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Incest माया ऑन्टी और उनकी बेटी के साथ

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Episode - 18

कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा:

'अरे मैंने कंपनी पूछी है…'

तो बोली- 'ह्यूगो बॉस' का है।

तो मैंने भी मुस्कुरा कर बोला- फिर तो फिट है बॉस.. वैसे आज इतना सज-धज के चलोगी तो पक्का दो-चार की जान तो ले ही लोगी।

तो बोली- मुझे तो बस अपने इस आशिक से मतलब है और मैंने तुम्हारी ख़ुशी के लिए ये सब किया है ताकि तुम्हारी पहली डेट को हसीन बना सकूँ।

अब आगे..

मैंने कहा- पर इतना सब करके हम चलेंगे कैसे.. बाइक से तो जमेगा भी नहीं।

तो उसने मुझे कार की चाभी दी और बोली- मुझे तो चलानी आती नहीं.. अगर तुम्हें आती हो तो चलो.. नहीं तो फिर हम बाइक से ही चलते हैं।

तो मैंने उनसे चाभी ली और बोला- यार मैं बहुत अच्छे से चला लेता हूँ..

तो वो कुछ मुस्कुरा कर बोली- हम्म्म बिस्तर पर तो अच्छा चलाते हो.. अब रोड पर भी देख लूँगी।

मैंने उसको एक आँख मारी और फिर मैं और वो चल दिए।

माया ने अपार्टमेंट के गार्ड को चाभी दी और बोला- जाओ कार बाहर ले आओ..

वो काफी समझदार थी.. क्योंकि उसे तो चलानी आती नहीं थी और वो जाती तो कैसे लाती और मेरे साथ अगर बैठ कर निकलती तो उसे और लोग भी नोटिस करते। मैंने उसके दिमाग की दाद तो तब दी..

जब गार्ड गाड़ी लेकर आया तो उसने झट से ही ड्राइविंग सीट के अपोजिट साइड वाला गेट खोला और मुझसे बोली- अभी मुझे देखना है कि तुम कार चलाना सीखे या अपने दोस्त की ही तरह हो.. क्योंकि विनोद केवल काम चलाऊ ही चला पाता है.. आज तक मैंने कभी भी उसे कार चलाते नहीं देखा था।

मैं भी उसकी 'हाँ' में 'हाँ' मिलाते हुए बोला- आंटी ये बात है.. तो आप बैठिए और आज मैं ही पूरी ड्राइविंग करूँगा और उसे एक आँख मार कर गाड़ी में बैठने लगा।

तो गार्ड बोला- मैडम आप रिस्क क्यों ले रही हैं.. आप ही ले जाइए न..

तो आंटी बोली- अरे बच्चे को मौका नहीं मिलेगा तो सीखेगा कैसे?

फिर मैंने गाड़ी स्टार्ट की और चल दिया.. कुछ दूर पहुँचते ही उनसे गुस्से में बोला- मैं अभी बच्चा हूँ।

तो बोली- तो क्या कहती उससे कि मेरा पति है.. और तुमने भी मुझे आंटी बुलाया था.. समझो बात बराबर।

तो मैंने बोला- अरे कोई दूसरा न सुने.. इसलिए मैं आंटी-आंटी कह रहा था.. ऐसे तो माया ही बुलाता हूँ..

'अरे तो मैंने भी इसी लिए बोला था.. ताकि किसी को शक न हो।'

तो मैंने बोला- आप नाम भी ले सकती थी।

'अरे बाबा
सॉरी.. मुझे माफ़ कर दे.. गलती हो गई और रोड पर ध्यान दे।'

फिर वो मुझसे बोली- वैसे हम डिनर पर कहाँ चल रहे हैं?

तो मैंने बोला- जहाँ आप सही समझो।

उसने बोला- अब तेरी पहली डेट को कुछ स्पेशल तरीके से बनानी है.. तो कुछ स्पेशल करते हैं। एक काम करो लैंडमार्क चलते हैं।

तो मैंने बोला- इतना मेरा बजट नहीं है.. किसी सस्ते और अच्छे होटल में चलते हैं।

तो वो मेरे गालों पर प्यार भरी चुटकी लेकर बोली- यार तू कितना भोला है.. मैं इसी कारण तुझ पर मरने लगी हूँ.. पर अभी मैं जैसा बोलती हूँ.. वैसा ही करो, नहीं तो मुझे बुरा लगेगा।

तो मैंने बोला- पर मेरी एक शर्त है।

बोली- कैसी?

मैंने बोला- जो भी बिल होगा उसे मैं ही दूँगा.. अभी मेरे पास 2500 रूपए के आस-पास हैं तो मैं आपको 2000 रूपए दे रहा हूँ और आगे जितना भी होगा उसे आपको मैं जब बाद में दूँगा तो आप ले लोगी।

उन्होंने बोला- यार ये क्या.. मैं तुमसे प्यार करती हूँ.. ऐसा नहीं कर सकती.. मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है।

मैंने भी बोला- वो सब ठीक है.. पर मेरी इच्छा है कि मैं भी अपनी गर्ल-फ्रेण्ड को पहली डेट पर अपने पैसों पर ले जाऊँ।

मेरे मुँह से गर्ल-फ्रेण्ड शब्द अपने लिए सुन कर उसकी आँखों में खुशी के आंसू आ गए.. जिसे मैंने भांप लिया और बोला- देखो अब रोने न लगना.. नहीं तो चेहरा अच्छा न लगेगा और मेकअप भी ख़राब हो जाएगा।

