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एक लड़की है शीला, बिल्कुल सीधी सादी, भोली-भाली, भगवान में बहुत विश्वास रखने वाली.
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अचानक शादी के एक साल बाद ही उसके पति का स्कूटर से एक्सीडेंट हो गया और वो ऊपर चला गया. तब से शीला अपने पापा-मम्मी के साथ रहने लगी. अभी उसका कोई बच्चा नहीं था. उसकी आयु 24 वर्ष थी. उसके पापा मम्मी ने उसको शादी के लिए कहा, लेकिन शीला ने फिलहाल मना कर दिया था. वो अब भी अपने पति को नहीं भुला पाई थी, जिसे ऊपर गए हुए आज 6 महीने हो गए थे.

शीला शारीरिक रूप से कोई बहुत ज्यादा खूबरसूरत नहीं थी लेकिन उसकी सूरत बहुत भोली थी. वह खुद भी बहुत भोली थी, ज्यादातर चुप ही रहती थी.

उसकी लम्बाई लगभग 5 फुट 4 इंच थी, रंग रूप गोरा था, बाल काफी लंबे थे, गोल चेहरा था. उसके चूचे भारतीय औरतों जैसे बड़े थे, कमर लगभग 31-32 इंच थी, चूतड़ गोल और बड़े यही कोई 37 इंच के थे.

वो हमेशा सफेद या फिर बहुत हल्के रंग की साड़ी पहनती थी. उसके पापा सरकारी दफ्तर में काम करते थे. उनका हाल ही में दूसरे शहर में तबादला हुआ था. वे सब नये शहर में आकर रहने लगे.

शीला की मम्मी ने भी एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली. शीला का कोई भाई नहीं था और उसकी बड़ी बहन की शादी 6 साल पहले हो गई थी. उनका घर छोटी सी कॉलोनी में था जो कि शहर से थोड़ी दूर थी. रोज़ सुबह शीला के पापा दफ्तर और उसकी मम्मी स्कूल चले जाते थे. पापा शाम 6 बजे और मम्मी 4 बजे वापस आती थीं.

उनके घर के पास ही एक छोटा सा मंदिर था. मंदिर में एक पण्डित था, यही कोई 36 साल का. देखने में गोरा और बॉडी भी सुडौल, लंबाई 5 फुट 9 इंच. सूरत भी ठीक ठाक थी.. बाल भी बड़े थे.

मंदिर में उसके अलावा और कोई ना था. मंदिर में ही बिल्कुल पीछे उसका कमरा था. मंदिर के मुख्य द्वार के अलावा पण्डित के कमरे से भी एक दरवाज़ा कॉलोनी की पिछली गली में जाता था. वो गली हमेशा सुनसान ही रहती थी क्योंकि उस गली में अभी कोई घर नहीं था.

नये शहर में आकर शीला की मम्मी ने उसे बताया कि पास में एक मंदिर है, उसे पूजा करनी हो तो वहाँ चली जाया करे. शीला बहुत धार्मिक थी. पूजा पाठ में बहुत विश्वास था उसका. रोज़ सुबह 5 बजे उठ कर वह मंदिर जाने लगी.

पण्डित को किसी ने बताया था एक पास में ही कोई नया परिवार आया है और जिनकी 24 साल की विधवा बेटी है. शीला पहले दिन सुबह 5 बजे मंदिर गई, मन्दिर में और कोई ना था.. सिर्फ पण्डित था. शीला ने सफेद साड़ी ब्लाउज पहन रखा था. शीला पूजा करने के बाद पण्डित के पास आई.. उसने पण्डित के पैर छुए.

पण्डित- जीती रहो पुत्री.. तुम यहाँ नई आई हो ना..?
शीला- जी पण्डित जी!
पण्डित- पुत्री.. तुम्हारा नाम क्या है?
शीला- जी, शीला!
पण्डित- तुम्हारे माथे की लकीरों ने मुझे बता दिया है कि तुम पर क्या दुख आया है.. लेकिन पुत्री.. भगवान के आगे किसकी चलती है!
शीला- पण्डित जी.. मेरा ईश्वर में अटूट विश्वास है.. लेकिन फिर भी उसने मुझसे मेरा सुहाग छीन लिया..!

ये कहते हुए शीला की आँखों में आँसू आ गए थे.

पण्डित- पुत्री.. ईश्वर ने जिसकी जितनी लिखी है..वह उतना ही जीता है.. इसमें हम तुम कुछ नहीं कर सकते. उसकी मरज़ी के आगे हमारी नहीं चल सकती.. क्योंकि वो सर्वोच्च है.. इसलिए उसके निर्णय को स्वीकार करने में ही समझदारी है.

शीला आँसू पोंछ कर बोली.

शीला- मुझे हर पल उनकी याद आती है.. ऐसा लगता है जैसे वो यहीं कहीं हैं.
पण्डित- पुत्री.. तुम जैसी धार्मिक और ईश्वर में विश्वास रखने वाली का ख्याल ईश्वर खुद रखता है.. कभी कभी वो इम्तिहान भी लेता है.
शीला- पण्डित जी.. जब मैं अकेली होती हूँ.. तो मुझे डर सा लगता है.. पता नहीं क्यों?
पण्डित- तुम्हारे घर में और कोई नहीं है?
शीला- हैं.. पापा मम्मी.. लेकिन सुबह सुबह ही पापा अपने दफ्तर और मम्मी स्कूल चली जाती हैं. फिर मम्मी 4 बजे आती हैं.. इस दौरान मैं अकेली रहती हूँ और मुझे बहुत डर सा लगता है.. ऐसा क्यों हैं पण्डित जी?
पण्डित- पुत्री.. तुम्हारे पति के स्वर्गवास के बाद तुमने हवन तो करवाया था ना..?
शीला- नहीं.. कैसा हवन पण्डित जी?
पण्डित- तुम्हारे पति की आत्मा की शान्ति के लिए.. यह बहुत आवश्यक होता है.
शीला- हमें किसी ने बताया नहीं पण्डित जी..
पण्डित- यदि तुम्हारे पति की आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी तो वो तुम्हारे आस पास भटकती रहेगी और इसलिए तुम्हें अकेले में डर लगता है.
शीला- पण्डित जी.. आप ईश्वर के बहुत पास हैं, कृपया आप कुछ कीजिए ताकि मेरे पति की आत्मा को शान्ति मिल सके.

शीला ने पण्डित के पैर पकड़ लिए और अपना सर उसके पैरों में झुका दिया. इस अवस्था में शीला के ब्लाउज के नीचे उसकी नंगी पीठ दिख रही थी.. पण्डित की नज़र उसकी नंगी पीठ पर पड़ी तो .. उसने सोचा यह तो विधवा है.. और भोली भी.. इसके साथ कुछ करने का मौक़ा है.. उसने शीला के सर पे हाथ रखा.

पण्डित- पुत्री.. यदि जैसा मैं कहूँ तुम वैसा करो तो तुम्हारे पति की आत्मा को शान्ति अवश्य मिलेगी.

शीला ने सर उठाया और हाथ जोड़ते हुए कहा.

शीला- पण्डित जी, आप जैसा भी कहेंगे मैं वैसा ही करूँगी.. आप बताइये क्या करना होगा?

शीला की नज़रों में पण्डित भी भगवान का रूप था.

पण्डित- पुत्री.. हवन करना होगा.. हवन कुछ दिन तक रोज़ करना होगा.. लेकिन वेदों के अनुसार इस हवन में केवल स्वर्गवासी की पत्नी और पण्डित ही भाग ले सकते हैं और किसी तीसरे को इस बारे में खबर भी नहीं होनी चाहिये. अगर हवन शुरू होने के पश्चात किसी को खबर हो गई तो स्वर्गवासी की आत्मा को शान्ति कभी नहीं मिलेगी.
शीला- पण्डित जी..आप ही हमारे गुरू हैं आप जैसा कहेंगे, हम वैसा ही करेंगे. आज्ञा दीजिए, कब से शुरू करना है.. और क्या क्या सामग्री चाहिए होगी?
पण्डित- वेदों के अनुसार इस हवन के लिए सारी सामग्री शुद्ध हाथों में ही रहनी चाहिए.. अत: सारी सामग्री का प्रबंध मैं खुद ही करूँगा.. तुम सिर्फ एक नारियल और तुलसी लेते आना.
शीला- तो पण्डित जी, शुरू कब से करना है?
पण्डित- क्योंकि इस हवन में केवल स्वर्गवासी की पत्नी और पण्डित ही होते हैं. इसलिए ये हवन उस समय होगा जब कोई विघ्न ना करे.. और हवन पवित्र स्थान पर होता है.. जैसे कि मन्दिर.. परन्तु.. यहाँ तो कोई भी विघ्न डाल सकता है. इसलिए हम हवन इसी मन्दिर के पीछे मेरे कक्ष (रूम) में करेंगे. इस तरह स्थान भी पवित्र रहेगा और और कोई विघ्न भी नहीं डालेगा.
शीला- पण्डित जी.. जैसा आप कहें.. किस समय करना है?
पण्डित- दोपहर 12:30 बजे से लेकर 4 बजे तक मन्दिर बंद रहता है.. सो इस समय में ही हवन शान्ति पूर्वक हो सकता है. तुम आज 12:45 बजे आ जाना.. नारियल और तुलसी लेकर. लेकिन मेरे कमरे का सामने का द्वार बंद होगा. आओ मैं तुम्हें एक दूसरा द्वार दिखा देता हूँ जो कि मैं अपने प्रिय भक्तों को ही दिखाता हूँ.

पण्डित उठा और शीला भी उसके पीछे पीछे चल दी. पण्डित ने शीला को अपने कमरे में से एक दरवाज़ा दिखाया जो कि एक सुनसान गली में निकलता था. उसने गली में ले जाकर शीला को आने का पूरा रास्ता समझा दिया.

पण्डित- पुत्री तुम रास्ता तो समझ गई ना..?
शीला- जी पण्डित जी.
पण्डित- ये याद रखना कि ये हवन की विधि सबसे गुप्त रहना चाहिये.. वरना तुम्हारे पति की आत्मा को शान्ति कभी ना मिल पाएगी.
शीला- पण्डित जी.. आप मेरे गुरू हैं.. आप जैसा कहेंगे..मैं वैसा ही करूँगी.. मैं ठीक 12:45 बजे आ जाऊंगी.

ठीक 12:45 पर शीला पण्डित के बताए हुए रास्ते से उसके कमरे के दरवाज़े पर आ गई और खटखटाया.

पण्डित- आओ पुत्री..

शीला ने पहले पण्डित के पैर छुए.

पण्डित- किसी को खबर तो नहीं हुई?
शीला- नहीं पण्डित जी.. मेरे पापा मम्मी जा चुके हैं और जो रास्ता आपने बताया था, मैं उसी रास्ते से आई हूँ.. किसी ने नहीं देखा.

पण्डित ने दरवाज़ा बंद किया.

पण्डित- चलो फिर हवन आरम्भ करें.

पण्डित का कमरा ज्यादा बड़ा ना था.. उसमें एक खाट थी.. बड़ा सा शीशा था.. कमरे में सिर्फ एक 40 वाट का बल्व ही जल रहा था. पण्डित ने कमरे में ईंटों का हवनकुंड बनाया हुआ था, उसी में हवन के लिए आग जलाई.. और सामग्री लेकर दोनों आग के पास बैठ गए.

पण्डित मन्त्र बोलने लगा.. शीला ने वही सुबह वाला साड़ी ब्लाउज पहना था.

पण्डित- ये पान का पत्ता दोनों हाथों में ले लो.

शीला और पण्डित साथ साथ बैठे थे.. दोनों चौकड़ी मार के बैठे थे. दोनों की टांगें एक दूसरे को टच कर रही थी.

शीला ने दोनों हाथ आगे करके पान का पत्ता ले लिया.. पण्डित ने फिर उस पत्ते में थोड़े चावल डाले.. फिर थोड़ी चीनी.. थोड़ा दूध.

फिर उसने शीला से कहा.

पण्डित- पुत्री.. अब तुम अपने हाथ को मेरे हाथ में रखो.. मैं मन्त्र पढूंगा और तुम अपने पति का ध्यान करना.

शीला ने अपने हाथ पण्डित के हाथों में रख दिये.. ये उनका पहला स्किन टू स्किन कांटेक्ट था.

