Incest एक अधूरी प्यास

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दोनों ने एक बार फिर से संतुष्टि भऱा एहसास अपने बदन में महसूस कर चुके थे। निर्मला अपने बेटे के लंड के ऊपर सवार होकर भल भला कर झड़ने के बाद उसके ऊपर से उतर कर उसे से नजरें मिलाए बिना ही अपने कपड़े समेटे और उसे बिना पहने ही उसके कमरे से बाहर निकल गई लेकिन जिस तरह से निर्मला अपने कपड़ों को समेट कर ले कर जा रही थी बिस्तर पर लेटे लेटे शुभम अपनी मां को जाते हुए देख रहा था,,, उस की प्यासी नजर निर्मला की मटकती हुई गोल गांड पर ही टिकी हुई थी जो कि इस समय बेहद मादकता से भरा हुआ प्याला लग रहीे थी। निर्मला अच्छी तरह से जानती थी कि शुभम और उसके सिवा इस समय घर पर कोई भी नहीं था इसलिए वह बेझिझक अपने कपड़े पहने बिना ही वह कपड़ों को समेट कर कमरे से बाहर निकल गई और बिल्कुल नंगी ही चहल कदमी करते हुए बाथरुम के अंदर घुस गई।
घर का वातावरण पूरी तरह से बदल चुका था मां बेटे का रिश्ता अब वासना के समंदर में गोते लगाता हुआ ना जाने किस साहिल से टकरा रहा था या तो ना निर्मला ही जानती थी और ना ही शुभम,,,,, लेकिन दोनों इस नए रिश्ते से बेहद खुश हैं क्योंकि उनके चेहरे से साफ मालूम पड़ रहा था।
निर्मला की बुर से निकला मदन रस और शुभम के लंड से निकला पानी का फव्वारा दोनों मिलकर शुभम के लंड को पूरी तरह से भी हो चुके थे। शुभम अपने लंड की तरफ देख कर मन ही मन मुस्कुरा रहा था उसे अभी भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि जिस बंदे को अपनी मुट्ठी में भरकर आगे पीछे हिलाते हुए अपनी ही मां को चोदने की कल्पना करते हुए पानी निकालता था आज वही लंड हकीकत में उसकी मां की बुर के अंदर सैर सपाटा कर के बाहर आ चुका था। अपनी मां की मटकती हुई गांड को याद करके शुभम अपने लंड पर लगे मदन रस को चादर से साफ करने लगा।
दोनों के बीच अब कोई भी रिश्ते और मर्यादा की दीवार नहीं बची थी सारे रिश्ते नाते संस्कारों और मर्यादा की दीवार को दोनों एक साथ लांघ चुके थे। निर्मला का बदन संतुष्टि और प्रसन्नता के कारण और भी ज्यादा निखर चुका था। आज दोनों की छुट्टी थी क्योंकि रात भर की थकान के कारण सुबह स्कूल जाना संभव नहीं था इसलिए अपने बेटे का प्यार पाकर निर्मला बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होकर अपने बेटे के लिए खाना बनाई। थोड़ी देर बाद शुभम भी नहा धोकर तैयार होकर नीचे आ गया लेकिन वह अपनी मां से नजर नहीं मिला पा रहा था। और मिलाता भी कैसे क्योंकि कुछ ऐसा दोनों के बीच हो गया था कि दोनों एक दूसरे से नजर मिलाने में कतरा रहे थे लेकिन दोनों बार चुदाई का सुख बराबर हासिल करने के लिए एक दूसरे के बदन में समा जाने तक की ताकत लगा दिए थे। दोनों टेबल पर बैठ कर खाना खा रहे थे और एक दूसरे को कनखियों में देख रहे थे अपनी मां के बदन पर शुभम की नजर रह-रहकर घूम जा रहे थे जिसकी वजह से उसके लंड का तनाव फिर से बढ़ने लगा था। निर्मला की बुर एक बार फिर से फूल पीचक रही थी। इसमें दोनों का कोई दोष नहीं था मौसम का सावन तो था नहीं कि साल में बस एक ही बार आए,,,,,,, यह तो आकर्षण और रिश्तो के बीच बासना का तूफान था जोंकि बार-बार आना था।
दो दो बार अपने बेटे के लंड से चुदने के बाद भी उसकी बुर की खुजली नहीं मिली थी और मेीटती भी कैसे उसकी बुर तो बरसों से प्यासी थी। जिसकी खुजली एक दो बार की चुदाई से नहीं जाने वाली थी। निर्मला खाना खाते हुए अपने बेटे के चेहरे की तरफ देखे जा रही थी जिसे देखकर बिल्कुल भी नहीं लगता था कि उसने ही दो बार में उसकी बुर के आकार को बदल कर रख दिया है। निर्मला से तो रहा नहीं जा रहा था वह तो चाहती थी कि खाना खाते समय भी शुभम उसकी बूर में अपना लंड डालकर उसे चोदे,,,,, लेकिन शुभम तो इतना शर्मा रहा था कि उसे से ठीक से नजरें तक नहीं मिला पा रहा था। निर्मला उससे कुछ कह पाती इससे पहले ही वह जैसे तैसे करके अपना खाना खत्म किया और बिना बोले ही घर से बाहर निकल गया निर्मला प्यासी नजरों से उसे जाता हुआ देखती रह गई लेकिन उसे रोकने के लिए आवाज नहीं दे पाई।
