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सूरज पूरी तरह से डूब चुका था और बाहर अंधेरा नजर आ रहा था। लेकिन गाड़ी में शहनाज़ के रूप सौंदर्य की धूप खिली हुई थी और अजय उस पर पूरी तरह से आकर्षित हो गया था।
पीछे सौंदर्या और शहनाज़ आपस में बाते कर रही थी।
सौंदर्या:" वैसे एक बात है दीदी आप साडी में इतनी ज्यादा खूबसूरत लगेगी इसका अंदाजा नहीं था मुझे।
शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:"
" अच्छा जी लेकिन सुंदर तो तुम भी हो सौंदर्या। मेरी प्यारी सहेली।
सौंदर्या:" हान जी लेकिन आपकी बात ही कुछ ओर हैं। सच कहूं तो ऐसा रूप सौंदर्य आज तक मैंने भी नहीं देखा। कौन कहेगा कि आपका एक जवान बेटा हैं। सच मानिए आपके लिए तो अभी लडको की लाइन लग जाएगी।
शहनाज़:" चुप कर पगली तुम, कुछ भी बोल देती हो। ऐसा कुछ भी नहीं हैं सौंदर्या।
अजय का दिल किया कि बोल दू एक लड़का तो मैं ही शहनाज़ हो तुम्हारे लिए पागल हो गया हूं लेकिन फिर संयम से काम लेते हुए बोला:"
" शहनाज़ दीदी सच में सौंदर्या दीदी सच ही तो कह रही है। आपके लिए तक लड़के दीवाने हो जाएंगे। वैसे अगर आप बुरा ना माने तो एक सलाह दू आपको ?
शहनाज़:" हान जी आप बोलो, क्या सलाह हैं?
अजय:" आपको एक बार फिर से शादी कर लेनी चाहिए।
अजय की बात सुनकर शहनाज़ के होंठो पर स्माइल फैल गई और मन ही मन सोचने लगी कि शादी तो मैं कर ही चुकी हूं अपनी जान अपने लाडले बेटे शादाब से। लेकिन अपने आपको संभालते हुए हंसते हुए बोली:"
" मतलब तुम कुछ भी बोल दोगे क्या ? मेरी उम्र देखो और मेरा एक जवान बेटा भी है।।
सौंदर्या:" उम्र तो आपकी कुछ भी नहीं है। ध्यान से खुद को देखो तो पता चला जाएगा कि अभी 28 साल से ज्यादा नहीं लगती है। अजय की बात बिल्कुल ठीक हैं आपको शादी कर लेनी चाहिए।
शहनाज: मुझे नहीं करनी शादी। अब तुम दोनों चुप बैठ जाओ और अजय तुम आराम से गाड़ी चलाओ। कहीं शादी के चक्कर में लेट ना हो जाए।
अजय और सौंदर्या चुप हो गए और गाड़ी की रफ्तार अब बहुत तेज हो गई थी। सौंदर्या खामोश बैठी हुई थी अपना मुंह फुलाए।
शहनाज़ समझ गई कि दोनो को बुरा लग गया है इसलिए बोली:"
" आप दोनो मेरी बात का बुरा मत मानिए। अगर दिल दुखा हो तो मुझे माफ़ कर दो तुम दोनों।
सौंदर्या:" अच्छा जी वैसे तो तुम मुझे अपनी सहेली बोलती हो और अभी बूढ़ी अम्मा की तरह हुए डांट दिया। ये अच्छी बात नहीं है।
शहनाज़:" अच्छा बाबा सॉरी, अब आगे से कभी नहीं कहूंगी। अब तो स्माइल करो तुम दोनो।
सौंदर्या:" एक शर्त पर ?
शहनाज़:" वो क्या अब बोलो भी ?
सौंदर्या:" आप मुझे अपनी सहेली समझती हो या बहन?
