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अजनबी
Update - 1
आज दीप के घर पर महासभा हों रहीं हैं। जिसमें भाग लेने परिवार के मुख्य सदस्य ही समलित हुऐ हैं। मुख्य सदस्य में दीप के नाना-नानी, दादा -दादी, पापा और दीप की लाइफ की सबसे खास उसकी माॅं दीप अभी तक अपने दफ्तर से नहीं आया था। जबकि उसे बता दिए गया था की उसे आज दफ्तर से जल्दी आना हैं। घर पे कुछ जरूरी बात पर चर्चा होनी हैं। जबकि महाशय अभी तक आए नहीं हैं इसलिए घर के मुख्य सदस्य एक कमरे में बैठ कर एक दुसरे के सामने अपनी-अपनी नराजगी जता रहे हैं।
नाना:- ये नालायक कहा रह गया।
नानी:- सुनो जी आप मेरे नाती को भूल कर भी नालायक नहीं कहेंगे वो नालायक होता तो इतनी मेहनत करके इतनी बडी कोठी न बनाता और कहा गया हैं ये तो वहीं बता सकता हैं।
नाना:- ठीक हैं नहीं कहता नालायक पर पता तो करो ये ससुर की नाती हैं कहा अब तक।
नाना की बाते सुनकर घर के बाकी सदस्य ठहाका मारकर हॅंसने लगता हैं और नानी अपनी मुॅंह फुला कर बैठ जाती हैं।
दादा:- और कहा जायेगा गया होगा अपनी किसी गर्लफ्रेंड के पास, आ जायेगा मिलकर।
माॅं:- किया बोल रहे हैं आप अब किससे मिलने गया हैं। उसकी दोनों गर्लफ्रेंड तो यहां बैठी हैं।
माॅं अपनी बात कह कर खिलखिला कर हाॅंस देती हैं। माॅं को इस तरह हॅंसता हुआ देखकर बाकी सब भी हॅंस देता हैं । दादी और नानी अपने मुॅंह पर हाथ रख कर आहहह किया कह रहीं हैं पागल-बगल तो नहीं हों गयी।
पापा:- ये मजाक करना छोड़ो और दीप से पूछो वो कितनी देर में आ रहा हैं। आज तो कुछ फैसला लेना ही पड़ेगा और कब तक हम सम्हाले इसे। कोई तो होना चाहिए जो इसे सम्हाले।
हाॅं हाॅं आज तो इसे हाॅं करना ही पड़ेगा ओर कब तक टालेगा हमे….. तभी कोई दरवाजा खटखटाता हैं और आवाज़ देता हैं माॅं दरवाजा खोलो
माॅं:- आ गया हैं। तैयार रहना सब आज इसे मानकर ही छोड़ना हैं। माॅं जाकर दरवाजा खोलता हैं और दीप को देखकर बोलता हैं आ गया मेरे बेटा चल अन्दर आ जल्दी से नही तो वो नकचड़ी आ जायेगी।
दीप अन्दर आकर देखता हैं। जहाॅं पहले हॅंसीं मजा चल राह था। वहां सब गंभीर मुद्रा में बैठे हैं। जैसे संसद में किसी विशेष मुद्दे पर चर्चा हों रहीं हों और सारे दल एक मत नहीं बना पा रहें की मुद्दे के पक्ष में रहें या विपक्ष में।
दीप जाकर अपने माॅं-पापा, नाना-नानी, के पाओ छूकर आशीर्वाद लिया और अपने सवाल दागने शुरू कर दिए।
दीप:- ऐसा किया हो गया कि आप सब यहां इखट्टा आ गाए? आप सब के चहरे क्यूॅं लटके हुऐ हैं? आप सब किया सोच रहें थे, जिससे आप सब की चहरे की हवाइयां उड़ी हुई हैं? बाहर निधि किया कह रहीं थीं कि अपको फासने का पूरा इंतजाम कर रखें हैं। अपके बस दाना चुगने की देर हैं। ऐसा किया सोच रहे हैं। आप सब मेरे बरे में और मुझे क्यूॅं और कहाॅं फसाना चाहते हैं? जल्दी से बताओ।
दीप की बात सुनके सब के सब एक दुसरे के मूॅंह ताकते हैं कि अब किया करे और मन ही मन निधि को "इस निधि की बच्ची बातूनी के पेट में कुछ भी नहीं पचता हैं। इसको बताकर हमने गलती की हैं। दिन भर चपड़-चपड़ खाती रहेंगी वैसे ही बकर-बकर सारी बाते उगल भी देगी।" फिर सब इसरे से एक दुसरे से पूछती हैं अब किया करे। जब दादा जी कुछ बोलने को होता हैं तभी…….