निर्मला ईस बात से बेहद खुश थी की,, अब उसे बिस्तर पर प्यासी रहकर अपनी एड़िया नहीं रगड़नी पड़ेगी,,,,, उसकी प्यास बुझाने वाला उसके घर में ही मौजूद था अब अशोक पर पूरी तरह से उसे आश्रित नहीं रहना पड़ेगा। जो कि खुद उस ने आज तक उस की प्यास पूरी तरह से नहीं बुझा पाया था। वह मन ही मन सोच रही थी कि घर में अशोक शुभम और उसके सिवा कोई भी नहीं था और यही तो उसके लिए पूरी तरह से लाभदायक था क्योंकि अशोक अधिकतर घर से बाहर ही रहता था और ऐसे मैं घर पर सिर्फ शुभम और निर्मला ही रह जाते थे। निर्मला ऐसे में जब चाहे तब अपने बेटे के लंड से अपनी प्यास बुझा सकती थी ना किसी को कभी भी कोई शक होगा और ना ही किसी को पता चलेगा,,,,
और तो और अशोक महीने में एकाद दो बार बिजनेस के सिलसिले में शहर से बाहर ही रहता था और ऐसे मैं रात रंगीन करने का उसके पास पूरा मौका था। यही सब सोचकर निर्मला मन ही मन प्रसन्न हुए जा रहेी थी। वह टेबल पर से झूठे बर्तन को समेटकर किचन में ले गई और वहां पर उसे साफ करने लगी। उसकी बुर की कुलबुलाहट बढ़ती जा रही थे वह फिर से अपने बेटे से चुद़ना चाहतीे थी। उसे ऐसा लग रहा था कि अभी थोड़ी देर बाद उसका बेटा घर पर आएगा तब वह एक बार फिर से अपने बेटे से चुदवाएगी,,,, इसलिए वो जल्दी जल्दी घर का सारा काम करके अपने कमरे में बैठकर अपने बेटे का इंतजार करने लगी। घड़ी की सूई अपनी धुरी पर घूमती रही समय रेत की तरह निर्मला के हाथ से फिसलता रहा,, इंतजार कर कर के निर्मला की तड़प बढ़ती जा रही थी। वह पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी,,,, लेकिन शुभम घर पर वापस नहीं आया वह बाहर ही अपने दोस्तों के साथ खेलता रहा क्योंकि घर आने में उसे शर्म महसूस हो रहे थे भले ही वह ताबड़तोड़ अपने लंड का प्रहार करते हुए अपनी मां की जबरदस्त चुदाई कर चुका था । लेकिन वहां उस समय का बासना का तूफान था जो कि रोकने से भी रुक नहीं पाता,,,,, लेकिन इस समय खेल के मैदान में उसका दिमाग शांत हो चुका था इसलिए बीती बातों को याद करके वह मन ही मन शर्म सा महसूस कर रहा था कि कैसे वह अपनी मां से आंख मिलाएगा केसेे वह उससे बातें करेगा,, उसकी मां उसके बारे में क्या सोचेगी कि कैसे वह बिना शर्म कि उसकी बुर में अपना लंड पेल कर बिना रुके धड़ाधड़ उसकी चुदाई किए जा रहा था। वह सोचेगी की एक बार भी उसने उसे रोकने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं किया। लेकिन यदि उसके दिमाग में ख्याल आ रहा था कि जब उसकी मां ने ही खुद को नहीं रोक पाए तो वह क्यों उसे रोके,,, उसकी मां भी यही चाहती हो तो वह क्या कर सकता है। अगर इसमें कुछ गलत होता तो उसकी मा ही उसे खुद रोक दी होती। उसकी मां भी यही चाहती थी कि वहं उसे जमकर चोदे,,,,, तभी तो एक बार शायद गलती हो सकती है क्योंकि कार में एकांत का वातावरण भी कुछ हद तक खुद के पक्ष में ही था इसलिए कार के अंदर जो उसकी मां ने उसके साथ चुदवा कर सारी मान मर्यादा भूल गई यह हो सकता है कि माहौल के हिसाब से ना चाहते हुए भी गलत हो गया हो,,, लेकिन जो कमरे में हुआ,,,, वह गलती से नहीं हो सकता क्योंकि वह अपने कमरे में सो रहा था उसकी मां भी पूरे कपड़े पहनी हुई थी लेकिन जब बिस्तर पर उसके ऊपर चढ़ी थी तो उसके बदन पर कपड़े का एक रेशा तक नहीं था। वह पूरी तरह से नंगी थी और खुद ही उसके लंड पर बैठ कर,,, पूरे लंड को अपनी बुर में ले कर उठ बैठकर लंड को अंदर बाहर कर रही थी यह गलती से नहीं बल्कि जानबूझ कर कर रही थी इसका मतलब यही है कि वह उससे चुदना ही चाहती थी। पूरी तरह से जांच परख लेने के बाद शुभम इसी निष्कर्ष पर आया कि जो भी हो रहा है वह एक तरह से ठीक ही हो रहा है। यह सब सोचकर वह देर से घर पर लौटा शाम ढल चुकी थी। निर्मला रसोई घर में रसोई तैयार कर रही थी तभी दरवाजे पर बेल बजी,,,, घंटी की आवाज सुनते ही वह समझ गई कि शुभम खेल कर आ चुका है क्योंकि अशोक ईस समय आता नहीं था वह देर रात को ही आता था। निर्मला जल्दी से जानबूझकर अपने ब्लाउज की दो बटन को खोल दी और साड़ी को पूरी तरह से अस्तव्यस्त कर दी ताकि उसके बदन का ज्यादातर भाग शुभम को दिखाई दे। साड़ी को थोड़ा सा ऊपर करके कमर में खोज दी जिसकी वजह से उसकी गोरी चिकनी टांग नजर आने लगी। सुबह जल्दी से दरवाजे पर गई तब तक शुभम तीन चार बार बटन दबा चुका था। दरवाजा खोलते ही वह बोली।