मेरी इस प्रतिक्रिया पर उसने मेरे गालों पर एक चुम्मी जड़ दी और मेरा हाथ जो कि गेयर पर था उसके ऊपर अपना हाथ रख कर मुझसे प्यार भरी बातें करने लगी।

बातों ही बातों में कब उसने अपना हाथ उठा कर मेरी जांघ पर रख कर सहलाना चालू कर दिया.. मुझे पता ही न चला।

ये सब कुछ मेरे साथ इतने रोमांटिक तरीके से मेरे साथ पहली बार हो रहा था।

मुझे तब होश आया जब उनके हाथ ने मेरी जींस के ऊपर से ही मेरे लौड़े पर दाब देना चालू किया।

यार क्या एहसास था.. बस यही लग रहा था कि ये समय यहीं रूक जाए..

खैर.. हम तब तक लैंडमार्क के पास पहुँच गए तो मैंने उन्हें ठीक से बैठने के लिए बोला और होटल के एंट्री-गेट पर उन्हें उतार कर गाड़ी पार्किंग में लगाने चला गया।

वहाँ मुझे मेरे पापा के दोस्त अपनी फैमिली के साथ मिले तो मैं तो उनको देख कर डर ही गया था.. पर 'थैंक गॉड' कि वो वहाँ से जा रहे थे।

किसी की बर्थ-डे पार्टी में आए थे.

उन्होंने मुझसे बात की, तो मैंने बोला- अरे मैं यहाँ बाजार में आया था बाहर पार्किंग फुल थी तो मेरे दोस्त ने बोला अन्दर ही पार्क कर दो.. उसकी ये नई कार है।

इसलिए तो वो बोले- ठीक किया.. अच्छा मैं चलता हूँ।

वो इतना कह कर जब चले गए.. तब जाकर जान में जान आई।

खैर.. मैं आप लोगों को बता दूँ कि इस होटल के बगल में कानपुर की एक बड़ा बाजार है.. जहाँ हर तरह के फैशन एशेशरीज मिलती हैं और शाम को भीड़ के कारण गाड़ी पार्किंग की समस्या यहाँ आम बात है और गलत जगह गाड़ी पार्क करने पर पुलिस उठा ले जाती है।

अब मैं अपनी कहानी पर आता हूँ।

फिर जब मैं एंट्री-गेट पर पहुँचा तो माया बोली- क्यों क्या हुआ.. बड़ा समय लगा दिया तुमने?

तो मैंने उसे पूरा वाकिया बता दिया.. जो उधर हुआ था।

तो माया बोली- चलो बढ़िया हुआ.. यहीं मिल गए.. अब हम चलते हैं।

फिर हम लोग अन्दर गए और लिफ्ट से फ़ूड कोर्ट वाली फ्लोर पर पहुँच गए। वहाँ पर हम लोगों ने एक कपल सीट ली.. वैसे तो वीकेंड पर सीट मिलना कठिन रहता है.. पर उस दिन कोई ख़ास भीड़ नहीं थी।

फिर वेटर आया और मेनू देकर चला गया तो मैंने माया से बोला- जो तुम्हें पसंद हो.. वो मंगवा लो। आज तुम्हारे मन का ही खाऊँगा।

तो माया ने वेटर को बुलाया और उसे आर्डर दिया और स्टार्टर में पनीर टिक्का मंगवाया।


कहानी जारी रहेगी।
 
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अब तक की कहानी में आपने पढ़ा..

उस दिन कोई ख़ास भीड़ नहीं थी फिर वेटर आया और मेनू देकर चला गया तो मैंने माया से बोला- जो तुम्हें पसंद हो वो मंगवा लो.. आज तुम्हारे मन का ही खाऊँगा।

तो माया ने वेटर को बुलाया और उसे आर्डर दिया और स्टार्टर में पनीर टिक्का मंगवाया।

अब आगे…

आज ये मेरी जिंदगी का पहला दिन था.. जब मैं किसी को इस तरह डिनर पर ले गया था.. वो भी इतनी हसीन लड़की को.. क्योंकि वो औरत लग ही नहीं रही थी।

मुझे बहुत अच्छा लग रहा था..

हम लोग एक-दूसरे के हाथों को सहलाते हुए एक-दूसरे से बात कर रहे थे कि तभी वेटर पनीर टिक्का और कोल्ड ड्रिंक देकर चला गया.. जिसे हम लोगों ने खाया और एक-दूसरे को अपने हाथों से भी खिलाया।

तब तक हमारा खाना भी आ चुका था, फिर हम लोगों ने खाना खाया और मैं फिनिश करके वाशरूम चला गया।

इसी बीच माया ने मुझे सरप्राइज़ देने के लिए और मेरे इस दिन को यादगार बनाने के लिए वेटर को बुलाया और उसे शैम्पेन और कुछ स्नैक्स का आर्डर दिया और साथ ही यह भी बोला कि जैसे ही मैं अन्दर आऊँ.. वैसे ही 'ये शाम मस्तानी.. मदहोश किए जाए..' वाला गाना बजा देना।

