Fantasy अजनबी हमसफर

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अजनबी



Update - 1



आज दीप के घर पर महासभा हों रहीं हैं। जिसमें भाग लेने परिवार के मुख्य सदस्य ही समलित हुऐ हैं। मुख्य सदस्य में दीप के नाना-नानी, दादा -दादी, पापा और दीप की लाइफ की सबसे खास उसकी माॅं दीप अभी तक अपने दफ्तर से नहीं आया था। जबकि उसे बता दिए गया था की उसे आज दफ्तर से जल्दी आना हैं। घर पे कुछ जरूरी बात पर चर्चा होनी हैं। जबकि महाशय अभी तक आए नहीं हैं इसलिए घर के मुख्य सदस्य एक कमरे में बैठ कर एक दुसरे के सामने अपनी-अपनी नराजगी जता रहे हैं।



नाना:- ये नालायक कहा रह गया।



नानी:- सुनो जी आप मेरे नाती को भूल कर भी नालायक नहीं कहेंगे वो नालायक होता तो इतनी मेहनत करके इतनी बडी कोठी न बनाता और कहा गया हैं ये तो वहीं बता सकता हैं।



नाना:- ठीक हैं नहीं कहता नालायक पर पता तो करो ये ससुर की नाती हैं कहा अब तक।



नाना की बाते सुनकर घर के बाकी सदस्य ठहाका मारकर हॅंसने लगता हैं और नानी अपनी मुॅंह फुला कर बैठ जाती हैं।



दादा:- और कहा जायेगा गया होगा अपनी किसी गर्लफ्रेंड के पास, आ जायेगा मिलकर।



माॅं:- किया बोल रहे हैं आप अब किससे मिलने गया हैं। उसकी दोनों गर्लफ्रेंड तो यहां बैठी हैं।



माॅं अपनी बात कह कर खिलखिला कर हाॅंस देती हैं। माॅं को इस तरह हॅंसता हुआ देखकर बाकी सब भी हॅंस देता हैं । दादी और नानी अपने मुॅंह पर हाथ रख कर आहहह किया कह रहीं हैं पागल-बगल तो नहीं हों गयी।



पापा:- ये मजाक करना छोड़ो और दीप से पूछो वो कितनी देर में आ रहा हैं। आज तो कुछ फैसला लेना ही पड़ेगा और कब तक हम सम्हाले इसे। कोई तो होना चाहिए जो इसे सम्हाले।



हाॅं हाॅं आज तो इसे हाॅं करना ही पड़ेगा ओर कब तक टालेगा हमे….. तभी कोई दरवाजा खटखटाता हैं और आवाज़ देता हैं माॅं दरवाजा खोलो



माॅं:- आ गया हैं। तैयार रहना सब आज इसे मानकर ही छोड़ना हैं। माॅं जाकर दरवाजा खोलता हैं और दीप को देखकर बोलता हैं आ गया मेरे बेटा चल अन्दर आ जल्दी से नही तो वो नकचड़ी आ जायेगी।



दीप अन्दर आकर देखता हैं। जहाॅं पहले हॅंसीं मजा चल राह था। वहां सब गंभीर मुद्रा में बैठे हैं। जैसे संसद में किसी विशेष मुद्दे पर चर्चा हों रहीं हों और सारे दल एक मत नहीं बना पा रहें की मुद्दे के पक्ष में रहें या विपक्ष में।



दीप जाकर अपने माॅं-पापा, नाना-नानी, के पाओ छूकर आशीर्वाद लिया और अपने सवाल दागने शुरू कर दिए।



दीप:- ऐसा किया हो गया कि आप सब यहां इखट्टा आ गाए? आप सब के चहरे क्यूॅं लटके हुऐ हैं? आप सब किया सोच रहें थे, जिससे आप सब की चहरे की हवाइयां उड़ी हुई हैं? बाहर निधि किया कह रहीं थीं कि अपको फासने का पूरा इंतजाम कर रखें हैं। अपके बस दाना चुगने की देर हैं। ऐसा किया सोच रहे हैं। आप सब मेरे बरे में और मुझे क्यूॅं और कहाॅं फसाना चाहते हैं? जल्दी से बताओ।



दीप की बात सुनके सब के सब एक दुसरे के मूॅंह ताकते हैं कि अब किया करे और मन ही मन निधि को "इस निधि की बच्ची बातूनी के पेट में कुछ भी नहीं पचता हैं। इसको बताकर हमने गलती की हैं। दिन भर चपड़-चपड़ खाती रहेंगी वैसे ही बकर-बकर सारी बाते उगल भी देगी।" फिर सब इसरे से एक दुसरे से पूछती हैं अब किया करे। जब दादा जी कुछ बोलने को होता हैं तभी…….



दीप:- फिर से आप क्या सोच रहे हैं? किसी रिश्तेदार की तबियत खराब हैं जो देखने जाना हैं। या फ़िर कुछ ओर बात हैं जो आप लोग बता नहीं रहें हैं।



दादा:- सब से पहले तो तू बैठ जा और पानी पीकर खुद को ठंडा कर। ले पानी की बोतल।



माॅं:- आ बेटा मेरे पास बैठ



दीप जाकर अपने माॅं के पास बैठ जाता हैं। माॅं प्यार से दीप के सर पर हाथ फिरता हैं और बोलता हैं । मेरा प्यारा बच्चा माॅं का हर कहना मानता हैं।

हैं न।



दीप:- जी हाॅं



माॅं:-अभी जो भी तुझे कहेंगे मानेगा न।



दीप:- मनुॅंगा पार ऐसी कौन सी बात हैं जिसे कहने के लिए दादा-दादी, नाना-नानी, माॅं-पापा सब को एक जगह होना पड़ा। आप अकेले भी तो कह सकती थीं, माॅं इसके लिए सबको बुलाने की किया जरूरत थीं।



नाना- अच्छा तो हमारा बेटा इतना बड़ा हो गया हैं की उससे मिलने के लिए हमे तुमसे प्रमिशन लेना पड़ेगा, "हाॅं बोलो।"



नाना जी की बातों को सुनकर दीप जो अभी सब को देखकर उसका चेहरा खिल उठा था। अब उसी चहरे पे उदासी छाॅं गई और इसी उदासिपन में दीप बोल पड़ा।



दीप:- आप जैसा सोच रहे हैं ऐसा कुछ नही हैं। मैंने ऐसा कब कहा की आपको मुझसे मिलने के लिए मुझसे प्रमीशन लेना पड़ेगा या मैने कभी आप सबसे मिलने से मना किया।



दीप के लटके हुऐ चेहरे को देखकर दादा जी और बाकी सब ठहाका मारकर हॅंसने लगे। उनको हॅंसता हुआ देखकर। दीप एक बार माॅं की तरफ देखता एक बार बाकि लोगो की तरफ देखता और सोचा रहा कि हो किया रहा हैं।



माॅं:- पापा इसे और परेशान न करो। देखो तो कितना परेशान हो गया हैं मेरा बेटा।



नाना जी:- क्यूॅं बरखुद्दार मजा आया,लगा झटका। तुम भी तो हमे ऐसे ही परेशान कर रहे हो। हमने मिलकर थोड़ा परेशान क्या किया इसकी तो मुस्कान ही गायब हो गई, चहरे की रंगत ही उड़ गईं।



दीप:- मैं कहाॅं अपको परेशान कर रहा हूॅं और कब किया अपको परेशान।……



दादा:- बेटा कर तो रहें हो परेशान शादी न करके…….



दीप:- पर मैं शादी नहीं करना चहता आप सब……..



पापा:- बेटा तुम शादी नहीं करना चाहते हों। इसके पिछे वजह किया हैं ये हम नहीं जानना चाहते। बेटा तुम्हारे नाना-नानी और दादा-दादी चाहते हैं की मारने से पहले तुम्हे और तुम्हारे पत्नी को एक साथ देखें, किया तुम उनकी ये इच्छा….



दीप:- पर मैं शादी नही करना चाहता हूॅं। मम्मी आप समझाओ ना सबको।



दीप का इस तरीके से सब को नकार देना पापा जी को अच्छा नहीं लगा। इसलिए पापा जी का पारा चढ़ गया और वो गुस्से में बोल पड़े।



पापा:- ऐसी किया मजबूरी हैं तुम्हारी की तुम शादी नहीं करना चाहते हों। तुम्हे हमारी भावनाओं का थोड़ी सी भी कदर नहीं हैं।



पापा को इस तरह गुस्से में आता देखकर दीप अपना सर झुकाकर बैठ गया। पापा का पारा इस तरह चढ़ता हुआ देखकर माॅं ने सारी भाग-दौड़ अपने हाथ में ले ली और बोला।



माॅं:- आप इस तरह अपने बीपी हाई न करें और शांत हों जाइए। मैं……



पापा:- कैसे न नाराज़ होऊॅं। इसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा। हर जगह अपनी ही मर्जी चलानी हैं। किसी की कुछ सुनना ही नहीं हैं।



माॅं:- आप फ़िर से गुस्सा कर रहें हैं। आप सब बाहर जाईऐ। मैं इससे अकेले में बात करके मना कर लती हूॅं।



पापा:- हाॅं मना कर ही लाना मुझे न नहीं सुनना हैं।



ये कहकर पापा, दादा-दादी और नाना-नानी कमरे से बाहर चले जाते हैं। उन सब के जाते ही दीप अपने माॅं से बोलता हैं।



दीप:- माॅं आप सब कुछ जानते हुऐ भी ।



माॅं:- हाॅं बेटा में सब कुछ जानते हुऐ भी तुम्हे शादी करने को कह रहीं हूॅं। और तुम्हारे पापा…..



दीप:- पापा बेवजह इतना…..



माॅं:- बेवजह नहीं बेटा हर माॅं-बाप चहता हैं कि अपने बेटे की शादी धूमधाम से करे और एक सुन्दर सी बहु घर ले आए। क्या तूम हमारी इतनी सी ख्वाइश पूरी नहीं कर सकते ?



दीप:- पूरा तो करना चहता हूॅं। पर जब मेरा बिता कल मुझे याद आता हैं। तो मुझे डर लगता हैं की मेरे साथ दुबारा वहीं घटनाएं न हों। इसलिए शादी न करने का फैसला कर जिंदगी भर अकेला रहना चाहता हूॅं।



माॅं:- बेटा तुम जो ये शादी न करने का फैसला ले रहें हो। ये तुम बहुत ही गलत फैसला ले रहे हो।



दीप:- वो कैसे?



माॅं:- जिस तरह इंसान को जिंदगी जीने के लिऐ, अच्छी सेहत के लिऐ अच्छा खान-पान। रहने के लिऐ एक घर, तन ढकने के लिऐ कपड़े। इन्हीं सब जरूरतों को पूरा कराने के लिऐ रुपए-पैसे की जरूरत पड़ती हैं। उसी प्रकार अपना सुख-दु:ख और अकेलापन बांटने के लिऐ एक साथी की जरूरत पड़ती हैं। जिसके लिऐ शादी करना जरूरी हैं। शादी जो कि हमारे जिंदगी की एक अहम जरूरतों में से एक हैं। शादी कर इंसान आपनी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक जरूरतों को पूरा करता हैं। और अपनी जिंदगी को इत्र की खुशबू की तरह मेंहका देता हैं।



दीप:- मना की शादी एक अहम जरूरतों में से एक हैं पर मेरा बिता हुआ कल मुझे अकेले रहने पार मजबूर करता हैं। उसका किया।



माॅं:- हम साधारण इंसान जिंदगी भर अकेले नहीं रह सकते। एक समय के बाद हमे एक साथी की जरूरत पड़ती ही हैं। जिसके साथ हम कुछ सुनहरे पल बिताए और उन बातो को शेयर करते हैं जो हम किसी ओर को नहीं बता सकते। मुझे तुम्हारी आंखों में वो अकेलापन दिखता हैं। तुम खुद अपने उस अकेलेपन से लड़ रहें हों और तुम एक ऐसे साथी को ढूंढ रहें हों जिससे तुम अपना अकेलापन बांट सको। और अपने तन और मन को शांत कर सको।



माॅं की इन बातों को सुनकर दीप मन में ही कहता है। सच ही तो कह रहीं हैं माॅं। मैं ढूंढ ही तो रहा हूॅं एक ऐसा साथी जो मुझे समझे। जिसके साथ मैं अपना दुःख-दर्द और खुशियां बांट सकूं ।



माॅं:- बेटा क्या हुआ ? किस सोच में डूबा गए।



दीप:-माॅं मैं आपकी कहीं हुईं बातों के बरे में ही सोच रहा हूॅं। मै भी चाहता हूॅं की कोई ऐसा हो जिसके साथ मैं अपना अकेलापन बांट सकूॅं पर मेरा बिता हुआ कल बार-बार मुझे रोकता हैं। मेरे साथ दुबारा ऐसा न हों जाए इसलिए डरता हूॅं।



माॅं- हमारे साथ भविष्य में किया होगा इस डर से हम अपने वर्तमान में मिल रहीं खुशियों को भूलकर वर्तमान के साथ भविष्य भी बिगड़ लेते हैं।



दीप:- माॅं इसकी किया गारेंटी हैं की शादी के बाद दुबारा मारे साथ वैसा नहीं होगा जो बीते कल में मेरे साथ हुआ।



माॅं:- ये तुम कह रहें हों जिसने अपने वर्तमान में मेहनत कर अपने भविष्य को संवारा हैं और फर्श से अर्श तक का सफर तय किया हैं और रहीं बात शादी के बाद की बात तो शादी के बाद पति-पत्नी अपनी वैवाहिक जीवन में तल-मेल बनाकर रखें, एक-दुसरे की मन की भावनाओं को समझकर फैसला ले, तो भविष्य में कुछ भी गलत नहीं हों सकता। तभी तो कहते हैं आपने वर्तमान में मेहनत करो और भविष्य को सवारों। आया कुछ समझा में मेरे लाल।



दीप:- समझा गया माते जो कुछ अपने कहा। मैं आपको एक बात ओर कह दूॅं मेरे साथ जो कुछ भी पिछे हुआ था। वैसा ही कुछ मेरे साथ दुबारा हुआ तो अब मुझमें उतनी हिम्मत नहीं रहीं की मैं खुद को सम्हाल सकूॅं। मैं कुछ भी कर बैठूंगा।



दीप की कही हुईं बातों को सुनकर माॅं एक बार को अन्दर ही अन्दर कांप गईं क्योंकि माॅं दीप की मानो दशा से भलीभाती परिचित थी और दीप की बीती जिंदगी में घाटी घटनाओं से अंजान न थी। माॅं अपने को शांत कर दीप से कहता हैं।



माॅं- मैं अपने बेटे को अच्छे से जानता हूॅं कि भविष्य में उसके साथ कुछ गलत न हो इसलिए वर्तमान को कैसे संवारना हैं ये अच्छे से जनता हैं। तू डर मत तेरे साथ कुछ गलत नहीं होगा।



दीप:- तुम साथ हो तो मैं नहीं डरता। लड़की ढूंढना शुरू कर दो। मगर एक बात बता दूॅं जो भी लड़की देखोगे, जब तक मैं उसे अच्छे से परख नहीं लेता तब तक कोई जल्दीबाज़ी नहीं करेंगे।



माॅं:- अच्छा ठीक हैं। चल अब बाहर चलते हैं। सब मुॅंह फैलाए बैठे हैं तेरे शादी के लड्डू जो खाने हैं उन्हें। ही ही ही



दीप:-माॅं शादी का लड्डू तो मैं खाऊँगा उन्हें क्यूॅं मिलेगा। हां हां हां हां



दोनों माॅं बेटे हंसते हुऐ कमरे से बाहर आ जाते हैं। बाहर आकार सब के पास डायनिंग हाल में बैठ जाते हैं। दोनों माॅं-बेटे को बाहर आता हुआ देखकर। उनकी खिले हुऐ चेहरे को देखकर। घर के सदस्य ये जानें के लिऐ छटपटा रहें हैं की दीप के केस का किया फैसला आया हैं। किया वो जेल जानें को तैयार हैं या फिर उसे ताड़ीपाड़ करने की सजा मिली हैं।
 
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Update-2



पिछले एपिसोड में.....



माॅं:- अच्छा ठीक हैं। चल अब बाहर चलते हैं। सब मुॅंह फैलाए बैठे हैं तेरे शादी के लड्डू जो खाने हैं उन्हें। ही ही ही



दीप:-माॅं शादी का लड्डू तो मैं खाऊँगा उन्हें क्यू मिलेगा। हां हां हां हां



दोनों माॅं बेटे हंसते हुऐ कमरे से बाहर आ जाते हैं। बाहर आकार सब के पास डायनिंग हाल में बैठ जाते हैं। दोनों माॅं-बेटे को बाहर आता हुआ देखकर। उनकी खिले हुऐ चेहरे को देखकर। घर के सदस्य ये जानें के लिऐ छटपटा रहें हैं की दीप के केस का किया फैसला आया हैं। किया वो जेल जानें को तैयार हैं या फिर उसे ताड़ीपाड़ कराने की सजा मिली हैं।



अब आगे.........



निधि दीप की बहन जो सब के साथ बैठी थीं। अपनी मां और भाई का खिला हुआ चेहरा देखकर समझा जाती हैं कि जिस बात को कराने के लिऐ घर के सभी बड़े बुर्जुग आज इकट्ठा हुए हैं और उसके भाई ने उनकी बात मन ली हैं। अपनी बात को कन्फर्म कराने के लिऐ निधि बोलती हैं…..



निधि:- तो किया बकरा हलाल होने को तैयार हैं।



माॅं:- निधिधिधि चुप कर बदमाश। ऐसा नहीं बोलते बेटा।



निधि:- क्यू चुप करू? आखिर आप सब ने भईया को अपनी जाल में फंसा ही लिए। फांस गये भईया आप इनकी जाल में। अब ठेलते रहना जिंदगी भार शादी की पंचर गाडी को। ही ही ही हि।



निधि की बाते सुन कर सब हंसने लगाते हैं। दीप को भी हंसी आता हैं परंतु दीप अपनी हंसी को छुपाकर गुस्से का दिखावा करते हुऐ बोलता हैं।



दीप:- रुक निधि की बच्ची अभी तुझे बताता हूॅं।



निधि उठ कर भागती हैं।



पहले दाद के पास जाती हैं। वहां से फ़िर नाना के पास, नाना से नानी के पास, नानी से पाप के पास, पापा से दादी के पास। दीप भी निधि को पकड़ने के लिऐ एक-एक कार सब के पास गया। जब निधि देखती हैं की कोई भी दीप को नही रोक रही हैं तो अंत में निधि थक हारकर अपने माॅं के पास जाती हैं और माॅं के पिछे छुप जाती हैं। निधी को माॅं के पीछे छुपता हुआ देखकर दीप सोफे पे जाकर बैठ जाता हैं और ऐसा सो करता हैं जैसे मिलो भाग कर आया हैं और बहुत थक गया हैं।



माॅं:- बस करो तुम दोनो अपना ये लुकाछिपी का खेल देख निधि तेरे भईया कितना थक गये हैं जा उसको पानी लाकर दे।



निधि:- आप नहीं जानते भईया को वो थके नहीं हैं। भईया तो ड्रामा कर रहें हैं। मैं पानी लेकर उनके पास जाऊंगी तो भईया मुझे पकड़ लेंगे फिर……



माॅं:- फिर किया मरेंगे हैं ना बोल



निधि:- हाॅं में अपना सर हिलती हैं



माॅं:- तो फिर क्यू परेशान करती हैं मेरी बच्चे को, किया तू खुश नहीं हैं। तेरे भईया शादी कराने को तैयार हो गए।



निधि:- मैं खुश क्यू नहीं होऊंगी। में सबसे ज्यादा खुश हूं। आखिर मुझे ढेर सारी सोपिंग जो करने को मिलेगी ही ही ही ।



माॅं:- और कितनी सोपिंग करेंगी तेरी सारी रैक तो कपड़ों से भरी पड़ी हैं ।



दीप:- माॅं निधि की अलमारी भरी पड़ी हैं तो

किया हुआ। मैं दूसरी बनवा दूंगा। उसे जितनी शापिंग करनी हैं करे आखिर सब कुछ उसी का ही तो हैं।



निधि:- मेरे भईया कितने अच्छे हैं। आप बहुत बुरी हों।



माॅं:- रूक तुझे बताती हूं मैं कितनी बुरी हू।



निधी:- भईया बचाओ



कहकर डीप के पास जाकर बैठ जाती हैं।



माॅं:- देखो सब इस नौटंकी बाज की नौटंकी। बहुत शरारती हो गई हैं निधि तू।



निधि:- मैं तो पहले से ही शरारती हूं। आप को अब दिख रही हैं। ही ही हि हि



पाप:- हां तू तो पहले से ही थीं। अब ये सब छोड़ो आगे किया करना हैं ये बताओ।



निधि:- करना किया हैं। एक अच्छी सी लड़की ढूंढनी हैं और भईया की शादी करनी हैं। इतना भी नहीं समझते।



पाप:- अरे ओ समझदार की नानी मैं ये कह रहा हूं कि लड़की ढूंढेंगे कैसे। किसी ऑनलाइन पोर्टल से या किसी ब्रोकर के माध्यम से या किसी रिश्तेदार को कहेंगे की कोई अच्छी सी लड़की देखें। दीप की शादी करनी हैं।



दादा:- सबसे आसान और जल्दी वाला रस्ता अपनाते हैं। कोई ऑनलाइन पोर्टल से ढूंढते हैं वहां भी तो अच्छी सुशील और संस्कारी लड़की मिल जायेगी।



माॅं:- सुनिए पापा जी हमें कोई जल्दीबाजी नहीं करनी हैं। मेरा बेटा कोई मंदिर का दरवाजा नहीं हैं जो कोई भी घंटी इसके गले बांध दे। मेरे हीरे जैसी बेटे के लिऐ कोई परी जैसी खूबसूरत लड़की ढूंढेंगे।



निधि:- आप सब कहे तो मैं कुछ बोल सकता हूं।



दीप:- अरे बाप रे तू कब से अपनी बात कहने के लिऐ सब से इजाज़त मांगने लग गयी। ये सूरज अपने उगने का रस्ता तो नहीं भूल गया। ये चमत्कार कैसे हों गया।



निधि:- भईया ये आपकी फायदे की बात हैं। चलो कोई बात नहीं जब अपको सुनना ही नहीं हैं तो मैं भी नहीं बोलती।



ये बोला निधी अपना मुंह फुलाकर बैठ जाती हैं



माॅं:- अरे अरे मेरी बच्ची नाराज़ हों गईं। तेरे भईया तो मज़ाक कर रहे थे। चल जल्दी बता हम भी ते सुने ऐसी कौन-सी फायदे की बात हैं।



दीप:- अब बता भी दे ऐसी कौन-सी बात है। जो मेरे ही फायदे की हैं।



निधि:- अच्छा तो अब आप सब मुझे मक्खन लगा रहें हों। जाओ मैं नहीं बताती।



दीप:- तुझे कोई मक्खन क्यू लगाएंगे तू कोई ब्रेड या टोस्ट थोड़ी ना हैं जो तुझे मक्खन लगा कर खाएंगे ही हि ही ही।



निधि:- आप मेरी मज़ाक बना रहे हैं। इसका बदला तो मैं लेकर रहूंगी। देखलेना आप। हां



नाना:- लें लेना बदला मेरी बच्ची लेकिन पहले वो तो बता जो तू बताने बाली थीं।



निधि:-ओ मेरी सहेली राधा हैं ना उसकी…..



