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अनिल अपनी बहु की बात सुनते ही अपनी कमीज में हाथ ड़ालते हुए उसे उतार दिया, अनिल ने कमीज के नीचे कुछ नहीं पहना था । अनिल के सीने पर सफैद रंग के घने बाल थे, अनिल की बॉडी इतनी ज़्यादा आकर्षक नहीं थी क्योंकी उसकी उम्र ६० साल होने की वजह से उसकी बॉडी ढीली हो चुकी थी ।

अनिल ने अपनी लुंगी में हाथ ड़ालते हुए उसे भी अपने जिस्म से अलग कर दिया । धोती के उतरते ही अनिल का लंड तना हुआ ऊपर नीचे होते हुए रेखा को सलामी देने लगा, अब ससुर और बहु दोनों बिलकुल नंगे बंद कमरे में एक दुसरे के सामने थे।

"हाय बाबूजी आपका तो बुहत बड़ा और मोटा है", रेखा ने अपने ससुर के लंड को गौर से देखते हुए कहा।
"क्यों तुम्हारे पति का बड़ा नहीं है?", अनिल ने अपनी बहु को देखते हुए सवाल किया।
"बेडा तो है मगर आपके जितना नहीं और आपका बुहत बुहत मोटा है", रेखा ने वेसे ही अपने ससुर के लंड को देखते हुए कहा ।
अनिल अपनी बहु की बात सुनते ही उसके क़रीब आते हुए बोले "देख लो बेटी फिर मत कहना के सही तरह से नहीं देखा"।

अनिल अब बिलकुल अपनी बहु के सामने खडा था, उसके लंड और रेखा के चेहरे के बीच ४,५ इंच का मुफसिला था । रेखा की साँसें अपने ससुर का लंड इतने क़रीब देखकर बुहत ज़ोर से चलने लगी ।
"बाबूजी मैं आपके इस को छू सकती हूँ?", रेखा ने अपनी थूक गटकते हुए अपने ससुर के लंड की तरफ इशारा करते हुए कहा।
"हाँ बेटी क्यों नहीं मेरे लंड को अपना ही समझो, मगर तुम अब भी शर्मा रही हो इसका नाम भी नहीं ले रही हो" , अनिल ने शिकायत करते हुए कहा।

"बापु जी हम आपके लंड को छू रहे है", यह कहते हुए रेखा ने अपना हाथ से अपने ससुर के लंड को पकड़ ली,
"आह्ह अपने बहु के नरम हाथ अपने लंड पर पड़ते ही अनिल के मूह से निकल पडा" । रेखा की भी हालत अपने ससुर का लंड पकडकर बिगड चुकी थी उसे अपने पूरे जिस्म में बुहत ज़ोर की उत्तेजना हो रही थी ।
"बेटी तुम ने तो मेरे लंड को पकार लिया, क्या हम भी तुम्हारे जिस्म को छु सकते है", अनिल ने उत्तेजना के मारे सिसकते हुए कहा।
"बाबू जी आप भी हमारे जिस्म को छु कर देखे लीजिये "

रेखा ने फिर से उत्तेजना के मारे बेशरमी से कहा, अनिल ने अपनी बहु की बात सुनकर जल्दी से अपने दोनों हाथ बढाते हुए अपनी बहु की दोनों बड़ी बड़ी चुचियों पर रख दिए । अनिल अपने हाथों से अपनी बहु की बड़ी और नरम चुचियों को सहलाने लगा ।
रेखा अपनी चुचियों पर अपने ससुर के हाथ पड़ते ही उत्तेजना के मारे उसके लंड को ज़ोर से सहलाने लगी, अनिल की हालत भी बुहत बुरी हो चुकी थी । वह अब अपनी बहु की चुचियों को बुहत ज़ोर से दबाने लगा। रेखा की चूत में आग लग चुकी थी उसकी चूत से ढेर सारा पानी निकल रहा था।

रेखा से रहा नहीं गया और उसने अपना चेहरा नीचे करते हुए अपने ससुर के लंड को चूम लिया।
"आह्हः बेटी यह क्या कर दिया तुमने", अनिल ने अपनी बहु के होंठ अपने लंड पर पड़ते ही ज़ोर से सिसकते हुए कहा ।
"क्यों बाबूजी आपको अच्छा नहीं लगा", रेखा ने फिर से अपने हाथ से अपने ससुर के लंड को सहलाते हुए कहा।
"नही बेटी मुझे तो बुहत अच्छा लगा, मगर खडे खडे मेरी टांगों में भी दर्द हो रहा है", अनिल ने अपनी बहु की चुचियों को सहलाते हुए कहा ।

"बाबूजी आप भी ऊपर आ जाओ", रेखा ने अपने ससुर के लंड को छोडते हुए कहा, अनिल भी अपनी बहु की चुचियों को छोडते हुए बेड पर चढकर बैठ गया । "बेटी जैसे तुमने मेरे लंड को चूमा वैसे ही मुझे भी तुम्हारी चूत को चूमना है", अनिल ने अपनी बहु की झाँटों से भरी चूत को देखते हुए कहा ।
"बाबूजी आप तो बड़े बदमाश है, ठीक है हम तैयार हैं। मगर आप सिर्फ चूमेंगे और कोई हरकत नही", रेखा ने अपने ससुर की बात सुनते ही सीधे लेटते हुए कहा।
"हा बेटी हम तुम्हारी चूत को सिर्फ चूमेंगे", अनिल ने अपनी बहु की बात को सुनते ही उसकी टांगों को पूरी तरह फैलाते हुए कहा।

रेखा की दोनों टांगों के फ़ैलने से उसकी चूत खुल कर उसके ससुर के ऑंखों के सामने आ गयी, रेखा की चूत के छेद से उत्तेजना के मारे पानी की बूँदे निकल रही थी ।अनिल अपनी बहु की चूत के छेद को बड़े गौर से देखते हुए उसकी टांगों के नीचे आ गया ।
अनिल ने अब नीचे झुकते हुए अपना मुँह अपनी बहु की चूत के पास कर दिया, "वाह बेटी तुम्हार चूत की खुशबु तो बुहत बढिया है"।