इधर अब मुझे क्या पता कि माया ने मेरे लिए क्या कर रखा है.. तो मैं जैसे ही अन्दर पहुँचा तो गाना चालू हो गया और रेस्टोरेंट की रोशनी बिल्कुल मद्धिम हो गई.. जो कि काफी रोमांटिक माहौल सा बना रही थी।

मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही न रहा और मैंने जाते ही माया को 'आई लव यू वेरी मच' बोलकर चूम लिया।

जिससे वहाँ मौजूद सभी लोग क्लैपिंग करने लगे… उनको ये लग रहा था कि हम अपनी एनिवर्सरी सेलिब्रेट करने आए हैं.. और लगता भी क्यों नहीं.. आज माया कमसिन जो लग रही थी।

उसने अपना फिगर काफी व्यवस्थित कर रखा था और साथ ही पार्लर वगैरह हर महीने जाती थी जिसकी वजह से उसे देखकर उसकी उम्र का पता लगाना काफी कठिन था।

वो बहुत ही आकर्षक शरीर की महिला थी.. फिर मैंने और उसने 'चीयर्स' के साथ शैम्पेन का एक-एक पैग पिया.. इसके पहले न ही कभी मैंने वाइन पी थी और न ही उसने..

खैर.. एक गिलास से कोई फर्क तो न पड़ा.. पर एक अजीब सा करेंट दोनों के शरीर में दौड़ गया।

खाना अदि खाने के बाद माया ने बिल पे किया जो कि करीब 4200 के आस-पास था और 100 रूपए माया ने वेटर को टिप भी दी। फिर हम दोनों लिफ्ट से नीचे आए और मैं उसे वहीं एंट्री-गेट पर छोड़ कर कार लेने चला गया.

पर जब कार लेकर वापस आया तो माया वहाँ नहीं थी।

मेरे दिमाग में तरह-तरह के सवाल आ रहे थे क्योंकि माया का सर शैम्पेन की वजह से भारी होने लगा था।

मैं बहुत ही घबरा गया कि अब मैं क्या जवाब दूँगा अगर कहीं कुछ हो गया सोचते-सोचते मेरे शरीर में पसीने की बूँदें घबराहट के कारण बहने लगीं।

मैंने चारों ओर नज़र दौड़ाई.. पर मुझे माया नजर नहीं आई।

मैंने उसका फ़ोन मिलाया जो कि नहीं उठा.. तीन-चार बार मिलाने के बाद भी जब फोन नहीं उठा.. तो मैं बहुत परेशान हो गया और सोचने लगा कि अब क्या करूँ.. कहाँ देखूँ..?

मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.. मैं सोच में पड़ गया.. कहीं माया को नशा तो नहीं चढ़ गया.. कहीं उसका कोई फायदा न उठा ले.. तमाम तरह के विचार मन को सताने लगे।

फिर मैंने गाड़ी की चाभी गेटमेन को गाड़ी पार्क करने के लिए दी.. और अन्दर चला गया।

वहाँ एक रिसेप्शनिस्ट बैठी हुई थी तो मैंने उससे घबराते हुए पूछा- अभी क्या कोई लेडी अन्दर आई है?

तो वो मेरी घबराहट को देखकर हँसते हुए बोली- अरे सर आप थोड़ा रिलैक्स हो जाइए.. लगता है मैडम से आप कुछ ज्यादा ही प्यार करते हैं।

यह कहते हुए उसने अपनी सीट पर रखे पानी के गिलास को मुझे दिया।

पानी पीकर मैं भी थोड़ा नार्मल हुआ और उससे पूछा- वैसे वो है कहाँ?

तो वो बोली- मेम ने लगता है पहली बार पी थी.. जिसकी वजह से उनको उलटी और चक्कर आ रहे थे.. तो वो वाशरूम में हैं…

तो मैं भी उसकी हालत को समझते हुए वाशरूम जाने लगा ताकि उसकी कुछ मदद कर सकूँ.. पर मैं जैसे ही उधर की ओर बढ़ा तो उस लड़की ने बोला- सर वो कॉमन वाशरूम नहीं है आप लेडीज़ वाशरूम में नहीं जा सकते।

तो मैंने चिंता जताते हुए उससे पूछा- जब उसकी ऐसी हालत है तो उसे मदद की जरूरत होगी।

बोली- आपको फ़िक्र करने की कोई जरुरत नहीं है.. मैडम के साथ लेडीज सर्वेंट भी उनकी हेल्प के लिए गई है। तब जाकर मुझे कुछ राहत की सांस मिली.. तब तक माया वहाँ आ चुकी थी।

उसको देखते ही रिसेप्सनिस्ट लड़की ने बोला- मेम आप बहुत लकी हो जो आपको इतना चाहने वाला कोई मिला।

अब उसे क्या पता कि दाल में कितना नमक है..

खैर.. वो माया को बोली- आपके अचानक अन्दर आ जाने पर सर बहुत परेशान से हो गए थे.. उनकी हालत तो देखने वाली थी.. लगता है आपको कुछ ज्यादा ही प्यार करते हैं।

तो माया मुस्कुरा कर मेरे पास आई और मेरे हाथ पकड़ कर बोली- तुम इतनी जल्दी क्यों परेशान हो जाते हो? तो मैंने बोला- तुम बिना बताए अचानक यहाँ आ गईं और मुझे नहीं दिखीं.

तो मेरा परेशान होना तो लाजिमी है।

उसने मुझसे 'सॉरी' बोलते हुए कहा- यार मेरी कंडीशन ही ऐसी हो गई थी कि मैं क्या करती?

मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ?

फिर मैंने बोला- चलो कोई बात नहीं.. अब तुम ठीक हो न?

तो उसने 'हाँ' में सर हिलाया.. फिर हम दोनों बाहर आए और गेटमैन से गाड़ी मंगवाई और घर की ओर चल दिए।

रास्ते में मैंने उससे पूछा- माया जब तुम शैम्पेन बर्दास्त नहीं कर सकती थीं तो पीने की क्या जरुरत थी?

तो वो बोली- मैं तो बस तुम्हें वो सब देने के लिए ऐसा कर रही थी.. जो आजकल की लड़कियाँ करती हैं।

मैंने भी उसके इस प्यार का जवाब माया 'आई लव यू.. वेरी मच' बोलकर दिया।

जिस पर माया के चेहरे की ख़ुशी दुगनी हो गई और आँखों में एक अजीब सी चमक साफ़ दिखने लगी।

शायद वो अपने तन-मन से मुझे बहुत चाहने लगी थी.. उसने भी अपना एक हाथ मेरी जांघ पर रख दिया और बोली- राहुल सच में.. तुम भी मुझसे प्यार तो करते हो न..

मैंने भी 'हाँ' में जवाब दिया.. तो बोली- राहुल मैं तुम्हें वो सारी खुशियाँ दूँगी जिसके तुम हकदार हो.. तुम जैसा चाहोगे मैं वैसा ही करुँगी.. पर मेरे लिए अपने दिल में हमेशा यूँ ही जगह बनाए रखना.. वरना मेरा क्या होगा।

यह कहते हुए वो अपने हाथों को मेरी जाँघों में फिराने लगी।

जिससे मेरा जोश बढ़ने लगा.. मुझे उसका इस तरह से छूना बहुत ही आनन्ददायक लग रहा था।

मैं भी उसके स्पर्श का मज़ा लेते हुए उससे रोमांटिक बातें करने लगा और घर जाने के लिए मैंने लम्बा वाला रास्ता पकड़ लिया ताकि इस रोमांटिक समय को और ज्यादा देर तक एन्जॉय किया जा सके।

मेरे लम्बे रास्ते की ओर गाड़ी घुमाते ही माया मुस्कुराकर मुझसे बोली- क्या बात है.. तुमने लम्बा रास्ता क्यों पकड़ लिया?

तो मैंने उसे बताया- तुम्हारे साथ इस पल को और लम्बा बनाना चाहता था.. बस इसीलिए।

फिर माया मेरी ओर थोड़ा खिसक आई और मेरे लौड़े को जींस के ऊपर से ही रगड़ने मसलने लगी। उसकी इस हरकत से मेरे कल्लू नवाब को एक पल बीतते ही होश आ गया और वो अन्दर ही अन्दर अकड़ने लगा.. मानो जिद कर रहा हो कि बस अब मुझे आज़ाद कर दो। माया ने जब मेरे लण्ड का कड़कपन अपनी हथेलियों में महसूस किया.. तो उसने मेरी जींस की ज़िप खोल दी और अन्दर हाथ घुसेड़ कर लण्ड को मुट्ठी में भरते हुए निकालने लगी.

पर इतनी आसानी से वो कहाँ निकलने वाला था।

इस वक़्त वो अपने पूरे होश ओ हवाश में खड़ा हो चुका था। वो उस वक़्त इतना सख्त हो चुका था कि मेरी वी-शेप की चड्डी में नहीं मुड़ पा रहा था।

माया ने कई बार उसे दबा कर एक बगल से निकालने का प्रयास किया.. पर जब वो न निकाल पाई तो कहने लगी- राहुल क्या बात है.. आज यह मेरा छोटा राहुल लगता है मुझसे नाराज हो गया है.. देखो कितनी देर से मैं इसे देखने के लिए तड़प रही हूँ.. पर यह है कि निकल ही नहीं रहा है।

तो मैंने भी मज़ाक में बोल दिया- अरे ये तुम्हारा राहुल है न.. वो इसे निकाल देगा.. पर तुम्हें इसे मनाना खुद ही पड़ेगा।

तो वो मुस्कुराते हुए बोली- अरे फिर देर कैसी.. एक बार निकाल दो.. फिर देखो.. इसे मैं कैसे प्यार से मनाती हूँ।

तो मैंने भी गाड़ी एक बगल में ली और जींस का बटन खोल कर नीचे सरका दी और अपनी चड्डी को साइड से पकड़ कर अपने सरियानुमा लौड़े को हवा में लहरा दिया।

वो एकदम ऐसा अकड़ा हुआ किसी झंडे की तरह खड़ा था जिसे माया देखकर अपनी मुस्कान न रोक सकी।

वो मेरे लौड़े को हाथ में लेकर उसे प्यार से सहलाने लगी और बोली- अरे वाह.. तू तो हर समय तैयार रहता है.. मुझसे नाराज हो गया था क्या?

जो मेरे निकालने पर नहीं निकल रहा था।

मैं फिर से गाड़ी चलाने लगा.. पर अब रफ़्तार धीमी थी.. ताकि कोई दिक्कत न हो।

उधर माया लगातार मेरे लौड़े को प्यार किए जा रही थी जो कि मेरे अन्दर की कामुकता को बढ़ने के लिए काफी था।

मैंने बोला- ये आज ऐसे नहीं मानेगा..