माॅं:- राधा ना बाबा ना एक तो उसकी उम्र काम हैं। ऊपर से नकचडी इतनी हैं की किया कहने। इस घर में एक नकचड़ी बहुत हैं। जिसे सम्हालते-सम्हालते मेरे बेटे को दिन में तारे नज़र आ जाते हैं। दूसरी आ गईं तो पता नहीं मेरे बेटे का किया हल होगा। ये नहीं चलेगा दूसरी हों तो बता।



निधि:- अरे राधा नहीं उसकी…. अपने किया कहा मैं नकचड़ी हूं । जाओ नहीं बताती इसके बाद तो बिल्कुल भी नही बताऊंगी।



माॅं:- ओय ड्रामेबाज़ ज्यादा ना नौटंकी मात कर जल्दी बता। नहीं तो कोई शॉपिंग-वापिंग नहीं करवाने दूंगी। समझा गईं ना।



निधि:- अच्छा-अच्छा बताती हूं। ये आपकी सुई बार-बार मेरी शॉपिंग पर आकर क्यू अटक जाती हैं। अपको मुझसे चिढ़ तो नहीं हैं कि भईया मुझे शॉपिंग करवाते हैं और अपको नहीं।



माॅं:- अरे मेरी माॅं मुझे माप कर और जल्दी बता वरना…….



निधि:- अच्छा बाती हूं। कोई दूसरा बम मत फोड़ देना ही ही ही ही।



निधि कि बाते सुनकर सब हंस देते हैं। क्युकी उसके आदत हि ऐसी हैं की माहौल कैसा भी हो वो अपनी बातों और नटखट पन से एक अलग हि शमा बंध देती हैं। निधि को ऐसे हंसता हुआ देखकर सब एक साथ बोलते हैं अब बोल भी दे जो बोला न हैं।



निधि:- मम्मी मैं राधा कि बड़ी बहन सुनिधि दीदी की बात कर रही हूं। वो बहुत अच्छी लड़की हैं। पढ़ी लिखीं भी हैं और भईया के मतलब की हैं।



माॅं:- तुझे कैसे पता कि वो अच्छी लड़की हैं।



निधि:- जब भी मैं उनके घर जाती हूं तो वो कितने प्यार से बोलते हैं। कभी कोई गलती हों जाए तो डांटती नहीं बल्कि अच्छे से समझा देती हैं। बाकी आप लोग देखो परखो। जैसा अपको ठीक लगें वैसा करो।



माॅं:- किया कहते हों आप सब।



दादा:- ठीक हैं बात चलाते हैं। वो लोग राजी हुऐ और हमे जैसी लड़की चाहिए वैसी हुईं तो कर देंगे रिश्ता पक्का वरना कोई और लड़की ढूंढेंगे।



पाप:- वो सब तो ठीक हैं। मैं किया कहता हूॅं। हमे पहले एक बार लड़की को देखना चाहिए फिर बात को आगे बढ़ाए तो ही बेहतर होगा।



माॅं:- तो आप किया सोच रहें हैं कि हम लड़की बिना देखें ही। उसकी शादी दीप से कर देंगे।



पाप:- मैं कब ऐसा कह रहा हूॅं। मेरे कहने का मतलब हैं कि पहले हम लड़की को कहीं बाहर देख लेते हैं या उसकी कोई फ़ोटो मिल जाती तो अच्छा होता।



माॅं:- ऐसा हैं तो करते हैं कुछ भिड़ते हैं कोई तिगडम।



निधि:- किया मम्मी आप भी न कुॅंऐ के पास बैठे के पानी ढूंढ रहीं हों।



निधि की ऐसी बातें सुनके सब उसे ऐसे ताकते हैं। जैसे निधि कोई अजूबा हो। सब को ऐसे ताकते हुऐ देखकर निधि बोलता हैं।



निधि:- ऐसे क्यू देख रहें हों? मैं कोई अजूबा नहीं हूॅं।



पाप:- अजूबा-वाजुबा छोड़ तू कहना किया चाहती हैं। ये बता।



निधि:- मैं तो आपकी समस्या का इलाज़ बता रहीं हूॅं। (निधि अपने फ़ोन में कुछ ढूंढ कर घर वालो के आगे रखकर) लो देखलो ये हैं फ़ोटो।



निधि अपने मोबाइल मे फ़ोटो दिखने लगता हैं। तभी दीप का फ़ोन बज उठता हैं। दीप थोडा दूर जाकर फ़ोन पे बात करता हैं। बात करने के बाद वहीं से माॅं को बोलता हैं।



दीप:-माॅं मैं ऑफ़िस जा रहा हूं। कुछ जरूरी काम आ गया।



माॅं:- इतना किया जरूरी काम हैं। फ़ोटो तो देख लेता।



दीप:- फ़ोटो आप लोग देख लो मैं बाद में देख लूंगा। अभी मेरा जाना जरूरी हैं।



दीप अपनी बात को कहकर बाहर निकलने लगाता हैं। तभी निधि दौड़कर आती हैं और कहती हैं……



निधि:- भईया मेरा शॉपिंग का किया होगा।



दीप:- करा दूंगा शॉपिंग आज नहीं तो काल करा दूंगा। शॉपिंग कहीं भागी नहीं जा रहीं हैं।



दीप ये कहकर अपनी गाड़ी में बैठ कर निकल जाता हैं और निधि अपना मुॅंह लटकाकर अपनी जगह आकर बैठ जाता हैं। निधि के लटके हुऐ मुॅंह को देखकर माॅं बोलता हैं…...



माॅं:- किया हुआ निधि ऐसे क्यों मुॅंह लटकाया हुआ हैं। उसने कहा हैं न बाद में करवा दे तुझे शॉपिंग। तो फिर क्यू जिद्द कर रहीं हैं।



निधि:- मैं कहां जिद्द कर रहा हूं। ओ भईया कुछ परेशान से लग रहे थे इसलिए…..



माॅं:- इसलिए तेरा मुॅंह लटक गया हां। (निधि के सर पर हाथ फिराकर) कितना फिक्र करता हैं अपनें भाई की हैं न।



निधि:- अपना सर हिलाकर हूं कहता हैं।



माॅं:- चल ठीक हैं बाद में उसे फोन करके पता कर लेंगे। अभी तू अपने मोबाइल की लॉक तो खोल दे। मोबाइल ऐसे हि दे दिए हम फ़ोटो कैसे देखें।



निधि:-(अपने सर पर हाथ मारकर) मैं भी कितना बड़ा बुद्धु हूं जो लॉक बिना खोले ही मोबाइल दे दिए ।



निधि अपने मोबाइल की लॉक खोलकर देता हैं। सब फ़ोटो देखकर अपनी-अपनी राय देने लगते हैं।



माॅं:- पापा जी ये लड़की तो बिल्कुल वैसी ही हैं। जैसी हमे दीप के लिऐ चाहिए। चहरे से कितनी मासूम दिखती हैं और खूबसूरत तो इतनी हैं कि किया ही कहना।



सभी घर वाले माॅं के हा में हां मिलाते हैं और कहते हैं। लड़की खूबसूरत हैं, दिखने में मासूम हैं और नाक नक्शा भी ठीक हैं। दीप और इसकी जोड़ी बहुत जमेगी।



माॅं:- बस हमें ये पता करना हैं कि ये लड़की नेचर कि कैसी हैं क्योंकि ऐसे मासूम दिखने वाली लड़की बहुत खतरनाक होती हैं। ये चहरे से कुछ दिखते हैं और इनके दिल में कुछ और ही होते हैं। बाकि खूबसूरत तो बहुत हैं अब पता नहीं ये मेकप का कमाल हैं या नेचुरल ब्यूटी हैं।



निधि:- मम्मी मैंने अपको सुनिधि दीदी की जो फ़ोटो दिखाई हैं। इसमें इन्होंने बिल्कुल भी मेकप नहीं कर रखा हैं और नेचर की बहुत अच्छी हैं



माॅं:- चलो ये लड़की तो एक पड़ाव में तो पास हों गईं हैं। निधि बेटा तू सिक्के की एक पहलू देख रहा हैं। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी होता हैं। मैं नहीं चहता की मेरा बेटा जिस दौर से गुजर हैं दुबारा उसी दौर से गुजरे। मैं जान बूझ के अपने बेटे को खाई मे नहीं धकेल सकता।



पापा:- ऐसी कौन-सी दौर से हमारा बेटा गुजरा हैं। जिसके बरे में न तुम बता रहीं हों न दीप कुछ बताता हैं।



निधि:- हां मम्मी ऐसा किया हुआ था भईया के साथ जो आप और भईया हमसे छुपा रहीं हों। हमे भी जानें का हक हैं। किया कहते हों आप सब "अरे बोलो न"।



दादा:- हां बेटी हमे भी तो बताओ।



दादी:- तुम किया छुपा रहीं हो बताओ।



नानी:- अगर तुम हमें अपना मानती हों तो हमसे कुछ नहीं छुपाओगी ।



नाना:- माना की दीप तुम्हारा बेटा हैं और उसपे तुम्हारा हक ज्यादा बनता हैं। लेकिन दीप मेरा नाती हैं और इस नाते से हमारा भी उसपे कुछ हक बनता हैं। इस हक से मैं तुमसे पूछता हू की दीप के साथ किया हुआ था जो तुम हमसे छुपा रहीं हों।



माॅं:- जितना हक दीप पे मेरा हैं। उतना ही हक आप सब का और इसलिए उसके बारे में जानें का हक आप सब को हैं। लेकिन जो आप जाना चाहती हैं वो में नहीं बता सकता मैं मजबूर हू। आप सब मेरी मजबूरी को समझे।



पापा, दादा-दादी और नाना-नानी सब एक साथ बोलते हैं। ऐसी किया मजबूरी हैं जो तुम हमें बता नहीं सकती।



निधि- हां मम्मी आपकी ऐसी किया मजबूरी हैं जो आप हमें भईया के बारे में नहीं बता सकती। बताओ न मम्मी।
 
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पिछले अपडेट में.......

माॅं:- जितना हक दीप पे मेरा हैं। उतना ही हक आप सब का और इसलिए उसके बारे में जानें का हक आप सब को हैं। लेकिन जो आप जाना चाहती हैं वो में नहीं बता सकतीं हूॅं। मैं मजबूर हूॅं। आप सब मेरी मजबूरी को समझे।

पापा, दादा-दादी और नाना-नानी सब एक साथ बोलते हैं। ऐसी किया मजबूरी हैं जो तुम हमें बता नहीं सकती।

निधि- हाॅं मम्मी आपकी ऐसी किया मजबूरी हैं जो आप हमें भईया के बारे में नहीं बता सकती। बताओ न मम्मी।

अब आगे.......

माॅं अपनी ही सोच मे ही डूबी हुईं थीं कि सब फ़िर से बोल पड़ते हैं कि इसमें इतना किया सोचना अगर तुम बताना नहीं चाहती, तो मत बताओ।

माॅं:- नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं हैं। दरअसल दीप ने मुझसे वादा लिया था की उसके साथ जो कुछ भी हुआ हैं। उसके बारे में मेरे और दीप के अलावा किसी और को पता ना चले। फिर भी अगर आप जाना ही चाहते हैं तो आप सब दीप से ही पुछ लेना।

दादा :- वो तो हम बाद में पुछ लेंगे लेकिन ये बताओ कि इस लड़की का करना किया हैं।

माॅं:- करना किया हैं। फ़ोटो देखके हम सब को लडकी पसंद आ गईं। एक बार उसके घर चलकर उसे सकसत देख लेते हैं। फिर लड़की की बरे में मुझे कुछ पता करनी हैं। अगर सब कुछ सही रहा तो ही बात आगे बढ़ाएंगे।

नाना:- जो कुछ भी करना हैं थोडा जल्दी करना वरना इस बरखूरदार का कब मुड़ बदल जाएं पता नहीं।

माॅं:- नहीं बदलेगा उसका मुड़ उसने अपने मन से शादी करने का फैसला लिया हैं।

निधि:- चलो एक बला तो टली अब ये बताओ की हम सुनिधि दीदी को देखने कब जाएंगे।

माॅं:- सुनिधि को देखने कब और कैसे जायेंगे ये मैं बाद में सोच कर बताऊंगी। तू ये कौन-सी बला टलने की बात कर रही हैं।

निधि:- यहीं की भईया बाद में शादी करने को मना नहीं करेगें।

निधि की बात सुनकर सब के चहरे पर मुस्कान आ जाती हैं। तभी नानी बोलती हैं।

नानी:- अरे कोई दीप को फ़ोन कर पाता तो करो ऑफिस में ऐसा किया हुआ हैं जो इतनी जल्दी और इतनी टेंशन में गया हैं।

माॅं:- हां निधि फ़ोन तो लगा पता तो कॅंरू किया बात हों गईं हैं।

निधि फ़ोन लगाती हैं। पूरी घंटी जानें के बाद भी कोई फ़ोन नहीं उठता हैं तो…

निधि:- मम्मी भईया फ़ोन नहीं उठा रहें हैं। पता नहीं किया कर रहें हैं।

माॅं:- कोई नहीं दुबारा लगा किया पाता अब उठा ले।

निधि दुबारा, तिबारा, चौबारा फ़ोन लगातीं हैं लेकिन कोई जवाब ही नहीं मिलता देखकर निधि परेशान हों जाती हैं।

माॅं:- निधि इतना परेशान होने की जरूरत नहीं हैं। काम में बिजी होगा। जब अपना फ़ोन देखेगा तो देखना पक्का फ़ोन करेगा।

निधि:- इतना किया काम मे बिजी होना की फ़ोन का ही सूद न रहें।

माॅं:- अच्छा-अच्छा ठीक हैं इतना नाराज़ होने की जरुरूत नहीं हैं। अब जाओ सब आराम कर लो मैं भी थोड़ी देर आराम करना चाहतीं हूं।

निधि बेमन से दुबारा फोन लगाते हुऐ आपने कमरे को जाती हैं। निधि की जानें के बाद सब अपने अपने कमरे में जाते हैं। माॅं पता नहीं किया सोचती हैं। सब के जानें के बाद अपनी सोच को विराम देकर आराम करने अपने कमरे में चली जाती हैं।

अब चलाते हैं दीप की ऑफिस। शुरू वहां से करते हैं जब दीप घर से निकला था।

दीप माॅं को बोलकर घर से बाहर आता हैं और अपना गाड़ी लें ऑफिस की तरफ चाल देता हैं। जब तक दीप ऑफिस पहुंचता हैं। तब तक दीप की कम्पनी के बरे में जान लेते हैं। दीप की कम्पनी का नाम D&N Server Security Pvt. Lmt. हैं। दीप की कम्पनी सॉफ्टवेयर और एप डेवलॉप करने के साथ-साथ सर्वर सिक्योरिटी का काम भी करता हैं।

पुराने जमाने में कंपनियां, बैंक्स और देश की सरकारी विभागों को अपने-अपने डाटा रिकॉर्ड को मोटी-मोटी फाईलों में सुरक्षित रखा करती थीं। परंतु ये कागज़ के टुकड़े कब तक सुरक्षित रहें। इन्हें कभी बारिश की नमी नुकसान पहुंचाए। बारिश की नमी से बच भी गए। तो किया हुआ हमरे दफ्तरों और घरों में एक अथिति बिना बुलाए ही आ जाते हैं। जी में गणपति जी की वाहन मूषक राज की बात कर रहा हूं। मूषक राज के वंशज हमरे घरों और दफ्तरों में बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इनको पता नहीं कागजों से किया दुश्मनी हैं जो ये अपने छोटे-छोटे दांतो से कुतरकर खराब कर देते हैं। ये स्टोर रूम में रखे मोटी-मोटी फाईलों को भी कुतरकर कबाड़ का ढेर लगा देते हैं

मूषक राज के वंशज के साथ-साथ एक प्राणी और हैं जो इन मोटी-मोटी फाईलों को बहुत अधिक मात्रा में नुकसान पहुंचाते हैं। अरे महाराज मैं दीमक नमक किट की बात कर रहा हूं। जब ये दोनों प्राणी इन कंपनीज, बैंक्स और सुरक्षा विभागों के डाटा रिकॉर्ड को नुकसान पहुंचाते हैं तो। तो इन कंपनीज, बैंक्स और सुरक्षा विभागों को भी बडी मात्रा में नुकसान पहुंचता हैं। उनकी बहुत सी गुप्त जानकारियां इनके माध्यम से विलुप्त कर दी जाती हैं। साथ ही इन डाटा रिकॉर्ड को खंगालकर जानकारियां निकलने में बहुत अधिक समय और पैसे की बरबादी होती हैं।

तो इस समस्या से बचने के लिऐ आधुनिक युग में एक सरल और सुरक्षित तरीका निकाला गया। जी वो तरीका हैं डिजिटलाइजेशन। इन कंपनीज, बैंक्स और सुरक्षा विभागों की जानकारियों को कंप्यूटर के माध्यम से डिजिटलाइज करके क्लॉउड स्टॉरेज में सुरक्षित रखा जाता हैं। इस तरीके में सुरक्षा के साथ-साथ किसी भी जानकारी को जल्दी और आसानी से निकला जा सकता हैं। बस कीबोर्ड की एक क्लिक और सारी जानकारी आपके सामने। जानकारी भले ही कितना पुराना हों बस आपके स्टॉरेज में सुरक्षित होना चाहिए।

तो इन तरीकों का इस्तेमाल करने के लिऐ इंटरनेट का प्रयोग किया जाता हैं। जहां इंटरनेट का इस्तेमाल होता हैं वहां भी असुरक्षा का भय बना रहता हैं। क्यूंकि इंटरनेट के माध्यम से एक डिजिटल चूहा घूमता रहता हैं। जो सेंध मारकर सारी गुप्त जानकारियां पाल भार में चुरा लेता हैं। जिससे इन संस्थाओं को भरी नुकसान उठाना पड़ता हैं। इस समस्या से बचने के लिऐ इन संस्थाओं को अलग-अलग सर्वर में बाट दिया गया ताकि इनकी सुरक्षा पुख्ता तरीके से किया जा सकें और हैकर के अटैक से बचाया जा सकें। दीप की कम्पनी इन संस्थाओं की सर्वर को सुरक्षित कराने के साथ-साथ हैकिंग अटैक से भी बचाता हैं।

दीप ऑफिस जाकर अपने केबिन में बैठ जाता हैं। दीप के केबिन की सामने की दीवाल पे एक स्क्रीन लगी हुई हैं। स्क्रीन पे कुछ देर देखने के बाद अपने सामने रखी टेलीफोन से एक फोन करता हैं। फोन करने के कुछ देर बाद ही कोई आकर दरवाजा खटखटाता हैं। ठाक्क, ठाक्क, ठाक्क

दीप:- अंदर आ जाइए।

अंदर आने वाला शख्स एक 45 साल का आदमी हैं। जो दीप की पीए हैं। जिनका नाम रमेश गुप्ता हैं और ऑफिस में सब उन्हें गुप्ता जी के नाम से बुलाते हैं। गुप्ता जी अपने काम में बहुत एक्सपर्ट हैं। गुप्ता जी अपना काम बहुत ही ईमानदारी, मेहनत और लगन से करते हैं। गुप्ता जी की इन्ही खासियत को देखते हुए दीप ने उन्हें अपना पीए बनाया हैं। गुप्ता जी अंदर आकर….

गुप्ता जी:- सर अपने बुलाया।

दीप:- अंकल जी आप बैठिए फिर बात करते हैं।

गुप्ता जी:- सर आपको कितनी बार कहा हैं की आप मुझे अंकल जी न कहा कीजिए फिर भी आप सुनते ही नहीं हैं।

दीप:- क्यूॅं? आपको ऑफिस की लड़कियां लाइन नहीं देगी इसलिए।

गुप्ता जी:- नहीं, नहीं! आपको ऐसा लगता हैं कि में इसलिए ऑफिस आता हूं।

दीप:- नहीं तो! फिर वजह किया हैं जो आप मुझे अंकल जी कहने से मना करते हैं।

गुप्ता जी:- सर आपको पता नहीं हैं।

दीप:- नहीं ! आप बताएंगे तभी न मुझे पता चलेगा। क्यूॅं आप मुझे अंकल जी कहने से मना करते हैं?

गुप्ता जी:- सर आप इस कंपनी के ऑनर हैं और में आप के यहां काम कराने वाला एक मुलाजिम हूॅं। इसलिए मुझे अच्छा नहीं लगता की आप मुझे अंकल जी कहे। आप मुझे मेरे नाम से भी बुला सकते हैं।

दीप:- आप का कहना सही हैं और आप मुझसे उम्र में बहुत बड़े हैं। इसलिए मैं आपको अंकल जी कहकर बुलाता हूॅं।

गुप्ता जी:- सर आप एक अच्छे इंसान हैं। आपको पता है कि कैसी किसी की कदर करनी चाहिए। कैसे अपने से उम्र में बड़े लोगों को इज्जत देकर बात करनी चाहिए। इससे आपको मिले संस्कारों का पता चलता हैं। मुझे अच्छा लगाता हैं जब आप मुझे अंकल जी कहते हैं। लेकिन मैं अभी उतना बूढ़ा नहीं हुआ हूॅं। इसलिये आप मुझे मेरे नाम से ही बुलाया कीजिए।

दीप:- ठीक हैं! अंकल जी।

गुप्ता जी:- फिर से… नाराज़ होते हुए।

दीप:- ठीक हैं! नाराज़ क्यों होते हो? गुप्ता जी। अब ठीक हैं न।

गुप्ता जी:- ठीक हैं सर। आप मुझे ऐसे ही नाम से बुलाया कीजिए।

दीप:- मैं आपको ऑफिस में नाम से बुला लूंगा लेकिन ऑफिस से बहार नहीं। ये बात आप को माननी पड़ेगी।

गुप्ता जी:- आपके बहार जैसा मन करे वैसे ही बुलाए मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं।

दीप:- डॉन! आपने ने मुझे इतनी जल्दी-जल्दी ऑफिस क्यो बुलाया। फ़ोन पर भी कुछ नहीं बताया।

गुप्ता जी:- सर हमारे सर्वर पर हैकिंग अटैक हुआ हैं।

ये सुनते ही दीप अपनी कुर्सी छोड़कर खड़े हों जाते हैं और बोलते हैं….