पण्डित- वेदों के अनुसार.. तुम्हें ये कहना होगा कि तुम अपने पति से बहुत प्रेम करती हो.. जो मैं कहूँ मेरे पीछे पीछे बोलना.
शीला- जी पण्डित जी.

शीला के हाथ पण्डित के हाथ में थे.

पण्डित- मैं अपने पति से बहुत प्रेम करती हूँ.
शीला- मैं अपने पति से बहुत प्रेम करती हूँ.
पण्डित- मैं उन पर अपना तन और मन न्यौछावर करती हूँ.
शीला- मैं उन पर अपना तन और मन न्यौछावर करती हूँ.
पण्डित- अब पान का पत्ता मेरे साथ अग्नि में डाल दो.

दोनों ने हाथ में हाथ लेकर पान का पत्ता आग में डाल दिया.

पण्डित- वेदों के अनुसार.. अब मैं तुम्हारे चरण धोऊंगा.. अपने चरण यहाँ सीधे करो.

शीला ने अपने पैर सीधे किये.. पण्डित ने एक गिलास में से थोड़ा पानी हाथ में लिया और शीला के पैरों को अपने हाथों से धोने लगा.

पण्डित- तुम अपने पति का ध्यान करो.

पण्डित मन्त्र पढ़ने लगा.. शीला आँखें बंद करके पति का ध्यान करने लगी.

शीला इस वक्त टांगें ऊपर की तरफ़ मोड़ कर बैठी थी.

पण्डित ने उसके पैर थोड़े से उठाए और हाथों में लेकर पैर धोने लगा.

टांग उठने से शीला की साड़ी के अन्दर का नजारा दिखने लगा. उसकी जांघें दिख रही थीं और साड़ी के अन्दर के अँधेरे में हल्की हल्की उसकी सफेद कच्छी भी दिख रही थी. लेकिन शीला की आँखें बंद थीं.. वो तो अपने पति का ध्यान कर रही थी और पण्डित का ध्यान उसकी साड़ी के अन्दर के नज़ारे पर था.

पण्डित के मुँह में पानी आ रहा था.. लेकिन वो जबरदस्ती करने से डर रहा था.. सो उसने सोचा लड़की को गरम किया जाए. पैर धोने के बाद कुछ देर उसने मन्त्र पढ़े.

पण्डित- पुत्री.. आज इतना ही काफी है.. असली पूजा कल से शुरू होगी. तुम्हें भगवान शिव को प्रसन्न करना है. वो प्रसन्न होंगे तभी तुम्हारे पति की आत्मा को शान्ति मिलेगी. अब तुम कल आना.
शीला- जो आज्ञा पण्डित जी.

अगले दिन..

पण्डित- आओ पुत्री.. तुम्हें किसी ने देखा तो नहीं.. अगर कोई देख लेगा तो तुम्हारी पूजा का कोई लाभ नहीं.
शीला- नहीं पण्डित जी.. किसी ने नहीं देखा.. आप मुझे आज्ञा दें.
पण्डित- वेदों के अनुसार.. तुम्हें भगवान शिव को प्रसन्न करना है.
शीला- पण्डित जी.. वैसे तो सभी भगवान बराबर हैं लेकिन पता नहीं क्यों..भगवान शिव के प्रति मेरी श्रद्धा ज्यादा है.
पण्डित- अच्छी बात है.. पुत्री..शिव को प्रसन्न करने के लिए तुम्हें पूरी तरह शुद्ध होना होगा. सबसे पहले तुम्हें कच्चे दूध का स्नान करना होगा. शुद्ध वस्त्र पहनने होंगे.. और थोड़ा श्रृंगार करना होगा.
शीला- श्रृंगार पण्डित जी?
पण्डित- हाँ.. शिव स्त्री-प्रिय (विमन लविंग) हैं, सुन्दर स्त्रियाँ उन्हें भाती हैं. यूं तो हर स्त्री उनके लिए सुन्दर है.. लेकिन श्रृंगार करने से उसकी सुन्दरता बढ़ जाती है. जब भी पार्वती जी को शिव को मनाना होता है.. तो वे भी श्रृंगार करके उनके सामने आती हैं न..!
शीला- लेकिन पण्डित जी.. क्या एक विधवा का श्रृंगार करना सही रहेगा ?
पण्डित- पुत्री.. शिव के लिए कोई भी काम किया जा सकता है.. विधवा तो तुम इस समाज के लिए हो.
शीला- जो आज्ञा पण्डित जी.
पण्डित- अब तुम स्नानगृह (बाथरूम) में जा कर कच्चे दूध का स्नान करो.. मैंने वहाँ पर कच्चा दूध रख दिया है क्योंकि तुम्हारे लिए कच्चा दूध घर से लाना मुश्किल है.. और हाँ, तुम्हारे वस्त्र भी स्नानगृह में ही रखे हैं.

पण्डित ने नारंगी कलर का ब्लाउज और पेटीकोट बाथरूम में रखा था.. पण्डित ने ब्लाउज के हुक निकाल दिए थे. हुक्स पीठ की साइड में थे. वैसे तो ब्लाउज में महिलाओं की सुविधाओं के लिए हुक्स सामने मम्मों की तरफ होते हैं.

शीला दूध से नहा कर आई.. सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में उसे पण्डित के सामने शर्म आ रही थी.

शीला- पण्डित जी..
पण्डित- आ गई.
शीला- पण्डित जी.. मुझे इन वस्त्रों में शर्म आ रही है.
पण्डित- नहीं पुत्री.. ऐसा ना बोलो.. शिव नाराज़ हो जाएंगे. ये जोगिया वस्त्र शुद्ध हैं, यदि तुम शुद्ध नहीं होगी, तो शिव प्रसन्न कदापि नहीं होंगे.
शीला- लेकिन पण्डित जी..इस.. स्स.. ब..ब्लाउज के हुक्स नहीं हैं.
पण्डित- ओह.. मैंने देखा ही नहीं.. वैसे तो पूजा केवल दो घंटे की ही है.. लेकिन यदि तुम ब्लाउज के कारण पूजा नहीं कर सकती को हम कल से पूजा कर लेंगे.. लेकिन शायद शिव को ये विलम्ब अच्छा ना लगे.

शीला- नहीं पण्डित जी.. पूजा शुरू कीजिये..
पण्डित- पहले तुम उस शीशे पे जाकर श्रृंगार कर लो.. श्रृंगार की सामग्री वहीं है.

शीला ने लाल लिपस्टिक लगाई.. थोड़ा रूज़.. और थोड़ा परफ्यूम लगा लिया.
श्रृंगार करके वो पण्डित के पास आई..

पण्डित- अति सुन्दर पुत्री.. तुम बहुत सुन्दर लग रही हो.

शीला शरमाने लगी.. ये फीलिंग्स उसने पहली बार अनुभव की थीं.

पण्डित- आओ पूजा शुरू करें.

वो दोनों अग्नि के पास बैठ गए.. पण्डित ने मन्त्र पढ़ने शुरू किए.

हवनकुंड की अग्नि से थोड़ी गरमी हो गई थी इसलिए पण्डित ने अपना कुरता उतार दिया.. उनसे शीला को आकर्षित करने के लिए अपनी छाती पूरी शेव कर ली थी. उसकी बॉडी पहलवानों जैसी थी. अब वो केवल एक लुंगी में था. शीला थोड़ा और शरमाने लगी. दोनों चौकड़ी मार के बैठे थे.
 
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पण्डित- पुत्री.. ये नारियल अपनी झोली में रख लो.. इसे तुम परसाद समझो.. तुम दोनों हाथ सिर के ऊपर से जोड़ कर शिव का ध्यान करो.

शीला सिर के ऊपर से हाथ जोड़ के बैठी थी.. पण्डित उसकी झोली में फ़ल डालता रहा.

शीला की इस पोजीशन में उसके चूचे और नंगा पेट पण्डित के लंड को सख्त कर रहे थे. शीला की नाभि भी पण्डित को साफ़ दिख रही थी.

पण्डित- शीला पुत्री.. ये मौलि (धागा) तुम्हें अपने पेट पर बांधनी है.. वेदों के अनुसार इसे पण्डित को बांधना चाहिए.. लेकिन यदि तुम्हें इसमें लज्जा की वजह से कोई आपत्ति हो तो तुम खुद बांध लो.. परन्तु विधि तो यही है कि इसे पण्डित बांधे.. क्योंकि पण्डित के हाथ शुद्ध होते हैं.. आगे जैसे तुम्हारी इच्छा.
शीला- पण्डित जी.. वेदों का पालन करना मेरा धर्म है.. जैसा वेदों में लिखा है आप वैसा ही कीजिये.
पण्डित- मौलि बांधने से पहले गंगाजल से वो जगह साफ़ करनी होती है.

पण्डित ने शीला के पेट पे गंगाजल छिड़का.. और उसका नंगा पेट गंगाजल से धोने लगा. शीला के पेट की स्किन अन्य औरतों के बनिस्बत बहुत कोमल थी. पण्डित उसके पेट को रगड़ रहा था. फिर उसने तौलिए से शीला का पेट पोंछ कर सुखाया.

शीला के हाथ सिर के ऊपर थे.. पण्डित शीला के सामने बैठ कर उसके पेट पे मौलि बांधने लगा.. पहली बार पण्डित ने शीला के नंगे पेट को छुआ.

गाँठ बांधते समय पण्डित ने अपनी उंगली शीला की नाभि पर रखी.

अब पण्डित ने उंगली पे लाल रंग की रोली लेकर शीला के पेट टीका जैसा लगाया.

पण्डित- शीला.. शिव को पार्वती की देह (बॉडी) पर चित्रकारी करने में आनन्द आता है.

ये कह कर पण्डित शीला के पेट पर गोल टीका बढ़ा करते हुए लगाने लगा. फिर उसने शीला के पेट पर त्रिशूल बनाया.

शीला की नाभि पर आ कर पण्डित रुक गया. अब पण्डित अपनी उंगली शीला की नाभि में घुमाने लगा. वो शीला की नाभि में टीका लगा रहा था. शीला के दोनों हाथ ऊपर थे. वह भोली थी.. और इन सब चीजों को धर्म समझ रही थी. लेकिन ये सब उसे भी कुछ कुछ अच्छा लग रहा था.

फिर पण्डित घूम कर शीला के पीछे आया.. उसने शीला की पीठ पर गंगाजल छिड़का और हाथ से उसकी पीठ पर गंगाजल लगाने लगा.

पण्डित- गंगाजल से तुम्हारी देह और शुद्ध हो जाएगी, क्योंकि गंगा शिव की जटाओं से निकल रही है इसलिए गंगाजल लगाने से शिव प्रसन्न होते हैं.

शीला के ब्लाउज के हुक्स नहीं थे.. पण्डित ने खुले हुए ब्लाउज को और साइड में कर दिया.. शीला की आलमोस्ट सारी पीठ नंगी हो गई. पण्डित उसकी नंगी पीठ पर गंगाजल डाल कर रगड़ रहा था. वो उसकी नंगी पीठ अपने हाथों से धो रहा था. शीला की नंगी पीठ को छूकर पण्डित का लंड एकदम टाईट हो गया था.

पण्डित- तुम्हारी राशी क्या है?
शीला- कुम्भ.
पण्डित- मैं टीके से तुम्हारी पीठ पर तुम्हारी राशी लिख रहा हूँ.. गंगाजल से शुद्ध हुई तुम्हारी पीठ पर तुम्हारी राशी लिखने से तुम्हारे ग्रहों की दशा लाभदायक हो जाएगी.

पण्डित ने शीला की नंगी पीठ पर टीके से कुम्भ की जगह लंड लिखा..

फिर पण्डित शीला के पैरों के पास आया.

पण्डित- अब अपने चरण सामने करो.
शीला ने पैर सामने कर दिये.. पण्डित ने उसका पेटीकोट थोड़ा ऊपर चढ़ाया.. उसकी टांगों पर गंगाजल छिड़का.. और उसकी टांगें अपने हाथों से रगड़ने लगा.
पण्डित- हमारे चरण बहुत सी अपवित्र जगहों पर पड़ते हैं.. गंगाजल से धोने के पश्चात अपवित्र जगहों का हम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.. तुम शिव का ध्यान करती रहो.
शीला- जी पण्डित जी..
पण्डित- शीला.. यदि तुम्हें ये सब करने में लज्जा आ रही हो तो ये तुम खुद कर लो.. परन्तु वेदों के अनुसार ये कार्य पण्डित को ही करना चाहिये.
शीला- नहीं पण्डित जी.. यदि हम वेदों के अनुसार नहीं चले तो शिव कभी प्रसन्न नहीं होंगे.. और भगवान के कार्य में लज्जा कैसी.

