका पुत्र उनकी योनि से मुखमैथुन करता हुआ उन्हें अपूर्व आनन्द प्रदान कर रहा था! ‘सदके जाँवा, क्या मुँह पाया है! मुस्टन्डा पहले भी तजुर्बा कर चुका है!', टीना जी ने सोचा, ‘अपने बाप जैसा ही हुनर है। बाप नम्बरी, तो बे बेटा दस नम्बरी !' जय अपनी माँ के सूजे हुए लाल योनि - पटलों को चूस रहा था, पहले दायें फिर बायें, और जब उसकी टटोलती जिह्वा और होंठों को चोंचले की फुदफुदी गाँठ मिल गयी, तो टीना जी स्चमुच ही अपने कूल्हों को लावारिस कुतिया जैसे ऊपर और नीचे उचकाने लगीं। जिस तरह वे अपने काले केशों को आजू-बाजू फटका रही थीं, ‘दर्जनों कुत्तों से चुदी कुतिया' ही प्रतीत हो रही थीं।
जय अब अपना पूरा शरीरिक और मानसिक बल काम-क्रिया में झोंक रहा था। अपनी जिह्वा पर अनुभव होते एक नवीन स्वाद का अनुभव करने के पश्चात , वो जान गया था कि उसकी माँ किसी भी क्षण काम - सन्तुष्टि के शिखर पर पहुँचने वाली थीं। अपनी जिह्वा को हौले-हौले टीना जी की फैली हुई योनि की सम्पूर्ण लम्बाई पर फेरते हुए, वो उनके धड़कते चोंचले को अप्ने मुंह में किसी दूध के प्यासे शिषु की तरह लिये हुए चूस रहा था।

अँन्नहहहह! हा, जय! चूस जोर से पिल्ले ! आहहगहह! चूस अपनी कुतिया माँ की चूत ! मादरचोद, मैं झड़ने वाली हूँ! :... भोंसड़चोद, देख तेरे मुँह में तेरी माँ झड़ रही है !” ।
 
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जय ने अपनी माता की निर्लज्ज कर्णभेदी चीख सुनी और अपने धूम को दुगुना कर दिया।

टीना जी अपने पाश्विक उन्माद में लिप्त होकर अपनी योनि को ऐसे अलौकिक बल से उसके आतुरता से रसास्वादन करते मुख पर ढकेल रही थीं, कि जय को एक पल लगा जैसे स्वयं को घायल ही न कर बैठे। पर ऐसी कोई बात नहीं थी; टीना जी तो इन्द्रीय सुख के आवेग में आरोहित हो रही थीं, अपनी सुगठित स्त्री- देह में स्फुटित होती ये नवनवीन अनुभूतियँ उन्हें स्वर्ग की ओर प्रक्षेपित कर रही थीं।

ऊऊह, चोहे! ये ले मेरी चूत के पूत ! मैं तो झड़ीऽ !” । कामोत्तेजना से सुखद मुक्ति की आनन्द - लहरें उनकी कुम्हलाती योनि से निकल कार उनके पूरे कांपते बदन पर शीघ्रता से फलने लगीं। टीना जी की आवाज उन्हीं की दबी हुई चीख में कहीं लुप्त हो गयी। जय अपनी लम्बी जिह्वा द्वारा माँ की रिसती योनि पर किसी पिल्ले की तरह ही चटुकार कर रहा था। अपनी माता की प्रचुर योनि-वृष्टि की बून्द बून्द को वो असाधारण तल्लीनता से सफ़ा - चट्ट कर गया। आखिरकार जब टीना जी ने अपनि योनि से उसका मुंह उठाया, तब कहीं जाकर जय ने योनि को चाटना बन्द किया और चेहरा उठाकर उनकी आँखों में झाँका।। । “ओहह, मम्मी डार्लिंग! मजा आ गया! ऐसी चटपटी चूत तो जिन्दगी में पहले कभी नहीं चाटी।”, उसने स्वीकारा। टीना जी ने झुक कर उसके द्रव -मंजित मुख को देखा और मुस्कुरा कर बोलीं, “मेरी चूत के नन्हे आशिक़, मम्मी की चूत को आज तक किसी मर्द ने इतने प्रेम से नहीं चाटा है!”, उसकी माँ ने उत्तर दिया और उसके सर को अपने उठते-गिरते पेट पर सुला दिया।

“पर एक बात मेरी समज में नहीं आयी, जय। इतनी मजेदार चूत - चटायी तूने आघिर सीखि किससे? हरामी तेरे मुंह में ऐसा जादू है कि चाहे तो दुनिया की किसी भी औरत को अपना गुलाम कर ले !”

