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Incest माया ऑन्टी और उनकी बेटी के साथ

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कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा।

मैं भी उनके बगल में जाकर लेट गया और उन्हें अपनी बाँहों में भर कर प्यार करने लगा, जिससे वो भी अपने आप को रोक न पाई और मुझे चूमते हुए बोलने लगी- राहुल आई लव यू.. आई लव यू.. आई लव यू.. मैंने इतना मज़ा पहले कभी भी न लिया था.. इस खेल में, पर तुम तो पूरे खिलाड़ी निकले.. कहाँ थे अभी तक…

वो पागलों की तरह मुझे चूमने और काटने लगी।

अब आगे : फिर से चुम्बनों का दौर शुरू हो चला था जिससे हम दोनों ही मज़े से एक-दूसरे का सहयोग कर रहे थे.. जैसे हम जन्मों से प्यासे रहे हों।

अब मैंने भी समय को ध्यान में रखते हुए देर करना ठीक न समझा क्योंकि मुझे अपने घर से निकले तीन घंटे से ऊपर हो गए थे।

मेरे मन में यह चिंता सता रही थी कि घर वाले फ़ोन कर रहे होंगे जो स्विच ऑफ था.. पता नहीं वो कैसा महसूस कर रहे होंगे और मैं भी उन्हें फोन नहीं कर सकता था..

आंटी के घर से भी नहीं और मेरा तो पहले ही टूट चुका था..

तो मैंने घटनाक्रम को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें चुम्बन करते हुए उनके मम्मों को भी मसलना चालू किया और धीरे-धीरे उनका और मेरा जोश दुगना होता चला गया।

पता नहीं कब हम दोनों के हाथ एक-दूसरे के जननांगों को रगड़ने लगे..

जिससे एक बार फिर से 'आह्ह ऊऊओह्ह ह्ह…' का संगीत कमरे में गूंजने लगा।

मेरा लौड़ा अपने पूर्ण आकार में आ चुका था और उसकी चूत से भी प्रेम रस बहने लगा था।

तभी मैंने देर न करते हुए उनके ऊपर आ गया और उनके मम्मों को रगड़ते और चुम्बन करते हुए अपने लण्ड को उनकी चूत पर रगड़ने लगा.. जिससे माया का जोश और बढ़ गया।

अब वो जोर-जोर से अपनी कमर हिलाते हुए मेरे लौड़े पर अपनी चूत रगड़ने लगी और अब वो किसी भिखारिन की तरह गिड़गिड़ाने लगी- राहुल अब और न तड़पा… डाल दे अन्दर.. और मुझे अपना बना ले..

उसके कामरस से मेरा लौड़ा पूरी तरह भीग चुका था।

फिर मैंने उसकी टांगों को उठाकर अपने कन्धों पर रख लीं, जिससे उसकी चूत का मुहाना ऊपर को उठ गया।

फिर अपने लौड़े से उसकी चूत पर दो बार थाप मारी.. जिससे उसके पूरे जिस्म में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई।

एक जोर से 'आअह्ह्ह्ह्ह' निकालते हुए वो मुझसे बोली- और कितना तड़पाएगा अपनी माया को.. डाल दे जल्दी से अन्दर..

तो मैंने भी बोला- माया का मायाजाल ही इतना अद्भुत है कि इससे निकलने का दिल ही नहीं करता।

मैंने उसके कानों पर एक हल्की सी कट्टू कर ली।

फिर मैंने उसकी चूत के मुहाने पर लौड़े को सैट करके हल्का सा धक्का दिया
तो लण्ड ऊपर की तरफ फिसल गया।

शायद अधिक चिकनाई के कारण या फिर वो काफी दिन बाद चुद रही थी इसलिए..

फिर मैंने उसके मम्मों को पकड़ते हुए बोला- माया जरा मेरी मदद तो करो।

तो उसने मेरे लौड़े को फिर से अपनी चूत पर सैट किया और अपने हाथों से चूत के छेद पर दबाव देने लगी।

अब मैंने भी वक़्त की नजाकत को समझते हुए एक जोरदार धक्का दिया जिससे मेरा लौड़ा उसकी चूत की गहराई में करीब 2 इंच अन्दर जाकर सैट हो गया।

इस धक्के के साथ ही माया के मुँह से एक दर्द भरी आवाज़ निकल पड़ी- आअह्ह्ह्ह्ह्ह श्ह्ह्ह्ह ह्ह्हह्ह…

उसके चेहरे पर दर्द के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे.. तो मैंने उसके पैरों को कन्धों से उतार कर अपने दोनों ओर फैला दिए और झुक कर उसे चुम्बन करते हुए पूछने लगा- क्या हुआ जान.. तुम कहो तो मैं निकाल लेता हूँ.. हम फिर कभी कर लेंगे..

तो माया ने धीरे से अपनी आँखों को खोलते हुए प्यार भरी आवाज़ रुआंसे भाव लेकर मुझसे बोली- काश तुम्हारे जैसा मेरा पति होता.. जो मुझे इतना प्यार देता.. मेरी इज्जत करता.. मेरे दर्द को अपना दर्द समझता.. पर आजकल ऐसा नसीब वाले को ही मिलता है।

फिर मैंने अपनी बात दोहराई- चुदाई हम बाद में कर सकते हैं.. अभी तुमको दर्द हो रहा है.. मुझे क्या मालूम कि इस दर्द के बाद ही असली मज़ा आता है.. तो उन्होंने हँसते हुए बोला- अरे मेरे भोले राजा.. जब काफी दिनों बाद या पहली बार कोई लड़की या औरत लौड़ा अपनी चूत में लेती है.. तो उसे दर्द ही होता है.. फिर थोड़ी देर बाद यही दर्द मीठे मज़े में बदल जाता है और जिसकी चूत का पहली बार उदघाटन होता है.. उसको तो खून भी निकलता है.. किसी को ज्यादा या किसी को कम और एक बात और कभी कभी किसी के नहीं भी बहता है.. पर दर्द खून बहाने वाली लड़कियों की तरह ही होता है।

मैं बहुत खुश हुआ क्योंकि मैं इस मामले में अनाड़ी जो था कि 'एक्सपीरिएंस होल्डर' के साथ चुदाई करने पर चलो कुछ तो ज्ञान प्राप्त हुआ..

मैं उनके चूचों को फिर से चूसने और रगड़ने लगा.. जिससे माया को फिर से आनन्द मिलने लगा। 'आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आआआअह्ह्ह्ह्ह…'

वो सीत्कार की आवाज़ करते हुए अपनी कमर ऊपर को उठाने लगी और बोलने लगी- चल अब दूसरी पारी भी खेल डाल.. डाल दे अपने लौड़े को अन्दर तक..

तो मैंने भी अपने दिमाग और संयम का प्रयोग करते हुए लौड़े को धीरे-धीरे आगे-पीछे करने लगा और बीच-बीच में थोड़ा अन्दर दबाव देकर लौड़े को अन्दर कर देता।

इस तरह मान लो कि जैसे बोरिंग की मशीन काम करती हैं।

उसी मशीन की तरह मैंने उनकी चूत की बोरिंग करते हुए अपने लौड़े को कब उनकी चूत की जड़ तक पहुँचा दिया
उनको एक बार भी दर्द का अहसास न हुआ और अब तो वो मस्तिया कर कमर चलाने लगी।

जब मैंने यह महसूस किया कि अब मेरा लौड़ा माया की चूत में अपनी जगह बना चुका है तो मैंने भी गति बढ़ा दी..

मेरे गति बढ़ाते ही वो मेरी पीठ पर हाथ रगड़ने लगी- आअह्ह आआअह्हह्ह उउउह्ह्ह और जोर से श्ह्ह्ह्हीईईई.. बस ऐसे ही.. करते रहो जान.. बहुत दिनों से ये चूत प्यासी है.. आज बुझा दो इसकी सारी प्यास..

वो मेरे चेहरे पर चुम्बनों की बरसात करने लगी.. जिससे मेरा भी जोश बढ़ने लगा।

वो मेरी पीठ पर नाख़ून रगड़ रही थी.. जिसका पता मुझे बाद में चला। उस समय मैं इतने आनन्द में था कि मुझे खुद अपना होश भी नहीं था। बस मैं हर हाल में उसे और खुद को चरम की ओर ले जाने में लगा हुआ था।

अब उसने अपने पैरों को मेरी कमर पर कस कर नीचे से गाण्ड उठा-उठा कर ठुकाई करवाना चालू दी थी। शायद वो फिर से झड़ने वाली थी। 'हाआंणन्न् हाआआआआआ हाआआआआ राहुल ऐसे ही.. और तेज़ मेरा होने वाला है.. बस ऐसे ही करते रहो..'

वो सिसयाते हुए शांत हो गई और अपने पैरों को फिर से मेरी कमर से हटाकर मेरे दोनों और फैला दिया और आँखें बंद करके निढाल सी हो गई। शायद इतने दिनों बाद इतना झड़ी थी.. जिसकी वजह से वो काफी रिलैक्स फील कर रही थी। मैंने फिर उसके चूचों को जैसे ही छुआ तो उसने ऑंखें खोलीं और मेरी ओर प्यार भरी निगाहों देखते हुए कहने लगी- आई लव यू राहुल.. तुम न होते तो आज मैं इतना ख़ुशी कभी भी न प्राप्त कर पाती..

तो मैंने बोला- अब मुझे भी ख़ुशी दे दो.. मेरा भी होने के करीब है।

वो एक बार फिर से अपनी टांगों को उठाकर मेरा सहयोग देने लगी जिससे मेरा चरमोत्कर्ष बढ़ने लगा और मैंने अपनी रफ्तार बढ़ा कर उनकी ठुकाई चालू कर दी।

उनके चूतरस से रस टपक कर उनकी जांघों के नीचे तक बह रहा था जिससे 'फच्च-फच्च' की आवाजें आने लगी और देखते ही देखते माया भी आनन्द के सागर में गोते लगाने लगी और दोनों ही बिना किसी की परवाह किए आनन्द के साथ सम्भोग का सुखद अनुभव लेते हुए मुँह से आवाज़ करने लगे- आआआआह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह इइइइइइस्स्स्स्स्स्स्स इस्स्स्स्स्स्स्स आआअह आआअह…

इसी के साथ मेरा और माया के प्रेम-सागर का संगम होने लगा।

मैं अपने वीर्य के निकलने के साथ ही साथ अपना शरीर ढीला करके माया की बाँहों में चिपक गया। आज मुझे भी पहली बार बहुत आनन्द मिला था जो मुट्ठ मारने से लाख गुना बेहतर था।

मेरी और उसकी साँसें काफी तीव्र गति से चल रही थीं जिसे सामान्य होने में लगभग दस मिनट लगे।

फिर मैंने उसकी बंद आँखों में एक-एक करके चुम्मी ली और उसे प्यार करते हुए 'आई लव यू' बोला, जो माया को बहुत ही अच्छा लगा।

उसने मुझे फिर से अपनी बाँहों में जकड़ लिया और मुझ पर चुम्मों की बरसात करते हुए 'आई लव यू
आई लव यू.. आई लव यू.. बोलने लगी।

उसकी ख़ुशी का ठिकाना ही न रहा.. जैसे उसकी जन्मों की प्यास मैंने बुझा दी हो।

वो मुझसे चिपकते हुए कहने लगी- आज तक इतना मज़ा मुझे कभी नहीं आया.. जो कि मुझे सिर्फ और सिर्फ तुमसे ही मिला है.. मैंने अपने जीवन में सिर्फ दो ही के साथ सेक्स किया है.. एक मेरा पति और एक तुम..

तो मैंने उनसे बोला- अब इतना बोल ही चुकी हो तो रेटिंग भी दे दो।

उसने बोला- यार तेरा तो 10 में 10 है.. क्योंकि सम्भोग के दौरान पहली बार में दो बार झड़ी और उसके पहले 3 बार झड़ चुकी थी.. तुम में जरूर कोई जादू है और एक मेरा पति है जो सिर्फ ठुकाई से ही शुरू कर देता है.. मुझे अच्छा लग रहा है या नहीं.. इससे उसको कोई लेना-देना नहीं होता.. कभी-कभी तो मुझे कुछ भी नहीं हो पाता बल्कि मेरी चूत में जलन होने लगती है.. पर तेरे साथ तो आज सच में मज़ा आ गया.. अब वादा करो मुझे यूं ही हमेशा अपना बना कर रखोगे।

तो मैंने उनके माथे को चूमते हुए 'हाँ' बोल दिया..