शीला अंधविश्वासी थी.

पण्डित ने शीला का पेटीकोट घुटनों के ऊपर चढ़ा दिया.. अब शीला की टांगें जांघों तक नंगी थीं.

पण्डित ने उसकी जांघों पर गंगाजल लगाया और उसकी जांघें हाथों से धोने लगा. शीला ने शर्म से अपनी टांगें जोड़ रखी थीं तो पण्डित ने कहा.

पण्डित- शीला.. अपनी टांगें खोलो.

शीला ने धीरे धीरे अपनी टांगें खोल दीं. अब शीला पण्डित के सामने टांगें खोल कर बैठी थी. उसकी ब्लैक कच्छी पण्डित को साफ़ दिख रही थी. पण्डित ने शीला की जांघों को अन्दर तक छुआ.. और उन्हें गंगाजल से रगड़ने लगा.

इस वक्त पण्डित के हाथ शीला की चूत के नज़दीक थे.. कुछ देर शीला की पूरी जांघों को धोने के बाद अब वो उस जगह तौलिए से रगड़ कर सुखाने लगा.

फिर उसने उंगली में टीका लगाने के लिए रोली ली और शीला की जांघों के अन्दर तक चुत के नजदीक पे लगाने लगा.

शीला शरमाते हुए बोली- पण्डित जी.. यहाँ भी टीका लगाना होता है?

वो जरा असहज महसूस कर रही थी.

पण्डित- हाँ.. यहाँ देवलिंग बनाना होता है.

शीला टांगें खोल कर बैठी थी और पण्डित उसकी अंदरूनी जाँघों पर उंगलियों से देवलिंग बना रहा था.

पण्डित- शीला.. लज्जा ना करना..
शीला- नहीं पण्डित जी..

जैसे उंगली से माथे (फ़ोरेहेड) पर टीका लगाते हैं, पण्डित कच्छी के ऊपर से ही शीला की चूत पे भी टीका लगाने लगा. शीला शर्म से लाल हो रही थी.. लेकिन गरम भी हो रही थी. पण्डित टीका लगाने के बहाने 5-6 सेकंड्स तक कच्छी के ऊपर से शीला की चूत रगड़ता रहा.

चूत से हाथ हटाने के बाद पण्डित बोला.

पण्डित- विधि के अनुसार मुझे भी गंगाजल लगाना होगा.. अब तुम इस गंगाजल को मेरी छाती पर लगाओ.

पण्डित लेट गया.

शीला- जी पण्डित जी.

पण्डित ने छाती शेव कर रखी थी.. और पेट भी.. उसकी छाती और पेट बिल्कुल सफाचट चिकने और कोमल थे.

शीला गंगाजल से पण्डित की छाती और पेट रगड़ने लगी. शीला को अन्दर ही अन्दर पण्डित का बदन आकर्षित कर रहा था.. उसकी चुत पर पंडित की उंगली की रगड़न का अहसास अभी तक हो रहा था. उसके मन में आया कि पण्डित का बदन कितना कोमल और चिकना है.

ऐसे ख्याल शीला के मन में पहले कभी नहीं आये थे.

पण्डित- अब तुम मेरी छाती पर टीके से गणेश बना दो.. गणेश इस प्रकार बनना चाहिये कि मेरे ये दोनों निप्पलों गणेश के ऊपर के दोनों आँखों के बिंदु हों.

निप्पलों का नाम सुन कर शीला शरमा गई.

शीला ने गणेश बनाया.. लेकिन उसने टीके से सिर्फ गणेश के नीचे के दो खानों की बिन्दुएँ ही बनाईं.

पण्डित- शीला.. गणेश में चार बिंदु डालते हैं.
शीला- पण्डित जी.. लेकिन ऊपर की दो बिंदु तो पहले से ही बनी हुई हैं?
पण्डित- परन्तु टीका उन पर भी लगेगा.
शीला पण्डित के निप्पलों पर टीका लगाने लगी.
पण्डित- मानव की नाभि उसकी ऊर्जा का स्त्रोत होती है.. अतः यहाँ नाभि पर भी टीका लगाओ.
शीला- जो आज्ञा पण्डित जी.

शीला ने उंगली में टीका लगाया.. पण्डित की नाभि में उंगली डाली.. और टीका लगाने लगी. पण्डित ने शीला को आकर्षित करने के लिए अपना पेट और छाती शेव करने के साथ साथ अपनी नाभि में थोड़ी क्रीम भी लगाई थी.. इसलिए उसकी नाभि चिकनी हो गई थी.

शीला सोच रही थी कि इतनी चिकनी नाभि तो उसकी खुद की भी नहीं है. शीला पण्डित के बदन की तरफ़ खिंची चली जा रही थी. ऐसे विचार उसके मन में पहले कभी नहीं आये थे.

शीला ने पण्डित की नाभि में से अपनी उंगली निकाली.. पण्डित ने अपने थैले से एक लंड के आकार की लकड़ी निकाली लकड़ी बिल्कुल चिकनी थी.. करीब 5 इंच लम्बी और एक इंच मोटी थी.

लकड़ी के अंत में एक छेद था.. पण्डित ने उस छेद में डाल कर मौलि बाँधी.

पण्डित- ये लो.. ये देवलिंग है.

शीला ने देवलिंग को प्रणाम किया.

पण्डित- इस देवलिंग को अपनी कमर में बांध लो.. ये हमेशा तुम्हारे सामने तुम्हारे पेट के नीचे आना चाहिये.
शीला- पण्डित जी.. इससे क्या होगा..?
पण्डित- इससे शिव तुम्हारे साथ रहेगा.. यदि किसी और ने इसे देख लिया तो शिव कुपित हो जाएगा. अतः ये किसी को दिखाना या बताना नहीं है.. और तुम्हें हर समय ये बांधे रखना है.. सोते समय भी.
शीला- जैसा आप कहें पण्डित जी.
पण्डित- लाओ.. मैं बांध दूँ.
दोनों खड़े हो गए.. पण्डित ने वो देवलिंग शीला की कमर में डाला और उसके पीछे आकर मौलि की गाँठ बांधने लगा. इस वक्त उसके हाथ शीला की नंगी कमर को छू रहे थे.

गाँठ लगाने के बाद पण्डित बोला.

पण्डित- अब इस देवलिंग को अन्दर डाल लो.

शीला ने देवलिंग को अपने पेटीकोट के अन्दर कर लिया.. देवलिंग शीला की टांगों के बीच में आ रहा था.

पण्डित- बस.. अब तुम वस्त्र बदल कर घर जा सकती हो.. जो टीका मैंने लगाया है उसे ना हटाना.. चाहे तो घर जा कर साड़ी उतार कर सलवार कमीज़ पहन लेना.. जिससे की तुम्हारी देह पर लगा टीका किसी को दिखे ना..
शीला- परन्तु स्नान करते समय तो टीका हट जायेगा?
पण्डित- उसकी कोई बात नहीं.

शीला कपड़े बदल कर अपने घर आ गई.. उसने टांगों के बीच देवलिंग पहन रखा था.. पूरे दिन वह टांगों के बीच देवलिंग लेकर चलती फिरती रही. देवलिंग उसकी टांगों के बीच हिलता रहा. उसकी चुत के पास की स्किन को टच करता रहा.

रात को सोते वक्त शीला कच्छी नहीं पहनती थी. जब रात को शीला सोने के लिए लेटी हुई थी तो देवलिंग शीला की चूत के सीधे सम्पर्क में था. शीला देवलिंग को दोनों टांगें टाईटली जोड़ कर दबाने लगी.. ऐसा करने से उसे अच्छा लग रहा था. उसे इस वक्त अपने पति के लिंग (पेनिस) की भी याद आ रही थी. उसने सलवार का नाड़ा खोला.. देवलिंग को हाथ में लिया और देवलिंग को हल्के हल्के से अपनी चूत पर दबाने लगी. फिर देवलिंग को अपनी चूत पे रगड़ने लगी.. वह गरम हो रही थी.. तभी उसे ख्याल आया कि शीला, ये तू क्या कर रही है.. देवलिंग के साथ ऐसा करना बहुत पाप है. ये सोच कर शीला ने देवलिंग से हाथ हटा लिया.. सलवार का नाड़ा बाँधा और सोने की कोशिश करने लगी.

तकरीबन आधी रात को शीला की आँख खुली.. उसे अपनी हिप्स के बीच में कुछ चुभ रहा था.. उसने सलवार का नाड़ा खोला.. हाथ हिप्स के बीच में ले गई.. तो पाया कि देवलिंग उसकी हिप्स के बीच में फंसा हुआ था. देवलिंग का मुँह शीला की गांड के छेद से चिपका हुआ था. शीला को पीछे से ये चुभन अच्छी लग रही थी.. उसने देवलिंग को अपनी गांड पर और दबाया, उसे मज़ा आया. अब उसने और दबाया.. तो और मज़ा आया. उसकी गांड में आग सी लगी हुई थी. उसका दिल चाह रहा था कि पूरा देवलिंग गांड के छेद में दबा दे. तभी उसे फिर ख्याल आया कि देवलिंग के साथ ऐसा करना पाप है.. उसने ये भी सोचा कि क्या भगवान शिव मेरे साथ ऐसा करना चाहते हैं. डर के कारण उसने देवलिंग को टांगों के बीच में कर लिया.. नाड़ा बाँधा.. और सो गई.

अगले दिन शीला उसी पिछले रास्ते से पण्डित के पास सलवार कमीज़ पहन कर गई.

पण्डित- आओ शीला.. जाओ दूध से स्नान कर आओ.. और वस्त्र बदल लो..

शीला दूध से नहा कर कपड़े पहन रही थी तो उसने देखा कि आज जोगिया ब्लाउज और पेटीकोट के साथ जोगिया रंग की कच्छी भी पड़ी थी. उसने अपनी कच्छी उतार कर जोगिया कच्छी पहन ली.. और नहा कर बाहर आ गई.

पण्डित अग्नि जला कर बैठा मन्त्र पढ़ रहा था. शीला भी उसके पास आ कर बैठ गई.

पण्डित- शीला.. आज तो तुम्हारे सारे वस्त्र शुद्ध हैं ना..?
शीला थोड़ा शरमा गई..
शीला- जी पण्डित जी..
वह जानती थी कि पण्डित का मतलब कच्छी से है.

पण्डित- तुम चाहो तो वो देवलिंग फिलहाल निकाल सकती हो.

शीला खड़ी होकर देवलिंग की मौलि खोलने लगी.. लेकिन गाँठ काफी टाईट लगी थी.. पण्डित ने ये देखा.

पण्डित- लाओ मैं खोल दूँ.

पण्डित भी खड़ा हुआ.. शीला के पीछे आ कर वो मौलि खोलने लगा.

पण्डित- देवलिंग ने तुम्हें परेशान तो नहीं किया.. खास कर रात में सोने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई..?

शीला कैसे कहती कि रात को देवलिंग ने उसकी गांड के छेद के साथ क्या किया है.

शीला- नहीं पण्डित जी.. कोई परेशानी नहीं हुई.

पण्डित ने मौलि खोली.. शीला ने देवलिंग पेटीकोट से निकाला तो पाया कि मौलि उसके पेटीकोट के नाड़े में उलझ गई थी. शीला कुछ देर कोशिश करती रही लेकिन मौलि नाड़े से नहीं निकली.

पण्डित- शीला.. पूजा में विलम्ब हो रहा है.. लाओ मैं निकाल दूँ.

पण्डित शीला के सामने आया और उसके पेटीकोट के नाड़े से मौलि निकालने लगा.

पण्डित- ये ऐसे नहीं निकलेगा.. तुम ज़रा लेट जाओ.

शीला लेट गई.. पण्डित उसके नाड़े पे लगा हुआ था.

पण्डित- शीला.. नाड़े की गाँठ खोलनी पढ़ेगी.. पूजा में विलम्ब हो रहा है.
शीला- जी.

पण्डित ने पेटीकोट के नाड़े की गाँठ खोल दी.. गाँठ खोलने से पेटीकोट लूज हो गया और शीला की कच्छी से थोड़ा नीचे आ गया.