शहनाज़:" तुम तो मेरी बहन जैसी हो सौंदर्या। सगी से भी ज्यादा और अजय तुम मेरे लिए बिल्कुल मेरे बेटे जैसे हो।
सौंदर्या:" आपने हमें इसलिए डांट दिया क्योंकि आप हमे छोटा समझती है। आज से हम दोनों बराबर और एक दूसरे को नाम से बुलाएंगे नहीं तो आप फिर से डांट सकती हो आगे चलकर।
शहनाज़ ने सौंदर्या का हाथ पकड़ लिया और बोली:" बस इतनी सी बात ठीक से आज से तुम मुझे मेरे नाम से बुला लेना बस अब खुश हो तुम।
सौंदर्या शहनाज़ के गले लग गई और उसका गाल चूम कर बोली:"
" खुश एकदम खुश। थैंक्स शहनाज़ तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो।
अजय की नाराजगी भी दूर हो गई थी बल्कि वो तो शहनाज़ से नाराज़ ही नहीं हुआ था। रात के करीब 10 बज गए थे और आकाश में चांद निकल आया था जिसकी हल्की रोशनी बाहर फैली हुई थी। अजय ना चाहते हुए भी शहनाज़ को बार बार प्यार भरी नजरो से देख रहा था और शहनाज़ की नजर बीच में एक दो बार उससे टकराई तो शहनाज़ को अजय की नजरे बदली बदली सी महसूस हुई।
सौंदर्या सो गई थी और थोड़ी देर बाद भी उनकी गाड़ी लिंगेश्वर मंदिर के सामने पहुंच गई। अजय ने गाड़ी को पीछे पार्क कर दिया और देखा कि अभी 10:40 हुए थे जबकि मंदिर में उनके घुसने का शुभ मुहूर्त 11:10 था तो उसने शहनाज़ को इशारा किया कि अभी सौंदर्या को सोने ही दो। अजय ने गाड़ी की खिड़की खोली और बाहर निकल गया और पीछे से शहनाज़ की तरफ से खिड़की को खोल दिया। शहनाज़ सावधानी पूर्वक बाहर निकलने लगी लेकिन निकलते हुए उसकी साड़ी नीचे से खिड़की के लॉक में फंस गई और नीचे से खुलती चली गई। शहनाज़ अब नीचे से मात्र पेंटी में अजय के सामने खड़ी हुई थी। साडी का एक पल्लू हवा में झूल रहा था जबकि दूसरा उपर उसके ब्लाउस में कंधे पर फंसा हुआ था।
शहनाज़ के मुंह से डर और शर्म के मारे आह निकल गई और वो साडी को जल्दी से अपने बदन पर लपेटने लगी लेकिन जल्दबाजी में उसकी मुसीबत और बढ़ गई और साडी का उसके ब्लाउस में फंसा हुआ पल्लू भी बाहर निकल गया।शहनाज अब सिर्फ ब्रा पेंटी में अजय के सामने खड़ी हुई थी और अजय उसको ब्रा पेंटी में देखकर पूरी तरह से बौखला गया। शहनाज उससे छुपाने के लिए कभी लाल रंग की ब्रा में कैद अपनी चूचियां साडी से ढकती तो उसकी जांघें नंगी हो जाती। जांघें ढकती को उसकी छाती नंगी हो जाती।
अजय बिना कुछ बोले उसकी तरफ देखे जा रहा था और शहनाज़ नजरे झुकाए अपने आपको साडी से लपेटने का असफल प्रयास कर रही थी क्योंकि उससे साडी बांधनी तो आती नहीं थी।
पार्किंग पीछे की साइड थी और उस तरफ कोई था भी नहीं बस ये ही एक अच्छी बात थी शहनाज़ के लिए लेकिन अजय का सामना करने में उसे दिक्कत हो रही थी। वो चाह कर भी सौंदर्या को नहीं उठा सकती थी तो अब उसकी ये साडी बंधेगी कैसे ये सबसे बड़ा सवाल था। अजय उसके करीब अा गया और बोला:"
" लाइए मुझे दीजिए मैं आपकी साडी बांध देता हूं। आपसे नहीं बंध पाएगी। लाइए मुझे एक पल्लू दीजिए।
अजय को अपने इतने करीब पाकर शहनाज़ की सांसे रुक सी गई थी। शहनाज़ को काटो तो खून नहीं। उसने सपने में भी नही सोचा था कि उसे ये दिन भी देखना पड़ेगा। मरती क्या ना करती। उसके पास कोई और दूसरा उपाय भी नहीं था इसलिए उसने कांपते हाथों से साडी का पल्लू पकड़ा और नजरे नीची किए हुए ही अजय को पकड़ा दिया। शहनाज़ की स्थिति खराब हो गई थी, उसकी सांसे तेज गति से चलती हुई धाड धाड कर रही थी। साडी का पल्लू हाथ में आते ही अजय ने उसे अपनी तरफ खींचा तो उल्टी सीधी लिपटी हुई साडी शहनाज़ के बदन से उतरती हुई चली गई।