क्या बेटा मैं खोल तो रही थी तुझे बहुत जल्दी पड़ी है। ठीक से खोल तो लेनें दिया कर,,,,,, ( निर्मला दो अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग कर रहे थे लेकिन शुभम समझ नहीं पा रहा था पर दरवाजा खुलते ही जो नजारा उसकी आंखों के सामने नजर आया उस नजारे को देखकर उसके लंड में हरकत होने लगी। वह सूख को निकलता हुआ अपनी आंखों को निर्मला की चूचियों पर गड़ाए हुए बोला।

सॉरी मम्मी मुझे लगा कि आप बिजी होंगी तो ध्यान नहीं देंगेी इसलिए मैं दो चार बार बटन दबा दिया,,,,,


आजकल तुझे दबाने में कुछ ज्यादा ही मजा मिल रहा है। ( निर्मला मुस्कुराते हुए बोली लेकिन अपनी मां की यह बात सुनकर शुभम झेंप सा गया,,,,, और झेंपते हुए बोला,,,,)

क्या मम्मी,,,,,,
 
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कुछ नहीं तू नहीं समझेगा,,,,,,, अच्छा अंदर तो आ कि ऐसे ही भूखे भेड़िए की तरह मुझे घूरता रहेगा,,,,,, ( वह सुभम की नज़रों का पीछा करते हुए बोली क्योंकि वह अभी भी उसकी अधखुलें ब्लाऊज,, में से झांक रही उसकी चूचियों को ही देख रहा था अपनी मां की बात सुनते ही वह सकपका गया।। और शरमाकर अपनी नजरें नीची कर के अंदर आ गया। शुभम मन-ही-मन अपनी मां की खुले हुए ब्लाउज के दोनों बटन के बारे में सोच रहा था आखिरकार वह क्यों खुले हुए होते हैं या ऐसा तो नहीं कि उन्हें मम्मी ही खोल देती है। लेकिन पहले तो वह इस तरह से नहीं खोलती थी,,,, अब क्यों उसके ब्लाउज के दोनों बटन खुले हुए होते हैं कहीं वह जानबूझकर अपनी चूचियों को दिखाती तो नहीं है यही तब सवाल उसके मन में उठ रहे थे।