दीप:- फिर से आप क्या सोच रहे हैं? किसी रिश्तेदार की तबियत खराब हैं जो देखने जाना हैं। या फ़िर कुछ ओर बात हैं जो आप लोग बता नहीं रहें हैं।
दादा:- सब से पहले तो तू बैठ जा और पानी पीकर खुद को ठंडा कर। ले पानी की बोतल।
माॅं:- आ बेटा मेरे पास बैठ
दीप जाकर अपने माॅं के पास बैठ जाता हैं। माॅं प्यार से दीप के सर पर हाथ फिरता हैं और बोलता हैं । मेरा प्यारा बच्चा माॅं का हर कहना मानता हैं।
हैं न।
दीप:- जी हाॅं
माॅं:-अभी जो भी तुझे कहेंगे मानेगा न।
दीप:- मनुॅंगा पार ऐसी कौन सी बात हैं जिसे कहने के लिए दादा-दादी, नाना-नानी, माॅं-पापा सब को एक जगह होना पड़ा। आप अकेले भी तो कह सकती थीं, माॅं इसके लिए सबको बुलाने की किया जरूरत थीं।
नाना- अच्छा तो हमारा बेटा इतना बड़ा हो गया हैं की उससे मिलने के लिए हमे तुमसे प्रमिशन लेना पड़ेगा, "हाॅं बोलो।"
नाना जी की बातों को सुनकर दीप जो अभी सब को देखकर उसका चेहरा खिल उठा था। अब उसी चहरे पे उदासी छाॅं गई और इसी उदासिपन में दीप बोल पड़ा।
दीप:- आप जैसा सोच रहे हैं ऐसा कुछ नही हैं। मैंने ऐसा कब कहा की आपको मुझसे मिलने के लिए मुझसे प्रमीशन लेना पड़ेगा या मैने कभी आप सबसे मिलने से मना किया।
दीप के लटके हुऐ चेहरे को देखकर दादा जी और बाकी सब ठहाका मारकर हॅंसने लगे। उनको हॅंसता हुआ देखकर। दीप एक बार माॅं की तरफ देखता एक बार बाकि लोगो की तरफ देखता और सोचा रहा कि हो किया रहा हैं।
माॅं:- पापा इसे और परेशान न करो। देखो तो कितना परेशान हो गया हैं मेरा बेटा।
नाना जी:- क्यूॅं बरखुद्दार मजा आया,लगा झटका। तुम भी तो हमे ऐसे ही परेशान कर रहे हो। हमने मिलकर थोड़ा परेशान क्या किया इसकी तो मुस्कान ही गायब हो गई, चहरे की रंगत ही उड़ गईं।
दीप:- मैं कहाॅं अपको परेशान कर रहा हूॅं और कब किया अपको परेशान।……
दादा:- बेटा कर तो रहें हो परेशान शादी न करके…….
दीप:- पर मैं शादी नहीं करना चहता आप सब……..
पापा:- बेटा तुम शादी नहीं करना चाहते हों। इसके पिछे वजह किया हैं ये हम नहीं जानना चाहते। बेटा तुम्हारे नाना-नानी और दादा-दादी चाहते हैं की मारने से पहले तुम्हे और तुम्हारे पत्नी को एक साथ देखें, किया तुम उनकी ये इच्छा….
