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जय इन्द्रीय सुख के मारे कराहा, फिर अपनी माता के मुख के साथ योनि की भांति संभोग क्रिया करने लगा। वो अपने लिंग के शीर्ष को मिसेज शर्मा के उदर में निर्दयता से बलपूर्वक ठेलने लगा। । “उँहहगहह! मम्मी! चूस कस के! खा जा मेरे काले मोटे लन्ड को, मेरी भोंसड़ी वाली मम्मी! पुच::: पुच, साली चूस बेटे का लन्ड !” |
मिसेज़ शर्मा को अपने पुत्र की निर्लज्ज भाष बहुत प्यारी लगी, जिस तरह से वो देधड़क हो कर अपनी इच्छा व्यक्त कर रहा था, और उन्हें अपने कठोर युवा लिंग को चुसने का आदेश दे रहा था, मानो वो उसकी माँ नहीं बल्कि दो कौड़ी की रखैल हों।
“लन्ड पर थूक दे! हाँ! अब थूक को नीचे तक मल ! ऐसे! बस अब झड़ने वाला हूँ मम्मी, फिर छक कर पी जाना !”
“अब तक तो डैडी के लन्ड से पिया है, अब मेरे लन्ड को भि चख !”
“कैसे लार टपका रही है तू मम्मी! आऊच! काटती है कुतिया मम्मी, एक ही तो लन्ड है तेरे मादरचोद बेटे का !”
मिसेज शर्मा को तो इस गाली-गलौज का बड़ा मजा ले रही थीं! वे तो चाहती थी कि कामसूत्र की हर मुद्रा में अपने पुत्र के साथ संभोग करें, उनके मुँह में, योनि में, और तो और, गुदा में भी! इतनी कामोत्तेजित हो चली थीं कि मन तो करता था कि बदन का हर छिद्र किसी तरह पुत्र-लिंग से भर जावे, और उनका जवान बेटा प्रजण्ड साँड जैसे उनके साथ पाश्विकता से सैक्स करे। उनकि योनि में कामाग्नि सुलग रही थी, उसके नम, रोमदर होंठ वासना के मारे सूज कर फूल गये थे, और चोंचला एक टाईट गाँठ जैसा अकड़ गया था। जय के घुटनों की ठोकरों से टीना जी की योनि - कोपलें पर बराबर चोट हो रही थी, किन्तु उन्हें कोई वेदना नही अनुभव हो रही थी, इस समय उन्हें अपने पुत्र के गाढे, उबलते वीर्ये के अलावा और कुछ नहीं सूझ रहा था।
जय भी ऊँचे स्वर में कराह रहा था, और अपनी माँ का सर अपने दोनो हाथों में लिये हुआ अपने अण्डकोष के बीच से उठते हुए प्रचण्ड ज्वार-भाटे का अनुभव कर रहा था।
अहहह ! ओहहह ! मम्मी मैं झड़ने वाला हूँ ! पी जा रॉड! पी जा पुरा वीर्य! आहहऽ ! झड़ गया !” | मिसेज शर्मा अपनी बाहें उसके नंगे नितम्बों पर लिपटा कर कस के अपने बेटे से चिपक गयीं और जय और अधीक तीव्रता से अपना लिंग उनके मुँह में झटकाता गया। अपनी जिह्वा को टीना जी ने कस के अपने पुत्र के लिंग के तने पर लगा दी, और अपनी पूरी क्षमता से उसके फड़कते, झटकते युवा लिंग-माँस को चूसने लगीं। जब उसका वीर्य स्खलित हुआ तो जय का बदन सर से पाँव तक झकजोर गया, और उसके मुंह से एक जोरदार चीक निकली। वो अपने गरमा-गरम गाढ़े वीर्ये की बौछार के बाद बौछार फेंकता हुआ अप्नी माँ के मुँह को लबालब भरने लगा।
मिसेज शर्मा ने भी भूखों जैसे पुत्र-वीर्य की प्रत्येक बून्द को निगलकर अपने गले को तर किया। बड़ी कठिनाई से वे अपने बेटे के लिंग से स्फुटित होते हुए शक्तिशाली वीर्य - प्रवाह का मुक़ाबला कर पा रही थीं। वीर्य तो थमने का नाम ही नहिं ले रहा था, और जब उनका मुँह पूरा भर कर छलकने को आया, तो उनके पुत्र का थोड़ा सा मलाईदार वीर्य उनके भींचे हुए लाल-लाल होंठों के बीच से बाहर निकल कर बहने लगा।
मिसेज़ शर्मा को अपने पुत्र की निर्लज्ज भाष बहुत प्यारी लगी, जिस तरह से वो देधड़क हो कर अपनी इच्छा व्यक्त कर रहा था, और उन्हें अपने कठोर युवा लिंग को चुसने का आदेश दे रहा था, मानो वो उसकी माँ नहीं बल्कि दो कौड़ी की रखैल हों।
“लन्ड पर थूक दे! हाँ! अब थूक को नीचे तक मल ! ऐसे! बस अब झड़ने वाला हूँ मम्मी, फिर छक कर पी जाना !”
