Erotica Lagi Lund Ki Lagan Mai Chudi Sabhi Ke Sang

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UPDATE-42
तीन बार मैं सूरज से चुद चुकी थी और हम दोनों को भी घड़ी इशारा दे रही थी कि समय खत्म हो चुका है।
हमने अपने कपड़े पहने और रास्ते में अपने बॉस को चाभी देकर धन्यवाद दिया।
बॉस साला हरामी का हरामी ही रहा, विदा करने से पहले मेरी गांड में उंगली करने के साथ-साथ चिकोटी भी काट लिया।
उसके बाद मैं जब घर पहुंची तो नमिता ने डॉक्टर की जानकारी ली तो मैंने सूरज की तरफ देखते हुए नमिता के कान में बताया कि डॉक्टर ने अच्छे से चेकअप किया और मेरी चूत के अन्दर उंगली करके बोली कि यह सूख रही है, पति से ही इसका इलाज संभव है।
कहकर मैं अपने कमरे में चली गई कपड़े बदले और फिर लेटे ही लेटे रितेश का इंतजार करने लगी।
नमिता ने मुझे खाना मेरे ही कमरे में दे दिया था।
लगभग एक घंट बाद ही रितेश आ गया, पूरे घर वालों को हाल चाल देने के बाद हम दोनों ने एकांत पाया और फिर हम दोनों अपने कमरे में आ गये।
जब तक रितेश घर पर नहीं था तो मैंने अपने कमरे के पर्दे को इस तरह से सेट किया था कि जो चाहे मेरे कमरे में झांक कर अन्दर हो रहे खेल का नजारा लेकर मस्त हो सकता था।
कमरे के अन्दर आते ही रितेश और मैं एक दूसरे की बाँहों में बहुत देर तक रहे। यही हम दोनों का प्यार था कि हम दोनों ने एक दूसरे से कुछ नहीं छिपाते हैं, खुल कर एक दूसरे से बातें करते हैं, किसने किसके साथ कब सेक्स किया है, ये हम दोनों को पूरा पूरा पता था।
बहुत देर तक मैं उसकी बाँहों में और वो मेरी बाँहों में था। चूंकि अब हम दोनों को दो-तीन घंटे की पूरी छूट थी तो मैं और रितेश अपने बेड पर एक दूसरे से चिपक के बैठे हुए थे।
मैं ज्यादा उत्सुक थी कि सुहाना ने अपने पति के साथ की हुई रतिक्रिया के बारे में क्या बताया।
लेकिन रितेश के पास अभी तक सुहाना का फोन नहीं आया था, इसलिये उसको भी कोई जानकारी नहीं थी।
फिर मेरे पूछने पर कि सुहाना के साथ कैसा बीता तो वो बोला कि मजा तो आ रहा था लेकिन जब उसके गांड का बाजा बज चुका था तो वो चली गई और बोली कि मेरा गिफ्ट उधार है और अगर कभी मिले तो मुझे वो गिफ्ट पूरा करेगी।
मेरी उंगलियाँ रितेश की छाती के बालों से खेल रही थी जबकि रितेश मेरी बांहों को सहला रहा था।
तभी रितेश ने पूछा- आज तुम्हारी तबीयत खराब थी?
तो मैं सूरज की पूरी कहानी सुनाने लगी ताकि रितेश को समझ में आ जाये कि मेरी तबीयत क्यों खराब हुई।
अचानक रितेश को याद आया कि उसके जीजा के साथ मैंने क्या किया तो मुझे रोकते हुए बोला- तुमने जीजाजी को अपने पानी का भरपूर मजा दिया।
'हाँ दिया तो… लेकिन वो मेरा गुस्सा था। उस रात को तुम्हारे बिना मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैं छत पर चुपचाप टहल रही थी कि अचानक मैंने नमिता और अमित की लड़ाई की आवाज सुनी तो देखा कि अमित चाह रहा था कि नमिता उसके साथ सेक्स करे जबकि नमिता तैयार नहीं थी। तभी मुझे समझ में आ गया कि अमित इसलिये हर जगह हाथ पाँव मारने की कोशिश करता है।'
'फिर तुमने क्या किया?' रितेश ने पूछा।
'कुछ नहीं… नमिता को रास्ते पर ले आई। दोनों खूब मजा करते है। एक बार तो हम तीनों ने मजा भी साथ ही साथ लिया।'
रितेश मेर निप्पल को दबाते हुए बोला- तुम खूब मजे कर रही थी मेरे पीछे?