दीप:- पर मैं शादी नही करना चाहता हूॅं। मम्मी आप समझाओ ना सबको।
दीप का इस तरीके से सब को नकार देना पापा जी को अच्छा नहीं लगा। इसलिए पापा जी का पारा चढ़ गया और वो गुस्से में बोल पड़े।
पापा:- ऐसी किया मजबूरी हैं तुम्हारी की तुम शादी नहीं करना चाहते हों। तुम्हे हमारी भावनाओं का थोड़ी सी भी कदर नहीं हैं।
पापा को इस तरह गुस्से में आता देखकर दीप अपना सर झुकाकर बैठ गया। पापा का पारा इस तरह चढ़ता हुआ देखकर माॅं ने सारी भाग-दौड़ अपने हाथ में ले ली और बोला।
माॅं:- आप इस तरह अपने बीपी हाई न करें और शांत हों जाइए। मैं……
पापा:- कैसे न नाराज़ होऊॅं। इसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा। हर जगह अपनी ही मर्जी चलानी हैं। किसी की कुछ सुनना ही नहीं हैं।
माॅं:- आप फ़िर से गुस्सा कर रहें हैं। आप सब बाहर जाईऐ। मैं इससे अकेले में बात करके मना कर लती हूॅं।
पापा:- हाॅं मना कर ही लाना मुझे न नहीं सुनना हैं।
ये कहकर पापा, दादा-दादी और नाना-नानी कमरे से बाहर चले जाते हैं। उन सब के जाते ही दीप अपने माॅं से बोलता हैं।
दीप:- माॅं आप सब कुछ जानते हुऐ भी ।
माॅं:- हाॅं बेटा में सब कुछ जानते हुऐ भी तुम्हे शादी करने को कह रहीं हूॅं। और तुम्हारे पापा…..
दीप:- पापा बेवजह इतना…..
माॅं:- बेवजह नहीं बेटा हर माॅं-बाप चहता हैं कि अपने बेटे की शादी धूमधाम से करे और एक सुन्दर सी बहु घर ले आए। क्या तूम हमारी इतनी सी ख्वाइश पूरी नहीं कर सकते ?
दीप:- पूरा तो करना चहता हूॅं। पर जब मेरा बिता कल मुझे याद आता हैं। तो मुझे डर लगता हैं की मेरे साथ दुबारा वहीं घटनाएं न हों। इसलिए शादी न करने का फैसला कर जिंदगी भर अकेला रहना चाहता हूॅं।
माॅं:- बेटा तुम जो ये शादी न करने का फैसला ले रहें हो। ये तुम बहुत ही गलत फैसला ले रहे हो।
दीप:- वो कैसे?
माॅं:- जिस तरह इंसान को जिंदगी जीने के लिऐ, अच्छी सेहत के लिऐ अच्छा खान-पान। रहने के लिऐ एक घर, तन ढकने के लिऐ कपड़े। इन्हीं सब जरूरतों को पूरा कराने के लिऐ रुपए-पैसे की जरूरत पड़ती हैं। उसी प्रकार अपना सुख-दु:ख और अकेलापन बांटने के लिऐ एक साथी की जरूरत पड़ती हैं। जिसके लिऐ शादी करना जरूरी हैं। शादी जो कि हमारे जिंदगी की एक अहम जरूरतों में से एक हैं। शादी कर इंसान आपनी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक जरूरतों को पूरा करता हैं। और अपनी जिंदगी को इत्र की खुशबू की तरह मेंहका देता हैं।
दीप:- मना की शादी एक अहम जरूरतों में से एक हैं पर मेरा बिता हुआ कल मुझे अकेले रहने पार मजबूर करता हैं। उसका किया।
माॅं:- हम साधारण इंसान जिंदगी भर अकेले नहीं रह सकते। एक समय के बाद हमे एक साथी की जरूरत पड़ती ही हैं। जिसके साथ हम कुछ सुनहरे पल बिताए और उन बातो को शेयर करते हैं जो हम किसी ओर को नहीं बता सकते। मुझे तुम्हारी आंखों में वो अकेलापन दिखता हैं। तुम खुद अपने उस अकेलेपन से लड़ रहें हों और तुम एक ऐसे साथी को ढूंढ रहें हों जिससे तुम अपना अकेलापन बांट सको। और अपने तन और मन को शांत कर सको।
