"खुलापन"

अगर आपको मेरी कथा अच्छी लगे तो बोल देना . धन्यवाद्.

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"खुलापन" 

यह एक वयस्कों के लिए मूक कथा है जिसमे incest, sex, BDSM ऐसी घटनाओका काल्पनिक जीक्र है. कथा हिंदी में है. इसका किसीकेभी भावनाओं को ठेस या व्यक्तिविशेष को टिपणी देने का उद्देश नही है. काल्पनिक और वयस्क कथा का [size=x-large]आनन्द लेकर इसके भूल जाए. धन्यवाद.
 
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भाग १:

यह कहानी है एक 49 वर्ष की बहुत ही सुंदर और सुशील औरत मीनाक्षी की. 70 किलो की 34-30-38 फिगर की  बेहद हसमुख और गोरा चेहरा, लम्बे बाल और एक पारिवारिक महिला ऐसी थी मिनाक्षी. वो बीकॉम ग्रेजुएट भी कर चुकी थी. 
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शादी २५ साल की उम्र में हो चुकी थी और उसका पति जमादार था. गांव में उसके पति की अच्छी सी पोस्ट थी. घर पर सास-ससुर और पूरी फैमिली भी थे. मीनाक्षी उतनी अमीर मायके से नहीं थी, उसका मायका साधारण था. उसके पापा एक चपरासी थे और उसको एक चाचा भी था. मीनाक्षी की शादी होने के ९ साल के बड़े कशमकश के बाद उसको एक बेटा हुआ. बेटे का नाम उसने रमन रखा. वो अपने बेटे को बहुत जादा चाहती थी उसकी र बात पूरी करने के लिए प्रयास करती थी. रमन पढ़ाई में साधारण था लेकिन वह अकेला-अकेला जादा रहता था. मीनाक्षी कि उसके पति से उतनी ज्यादा नहीं बनती थी. दोनों अक्सर झगड़े करते थे. इसलिए दोनों में जादा प्यार और कामना भी नही थी. वो जादातर बहार ही रहता था काम के सिलसिले में. बचपन से रमन इन सब बातों से पक गया था लेकिन रमन के उम्र के साथ-साथ उसकी सेक्स की तरफ की रुचि भी बढ़ रही थी.
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उसी का पहला पड़ाव था के वो लडकियो से शर्माता था और उनसे अछे से बात नही कर पाता था. अपने क्लास की उसके दोस्तों के साथ सेक्सी बातें करने लगा साथ में अलग-अलग किताबें और इंटरनेट पर पोस्ट देखें उसके मन विचलित होने लगा. पर वो खुलकर अपने दोस्तों से कभी एडल्ट बाते खुद होक नही करता. इसलिए एक साल का ड्राप कर के भी १० वी में जहा उसके दोस्त दो दो लडकिया लेके घूमते थे वो सिंगल था.
पर इन बातो से वो चिड करने लगा था . अक्सर बच्चे इस उम्र में ऐसे ही होते हैं. पर रमन पे कुछ जादा इसका प्रभाव दिखने लगा था . जैसे सब बातों की पहचान होने से उसको अब अपनी मां के साथ जाते समय थोड़ा सा शरमाने लगा और लोगों से गुस्से से पेश आने लगा. जैसे माँ का बोडिगार्ड बन गया हो. कद उसका साधारन था पर गुस्सा बहु बहुत आगेका आता था. भले ही रमन अपनी क्लास की लड़कियों को चुपके से देखता था लेकिन उसको बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता अगर कोई मर्द उसकी मां को वैसे देखें. उसी कारण वो आजकल मां को टोकने लगा था. उसके रहन-सहन पर, उसके पहनावे पे और उसकी किसी गैरमर्द से बाते करने पे उसने जैसे पाबंदी लगा दी. पहले मार्केट में जब मिनाक्षी सब्जी लेती थी तब रमन का ध्यान चॉकलेट या फिर मिठाई की दुकान पर रहता था लेकिन अब उसका ध्यान रहता था उसकी मां की और वह ज्यादा से ज्यादा देखभाल करता था कि कोई मर्द उसकी मां को बात न करे या फिर देख तो नहीं रहा. इसी कारण से वह अब लोगों के साथ एक अजीब व्यवहार करने लगा था. जैसे कि पड़ोस के मिश्रा जी को वह उल्टा जवाब दे लगा. बस में भीड़ भाड़ वाली जगह पर वह मां को जाने की जाने नहीं देता था. कई बार वो बिना कुछ बोले ऐसे ही गुस्से से निकल जाता था. मीनाक्षी को उसका यह व्यवहार कुछ अजीब लगा क्योंकि वह ना चाहती थी कि रमन अपने दसवीं की परीक्षा में कम मार्क्स ले. वो गुस्सा करता यार जिद करता फिर ये बाते मिनाख्सी को लोगो के बिच शर्मिन्दा करती थी. मिनाक्षी उसको डाट देती पर उसको यु डाटना अच्छा नही लगता था.