शीला शर्म से लाल हो रही थी.. पण्डित ने शीला का पेटीकोट थोड़ा नीचे सरका दिया. शीला पण्डित के सामने लेटी हुई थी.. उसका पेटीकोट उसकी कच्छी से नीचे था. मौलि निकालते वक्त पण्डित की कोहनी शीला की चूत के पास लग रही थी. कुछ देर बाद मौलि नाड़े से अलग हो गई.

पण्डित- ये लो.. निकल गई..

पण्डित ने मौलि निकाल कर शीला के पेटीकोट का नाड़ा बांधने लगा.. उसने नाड़े की गाँठ बहुत टाईट बाँधी.. जिससे शीला को दिक्कत हुई.

शीला- अह.. पण्डित जी.. बहुत टाईट है..

पण्डित ने फिर नाड़ा खोला.. और इस बार गाँठ लूज बाँधी.

फिर दोनों चौकड़ी मार के बैठ गए.

पण्डित- अब तुम ये मन्त्र 200 बार पढो.. और उसके बाद शिव की आरती करना है.

जब शीला की मन्त्र और आरती खत्म हो गई तो पण्डित ने कहा.

पण्डित- मैंने कल वेद फिर से पढ़े तो उसमें लिखा था कि स्त्री जितनी आकर्षक दिखे, शिव उतनी ही जल्दी प्रसन्न होते हैं. इसके लिए स्त्री जितना चाहे श्रृंगार कर सकती है.. लेकिन सच कहूँ..
शीला- हाँ कहिये पण्डित जी..
पण्डित- तुम पहले से ही इतनी आकर्षक दिखती हो कि शायद तुम्हें श्रृंगार की आवश्यकता ही ना पढ़े.

शीला अपनी तारीफ़ सुन कर शरमाने लगी.

पण्डित- मैं सोचता हूँ कि तुम बिना श्रृंगार के इतनी सुन्दर लगती हो.. तो श्रृंगार के पश्चात तो तुम बिल्कुल अप्सरा लगोगी.
शीला- कैसी बातें करते हैं पण्डित जी.. मैं इतनी सुन्दर कहाँ हूँ.
पण्डित- तुम नहीं जानती तुम कितनी सुन्दर हो.. तुम्हारा व्यवहार भी बहुत चंचल है.. तुम्हारी चाल भी आकर्षित करती है.

शीला ये सब सुन कर शरमा रही थी.. मुस्कुरा रही थी.. उसे अच्छा लग रहा था.
 
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पण्डित- परम्परा के अनुसार तुम्हारा श्रृंगार पवित्र हाथों से होना चाहिये.. अथवा तुम्हारा श्रृंगार मैं करूँगा.. इसमें तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं?
शीला- नहीं पण्डित जी..
पण्डित- शीला.. मुझे याद नहीं रहा था.. लेकिन जो देवलिंग मैंने तुम्हें दिया था, उस पर पण्डित का चित्र होना चाहिये.. इसलिए इस देवलिंग पे मैं अपनी एक छोटी सी फोटो चिपका रहा हूँ.
शीला- ठीक है पण्डित जी.
पण्डित- और हाँ.. रात को दो बार उठ कर इस देवलिंग को जय करना.. एक बार सोने से पहले.. और दूसरी बार मध्य रात्रि में.
शीला- जी पण्डित जी..

पण्डित ने देवलिंग पर अपनी एक छोटी सी फोटो चिपका दी.. और शीला को बांधने के लिए दे दिया.

शीला ने पहले जैसे देवलिंग को अपनी टांगों के बीच बांध लिया..

आज की पूजा खत्म हुई और शीला अपने कपड़े पहन के घर चली आई.. पण्डित से अपनी तारीफ़ सुन कर वो खुश थी.

सारे दिन देवलिंग शीला की टांगों के बीच चुभता रहा.. लेकिन अब ये चुभन शीला को अच्छी लग रही थी.

शीला रात को सोने लेटी तो उसे याद आया कि देवलिंग को जय करना है..

उसने सलवार का नाड़ा खोल कर देवलिंग निकाला और अपने माथे से लगाया. वो देवलिंग पर पण्डित की फोटो को देखने लगी.

उसे पण्डित द्वारा की गई अपनी तारीफ़ याद आ गई.. अब उसे पण्डित अच्छा लगने लगा था.

कुछ देर तक पण्डित की फोटो को देखने के बाद उसने देवलिंग को वहीं अपनी टांगों के बीच में रख दिया और नाड़ा लगा लिया.

देवलिंग शीला की चूत को टच कर रहा था.. शीला ना चाहते हुए भी एक हाथ सलवार के ऊपर से ही देवलिंग पे ले गई.. और देवलिंग को अपनी चूत पे दबाने लगी. साथ साथ उसे पण्डित की तारीफ़ याद आ रही थी.

उसका दिल कर रहा था कि वो पूरा का पूरा देवलिंग अपनी चूत में डाल ले.. लेकिन इसे गलत मानते हुए और अपना मन मारते हुए उसने देवलिंग से हाथ हटा लिया.

आधी रात को उसकी आँख खुली तो उसे याद आया कि देवलिंग को जय करना है.

देवलिंग का सोचते ही शीला को अपने हिप्स के बीच में कुछ लगा.. देवलिंग कल की तरह शीला की हिप्स में फंसा हुआ था.

शीला ने सलवार का नाड़ा खोला और देवलिंग बाहर निकाला.. उसने देवलिंग को जय किया. उस पर पण्डित की फोटो को देख कर दिल में कहने लगी..

ये क्या पण्डित जी.. पीछे क्या कर रहे थे..?

शीला देवलिंग को अपनी हिप्स के बीच में ले गई और अपने गांड पे दबाने लगी. उसे मज़ा आ रहा था लेकिन डर की वजह से वो देवलिंग को गांड से हटा कर टांगों के बीच ले आई.. उसने देवलिंग को हल्का सा चूत पर रगड़ा.. फिर देवलिंग को अपने माथे पे रखा और पण्डित की फोटो को देख कर दिल में कहने लगी, ‘पण्डित जी.. क्या चाहते हो..? एक विधवा के साथ ये सब करना अच्छी बात नहीं..’

फिर उसने वापस देवलिंग को अपनी जगह बांध दिया.. और गरम चूत ही ले के सो गई.

अगले दिन..

पण्डित- शीला.. शिव को सुन्दर स्त्रियाँ आकर्षित करती हैं अत: तुम्हें श्रृंगार करना होगा.. परन्तु नियम के अनुसार ये श्रृंगार शुद्ध हाथों से होना चाहिये.. मैंने ऐसा पहले इसलिए नहीं कहा कि शायद तुम्हें लज्जा आये..
शीला- पण्डित जी.. मैंने तो आपसे पहले ही कहा था कि मैं भगवान के काम में कोई लज्जा नहीं करूँगी.
पण्डित- तो मैं तुम्हारा श्रृंगार खुद अपने हाथों से करूँगा.
शीला- जी पण्डित जी..
पण्डित- तो जाओ.. पहले दूथ से स्नान कर आओ.

शीला दूध से नहा आई.

पण्डित ने श्रृंगार का सारा सामान तैयार कर रखा था.. लिपस्टिक, रूज़, आई-लाइनर, ग्लीमर, बॉडी आयल..

शीला ने ब्लाउज और पेटीकोट पहना था.

पण्डित- आओ शीला..
पण्डित और शीला आमने सामने ज़मीन पर बैठ गए.. पण्डित शीला के बिल्कुल पास आ गया.

पण्डित- तो पहले आँखों से शुरू करते हैं

पण्डित शीला को आई-लाइनर लगाने लगा.

पण्डित- शीला.. एक बात कहूँ..?
शीला- जी कहिये पण्डित जी..
पण्डित- तुम्हारी आँखें बहुत सुन्दर हैं तुम्हारी आँखों में बहुत गहराई है.

शीला शरमा गई..

पण्डित- इतनी चमकीली.. जीवन से भरी.. प्यार बिखेरती.. कोई भी इन आँखों से मन्त्र-मुग्ध हो जाए.

शीला शर्माती रही.. वो कुछ बोली नहीं.. बस थोड़ा मुस्कुरा रही थी.. उसे अच्छा लग रहा था.

आई-लाइनर लगाने के बाद अब गालों पे रूज़ लगाने की बारी आई.

पण्डित ने शीला के गालों पे रूज़ लगाते हुए कहा.

पण्डित- शीला.. एक बात कहूँ.. ?
शीला- जी.. कहिये पण्डित जी..
पण्डित- तुम्हारे गाल कितने कोमल हैं जैसे कि मखमल के बने हों.. इन पे कुछ लगाती हो क्या..?
शीला- नहीं पण्डित जी.. अब श्रृंगार नहीं करती.. केवल नहाते वक्त साबुन लगाती हूँ.

पण्डित शीला के गालों पे हाथ फेरने लगा. इससे शीला शरमा रही थी.

पण्डित- शीला.. तुम्हारे गाल छूने में इतने अच्छे हैं कि शिव का भी इन्हें.. इन्हें..
शीला- इन्हें क्या पण्डित जी..?
पण्डित- शिव का भी इन गालों का चुम्बन लेने को दिल करे.

शीला शरमा गई.. थोड़ा सा मुस्कुराई भी.. अन्दर से उसे बहुत अच्छा लग रहा था.
पण्डित- और एक बार चुम्बन ले तो छोड़ने का दिल ना करे.
गालों पर रूज़ लगाने के बाद अब लिप्स की बारी आई.

पण्डित- शीला.. होंठ (लिप्स) सामने करो.
शीला ने लिप्स सामने करे.
पण्डित- मेरे ख्याल से तुम्हारे होंठों पर गाढ़ा लाल रंग बहुत अच्छा लगेगा.

पण्डित ने शीला के होंठों पे लिपस्टिक लगानी शुरू की.. शीला ने शर्म से आँखें बंद कर रखी थीं.

पण्डित- शीला.. तुम लिपस्टिक होंठ बंद करके लगाती हो क्या.. थोड़े होंठ खोलो..

शीला ने होंठ खोले.. पण्डित ने एक हाथ से शीला की ठोड़ी पकड़ी और दूसरे हाथ से लिपस्टिक लगाने लगा.

पण्डित- वाह.. अति सुन्दर..
शीला- क्या पण्डित जी?
पण्डित- तुम्हारे होंठ.. कितने आकर्षक हैं तुम्हारे होंठ.. क्या बनावट है.. कितने भरे भरे.. कितने गुलाबी..

शीला- आप मज़ाक कर रहे हैं पण्डित जी..
पण्डित- नहीं.. शिव की सौगंध.. तुम्हारे होंठ किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं तुम्हारे होंठ देख कर तो शिव पार्वती के होंठ भूल जाएं.. वह भी ललचा जाएं.. तुम्हारे होंठों का सेवन करें.. तुम्हारे होंठों की मदिरा पिएं..

शीला अन्दर से मरी जा रही थी.. उसे बहुत ही अच्छा फ़ील हो रहा था.

पण्डित- एक बात पूछू?
शीला- पूछिए पण्डित जी..
पण्डित- क्या आज तक तुम्हारे होंठों का सेवन किसी ने किया है?

शीला ये सुनते ही बहुत शर्मा गई.

शीला- एक दो बार.. मेरे पति ने..
पण्डित- केवल एक दो बार..
शीला- वो ज्यादातर बाहर ही रहते थे.
पण्डित- तुम्हारे पति के अलावा और किसी ने नहीं..!
शीला- कैसी बातें कर रहे हैं पण्डित जी.. पति के अलावा और कौन कर सकता है? क्या वो पाप नहीं होता.
पण्डित- यदि विवश हो कर किया जाए तो पाप है, वरना नहीं.. लेकिन तुम्हारे होंठों का सेवन बहुत आनन्ददायक होगा.. ऐसे होंठों का रस जिसने नहीं पिया.. उसका जीवन अधूरा है.

शीला अन्दर ही अन्दर ख़ुशी से पागल हुई जा रही थी.. अपनी इतनी तारीफ़ उसने पहले बार सुनने को मिल रही थी.

फिर पण्डित ने हेयर-ड्रायर निकाला. अब पण्डित ड्रायर से शीला के बाल सुखाने लगा. शीला के बाल बहुत लम्बे थे.

पण्डित- शीला झूठ नहीं बोल रहा.. लेकिन तुम्हारे बाल इतने लम्बे और घने हैं कि शिव इनमें खो जाएंगे.