और अपने मन में उठ रहे सवालों का जवाब भी उसके पास ही मौजूद था। पिछले कुछ दिनों कि अपनी मां के द्वारा हुई गंदी हरकत और अपने दोस्तों की बातों से वह तो इतना समझ ही गया था कि औरत अपने फायदे के लिए ही अपने अंगों को दिखाती है जो कि उसकी मां भी यही कर रही थी और लगभग दो बार उसका फायदा भी उठा चुकी थी जिसमें उसका याद ही नहीं बल्की खुद शुभम का भी फायदा था। यह सोचते ही उसके मन में और भी ज्यादा जिज्ञासा जगने लगी और उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वह मन में यह सोचने लगा कि जब उसकी मां आगे से ही सब कुछ कर चुकी है और आगे भी करने के लिए पूरी तरह से तैयार है तो वह क्यों अपने कदम पीछे हटाए आखिरकार वह भी तो जवान हो रहा बलिष्ठ काठी का लड़का था उसके भी मन में ढेर सारे अरमान उठ़ रहे थे। यह सब सोचकर उसके लंड का तनाव और भी ज्यादा बढ़ने लगा था वह मन ही मन सोचने लगा था कि उसकी मां ने उसे शरीर सुख का मजा चुदाई का कैसा अद्भुत एहसास बदल में होता है यह सब सिखाई और अपने मदमस्त बदन के साथ पूरी तरह से मस्ती करने का खीमज माता बदन के साथ खेलने का पूरी तरह से मौका उसे दी,,, वह मन ही मन अपनी मम्मी को शुक्रिया अदा कर रहा था कि जिस अंग के बारे में वह कल्पना ही करता रहता था उस अंग को उसकी मां ने पूरी तरह से खोल कर ऊस ं अंग के आकार और भूगोल के साथ उसे रुबरु कराई।
यह सब सोचकर उसका मन उत्तेजना से भरने लगा । वह मन हीं मन नक्की कर लिया कि अगर ऊसकी मां आगे भी इस तरह का मौका देती रहेगी तो वह इस मौके का फायदा उठाने से बिल्कुल भी नहीं चूकेगा। वह यह सब सोच कर मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था और निर्मला मुस्कुराते हुए अपनी गांड को कुछ ज्यादा ही ऊभारकर मटकते हुए रसोई घर में चली गई निर्मला का यह अंदाज शुभम को पूरी तरह से उसका दीवाना बना गया। अपनी मां के अंदाज़ और उसकी हरकत को देखते हुए शुभम पूरी तरह से समझ गया कि जो कुछ भी हो रहा है वह अनजाने में नहीं बल्कि जान बूझकर ही हो रहा है। यह ख्याल मन में आते हीै उसके लंड ने ठुनकी मारना शुरू कर दिया। घर में ही चुदाई का सामान पूरी तरह से तैयार होता देख कर उसकी खुशी का कोई ठिकाना ना रहा। वह अपनी मां के अंदाज को देखने के लिए पानी पीने के बहाने रसोई घर में चला गया और जाते ही फ्रिज खोल कर,,, पानी की बोतल निकाला और पानी पीने लगा निर्मला आटा गूथ रही थी और आटा गूंथते हुए अपनी गोलगोल गांड को अजीब सी थिरकन देते हुए,,, इधर-उधर मटकाने लगी।
अपनी मां की मटकती हुई गांड को देखकर तोे शुभम की सांस ही अटक गई। उत्तेजना के मारे उसका गला सूखने लगा पेंट में तंबू पूरी तरह से बन चुका था जो कि उसकी मां की नजर में साफ साफ आ सकता था लेकिन वह उसे छुपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं किया। क्योंकि वह भी जान चुका था कि उसकी मां जिस तरह की हरकत कर रही है उसे फिर से लंड की जरूरत है। शुभम पानी पीते हुए ऊपर से नीचे तक अपनी मां के खूबसूरत बदन को देखकर उत्तेजित हुआ जा रहा था निर्मला भी आंटा गुंथते हुए अपने बदन का मदमस्त हिस्सा इस तरह से बाहर को निकली हुई थी कि ऐसा लग रहा था वह अपने खूबसूरत बदन का वह हिस्सा शुभम को परोस रही हो,,,,, जिसे देखकर शुभम के मुंह में पानी आ जा रहा था। शुभम पानी पीकर बोतल को फिर से फ्रीज में रख दिया लेकिन अपनी मां से कुछ भी बोल पाने की हिम्मत उसमे नहीं हो रही थी। निर्मला की बुर पानी-पानी हो जा रही थी उसे फिर से अपने बेटे के लंड की जरूरत थी दो बार चुदने के बाद भी उसकी प्यास कम होने की वजाय और भी ज्यादा बढ़ चुकी थी। वह पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी। उसके जी में तो आ रहा था वह खुद शुभम को बोल दे कि वह तुझसे फिर से चुदना चाहती है तू चोद जमकर चोद,,,, लेकिन इतना कहने की हिम्मत शायद उसमें भी अभी नहीं थी। दो दो बार संभोग सुख भोग चुके मां बेटे अभी भी आगे बढ़ने से शर्मा रहे थे। निर्मला इस बात से तो पूरी तरह से आश्वस्त थी की अब वह जब चाहे तब अपने बेटे से चुद सकती है। लेकिन उसके लिए अपनी शर्म को पूरी तरह से त्याग देना पड़ेगा जो कि अभी भी उसके कदम को कुछ हद तक रोके हुए थी। निर्मला तिरछी नजरों से शुभम की तरफ देख रही थी जो कि अभी भी फ्रिज के पास ही खड़ा था और उसके तरफ ही चोर नजरों से देख ले रहा था तभी निर्मला की नजर उसके पैंट में बने तंबू पर पड़ी तो उसके मन का मोर अपने पंख फैला कर नाचने लगा। उसे यकीन हो चला कि अगर वह चाहे तो किचन में ही अपने बेटे से संभोग सुख का फिर से आनंद ले सकती है। लेकिन केसे यह उसे समझ में नहीं आ रहा था उसे डर था कि कहीं शुभम किचन से बाहर ना चला जाए इसलिए उसे रोकना बहुत जरुरी था। और सच में शुभम भी यही सोच रहा था कि ज्यादा देर तक इस तरह से रूकना ठीक नहीं है इसलिए वह किचन से बाहर निकलने को ही था की झट से निर्मला बोली।

बेटा कहां जा रहे हो आज मेरी मदद नहीं करोगे क्या?

हां हां करूंगा ना मम्मी बताओ ना क्या करना है। ( शुभम झट से जवाब देते हुए बोला वह तो खुद किचन में रुककर अपनी मां की खूबसूरत बदन के दर्शन करना चाहता था।)

बेटा जरा सब्जी तो काट दे मेरे हाथों में आटा लगा हुआ है।
(वह अपने हाथ को शुभम की तरफ दिखाते हुए बोली)

ठीक है मम्मी लाओं में सब्जी काट देता हूं। पर सब्जी कौन सी काटनी है।
 
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दूधी मोटी मोटी और एकदम लंबी,,,, एकदम तगड़ी देख ले फ्रीज में रखी होगी,,,,,( इतना कहकर निर्मला मुस्कुराने लगी शुभम को अब अपनी मां का या मुस्कुराना और उसके बातों का मतलब थोड़ा थोड़ा समझ में आने लगा था। वह बिना कुछ बोले फ्रीज में से दुधी निकाल कर किचन पर रख दिया,,, उसका लंड लगातार पेट में तंबू बनाए हुए था जिस पर बार-बार निर्मला की नजर पड़ रही थी।और उसे देखकर निर्मला की बुर फूल पिेचक रही थी। उसका बस चलता तो वह खुद ही अपने बेटे के पेंट को निकालकर उसके लंड को अपनी बुर में डलवा कर चुद गई होती लेकिन अभी मजबूर थी,,, अपने बेटी के साथ चुदवाने के बाद भी अभी भी वह शर्मो हया के पर्दे में कैद थी।
शुभम दूधी को चाकू से काटना शुरु कर दिया जिसे देखकर निर्मला मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,,,

दुधी कैसी है शुभम?

