Incest मांगलिक बहन

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सूरज पूरी तरह से डूब चुका था और बाहर अंधेरा नजर आ रहा था। लेकिन गाड़ी में शहनाज़ के रूप सौंदर्य की धूप खिली हुई थी और अजय उस पर पूरी तरह से आकर्षित हो गया था।

पीछे सौंदर्या और शहनाज़ आपस में बाते कर रही थी।

सौंदर्या:" वैसे एक बात है दीदी आप साडी में इतनी ज्यादा खूबसूरत लगेगी इसका अंदाजा नहीं था मुझे।

शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:"

" अच्छा जी लेकिन सुंदर तो तुम भी हो सौंदर्या। मेरी प्यारी सहेली।

सौंदर्या:" हान जी लेकिन आपकी बात ही कुछ ओर हैं। सच कहूं तो ऐसा रूप सौंदर्य आज तक मैंने भी नहीं देखा। कौन कहेगा कि आपका एक जवान बेटा हैं। सच मानिए आपके लिए तो अभी लडको की लाइन लग जाएगी।

शहनाज़:" चुप कर पगली तुम, कुछ भी बोल देती हो। ऐसा कुछ भी नहीं हैं सौंदर्या।

अजय का दिल किया कि बोल दू एक लड़का तो मैं ही शहनाज़ हो तुम्हारे लिए पागल हो गया हूं लेकिन फिर संयम से काम लेते हुए बोला:"

" शहनाज़ दीदी सच में सौंदर्या दीदी सच ही तो कह रही है। आपके लिए तक लड़के दीवाने हो जाएंगे। वैसे अगर आप बुरा ना माने तो एक सलाह दू आपको ?

शहनाज़:" हान जी आप बोलो, क्या सलाह हैं?

अजय:" आपको एक बार फिर से शादी कर लेनी चाहिए।

अजय की बात सुनकर शहनाज़ के होंठो पर स्माइल फैल गई और मन ही मन सोचने लगी कि शादी तो मैं कर ही चुकी हूं अपनी जान अपने लाडले बेटे शादाब से। लेकिन अपने आपको संभालते हुए हंसते हुए बोली:"

" मतलब तुम कुछ भी बोल दोगे क्या ? मेरी उम्र देखो और मेरा एक जवान बेटा भी है।।

सौंदर्या:" उम्र तो आपकी कुछ भी नहीं है। ध्यान से खुद को देखो तो पता चला जाएगा कि अभी 28 साल से ज्यादा नहीं लगती है। अजय की बात बिल्कुल ठीक हैं आपको शादी कर लेनी चाहिए।

शहनाज: मुझे नहीं करनी शादी। अब तुम दोनों चुप बैठ जाओ और अजय तुम आराम से गाड़ी चलाओ। कहीं शादी के चक्कर में लेट ना हो जाए।

अजय और सौंदर्या चुप हो गए और गाड़ी की रफ्तार अब बहुत तेज हो गई थी। सौंदर्या खामोश बैठी हुई थी अपना मुंह फुलाए।

शहनाज़ समझ गई कि दोनो को बुरा लग गया है इसलिए बोली:"

" आप दोनो मेरी बात का बुरा मत मानिए। अगर दिल दुखा हो तो मुझे माफ़ कर दो तुम दोनों।

सौंदर्या:" अच्छा जी वैसे तो तुम मुझे अपनी सहेली बोलती हो और अभी बूढ़ी अम्मा की तरह हुए डांट दिया। ये अच्छी बात नहीं है।

शहनाज़:" अच्छा बाबा सॉरी, अब आगे से कभी नहीं कहूंगी। अब तो स्माइल करो तुम दोनो।

सौंदर्या:" एक शर्त पर ?

शहनाज़:" वो क्या अब बोलो भी ?

सौंदर्या:" आप मुझे अपनी सहेली समझती हो या बहन?

शहनाज़:" तुम तो मेरी बहन जैसी हो सौंदर्या। सगी से भी ज्यादा और अजय तुम मेरे लिए बिल्कुल मेरे बेटे जैसे हो।

सौंदर्या:" आपने हमें इसलिए डांट दिया क्योंकि आप हमे छोटा समझती है। आज से हम दोनों बराबर और एक दूसरे को नाम से बुलाएंगे नहीं तो आप फिर से डांट सकती हो आगे चलकर।

शहनाज़ ने सौंदर्या का हाथ पकड़ लिया और बोली:" बस इतनी सी बात ठीक से आज से तुम मुझे मेरे नाम से बुला लेना बस अब खुश हो तुम।

सौंदर्या शहनाज़ के गले लग गई और उसका गाल चूम कर बोली:"

" खुश एकदम खुश। थैंक्स शहनाज़ तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो।

अजय की नाराजगी भी दूर हो गई थी बल्कि वो तो शहनाज़ से नाराज़ ही नहीं हुआ था। रात के करीब 10 बज गए थे और आकाश में चांद निकल आया था जिसकी हल्की रोशनी बाहर फैली हुई थी। अजय ना चाहते हुए भी शहनाज़ को बार बार प्यार भरी नजरो से देख रहा था और शहनाज़ की नजर बीच में एक दो बार उससे टकराई तो शहनाज़ को अजय की नजरे बदली बदली सी महसूस हुई।

सौंदर्या सो गई थी और थोड़ी देर बाद भी उनकी गाड़ी लिंगेश्वर मंदिर के सामने पहुंच गई। अजय ने गाड़ी को पीछे पार्क कर दिया और देखा कि अभी 10:40 हुए थे जबकि मंदिर में उनके घुसने का शुभ मुहूर्त 11:10 था तो उसने शहनाज़ को इशारा किया कि अभी सौंदर्या को सोने ही दो। अजय ने गाड़ी की खिड़की खोली और बाहर निकल गया और पीछे से शहनाज़ की तरफ से खिड़की को खोल दिया। शहनाज़ सावधानी पूर्वक बाहर निकलने लगी लेकिन निकलते हुए उसकी साड़ी नीचे से खिड़की के लॉक में फंस गई और नीचे से खुलती चली गई। शहनाज़ अब नीचे से मात्र पेंटी में अजय के सामने खड़ी हुई थी। साडी का एक पल्लू हवा में झूल रहा था जबकि दूसरा उपर उसके ब्लाउस में कंधे पर फंसा हुआ था।

शहनाज़ के मुंह से डर और शर्म के मारे आह निकल गई और वो साडी को जल्दी से अपने बदन पर लपेटने लगी लेकिन जल्दबाजी में उसकी मुसीबत और बढ़ गई और साडी का उसके ब्लाउस में फंसा हुआ पल्लू भी बाहर निकल गया।शहनाज अब सिर्फ ब्रा पेंटी में अजय के सामने खड़ी हुई थी और अजय उसको ब्रा पेंटी में देखकर पूरी तरह से बौखला गया। शहनाज उससे छुपाने के लिए कभी लाल रंग की ब्रा में कैद अपनी चूचियां साडी से ढकती तो उसकी जांघें नंगी हो जाती। जांघें ढकती को उसकी छाती नंगी हो जाती।

अजय बिना कुछ बोले उसकी तरफ देखे जा रहा था और शहनाज़ नजरे झुकाए अपने आपको साडी से लपेटने का असफल प्रयास कर रही थी क्योंकि उससे साडी बांधनी तो आती नहीं थी।

पार्किंग पीछे की साइड थी और उस तरफ कोई था भी नहीं बस ये ही एक अच्छी बात थी शहनाज़ के लिए लेकिन अजय का सामना करने में उसे दिक्कत हो रही थी। वो चाह कर भी सौंदर्या को नहीं उठा सकती थी तो अब उसकी ये साडी बंधेगी कैसे ये सबसे बड़ा सवाल था। अजय उसके करीब अा गया और बोला:"

" लाइए मुझे दीजिए मैं आपकी साडी बांध देता हूं। आपसे नहीं बंध पाएगी। लाइए मुझे एक पल्लू दीजिए।

अजय को अपने इतने करीब पाकर शहनाज़ की सांसे रुक सी गई थी। शहनाज़ को काटो तो खून नहीं। उसने सपने में भी नही सोचा था कि उसे ये दिन भी देखना पड़ेगा। मरती क्या ना करती। उसके पास कोई और दूसरा उपाय भी नहीं था इसलिए उसने कांपते हाथों से साडी का पल्लू पकड़ा और नजरे नीची किए हुए ही अजय को पकड़ा दिया। शहनाज़ की स्थिति खराब हो गई थी, उसकी सांसे तेज गति से चलती हुई धाड धाड कर रही थी। साडी का पल्लू हाथ में आते ही अजय ने उसे अपनी तरफ खींचा तो उल्टी सीधी लिपटी हुई साडी शहनाज़ के बदन से उतरती हुई चली गई।



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शहनाज़ शर्म से दोहरी होती चली गई और उसने अपना चेहरा अपने दोनो हाथों में छुपा लिया। अजय ने पहली बार ध्यान से शहनाज़ के जिस्म को देखा और आंखे खुली की खुली रह गई। शहनाज़ के गोरे गोरे गोरे कंधे, लंबी सी पतली पतली गर्दन, ब्लाउस से बाहर निकलने को तड़प रही उसकी गोल गोल गुदाज चूचियां जो आधे से ज्यादा बाहर छलक रही थी। उसका दूध सा गोरा चिकना सपाट पेट, केले के तने के समान चिकनी मांसल जांघों को देखते ही अजय के लंड में तनाव आना शुरू हो गया। शहनाज़ से धीरे से अजय को देखा तो उसे अपने जिस्म को घूरते हुए देखकर उसने शहनाज़ को बहुत शर्म महसूस हो रही थी इसलिए कांपते हुए बोली'"

" अजय जल्दी करो ना तुम, मुझे बहुत अधिक शर्म अा रही है, कोई इधर अा गया तो मेरा क्या होगा।

अजय ने आगे बढ़कर साडी का एक पल्लू शहनाज़ की कमर पर रखा तो उसकी छुवन से शहनाज़ के जिस्म ने एक झटका खाया और अजय ने अपनी पूरी हथेली को उसकी गांड़ पर टिकाते हुए साडी को लपेटना शुरू कर दिया। अजय साडी को गोल गोल घुमाते हुए आगे की तरफ अाया। साडी शहनाज़ के जांघो और गांड़ पर लिपट गई थी। अजय धीरे से उसके करीब आया और बोला;"

" ऐसी साडी बांध देता हूं कि आगे से कभी नहीं निकलेगी।

इतना कहकर उसने एक हाथ से साडी का पल्लू लिया और दूसरे हाथ से शहनाज़ की पेंटी को पकड़ लिया। अजय के हाथ अपनी पेंटी पर लगते ही शहनाज़ मचल उठी और उसकी चूचियां उपर नीचे होने लगी। अजय ने जैसे ही अपनी उंगली को शहनाज़ की पेंटी में फंसाया तो के मुंह से धीमी सी आह निकल पड़ी और उसने अपने दांतो से अपने होंठो को हल्का सा चबा दिया। अजय उसकी इस अदा पर बेकाबू हो गया और उसने शहनाज़ की पेंटी को खींचा और उसके बीच में साडी का पल्लू घुसा दिया। शहनाज़ की आंखे अभी भी शर्म से बंद थी और अजय उसकी साड़ी का पल्लू अच्छे से फांसते हुए धीरे से उसके कान में बोला,:_

"लीजिए ऐसा फंस गया है कि अब नहीं निकल पाएगा। सौंदर्या दीदी आपको नाम से पुकार रही है। आपको बुरा ना लगे तो क्या मैं भी आपको शहनाज़ कहकर पुकार सकता हूं !!

इतना कहकर उसने साडी को हाथ में लिया और उसकी कमर से लपेटते हुए उसके सीने पर ले अाया और उसकी चूचियों पर हल्का सा दबाव दिया तो शहनाज़ का जिस्म झटके पर झटके खाने लगा और वो मचलते हुए बोली:"

" आह अजय बुला लो तुम भी मुझे शहनाज़ कहकर।

अजय ने साडी को उसकी छाती से लाते हुए उसके कंधे पर ब्लाउस में साडी का दूसरा पल्लू फंसा दिया और उसके कंधे को हल्का सा सहलाते हुए कहा:"

" थैंक्स शहनाज़। आप सच में बहुत ज्यादा खूबसूरत हो। अल्लाह ने आपको पूरी तसल्ली से बनाया है।

इतना कहकर अजय उससे अलग हो गया और शहनाज़ ने सुकून की सांस ली। उसने अपनी आंखे खोल दी और अपने आपको फिर से साडी में पाकर खुश हो गई और बोली:"

" शुक्रिया अजय। तुमने हमेशा मेरी मदद करी हैं। आज तुम नहीं होते तो मेरा पता नहीं क्या हाल होता यहां।

अजय ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला:" आप बेफिक्र रहिए शहनाज़। मैं हमेशा आपके साथ हूं। आपकी मदद करने के लिए एक अच्छे दोस्त की तरह।

शहनाज़ ने अपने हाथ का दबाव अजय के हाथ में बढ़ा दिया और बोली:"

" ठीक है अजय, फिर आज से हम दोनों दोस्त। तुम अकेले में मुझे सिर्फ शहनाज़ कहकर बुलाओगे।

अजय ने शहनाज़ की आंखो में देखा और शहनाज़ ने उसे स्माइल दी।

शहनाज: अच्छा अजय एक बात बताओ मुझे सच सच तुम?

अजय :" बोलिए आप ?

शहनाज:" ऐसी क्या जरुरत थी जो सौंदर्या के नाम की राशि की दूसरी परिपक्व अौरत की आवश्यकता पड़ी ?

अजय थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। उसकी समझ में नहीं अा रहा था कि वो शहनाज़ को कैसे ये बात बताए।

शहनाज़:" बोलो चुप क्यो हो तुम ? कोई तो वजह रही होगी ?