उसने शीला का हेयर-स्टाइल चेंज कर दिया. उसके बाल बहुत पफी हो गए थे. आई-लाइनर, रूज़, लिपस्टिक और ड्रायर लगाने के बाद पण्डित ने शीला को शीशा दिखाया.
शीला को यकीन ही नहीं हुआ कि वह इतनी सुन्दर भी दिख सकती है.

पण्डित ने वाकयी ही शीला का बहुत अच्छा मेकअप किया था. ऐसा मेकअप देख कर शीला खुद में सनसनी सी फ़ील करने लगी. उसे पता ना था कि वो भी इतनी एरोटिक लग सकती है.

पण्डित- मैंने तुम्हारे लिए खास जड़ीबूटियों का तेल बनाया है.. इससे तुम्हारी त्वचा में निखार आयेगा.. तुम्हारी त्वचा बहुत मुलायम हो जाएगी. तुम अपने बदन पे कौन सा तेल लगाती हो?

शीला ‘बदन’ का नाम सुन के थोड़ा शरमा गई.. सनसनी तो वो पहले ही फ़ील कर रही थी.. ‘बदन’ का नाम सुनके वो और अधिक सनसनी सी फ़ील करने लगी.

शीला- जी.. मैं बदन पे कोई तेल नहीं लगाती.

पण्डित- चलो कोई नहीं.. अब ज़रा घुटनों के बल खड़ी हो जाओ.

शीला अपने घुटनों के बल हो गई.

पण्डित- मैं तुम पर तेल लगाऊंगा.. लज्जा ना करना.
शीला- जी पण्डित जी..

शीला ब्लाउज-पेटीकोट में घुटनों पे थी..

पण्डित भी घुटनों पर हो गया. अब वो शीला के पेट पे तेल लगाने लगा. फिर वो शीला के पीछे आ गया.. और शीला की पीठ और कमर पर तेल लगाने लगा.

पण्डित- शीला तुम्हारी कमर कितनी लचीली है.. तेल के बिना भी कितनी चिकनी लगती है.

पण्डित शीला के बिल्कुल पीछे आ गया.. वे दोनों घुटनों पे थे.

शीला के हिप्स और पण्डित के लंड में मुश्किल से 1 इंच का फ़ासला था. पण्डित पीछे से ही शीला के पेट पे तेल लगाने लगा.

वो उसके पेट पे लम्बे लम्बे हाथ फेर रहा था.

पण्डित- शीला.. तुम्हारा बदन तो रेशमी है.. तुम्हारे पेट को हाथ लगाने में कितना आनन्द आता है.. ऐसा लग रहा है कि शनील की रजाई पे हाथ चला रहा हूँ.

पण्डित पीछे से शीला के और पास आ गया.. उसका लंड शीला के चूतड़ों की दरार को एकदम टच कर रहा था.

अब पण्डित शीला की नाभि में उंगली घुमाने का लगा.

पण्डित- तुम्हारी नाभि कितनी चिकनी और गहरी है.. जानती हो यदि शिव ने ऐसी नाभि देख ली तो वह क्या करेगा?
शीला- क्या पण्डित जी.?
पण्डित- सीधा तुम्हारी नाभि में अपनी जीभ डाले रखेगा.. इसे चूसता और चाटता रहेगा.

ये सुन कर शीला मुस्कुराने लगी. शायद हर लड़की या नारी को अपनी तारीफ़ सुनना अच्छा लगता है.. चाहे तारीफ़ झूठी ही क्यों ना हो.

पण्डित एक हाथ शीला के पेट पे फेर रहा था.. और दूसरे हाथ की उंगली शीला की नाभि में घुमा रहा था.

शीला के पेट पे लम्बे लम्बे हाथ मारते वक्त पण्डित दो तीन उंगलियां शीला के पेट से ऊपर उठता हुआ ब्लाउज के अन्दर भी ले जाता.

तीन चार बार उसकी उंगलियां शीला के मम्मों के निचले हिस्से पर टच हुईं.

शीला गरम होती जा रही थी.

पण्डित- शीला.. अब हमारी पूजा आखिरी चरण में है. परम्परा में कुछ आसन बताए गए हैं.
शीला- आसन.. कैसे आसन पण्डित जी?

पण्डित- अपने शरीर को शुद्ध करने के पश्चात जो स्त्री उस आसन में लेट जाती है.. शिव उससे सदा के लिए प्रसन्न हो जाता है.. लेकिन ये आसन तुम्हें एक पण्डित के साथ लेने होंगे.. परन्तु हो सकता है मेरे साथ आसन लेने में तुम्हें लज्जा आए.
शीला- आपके साथ आसन.. मुझे कोई आपत्ति नहीं है..!
पण्डित- तो तुम मेरे साथ आसन लोगी..?
शीला- जी पण्डित जी..!
पण्डित- लेकिन आसन लेने से पहले मुझे भी बदन पे तेल लगाना होगा.. और ये तुम्हें लगाना है.
शीला- जी पण्डित जी..

ये कह कर पण्डित ने तेल की बोतल शीला को दे दी.. और वो दोनों आमने सामने आ गए. दोनों घुटनों के बल खड़े थे.

शीला ने पण्डित की छाती पे तेल लगाना शुरू किया.

पण्डित ने छाती, पेट और अंडरआर्म्स शेव किये थे.. इसलिए उसकी स्किन बिल्कुल कोमल थी.

शीला पहले भी पण्डित के बदन से आकर्षित हो चुकी थी. आज पण्डित के बदन पे तेल लगाने से उसका बदन और चिकना हो गया. वो पण्डित की छाती, पेट, बाँहें और पीठ पर तेल लगाने लगी.

वह खुद के अन्दर से पण्डित के बदन से लिपटना चाह रही थी. शीला भी पण्डित के पीछे आ गई.. और उसकी पीठ पे तेल मलने लगी. फिर पीछे से ही उसके पेट और छाती पर तेल मलने लगी. शीला के चूचे हल्के हल्के पण्डित की पीठ से टच हो रहे थे. शीला ने भी पण्डित की नाभि में दो तीन बार उंगली घुमाई.

पण्डित- शीला.. तुम्हारे हाथों का स्पर्श कितना सुखदायी है.

शीला कहना चाह रही थी कि पण्डित जी.. आपके बदन का स्पर्श भी बहुत सुखदायी है.. लेकिन शर्म की वजह से ना कह पाई.

पण्डित- चलो.. अब आसन लेते हैं.. पहले आसन में हम दोनों को एक दूसरे से पीठ मिला कर बैठना है.

पण्डित और शीला चौकड़ी मार के और एक दूसरे की तरफ़ पीठ कर के बैठ गए.. फिर दोनों पास पास आए जिससे कि दोनों कि पीठ मिल जाएं.

पण्डित की पीठ तो पहले ही नंगी थी क्योंकि उसने सिर्फ लुंगी पहनी थी. शीला ब्लाउज और पेटीकोट में थी.. उसकी लोवर पीठ तो नंगी थी ही.. उसके ब्लाउज के हुक्स भी नहीं थे, इसलिए ऊपर की पीठ भी थोड़ी सी एक्सपोज्ड थी.

दोनों नंगी पीठ से पीठ मिला कर बैठ गए.

पण्डित- शीला.. अब हाथ जोड़ लो..

पण्डित हल्के हल्के शीला की पीठ को अपनी पीठ से रगड़ने लगा. दोनों की पीठ पे तेल लगा था.. इसलिए दोनों की पीठ चिकनी हो रही थी.

पण्डित- शीला.. तुम्हारी पीठ का स्पर्श कितना अच्छा है.. क्या तुमने इससे पहले कभी अपनी नंगी पीठ किसी की पीठ से मिलाई है..?
शीला- नहीं पण्डित जी.. पहली बार मिला रही हूँ.

शीला भी हल्के हल्के पण्डित की पीठ पे अपनी पीठ रगड़ने लगी.

पण्डित- चलो.. अब घुटनों पे खड़े होकर पीठ से पीठ मिलानी है.

दोनों घुटनों के बल हो गए.

एक दूसरे की पीठ से चिपक गए.. इस पोजीशन में सिर्फ पीठ ही नहीं.. दोनों के हिप्स भी चिपक रहे थे.

पण्डित- अब अपनी बाँहें मेरी बांहों में डाल के अपनी तरफ़ हल्के हल्के खींचो.

दोनों एक दूसरे की बांहों में बांहें डाल के खींचने लगे. दोनों की नंगी पीठ और हिप्स एक दूसरे की पीठ और हिप्स से चिपक गईं.

पण्डित अपने हिप्स शीला के कूल्हों पर रगड़ने लगा. शीला भी अपने चूतड़ पण्डित के कूल्हों पर रगड़ने लगी.

शीला की चूत गरम होती जा रही थी.

पण्डित- शीला.. क्या तुम्हें मेरी पीठ का स्पर्श सुखदायी लग रहा है?

शीला शरमाई.. लेकिन कुछ बोल ही पड़ी.
शीला- हाँ पण्डित जी.. आपकी पीठ का स्पर्श बहुत सुखदायी है.
पण्डित- और नीचे का..?

शीला समझ गई पण्डित का इशारा हिप्स की तरफ़ है.

शीला- अ..ह्ह..हाँ पण्डित जी..

दोनों एक दूसरे के हिप्स को रगड़ रहे थे.

पण्डित- शीला.. तुम्हारे चूतड़ भी कितने कोमल लगते हैं कितने सुडौल हैं. मेरे चूतड़ तो थोड़े कठोर हैं.
शीला- पण्डित जी.. आदमियों के थोड़े कठोर ही अच्छे लगते हैं.
पण्डित- अब मैं पेट के बल लेटूंगा.. और तुम मेरे ऊपर पेट के बल लेट जाना.
शीला- जी पण्डित जी.

पण्डित ज़मीन पर पेट के बल लेट गया और शीला पण्डित के ऊपर पेट के बल लेट गई.

शीला के चूचे पण्डित की पीठ पर चिपके हुए थे.
 
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शीला का नंगा पेट पण्डित की नंगी पीठ से चिपका हुआ था. शीला खुद ही अपना पेट पण्डित की पीठ पे रगड़ने लगी.

पण्डित- शीला.. तुम्हारे पेट का स्पर्श ऐसे लगता है जैसे कि मैंने शनील कि रजाई ओढ़ ली हो.. और एक बात कहूँ.

शीला अब गर्म हो चली थी वो चुदास भरे स्वर में बोली- स्स.. कहिए ना पण्डित जी..

पण्डित- तुम्हारे स्तनों का स्पर्श तो..

शीला अपने मम्मों को और भी मस्ती से पण्डित की पीठ पे रगड़ने लगी.

शीला- तो क्या पण्डित जी?
पण्डित- मदहोश कर देने वाला है.. तुम्हारे स्तनों को हाथों में लेने के लिए कोई भी ललचा जाये.
शीला- स्सह्ह..
पण्डित- अब मैं सीधा लेटूंगा और तुम मुझ पर पेट के बल लेट जाना.. लेकिन तुम्हारा मुँह मेरे चरणों की ओर और मेरा मुँह तुम्हारे चरणों की तरफ़ होना चाहिये.

पण्डित पीठ के बल लेट गया और शीला पण्डित के ऊपर पेट के बल लेट गई.

शीला की टांगें पण्डित के चेहरे की तरफ़ थीं. शीला की नाभि पण्डित के लंड पर थी.. वह उसके सख्त लंड को गड़ता सा महसूस कर रही थी.

पण्डित शीला की संगमरमरी टांगों पे हाथ फेरने लगा.

पण्डित- शीला.. तुम्हारी टांगें कितनी अच्छी हैं.

पण्डित ने शीला का पेटीकोट ऊपर चढ़ा दिया और उसकी जांघें मसलने लगा.

उसने शीला की टांगें और फैला दीं. अब शीला की पेंटी साफ़ दिख रही थी.

पण्डित शीला की चूत के पास हल्के हल्के हाथ फेरने लगा.

पण्डित- शीला.. तुम्हारी जांघें कितनी गोरी और मुलायम हैं.

चूत के पास हाथ लगाने से शीला और भी गरम हो रही थी.

पण्डित- तुम्हें अब तक सबसे अच्छा आसन कौन सा लगा..?
शीला- स्स.. वो.. घुटनों के बल.. पीठ से पीठ.. नीचे से नीचे वाला.
पण्डित- चलो.. अब मैं बैठता हूँ.. और तुम्हें सामने से मेरे कंधों पर बैठना है.. मेरा सिर तुम्हारी टांगों के बीच में होना चाहिये.
शीला- जी..