शहनाज़ शर्म से दोहरी होती चली गई और उसने अपना चेहरा अपने दोनो हाथों में छुपा लिया। अजय ने पहली बार ध्यान से शहनाज़ के जिस्म को देखा और आंखे खुली की खुली रह गई। शहनाज़ के गोरे गोरे गोरे कंधे, लंबी सी पतली पतली गर्दन, ब्लाउस से बाहर निकलने को तड़प रही उसकी गोल गोल गुदाज चूचियां जो आधे से ज्यादा बाहर छलक रही थी। उसका दूध सा गोरा चिकना सपाट पेट, केले के तने के समान चिकनी मांसल जांघों को देखते ही अजय के लंड में तनाव आना शुरू हो गया। शहनाज़ से धीरे से अजय को देखा तो उसे अपने जिस्म को घूरते हुए देखकर उसने शहनाज़ को बहुत शर्म महसूस हो रही थी इसलिए कांपते हुए बोली'"
" अजय जल्दी करो ना तुम, मुझे बहुत अधिक शर्म अा रही है, कोई इधर अा गया तो मेरा क्या होगा।
अजय ने आगे बढ़कर साडी का एक पल्लू शहनाज़ की कमर पर रखा तो उसकी छुवन से शहनाज़ के जिस्म ने एक झटका खाया और अजय ने अपनी पूरी हथेली को उसकी गांड़ पर टिकाते हुए साडी को लपेटना शुरू कर दिया। अजय साडी को गोल गोल घुमाते हुए आगे की तरफ अाया। साडी शहनाज़ के जांघो और गांड़ पर लिपट गई थी। अजय धीरे से उसके करीब आया और बोला;"
" ऐसी साडी बांध देता हूं कि आगे से कभी नहीं निकलेगी।
इतना कहकर उसने एक हाथ से साडी का पल्लू लिया और दूसरे हाथ से शहनाज़ की पेंटी को पकड़ लिया। अजय के हाथ अपनी पेंटी पर लगते ही शहनाज़ मचल उठी और उसकी चूचियां उपर नीचे होने लगी। अजय ने जैसे ही अपनी उंगली को शहनाज़ की पेंटी में फंसाया तो के मुंह से धीमी सी आह निकल पड़ी और उसने अपने दांतो से अपने होंठो को हल्का सा चबा दिया। अजय उसकी इस अदा पर बेकाबू हो गया और उसने शहनाज़ की पेंटी को खींचा और उसके बीच में साडी का पल्लू घुसा दिया। शहनाज़ की आंखे अभी भी शर्म से बंद थी और अजय उसकी साड़ी का पल्लू अच्छे से फांसते हुए धीरे से उसके कान में बोला,:_
"लीजिए ऐसा फंस गया है कि अब नहीं निकल पाएगा। सौंदर्या दीदी आपको नाम से पुकार रही है। आपको बुरा ना लगे तो क्या मैं भी आपको शहनाज़ कहकर पुकार सकता हूं !!
इतना कहकर उसने साडी को हाथ में लिया और उसकी कमर से लपेटते हुए उसके सीने पर ले अाया और उसकी चूचियों पर हल्का सा दबाव दिया तो शहनाज़ का जिस्म झटके पर झटके खाने लगा और वो मचलते हुए बोली:"
" आह अजय बुला लो तुम भी मुझे शहनाज़ कहकर।
अजय ने साडी को उसकी छाती से लाते हुए उसके कंधे पर ब्लाउस में साडी का दूसरा पल्लू फंसा दिया और उसके कंधे को हल्का सा सहलाते हुए कहा:"
" थैंक्स शहनाज़। आप सच में बहुत ज्यादा खूबसूरत हो। अल्लाह ने आपको पूरी तसल्ली से बनाया है।
इतना कहकर अजय उससे अलग हो गया और शहनाज़ ने सुकून की सांस ली। उसने अपनी आंखे खोल दी और अपने आपको फिर से साडी में पाकर खुश हो गई और बोली:"
" शुक्रिया अजय। तुमने हमेशा मेरी मदद करी हैं। आज तुम नहीं होते तो मेरा पता नहीं क्या हाल होता यहां।
अजय ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला:" आप बेफिक्र रहिए शहनाज़। मैं हमेशा आपके साथ हूं। आपकी मदद करने के लिए एक अच्छे दोस्त की तरह।
शहनाज़ ने अपने हाथ का दबाव अजय के हाथ में बढ़ा दिया और बोली:"
" ठीक है अजय, फिर आज से हम दोनों दोस्त। तुम अकेले में मुझे सिर्फ शहनाज़ कहकर बुलाओगे।
अजय ने शहनाज़ की आंखो में देखा और शहनाज़ ने उसे स्माइल दी।
शहनाज: अच्छा अजय एक बात बताओ मुझे सच सच तुम?
अजय :" बोलिए आप ?
शहनाज:" ऐसी क्या जरुरत थी जो सौंदर्या के नाम की राशि की दूसरी परिपक्व अौरत की आवश्यकता पड़ी ?