अनिल ने अपना मूह अपनी बहु की चूत के पास आते ही अपने नाक से साँस खींचते हुए कहा। अनिल कुछ देर तक अपनी बहु की चूत की महक सूँघने के बाद अपने होंठ अपनी बहु की चूत के होंठो पर रख दिए।
"आह्हः श अपने ससुर के होंठ अपनी चूत पर लगते ही रेखा के सारे बदन में चीटियाँ रेंगने लगी" ।
"क्या हुआ बेटी तकलिफ हो रही है क्या?", अनिल ने अपनी बहु की चूत से अपने होंठो को हटाते हुए कहा और फिर से अपने होंठ अपनी बहु की चूत पर रखते हुए उसकी चूत से निकलता हुए पानी अपने होंठो से चूसने लगा।
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"उह बाबजी दर्द कहाँ बुहत मजा आ रहा है" रेखा उत्तेजना के मारे सिसकती हुयी बोली । अनिल ने अपनी बहु को गरम देखकर अपने होंठ उसकी चूत से हटाते हुए अपनी जीभ को निकाल कर उसकी चूत के छेद पर फेरने लगा ।
"आह्हः बाबूजी बुहत मजा आ रहा है", अपने ससुर की जीभ अपनी चूत पर पड़ते ही रेखा अपने चुतडों को उछालते हुए बोली । अनिल अपनी जीभ से अपनी बहु की चूत से निकलते हुए पानी को चाटने लगा ।

अनिल अपनी जीभ को कडा करते हुए अपनी बहु की चूत में घुसा दिया और उसे अंदर बाहर करने लगा। "आह्ह्ह्ह श बाबूजी बुहत मजा आ रहा है", जीभ के घुसते ही रेखा अपना हाथ अपने ससुर के बालों में ड़ालते हुए उसे अपनी चूत पर दबाने लगी ।
अनिल अपनी बहु की चूत में जीभ को बुहत ज़ोर से अंदर बाहर करते हुए अपने हाथ से उसकी चूत के झाँटों को सहलाते हुए रेखा की चूत के दाने पर रख दिया और उसे अपने हाथों से मसलने लगा।
रेखा का पूरा जिस्म अकड़ कर झटके खाने लगा।

"आह्ह श ओह्ह्ह बाबूजी रेखा उत्तेजना को सहन न करते हुए अपनी ऑंखों बंद करके झरने लगी", रेखा की चूत से पानी की नदिया बहने लगी और उसका ससुर उसकी चूत से पानी को चाटने लगा, अनिल का चेहरा अपनी बहु की चूत को चाटते हुए पूरा भीग गया ।
रेखा ने कुछ देर झरने के बाद अपनी ऑंखें खोली तो उसे हंसी आ गयी, क्योंकी उसकी चूत से निकलते हुए पानी से उसके ससुर का पूरा चेहरा भीगा हुआ था । और वह सीधा बैठकर अपनी बहु की चुचियो को देख रहा था, अनिल ने अपनी बहु को हँसता हुआ देखकर टॉवल उठा कर अपना मूह साफ़ कर दिया और अपनी बहु को धक्का देते हुए सीधा लेटा दिया ।
अचानक रेखा की नज़र घडी पर गई, वह घबराकर उठ बैठी और बेड से उठते हुए कपड़े पहनने लगी "क्या हुआ बेटी तुम इतनी घबरायी हुयी क्यों हो ?"अनिल ने अपनी बहु से पुछा । "बाबूजी ४ बज गए हैं बच्चे उठ गये होंगे । आपका बेटा भी आता ही होगा" यह कहते हुए रेखा ने कपड़े पहन लिए और वहां से जाने लगी ।

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अनिल को गुस्सा तो बुहत आ रहा था । मगर वह कुछ नहीं कर सकता था, वह रेखा को अरमाँ भरी नज़रों से जाता हुआ देखने लगा । अनिल अपनी बहु के जाने के बाद उठते हुए सीधा बाथरूम में घुस गया और गुस्से से बाथरूम के दरवाज़े को बंद करते अपने लंड को पकड कर हिलाने लगा ।
अनिल बुहत ज़्यादा उत्तेजित था इसीलिए उसे ज़्यादा मेंहनत नहीं करनी पडी, थोडी ही देर में उसके लंड ने उलटी करना शुरू कर दिया । अनिल अपनी आँखें बंद करके अपने लंड को ज़ोर से हिलाते हुए झरने का मजा लेने लगा।

रेखा बाहर निकलते हुए अपने कमरे में आ गयी और बेड पर बैठते हुए सोचने लगी "क्या वह अपने ससुर के साथ सम्बन्ध रख कर सही कर रही है?", रेखा का दिमाग कह रहा था की वह गलत कर रही है यह पाप है । मगर उसका दिल और जिस्म कह रहा था यह बिलकुल ठीक है ।
अचानक बाहर से किसी ने घण्टी को बजाया। रेखा चौंकते हुए अपनी सोचों से बाहर आई और भागते हुए दरवाज़ा खोल दिया । रेखा के सामने उसका पति खडा था । दरवाज़ा खुलते ही वो अंदर दाखिल हो गया ।

मुकेश अंदर आते ही अपने कमरे की तरफ जाते हुए रेखा से बोला "सर में बुहत दर्द है, जल्दी से चाय बनाकर लाओ", रेखा ने अपने पति की बात सुनकर कहा "जी अभी बनाकर लाती हूँ" । रेखा ने चाय बनाने से पहले अपनी दोनों बेटियों को उठाते हुए अपने बेटे को उठाने के लिए उसके कमरे में जाने लगी ।
रेखा अपने बेटे के कमरे में आते ही देखा के वह बेड पर सीधा लेटा हुआ था वह पेंट शर्ट में था, रेखा अपने बेटे के क़रीब जाते हुए उसे उठाने ही वाली थी के उसकी नज़र अपने बेटे की पेंट की खुली हुई ज़िप पर पडी।

विजय की पेंट की ज़िप खुली होने की वजह से उसके अंडरवियर में बना तम्बू नज़र आ रहा था, रेखा अपने बेटे का उसके अंडरवियर में खडा लंड देखकर मुस्कुराने लगी ।
रेखा मुस्कुराते हुए सोचने लगी, "विजय अपनी पेंट की ज़िप बंद करना भूल गया है या तो उसका लंड उसे सोते हुए तँग करता होगा इसी लिए उसने अपनी ज़िप खुद ही खोल दी है" । रेखा का जिस्म यह सब सोचते हुए गरम होने लगा, रेखा ने अपना हाथ आगे करते हुए अपने बेटे के अंडरवियर पर रख दिया ।