फिर देखा तो हम लोग पिछले लगभग चार घंटों से एक-दूसरे को प्यार करने में लगे थे।

फिर मैं उठा और उसकी पैन्टी से अपने लण्ड को अच्छी तरह से पौंछ कर साफ़ किया।

फिर उसकी चूत की भी सफाई की.. जो कि हम दोनों के कामरस से सराबोर थी।

फिर मैं उठा और अपने कपड़ों को पहनने लगा तो आंटी मुझसे बहुत ही विनम्रता के साथ देखते हुए बोलीं- प्लीज़ आज यहीं रुक जाओ न..


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पिछले चार घंटों से हम दोनों एक-दूसरे को प्यार करने में लगे थे। फिर मैं उठा और उसकी पैन्टी से अपने लण्ड को अच्छी तरह से पौंछ कर साफ़ किया। फिर उसकी चूत की भी सफाई की.. जो कि हम दोनों के कामरस से सराबोर थी।

फिर मैं उठा और अपने कपड़ों को पहनने लगा तो आंटी मुझसे बहुत ही विनम्रता के साथ देखते हुए बोलीं- प्लीज़ आज यहीं रुक जाओ न..

अब आगे..

मैंने बोला- मैं अपने घर में क्या बोलूँगा.. इतनी देर से मैं कहाँ था? और अब मैं कहाँ रहूँगा रात भर.. आप तो इतनी बड़ी और 2 बच्चों की माँ हो.. आप मेरी मज़बूरी को समझ सकती हो.. मैं खुद तुम्हें छोड़ कर जाना नहीं चाहता.. पर क्या करूँ.. मेरे आगे भी मज़बूरी है प्लीज़.. इसे समझो आप कोई लड़की नहीं हो.. एक माँ भी हो.. आप एक माँ-बाप की फीलिंग समझ सकती हो।

तो वो अचानक उठकर बिस्तर से जैसे ही उतरी तो उसके पैरों में इतनी ताकत नहीं बची थी कि वे आराम से खड़ी हो सकें। तो सीधे ही मेरे सीने पर आकर रुक गईं..

मैंने भी उसे संभालते हुए अपनी बाँहों में जकड़ लिया और उसके होंठों पर होंठ रख कर उसके होंठों का रसपान करने लगा।

उसकी आँखों में एक अजीब सी कशिश थी… आज पहली बार मैंने किसी की आँखों में अपने लिए इतना प्यार और समर्पण देखा था। यह कहानी आप XDReams.live पर पढ़ रहे हैं ! उसकी आँखों में आंसू भर आए थे.. जो बस गिरना बाकी थे।

अचानक मेरे दिमाग में एक प्लान आया और मैंने उसे बताया- देखो, अगर तुम मेरे पेरेंट्स से अगर यहाँ रुकने के लिए बोलोगी.. थोड़ा कम अच्छा लगेगा, पर विनोद अगर मेरी माँ से बोलेगा तो ठीक रहेगा।

उसने झट से मेरी 'हाँ' में 'हाँ' मिला दी तो मैंने बोला- ठीक आठ बजे विनोद को बोलना कि वो मेरे नम्बर पर काल करे तो में अपनी माँ से बात करा दूँगा। उसे बस इतना बोलना है कि मेरी माँ आज घर पर अकेली है तो आप राहुल को रात में घर में सोने के लिए भेज दें.. बस बाकी का मैं सम्हाल लूँगा।

इस पर माया चेहरा खिल उठा और वो मुझे प्यार से चुम्बन करने लगी और बोली- तुम तो बहुत होशियार हो।

फिर मुझे याद आया कि मेरा तो सेल-फोन टूट गया है.. तो मैं मन ही मन निराश हो गया।

मेरे चेहरे के भावों को देखकर माया बोली- अब दुखी क्यों हो गए?

तो मैंने उन्हें अपना फोन दिखाते हुए सारी घटना कह सुनाई।

वो हँसते हुए बोली- तुम्हें जब सब पता चल चुका था
तो ड्रामा क्यों कर थे।

मैंने बोला- मेरा फोन खराब हो गया है.. तुम मज़ाक कर रही हो।

तो वो धीरे से उठी और मुझसे बोली- तुम्हारा फोन कितने का था?

मैंने पूछा- क्यों?

बोली- अभी जाकर नया ले लो.. नहीं तो बात कैसे हो पाएगी और अपने पापा से क्या बोलोगे कि नया फ़ोन कैसे टूटा?

फिर मैंने बोला- शायद 6300 का था।

उस समय मेरे पास नोकिया 3310 था मार्केट में नया ही आया था।

तो माया ने मुझे 7000 रूपए दिए और बोली- जाओ जल्दी से फोन खरीद कर फोन करना।

माया का इतना प्यार देखकर मैंने फिर से उसे अपनी बाँहों में लेकर चूमना शुरू कर दिया।

माया बोली- अब तो पूरी रात पड़ी है.. जी भर के प्यार कर लेना.. अभी जाओ जल्दी..

क्या करूँ यार मुझे जाना पड़ा.. पर उसे छोड़ने का मेरा तो मन ही नहीं कर रहा था।

मैं उसके घर से निकल आया।

अब आगे फिर मैं उनके घर से निकल कर मॉल रोड गया और नोकिया सेंटर से एक नया फ़ोन 3310 फिर से ख़रीदा जो की 6150 रूपए का मिला.. मैंने अपना वाला हैंडसेट भी रिपेयरिंग सेंटर में बेच दिया.. क्योंकि उसका मैं क्या करता जिसके मुझे 1500 रूपए मिले।

फिर मैंने माया को अपने नए सेल से कॉल की.. तो उसने फ़ोन उठाते ही 'आई लव यू मेरी जान' कहा..

प्रतिक्रिया में.. मैंने भी वही दोहरा दिया और उसको 'थैंक्स' बोला.. तो वो गुस्सा करने लगी।

बोली- एक तरफ मुझे अपना बनाते हो और दूसरी तरफ एक झटके में ही बेगाना कर देते हो.. क्या जरूरत है तुम्हें 'थैंक्स' बोलने की.. अगर मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगी.. तो मुझे ख़ुशी मिलेगी.. आज के बाद जब कभी भी किसी चीज़ की जरुरत पड़े तो बस कह देना.. बिना कुछ सोचे.. नहीं तो मैं समझूँगी कि तुम मुझे अपना समझते हो।

मुझे उसके इस अपनेपन पर बहुत प्यार आया और मैंने उसे 'आई लव यू' बोल कर फ़ोन पर चुम्बन दे दिया.. जिसके प्रतिउत्तर में माया ने भी मुझे चुम्बन किया।

फिर मैंने 'बाय' बोल कर फ़ोन काटा और अपने घर चल दिया।

मैं जैसे ही घर पहुँचा तो माँ ने सवालों की झड़ी लगा दी- कहाँ थे.. क्या कर थे?

मैं खामोशी से सुन रहा था..

थोड़ी देर बाद जब वे शांत हुईं तो प्यार से बोलीं- तूने कुछ बताया नहीं?

तो मैंने उन्हें बोला- माँ.. अब मैं स्कूल का नहीं.. कालेज का छात्र हूँ और मैं अपने दोस्तों के साथ मूवी देखने गया था.

इस वजह से देर हो गई.. आप प्लीज़ ये पापा को मत बोलना।

वो मान गईं.. अब आप सब समझ ही सकते हो कि माँ अपने बच्चे को बहुत प्यार करती है।

खैर.. जैसे-जैसे समय बीतता गया.. मेरे दिल की भी धड़कनें बढ़ती ही जा रही थी और मेरा लौड़ा भी पैन्ट में टेन्ट बनाए खड़ा था।

फिर जब मैं बाथरूम में जाकर मुट्ठ मार रहा था.. तभी मेरे फोन की रिंग बजी.. जो कि बाहर कमरे में चार्जिंग पर लगा था।

मैं रिंग को नजरअंदाज करते हुए मुट्ठ मारने में मशगूल हो गया और जब मेरा होने ही वाला था.. तभी दोबारा फोन बजा जिसे मेरी माँ ने उठाया और बात की

मैंने पानी से अपने सामान को साफ़ किया और कमरे में पहुँचा.. तो सुना, माँ बोल रही थीं- अरे बेटा, इसमें अहसान की क्या बात है.. मैं अभी राहुल के पापा से बात करके राहुल को भेज दूँगी और वैसे भी उनका आने का समय हो गया है।

यह कहते हुए माँ ने फ़ोन काट दिया और मेरा प्लान सफल होने के कगार पर था।

मुझे उनकी बातों से लग गया था कि वो विनोद से बात कर रही हैं।

फिर माँ से मैंने पूछा- किसका फ़ोन था?

तो उन्होंने बोला- विनोद का।

अभी करीब सवा आठ बजे होंगे।

मैंने पूछा- उसने इतनी रात फ़ोन क्यों किया था?

तो उन्होंने बताया- वो अपनी बहन को पेपर दिलाने बाहर ले गया है और उसकी माँ घर पर अकेले ही हैं.. पापा कहीं बाहर जॉब करते हैं।

तो मैंने पूछा- फिर?

वो बोलीं- कह रहा था कि राहुल को आज और कल रात के लिए घर भेज दीजिएगा क्योंकि हम परसों सुबह तक घर पहुँचेंगे।

तो मैंने बोला- फिर आपने क्या कहा?

बोलीं- अरे इतने दीन भाव से कह रहा था.. तो मैंने बोल दिया उसके पापा आने वाले हैं.. मैं उनसे बात करके भेज दूँगी।

मैंने तपाक से बोला- अगर पापा ने मना कर दिया तो आपकी बात का क्या होगा?

तो बोलीं- अरे वो मुझ पर छोड़ दो.. मैं जानती हूँ.. वो किसी की मदद करने में पीछे नहीं रहते.. फिर तो ये तेरा दोस्त है.. वो कुछ नहीं कहेंगे।

मुझे बहुत ख़ुशी हो रही थी, पर अन्दर ही अन्दर पापा के निर्णय का डर भी था।

तभी दरवाजे की घन्टी बजी.. मैंने गेट खोला तो पापा ही थे।

माँ ने आकर उन्हें पानी दिया और विनोद की बात बताते हुए कहने लगीं- मैंने बोल दिया है.. राहुल को 9 बजे तक भेज दूँगीं।

तो पापा का भी पता नहीं क्या मूड था
उन्होंने भी 'हाँ' कर दी।

फिर क्या था.. मेरे मन में हज़ारों तरह की तरंगें दौड़ने लगीं।

फिर पापा ने मुझे बुलाया और कहने लगे- उसका घर कहाँ है?

तो मैंने बोला- बस पास में ही है..

तो उन्होंने कार की चाभी दी और बोला गाड़ी अन्दर कर दो और फिर चले जाओ।

मेरी माँ बोलीं- अरे यह क्या.. आप इसे उनके घर छोड़ आओ.. आप उनका घर भी देख लोगे.. कहाँ है?