अजय:" देखो मेरी बात ध्यान से सुनना और गलत मत समझ लेना कुछ भी। आचार्य जी के अनुसार जैसे ही पूजा विधियां शुरू होगी तो मंगल अपनी तरफ से पूजा रोकने का हर संभव प्रयास करेगा और इसमें सौंदर्या की जान भी जा सकती हैं लेकिन अगर दूसरी औरत होगी तो मंगल का प्रभाव आधा हो जाएगा जिससे उस औरत पर खतरा भी आधा हो जाएगा। लेकिन आप बेकिफ्र रहिए मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगा। मेरी बहन को इस दोष से मुक्ति दिलाने में मदद कीजिए।

इतना कहकर अजय ने अपने दोनो हाथ जोड़ दिए। शहनाज़ थोड़ी देर चुप रहीं और अभी उसे समझ आया कि इतना ध्यान से पैर रखने के बाद भी उसका पैर क्यों फिसल गया था। शहनाज़ की चुप्पी अजय के चेहरे की निराशा बढ़ा रही थी। उसे डर लग रहा था कि कहीं शहनाज़ बीच में ही छोड़ कर ना चली जाए। ।।

शहनाज़ ने थोड़ी देर सोचा और फिर एक गहरी सांस लेते हुए बोली:" अजय वैसे तो ये बहुत मुश्किल भरा काम होगा और इसमें मेरी जान भी जा सकती हैं लेकिन फिर ये जान भी तो तुम्हारी ही दी हुई है। रेहाना और उसके गुंडों से तुमने ही तो मुझे बताया था नहीं तो मैं तो कब की खत्म हो गई होती। मैं वादा करती हूं अपनी आखिरी सांस तक सौंदर्या को मुक्ति दिलाने के लिए कुर्बान कर दूंगी।

अजय:" मैं भी वादा करता हूं कि आप पर आने वाली हर मुश्किल को पहले मेरा सामना करना होगा। मैं हर हाल में आपकी रक्षा करूंगा।

शहनाज़ और अजय दोनो ने राहत की सांस ली। शहनाज़ जानती थी कि अजय खुद मर जाएगा लेकिन उसे कुछ नहीं होने देगा। तभी वहां एक गाड़ी पार्क होने के लिए अाई और उसकी आवाज सुनकर सौंदर्या की आंख खुली तो वो गाड़ी से बाहर निकल गई और अजय, शाहनाज के पास पहुंच गई।

शहनाज उसे देखते ही खुश हुई और बोली:" आओ सौंदर्या हम दोनों तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे सौंदर्या।

अजय:" अच्छा हुआ आप खुद ही उठ गई नहीं तो दर्शन का टाइम हो रहा था इसलिए आपको उठाना पड़ता।

सौंदर्या:" मुझे थोड़ी देर के लिए आंख लगी जरूर थी लेकिन मेरी पूरी ज़िन्दगी दांव पर लगी हो तो कैसे सो सकती हूं मैं।

शहनाज़:" बस सौंदर्या एक हफ्ते की हो तो बात हैं फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। उदास मत हो तुम बिल्कुल भी अब।

अजय:" अच्छा चलिए अंदर चलते हैं। पूजा का वक़्त आने वाला है।

इतना कहकर अजय आगे बढ़ा और उसके साथ साथ दोनो आगे बढ़ गई। जैसे ही अंदर घुसने लगे तो गेट पर एक पुरोहित खड़े हुए थे और उन्होंने अजय को उसके माथे पर तिलक लगा दिया। अजय ने पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ तिलक लगवाया और अंदर घुस गया। उसके बाद सौंदर्या आगे बढ़ी और अपना माथा आगे कर दिया तो पुरोहित की ने उसके माथे पर भी तिलक लगा दिया।



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अब शहनाज़ की बारी थी और अजय के साथ साथ सौंदर्या के मन में भी डर था कि कहीं शहनाज़ तिलक लगाने से मना ना कर दे क्योंकि ये पूजा में एक अपशकुन समझा जाएगा और ये बात अजय उसे बताना भूल गया था। शहनाज़ के चेहरे पर कोई भाव नहीं था और वो आगे बढ़ी उसने पुरोहित जी को देखकर अपना दुपट्टा सिर पर रखा और दोनो हाथ जोड़ दिए। उसकी आंखे बंद थी और चेहरे पर जमाने भर की शालीनता बिखरी हुई थी।

पुरोहित जी ने अपना हाथ आगे बढाया और शहनाज़ के माथे पर तिलक लगा दिया

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अजय और सौंदर्या दोनो ने चैन की सांस ली और शहनाज़ भी अंदर घुस गई और उनके पास पहुंच गई।

सौंदर्या ने उसे गले लगा लिया और बोली:"

" दीदी मैं तो डर गई थी कहीं आप तिलक लगाने के लिए मना ना कर दे क्योंकि अगर आप मना करती तो ये बहुत बड़ा अपशकुन समझा जाता और अजय आपको बताना भूल गया था।

शहनाज़ ने सौंदर्या की आंखो में देखा और बोली:"

" भला मना क्यों करती मैं ? मेरे लिए ये सब चीज़े इतनी मायने नहीं रखती। बस तुम्हे मुक्ति मिल जाय ये बड़ी बात होगी।

उसके बाद सभी लोग पहुंच गए और दर्शन किए। यहां लोगो की काफी भीड़ थी और अजय को समझ नहीं आ रहा था कि महराज ने जो पूजा की जो विधियां बताई थी वो कैसे पूरी होंगी ?

वो उम्मीद में इधर उधर देख रहा था तभी उसे एक बोर्ड नजर अाया जिस पर लिखा था

" मांगलिक समाधान पूजा"

अजय उधर पहुंच गया और उसे एक रास्ता जाता दिखाई दिया। शहनाज़ और सौंदर्या भी उसके पीछे पीछे चल पड़ी। रास्ता नीचे की तरफ जा रहा था और सभी लोग उसी दिशा में बढ़ गए। अब वो मंदिर से तहखाने से पूरी तरह से मंदिर से बाहर निकल गए लेकिन उन्हें इसका बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था। नीचे जाकर वो दाई तरफ मुड़ गए और उन्हें एक दरवाजा नजर आया।

अजय ने राहत की सांस ली क्योंकि इसी दरवाजे के बारे में उसे आचार्य जी ने बताया था। लेकिन यहां से आगे की पूजा आसान नहीं होने वाली थी और ये दरवाजा ढूंढने के चक्कर में अजय भूल गया कि पहले उसके साथ शहनाज़ अंदर जाएगी। वो सभी जैसे ही दरवाजे के अंदर घुसने लगे तो सौंदर्या को चक्कर अा गए और गेट पर ही गिरकर बेहोश हो गई।

अजय और शहनाज़ दोनो ये सब देख कर डर गए और दोनो ने उसे वहीं बाहर पड़े एक बेड पर लिटा दिया। अजय को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सौंदर्या के मुंह पर पानी के छींटे मारे और शहनाज उसकी मालिश कर रही थी। सौंदर्या होश में अा गई तो दोनो ने सुकून की सांस ली और सौंदर्या को कुछ भी याद नहीं था कि थोड़ी देर पहले क्या हुआ था अभी।

सौंदर्या: भैया चलो अन्दर चलते हैं ना पूजा करने के लिए। नहीं तो देर हो जाएगी।

अजय दूसरी बार ये गलती नहीं करना चाहता था क्योंकि इस बार सौंदर्या का बचना मुश्किल होता। अजय:*


" दीदी आप अंदर नहीं जाएगी, पहले अंदर मैं और शहनाज़ दीदी जायेंगे। मेरी भूल की वजह से एक गलती हो जिसकी खामियाजा अब भुगतना पड़ेगा। आप खिड़की या दरवाजे के पास भी नहीं जा पाएगी क्योंकि मंगल के प्रभाव के चलते वो खुद ही खुल जायेंगे और आप अंदर अपने आप घुस जाओगी। अगर ऐसा हुआ था आपको दिक्कत होगी। अंदर का अनुभव आपको शहनाज़ दीदी आकर बता देगी और आपको उसी के आधार पर मेरे साथ होना होगा बाद में।


सौंदर्या ने अपनी सहमति दे दी और वहीं बेड पर लेट गई। अजय ने कुछ मंत्र पढ़े और वो जानता था कि अब सौंदर्या सुरक्षित है क्योंकि मंत्रित प्रभाव के चलते कोई भी ताकत अब सौंदर्या को बेड से नहीं हिला सकती थी।

अजय और शहनाज दोनो अंदर की तरफ चल पड़े और जैसे ही शहनाज़ ने पैर रखे तो दरवाजा अपने आप खुलता चला गया। जैसे ही दोनो गए तो दरवाजा अपने आप बंद हो गया।

शहनाज़ की नजरे जैसे ही कमरे पर पड़ी तो उसकी आंखे फटी की फटी रह गई। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो कुछ वो अपनी आंखो से देख रही हैं वो सच है। एक बहुत ही बड़ा पूजा स्थल बना हुआ था और जिसके बीच में एक लंड की प्रतिमा लगी हुई थी जो आगे सुपाड़े से पूरी तरह गुलाबी थी जिसे देखते ही शहनाज को फिर से वो चिड़िया घर वाला सीन याद अा गया। उसने देखा की प्रतिमा के दोनो तरफ लंड के आकार की कुछ और प्रतिमा लगी हुई थी और बीच में एक गहरा गड्ढा था शायद यही पूजा के लिए बनाया गया था। शहनाज़ ने पूरे कमरे ने नजर डाली तो उसे छत पर काफी सारी लंड की प्रतिमा नजर आई और सबसे खास बात सबके मोटे मोटे सुपाड़े बिल्कुल गुलाबी थे।


अजय भी ये सब देखकर आश्चर्य में पड़ा हुआ था। हालाकि उसे पहली ही आचार्य जी ने सब कुछ बता दिया था लेकिन फिर भी यहां उसकी उम्मीद से कुछ ज्यादा ही था। वहीं ये सब देख कर शहनाज़ शर्म के मारे अपनी नजरे नहीं उठा पा रही थी।

अजय सब समझ रहा था और इसलिए धीरे से चलते हुए उसके पास पहुंच गया। शहनाज़ की नजरे अभी भी झुकी थी।

अजय:" देखो शहनाज़ दीदी ये लिंगेश्वर मंदिर हैं तो यहां लिंग की प्रतिमा तो होनी ही थी। मांगलिक होने के कारण शादी ना होने से सेक्स नहीं होता जिससे इंसान की इच्छाएं बढ़ती जाती है। इसलिए यहां आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं ताकि उन्हें सेक्स करने की ताकत मिले और उनकी ज़िंदगी अच्छे से गुजर सके।

शहनाज़ सिर झुकाए चुप चाप खड़ी हुई थी। शहनाज़ को आज पहली बार पता चला कि लंड को लिंग भी बोलते हैं। अजय उसकी हालत समझते हुए बोला:"

" देखिए अगर आपको थोड़ा सा भी दिक्कत हो तो आप जा सकती हैं। मैं आप पर जोर नहीं दूंगा बिल्कुल भी।

शहनाज़ अजीब दुविधा में फंस गई थी। जहां एक ओर उसे ये सब मुश्किल करना लग रहा था वहीं दूसरी और उसके अंदर अजय को मना करने की भी हिम्मत नहीं थी। अजय के एहसान और सौंदर्या का मासूम चेहरा उसकी आंखो के आगे घूम रहा था। शहनाज़ चाहकर भी मना नहीं कर सकती थी। उसने बड़ी मुश्किल से अपनी नजरे उपर की तरफ उठाई और अजय को पूजा के लिए सहमति दे दी।

अजय:" देखिए सबसे पहले तो हम दोनों पूजा करेंगे। इसके लिए हमें आसान पर बैठना पड़ेगा। पूजा करते समय हमारा पुरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पूजा पर ही होना चाहिए। पूजा करने के बाद आपको उपर छत पर लगे घंटे बजाने होंगे लेकिन इसमें आपका हाथ नहीं जाएगा तो मुझे आपकी मदद करनी पड़ेगी। रुको पहले मैं अपने कपड़े बदल लेता हूं।

शहनाज़:" लेकिन क्या तुम मुझे उठा पाओगे इतने उपर तक अजय ?


अजय:" आपकी उसकी फिक्र मत कीजिए। वो मेरा काम तो आप मुझ पर छोड़ दो।
शहनाज़ ने सहमति दी और अजय ने आगे बढ़कर बैग को खोला और उसमे से एक चादर निकल ली। आचार्य जी के अनुसार उसे ये चादर पूजा करते हुए अपने जिस्म पर लपेटनी थी। अजय ने साइड में खड़ा होकर अपने कपड़े निकाल लिए और अब सिर्फ निक्कर में था। अजय अपने जिस्म पर चादर लपेट ली और शहनाज़ के सामने अा गया।

अजय सामने जमीन पर बैठ गया और उसने कुंड में आग जला दी। शहनाज़ ने एक बार आसन की तरफ देखा और उसका बदन कांप उठा। धीरे धीरे आगे बढ़ती हुई वो उसके पास पहुंच गई। शहनाज़ आसान पर बैठने के लिए नीचे को झुकी और उस अपनी आंखे बन्द करते हुए उस पर बैठ गई। शहनाज़ की आंखे लाल सुर्ख हो रही थी और नीचे हो झुकी हुई थी।

अजय ने उसके हाथ में कुछ सामान दिया और उसके बाद कुछ पढ़ा तो शहनाज़ ने हाथ में रखा सामान आगे की तरफ पूरा झुकते हुए देखते हुए आग में डाल दिया। सामने शहनाज़ की नजर बीच में बने हुए लंड पर पड़ी और और उसका सुपाड़ा देखते ही शहनाज़ के बदन में उत्तेजना सी दौड़ गई। आगे झुकने से उसकी साड़ी का पल्लू उसके कंधे से निकल गया और सिर्फ ब्लाउस में अा गई। शहनाज़ को अजय की बात याद थी इसलिए चाहते हुए भी वो अपना पल्लू ठीक नहीं कर पाई।

शहनाज़ की नजरे फिर से झुक गई और इस बार उसकी उस लंड के सुपाड़े पर पड़ी जिस पर बैठी हुई थी। बेचारी शहनाज़। आंखे भी बंद नहीं कर सकती थी क्योंकि एक तो पूजा और दूसरा उसे शर्म तो अा रही थी लेकिन कहीं ना कहीं ये सब देखकर उसे अच्छा लग रहा था।

अजय:" अगर आप इस तरह से नजरे झुका कर रखेंगी या बंद करेगी तो पूजा में समस्या पैदा हो सकती हैं।

शहनाज़ ने अपनी आंखे को सामने की तरफ कर दिया और उसकी नजरे फिर से लंड पर टिक गई। अजय उसके ठीक सामने ही बैठा हुआ था और बीच बीच में शहनाज़ के सुंदर मुखड़े को देख रहा था। कभी उसके ब्लाउस से झांकती उसकी गोलियां तो कभी उसके चिकने कंधे और गोरे गोरे पेट को देख रहा था।