माॅं की इन बातों को सुनकर दीप मन में ही कहता है। सच ही तो कह रहीं हैं माॅं। मैं ढूंढ ही तो रहा हूॅं एक ऐसा साथी जो मुझे समझे। जिसके साथ मैं अपना दुःख-दर्द और खुशियां बांट सकूं ।
माॅं:- बेटा क्या हुआ ? किस सोच में डूबा गए।
दीप:-माॅं मैं आपकी कहीं हुईं बातों के बरे में ही सोच रहा हूॅं। मै भी चाहता हूॅं की कोई ऐसा हो जिसके साथ मैं अपना अकेलापन बांट सकूॅं पर मेरा बिता हुआ कल बार-बार मुझे रोकता हैं। मेरे साथ दुबारा ऐसा न हों जाए इसलिए डरता हूॅं।
माॅं- हमारे साथ भविष्य में किया होगा इस डर से हम अपने वर्तमान में मिल रहीं खुशियों को भूलकर वर्तमान के साथ भविष्य भी बिगड़ लेते हैं।
दीप:- माॅं इसकी किया गारेंटी हैं की शादी के बाद दुबारा मारे साथ वैसा नहीं होगा जो बीते कल में मेरे साथ हुआ।
माॅं:- ये तुम कह रहें हों जिसने अपने वर्तमान में मेहनत कर अपने भविष्य को संवारा हैं और फर्श से अर्श तक का सफर तय किया हैं और रहीं बात शादी के बाद की बात तो शादी के बाद पति-पत्नी अपनी वैवाहिक जीवन में तल-मेल बनाकर रखें, एक-दुसरे की मन की भावनाओं को समझकर फैसला ले, तो भविष्य में कुछ भी गलत नहीं हों सकता। तभी तो कहते हैं आपने वर्तमान में मेहनत करो और भविष्य को सवारों। आया कुछ समझा में मेरे लाल।
दीप:- समझा गया माते जो कुछ अपने कहा। मैं आपको एक बात ओर कह दूॅं मेरे साथ जो कुछ भी पिछे हुआ था। वैसा ही कुछ मेरे साथ दुबारा हुआ तो अब मुझमें उतनी हिम्मत नहीं रहीं की मैं खुद को सम्हाल सकूॅं। मैं कुछ भी कर बैठूंगा।
दीप की कही हुईं बातों को सुनकर माॅं एक बार को अन्दर ही अन्दर कांप गईं क्योंकि माॅं दीप की मानो दशा से भलीभाती परिचित थी और दीप की बीती जिंदगी में घाटी घटनाओं से अंजान न थी। माॅं अपने को शांत कर दीप से कहता हैं।
माॅं- मैं अपने बेटे को अच्छे से जानता हूॅं कि भविष्य में उसके साथ कुछ गलत न हो इसलिए वर्तमान को कैसे संवारना हैं ये अच्छे से जनता हैं। तू डर मत तेरे साथ कुछ गलत नहीं होगा।
दीप:- तुम साथ हो तो मैं नहीं डरता। लड़की ढूंढना शुरू कर दो। मगर एक बात बता दूॅं जो भी लड़की देखोगे, जब तक मैं उसे अच्छे से परख नहीं लेता तब तक कोई जल्दीबाज़ी नहीं करेंगे।
माॅं:- अच्छा ठीक हैं। चल अब बाहर चलते हैं। सब मुॅंह फैलाए बैठे हैं तेरे शादी के लड्डू जो खाने हैं उन्हें। ही ही ही
दीप:-माॅं शादी का लड्डू तो मैं खाऊँगा उन्हें क्यूॅं मिलेगा। हां हां हां हां
दोनों माॅं बेटे हंसते हुऐ कमरे से बाहर आ जाते हैं। बाहर आकार सब के पास डायनिंग हाल में बैठ जाते हैं। दोनों माॅं-बेटे को बाहर आता हुआ देखकर। उनकी खिले हुऐ चेहरे को देखकर। घर के सदस्य ये जानें के लिऐ छटपटा रहें हैं की दीप के केस का किया फैसला आया हैं। किया वो जेल जानें को तैयार हैं या फिर उसे ताड़ीपाड़ करने की सजा मिली हैं।
Update - 1