दीप:- क्या? पर कैसे?

गुप्ता जी:- किया सर आप बच्चों जैसी बात कर रहें हैं। जैसे होता हैं वैसे ही हुआ हैं।

दीप:- मेरे कहने का मतलब हैं कि इतना सिक्योर सिस्टम होने के बाबजूद ये कैसे हो गया ?

गुप्ता जी:- सर आप भी एक हैकर हो और आप ये भलीभाती जानते हैं कि कितना भी सिक्योर सिस्टम हो ये हैकर लोग कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं।

दीप:- नुकसान कितना हुआ हैं कुछ पता चला हैं।

गुप्ता जी:- कुछ ख़ास नुकसान तो नहीं हुआ हैं और ये सिर्फ और सिर्फ आपकी दूरदर्शी सोच की वजह से।

दीप:- आप कहना क्या चाहते हैं। मैं कुछ समझा ही नहीं पा रहा हूं।

गुप्ता जी:- सर आप कभी-कभी ऐसा बिहेव करते हों जैसे आप कुछ जानते ही नहीं पर ऐसा कुछ हैं नहीं।

दीप:- अहा गुप्ता जी (थोडा खिसिया कर) आप सीधे-सीधे बोलो न कहना किया चाहते हो।

गुप्ता जी:- सर मैं ये कहना चहता हूॅं कि आप ने जो अल्गुरिधाम डेवलॉप किया था उसी के वजह से हमरी कंपनी का डाटा चोरी होने से बच गया हैं।


दीप ने ऐसा किया बनाया था और क्यूॅं बनाया था इसके बरे में जान लेते हैं। दीप ने जब अपनी कंपनी को शुरू किए था। उस समय दीप की कम्पनी सिर्फ सॉफ्टवेयर और ऐप्स बने का काम करता था। दीप की कम्पनी को बडी-बडी कंपनियां कॉन्ट्रेक्ट दिया करते थे। क्यूंकि दीप की कम्पनी काम रेट पे , दूसरी कंपनियों से बेहतर सॉफ्टवेयर और ऐप्स बनाकर दिया करता हैं। सस्ते और अच्छे काम की वजह से दीप की कम्पनी दिन पर दिन तरक्की करती गई और दीप की कम्पनी देश की टॉप सॉफ्टवेयर निर्माता कम्पनियों में शुमार हों गईं। दीप की कम्पनी की इस तरह की शुमारी को देखते हुए एक बैंक से दीप की कम्पनी में फोन किया गया और उन्हें बताया गया की उनके सॉफ्टवेयर में बार बार दिक्कत आ रहीं हैं तो किया उनकी कंपनी के इंजीनियर आकर , उनको इस समस्या से निकलने में मदद कर दे। जबकि उस बैंक की सॉफ्टवेयर को दूसरी कम्पनी ने बनाया था। ये जानते हूऐ भी दीप ने सोचा उसे एक और बड़ा काम मिल सकता हैं अगर वो उनकी मदद कर देता हैं । इसलिए दीप अपनी टीम के साथ उस बैंक में पहुंच गए।

दीप और दीप की टीम ने जब बैंक की सॉफ्टवेयर और सर्वर की जांच की तो उन्हें पता चला की सॉफ्टवेयर में कुछ कमी हैं जिसकी वजह से सॉफ्टवेयर ऑपरेट होने में दिक्कत कर रहा हैं और सर्वर जांच करने पर उन्हें पता चला की सर्वर में भी कुछ खामी हैं। जिसकी वजह से बैंक की सर्वर को कभी भी हैक किया जा सकता हैं। दीप ने जब बैंक को सारी जानकारी दी तो बैंक से दीप को उनकी सॉफ्टवेयर को दुबारा बनाने के लिया कहा और बैंक सर्वर को भी सिक्योर करने का काम दीप की कम्पनी को दिया। दीप एक नया काम मिलने की सोच कर आया था जो की उसे मिला चुका था। वो काम सर्वर सिक्युरिटी का था। दीप कुछ देर विचार करने के बाद बैंक से दोनों कामों के लिऐ कॉन्ट्रेक्ट कर लिया। वापिस आकर दीप ने सर्वर सिक्युरिटी से रिलेटेड सारी अरेंजमेंट करने के बाद अपना नया काम शुरू कर दीया।


दीप की कम्पनी सर्वर सिक्युरिटी के काम में बड़ी बड़ी कंपनियों को मत देकर आगे बड़ने लगा। इसके पिछे वजह ये थी कि एक बेहतर टीम जो उसके साथ काम करता हैं, दिन-रात की मेहनत और समय-समय पर अपने सिस्टम को अपग्रेड करते रहना। जिससे हैकिंग का खतरा न के बराबर हों जाता हैं। दीप की कम्पनी जैसे- जैसे तरक्की की सीढ़ी चढ़ती गई वैसे-वैसे दीप की दिमाग में एक बात घूमती रहीं कि चाहें कितना भी अच्छा सॉफ्टवेयर बना लो उसको कितना भी अपग्रेड कर लो। कितना भी अच्छा सिस्टम लगा लो उसको नए से नए तरीके से अपग्रेड कर दो फिर भी हैकरों से बचना पॉसिबल नहीं हैं। ये हैकिंग करने का कोई न कोई रास्ता ढूंढ ही लेंगे।
 
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दीप की कम्पनी सर्वर सिक्युरिटी के काम में बाड़ी बाड़ी कंपनियों को मत देकर आगे बड़ने लगा। इसके पिछे वजह ये थी कि एक बेहतर टीम जो उसके साथ काम करता हैं, दिन-रात की मेहनत और समय-समय पर अपने सिस्टम और सॉफ्टवेर को अपग्रेड करते रहना। जिससे हैकिंग का खतरा न के बराबर हों जाता हैं। दीप की कम्पनी जैसे-जैसे तरक्की की सीढ़ी चढ़ती गई वैसे-वैसे दीप की दिमाग में एक बात घूमती रहीं कि चाहें कितना भी अच्छा सॉफ्टवेयर बना लो उसको कितना भी अपग्रेड कर लो। कितना भी नए से नए सिस्टम या गैजेट इस्तेमाल कर लो, फिर भी हैकरों से बचना पॉसिबल नहीं हैं। ये हैकिंग करने का कोई न कोई रास्ता ढूंढ ही लेंगे।


अब आगे.......

दीप इस समस्या से बचने के लिऐ कुछ ऐसा अल्गुरिदाम बनाने में लगा हुआ था कि कभी सर्वर हैक हों भी जाए तो डाटा चोरी होने से बच जाए। दीप अकेले ही इस अल्गुरिदाम को बनाने में लग गया। अकेले इसलिए क्योंकि पैसों की लालच बहुत बुरी बला हैं। कब कोई पैसों के आगे झुक जाए ये कहना मुस्किल हैं चाहें वो आपका कितना भी विश्वास पात्र बंदा ही क्यूॅं न हों। दीप इस मामले में कोई भी रिस्क नहीं लेना चहता था। क्योंकि दीप की कम्पनी पे भरोसा करके बहुत से कम्पनी के ऑनर रात में चैन की नींद सोते हैं। दीप की माॅं दीप को हमेशा एक बात बताती रहती हैं कि किसी का भरोसा खुद पे से टूटने मत दो क्योंकि लोग आप पे भरोसा तभी करते हैं जब आप उसके काबिल होते हैं।

दीप अपने दिन-रात की अथक प्रयास और काबिलियत के दम पे एक ऐसा अल्गुरिदाम तैयार कर लिया। जिससे कभी भी अगर उसके सर्वर के साथ किसी भी तरह का कोई भी छेड़छाड़ होता हैं तो ये अल्गुरिदाम तुरंत एक्टिव होकर सर्वर को ऑफलाइन कर देगा। यानी इंटरनेट कनेक्शन को डिस्कनेक्ट कर देगा। जब इंटरनेट कनेक्शन डिस्कनेक्ट हो जायेगा तो हैकर का दिया हुआ कमांड वर्क ही नहीं करेगा और सर्वर हैक ही नहीं होगा। जब सर्वर हैक नहीं होगा तो सारी गुप्त जानकारियां चोरी होने से बच जायेगा। दीप ने आपने अल्गुरिदाम को अपने सर्वर पर अपलोड कर दिया। ये बात दीप और उसके पीए गुप्ता जी के अलावा किसी और को नहीं पाता था। इसी अल्गुरिदाम की बात गुप्त जी दीप को बता रहा था। अब चलाते हैं पर्सेंट टाइम में दीप के ऑफिस।

गुप्ता जी:- सर मैं ये कहना चहता हूं कि आप ने जो अल्गुरिधाम डेवलॉप किया था उसी के वजह से हमरी कंपनी का डाटा चोरी होने से बच गया हैं।

दीप:- हां गुप्ता जी मैं अगर उस समय इस बरे में न सोचा होता तो आज हमें बहुत बड़ा नुकसान हो जाता और हमारे साथ जुड़ी कंपनियों का भी। आगर ऐसा हों जाता तो मेरी कम्पनी की रिपोटेशन खराब हों जाती और मेरी की हुई मेहनत मिट्टीपालित हों जाती।

गुप्ता जी:- ऐसा कैसे हों जाता जब अपने पहले से ही तैयारी कर रखी थी।

दीप:- ( मुस्कुराकर) गुप्ता जी अब आप जाइए। मैं थोड़ी देर में सर्वर रूम जाता हूॅं और अपनी देखरेख में सारी काम करवाता हूॅं।

गुप्ता जी:- ठीक हैं सर मैं भी सर्वर रूम में जाता हूॅं।

ये कहकर गुप्त जी दीप की केबिन से निकलकर सर्वर रूम की ओर चल देता हैं। दीप अपने केबिन में बैठे कुछ सोच रहा था। दीप के हाथ में एक पेन था जिसे वो घुमा रहा था। ये दीप की आदत हैं कि जब भी दीप किसी बात को गहराई से सोचता हैं तो वो पेन को अपने हाथ में लेकर घूमता हैं। दीप कुछ देर पेन को घुमाते हुए सोचता हैं फिर अपने सोच को विराम देकर अपने केबिन से निकलकर सर्वर रूम की और चल देता हैं। दीप पेन को घुमाते हुए किया सोच रहा था ये तो दीप ही जानें। पर यहां से दूर एक रूम मे कुछ ऐसा हो रहा हैं। जिसके बरे में जाना भी जरूरी हैं। तो जब तक दीप सर्वर रूम जाता हैं तब तक हम वहां से भी घूम आते हैं।

ये रूम भी किसी छोटा सर्वर रूम से कम नहीं हैं। जिसकी सामने की दीवाल पे एक बाड़ी सी स्क्रीन लगी हैं। स्क्रीन के साथ कई तरह के डिवाइस कनेक्ट किया हुआ हैं। पाता नहीं कौन-कौन से डिवाइस कनेक्ट हैं एक लैपटॉप, एक डेस्कटॉप, एक मोबाइल, एक टैबलेट और कुछ मोबाइल जैसे दिखने वाले डिवाइस कनेक्ट किया हुआ हैं। रूम मे एक लड़का बैठा हुआ स्क्रीन को देखते हुए कुछ काम कर रहा हैं। लड़के से कुछ दूरी पर एक खूबसूरत सी लडकी बैठी हुईं हैं। लडकी ने ऐसे कपड़े पहन रखी हैं जिसे पहनना और न पहनना एक बराबर हैं। क्योंकि कपड़े इतने छोटे हैं कि बदन के जिस पार्ट को ढकने के लिऐ कपड़े पहने जाते हैं वो पार्ट ये कपड़े ढक ही नहीं पा रही है। खैर छोड़ो ये लडकी की मर्जी हैं कि वो अपने बदन के कौन से पार्ट ढके और कौन सी पार्ट दिखाए। लड़का और लडकी कुछ बातें कर रही हैं किया बाते दोनों कर रहें हैं ये सुनते हैं।

लडकी:- कब से खटपट किए जा रहें हों, कुछ करते क्यूॅं नहीं।

लड़का:- रोमा मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूॅं। कुछ टाईम ओर लगेगा।

लड़के की जुबान से अपना नाम सुनते ही रोमा का पारा चढ़ जाती हैं और अपनी हाई वोल्टेज आवाज में बोल पड़ती हैं।

रोमा:- किया बोला "रोमा" जी, किया तेरा बाप लगाएगा।

लड़के को रोमा का इस तरह बोलना गवारा नहीं होता और तिलमिलाकर बोल पड़ता हैं।

लड़का:- ये किया बेहूदगी हैं, "रोमा" तमीज से बात करो।

रोमा:- तमीज तुम भूल रहें हो मैं नहीं, "मि. जॉनी"।

जॉनी:- वो कैसे, "रोमा"।

जॉनी के मुंह से फिर से अपना नाम सुनकर रोमा और ज्यादा भड़क जाती हैं। रोमा अपनी शरीर की पूरी ताकत लगाकर, चीखते हुए बोलती हैं।

रोमा:- फिर से रोमा, "जी या मैडम" कौन बोलेगा। एक बार बोलने से समझ नहीं आती।

रोमा के इस तरह के बर्ताव को देखकर लड़का फिर से तिलमिला उठता हैं। पर खुद को शान्त करते हुऐ नर्म स्वर में बोलता हैं।

जॉनी:- रोमा जी आपको हुआ किया हैं। आप मेरे साथ ऐसा बिहेव क्यूॅं कर रहीं हों।

रोमा:- वो इसलिए कि तू मेरे लिऐ काम करता हैं और इस काम के बदले मैं तुझे पैसा और बहुत कुछ देती हूॅं। मैं तेरी बीबी या GF नहीं हूॅं , जो तू मुझसे इस तरह बोले समझा।

रोमा एक घमंडी और साइको टाइप की लडकी हैं। रोमा को लगाता हैं की वो अपने जिस्म की दम पर कभी भी और किसी से , कोई भी काम करवा सकती हैं। रोमा कब किसके साथ कैसा व्यवहार करती हैं। उसे खुद पता नहीं होता हैं। रोमा के साथ कोई गलत व्यवहार करता हैं तो रोमा उससे बदला लेने के लिऐ कुछ भी कर सकती हैं और ऐसे में आगर कोई उसके नजरों में गिर जाए तो वो कितनी भी सफाई दे ले, जिन्दगी भर रोमा की नजरों में गिर हुआ ही रहेगा। ये रोमा के बरे मैं थोड़ी सी जानकारी हैं। बाकि आगे कहानी के हिसाब से बता दूंगा।

जॉनी:- मैडम जी ये सब तो ठीक हैं। लेकिन हमने कल रात जो किया वो…..

जॉनी की बात को सुनकर रोमा अपनी चढ़ी हुई पारा को नीचे लता हैं और एक कुटिल मुस्कान देकर बोलना शुरू करती हैं।

रोमा:- ओह हों कल रात मैं तेरे साथ सो गई, तूने इसको शिरियस्ली ले लिया।

जॉनी:- अपना सर हिलाकर हाॅं में जवाब देता हैं।

रोमा:- जॉनी तू मेरा काम करता रहें, जब तक तू मेरा काम करता रहेगा तुझे पैसे और रोज रात को मजे, दोना मिलता रहेगा। इसे आगे कुछ नहीं।

जॉनी, रोमा की बात सुनकर मन ही मन रोमा को गली देते हुऐ सोचता हैं साली बाड़ी डेंजर किस्म की लडकी हैं। अपना काम निकलने के लिऐ किसी के भी साथ सो जायेगी। चाल बेटा जॉनी तेरे तो मजे हैं। पैसे और लडकी दोनों मिल रही हैं। लडकी हॉट और सेक्सी हैं तो जब तक गाड़ी चलती हैं चला ले बाकी बाद में देखी जायेगी।

जॉनी को सोच में डूबा हुआ देखकर रोमा झिड़ककर जॉनी की सोच को भंग करता हुआ बोलती हैं।

रोमा:- सपने की दुनियां से बहार निकाल और अपने काम पे ध्यान दे। ज्यादा सपने देखना अच्छी बात नहीं हैं।

रोमा की बातों को सुनकर जॉनी रोमा की ओर देखकर एक मस्त स्माइल देता हैं और अपने काम में लग जाता हैं। जॉनी को अभी कुछ ही समय, काम करते हुए हुआ था कि रोमा फिर से अपनी नाक काम के बीच में घुसा देती हैं।

रोमा:- तू किया कर रहा हैं "जॉनी " कितनी देर और लगाएगा।

जॉनी:- मैडम ये हैकिंग हैं। कोई गुड्डे-गुड़ियों का खेल नहीं जो चुटकी बजाते ही हो जाएगा।

रोमा:- तू तो अभी कह रहा था, सर्वर हैक हो गया हैं फिर किया हुआ।

जॉनी:- मैडम पता नहीं क्या हुआ ? हमारा कनेक्शन उनके सर्वर से टूट गया हैं और दुबारा कनेक्ट ही नहीं हों पा रहा हैं।

रोमा:- पर ये हुआ कैसे?

जॉनी:- पता नहीं मैडम ये हुआ कैसे कुछ समझा ही नहीं आ रहा हैं।

जॉनी की बात को सुनकर रोमा का पारा फिर से चढ़ जाता हैं और रोमा गुस्से में जॉनी पर बरस पड़ती हैं।

रोमा:- तुझे कुछ आता भी हैं या फ़िर ऐसे ही बड़ी-बड़ी फेकता हैं।

अपने काम की बुराई सुनकर जॉनी का पारा भी चढ़ जाता हैं और जॉनी भी रोमा पर बरस पड़ता हैं।

जॉनी:- मैडम आप मेरे काम की तौहीन कर रहें हैं। आप जानते हैं हम जिसकी सर्वर को हैक कर रहें हैं। उसका नाम दीप हैं। उसकी गिनती दुनियां के टॉप हैकारो में किया जाता हैं। दीप अपना काम ऐसे चोरी करने के लिऐ नहीं करता हैं बल्कि दूसरो की डाटा सुरक्षित करने के लिऐ करता हैं।

जॉनी की बाते सुनकर रोमा का पारा इतना चढ़ जाती हैं कि उसका थर्मामीटर ही टूट जाती हैं और रोमा "जॉनी" पे आग का गोला बरसाने लगाती हैं।

रोमा:- मैं जानता हूॅं वो कौन हैं साला पैसा मेरा, और जिस्म मेरा और गुणगान उसका कर रहा हैं।

जॉनी:- मैडम मैं जो कुछ भी बोल रहा हूॅं वो सच हैं।

रोमा दीप की तारीफ सुनकर बर्दास्त नहीं कर पाती हैं। रोमा की आंखे गुस्से में लाल हो जाती हैं। रोमा की आंखों को देखकर ऐसा लगाता हैं कि रोमा की आंखों से अंगारे निकलकर जॉनी को स्व: कर देगा। रोमा का गुस्सा इतना बड़ जाती हैं कि रोमा चीखते हुए जॉनी को सुनने लगाती हैं।

रोमा:- "नमकहराम " रात भर बिस्तर पर धमाचौकड़ी मेरे साथ मचाई और जब काम करने की बारी आई तो अंगूठा दिखा रहीं हैं। जा तू तेरे बस की बात नही हैं।

जॉनी रोमा की बाते सुनकर सोचता हैं कि ये तो पगला गयी हैं। आगर इसने मुझे भगा दिया तो लडकी और पैसे दोनों, मेरे हाथ से चला जायेगा। मैं ऐसा नहीं होने दे सकता, इसे मानना होगा। जॉनी मामले को बिगड़ता हुआ देखकर। रोमा को मानने के लिऐ बोलता हैं।

जॉनी:- मैं एक बार और कोशिश करके देखता हूॅं। इस बार पक्का काम हों जायेगा।

रोमा:- जरूरत नहीं हैं। ये पकड़ अपने पैसे और जा यहां से।

जॉनी रोमा के दिए पैसे पकड़ते हूऐ। बोलता हैं।

जॉनी:- मैडम आप मेरे साथ जो कर रहे हैं ये ठीक नहीं हैं। आपको इसके लिऐ बाद में पछताना पड़ेगा।

रोमा:- तू भाग यहां से नहीं तो तेरी तीसरी टांग में ऐसी लात मारूंगी कि न रहेगा डंडा न बजेगा डंका।

जॉनी रोमा की बाते सुनकर अपनी तीसरी टांग को बचाते हुऐ वहां से भाग जाता हैं ये सोचते हुए कि तीसरी टांग रहेंगी तो इसके जैसी और लडकी मिल जायेगी।

जॉनी के वहां से जाते ही रोमा चीखते हुए फर्श पे बैठे जाती हैं और बोलती हैं।

रोमा:- मैं तुझे नहीं छोडूंगी दीप, तुझसे बदला लेकर रहूंगी। तुझे बर्बाद करके छोडूंगी।

ये सारा किस्सा तब होता हैं जब दीप की सर्वर हैक होने से ऑफलाइन हों जाता हैं और जॉनी का कनेक्शन टूट जाता हैं । जॉनी बार बार हैक करने की कोशिश करता हैं। जब जॉनी से नहीं होता हैं तब जॉनी और रोमा के बीच ये झड़प होती हैं।


अब देखना ये हैं की रोमा आगे किया करती हैं। जॉनी को रोमा द्वारा अपमानित किए जानें पर जॉनी किया करेगा, किया जॉनी अपने अपमान का बदला लेगा या नहीं ये तो आगे की कहानी में पता चलेगा। अब चलाते हैं दीप की कम्पनी जहां दीप अपने सर्वर रूम में पहुंच गया हैं।
 
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रोमा:- मैं तुझे नहीं छोडूॅंगी दीप, तुझसे बदला लेकर रहूॅंगी। तुझे बर्बाद करके छोडूंगी।


ये सारा किस्सा तब होता हैं जब दीप की सर्वर हैक होने से ऑफलाइन हों जाता हैं और जॉनी का कनेक्शन टूट जाता हैं । जॉनी बार बार हैक करने की कोशिश करता हैं। जब जॉनी से नहीं होता हैं तब जॉनी और रोमा के बीच ये झड़प होती हैं।



अब देखना ये हैं की रोमा आगे किया करतीं हैं। जॉनी को रोमा द्वारा अपमानित किए जानें पर जॉनी किया करेगा, किया जॉनी अपने अपमान का बदला लेगा या नहीं ये तो आगे की कहानी में पता चलेगा। अब चलाते हैं दीप की कम्पनी जहां दीप अपने सर्वर रूम में पहुॅंच गया हैं।


अब आगे.........