थोड़ा सा भाव मारते हुये मैं बोली- अगर तुम्हें न पसंद हो तो मैं नहीं करूंगी।
'अरे नहीं यार, मैं तो मजाक कर रहा था।'
उसके बाद मैंने अपने, नमिता और अमित के बीच हुई कहानी को एक बार फिर रितेश को बताया।
रितेश को कहानी सुनाने के बाद मैं बोली- यार, चल आज रात हम दोनों ही अमित और नमिता की चुदाई देखते हैं।
'यह क्या कह रही हो?'
'तो क्या हुआ, वो भी तो तुम्हारे बारे में अब सब जानती है।'
'अच्छा, चल रात की रात देखते हैं, अब मेरा लंड तन रहा है।'
तो मैं बड़ी ही स्टाईल से खड़ी हुई और रितेश के सामने खड़ी हुई और अपने गाउन को ऊपर करते हुये बोली- ये छेद दूँ तुम्हारे इस लंड को?
फिर मैं पीछे घूम कर अपनी गांड को दिखाते हुये बोली- या तुम्हारे लंड को इस छेद की जरूरत है या फिर मेरा मुंह?
रितेश छुटते ही बोला- मुँह!! आओ दोनों एक दूसरे का पहले पानी निकालें, फिर तुम मुझे सूरज के बारे में बताना!
हम दोनों ही 69 की अवस्था में आ गये, रितेश अपने मुंह से मेरे चूत की सेवा कर रहा था और मैं उसके लंड की सेवा कर रही थी। कुछ देर बाद ही हम दोनों का पानी एक दूसरे के मुंह में था।
उसके बाद मैं फिर रितेश के बगल में बैठ गई। हाँ, बीच बीच में मेरी नजर खिड़की की तरफ उठ जाती थी।
मैं लंड चूस के उठी ही थी कि मुझे लगा कि किसी की परछाई है जो कमरे के अन्दर झांक रही थी।
मैंने तुरन्त अपने गाउन को उतारा और पूर्ण रूप से नंगी होकर थोड़ा सा खिड़की के और करीब आ गई और रितेश से भी पूरे कपड़े उतार कर मेरी बुर को एक बार और चाटते हुये कहानी सुनने को कहा।
रितेश को भला क्या ऐतराज हो सकता था, वो भी तुरन्त अपने कपड़े उतार कर मेरे पास आ गया और नीचे बैठ कर अपनी जीभ मेरी बुर में लगा दी।
मैं तिरछी नजर से खिड़की पर देखते हुए रितेश को अपनी और सूरज की कहानी थोड़ा ऊँची आवाज में सुनाने लगी ताकि जो बाहर खड़ा है, उसे भी खुली खिड़की का मजा आये।
मैंने रितेश को अपने और सूरज की चुदाई के बारे में शुरू से कहानी सुनानी शुरू की कि कैसे मुझे पता लगा कि उसके अन्दर मेरे लिये क्या है और उसने मुझे कब कब और कहाँ कहाँ नंगी देखा।
मैं रितेश को कहानी सुना रही थी पर मेरी नजर बाहर ही थी और जो मैंने देखा तो मुझे मेरे मन मुताबिक ही लगा।
वो मेरा सबसे छोटा देवर रोहन ही था जिसको मेरा चस्का लग गया था।
इधर मेरी कहानी खत्म हुई, उधर रितेश कि चटाई खत्म हुई।
रितेश खड़ा हुआ तो उसका लंड मेरी चूत चूसाई और चटाई और ऊपर से मेरे और सूरज की कहानी सुनने के बाद काफी टाईट हो चुका था।
वो मुझे अपना लंड दिखाते हुए बोला- जान, तेरी चूत का तो काम हो चुका है, अब मेरे लंड का क्या होगा?