कैसी है मतलब मम्मी मे कुछ समझा नहीं,,,,

अरे बुद्धू कैसी है मतलब उसका साइज़ की मोटाई लंबाई कैसी है तभी तो बनने में स्वादिष्ट आएगी,,,,,
( शुभम आप अपनी मम्मी का मतलब समझने लगा था लेकिन फिर भी अनजान बनते हुए बोला।)

मुझे क्या मालूम मम्मी मैं खाना थोड़े ही पकाता हूं।

हां सही बात है तुम लडको लोगों को कहां पता कि दूधी का मजा औरतों को कैसा लगता है। मर्दों का तो ं काम ही होता है बस दूध खरीद कर ले जाओ और उसे घर पर रख दो तुम लोग यह भी नहीं देखते कि दूधी लंबी है कि छोटी है कि मोटी है कितना तगड़ा है यह सब से तुम लोगों को कोई भी मतलब नहीं होता बस अपना फर्ज निभा देते हो और अपना मजा लेने के औरतों को थमा देती हो कभी यह सब भी तो सोचा करो कि औरतों को क्या पसंद है दुधी का साइज कितना होना चाहिए,,,, दूधी कितनी लंबी होनी चाहिए,,,, कितनी मोटी होती है तब मजा आता है,,,,,,,,,,,,,,,,, उसी पकाने में। ( निर्मला पकाना शब्द अपना मतलब निकल जाने के बाद ही बोली थी शुभम पूरी तरह से समझ गया था कि वह दूधी के बहाने उसके लंड के बारे में बात कर रहीे हैं। शुभम को भी अपनी मां के दो अर्थ वाले शब्द को सुनकर मजा आने लगा था। तभी तो वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,,,)

मम्मी क्या सच में ऐसा होता है लेकिन दूध ही वाली बात तो मैं नहीं जानता था कि दुधी के पतले मोटे लंबे तगड़े होने से औरतों को फर्क पड़ता है। आख़िर ईसे पका कर खाना ही तो है।

तू सच में बुद्धू है शुभम पकाना ही तो है यह तो मुझे अच्छी तरह से मालूम है लेकिन पतली दुबली होने पर उसमें से कुछ निकलता नहीं है बल्कि गर्मी से ही खत्म हो जाता है। और दूधी जब मोटी तगड़ी और लंबी होती है तो,,,, उसे पकने में टाइम लगता है करने में टाइम लगता है,,, जरा सी गर्मी पाकर तुरंत पिघल नहीं जाता बल्कि गर्म होकर धीरे-धीरे अपना पानी छोड़ता रहता है। तब जाकर उसे खाने में औरतों को इतना मजा आता है कि तुम लोगों को इस बात का एहसास तक नहीं होता।
( निर्मला खुद नहीं समझ रही थी कि वह क्या कह रही है लेकिन जो भी कह रही थी उस बात को कहने में वह पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी वह एकदम से चुदवासी हो गई थी,,, यही हाल शुभम का भी था। अपनी मां के दो अर्थ वाली बात को सुनकर वह पूरी तरह से गरमा चुका था उसका लंड पैंट के अंदर गदर मचाए हुए था। जिस की हालत को निर्मला तिरछी नजर से देख ले रही थी यही सही समय भी था लेकिन कैसे यह नहीं समझ पा रही थी निर्मला तभी उसके मन में एक ख्याल आया वह आंटे को घूंथते हुए,,,, अपने दोनों हथेलीयो को पूरी तरह से गीले आटे में सान ली,,, और अपने पैरों को पटकने लगे वह इस तरह से बर्ताव करने लगी कि जैसे उसकी साड़ी में कोई कीड़ा या चींटी घुस गई हो,,,,, उसके दोनों हाथ आटे में सने हुए थे और वह जोर जोर से अपने पैरों को पटकते हुए शुभम की तरफ देखने लगी जो की दूधी को काट रहा था,,,,, अपनी मां को इस तरह से उछलता हुआ देखकर वह बोला,,,,

क्या हुआ मम्मी इस तरह से क्यों उछल रही हो?

लगता है कि कुछ मेरी साड़ी में घुस गया है।

क्या घुस गया है मम्मी,,,,,,

अरे मुझे क्या मालूम धीरे धीरे काट रहा है मुझे डर लग रहा है (बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली)

तो देख लो ना क्या है?

अरे पागल अगर मेरे दोनों हाथों में आटा ना लगा हुआ होता तो क्या मैं देख नहीं लेती।,,,,,,,( वह जोर-जोर से पैरों को पटकते हुए बोली शुभम को लग रहा था कि शायद सच में कोई कीड़ा होगा जो साड़ी में घुस गया है।)

तो मम्मी जल्दी से हाथ धो कर देख लो कि क्या है,,,,,

अरे इतना समय नहीं है मेरे पास मुझे गुदगुदी सी हो रही है और धीरे-धीरे लगता है काट भी रहा है,,,,,( वह उसी तरह से उछलते हुए बोली लेकिन इस बार शुभम की नजर उसकी दोनों चूचियों कर चली गई जो की उछलकूद मचाते हुए ब्लाउज को पूरी तरह से झकझोर दे रही थी। यह नजारा बड़ा ही काम होता जिस तरह से निर्मला उछल-कूद मचा रहे थे उस तरह से तो लग रहा था कि उसकी बड़ी बड़ी दोनो चुचियों के वजन से उसके ब्लाउज के बाकी बचे बटन भी टूट जाएंगे,,,,,, वह वही खड़ा हो कर के अपनी मां को ऊछलता हुआ देखता रहा और उत्तेजित होता रहा। उसके पैंट मे बना तंबु अपनी सीमा को पार कर चुका था। शुभम को यह नजारा बेहद कामुक लग रहा था। उसकी नजर ब्लाउज के अंदर उछलते हुए गदर मचा रहे दोनों खरबूजे पर टिकी हुई थी। तभी उसकी मां पैर पटकते हुए बोली।

बेटा एक काम कर तू ही देख ले की क्या है?