अजय ने फिर से शहनाज़ के हाथ में कुछ सामग्री और घी दिया और कुछ मंत्र पढ़े और शहनाज़ को आग ने डालने का इशारा किया। शहनाज़ जैसे ही आगे को झुकी तो उसकी चूचियां आधे से ज्यादा बाहर की तरफ छलक अाई और उसने सामग्री को आग के हवाले कर दिया। शहनाज़ की चूचियां का उछाल देखते ही अजय की आंखे चमक उठी और उसने शहनाज़ को थोड़ा और आगे होने का इशारा किया ताकि ठीक से उसे अगली बार सब दिखाई दे सके। शहनाज़ आगे को हुई और अब लंड प्रतिमा के सुपाड़े पर बैठी हुई थी और ये सोच सोच कर उसकी सांसे तेज हो गई थी। शहनाज़ की आंखे पूरी तरह से लाल सुर्ख हो गई थी और उसकी छातियां उपर नीचे हो रही थी। उसके पूरे बदन में उत्तेजना भरती जा रही थी और उसकी टांगे कांप रही थी।

अजय ने फिर से कुछ मंत्र पढ़े और शहनाज़ को फिर से सामान आग में डालने का इशारा किया। शहनाज़ थोड़ा सा आगे को हुई और उसने जैसे ही झुककर सामान आग में डाला तो उसकी चूचियों की गहराई फिर से पहले से ज्यादा बाहर झांक पड़ी। अजय ने अपनी प्यासी नजरे बाज की तरफ उन पर टिका दी। शहनाज़ जैसे ही पीछे को हुई तो उसकी चूत लंड प्रतिमा के सुपाड़े पर रगड़ गई और उसके मुंह से आह निकल पड़ी जो सामने बैठे हुए अजय को साफ सुनाई दी। अजय उसे बार बार सामग्री डालने के बहाने आगे बुलाता और उसकी चूचियां घूरता। जैसे ही वो पीछे होती तो उसकी चूत लंड पर रगड़ रही थी और शहनाज़ पूरी तरह से बेचैन हो गई जिससे उसकी चूत में गीलापन अा गया था और अब वो खुद ही पीछे होने के बहाने अपनी चूत पत्थर लिंग के सुपाड़े पर रगड़ रही थी।

पूजा का समय खत्म हो गया था और घंटा बजाने की बारी थी। अजय और शहनाज़ आग के पास बैठने से पसीना पसीना हो गए हो और अजय तो मानो पसीने में नहा सा लगा था।

दोनो आसान से खड़े हो गए और अजय ने चादर को उतार दिया और अपना पसीना साफ करने की। वहीं शहनाज ने अपनी साडी का पल्लू फिर से ठीक किया और अजय को देखने लगी। पहली बार उसने अजय को सिर्फ निक्कर में देखा। अजय के हट्टा कट्टा सांड जैसा लड़का था। उसकी चौड़ी चौड़ी छाती उसकी ताकत अपने आप बयान कर रही थी। उसकी ताकतवर हाथ उसकी ताकत दर्शा रहे थे। शहनाज़ का बदन पूरी तरह से गरम था और उसकी चूचियों में अकड़न सी पैदा हो गई थी और उसकी जांघो के बीच गीलापन बढ़ता जा रहा था। शहनाज़ अजय के बदन को देखकर मन ही मन उसकी तारीफ किए बिना ना रह सकी और चोरी चोरी उसे घूर रही थी। काश वो उसे छू सकती।

चादर पूरी तरह से भीग गई थी तो अजय ने उसे निचोड़ दिया और फिर से अपना पसीना साफ करने लगा लेकिन कमर पर उसका हाथ नहीं जा पा रहा था तो उसने शहनाज़ की तरफ देखा और कहा:"

" आपको अगर बुरा ना लगे तो मेरी कमर से पसीना साफ़ कर दीजिए।

शहनाज़ को भला क्या आपत्ति हो सकती थी उसने खुशी खुशी आगे बढ़ कर चादर को थाम लिया और अजय के पीछे खड़ी हो गई। शहनाज़ अजय के जिस्म को पीछे से देख रही थी और उसके अंदर बहुत सारे अरमान मचल रहे थे।उसने अपने कांपते हाथो से उसकी कमर को चादर से साफ करना शुरू कर दिया और वो सिर्फ साफ ही नहीं कर रही थी बल्कि अपने हाथ से छूकर उसकी मजबूती भी देख रही थी।


शहनाज़ के हाथो की नाजुक उंगलियां अपनी कमर कर महसूस करके अजय भी जोश से भर गया था और उसके लंड में तनाव आने लगा। शहनाज़ उसके दोनो कंधो को साफ करने लगी और थोड़ा सा और करीब से देखने के लिए आगे हो गई। अजय के चौड़े मजबूत कंधे की कठोरता शहनाज़ की जलती हुई आग में घी डाल रही थी।

शहनाज़ की सांसे इतनी तेज चल रही थी मानो उसका ब्लाउस फाड़कर उसकी चूचियां बाहर निकलना चाहती हो।अजय की कमर और कंधे साफ हो गए थे लेकिन इसके सिर से निकल रही पसीने की बूंदे फिर से उसकी गर्दन से होती हुई उसकी छाती को पूरी तरह से भिगो चुकी थी। शहनाज़ ने अजय के हाथ को उपर की तरफ किया तो उसने खुद ही अपने हाथ ऊपर उठा कर अपने सिर पर टिका दिए। ऐसा करने से शहनाज़ पूरी तरह से काबू से बाहर हो गई और थोड़ा आगे होते हुए उसकी बगल को साफ करना शुरू कर दिया। आगे होने से दोनो के बीच की दूरी बस नाम मात्र ही रह गई थी। शहनाज़ की तेजी से चलती हुई सांसे अजय को उसकी हालत बयान कर रही थी और अजय तो खुद बेचैन था क्योंकि उसका लन्ड पूरी तरह से अकड़कर अपनी असली औकात में अा गया और पत्थर की तरह सख्त हो गया था।

शहनाज़ ने अपनी नाजुक उंगलियो से उसकी बगल को साफ करना शुरू कर दिया और धीरे धीरे अजय की छाती की तरफ छूने लगी। शहनाज़ से अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था और उसके हाथ लालच में आगे बढ़ गई और जैसे ही उसने अजय की ठोस छाती को छुआ तो दोनो के मुंह से आह निकल पड़ी। शहनाज़ अपने आप आगे को हुई और अजय पीछे को। उससे दोनो के बीच की सारी दुनियां समाप्त हो गई और अजय की कमर शहनाज़ के सीने से टकराई। जैसे ही उसकी चूचियों टकराई तो दोनो फिर से सिसक उठे और शहनाज ने मदहोशी के आलम में उसकी छाती को साफ करना शुरू कर दिया। शहनाज़ उसकी छाती पर अपनी पकड़ बनाने के लिए उससे चिपकी जा रही थी जिससे उसकी चूचियों के तने हुए निप्पल अजय की पीठ में घुसे जा रहे थे और अजय बहकता जा रहा था।
शहनाज़ ने अपनी उंगलियां उसकी छाती पर जमा दी और सहलाते हुए बोली:"

" अजय तुम्हे तो बहुत पसीना आया हुआ है। उफ्फ कितने भीग गए हो।

अजय:" आग के पास बैठने की वजह से पसीना निकल रहा है ज्यादा शहनाज़।

अजय इतना कहकर थोड़ा सा आगे को हुआ और पीछे को हुआ तो उसकी पीठ शहनाज़ की चूचियों से टकराई तो शहनाज़ की चूचियां उसकी कठोर पीठ से मसल सी गई तो शहनाज़ ने अपनी उंगलियां पूरी ताकत से उसकी छाती पर गडा दी और बोली:"

" उफ्फ अजय तुम कितने मजबूत हो। कितना कठोर है तुम्हारा बदन।

अपनी तारीफ सुनकर अजय पिघल गया और उसने फिर से अपनी पीठ को शहनाज़ की चूचियों की तरफ धकेला तो शहनाज़ ने भी पूरी ताकत से अपनी चूचियों को आगे किया और एक जोरदार आवाज के टक्कर हुई। दोनो एक साथ सिसक उठे। चादर शहनाज़ के हाथ से निकल गई और उनसे पहली बार अपनी अजय छाती को अपनी पूरी नंगी हथेली में भर लिया और थोड़े कठोर हाथ से साफ करने लगी। शहनाज की चूत पूरी तरह से भीग गई थी और पानी पानी हो गई थी।

शहनाज अपनी पूरी ताकत से अपनी नंगी हथेली से उसकी छाती को रगड़ रही थी और अपनी चूचियों को उसकी कमर में रगड़ रही थी। पागल से हो चुके अजय ने जैसे ही इस आगे को कदम रखा तो शहनाज़ ने अपनी दोनो टांगे आगे करते हुए उसके पैरो के पंजों पर टिका दी। इससे चूचियों के साथ साथ उसकी जांघें अजय की गांड़ पर कस गई। अब शहनाज़ अजय के पीछे खड़ी हुई उसके उपर झूल सी रही और अपनी गीली चूत को जोर जोर से उसकी गांड़ पर रगड़ रही थी। अजय ने अपने दोनो हाथों को पीछे करते हुए शहनाज़ की चिकनी नंगी कमर पर बांध दिया और शहनाज़ अपनी पूरी ताकत से अपनी उंगलियों से उसकी छाती को रगड़ते हुए अपनी चूत उसकी गांड़ पर रगड़ रही थी और शहनाज़ के मुंह से अब हल्की हल्की मस्ती भरी सिसकारियां निकल रही थी। उसकी चूत में तूफान सा अाया हुआ था और वो झड़ने के कगार पर थी और उसकी गति और बढ़ गई।

तभी अजय की नजर घड़ी पर पड़ी तो उसने समझ अाया कि घंटा बजाने का शुभ समय बीता जा रहा था तो वो बोला:"

" शहनाज़ बस हो गई। घंटा बजाने का मुहूर्त निकला जा रहा है अब।

शहनाज़ ना चाहते हुए भी रुकने को मजबूर थी और अजय से अलग हो गई। उसके चेहरे पर बिखरे हुए बाल, उसकी उछलती हुई चूचिया, तेज सांसे लाल आंखे उसकी सारी हालत बयान कर रही थी।

अजय;" वैसे आप पसीना बहुत अच्छा साफ करती हो। पूरा रगड़ रगड़ कर।

इतना कहकर अजय ने उसे स्माइल तो शहनाज़ शर्म से लाल होकर उसके करीब हुई और उसकी छाती में धीमे धीमे मुक्के बजाने लगी। अजय ने उसे अपनी बांहों में कस लिया तो जिस्म की आग में तप रही शहनाज़ उससे कसकर लिपट गई।

अजय:" अब मैं तुम्हे अपनी गोद में उठा लूंगा और तुम उपर लगे लिंग को हाथ से पकड़कर जोर जोर से हिलाना ताकि घंटा बज सके। जितनी जोर से तुम घंटा बजाओगे सौंदर्या की आने वाली ज़िन्दगी उतनी ही अच्छी होगी।

अजय ने अपने दोनो हाथ शहनाज़ की गांड़ पर रखे और उसे उपर की तरफ उठाने लगा। शहनाज की फुदकती हुई चूचियां उसके मुंह पर रगड़ती हुई उपर चली गई और अजय ने थोड़ी भारी वजनी शहनाज़ को फूल की तरह आसानी से उठा लिया तो शहनाज़ उसके बाजुओं की ताकत की कायल होती चली गई।

इस वक़्त शहनाज़ के पैर अजय की छाती के सामने थे और शहनाज़ ने एक नजर ऊपर लटक रहे लिंगो पर डाली और उनके गुलाबी गुलाबी सुपाड़े देखते ही शहनाज़ की आंखे चमक रही। शहनाज़ के अपने कांपते हाथों से एक लिंग को पकड़ लिया और उसे हिलाने लगी। शहनाज़ की चूचियों में तनाव बढ़ा और वो फूलती चली गई जिससे कटक की आवाज के साथ उसकी ब्लाउस के बटन टूट गए और किसी सूखे हुए पत्ते की तरह नीचे गिरा और अजय की छाती पर अा टंगा। शहनाज़ के मुंह से आह निकल पड़ी और उसके जिस्म ने एक जोरदार झटका खाया और शहनाज़ आगे गिरने को हुई और अजय के हाथ से निकल गई। शहनाज़ इस वक़्त लंड को पकड़े हुए सिर्फ ब्रा पेंटी में झूल रही थी और अजय के हाथ में उसकी साड़ी अा गई थी। हवा में लटकी शहनाज़ डर के मारे चींखं उठी और अजय ने साडी को फेंकते हुए शहनाज़ को उसकी जांघो से थाम तो दोनो ने राहत की सांस ली। ब्रा पेंटी में होने के कारण शहनाज़ की उत्तेजना और बढ़ गई और उसकी चूत से रस टपकना शुरू हो गया जिससे उसकी पेंटी पूरी गीली हो गई थी।

अजय शहनाज़ को ब्रा पेंटी में देखकर पागल सा हो गया और ऊपर उठा उठा कर देखने लगा। शहनाज़ किसी अजंता की तराशी हुई मूर्ति की तरह कामुक लग रही थी। ब्रा में उसकी चूचियां का उभार पहले से ज्यादा छलक रहा था और उसकी चौड़ी मोटी बाहर की तरफ उभरी हुई गांड़ अजय की हालत और ज्यादा खराब कर रही थी।

शहनाज़ अजय से बेखबर हवा में झुकते हुए लंड को पकड़ पकड़ हिलाते हुए घंटे बजा रही थी। शहनाज़ ने देखा कि एक लंड थोड़ा उपर की तरफ था वो सबसे ज्यादा गुलाबी था तो शहनाज़ अजय से सिसकते हुई बोली,:"

" अजय एक ल.. ल ल..