आज दीप के घर पर महासभा हों रहीं हैं। जिसमें भाग लेने परिवार के मुख्य सदस्य ही समलित हुऐ हैं। मुख्य सदस्य में दीप के नाना-नानी, दादा -दादी, पापा और दीप की लाइफ की सबसे खास उसकी माॅं दीप अभी तक अपने दफ्तर से नहीं आया था। जबकि उसे बता दिए गया था की उसे आज दफ्तर से जल्दी आना हैं। घर पे कुछ जरूरी बात पर चर्चा होनी हैं। जबकि महाशय अभी तक आए नहीं हैं इसलिए घर के मुख्य सदस्य एक कमरे में बैठ कर एक दुसरे के सामने अपनी-अपनी नराजगी जता रहे हैं।
नाना:- ये नालायक कहा रह गया।
नानी:- सुनो जी आप मेरे नाती को भूल कर भी नालायक नहीं कहेंगे वो नालायक होता तो इतनी मेहनत करके इतनी बडी कोठी न बनाता और कहा गया हैं ये तो वहीं बता सकता हैं।
नाना:- ठीक हैं नहीं कहता नालायक पर पता तो करो ये ससुर की नाती हैं कहा अब तक।
नाना की बाते सुनकर घर के बाकी सदस्य ठहाका मारकर हॅंसने लगता हैं और नानी अपनी मुॅंह फुला कर बैठ जाती हैं।
दादा:- और कहा जायेगा गया होगा अपनी किसी गर्लफ्रेंड के पास, आ जायेगा मिलकर।
माॅं:- किया बोल रहे हैं आप अब किससे मिलने गया हैं। उसकी दोनों गर्लफ्रेंड तो यहां बैठी हैं।
माॅं अपनी बात कह कर खिलखिला कर हाॅंस देती हैं। माॅं को इस तरह हॅंसता हुआ देखकर बाकी सब भी हॅंस देता हैं । दादी और नानी अपने मुॅंह पर हाथ रख कर आहहह किया कह रहीं हैं पागल-बगल तो नहीं हों गयी।
पापा:- ये मजाक करना छोड़ो और दीप से पूछो वो कितनी देर में आ रहा हैं। आज तो कुछ फैसला लेना ही पड़ेगा और कब तक हम सम्हाले इसे। कोई तो होना चाहिए जो इसे सम्हाले।
हाॅं हाॅं आज तो इसे हाॅं करना ही पड़ेगा ओर कब तक टालेगा हमे….. तभी कोई दरवाजा खटखटाता हैं और आवाज़ देता हैं माॅं दरवाजा खोलो
माॅं:- आ गया हैं। तैयार रहना सब आज इसे मानकर ही छोड़ना हैं। माॅं जाकर दरवाजा खोलता हैं और दीप को देखकर बोलता हैं आ गया मेरे बेटा चल अन्दर आ जल्दी से नही तो वो नकचड़ी आ जायेगी।
दीप अन्दर आकर देखता हैं। जहाॅं पहले हॅंसीं मजा चल राह था। वहां सब गंभीर मुद्रा में बैठे हैं। जैसे संसद में किसी विशेष मुद्दे पर चर्चा हों रहीं हों और सारे दल एक मत नहीं बना पा रहें की मुद्दे के पक्ष में रहें या विपक्ष में।
दीप जाकर अपने माॅं-पापा, नाना-नानी, के पाओ छूकर आशीर्वाद लिया और अपने सवाल दागने शुरू कर दिए।
दीप:- ऐसा किया हो गया कि आप सब यहां इखट्टा आ गाए? आप सब के चहरे क्यूॅं लटके हुऐ हैं? आप सब किया सोच रहें थे, जिससे आप सब की चहरे की हवाइयां उड़ी हुई हैं? बाहर निधि किया कह रहीं थीं कि अपको फासने का पूरा इंतजाम कर रखें हैं। अपके बस दाना चुगने की देर हैं। ऐसा किया सोच रहे हैं। आप सब मेरे बरे में और मुझे क्यूॅं और कहाॅं फसाना चाहते हैं? जल्दी से बताओ।
दीप की बात सुनके सब के सब एक दुसरे के मूॅंह ताकते हैं कि अब किया करे और मन ही मन निधि को "इस निधि की बच्ची बातूनी के पेट में कुछ भी नहीं पचता हैं। इसको बताकर हमने गलती की हैं। दिन भर चपड़-चपड़ खाती रहेंगी वैसे ही बकर-बकर सारी बाते उगल भी देगी।" फिर सब इसरे से एक दुसरे से पूछती हैं अब किया करे। जब दादा जी कुछ बोलने को होता हैं तभी…….