मैं बोली- मेरी जान, चिन्ता क्यों कर रहे हो, तुम्हारी यह प्यारी रंडी दुल्हन कब काम आयेगी। चलो आ जाओ, अपने लंड महराज को मेरी गांड की सैर करा दो।
मैं रितेश के और करीब आ गई, उसके कान में बोली कि बाहर उसका सबसे छोटा भाई काफी देर से हम लोगों को देखकर अपना लंड हिला रहा है, लेकिन उसका पानी नहीं निकला है।
बात काटते हुए रितेश बोला- तो मेरी प्यारी रंडी बीवी अपने शौहर को छोड़ कर उसका पानी निकालने जायेगी?
'नहीं यार!' मैं बोली।
तुम मेरी गांड इस तरह मारो कि रोहन को मेरी गांड और लंड की चुदाई पूरी दिखे पर उसे ऐसा नहीं लगे कि हम उसे देख रहे हैं।
यह हिन्दी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
रितेश मेरी बात समझ गया, मैं और रितेश खिड़की के और करीब आ गये। हमारी पीठ खिड़की की ही तरफ थी, लेकिन मेरी समझ से मेरी गांड चुदाई बाहर से पूरी तरीके से देखी जा सकती थी।
अब मैं झुक चुकी थी और रितेश मेरे पीछे थोड़ा सा इस तरह से हट कर खड़ा होकर मेरे गांड की उठान को इस प्रकार फैलाया था कि अन्दर का छेद बाहर खड़े रोहन को अच्छे से दिखे।
उसके बाद मुझे मेरी गांड पर कुछ गीलापन सा लगा, रितेश अपने थूक से मेरी गांड को तीन-चार बार गीली कर चुका था।
तभी गप्प से उसका लंड मेरी गांड में घुस गया… चीख के साथ मेरे मुंह से गाली भी निकली- माआआदरचोद… मेरी गांड में अपने गधे जैसा लंड को प्यार से नहीं डाल सकता क्या?
उधर रितेश ने भी वैसा ही जवाब दिया- हाँ बहन की लौड़ी, तेरी गांड है या गुफा? मेरा लंड एक ही बार में पूरा का पूरा अन्दर चला गया। चल बता बुर चोदी कितनों से अपनी गांड मरवाई है?
'अरे मेरे गांडू राजा, ऐसा अपनी प्यारी रंडी के लिये मत बोलो, मेरी चूत के अन्दर किसी का भी लंड सैर कर सकता है, पर मेरी गांड में केवल तेरा ही लंड सैर करता है।'
इस तरह हम लोग गाली गलौच वाली भाषा का प्रयोग करके चुदाई का मजा भी ले रहे थे।
बाहर खड़े रोहन का तो मुझे पता नहीं लेकिन रितेश की स्पीड बढ़ गई और कुछ देर बाद रितेश का माल मेरे मुंह में था।
मैं धीरे से पर्दे के पीछे गई और देखने लगी कि रोहन क्या कर रहा है।
बाहर का नजारा कुछ अलग ही था, रोहन मदहोश होकर अपने लंड को फेंट रहा था और थोड़ी देर बाद उसकी मलाई उसके हाथ में थी।
रोहन ने अपनी जीभ इस तरह अपनी मलाई में लगाई मानो कि वो नमक चाट रहा हो।
एक दो-बार ऐसा करने के बाद वो अपनी मलाई ही पूरी चाट गया कि तभी रितेश का मोबाईल बजने लगा और रोहन अपनी मदहोशी से बाहर आया।
उधर रितेश थोड़ी उँची आवाज में बोला- आकांक्षा, मेरा मोबाईल बज रहा है।
मैं भी थोड़ी ऊँची आवाज में बोली- आई।
ताकि रोहन को यह समझ में आ जाये कि कोई भी उसे देख सकता है।
और मेरी बात भी सही हुई, रोहन ने तुरन्त अपना लोअर पहना और दरवाजा खोलकर नीचे भाग गया।
रितेश ने मोबाईल उठा लिया, फोन सुहाना का था।
मैं भी रितेश के पास बैठ गई, रितेश ने मोबाईल को स्पीकर में कर दिया, उधर से सुहाना बोली -हैलो!