अजय:" ऊपर की तरफ क्या शहनाज़? बोलो ना

शहनाज़ ने शर्म के मारे अपनी आंखे बंद कर ली और कांपते हुए बोली:" वो वो मैं कह रही थी कि एक लंड उपर की तरफ हैं। मुझे थोड़ा और ऊपर उठाओ ना।

लंड बोलते ही शहनाज़ की चूत के पूरी तरह से भीग कर चिकने हो गए लिप्स फड़फड़ा उठे।
शहनाज़ के मुंह से लंड सुनते ही अजय तड़प सा उठा। उसका मन किया कि शहनाज़ को यहीं फर्श पर पटक पटक कर चोद दे लेकिन मजबूर था। अजय ने शहनाज़ के घुटनो को मजबूती से पकड़ लिया और उपर की तरफ उठा लिया। जैसे ही शहनाज़ उपर हुई तो हिलता हुआ एक लंड उसके मुंह को रगड़ता हुआ चला गया। शहनाज़ के होंठो से आह निकल पड़ी और इसका सीधा असर उसकी चूत पर हुआ और चूत से निकला अमृत रस उसकी पेंटी ना थाम सकी और जांघो को भिगोने लगा।

शहनाज़ ने उपर के लंड को हाथ से पकड़ लिया और जोर जोर से हिलाने लगी। जैसे ही इस हवा में हिलता हुआ लंड उसकी आंखो से सामने से गुज़रा तो गुलाबी सुपाड़े को देखकर शहनाज़ के मुंह और चूत दोनो के होंठ खुल गए। शहनाज़ की चूत से टपक रहे अमृत रस की बूंद अजय के मुंह पर पड़ी तो उसकी आंखे जैसे ही ऊपर हुई तो उसकी नजर शहनाज़ की भीगी हुई पेंटी से टपकते हुए रस पर पड़ी तो अजय पूरी तरह से बौखला गया और उसने शहनाज़ के मुंह की तरफ देखा। ऊपर जैसे ही लंड धीमे से हिलता हुआ शहनाज़ के मुंह के आगे से निकला तो शहनाज़ ने सब शर्म लिहाज छोड़ कर पूरी बेशर्मी दिखाते हुए लंड के गुलाबी सुपाड़े को अपने होंठों से चूम लिया। ये सब देखकर अजय से अब बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपने जलते हुए होंठो को शहनाज़ की टांगो पर टिका दिया। शहनाज़ की चूत में पहले से ही आग लगी हुई और अजय के गर्म गर्म होंठ अपनी टांगों को महसूस करते ही वो जोर जोर से लंड को हिलाने लगी और घंटे की जोर जोर से आवाज गूंज रही थी। अजय ने अपनी जीभ निकाल कर शहनाज़ की टांग पर बहते हुए चूत के अनमोल अमृत रस को जैसे ही छुआ तो लालची शहनाज़ ने अपने मुंह से आगे हिलते हुए लंड के गुलाबी सुपाड़े को मुंह में भर लिया और उसने हाथो में पकड़े हुए लंड पर दबाव दिया। दबाव के चलते वो लंड टूट कर शहनाज़ के हाथ में आ गया और शहनाज़ अजय के हाथो से स्लिप होती चली गई।

शहनाज़ की दोनो टांगे अजय के खड़े हुए लंड पर टंग सी गई और उसके भारी भरकम वजन को सहने के बाद भी लंड थोड़ा सा भी नीचे नहीं झुका तो शहनाज़ अजय की मर्दानगी पर फिदा होती चली गई। शहनाज़ उसके लंड को पेंटी के ऊपर से अपनी चूत पर महसूस करते ही पागल हो गई और उसने मदहोशी में अजय की छाती को चूम लिया। शहनाज़ कुछ भी करके झड़ना चाहती थी इसलिए वो अपनी चूत को लंड पर रगड़ने लगी लेकिन अजय ने उसे थामते हुए नीचे उतार दिया। शहनाज़ प्यासी नजरों से अजय को देखती हुई जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी और कुछ भी करके झड़ना चाहती थी । बस अजय के पहल करने की देर थी शहनाज़ खुद ही उसके ऊपर चढ़ जाती।


अजय:" पूजा खत्म हो गई है और थोड़ा ही समय बचा हुआ है इसलिए आप बाहर जाइए और सौंदर्या को अंदर भेज दीजिए।

शहनाज़ बाहर जाना ही नहीं चाहती थी इसलिए बोली:" वो मुझे साडी बांधनी नहीं आती।

अजय उसकी बात सुनकर आगे बढ़ा और साडी को उठाकर उसकी गांड़ पर लपेटते हुए बांध दिया और शहनाज़ ने अपनी गांड़ खुद ही पीछे करके उसके हाथो में थमा दी। अजय ने साडी पहनाने के बहाने उसकी गांड़ को सहलाया तो शहनाज़ अपनी जांघें आपस में रगड़ रही थी। अजय ने साडी का दूसरा पल्लू उपर उठाया और जैसे ही शहनाज़ की चुचियों से सामने हुआ to उसने अपने दोनो हाथ अजय के हाथ के उपर रख दिए। इससे अजय के हाथो का दबाव उसे अपनी चूचियों पर महसूस हुआ और अजय के हाथो की छुअन महसूस करके शहनाज़ एक बार फिर से सिसक उठी और बाहर की तरफ निकल गई और अजय से लिपट गई।

अजय ने साडी का दूसरा पल्लू उसकी ब्रा की स्ट्रिप में लगाया और बोला:"

," शहनाज़ शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है, जल्दी से सौंदर्या को अंदर भेज दो जाकर।

शहनाज़ ना चाहते हुए भी अलग हुई और बाहर की तरफ जाने लगी तो पीछे से अजय की आवाज आई

" अपना ब्लाउस तो लेती जाओ शहनाज़ !!

शहनाज़ पलटी और उसने अजय के हाथ से कांपते हाथो से अपना ब्लाउस लिया और बाहर निकल गई।
 
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अंदर अजय सिर्फ अंडर वियर में अपने खड़े हुए लंड के साथ रह गया जबकि शाहनाज अपना ब्लाउस हाथ में लिए हुई बदहवाश सी अपनी उछलती हुई चूचियों और गीली पेंटी के साथ बाहर अा गई।

सौंदर्या बेड पर पड़ी हुए करवटें बदल रही थी कि अंदर किस तरह की विधियां होगी, क्या शहनाज़ अच्छे से कर पाएगी।

तभी उसे सामने से शहनाज़ आती हुई दिखाई दी जिसके शरीर पर ब्लाउस नहीं था बल्कि उसके हाथ में था। उसने साडी के उपर वाले पल्लू को अपनी ब्रा की स्ट्रिप में फंसाया हुआ था। शहनाज़ की चाल लड़खड़ा रही थी और ब्रा में कैद उसकी चूचियां हिल रही थी।सौंदर्या ये सब देखकर पूरी तरह से हैरान हो गई।

शहनाज़ चलती हुई उसके पास अाई और वो अभी लंबी लंबी सांसें ले रही थी। उसके चेहरे पर लाली, आंखे लाल सुर्ख, होंठो की लिपिस्टिक बिगड़ गई थी और पूरा जिस्म पसीने से लथपथ था।

सौंदर्या:" आपकी ये हालत कैसे हो गई ? आपकी तो पूजा की विधि पूरी करने गई थी ना।

शहनाज़ ने उसे देखा और अपनी सांसे दुरुस्त करते हुए बोली:"

" पूजा की विधि ही कर रही थी मैं, लेकिन खुद पर काबू रखना मुश्किल हो गया था इसलिए ये सब हुआ।

सौंदर्या:" हाय राम आपकी तो चाल ही बदल गई, आप तो उस फूल जैसी लग रही हो जिसका सारा रस निचोड़ लिया गया हो।

सौंदर्या ने जान बूझकर ये बात कही ताकि वो शहनाज़ के चेहरे के भाव पढ़ सके। शहनाज ने उसे घूरा और बोलो:"

" पागल कहीं की, ऐसा कुछ नहीं हैं, अब तुम जाओ खुद पता चल जाएगा तुम्हे।

शहनाज़ के चेहरे के सपाट भाव देखकर वो समझ गईं कि कुछ भी गलत नहीं हुआ है लेकिन अपने अंदर जाने की बात सुनकर वो हलका सा डर गई और बोली:"

" दीदी मुझे बताओ ना आप, अंदर क्या हुआ है, कैसी विधियां हैं और क्या करना हैं ? लो पहले आप पानी पी लो थोड़ा सा

सौंदर्या ने पानी की बोतल उसकी तरफ करी और शहनाज़ गटागट पीती चली गई। पानी पीने के बाद उसे थोड़ा सा सुकून मिला और बोली:"

" अंदर एक आसन हैं जिस पर बैठकर तुम्हे पूजा करनी हैं। और फिर तुम्हे छत में लगे हुए घंटे बजाने होंगे।

सौंदर्या:" ओह बस इतनी सी बात है फिर आप इसमें इतना परेशान क्यों हो गई, ऐसा लग रहा है मानो आप मीलो दौड़कर अाई हो। फिर आपका ब्लाउस कैसे फट गया ?

शहनाज़ नहीं चाहती थी कि एक सगी बहन अपने सगे भाई के सामने ब्रा पेंटी में अा जाए और फिर नारी स्वभाव के कारण वो नहीं चाहती थी कि अजय पर किसी दूसरी नारी की नजर पड़े और अजय का ध्यान उस पर से भटक जाए इसलिए वो चाल चलते हुए बोली:"

" सौंदर्या अंदर एक ऐसा आसन हैं जिस पर बैठने के लिए दुनिया की हर औरत तरसती है। अंदर जाओ तुम्हे खुद पता चल जाएगा। और हान अपने ब्लाउस के पिन थोड़े ढीले कर लो कहीं अपने सगे भाई के सामने ही टूट ना जाए।

सौंदर्या उसकी बात सुनकर शर्मा गई लेकिन उसे शहनाज़ की बात ठीक लगी और बोली:"

" अच्छा फिर एक काम कीजिए आप ही अपने हिसाब से सेट कर दीजिए ताकि मेरे साथ ऐसा ना हो जैसा आपके साथ हुआ।

सौंदर्या ये बोलकर मुस्कुरा उठी और अपनी कमर उसके सामने कर दी। शहनाज़ ने उसके ब्लाउस के पिन को अंतिम हुक में लगाया और बोली:"

" अब तुम अंदर चली जाओ, और ध्यान रखना कि अंदर कुछ ऐसा दिखेगा जिसके लिए तुम तरस रही हो। खुद पर काबू नहीं तो पूजा करने का कोई फायदा नहीं होगा।

सौंदर्या:" हान आप बेफिक्र रहिए, आप और अजय मेरे साथ इतनी मेहनत कर रहे हैं मै आपकी मेहनत को खराब नहीं होने दूंगी।

इतना कहकर वो अंदर की तरफ चल पड़ी। शहनाज़ अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही रही थी कि उसने सौंदर्या को अपनी चाल में फंसा लिया था। मदहोश सी शहनाज़ वही बेड पर लेट गई और आंखे बंद कर ली। उसके सामने अभी भी अजय की चौड़ी कठोर छाती और गुलाबी लंड के सुपाड़े घूम रहे थे।

सौंदर्या दरवाजे के अंदर गई तो दरवाजा अपने आप बंद हो गया। जैसे ही उसकी नजर पूजा के स्थान पर पड़ी उसकी सांस गले में अटक सी गई। ठीक बीच में सामने लहराता हुआ बड़ा का पत्थर का लंड और गुलाबी सुपाड़ा, आसान नहीं वल्कि बैठने के लिए भी लंड भी था। छत पर उसकी नजर पड़ी तो छत में घंटे नहीं बल्कि लंड लटके हुए थे। हाय राम ये क्या मुसीबत हैं। तभी उसे अजय नजर अाया जिसके जिस्म पर एक चादर लिपटी हुई थी और उसमें एक बहुत बड़ा उभार बना हुआ था।

सौंदर्या समझ गई कि ये सब जरूर शहनाज़ के साथ पूजा की विधि करने की वजह से हुआ होगा। सौंदर्या की आंखे शर्म से बंद हो गई और उसकी आंखो के आगे वो पक घूमने लगे जब वो अपने भाई के साथ ट्रैक्टर पर बैठकर खेत पर गई थी। उफ्फ कमीने ने कैसे मुझे अपनी गोद में ही बिठा लिया था और मैं खुद उसकी गोद में बैठ कर इसके लंड लंड पर उछल रही थी। ये सब बाते याद आते ही सौंदर्या के रोंगटे खड़े हो गए और उसके जिस्म में हलचल सी मच गई।

अजय:"दीदी आप जल्दी से आंखे खोलिए। शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है।

सौंदर्या ने शरमाते हुए आंखे खोल दी और अजय अब अजय उसके बिल्कुल पास खड़ा हुआ था।

अजय:" दीदी ये आसान हैं जिस पर आपको बैठना होगा।


इतना कहकर अजय ने आसन रूपी लंड की तरफ इशारा किया तो सौंदर्या शर्मा गई। सौंदर्या धीरे से आगे बढ़ी और आसन के पास जाकर खड़ी हो गई लेकिन उसके अंदर उस पर बैठने की हिम्मत नहीं थी। उसके मन में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे इसलिए अजय से बोली:"

" भाई इस तरह के आसन की पूजा में क्या सच में जरूरत होगी ? और शहनाज़ दीदी तो बोल रही थी कि छत में लगे घंटे बजाने होंगे। यहां तो कोई घंटा मुझे नहीं दिख रहा है।

अजय:" दीदी ये लिंगेश्वर मंदिर हैं और अभी तक आपकी शादी ना होने के कारण आप पर लिंग देव की कृपा नहीं हुई है। यहां लिंग की पूजा करने से आपके पति को ताकत मिलेगी और आपकी आगे की ज़िन्दगी अच्छे सेक्स से भर जाएगी। बस इसलिए ये पूजा बताई गई है।

सौंदर्या ने ज्यादा बहस नहीं करी और धड़कते दिल के साथ लंड आसन पर बैठ गई। बैठते ही उसकी पूरे जिस्म में रोमांच सा भर गया और और उसकी नजर सामने हवा में लटके हुए लंड पर पड़ी जो कि ठीक उसके मुंह में सामने था और कुंड के ठीक ऊपर था। सौंदर्या को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे लेकिन उसके पास कोई दूसरा उपाय नहीं था इसलिए पूजा में सहयोग करने लगी। अजय ने कुछ मंत्र पढ़े और और थोड़ी सामग्री उसके हाथ में दी और डालने का इशारा किया तो सौंदर्या ने आगे होते हुए सामग्री को कुण्ड में डाल दिया। आगे होने से उसकी ब्लाउस हल्की सी खींच गई लेकिन आखिरी पिन पर होने होने कारण उसे कोई दिक्कत नहीं हुई।