अजय थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। उसकी समझ में नहीं अा रहा था कि वो शहनाज़ को कैसे ये बात बताए।
शहनाज़:" बोलो चुप क्यो हो तुम ? कोई तो वजह रही होगी ?
अजय:" देखो मेरी बात ध्यान से सुनना और गलत मत समझ लेना कुछ भी। आचार्य जी के अनुसार जैसे ही पूजा विधियां शुरू होगी तो मंगल अपनी तरफ से पूजा रोकने का हर संभव प्रयास करेगा और इसमें सौंदर्या की जान भी जा सकती हैं लेकिन अगर दूसरी औरत होगी तो मंगल का प्रभाव आधा हो जाएगा जिससे उस औरत पर खतरा भी आधा हो जाएगा। लेकिन आप बेकिफ्र रहिए मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगा। मेरी बहन को इस दोष से मुक्ति दिलाने में मदद कीजिए।
इतना कहकर अजय ने अपने दोनो हाथ जोड़ दिए। शहनाज़ थोड़ी देर चुप रहीं और अभी उसे समझ आया कि इतना ध्यान से पैर रखने के बाद भी उसका पैर क्यों फिसल गया था। शहनाज़ की चुप्पी अजय के चेहरे की निराशा बढ़ा रही थी। उसे डर लग रहा था कि कहीं शहनाज़ बीच में ही छोड़ कर ना चली जाए। ।।
शहनाज़ ने थोड़ी देर सोचा और फिर एक गहरी सांस लेते हुए बोली:" अजय वैसे तो ये बहुत मुश्किल भरा काम होगा और इसमें मेरी जान भी जा सकती हैं लेकिन फिर ये जान भी तो तुम्हारी ही दी हुई है। रेहाना और उसके गुंडों से तुमने ही तो मुझे बताया था नहीं तो मैं तो कब की खत्म हो गई होती। मैं वादा करती हूं अपनी आखिरी सांस तक सौंदर्या को मुक्ति दिलाने के लिए कुर्बान कर दूंगी।
अजय:" मैं भी वादा करता हूं कि आप पर आने वाली हर मुश्किल को पहले मेरा सामना करना होगा। मैं हर हाल में आपकी रक्षा करूंगा।
शहनाज़ और अजय दोनो ने राहत की सांस ली। शहनाज़ जानती थी कि अजय खुद मर जाएगा लेकिन उसे कुछ नहीं होने देगा। तभी वहां एक गाड़ी पार्क होने के लिए अाई और उसकी आवाज सुनकर सौंदर्या की आंख खुली तो वो गाड़ी से बाहर निकल गई और अजय, शाहनाज के पास पहुंच गई।
शहनाज उसे देखते ही खुश हुई और बोली:" आओ सौंदर्या हम दोनों तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे सौंदर्या।
अजय:" अच्छा हुआ आप खुद ही उठ गई नहीं तो दर्शन का टाइम हो रहा था इसलिए आपको उठाना पड़ता।
सौंदर्या:" मुझे थोड़ी देर के लिए आंख लगी जरूर थी लेकिन मेरी पूरी ज़िन्दगी दांव पर लगी हो तो कैसे सो सकती हूं मैं।
शहनाज़:" बस सौंदर्या एक हफ्ते की हो तो बात हैं फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। उदास मत हो तुम बिल्कुल भी अब।
अजय:" अच्छा चलिए अंदर चलते हैं। पूजा का वक़्त आने वाला है।
इतना कहकर अजय आगे बढ़ा और उसके साथ साथ दोनो आगे बढ़ गई। जैसे ही अंदर घुसने लगे तो गेट पर एक पुरोहित खड़े हुए थे और उन्होंने अजय को उसके माथे पर तिलक लगा दिया। अजय ने पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ तिलक लगवाया और अंदर घुस गया। उसके बाद सौंदर्या आगे बढ़ी और अपना माथा आगे कर दिया तो पुरोहित की ने उसके माथे पर भी तिलक लगा दिया।