वो- फिर कैसे?

मैंने बोला- अरे इसे प्यार करो.. चूमो-चाटो.. तब शायद कोई बात बन जाए।

मैंने भी माया का दायां चूचा दबा दिया.. जिसके लिए वो तैयार न थी।

मेरे इस हमले से उसके मुँह से एक दर्द भरी 'आह्ह्ह्ह्ह्' निकल गई और उसने भी जवाब में मेरे लौड़े को कस कर दबा दिया.. जिससे मेरे भी मुख से एक 'आआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह' निकल गई।

फिर उसने अपने होंठों से मेरे गाल पर चुम्बन किया और मेरे लौड़े के टोपे पर अपने होंठों को टिका कर उसे चूसने लगी।

उसकी इतनी मादक चुसाई से मेरे शरीर में कम्पन होने लगा.. मुझसे अब गाड़ी चलाना मुश्किल हो रहा था.. तो मैंने वहीं एक तरफ गाड़ी खड़ी कर दी और एसी ऑन रखा.. हेड-लाइट बंद कर दी.. ताकि कोई समझ न सके कि क्या हो रहा है और रात के समय वैसे भी भीड़ कम ही रहती है और जो होती भी है वो सिर्फ गाड़ी वालों की होती है.

तो कोई डरने वाली बात भी न थी।

फिर मैंने सीट थोड़ा पीछे को मोड़ दिया ताकि माया और मैं आराम से मज़े ले सकें।

फिर माया ने अपनी जुबान और होंठों से मेरे टोपे को थूक से नहलाते हुए दूसरे हाथ से मुठियाने लगी।

मुझे इतना आनन्द आ रहा था कि मैं बता ही नहीं सकता.. ऐसा लग रहा था, जैसे मैं किसी जन्नत में सैर कर रहा हूँ।

फिर उसने धीरे-धीरे मेरे टोपे पर अपनी जुबान चलाई.. जैसे कोई बिल्ली दूध पी रही हो..

उसकी यह हरकत इतनी कामुक थी कि मैंने भी उसके भौंपुओं को हाथ में थाम कर बजाने लगा।

उसकी भी चूत पनिया गई थी और वो मुझसे बोली- प्लीज़ राहुल मुझे यहीं चोद दो.. अब और नहीं रहा जाता मुझसे.. प्लीज़ बुझा दो मेरी आग..

पर इस तरह खुले में मैंने चुदाई करने से मना कर दिया।

खैर वो मेरे समझाने पर मान भी गई थी।

फिर वो मेरे लौड़े को मुठियाते हुए इतने प्यार से चाट रही थी कि मुझे लगा कि अब मैं और ज्यादा देर टिकने वाला नहीं हूँ।

तो मैंने उससे बोला- जान.. बस अब और दूरी नहीं बची है.. मंजिल आने में.. थोड़ा तेज़ चलो।

तो वो मेरे इशारे को समझ गई और मेरे लौड़े को जहाँ तक उससे हो सका उतना मुँह के अन्दर तक ले जाकर अन्दर-बाहर करने लगी और अपने कोमल होंठों से मेरे लौड़े पर अपनी पकड़ मजबूत करने लगी.. जैसे मानो आज सारा रस चूस लेगी।

उसकी इस क्रिया से मेरे मुख से 'सीइइइ.. आआह्ह' की मादक सिसकारियाँ फूटने लगीं।

इतना आनन्द आ रहा था कि मानो मेरा लौड़ा उसके मुख में नहीं बल्कि उसकी चूत में हो.. मैंने भी उसके सर को हाथों से सहलाना चालू कर दिया।

वो इतनी रफ़्तार से मुँह ऊपर-नीचे कर रही थी कि उसके मुँह से सिर्फ 'गूंग्गगुगुगुं' की ध्वनि आ रही थी जो कि मेरी उत्तेजना को बढ़ाने के लिए काफी था।

फिर मैंने उसके सर को कस कर हाथों से पकड़ लिया और अपनी कमर को उठा-उठा कर उसके मुँह में लौड़ा ठूँसने लगा..

जिससे माया की आँखें बाहर की ओर आने लगीं और देखते ही देखते मैंने अपना सारा माल उसके गले के नीचे उतार दिया।

माल निकल जाने के बाद मुझे कुछ होश आया तो मैंने अपनी पकड़ ढीली की..

तो माया ने झट से मुँह हटाया और बोली- यार ऐसे भला कोई करता है.. मुझे तो ऐसा लग रहा था कि थोड़ी देर और ऐसे ही चला तो मेरी जान ही निकल दोगे तुम..

मैंने उसके गालों को चूमा और कहा- अपनी जान को भला मैं कैसे मार सकता हूँ माया डार्लिंग.. थैंक्स।

बोली- अच्छा मेरी हालत खराब करके 'थैंक्स'?

तो मैंने बोला- इसके लिए नहीं.. वो तो उसके लिए बोला जो तुमने आज मेरे लिए किया..