दीप सर्वर रूम में पहुॅंचकर देखता हैं सारे इंजीनियर अपने-अपने काम में मगन हैं। सभी इंजीनियरों को काम में मगन देखकर दीप मन ही मन खुश होता हैं। कुछ आहट होने पर काम कर रहें सारे इंजीनियर्स जब सामने देखता हैं तो अपने सामने दीप को खड़ा पता हैं। दीप को देखकर सारे इंजीनियर खड़े हो जाते हैं। अभी शाम का समय हों रहा था। इसलिए सब गुड इवनिंग विश करता हैं। सभी के विशेस का जवाब देते हुए दीप बोलता हैं।


दीप:- गुड इवनिंग ऑल फ्रेंड्स! आप सब खड़े क्यूॅं हों गए। बैठ जाईए और अपना काम करें। हाॅं किसी को कमर सीधी करनी हैं तो आप खड़े रह सकते हैं।


दीप की बाते सुनके काम कर रहें सारे इंजीनियर्स मुस्कुरा देते हैं। सब को मुस्कुराता हुआ देख कर दीप भी मुस्कुराता हुआ बोलता हैं।


दीप:- आप सब मेरी बात को मज़ाक समझा रहें हैं। अरे आप सब इतने देर से बैठे-बैठे काम कर रहें हैं। इसलिए आप के कमर में दर्द हों गया होगा। इसलिए मैंने बोला।


काम करने वाले सभी इंजीनियर्स को पाता हैं कि दीप अपने साथ काम करने वाले सभी साथियों के साथ ऐसी छोटी-छोटी मज़ाक करते रहते हैं। इसलिए सभी इंजीनियर्स थोडा हसीं ठिठोली करके फिर से कम करने में लग जाता हैं। थोडी सी मस्ती मज़ाक का ये फायदा होता हैं कि सभी इंजीनियर्स फिर से एकाग्र होकर काम करने लगाता हैं। दीप ये जानता हैं कि यहां काम कर रहे सभी इंजीनियरों के दिमाग़ में हैवी प्रेसर रहता हैं। अपने दिमाग़ को सही से कम कराना हैं तो उसे समय-समय पे रिफ्रेश करना जरूरी हैं। इसलिए अपने ऑफिस में मस्ती-मज़ाक का माहौल बना कर रखता हैं। दीप कुछ देर तक काम करते हुऐ देखकर सामने बैठे एक इंजिनियर से पूछता हैं।


दीप:- काम की क्या प्रोग्रेश हैं? हमारी डाटा तो सुरक्षित हैं न।


हेड इंजिनियर:- सर डाटा को नुकसान पहुंचने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता हैं क्योंकि हैंक सिर्फ पांच सेकंड के लिऐ ही हुआ था।


दीप:- किया सिर्फ पांच सेकंड के लिऐ (अनजान बनते हुऐ)।


हेड इंजिनियर:- सर यहीं तो समझ में नहीं आ रहा हैं कि हैक होने के पांच सेकंड में हैकर का कनेक्शन हमसे टूट कैसे गया?


दीप जानता हैं की इसके पिछे वजह किया हैं। उसे हेड इंजिनियर की बातों पे हसीं आती हैं। दीप अपने हसीं को दबाकर बोलता हैं।


दीप:- हो सकता हैं कि हैकर सिर्फ ट्राई कर रहा था कि हमारा सर्वर हैक हो सकता हैं की नहीं।


हेड इंजिनियर:- ऐसा हो सकता हैं। लेकिन हमे सावधान रहना होगा। किया पाता हैकर फिर से हैक करने की कोशिश करें?


दीप:- हा ऐसा हों सकता हैं। आप लोग ढूंढो सर्वर को कहा से ब्रेक करके हैक किया गया हैं। मैं भी अपने केबिन में जाकर काम करता हूॅं।


हेड इंजिनियर:-ओके सर।


दीप सर्वर रूम में बने अपनी केबिन में जा रहा होता हैं कि तभी दीप की नज़र बीच में बैठी एक लडकी पर पड़ती हैं। जो कि थोडा असहज महसूस कर रहीं हैं। शायद किसी बात को लेकर डरी हुईं हैं ऐसा दीप को लगाता हैं। फिर भी दीप उसको इग्नोर कर अपने केबिन में चला जाता हैं।


दीप अपनी केबिन में जाकर अपने सिस्टम में काम करने लगाता हैं। उसे कम करते हुऐ दो-तीन घंटा हों जाता हैं। तभी दीप को कुछ ऐसा दिखता हैं। जिसे देखकर दीप हैरान हों जाता हैं और कहता हैं।


दीप:- ये कैसे हों सकता हैं।


दीप ये शब्द कहकर कुछ सोचता हैं फिर अपने कैबिन के बहार जाता हैं। दीप ने ऐसा क्या देख लिया ? जो वो इतना हैरान हों गया। कहीं ऐसा तो नहीं की दीप को कुछ ऐसा दिख गया हो जिससे उसे किसी पर शक हो गया हो।


दीप केबिन से बहार आकार


दीप:- एक्सक्यूज मी डियर फ्रेंड मुझे आपसे कुछ पूॅंछना हैं।


दीप के बोलते ही सभी इंजीनियर्स दीप की तरफ देखते हुए बोलते हैं। "जी सर बोलिए आपको किया पूॅंछना हैं"।


दीप:- मुझे पाता चला हैं कि हमारे टीम में से किसी ने हैकर की मदद की हैं। आगर ऐसा किसी ने किया हैं तो बता दे। आगर मैंने ढूंढ कर निकला तो इसके लिऐ अच्छा नहीं होगा।


दीप जब अपनी बात कह रहा था तब सब पे बारीकी से अपनी नजर फेर रहा था। दीप ने देखा वही लडकी पहले से ज्यादा डरा हुआ लग रहा हैं। लडकी को इस तरह डरता हुआ देखकर दीप का शक पुख्ता होने लगाता हैं। दीप सोचता हैं कि आगर इस लड़की ने कुछ भी गड़बड़ की हैं तो इसे पाता नहीं चलनी चाहिए कि मुझे इस पर शक हैं। सब को खुशरपुशर करता हुआ देखकर दीप माहौल को सम्हालते हुए बोलता हैं।


दीप:- आप को डरने की जरूरत नहीं हैं। मैं आपसे ये बात मजाक में बोला हैं। मैं ये देखना चाहता हूॅं की आप लोग मेरे और मेरे कंपनी के परती कितने ईमानदार हैं। मुझे यकीन हों गया हैं की आप लोग ईमानदार हैं और अपना काम ईमानदारी से कर रहें हैं।


दीप की कहीं हुई बातों का असर सब पर होता हैं। खासकर उस लङकी पे जो डरा हुआ था। लडकी एक गहरी सांस छोड़ती हैं मानो दीप की बात सुनकर उसपे से कोई बोझ उतर गया हो। गुप्त जी दीप की बाते सुनते हुऐ उसके बॉडी लैंग्वेज पे नज़र रखी हुईं थीं। गुप्ता जी को लगता हैं कि पक्का सर को किसी पे शक हुआ हैं वरना सर ऐसी बात तो कभी करते नहीं हैं। मुझे उनसे पूॅंछना चाहिए।


दीप अपनी बातों को कहकर सर्वर रूम में बने अपने केबिन में जा बैठता हैं। दीप के पिछे-पिछे गुप्ता जी भी आ जाते हैं।


गुप्ता जी:- सर मैं अंदर आ सकता हूॅं।


दीप: आ जाइए।


दीप के अंदर आने को कहने पार गुप्त जी अंदर आ जाते हैं। अंदर आकर दीप के सामने खड़े हों जाते हैं। दीप गुप्ता जी के तरफ देखकर…..


दीप:- गुप्ता जी आप खड़े क्यू हैं बैठ जाइए।


गुप्ता जी बैठ कर मन ही मन सोचते हैं पूॅंछू की नहीं पूॅंछू। जब सामने से कोई आवाज नहीं आता तो दीप गुप्ता जी तरफ़ देखकर…..


दीप:- किया हुआ गुप्ता जी किस सोच में डूबे हैं।


गुप्ता जी दीप के बोलने पर अपने सोच को विराम देकर दीप की ओर देखता हैं। गुप्ता जी के ऐसे देखने पर दीप पूॅंछता हैं…..


दीप:- ऐसे किया देख रहें हैं गुप्ता जी। मेरे चहरे पे कुछ लगा हैं किए?(अपने जेब से रुमाल निकलते हुए)।


गुप्ता जी:- नहीं सर!


दीप:-तो बात किया हैं बताए!


गुप्ता जी - सर आप से कुछ पूॅंछना हैं।


दीप:- हाॅं बोलिए न गुप्ता जी। इसमें इतना सोचने की जरूरत क्या हैं?


गुप्ता जी:- सर अपने अभी जो बहार कहा हैं उसके बरे में पूॅंछना हैं।


दीप:- हाॅं तो पूछिए न। मैंने आप को, कुछ भी पूछने से मना किया हैं कभी।


गुप्ता जी:- सर ऐसा नहीं हैं।


दीप:- तो कैसा हैं (थोडा मजाकिए लहजे में)


गुप्ता जी:- मैं मजाक नहीं कर रहा हूॅं। आपको किसी पे शक हैं किया।


दीप समझ जाता हैं की गुप्ता जी किस बरे में पूछने से इतना कतरा रहे हैं।…….


दीप:- मैं पूरा यकीन से तो नहीं कह सकता। फिर भी यहीं कहूंगा की हाॅं।


गुप्ता जी:- किसपे और क्यूॅं?


दीप:- क्यूॅं? ये तो अभी नहीं बता सकता। लेकिन किस पे हैं ये बता सकता हूॅं।


गुप्ता जी:- कौन हैं?


दीप:- गुप्ता जी 6 महीने पहले जो नई लङकी आई हैं। क्या नाम हैं उसका (सोचते हुऐ)....


गुप्ता जी:-( कुछ सोचकर) जी नीलम नाम हैं उसका।


दीप:- गुप्ता जी नीलम पे नज़र रखना।


गुप्ता जी:- वो लङकी तो बहुत होनहार हैं और बहुत मासूम भी, वो ऐसा नहीं कर सकता।


दीप:- गुप्ता जी नीलम टैलेंटेड हैं इसमें कोई शक नहीं हैं। वो लङकी मासूम दिखती हैं इसलिए कुछ गलत नहीं करेगी ऐसा कहाॅंं लिखा हैं।


गुप्ता जी:- सर आप कहना किया चाहते हैं।


दीप:- ये मासूम सी दिखने वाली लड़कियां बहार से कुछ दिखता हैं और अंदर से कुछ और होती हैं। इसलिया इस पे नज़र रखो। मैं कोई रिस्क नहीं लेना चहता।


गुप्ता जी:- मुझे लगता हैं इस लङकी ने कुछ गलत नहीं किया होगा।


दीप:- गुप्ता जी मैने कहा न कि मैं यकीन से नहीं कह सकता की इसी लङकी ने ही कुछ गलत किया हैं।


गुप्ता जी:- फिर आप उस पे ही क्यूॅं शक कर रहें हैं, कोई और भी तो हों सकता हैं?


दीप:- कोई और भी हो सकता हैं? लेकिन उस पे शक होने के पूछे वजह हैं।


गुप्ता जी:- सर वजह किया हैं ये बताएंगे।


दीप:- जब मैं सर्वर रूम में आया तब मेरी नज़र उस लङकी पे पड़ी। वो लङकी ओर लोगों से कुछ अलग बिहेव कर रही थीं। वो डरा हुआ लग रहा था इसलिए मेरा शक उस पर गया।


गुप्ता जी:- सर उसके डरने के पीछे कुछ ओर ही वजह हों सकता हैं।


दीप:- हाॅं गुप्ता जी उसके डरने के पीछे कुछ और भी वजह हों सकती हैं फिर भी मैं चाहूॅंगा की आप उस पे नज़र रखें। मैं नहीं चहता की पीछे हुई घटना जैसा कुछ फिर से हों।


गुप्ता जी:- हां सर मुझे पाता हैं कि किया हुआ था। जिसके बाद आपने मुझे अपना पर्सनल असिस्टेन और सेक्रेटरी दोनों बनाया।


दीप:- इसलिए मैं चाहता हूॅं की आप उसपे नज़र रखे। उसपे नज़र रखने के लिऐ किसी को उसके पीछे लगा दे साथ ही उस की कॉल रिकॉर्डिंग हम तक पहुंचे । इसकी भी कुछ व्यवस्था कीजिए।


गुप्ता जी:- नज़र रखने तक तो ठीक हैं। लेकिन कॉल रिकॉर्डिंग करके हमें उसकी पर्सनल लाईफ में दखल देना सही होगा किया?


दीप:- ये सही तो नहीं होगा। लेकिन मैं मजबूर हूॅं।


गुप्ता जी:- ठीक हैं सर मैं इस काम के लिए किसी को लगा देता हूॅं और खुद भी नज़र रखता हूॅं।


दीप:- गुप्ता जी प्राईवेट जासूसों को हायर करो और नीलम के अलावा जो मेन-मेन लोग हैं उनपे नज़र रखने को कॅंहो।


गुप्ता जी:- उन पर क्यूॅं



दीप:- हों सकता हैं नीलम न हो कोई ओर हों। यहां हम नीलम पे नज़र रखें हुऐ हैं और कोई ओर पीछे से अपना काम कर जाए।


गुप्ता जी:- हाॅं सर ऐसा हों सकता हैं। मैं करता हूॅं जैसा अपने कहा हैं।


दीप की नज़र जब घड़ी पर पड़ती हैं। तब ….


दीप:- गुप्ता जी आप घर जाइए टाईम बहुत हों गया हैं।


गुप्ता जी भी अपने हाथ मे बंधी घड़ी को देखते हुऐ…….


गुप्ता जी:- हाॅं सर रात के 10 बज गए हैं। आप को भी तो लेट हों रहा है। क्या आप नहीं जायेंगे घर?


दीप:- आप जाइए मुझे अभी थोड़ा टाईम और लगेगा।


गुप्ता जी:- ठीक हैं सर फिर मैं चलता हूॅं।


दीप:- हाॅं आप जाए और किसी को बोलकर कॉफी और कुछ खाने को भिजवा देना।


गुप्ता जी:-सर अभी तो डिनर का टाईम हों गया हैं फिर कॉफी क्यूॅं?


दीप:- डिनर मैं बाद में कर लूॅंगा अभी आप कॉफी ही भिजवा दीजिए।


गुप्ता जी:- ठीक हैं सर गुड नाईट


दीप:- गुड नाईट गुप्ता जी!


गुप्ता जी सर्वर रूम से निकाल कर कैंटीन में जाकर दीप के लिए कॉफी और कुछ खाने को भेजने के लिऐ बोलकर अपने घर को चाल देता हैं।


कैंटीन में बैठा हुआ कोई सोच में डूबा हुआ हैं। चलकर देखते हैं क्या सोच रहा हैं ?


शख्स:- सर ने आज ऐसा क्यूॅं कहा? दीप सर को मैने कभी ऐसा बोलते हुऐ नहीं सुना। क्या दीप सर को मुझ पर शक हों गया हैं? आगर मैं पकड़ी गई तो मेरी नौकरी चली जायेगी। फिर बहार मुझे नौकरी भी नहीं मिलेगी यहाॅं से निकले जानें के बाद । क्या पाता मुझे जेल भी जाना पड़े? किया मैं उनको मना कर दूॅं कि मैं आपका काम आगे और नहीं करूॅंगा। पर वो लोग तो मुझे धमकी दे रहें हैं कि मैंने उनका काम नहीं किया तो वो मुझे बदनाम कर देगा। उनका काम करती हूॅं तो भी बदनाम होती हूॅं और नहीं करती हूॅं तब भी बदनाम होती हूॅं। किया करूॅं कुछ समझा नहीं आ रहीं हैं। किया मैं दीप सर को सब सच-सच बता दूॅं। मैंने आगर सच बता दिया तो कहीं दीप सर मुझे नौकरी से न निकाल दे। नौकरी से निकाल दिया तो मेरा घर कैसे चलेगा। सारे घर वालो की जिम्मेदारी मुझ पर जो हैं। नहीं बताती तो पकड़े जानें पर भी तो निकली जाऊॅंगी। मुझे कुछ तो फैसला लेना ही होगा वो भी जल्दी ही।


वो शख्स कुछ फैसला करने के बाद कैंटीन से चल देती हैं। किया फैसला किया और कहाॅं जा रहीं हैं ये बाद में पाता करते हैं। पहले चलकर दीप के घर देखते हैं वहां किया हों रहा हैं।
 
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पिछले एपिसोड में........


शख्स:- सर ने आज ऐसा क्यूॅं कहा? दीप सर को मैने कभी ऐसा बोलते हुऐ नहीं सुना। क्या दीप सर को मुझ पर शक हों गया हैं? आगर मैं पकड़ी गई तो मेरी नौकरी चली जायेगी। फिर बहार मुझे नौकरी भी नहीं मिलेगी यहां से निकले जानें के बाद क्या पाता मुझे जेल भी जाना पड़े? क्या मैं उनको मना कर दूॅं कि मैं आपका काम आगे और नहीं करूंगा। पर वो लोग तो मुझे धमकी दे रहें हैं कि मैंने उनका काम नहीं किया तो वो मुझे बदनाम कर देगा। उनका काम करती हूॅं तो भी बदनाम होती हूॅं और नहीं करती हूॅं तब भी बदनाम होती हूॅं। किया करूॅं कुछ समझा नहीं आ रहीं हैं। क्या मैं दीप सर को सब सच-सच बता दूॅं ? मैंने आगर सच बता दिया तो कहीं दीप सर मुझे नौकरी से न निकाल दे। नौकरी से निकाल दिया तो मेरा घर कैसे चलेगा। सारे घर वालो की जिम्मेदारी मुझ पर जो हैं। नहीं बताती तो पकड़े जानें पर भी तो निकली जाऊॅंगी। मुझे कुछ तो फैसला लेना ही होगा वो भी जल्दी ही।



वो शख्स कुछ फैसला करने के बाद कैंटीन से चल देती हैं। क्या फैसला लिया और कहाॅं जा रहीं हैं ये बाद में पाता करते हैं। पहले चलकर दीप के घर देखते हैं वहां किया हों रहा हैं।



अब आगे........



दीप के घर पे सब डिनर कर रहें हैं। लेकिन ये क्या निधी तो कुछ खाॅं क्यूॅं नहीं रहीं हैं? निधी कुछ परेशान सी लग रही हैं और सोच में डूबी हुईं हैं।…..



निधी:- (मन में) ये भईया फ़ोन क्यूॅं नहीं उठा रहें हैं? भईया कहां रह गए, अभी तक आए क्यूॅं नहीं ? कहीं भईया को कुछ हों तो नहीं गया….. छी छी छी निधी तू ये किया सोच रहीं हैं…….



निधि को इस तरह गुमसुम बैठा देखकर माॅं की टेंशन और बड़ जाती हैं। एक तो दीप अभी तक घर नहीं आया ऊपर से बात भी नहीं हों पा रहीं हैं। फोन जो नहीं उठा रहा हैं और निधि का खाना छोड़ कर गुमसुम बैठा रहना। माॅं की टेंशन का डोज डबल कर रहीं हैं। तभी माॅं निधि से पूछती हैं…...



माॅं:- निधि बेटा किया हुए खाना क्यूॅं नहीं खाॅं रहीं हों?



निधि:- माॅं मुझे भूख नहीं हैं।



दादा:- भूख नहीं हैं। जिसकी पेट में चूहा हमेशा खुदती रहती हैं। वो कह रहीं हैं मुझे भूख नहीं हैं। ऐसा कैसे हों सकता हैं ?



निधि:- (रूठने के अंदाज में) दादू मैं मजाक के मुड़ में नहीं हूॅं अभी।



पापा:- किया हुआ गुड़िया?



निधि पापा की बात सुनकर उनकी तरफ गुस्से से देखते हुऐ…….



निधि:- पापा में गुड़िया सिर्फ भईया के लिए हूॅं और किसी के लिऐ नहीं।



पापा निधि को गुस्से में देखकर मुस्कुरा देते हैं क्योंकि दीप के अलावा किसी ने भी निधि को गुड़िया बोला तो निधि की दिमाग में दमकल की घंटी टन टन टन टन बजने लगती हैं। पंरतु निधि को उतना ज्यादा गुस्सा नहीं आया। निधि को ज्यादा गुस्सा ना करता हुआ देखकर पापा भी टेंशन में आ जाते हैं और निधि से पूछते हैं…….



पापा:- निधि बेटा आज तुम्हें किया हुआ जो गुस्सा नहीं आया?



निधि:- पापा आप ज्यादा परेशान न करो मैं बहुत टेंशन में हूॅं।



पापा:- ओ तो ये बात हैं। जरा ये भी बता दो की टेंशन में क्यूॅं हो?



पापा ये बात थोडा मजाकिया लहजे में कहता हैं जिससे निधि को हॅंसीं आ जाती हैं लेकिन पल भर में हॅंसीं फिर गायब हों जाती हैं।



निधि:- टेंशन की वजह आप का लाडला हैं।



पापा:- मेरा लाडला (कुछ सोचा कर) ओ तुम दीप की बात कर रही हों।



निधि:- हाॅं जी मैं भईया की ही बात कर रही हूॅं।



पापा:- अरे तो दीप ने क्या किया जो तुम इतनी टेंशन में आ गई ?



निधि:- क्या किया ! कब से फोन कर रहीं हूॅं और भईया हैं कि फोन ही नहीं उठा रहें हैं।



माॅं:- तो लैंडलाइन पे कर लेती। तुझे पता हैं न ऑफिस के अंदर मोबाइल ले जन माना हैं इसलिए दीप अपना मोबाइल बहार जमा कर जाता हैं।



निधि:- किया था पर लैंडलाइन पर भी नहीं लग रहा हैं। लगता हैं भईया रिसीवर नीचे रखकर अपने काम करने में मस्त हैं।



माॅं:- चल ठीक हैं दीप आ जायेगा। तुझे पाता हैं जब जरूरी काम होता हैं तो किसी का डिस्टर्बेंस करना उसे सही नहीं लगता।



निधि ठीक हैं कहकर उठकर चल देती हैं। निधि को जाता हुआ देखकर माॅं निधि को आवाज़ देती हैं…..



माॅं:- निधि बेटा खाना तो खाॅं कर जा।



निधि:- मुझे भूख नहीं हैं।



माॅं:- ये लङकी भी न…



निधि के जानें के बाद सब अपना खाना छोड़कर कुछ सोचने में गुम होते हैं तभी माॅं...