अब शहनाज़ की बारी थी और अजय के साथ साथ सौंदर्या के मन में भी डर था कि कहीं शहनाज़ तिलक लगाने से मना ना कर दे क्योंकि ये पूजा में एक अपशकुन समझा जाएगा और ये बात अजय उसे बताना भूल गया था। शहनाज़ के चेहरे पर कोई भाव नहीं था और वो आगे बढ़ी उसने पुरोहित जी को देखकर अपना दुपट्टा सिर पर रखा और दोनो हाथ जोड़ दिए। उसकी आंखे बंद थी और चेहरे पर जमाने भर की शालीनता बिखरी हुई थी।
पुरोहित जी ने अपना हाथ आगे बढाया और शहनाज़ के माथे पर तिलक लगा दिया
पीछे सौंदर्या और शहनाज़ आपस में बाते कर रही थी।
सौंदर्या:" वैसे एक बात है दीदी आप साडी में इतनी ज्यादा खूबसूरत लगेगी इसका अंदाजा नहीं था मुझे।
शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:"
" अच्छा जी लेकिन सुंदर तो तुम भी हो सौंदर्या। मेरी प्यारी सहेली।
सौंदर्या:" हान जी लेकिन आपकी बात ही कुछ ओर हैं। सच कहूं तो ऐसा रूप सौंदर्य आज तक मैंने भी नहीं देखा। कौन कहेगा कि आपका एक जवान बेटा हैं। सच मानिए आपके लिए तो अभी लडको की लाइन लग जाएगी।
शहनाज़:" चुप कर पगली तुम, कुछ भी बोल देती हो। ऐसा कुछ भी नहीं हैं सौंदर्या।
अजय का दिल किया कि बोल दू एक लड़का तो मैं ही शहनाज़ हो तुम्हारे लिए पागल हो गया हूं लेकिन फिर संयम से काम लेते हुए बोला:"
" शहनाज़ दीदी सच में सौंदर्या दीदी सच ही तो कह रही है। आपके लिए तक लड़के दीवाने हो जाएंगे। वैसे अगर आप बुरा ना माने तो एक सलाह दू आपको ?
शहनाज़:" हान जी आप बोलो, क्या सलाह हैं?
अजय:" आपको एक बार फिर से शादी कर लेनी चाहिए।
अजय की बात सुनकर शहनाज़ के होंठो पर स्माइल फैल गई और मन ही मन सोचने लगी कि शादी तो मैं कर ही चुकी हूं अपनी जान अपने लाडले बेटे शादाब से। लेकिन अपने आपको संभालते हुए हंसते हुए बोली:"
" मतलब तुम कुछ भी बोल दोगे क्या ? मेरी उम्र देखो और मेरा एक जवान बेटा भी है।।
सौंदर्या:" उम्र तो आपकी कुछ भी नहीं है। ध्यान से खुद को देखो तो पता चला जाएगा कि अभी 28 साल से ज्यादा नहीं लगती है। अजय की बात बिल्कुल ठीक हैं आपको शादी कर लेनी चाहिए।
शहनाज: मुझे नहीं करनी शादी। अब तुम दोनों चुप बैठ जाओ और अजय तुम आराम से गाड़ी चलाओ। कहीं शादी के चक्कर में लेट ना हो जाए।
अजय और सौंदर्या चुप हो गए और गाड़ी की रफ्तार अब बहुत तेज हो गई थी। सौंदर्या खामोश बैठी हुई थी अपना मुंह फुलाए।
शहनाज़ समझ गई कि दोनो को बुरा लग गया है इसलिए बोली:"
" आप दोनो मेरी बात का बुरा मत मानिए। अगर दिल दुखा हो तो मुझे माफ़ कर दो तुम दोनों।
सौंदर्या:" अच्छा जी वैसे तो तुम मुझे अपनी सहेली बोलती हो और अभी बूढ़ी अम्मा की तरह हुए डांट दिया। ये अच्छी बात नहीं है।
शहनाज़:" अच्छा बाबा सॉरी, अब आगे से कभी नहीं कहूंगी। अब तो स्माइल करो तुम दोनो।
सौंदर्या:" एक शर्त पर ?
शहनाज़:" वो क्या अब बोलो भी ?
सौंदर्या:" आप मुझे अपनी सहेली समझती हो या बहन?