शीला ने पण्डित का सिर अपनी टांगों के बीच लिया और उसके कंधों पर बैठ गई.

इस पोजीशन में शीला की नाभि पण्डित के होंठों पर आ रही थी.

पण्डित अपनी जीभ बाहर निकाल कर शीला की नाभि में घुमाने लगा. इससे शीला को बहुत मज़ा आ रहा था.

पण्डित- शीला.. आँखें बंद करके बोलो.. स्वाहा..
शीला- स्वाहा..
पण्डित- शीला.. तुम्हारी नाभि कितनी मीठी और गहरी है.. क्या तुम्हें ये वाला आसन अच्छा लग रहा है?
शीला- हाँ.. पण्डित जी.. ये आसन बहुत अच्छा है.. बहुत ही अच्छा अह..
पण्डित- क्या किसी ने तुम्हारी नाभि में जीभ डाली है?
शीला- आह्ह.. नहीं पण्डित जी.. आप पहले हैं.

पण्डित- अब तुम मेरे कंधों पर रह कर ही पीछे की तरफ़ लेट जाओ.. अपने हाथों से ज़मीन का सहारा ले लो.

शीला पण्डित के कंधों का सहारा लेकर लेट गई.

अब पण्डित के होंठों के सामने शीला की चूत थी.

पण्डित धीरे से अपने हाथ शीला के स्तन पे ले गया.. और ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा.

शीला भी यही चाह रही थी.

पण्डित- शीला.. तुम्हारे स्तन कितने भरे भरे हैं बहुत ही अच्छे हैं.
शीला- आह्ह..

शीला ने एक हाथ से अपना पेटीकोट ऊपर चढ़ा दिया और अपनी चूत को पण्डित के होंठों पे लगा दिया.

पण्डित कच्छी के ऊपर से ही शीला की चूत पे जीभ मारने लगा.

पण्डित- शीला.. अब तुम मेरी झोली में आ जाओ.

शीला फ़ौरन पण्डित के लंड पे बैठ गई.. उससे लिपट गई.

पण्डित- अह्ह.. शीला.. ये आसन अच्छा है?
शीला- स्स..स..सबसे.अच्छा.. ऊओ पण्डित जी..
पण्डित- ऊह्ह.. शीला.. आज तुम बहुत कामुक लग रही हो.. क्या तुम मेरे साथ काम करना चाहती हो..?
शीला- हाँ पण्डित जी.. स्सस.. मेरी काम अग्नि को शांत कीजिये.. ह्हह्ह.. प्लीज़..पण्डित जी..

पण्डित शीला के मम्मों को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा.. शीला बार बार अपनी चूत पण्डित के लंड पे दबाने लगी.

पण्डित ने शीला का ब्लाउज उतार कर फेंक दिया और उसके निप्पलों को अपने मुँह में ले लिया.

शीला- आअह्ह.. पण्डित जी.. मेरा उद्धार करो.. मेरे साथ काम करो..
पण्डित- बहुत नहाई है मेरे दूध से.. सारा दूध पी जाऊंगा तेरी छातियों का..
शीला- आअह्ह.. पी जाओ.. मैं क्क..कब मना करती हूँ.. पी लो पण्डित जी.. पी लो..

कुछ देर तक दूध पीने के बाद अब दोनों से और नहीं सहा जा रहा था.

पण्डित ने बैठे बैठे ही अपनी लुंगी खोल के अपने कच्छे से अपना लंड निकाला.. शीला ने भी बैठे बैठे ही अपनी कच्छी थोड़ी नीचे कर दी.

पण्डित- चल जल्दी कर..

शीला पण्डित के सख्त लंड पर बैठ गई.. लंड पूरा उसकी चूत में चला गया.

शीला- आअह्हह्हह.. स्वाहा.. कर दो मेरा स्वाहा.. आ..

शीला पण्डित के लंड पे ऊपर नीचे होने लगी. चुदाई ज़ोरों पर शुरू हो गई थी.

पण्डित- आह्हह.. मेरी रानी.. मेरी पुजारन.. तेरी योनि कितनी अच्छी है.. कितनी सुखदायी.. मेरी बांसुरी को बहुत मज़ा आ रहा है.
शीला- पण्डित जी.. आपकी बांसुरी भी बड़ी सुखदायी है.. आपकी बांसुरी मेरी योनि में बड़ी मीठी धुन बजा रही है.
पण्डित- देवलिंग को छोड़.. पहले मेरे लिंग की जय कर ले.. बहुत मज़ा देगा ये तेरे को..
शीला- ऊऊआअ.. प्प.. पण्डित जी.. रात को तो आपके देवलिंग ने न जाने कहां कहां घुसने की कोशिश की!
पण्डित- मेरी रानी.. आअ.. फिकर मत कर.. स्स.. तुझे जहाँ जहाँ घुसवाना है.. मैं घुसाऊंगा.
शीला- आअह्हह्ह.. पण्डित जी.. एक विधवा को.. दिलासा नहीं.. मर्द का बदन चाहिए.. असली सुख तो इसी में है. क्यों.. आआ.. बोलिए ना पण्डित जी.. आऐई..
पण्डित- हांन..आ..

अब शीला लेट गई और पण्डित उसके ऊपर आकर उसे चोदने लगा.

साथ साथ वो शीला के मम्मों को भी दबा रहा था.

पण्डित- आअह्ह.. उस.. आज के लिए तेरा पति बन जाऊँ.. बोल..!
शीला- आऐए.. स्सस.. ई.. हाअन्न.. बन जाओ..
पण्डित- मेरा लिंग आज तेरी योनि को चीर देगा.. मेरी प्यारी शीला..
शीला- आअह्हह.. चीर दो.. आअह्ह.. आह्हह्ह.. चीर दो ना.. आआह्ह..
पण्डित- आअह्हह.. ऊऊऊऊ..

दोनों एक साथ झड़ गए और पण्डित ने सारा वीर्य शीला की चूत के ऊपर झाड़ दिया.

शीला- आह्ह..

अब शीला पण्डित से आँखें नहीं मिला पा रही थी.

पण्डित शीला के साथ लेट गया और उसके गालों को चूमने लगा.

शीला- पण्डित जी.. क्या मैंने पाप कर दिया है?
पण्डित- नहीं शीला.. पण्डित के साथ काम करने से तुम्हारी शुद्धता बढ़ गई है.

कुछ देर दोनों मौन पड़े रहे और फिर शीला कपड़े पहन कर और मेकअप उतार कर घर चली आई.

आज पण्डित ने उसे देवलिंग बांधने को नहीं दिया था.

रात को सोते वक्त शीला देवलिंग को मिस कर रही थी.

उसे पण्डित के साथ हुई चुदाई याद आने लगी. वो मन ही मन में सोचने लगी कि पण्डित जी.. आप बड़े वो हैं, कब मेरे साथ क्या क्या करते चले गए..पता ही नहीं चला.. पण्डित जी.. आपका बदन कितना अच्छा है.. अपने बदन की इतनी तारीफ़ मैंने पहली बार सुनी है. आप यहाँ क्यों नहीं हैं.

शीला ने अपनी सलवार का नाड़ा खोला और अपनी चूत को रगड़ने लगी.

‘पण्डित जी.. मुझे क्या हो रहा है’.. वो ये बुदबुदाते हुए सोचने लगी.

चूत से हाथ की उंगली गांड पे ले गई.. और गांड को रगड़ने लगी.

‘ये मुझे कैसा रोग लग गया है.. टांगों के बीच में भी चुभन.. हिप्स के बीच में भी चुभन.. ओह..’

अगले दिन रोज़ की तरह सुबह 5 बजे शीला मन्दिर आई.. इस वक्त मन्दिर में और कोई नहीं हुआ करता था.

पण्डित ने शीला को इशारे से मन्दिर के पीछे आने को कहा.

शीला मन्दिर के पीछे आ गई.. आते ही शीला पण्डित से लिपट गई.

शीला- ओह.. पण्डित जी..
पण्डित- ओह्ह.. शीला..

पण्डित शीला को होंठों को चूमने लगा.. शीला की गांड दबाने लगा.. शीला भी कसके पण्डित के होंठों को चूम रही थी. तभी मन्दिर का घंटा बजा.. और दोनों अलग हो गए.

मन्दिर में कोई पूजा करने आया था.. पण्डित अपनी चूमा-चाटी छोड़ कर मन्दिर में आ गया.

जब मन्दिर फिर खाली हो गया तो पण्डित शीला के पास आया.

पण्डित- शीला.. इस वक्त तो कोई ना कोई आता ही रहेगा.. तुम वही अपने पूजा के समय पर आ जाना.

शीला अपनी पूजा करके चली आई.. उसका पण्डित को छोड़ने का दिल नहीं कर रहा था.

खैर.. वो 12:45 बजे का इन्तजार करने लगी. ठीक 12:45 बजे वो पण्डित के घर पहुँची.. दरवाज़ा खुलते ही वो पण्डित से लिपट गई.

पण्डित ने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और शीला को लेकर ज़मीन पर बिछी चादर पे ले आया.

शीला ने पण्डित को कस के बांहों में ले लिया.. पण्डित के चेहरे पर किस पे किस किये जा रही थी. अब दोनों लेट गए थे और पण्डित शीला के ऊपर था. दोनों एक दूसरे के होंठों को कस कस के चूमने लगे.

पण्डित शीला के होंठों पे अपनी जीभ चलाने लगा.. शीला ने भी मुँह खोल दिया.. अपनी जीभ निकाल कर पण्डित की जीभ को चाटने लगी.

पण्डित ने अपनी पूरी जीभ शीला के मुँह में डाल दी.. शीला पण्डित के दांतों पर जीभ चलाने लगी.

पण्डित- ओह.. शीला.. मेरी रानी.. तेरी जीभ.. तेरा मुँह तो मिल्क शेक जैसा मीठा है.
शीला- पण्डित जी.. आअ.. आपके होंठ बड़े रसीले हैं, आपकी जीभ शरबत है.. आआह्ह..
पण्डित- ओह्हह.. शीला..

पण्डित शीला के गले को चूमने लगा..

आज शीला सफ़ेद साड़ी-ब्लाउज में आई थी.

पण्डित शीला का पल्लू हटा कर उसके स्तनों को दबाने लगा.. शीला ने खुद ही ब्लाउज और ब्रा को निकाल फेंका.

पण्डित उसके मम्मों पर टूट पड़ा.. उसके निप्पलों को कस कस के चूसने लगा.

शीला- अह्हह्ह.. पण्डित जी.. आराम से.. मेरे स्तन आपको इतने अच्छे लगे हैं.. आऐईए..
पण्डित- हाँ.. तेरे स्तनों का जवाब नहीं रानी.. तेरा दूध कितनी मलाई वाला है.. और तेरे गुलाबी निप्पलों.. इन्हें तो मैं खा जाऊंगा.
शीला- आअह्हह्ह.. अह.. उई.. तो खा जाओ ना.. मना कौन करता है..

पण्डित शीला के निप्पलों को दाँतों के बीच में लेकर दबाने लगा.

शीला- आऐई.. इतना मत काटो.. आह्ह.. वरना अपनी इस भैंस का दूध नहीं पी पाओगे.
पण्डित- ऊओ.. मेरी भैंस.. मैं हमेशा तेरा दूदू पीता रहूँगा.

शीला- उई.. त..आआ.. तो..पी..अह्ह.. लो ना.. निकालो ना मेरा दूध.. खाली कर दो मेरे स्तनों को..

पण्डित कुछ देर तक शीला के स्तनों को चूसता, चबाता, दबाता और काटता रहा.

फिर पण्डित नीचे की तरफ़ आ गया.. उसने शीला की साड़ी और पेटीकोट उसके पेट तक चढ़ा दिए.. उसकी टांगें खोल दीं.

पण्डित- शीला.. आज कच्छी पहनने की क्या ज़रूरत थी!
शीला- पण्डित जी.. आगे से नहीं पहनूँगी.

पण्डित ने शीला की कच्छी निकाल दी.

पण्डित- मेरी रानी.. अपनी योनि द्वार का सेवन तो करा दे..

ये कह कर पण्डित शीला की चूत चाटने लगा.. शीला के बदन में करंट सा दौड़ गया. शीला पहली बार चूत चटवा रही थी.