मम्मी में? ( शुभम आश्चर्य के साथ बोला)

हां तु जल्दी से देख मुझसे रहा नहीं जा रहा,,,,,

( अपनी मां की बात सुनकर शुभम खुश हो गया शुभम तो यही चाहता ही था,,, अपनी मां की साड़ी उठाकर ऊसके मदमस्त बदन का दीदार करने का इससे अच्छा मौका भला कहां मिल पाता । वह तो झट से सारा काम छोड़कर अपनी मां के पास पहुंच गया। शुभम ठीक अपनी मां के पीछे खड़ा था। और अपने बेटे को अपनी ठीक पीछे खड़ा हुआ देखकर निर्मला के बदन मे गुदगुदी होने लगी। उसकी युक्ति उसे सफल होती हुई दिख रही थी। शुभम की तो दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी वह धीरे से अपनी मां की साडी को पकड़ा और उसे उठाने लगा,,, जैसे जैसे साड़ी ऊपर की तरफ उठ रही थी वैसे वैसे उसकी नंगी टांगें अपना जलवा पूरी तरह से बिखेर रही थी। अपनी मां की नंगी पिंडलियों को देखकर शुभम का गला सूखने लगा मोटी मोटी नंगी जांघे उसके होश उड़ा रही थी। धीरे धीरे करके उसने अपनी मां की सारी को कमर तक उठा दिया कमर तक साड़ी के उठते ही बड़ा ही उत्तेजक कामोत्तेजना से भरपूर वह नजर आपकी आंखों के सामने दिखाई देने लगा कि उसका लंड भी उस नजारे को देख कर सलामी भरने लगा। यह नजारा देख कर तो शुभम की सांस ही अटक गई निर्मला की मखमली गुलाबी रंग की पैंटी शुभम के होश उड़ा रहीे थी। शुभम अच्छी तरह से जानता था कि मखमली गुलाबी रंग की पैंटी में निर्मला की गुलाबी रंग का खजाना छिपा हुआ है। शुभम तो अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठा कर बिना कुछ बोले बस उसकी गोल नितंबों को देखे जा रहा था। निर्मला भी ऊछल कुद मचाना बंद कर दी थी,,,, इतने करीब एक बार फिर से अपने बेटे को पाकर और ऐसी स्थिति में कि उसका बेटा खुद ऊसकी साड़ी उठाकर कमर तक किया हो,,, और उसकी बड़ी बड़ी गांड को देख रहा हूं इस बात से ही उसका बदन पूरी तरह से उत्तेजना के मारे सरसराने लगा।
कुछ देर तक दोनों यूं ही ऐसे ही खड़े रहे शुभम की आंखें नहीं देख रही थी अपनी मां की खूबसूरत बदन का दीदार करते हुए और निर्मला कसमसा रही थी ऐसी स्थिति में अपने आप को पा कर। निर्मला की सांसो के साथ साथ उसकी बड़ी बड़ी छातिया भी ऊपर नीचे हो रही थी। तभी शुभम हकलाते हुए बोला।

मममम,,,, मम्मी,,,, यहां तो कुछ भी नजर नही आ रहा है।

बेटा मेरी पेंटी मे है,,,,

( अपनी मां की हर बात सुनते ही उसका बदन उत्तेजना के मारे कांप गया। उसे भला ऐसा करने में क्यो ईन्कार होता ।
वह एक हाथ से अपनी मां की साड़ी पकड़ कर दूसरे हाथ से धीरे-धीरे अपनी मां की पैंटी को नीचे सरकाने लगा,,, उसके हाथ उत्तेजना के मारे कांप रहे थे उसका गला सूख रहा था।
धीरे-धीरे करके उसने अपनी मां की पैंटी को एकदम नीचे जांघो तक सरका दिया। वह बड़ी ही प्यासी आंखों से अपनी मां की भरी हुई नितंब को देख रहा था,,, निर्मला भी अपनी गर्दन घुमा कर अपने बेटे की हरकत को देखकर एकदम खामोश हो चुकी थी। उसकी बुर की मदनरस टपक रहा था गजब का माहौल बन चुका था। बेटा अपनी मां की साड़ी उठाकर उसकी पैंटी को नीचे तक सरका दिया था। वह कुछ पल तक अपनी मां के नितंबो को देखने के बाद बोला ।
 

raj500265

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दूधी मोटी मोटी और एकदम लंबी,,,, एकदम तगड़ी देख ले फ्रीज में रखी होगी,,,,,( इतना कहकर निर्मला मुस्कुराने लगी शुभम को अब अपनी मां का या मुस्कुराना और उसके बातों का मतलब थोड़ा थोड़ा समझ में आने लगा था। वह बिना कुछ बोले फ्रीज में से दुधी निकाल कर किचन पर रख दिया,,, उसका लंड लगातार पेट में तंबू बनाए हुए था जिस पर बार-बार निर्मला की नजर पड़ रही थी।और उसे देखकर निर्मला की बुर फूल पिेचक रही थी। उसका बस चलता तो वह खुद ही अपने बेटे के पेंट को निकालकर उसके लंड को अपनी बुर में डलवा कर चुद गई होती लेकिन अभी मजबूर थी,,, अपने बेटी के साथ चुदवाने के बाद भी अभी भी वह शर्मो हया के पर्दे में कैद थी।
शुभम दूधी को चाकू से काटना शुरु कर दिया जिसे देखकर निर्मला मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,,,

दुधी कैसी है शुभम?