तो माया बोली- जानू ये तो कुछ भी नहीं है.. आज तो मैं तुम्हारे लिए वो करने वाली हूँ जो आज तक मैंने कभी न किसी के साथ किया और न ही इस बारे में कभी सोचा था.. पर राहुल मैं अब वो तुम्हारे लिए करुँगी।

तो मैंने उसे बाँहों में भर लिया और उसकी गर्दन में चुम्बन करते हुए उसे 'आई लव यू आई.. लव यू' बोलने लगा। जिससे माया का दर्द भरा चेहरा फिर से खिलखिलाने लगा और फिर उसने अपनी पर्स से रुमाल निकाल कर मेरे लौड़े अच्छे से पोंछ कर साफ़ किया।

फिर मुझे आँख मारते हुए कहने लगी- जानू अब जल्दी से घर चलो.. मुझे भी अब कुछ चाहिए.. तुम्हारा तो हो गया.. पर मेरे अन्दर की चीटियाँ अभी भी जिन्दा रेंग रही हैं।

तो मैंने उसके बोबे मसल कर कहा- अरे आज रात तेरी सारी चींटियों को रौंद-रौंद कर ख़त्म कर दूँगा.. बस तू घर चल.. फिर देख।

फिर मैंने उतर कर अपनी जींस वगैरह सही से बंद की और घर की ओर चल दिए। करीब दस मिनट में हम अपार्टमेंट पहुँच गए.. वहाँ मैंने गार्ड को गाड़ी पार्क करने के लिए चाभी दी और माया से बोला- आप चलो.. मैं चाभी लेकर आता हूँ।

गार्ड ने कुछ ही देर में गाड़ी पार्क की और चाभी दे कर मुझसे बोला- साहब जी देर बहुत लगा दी आने में?

तो मैंने बोला- हाँ.. वो आंटी के किसी रिश्तेदार के यहाँ पार्टी थी तो इसीलिए।

अब ये तो कह नहीं सकता था कि हॉस्पिटल गया था किसी मरीज़ को देखने क्योंकि हम लोगों के कपड़े साफ़ बता रहे थे कि हम किसी पार्टी या मूवी देखने गए थे।

खैर.. मैंने उससे चाभी ली और कमरे की तरफ चल दिया।

अब आगे क्या हुआ जानने के लिए अगले भाग का इन्तज़ार कीजिएगा।


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अब तक की कहानी में आपने पढ़ा…

फिर मुझे आँख मारते हुए कहने लगी- जानू अब जल्दी से घर चलो.. मुझे भी अब कुछ चाहिए.. तुम्हारा तो हो गया.. पर मेरे अन्दर की चीटियाँ अभी भी जिन्दा रेंग रही हैं।

तो मैंने उसके बोबे मसल कर कहा- अरे आज रात तेरी सारी चींटियों को रौंद-रौंद कर ख़त्म कर दूँगा.. बस तू घर चल.. फिर देख।

फिर मैंने उतर कर अपनी जींस वगैरह सही से बंद की और घर की ओर चल दिए। करीब दस मिनट में हम अपार्टमेंट पहुँच गए.. वहाँ मैंने गार्ड को गाड़ी पार्क करने के लिए चाभी दी और माया से बोला- आप चलो.. मैं चाभी लेकर आता हूँ।

गार्ड ने कुछ ही देर में गाड़ी पार्क की और चाभी दे कर मुझसे बोला- साहब जी देर बहुत लगा दी आने में?

तो मैंने बोला- हाँ.. वो आंटी के किसी रिश्तेदार के यहाँ पार्टी थी तो इसीलिए।

अब ये तो कह नहीं सकता था कि हॉस्पिटल गया था किसी मरीज़ को देखने क्योंकि हम लोगों के कपड़े साफ़ बता रहे थे कि हम किसी पार्टी या मूवी देखने गए थे।

खैर.. मैंने उससे चाभी ली और कमरे की तरफ चल दिया।

अब आगे…

अन्दर जाते ही पहले मेन गेट को लॉक किया और माया को आवाज़ दी- माया कहाँ हो तुम?

तो बोली- मैं रसोई में हूँ।

तो मैंने बोला- अब वहाँ क्या कर रही हो?

बोली- अरे तेरे साथ-साथ मुझे भी अब चाय का चस्का लग गया है और सर भी भारी-भारी सा लग रहा है.. तो मैंने सोचा चाय पी ली जाए।

मैंने भी बोला- चलो अब इस घर में भी मेरी आदतों को ध्यान में रखने वाला कोई हो गया है।

मैं मन ही मन खुश हो गया.. फिर मैंने सोफे पर रखे बैग से अपना लोअर निकाला और सारे कपड़े उतार कर सिर्फ टी-शर्ट और लोअर में आ गया।

अब मेरे बदन पर मात्र तीन ही कपड़े थे लोअर.. हाफ टी-शर्ट और वी-शेप की चड्डी..

फिर मैंने उससे पूछा- कार की चाभी कहाँ रखनी है?

तो बोली- अरे टीवी के नीचे वाली रैक में डाल दो।

मैंने चाभी रखी और टीवी ऑन करके टीवी देखने बैठ गया।

तभी मेरी माँ का फोन आ गया.. मैंने रिसीव किया तो बोलीं- खाना वगैरह खा लिया?

तो मैंने बोला- हाँ माँ.. बस अभी ही खाया है.. वैसे इतनी रात को क्यों फोन किया?

तो बोलीं- बस ऐसे ही तेरे हाल लेने के लिए।

मैंने बोला- माँ इतनी फिक्र मत किया करो.. मैं यहाँ बिल्कुल अपने घर की तरह से ही रह रहा हूँ।

इतने में माया आ गई और चाय देते हुए बोली- अरे विनोद से बात हो रही है क्या?