शायद यह माँ की अपने बेटे के लिए चिंता बोल रही थी, तो पापा भी बोले- हाँ.. ये ठीक रहेगा।

तो मैंने बोला- एक मिनट आप रुकिए.. मैं अभी आया।

मैं अपने कमरे में गया और लोअर पहना और टी-शर्ट पहन कर आ गया और अपने पापा के साथ उनके घर पहुँच गया।

फिर पापा उनके घर के बाहर मुझे ड्राप करके वापस चले गए।

मैंने विनोद के घर की घण्टी बजाई।


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पिछली कहानी मैं आपने पढ़ा:

पापा भी बोले- हाँ.. ये ठीक रहेगा।

तो मैंने बोला- एक मिनट आप रुकिए.. मैं अभी आया।

मैं अपने कमरे में गया और लोअर पहना और टी-शर्ट पहन कर आ गया और अपने पापा के साथ उनके घर पहुँच गया।

फिर पापा उनके घर के बाहर मुझे ड्राप करके वापस चले गए।

मैंने विनोद के घर की घण्टी बजाई।

मेरे घण्टी बजाते ही दरवाज़ा खुला.. मुझे ऐसा लगा जैसे माया घंटों से मेरे आने का इंतज़ार कर रही हो। दरवाज़ा खुलते ही मेरी नजर माया पर पड़ी जो कि बला की खूबसूरत लग रही थी।

मैंने आज उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक महसूस की.. जो कि शायद उसकी वर्षों बाद यौन-लालसा की तृप्ति का सन्देश दे रही थी।

फिर मैंने घर के अन्दर प्रवेश किया और दरवाज़ा बंद करके उसको अपनी बाँहों में कैद कर लिया और वो भी मेरे बाँहों में कुछ इस तरह सिमटी की जैसे हम वर्षों के बिछड़े हों।

फिर कुछ देर इसी तरह खड़े रहने के बाद मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए उसकी ढेर सारी तारीफ़ की.. जिससे उसको चरमानन्द प्राप्त हुआ और खुश होकर प्यार से मुझे चुम्बन करते हुए राहुल 'आई लव यू' बोलने लगी।

सच यार… मुझे भी कुछ समझ न आ रहा था कि ये सब सच है या मात्र एक कल्पना…

क्योंकि लड़कियों के बारे में तो सोचना अलग बात होती है, पर जब आपको एक एक्सपीरिएंस्ड औरत गर्ल-फ्रेंड के रूप में मिल जाए और वो भी माया जैसी.. तो जिन्दगी ही बदल जाए।

वो मुझे इस तरह खोया हुआ देखकर बोली- कहाँ खो जाते हो जान..

तो मैंने बोला- तुम हो ही इतनी सुन्दर.. समझ ही नहीं आता कि तुझे प्यार करूँ या तेरे रूप को ही देखता रहूँ।

तो इस पर वो बोली- तुम्हें पूरी छूट है.. कुछ भी करो.. बस मुझे अब छोड़ के न जाना.. वर्ना मैं मर जाऊँगी.. तुम्हें एक पल के लिए भी अपने से दूर नहीं देख सकती।

उसके दिल में शायद मेरे लिए अपने पति से भी ज्यादा प्यार जाग चुका था।

तो मैंने बोला- माया ये सब तो ठीक है.. पर जब मेरे माँ-बाप मेरी शादी कर देंगे तब?

तो वो कहने लगी- मैं भी तो शादीशुदा हूँ.. कोई बात नहीं.. बस अपने दिल से मुझे कभी अलग मत करना.. तुम जो चाहोगे वो मैं दूंगी और जो चाहोगे मैं वैसा ही करुँगी।

तो मैंने उसे फिर से अपनी बाँहों में भर लिया और उसके गालों और आँखों को चूमने लगा।

उसकी ख़ुशी की झलक उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रही थी। फिर मैंने उसके उरोज़ों को मसलना प्रारम्भ कर दिया
जिससे उसकी 'आह' निकलने लगी।

मैंने जैसे ही उसके चूचों को आजाद करने के लिए उसकी कुर्ती उठाई तो वो बोली- जरा सब्र भी करो.. आज तो पूरी रात अपनी है.. जैसे चाहो वैसे प्यार कर लेना.. पहले हम खाना खा लेते हैं।

तो मैंने पूछा- आज क्या बना है?

उन्होंने बोला- तुम्हारे मन का है।

तो मैंने कहा- आपको कैसे पता.. मुझे क्या अच्छा लगता है?

तो वो बोली- उस दिन पार्टी में जब विनोद को बता रहे थे.. तो मैंने सुना था।

फिर मैं बोला- चलो बढ़िया है.. जल्दी लाओ.. आपने तो मेरे पेट की आग को हवा दे दी।

फिर हमने साथ मिलकर छोला-कचौड़ी खाई और खाना खाने के बाद आंटी ने रसोई का काम ख़त्म किया और जल्दी से वो मेरे पास आ गई।

मैं टीवी देख रहा था.. फिर मैंने उससे बोला- मेरी एक आदत और है.. अगर आपको बुरा न लगे तो मेरे लिए एक कप चाय बना दीजिएगा।

दोस्तो, रात के खाने के बाद गरमागरम चाय का अपना एक अलग ही आनन्द होता है और कनपुरियों को चाय तो बचपन से ही पसंद होती है।

तो वो मुस्कुराते हुए अपनी भौंहें तान कर बोली- अरे ये क्या.. मैं भला.. बुरा क्यों मानूंगी.. मुझे तो अपने नवाब का कहना मानना ही पड़ेगा।

तो मैंने बोला- मैं कोई नवाब नहीं हूँ।

बोली- तो क्या हुआ.. शौक तो नवाबों वाले हैं।

फिर वो रसोई गई और मेरे लिए चाय ले आई और मुझे चाय का कप पकड़ाते हुए हँसने लगी।

मैंने कारण पूछा- अब क्या हुआ?

तो बोली- और कोई हुक्म..?

मैंने बोला- यार प्लीज़.. मेरा मजाक मत उड़ाओ नहीं तो मैं नाराज हो जाऊँगा।

वो बोली- अरे ऐसा मत करना.. भला अपनी दासी से कोई नाराज़ होता है.. नहीं न.. बल्कि हुक्म देता है।

मैंने बोला- अच्छा अगर यही बात है.. तो क्या मेरी इच्छा पूरी करोगी?

तो बोली- मैं तो तुम्हारी हर इच्छा पूरी करने के लिए तैयार हूँ।

मैंने बोला- मेरे मन में बहुत दिन से था कि जब मेरी शादी हो जाएगी तो अपनी बीवी को रात भर निर्वस्त्र रखूँगा.. क्या आप मेरे लिए अपने सारे कपड़े उतार सकती हैं।

वो बोली- बस.. इत्ती सी बात.. राहुल मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकती हूँ.. मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ।

यह कहते हुए माया ने एक-एक करके सारे कपड़े निकाल दिए।

उसके जोश और मादकता से भरे शरीर को देखकर मेरे पप्पू पहलवान में भी जान आने लगी और धीरे-धीरे लौड़े के अकड़ने से मेरे लोअर के अन्दर टेंट सा बन गया.

जिसे माया ने देख लिया और मुस्कराते हुए बोली- मेरा असली राजकुमार तो ये है.. जो मुझे देखते ही नमस्कार करने लगता है और एक तुम हो जो हमेशा मेरे राजाबाबू को दबाते और मुझसे छिपाते रहते हो।

मैंने बोला- अरे ऐसा नहीं है.. आओ मेरे पास आ कर बैठो।

वो मुस्कुराते हुए मेरे बगल में बैठ गई तो मैंने उसके गाल पर चुम्बन लिया और अपनी गोद में लिटा लिया। हम दोनों की प्यार भरी बातें होने लगी जिससे हम दोनों को काफी अच्छा महसूस हो रहा था.. ऐसा मन कर रहा था कि जैसे बस इसी घड़ी समय रुक जाए और ये पल ऐसे ही बने रहें।

दोस्तो, इस रात हम दोनों के बीच हुए घमासान को मैं विस्तृत रूप से लिखना चाहता हूँ ताकि आपको भी रस आए और मेरी चुदाई की अभीप्सा भी अपना पूरा आनन्द उठाए सो इस रात का वाकिया मैं आपको कहानी के अगले भाग में लिखूँगा।

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मैंने बोला- मेरे मन में बहुत दिन से था कि जब मेरी शादी हो जाएगी तो अपनी बीवी को रात भर निर्वस्त्र रखूँगा.. क्या आप मेरे लिए अपने सारे कपड़े उतार सकती हैं।

वो बोली- बस.. इत्ती सी बात.. राहुल मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकती हूँ.. मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ।

ये कहते हुए माया ने एक-एक करके सारे कपड़े निकाल दिए।

उसके जोश और मादकता से भरे शरीर को देखकर मेरे पप्पू पहलवान में भी जान आने लगी और धीरे-धीरे लौड़े के अकड़ने से मेरे लोअर के अन्दर टेंट सा बन गया.. जिसे माया ने देख लिया और मुस्कराते हुए बोली- मेरा असली राजकुमार तो ये है.. जो मुझे देखते ही नमस्कार करने लगता है और एक तुम हो जो हमेशा मेरे राजाबाबू को दबाते और मुझसे छिपाते रहते हो।

मैंने बोला- अरे ऐसा नहीं है.. आओ मेरे पास आ कर बैठो।

वो मुस्कुराते हुए मेरे बगल में बैठ गई तो मैंने उसके गाल पर चुम्बन लिया और अपनी गोद में लिटा लिया।

हम दोनों की प्यार भरी बातें होने लगी जिससे हम दोनों को काफी अच्छा महसूस हो रहा था.. ऐसा मन कर रहा था कि जैसे बस इसी घड़ी समय रुक जाए और ये पल ऐसे ही बना रहे।

अब आगे… मैं कभी उसके बालों से खेलता तो कभी उसकी नशीली आँखों में झांकते हुए उसके होंठों में अपनी उँगलियों को घुमाता.. जिससे दोनों को ही मज़ा आ रहा था। मुझे तो मानो जन्नत सी मिल गई थी, क्योंकि ये अहसास मेरा पहला अहसास था। मैं और वो इस खेल में इतना लीन हो गए थे कि मुझे पता ही न चला कि मैंने कब उसके उरोजों को नग्न कर दिया और उसको भी कोई होश न था कि उसके मम्मे अब कपड़ों की गिरफ्त से आज़ाद हैं।

जब मैंने उसके कोमल संतरों और गेंद की तरह सख्त उरोजों को मल-मल कर रगड़ना और सहलाना प्रारम्भ किया तो उनके मुख से एक आनन्दमयी सीत्कार "आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह" निकल पड़ी। जिसके कारण मेरा रोम-रोम खिल उठा और मैंने माया के किशमिशी टिप्पों (निप्पलों) को अपने अंगूठों से मींजने लगा। जिससे माया को अहसास हुआ कि उसके गेंदनुमा खिलौने कपड़ों की गिरफ्त से छूट कर मेरे हाथों में समा चुके हैं।

उसके मुख की सीत्कार देखते ही देखते बढ़ती चली गई- आआअहह श्ह्ह्हह्ह् ह्ह्ह्ह.. बहुत अच्छा लग रहा है राहुल.. इनको मुँह से चूसो.. चूस लो इनका रस.. निकाल दो इसकी सारी ऐंठन..

मैंने उसी अवस्था में झुक कर उनके माथे को चूमा और उनकी आँखों में आनन्द की झलक देखने लगा।

एकाएक माया ने अपने हाथों से मेरे सर को झुका कर मेरे होंठों को अपने होंठों से लगा कर रसपान करने लगी। जिसका मैंने भी मुँहतोड़ जवाब देते हुए करीब 15 मिनट तक गहरी चुम्मी ली।

जैसे हम जन्मों के प्यासे
एक-दूसरे के मुँह में पानी ढूँढ़ रहे हों और इस प्रक्रिया के दौरान उसके मम्मों की भी मालिश जारी रखी जिससे माया के अन्दर एक अजीब सा नशा चढ़ता चला गया जो कि उसकी निगाहों से साफ़ पता चल रहा था।

फिर धीरे से उसने मेरे होंठों को आज़ाद करते हुए अपने मम्मों को चूसने का इशारा किया तो मैंने भी बिना देर करते हुए ही उसके सर को अपनी गोद से हटाकर कुशन पर रखा और घुटनों के बल जमीन पर बैठ कर उसके चूचों का रस चूसने लगा।

क्या मस्त चूचे थे यार.. पूछो मत।

मैं सुबह तो इतना उत्तेजित था कि मैंने इन पर इतना ध्यान ही न दिया था।

लेकिन हाँ.. इस वक़्त मैं उसको चूसते हुए एक अज़ब से आनन्द के सागर में गोते लगाने लगा था। उसके चूचे इतने कोमल कि जैसे मैं किसी स्ट्रॉबेरी को मुँह में लेकर चूस रहा हूँ..

इस कल्पना को शब्दों में परिणित ही नहीं कर सकता कि क्या मस्त अहसास था उसका..