रेखा अपने हाथ में अपने बेटे का लंड उसके अंडरवियर के ऊपर से ही महसूस करके उत्तेजित होने लगी, वह अपने हाथ को अपने बेटे के अंडरवियर पर ऊपर से नीचे तक फेरने लगी । रेखा को अपने बेटे का लंड अंडरवियर पर हाथ घुमाते हुए बुहत मोटा महसूस हो रहा था ।
रेखा की साँसें उसके हाथ अपने बेटे के अंडरवियर पर घुमाते हुए बुहत ज़ोर से चल रही थी। विजय का जिस्म अचानक थोडा हिला, रेखा ने डर के मारे अपना हाथ वहां से दूर कर दिया और अपने बेटे को पुकारते हुए उठा दिया।
 
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रेखा अपने बेटे को उठाते हुए वहां से जाते हुए किचन में आ गयी और चाय बनाने लगी, रेखा अभी चाय बना ही रही थी के उसकी बेटी कंचन किचन में दाखिल हुयी।"उठ गयी बेटी इधर आओ चाय का ख़याल करो जब तक में कप धोती हूँ" ।
रेखा कपस को धोकर चाय के पास आ गयी, चाय उबालने लगी थी । रेखा ने जल्दी से गैस को कम किया और चाय को घुमाते हुए कप्स में भरने लगी । रेखा ने तीन कप एक ट्रे में डालकर अपनी बेटी को दिए जिसे वह उठाकर ले जाने लगी ।

"बेटी चाय पीने के बाद अपनी पढाई में लग जाना, बातों में अपना वक्त ज़ाया मत करना", रेखा ने अपनी बेटी को जाते हुए नसीहत करते हुए कहा । "हा माँ हम डेली पढ़ाई ही करते है", कंचन ने जाते हुए जवाब दिया ।
रेखा दूसरी ट्रे में तीन कप रखते हुए उसे अपने कमरे में ले जाने लगी, रेखा ने एक कप अपने पति को देते हुए कहा "मैं बाबूजी को चाय देकर अभी आई", रेखा ने दूसरा कप भी ट्रे से उठाते हुए अपने टेबल पर रख दिया और बाकी बचा एक कप ट्रे के साथ अपने ससुर के कमरे में ले जाने लगी।

रेखा अपने ससुर के कमरे तक पुहंच कर दरवाजे को नॉक करने लगी, "कौन है आ जाओ", अंदर से अनिल की आवाज़ सुनाइ दी । रेखा दरवाजा खोलते हुए अपनी गांड को मटकाते हुए अंदर दाखिल हुयी और ट्रे को टेबल पर रख दिया ।

"क्यों बेटी दरवाज़ा खटका रही थी?" अनिल ने अपनी बहु की तरफ देखते हुए कहा, "बाबूजी मैंने सोचा शायद आप कोई पर्सनल काम कर रहे हो और मेरे आने से डिसट्रब हो", रेखा ने अपने ससुर को छेड़ते हुए कहा।
"वाह बेटी ज़ख़्म पर नमक छिड़क रही हो" अनिल ने मुँह बनाते हुये, "क्यों बाबूजी क्या हुआ?" रेखा ने अन्जान बनने का नाटक करते हुए कहा । अनिल समझ गया की बहु उसे छेड़ रही है इसीलिए उसने रेखा को कोई जवाब न देते हुए टेबल से जाकर चाय उठा ली।
अनिल ने चाय की चुसकी लेते हुए अपनी बहु की चुचियों को देखते हुए कहा "बेटी चाय तो बुहत बढिया बनाई है, मुझे तो ताज़े दूध की लगती है" रेखा अपने ससुर की बात का मतलब समझते हुए शरमाकर वहां से जाते हुए कहने लगी "बाबूजी आप चाय पी लो मैं अभी आयी"।

रेखा अपने कमरे में आ गयी और अपनी चाय उठाते हुई पीने लगी । रेखा ने चाय ख़तम करके वहां से दोनों कप उठाते हुए किचन में रख दिये और अपने पति के साथ बैठकर बातें करने लगी ।
कंचन ने अपनी बहन और भाई के साथ चाय पीने के बाद उनसे कहा "मैं ट्रे किचन में छोड़कर आती हूँ और आज विजय के कमरे में चल कर पढाई करते है" कंचन किचन में ट्रे को रखते हुए अपने कमरे में जाने लगी ।

कंचन ने अपने कमरे में आते ही अंदर से दरवाज़ा बंद कर दिया और अलमारी से सलवार कमीज निकाल कर पहनने लगी, कंचन की कमीज का गला बुहत बड़ा था थोडा भी झुकने पर कंचन की पूरी चुचियां उसकी ब्रा के साथ नज़र आ रही थी ।

कंचन वह कपड़े पहन कर अलमारी के सामने आ गयी और अपने आप को देखते हुए खुश होते हुए दुप्पटा उठा कर पहन लिया । कंचन अपने कमरे से किताब उठाते हुए निकल कर विजय के कमरे में आ गयी, कंचन आते ही बेड पर जाकर बैठ गयी।

कंचन की पीठ कोमल और विजय के तरफ थी, विजय की आदत थी के पढ़ाई के वक्त वह बार बार कंचन से मदद माँगता था । कंचन अपनी बुक खोलकर पढने लगी, थोडी ही देर बाद विजय अपना बुक हाथ में लेते हुए कंचन के पास आ गया ।
"दीदी यह देखो न यह क्या है मुझे समझ में नहीं आ रहा है", कंचन ने विजय से कहा "आओ मेरे सामने आकर बैठो, मैं देखकर बताती हूँ" । विजय बेड पर चढते हुए कंचन के सामने बैठ गया, विजय ने बैठते ही कंचन से कहा ।
 