अब सौंदर्या फिर से सरक कर पीछे हुई तो पत्थर की रगड़ उसे अपनी जांघो में बीच में महसूस हुई। सौंदर्या का मुंह लाल हो गया और फ़िर से पूजा पर ध्यान देने लगी। सौंदर्या के तन बदन में सिरहन सी दौड़ रही थी ये सोचकर कि यहां पूजा करने के बाद उसके होने पति में पति में ताकत बढ़ जाएगी और फिर वो उसके लंड पर बैठ जाएगी।

अजय ने फिर से कुछ मंत्र पढ़े और सौंदर्या को सामने देखने के लिए बोला तो सौंदर्या हवा में लटके हुए लंड को देखने लगी। अजय सौंदर्या की आंखो में चमक साफ देख रहा था।

अजय ने फिर से सामग्री ली और सौंदर्या को दी तो सौंदर्या ने फिर से आगे सरक कर सामग्री को कुंड में डाल दिया। आगे होने से उसके ब्लाउस से झांकती हुई उसकी गोलाईयों की हल्की सी झलक उसे मिल गई।

लंड के सुपाड़े पर बैठी हुई सौंदर्या जैसे ही पीछे होने लगी तो उसे अजय ने इशारे से रोक दिया और सौंदर्या सुपाड़े पर ही टिकी रह गई। ये एक दूसरा आसन था जिस पर सौंदर्या बैठी थी और इसमें आगे सुपाड़े पर खुरदरा पन था जिससे सौंदर्या अपनी टांगो के बीच महसूस कर रही थी। हर बार उसके झुकने से रगड़ पहले से ज्यादा तेज हो रही थी जिससे उसकी सांसे तेजी से चलने लगी और सीने में कम्पन होने लगा।

अजय भी बार बार उसे सामग्री देने के लिए झुक रहा था तो उसके जिस्म से चादर अपने आप सरक गई और वो सिर्फ अंडर वियर में अा गया। कुंड से उठती हुई अग्नि में उसकी छाती और मादक लग रही थी और सौंदर्या बीच बीच में अपने भाई की तरफ देख रही थी। अब उसके लंड का उभार भी साफ नजर आ रहा था और और सौंदर्या ये सब देखकर मदहोश हो रही थी।

अजय ने फिर से उसे सामग्री दी और दोनो ने एक साथ कुण्ड में डाल दी और अजय बोला:"

" दीदी बस पूजा की ये विधि खत्म हो गई है। आपको अब घंटे बजाने होंगे।

इतना कहकर अजय खड़ा हो गया और अपने सिर्फ को चादर से साफ करने के बाद उसने सौंदर्या के आगे अपने हाथ किए और सौंदर्या उसके हाथ पर खड़ी हो गई और अजय ने उसे उपर उठा लिया।

सौंदर्या उपर चली गई और बोली:"

" भैया घंटा कैसे बजेहाय ? यहां तो घंटा दिख ही नहीं रहा है।

अजय ने एक बार उसकी तरफ देखा और उसकी आंखो में देखते हुए बोला:"

" दीदी उपर छत में लगे हुए लिंग को पकड़ कर जोर जोर से हिलाएं। घंटा अपने आप बजने लगेगा।

सौंदर्या शर्मा गई और आंखे नीचे करते हुए बोली:"

" भैया आप मत देखो नहीं तो मुझे शर्म आएगी इसे पकड़ते हुए बहुत ज्यादा।

अजय ने अपनी नजरे नीचे झुका ली और सौंदर्या ने अपने कांपते हाथो से छत में लटके हुए लिंग को पकड़ लिया और हिलाने लगी। उसकी सांसे बहुत तेज चल रही थी और उसने एक के बाद लंड पकड़कर घंटे पकड़े और बजाने लगी। सौंदर्या की लंबाई शहनाज़ की तुलना में थोड़ी ज्यादा थी इसलिए आराम से उसका हाथ उपर तक जा रहा था। उसने थोड़ा सा आगे झुकते हुए एक बड़े लंड को पकड़ा और जोर से हिलाया तो वो एक झटके के साथ टूट गया और सौंदर्या अपने भाई के हाथो से फिसलकर नीचे अा गिरी। सौंदर्या डर गई थी लेकिन उसे कोई चोट नहीं लगी थी।

सौंदर्या ने अजय की तरफ देखा और अपने हाथ में पकड़े हुए लंड को दिखाते हुए बोली:"

" भैया ये घंटा टूट गया। कोई अपशकुन तो नहीं होगा ना ?

अजय उसके पास बैठ और उसके हाथ से पत्थर का लंड लिया और बोला:"

" दीदी ये घंटा नहीं लिंग हैं। इसका टूटना जरूरी था और अब ये विधि भी ठीक से पूरी हो गई है। बस अब एक लास्ट विधि बची और उसके शहनाज़ दीदी को भी अंदर बुलाना होगा।

अजय दरवाजे पर अाया और उसे सामने बेड पर लेटी हुई शहनाज़ नजर आईं जो बेचैनी से करवटें बदल रही थी। शहनाज़ अभी भी सिर्फ साडी और ब्रा पहने हुए ही लेती हुई थी। अजय जानता था कि शहनाज़ उसकी ताकत और उसके तगड़े जिस्म पर मचल गई है इसलिए उसके मन में शहनाज़ को अपनी दिखाने का एक और विचार आया ताकि वो पूरी तरह से उसे अपने वश में कर सके। शहनाज़ बेड पर पड़ी हुई अभी भी मचल रही थी और उसके जिस्म के मादक कटाव और कामुक बदन को एक बार फिर से देखकर अजय मस्त हो गया और बोला:"

"शहनाज़ दीदी आप एक बार अंदर आइए ना, पूजा की अंतिम विधि बची हुई है जो आपको दोनो को साथ में करनी होगी।

शहनाज़ आवाज सुनकर पलटी और उसकी तरफ देखा तो उसकी छाती और चौड़े कंधे देखकर फिर से उसके जिस्म में हलचल मच गई और शहनाज़ खड़ी हुई और उसकी आंखो में देखते हुए अपनी चाल को पूरी तरह से कामुक बना और अपनी गांड़ को मटकाती हुई उसकी तरफ बढ़ गई।

शहनाज़ उसकी आंखों में देखते हुए उसके पास पहुंच गई और बोली:" अजय बताओ ना अब कौन सी विधि बच गई है ?

अजय अंदर आ गया और शहनाज़ उसने पीछे अा गई और उसने सौंदर्या को देखा और उसे उसके पूरे कपड़ों में देखकर उसने सुकून की सांस ली और स्माइल करते हुए बोली:"


" हो गई ना पूजा अच्छे से सौंदर्या ? कोई दिक्कत तो नहीं अाई ?

सौंदर्या:" हान शहनाज़ सब कुछ ठीक से हो गया। कोई दिक्कत नहीं हुई।


शहनाज़ खुश थी कि उसकी चाल काम कर गई जबकि सौंदर्या भी खुश थी क्योंकि वो शहनाज़ की वजह से अपने भाई के सामने नंगी होने से बच गई।

अजय:" आपने पूजा करते हुए एक एक लिंग तो तोड़ ही दिया। अब आगे एक साथ दोनो को मिलकर छत में लगे हुए ये लिंग तोडने होंगे। तब जाकर ही पूजा पूरी तरह से सही समझी जाएगी।

शहनाज़:" वो तो ठीक हैं अजय। लेकिन हम दोनों एक साथ उपर कैसे जाएगी ?

अजय:" उसकी आप चिंता मत कीजिए। मैं आप दोनो को उठा लूंगा एक साथ।

शहनाज़:" ये कोई बच्चो का खेल नहीं हैं अजय।

अजय:" और मैं भी बच्चा नहीं हूं शहनाज़ दीदी। तुम्हे अभी मेरी ताकत का सही से अंदाजा नहीं है। एक काम करो दोनो आगे अा जाओ।

शहनाज़ और सौंदर्या आगे अा गई और अजय ने अपने दोनो हाथों से अलग उन्हें उठा लिया और देखते ही देखते अपनी छाती के बराबर उपर उठा लिया। शहनाज़ ये सब देखकर अजय की बाजुओं की ताकत पर अपना सब कुछ हार गई और उसने सौंदर्या की तरफ देखा और दोनो ने एक एक करके लंड तोडने शुरू कर दिए। शहनाज़ ने जान बूझकर अपना पैर उसके हाथ पर थोड़ा सा आगे बढ़ा दिया और बिना उसकी तरफ देखे अपने पैर के अंगूठे से उसकी छाती सहलाने लगी। अजय उसकी इस हरकत पर मस्ती में अा गया और उसने एक बार उपर की तरफ देखा कि दोनो लंड तोड़ रही हैं तो अजय ने अपना चेहरा हल्का सा नीचे किया और अपने जलती हुई जीभ को उसके अंगूठे पर फेर दिया तो शहनाज़ के मुंह से मस्ती भरी आह निकल पड़ी और सौंदर्या ने हैरानी से उसकी तरफ देखा तो सौंदर्या ने उसे स्माइल देते लंड की तरफ इशारे से बताया कि ये देखो कितना मोटा लग रहा है।

सौंदर्या ये देखकर मन ही मन शर्मा गई और अजय ने अपना मुंह खोलते हुए शहनाज़ के लाल रंग की नैल पॉलिश लगे हुए अंगूठे को अपने मुंह में भर लिया और शहनाज़ का पूरा बदन कांप उठा। उसकी चूत फिर से भीगना शुरू हो गई। अजय उसके अंगूठे को चूसे जा रहा था और बदहवाश सी मदहोश शहनाज़ पागलों की तरह लंडो को पकड़ पकड़ कर तोड़ रही थी मानो उनसे अपनी दुश्मनी निकाल रही हो। जल्दी ही दोनो ने सारे लंड तोड़ डाले तो अजय ने शहनाज़ ने अंगूठे को हल्का सा अपने दांतो से दबाया तो शहनाज़ ने अपने दूसरे पैर के नाखून उसकी छाती में गडा दिए तो अजय तड़प उठा और अजय ने दोनो को एक साथ नीचे उतार दिया।

नीचे उतरकर सौंदर्या और शहनाज़ बाहर की तरफ चल पड़ी। सौंदर्या आगे चल रही थी और शहनाज़ जैसे ही गेट पर पहुंची तो उसने पीछे पलटकर अजय की तरफ देखा और उसे स्माइल दी और बाहर निकल गई। अजय उसकी इस अदा पर पागल सा हो गया।


अजय भी अपने कपड़े बदल कर आ गया और उसके बाद सभी लोग गाड़ी में बैठकर निकल पड़े। अजय बार बार शीशे में पीछे बैठी हुई शहनाज़ को देख रहा था और शहनाज़ भी उसे सौंदर्या से नजरे बचा बचा कर स्माइल दे रही थी।

गाड़ी काफी देर से चल रही थी और पीछे बैठी हुई दोनो बाते कर रही थी। रात का करीब एक बज गया था और सौंदर्या को नींद अा गई तो वो वहीं खिड़की से सिर लगाकर सो गई। शहनाज़ ने उसके दोनो पैर सीधे किए और खुद थोड़ी सी आगे होकर सीट के अगले हिस्से पर बैठ गई।

अजय ने पीछे देखा कि सौंदर्या सो गई हैं तो उसने इस बार खिड़की से नहीं बल्कि अपनी पूरी गर्दन पीछे घुमाते हुए शहनाज़ की तरफ देखा और उसे स्माइल देते हुए बोला:"

" क्या हुआ नींद नहीं अा रही है क्या आपको शहनाज़ ?

शहनाज़ ने भी इसे स्माइल दी और बोली:" मुझे नींद नहीं आ रही हैं बिल्कुल भी लेकिन सौंदर्या पूरी तरह से गहरी नींद में सो गई है अजय।

अजय उसकी बात सुनकर खुश हो गई। क्योंकि जिस तरह से शहनाज़ से पूरी गहरी नींद शब्द का इस्तेमाल किया था उससे एहसास हो रहा था कि वो खुद उसे ये बताना चाह रही थी कि अब वो दोनो गाड़ी में अकेले हैं।

अजय: हान ये तो बहुत गहरी नींद सोती है बचपन से ही। अब आराम से सुबह तक ऐसे ही सोती रहेगी।

अजय ने भी उसे अपनी तरफ से इशारा दिया कि अब सौंदर्या उठने वाली नहीं है। शहनाज़ सब समझ भी गई लेकिन उसमें कुछ पहला करने की हिम्मत नहीं थी। अभी तक जो कुछ हुआ पूजा के बहाने हुआ था इसलिए उसकी समझ में नहीं अा रहा था कि कैसे आगे बढ़ा जाए।

अजय मर्द था तो पहल उसे ही करनी थी इसलिए बोला:"

" आप पीछे आराम से तो बैठी हुई हैं ना ? कुछ दिक्कत तो नहीं हो रही आपको ?

शहनाज़ को लगा कि यही सही मौका हैं इसलिए बोली:"

" नहीं कुछ ज्यादा नहीं !!

शहनाज़ ने जान बूझकर नपा तुला सा जवाब दिया। अजय तड़प सा उठा क्योंकि उसे लगा था कि शहनाज़ आगे बैठने के लिए कहेगी लेकिन शहनाज़ ने बात को अधूरा ही छोड़ दिया था। कुछ ज्यादा नहीं तकलीफ बोलकर शहनाज़ ने अजय के दिमाग में हलचल मचा दी कि वो आगे बैठना तो चाहती है लेकिन अजय की मर्जी से तो अजय ने फिर से कोशिश करना ही बेहतर समझा और उसने गाड़ी की स्पीड को कम किया और पीछे देखते हुए शहनाज़ की आंखो में देख कर बोला:"

" आपको थोड़ी सी भी दिक्कत होगी तो मुझे दुख होगा। वैसे पीछे इतनी सी जगह में आपको सोने में दिक्कत होगी।

शहनाज़ फिर से उसका ऑफर सुनकर ललचा गई और उसे स्माइल देते हुए बोली:"

" दिक्कत नहीं होगी क्योंकि मुझे नींद नहीं आ रही है अजय।

इतना कहकर शहनाज़ ने अपनी मेक अप किट को खोला और उसमे से एक गहरे लाल रंग की लिपस्टिक निकाल ली।

अजय उसकी बात सुनकर समझ गया कि अरमान तो उसके भी मचल रहे हैं नहीं तो ये रात को लिपस्टिक क्यों निकाल रही है कहीं मुझे उकसा तो नहीं रही हैं। अजय से अब बर्दाश्त नहीं हुआ और अपने चेहरे को शहनाज के चेहरे के पास लाते हुए बोला:"

" वैसे आगे गाड़ी में बड़ी और आरामदायक सीट हैं !!

