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ले ठीक से देख लें इसमें से ही पेशाब निकलती है जिसको बुर कहते हैं। ( जिस तरह से उसकी मां मुस्कुराकर बता रही थी उसकी मुस्कुराहट देखकर सुभम के दिल पर बिजलियां गिर रही थी,, आश्चर्य के साथ उसका मुंह खुला का खुला रह गया था वह कभी अपनी मां की बुर से निकल रही पेशाब को देखता तो कभी अपनी मां की तरफ देखता,,, उसकी हालत एकदम कटे मुर्गे की तरह हो गई थी। बदन बुरी तरह फड़फड़ा रहा था लेकिन जान नहीं निकल पा रही थी।
निर्मला की भी उत्तेजना की कोई सीमा नहीं थी उसने अपने जीवन में इस तरह की उत्तेजना का अनुभव कभी नहीं की थी। गजब का नजारा बना हुआ था वह भी कभी नहीं सोच सकती थी कि ऐसा पल उसकी जिंदगी में आएगा कि वह अपने बेटे के सामने ही उसकी आंखों के सामने ही खुद उसके हाथों से ही अपनी साड़ी को उठवाएगी और पेशाब करेगी यह सब बड़ा ही अद्भुत था दोनों के लिए शुभम के ना चाहते हुए भी खुद-ब-खुद उसका हाथ निर्मला की बड़ी-बड़ी गांड पर चला गया जिस पर हथेली रखते ही उसके बदन में करंट का अनुभव होने लगा,,,, पहली बार वह किसी गांड पर हाथ रख रहा था जो कि उसके बदन को पूरी तरह से झनझना दिया था। धीरे धीरे हल्के हल्के में अपनी मां की काम को करवाने लगा जो की निर्मला को बहुत ही अच्छा लग रहा था। निर्मला और शुभम दोनों यही चाह रहे थे कि यह पल यही थम जाए यहीं रुक जाए जो मजा इस पल में है ऐसा मजा किसी पल में नहीं मिलेगा,,,,, लेकिन ऐसा संभव नहीं था क्योंकि निर्मला पेशाब कर चुकी थी,,,, उस का मन भी कार की खिड़की से हटने का नहीं कर रहा था वह यही चाह रही थी कि उसका बेटा उसकी रसीली बुर को बस देखता ही रहे,,
लेकिन पेशाब करने के बाद वह ज्यादा देर तक इस तरह से नहीं खड़ी रह सकती थी इसलिए वह खिड़की पर से हटी लेकिन अभी भी उसकी सारी कमर तक ही चढ़ी हुई थी और पेंटी जांघों तक सरकी हुई थी। और वह भी अपने बेटे की तरह ही मैं तो सारी को नीचे की और ना ही पैंटी को कहीं नहीं बस वैसे ही सीट पर बैठ गई और जल्दी-जल्दी कार के सीसे को चढ़ाने लगे क्योंकि बाहर तेज हवा के साथ बारिश हो रही थी जिसकी वजह से पानी की बौछार से उसकी सारी और उसका ब्लाउज भीग चुका था। मैं सीट पर बैठ कर अपनी साड़ी को झाड़कर सुखाने की नाकाम कोशिश करने लगी,,,,,
लेकिन अपनी साड़ी को उतारने का इससे अच्छा मौका ना मिलेगा यह ख्याल उसके मन में आते हैं उसका मन मोर की तरह नाचने लगा,,,, लेकिन शुभम का ध्यान केवल उसकी रसीली बुर पर ही टिका हुआ था यह देख कर निर्मला उससे बोली।
ले ओर नजर भर कर इसे ठीक से देख ले ( इतना कहने के साथ ही वह अपनी जांघ को थोड़ा सा फैला दी,,, शुभम का तो गला सूखने लगा) अब तक औरत कि तूने इसी अंग को नहीं देखा था ना।
हां मम्मी मैंने तुम्हारा सब कुछ देख लिया था लेकिन इस अंग को नहीं देख पाया था (वह कांपतेे स्वर में बोला)
कैसी लगी तुझे मेरी बुर (अपनी हथेली को अपनी बुर पर रखते हुए बोली)
निर्मला की भी उत्तेजना की कोई सीमा नहीं थी उसने अपने जीवन में इस तरह की उत्तेजना का अनुभव कभी नहीं की थी। गजब का नजारा बना हुआ था वह भी कभी नहीं सोच सकती थी कि ऐसा पल उसकी जिंदगी में आएगा कि वह अपने बेटे के सामने ही उसकी आंखों के सामने ही खुद उसके हाथों से ही अपनी साड़ी को उठवाएगी और पेशाब करेगी यह सब बड़ा ही अद्भुत था दोनों के लिए शुभम के ना चाहते हुए भी खुद-ब-खुद उसका हाथ निर्मला की बड़ी-बड़ी गांड पर चला गया जिस पर हथेली रखते ही उसके बदन में करंट का अनुभव होने लगा,,,, पहली बार वह किसी गांड पर हाथ रख रहा था जो कि उसके बदन को पूरी तरह से झनझना दिया था। धीरे धीरे हल्के हल्के में अपनी मां की काम को करवाने लगा जो की निर्मला को बहुत ही अच्छा लग रहा था। निर्मला और शुभम दोनों यही चाह रहे थे कि यह पल यही थम जाए यहीं रुक जाए जो मजा इस पल में है ऐसा मजा किसी पल में नहीं मिलेगा,,,,, लेकिन ऐसा संभव नहीं था क्योंकि निर्मला पेशाब कर चुकी थी,,,, उस का मन भी कार की खिड़की से हटने का नहीं कर रहा था वह यही चाह रही थी कि उसका बेटा उसकी रसीली बुर को बस देखता ही रहे,,
लेकिन पेशाब करने के बाद वह ज्यादा देर तक इस तरह से नहीं खड़ी रह सकती थी इसलिए वह खिड़की पर से हटी लेकिन अभी भी उसकी सारी कमर तक ही चढ़ी हुई थी और पेंटी जांघों तक सरकी हुई थी। और वह भी अपने बेटे की तरह ही मैं तो सारी को नीचे की और ना ही पैंटी को कहीं नहीं बस वैसे ही सीट पर बैठ गई और जल्दी-जल्दी कार के सीसे को चढ़ाने लगे क्योंकि बाहर तेज हवा के साथ बारिश हो रही थी जिसकी वजह से पानी की बौछार से उसकी सारी और उसका ब्लाउज भीग चुका था। मैं सीट पर बैठ कर अपनी साड़ी को झाड़कर सुखाने की नाकाम कोशिश करने लगी,,,,,
लेकिन अपनी साड़ी को उतारने का इससे अच्छा मौका ना मिलेगा यह ख्याल उसके मन में आते हैं उसका मन मोर की तरह नाचने लगा,,,, लेकिन शुभम का ध्यान केवल उसकी रसीली बुर पर ही टिका हुआ था यह देख कर निर्मला उससे बोली।
ले ओर नजर भर कर इसे ठीक से देख ले ( इतना कहने के साथ ही वह अपनी जांघ को थोड़ा सा फैला दी,,, शुभम का तो गला सूखने लगा) अब तक औरत कि तूने इसी अंग को नहीं देखा था ना।
हां मम्मी मैंने तुम्हारा सब कुछ देख लिया था लेकिन इस अंग को नहीं देख पाया था (वह कांपतेे स्वर में बोला)
कैसी लगी तुझे मेरी बुर (अपनी हथेली को अपनी बुर पर रखते हुए बोली)