मैं अपने दूसरे हाथ से उसके टिप्पों को मसल रहा था, जिससे माया के मुँह से आनन्दभरी सीत्कार 'आआअह ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह' निकल जाती जिससे मैं अपने आप आनन्द में डूब कर उसके मम्मों को और जोर से चूसने और रगड़ने लगता।

माया को भी इस खेल में इतना आनन्द आ रहा था जो कि उसके बदन की ऐंठन से साफ़ पता चल रहा था और हो भी क्यों न… जब इतना कामोत्तेजक माहौल होगा.. तो कुछ भी हो सकता था।

इधर मेरा 'सामान' भी पैन्ट में खड़े-खड़े इठने लगा था.. मैंने भी पारी बदलते हुए उसके मम्मों को हाथों में जकड़ते हुए उसके सलवार के नाड़े की ओर नज़र दौड़ाई तो देखा की सलवार के आगे का हिस्सा गीला हो चुका था।

मैंने माया के चेहरे की ओर आश्चर्य भरी निगाहों से देखा तो माया ने पूछा- क्या हुआ मेरे नवाब.. ऐसे क्यों देख रहे हो?

तो मैंने उसकी सलवार की ओर देखते हुए उससे पूछा- क्या बात है.. इस समय इतना पानी निकल रहा है.. कि तुम्हारी सलवार के ऊपर से ही साफ़ झलक रहा है।

तो वो मुस्कुराते हुए बोली- जब मथानी इतने अच्छे से चलेगी तो मक्खन तो निकलेगा ही..

मैंने बोला- आज सुबह भी तो मथा था.. तब तो ऐसा नहीं हुआ था?

तो वो बोली- इस समय पैन्टी नहीं पहनी है और उस समय पैन्टी पहन रखी थी।

मैंने बोला- हम्म्म.. क्या बात है माया रानी.. लगता है आज रात का मेरे लिए तुमने पूरा मायाजाल बिछा रखा है।

तो वो हँसते हुए अपने हाथों से मेरे सर को पकड़कर अपने होंठों से चुम्बन करते हुए बोलने लगी- अब मैं बस तुम्हारी हूँ.

तुम्हारे लिए कुछ भी करुँगी.. तुमने मेरी बरसों पुरानी इच्छा को पूरा किया है।

तभी उनका फोन पर घन्टी बजी.. जो कि विनोद का था।

मैंने माया को फोन दे दिया और माया फोन ऑन करके हाल चाल लेने लगी।

उसने मेरे बारे में पूछा तो बोली- वो बाहर कमरे में टीवी देख रहा है.. जबकि तब तक सीन बदल चुका था मैं माया की सलवार उतार कर उसकी मखमली जांघों को सहला रहा था और अपने मुख से उसके गोल और सुडौल उरोजों का रसपान कर रहा था।

फिर मैंने धीरे से उनकी मखमली पाव सी चूत में ऊँगली घुसेड़ दी। यह कहानी आप XDReams.live पर पढ़ रहे हैं !

यह इतने अचानक से हुआ कि उसके मुँह से 'आआआआह' जोर की चीख निकल पड़ी।

शायद वो इस आघात के लिए तैयार नहीं थी। उसकी चीख सुनकर विनोद ने कुछ बोला होगा.. जिसके उत्तर में माया ने बोला- अरे वो.. मैं न कल के लिए सब्जी काट रही थी तो चाकू लग गया।

तो उसने बोला होगा आराम से काम किया करो तो वो बोली- आराम से तो सिर्फ सोया जा सकता है.. पर कोई काम आराम से नहीं कर सकती.. नहीं तो सारे दिन बस आराम ही करती रहूँगी..

यह बोलकर वो मेरी ओर देखकर हँसने लगी और मैं भी उसकी चूत के दाने को रगड़ने और मसलने लगा.. जिससे उसकी चूत से रस का रिसाव प्रारम्भ हो गया और उसकी आवाज़ में भी कंपकंपी सी आने लगी। तब तक शायद फोन रूचि ले चुकी थी तो उसने बोला- राहुल से बात कराओ मैं उससे बोल दूँ कि मेरी माँ का ध्यान अच्छे से रखे।

तो माया ने बहाना बनाया.. पर उस पर कोई प्रभाव न पड़ा।

फिर उसने मुझसे बात की और मुझसे बात की कि कब आए और माँ का ख्याल रखना.. उनके चोट भी लग गई है.. वगैरह वगैरह.. मैं शांत खड़ा उसकी बातें सुन रहा था और 'हाँ.. हूँ' कर रहा था।

इतने में माया ने अपना बदला लेने के लिए मेरा लोअर नीचे किया और मेरे लौड़े को अपने मुँह में भर कर जोर-जोर से चूसने लगी। जिससे मेरी आवाज़ में भी कंपकंपी आ गई।

तो उसने बोला- ऐसे क्यों बोल रहे हो..? अब तुम्हें क्या हुआ?

तो मैंने बोला- एसी की वजह से ठण्ड बढ़ गई है।

मैंने बातों को विराम देते हुए फोन कट कर दिया।

फिर माया को देखा तो देखता ही रह गया.. वो मेरी ओर बड़ी-बड़ी आँखों से बड़ी ही कामुक निगाहों से देखते हुए मेरे लौड़े को उसकी जड़ तक चूसने के प्रयास में लगी थी। जिससे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। मैंने उसके सर के पीछे हाथ ले जाकर उसके सर को हाथों में कस लिया और उससे बोला- जान अब जीभ से चाटो.

उसने बिल्कुल ऐसा चाटा.. जैसे कोई छोटा बच्चा कोन वाली आइसक्रीम चाटता है.. जिससे मेरा आनन्द और दुगना हो गया।

फिर मैंने उससे बोला- इसको अपने थूक से गीला करो।

तो वो आश्चर्य से देखने लगी.. शायद सोच रही होगी कि अब क्या होने वाला है..

शायद आप भी यही सोच रहे होंगे।

फिर माया ने नज़रें झुकाईं और मेरे गर्म लोहे की रॉड के समान लौड़े को बिना कुछ कहे ही गीला करने लगी। जब मैंने देखा कि माया ने अब अच्छे से गीला कर दिया है.. तो मैंने उसे अपने सामने सोफे के नीचे बैठाया और उसके उरोजों के बीच अपने सामान को सैट करने लगा।

उसको देखकर साफ़ लग रहा था कि इस तरह से उसने कभी नहीं किया है और मेरी भी एक अनचाही इच्छा पूरी होने वाली थी।

फिर मैंने उसको बोला- अब अपने चूचों को दोनों तरफ से दबा कर मेरे लौड़े की चुदाई ऐसे करो.. जैसे मालिश की जाती है।

एक बार मैंने उसे बताया और फिर उसको ये कार्य सौंप दिया। वो बड़े अच्छे तरीके के साथ इस कार्य में तल्लीन थी.. जिससे मुझे काफी मज़ा आ रहा था।

यह मैंने केवल फिल्मों में ही देखा था जो कि आज मेरे साथ हकीकत में हो रहा था। मेरे शरीर में एक अजीब सा करंट दौड़ रहा था जैसे हज़ारों चीटिंयाँ मेरे शरीर पर रेंग रही हों।

कुछ ही मिनटों के बाद मैंने माया से बोला- अब मेरा होने वाला है.. मुझे कुछ अजीब सी मस्ती हो रही है।

तो माया मेरे सख्त लौड़े को पुनः अपने मुलायम होंठों में भरकर चूसने लगी और कुछ ही देर में एक 'आह्ह्ह्ह्ह्' के साथ मेरा गर्म लावा उसके मुँह में समा गया जिसे माया बड़े ही चाव से चखते हुए पी गई और आँख मारते हुए बोली- कैसा लगा?

तो मैंने उसे अपनी बाँहों में ले कर बोला- सच माया… आज तो तूने मुझे जन्नत की सैर करा दी।

फिर वो बोली- ये कहाँ से सीखा था?