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"दीदी यह देखो यह क्या लिखा हुआ है", कंचन ने बुक की तरफ देखते हुए उसे बता दिया और फिर दोनों अपनी अपनी बुक्स पढने लगे, कंचन ने अचानक अपने दुप्पटे को उतारते हुए बेड पर रखते हुए कहा "आज बुहत गर्मी है " ।
कंचन बिना दुप्पटे के नीचे झुके हुए पढ रही थी, विजय की नज़र जैसे ही पढते हुए कंचन की तरफ गयी उसका पूरा जिस्म सिहर उठा । विजय की अपनी सगी बहन झुके हुए बुक पढ रही थी और उसकी कमीज के बड़े गले में से उसकी ब्रा में क़ैद आधी नंगी चुचियां विजय के ऑंखों के सामने थी।

विजय की आँखें यों ही कुछ देर तक अपनी बहन की आधी नंगी चुचियों का दीदार करती रही, अचानक कंचन ने अपनी ऑंखें ऊपर की तो विजय को अपनी तरफ घूरते हुए देखा ।
कंचन ने फ़ौरन अपनी आँखें नीचे करते हुए बुक पढने लगी, क्योंकी वह खुद चाहती थी की विजय उसकी जवानी का दीदार करे । विजय अपनी दीदी की नज़रें ऊपर करने से डर गया मगर जब कंचन ने फिर से अपनी नज़रें नीची कर ली तो विजय की जान में जान आई।

विजय ने फिर भी डर के मारे कुछ देर तक अपनी नज़रों को वहां से हटा दिया, मगर थोड़ी देर बाद ही विजय के दिल में फिर से अपनी दीदी की चुचियों देखने की कसक होने लगी । विजय ने फिर से अपनी ऑंखों को अपनी बड़ी दीदी की चुचियों पर गडा दी ।
कंचन जब तक वहां बैठी रही विजय उसकी चुचियों का दीदार करता रहा, पढाई ख़तम करने के बाद विजय की दोनों बहनें उसके कमरे से चलि गयी । विजय की हालत अपनी बड़ी बहन की चुचियों को देखते हुए बुहत खराब हो चुकी थी।

विजय अपनी बहन के जाते ही बाथरूम में घुस गया और अपने पूरे कपड़ों को उतारते हुए अपने हाथ से लंड को हिलाने लगा, लंड को हिलाते हुए विजय ज़ोर से कांप रहा था और वह अपने लंड को हिलाते हुए अपनी बहन की चुचियों को याद कर रहा था ।
विजय का जिस्म अब अकडने लगा और वह बुहत ज़ोर से कांपते हुए झरने लगा, "आह्ह कंचन। झरते हुए विजय के मूह से चीख़ के साथ अपनी बड़ी बहन का नाम निकल गया" । विजय के लंड से बुहत देर तक पिचकारियां निकलती रही ।

विजय अपने लंड को अखरी बूँद निकलने तक निचोडता रहा और फिर शावर ऑन करके अपने जिस्म पे पानी ड़ालने लगा, विजय नहाने के अपने कपड़े पहन कर बाथरूम से निकल गया । ऐसे ही वक्त गुज़रता गया और सब रात का खाना खाकर सोने के लिए अपने कमरों में चले गए ।
घर के कमरे इस तरह बने हुए थे की एक पोर्शन में ३ कमरे थे जिस में से एक में रेखा और मुकेश दुसरे में अनिल और तीसरा खाली था और दुसरे पोर्शन में भी तीन कमरे पहले कोमल दूसरा कंचन और आखरी विजय का था।
 
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विजय और कंचन के कमरों के दरवाज़े बिलकुल साथ में थे, रात के १० बज रहे थे मगर कंचन की ऑंखों से नींद ग़ायब थी । कंचन को अचानक एक आइडिया दिमाग में आया और वह अलमारी से कपडे निकालते हुए विजय के कमरे में आ गयी ।
विजय अपनी बड़ी बहन कंचन को देखकर हैंरान रह गया और कंचन की तरफ देखते हुए कहा "क्या हुआ दीदी तुम इतनी रात को यहाँ कैसे?", "वीजू मेरे कमरे के बाथरूम में पानी नहीं आ रहा है तो सोचा तुम्हारे बाथरूम में ही नहा लूँ ।

कंचन यह कहते हुए बाथरूम में घुस गई, कंचन ने अपने सारे कपड़े उतारे और शावर खोलकर नहाने लगी । कंचन ने नहाने के बाद अपने भाई को पुकारते हुए कहा "वीजू ज़रा टॉवल देना में लाना भूल गई ", विजय अपनी बहन की बात सुनकर जल्दी से अपना टॉवल उठाते हुए बाथरूम के बाहर खडा हो गया और कंचन को पुकारते हुए "दीदी टॉवल ले लो" ।

कंचन अपने भाई की आवाज़ सुनते ही बाथरूम का दरवाज़ा खोलते हुए विजय से टॉवल ले ली, विजय के होश अपनी बहन की नंगी चुचियों को देखकर उड़ गयी । कंचन ने टॉवल लेते समय अपने चेहरे के साथ चुचियों को भी बाहर निकाल कर विजय के हाथ से टॉवल छीना ।
कंचन अपने बदन को टॉवल से पोछते हुए अपने साथ लाए हुए दुसरे कपड़े पहनने लगी।
कंचन ने नयी पेंटी को पहनते हुए अपने साथ लाये हुए सलवार कमीज पहन ली, कंचन ने अपनी कमीज के नीचे ब्रा भी नहीं पहनी और अपनी पुरानी पेंटी को जान बूझ कर वही पर छोडते हुए अपने दुसरे कपड़े एक हाथ में लेकर बाथरूम में से निकली ।

कंचन के बाथरूम से निकलते ही विजय को दूसरा झटका लगा, क्योंकी उसकी बड़ी दीदी की चुचियों के गुलाबी दाने बिना ब्रा के उसकी कमीज के ऊपर से साफ़ नज़र आ रहे थे । विजय की ऑंखें अपनी सगी बहन की चुचियों में अटक गयी ।
कंचन विजय को अपनी चुचियों की तरफ देखता हुआ देखकर मुस्कुराकर जाते हुए सिर्फ इतना कहा "बदमाश क्या देख रहे हो", विजय की हालत बुहत बुरी हो चुकी थी । उसका लंड उसके अंडरवियर को फाड कर बाहर निकलने को बेक़रार था । विजय फिर से बाथरूम में घुस गया।