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मिनाक्षी की कही सहेलिया भी थी उसमे से एक थी उर्मिला. उर्मिला बेहद खुले स्वभाव की थी और अक्सर मजाकिया. वो दोनों एक दुसरे काफी बाते शेयर करते थे. उस रात अपने घर के टेरेस पे मीनाक्षी ने उर्मिला को कॉल किया..
उर्मिला: ओहो आज कैसे याद किया मैडम ने? इतने दिनों के बाद?
मीनाक्षी: क्या तू भी उर्मिला. मैंने पिछले हफ्ते ही बात की थी न.
उर्मिला: अच्छाजी.. कब परसो परसो बरसों ...हाहाहा.... ( तभी दोनों हंसने लगे) अच्छा बोल क्या है? क्यों किया फोन? आज कौन सा काम आ गया मेरे पास?
मीनाक्षी: कुछ नहीं रे. ऐसे ही बोला. रात का समय है, टेरेस पर आ गई थी. सोचा तुजसे कुछ बात पुन्छु.
उर्मिला: ओहो. लड्डू मिल गये. अच्छा-अच्छा बोल क्या काम है ?
मीनाक्षी: तुझे बोला था ना पहले मैंने के आजकल रमन बहुत ज्यादा गुस्सा करने लगा है.
उर्मिला: हां पता है मुझे. उस दिन हम सब मूवी देखने गये थे तब भी उसने बहुत गलत किया था. उस सिक्यूरिटी गार्ड से झगड़े कर बैठा था.
और वो भी इसलिए उसने मेरे टॉप पे थोडा देखा था. उसको इतना नही ओवर रियेक्ट करना चाहिए था.
मीनाक्षी: हां देख तो मुझे डर लग रहा है कहीं ऐसे वह अपने दसवीं की परीक्षा न खराब कर दे.. (उदास होके)
उर्मिला: अरे तू मत फ़िक्र कर, इस उम्र में होता है. वो अभी बड़ा हो रहा है और तुम मिया बीवी दोनों में जमती ही नहीं है. इसलिए वह अकेला अकेला फील करता है. तू ना एक काम कर.
मीनाक्षी: बोलना क्या करूं? तु बोलें वह करूंगी.
उर्मिला: अरे ऐसा नही बस तुम उसको लेके कही घूमके आ जाओ उसका माइंड फ्रेश होगा.
मीनाक्षी: बात तो तू सही कह रही है. लेकिन मैं रमन को लेकर कैसे? कहां जाऊं?
उर्मिला: ऐसी जगह जहां पर उसको ताज़ी हवा मिले.
मीनाक्षी: ऐसी जगह कौनसी है ?
उर्मिला: अरे तू एक काम करना तू तेरे गांव ही लेकर जाना उसको. बहुत दिनों से तू भी गई नहीं.
उर्मिला पर गाव में वो नही रह सकता. उसको शहर की आदत है पहले से. गांव कैसे सूट करेगा इसको ?
उर्मिला: अरे कुछ नहीं होगा. उसको ले कर तो जाओ, चल मैं जाती बाद में बात करेंगे. आज रात हमारा प्रोग्राम है अब डिस्टर्ब मत करना.
मीनाक्षी : हाहा...नहीं करती इंजॉय करो.. गुड नाइट
उर्मिला: गुड नाइट

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फ़ोन रखने के बाद उसकी बढ़ती उम्र के साथ मीनाक्षी को भी लगा शायद उसको कुछ अलग हवा की जरूरत है शायद इससे उसका गुस्सा कम हो जाए और बस तभी उसने उसको अपने चाचा के पास अपने मायके जाने का प्लान बनाया. वैसे ही वो निचे अपने बेड रूम में आती है और खुदको शीशे में निहारके सोने के लिए चली जाती है. वो मन में ठान लेती है के रमण को कल कैसे भी करके गाव लेके जाना है. और तभी दरवाजे को कोई क्नोक करता है....