कैसी है मतलब मम्मी मे कुछ समझा नहीं,,,,

अरे बुद्धू कैसी है मतलब उसका साइज़ की मोटाई लंबाई कैसी है तभी तो बनने में स्वादिष्ट आएगी,,,,,
( शुभम आप अपनी मम्मी का मतलब समझने लगा था लेकिन फिर भी अनजान बनते हुए बोला।)

मुझे क्या मालूम मम्मी मैं खाना थोड़े ही पकाता हूं।

हां सही बात है तुम लडको लोगों को कहां पता कि दूधी का मजा औरतों को कैसा लगता है। मर्दों का तो ं काम ही होता है बस दूध खरीद कर ले जाओ और उसे घर पर रख दो तुम लोग यह भी नहीं देखते कि दूधी लंबी है कि छोटी है कि मोटी है कितना तगड़ा है यह सब से तुम लोगों को कोई भी मतलब नहीं होता बस अपना फर्ज निभा देते हो और अपना मजा लेने के औरतों को थमा देती हो कभी यह सब भी तो सोचा करो कि औरतों को क्या पसंद है दुधी का साइज कितना होना चाहिए,,,, दूधी कितनी लंबी होनी चाहिए,,,, कितनी मोटी होती है तब मजा आता है,,,,,,,,,,,,,,,,, उसी पकाने में। ( निर्मला पकाना शब्द अपना मतलब निकल जाने के बाद ही बोली थी शुभम पूरी तरह से समझ गया था कि वह दूधी के बहाने उसके लंड के बारे में बात कर रहीे हैं। शुभम को भी अपनी मां के दो अर्थ वाले शब्द को सुनकर मजा आने लगा था। तभी तो वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,,,)

मम्मी क्या सच में ऐसा होता है लेकिन दूध ही वाली बात तो मैं नहीं जानता था कि दुधी के पतले मोटे लंबे तगड़े होने से औरतों को फर्क पड़ता है। आख़िर ईसे पका कर खाना ही तो है।

तू सच में बुद्धू है शुभम पकाना ही तो है यह तो मुझे अच्छी तरह से मालूम है लेकिन पतली दुबली होने पर उसमें से कुछ निकलता नहीं है बल्कि गर्मी से ही खत्म हो जाता है। और दूधी जब मोटी तगड़ी और लंबी होती है तो,,,, उसे पकने में टाइम लगता है करने में टाइम लगता है,,, जरा सी गर्मी पाकर तुरंत पिघल नहीं जाता बल्कि गर्म होकर धीरे-धीरे अपना पानी छोड़ता रहता है। तब जाकर उसे खाने में औरतों को इतना मजा आता है कि तुम लोगों को इस बात का एहसास तक नहीं होता।
( निर्मला खुद नहीं समझ रही थी कि वह क्या कह रही है लेकिन जो भी कह रही थी उस बात को कहने में वह पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी वह एकदम से चुदवासी हो गई थी,,, यही हाल शुभम का भी था। अपनी मां के दो अर्थ वाली बात को सुनकर वह पूरी तरह से गरमा चुका था उसका लंड पैंट के अंदर गदर मचाए हुए था। जिस की हालत को निर्मला तिरछी नजर से देख ले रही थी यही सही समय भी था लेकिन कैसे यह नहीं समझ पा रही थी निर्मला तभी उसके मन में एक ख्याल आया वह आंटे को घूंथते हुए,,,, अपने दोनों हथेलीयो को पूरी तरह से गीले आटे में सान ली,,, और अपने पैरों को पटकने लगे वह इस तरह से बर्ताव करने लगी कि जैसे उसकी साड़ी में कोई कीड़ा या चींटी घुस गई हो,,,,, उसके दोनों हाथ आटे में सने हुए थे और वह जोर जोर से अपने पैरों को पटकते हुए शुभम की तरफ देखने लगी जो की दूधी को काट रहा था,,,,, अपनी मां को इस तरह से उछलता हुआ देखकर वह बोला,,,,

क्या हुआ मम्मी इस तरह से क्यों उछल रही हो?

लगता है कि कुछ मेरी साड़ी में घुस गया है।

क्या घुस गया है मम्मी,,,,,,

अरे मुझे क्या मालूम धीरे धीरे काट रहा है मुझे डर लग रहा है (बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली)

तो देख लो ना क्या है?