विजय को बाथरूम में घुसते ही फिर से एक झटका लगा। आज विजय को झटके पर झटके लग रहे थे । विजय ने देखा उसकी बहन की पेंटी वही पर पडी थी। विजय ने जल्दी से अपनी बड़ी बहन की पेंटी अपने हाथ में उठा लिया ।
विजय की हालत पेंटी को उठाकर और ज़्यादा ख़राब होने लगी, विजय सोचने लगा की इतनी छोटी पेंटी उसकी दीदी के विशाल चूतड़ों को कैसे समां लेती है ।विजय अपनी बड़ी दीदी की पेंटी को अपने हाथ से अपने मुँह के पास लाकर सूँघने लगा ।

विजय को अपनी बड़ी दीदी की पेंटी में से बुहत अजीब गंध महसूस हुयी, विजय को अपनी बड़ी दीदी की पेंटी में से आती हुयी गंध पागल बना रही थी । विजय को अचानक दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनायी दी ।
बाथरूम का दरवाज़ा खुला होने की वजह से विजय डर गया और उसने जिस हाथ में पेंटी पकड रखी थी उसे अपनी गांड के पीछे छुपा लिया तभी कंचन कमरे में दाखिल हुयी थी । कंचन अब भी बिना ब्रा के अपनी चुचियों को हिलाती हुयी बाथरूम के दरवाज़े पर खडी हो गयी।

कंचन ने विजय की तरफ देखते हुए कहा "मेरे कपड़े रह गए है", यह कहते हुए कंचन विजय को धक्का देते हुए दूर करते हुए बाथरूम में घुस गयी । कंचन को अपनी पेंटी बाथरूम में कहीं भी नज़र नहीं आई ।
कंचन ने विजय की तरफ देखा वह पहले से डरा हुआ था । कंचन के देखने से काम्पने लगा, कंचन ने विजय की तरफ देखते हुए कहा "हाथ आगे करो तुम्हारे पास हैं न मेरे कपड़े" । विजय ने काँपते हुए अपना हाथ आगे कर दिया । कंचन ने जल्दी से उसके हाथों से अपनी पेंटी छीनते हुए वहां से जाते हुए कहा "भैया आप बुहत बदमाश हो गए हो" ।

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कंचन के जाते ही विजय का दिमाग चकराने लगा। उसकी सगी बहन उसे अपनी पेंटी के साथ रंग हाथों पकड लिया था, मगर विजय हैरान था की उसकी बहन ने उसे डाँटने के बजाये वहां से मुस्कुरा कर चलि गयी थी । विजय को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसका लंड बुहत ज्यादा उत्तेजित होकर उसकी पेण्ट में झटके मार रहा था ।
विजय के दिमाग में बार बार अपनी बहन के नंगे बूब्स याद आ रहे थे, विजय ने अपनी पेण्ट को उतारते हुए बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर दिया और अपने अंडरवियर को नीचे करते हुए फिर से अपनी सगी बहन की चुचियों को दिमाग में रखकर अपने लंड को हिलाने लगा । ४-५ मिनट के बाद ही विजय का जिस्म झटके खाने लगा और उसके लंड से वीर्य की बारिश होने लगी।

विजय मुठ मारने के बाद फिर से शावर ऑन करके नहाने लगा और नहाने के बाद बाहर निकलते हुए अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया । विजय ने दरवाज़े को बंद करते हुए आज सिर्फ अंडरवियर में ही सोने का फैसला किया, विजय अभी बेड पर लेटा ही था की कोई उसका दरवाज़ा खटखटाने लगा ।
विजय ने जैसे ही दरवाज़ा खोला उसकी बड़ी बहन कंचन सामने कड़ी थी, विजय ने कंचन को देखते हुए कहा "फिर से क्या हुआ दीदी?",
"वीजू मुझे नींद ही नहीं आ रही है मैंने सोचा अपने भाई के साथ बैठकर कुछ देर बातें करती हू", कंचन ने विजय के अंडरवियर की तरफ निहारते हुए कहा।

विजय अपनी बहन की बात सुनते ही वहां से चलते हुआ अंदर आ गया।विजय अंदर आते ही अपनी पेंट उठा कर पहनने लगा । कंचन ने अपने भाई को पेंट पहनता हुआ देखकर कहा "वीजू क्यों पेंट पहन रहे हो। मैं तेरी बहन हूँ मुझसे कैसा शरमाना" ।
विजय अपनी बहन की बात सुनते ही पेंट को पहने बिना ही वहीँ पर रख दिया और जाकर बेड पर बैठ गया ।कंचन अब भी उसी सलवार कमीज में थी, कंचन ने कमीज के नीचे ब्रा नहीं पहनी थी जिस वजह से बल्ब की रौशनी में उसकी चुचियों के गुलाबी दाने साफ नज़र आ रहे थे।
कंचन ने दरवाज़े को अंदर से बंद करते हुए विजय के साथ बेड पर चढ़ कर बैठ गई, विजय इतनी क़रीब से अपनी दीदी को देखकर बौखला गया क्योंके कंचन की चुचियाँ इतने क़रीब से बिलकुल साफ़ नज़र आ रही थी । विजय की ऑंखें बार बार अपनी दीदी की चुचियों को निहार रही थी ।
"क्या देख रहे हो?" कंचन ने बार बार विजय को अपनी चुचियों की तरफ घुरता हुआ देखकर कहा।
"कुछ नही", विजय अपनी दीदी के सवाल पर अपनी नज़रों को हटाते हुए बोला।
"वीजू तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?" कंचन ने विजय से दूसरा सवाल किया।
"नही दीदी मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है", विजय ने अपनी दीदी को जवाब दिया।

"क्यों रे तुम्हारे उम्र के लड़के तो ३- ३ गर्लफ्रेंड रखते हैं आजकल। तुम्हारी क्यों नहीं है?" कंचन ने अपने भाई से फिर से सवाल किया।
"दीदी मुझे लड़कयों से बात करने में शर्म आती है" विजय ने शर्म से नज़रें नीचे करते हुए कहा।
"वाह भाई वाह आजकल के लड़के लड़कयों से बात करने के लिए जाने क्या क्या करते फिरते हैं और यह देखो हमारा भोला भाई इसे लड़की से बात करने में शर्म आती है" कंचन ने अपने भाई को टोकते हुए कहा।