दीप:- फिर से आप क्या सोच रहे हैं? किसी रिश्तेदार की तबियत खराब हैं जो देखने जाना हैं। या फ़िर कुछ ओर बात हैं जो आप लोग बता नहीं रहें हैं।
दादा:- सब से पहले तो तू बैठ जा और पानी पीकर खुद को ठंडा कर। ले पानी की बोतल।
माॅं:- आ बेटा मेरे पास बैठ
दीप जाकर अपने माॅं के पास बैठ जाता हैं। माॅं प्यार से दीप के सर पर हाथ फिरता हैं और बोलता हैं । मेरा प्यारा बच्चा माॅं का हर कहना मानता हैं।
हैं न।
दीप:- जी हाॅं
माॅं:-अभी जो भी तुझे कहेंगे मानेगा न।
दीप:- मनुॅंगा पार ऐसी कौन सी बात हैं जिसे कहने के लिए दादा-दादी, नाना-नानी, माॅं-पापा सब को एक जगह होना पड़ा। आप अकेले भी तो कह सकती थीं, माॅं इसके लिए सबको बुलाने की किया जरूरत थीं।
नाना- अच्छा तो हमारा बेटा इतना बड़ा हो गया हैं की उससे मिलने के लिए हमे तुमसे प्रमिशन लेना पड़ेगा, "हाॅं बोलो।"
नाना जी की बातों को सुनकर दीप जो अभी सब को देखकर उसका चेहरा खिल उठा था। अब उसी चहरे पे उदासी छाॅं गई और इसी उदासिपन में दीप बोल पड़ा।
दीप:- आप जैसा सोच रहे हैं ऐसा कुछ नही हैं। मैंने ऐसा कब कहा की आपको मुझसे मिलने के लिए मुझसे प्रमीशन लेना पड़ेगा या मैने कभी आप सबसे मिलने से मना किया।
दीप के लटके हुऐ चेहरे को देखकर दादा जी और बाकी सब ठहाका मारकर हॅंसने लगे। उनको हॅंसता हुआ देखकर। दीप एक बार माॅं की तरफ देखता एक बार बाकि लोगो की तरफ देखता और सोचा रहा कि हो किया रहा हैं।
माॅं:- पापा इसे और परेशान न करो। देखो तो कितना परेशान हो गया हैं मेरा बेटा।
नाना जी:- क्यूॅं बरखुद्दार मजा आया,लगा झटका। तुम भी तो हमे ऐसे ही परेशान कर रहे हो। हमने मिलकर थोड़ा परेशान क्या किया इसकी तो मुस्कान ही गायब हो गई, चहरे की रंगत ही उड़ गईं।
दीप:- मैं कहाॅं अपको परेशान कर रहा हूॅं और कब किया अपको परेशान।……
दादा:- बेटा कर तो रहें हो परेशान शादी न करके…….
दीप:- पर मैं शादी नहीं करना चहता आप सब……..
पापा:- बेटा तुम शादी नहीं करना चाहते हों। इसके पिछे वजह किया हैं ये हम नहीं जानना चाहते। बेटा तुम्हारे नाना-नानी और दादा-दादी चाहते हैं की मारने से पहले तुम्हे और तुम्हारे पत्नी को एक साथ देखें, किया तुम उनकी ये इच्छा….