क्रमश:
 
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भाग २:
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इस वक्त कौन हो सकता है? मीनाक्षी अपने बालों को बांधते हुए अपने बेडरूम का दरवाजा खोलने गयी.  दरवाजा खुलने पर सामने रमन खड़ा था.
“ ओह रमन मैं तो भूल ही गई आज संडे है ना?”
“क्या मां.. आप ना आजकल मेरा बहुत ध्यान कम रख रही हो. आप अपने काम में ज्यादा बिजी रहने लगी हो. जाओ मैं आपसे बात ही नही करता”
“अरे बेटा गुस्सा मत हो.. सॉरी ना, चल तू बैठ अभी यहां”
यहाँ पर मां और बेटे का एक बहुत अलग ही रिश्ता आपको देखने को मिलेगा. जैसे की कहानी में बताया गया है कि रमन मीनाक्षी का इकलौता लड़का था और मीनाक्षी कि वह जान था. मीनाक्षी उसकी हर बात मानती थी. उसको कभी खुद से अलग नहीं करती. अक्सर रमन मीनाक्षी के साथ ही सोया करता था. खास करके जब छुट्टियां या फिर विक एंड्स होते थे. दोनों माँ बेटे गप्पे लड़ाते थे.
वैसे दो मां बेटे में बहुत ज्यादा बनती थी. रमन लगभग अपनी हर बात अपनी मां से शेयर करता था वही मीनाक्षी ने एक बहुत ही अच्छा रिलेशन अपने बेटे के साथ बनाया था. वह अपने बेटे को हर वह खुशी देना चाहती थी जो उसको कभी उसके मां-बाप से नहीं मिली. उसको पता था उसका बेटा ओरों की तरह नहीं है इसलिए वह बहुत सोच समझकर उस से बात रखती थी. ऊपर से रमन का बेवजह होने वाला गुस्सा इससे मीनाक्षी कुछ ज्यादा ही फूंक-फूंक कर कदम डालती थी. वैसे रमन अब बड़ा हो गया था. जवानी उस पे आ गई थी. वह कहीं भी बच्चा नहीं रहा था लेकिन उसका बर्ताव अभी भी किसी बच्चे से कम नहीं था. वह आज भी मीनाक्षी को अपनी बातों के लिए जिद करता था, छोटी-छोटी बात पर छेड़छाड़ करता था एक बच्चे की तरह अपनी बात मनवाता था. मीनाक्षी उसको ज्यादा टोकती नहीं थी. क्योंकि उसको पता था, अगर उसकी बात नहीं मानी तो गुस्सा कर लेगा और क्या पता जवानी के जोश में कुछ गलत काम गलत भी कर ले. एजुकेटेड ख्यालों की मीनाक्षी अपनी सहेलियों में भले ही सबसे तेज थी लेकिन खुद की संतान के कारण उसको हर जगह शर्मिंदा होना पड़ता था. ऊपर से पति के साथ के झगडे से सास ससुर भि परेशां हो गये थे. पर अब रमन बड़ा हो रहा था. उसको वो टाल भी नहीं सकती थी और ना ही किसी से छुपा सकती थी. तो उसने नरमी से उसकी बातों को समझने की कोशिश शुरू की.