तो मैंने बोला- ब्लू-फिल्म में ऐसे करते हुए देखा था।

मेरी चुदाई की अभीप्सा की यह मदमस्त घटना आपको कैसी लग रही है।

कहानी जारी रहेगी।
 
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माया मेरे सख्त लौड़े को पुनः अपने मुलायम होंठों में भरकर चूसने लगी और कुछ ही देर में एक 'आह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह' के साथ मेरा गर्म लावा उसके मुँह में समा गया जिसे माया बड़े ही चाव से चखते हुए पी गई और आँख मारते हुए बोली- कैसा लगा?
तो मैंने उसे अपनी बाँहों में ले कर बोला- सच माया आज तो तूने मुझे जन्नत की सैर करा दी।
फिर वो बोली- ये कहाँ से सीखा था? तो मैंने बोला- ब्लू-फिल्म में ऐसे करते हुए देखा था।
अब आगे.. तब उसने मुझसे मुस्कुराते हुए पूछा- तुम कब से ऐसी फिल्म देख रहे हो?
तो मैंने सच बताया कि अभी कुछ दिन पहले से ही मैं और विनोद थिएटर में दो-चार ऐसी मूवी देख चुके हैं।
तो उसने आश्चर्य से पूछा- तो विनोद भी जाता है तेरे साथ?
तो मैंने 'हाँ' बोला.. फिर उसने पूछा- उसकी कोई गर्ल-फ्रेंड है कि नहीं?
तो मैंने बताया- हाँ.. है और वो दोनों शादी के लिए तैयार हैं.. पर पढ़ाई पूरी करने के बाद… वे दोनों एक-दूसरे से काफी ज्यादा प्यार करते हैं।
तो वो बोली- अच्छा तो बात यहाँ तक पहुँच गई?
मैंने बोला- अरे.. चिंता मत करो.. वो आपकी बिरादरी की ही है और उसका स्वभाव भी बढ़िया है।
तो वो बोली- दिखने में कैसी है?
मैंने बोला- अच्छी है और गोरी भी.. पर ये किसी भी तरह आप उसे मत बताना या पूछना.. नहीं तो विनोद को बुरा लगेगा.. हम तीनों के सिवा किसी को ये पता नहीं है.. पर लड़की के घर वालों को सब पता है और वक़्त आने पर वो आपके घर भी आएंगे।
बोली- चलो बढ़िया है.. वैसे भी जब बच्चे बड़े हो जाएं.. तो उन्हें थोड़ी छूट देना ही चाहिए।
मैंने 'हाँ' में सर हिलाया।
फिर उसने पूछा- अच्छा एक बात बताओ.. उन दोनों के बीच 'कुछ' हुआ कि नहीं?
तो मैंने बोला- हाँ.. हुआ है.. विनोद इस मामले में मुझसे अधिक भाग्यशाली रहा है।
तो उसने पूछा- क्यों?
मैंने उसके चेहरे के भाव देखे और बात बनाई.. और बोला- अरे उसने अपना कौमार्य एक कुँवारी लड़की के साथ खोया…
तो इस पर माया रोने लगी और मुझसे रूठ कर दूसरी ओर बैठ गई।
मैंने फिर उसके गालों पर चुम्बन करते हुए बोला- यार तुम भी न.. रोने क्यों लगीं?
तो उसने बोला- सॉरी.. मैं तुम्हें वो ख़ुशी नहीं दे पाई।
मैंने बोला- अरे तो क्या हुआ.. माना कि तुमने ऐसा नहीं किया, पर तुमने मुझे उससे ज्यादा दिया है और तुम उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत और आनन्द देने वाली लगती हो।
यह कहते हुए मैं उसके होंठों का रसपान करने लगा
जिसमें माया ने मेरा पूरा साथ दिया।
करीब पांच मिनट बाद माया बोली- तुम परेशान मत होना.. अब मैं ही तुमसे एक कुँवारी लड़की चुदवाऊँगी।
मैं उसकी इस बात से हैरान हो गया पर मुझे लगा कि चलो लगता है जल्द ही रूचि की भी चुदाई की इच्छा जल्द ही पूरी हो जाएगी।
उन्होंने मेरे गाल नोंचते हुए पूछा- अब कहाँ खो गए?
तो मैंने बोला- मैं ये सोच रहा हूँ ऐसी लड़की आप कहाँ से लाओगी?
तो बोली- अरे अपने अपार्टमेंट में ही तलाशूंगी… शायद कोई मिल जाए और मिलते ही तुम्हारी सैटिंग भी करा दूँगी।
फिर मैंने बोला- अगर नहीं मिली तो?
माया बोली- ये बाद की बात है…
मैंने बोला- ऐसे कैसे बाद की बात है।
तो वो बोली- अच्छा.. तू बता.. कोई तेरी नज़र में हो.. तो बता मैं उससे तेरी सैटिंग करवा दूँगी।
अब उसे क्या पता कि मेरे दिल में उसकी ही अपनी बेटी को चोदने की इच्छा है, पर मैंने उस समय सयंम रखा और कहा- कोई होगी तो बता दूँगा.. पर तब अपनी बात से पलट न जाना।
उसने मुझसे बोला- तुम्हारी कसम.. मैं नहीं पलटूंगी.. तुम्हें मुझसे जैसी भी मदद चाहिए होगी.. तुम बता देना, मैं तुम्हारी जरूर मदद करूँगी। यह कहानी आप XDReams.live पर पढ़ रहे हैं !
मैंने- चलो अब इस टॉपिक को चेंज करते हैं।
मैंने माया को अपने सीने से चिपका लिया.. जिससे उसकी मस्त उन्नत मुलायम चूचियों की चुभन मेरे सीने में होने लगी.. जिसका अहसास काफी अच्छा था।
मैं उसे अपने शब्दों से बयान ही नहीं कर सकता था.. मेरा हाथ उनकी नंगी पीठ पर धीरे-धीरे चलने लगा.. जिससे माया को मेरे प्यार के एहसास का नशा चढ़ने लगा और उसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गए।
ऐसा लग रहा था मानो हज़ारों आनन्द की तरंगें उसके शरीर में दौड़ने लगी थीं।
यह शायद मेरे प्रति उसके प्यार का असर था या वो भावनात्मक तरीके से मुझसे जुड़ गई थी, जिसकी वजह से ऐसा हो रहा था।
फिर मैंने उसके आनन्द को बढ़ाने के लिए उसके गर्दन में अपने होंठों को लगाकर चुम्बन करने लगा और उसके कान पर 'लव-बाइट' करने लगा.. जिससे उसकी मदहोशी और बढ़ती ही चली जा रही थी।
उसे इस क्रिया में बहुत आनन्द आ रहा था जो कि उसकी बंद आँखें और मुस्कराता चेहरा साफ़-साफ़ बता रहा था।
यहाँ मैं अपने पूर्ण आत्म-विश्वास के साथ पाठकों को ये बताना चाहूँगा… यदि उनकी कोई गर्लफ्रेंड या पत्नी है या लड़कियों का कोई बॉयफ्रेंड या पति है
तो उसके साथ ये आज़माकर देखें.. वो भी पागल हो जाएगा… आप यदि उसके कान के मध्य भाग में चुंबन करते हैं तो शर्तिया उसके रोम-रोम खड़े हो जायेंगे।
फिर मैंने धीरे से माया को सोफे पर लिटाया और चुम्बन करते हुए उसके चूचों को दबाने लगा.. जिससे माया माया की 'आआह्ह अह्ह्ह्ह' निकलनी आरम्भ हो गई और उसे आनन्द आने लगा।
अब उसने मुझसे बोला- अब और कितना तड़पाओगे.. चलो कमरे में चलते हैं।
फिर मैंने उससे बोला- नहीं.. आज मुझे सोफे पर ही चुदाई करना है।
मैंने कई फिल्मों में सोफे पर चुदाई देखी है।
तो वो बोली- अरे यहाँ जगह कम है। मैंने बोला- वो सब मुझ पर छोड़ दो.. पूरी रात बाकी है.. अगर मज़ा न आए तो कहना। ये कहते हुए उसके मम्मों को चूसने और रगड़ने लगा।
वो सिसियाने लगी- अह्ह्ह्ह श्ह्ह्ह्ह काटो मत.. दर्द होता है.. आराम से करो.. देखो सुबह की वजह से अभी भी लाल निशान पड़े हैं।
तो मैंने उसे प्यार से चूसना चालू कर दिया और उसका जोश दुगना होता चला गया।
मैं भी उसके टिप्पों को बड़े प्यार से चाट रहा था.. जैसे उसमें मुझे मिश्री का स्वाद मिल रहा हो।
वो अब चरमानंद के कारण बिन पानी की मछली की तरह तड़पने लगी।
उसकी आग को बस हवा देना बाकी रह गया था…
मैंने वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए अपना हाथ धीरे से उसकी चूत पर हाथ ले गया और अपनी दो ऊँगलियों से उसकी चूत की मालिश करने लगा और बीच-बीच में उसकी चूत के दाने को भी रगड़ देता.. जिससे वो और कसमसा उठती।
इस तरह धीरे-धीरे वो चरम पर पहुँचने लगी और अपने हाथों से अपने मम्मों को मसलते हुए बड़बड़ाने लगी- आआह शह्ह्ह्ह शाबाश.. आह्ह्ह्ह्ह मेरी जान.. ऐसे ही और जोर से…
शायद वो झड़ने के मुकाम पर पहुँच चुकी थी, तभी मैंने उसे और तड़पाने के लिए उनकी चूत से तुरंत ऊँगली निकाल कर उनके मुँह में डाल दी। जिसे उन्होंने चाट-चाट कर साफ कर दिया।
'राहुल प्लीज़ मत तड़पाओ.. अब आ भी जाओ.. मुझे तुम्हारे लण्ड की जरूरत है।'
तो मैंने उनके मुँह पर चुम्बन किया और उन्हें कुछ इस तरह होने को बोला कि वो सोफे की टेक को पकड़ कर घोड़ी बन जाएं.. ताकि मैं जमीन पर खड़ा रहकर उनको पीछे से चोद सकूँ। ठीक वैसा ही जैसा मैंने फिल्मों में देखा था।
माया ने वैसे ही किया फिर मैंने माया गोल नितम्बों को पकड़ कर उसकी पीठ पर चुम्बन लिया और उसके नितम्बों पर दाब देकर थोड़ा खुद को ठीक से सैट किया ताकि आराम से चुदाई की जा सके।
फिर मैंने उसकी चूत में दो ऊँगलियां घुसेड़ दीं और पीछे से ही उँगलियों को आगे-पीछे करने लगा.
जिससे माया को भी आनन्द आने लगा और बहुत ही मधुर आवाज़ में सिसियाने लगी- आआअह ऊऊओह्ह्ह्ह्ह उउम्म आआअह राहुल.. आई लव यू.. आई लव यू..' कहते हुए झड़ गई, जिससे मेरी ऊँगलियां उसके कामरस से तर-बतर हो गईं..
पर मैं उसकी चूत के दाने को अभी भी धीरे-धीरे मसलता ही रहा और उसकी पीठ पर चुम्बन करते हुए उसे एक बार फिर से लण्ड खाने के लिए मज़बूर कर दिया।
अब माया आंटी को मैंने अपना लौड़ा कैसे खिलाया जानने के लिए अगले पार्ट का आने तक इंतज़ार करें।
कहानी जारी रहेगी।
 
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कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा:

मैंने उनके मुँह पर चुम्बन किया और उन्हें कुछ इस तरह होने को बोला कि वो सोफे की टेक को पकड़ कर घोड़ी बन जाएं.. ताकि मैं जमीन पर खड़ा रहकर उनको पीछे से चोद सकूँ। ठीक वैसा ही जैसा मैंने फिल्मों में देखा था।

माया ने वैसे ही किया फिर मैंने माया गोल नितम्बों को पकड़ कर उसकी पीठ पर चुम्बन लिया और उसके नितम्बों पर दाब देकर थोड़ा खुद को ठीक से सैट किया ताकि आराम से चुदाई की जा सके।

फिर मैंने उसकी चूत में दो ऊँगलियां घुसेड़ दीं और पीछे से ही उँगलियों को आगे-पीछे करने लगा.. जिससे माया को भी आनन्द आने लगा और बहुत ही मधुर आवाज़ में सिसियाने लगी- आआअह ऊऊओह्ह्ह्ह्ह उउम्म आआअह राहुल.. आई लव यू.. आई लव यू..' कहते हुए झड़ गई, जिससे मेरी ऊँगलियाँ उसके कामरस से तर-बतर हो गईं..

पर मैं उसकी चूत के दाने को अभी भी धीरे-धीरे मसलता ही रहा और उसकी पीठ पर चुम्बन करते हुए उसे एक बार फिर से लण्ड खाने के लिए मज़बूर कर दिया।

अब आगे.. इस तरह जैसे ही मैंने दुबारा माया की तड़प बढ़ाई तो माया से रहा नहीं गया और ऊँचे स्वर में मुझसे बोली- जान और न तड़पाओ अब.. बुझा दो मेरी प्यास को..

तो मैंने भी देर न करते हुए थोड़ा सा उसे अपने ठोकने के मुताबिक़ ठीक किया और अपने लौड़े को हाथ से पकड़ कर उसकी चूत के ऊपर ही ऊपर घिसने लगा.. ताकि उसके कामरस से मेरे लण्ड में थोड़ी चिकनाई आ जाए..

अब माया और बेहाल हो गई और गिड़गिड़ाते स्वर में मुझसे जल्दी चोदने की याचना करने लगी। जिसके बाद मैंने उसके सुन्दर कोमल नितम्ब पर एक चांटा जड़ दिया और उससे बोला- बस अभी शुरू करता हूँ।

मेरे द्वारा उसके नितम्ब पर चांटा मारने से उसका नितम्ब लाल पड़ गया था और उसके मुख से एक दर्द भरी 'आह्ह्ह ह्ह्ह' सिसकारी निकल गई जो कि काफी आनन्दभरी थी।

मुझे उसकी इस 'आह' पर बहुत आनन्द आया था.. इसीलिए मैंने बिना सोचे-समझे.. उसके दोनों चूतड़ों पर एक बार फिर से चांटे मारे.. जिससे उसकी फिर से मस्त 'आआआअह' निकल गई।

वो बोलने लगी- प्लीज़ अब और न तरसाओ.. जल्दी से पेल दो..

फिर मैंने अपने लौड़े को धीरे से उसकी चूत के छेद पर सैट किया और उसके चूतड़ को नीचे की ओर दबा कर अपने लण्ड को उसकी चूत में धकेला जिससे माया के मुख से एक सिसकारी 'श्ह्ह्ह्ह्ह्ह' निकल गई और मेरा लौड़ा लगभग आधा.. माया की चूत में सरकता हुआ चला गया और मैंने फिर से अपने लौड़े को थोड़ा बाहर निकाल कर फिर थोड़ा तेज़ अन्दर को धकेल दिया.

जिसे माया बर्दास्त न कर पाई और फिर से उसके मुख से एक चीख निकल गई।

'आआअह्हा आआआ हाआआआ श्ह्ह्ह्ह'

मैंने इस बार बिना रुके माया की चुदाई चालू रखी। मुझे बहुत आनन्द आ रहा था मैंने फिल्म देखते वक़्त भी सोचा था कि जीवन में इस तरह एक बार जरूर चोदूँगा.. पर मेरी इच्छा इतनी जल्द पूरी हो जाएगी, इसकी कल्पना न की थी।

अब मैं धीरे-धीरे माया की चूत में अपना लण्ड आगे-पीछे करने लगा.. जिससे माया को भी थोड़ी देर में आनन्द आने लगा और वो भी प्रतिक्रिया में अपनी गाण्ड पीछे दबा-दबा कर सिसियाते चुदवाने लगी 'अह्ह्हह्ह्ह्ह उउउह्ह्ह्ह्ह् श्ह्ह्ह्ह'

यार.. सच में मुझे बहुत अच्छा लग रहा था मैंने आनन्द को और बढ़ाने के लिए उसके चूतड़ों पर फिर से चांटे मारे.. जिससे माया कराह उठती 'आआआह दर्द होता है जान..'

इस मरमरी अदा से उसने अपनी गर्दन घुमा कर मेरी ओर देखा था कि मैं तो उसका दीवाना हो गया और मैंने अपने हाथों को उसके स्तनों पर रख दिया और उन्हें धीरे-धीरे सहलाते हुए दबाने लगा और कभी-कभी उसके टिप्पों (निप्पलों) को अपने अंगूठों से दबा देता.. जिससे माया का कामजोश दुगना हो जाता और वो तेज़-तेज़ से चुदवाने लगती।

फिर माया को मैंने उतारा और अब मैं सोफे पर बैठ गया और उसे मैंने अपने ऊपर बैठने को बोला।

वो समझ गई और मेरी ओर पीठ करके मेरे लण्ड को हाथ से अपनी चूत पर सैट करके धीरे से पूरा लण्ड निगल गई.. जैसे कोई अजगर अपने शिकार को निगल जाता है।

फिर मैंने उसके चूचों को रगड़ना और मसलना चालू किया.. जिससे वो अपने आप का काबू खो बैठी और तेज़-तेज़ से चुदाई करने लगी। मुझे इतना आनन्द आ रहा था कि पता ही न चला कि हम दोनों का रस कब एक-दूसरे की कैद से आज़ाद होकर मिलन की ओर चल दिया।

उसकी और मेरी.. हम दोनों की साँसें इतनी तेज़ चल रही थीं कि दोनों की साँसों को थमने में 10 मिनट लग गए और फिर हम दोनों एक-दूसरे को चुम्बन करने लगे।

फिर उसने मेरी ओर बहुत ही प्यार भरी नज़रों से देखते हुए एक संतुष्टि भरी मुस्कान फेंकी.. तो मैंने भी उसकी इस अदा का जवाब उसकी आँखों को चूम कर दिया और पूछा- तुम्हें कैसा लगा?