शहनाज़ तो उसकी गोद में बैठने के लिए तैयार थी बस उसकी तरफ से पहल का इंतजार कर रही थी। अजय की तरफ से ऑफर मिलते ही शहनाज़ ने लिपिस्टिक को अपने होंठो पर घुमाया और हिम्मत दिखाते हुए बोली:"

" तो क्या मैं आगे बैठ जाऊं अजय !

शहनाज़ ने कांपते हुए कहा और अजय की आंखो में देखते हुए स्माइल दी तो अजय ने गाड़ी को बिल्कुल स्लो कर दिया और ।बोला:*

" आओ जाओ ना शहनाज़। मेरे पास ही बैठ जाओ। तुम्हे तो आगे ही होना चाहिए। रुको मैं पीछे की लाइट भी बंद कर देता हूं।

इतना कहकर उसने गाड़ी की आगे और पीछे की दोनो लाइट बंद कर दी और शहनाज़ धीरे से बिना आवाज किए हुए उठी और उसने सीट के बीच में से खाली जगह में अपना पांव आगे रखा और धीरे से आगे को निकल गई। शहनाज़ ने इसी बीच जान बूझकर उंगली से अपनी ब्रा की स्ट्रिप में फंसे हुए साडी के पल्लू को सरका दिया जिससे उसके आगे सीट पर बैठते ही उसकी साड़ी सरक कर नीचे अा गई और उपर से शहनाज़ सिर्फ ब्रा में अजय के सामने अा गई। अजय शहनाज़ को फिर से ब्रा में देख कर खुश हो गया।

बाहर चांदनी रोशनी फैली हुई थी जिसमें शहनाज़ का जिस्म गजब ढा रहा था। अजय बार बार उसकी तरफ देखकर रहा था और बीच बीच में उसकी चूचियों का उभार भी देख रहा था। उसकी चूचियों की गहराइयों के बीच में लटकी हुई सोने की चैन उसकी खूबसूरती और बढ़ा रही थी। अपनी चुचियों के उभार को देख रहे अजय को शहनाज़ ने एक कामुक स्माइल दी।



IMG-20210909-142024

अजय पूरी तरह से उसके लिए पागल हो रहा था और शहनाज़ ये देखकर पूरी तरह से खुश थी क्योंकि वो यही तो चाह रही थी। उसने अपनी लिपस्टिक ली और होंठो पर लगाने लगी तो अजय बोला:"

" इतनी रात में लिपिस्टिक लगा रही हो क्या बात हैं ? किस पर बिजलियां गिरेगी आज ??

शहनाज़ ने अपने होंठो को पूरी तरह से लाल कर दिया और अजय को देखते हुए अपने होंठो पर जीभ फेरते हुए बोली:"

" रात में लिपिस्टिक लगा सकते क्या अजय ? वैसे हैं कोई जिसके लिए मैं ये सब कर रही हूं।

इतना कहकर शहनाज़ ने उसे सेक्सी सी स्माइल दी। अजय ने गाड़ी को आगे मोड़ से घुमाया जिससे दोनो को हल्का सा झटका लगा और शहनाज़ मौके का फायदा उठाते हुए उसकी तरफ खिसक गई और एक अपने एक हाथ को उसकी जांघ पर रख दिया। अजय का दिल शहनाज़ को अपने इतने पास पकड़ धड़क उठा। शहनाज़ की गर्म गर्म सांसे उसे अब अपने उपर महसूस हो रही थी।

अजय बेचैन हो रहा था इसलिए बोला:" लगा सकते हैं शहनाज़ और तुम जैसी खूबसूरत औरत को बिल्कुल लगा सकती हैं।

अजय गियर बदलने के लिए अपना हाथ नीचे लाया और उसने गाड़ी को धीमी करते हुए गियर बदला और अपना हाथ उसके हाथ पर टिका दिया। शहनाज़ मचल उठी और उसने अजय की आंखो में देख कर स्माइल दी तो अजय ने उसके हाथ पर अपने हाथ का दबाव दिया और शहनाज़ के मुंह से एक मस्ती भरी आह निकल पड़ी। शहनाज़ की सांसे अब पूरी तेजी से चल रही थी और उसकी चूचियां फिर से उछल कूद कर रही थी।

शहनाज़ ने अपने हाथ की उंगलियों को खोला तो अजय ने अपनी उंगलियां उसकी उंगलियों में फंसा दी और सहलाने लगा। शहनाज़ ने फिर से अपने होंठो पर जीभ फिराई तो अजय ने शहनाज़ की उंगलियों को जोर से दबा दिया तो शहनाज़ ने उसकी जांघ को सहला दिया। अजय ने अब उसके हाथ को अपने हाथ में लिए हुए ही अपनी जांघ को सहलाना चालू कर दिया और शहनाज़ के होंठ कांप रहे थे और धीरे धीरे दोनो एक दूसरे की तरफ खिसक रहे थे और उनके बीच की दूरी कम होती जा रही थी।

शहनाज़ अजय की मजबूत चौड़ी जांघो पर अपनी हथेली रगड़ रही थी और धीरे धीरे अजय उसका हाथ अपने लंड की तरफ बढ़ा रहा था।

दोनो एक दूसरे की आंखो में देख रहे थे और शहनाज़ बार बार उसे देखते हुए अपने होंठो को अपनी जीभ से गीला कर रही थी। अजय बार बार उसके लिप्स को प्यासी नजरो से देख रहा था।

अजय ने शहनाज़ की आंखो में देखते हुए उसके हाथ को अपने लंड के उभार पर टिका दिया। शहनाज़ पूरी तरह से बहक गई और उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अजय पर झुकते हुए अजय के होंठो को चूम लिया।

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अजय इस चुम्बन से मस्त हो गया और उसने शहनाज़ को अपनी खींचा और शहनाज़ खुद ही उसकी गोद में बैठ गई और अपनी दोनो टांगे उसकी कमर में लपेट दी। अजय ने अपने होंठ उसके होंठों की तरफ बढ़ा दिए और शहनाज़ मदहोश होकर उसके होंठ चूसने लगी।

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अजय ने भी शहनाज़ का साथ देते हुए अपने एक हाथ को उसकी गर्दन के पीछे लगाया और उसके होंठ चूसने लगा। अजय पूरी तरह से मदहोश हो गया और शहनाज़ ने अपने मुंह को खोल दिया और अजय के होंठ उसके मुंह में घुसते चले गए। दोनो एक दूसरे की जीभ को बारी बारी से चूस रहे थे। अजय शहनाज़ से मुंह से निकलते हुए मादक और रसीले रस को पूरी तरह से मस्त होकर चूस रहा था।

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तभी पीछे इन्हे सौंदर्या के हिलने की आवाज अाई तो शहनाज़ किस रोककर उसकी गोद से उतरी और अपनी सीट पर बैठ गई। सौंदर्या पीछे अपनी आंखे मलती हुई उठ गई और शहनाज़ को आगे बैठे देखा तो थोड़ी सी हैरान हो गई और बोली:"

" अरे शहनाज़ आप आगे बैठ गई जाकर।

शहनाज का मुंह अभी तक लाल था और होंठो की लिपस्टिक थोड़ी सी फैल गई थी लेकिन गाड़ी में अंधेरा होने के कारण सौंदर्या को नहीं दिखी। शहनाज़ सौंदर्या के जाग जाने से बुरी तरह से डर गई थी इसलिए कांपते हुए बोली

" वो तुम सो गई थी और मुझे नींद नहीं आ रही थी। इसलिए सोचा अजय से ही बात कर लेती हूं।

शहनाज़ ने बड़ी मुश्किल से अपनी बात खत्म करी। अजय उसकी बात को बढ़ावा देने के लिए बोला:"

" दीदी आप सो गई थी और आप ठीक से सो सके पूरी सीट पर बस इसलिए ही ये आगे अा गई थी।

सौंदर्या अजय की बात सुनकर खुश हुई और उसने आज झुकते हुए खुशी में शहनाज़ का गाल चूम लिया। शहनाज़ ने चैन की सांस ली कि वो पकड़ी जाने से बाल बाल बची। भाई होंठ चूमता हैं और बहन मेरे गाल। पता नहीं ये सौंदर्या की कुंडली से दोष निकालने के लिए होने वाली पूजा मुझसे क्या क्या करवाएगी।
 
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सभी के पूजा के लिए जाने के बाद शादाब और कमला दोनो घर के अंदर अा गए और कमला की अजीब सी स्थिति थी। जहां एक ओर वो खुश थी कि आज से उसकी बेटी के कष्ट निवारण के लिए उपाय आरंभ हो गए हैं वहीं दूसरी ओर क्या ये पूजा और उसकी सभी विधियां ठीक से संपन्न हो पाएगी ये सभी सोच कर वो अंदर ही अंदर परेशान थी। शादाब से उसकी ये हालत छुपी नहीं थी इसलिए शादाब बोला:"

" आंटी क्या हुआ आप कुछ दुखी नजर सा रही हो ?

कमला:" बस बेटा ये ही सोचकर परेशान हूं कि क्या पूजा की सभी विधियां ठीक से पूरी हो जाएगी।

शादाब आत्म विश्वास से भरे हुए शब्दो में बोला:"

" बिल्कुल होगी। आप उसकी कोई चिंता मत कीजिए। मुझे अजय पर पूरा भरोसा है। और फिर मेरी अम्मी शहनाज भी तो गई है सौंदर्या दीदी की मदद करने के लिए। वो किसी भी बाधा को पर कर देगी।

कमला थोड़ी भावुक हो गईं और बोली:" भगवान करे तेरी बात सच हो जाए बेटा। मुझे अजय और शहनाज़ बहन पर पूरा भरोसा है। तुम लोग तो मेरे लिए देवता बनकर आए हो बेटा।

इतना कहकर कमला ने शादाब के सामने हाथ जोड़ दिए तो शादाब ने उसके हाथो को अपने हाथो से थाम लिया और बोला:"

" ना आंटी ना, बेटा भी कह रही हो और हाथ भी जोड़ रही हो। ये तो बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है। अजय मेरे सगे भाई जैसा हैं और आपकी हर परेशानी मेरी अपनी हैं एक दम।

कमला:" बेटा सच में आज कल तेरे जैसे दोस्त मिलने मुश्किल हैं। भगवान से प्रार्थना है कि तुम्हे लंबी आयु प्रदान करे।

शादाब:" जी आपका शुक्रिया आंटी जी। वैसे एक बात तो बताओ मुझे काम क्या क्या करना होगा ? घर के काम, खेत के काम वो सब आप बता दीजिए।

कमला:" बस बेटा घर के सारे काम तो मैं खुद ही कर लूंगी। तुम बस खेत से घास ला देना और बाहर बाजार से किसी सामान की जरुरत हुई तो वो लेते आना।

शादाब:" अच्छा ठीक है, मैं सब कुछ बड़े आराम से कर लूंगा। आप बेफिक्र रहिए। अब आप आराम कर लीजिए।

कमला:" अच्छा ठीक है बेटा, तुम भी थोड़ी देर आराम कर लो। फिर सुबह होने में भी ज्यादा समय नहीं बचा हुआ हैं।

इतना कहकर कमला बाहर ही बरामदे में पड़े हुए बेड पर लेट गई और शादाब अंदर बने हुए कमरे में लेट गया। कमला की आंखो से नींद कोसो दूर थी और उसे अभी भी सौंदर्या के बारे में सोचकर चिंता हो रही थी। पता नही पूजा में कोई अपशकुन मा हो जाए। कहीं मेरी बेटी फिर से मांगलिक ही ना रह जाए। बड़ी मुश्किल से एक मौका मिला उपाय करने का तो ये हाथ से नहीं जाना चाहिए। ये सब सोचते सोचते कब उसकी आंख लग रही उसे पता ही नहीं चला।

सौंदर्या और शहनाज़ के साथ साथ अजय भी पूजा के बाद घर वापिस लौट आए और सभी के चेहरे पर उदासी छाई हुई थी। ये सब देखकर कमला का दिल डर के मारे बैठ गया और घबराते हुए बोली'"

" क्या हुआ ? तुम सब इतनी जल्दी कैसे अा गए?

अजय ने अपना चेहरा नीचे किया और उदासी से बोला'"

" मम्मी वो पूजा ठीक से संपन्न नहीं हो पाई क्योंकि शहनाज़ आंटी ने बीच में ही पूजा की कुछ विधि करने से मना कर दिया।

अजय की बात सुनते ही कमला जोर से चींखं पड़ी और उसकी आंख खुल गई। ये भगवान मैं तो ये सपना देख रही थी। कमला डर के मारे कांप रही थी और उसके माथे पर पसीना आया हुआ था।

कमला की आवाज सुनकर शादाब नींद से जाग गया और उसकी तरफ दौड़ा तो देखा कि कमला लंबी लंबी सांस ले रही थी और पसीने पसीने हो गई थी। कमला बेहोश हो गई शादाब ने जल्दी से अपने बैग में किट निकाली और उसका ब्लड प्रेशर चेक किया जो 260 के आस पास था।

शादाब थोड़ी देर के लिए डर गया लेकिन अगले ही पल उसने एक इंजेक्शन उसे लगाया और कुछ ब्लड प्रेशर की दवा दी। शादाब इसके पास ही बैठ गया और उसका ध्यान रखने लगा।

करीब एक घंटे के बाद कमला का ब्लड प्रेशर कम और उसने अपनी आंखे खोल दी। शादाब ने चैन की सांस ली और बोला:"

" आपको क्या हुआ था आंटी ? आप घबरा क्यों गई थी ?

कमला थोड़ी देर छत को देखती रही और शादाब ने फिर से सवाल किया तो बोली:"

" बेटा वो मैंने एक सपना देखा कि पूजा विधि ठीक से नहीं हुई और मेरी बेटी फिर से मांगलिक ही रह गई। बस इसलिए डर गई थी।

शादाब:' ओह आंटी आप भी ना, सपने तो सपने होते हैं। वो सच थोड़े ही होते हैं।

कमला थोड़ी घबराई हुई आवाज में बोली:" नहीं बेटा, मेरे सपने सच ही होते हैं, और सुबह का देखा हुआ सपना तो कभी झूठ नहीं होता।

शादाब:" ऐसा क्या देख लिया आपने ? क्यों पूजा सफल नहीं हुई ये बताओ ?