"वीजू अगर तुम्हें लड़कयों से बात करने में शर्म आती है तो आज से मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड बन जाती हूँ", कंचन ने मौके का फ़ायदा उठाते हुए कहा।
"मगर दीदी आप हमारी गर्लफ्रेंड कैसे बन सकती हो। आप तो मेरी बहन हो", विजय ने अपनी दीदी की बात सुनते हुए कहा।
"यार अब तुम्हें सिखाने के लिए तुम्हारी गर्लफ्रेंड बन रही हूं। जब तुम शरमाना छोडकर मुझसे बात करने लगोगे तो फिर तुम किसी को भी अपनी गर्लफ्रेंड बना सकते हो", कंचन ने विजय को समझाते हुए कहा।

"वीजू एक बात बताओ तुम्हें लड़कयों में सब से अच्छा क्या लगता है?" कंचन ने अपने भाई से सवाल किया।
"जी दीदी मुझे शर्म आ रही है", विजय ने अपनी बहन के सवाल पर शरमाते हुए कहा।
"देखो यार अब मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड और तुम मेरे बॉयफ्रेंड हो इसीलिए शरमाना छोडो और बताओ" कंचन ने अपने भाई को डांटते हुए कहा।
"दीदी मुझे लड़कयों की वह सब से अच्छी लगती है" विजय ने हिचकिचाते हुए अपनी दीदी की चुचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा।
"च तो हमारे भाई को लड़कयों की चुचियाँ सब से अच्छी लगती है, देखो विजु तुम इतना शरमाओगे तो कैसे चलेगा इसे चूचियाँ कहते हैं कम से कम इनका नाम तो लो" कंचन ने विजय को धक्का देते हुए कहा।
"वीजू सच बताना पढाई करते वक्त तुम मेरी चुचियों को देख रहे थे न?", कंचन ने विजय की आँखों में देखते हुए कहा।
"जी दीदी" विजय शरमाते हुए सिर्फ इतना कह पाया।
"वीजू अब मैं तुम्हारी गर्ल फ्रेंड हैं हम से शर्माओ मत।क्या तुम्हें मेरी चुचियां अच्छी लगती है", कंचन ने फिर से अपने भाई से पूछा।
"जी दीदी आपकी चुचियां मुझे बुहत अच्छी लगती है" विजय ने इस बार कुछ शर्म छोडकर कहा।
"वीजू एक और बात तुम बाथरूम में मेरी पेंटी के साथ क्या कर रहे थे?, सच बताना में किसि से नहीं कहूँगी। कंचन ने अपने भाई को खुलता हुआ देखकर कहा।
"दीदी आपकी पेंटी को देखकर मुझे न जाने क्या हो गया था। मैं आपकी पेंटी की खुशबु सूंघ रहा था की आप आ गयी", विजय ने भी सीधा जवाब देते हुए कहा।

"मेरी पेंटी की खुश्बु उस में कौन सी परफ्यूम लगी थी जो तुम सूंघ रहे थे" कंचन ने फिर से अपने भाई से पूछा।
"दीदी मैंने लड़कों से सुना था की लड़की की पेंटी में उसकी चूत की खुशबु होती है", विजय बिलकुल बेशरम बनते हुए अपनी दीदी से कहा।
"हाय राम तो तुम अपनी दीदी की चूत की खुशबु सूंघ रहे थे। नालायक बता तुम्हें उसकी खुशबु कैसी लगी" कंचन ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
"दीदी उसकी खुशबु बुहत अच्छी थी" विजय ने फिर से उसी बेशरमी से कहा।

"दीदी एक बात कहां बुरा तो नहीं मानोंगी", विजय ने अपनी दीदी की चुचियों की तरफ देखते हुए कहा।
"हा पूछो बुरा नहीं मानूँगी", कंचन ने अपने भाई को इतना जल्दी अपने से फ्री होता देखकर हैरान होते हुए कहा।
"दीदी टॉवल देते वक्त मैं आपकी चुचियों को नंगा देख लिया था। मैंने आज तक किसी लड़की को नंगा नहीं देखा । क्या आप एक बार मुझे नंगी होकर अपना जिस्म दिखा सकती हो" विजय ने एक ही साँस में अपनी दीदी को कह दिया ।
"वीजू मैं तो तुझे शरीफ समझती थी, मगर तुम तो एक नंबर के बदमाश निकले । अगर तुम अपनी गर्लफ्रेंड को नंगा देखना चाहो तो मैं दिखा सकती हूं, मगर तुम्हारी बहन होने के नाते मैं नंगी नहीं हो सकती", कंचन ने भी अपनी दिल की हसरत पूरी होते देखकर विजय से कहा।

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कंचन ने दरवाज़े को अंदर से बंद करते हुए विजय के साथ बेड पर चढ़ कर बैठ गई, विजय इतनी क़रीब से अपनी दीदी को देखकर बौखला गया क्योंके कंचन की चुचियाँ इतने क़रीब से बिलकुल साफ़ नज़र आ रही थी । विजय की ऑंखें बार बार अपनी दीदी की चुचियों को निहार रही थी ।
"क्या देख रहे हो?" कंचन ने बार बार विजय को अपनी चुचियों की तरफ घुरता हुआ देखकर कहा।
"कुछ नही", विजय अपनी दीदी के सवाल पर अपनी नज़रों को हटाते हुए बोला।
"वीजू तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?" कंचन ने विजय से दूसरा सवाल किया।
"नही दीदी मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है", विजय ने अपनी दीदी को जवाब दिया।

"क्यों रे तुम्हारे उम्र के लड़के तो ३- ३ गर्लफ्रेंड रखते हैं आजकल। तुम्हारी क्यों नहीं है?" कंचन ने अपने भाई से फिर से सवाल किया।
"दीदी मुझे लड़कयों से बात करने में शर्म आती है" विजय ने शर्म से नज़रें नीचे करते हुए कहा।
"वाह भाई वाह आजकल के लड़के लड़कयों से बात करने के लिए जाने क्या क्या करते फिरते हैं और यह देखो हमारा भोला भाई इसे लड़की से बात करने में शर्म आती है" कंचन ने अपने भाई को टोकते हुए कहा।