माॅं:- आप सब ने खाना खाना क्यूॅं बंद किया हुआ हैं? आप लोग खाइए। निधि को दीप आकर खिला देगा।



माॅं के कहने पर सब अपना-अपना खाना खत्म कर आपने-आपने रूम में सोने चल देते हैं। माॅं बैठक में बैठे टीवी देखने लगता हैं दीप की इंतेजार करते हुए।



अब चलते हैं दीप की ऑफिस वहां किया हों रहा हैं। कैंटीन में बैठा शख्स दीप को कुछ बताने वाला था। किया उसने दीप को सब बता दिया हैं या अभी भी नहीं बताया हैं। चलकर देखते हैं……...



दीप इस समय अपने केबिन में काम कर रहा हैं। काम करते हुए महाशय इस कदर खोया हुआ हैं कि इतना तो कोई प्रेमी जोड़ी एक दुसरे की आंखों में देखते हुऐ, खोया हुआ नहीं रहता हैं। वो इसलिए की कब से कोई दीप के केबिन का दरवाजा खटखटा रहा हैं पर दीप को उसकी कोई शुद ही नहीं हैं। बहार हुई खटपट से, दीप अपनी काम की दुनियां से ऐसे बहार आता हैं जैसे किसी ने उसके पुछे पिन चुबो दी हों। खैर दीप वर्तमान में लौटकर बहार खड़े बंदे से पूछता हैं……...



दीप:- कौन हैं बहार? कोई काम हैं तो अंदर आयो वरना मैं अभी बिजी हूॅं।



बहार एक लड़की खड़ी थीं जो दीप से कुछ बात करना चाहती थीं। इसलिए केबिन का दरवाजा खटखटा रही थीं। जब दीप उससे पूछता हैं तो लङकी बताती हैं।



लडकी:- सर मैं नीलम हूॅं। मुझे आप से कुछ जरूरी बात करनी हैं। क्या मैं अंदर आ सकती हूॅं?



दीप समझ जाता हैं कि ये तो वही लङकी हैं। जो डरा हुआ था। अब इसको क्या बात करनी हैं? पूछ कर देखते हैं।



दीप:- आप अंदर आ सकती हैं। नीलम जी!



नीलम अंदर आ जाती हैं और दीप के सामने खड़ी हों जाती हैं। दीप, नीलम के अंदर आने के बाद बोलता हैं।



दीप:- नीलम जी बहुत जरूरी बात हैं। तो बैठ जाए वरना कल बता देना।



नीलम:- सर बहुत जरूरी बात करनी हैं और आज ही करनी हैं।



दीप सोचता हैं कि इतना किया जरूरी बात करनी हैं। जो आज ही करनी हैं। कहीं आज, आज हुई हैक अटैक के बरे में तो कुछ बात नहीं करनी हैं। फिर तो इनसे बात करना जरूरी हैं।



दीप:- ऐसी कौन-सी जरूर बात हैं जो आज ही करना हैं।



इस समय दोनों एक दूसरे को देखते हुऐ बात कर रहें हैं। दीप देखता हैं कि नीलम अपनी बात कहने में असहज महसूस कर रहीं हैं। नीलम के चेहरे पे उसका डर हावी हैं। उसी को देखते हुए दीप बोलता हैं…….



दीप:- आप कुछ डरी-डरी सी हैं। आगर कोई प्रोबलम हैं तो बताए। मुझसे जितना बन पाएगा मैं आपकी उतनी ही हेल्प करूंगा।



नीलम:- हाॅं सर जो बात आपसे करनी हैं उसे कहने मैं मुझे डर लग रहीं हैं।



नीलम की बात सुनकर दीप का माथा ठनकता कि इतनी किया जरूरी बात करनी हैं जिसे कहने मैं इन्हे इतना डर लग रही हैं। कही इन्होंने कोई गड़बड़ तो नहीं की हैं। अपनी बात कन्फर्म करने के लिऐ दीप बोलता हैं…..



दीप:- आप इतना डरी हुई हों कही आपने कुछ गड़बड़ तो नहीं कर दी हैं।



नीलम दीप की बाते सुनकर अपनी सर झुकाकर खड़ी हों जाती हैं और कुछ बोलती नहीं, नीलम को कुछ बोलता हुआ न देखकर दीप बोलता हैं…….



दीप:- आप सर झुकाकर क्यूॅं खड़ी हैं? जल्दी बोलिए जो बोलना हैं। अभी मुझे बहुत कम करना हैं।



नीलम अपना सर झुकाए हुऐ ही बोलती हैं



नीलम:- सर मुझसे बहुत बाड़ी गलती हों गई हैं हों सके तो मुझे माफ कर देना।



दीप:- ऐसी किया गलती कर दी जो बताने से पहले आप माफी मांग रहीं हों।



नीलम:- हां सर मुझसे बहुत बाड़ी गलती हों गई हैं। आज जो हैक अटैक हुआ हैं…...



दीप:- आज की हैक अटैक में आप का हाथ था। इसका मतलब की मेरा आप पे जो शक था वो सही हैं। हैं न!



नीलम:- हां सर!



नीलम की हां सुनते ही दीप को गुस्सा आ जाता हैं और दीप अपनी कुर्सी को पुछे धकेलकर खड़ा हो जाता हैं। दीप का मन करता हैं कि वो नीलम पे चीखें-चिल्लाए लेकिन ऑफिस में होने की वजह से कुछ देर चुप रहकर अपने गुस्से को शान्त करता हैं। उसके बाद बोलता हैं…...



दीप:- आप को पता हैं न की आप ने कितनी बाड़ी गलती कर दी हैं। हैकर आज हमारी डाटा चुराने में कामियाब हो जाता तो हमे कितनी बाड़ी लॉस हो जाती।



नीलम कुछ नहीं बोलती हैं सिर्फ सर झुकाएं खड़ी रहतीं हैं।



दीप:- आप को पता हैं न आप को कितने धक्के खाने के बाद ये नौकरी मिली इसके बाद भी अपने ऐसा किया।



नीलम को अपनी गलती का ऐहसास था तभी वो कुछ न बोलकर सिर्फ खड़ी रहतीं हैं। उसे ये भी पाता था कि यहां नौकरी मिलने से पहले उसे कितने धक्के खाने पड़े। नीलम जहां भी नौकरी के लिऐ अप्लाई करती इंटरव्यू के बाद उससे उसकी experience के बारे में पूछा जाता। एक्सपीरियंस न होने की वजह से उसे नौकरी नहीं मिलती। नीलम के पास टैलेंट तो बहुत हैं और उसकी डिग्रियों में प्रसेंटेज भी अच्छी हैं लेकिन उसकी टैलेंट को कोई तवज्जों ही नहीं दे रहा था। क्योंकि कोई भी कंपनी एक फ्रेशर के पुछे अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहतीं। वो इसलिए की इतने एक्सपीरियंस लोग नौकरी पाने के लिऐ लाईन में जो खड़े हैं। सिर्फ दीप ने ही इसके टैलेंट के दम पे नौकरी दी और नीलम ने दीप के साथ ही धोखा किया हैं। नीलम की और से कुछ बोलता हुआ न पाकर दीप फिर से बोलना शुरू करता हैं…….



दीप:- आपको पाता हैं न आपके पास कोई एक्सपीरियंस न होने के बावजूद मैने आपको ये नौकरी दी सिर्फ अपके टैलेंट के वजह से, जबकि मेरी कम्पनी भी फ्रेशर को जल्दी जॉब नहीं देता हैं। आगर मैंने आप पे कोई ऐक्शन लिया तो आपको कहीं नौकरी नहीं मिलेंगी। अपने ऐसा क्यूॅं किया? बताइए नीलम जी!



नीलम:- पाता हैं सर पर…...



दीप:- पर किया ? मुझे आपसे इतनी उम्मीद थी। कितना भरोसा करता हूॅं मैं आप पर लेकिन आपने मेरे भरोसे और उम्मीद पर पानी फेर दिया। आपने ऐसा क्यों किया?



नीलम:- सर मेरी कुछ मजबूरी थी जिसकी वजह से…….



दीप:- ऐसी किया मजबूरी थी आपकी जल्दी बताइए मुझे आप पे बहुत गुस्सा आ रहा हैं।





नीलम:- हैं सर बहुत बाड़ी मजबूरी!



दीप:- पैसों से बडकर किया मजबूरी हैं। अपको पैसे ही चाहिए तो आप मुझसे कहती मैं आपकी सैलरी बड़ा देता या फ़िर अपको ऑफिस की तरफ से बिना किसी इंट्रेस्ट पे लोन दिलवा देता।



नीलम:- सर पैसे से बडकर भी कुछ मजबूरी होती हैं। इसलिए न चाहते हुऐ भी इंसान को ऐसा काम करना पड़ता हैं।



दीप नीलम की बातों पे उतना गौर नहीं करता हैं। दीप के दिमाग में सिर्फ एक ही बात चल रहा था। एक तो लङकी ने गलती की हैं। ऊपर से ज्ञान की बाते कर रहीं हैं। जिससे दीप का गुस्सा हद से ज्यादा बड़ जाता हैं। इस बार दीप अपनी गुस्से को कैंट्रोल नहीं कर पाता हैं और चिल्लाकर बोलता हैं…….



दीप:- मुझे आपकी कोई और बात नहीं सुननी हैं न ही आपकी सकल देखनी हैं। अब आप जाइए कहीं ऐसा न हों की गुस्से में आप के साथ बुरा सलूक कर दूॅं।



दीप को इतना गुस्सा आ रहा हैं जिसे वो कंट्रोल नहीं कर पा रहा इसलिए वो टेबल पर हाथ रखकर, झुककर खड़ा हों जाता हैं और टेबल पर रखी पानी के गिलास को उठाकर एक ही घूॅंट में सारा पानी गटक जाता हैं। नीलम को समझते देर नहीं लगती की सच में दीप को उसपे बहुत गुस्सा आ रहा हैं फिर भी नीलम सफाई देने की कोशिश करते हुऐ बोलती हैं…….





नीलम:- सर एक बार मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए…..



दीप:- मैने कहा न मुझे कुछ नहीं सुनना हैं। अब आप जा सकती हैं mss. नीलम



दीप के कहने से नीलम केबिन से निकलकर अपनी जगह जाकर बैठ जाती हैं। जहां सब ये जाना चाहते की दीप सर उसपे क्यूॅं इतना भड़क गए हैं। जबकि बो कभी किसी पे इतना गुस्सा नहीं करते हैं, फिर आज उन्हें इतना गुस्सा कैसे आ गया। अपने सहकर्मी द्वारा पुछे गए सवाल का जवाब नीलम नहीं दे पाती और चुपचाप बैठी रहती हैं। नीलम से बैठा भी तो नहीं जा रहीं हैं। उसे लगता हैं किसी ने उसे कांटों पे बिठा दिया हों। अपने सहकर्मी की सवाल सुनकर नीलम सोचती हैं उसे घर चला जाना चाहिए। लेकिन उस अकेली को ऑफिस की कोई घड़ी छोड़ने जानें वाली नहीं और अकेले वो इतनी रात को जाना नहीं चाहती। इसलिए पुछे गए सवालों का जवाब न देकर अपने काम में लग जाती हैं। नीलाम को जवाब न देता हुआ देखकर, नीलाम को उसके हाल पर छोड़कर सब अपना-अपना काम करने लगती हैं।



नीलाम के जाते ही दीप अपनी कुर्सी पे बैठ जाता हैं और कुछ काम करने की कोशिश करता हैं। दीप के मन में उथल पुथल मची हुईं थीं इसलिए उसका मन काम में नहीं लगता हैं। जब काम में मन नहीं लगता तो दीप घर जाना ही बेहतर समझता हैं और अपने केबिन से निकलकर बहार आता हैं। तभी कैंटीन से एक लड़का दीप की कॉफी लेकर आता हैं। दीप को जाता हुआ देखकर दीप को कुछ बोलता हैं। दीप लड़के के बातो का कोई जवाब न देकर, ऑफिस से बहार आकार पार्किंग से अपनी गाड़ी लेकर घर के लिऐ निकाल जाता हैं।



जब तक दीप घर जाता हैं तब तक हम कहीं और से घूम कर आते हैं वहां भी कुछ हों रहा हैं। देखते हैं वहां किया हों रहा हैं ?
 
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पिछले अपडेट में....

नीलाम के जाते ही दीप अपनी कुर्सी पे बैठ जाता हैं और कुछ काम करने की कोशिश करता हैं। दीप के मन में उथल पुथल मची हुईं थीं। इसलिए उसका मन काम में नहीं लगता हैं। जब काम में मन नहीं लगता तो दीप घर जाना ही बेहतर समझता हैं और अपने केबिन से निकलकर बहार आता हैं। तभी कैंटीन से एक लड़का दीप की कॉफी लेकर आता हैं। दीप को जाता हुआ देखकर दीप को कुछ बोलता हैं। दीप लड़के के बातो का कोई जवाब न देकर, ऑफिस से बहार आकार पार्किंग से अपनी गाड़ी लेकर घर के लिऐ निकाल जाता हैं।

जब तक दीप घर जाता हैं तब तक हम कहीं और से घूम कर आते हैं। वहां भी कुछ हों रहा हैं। देखते हैं वहां किया हों रहा हैं ?

अब आगे......

एक रूम जिसमें नाईट लैंप जल रही हैं और बेड पे बैठा एक लङकी सिसक रहीं हैं । उसकी हाथ में कागज जैसा कुछ हैं जिसे देखते हुऐ कुछ बात कर रहीं हैं……

लडकी:- तुम कहाॅं हो कब लौटकर आओगे मेरे पास ? तुम्हें पाने के लिऐ मुझे और कितना इंतजार करना पड़ेगा ? क्या तुम्हें मेरे प्यार का अहसास नहीं हों रहा हैं ? एक बार आकर देखो मैं तुम्हारे बिना कैसे जी रही हूॅं ? मेरी दिन तो किसी तरह कट जाती हैं पर ये राते तुम्हारे यादों के साए में काटे से भी नहीं कटती हैं। बताओ न मैं कैसे गुजरू ये राते तुम्हारे बिना। मेरे पास तुम्हारे इस तस्वीर और कुछ अच्छी यादें जो मैंने तुम्हारे साथ गुजरी थी, इसके अलावा मेरे पास और कुछ नहीं हैं। अब इनसे मेरा गुजारा नहीं होता। मुझे अब तुम चाहिए। अब तो लौट आओ। देखो न तुम्हारे बिन मेरी जिंदगी कितनी अधूरी हैं। सब कुछ होते हुऐ भी एक सूनापन मुझे सताती रहतीं हैं। मेरा ये सुनापान तुम आकर भर दो न। मेरा प्यार साबित करने के लिऐ मुझे कितनी परीक्षा, और इंतेजार करना पड़ेगा। जल्दी से लौट आओ न अपनी सुनिधि के पास।


अपनी बाते खत्म कर सुनिधि अपने हाथ में रखी फोटो को कई बार चूमती हैं और अपने छीने से लगाए, रोते हुए बिस्तर पे लेट जाती हैं। बहार कोई दरवाजे पे खड़ी एक शख्स सुनिधि की रोना, सिसकना और बाते सुन रहीं थीं। सुनिधि की रोना सिसकना और बाते सुनकर बहार खड़ा शख्स भी रो देता हैं। रोते हुऐ अपने हाथ जोड़कर…...


शख्स:- हे भगवान मेरी बेटी का दर्द मुझसे और सहा नहीं जाता। इसका रोना मुझसे और बर्दास्त नहीं होती। इस माॅं की दुआ सुन ले और मेरी बेटी का प्यार उसे लौटा दे।

बाहरी खड़ी शख्स सुनिधि की माॅं थी जो भगवान से अपनी बेटी की खुशियों की दुआएं मांगते हुए रोता हुआ अपने कमरे में चली जाती हैं।


अब क्या होगा दीप की शादी सुनिधि से होगी, सुनिधि किससे प्यार करती हैं? क्या उसका प्यार उसे मिलेगा? कुछ पाता नहीं, इन्हें इनके हाल पे छोड़ते हैं और दीप के पास चलाते है जो घर पहुंच चुका हैं।

दीप जब ऑफिस से घर को जा रहा था तब ऑफिस में हुई घटना और नीलम के खुलासे के कारण उसके चहरे का रंग टेंशन से उड़ा हुआ था। दीप को कोई भी देखकर बता सकता हैं कि दीप को , कुछ हैं जो बहुत परेशान कर रहीं हैं। दीप घर पहुंच कर अपनी गाड़ी को पार्किंग में खड़ी कर , अपने चहरे के एक्सपेरिशन को चेंज कर, दरवाजा खटखटाता हैं। आप चाहे कितना भी छुपा लो, पर इस दुनियां में भगवान का बनाया हुआ एक इंसान हैं जो बिना बताए ही, सिर्फ एहसास करके बता सकती हैं की इसके बच्चों को कोई परेशानी हैं और दीप के साथ ऐसा ही हुआ। माॅं जो दीप की प्रतीक्षा करते हुऐ सोफे पे बैठी थीं। उन्हें प्रतीक्षा करते हुऐ अभी नींद की झपकी आई ही थीं के दीप ने दरवाजा खटखटा दिया। दरवाजा खोलते ही माॅं दीप को देखकर पूछती हैं।

माॅं:- बेटा तू इतना परेशान क्यूॅं हैं ? ऑफिस में कुछ हुआ हैं किया?

दीप माॅं की बात सुनकर सोच में पड़ जाता हैं की इतना छुपाने के बाद भी माॅं को पता चल गया की ऑफिस में कुछ हुआ हैं जिससे मैं परेशान हूॅं। दीप माॅं को कुछ बताना नहीं चहती इसलिए बात को टालते हुऐ बोलता हैं।

दीप:- माॅं मैं थका हुआ हूॅं शायद इसलिए ऐसा लग रहा हूॅं।

माॅं मन में सोचती हैं शायद ऐसा ही हैं। आगर कुछ हैं तो मैं बाद में पुॅंछ लूंगी। अभी इसे खान खाकर आराम करने देती हूॅं।

दीप:- माॅं आप अभी तक क्यूॅं जागी हुई हों। आप सो जाती।

माॅं:- मैं सो जाती और तू हल्ला करके सब को जगा देती, हैं न!

दीप:- मैं तो अधिकतर लेट ही आता हूॅं। मैंने आप को कितनी बार कहा हैं कि आप इतनी देर तक जागी न रहा करो पर आप सुनती ही नहीं हों। आप खाना खाएं हो की बिना खाएं ही जग रहीं हों ?

माॅं:- शादी कर ले फिर मैं नहीं जगा करूॅंगी। तेरी बीवी ही जगा करी। ठीक हैं!

दीप:- फिर भी आप कहाॅं माने वाली हों। आप इन बातों को छोड़िए। आप ये बताइए की अपने खाना खाया की नहीं ?


माॅं:- मैंने तो खां लिया पर…..


दीप:- पर किया जल्दी बताइए।


माॅं:- तुझे कितनी बार कहा हैं की मेरी बात बीच में न कटा कर पूरी सुन लिया कर। (दीप के गाल पे हल्के से एक चपत लागा देती हैं)।


दीप:- माॅं आपकी बात अगर बीच में न कटुॅं तो आपका ये जो प्यार मेरे गाल पर बरसता हैं। वो बंद हों जायेगा ।

माॅं:- किसी दिन जोर से लगाऊॅंगी तब पता चलेगा तुझे। उस दिन ये प्यार कहना भूल जाएगा।

दीप:- माॅं आप कितनी भी जोर से लगा लो मेरे लिऐ तो वो आपका प्यार और स्नेह ही होगा।

माॅं:- लगता हैं मेरा बेटा अब समझदार हों गया हैं।

दीप:- माॅं जिन्दगी की थपेड़ों ने आपके बेटे को वक्त से पहले ही समझदार बना दिया हैं।

माॅं दीप की बात को समझा जाती हैं कि ये बात कहने का मतलब किया हैं। इसलिए माॅं दीप के सर पर हाथ फिरा देती हैं।

दीप:- निधि ने खाना खाया की नहीं?

माॅं:- सब ने खाया एक वहीं हैं जो नहीं खाई।

दीप:- पर क्यूॅं ? अपने भी उसे नहीं खिलाया। बिना खाए ही सो गईं।

माॅं:- तेरी वजह से।

दीप:- मैंने किया क्या ?

माॅं:- तेरे जानें के बाद इतना फोन किया। तूने फ़ोन ही नहीं उठाया इसलिए कुछ टेंशन में थी और बिना खाना खाए ही अपने रुम में सोने चली गई।

दीप:- जल्दी खाना लगाओ, मैं हाथ मुंह धोकर उसे लेकर आता हूॅं।

दीप जल्दी से अपने रुम में जाकर हाथ मुंह धोने लगता हैं। निधि दीप से बात न होने के कारण कुछ परेशान थीं इसलिए उसे नींद नहीं आती। निधि अपने बिस्तर पर लेटी हुईं अपने सोच में गुम थी। दीप हाथ मूंह धोकर बहार आता हैं और निधि का दरवाज़ा खटखटाता हैं…….

दीप:- निधि दरवाज़ा खोल

निधि कोई जबाव नहीं देती। न ही दरवाज़ा खोलती हैं, जबकि निधि जागी हुईं थीं। दीप दुबारा, तिवारा आवाज देता हैं फिर भी निधि दरवाज़ा नहीं खोलती हैं। इसलिए दीप एक बार और कोशिश करता हैं दरवाज़ा खुलवाने की…...

दीप:- soory गुड़िया दरवाज़ा खोल न!

इस बार निधि न दरवाज़ा खोलकर अंदर से ही बोलती हैं।

निधि:- मुझे नहीं खोलना हैं । मैं आप से नाराज हूॅं।

दीप:- गुड़िया मैंने soory बोला न अब तो दरवाजा खोल दे।

निधि:- नहीं, नहीं, नहीं! मैं आप से बहुत नाराज हूॅं।

दीप:- ( परेशान होकर) गुड़िया जितना नाराज होना हैं हों लेना पर खान तो खाॅं ले।

निधि:- मुझे खान भी नहीं खाना हैं।

दीप:- देख गुड़िया तू नहीं खायेगी तो मैं भी नहीं खाॅं रहा हूॅं खाना। मैं जा रहा हूॅं सोने।

जब निधि सुनती हैं की उसके भईया ने भी खान नहीं खाया हैं तो वो अंदर से आवाज देती हैं…..

निधि:- रुको भईया मैं दरवाजा खोल रहीं हूॅं।

निधि के दरवाजा खोलते ही दीप उसे गोद में उठा लेता हैं और नीचे जानें लगता हैं।

निधि:- मुझे नीचे उतारो भईया मैं छोटी बच्ची नहीं हूॅं।

दीप:- तू मेरे लिऐ अब भी मेरी छोटी सी गुड़िया हैं। तूने खान क्यूॅं नहीं खाया?