शादाब का सवाल सुनते ही कमला बोली:" बेटा हुआ ये कि शहनाज ने पूजा की विधि...


इतना कहकर कमला चुप हो गई क्योंकि उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह से शादाब को कहे कि उसकी अम्मी ने पूजा विधि ठीक से नहीं करी। शादाब थोड़ा परेशान होते हुए बोला:"

" हान आंटी बोलो आप, मेरी अम्मी शहनाज ने पूजा विधि क्या ? आगे भी बोलो कुछ अब

कमला ने अपना मुंह नीचे किया और धीरे से बोली:" बेटा मैंने देखा कि शहनाज़ ने पूजा की विधि ठीक से नहीं करी जिससे पूजा सफल नहीं हुई ।

शादाब के चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आए। शहनाज़ की वजह से नहीं बल्कि कमला के अंदर का डर देखकर। उसे अपनी अम्मी पर पूरा भरोसा था लेकिन जिस तरह को मनोदशा से कमला गुजर रही है ये उसके लिए घातक हो सकता था। इसलिए शादाब थोड़ा सोचते हुए बोला'"

"आप बेफिक्र रहे। मेरी अम्मी पूजा में कोई बाधा नहीं आने देगी। मुझे उन पर पूरा भरोसा है।

कमला:" भगवान करे ऐसा ही हो। क्या मैं एक बार शहनाज़ से बात कर लू ? मेरा दिल नहीं मान रहा है बेटा।

शादाब ने अपना मोबाइल निकाला और शहनाज का नंबर मिलाया तो शहनाज़ जो कि अजय के बराबर में आगे बैठी हुई थी अपने बेटे का फोन देखकर खुश हुई और घर से निकलने के बाद उसे पहली बार याद अाया की उसका बेटा नहीं उसका शौहर भी हैं तो उसे अपने द्वारा की गई अब तक की हरकतों पर दुख महसूस हुआ और उसने फोन उठा लिया:"

" शादाब कैसे हो बेटा ? अा गई क्या अपनी अम्मी की याद तुम्हे ?

शादाब शहनाज की आवाज सुनकर झूम उठा और बोला:"

" अम्मी आपको भुला ही नहीं हूं तो याद कैसे नहीं नहीं आएगी। लेकिन आपने भी तो फोन नहीं किया अभी तक।

शहनाज़:" वो मैं पूजा की विधि करने में ध्यान पूर्वक लगी हुई थी बस इसलिए नहीं कर पाई।

ये कहते हुए शहनाज़ का चेहरा शर्म से लाल हो गया। शादाब ने चैन की सांस ली और बोला:"

" बिल्कुल सही किया आपने अम्मी, आप चाहे तो जब तक पूजा खत्म नहीं हो जाती मुझसे बात भी ना करे लेकिन पूजा में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होनी चाहिए।

तभी कमला ने शादाब को इशारा किया तो शादाब ने फोन उसकी तरफ बढ़ा दिया और बोला:"

" लो अम्मी पहले आप कमला आंटी से बात कर लीजिए।

कमला ने फोन लिया और बोली:"

" शहनाज कैसी हो तुम ? सब ठीक हैं ना वहां, अजय और सौंदर्या।

शहनाज़:" हान जी सब बिल्कुल ठीक हैं, आप फिक्र मत कीजिए। हम जल्दी ही सब काम खत्म करके वापिस आएंगे।

कमला थोड़ी भावुक आवाज में बोली:" मेरी बेटी की ज़िन्दगी अब तुम्हारे हाथ में हैं शहनाज। उसे बर्बाद होने से बचा लेना।

शहनाज़ आत्म विश्वास से भरे हुए शब्दो से बोली:"

" आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। सौंदर्या अब सिर्फ आपकी बेटी ही नहीं बल्कि मेरी छोटी बहन भी बन गई हैं। मैं उसके लिए कठिन से कठिन पूजा विधि भी करने से पीछे नहीं हटने वाली। बस आप शादाब का ध्यान रखना।

कमला:" तुमने दिल जीत लिया शहनाज़। शादाब की चिंता मत करो यहां मैं हूं ना उसका ध्यान रखने के लिए।

शहनाज: मुझे आप पर पूरा यकीन है। आप सौंदर्या की तरफ से बेफिक्र रहिए। हम जल्दी ही दोष मुक्त सौंदर्या के साथ घर वापिस आएंगे।

कमला:" भगवान करे तुम्हारे मुंह में घी शक्कर। तुम आओ तो एक बार कामयाब होकर ऐसा स्वागत करूंगी कि तुम मुझे हमेशा याद करोगे।

शादाब सारी बात ध्यान से सुन रहा था और कमला की हालत में सुधार होते देख रहा था। एक डॉक्टर होने के नाते वो बहुत खुश था और उसने कमला को मानसिक रूप से सपोर्ट करने के लिए कमला से फोन लिया और उसका स्पीकर खोल कर बोला:"

" अम्मी मैं यहां बिल्कुल ठीक हूं। कमला आंटी बहुत अच्छी हैं। आप अपना पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पूजा पर लगाए। पूजा किसी भी हालत में विधिपूर्वक पूरी होनी चाहिए।

शहनाज़:" हान शादाब बेटा, तुम उसकी चिंता मत करो, मेरा नाम शहनाज़ है और पूजा विधि इतने अच्छे से करूंगी कि तुम्हे अपनी अम्मी पर नाज होगा। अब मैं सौंदर्या को दोष मुक्त करके ही घर वापिस आऊंगी बेटा।

शहनाज़ की बात सुनकर कमला खुश हो गई। शादाब ने उसके चहेरे पर स्माइल देखी तो उसे लगा कि उसकी योजना काम कर रही है।

शादाब:" मुझे बहुत ख़ुशी है कि मैं आपका बेटा हूं। मुझे अपनी अम्मी पर पूरा यकीन है कि आप पूजा खत्म करके ही वापिस आएंगी। चाहे कितनी भी कठिन विधि हो और आपको कुछ भी करना पड़े लेकिन सौंदर्या दीदी बिल्कुल पूरी तरह से दोषमुक्त
होनी चाहिए।

शहनाज़ ने अपने बेटे की बात सुनी और इसके होठो पर स्माइल अा गई और बोली:"

" तुम बेफिक्र रहो और खुश रहो। मैं सौंदर्या के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दूंगी।

शादाब:" थैंक्स अम्मी, आप आइए फिर आपका बेटा आपक ऐसा स्वागत करेगा कि आप भी याद रखेगी।

शहनाज कुछ बोल रही थी कि लेकिन उसे आवाज नहीं अा रही थी। उसने देखा कि उसके फोन के नेटवर्क नहीं थे तो उसने फोन काट दिया और अजय की तरफ देखा जो उसकी ही बात सुन रहा रहा था।

पीछे बैठी सौंदर्या शहनाज़ की बाते सुनकर भावुक हो गई और उसकी आंखे भर आई थी कि शहनाज़ उसके लिए कितना कुछ कर रही हैं और आगे भी किसी भी हद से गुजर जाने के लिए तैयार है।

वहीं दूसरी तरफ कमला अब पूरी तरह से सुकून महसूस कर रही थी और बोली:"

" बेटा शहनाज़ बहन की बाते सुनकर तो मुझे लग रहा है कि सपने सिर्फ सपने ही होते हैं और सपने देखकर डरना नहीं चाहिए।

" सपना देखकर डरने की कोई जरुरत भी नहीं हैं आंटी क्योंकि सपना कोई चुड़ैल नहीं बल्कि आपकी बेटी की....


सपना बोलते हुए घर के (सौंदर्या की सहेली) अंदर दाखिल हुई। शादाब को देखते ही उसके बाकी के शब्द उसके मुंह में ही रह गए और उसे देखते हुए बोली:"

" ये कौन हैं आंटी जी ?

कमला:" अरे बेटी ये शादाब हैं अजय का दोस्त। इसकी अम्मी अजय और शहनाज़ के साथ पूजा के लिए हरिद्वार गई है इसलिए ये मेरे साथ ही घर में रहेगा कुछ दिन।

सपना ने एक नजर शादाब को उपर से नीचे तक देखा और फिर बोली:" अजय भाई का दोस्त हैं फिर तो ठीक है आंटी जी। आज कल जमाना खराब हैं चोर उचक्के घूमते रहते हैं सुंदर सी सूरत किए। मैं इधर से अा रही थी तो सोचा सौंदर्या से मिलती जाऊ। लेकिन वो तो हैं ही नहीं यहां।
 
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कमला:" अरे तुम सिर्फ सौंदर्या की सहेली ही नहीं बल्कि मेरी बेटी भी हो। सौंदर्या नहीं तो क्या हुआ मैं तो हूं घर पर। और तूने अच्छा किया जो अा गई, अब घर के काम में मेरी मदद करना। मैं तेरे बाप को बोल दूंगी कि तुझे मेरे पास ही छोड़ दिया काम के लिए दिन में तब तक अजय और सौंदर्या नहीं अा जाते।

सपना:" ठीक है आंटी मैं भला किस दिन काम आऊंगी आपके। मुझे बता दीजिए घर के काम क्या क्या हैं ? मैं खुद कर लूंगी।

कमला:" बस भैंस के कुछ काम हैं और हमारे साथ खेत पर चलना घास लेने के लिए। आज के लिए इतना बहुत हैं।

सपना:" हमारे साथ मतलब ये साहब भी खेत पर जाएंगे क्या ?

कमला:" हान बेटी शादाब भी मदद के लिए साथ में जाएगा हम दोनों के साथ।

सपना:" बस जी बस ये शहरी लोग बड़े नाजुक होते हैं। कहीं तबियत ही खराब ना हो जाए जंगल की हवा में इनकी।

शादाब कुछ बोल नहीं रहा रहा बस वो आराम से सपना को देख रहा था जो बिना रुके बकबक किए जा रही थी।

कमला:" बेटा तुम भी ना कुछ भी बोल देती हो। थोड़ा सोच समझ कर बोला करो। किसी के नाजुक होने से गांव या शहर का क्या मतलब समझी तुम।

सपना:" मुझे ज्यादा नहीं समझना, जो सही लगा बोल दिया। मै एक बार घर जाके आती हूं और अपने बापू को बोल भी आती हूं कि मैं आपके पास रहूंगी।

इतना कहकर सपना शादाब को देखती हूं घर के बाहर चली गई। उसके जाते ही शादाब के कुछ बोलने से पहले कमला खुद ही बोल पड़ी:"

" बेटा ये सौंदर्या की सहेली हैं, थोड़ी बकबक ज्यादा करती हैं, इसकी किसी बात का बुरा मत मानना। दिल की बहुत अच्छी हैं ये लड़की।

शादाब:" जी आंटी, मैं किसी बात का बुरा नहीं मान रहा, हर इंसान की अपनी सोच होती है।

कमला: अच्छा तुम नहा धोकर फ्रेश हो जाओ। फिर खेत में चलते हैं घास लेने के लिए।

शादाब:"ठीक है। मैं आता हूं।


इतना कहकर शादाब बाथरूम के अंदर चला गया और सपना फिर से घर के अंदर अा गई। कमला दूध गर्म कर रही थी और सपना ने उसकी साथ मिलकर जल्दी से परांठे बना दिए।

थोड़ी देर बाद सभी लोग नाश्ता कर रहे थे। शादाब ने दूध का ग्लास खाली किया और कमला ने इसे फिर फिर से भर दिया तो सपना हंस पड़ी और बोली:"

" क्या आंटी एक गल्लास पी लिया वहीं बहुत हैं। इससे ज्यादा कहां पीते है शहर वाले ?

शादाब के होंठो पर उसकी बात सुनकर स्माइल अा गई और बिना कुछ बोले दूध का ग्लास फिर से उठाया और एक ही सांस में पूरा ग्लास खाकी कर दिया।

सपना:" वैसे मुझे लगता है कि तुम्हे दूध पसंद हैं। अच्छी बात है दूध पीना सेहत के लिए अच्छा होता है बहुत।

शादाब:" मुझे दूध बहुत पसंद है सपना मैडम।

सपना शादाब की खूबसूरती से काफी प्रभावित थी और उसके दूध पीने से उसे अच्छा लगा था इसलिए बोली:"

" सपना ही ठीक है मैडम मत बोलो तुम। और हान एक बात और मेरी किसी बात का बुरा मत मान लेना। जुबान थोड़ा ज्यादा ही चलती हैं मेरी।

उसकी बात सुनकर शादाब मुस्कुरा दिया और कमला हंसने लगी। नाश्ता करने के बाद सभी लोग खेत पर जाने के लिए तैयार हो गए तभी कमला की एक सहेली बिमला आ गई तो वो उससे बाते करने लगी। बाहर मौसम भी थोड़ा खराब हो गया था और काले काले बदल आसमान में उमड़ रहे थे।

कमला:" अरे सपना बिमला इतने सालो के बाद अाई हैं मैं उससे बात कर लेती हूं। तुम शादाब के साथ खेत में चली जाओ और घास लेती आओ।

सपना;" हान हान, जी भर कर बात करो। जाती हूं मैं।

इतना कहकर सपना बाहर अा गई और शादाब भी उसके पीछे पीछे चल पड़ा। सपना शादाब को देखते हुए बोली:" अच्छा तुम खेत पर कैसे जाओगे ? ट्रैक्टर चलाना आता है क्या तुम्हे?

शादाब:" नहीं वो तो नहीं आता मुझे।

सपना:" लो जी कर को बात, फिर क्या पैदल जाओगे खेत पर। एक काम करती हूं मैं अपना भैंसा बुग्गी के आती हूं।

इतना कहकर वो अपने पैर पटकती हुई चली गई और थोड़ी देर बाद ही भैंसा बुग्गी लेकर अा गई और बोली:"

" अब खड़े खड़े मेरा मुंह क्या देख रहे हो, आओ बैठो, जाना नहीं है क्या तुम्हे !!

शादाब:" हान हान बैठता हूं रोको तो पहले इसे।

शादाब चलती हुई बुग्गी में बैठ गया लेकिन हल्का सा लड़खड़ा गया और सपना बोली:"

" अरे आप तो गिर ही गए होते। थोड़ा संभाल कर बैठो आप।

इतना कहकर उसने बुग्गी को चला गया और शादाब उसके पास ही बैठ गया। सपना बीच बीच में उसे ही देख रही थी और सोच रही थी कि ये सच में बेहद सीधा और खूबसूरत है। सपना काफी रंगीन मिजाज लड़की थी और गांव के काफी सारे लडको के साथ मस्ती कर चुकी थी। उसे शादाब अच्छा लगा और उसने उस पर डोरे डालने का सोच लिया।

सपना:" क्या करते हो आप शादाब जी ?