शीला- आआह्हह्ह.. म.. म्म..म.. मेरी योनि का सेवन कर लो पण्डित जी.. तुम्हारे लिए सारे द्वार खुले हैं.. अपनी शुद्ध जीभ से मेरी योनि का भोग लगा लो.. मेरी योनि भी पवित्र हो जाएगी.. आआह्हह्हह..
पण्डित- आअह्ह.. मज़ा आ गया..
शीला- आअह.. हाँ.. हाँन.. ले लो मज़ा.. एक विधवा को तुमने गरम तो कर ही दिया है.. इसकी योनि चखने का मौका मत गंवाओ.. मेरे पण्डित जी.. आआईई..

पण्डित ने शीला को पेट के बल लिटा दिया.. उसकी साड़ी और पेटीकोट उसके हिप्स के ऊपर चढ़ा दिये. अब वो शीला के हिप्स पे किस करने लगा. शीला के हिप्स थोड़े बड़े थे.. लेकिन बहुत मुलायम थे.

पण्डित- शीला.. मैं तो तेरे चूतड़ पे मर जाऊं.
शीला- पण्डित जी.. आह्ह.. मरना ही है तो मेरे चूतड़ों के असली द्वार पर मरो.. आपने जो देवलिंग दिया था, वो मेरे चूतड़ों के द्वार पे आकर ही फंसता था.

पण्डित- तू फिक्र मत कर.. तेरे हर एक द्वार का भोग लगाऊंगा.

यह कह कर पण्डित ने शीला को घोड़ी बनाया.. और उसकी गांड चाटने लगा.

शीला को इसमें बहुत अच्छा लग रहा था.. पण्डित शीला की गांड के छेद को चाटने के साथ साथ उसकी फुद्दी को रगड़ रहा था.

शीला- आअह्हह.. चलो.. पण्डित जी.. अब स्वाहा कर दो.. ऊस्सशह्ह ह्हह्ह..
पण्डित- चल.. अब मेरा प्रसाद लेने के लिए तैयार हो जा.
शीला- आह्हह.. पण्डित जी.. आज मैं प्रसाद पीछे से लूँगी.
पण्डित- चल मेरी रानी.. जैसे तेरी मर्जी.

पण्डित ने धीरे धीरे शीला की गांड में अपना पूरा लंड डाल दिया.

शीला- आआअहह्ह..
पण्डित- आअह.. शीला प्यारी.. बस कुछ सब्र कर ले.. आह्ह..
शीला- आआह्हह्ह.. पण्डित जी.. मेरे पीछे.. आऐई.. के द्वार में.. आपका स्वागत है.. ऊई..
पण्डित- आअह्ह.. मेरे लंड को तेरा पिछला द्वार बहुत अच्छा लगा है.. कितना टाईट और चिकना है तेरा पीछे का द्वार..
शीला- आअह्हह.. पण्डित जी.. अपने स्कूटर की स्पीड बढ़ा दो.. रेस दो ना.. आअह..

पण्डित ने गांड में धक्कों की स्पीड बढ़ा दी.

फिर शीला की गांड से लंड निकाल कर उसकी फुद्दी में पेल दिया.

शीला- आई माँअ.. कोई द्वार मत छोड़ना.. आआह.. आपकी बांसुरी मेरे बीच के.. आह्ह.. द्वार में क्या धुन बजा रही है..
पण्डित- मेरी शीला.. मेरी रानी.. तेरे छेदों में मैं ही बांसुरी बजाऊंगा.
शीला- आअह्हह्हह.. पण्डित जी.. मुझे योनि में बहुत.. आअह.. खुजली हो रही है.. अब अपना चाकू मेरी योनि पे चला दो.. मिटा दो मेरी खुजली.. मिटाओ ना..

पण्डित ने शीला को लिटा दिया.. और उसके ऊपर आकर अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया. साथ साथ उसने अपनी एक उंगली शीला की गांड में डाल दी.

शीला- आअह्हह्हह.. पण्डित जी.. प्यार करो इस विधवा लड़की को.. अपनी बांसुरी से तेज़ तेज़ धुनें निकालो.. मिटा दो मेरी खुजली.. आहहह्हह्ह.. अ.आ..ए.ए..
पण्डित- आआह्हह्ह.. मेरी रानी..
शीला- ऊऊह्ह्ह.. मेरे राज्जाअ.. और तेज़.. औऊर्रर तेज.. आआह्हह.. अन्दर.. और अन्दर आज्जजाआ.. आअह्ह.. प्पप.. स.स..स..
पण्डित- आह्हह.. ओह्हह.. शीला.. प्यारी.. मैं छूटने वाला हूँ.
शीला- आअहह्ह.. मैं भी.. आआ.. ई.. ऊऊऊ.. अन्दर ही.. गिरा.. द.. दो अपना.. प्रसाद..
पण्डित- आह्हह..
शीला- आआह्हह्हह.. अ..अह.. अह.. अह.. अह..

स्वाहा.. चुद गई चुत और हो गया कल्याण.

समाप्त
 
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शीला का नंगा पेट पण्डित की नंगी पीठ से चिपका हुआ था. शीला खुद ही अपना पेट पण्डित की पीठ पे रगड़ने लगी.

पण्डित- शीला.. तुम्हारे पेट का स्पर्श ऐसे लगता है जैसे कि मैंने शनील कि रजाई ओढ़ ली हो.. और एक बात कहूँ.

शीला अब गर्म हो चली थी वो चुदास भरे स्वर में बोली- स्स.. कहिए ना पण्डित जी..

पण्डित- तुम्हारे स्तनों का स्पर्श तो..

शीला अपने मम्मों को और भी मस्ती से पण्डित की पीठ पे रगड़ने लगी.

शीला- तो क्या पण्डित जी?
पण्डित- मदहोश कर देने वाला है.. तुम्हारे स्तनों को हाथों में लेने के लिए कोई भी ललचा जाये.
शीला- स्सह्ह..
पण्डित- अब मैं सीधा लेटूंगा और तुम मुझ पर पेट के बल लेट जाना.. लेकिन तुम्हारा मुँह मेरे चरणों की ओर और मेरा मुँह तुम्हारे चरणों की तरफ़ होना चाहिये.

पण्डित पीठ के बल लेट गया और शीला पण्डित के ऊपर पेट के बल लेट गई.

शीला की टांगें पण्डित के चेहरे की तरफ़ थीं. शीला की नाभि पण्डित के लंड पर थी.. वह उसके सख्त लंड को गड़ता सा महसूस कर रही थी.

पण्डित शीला की संगमरमरी टांगों पे हाथ फेरने लगा.

पण्डित- शीला.. तुम्हारी टांगें कितनी अच्छी हैं.

पण्डित ने शीला का पेटीकोट ऊपर चढ़ा दिया और उसकी जांघें मसलने लगा.

उसने शीला की टांगें और फैला दीं. अब शीला की पेंटी साफ़ दिख रही थी.

पण्डित शीला की चूत के पास हल्के हल्के हाथ फेरने लगा.

पण्डित- शीला.. तुम्हारी जांघें कितनी गोरी और मुलायम हैं.

चूत के पास हाथ लगाने से शीला और भी गरम हो रही थी.

पण्डित- तुम्हें अब तक सबसे अच्छा आसन कौन सा लगा..?
शीला- स्स.. वो.. घुटनों के बल.. पीठ से पीठ.. नीचे से नीचे वाला.
पण्डित- चलो.. अब मैं बैठता हूँ.. और तुम्हें सामने से मेरे कंधों पर बैठना है.. मेरा सिर तुम्हारी टांगों के बीच में होना चाहिये.
शीला- जी..

शीला ने पण्डित का सिर अपनी टांगों के बीच लिया और उसके कंधों पर बैठ गई.

इस पोजीशन में शीला की नाभि पण्डित के होंठों पर आ रही थी.

पण्डित अपनी जीभ बाहर निकाल कर शीला की नाभि में घुमाने लगा. इससे शीला को बहुत मज़ा आ रहा था.

पण्डित- शीला.. आँखें बंद करके बोलो.. स्वाहा..
शीला- स्वाहा..
पण्डित- शीला.. तुम्हारी नाभि कितनी मीठी और गहरी है.. क्या तुम्हें ये वाला आसन अच्छा लग रहा है?
शीला- हाँ.. पण्डित जी.. ये आसन बहुत अच्छा है.. बहुत ही अच्छा अह..
पण्डित- क्या किसी ने तुम्हारी नाभि में जीभ डाली है?
शीला- आह्ह.. नहीं पण्डित जी.. आप पहले हैं.

पण्डित- अब तुम मेरे कंधों पर रह कर ही पीछे की तरफ़ लेट जाओ.. अपने हाथों से ज़मीन का सहारा ले लो.

शीला पण्डित के कंधों का सहारा लेकर लेट गई.

अब पण्डित के होंठों के सामने शीला की चूत थी.

पण्डित धीरे से अपने हाथ शीला के स्तन पे ले गया.. और ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा.

शीला भी यही चाह रही थी.

पण्डित- शीला.. तुम्हारे स्तन कितने भरे भरे हैं बहुत ही अच्छे हैं.
शीला- आह्ह..

शीला ने एक हाथ से अपना पेटीकोट ऊपर चढ़ा दिया और अपनी चूत को पण्डित के होंठों पे लगा दिया.

पण्डित कच्छी के ऊपर से ही शीला की चूत पे जीभ मारने लगा.

पण्डित- शीला.. अब तुम मेरी झोली में आ जाओ.

शीला फ़ौरन पण्डित के लंड पे बैठ गई.. उससे लिपट गई.

पण्डित- अह्ह.. शीला.. ये आसन अच्छा है?
शीला- स्स..स..सबसे.अच्छा.. ऊओ पण्डित जी..
पण्डित- ऊह्ह.. शीला.. आज तुम बहुत कामुक लग रही हो.. क्या तुम मेरे साथ काम करना चाहती हो..?
शीला- हाँ पण्डित जी.. स्सस.. मेरी काम अग्नि को शांत कीजिये.. ह्हह्ह.. प्लीज़..पण्डित जी..

पण्डित शीला के मम्मों को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा.. शीला बार बार अपनी चूत पण्डित के लंड पे दबाने लगी.

पण्डित ने शीला का ब्लाउज उतार कर फेंक दिया और उसके निप्पलों को अपने मुँह में ले लिया.

शीला- आअह्ह.. पण्डित जी.. मेरा उद्धार करो.. मेरे साथ काम करो..
पण्डित- बहुत नहाई है मेरे दूध से.. सारा दूध पी जाऊंगा तेरी छातियों का..
शीला- आअह्ह.. पी जाओ.. मैं क्क..कब मना करती हूँ.. पी लो पण्डित जी.. पी लो..

कुछ देर तक दूध पीने के बाद अब दोनों से और नहीं सहा जा रहा था.

पण्डित ने बैठे बैठे ही अपनी लुंगी खोल के अपने कच्छे से अपना लंड निकाला.. शीला ने भी बैठे बैठे ही अपनी कच्छी थोड़ी नीचे कर दी.

पण्डित- चल जल्दी कर..

शीला पण्डित के सख्त लंड पर बैठ गई.. लंड पूरा उसकी चूत में चला गया.

शीला- आअह्हह्हह.. स्वाहा.. कर दो मेरा स्वाहा.. आ..

शीला पण्डित के लंड पे ऊपर नीचे होने लगी. चुदाई ज़ोरों पर शुरू हो गई थी.

पण्डित- आह्हह.. मेरी रानी.. मेरी पुजारन.. तेरी योनि कितनी अच्छी है.. कितनी सुखदायी.. मेरी बांसुरी को बहुत मज़ा आ रहा है.
शीला- पण्डित जी.. आपकी बांसुरी भी बड़ी सुखदायी है.. आपकी बांसुरी मेरी योनि में बड़ी मीठी धुन बजा रही है.
पण्डित- देवलिंग को छोड़.. पहले मेरे लिंग की जय कर ले.. बहुत मज़ा देगा ये तेरे को..
शीला- ऊऊआअ.. प्प.. पण्डित जी.. रात को तो आपके देवलिंग ने न जाने कहां कहां घुसने की कोशिश की!
पण्डित- मेरी रानी.. आअ.. फिकर मत कर.. स्स.. तुझे जहाँ जहाँ घुसवाना है.. मैं घुसाऊंगा.
शीला- आअह्हह्ह.. पण्डित जी.. एक विधवा को.. दिलासा नहीं.. मर्द का बदन चाहिए.. असली सुख तो इसी में है. क्यों.. आआ.. बोलिए ना पण्डित जी.. आऐई..
पण्डित- हांन..आ..