निधि:- मैं आप से नाराज़ थीं।

दीप निधि को डायनिंग टेबल पे लाकर एक कुर्सी पे बिठा देता हैं और खुद भी बैठ जाता हैं। फिर माॅं से बोलती हैं…..

दीप:- माॅं खाना दीजिए बहुत भूख लगीं हैं निधि और मुझे।

माॅं दोनों के लिऐ खान लगा देती हैं। तभी दीप निधि से बोलता हैं…..

दीप:- अब बता तू नाराज़ क्यों थी मुझसे ?

निधि जैसे ही कुछ बोलने को होती हैं तभी माॅं बोलती हैं……

माॅं:- पहले खाना खाॅं बाते बाद में, रात बहुत हों चुकी हैं और मुझे नींद भी बहुत आ रहीं हैं।

दीप:- गुड़िया पहले खाना खाॅं लेते हैं। फिर तेरी सारी नरजगी दूर करता हूॅं।

निधि:- ठीक हैं भईया ! माॅं अपकी बेटा और बेटी ने खाना नहीं खाया और आपको नीद की पड़ी हैं। कैसी माॅं हों आप।

दीप निधि की बात सुनके हॅंस देता हैं। हॅंसी तो माॅं को भी आती हैं। परंतु माॅं अपनी हँसी को दबाकर निधि को उंगली दिखते हुऐ थोडा गुस्से में बोलता हैं……..

माॅं:- तुम दोनों को तो सुबह बताऊंगी कि मैं कैसी माॅं हूॅं अभी चुपचाप खाना खाओ।

दोनों चुपचाप खाना खाने लगते हैं। माॅं दुबारा किचन में चाली जाती हैं। कुछ समय में दोनों अपना खान फिनिश करके सोफे पे बैठ जाती हैं। माॅं झूठे बर्तन उठाकर सींक में डालकर दो गिलास में दूध लाकर दोनों को देकर बोलती हैं….

माॅं:- दूध पियो और ज्यादा देर तक बातें मत करना। मैं चली सोने ( माॅं रुम में जाते हुऐ) निधि झूठा गिलास वहां मत छोड़ देना।

निधि:- ठीक हैं माॅं।

माॅं जब तक रुम में नहीं पहुंचती तब तक तो दोनों चुप रहते हैं। माॅं के रुम का दरवजा बंद होते ही दोनों अपने गपशप में लग जाती हैं।

दीप:- अब बता तू इतनी नाराज़ क्यूॅं थीं? जो बीना खाना खाएं ही सो गई।

निधि:- और क्या करती नाराज न होती तो ? आप को तो काम करते हुऐ कोई सुधबुध रहता नहीं कि कोई फोन कर रहा हैं उससे बात कर लूॅं।

दीप:- तुझे पाता हैं न अंदर मोबाईल ले जाना अलाव नहीं हैं। तू लैंडलाइन पे फ़ोन कर लेती।

निधि:- किया था पर उसमे भी नहीं लग रहा था।

निधि अपनी बात करते हुऐ दीप की गोद में सर रख कर लेट जाती हैं। दीप निधि के सर पर हाथ फिरते हुऐ अपनी बात आगे बढ़ता हैं…..

दीप:- ठीक हैं मैं आगे से ध्यान रखूंगा कि मेरी गुड़िया को मुझसे बात करने में कोई परेशानी न हों।

निधि:- ध्यान रखना आप। वैसे भईया आप कम्पनी के मालिक हों आप को कौन रोकेगा मोबाईल ले जानें से।

दीप:- हाॅं मैं कम्पनी का मालिक हूॅं और अगर मैं ही रूल्स का पालन नहीं करूॅंगा तो वर्कर्स से कैसे करबाऊॅंगा।

निधि:- ठीक हैं पर ध्यान रखना अगर मैं आपसे बात नहीं कर पाई तो अपके कम्पनी में ताला लगा दूॅंगी। ही ही ही…..


दीप:- आप मालकिन को कम्पनी के चाहे आप ताला लगाओ या खुला रखो। ही ही ही ही…..

निधि:- मैं मजाक नहीं कर रहीं हूॅं सच में ताला लगा दूॅंगी।

दीप:- अच्छा अच्छा ठीक हैं मैं कल एक कीपैड मोबाइल ले लूॅंगा और उसे गुप्ता जी के पास रख दूॅंगा तुझे जब भी बात करनी हैं उस नंबर पे फ़ोन करना और किसी को बताना मत।

निधि:- कल शाम तक मुझे अपका नया नंबर मिल जाना चाहिए वरना…..

दीप:- ठीक हैं मालकिन मिल जाएगा। आप कंपनी बंद मत करना नहीं तो मैं बेरोजगार हों जाऊॅंगा। ही ही ही ही……

बात करते हुए निधि कब सो जाती हैं ये दीप को भी नहीं पाता चलता हैं। जब निधि की और से कोई जब नहीं आता तो दीप देखता हैं निधि सो गईं हैं तो दीप निधि को सोने देता हैं और अपना सर सोफे पे टिकाकर सोने की कोशिश करता हैं। बैठे बैठे सोने में दीप को दिक्कत तो हों रहीं थीं लेकिन थोडी देर में उसे भी नींद आ जाती हैं। रात को तीन बजे के टाईम पे माॅं की नींद टूटती हैं और माॅं पानी पीने बहार आती हैं तो देखती हैं दीप सोफे पे सर टिकाए सो रहा हैं। माॅं दीप को जगाने उसके पास आती हैं तो देखती हैं कि निधि भी दीप के गोद में सर रखकर सोई हुईं हैं। माॅं दीप को जगाने के लिऐ आवाज देती हैं

माॅं:- दीप उठ बेटा और रुम में जाकर सो जा।

माॅं- दीप को जगाने के लिऐ उसके कंधे से पकड़कर हिलती हैं। दीप की नींद कच्ची थी इसलिए दीप की नींद खुल जाती हैं। माॅं को देखकर दीप अपने होटों पर उंगली रखकर न बोलने को कहता हैं। तब माॅं अपने लो वॉइस में बोलती हैं।

माॅं:- तू अब तक इसका सर गोद में लिऐ बैठा हैं। इसको जगा और इसके रुम में भेज और तू भी जाकर सो जा।

दीप:-माॅं गुड़िया को अभी जगाना ठीक नहीं होगा। मैं बाद में सो जाऊॅंगा।

माॅं:- बेटा तीन बज गए हैं। तेरा सोना भी जरूरी हैं जाकर सो जा वरना…...

दीप:- ठीक हैं मैं इसे इसके रुम में सुलाकर सो जाता हूॅं। अब आप भी जाईए और सो जाईए।


दीप निधि को आराम से गोद में लेता हैं ताकि वो उठ न जाएं और जाकर निधि के रुम में सुला देता हैं। रूम की लाइट बंद कर, दरवाजा आराम से भिड़ा कर अपने रुम में जाकर सो जाता हैं। जब तक दीप निधि को सुलाकर बहार नहीं निकलता तब तक माॅं वहां खड़ी रहतीं हैं। दीप के अपने रुम में जाते ही मां भी किचन से पानी पीकर बोतल अपने साथ लेकर अपने रुम में जाकर सो जाती हैं।
 
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पिछले भाग में.........

माॅं:- तू अब तक इसका सर गोद में लिऐ बैठा हैं। इसको जगा और इसके रुम में भेज और तू भी जाकर सो जा।

दीप:- गुड़िया को अभी जगाना ठीक नहीं होगा। मैं बाद में सो जाऊंगा।

माॅं:- बेटा तीन बज गए हैं। तेरा सोना भी जरूरी जाकर सो जा वरना…...

दीप:- ठीक हैं ! मैं इसे इसके रुम में सुलाकर सो जाता हूॅं। अब आप भी जाईए और सो जाईए।

दीप निधि को आराम से गोद में लेता हैं ताकि वो उठ न जाएं और जाकर निधि के रुम में सुला देता हैं। रूम की लाइट बंद कर, दरवजा आराम से भिड़ा कर अपने रुम में जाकर सो जाता हैं। जब तक दीप निधि को सुलाकर बहार नहीं निकलता तब तक माॅं वहां खड़ी रहतीं हैं। दीप के अपने रुम में जाते ही माॅं भी किचन से पानी पीकर बोतल अपने साथ लेकर अपने रुम में जाकर सो जाती हैं।

अब आगे........


सुबह के 9 बज रहा हैं लेकिन दीप अभी तक नहीं उठा, उठता भी तो कैसे देर रात जो सोया था। इसलिए दीप अब भी बेसुध होकर सो रहा हैं। माॅं दीप को कई बार बुलाने आई पर दीप की कोई आहट न पाकर माॅं नीचे आकार, सोफे पे बैठकर गुस्से में बड़बड़ाने लगती हैं……...

माॅं:- कितना कहो सुनना नहीं हैं। देर रात तक ऑफिस में काम करेगा। देर रात को खाना खायेगा। फिर नींद पूरी करने के लिऐ देर तक सोता रहेगा। ऐसा चलता रहा तो इसका शरीर बीमारी का घर बन जाएगा। आज तो कुछ स्ट्रेक्ट ऐक्शन लेना ही पड़ेगा इसके खिलाप।

माॅं को ऐसे बड़बड़ाते हुऐ पापा जी सुन लेते हैं। जो अभी बहार से टहलकर आ रहे होते हैं। माॅं को बड़बड़ाता हुआ देखकर पापा जी पूछते हैं……..

पापा:- क्या हुआ ? निधि ने फ़िर कुछ कर दिया जो ऐसे अकेले में बड़बड़ाए जा रही हैं।

माॅं पापा जी की बात सुनकर उनकी तरह ऐसे देखते हैं। जैसे पापा जी कोई अनोखा और स्वादिष्ट जीव हों और माॅं उनका शिकार कर अपनी भूख मिटाना चाहती हों। पापा माॅं को ऐसे देखते हुऐ देखकर उनके पास आते हैं और पूछते हैं…...

पापा:- इतना गुस्से में क्यूॅं हों? सुबह-सुबह किस पे चढ़ाई करने की सोच रहीं हों।

माॅं:- (गुस्से में) किसी पे करूॅं या न करूॅं आप पर जरूर चढ़ाई कर दूंगी।

पापा:- ठीक हैं कर देना पर गुस्से में अपनी नाक क्यूॅं लाल कर रखी हैं? कहीं निधि ने कुछ…….

माॅं:- निधि तो कब की कॉलेज चली गईं हैं….

पापा:- तो फ़िर इतना गुस्सा क्यूॅं?

माॅं:- गुस्सा न करूॅं तो और क्या करूॅं ? कब से आवाज दे रहीं हूॅं पर ये दीप हैं कि सुनता ही नहीं घोड़े बेचकर सोया पड़ा हैं।

पापा:- सोने दो उसे रात को लेट आया होगा।

माॅं:- हाॅं रात को लेट ही आया था लेकिन अब नहीं अब अगर लेट आया तो उसे घर में ही घुसने नहीं दूंगी।

पापा:- ठीक हैं अब अपनी इस गर्मी को ठंडा करो ( फिर माॅं के कान के पास मुंह ले जाकर) रात में बिस्तर पे भी इतनी ही गरम हों जाया कारो मजा आ जाएगा।

माॅं:- (गुस्से में घूरते हुऐ)लाठी टूट गई पर उमंग अभी तक नहीं गई।

दीप सीडियो से नीचे आ रहा होता हैं। और इनकी बाते सुन लेता हैं पर अधूरी इसलिए दीप पूछता हैं…...

दीप:- माॅं किसकी लाठी टूट गई?

दीप की लाठी वाली बात सुनकर माॅं थोडा कनफुजिया जाती हैं की किया बोले इसलिए खुद को सम्हालकर और बात को बदलते हुऐ दीप से बोलती हैं……

माॅं:- तू आकार यहां बैठ मैं तेरे लिऐ नाश्ता लगती हूॅं।

माॅं को इस तरह गरम लहजे में बोलता हुआ देखकर दीप कोई और सवाल न करना ही बेहतर समझता हैं और बोलता हैं….

दीप:- माॅं लेट हों रहा हूॅं। गुप्ता जी का बार बार फोन आ रहा हैं। मैं जा रहा हूॅं।

माॅं:- (गुस्से में) एक कदम भी आगे बढ़ाया तो तेरी टांगे तोड़ दूंगी। नाश्ता करके जहां जाना हैं चले जाना।

दीप:- माॅं गुप्ता जी का बार बार फ़ोन आ रहा हैं मेरा जाना जरूरी हैं।

माॅं:- गुप्ता जी को फोन लगाकर दे मैं बात करती हूॅं रोज़ ऐसे ही तू बहाना बन कर बीना नाश्ता किए चला जाता हैं।

दीप माॅं के गुस्से से भरा मिजाज़ देखकर अपने जेब से मोबाइल निकलकर गुप्ता जी को फ़ोन लगाकर मोबाइल माॅं को दे देता हैं। गुप्ता जी के फ़ोन उठते ही…...

माॅं:- हैलो ! गुप्ता जी आप कैसे हैं?

गुप्ताजी:- मैं ठीक हूॅं। सर कहा हैं।

माॅं:- आपके सर नाश्ता कर रहें हैं।

गुप्ता जी:- अभी नाश्ता कर रहें पर क्यूॅं ?

माॅं:- अभी थोड़ी देर पहले जो उठा हैं इसलिए

गुप्ता जी:- इसका मतलब सर कल भी देर रात तक काम किया हैं। आप उनको समझाए ऐसा करते रहें तो उनका शरीर कब तक साथ देंगे।

माॅं:- ठीक हैं आप ये बताइए कुछ जरूरी काम तो नहीं हैं। दीप थोडा लेट ऑफिस पहुंचे तो…..

गुप्ता जी:- मैं यहां सम्हाल लूॅंगा। आप उनको भार पेट नाश्ता कराकर ही भेजिए।

माॅं:-ठीक हैं मैं रखती हूॅं ?

कहकर माॅं फ़ोन काट देती हैं और मोबाइल दीप को दे देती हैंऔर कहती हैं…..

माॅं:- तू यहां बैठ मैं नाश्ता लगवाती हूॅं।

माॅं दीप के लिए नाश्ता लगवाने को कहने के लिऐ किचन में जाती हैं। दीप एक कुर्सी किसकाकर बैठ जाता हैं और पापा से पूछता हैं…...

दीप:- पापा माॅं का मुड़ सुबह सुबह इतना गरम क्यूॅं हैं ?

पापा:- सुबह कहा हो रही हैं 11 बज गए हैं और मुझे क्या पाता? तूने ही कुछ क्या होगा।

दीप:- मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया। अगर माॅं मेरी वजह से गुस्सा हैं तो आज तो मेरी खैर नहीं, बचा लेना पापा।

माॅं किचन से आ रही होती हैं और दीप की बात सुन लेती हैं। पापा जब तक कुछ बोलती तब तक माॅं बोल पड़ती हैं…..

माॅं:- कोई नहीं बचाएगा तुझे। तूने क्या किया हैं वो भी पाता चल जाएगा ?

दीप समझ जाता हैं कि माॅं आज बहुत गुस्से में हैं और कुछ उंटपटांग बोला तो उसका पिटना तय हैं। इसलिए कुछ न बोलकर चुपचाप बैठा रहता हैं। माॅं आकार दीप के सामने बैठ जाती हैं। माॅं के पिछे-पिछे किचन में काम करने वाली मैड नाश्ता ले कर आ जाती हैं। मैड दीप के लिए नाश्ता लगा देती हैं। तब माॅं बोलती हैं…..

माॅं:- चल नाश्ता कर और जो मैं पूॅंछू सच-सच बताना वरना आज तू मेरे हाथों बहुत पीटने वाला हैं। ( माॅं रूखे स्वर में ये बाते बोलती हैं )

माॅं को इस तरह रूखे स्वर में बोलता हुआ देखकर दीप सोचता हैं "दीप बेटा जो पूछे सच-सच बताना वरना आज खैर नही".. फिर दीप बोलता हैं…...

दीप:- पूछिए क्या पूछना हैं ?

माॅं:- कल ऑफिस में क्या हुआ? जो तू इतनी टैंशन में था। मुझे सच सुनना हैं झूठ नहीं।

दीप:- आप सच सुनकर क्या करेंगी ?

माॅं:- बताता हैं कि तेरी भूत उतारू।( माॅं उठ कर खड़ी हों जाती हैं )

दीप:- नहीं नहीं मुझे भूतबूत नहीं उतरवाना हैं। आप बैठिए मैं बता हूॅं।

माॅं:- ( बैठते हुऐ) चल फ़िर बताना शुरू कर और साथ में नाश्ता शुरू कर।

दीप:- ( नाश्ता करते हुऐ ) माॅं कल सर्वर पे हैकारो ने अटैक किया था। इसलिए…...

माॅं:- ( हैरान होकर ) पर कैसे ?

दीप:- कैसे क्या ? जैसे होता हैं वैसे हुआ।

माॅं:- तू तो कहता था की तेरा सर्वर हैक नही किया जा सकता हैं। फिर ये सब कैसे।

दीप:- बाप का भी बाप होता हैं इसलिए।

दीप की बात सुनकर पापा भी दोनों माॅं-बेटे के बीच में कूद पड़ता हैं और मजाकिया लहजे में बोलता हैं….

पापा:- सही कहा बाप का भी बाप होता हैं। जैसे मेरा बाप इसका दादा हैं वैसे ही इसका बाप मैं हूॅं।

माॅं पहले से ही गुस्से में थी और पापा जी की बात सुनकर उनका गुस्सा और बड़ जाती हैं इसलिए भड़ककर पापा से…..

माॅं:- आप को अपनी नाक बीच में घुसेड़ने को किसने कहा।

पापा माॅं की गुस्से को कम करने के लिए ये बात बोलती हैं पर उनका दव उल्टा पड़ जाता हैं। इसलिए पापा दुबारा कोशिश करते हुऐ बोलता हैं…..

पापा:- मैं अपनी नाक कहा घुसेड़ रहा हूॅं। मैं तो अपनी टांग अड़ा रहा हूॅं।

पापा की बात सुनकर दीप को हसीं आ जाती लेकिन माॅं की गुस्से को देखते हुऐ अपनी हसीं दबा लेता हैं। न चहते हुऐ भी माॅं के चहरे पे मुस्कान आ जाती हैं इसलिए मुस्कुराते हुऐ…….

माॅं:- आपकी की टांग बीच में से हटा लीजिए वरना दीप से पहले आपकी टांग टूट जायेगी।

पापा:- अरे मोहतरमा मेरी टांग तोड़ने के बाद मुझे सम्हालोगी या फ़िर बच्चों को। बोलो अब क्या बोलोगी ?

माॅं:- आप को तो मैं बाद में देखूंगी ( पापा जी को आंख दिखाते हुऐ )

पापाजी भी आज पूरे मजाक के मुड़ में थे या कुछ और पाता नहीं पर माॅं का पीछा पापाजी छोड़ ही नहीं रहे थे । माॅं के हर शब्द रूपी तीर का जवाब उनके तरकश में तैयार रखा था। कब माॅं अपने शब्द तीर छोड़े और पापा उसका प्रतिउत्तर दे।

पापा:- मैं तो चाहता हूॅं की तुम मुझे देखो और तुम हो की देखते ही नहीं।

अब माॅं शायद पापा जी के तर्कों से परेशान हों गई इसलिए मूझसे बोले ….

माॅं:- इनको इनके हाल पे छोड़ तू बता ज्यादा क्षति तो नहीं पूछी अपने कम्पनी और उनसे जुड़े लोगो को।

अब से आगे की कहनी को हीरो की नजरिए से लिखूॅंगा

दीप:- नहीं माॅं सिर्फ सॉफ्टवेयर को क्षति पहुंची हैं इसके अलावा कुछ नहीं ।

माॅं:- चलो ये अच्छा हुआ ज्यादा हानि नहीं हुई।

अब तक मेरा नाश्ता फिनिश हों चुका था। इसलिए माॅं ने मैड को बुलाकर झूठे बर्तन उठाने को कहा। तब मैंने माॅं से पूछा …..

दीप:- अब तो मैं जा सकता हूॅं या कुछ और रह गया पूछने को।

ये बात मैं कुर्सी से उठते हुऐ बोला तो एक बार फ़िर माॅं मुझे आंखे दिखाते हुऐ बोला…..

माॅं:- बैठ जा अभी तेरी और क्लॉस लेनी बाकि हैं।

दीप:- माॅं एक दिन में इतना पढ़ाओगी तो मैं सब भूल जाऊंगा। बाकि की क्लॉस कल ले लेना। अब जाऊं मैं।

माॅं:- बैठ जा वरना…….

दीप:- ठीक हैं बैठ रहा हूॅं। ज्यादा गुस्सा न करो माता श्री और ये बोलों कौन सी किताब खोलूॅं।

माॅं:- किताब खोलने की जरूरत नहीं हैं। जो मैं बोल रहीं हूॅं वो ध्यान से सुन।

दीप:- सुनाइए !

माॅं:- आज से तेरा नया रूटीन टाईम टेबल शुरू होगा । जिसका पालन तुझे करना होगा न करने पर तुझे शख्त से शख्त सजा भी मिलेंगी।

दीप:- वो टाईम टेबल क्या होगा‌? जिसे न मानने पर सजा मिलेगा।

माॅं:- आज से तू देर रात तक काम नहीं करेगा। शाम सात बजे तक घर आना हैं और कल से सुबह पांच बजे उठेगा। उठकर ध्यान और योग करेगा 7am तक उसके बाद 7am से 8am तक नहा धोकर तैयार होगा । 8am से 9am तक रेस्ट करेगा। 9am को नाश्ता करेगा । 10am तक ऑफिस पहुंचेगा। दोपहर दो बजे तेरा लांच टाईम होगा । शाम सात बजे तक तुझे घर लौट आना हैं। रात नौ बजे डिनर करेगा और रात दस बजे तक तुझे सो जाना हैं और फिर सुबह से यहीं रोटिन चालू ।

माॅं के द्वारा सुनाए गए रुटीन टेबल जानकर मैं स्तब्ध रह गया और खुद से बोला "ले बेटा लग गई तेरी अच्छी बाली" फिर सजा के बरे में सोचा की सजा किया मिलेगा अगर छोटी मोटी सजा होंगी तो इस रुटीन को टालना ही बेहतर होगा। इसलिए माॅं से पूछा…...