"वीजू अगर तुम्हें लड़कयों से बात करने में शर्म आती है तो आज से मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड बन जाती हूँ", कंचन ने मौके का फ़ायदा उठाते हुए कहा।
"मगर दीदी आप हमारी गर्लफ्रेंड कैसे बन सकती हो। आप तो मेरी बहन हो", विजय ने अपनी दीदी की बात सुनते हुए कहा।
"यार अब तुम्हें सिखाने के लिए तुम्हारी गर्लफ्रेंड बन रही हूं। जब तुम शरमाना छोडकर मुझसे बात करने लगोगे तो फिर तुम किसी को भी अपनी गर्लफ्रेंड बना सकते हो", कंचन ने विजय को समझाते हुए कहा।

"वीजू एक बात बताओ तुम्हें लड़कयों में सब से अच्छा क्या लगता है?" कंचन ने अपने भाई से सवाल किया।
"जी दीदी मुझे शर्म आ रही है", विजय ने अपनी बहन के सवाल पर शरमाते हुए कहा।
"देखो यार अब मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड और तुम मेरे बॉयफ्रेंड हो इसीलिए शरमाना छोडो और बताओ" कंचन ने अपने भाई को डांटते हुए कहा।
"दीदी मुझे लड़कयों की वह सब से अच्छी लगती है" विजय ने हिचकिचाते हुए अपनी दीदी की चुचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा।
"च तो हमारे भाई को लड़कयों की चुचियाँ सब से अच्छी लगती है, देखो विजु तुम इतना शरमाओगे तो कैसे चलेगा इसे चूचियाँ कहते हैं कम से कम इनका नाम तो लो" कंचन ने विजय को धक्का देते हुए कहा।
"वीजू सच बताना पढाई करते वक्त तुम मेरी चुचियों को देख रहे थे न?", कंचन ने विजय की आँखों में देखते हुए कहा।
"जी दीदी" विजय शरमाते हुए सिर्फ इतना कह पाया।
"वीजू अब मैं तुम्हारी गर्ल फ्रेंड हैं हम से शर्माओ मत।क्या तुम्हें मेरी चुचियां अच्छी लगती है", कंचन ने फिर से अपने भाई से पूछा।
"जी दीदी आपकी चुचियां मुझे बुहत अच्छी लगती है" विजय ने इस बार कुछ शर्म छोडकर कहा।
"वीजू एक और बात तुम बाथरूम में मेरी पेंटी के साथ क्या कर रहे थे?, सच बताना में किसि से नहीं कहूँगी। कंचन ने अपने भाई को खुलता हुआ देखकर कहा।
"दीदी आपकी पेंटी को देखकर मुझे न जाने क्या हो गया था। मैं आपकी पेंटी की खुशबु सूंघ रहा था की आप आ गयी", विजय ने भी सीधा जवाब देते हुए कहा।

"मेरी पेंटी की खुश्बु उस में कौन सी परफ्यूम लगी थी जो तुम सूंघ रहे थे" कंचन ने फिर से अपने भाई से पूछा।
"दीदी मैंने लड़कों से सुना था की लड़की की पेंटी में उसकी चूत की खुशबु होती है", विजय बिलकुल बेशरम बनते हुए अपनी दीदी से कहा।
"हाय राम तो तुम अपनी दीदी की चूत की खुशबु सूंघ रहे थे। नालायक बता तुम्हें उसकी खुशबु कैसी लगी" कंचन ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
"दीदी उसकी खुशबु बुहत अच्छी थी" विजय ने फिर से उसी बेशरमी से कहा।

"दीदी एक बात कहां बुरा तो नहीं मानोंगी", विजय ने अपनी दीदी की चुचियों की तरफ देखते हुए कहा।
"हा पूछो बुरा नहीं मानूँगी", कंचन ने अपने भाई को इतना जल्दी अपने से फ्री होता देखकर हैरान होते हुए कहा।
"दीदी टॉवल देते वक्त मैं आपकी चुचियों को नंगा देख लिया था। मैंने आज तक किसी लड़की को नंगा नहीं देखा । क्या आप एक बार मुझे नंगी होकर अपना जिस्म दिखा सकती हो" विजय ने एक ही साँस में अपनी दीदी को कह दिया ।
"वीजू मैं तो तुझे शरीफ समझती थी, मगर तुम तो एक नंबर के बदमाश निकले । अगर तुम अपनी गर्लफ्रेंड को नंगा देखना चाहो तो मैं दिखा सकती हूं, मगर तुम्हारी बहन होने के नाते मैं नंगी नहीं हो सकती", कंचन ने भी अपनी दिल की हसरत पूरी होते देखकर विजय से कहा।
 
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अपनी सगी बहन का नंगा होकर इतना क़रीब बैठने से विजय का पूरा बदन एक्साईटमेंट में कांप रहा था। कंचन की नज़र अपने भाई के क़रीब बैठते ही उसके अंडरबीयर में बने तम्बू पर पडी । कंचन मन ही मन में बुहत खुश हो रही थी की उसका भाई इतनी जल्दी उसके बहकावें में आ गया ।
विजय अपनी ऑखों से कभी अपनी बहन की नंगी गुलाबी चुचियों को देखता तो कभी अपनी नज़र नीचे करते हुए उसकी गुलाबी चूत को देखता । विजय को एतबार नहीं आ रहा था की उसकी सगी बड़ी बहन उसके सामने नंगी बैठी है।

"वीजू यह तुम्हारे अंडरवियर में तम्बू क्यों बना हुआ है?" कंचन ने इतनी देर की ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा।
"दीदी यह सब आपके हुस्न का कमाल है" विजय ने अपनी बहन की तारीफ करते हुए कहा ।
"वीजू मगर मुझे देखने से इस तम्बू का क्या काम?" कंचन ने अन्जान बनने का नाटक करते हुए अपने भाई से कहा।
"दीदी सच में आपको इसके बारे में पता नही" विजय ने हैंरान होते हुए अपनी बहन से पूछा।
"वीजू सच में मुझे पता नहीं है" कंचन ने जवाब देते हुए कहा ।