रितेश- हैलो!
सुहाना- कौन बोल रहा है?
रितेश- मैं रितेश!
रितेश ने अपना पूरा परिचय दिया। पूरा परिचय लेने के बाद सुहाना जब कन्फर्म हो गई कि उसकी बात रितेश से ही हो रही है तो वो बोली- रितेश मैं सुहाना बोल रही हूँ।

कहानी जारी रहेगी।
 
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UPDATE-43
सुहाना को तसल्ली हो गई कि उसकी बात रितेश से ही हो रही है तो वो बोली- रितेश, मैं सुहाना बोल रही हूँ।
रितेश- ओह, हाँ मैम बोलिये, बन्दे को कैसे याद किया।
सुहाना- मुझे तुम सुहाना ही बोलो।
रितेश- ओ के सुहाना, कल रात मैं तुम्हारे ही फोन का इंतजार ही कर रहा था, जब नहीं आया तो सोचा कि बिजी होगी इसलिये मैंने डिस्टर्ब नहीं किया।
सुहाना- हाँ, रात मैं ज्यादा थक गई थी और फिर सुबह ऑफिस में ही बिजी थी। अब जा कर थोड़ा फ्री हुई हूँ तो तुमको फोन लगा लिया। बाई दी वे तुम क्या कर रहे हो?
रितेश ने मेरी तरफ देखा, मेरी चूत को अपनी दूसरी हथेली से कस कर भींच दिया और हौले से मुस्कुराते हुए कहा- काफी दिनों बाद मैं अपनी वाईफ से मिला तो उसकी गांड मार रहा था।
सुहाना- तो क्या वाईफ भी तुम्हारे साथ बैठी है?
रितेश ने इस जगह पर थोड़ा सा झूठ बोला- नहीं, वो अन्दर अपनी गांड साफ करने गई है।
रितेश की यह बात सुनकर सुहाना बोली- रितेश, तुमको गांड मारने में बड़ा मजा आता है? तुमने मेरी भी गांड चोदी और इस समय अपनी वाईफ की गांड चोद दी?
रितेश- क्या करूँ सुहाना, आकांक्षा ने ही मुझे ये गांड मारने की आदत डलवाई है।
मेरा सिर रितेश के सीने पर था, दोनों की बाते सुनते-सुनते मैं उसके निप्पल के साथ भी खेल रही थी।
सुहाना- इसका मतलब तुम्हारी वाईफ को भी वाईल्ड सेक्स पसंद है?
रितेश- क्यों नहीं, मेरी वाईफ है ही ऐसी! जो एक बार उसको देख भर ले तो उसके चूत और गांड के पीछे अपना लंड लिये हुए दौड़ता रहे।
सुहाना- इसका मतलब अगर तुम्हारी परमिशन उसे मिल जाये तो वो किसी के साथ भी सेक्स कर सकती है?
रितेश- क्या सुहाना जी, सेक्स नहीं इसको चुदना बोलते है और इसमे परमिशन की क्या बात है। उसका छेद है, जिसे देना चाहे वो दे सकती है।
सुहाना- इसका मतलब तुम चाहते हो कि आकांक्षा किसी के साथ भी चुदे?
रितेश- मैं चाहता नहीं, जानता हूँ कि वो कब किससे चुदी है। मेरी आकांक्षा है, मुझसे कुछ नहीं छिपाती है और वो भी जानती है कि मैं किसकी चूत में अपना लंड डालता हूँ।
सुहाना- वाव! क्या जोड़ी है तुम दोनों की!
रितेश- हाँ सुहाना! हम दोनों का मानना है कि जिसको जहाँ भी मौका मिले वो एन्जॉय करे। अब बतायें कि क्या हुआ था रात को?
सुहाना- अपनी वाईफ को भी बुला लो, वो भी मेरी कल रात वाली कहानी सुने!
मैं सुहाना की बात सुनने के बाद बोली- हाय सुहाना जी, कैसी हैं आप?