जय ने कुछ झेपते हुए से ऊपर टीना जी को देखा। “क्या कहूं, बस प्रैक्टिस हो गयी है। मम्मी!”, कुछ अधिक ही डींग हाँकते हुए वो बोला।

“प्रैक्टिस? किससे करता है, लाडले? कहीं आजकाल सोनिया की चूत चाटने का शौक़ तो नहीं पाल रहा है तू ? बोल मादरचोद !”, टीना जी ने पूछा। अपनी पुत्री के प्रति होती ईष्र्या उन्हें कुछ अटपटी लग रही थी।

“नहीं, मम्मी। पर सोनिया की चूत चखने में मुझे कोई हर्ज नहीं! अब तो लगता है मेरी जुबान को बस चूत - चटायी की लत लगने वाली है।” । | टीना का मुख लालिमा- रण्जित हुआ, लजा से नहीं, वासना से, और वे मुस्कुरायीं। पर उन्हें अब भी जय साफ़-साफ़ नहीं बतला रहा था कि किसकी योनी को चाट-चाट कर उसने मुख-मैथुन की विद्या में निपुणता प्राप्त की थी।

“अरे मादरचोद, अब बोल भी! अगर बहन की नहीं तो किसकी चूत चाटता है तू?”
 
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जय अपनी माँ के मुँह को ताक रहा था और प्रार्थना कर रहा थी कि कहीं बिगड़ ना पड़े।

* कमला बाई की, मम्मी।”

कमला बाई? वो जो हमारी जमादारन है ?”

जय ने स्वीकृअति में सर हिलाया।

“अबे जनमजले ! भंगिन की चूत चाटता है! वो तो तेरी दादी की उमर की है !” टीना जी भौचक्की हो गयी थीं। उनका पुत्र उनके बाथरूम की गन्द-मैल साफ़ करने वाली अधेड़ उम्र की मोटी और काली-कलूटी जमादारन की चूत चाटता है। एक बार, नहीं दो बार नहीं , वो तो दस साल से उनके घर में काम कर रही है। :::

अबे नक-कटे, कितने दिनों से मुँह काला कर रहा है ?”

बस मम्मी, जब से उसका खसम गुजरा, यही कोई एक साल हुआ होगा। अब सैक्स में जात-पाँत क्या मम्मी। जमादारन है पर एकदम सैक्सी है। लन्ड चूसने में तो बिलकुल एक्स्पर्ट।” टीना जी का मुँह हैरानी के मारे खुला का खुला रह गया।

“सच मम्मी! हम दोस्त लोग तो उसे कुत्ती कमला कहते हैं।”, जय ने साधारण स्वर में कहा। वो देख सकता था कि उसकी माँ एकदम स्तब्ध थीं, और अपनी माँ को इस तरह हैरान करके, खासकर क्योंकि विषय उसके सैक्स जीवन का था, उसे एक दुष्ट आनन्द की अनुभूति हो रही थी। इससे पहले की टीना जी प्रत्युत्तर में कुछ बोल पातीं, जय ने उन्हें सब कुछ विस्तार से बतला डाला। । “हाँ मम्मी, खूब मजे ले कर चूसती है! फुर्सत में कभी आप भी कमला बाई को लन्ड चूसते हुए देखियेगा! बाथरूम धोने के लिये आती है तो मुझे कॉमोड पर नंगा बैठा कर खुद घुटनों के बल सामने बैठ जाती है और मुंह में लेकर चूसती है। ऐसी एक्स्पर्ट है कि पूरे लन्ड को निगल जाती है, साथ ही दोनो टट्टों को भी।” ।

“कमला बाई की तो ... !”, टीना जी बुदबुदायीं। वे आगे की कहानी सुनने के लिये व्याकुल हो रही थीं! उनकी हैरानी की प्रथम प्रतिक्रिया अब घुल कर दिलचस्पी में परिवर्तित हो चुकी थी। अपने किशोर पुत्र के इक़बालिया- बयान को सुनते-सुनते टीना जी की अभी-अभी तृप्त हुई योनि फिर से फड़कनी-धड़कनी चालू हो गयी थी।

“याद है आपको पिछली गर्मियों की छुट्टियाँ, जब डैडी ने कमला बाई के पति के गुजरने के बाद सर्वेन्ट क़वर्टर में उसे जगह दे दी थी ?”, टीना ने शीघ्रता से सर हिलाया, वे आगे का वृत्तांत सुनने को व्याकुल थीं।

“उसी दिन जब आपने मुझे गद्दा-तकिया लेकर कमला बाई के क्वार्टर भेजा था, तभी से हम दोनों के बीच दोस्ती यो गयी थी। आप मेरा मतलब समझ रही हैं ना मम्मी ?”, जय ने अपनी माँ को अपने आतुरता से खुले नरम होंथों को जीभ फेरकर चाटते हुए देखा। उनकी आँखें वासना के मारे सुलग रही थीं। जय अच्छी तरह से जानता था कि उसकी रामकहानी माँ को फिर से गर्मा रही है!
 

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