अरे पागल अगर मेरे दोनों हाथों में आटा ना लगा हुआ होता तो क्या मैं देख नहीं लेती।,,,,,,,( वह जोर-जोर से पैरों को पटकते हुए बोली शुभम को लग रहा था कि शायद सच में कोई कीड़ा होगा जो साड़ी में घुस गया है।)

तो मम्मी जल्दी से हाथ धो कर देख लो कि क्या है,,,,,

अरे इतना समय नहीं है मेरे पास मुझे गुदगुदी सी हो रही है और धीरे-धीरे लगता है काट भी रहा है,,,,,( वह उसी तरह से उछलते हुए बोली लेकिन इस बार शुभम की नजर उसकी दोनों चूचियों कर चली गई जो की उछलकूद मचाते हुए ब्लाउज को पूरी तरह से झकझोर दे रही थी। यह नजारा बड़ा ही काम होता जिस तरह से निर्मला उछल-कूद मचा रहे थे उस तरह से तो लग रहा था कि उसकी बड़ी बड़ी दोनो चुचियों के वजन से उसके ब्लाउज के बाकी बचे बटन भी टूट जाएंगे,,,,,, वह वही खड़ा हो कर के अपनी मां को ऊछलता हुआ देखता रहा और उत्तेजित होता रहा। उसके पैंट मे बना तंबु अपनी सीमा को पार कर चुका था। शुभम को यह नजारा बेहद कामुक लग रहा था। उसकी नजर ब्लाउज के अंदर उछलते हुए गदर मचा रहे दोनों खरबूजे पर टिकी हुई थी। तभी उसकी मां पैर पटकते हुए बोली।

बेटा एक काम कर तू ही देख ले की क्या है?

मम्मी में? ( शुभम आश्चर्य के साथ बोला)

हां तु जल्दी से देख मुझसे रहा नहीं जा रहा,,,,,

( अपनी मां की बात सुनकर शुभम खुश हो गया शुभम तो यही चाहता ही था,,, अपनी मां की साड़ी उठाकर ऊसके मदमस्त बदन का दीदार करने का इससे अच्छा मौका भला कहां मिल पाता । वह तो झट से सारा काम छोड़कर अपनी मां के पास पहुंच गया। शुभम ठीक अपनी मां के पीछे खड़ा था। और अपने बेटे को अपनी ठीक पीछे खड़ा हुआ देखकर निर्मला के बदन मे गुदगुदी होने लगी। उसकी युक्ति उसे सफल होती हुई दिख रही थी। शुभम की तो दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी वह धीरे से अपनी मां की साडी को पकड़ा और उसे उठाने लगा,,, जैसे जैसे साड़ी ऊपर की तरफ उठ रही थी वैसे वैसे उसकी नंगी टांगें अपना जलवा पूरी तरह से बिखेर रही थी। अपनी मां की नंगी पिंडलियों को देखकर शुभम का गला सूखने लगा मोटी मोटी नंगी जांघे उसके होश उड़ा रही थी। धीरे धीरे करके उसने अपनी मां की सारी को कमर तक उठा दिया कमर तक साड़ी के उठते ही बड़ा ही उत्तेजक कामोत्तेजना से भरपूर वह नजर आपकी आंखों के सामने दिखाई देने लगा कि उसका लंड भी उस नजारे को देख कर सलामी भरने लगा। यह नजारा देख कर तो शुभम की सांस ही अटक गई निर्मला की मखमली गुलाबी रंग की पैंटी शुभम के होश उड़ा रहीे थी। शुभम अच्छी तरह से जानता था कि मखमली गुलाबी रंग की पैंटी में निर्मला की गुलाबी रंग का खजाना छिपा हुआ है। शुभम तो अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठा कर बिना कुछ बोले बस उसकी गोल नितंबों को देखे जा रहा था। निर्मला भी ऊछल कुद मचाना बंद कर दी थी,,,, इतने करीब एक बार फिर से अपने बेटे को पाकर और ऐसी स्थिति में कि उसका बेटा खुद ऊसकी साड़ी उठाकर कमर तक किया हो,,, और उसकी बड़ी बड़ी गांड को देख रहा हूं इस बात से ही उसका बदन पूरी तरह से उत्तेजना के मारे सरसराने लगा।
कुछ देर तक दोनों यूं ही ऐसे ही खड़े रहे शुभम की आंखें नहीं देख रही थी अपनी मां की खूबसूरत बदन का दीदार करते हुए और निर्मला कसमसा रही थी ऐसी स्थिति में अपने आप को पा कर। निर्मला की सांसो के साथ साथ उसकी बड़ी बड़ी छातिया भी ऊपर नीचे हो रही थी। तभी शुभम हकलाते हुए बोला।

मममम,,,, मम्मी,,,, यहां तो कुछ भी नजर नही आ रहा है।

बेटा मेरी पेंटी मे है,,,,

( अपनी मां की हर बात सुनते ही उसका बदन उत्तेजना के मारे कांप गया। उसे भला ऐसा करने में क्यो ईन्कार होता ।
वह एक हाथ से अपनी मां की साड़ी पकड़ कर दूसरे हाथ से धीरे-धीरे अपनी मां की पैंटी को नीचे सरकाने लगा,,, उसके हाथ उत्तेजना के मारे कांप रहे थे उसका गला सूख रहा था।
धीरे-धीरे करके उसने अपनी मां की पैंटी को एकदम नीचे जांघो तक सरका दिया। वह बड़ी ही प्यासी आंखों से अपनी मां की भरी हुई नितंब को देख रहा था,,, निर्मला भी अपनी गर्दन घुमा कर अपने बेटे की हरकत को देखकर एकदम खामोश हो चुकी थी। उसकी बुर की मदनरस टपक रहा था गजब का माहौल बन चुका था। बेटा अपनी मां की साड़ी उठाकर उसकी पैंटी को नीचे तक सरका दिया था। वह कुछ पल तक अपनी मां के नितंबो को देखने के बाद बोला ।
वो क्या बात है भाई अपनी माँ की क्या जबरदस्त चुदाई
 

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