शहनाज़:" तुम तो मेरी बहन जैसी हो सौंदर्या। सगी से भी ज्यादा और अजय तुम मेरे लिए बिल्कुल मेरे बेटे जैसे हो।
सौंदर्या:" आपने हमें इसलिए डांट दिया क्योंकि आप हमे छोटा समझती है। आज से हम दोनों बराबर और एक दूसरे को नाम से बुलाएंगे नहीं तो आप फिर से डांट सकती हो आगे चलकर।
शहनाज़ ने सौंदर्या का हाथ पकड़ लिया और बोली:" बस इतनी सी बात ठीक से आज से तुम मुझे मेरे नाम से बुला लेना बस अब खुश हो तुम।
सौंदर्या शहनाज़ के गले लग गई और उसका गाल चूम कर बोली:"
" खुश एकदम खुश। थैंक्स शहनाज़ तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो।
अजय की नाराजगी भी दूर हो गई थी बल्कि वो तो शहनाज़ से नाराज़ ही नहीं हुआ था। रात के करीब 10 बज गए थे और आकाश में चांद निकल आया था जिसकी हल्की रोशनी बाहर फैली हुई थी। अजय ना चाहते हुए भी शहनाज़ को बार बार प्यार भरी नजरो से देख रहा था और शहनाज़ की नजर बीच में एक दो बार उससे टकराई तो शहनाज़ को अजय की नजरे बदली बदली सी महसूस हुई।
सौंदर्या सो गई थी और थोड़ी देर बाद भी उनकी गाड़ी लिंगेश्वर मंदिर के सामने पहुंच गई। अजय ने गाड़ी को पीछे पार्क कर दिया और देखा कि अभी 10:40 हुए थे जबकि मंदिर में उनके घुसने का शुभ मुहूर्त 11:10 था तो उसने शहनाज़ को इशारा किया कि अभी सौंदर्या को सोने ही दो। अजय ने गाड़ी की खिड़की खोली और बाहर निकल गया और पीछे से शहनाज़ की तरफ से खिड़की को खोल दिया। शहनाज़ सावधानी पूर्वक बाहर निकलने लगी लेकिन निकलते हुए उसकी साड़ी नीचे से खिड़की के लॉक में फंस गई और नीचे से खुलती चली गई। शहनाज़ अब नीचे से मात्र पेंटी में अजय के सामने खड़ी हुई थी। साडी का एक पल्लू हवा में झूल रहा था जबकि दूसरा उपर उसके ब्लाउस में कंधे पर फंसा हुआ था।
शहनाज़ के मुंह से डर और शर्म के मारे आह निकल गई और वो साडी को जल्दी से अपने बदन पर लपेटने लगी लेकिन जल्दबाजी में उसकी मुसीबत और बढ़ गई और साडी का उसके ब्लाउस में फंसा हुआ पल्लू भी बाहर निकल गया।शहनाज अब सिर्फ ब्रा पेंटी में अजय के सामने खड़ी हुई थी और अजय उसको ब्रा पेंटी में देखकर पूरी तरह से बौखला गया। शहनाज उससे छुपाने के लिए कभी लाल रंग की ब्रा में कैद अपनी चूचियां साडी से ढकती तो उसकी जांघें नंगी हो जाती। जांघें ढकती को उसकी छाती नंगी हो जाती।
अजय बिना कुछ बोले उसकी तरफ देखे जा रहा था और शहनाज़ नजरे झुकाए अपने आपको साडी से लपेटने का असफल प्रयास कर रही थी क्योंकि उससे साडी बांधनी तो आती नहीं थी।
पार्किंग पीछे की साइड थी और उस तरफ कोई था भी नहीं बस ये ही एक अच्छी बात थी शहनाज़ के लिए लेकिन अजय का सामना करने में उसे दिक्कत हो रही थी। वो चाह कर भी सौंदर्या को नहीं उठा सकती थी तो अब उसकी ये साडी बंधेगी कैसे ये सबसे बड़ा सवाल था। अजय उसके करीब अा गया और बोला:"
" लाइए मुझे दीजिए मैं आपकी साडी बांध देता हूं। आपसे नहीं बंध पाएगी। लाइए मुझे एक पल्लू दीजिए।
अजय को अपने इतने करीब पाकर शहनाज़ की सांसे रुक सी गई थी। शहनाज़ को काटो तो खून नहीं। उसने सपने में भी नही सोचा था कि उसे ये दिन भी देखना पड़ेगा। मरती क्या ना करती। उसके पास कोई और दूसरा उपाय भी नहीं था इसलिए उसने कांपते हाथों से साडी का पल्लू पकड़ा और नजरे नीची किए हुए ही अजय को पकड़ा दिया। शहनाज़ की स्थिति खराब हो गई थी, उसकी सांसे तेज गति से चलती हुई धाड धाड कर रही थी। साडी का पल्लू हाथ में आते ही अजय ने उसे अपनी तरफ खींचा तो उल्टी सीधी लिपटी हुई साडी शहनाज़ के बदन से उतरती हुई चली गई।