दीप:- माॅं सजा क्या मिलेगा ? ये भी बता दो ।

माॅं:- सजा क्या मिलेगा ये अभी मत सोच ? जिस दिन इस टाईम टेबल के अनुसार नहीं चलेगा उस दिन पाता चल जाएगा। "तू किया सोच रहा हैं की माॅं छोटी-मोटी सजा देगी और उस सजा को भुगतकर इस टाईम टेबल को मानने से बच जाऊंगा" पर नहीं होने वाला।

मैं समझा गया की माॅं ने मेरे लिऐ कोई ढंग की सजा सोच रखी हैं। इसलिए उनके इस टाईम टेबल को मन लेना ही बेहतर। क्योंकि बचपन में माॅं की दी हुईं सजा भुगत चूका हूॅं। जब भी बचपन में कोई गलती करता था तो गलती के अधार पर सजा देने में माॅं बिल्कुल भी रियायत नहीं करती थीं। एक बार फिर पापा ने अपनी नाक बीच में घुसेड़ी लेकिन इस बार माॅं ने उनको कुछ नहीं कहा बल्कि उनका साथ दिया।

पापा:- हां बेटा थोडा अपनी सेहत की तरफ ध्यान दे, सिर्फ काम और पैसे की तरफ ध्यान न दे। इस मामले में मैं तेरी कोई मदद नहीं करने वाला । तेरी माॅं जो भी सजा देगी वो तो देगी। लेकिन इस टाईम टेबल को न माने पर मै भी अलग से तुझे सजा दूंगा।

मैंने सोचा था किसी तरह पापा को रिश्वत-विस्वत देकर अपनी तरफ कर लूॅंगा लेकिन इन्होंने तो अलग ही धमाका करके । टाईम टेबल माने के अलावा कोई और रस्ता नहीं छोड़ा। फिर माॅं ने पापा की बात मानते हुई मुझे थोडा और समझाया…...

माॅं:- बेटा सिर्फ पैसे के पीछे भागकर , अपनी शरीर की तरफ ध्यान न देकर तू अपने साथ ही गलत कर रहा हैं। इसलिए अपने शरीर की तरफ ध्यान दे और इसको स्वस्थ और सेहतमंद बनाए रख वरना शरीर जिस दिन तेरा साथ देना बंद कर देगा उस दिन ये पैसा भी कम नहीं आयेगा।

माॅं सही तो कह रहीं हैं क्योंकि जब मैं कॉलेज में था तब मैं अपनी सेहत पर बहुत ध्यान देता था लेकिन जब से मैंने अपना बिजनस स्टार्ट किया तब से मैंने खुद पे ध्यान देना काम कर दिया और पैसे कमाने के पीछे भागने लगा। इसके पिछे किसी और का हाथ था । मुझे उसे दिखाना था कि मेरा साथ छोड़ने का जो फैसला उसने लिया हैं वो उसके जिंदगी का सबसे बड़ा गलत फैसला लिया हैं। मैं गरीब था तो किया हुआ मैं भी अमीर बन सकता हूॅं और इसी जुनून ने मुझे पैसे के पीछे भागने पर मजबूर कर दिया। अब माॅं की बातों से मुझे लग रहा हैं कि मुझे अपनी सेहत पर ध्यान देना चाहिए। इसलिए माॅं की बात को मानना ही बेहतर समझा और माॅं से पूछा….

दीप:- ठीक हैं माॅं अब से मैं आपके बनाएं नियम का शक्ति से पालन करूंगा। लेकिन किसी दिन मुझे जरूरी काम के वजह से देर हों गई या आपके नियम का पालन नहीं कर पाया उस दिन क्या ? होगा।

माॅं:- उसकी चिंता तू मत कर । इसका भी फैसला उस दिन के काम को देखकर लिया जाएगा।

दीप:- ठीक हैं अब तो मैं जा सकता हूॅं।

माॅं:- हाॅं अब तू जा सकता हैं लेकिन नियम और सजा का ध्यान रखना।

मैने माॅं को आंखों से हाॅं का इशारा किया और जानें लगा की तभी मुझे कुछ याद आया और रुककर माॅं से पूछा ……..

दीप:- माॅं निधि नाश्ता करके कॉलेज गया हैं या ऐसे ही।

माॅं:- सुबह लेट उठा इसलिए बीना नाश्ता किए सिर्फ जूस पीकर ही चाल गया।

दीप:- तो फिर आप जल्दी से उसके लिए नाश्ता पैक करवा दीजिए मैं जाते हुऐ उसे देता जाऊॅंगा।

माॅं:- तू रहने दे वो आज बाहर खाॅं लेंगी। तू जा तुझे लेट हों रहा हैं।

दीप:- अपको पाता हैं न उसे बाहर का खान पसन्द नहीं। निधि दिन भार भूखी रह लेगी पर बाहर कुछ नहीं खायेगी । इसलिए मैं नहीं चहता की मेरी छोटी सी गुड़िया दिन भार भूखी रहें। आप जल्दी से टिफान पैक करके दो।

माॅं निधि के लिऐ टिफान पैक करवा कर मुझको देता हैं। मैं टिफान लेकर घर से निकाल जाता ।
 
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दीप:- माॅं निधि नाश्ता करके कॉलेज गयी हैं या ऐसे ही।

माॅं:- सुबह लेट उठा इसलिए बीना नाश्ता किए सिर्फ जूस पीकर ही चाल गया।

दीप:- तो फिर आप जल्दी से उसके लिए नाश्ता पैक करवा दीजिए मैं जाते हुऐ उसे देता जाऊंगा।

माॅं:- तू रहन दे वो आज बाहर खाॅं लेंगी। तू जा तुझे लेट हों रहा हैं।

दीप:- अपको पाता हैं न उसे बाहर का खान पसन्द नहीं। निधि दिन भार भूखी रह लेगी पर बाहर कुछ नहीं खायेगी। इसलिए मैं नहीं चहता की मेरी छोटी सी गुड़िया दिन भार भूखी रहें। आप जल्दी से टिफान पैक करके दो।

माॅं निधि के लिऐ टिफान पैक करवा कर मुझको देती हैं। मैं टिफान लेकर घर से निकाल जाता हूं।


अब आगे........


मेरे घर से निकलते ही माॅं और पापा अपनी नोकझोक में लग जाते हैं।

माॅं:- अभी आप क्या बोल रह थे? मैं आपकी तरफ नहीं देखती । मैंने कब अपको देखना बंद क्या ?

पापा:- कहां देखती हों।

माॅं:- अच्छा नहीं देखती तो ये बच्चे कहां से आए। आसमान से टपके हैं।

पापा:- जब देखती थी तब देखती थीं लेकिन अब नहीं देखती हों न इसलिए तो कहां हैं।

माॅं:- उम्र देखी हैं अपनी पचपन की हो गए हों और अब भी आशिकी सूझ रहीं हैं।

पापा:- उम्र भले ही पचपन की हो गई हैं लेकिन दिल तो अभी भी जवान हैं।

माॅं:- अपना ये जवान दिल सम्हाल कर रखिए नहीं तो आपका ये बूढ़ा शरीर इसका भार नहीं सम्हाल पाएगा।ही ही ही ही.......

पापा:- अच्छा चेतावनी ! ठीक हैं चलो कमरे में बताता हूॅं कौन बूढ़ा हुआ हैं

दादा-दादी, नाना-नानी जिनका रोज़ का रूटीन हैं। सुबह जल्दी उठना फ़िर नहा धोके टहलने जाना। कुछ समय टलने के बाद मंदिर जाना। मंदिर में कुछ समय बिता कर घर आ जाते हैं। आज इनको किसी कारण वश लेट हों गया। पापा जब लॉस्ट लाइन बोल रहें थे तभी चारों जानें घर में प्रवेश करते हैं और पापा की कहीं हुईं बाते सुन लेते वो भी आधी अधूरी इसलिए दादाजी पापाजी से पूछते हैं…..

दादा जी:- कौन बूढ़ा हुआ हैं और किसको बताना हैं ?

दादाजी की बाते सुनकर माॅं-पापा एक दूसरे को देखते हैं और इशारों में पूछते हैं कि किया जबाव दे इनके सवालों का। इन दोनों का ऐसे एक दूसरे को देखते हुऐ देखकर दादा जी समझ जाते हैं कि इन दोनों की कोई आपसी बात होगी। इसलिए अपनी बात को टालते हुऐ पुछते हैं……..

दादा जी:- ये बरखुरदार कहा हैं। ऑफिस गया क्या ?

पापा जी:- हां बो तो ऑफिस चला गया।

नाना जी:- एक छत के नीचे होते हुऐ इससे मिलना भी दुभर हैं। पाता नहीं काम और पैसे के पीछे क्यों इतना बौराए फिरता हैं ?

ननाजी की बाते सुनकर पापा भी माॅं से पूछते हैं…..

पापाजी:- तुम्हें कुछ पाता हैं जो पापाजी पूछ रहें हैं।

माॅं को सब पाता हैं। क्यों मैं पैसे कमाने के पीछे दिन रात पागलों की तरह भागता हूॅं। पाता होते हुऐ भी इनको टालते हुऐ बोलते हैं….

माॅं:- मुझे क्या पाता ? ये तो दीप ही बता सकता हैं।

दादा:- बेटी दीप से कहो की वो अपनी तरफ थोडा ध्यान दे नहीं तो बाद में उसे ही परेशानी होगी।

माॅं:- बाबूजी आप फिकर न करें। आज उसके लिऐ कुछ सक्त नियम बनाए हैं और उसे बता भी दिया कि इन नियमों का पालन न होने पर उसे सजा भी मिलेगी।

नानाजी:- ऐसा कौन-सा नियम बनाया हैं। जिसे न मानें पर दीप को सजा भी मिलेगी। जरा हमे भी तो बताओ।

माॅं सुबह जो मेरे लिए नियम बनाया था वो उनको कह सुनता हैं। सुने के बाद दादाजी बोलते हैं…...

दादाजी:- ये तुमने ठीक किया बेटी ! मैं एक अच्छे योग टीचर को जनता हूॅं। तुम उनसे बात कर लेना।

माॅं:- ठीक हैं बाबूजी आप उनका नंबर दे दीजिए मैं उनसे बात कर लेता हूॅं।

दादाजी:- एक बात और हैं। हम सोच रहें हैं की हम चारों तीर्थ कर आए।

माॅं:- ठीक हैं आप बता देना आप कब जाना चाहते हैं। मैं दीप से कह कर आप सब का टिकट करवा दूंगा।

इसके बाद माॅं दादाजी से योग टीचर का नंबर लेकर बात करते हैं और सुबह सुबह मेरी बंट लगाने का बंदोबस्त कर देते हैं। कुछ देर और इनके बिच बर्तलाप चलती हैं फिर दादा-दादी, नाना-नानी रेस्ट करने को बोलकर अपने कमरे में चले जाते हैं और पापाजी और माॅं अपनी आपसी बातों में लग जाते हैं।

अब चलते हैं दीप के पास जो निधि के कॉलेज पहुंच जाता हैं।

मैं कॉलेज पहुंचकर हॉर्न बजाया तो गेटकीपर ने अपने केबिन से मुंडी बाहर निकलकर मुझे देखा। मुझे देखकर, आकर गेट खोला और मुझसे बोला…..

गेटकीपर:- दीप सर आप, प्रिंसिपल सर अभी अपने ऑफिस में हैं।

गेटकीपर को लगा की मैं आज भी प्रिंसिपल सर से ही मिलने आया हूॅं इसलिए उसने ऐसा बोल क्योंकि हर महीने उनसे मिलने कॉलेज आता हूॅं। प्रिंसिपल सर मेरे गुरु ही नहीं बल्कि वो मेरे शुभचिंतक भी हैं और एक वजह भी हैं जिसके लिए मैं उनसे मिलने आता हूॅं। वहां वजह किया हैं। यहां तो आपको आगे पता चलेगा…...

दीप:- ठीक हैं भईया

मैं अपनी कार पार्किंग में खड़ा कर टिफन लेकर निधि को मिलने उसके क्लॉस की ओर चल देता हूॅं। निधि मुझे क्लॉस में नहीं मिलती। इस समय क्लॉस नहीं चल रहा था तो कुछ बच्चे क्लॉस में मस्ती कर रहे थे। मैं उन बच्चो से निधि के बारे में पता करता हूॅं तो वो मुझे बताते हैं। "निधि इस समय कैंटिन या फिर लाइब्रेरी में होगी" वहां से मैं लाइब्रेरी में जाता हूॅं पर निधि मुझे वहां भी नहीं मिलती। वहां से मैं कैंटीन कि ओर चल देता हूॅं। जब तक मैं कैंटीन पहुंचता हूॅं। तब तक कैंटीन में निधि और उसकी सहेलियों के बीच कुछ बात चीत हों रहीं हैं वो जान लेते हैं…...

निधि कैंटीन में अपने दो सहेलियों के साथ बैठे कॉफी की चुस्कियां लेते हुऐ बाते कर रहीं थीं…..

सहेली 1:- क्या निधि हमेशा किताबो में घुसी रहतीं हैं। इन किताबो की दुनियां से बहार निकाल और रोमांटिक दुनियां के मजे ले।

सहेली 2:- हाॅं निधि कोई बॉयफ्रेंड-सायफ्रेंड बन और रोमांटिक पल के मजे ले। फिर देखना ये दुनियां कितनी रोमांटिक लगतीं हैं।

निधि:- अरे ओ फिलोशाफार के पीएचडी धारक अपनी इन फिलोशाफी की गाड़ी को ब्रेक मर। मुझे कोई बॉयफ्रेंड-सायफ्रेंड नहीं बनानी हैं। ये काम तुम्हे ही मुबारक हो और रहीं बात रोमांटिक पल की तो बीना बॉयफ्रेंड के भी मेरा हर पल रोमांटिक होता हैं।

सहेली 1:- अरे बना ले बहुत सारे फायदे हैं बॉयफ्रेंड बनाने के।

निधि:- नहीं यार अभी नहीं पहले मुझे अपना कैरियर बना हैं। एक बार कैरियर बन जाए उसके बाद सोचेंगे इस बारे में और तू ये किस फायदे की बात कर रहीं हैं।

सहेली 2:- देख निधि तू इस कॉलेज में सबसे ज्यादा हॉट और सेक्सी हैं। इसलिए तेरे इशारे करते ही सारे लड़के तेरे आगे पीछे लट्टू की तरह घूमेंगे ओर तेरे नखरे और खर्चे उठाने के लिए तैयार हों जायेंगे।

निधि को अपनी सहेली को इस तरह उसकी तारीफ करते हुऐ सुनकर हाॅंसी आतीं हैं और अजीव भी लगता हैं। वो इसलिए क्योंकि कई लड़कों ने उसकी खूबसूरती की तारीफ की हैं लेकीन आज पहली बार कोई लङकी वो भी उसकी सहेली, जो हॉट और सेक्सी दिखाने के लिए बहुत बनठन के कॉलेज आती हैं।

निधि:- वो तो मैं हूॅं ही और मेरे नखरे उठाने के लिए मेरे भइया हैं। रहीं बात खर्चे की तो मेरे भइया के पास इतने पैसे हैं कि मैं सारी जिंदगी खर्च करूॅं तब भी खर्च नहीं होगी। इसलिए ये सब तुम्हे ही मुबारक।

इस बीच मैं निधि को ढूंढते हुऐ कैंटीन पहुंच जाता हूॅं । निधि कहां बैठा हैं ये देखने के बाद उसके पास जाता हूं और निधि को बोलता हूॅं…..

दीप:- निधि तू यहां बैठी हैं और मैंने तुझे सारा कॉलेज छन डाला।

निधि मुझे देखकर खुश होते हुऐ…..

निधि:- आप मेरे कॉलेज में वो भी इस वक्त।



दीप:- हाॅं ( निधि के पास बैठी दोनों लड़कियों को) "soory गर्ल्स" आन पड़ा तू जो बिना कुछ खाए पीए कॉलेज आ गईं। इसलिए मुझे तेरे लिए टिफान लाना पड़ा ( टिफन निधि के सामने टेबल पर रखते हुऐ)

निधि:- ( टिफ़न को देखकर ) अपको लाने की क्या जरूरत थीं ? मैं बहर कुछ खाॅं लेता।

दीप:- मुझे पाता हैं तू बाहर कितना खाती हैं इसलिए मुझे आना पड़ा। अब तू जल्दी से नाश्ता कर ले, मैं जा रहा हूॅं मुझे लेट हों रहा हैं।

निधि:- ठीक हैं भईया ! आप को कल रात जो बोला उसका ध्यान रखना नहीं तो…...

दीप:- हाॅं मुझे पाता हैं पहले तेरा वो काम करूॅंगा। लेकीन तू एक बात का ध्यान रखना अब से अगर तू बीना कुछ खाए पिए घर से आई तो मैं तुझे बात नहीं करूॅंगा।

निधि:- ठीक हैं मैं ध्यान रखूंगा लेकीन आप दुबारा ऐसी बात मात करना।

मैं निधि की सर पर हाथ फिरते हुऐ उसके माथे पे किस कर देता हूॅं। इसलिए निधि बनावटी गुस्सा दिखाते हुऐ…..

निधि:- किया भईया अपने फिर से मेरा माथा गीला कर दिया। आप बहुत बुरे हों भईया।

दीप:- (मुस्कुरा कर) मैं जा रहा हूॅं निधि तू जल्दी से नाश्ता कर ले और अपनी इन दोनों सहेलियों को भी खिला देना देख कैसे मूॅंह खोले बैठी हैं।

मैं हॅंसाता हुआ वहां से चल देता हूॅं। निधि जब अपनी सहेलियों की तरफ दिखती हैं तो वो देखती हैं कि उसकी दोनों सहेली मुॅंह खोले मुझे जाते हुऐ देख रहीं थीं। तब निधि बोलती हैं…..

निधि:- अरे ओ छिपकलियों अपनी मुॅंह बन्द कर ले नहीं तो मक्खी घूस जाएगी हैं। ही ही ही......

मेरे और निधि के बीच इतना प्यारा देखकर उन दोनों का हैरानी से मुॅंह खुल जाती हैं। निधि के बोलने से वो अपना मुॅंह बन्द करती हैं और निधि से बोलती हैं…...

सहेली 1:- यार तेरे भईया तो…...

निधि:- बहुत प्यार करते हैं यहीं न ! अब बता जिसके पास इतना प्यार करने वाला भाई हों उसे किसी और की क्या जरूरत हैं ?

सहेली 2 :- यार तेरा भाई तो तुझे बहुत प्यार करता हैं। यार निधि तेरे भाई से मेरी सेटिंग करा दे। पहली नज़र में लव एंड फर्स्ट साइड हों गया हैं।

निधि:- तेरी ये लव एंड फर्स्ट साइड कई लड़कों के साथ हुआ हैं। इसलिए अपने ये लव एंड फर्स्ट साइड अपने पास रख और मेरी भाई पे डोर ढलना छोड़ दे। ही ही ही…..

सहेली 1:-यार इसकी नहीं तो मेरी ही करा दे। बहुत मस्त लड़का हैं।

अपने सहेली की बात सुनकर निधि को बहुत गुस्सा आता हैं फिर भी अपने गुस्से को दबाकर….

निधि:- देखो तुम दिनों मेरे भईया से दूर रहना मेरे भईया तुम जैसी टाईप की लड़कियों के लिऐ नहीं हैं।

(ये बात कहकर निधि अपने मन में सोचती हैं की भईया ने तो सुनिधि दीदी की फोटो देखा ही नहीं आज घर जाकर भईया को दिखाती हूॅं)

सहेली 2:- क्यूॅं तेरा भाई क्या स्पेशल हैं?

निधि:- हाॅं मेरे भईया बहुत स्पेशल हैं। उन्हें सिर्फ मौजमस्ती करने वाली लङकी नहीं चहिए। उन्हें तो एसी लङकी चहिए जो उन्हें समझ सकें और वो काबिलियत तुम दोनों में नहीं हैं इसलिए तुम दोनों मेरे भईया से दूर रहना नहीं तो तुम दोनो के दांत तोड़ दूंगी। ( दांत तोड़ने वाली बात गुस्से में मुक्का दिखाते हुऐ कहती हैं)।

सहेली 1:- नाराज क्यूॅं होती हों दबंग गर्ल हम कोई दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे। हमे तो सिर्फ़ मौज मस्ती करनी हैं शादी तो हम अपनी घर वालो की मर्जी से करेंगे

ये कहकर दोनों सहेली ताली मरती हैं। उनकी ऐसे हरकत देखकर निधि मुस्कुरा देती हैं और कहती हैं…..

निधि:- तुम दोनो के लिए यहीं सही हैं। अब नाश्ता करनी हैं करो फिर क्लास में चलाते हैं।

तीनों सहेलियां नाश्ता करने लगती हैं। इन तीनों की दोस्ती एक अलग ही लेवल की हैं। इन तीनों की दोस्ती को परिभाषित करना मेरे बस की बात नहीं हैं। भले ही निधि की दोनों सहेलियों की सोच कैसी भी हों लेकिन ये दोनों किसी भी काम को करने के लिए जोर जबरदस्ती नहीं करती हैं और न ही कहीं एक दूसरे की बुरा करने की सोचती हैं। निधि को नाश्ता देकर मै बाहर आकर पार्किंग की ओर जा रहा होता हूॅं। तभी मुझे कोई पीछे से आवाज देता हैं। मैं मुड़कर उनको देखता हूॅं और उनके पास जाकर उनका पाओ छूता हूॅं और बोलता हूॅं ….

दीप:- सर आपको आने की क्या जरूरत थीं ? मुझे ही बुला लिया होता।

दरासल हुए ये था की जब मैं कर लेकर पार्किंग की और गया था तभी गेटकीपर ने फोन करके सर को बता दिया जब मैं बहुत समय तक उनके पास नहीं पहुंचा तो ये खुद मुझे ढूंढते हुऐ आ गए और मुझे वापस जाते हुऐ देखकर मुझे आवाज देकर रोका।

सर:- अच्छा अब मेरे ब्रिलियंट स्टूडेंट से मिलने के लिए उसे बुलाना पड़ेगा हम खुद उनसे मिलने नहीं आ सकते।

दीप:- मैने ऐसा तो नहीं कहा अपका जब मन करे तब आ जाइए ।

सर:- मैं तो आ जाऊॅंगा पर तुम तो आते ही नहीं ओर आज आए भी तो बीना मिले ही जा रहे हों।

दीप:- कहाॅं सर ! हर महीने आता तो हूॅं और आज के लिए सॉरी सर वो ऑफिस के लिए लेट हों रहा था इसलिए।

सर:- हाॅं आते तो हों पर वो अपने काम के लिए, ऐसे तो आते ही नहीं हों, वैसे आज किस लिए आना हुआ?