तो मैं बोला- नहीं मेरी माँ से.

माया ने बोला- अरे मुझे भी बात करवाओ..

तो मैंने उनको फोन दिया और अब बस माया की ही आवाज़ सुन रहा था।

वो बोल रही थी- अरे भाभी जी, आप बिल्कुल चिंता न करें.. इसे भी घर ही समझें.. पर एक बात बताइए.. क्या ये चाय बहुत पीता है?

फिर शांत हो गई..

अब माँ ने जो भी बोला हो..

फिर माया बोली- अरे कोई नहीं जी.. इसी बहाने मैं भी पी लेती हूँ।

वो झूट ही बोल गई.. मुझे भी चाय पीने का शौक है.. इसलिए पूछा।

फिर कहने लगी- वैसे भी कल से इसे मिस करूँगी.. मेरे बच्चे इतना चाय नहीं पीते.. तो मुझे कोई कंपनी देने वाला नहीं मिलेगा।

उधर से माँ ने कुछ कहा होगा।

'अच्छा भाभी जी अब हम रखते हैं।'

फिर माया ने फोन जैसे ही कट किया.. तो मैंने उसे बाँहों में भर कर चुम्बन करते हुए बोलने लगा- झूठी.. माँ से झूठ क्यों बोली.. मुझे भी चाय पसंद है? तो बोली- अरे तो उनसे क्या कहती.. अपने राजाबाबू से सीखी हूँ..

यह कहते हुए उसने आँख मार कर लिपलॉक करके मेरे होंठों को जी भर कर चूसने लगी और मैं भी उसके चूचों को कपड़ों के ऊपर से मसलने लगा.. जिससे उसकी 'आह्ह्ह्हह्ह' निकलने लगी और साँसे भी गति पकड़ने लगीं।

वो मुझसे बोली- जान श्ह्ह्ह्ह इतनी तेज़ से न भींचा करो.. दु:खता है..

फिर वो मुझसे अलग हुई तो मैंने लपक कर उसके हाथों को पकड़ा.. तो बोली- रुको.. पहले कपड़े बदल लूँ और विनोद से भी बात कर लूँ.. फिर हम अपनी लीला में मन को रमायेंगे।

तो मैंने भी उसके बालों के क्लचर को खोल दिया और उसके सर को पकड़ कर गर्दन पर चुम्बन करने लगा।

जिससे माया आंटी का पारा चढ़ने लगा और वो 'श्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह.. बस.. बस्स्स्स्स.. आआह.. रुको भी..यार एक तो पहले ही आग लगी हुई है.. तुम और हवा दे रहे हो.. कपड़े चेंज कर लेने दो.. नहीं तो अगर ख़राब हुए तो रूचि को बहुत जवाब देने पड़ेंगे..'

तो मैंने बोला- ये उसके कपड़े हैं?

बोली- नहीं.. पर मुझे इस तरह की ड्रेस वही दिलाती है.. प्लीज़ अब जाने दो.. बस 5 मिनट और मैं यूँ गई और आई.. तब तक तुम विनोद से हाल-चाल लो ताकि ज्यादा वक्त खराब न हो.. मैं बस अभी आई..

यह कहते हुए मेरे गालों पर चुम्मा लेते हुए चली गई।

मैं मन ही मन बहुत खुश था कि आज मेरी एक अनचाही इच्छा भी पूरी होने वाली है।

तभी फिर मैंने ख्यालों से बाहर आते हुए विनोद को कॉल लगाई तो उधर से रूचि ने फोन उठाया और मेरे बोलने के पहले ही
वो फ़ोन उठाते ही बोलने लगी- मम्मा आई मिस यू सो मच.. लव यू अभी मैं आपकी ही याद करके फोन मिलाने जा रही थी..

फिर जब वो शांत हुई तो कुछ देर मैं भी नहीं बोला.. तो वो हैलो.. हैलो.. करने लगी।

तो मैंने 'उम्म्महह उम्म्ह्ह्ह्ह्ह' करके हल्का सा खांसा.. तो वो समझ गई कि उसने क्या किया..

तो बोली- अरे सॉरी.. मैंने सोचा माँ हैं।

'हम्म..'

'और आप भी कुछ नहीं बोले..'

तो मैंने बोला- अरे तुमने तो मौका ही नहीं दिया.. वर्ना मैं भी कुछ बोल देता।

तो बोली- अरे सॉरी मैं तो भूल ही गई थी कि आप भी हो..

मैंने भी उसे छेड़ते हुए हिम्मत करके बोल ही दिया- आज कुछ सुनकर मन बहुत खुश हो गया..

तो बोली- ऐसा मैंने क्या बोल दिया?

मैंने पूछा- चल छोड़.. ये बताओ विनोद कहाँ है?

तो बोली- अरे भाई तो कोच और प्लेटफॉर्म पता करने गए हैं.. पर आप बताओ न मैंने ऐसा क्या बोल दिया.. जिससे आप को ख़ुशी हुई?

तो मैंने वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए बोल ही दिया- तुम्हारे मुँह से 'आई लव यू' सुनकर..

तो वो बोली- मैंने अपनी माँ के लिए बोला था।

मैंने बोला- होगा माँ के लिए ही सही.. पर तुम्हारे ये शब्द मेरे दिल में घर कर गए.. आई लव यू रूचि..