“ ओहो मां आप कितना टाइम लगाओगे पहले ही 10:00 बज चुके हैं”
“ हां हां आई बेटा बस मैं ढूंढ रही हूं किताब उसदिन मैंने यहां पर तो रखी थी”
“ओहो मां देखा मैंने सही कहा था आजकल तो आपको मेरी चीजों का भी कुछ नहीं रहा”
रमन अक्सर अपनी मां के साथ जब सोया करता था, तो उसको मीनाक्षी एक किताब में से कहानी सुनाती थी. वह कहानी सुनते सुनते सो जाता था. यह उसकी आदत बचपन से थी और मीनाक्षी ने भी उसको इस बात पर रोका नहीं. आज भी वह उसको बच्चों की कहानियां सुना के सुनाती थी. रात में रमन का व्यवहार बिल्कुल भी किसी बच्चे से कम नहीं रहता था. शायद मां की ममता या फिर अपना अकेलापन या फिर कहीं ना कहीं ये बात मीनाक्षी को भी अच्छी लगती थी इसलिए उसने कभी उसको रोका नही होगा.
“हेलो बाबा मिल गई किताब बस खुश कितना मां पर चिल्लाना है और हँ.. माँम को नाम रखेगा और ? कुछ भी बोलते जाओ तो तेरे लिए तो मैं कितना कुछ करती”
“हां हां पता है मुझे इसलिए 10:00 बज के गए ना”
“सॉरी ना बाबा, आज मैं तुझे उस कव्वे की कहानी सुनाती”
“अरे मां वह तो लास्ट में भी सुनाई थी आज कुछ अलग सुना”
“क्या सुनाऊं? इसमें सभी कहानियां तूने पढ़ लिया है”
मीनाक्षी जैसे ही आपने पेड़ पर आती है तो रमन झटके में उससे चिपक जाता है. यह उसका हमेशा एक बच्चे की तरह था.
“ओहो रमन आराम से ना. मैं तुझे स्टोरी पढ़ा रही हु ना”
“ओ मां तू तेरा सुना ना मैं थोड़ी तुझे डिस्टर्ब कर रहा हूं”
मीनाक्षी ने किताब खोली थी और रमन नाईट गाउन के ऊपर से उसके पेट को सहला रहा था.
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“रमन मुझे गुदगुदी होती है ऐसा मत कर”
“ठीक है नहीं करता लेकिन, लेकिन फिर मुझे नींद नहीं आएगी”  
मीनाक्षी ने उसकी बातों को नजरअंदाज किया और कहानी पर ध्यान दिया. वहां पर मीनाक्षी कहानी सुनाती थी और रमन उसके पेट से, बालों से किसी बच्चे की तरह खेलता था. 10 मिनट के बाद रमन का ध्यान हमेशा की तरह अपनी मां के बड़े दूधों पर जाता है और उसके नाइट गाउन के बटन खोलने लगता है.
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मिनाकशी उसके हाथों को रोकती है “नहीं रमन यह क्या है रोज-रोज बच्चों की तरह? सो जाओ अच्छे बच्चे की तरह आज..कल जाना स्कूल को” (हल्का गुस्से से )
“क्या मां जब देखो तब स्कुल ... कल से स्कूल ही नहीं जाऊंगा जो करना है कर लो तुमको तो मुझसे प्यार करना अच्छा नहीं लगता ना मुझे अब सब समझने लगा है” (जादा गुस्से से )
मीनाक्षी को रमन का गुस्सा अच्छे से पता था वो उसको गुस्सा नहीं दिलाना चाहती थी. वह गुस्से के कारण कुछ भी कर लेता था.
“ऐसा नहीं बेटा पर तूने परसों की तो मम्मी से दूध पिया था ना”
“लेकिन मुझे आज भी होना है क्यों मैं नहीं पि सकता क्या? मैं तेरा बेटा नही ?”
मीनाक्षी इस बात का क्या जवाब दें और कुछ नहीं बोलती और किताब में अपना सर लगाकर स्टोरी कंटिन्यू करती है. यहां पर रमन स्टोरी सुनते सुनते गाउन के बटन खोलता है और अपना एक हाथ पूरा अंदर डाल कर मीनाक्षी की बाए दूध को जकड लेता है.
“माँ आज तूने बनियान क्यों डाली है?” (ब्रा को वो बनियान बोलता था)
“वो..आः...मैं भूल गयी बेटा”
“माँ एक बात पुछू”
“ह्म्म्म पुछ न..”
रमण वैसे ही अपने हाथ से ब्रा के कप को बाजू करके मीनाक्षी का दूध बहार निकालने की कोशिश करते हुए...
”माँ मैं तुमपे बहुत चिड-चिड कर रहा हु न सच बोल”
मिनाक्षी उसके तरह मूह करके करवट बदलके किताब के पन्ने को पलट टे हुए, “ क्यों...ऐसा क्यों पुछ रहा हैं”
मीनाक्षी क करवट बदलने से अब रमन के चेहरे के सामने उसके दूढ अछे से आ गये थे. ऐसा लग रहा था कोई दूध पिता बछा सोया हो और उसकी माँ उसको दूध पिलाने बैठी हो.
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क्रमश:
 

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