तो वो बोली- सच राहुल… आज तक मुझे ऐसी फीलिंग कभी नहीं हुई.. तुमने तो सच में मुझे बहुत आनन्द दे दिया.. मैं आज बहुत खुश हूँ.. आई लव यू राहुल..

यह कहानी आप XDReams.live पर पढ़ रहे हैं !

वो ये सब बोलते हुए मेरे लौड़े को सहलाने लगी जो कि उस वक़्त ऐसा लग रहा था जैसे कोई घोड़ा लम्बी दौड़ लगाकर सुस्ता रहा हो और मैं भी उसके शरीर में अपनी ऊँगलियां दौड़ा रहा था
जिससे दोनों को अच्छा लग रहा था।

मैंने माया से बोला- अच्छा मेरे इस खेल में तो तुम मज़ा ले चुकी और तुमने मेरी बात मानकर मेरी इच्छा भी पूरी की है.. तो अब मेरा भी फ़र्ज़ बनता है कि तुम जो कहो मैं वो करूँ।

तो माया बोली- यार मुझे क्या पता था इसमें उससे कहीं ज्यादा मज़ा आएगा.. पर तुम अगर जानना चाहते हो कि मेरी इच्छा क्या थी.. तो तुम मेरे साथ मेरे कमरे में चलो..

इतना कहकर माया उठी और मेरा हाथ थाम कर साथ चलने का इशारा किया.. तो मैं भी खड़ा हो गया और मैंने अपना बायाँ हाथ उसकी पीठ की तरफ से कन्धों के नीचे ले जाकर उसके बाएं चूचे को पकड़ लिया।

उसने मेरी इस हरकत पर प्यार से अपने दायें हाथ से मेरे गाल पर एक हलकी थाप देकर बोली- बहुत बदमाश हो गए हो.. कोई मौका नहीं छोड़ते..

तो मैंने धीरे से बोला- तुम हो ही इतनी मस्त.. कि मेरी जगह कोई भी होता तो यही करता..

यह कहते हुए एक बार फिर से मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में भर कर जोरदार तरीके से चूसा.. जिससे उसके होंठ लाल हो गए।

होंठ छूटते ही माया बोली- सच राहुल तुम्हारी यही अदा मुझे तुम्हारा दीवाना बनने में मजबूर कर देती है.. खूब अच्छे से रगड़ लेते हो.. लगता नहीं है कि तुम इस खेल में नए हो।

तब तक हम दोनों कमरे में आ चुके थे.. फिर माया और मैं दोनों वाशरूम गए.. वहाँ उसने गीजर ऑन किया।

अब तब मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ये चाहती क्या है.. तो मैंने उससे पूछा- गीजर क्यों ऑन किया?

तो बोली- आज मुझे भी अपनी एक इच्छा पूरी करनी है।

तो मैंने आश्चर्य से उससे पूछा- कैसी इच्छा?

कहानी जारी रहेगी।
 
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कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा:

हम दोनों कमरे में आ चुके थे.. फिर माया और मैं दोनों वाशरूम गए.. वहाँ उसने गीजर ऑन किया।

अब तब मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ये चाहती क्या है..

तो मैंने उससे पूछा- गीजर क्यों ऑन किया?

तो बोली- आज मुझे भी अपनी एक इच्छा पूरी करनी है।

तो मैंने आश्चर्य से उससे पूछा- कैसी इच्छा?

अब आगे..

तो बोली- बहुत सालों पहले मेरी सहेली ने मुझे बताया था कि उसका पति उसे बाथटब में जब चोदता है.. तो उसे बहुत अच्छा लगता है.. उसने मुझे कई बार ट्राई करने के लिए भी बोला.. पर मेरे पति ऐसे हैं कि उन्होंने आज तक मेरी ये इच्छा कभी पूरी नहीं की और जब भी मैं ज्यादा कहती तो लड़ाई हो जाती थी… तो मैंने भी कहना छोड़ दिया था.. पर क्या अब तुम मेरी इस इच्छा को पूरा कर सकते हो…? मैं अनुभव लेना चाहती हूँ कि पानी के अन्दर चुदाई करने में कैसा आनन्द आता है.. क्योंकि ये मैंने सिर्फ अभी तक अपनी सहेली से ही सुना है। आज मैं तुम्हारे साथ ये करना चाहती हूँ.. क्या तुम करोगे?

तो मैंने भी देर न करते हुए उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसे प्यार से चूमने लगा।

माया भी मेरा पूरा साथ दे रही थी करीब 10 मिनट तक हमने एक-दूसरे को जम कर चूसा।

फिर माया बोली- रुको यार पानी देख लूँ.. अब तक गर्म हो गया होगा..

ठीक वैसा ही हुआ.. पानी अच्छा-खासा गर्म हो चुका था..

फिर उसने बाथटब में पानी मिक्स किया और मेरी तरफ आकर उसने मुझे पहले जाने का इशारा किया।

तो मैं भी उस टब में जाकर बैठ गया फिर माया ने थोड़ा सा शावर जैल.. टब में डाला और आकर मेरी ओर मुँह करके मेरी बाँहों में आकर मुझे प्यार चूमने-चाटने लगी।

यार कितना मज़ा आ रहा था.. मैं उस अनुभव को शब्दों में पिरोने में नाकाम सा हूँ.. समझ ही नहीं आ रहा है कि मैं उसके बारे में किस शब्द का इस्तेमाल करूँ।

उसकी इस हरकत से मेरे तन-बदन में एक बार फिर से सुरसुरी सी दौड़ गई और मेरे हाथ अपने आप उसकी पीठ पर चलने लगे।

मैं हल्के हाथों से उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके नितम्ब तक हाथ ले जाने लगा.. जिससे माया को भी अच्छा लगने लगा और अब वो मुझे बहुत तेज गति के साथ चूमने-चाटने लगी थी।

उसकी तेज़ चलती साँसें.. उसके कामुक होने का साफ़ संकेत देने लगी थीं और मेरा लौड़ा भी अकड़ कर उसके पेट पर चुभने लगा था।

उसके पेट के कोमल अहसास से ऐसा लग रहा था जैसे कुछ देर और ऐसे ही चलता रहा तो मेरा लौड़ा अपने-आप अपना पानी छोड़ देगा।

फिर धीरे से मैंने उसके कन्धों को पकड़ा और अपने नीचे करके उसके ऊपर आ गया और उसके होंठों को चूसते-चूसते उसके चूचों को रगड़ने लगा.

जिससे माया भी कसमसाने लगी और उसे तड़पते हुए देखकर पता नहीं क्यों मुझे और आनन्द आने लगता था।

मैंने उससे थोड़ा ऊपर की ओर उठने को बोला.. ताकि मैं आराम से उसकी चूचियों का रस चूस सकूँ।

तो माया ने अपना ऊपरी हिस्सा थोड़ा एडजस्ट किया और मैंने तुरंत लपक कर उसके एक चूचे को मुँह में भर लिया और दूसरे कबूतर को हाथों से मलने लगा।

जिससे माया के ऊपर एक बार फिर से मस्ती छाने लगी और तेज़ स्वर से सिसकारी 'सस्श्ह्ह्ह्ह्ह्ह आआआह्ह्ह्ह ऊऊऊह' लेते हुए बोलने लगी- ररराहुल सच में.. मैं आज बहुत खुश हूँ.. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है.. आई लव यू.. आई लव यू.. आई लव यू..

साथ ही उसने मेरे लौड़े को भी अपने हाथों में भर लिया और उसे सहलाते हुए कहने लगी- प्लीज़ अब और न तड़पा.. मुझे देखो मेरा राजाबाबू भी अंगड़ाइयाँ ले रहा है.. अन्दर जाने के लिए..

तो मैंने भी देर न करते हुए अपने लौड़े को उसकी चूत में सैट किया.. पर सही से कुछ हो नहीं पा रहा था.. जिसे माया ने भांप लिया और अपने हाथ से मेरे लौड़े को पकड़ कर अपनी चूत पर लगाया और जब तक वो उसकी चूत के अन्दर चला नहीं गया तब तक वो वैसे ही पकड़े रही।

यार सच में काफी अच्छा अनुभव था।

फिर मैंने भी धीरे-धीरे से उसे चोदना चालू किया.. जिससे थोड़ी देर बाद माया की आँखें भारी हो गईं और उसके मुख से 'आआह्ह्ह म्म्म्म आआह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह' की आवाजें निकलने लगीं..

अब मेरा भी जोश दुगना हो गया और मैं भी उसे बहुत सधे हुए तरीके से तेज़-तेज़ धक्के देकर चोदने लगा जिससे पूरे बाथरूम में पानी के कारण 'फच फच्च' का संगीत गुंजायमान होने लगा।

ऐसा लग रहा था जैसे पानी में दो मगरमच्छ भिड़ रहे हों..

फिर थोड़ी देर बाद उसे मैंने अपने ऊपर ले लिया और उसके होंठों को चूसते हुए अपने लौड़े उसकी चूत पर टिकाया और हल्का सा अन्दर को दाब दी.. पर पानी की वजह से लौड़ा फिसल गया.. शायद ये शावर जैल का कमाल था..

उसने फिर से अपने हाथों से लौड़ा पकड़ा और एक ही झटके में मेरे ऊपर बैठ गई.. जिससे मुझे ऐसा लग रहा था जैसे ठन्ड में रज़ाई का काम होता है.. ठीक वैसे ही उसकी चूत मेरे लौड़े पर अपनी गर्मी बरसा रही थी।

यह काफी आनन्ददायक आसन था और मैं जोश में भरकर उसके टिप्पों को नोंचने और रगड़ने लगा.. जिससे उसकी दर्द भरी मादक 'आआआह' निकलने लगी।

थोड़ी देर में ही मैंने महसूस किया मेरे लौड़े पर उसकी चूत ने बारिश कर दी और देखते ही देखते वो आँखें बंद करके मेरी बाँहों में सिकुड़ गई.

जैसे उसमें दम ही न बची हो।

अब वो मुझे अपनी बाँहों में जकड़ कर मेरे सीने पर चुम्बन करने लगी.. पर मेरी बरसात होनी अभी बाकी थी.. तो मैंने धीरे से उसके नितम्ब को थोड़ा सा ऊपर उठाया ताकि मैं अपने सामान को नीचे से ही आराम से उसकी चूत में पेल सकूँ..

माया भी बहुत खुश थी उसने बिना देर लगाए.. वैसा ही किया तो मैंने धीरे-धीरे कमर उठा-उठा कर उसकी ठुकाई चालू कर दी.. जिससे उसकी चूत फिर से पनियाने लगी और मेरा सामान एक बार फिर से आनन्द रस के सागर में गोते लगाने लगा।

माया के मुँह से भी चुदासी लौन्डिया जैसी आवाज़ निकलने लगी।

'आअह्ह्ह्ह आआह बहुत अच्छा लग रहा है जान.. आई लव यू ऐसे ही करते रहो.. दे दो मुझे अपना सब कुछ.. आआआहह आआअह म्मम्म..'

मैं भी बुदबुदाते हुए बोलने लगा- हाँ जान.. तुम्हारा ही है ये.. तुम बस मज़े लो..

और ऐसे ही देखते ही देखते हम दोनों की एक तेज 'अह्ह्ह' के साथ-साथ माया और मेरे सामान का पानी छूटने लगा और हम दोनों इतना थक गए कि उठने की हिम्मत ही न बची थी।

कुछ देर माया मेरी बाँहों में जकड़ी हुई ऐसे लेटी रही.. जैसे कि उसमें जान ही न बची हो।

फिर मैंने धीरे से उसे उठाया और दोनों ने शावर लिया और एक-दूसरे के अंगों को पोंछ कर कमरे में आ गए।

मुझे और माया दोनों को ही काफी थकान आ गई थी तो मैंने माया को लिटाया और उससे चाय के लिए पूछा तो उसने 'हाँ' बोला।

यार.. कुछ भी बोलो पर मुझे चाय पीने का बहाना चाहिए रहता है बस..