शादाब:" मैं डॉक्टर हूं और अमरीका से अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा हूं। इंडिया वापिस अाया तो अजय से मिलने अा गया था बस।

सपना अमेरिका का नाम सुनते ही खुश हो गई और बोली:"

" अच्छा मैंने सुना हैं कि वहां काफी गोरी गोरी मेम होती है।

शादाब:" जी बिल्कुल आपने ठीक सुना हैं। ऐसा हो होता है।

सपना:" अच्छा जी। फिर तो आपने काफी सारी मस्ती की होगी वहां। मौसम थोड़ा खराब ही लग रहा है मुझे आज, देखो कितने काले काले बाद उमड़ रहे हैं उपर।


सपना आसमान की तरफ देखते हुए कहा और जैसे ही शादाब ने आसमान में देखा तो अपना ने जान बूझकर शादाब की नजर बचा कर अपनी नीचे रंग की ब्रा का स्ट्रैप सूट से बाहर निकाल कर अपने कंधे पर कर दिया।

शादाब ने जैसे ही उसकी तरफ देखा तो उसे उसके कंधे पर ब्रा का स्ट्रिप नज़र आया और शादाब को थोड़ी सी हैरानी हुई कि ये कैसे बाहर निकल अाया। खैर शादाब ने उसे देखा तो ये सपना के लिए बड़ी बात थी।

सपना:" अच्छा तो मैं पूछ रही थी कि गोरी गोरी मेम तो तुम्हारे उपर फिदा हो गई होगी।

शादाब:" नहीं ऐसा तो कुछ नहीं हुआ। मैं तो वहां अपनी अम्मी के साथ ना।

सपना:" ओहो अब क्या कॉलेज में भी तुम्हारी अम्मी साथ जाती थी। इतने सुन्दर हो तुम, तुम्हारे लिए तो लाइन लग जाएगी लड़कियो की।

इतना कहते हुए सपना ने अपनी एक कोहनी का दबाव अपनी छाती पर दिया तो उसकी चूचियां थोड़ी सी नजर आने लगी और शादाब फैसला नहीं कर पाया कि क्या करे। उन्हें देखे या नहीं। लेकिन मर्द कोई भी हों उसकी जान औरत की गोलाईयों में बसती है और शादाब भी कोई देवता तो था नहीं इसलिए ना चाहते हुए भी उसकी नजर एक पल के लिए सपना की गोलाईयों पर चली गई और बोला:"

शादाब:" मैं इतना भी सुंदर नहीं हूं। वैसे मुझे कोई शोक नहीं कि मेरे पीछे लाइन लगे।

सपना:" अजी तुम्हे क्या पता। मुझसे पूछो तो पता चले।

शादाब:" अच्छा क्या सच में मैं इतना सुन्दर हूं? तुम भी बताओ।

सपना:" और नहीं तो क्या, तुम तो एक बहुत ही खूबसूरत नौजवान हो।

तभी आसमान से बारिश पड़ने लगी और देखते ही देखते दोनो पूरी तरह से भीगते चले गए।सपना का सफेद रंग का सूट उसके बदन से भीग कर पूरी तरह से चिपक गया और उसकी ब्रा तक साफ दिख रही जिसमे कैद उसकी मध्यम आकार की चूचियां अपना वजूद दर्शा रही थी। शादाब उसे बार बार तिरछी नजरो से देख रहा था और सपना बार बार उसकी तरफ ही देख रही थी। भीग जाने के कारण पीछे से उसकी कमर बिल्कुल साफ नजर आ रही थी। शादाब ना चाहते हुए भी ये सब देखकर उत्तेजित हो गया और उसके लंड अपनी औकात दिखाते हुए खड़ा हो गया।

खेत अा गया था और शादाब बुग्गी से उतर गया और सपना ने बुग्गी को खेत के बाहर ही खड़ा कर दिया और खेत में घुस गई और घास काटने लगीं। शादाब का खड़ा हुआ पेंट में बहुत बड़ा उभार बना रहा था और ये देखते ही सपना की आंखे चमक उठी और योजना बनाने लगी। शादाब खेत में अा गया और उसकी मदद करने लगा तो सपना सोच समझ कर बोली:"

" मैं कर लुंगी। आप एक काम कीजिए भैंसे को थोड़ा घास डाल दीजिए। पेट भरकर खा लेगा बेचारा।

शादाब ने थोड़ा सा घास उठाया और भैंसे की तरफ लेकर चल दिया। सपना की आंखे चमक उठी क्योंकि शादाब एक कच्ची सड़क पर था जिस पर पानी भर गया था। सपना ने धीरे से अपना हाथ पीछे ले जाकर अपनी ब्रा का हुक खोल दिया और उसकी चूचियां उसके सूट के अंदर आजाद हो गई।

शादाब ध्यान से आगे बढ़ता रहा और उसने भैंसे को घास दिया और फिर वापिस सपना की तरफ बढ़ गया। रास्ते में हुई कीचड़ से इस बार वो बच नहीं पाया और फिसल कर उसमें गिर गया। शादाब के गिरते ही सपना खुश होती हुई उसकी तरफ दौड़ी जिससे उसकी चूचियां सूट में उछलती हुई नजर आईं और सादाब ये देखकर हैरान हो गया कि इसकी ब्रा कहां चली गई।

सपना ने उसका हाथ पकड़ा और उठाते हुए बोली;"

" उफ्फ तुम भी गिर ही गए, सारे कपड़ो पर कीचड़ लग गया।

उसे उठाने का बहाना करते हुए वो खुद भी उसके उपर गिर पड़ी। दोनो के कीचड से भीगे हुए बदन टकरा गए तो सपना के मुंह से आह निकल पड़ी। शादाब ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे साथ साथ उसे भी खड़ा कर दिया।

सपना:" तुम्हारे चक्कर में मैं भी गिर गई। अब नदी में नहाना होगा तभी ये कीचड़ साफ होगी। आओ मेरे साथ।

इतना कहकर उसने अपना छुडाया और नदी की तरफ बढ़ गई।नदी के पास जाकर शादाब ने अपनी गंदी पेंट को उतार दिया तो सपना समझ गई कि उसकी चाल कामयाब हो गई हैं। दोनो एक साथ उतर गए और साफ पानी में दोनो के शरीर का कीचड़ बिल्कुल साफ हो गया।

सपना:" अरे शादाब देखो मेरी कमर साफ कर दो ठीक से हाथ नहीं जा रहा है।


इतना कहकर वो उसके पास अा गई और शादाब ने अपने दोनो हाथ उसकी कमर पर टिका दिए और साफ करने लगा। कीचड़ तो कहीं नाम के लिए भी नहीं लगी हुई थी और शादाब बस उसकी कमर सहला रहा था। सपना उसकी तरह धीरे धीरे खिसक रही थी और जल्दी ही उसकी गांड़ शादाब के अंडर वियर के उभार से जा टकराई तो सपना की आंखे मस्ती से बंद हो गई। सपना नीचे पेंटी नहीं पहनती थी इसलिए शादाब के लंड का उभार उसकी गांड़ पर अच्छे से रगड़ दे रहा था और सपना खुद ही अपनी गांड़ आगे पीछे कर रही थी।

शादाब उसकी हरकत से जोश में भर गया और उसने अपना हाथ नीचे ले जाकर अपने अंडर वियर को नीचे सरका दिया और जैसे ही सपना की गांड़ पर नंगा लंड का सुपाड़ा छुआ तो उसके मुंह से आह निकल पड़ी। सपना ने अपना हाथ नीचे किया और अपनी सलवार का नाड़ा खोल दिया और उसकी सलवार उसकी टांगो में ही सरक गई। जैसे ही शादाब के लंड का नंगा सुपाड़ा उसकी नंगी गांड़ से छुआ तो शादाब ने उसके कंधों को थाम लिया और जोर से मसल दिया। सपना पूरी तरह से बहक गई और उसने अपनी गांड़ को हल्का सा झुकाया जिससे उसकी चूत उपर की तरफ उभर गई। लंड का सुपाड़ा सीधे उसकी चूत पर अा लगा और उसकी चूत लंड के मोटे तगड़े सुपाड़े से पूरी तरह से ढक गई। सपना सुपाड़े की मोटाई महसूस करके सिसक उठी और अपने दोनो हाथ अपनी चुचियों पर रख दिए। शादाब ने अपने एक हाथ से सपना की टांग को उपर की तरफ उठा दिया और दूसरे हाथ को उसकी गर्दन में कसते हुए लंड का जोरदार धक्का उसकी चूत में जड़ दिया और जैसे ही सुपाड़ा अन्दर घुसा तो सपना के मुंह से आह निकल पड़ी। शादाब ने बिना रुके तेज तेज धक्के लगाए और पूरा लंड उसकी चूत को फैलाते हुए जड़ तक घुस गया। सपना दर्द से कराह रही थी क्योंकि उसकी चूत लंड से फट सी गई थी।

शादाब ने लंड को बाहर की तरफ निकाला और पूरी तेजी से फिर से अंदर घुसा दिया। सपना फिर से तड़प उठी लेकिन इस बार दर्द पहले से कम था। शादाब बिना रुके चूत में धक्के लगाने लगा और सपना के मुंह से अब मस्ती भरी सिसकारियां निकल रहीं थीं। शादाब ने उसकी गर्दन छोड़कर उसकी चूची को पकड़ लिया तो सपना उसकी तरफ पलट गई लंड उसकी चूत से बाहर निकल गया। सपने ने तेजी से अपना सूट निकाला और अपनी एक टांग खुद ही उपर उठा दी और शादाब को लंड घुसाने का इशारा किया तो शादाब ने उसकी दोनो चुचियों को थाम लिया और लंड को एक ही धक्के में घुसा दिया और बिना रुके चोदना चालू कर दिया। शादाब पूरी ताकत से कस कस कर धक्के लगा रहा था और सपना अब मस्ती से सिसक रही थी। शादाब ने उसकी चूचियों को पूरी ताकत से मसला और लंड के धक्कों में पूरी तेजी अा गई तो सपना को अपनी चूत में तूफान सा मचलता हुआ महसूस हुआ और उसकी चूत ने अपना रस छोड़ दिया तो सपना पागल सी होकर शादाब के होंठो को चूसने लगी। शादाब ने भी पूरी ताकत से कुछ धक्के मारे और एक आखिरी धक्का मारते हुए अपना लंड उसकी चूत में जड़ तक घुसा दिया और वीर्य की पिचकारी छोड़ दी। दोनो एक दूसरे से कस कर लिपट गए।

थोड़ी देर के बाद शादाब ने सपना को अपनी बांहों में लिया और खेत में ले आया। सपना चुदाई के बाद काफी अच्छा महसूस कर रही थी इसलिए बोली:"

" लेट हो जाएंगे। मैं पहले घास काट लेती हूं

इतना कहकर वो नंगी ही घास काटने लगीं। शादाब उसकी हिलती हुई गांड़ देख कर पागल सा हो रहा था। अपनी अम्मी अपनी जान शहनाज को वो पूरी तरह से भूल गया था।


सपना ने घास काट दिया और शादाब ने उसे बुग्गी में रख दिया। सपना ने पहली बार शादाब का लंड देखा और उसकी चूत फिर से भीग गई। सपना ने उसकी आंखो में देखते हुए अपने आपको बुग्गी पर झुका दिया और कुतिया सी बन गई। शादाब से बर्दास्त नहीं हुआ और वो उतरा और उसके पीछे आते हुए फिर से लंड को एक तगड़े धक्के के साथ उसकी चूत में घुसा दिया। सपना ने बुग्गी को कसकर पकड़ लिया और शादाब ने उसकी चूत को चोदना शुरू कर दिया। सपना के मुंह से मस्ती भरी सिसकारियां निकल रही थी और उसकी चूचियां उछल उछल पड़ रही थी। शादाब जोर जोर से उसे चोद रहा था और शादाब के सुपाड़े की रगड़ सपना से बर्दाश्त नहीं हुई और फिर से उसकी चूत ने अपना रस छोड़ दिया। शादाब ने उसकी चूत में कुछ धक्के कसकर मारे और अपना वीर्य छोड़ दिया।

उसके बाद दोनो ने कपडे पहने और घर की तरफ चल पड़े। सपना और शादाब ने घास को बुग्गी से उतारा और अंदर रख दिया। सपना अपने घर चली और शादाब नहाकर कर अाया और उसने कमला के साथ खाना खाया और थके होने के कारण सो गया।

रात को करीब आठ बजे उसकी आंख खुली तो देखा कि सपना भी अाई हुई हैं और कमला से बच बच कर उसे रात के लिए इशारे कर रही थी। सभी ने फिर से खाना खाया और कमला बोली:"

" अच्छी बेटी ठीक है रात बहुत ज्यादा हो गई है इसलिए तुम अपने घर चली जाओ अब।

सपना का मन जाने का था ही नहीं क्योंकि वो तो शादाब उसे पूरी रात अपनी चुदाई करवाना चाहती थी इसलिए बोली:"

" आंटी घर जाकर ही क्या करूंगी, सुबह तो फिर आना ही होगा इसलिए यहीं सो जाती हूं।

इससे पहले कि कमला कुछ बोलती सपना के पापा अंदर दाखिल हुए और बोला:"

" कोई बात नहीं बेटी। सुबह कल फिर से अा जाना। मुझे रात में खेत पर जाना और घर में तेरी मा अकेली होगी।

सपना अब चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी इसलिए ना चाहते हुए अपने पापा के साथ चली गई। वहीं उसके जाने से शादाब भी उदास हुआ लेकिन कर ही क्या सकता था।

कमला ने उसका बिस्तर अंदर कमरे में लगा दिया और खुद बाहर ही सोने के लिए लेट गई लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी इसलिए पड़ी हुई अपनी बेटी के बारे में सोच रही थी। रात के करीब 11 बज गए थे और उसे अपने घर की दीवार पर एक साया नजर आया और वो साया दीवार कूद कर घर के अंदर जैसे ही दाखिल हुआ तो उस पर नजर पड़ते ही कमला हैरान हो गई कि ये सपना इतनी रात को चोरी छिपे क्यों घर के अंदर घुस रही हैं।
 

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