सुहाना- मैं ठीक हूँ, तुम कैसी हो। तुम्हारा पति तो कमाल का है, क्या चुदाई करता है।
मै- हाँ! अभी-अभी उसने मेरे गांड का भी बाजा बजाया है।
सुहाना- वाआओ… तुम भी खुले शब्दों का प्रयोग करती हो।
मै- तो क्या हुआ, सेक्स करना है तो खुले दिल से करो।
रितेश- हाँ, अब आप सुनाओ अपना किस्सा!
सुहाना- कल रात जब मैं तुम्हारे पास से अपनी गांड मरवा कर घर गई तो देखा मेरा हबी आशीष मेरा इंतजार कर रहा था। उसने तुरन्त ही मेरे लिये कॉफी बना कर दी और मेरे कंधे को दबाने लगा। मेरे मना करने के बाद भी वो दबाता रहा और बोल रहा था कि तुम बहुत थक गई हो और तुमको इससे रिलेक्स मिलेगा।
वास्तव मैं मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था और सोच रही थी कि जब मैं एक गैर मर्द के साथ खुल कर सेक्स कर सकती हूँ तो अपने पति के साथ क्यों नहीं।
कल से पहले मुझे पता नहीं क्यों उसके साथ सेक्स केवल तब तक अच्छा लगता था जब तक कि उसका पानी मेरी चूत के अन्दर न चला जाये।
रितेश- तो क्या वो जल्दी झर जाता था?
सुहाना- नहीं, आशीष का बस चले तो वो पूरी रात चोदे तो भी उसका स्टेमिना कम न हो।
रितेश- फिर आपको मजा क्यों नहीं आता था?
सुहाना- मुझे समझ में कभी नहीं आया। लेकिन मैं उसके साथ पहले कभी नहीं खुल पाई।
मैं- फिर कल क्या हुआ आप दोनों के बीच?
सुहाना- कल जब मैं तुम्हारे पास से वापस पहुँची तो तय कर लिया था कि आज आशीष जो भी मेरे साथ करेगा, उसमें मैं उसका पूरा साथ दूंगी।
फिर मैंने कॉफी पी और उसके बाद मैं बाथरूम में नहाने चली गई। आज मैं आशीष के लिये अपने दिल से शर्म निकालने जा रही थी। इसलिये मैंने बाथरूम का दरवाजा इस प्रकार बंद किया कि आशीष आसानी से अन्दर देख सके।
मैं शॉवर के नीचे नग्न खड़े होकर शॉवर ले रही थी और एक मेलोडी सॉन्ग गुन गुना रही थी कि मेरी पीठ पर आशीष का हाथ महसूस हुआ।
वो मेरी पीठ पर साबुन मल रहा था।
मैं नादान बनते हुए उसकी तरफ घूमी।
अरे तुम? देखा तो आशीष एकदम नंगा था और उसके हाथ में साबुन था।
आशीष बोला- यार सॉरी, दरवाजा खुला था और तुमको साक्षात काम देवी के रूप में देखा तो खुद को रोक नहीं पाया। आज मुझे मत रोकना आज मुझे तुम अच्छे से देख लेने दो।
कहते ही वो मुझे चुमते हुए नीचे मेरी चूत के पास अपनी जीभ निकाल दी और शॉवर का पानी जो मेरे जिस्म के एक-एक हिस्से पर गिरते हुए मेरी चूत से टपक रहा था, उस एक-एक बूँद को वो अपने जीभ में ले रहा था।
उस दिन मुझे लगा कि हर आदमी खुल कर सेक्स करना चाहता है, वो चाहता है कि उसकी बीवी या पार्टनर अगर उसके साथ बिस्तर में हो तो पूरी रंडी की तरह हो।
रितेश- फिर क्या हुआ सुहाना?
सुहाना- आशीष ने मेरी दोनों जांघों को पकड़ लिया और फिर अपनी जीभ को मेरी चूत के ऊपर चलाने लगा।
एक तरफ पानी मेरे जिस्म को ठण्डा करने की कोशिश कर रहा था तो दूसरी तरफ आशीष की यह हरकत मुझमें एक उत्तेजना पैदा कर रही थी और मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं आशीष को ही समूचा अपनी चूत के अन्दर डाल लूँ।
सुहाना की यह बात सुनकर हम दोनों ही हँसने लगे।
फिर रितेश बोला- फिर आगे क्या हुआ सुहाना?