शहनाज़ शर्म से दोहरी होती चली गई और उसने अपना चेहरा अपने दोनो हाथों में छुपा लिया। अजय ने पहली बार ध्यान से शहनाज़ के जिस्म को देखा और आंखे खुली की खुली रह गई। शहनाज़ के गोरे गोरे गोरे कंधे, लंबी सी पतली पतली गर्दन, ब्लाउस से बाहर निकलने को तड़प रही उसकी गोल गोल गुदाज चूचियां जो आधे से ज्यादा बाहर छलक रही थी। उसका दूध सा गोरा चिकना सपाट पेट, केले के तने के समान चिकनी मांसल जांघों को देखते ही अजय के लंड में तनाव आना शुरू हो गया। शहनाज़ से धीरे से अजय को देखा तो उसे अपने जिस्म को घूरते हुए देखकर उसने शहनाज़ को बहुत शर्म महसूस हो रही थी इसलिए कांपते हुए बोली'"
" अजय जल्दी करो ना तुम, मुझे बहुत अधिक शर्म अा रही है, कोई इधर अा गया तो मेरा क्या होगा।
अजय ने आगे बढ़कर साडी का एक पल्लू शहनाज़ की कमर पर रखा तो उसकी छुवन से शहनाज़ के जिस्म ने एक झटका खाया और अजय ने अपनी पूरी हथेली को उसकी गांड़ पर टिकाते हुए साडी को लपेटना शुरू कर दिया। अजय साडी को गोल गोल घुमाते हुए आगे की तरफ अाया। साडी शहनाज़ के जांघो और गांड़ पर लिपट गई थी। अजय धीरे से उसके करीब आया और बोला;"
" ऐसी साडी बांध देता हूं कि आगे से कभी नहीं निकलेगी।
इतना कहकर उसने एक हाथ से साडी का पल्लू लिया और दूसरे हाथ से शहनाज़ की पेंटी को पकड़ लिया। अजय के हाथ अपनी पेंटी पर लगते ही शहनाज़ मचल उठी और उसकी चूचियां उपर नीचे होने लगी। अजय ने जैसे ही अपनी उंगली को शहनाज़ की पेंटी में फंसाया तो के मुंह से धीमी सी आह निकल पड़ी और उसने अपने दांतो से अपने होंठो को हल्का सा चबा दिया। अजय उसकी इस अदा पर बेकाबू हो गया और उसने शहनाज़ की पेंटी को खींचा और उसके बीच में साडी का पल्लू घुसा दिया। शहनाज़ की आंखे अभी भी शर्म से बंद थी और अजय उसकी साड़ी का पल्लू अच्छे से फांसते हुए धीरे से उसके कान में बोला,:_
"लीजिए ऐसा फंस गया है कि अब नहीं निकल पाएगा। सौंदर्या दीदी आपको नाम से पुकार रही है। आपको बुरा ना लगे तो क्या मैं भी आपको शहनाज़ कहकर पुकार सकता हूं !!
इतना कहकर उसने साडी को हाथ में लिया और उसकी कमर से लपेटते हुए उसके सीने पर ले अाया और उसकी चूचियों पर हल्का सा दबाव दिया तो शहनाज़ का जिस्म झटके पर झटके खाने लगा और वो मचलते हुए बोली:"
" आह अजय बुला लो तुम भी मुझे शहनाज़ कहकर।
अजय ने साडी को उसकी छाती से लाते हुए उसके कंधे पर ब्लाउस में साडी का दूसरा पल्लू फंसा दिया और उसके कंधे को हल्का सा सहलाते हुए कहा:"
" थैंक्स शहनाज़। आप सच में बहुत ज्यादा खूबसूरत हो। अल्लाह ने आपको पूरी तसल्ली से बनाया है।
इतना कहकर अजय उससे अलग हो गया और शहनाज़ ने सुकून की सांस ली। उसने अपनी आंखे खोल दी और अपने आपको फिर से साडी में पाकर खुश हो गई और बोली:"
" शुक्रिया अजय। तुमने हमेशा मेरी मदद करी हैं। आज तुम नहीं होते तो मेरा पता नहीं क्या हाल होता यहां।
अजय ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला:" आप बेफिक्र रहिए शहनाज़। मैं हमेशा आपके साथ हूं। आपकी मदद करने के लिए एक अच्छे दोस्त की तरह।
शहनाज़ ने अपने हाथ का दबाव अजय के हाथ में बढ़ा दिया और बोली:"
" ठीक है अजय, फिर आज से हम दोनों दोस्त। तुम अकेले में मुझे सिर्फ शहनाज़ कहकर बुलाओगे।
अजय ने शहनाज़ की आंखो में देखा और शहनाज़ ने उसे स्माइल दी।
शहनाज: अच्छा अजय एक बात बताओ मुझे सच सच तुम?
अजय :" बोलिए आप ?
शहनाज:" ऐसी क्या जरुरत थी जो सौंदर्या के नाम की राशि की दूसरी परिपक्व अौरत की आवश्यकता पड़ी ?