फिर मैं रसोई में गया और उसके और अपने लिए एक अच्छी सी अदरक वाली चाय बना ली और हम दोनों ने साथ-साथ चाय की चुस्कियों का आनन्द लिया।

कुछ देर में हम दोनों की थकान मिट गई और उस रात हमने कई बार चुदाई की..

जो कि सुबह के 7 बजे तक चली.. ऐसा लग रहा था जैसे हमारी सुहागरात हो..

हम दोनों की जांघें दर्द से भर गई थीं तो मैंने और उसने एक-एक दर्द निवारक गोली खाई और एक-दूसरे को बाँहों में लेकर प्यार करते हुए कब नींद की आगोश में चले गए पता ही न चला।

आगे की कहानी के लिए थोड़ा इंतज़ार करें जल्द ही अगली कहानी का भाग आएगा।
 
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कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा:

मैं रसोई में गया और उसके और अपने लिए एक अच्छी सी अदरक वाली चाय बना ली और हम दोनों ने साथ-साथ चाय की चुस्कियों का आनन्द लिया।

कुछ देर में हम दोनों की थकान मिट गई और उस रात हमने कई बार चुदाई की.. जो सुबह के 7 बजे तक चली… ऐसा लग रहा था जैसे हमारी सुहागरात हो..

हम दोनों की जांघें दर्द से भर गई थीं तो मैंने और उसने एक-एक दर्द निवारक गोली खाई और एक-दूसरे को बाँहों में लेकर प्यार करते हुए कब नींद की आगोश में चले गए पता ही न चला।

अब आगे…

फिर करीब 2 से 3 बजे के आसपास मेरी आँख खुली तो मैंने अपने बगल में माया को भी सोते हुए पाया.. शायद वो भी थक गई थी। वो मेरे करीब कुछ इस तरह से सो रही थी कि उसकी नग्न पीठ मेरी ओर थी और उसके चिकने नितम्ब मेरे पेट से चिपके हुए थे..

मैंने उसे हल्के से आवाज़ लगाई- उठो माया.. उठो बहुत देर हो गई है.. पर इस सबका जब असर नहीं हुआ तो मैं उसके हॉर्न (चूचों) को मसल कर उसके गालों पर चुम्बन करने लगा..

जिससे वो थोड़ा होश में आई और बोली- सोने दो प्लीज़.. मुझे अभी नहीं उठना.. परेशान मत करो प्लीज़..

मैंने बोला- अरे 3 बज रहे हैं.. उठो।

तो बोली- हाय रे.. सच्ची 3 बज गया।

मैंने उसको घड़ी दिखाई और बोला- खुद देख लो…

तो बोली- यार आज इतनी अच्छी नींद आई कि मेरा अभी भी उठने का मन नहीं हो रहा है.. पर अब उठना भी पड़ेगा.. चलो तुम फ्रेश हो जाओ.. मैं बस पांच मिनट में उठती हूँ।

मैंने उसके गाल पर एक चुम्बन किया और बाथरूम चला गया।

करीब तीस मिनट बाद जब बाहर निकला तो देखा माया फिर से सो रही थी।

उसके चूचे कसे होने के कारण ऐसे लग रहे थे जैसे केक के ऊपर किसी ने चैरी रख दी हो।

मैं उसके नशीले बदन को देखकर इतना कामुक हो गया कि मेरे दिमाग में ही उसकी चुदाई होने लगी और मेरा हाथ अपने आप ही मेरे लौड़े पर चला गया था।

देखते ही देखते मेरा लौड़ा फिर से खड़ा हो गया।

मैंने भी देर न करते हुए उसके ऊपर जाकर उसके होंठों की चुसाई चालू कर दी, जिससे उसकी नींद टूट गई और वो मेरा साथ देने लगी। फिर करीब पांच मिनट बाद वो बोली- चलो अब मैं उठती हूँ.. तुम्हारे लिए नाश्ता वगैरह भी बनाना है।

पर मेरा ध्यान तो उसकी चुदाई करने में लगा हुआ था।

मैं उसकी बात को अनसुना करते हुए लगातार उसके चूचों को दबा रहा था और बीच-बीच में उसके टिप्पों को मसल भी देता.

जिससे माया एक आनन्दमयी सिसकारी "स्स्स्स्स्शह" के साथ कसमसा उठती।

मैं उसकी गर्दन और गालों पर चुम्बन भी कर रहा था, जिसे माया भी एन्जॉय करने लगी थी।

फिर मैं थोड़ा नीचे की ओर बढ़ा और उसके चूचों को मुँह में भर कर बारी-बारी से चूसने लगा.. जिससे माया ने अपने हाथों को मेरे सर पर रख कर अपने चूचों पर दबाने लगी।

'आआह्ह्ह उउम्म्म श्ह्ह्ह्ह्ह्ह…' की आवाज़ के साथ बोलने लगी- मेरी जान.. खा जाओ इन्हें.. बहुत अच्छा लग रहा है.. हाँ.. ऐसे ही बस चूस लो इनका सारा रस…

मेरा लण्ड उसकी जाँघों पर ऐसे रगड़ खा रहा था.. जैसे कोई अपना सर दीवार पर पटक रहा हो।

फिर मैंने धीरे से उसकी चूत में अपनी दो ऊँगलियाँ घुसेड़ कर उसे अपनी उँगलियों से चोदने लगा.. जिससे माया बुरी तरह सिसिया उठी।

'श्ह्ह्ह… अह्ह्ह.. ऊऊओह्ह्ह.. उउम्म्म…'

वो तड़पने लगी.. पर मैं भी अब सब कुछ समझ गया था कि किसी को कैसे मज़ा दिया जा सकता है।

तो मैं उसके निप्पलों को कभी चूसता तो कभी उसके होंठों को चूसता.. जिससे माया की कामाग्नि बढ़ती ही चली गई और मुझसे बार-बार लौड़े को अन्दर डालने के लिए बोलने लगी।

वो मेरी इस क्रिया से इतना आनन्द में हो चुकी थी कि वो खुद ही अपनी कमर उठा-उठा कर मेरी उँगलियों को अपनी चूत में निगलते हुए- अह्हह्ह उउउउम.. बहुत दिनों बाद ऐसा सुख मिल रहा है आह्ह्ह्ह्ह राहुल आई लव यू ऐसे ही बस मुझे अपना प्यार देते रहना आआह उउउम्म्म…

वो कामुक हो कर बुदबुदाते हुए अकड़ने लगी और अगले ही पल उसकी चूत का गर्म लावा मेरी उँगलियों पर बरसने लगा।

तब भी मैंने अपनी उँगलियाँ नहीं निकालीं.. जब वह शांत हुई तो मैंने अपनी उँगलियों को निकाल कर देखा जो कि उसके कामरस से सराबोर थी।

तभी मेरे दिमाग में न जाने कहाँ से एक फिल्म का सीन आ गया.. जिसमें लड़का लड़की की चूत रस से सनी उँगलियों को उसके नितम्ब में डाल कर आगे-पीछे करते हुए उसके मम्मों को चूसता है..

तो मैंने भी सोचा क्यों न अपनी इस इच्छा को भी पूरा कर लूँ और देखूँ क्या सच में कोई इस तरह से भी मज़ा ले सकता है।

तो मैंने भी उसके चूचे चूसते हुए उसकी चूत रस से सनी हुई उँगलियों में से एक ऊँगली उसकी गांड के छेद पर रखी ही थी कि माया ने आँखें खोल कर अपने हाथों से मेरी ऊँगली पकड़ कर अपनी चूत पर लगा दी।

शायद उसने सोचा होगा मेरा हाथ धोखे से उधर गया है.

अब उसे कैसे मालूम होता कि मेरी इच्छा कुछ और ही है।

मैंने फिर से अपनी ऊँगली उसके चूत से हटा कर.. उसकी गांड के छेद पर रख दी और उसकी गांड के गोल छेद पर ऊँगली कुछ इस तरह से चला रहा था.. जैसे कोई गम लगाया जाता है।

इस बार माया चुप्पी तोड़ती हुई बोली- अरे राहुल.. ये क्या कर रहे हो.. वो गलत छेद है।

तो मैंने उससे बोला- नहीं.. तुम्हें लगता होगा.. मुझे नहीं, मैंने फिल्मों में भी ऐसे करते हुए देखा है।

तो वो डरती हुई मुझसे बोली- नहीं.. मैंने ऐसा पहले कभी नहीं किया.. पर सुना है बहुत दर्द होता है प्लीज़.. ऐसा मत करो।

तो मैंने उसे समझाया और बोला- मैं तुम्हें दर्द नहीं दूंगा.. पर हाँ.. थोड़ा बहुत तो तुम मेरे लिए बर्दास्त तो कर ही सकती हो.. अगर तुम्हें ज्यादा तकलीफ हुई तो मैं अपना हाथ हटा लूँगा.. जब तक तुम नहीं चाहोगी.. तब तक ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा, जिससे तुम्हें तकलीफ हो।

पर माया का 'नानुकुर' बंद नहीं हुई, तो मैं उठ गया और उससे रुठते हुए बोला- देख लिया तुम्हारा प्यार.. बस मुँह से ही बोलती हो जो कहोगे वो करुँगी.. वगैरह.. वगैरह.. सब झूठ बोलती थीं।

इतना सुनकर वो मेरे पास आई और मेरे होंठों में अपने होंठों को रख कर मेरा मुँह बंद करके… मुझे अपने आगोश में ले लिया..

पर मेरा विरोध देख कर उसने प्यार भरी नज़रों से देखते हुए बोली- राहुल बस इत्ती सी बात पर नाराज़ हो गए… तुम्हारे लिए तो मेरी जान भी हाज़िर है.. पर मैं डर रही हूँ ऐसा करने से.. मैंने पहले कभी नहीं किया और तुम्हारा इतना बड़ा है.. अन्दर कैसे जाएगा.. मुझे बहुत तकलीफ होगी, प्लीज़ यार.. मेरी बात समझने की कोशिश करो।

तो मैंने भी मन में सोचा कि चल यार गांड तो मारनी ही है.. अब ज्यादा नहीं.. बस इसे किसी तरह तैयार करना है।

तो मैंने भी बात बनाते हुए बोला- अच्छा ये बोलो.. मैंने कब आपसे बोला कि मैं अपना लौड़ा डालना चाहता हूँ.. पर हाँ.. जब तुम कहोगी तभी ऐसा होगा.. मैं तो बस मज़े के लिए अपनी ऊँगली डाल रहा था.. आपने तो बतंगड़ बना दिया…

मेरे इस तरह 'आप आप' कहने पर माया बोली- प्लीज़ तुम मुझे माया या तुम कह कर ही बोला करो.. मुझे ये अच्छा नहीं लगता कि तुम मुझसे 'आप आप' करो.. मैं अब तुम्हारी हूँ तुमने मुझे बहुत हसीन पल और सुख दिए हैं.. जिसे मैं कभी भुला नहीं सकती हूँ।

तो मैंने भी नहले पर दहला मारते हुए उससे बोला- तो अब तुम्हारा क्या इरादा है?

तो वो कुछ नहीं बोली और मेरी बाँहों में समा कर मुझे चुम्बन करने लगी मेरे गालों और छाती पर चुम्बनों की बौछार करते हुए बोली- जैसी तुम्हारी इच्छा…

मैं उसे लेकर फिर से बिस्तर पर उसी तरह से लेट कर प्यार करने लगा.

जैसे पहले कर रहा था। पर अब उँगलियों की चिकनाई सूख चुकी थी तो मैंने अपनी दो उँगलियों को उसके मुँह में डाल दी और उसके मम्मों को मुँह में भर कर फिर से चूसने लगा। माया ने मेरी उँगलियों को किसी लॉलीपॉप की तरह चूस-चूस कर गीला करके बोली- अब कर लो अपनी इच्छा पूरी…

सभी पाठकों के संदेशों के लिए धन्यवाद.. यह मदमस्त कहानी जारी रहेगी।
 
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कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा:

तो मैंने भी नहले पर दहला मारते हुए उससे बोला- तो अब तुम्हारा क्या इरादा है?