सुहाना- मैं मस्त होकर आशीष से अपनी चूत चटवा रही थी। वो बार-बार मेरी पुतिया को अपने दाँतों से दबाता, जिससे मेरे मुँह से सिसकारी निकल जाती। वो मेरी चूत चाटने में बहुत मस्त हो गया। उसके इस चूत चटाई से मैं अपना पानी छोड़ चुकी थी, लेकिन पता नहीं क्यों मैं नहीं चाहती थी कि मेरा पानी उसके मुंह में जाये। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था।
मैं- फिर आगे क्या हुआ सुहाना जी?
सुहाना- मैंने बहुत कोशिश की कि आशीष का मुंह मेरी चूत से हट जाये लेकिन आज आशीष को मेरी भी परवाह नहीं थी और जब तक उसने एक-एक बूंद मेरी चूत की चाट नहीं ली तब तक उसने मुझे छोड़ा नहीं। जिस तरह से आशीष मेरी चूत चाट रहा था तो मैं सोच रही थी कि मैं भी आशीष के लंड को अपने मुंह में ले लूँ और उसको भी मजा दूं।
पर आशीष मुझे अच्छे से नहलाने लगा और उसके बाद मुझे अच्छे से पौंछा और खुद भी नहाने के बाद अपने जिस्म को सुखा कर वो मेरे पास आया।
मैं कॉम्ब कर रही थी कि उसने मुझसे कंघी ली और मेरे बालों को कंघी करने लगा। फिर उसने मुझे पाउडर लगाया और सेन्ट को मुझ पर अच्छे से छिड़क रहा था। बॉडी लोशन लेकर फ़िर मेरे पीछे आ गया और लोशन कभी मेरी चूचियों में लगा कर मालिश करता तो कभी नाभि के आस-पास, तो कभी मेरी चूत के ऊपर उस लोशन से मॉलिश करता।
उसका लंड मेरी गांड में चुभ रहा था।
लोशन लगाते हुए आशीष मुझसे बोला- सुहाना, क्या आज तुम मेरी बात मानोगी?
मैंने भी कहा- हाँ हाँ, बोलो?
आशीष ने मुझे पीछे से कस कर हग किया और बोला- सुहाना, आज तुम मेरे साथ खुल कर मजा लो।
मैंने थोड़ा सा उसे चिढ़ाते हुए कहा- इतनी देर से मैं और कर क्या रही थी।
रितेश- फिर क्या हुआ?
सुहाना- आशीष थोड़ा सा मेरी चिरोरी करते हुए बोला 'सुहाना मेरा लंड तुम्हारे होंठों का प्यासा है, आज इसकी प्यास बुझा दो। मैं उसकी तरफ घूमी और उसकी आँखों में आँखें डाल कर बोली 'मुझसे ये मत कहो प्लीज, मुझे ये अच्छा नहीं लगता।'
मेरा मन भी कर रहा था कि मैं आशीष के लंड का पानी निकाल कर उसके स्वाद को चखूँ, लेकिन मैं थोड़ा उसे और तड़पना चाहती थी।
आशीष मेरी पीठ को सहलाते हुए अपने घुटने के बल पर बैठ कर एक फिल्मी हीरो की तरह उसने मेरे दोनों हाथों को पकड़ा और मुझे मनाने लगा, बोलने लगा 'आज पहली बार इस हुस्न का आनन्द ले रहा हूँ।'
पता नहीं क्या-क्या आशीष मेरी हुस्न के तारीफ में कसीदे पढ़े जा रहा था। मुझे लगा कि क्यों सुहाना तुमने इतना सब कुछ मिस किया। मैं झुकी और आशीष से बोली 'अब से मैं तुम्हारे लिये वो सब करूँगी जो तुम्हें अच्छा लगे।'
कहकर मैंने उसको खड़ा किया और खुद थोड़ा इस तरह झुककर आशीष के लंड को मुंह में लिया कि आशीष जब मेरी गांड शीशे में देखे तो उसे और मजा आये।
मैं आशीष के लंड को चूसे जा रही थी और वो मेरी गांड को सहला रहा था और आशीष के मुंह से 'आह ओह… आह ओह…' ही निकल रहा था, बोल रहा था 'जानेमन, बहुत मजा आ रहा है। बस ऐसे ही चूसो। आह, चूसो, चूसो और चूसो बहुत मजा आ रहा है।'