दीप:- वो सर निधि आज नाश्ता करके नहीं आई थीं इसलिए उसे नाश्ता देने आया था और अपको पाता हैं न मैं कितना बिज़ी रहता हूॅं।

सर:- आज भी वैसी ही हों बिल्कुल नहीं बदले। आज भी तुम्हारे दिल में अपनी बहन के लिए उतना ही प्यार हैं जितना बचपन में हुआ करता था। ऐसे ही रहना जिन्दगी भर।

दीप:- कम कैसे हो सकती हैं आखिर उसमे मेरी जान जो बस्ती हैं। सर उसका कुछ पाता चला।

सर:- किसकी तुम्हारे गर्लफ्रेंड की?

दीप:- हाॅं सर पाता नहीं कब मिलेगी ? कहा पर रहतीं हैं ये भी पाता नहीं ? कितना ढूंढ रहा हूॅं मिल ही नहीं रहीं ।

सर:- मिल जायेगी ! वक्त से पहले कभी कुछ हुआ हैं। क्या इसकी वजह से तुमने raw ज्वाइन नहीं की ?

दीप:- सर raw न ज्वाइन करने के पीछे कुछ और ही वजह हैं और वक्त ही तो नहीं हैं मेरे पास क्योंकि घर वाले मेरी शादी के लिए लङकी ढूंढ रहें हैं।

सर:- ओह तो जनाब शादी के लिए मन गए। अब तो बता दो तुम raw क्यों नहीं ज्वाइन किया?

दीप:- सर मैं किसी को बताना चहता हूॅं कि मैं क्या कर सकता हूॅं। वो मैं raw या आर्मफोर्स में जाकर नहीं कर सकता था। इसलिए मैने raw नहीं ज्वाइन किया।

सर:- तुम चाहो तो अब भी raw ज्वाइन कर सकते हो। तुम्हारी जरूरत हैं देश को और तुम्हारा देश के प्रति कुछ कर्त्तव्य हैं। तुम्हें भी अपनी देश भक्ति दिखानी चहिए।

दीप:- जरूरी नहीं की देश भक्ति दिखाने के लिऐ आर्मफोर्स या सिक्युरिटी फोर्स में ही जाना पड़ेगा । इसके लिए और भी रास्ते है। रहीं बात जरूरत की तो मैं अपने घर पे बैठे-बैठे ही पूरा कर देता हूॅं।

सर:- अच्छा ठीक हैं मैं तुमपे प्रेसर नहीं डालूॅंगा। लेकिन तुम जब चाहो तब ज्वॉइन कर सकते हैं।

दीप:- ठीक हैं सर जब मन करेगा मैं आप को बता दूंगा। अब मैं चलता हूॅं बहुत लेट हों गया हूॅं।

सर:- ठीक हैं ! बाए

दीप:- बाए सर! फिर मिलते हैं।


वहां से मैं अपनी कार लेकर मार्केट की और चल देता हूॅं और सर अपने ऑफिस की ओर चल देते हैं
 
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दीप:- देश भक्ति दिखाने के लिऐ आर्मफोर्स या सिक्युरिटी फोर्स में जानें की जरूरत नहीं हैं इसके लिए और भी रास्ते है। रहीं बात जरूरत की तो मैं अपने घर पे बैठे-बैठे ही पूरा कर देता हूॅं।

सर:- अच्छा ठीक हैं मैं तुमपे प्रेसर नहीं डालूॅंगा। लेकिन तुम जब चाहो तब ज्वॉइन कर सकते हैं।

दीप:- ठीक हैं सर जब मन करेगा मैं आप को बता दूॅंगा। अब मैं चलता हूॅं बहुत लेट हों गया हूॅं।

सर:- ठीक हैं ! बाए

दीप:- बाए सर! फिर मिलते हैं।

वहां से मैं अपनी कार लेकर मार्केट की और चल देता हूॅं और सर अपने ऑफिस की ओर चल देते हैं



अब आगे.......



सर ऑफिस में जाकर अपने स्थान पर बैठ कर खुद से ही बात कर रहे थे…..

सर:- दीप बेटा मुझे माफ करना मैं चाहकर भी तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। तुम जिसे ढूंढ रहें हों वो इसी शहर में ही हैं। मैं ये जानते हुऐ भी तुम्हे बता नहीं सकता। पाता नहीं तुम दोनों का ये प्यार, कैसा प्यार हैं। एक तुम हों जो उसे ढूंढने के लिऐ जमीन आसमान एक कर दे रहें हों और एक वो हैं जो तुमसे मिलना तो चहती हैं लेकिन एक अजनबी की तरह ताकि वो तुम्हारा अजनबी हमसफर बन सके। हे भगवान कुछ ऐसा कर जिससे ये दोनों मिल सकें, इनकी तड़प मिट सके। बस मेरी इतनी सी बिनती मन ले भगवान।

मैं मार्किट पहुॅंच कर एक मोबाइल शॉप पर जाता हूॅं। वहां से एक अच्छा सा कीपैड मोबाइल और एक पोस्टपेड सिम लेता हूॅं। कंपनी का नाम नहीं बताऊंगा क्योंकि कंपनी ने अपनी नाम की प्रचार करने के लिऐ पैसे नहीं दिए हैं। मोबाइल और सिम लेकर मैं ऑफ़िस पहुंच जाता हूॅं। ऑफ़िस में पहुंच कर अपने स्थान पर बैठकर सबसे पहले मेरे सामने की दीवाल पर लगी सीसीटीवी कैमरे की डिस्पले पर नज़र मरता हूॅं। डिस्पले में देखकर ये तसल्ली होने के बाद कि सब अपना-अपना काम सही से कर रहें हैं। फिर मेरे सामने रखी टेलीफोन से फ़ोन कर गुप्ता जी को अपने पास बुलाता हूॅं। तुरंत ही गुप्ता जी मेरे केबिन के पास पहुंचकर दरवजा खटखटाता हैं। गुप्ता जी के मेरे पास इतनी जल्दी पहुंचने के बाद मैं खुद से ही कहता हूॅं " ये गुप्ता जी तो स्पीडपोस्ट से भी तेज हैं। ऑप्टिकल फाइबर से भी तेज डाटा ट्रांसफर करने का काम करते हैं। बस यहां से संदेश भेजने की देर है, रिप्लाई के रुप में गुप्तजी को पहुंचने में देर नहीं लगाते"। गुप्ता जी के दरवजा खटखटाने पर मैं उनको अंदर बुलाता हूॅं । अंदर आते ही गुप्ता जी अपने सवालों से , भरी बोरा मेरे सर पे धर देते हैं…….

गुप्तजी:- सर आप सुबह इतनी लेट क्यों उठे? आप ऑफिस इतनी लेट क्यों पहुंचे ? आप अब तक थे कहां ? आप कल रात कितनी देर तक काम करते रहें ?......

दीप:- (मुस्कुरा कर) गुप्ताजी थोड़ी श्वास तो ले लीजिए नहीं तो इस उम्र में दमे की बीमारी हो गई तो अपको बहुत परेशानी होगी।

गुप्ताजी:- मैंने अपनी जिंदगी जी ली हैं जितनी मजे से जीनी थी। अब अगर मुझे कोई बीमारी हों भी जाती हैं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला लेकिन आप को अपनी सेहत का ध्यान रखना जरूरी हैं और अपने अभी तक मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया।

दीप:- मैं आपके सारे सवालों का जवाब दूंगा पर उसे पहले आप ये रखिए।

मैंने अपनी जेब से मोबाइल निकालकर गुप्ताजी कि ओर बढ़ाया। मोबाइल देखकर गुप्ताजी ने जो रिएक्शन दिया वो देखने लायक था और जो बोला वो भी कबीलेतारीफ हैं…….

गुप्ताजी:- ये क्या सर ? ये आप मुझे क्यूॅं दे रहें हैं ? कहीं आप मुझेपे झूठा आरोप लगाकर, मुझे अपने काम से बर्खास्त तो नहीं करने वाले ?

दीप:- आप सवाल बहुत पूछते हैं। जब मैं खुद आपके मोबाइल दे रहा हूॅं, तो आप पर झूठा आरोप क्यों लगबाऊंगा ? भला क्यों मैं आपको बर्खस्त करूंगा ? अपको तो अभी ओर लंबे समय तक मेरे साथ काम करना हैं।

गुप्ताजी:- तो फ़िर आप मुझे ये मोबाइल क्यों दे रहें हैं ? जबकि आप को पाता हैं कि…..

दीप:- मुझे पाता हैं। लेकिन वो स्मार्टफोन, न की कीपैड मोबाइल लाना वर्जित हैं।

गुप्ताजी:- फिर भी मैं ये पूछना चाहूंगा कि आप मुझे ये मोबाइल क्यों दे रहें हैं ?

दीप:- अपनी जॉब और कंपनी बचाने के लिऐ।

मेरा ये जवाब सुनने के बाद गुप्ताजी मुझे ऐसे देखते हैं जैसे मैंने उनकी दोनों किडनी और लिवर एक साथ मांग ली हों।

दीप:- गुप्तजी आप मुझे ऐसे क्यों देख रहें हैं ?

गुप्ताजी:- तो ओर क्या करूं ? आप खुद इस कंपनी के मालिक हैं। अपको भला कौन जॉब से निकलेगा और कंपनी कौन बंद करेगा ?

दीप:- मेरी बहन और कौन ?

गुप्ताजी:- ओह छोटी मालकिन ! पर क्यों?

दीप:- वो इसलिए कल अपके बुलाने पे जल्दी-जल्दी और टेंशन में घर से आ गया। मेरे इस तरह आने कि वजह पाता करने के लिए फोन किया पर बात नहीं हों पाई। मेरा मोबाइल बहार जो जमा था। इसलिए गुस्से में खान भी नहीं खाई। रात को घर जाकर बडी मुस्कील से समझा बुझाकर खाना खिलवाया। खाना तो खां लिया लेकिन साथ में वार्निंग भी दे दी कि दुबारा ऐसा हुआ तो कंपनी में ताला लगा देगी……….

गुप्ताजी:- ओह ! तो छोटी मालकिन ने वार्निंग दी हैं। फिर तो आप मुझे ही ये मोबाइल दे दीजिए। मुझे अपनी जॉब नहीं गवानी हैं। इस उम्र में कोई और मुझे जॉब भी तो नहीं देगा ?

दीप:- हाॅं आप के लिए यहीं सही होगा और ध्यान रखना ये बंद नही होना चहिए नहीं तो…..

गुप्ताजी:- नहीं, नहीं मैं ध्यान रखूंगा । आप जहां कहीं भी होंगे, कितना भी जरूरी काम कर रहें होंगे। छोटी मालकिन के फोन आने पर सब से पहले आपकी बात मालकिन से करबाउंगा। आखिर मुझे अपनी जॉब बचानी हैं।

दीप:- अब आप जाइए गुप्ताजी। मैं कुछ काम कर लेता हूॅं।

गुप्ताजी मोबाइल लेकर चले जाते हैं। उनके जानें के बाद मैं अपना काम करने लगाता हुॅं। मैंने ये मोबाइल गुप्ताजी के पास इसलिए दिया क्योंकि मुझे अपने पास मोबाइल रखने की आदत नहीं हैं। मैं मोबाइल को कहीं भी रखकर भूल सकता हूॅं।

कुछ समय काम करने के बाद लांच का समय हो जाता हैं। इसलिए मैं लांच करने चला जाता हूॅं । लांच करके आकार अभी कुछ देर काम करता हूॅं फ़िर सर्वर रूम जानें की सोच कर जैसे ही कुर्सी से उठता हूॅं। वैसे ही मेरे टेलीफोन बज उठता हैं । मैं रिसीवर उठाकर "हैलो" बोलता हूॅं तो उधर से माॅं की आवाज आती हैं…...

माॅं:- बेटा लांच कर लिया ?

दीप:- हाॅं कर लिया वो भी अपके बताए टाइम टेबल अनुसार।

माॅं:- बहुत अच्छा ! मुझे तुझे कुछ ओर बताना था ?

दीप:- हाॅं माॅं बताइए मैं सुन रहा हूॅं।

माॅं:- तेरी वो दोनों गर्लफ्रेंड और उनके हसबैंड तीर्थ पर जाना चाहते हैं तो…..

पहले तो ये गर्लफ्रेंड वाली बात मुझे समझ नहीं आती फ़िर जब समझ आती हैं तो मैं माॅं की बात बीच में काट देता हूॅं…..

दीप :- तो मैंने कब माना किया हैं। ये तो अच्छी बात हैं।

माॅं:- तुझे कहां हैं न मेरी बात बीच में न काटा कर।

दीप:- soory माॅं ! आप बोलिए अपनी पूरी बात।

माॅं:- आज से पंद्रह दिन बाद जानें का तय किया हैं तो तू उनका टिकट करवा देना।

दीप:- माॅं टिकट क्यों? घर में इतनी गाडियां खड़ी है। उनमें से एक ले जानें के लिए कहिए। ऐसे गाड़ी बदल-बदल कर सफर करेंगे तो इस उम्र में बहुत थक जायेंगे और वहा बहुत पैदल भी चलना पड़ेगा।

माॅं :- मैने भी कहां था लेकिन ये अपने कुछ जानने वालो के साथ जा रहे हैं । तो वो लोग जैसे जायेंगे वैसे ही ये भी जाना चहते हैं।

दीप:- मैं उनके लिए एक डीलक्स बस बुक करवा देता हूॅं। दादाजी से कहिए की उनसे बात करें कि बस से जाना चहते हैं।

माॅं:- मैंने कहा हैं लेकिन ये मान नहीं रहे इसलिए तू आकार ही अपने दादाजी से बात करना।

दीप:- ठीक हैं में शाम को आकार बात कर लूॅंगा।

माॅं:- हाॅं और एक बात मैंने तेरे लिए एक योगा टीचर से बात कर ली हैं। कल से तू उनके पास ध्यान और योग सीखने जायेगा।

दीप:- ठीक हैं और कुछ कहना हैं माते।

माॅं:- हाॅं शाम को समय से घर आ जाना वरना…...

दीप:- आ जाऊॅंगा डराती क्यों हों अब राखूॅं।

बात करने के बाद मैं सर्वर रूम में जाकर आज के काम के बारे में पूछताछ करता हूॅं। साथ ही कल हुई हैक अटैक के बरे में भी पुछता हूॅं और मेरे मन मुताबिक काम होने पर उन्हें सब्बासी देकर अपने केबिन में आकर बैठ जाता हूॅं और उनके काम पर नजर रखते हुऐ अपना काम करने लगाता हूॅं। काम करते हुऐ समय का ध्यान ही नहीं रहता ओर जब ध्यान जाता हैं तो शाम के 6:30 बज चूका था। जब समय का ज्ञान होता हैं। तो मैं घर जानें की सोचता हूॅं। समय से घर नहीं गया तो आज मेरा वॉट लगना तय हैं। माॅं भले ही मुझसे कितना भी प्यार करती हों लेकिन गलती करने पर और उनकी बात न मानने पर मेरी जमकर धुलाई करती हैं। इतनी धुलाई करती हैं कि बिना सर्फ-एक्सल के सारे दाग निकाल देती हैं। इसलिए मैं नहीं चहता की मेरी ऐसी धुलाई हों। इसलिए मैं गुप्ताजी को बुलाकर …….

दीप:- गुप्ताजी मैं घर जा रहा हूॅं।

गुप्ताज़ी:- सर आज इतनी जल्दी।

दीप:- गुप्ताजी आज ही नहीं अब रोज जल्दी घर जाना हैं। नहीं तो माॅं बहूत गुस्सा करेंगी और उस गुस्से का सारा ठीकरा मुझ पर ही फोड़ेगी।

गुप्ताजी:- मतलब की डाटेगी और मारेगी भी।

दीप:- हाॅं गुप्ताजी माॅं मुझसे जितना प्यार करती हैं। गलती करने पर उतना ही सजा देती हैं और उनकी दी हुईं सजा से जितनी पीढ़ा मुझे होती हैं। मुझसे कहीं गुणा ज्यादा पीढ़ा माॅं को होती हैं। मुझे भले ही कितना भी पीढ़ा पहुंचे पर मेरे वजह से मां को पीढ़ा नहीं पहुंचनी चहिए।

गुप्ताजी:- सर अब भी अपको मैडम मरती हैं।

दीप:- हाॅं गलती करने पर बहुत मरती हैं।

गुप्ताजी:- लेकिन अब तो आप छोट नहीं रहे फिर भी…...

दीप:- बच्चे चाहें कितना भी बड़ा हो जाए। माॅं-बाप के लिए छोटा ही रहता हैं। इसलिए गलती करने पर सजा देने का हक बनता हैं। मेरी माॅं दूसरे माॅं-बाप की तरह नहीं हैं की गलती करने पर छुपा ले बल्कि गलती करने पर गलती के अनुकूल सजा देती हैं।

गुप्ताजी:- सर अपने सही कहा की गलती करने पर हमे अपने बच्चों की गलती नहीं छुपानी चहिए। इस मामले में तो मैं मैडम की बहुत तारीफ करता हूॅं।

दीप:- जितनी तारीफ करनी हैं माॅं से मिलाकर कर लेना। मैं चलता हूॅं 7 बजे तक घर पहुंचना हैं। 7 बजने में पंद्रह मिनट रहा गए हैं। आज तो पक्का धुलाई होनी हैं। कितना होगी ये घर जाकर पाता चलेगा।

मैं जल्दी में निकाल जाता हूॅं। मुझे जल्दी में निकलता हुआ देखकर गुप्ताजी मन ही मन सोचती हैं "ऊॅंठ जैसा हों गए हैं फिर भी अपनी माॅं से कितना डरते हैं। " अब गुप्ताजी को कौन समझाए की ये डर नहीं माॅं के प्रति मेरा प्रेम हैं।

मैं अपनी कार को रास्ते पर सरपट दौड़ने लगता हूॅं ताकि मैं जल्दी ही घर पहुंच जाऊं और माॅं और मुझे होने वाले तकलीफ़ से बच जाऊ। लेकिन इस तकलीफ का सामना करना मेरी और मेरी माॅं के भाग्य में नियति ने पहले से ही लिख दिया हैं। मेरे ऑफिस से निकलकर कुछ दूर पहुंचते ही जो दृश्य मुझे दिखा। उसे देखते ही स्वत: ही मेरे पैर गाड़ी के ब्रेक पर पहुंच गया। मैंने इतनी तेज ब्रेक दबाया की गाडी थोडी दूर फिसलकर बर्फ की तरह जम गया। मैंने इस तरह गाड़ी को रोका कि मेरे पीछे कोई और गाड़ी होती तो एक भीषण दुर्घटना हों जाती। लेकिन मैं इसे सुभाग्य कहूं या कुछ और क्योंकि मेरे पीछे कोई ओर गाड़ी आ ही नहीं रहा था।

गाड़ी रुखते ही मैं सामने की दृश्य को देखकर कुछ पल तो स्तब्ध रह गया। मुझे लगा की मेरे हाथ पैर को लकवा मर गया हों। इसके पीछे वजह ये था की वो दृश्य ही इतना मार्मिक और ह्रदय आगत करने वाला था। मेरे जैसा कोमल और निर्मल हृदय वाला ही इस दृश्य को देखकर रूक सकता हैं। वरना बहुत सी गाडियां ऐसे कन्नी काटकर निकाल रहे हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं। मैं अपने गाडी से निकलकर उस तरफ बड़ा जहां एक कुतिया जो किसी गाडी के चपेट में आकार मारने की हालत में पड़ा हुए हैं। उसके साथ एक छोटा पिल्ला हैं। जो इधर उधर देख रहा हैं और अपनी मां के चहरे को चाट रहा हैं। शायद वो अपने मां से कह रहा हो "मां उठो न मुझे डर लगा रहा हैं।" लेकिन उठे भी तो कैसे उठे उसमे जान ही नहीं बचा होगा।

मैं नजदीक पहुंचकर देखा तो उस कुतिया की हल्की-हल्की सांसें चल रहीं थीं। उस छोट से पिल्ले की अपने मां के प्रति ऐसा व्यवहार देखकर पाता नहीं मुझे किया सुझा कि मैंने अपना हाथ पिल्ले के सर पर फिरा दिया। मेरे द्वारा ऐसा किए जानें पर पिल्ला एक बार पलटकर मेरे तरफ देखा फिर अपनी मां के चहरे को चाटने लगा। उसे देखकर मुझे लगा जैसे वो मुझसे कह रहा हों " देखो न मेरे मां को किया हुआ हैं जो उठ ही नहीं रहीं हैं। इनसे कहो न कि उठ जाएं इनके अलावा इस निष्ठुर दुनियां में कोई और नहीं हैं।" ये सोच मेरे मस्तिष्क में आते ही मेरे नैन बरस पड़े। अभी मैं कुछ और करता उसे पहले मेरे पीछे से किसी ने पुछा…..

शख्स:- क्या हुआ भाई?

मैं उनकी तरफ पलटकर देखा और उनसे बोला…..

दीप:- लोग इतने पत्थर दिल कैसे हो सकते हैं जो इस बेजुबान जानवर पर थोडी सी दया भी न आई ।

शख्स:- कैसे आएगी ? जो एक इंसान को मरण अवस्था में देखकर भी ऐसे पलट जाते हैं। जैसे कुछ हुआ ही नहीं फिर ये तो एक बेजुबान जानवर हैं।

दीप:- लेकिन आप तो नहीं पलटे?

शख्स:- सभी पत्थर दिल नहीं होते। कुछ आप जैसे निर्मल और कोमल हृदय के भी होते हैं। हमे देर नहीं करना चहिए इसे उठाकर अस्पताल ले कर चलना चहिए ताकि इसकी जन बचाई जा सकें।

शख्स ने ऐसा कहकर अपने गले में टांगी टावल को मेरे और बढ़ाया। अब उनके गले में ये टावल कहा से आई ये तो नहीं कह सकता। मैंने उनसे टावल लिया और कुतिया को टावेल में लपेट कर उठाया और अपने गाडी की और चल पड़ा। गाडी के पास पहुंच कर मैने कार की पिछले सीट पर कुतिया को रखा। मेरे पीछे-पीछे वो शख्स पिल्ले को लेकर आ रहा था। मैंने पिल्ले को उनसे लिया और अपने कर में बैठकर पिल्ले को बगल के सीट पर रखकर कार को स्टार्ट किया और चलने ही वाला था की उस शख्स ने बोला…..

शख्स:- आप मेरे पीछे-पीछे आईए यहां से कुछ ही दूर पर मेरा जानवरों का अस्पताल हैं। वहां लेकर चले।

वो शख्स ऐसा कहकर अपनी कार में बैठकर अपनी कार को बताई हुई दिशा में दौड़ा दी। मैंने भी अपनी कार शख्स के पीछे-पीछे सरपट दौड़ा दी।
 

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