अब शीला लेट गई और पण्डित उसके ऊपर आकर उसे चोदने लगा.

साथ साथ वो शीला के मम्मों को भी दबा रहा था.

पण्डित- आअह्ह.. उस.. आज के लिए तेरा पति बन जाऊँ.. बोल..!
शीला- आऐए.. स्सस.. ई.. हाअन्न.. बन जाओ..
पण्डित- मेरा लिंग आज तेरी योनि को चीर देगा.. मेरी प्यारी शीला..
शीला- आअह्हह.. चीर दो.. आअह्ह.. आह्हह्ह.. चीर दो ना.. आआह्ह..
पण्डित- आअह्हह.. ऊऊऊऊ..

दोनों एक साथ झड़ गए और पण्डित ने सारा वीर्य शीला की चूत के ऊपर झाड़ दिया.

शीला- आह्ह..

अब शीला पण्डित से आँखें नहीं मिला पा रही थी.

पण्डित शीला के साथ लेट गया और उसके गालों को चूमने लगा.

शीला- पण्डित जी.. क्या मैंने पाप कर दिया है?
पण्डित- नहीं शीला.. पण्डित के साथ काम करने से तुम्हारी शुद्धता बढ़ गई है.

कुछ देर दोनों मौन पड़े रहे और फिर शीला कपड़े पहन कर और मेकअप उतार कर घर चली आई.

आज पण्डित ने उसे देवलिंग बांधने को नहीं दिया था.

रात को सोते वक्त शीला देवलिंग को मिस कर रही थी.

उसे पण्डित के साथ हुई चुदाई याद आने लगी. वो मन ही मन में सोचने लगी कि पण्डित जी.. आप बड़े वो हैं, कब मेरे साथ क्या क्या करते चले गए..पता ही नहीं चला.. पण्डित जी.. आपका बदन कितना अच्छा है.. अपने बदन की इतनी तारीफ़ मैंने पहली बार सुनी है. आप यहाँ क्यों नहीं हैं.

शीला ने अपनी सलवार का नाड़ा खोला और अपनी चूत को रगड़ने लगी.

‘पण्डित जी.. मुझे क्या हो रहा है’.. वो ये बुदबुदाते हुए सोचने लगी.

चूत से हाथ की उंगली गांड पे ले गई.. और गांड को रगड़ने लगी.

‘ये मुझे कैसा रोग लग गया है.. टांगों के बीच में भी चुभन.. हिप्स के बीच में भी चुभन.. ओह..’

अगले दिन रोज़ की तरह सुबह 5 बजे शीला मन्दिर आई.. इस वक्त मन्दिर में और कोई नहीं हुआ करता था.

पण्डित ने शीला को इशारे से मन्दिर के पीछे आने को कहा.

शीला मन्दिर के पीछे आ गई.. आते ही शीला पण्डित से लिपट गई.

शीला- ओह.. पण्डित जी..
पण्डित- ओह्ह.. शीला..

पण्डित शीला को होंठों को चूमने लगा.. शीला की गांड दबाने लगा.. शीला भी कसके पण्डित के होंठों को चूम रही थी. तभी मन्दिर का घंटा बजा.. और दोनों अलग हो गए.

मन्दिर में कोई पूजा करने आया था.. पण्डित अपनी चूमा-चाटी छोड़ कर मन्दिर में आ गया.

जब मन्दिर फिर खाली हो गया तो पण्डित शीला के पास आया.

पण्डित- शीला.. इस वक्त तो कोई ना कोई आता ही रहेगा.. तुम वही अपने पूजा के समय पर आ जाना.

शीला अपनी पूजा करके चली आई.. उसका पण्डित को छोड़ने का दिल नहीं कर रहा था.

खैर.. वो 12:45 बजे का इन्तजार करने लगी. ठीक 12:45 बजे वो पण्डित के घर पहुँची.. दरवाज़ा खुलते ही वो पण्डित से लिपट गई.

पण्डित ने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और शीला को लेकर ज़मीन पर बिछी चादर पे ले आया.

शीला ने पण्डित को कस के बांहों में ले लिया.. पण्डित के चेहरे पर किस पे किस किये जा रही थी. अब दोनों लेट गए थे और पण्डित शीला के ऊपर था. दोनों एक दूसरे के होंठों को कस कस के चूमने लगे.

पण्डित शीला के होंठों पे अपनी जीभ चलाने लगा.. शीला ने भी मुँह खोल दिया.. अपनी जीभ निकाल कर पण्डित की जीभ को चाटने लगी.

पण्डित ने अपनी पूरी जीभ शीला के मुँह में डाल दी.. शीला पण्डित के दांतों पर जीभ चलाने लगी.

पण्डित- ओह.. शीला.. मेरी रानी.. तेरी जीभ.. तेरा मुँह तो मिल्क शेक जैसा मीठा है.
शीला- पण्डित जी.. आअ.. आपके होंठ बड़े रसीले हैं, आपकी जीभ शरबत है.. आआह्ह..
पण्डित- ओह्हह.. शीला..

पण्डित शीला के गले को चूमने लगा..

आज शीला सफ़ेद साड़ी-ब्लाउज में आई थी.

पण्डित शीला का पल्लू हटा कर उसके स्तनों को दबाने लगा.. शीला ने खुद ही ब्लाउज और ब्रा को निकाल फेंका.

पण्डित उसके मम्मों पर टूट पड़ा.. उसके निप्पलों को कस कस के चूसने लगा.

शीला- अह्हह्ह.. पण्डित जी.. आराम से.. मेरे स्तन आपको इतने अच्छे लगे हैं.. आऐईए..
पण्डित- हाँ.. तेरे स्तनों का जवाब नहीं रानी.. तेरा दूध कितनी मलाई वाला है.. और तेरे गुलाबी निप्पलों.. इन्हें तो मैं खा जाऊंगा.
शीला- आअह्हह्ह.. अह.. उई.. तो खा जाओ ना.. मना कौन करता है..

पण्डित शीला के निप्पलों को दाँतों के बीच में लेकर दबाने लगा.

शीला- आऐई.. इतना मत काटो.. आह्ह.. वरना अपनी इस भैंस का दूध नहीं पी पाओगे.
पण्डित- ऊओ.. मेरी भैंस.. मैं हमेशा तेरा दूदू पीता रहूँगा.

शीला- उई.. त..आआ.. तो..पी..अह्ह.. लो ना.. निकालो ना मेरा दूध.. खाली कर दो मेरे स्तनों को..

पण्डित कुछ देर तक शीला के स्तनों को चूसता, चबाता, दबाता और काटता रहा.

फिर पण्डित नीचे की तरफ़ आ गया.. उसने शीला की साड़ी और पेटीकोट उसके पेट तक चढ़ा दिए.. उसकी टांगें खोल दीं.

पण्डित- शीला.. आज कच्छी पहनने की क्या ज़रूरत थी!
शीला- पण्डित जी.. आगे से नहीं पहनूँगी.

पण्डित ने शीला की कच्छी निकाल दी.

पण्डित- मेरी रानी.. अपनी योनि द्वार का सेवन तो करा दे..

ये कह कर पण्डित शीला की चूत चाटने लगा.. शीला के बदन में करंट सा दौड़ गया. शीला पहली बार चूत चटवा रही थी.

शीला- आआह्हह्ह.. म.. म्म..म.. मेरी योनि का सेवन कर लो पण्डित जी.. तुम्हारे लिए सारे द्वार खुले हैं.. अपनी शुद्ध जीभ से मेरी योनि का भोग लगा लो.. मेरी योनि भी पवित्र हो जाएगी.. आआह्हह्हह..
पण्डित- आअह्ह.. मज़ा आ गया..
शीला- आअह.. हाँ.. हाँन.. ले लो मज़ा.. एक विधवा को तुमने गरम तो कर ही दिया है.. इसकी योनि चखने का मौका मत गंवाओ.. मेरे पण्डित जी.. आआईई..

पण्डित ने शीला को पेट के बल लिटा दिया.. उसकी साड़ी और पेटीकोट उसके हिप्स के ऊपर चढ़ा दिये. अब वो शीला के हिप्स पे किस करने लगा. शीला के हिप्स थोड़े बड़े थे.. लेकिन बहुत मुलायम थे.

पण्डित- शीला.. मैं तो तेरे चूतड़ पे मर जाऊं.
शीला- पण्डित जी.. आह्ह.. मरना ही है तो मेरे चूतड़ों के असली द्वार पर मरो.. आपने जो देवलिंग दिया था, वो मेरे चूतड़ों के द्वार पे आकर ही फंसता था.

पण्डित- तू फिक्र मत कर.. तेरे हर एक द्वार का भोग लगाऊंगा.

यह कह कर पण्डित ने शीला को घोड़ी बनाया.. और उसकी गांड चाटने लगा.

शीला को इसमें बहुत अच्छा लग रहा था.. पण्डित शीला की गांड के छेद को चाटने के साथ साथ उसकी फुद्दी को रगड़ रहा था.

शीला- आअह्हह.. चलो.. पण्डित जी.. अब स्वाहा कर दो.. ऊस्सशह्ह ह्हह्ह..
पण्डित- चल.. अब मेरा प्रसाद लेने के लिए तैयार हो जा.
शीला- आह्हह.. पण्डित जी.. आज मैं प्रसाद पीछे से लूँगी.
पण्डित- चल मेरी रानी.. जैसे तेरी मर्जी.

पण्डित ने धीरे धीरे शीला की गांड में अपना पूरा लंड डाल दिया.

शीला- आआअहह्ह..
पण्डित- आअह.. शीला प्यारी.. बस कुछ सब्र कर ले.. आह्ह..
शीला- आआह्हह्ह.. पण्डित जी.. मेरे पीछे.. आऐई.. के द्वार में.. आपका स्वागत है.. ऊई..
पण्डित- आअह्ह.. मेरे लंड को तेरा पिछला द्वार बहुत अच्छा लगा है.. कितना टाईट और चिकना है तेरा पीछे का द्वार..
शीला- आअह्हह.. पण्डित जी.. अपने स्कूटर की स्पीड बढ़ा दो.. रेस दो ना.. आअह..

पण्डित ने गांड में धक्कों की स्पीड बढ़ा दी.

फिर शीला की गांड से लंड निकाल कर उसकी फुद्दी में पेल दिया.

शीला- आई माँअ.. कोई द्वार मत छोड़ना.. आआह.. आपकी बांसुरी मेरे बीच के.. आह्ह.. द्वार में क्या धुन बजा रही है..
पण्डित- मेरी शीला.. मेरी रानी.. तेरे छेदों में मैं ही बांसुरी बजाऊंगा.
शीला- आअह्हह्हह.. पण्डित जी.. मुझे योनि में बहुत.. आअह.. खुजली हो रही है.. अब अपना चाकू मेरी योनि पे चला दो.. मिटा दो मेरी खुजली.. मिटाओ ना..

पण्डित ने शीला को लिटा दिया.. और उसके ऊपर आकर अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया. साथ साथ उसने अपनी एक उंगली शीला की गांड में डाल दी.

शीला- आअह्हह्हह.. पण्डित जी.. प्यार करो इस विधवा लड़की को.. अपनी बांसुरी से तेज़ तेज़ धुनें निकालो.. मिटा दो मेरी खुजली.. आहहह्हह्ह.. अ.आ..ए.ए..
पण्डित- आआह्हह्ह.. मेरी रानी..
शीला- ऊऊह्ह्ह.. मेरे राज्जाअ.. और तेज़.. औऊर्रर तेज.. आआह्हह.. अन्दर.. और अन्दर आज्जजाआ.. आअह्ह.. प्पप.. स.स..स..
पण्डित- आह्हह.. ओह्हह.. शीला.. प्यारी.. मैं छूटने वाला हूँ.
शीला- आअहह्ह.. मैं भी.. आआ.. ई.. ऊऊऊ.. अन्दर ही.. गिरा.. द.. दो अपना.. प्रसाद..
पण्डित- आह्हह..
शीला- आआह्हह्हह.. अ..अह.. अह.. अह.. अह..

स्वाहा.. चुद गई चुत और हो गया कल्याण.

समाप्त
Nice ending
 
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