मेरा मुंह उसके लंड को चूसते चूसते दर्द करने लगा था।
फिर थोड़ी देर बाद ही खुद आशीष ने मेरे मुंह से अपना लंड निकाला और मेरे पीछे आकर मुझे उसी पोजिशन में रहने के लिये कहा और फिर एक बार वो मेरी चूत को गीला करने लगा।
जब उसके हिसाब से मेरी चूत गीली हो गई तो उसने अपना लंड को मेरी चूत के अन्दर बड़े धीरे से डाला।
उसका लंड मेरे चूत के अन्दर थोड़ा ही गया था।
फिर उसने अपने लंड को निकाला और फिर उसी प्यार से अपने लंड को मेरी चूत के अन्दर से निकाला। इस तरह उसने तीन चार बार किया, तब जाकर उसके लंबे लड़ को मैं अपने अन्दर महसूस कर पाई।
उसके बाद वो मुझे कभी धीरे-धीरे पेलता तो कभी-कभी तेजी से पेलता। फिर एक वक्त आया जब आशीष के मुंह से निकलने लगा 'बहुत मजा आया आज, अब मैं निकलने वाला हूँ।'
बस इतना सुनते ही मेरे मन में आज आशीष का पानी पीने का मन हुआ तो मैंने आशीष को रूकने के लिये कहा और जल्दी से उसके लंड को अपने मुंह ले लेकर चूसने लगी।
आशीष मुझे मना कर रहा था 'नहीं सुहाना, मेरा पानी तुम्हारे मुंह गिरेगा, अपना मुंह हटाओ।' पर मैंने भी उसकी बात को अनसुना कर दिया और जितनी देर में वो अपना लंड मेरे मुंह से निकालने की कोशिश करता, उतनी देर में उसका पानी मेरे मुंह के अन्दर छूट गया और उसके वीर्य मेरा पूरा मुंह भर गया।
मैं अपना मज़ा लेते हुए उसके वीर्य के रस का एक-एक बूंद चट कर गई, आशीष बोलता ही रहा 'यह क्या कर रही हो? मत करो ऐसा!'पता नहीं क्या-क्या!
फिर मैं खड़ी हुई और एक रंडी की तरह मैंने कस कर उसके होंठों को चूसना शूरू कर दिय। आशीष ने मुझे गोद में उठाया और ले जाकर मुझे बिस्तर में पटक दिया और फिर मेरे बगल में लेटते हुए बोला 'मैं मना कर रहा था तो भी तुम नहीं मानी?' कहते हुए एक उंगली से मेरी जिस्म के पोर-पोर को वो गिटार के तार की भांति मुझे बजा रहा था। कभी उसकी उंगली मेरी चूचियों की गहराई के बीच होते हुए नाभि तक पहुँचती तो कभी मेरी भगनासा को छेड़ती तो कभी मेरी चूत के फांको के बीच होकर अन्दर खाई में जाती।
मैं उसके इस हरकत का आनन्न्द लेते हुए बोली- तुम ही तो कह रहे थे आज तुम्हें इस खेल को खुल कर खेलना है।
आशीष बोला- वो तो ठीक है। लेकिन!!!
मैंने कहा- लेकिन क्या? तुम भी तो मेरा रस के एक-एक बूंद को जब तक नहीं पी गये तब तक तुमने भी अपना मुंह कहाँ हटाया था।
मेरे इतना कहते ही वो मेरे होंठो पर अपनी उंगलियाँ चलाने लगा और फिर अपनी एक टांग को मेरे ऊपर चढ़ाते हुए मेरे होंठों को चूसने लगा।
आज मुझे उसका इस तरह से मेरे ऊपर टांग चढ़ाना भी बहुत अच्छा लग रहा था। होंठ चूसने के बाद उसने मुझे पलटा दिया और फिर फ्रिज से आईस क्यूब एक कटोरे में ले आया और दो-तीन आईस क्यूब मेरी पीठ में थोड़ी थोड़ी दूर रखता हुआ उसे अपने मुंह में रखता और फिर मेरी पीठ में रखता।
मेरे साथ बहुत कुछ नया हो रहा था, मैं बेड में लगे हुए शीशे से आशीष की इन सब प्यारी हरकतों को देख कर आनन्दित हो रही थी।
तभी आशीष मेरी पीठ पर लेट गया और मुझसे कान में बोला- जानू, आज तुम बहुत मस्त लग रही हो!