“अब तक तो डैडी के लन्ड से पिया है, अब मेरे लन्ड को भि चख !”
“कैसे लार टपका रही है तू मम्मी! आऊच! काटती है कुतिया मम्मी, एक ही तो लन्ड है तेरे मादरचोद बेटे का !”
मिसेज शर्मा को तो इस गाली-गलौज का बड़ा मजा ले रही थीं! वे तो चाहती थी कि कामसूत्र की हर मुद्रा में अपने पुत्र के साथ संभोग करें, उनके मुँह में, योनि में, और तो और, गुदा में भी! इतनी कामोत्तेजित हो चली थीं कि मन तो करता था कि बदन का हर छिद्र किसी तरह पुत्र-लिंग से भर जावे, और उनका जवान बेटा प्रजण्ड साँड जैसे उनके साथ पाश्विकता से सैक्स करे। उनकि योनि में कामाग्नि सुलग रही थी, उसके नम, रोमदर होंठ वासना के मारे सूज कर फूल गये थे, और चोंचला एक टाईट गाँठ जैसा अकड़ गया था। जय के घुटनों की ठोकरों से टीना जी की योनि - कोपलें पर बराबर चोट हो रही थी, किन्तु उन्हें कोई वेदना नही अनुभव हो रही थी, इस समय उन्हें अपने पुत्र के गाढे, उबलते वीर्ये के अलावा और कुछ नहीं सूझ रहा था।
जय भी ऊँचे स्वर में कराह रहा था, और अपनी माँ का सर अपने दोनो हाथों में लिये हुआ अपने अण्डकोष के बीच से उठते हुए प्रचण्ड ज्वार-भाटे का अनुभव कर रहा था।
अहहह ! ओहहह ! मम्मी मैं झड़ने वाला हूँ ! पी जा रॉड! पी जा पुरा वीर्य! आहहऽ ! झड़ गया !” | मिसेज शर्मा अपनी बाहें उसके नंगे नितम्बों पर लिपटा कर कस के अपने बेटे से चिपक गयीं और जय और अधीक तीव्रता से अपना लिंग उनके मुँह में झटकाता गया। अपनी जिह्वा को टीना जी ने कस के अपने पुत्र के लिंग के तने पर लगा दी, और अपनी पूरी क्षमता से उसके फड़कते, झटकते युवा लिंग-माँस को चूसने लगीं। जब उसका वीर्य स्खलित हुआ तो जय का बदन सर से पाँव तक झकजोर गया, और उसके मुंह से एक जोरदार चीक निकली। वो अपने गरमा-गरम गाढ़े वीर्ये की बौछार के बाद बौछार फेंकता हुआ अप्नी माँ के मुँह को लबालब भरने लगा।
मिसेज शर्मा ने भी भूखों जैसे पुत्र-वीर्य की प्रत्येक बून्द को निगलकर अपने गले को तर किया। बड़ी कठिनाई से वे अपने बेटे के लिंग से स्फुटित होते हुए शक्तिशाली वीर्य - प्रवाह का मुक़ाबला कर पा रही थीं। वीर्य तो थमने का नाम ही नहिं ले रहा था, और जब उनका मुँह पूरा भर कर छलकने को आया, तो उनके पुत्र का थोड़ा सा मलाईदार वीर्य उनके भींचे हुए लाल-लाल होंठों के बीच से बाहर निकल कर बहने लगा।