अजय थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। उसकी समझ में नहीं अा रहा था कि वो शहनाज़ को कैसे ये बात बताए।
शहनाज़:" बोलो चुप क्यो हो तुम ? कोई तो वजह रही होगी ?
अजय:" देखो मेरी बात ध्यान से सुनना और गलत मत समझ लेना कुछ भी। आचार्य जी के अनुसार जैसे ही पूजा विधियां शुरू होगी तो मंगल अपनी तरफ से पूजा रोकने का हर संभव प्रयास करेगा और इसमें सौंदर्या की जान भी जा सकती हैं लेकिन अगर दूसरी औरत होगी तो मंगल का प्रभाव आधा हो जाएगा जिससे उस औरत पर खतरा भी आधा हो जाएगा। लेकिन आप बेकिफ्र रहिए मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगा। मेरी बहन को इस दोष से मुक्ति दिलाने में मदद कीजिए।
इतना कहकर अजय ने अपने दोनो हाथ जोड़ दिए। शहनाज़ थोड़ी देर चुप रहीं और अभी उसे समझ आया कि इतना ध्यान से पैर रखने के बाद भी उसका पैर क्यों फिसल गया था। शहनाज़ की चुप्पी अजय के चेहरे की निराशा बढ़ा रही थी। उसे डर लग रहा था कि कहीं शहनाज़ बीच में ही छोड़ कर ना चली जाए। ।।
शहनाज़ ने थोड़ी देर सोचा और फिर एक गहरी सांस लेते हुए बोली:" अजय वैसे तो ये बहुत मुश्किल भरा काम होगा और इसमें मेरी जान भी जा सकती हैं लेकिन फिर ये जान भी तो तुम्हारी ही दी हुई है। रेहाना और उसके गुंडों से तुमने ही तो मुझे बताया था नहीं तो मैं तो कब की खत्म हो गई होती। मैं वादा करती हूं अपनी आखिरी सांस तक सौंदर्या को मुक्ति दिलाने के लिए कुर्बान कर दूंगी।
अजय:" मैं भी वादा करता हूं कि आप पर आने वाली हर मुश्किल को पहले मेरा सामना करना होगा। मैं हर हाल में आपकी रक्षा करूंगा।
शहनाज़ और अजय दोनो ने राहत की सांस ली। शहनाज़ जानती थी कि अजय खुद मर जाएगा लेकिन उसे कुछ नहीं होने देगा। तभी वहां एक गाड़ी पार्क होने के लिए अाई और उसकी आवाज सुनकर सौंदर्या की आंख खुली तो वो गाड़ी से बाहर निकल गई और अजय, शाहनाज के पास पहुंच गई।
शहनाज उसे देखते ही खुश हुई और बोली:" आओ सौंदर्या हम दोनों तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे सौंदर्या।
अजय:" अच्छा हुआ आप खुद ही उठ गई नहीं तो दर्शन का टाइम हो रहा था इसलिए आपको उठाना पड़ता।
सौंदर्या:" मुझे थोड़ी देर के लिए आंख लगी जरूर थी लेकिन मेरी पूरी ज़िन्दगी दांव पर लगी हो तो कैसे सो सकती हूं मैं।
शहनाज़:" बस सौंदर्या एक हफ्ते की हो तो बात हैं फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। उदास मत हो तुम बिल्कुल भी अब।
अजय:" अच्छा चलिए अंदर चलते हैं। पूजा का वक़्त आने वाला है।
इतना कहकर अजय आगे बढ़ा और उसके साथ साथ दोनो आगे बढ़ गई। जैसे ही अंदर घुसने लगे तो गेट पर एक पुरोहित खड़े हुए थे और उन्होंने अजय को उसके माथे पर तिलक लगा दिया। अजय ने पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ तिलक लगवाया और अंदर घुस गया। उसके बाद सौंदर्या आगे बढ़ी और अपना माथा आगे कर दिया तो पुरोहित की ने उसके माथे पर भी तिलक लगा दिया।
अब शहनाज़ की बारी थी और अजय के साथ साथ सौंदर्या के मन में भी डर था कि कहीं शहनाज़ तिलक लगाने से मना ना कर दे क्योंकि ये पूजा में एक अपशकुन समझा जाएगा और ये बात अजय उसे बताना भूल गया था। शहनाज़ के चेहरे पर कोई भाव नहीं था और वो आगे बढ़ी उसने पुरोहित जी को देखकर अपना दुपट्टा सिर पर रखा और दोनो हाथ जोड़ दिए। उसकी आंखे बंद थी और चेहरे पर जमाने भर की शालीनता बिखरी हुई थी।
पुरोहित जी ने अपना हाथ आगे बढाया और शहनाज़ के माथे पर तिलक लगा दिया