तो बोली- अरे ये कैसे हो सकता है.. आप मेरे भाई जैसे हो..

और वो या मैं कुछ बोलता कि इधर माया आ गई और उधर विनोद…

फिर मैंने विनोद से ट्रेन की डिटेल पूछी और 'हैप्पी जर्नी' बोल कर माया को फोन दे दिया।

फिर माया विनोद से बात करने लगी और इधर मेरे दिल में उसकी बेटी की प्यारी सी फीलिंग ने हलचल सी मचा रखी थी.. चड्डी के अन्दर ही मेरा लौड़ा उसकी जवानी को महसूस करके फड़फड़ाने लगा था.. जिसे माया बहुत गौर से देख कर मुस्कुरा रही थी.. पर उसे क्या मालूम कि ये किसकी जवानी का करेंट है।

फिर माया ने बोला- अच्छा जब ट्रेन में बैठ जाना.. तो फोन करना ओके..

माया ने फोन काट दिया और मेरे पास आकर मेरे सामान को पकड़ते हुए मेरे होंठों को चूसने लगी।

जैसे उसे मेरे होंठों में शहद का रस मिल रहा हो.. फिर मैं भी उसके होंठों को उसी तरह चूसते हुए अपनी बाँहों में दबोच लिया।

यार कहो चाहे कुछ भी माया में भी एक अजीब सी कशिश थी।

उसका बदन मखमल सा मुलायम और इतना मादक था कि कोई भी बिना पिए ही बहक जाए.

इस समय उसने क्रीम कलर का बहुत ही हल्का और मुलायम सा गाउन पहन रखा था।

उसकी पीठ पर सहलाते समय ऐसा लग रहा था जैसे कि उसने कुछ पहना ही न हो।

उसको मैं अपनी बाँहों में कस कर जकड़ कर जोर-जोर से उसके होंठों का रस चूसने लगा।

उसकी कठोर चूचियाँ मेरे सीने से रगड़ कर साफ़ बयान कर रही थी कि आज वो भी परिंदों की तरह आज़ाद हैं.. इसी मसली-मसला के बीच एक बार फिर से फ़ोन की घंटी बजी।

माया ने विनोद की काल देख कर तुरंत ही फोन रिसीव किया।

शायद वो लोग ट्रेन में बैठ चुके थे। यही बताने के लिए फोन किया था.. पर उसके फ़ोन पर बात करते समय मैं उसके पीछे खड़ा होकर उसकी जुल्फों को एक तरफ करके.. उसकी गर्दन पर चाटते हुए चूमे जा रहा था.. जिससे माया की आवाज़ में कंपकंपी और आँखें बंद होने लगी थीं।

तभी माया अचानक बोली- अरे क्या हो गया..?

तो मैं भी रुक गया कि पता नहीं क्या हो गया.. उधर विनोद क्या बोल रहा था मुझे नहीं मालूम.. पर तभी माया बोली- मना करती हूँ.. ज्यादा उलटी-सीधी चीज़ न खाया करो.. लेकिन तुम लोग मानते कहाँ हो.. खैर जब रूचि आ जाए.. तो बात कराना..

ये कह कर उसने फोन काट दिया और मेरे पूछने पर माया ने बताया- रूचि को उलटी आने लगी है.. उन लोगों ने चाउमिन खाई थी.. जो कि शायद उसे सूट नहीं की..

मैंने पूछा- अब कैसी है?

तो बोली- अभी वो ट्रेन के वाशरूम में है.. आएगी तो फोन करेगी।

फिर मैंने उसे बोला- अरे कोई बात नहीं.. कभी-कभी हो जाता है.. कोई बड़ी बात नहीं.. इसी बहाने उसका पेट भी साफ़ हो गया।

ये कहते हुए मैंने उसके गले में हाथ डाला और कमरे की ओर चल दिया।

माया मेरी पीठ सहलाते हुए बोली- क्या बात है.. आज बड़े मूड में लग रहे हो?

तो मैंने उसकी गांड दबाते हुए बोला- अरे आज मेरी ये इच्छा जो पूरी होने जा रही है..

तो माया बोली- अरे तेरी इस ख़ुशी के आगे ये तो कुछ भी नहीं है.. मैं तो अब तुम्हें इतना चाहने लगी हूँ कि मैं तेरे लिए कुछ भी कर सकती हूँ.. राहुल आई लव यू सो मच..

फिर मैंने उसके पीछे खड़े होकर उसकी गर्दन आगे की ओर झुकाई और उसकी रेशमी जुल्फों को उसके कंधों के एक तरफ करके आगे की ओर कर दिया और फिर उसके पीछे से ही खड़े होकर गर्दन पर चुम्बन करते हुए अपने हाथों को उसके बाजुओं के अगल-बगल से ले जाकर.. उसके मम्मों को सहलाते हुए रगड़ने लगा।

मेरी इस हरकत से माया के अन्दर अजीब से नशे की लहर दौड़ गई और वो अपनी आँखें बंद करके अपने होंठों को दातों से चबाते हुए मदहोशी में सिसियाते हुए लड़खड़ाती आवाज़ में बोलने लगी- श्ह्ह्ह ह्ह अह्ह्ह अह्ह्ह्ह उम्म्म्म्म जानू आई लव यू..


अब आगे क्या हुआ जानने के लिए अगले भाग का इन्तज़ार कीजिएगा।
 
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