दीप:- पर मैं शादी नही करना चाहता हूॅं। मम्मी आप समझाओ ना सबको।
दीप का इस तरीके से सब को नकार देना पापा जी को अच्छा नहीं लगा। इसलिए पापा जी का पारा चढ़ गया और वो गुस्से में बोल पड़े।
पापा:- ऐसी किया मजबूरी हैं तुम्हारी की तुम शादी नहीं करना चाहते हों। तुम्हे हमारी भावनाओं का थोड़ी सी भी कदर नहीं हैं।
पापा को इस तरह गुस्से में आता देखकर दीप अपना सर झुकाकर बैठ गया। पापा का पारा इस तरह चढ़ता हुआ देखकर माॅं ने सारी भाग-दौड़ अपने हाथ में ले ली और बोला।
माॅं:- आप इस तरह अपने बीपी हाई न करें और शांत हों जाइए। मैं……
पापा:- कैसे न नाराज़ होऊॅं। इसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा। हर जगह अपनी ही मर्जी चलानी हैं। किसी की कुछ सुनना ही नहीं हैं।
माॅं:- आप फ़िर से गुस्सा कर रहें हैं। आप सब बाहर जाईऐ। मैं इससे अकेले में बात करके मना कर लती हूॅं।
पापा:- हाॅं मना कर ही लाना मुझे न नहीं सुनना हैं।
ये कहकर पापा, दादा-दादी और नाना-नानी कमरे से बाहर चले जाते हैं। उन सब के जाते ही दीप अपने माॅं से बोलता हैं।
दीप:- माॅं आप सब कुछ जानते हुऐ भी ।
माॅं:- हाॅं बेटा में सब कुछ जानते हुऐ भी तुम्हे शादी करने को कह रहीं हूॅं। और तुम्हारे पापा…..
दीप:- पापा बेवजह इतना…..
माॅं:- बेवजह नहीं बेटा हर माॅं-बाप चहता हैं कि अपने बेटे की शादी धूमधाम से करे और एक सुन्दर सी बहु घर ले आए। क्या तूम हमारी इतनी सी ख्वाइश पूरी नहीं कर सकते ?
दीप:- पूरा तो करना चहता हूॅं। पर जब मेरा बिता कल मुझे याद आता हैं। तो मुझे डर लगता हैं की मेरे साथ दुबारा वहीं घटनाएं न हों। इसलिए शादी न करने का फैसला कर जिंदगी भर अकेला रहना चाहता हूॅं।
माॅं:- बेटा तुम जो ये शादी न करने का फैसला ले रहें हो। ये तुम बहुत ही गलत फैसला ले रहे हो।
दीप:- वो कैसे?
माॅं:- जिस तरह इंसान को जिंदगी जीने के लिऐ, अच्छी सेहत के लिऐ अच्छा खान-पान। रहने के लिऐ एक घर, तन ढकने के लिऐ कपड़े। इन्हीं सब जरूरतों को पूरा कराने के लिऐ रुपए-पैसे की जरूरत पड़ती हैं। उसी प्रकार अपना सुख-दु:ख और अकेलापन बांटने के लिऐ एक साथी की जरूरत पड़ती हैं। जिसके लिऐ शादी करना जरूरी हैं। शादी जो कि हमारे जिंदगी की एक अहम जरूरतों में से एक हैं। शादी कर इंसान आपनी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक जरूरतों को पूरा करता हैं। और अपनी जिंदगी को इत्र की खुशबू की तरह मेंहका देता हैं।
दीप:- मना की शादी एक अहम जरूरतों में से एक हैं पर मेरा बिता हुआ कल मुझे अकेले रहने पार मजबूर करता हैं। उसका किया।
माॅं:- हम साधारण इंसान जिंदगी भर अकेले नहीं रह सकते। एक समय के बाद हमे एक साथी की जरूरत पड़ती ही हैं। जिसके साथ हम कुछ सुनहरे पल बिताए और उन बातो को शेयर करते हैं जो हम किसी ओर को नहीं बता सकते। मुझे तुम्हारी आंखों में वो अकेलापन दिखता हैं। तुम खुद अपने उस अकेलेपन से लड़ रहें हों और तुम एक ऐसे साथी को ढूंढ रहें हों जिससे तुम अपना अकेलापन बांट सको। और अपने तन और मन को शांत कर सको।