मैंने भी उत्तर दिया- तुम्हारा खेल मुझे बहुत पसंद आ रहा है।
वो खुश होते हुए बोला- पक्का पसंद आ रहा है?
'हुम्म सच में!' मैं बोली।
फिर आशीष बोला- और मजा लोगी?
मैं- हाँ।
आशीष- तो अपनी गांड की फांकों को अपने हाथों से फैलाओ।
मैंने आशीष के कहे अनुसार अपनी गांड के पुट्ठे को पकड़ा और उसे फैला दिया, आशीष बोला-वाऊऊउ क्या मस्त गांड है।
कहकर उसने उंगली को गांड के छेद के अन्दर डाल दी, फिर उसने कटोरे से आईस उठाई और थोड़ी ऊँचाई से उस आईस क्यूब को ठीक मेरी गांड के छेद की सीध में लगा दिया और जब उस आईस की एक-एक ठंडी बूंद मेरी गांड की छेद में पड़ रही थी तो मैं अन्दर तक हिल जा रही थी।
10-15 बूंद उस आईस से सीधा मेरी गांड में गिरी। उसके बाद वो उस आईस को मेरी गांड में रगड़ने लगा।
आशीष को बहुत दिन बाद इस तरह बिना किसी तनाव के मेरे साथ सेक्स करने का मौका मिला था और वो उस मौके के हर एक पल के आनन्द का मजा लूट रहा था। वैसे भी मजा मुझे भी आ रहा था।
फिर मुझे मेरी गांड में कुछ रेंगता हुआ महसूस हुआ। मैंने शीशे से देखा तो आशीष की जीभ मेरी गांड के छेद को चाट रहा था और फिर अचानक आशीष ने मेरे पुट्ठे को पकड़ा और जोर से कहा- सुहाना, आज तुमको एक और नया मजा मैं देने जा रहा हूँ!
इतना कहने के साथ ही एक झटके में वो अपना लंड मेरी गांड के अन्दर पेल चुका था।
मैं चीख उठी और हिलडुल कर मैं उसके लंड को गांड से बाहर निकालना चाहती थी, पर वो मेरे ऊपर पूरी तरह से लेट गया और मुझे हिलने का मौका बिल्कुल नहीं दिया।
एक उसका लंड जो अचानक मेरे गांड के अन्दर जा चुका था, उसकी जलन हो रही थी और ऊपर से आशीष का वजन मेरे ऊपर था, सांस घुटती सी लग रही थी।
कुछ देर बाद आशीष मेरे ऊपर से उठा और फिर धीरे-धीरे मेरी गांड की चुदाई करने लगा।
मुझे भी मजा आ रहा था, लंड के वजह से गांड काफी ढीली पड़ चुकी थी।
अब आशीष मुझे घोड़ी बना कर कभी मेरी बुर चोदता तो कभी मेरी गांड की चुदाई करता। काफी देर तक आशीष मेरी गांड और बुर के छेदों की चुदाई करता रहा और फिर अन्त में वो मेरी गांड के अन्दर ही झड़ गया।
उसके बाद हम दोनों एक-दूसरे से चिपक कर सो गये। आज सुबह जैसे ही उठा उसने मेरी चुदाई शुरू कर दी।
फिर दोनों ही तैयार होकर ऑफिस के लिये निकल पड़े।
सुहाना की बात खत्म होते ही हम दोनों साथ-साथ बोल पड़े- मुबारक हो गांड और चूत दोनों के मजे साथ-साथ लेने के!
कहानी जारी रहेगी।
 
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