"दीदी आप देखना चाहेंगी इसे?" विजय ने अपनी बहन की ऑखों में देखते हुए कहा।
"हा विजु दिखाओ मुझे मैं देखना चाहती हूँ" कंचन ने हवस भरी नज़रों से अपने भाई के अंडरवियर की तरफ देखते हुए कहा ।
विजय ने अपनी बहन की बात सुनते ही अपने अंडरवियर में हाथ ड़ालते हुए अपने चुतडो को थोडा ऊपर करते हुए उसे उतार दिया, अंडरवियर के उतरते ही विजय का ८ इंच लम्बा लंड आज़ाद होकर कंचन की ऑखों के सामने लहराने लगा । कंचन ने आज तक किसी मरद का लंड नहीं देखा था।
कंचन ने अपनी ऑखों के सामने अपने छोटे भाई के लम्बे लंड को लहराता हुआ देखकर हैरान होते हुए कहा "वीजू यह तुम्हारी नुनी इतनी बड़ी कैसे हो गई, मैंने तुम्हारी नुनी बचपन में नहाते हुए देखी थी।
"दीदी तब में बच्चा था, मगर अब मैं एक जवान मरद हूँ और मरद जब जवान होता है तो उसकी नुनी बड़ी होकर लंड कहलाती है" ।
कंचन ने नीलम से सुना था के जब लंड चूत में जाता है तो बुहत मजा आता है, मगर विजय का बड़ा और मोटा लंड देखकर वह सोचने लगी की इतना मोटा और लम्बा लंड उसकी छोटी चूत में घुसेगा क्या।

विजय के लंड का रंग गोरा और उसका सुपाडा लाल था ।
"वीजू तुम ने कहा था के यह मेरे जिस्म का कमाल है, इसका क्या मतलब हुआ?" कंचन ने अपने भाई के गोरे लंड के लाल सुपाडे को देखते हुए कहा ।
"हा दीदी मैंने सच कहा था, क्योंकी मरद का लंड तब ही लम्बा और मोटा होता है जब वह किसी लड़की को नंगा देख ले या उसके बारे में गन्दा सोचे" विजय ने अपनी बड़ी बहन को समझाते हुए कहा।
"मगर विजु यह लड़की को देखकर क्यों बड़ा और मोटा हो जाता है?" कंचन ने इस बार जानबूझकर अन्जान बनने का नाटक करते हुए अपने छोटे भाई से पूछा।

"दीदी मैंने भी अपने दोस्तो से सुना था की अगर इस लंड को लड़की की चूत में घुसाया जाए तो उसे बुहत मजा आता है और लड़की को बच्चा भी होता है" विजय ने अपनी बहन को बताया ।
"वीजू क्या तुम मुझे बेवक़ूफ़ समझते हो यह इतना बड़ा लंड लड़की की छोटी सी चूत में कैसे घुसेगा?", कंचन ने विजय का मज़ाक उड़ाते हुए कहा।
"दीदी मैं सच बोल रहा हूँ, इसे लड़की की चूत में घुसाया जाता है" विजय ने अपनी बहन को यकीन दिलाते हुए कहा ।

"वीजू तुम इतने यकीन से कैसे कह रहे हो" कंचन ने अपने भाई को शक भरी निगाह से देखते हुए कहा।
"वो दीदी मैंने अपने एक दोस्त को किसी लड़की की चूत में लंड को घुसाते हुए देखा था" विजु ने हडबडाते हुए अपनी दीदी को जवाब दिया ।
"तुम तो बड़े बदमाश निकले विजू, मगर मुझे यकीन नहीं आता" कंचन ने अपने भाई से कहा।
"दीदी एक आइडिया है जिस से आपको यकीन हो जायेगा" विजय ने अपनी बड़ी दीदी की गुलाबी चूत को देखते हुए कहा।
"क्या आइडिया है" कंचन ने अपने भाई के लंड को देखते हुए कहा।
"दीदी अगर आप इजाज़त दें तो मैं अपना लंड तुम्हारी चूत में घुसाकर देखूं की यह उस में जाता है या नही" विजय ने भोला बनते हुए कहा।
"बदमाश तुम अपनी सगी बहन के साथ गंदा काम करोगे, तुम्हें शर्म नहीं आती" कंचन ने अपने भाई को डाँटते हुए कहा ।
"मैं अपनी दीदी नहीं अपनी गर्लफ्रेंड के साथ गन्दा काम करना चाहता हूँ" विजय ने फिर से मासूम बनते हुए कहा।
"वीजू तू बुहत बदमाश हो गया है तो मुझे बातों के जाल में न फंसा" कंचन ने मुस्कुराते हुए कहा ।

कंचन अपने भाई का बड़ा और मोटा लंड देखकर डर गयी थी वरना वह कब की उसे इजाज़त दे देती।
"दीदी क्या तुम मेरी गर्लफ्रेंड नहीं हो?" विजय ने अपनी दीदी से पुछा।
"वीजू मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूं, मगर मैं तुम्हारे साथ वह सब कुछ नहीं कर सकती" कंचन ने अपने भाई को समझाते हुए कहा ।
"दीदी देखो न यह कितना सख्त और गरम हो गया है अपनी गर्लफ्रेंड को नंगा देखकर" विजय ने अचानक अपनी दीदी का हाथ पकडते हुए अपने लंड पर रख दिया । विजय के लंड पर हाथ पड़ते ही कंचन का पूरा बदन सिहर उठा।

कंचन को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका हाथ किसी गरम लोहे पर रख दिया गया हो, उसे अपने पूरे शरीर में अजीब किस्म की गुदगुदी महसूस हो रही थी ।"वीजू बदमाश मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी " कंचन ने अपना हाथ अपने भाई के लंड से हटाते हुए उसे मारने को उठाया ।
विजय अपनी बहन से बचने के लिए सीधा लेट गया। कंचन अपने भाई के बैठने से सीधी होकर उसके ऊपर गिर पडी । कंचन की चुचियां उसके ऊपर गिरने से विजय के सीने में दब गयी ।

"आह्ह कंचन की चुचियां अपने भाई के सीने में दबते ही उसके मूह से सिसकी निकल गई" ।।।। विजय की भी हालत बुहत बुरी थी अपनी दीदी के अपने ऊपर गिरने से कंचन की चुचियां उसके सीने से और उसका लंड उसकी दीदी के चुतडो पर दब रहा था ।
विजय ने बिना कुछ सोचे समझे अपने दोनों हाथों से अपनी दीदी को बाँहों में भरते हुए अपने होंठ अपनी सगी बहन के होंठो पर रख दिये । कंचन को भी उस वक्त कुछ समझ में नहीं आ रहा था अपने भाई के होंठ अपने होंठों पर पड़ते ही उसका पूरा जिस्म मज़े से सिहर उठा।
 
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