माॅं की इन बातों को सुनकर दीप मन में ही कहता है। सच ही तो कह रहीं हैं माॅं। मैं ढूंढ ही तो रहा हूॅं एक ऐसा साथी जो मुझे समझे। जिसके साथ मैं अपना दुःख-दर्द और खुशियां बांट सकूं ।
माॅं:- बेटा क्या हुआ ? किस सोच में डूबा गए।
दीप:-माॅं मैं आपकी कहीं हुईं बातों के बरे में ही सोच रहा हूॅं। मै भी चाहता हूॅं की कोई ऐसा हो जिसके साथ मैं अपना अकेलापन बांट सकूॅं पर मेरा बिता हुआ कल बार-बार मुझे रोकता हैं। मेरे साथ दुबारा ऐसा न हों जाए इसलिए डरता हूॅं।
माॅं- हमारे साथ भविष्य में किया होगा इस डर से हम अपने वर्तमान में मिल रहीं खुशियों को भूलकर वर्तमान के साथ भविष्य भी बिगड़ लेते हैं।
दीप:- माॅं इसकी किया गारेंटी हैं की शादी के बाद दुबारा मारे साथ वैसा नहीं होगा जो बीते कल में मेरे साथ हुआ।
माॅं:- ये तुम कह रहें हों जिसने अपने वर्तमान में मेहनत कर अपने भविष्य को संवारा हैं और फर्श से अर्श तक का सफर तय किया हैं और रहीं बात शादी के बाद की बात तो शादी के बाद पति-पत्नी अपनी वैवाहिक जीवन में तल-मेल बनाकर रखें, एक-दुसरे की मन की भावनाओं को समझकर फैसला ले, तो भविष्य में कुछ भी गलत नहीं हों सकता। तभी तो कहते हैं आपने वर्तमान में मेहनत करो और भविष्य को सवारों। आया कुछ समझा में मेरे लाल।
दीप:- समझा गया माते जो कुछ अपने कहा। मैं आपको एक बात ओर कह दूॅं मेरे साथ जो कुछ भी पिछे हुआ था। वैसा ही कुछ मेरे साथ दुबारा हुआ तो अब मुझमें उतनी हिम्मत नहीं रहीं की मैं खुद को सम्हाल सकूॅं। मैं कुछ भी कर बैठूंगा।
दीप की कही हुईं बातों को सुनकर माॅं एक बार को अन्दर ही अन्दर कांप गईं क्योंकि माॅं दीप की मानो दशा से भलीभाती परिचित थी और दीप की बीती जिंदगी में घाटी घटनाओं से अंजान न थी। माॅं अपने को शांत कर दीप से कहता हैं।
माॅं- मैं अपने बेटे को अच्छे से जानता हूॅं कि भविष्य में उसके साथ कुछ गलत न हो इसलिए वर्तमान को कैसे संवारना हैं ये अच्छे से जनता हैं। तू डर मत तेरे साथ कुछ गलत नहीं होगा।
दीप:- तुम साथ हो तो मैं नहीं डरता। लड़की ढूंढना शुरू कर दो। मगर एक बात बता दूॅं जो भी लड़की देखोगे, जब तक मैं उसे अच्छे से परख नहीं लेता तब तक कोई जल्दीबाज़ी नहीं करेंगे।
माॅं:- अच्छा ठीक हैं। चल अब बाहर चलते हैं। सब मुॅंह फैलाए बैठे हैं तेरे शादी के लड्डू जो खाने हैं उन्हें। ही ही ही
दीप:-माॅं शादी का लड्डू तो मैं खाऊँगा उन्हें क्यूॅं मिलेगा। हां हां हां हां
दोनों माॅं बेटे हंसते हुऐ कमरे से बाहर आ जाते हैं। बाहर आकार सब के पास डायनिंग हाल में बैठ जाते हैं। दोनों माॅं-बेटे को बाहर आता हुआ देखकर। उनकी खिले हुऐ चेहरे को देखकर। घर के सदस्य ये जानें के लिऐ छटपटा रहें हैं की दीप के केस का किया फैसला आया हैं। किया वो जेल जानें को तैयार हैं या फिर उसे ताड़ीपाड़ करने की सजा मिली हैं।