तो वो कुछ नहीं बोली और मेरी बाँहों में समा कर मुझे चुम्बन करने लगी मेरे गालों और छाती पर चुम्बनों की बौछार करते हुए बोली- जैसी तुम्हारी इच्छा..

मैं उसे लेकर फिर से बिस्तर पर उसी तरह से लेट कर प्यार करने लगा.. जैसे पहले कर रहा था। पर अब उँगलियों की चिकनाई सूख चुकी थी तो मैंने अपनी दो उँगलियों को उसके मुँह में डाल दी और उसके मम्मों को मुँह में भर कर फिर से चूसने लगा।

माया ने मेरी उँगलियों को किसी लॉलीपॉप की तरह चूस-चूस कर गीला करके बोली- अब कर लो अपनी इच्छा पूरी..

अब आगे…

मैंने उसकी ये बात सुन कर उसे 'आई लव यू' बोला और पहले उसे हर्ट करने के लिए माफ़ी भी मांगी..

पर उसने जवाब में बोला- नहीं यार.. होता है कोई बात नहीं.. मुझे बुरा नहीं लगा।

फिर मैंने भी देर न करते हुए उसकी गांड के छेद पर उसके थूक से सनी ऊँगली को चलाने लगा.. जिससे उसे भी अच्छा लग रहा था। थोड़ी देर बाद मैंने फिर से उसे ऊँगलियां चुसवाईं और अबकी बार मैंने एक ऊँगली गांड के अन्दर डालने लगा।

उसकी गांड बहुत ही तंग और संकरी थी.. जिससे वो थोड़ा 'आआआह' के साथ ऊपर को उचक गई और मेरे दांतों से भी उसके गुलाबी टिप्पे रगड़ गए।

वो दर्द से भर उठी 'अह्ह्हह्ह आउच' के साथ बोली- अन्दर क्यों डाल रहे थे.. लगती है न..

तो मैंने बोला- थोड़ा साथ दो.. मज़ा आ जाएगा।

फिर से उसके चूचों को अपने मुँह की गिरफ्त में लेकर चूसने लगा और अपनी ऊँगली को उसकी गांड की दरार में फंसा कर अन्दर की ओर दाब देने लगा।

इस बार माया ने भी साथ देते हुए अपने छेद को थोड़ा सा खोल दिया, जिससे मेरी ऊँगली आराम से उसकी गांड में आने-जाने लगी.. पर सच यार उसके चेहरे के भावों से लग रहा था कि उसे असहनीय दर्द हो रहा है।

पर मैंने भी ठान रखा था.. होगा तो देखा जाएगा।

फिर उसे प्यार से चूमने-चाटने लगा और देखते ही देखते उसकी गांड ने मेरी ऊँगली को एडजस्ट कर लिया। जिससे अब मेरी ऊँगली आराम से अन्दर-बाहर होने लगी और माया भी मज़े से सिसियाने 'श्ह्ह्ह्ह' लगी थी।

मैंने फिर से उसके मुँह में ऊँगलियों को गीला करने के लिए डाला और उसने भी बिना देर किए ऐसा ही किया।

फिर मैंने अपनी एक ऊँगली उसकी गांड में डाली तो वो बिना विरोध के आराम से चली गई तो मैंने उसका छेद फ़ैलाने के लिए फिर से ऊँगली बाहर निकाली और अबकी बार दो ऊँगलियां उसकी गांड में डालने लगा तो माया फिर से दर्द भरी "आआअह आउच" और कराह के साथ बोली- राहुल.

दो नहीं, एक से कर.. मुझे दर्द हो रहा है।

तो मैंने बोला- अभी थोड़ी देर पहले तो एक से भी हो रहा था.. पर तुम परेशान मत हो.. मैं आराम से करूँगा।

मैं फिर से धीरे-धीरे उसकी गांड की गहराई में अपनी दो उँगलियों से बोरिंग करने लगा और उसके निप्पलों को चूसने-चाटने लगा, जिससे माया की चूत से कामरस की धार बहने लगी।

देखते ही देखते उसकी दर्द भरी 'आआआआह' मादक सिसकियों में परिवर्तित हो गई।

'श्ह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह ऊऊम'

वो अपनी कमर ऊपर-नीचे करने लगी और अपने मम्मों खुद सहलाने लगी।

अब वो कंपकंपाती हुई आवाज़ में मुझसे लण्ड चूत में डालने के लिए बोलने लगी, पर मैंने उससे कहा- मेरा एक कहना मानोगी।

वो बोली- एक नहीं.. सब मानूंगी.. पर पहले इस चूत की आग शांत तो कर दे बस।

मैंने बोला- पक्का..

तो वो बोली- अब क्या लिख के दूँ.. प्रोमिस.. मैं नहीं पलटूंगी.. पर जल्दी कर.. अब मुझसे और नहीं रहा जाता।

तो मैंने भी बिना देर किए हुए उसके ऊपर आ गया और उसकी टांगों को फैलाकर उसकी चूत पर अपना लौड़ा सैट करके थोड़ा सा अन्दर दबा दिया ताकि निकले न और फिर अपनी कोहनी को उसके कंधों के अगल-बगल रख कर उसके होंठों को चूसते हुए उसे चोदने लगा।

अब माया को बहुत अच्छा लग रहा था.. वो भी अपनी कमर को जवाब में हिलाते हुए चुदाई का भरपूर आनन्द ले रही थी।

जब मैं उसकी चूत में थोड़ा तेज-तेज से लौड़े को अन्दर करता.. तो उसके मुँह से मादक 'गूं-गू' की आवाज़ आने लगती.. क्योंकि उसके होंठ मेरे होंठों की गिरफ्त में थे।

अब माया अपने दोनों मम्मों को खुद ही अपने हाथों से रगड़ने लगी.. जिससे उसका जोश बढ़ गया और वो जोर-जोर से कमर हिलाते-हिलाते शांत हो गई। उसकी चूत इतना अधिक पनिया गई थी कि मेरा लौड़ा फिसल कर बाहर निकल गया।

मैंने फिर से अपने लौड़े को अन्दर डाला और अब हाथों से उसके मम्मों को भींचते हुए उसकी चुदाई चालू कर दी.. जिससे वो एक बार फिर से जोश में आ गई।

अब कुछ देर की शंटिंग के बाद मेरा भी होने वाला था तो मैंने उसे तेज रफ़्तार से चोदना चालू कर दिया।

मेरी हर ठोकर पर उसके मुँह से मादक आवाज़ आने लगी।

'अह्ह्ह अह्ह्ह्ह उम्म्म्म ऊऊओह' मैं बस कुछ ही देर में उसकी चूत में स्खलित होने लगा.. मेरे गर्म लावे की गर्मी से चूत ने भी फिर से कामरस की बौछार कर दी, मैं उसके ऊपर झुक कर उसके गले को चूमने लगा और निढाल होकर उसके ऊपर ही लेट गया।

थोड़ी देर बाद जब फिर से घड़ी पर निगाह गई तो देखा पांच बज चुके थे।

माया को मैंने जैसे ही समय बताया तो वो होश में आकर हड़बड़ा कर उठते हुए बोली- यार तुम्हारे साथ तो पता ही न चला.

कल तुम कब आए और इतनी देर मैंने तुम्हारे साथ एक ही बिस्तर पर गुजार दिए… पता नहीं दूध वाला आया होगा और घंटी बजा कर चला भी गया होगा..

इस तरह की बातों को बोल कर वो परेशान होने लगी.. तो मैंने बोला- मैं हूँ न.. परेशान मत हो.. हम आज रात बाहर ही डिनर करेंगे और दूध वगैरह साथ लेते आएंगे।

मैंने उसके मम्मे दबाते हुए बोला- वैसे भी मुझे ये दूध बहुत पसंद है।

तो वो भी चुटकी लेते हुए बोली- ये बस दबाए, रगड़े और चूसे जा सकते हैं इनसे मैं अपने जानू को चाय नहीं दे सकती।

तो मैंने ताली बजाई और बोला- ये बात.. समझदार हो काफी।

फिर मैंने उसे याद दिलाया- अभी कुछ देर पहले कुछ बोला था तुमने.. याद है या भूल गईं?

तो बोली- बता न.. कहना क्या चाहते हो?

तब मैंने कहा- अभी कुछ देर पहले मैंने बोला था कि मेरा एक कहना मानोगी.. तो तुम बोली थीं कि एक नहीं सब मानूंगी.. पर पहले इस चूत की आग शांत कर दे।

तो माया बोली- अरे यार तुम बोलो तो सही.. क्या कहना चाहते थे?

तो मैंने उससे उसकी गांड मारने की इच्छा बता दी।

वो बोली- राहुल मुझे बहुत दर्द होगा.. सुना है, पहली बार के बाद चलने में भी तकलीफ होती है.. पर तुझे इसी से खुशी मिलेगी तो मैं तैयार हूँ.. मैं तुझे अब खोना नहीं चाहती.. तू जो चाहे वो कर..

उसके इस समर्पण भाव को देखकर मैं पिघल गया और उसे अपनी बाँहों में चिपका लिया। उसके बदन की गर्मी बहुत अच्छी लग रही थी।

थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहने के कुछ ही देर बाद माया बोली- अब ऐसे ही खड़े रखना चाहते हो.. या मुझे तैयार होने के लिए जाने दोगे.. नहीं तो हम बाहर कैसे जायेंगे?

तब तक माया के फ़ोन पर बेल बजी जो कि विनोद की थी। माया ने झट से फ़ोन रिसीव किया और स्पीकर ऑन करके बात करते हुए नाइटी पहनने लगी।

उधर से विनोद बोला- क्या माँ.. इतनी बार तुम्हारा फ़ोन लगाया तुमने एक बार भी नहीं देखा.. मैं बहुत परेशान हो गया था और राहुल का फ़ोन ऑफ जा रहा था.. वो है कहाँ? आंटी का भी फोन आया था.. उसके बारे में जानने के लिए.. मैं उन्हें क्या बताता.. वैसे वो है कहाँ?

माया बहुत घबरा गई.. उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले.. पर उसने बहुत ही समझदारी के साथ काम लिया और बोला- अरे फोन तो साइलेंट पर लगा हुआ था अभी बस केवल लाइट जल रही थी.. तो मैंने उठाया.

तब पता चला कि तुम्हारा फोन आया है और राहुल का फोन बैटरी खत्म होने की वजह से ऑफ हो गया था और अभी वो सब्जी लेने गया है रात के लिए… ख़त्म हो गई थी.. आता है तो उसे बोल दूँगी कि घर पर बात कर ले और यह बता कल कितने बजे तक आ रहा है?

तो उसने बोला- यही कोई 11 बज जाएँगे..

बस फिर इधर-उधर की बात के साथ फोन काट दिया।

फिर मुझसे बोली- जा पहले तू भी अपनी माँ से बात कर ले..

तो मैंने बोला- फोन तो ऑफ है अभी आप ने बोला है.. कहीं माँ ने फिर विनोद से बात की.. तो गड़बड़ हो सकती है।

तो मैं अब घर होकर आता हूँ और मैं भी कपड़े पहनने लगा और जाते-जाते उससे पूछा- हाँ.. तो आज गांड मारने दोगी न?

तो बोली- बस रात तक वेट करो और घर होकर जल्दी से आओ.. मैं तुम्हारा इन्तजार करुँगी।

अब मैंने माया की गांड कैसे मारी जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार करें धन्यवाद
 
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कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा:

तो मैंने बोला- फोन तो ऑफ है अभी आप ने बोला है.. कहीं माँ ने फिर विनोद से बात की.. तो गड़बड़ हो सकती है।

तो मैं अब घर होकर आता हूँ और मैं भी कपड़े पहनने लगा और जाते-जाते उससे पूछा- हाँ.. तो आज गांड मारने दोगी न?

तो बोली- बस रात तक वेट करो और घर होकर जल्दी से आओ.. मैं तुम्हारा इन्तजार करुँगी।

अब आगे..

फिर मैं वहाँ से अपने घर की ओर चल दिया और करीब 10 मिनट में घर पहुँचा.. दरवाज़ा बंद होने के कारण घंटी बजाई..

तो मेरी माँ ने दरवाज़ा खोला और मुझे देखते ही बड़बड़ाने लगीं- तुम्हारा कोई फ़र्ज़ नहीं बनता कि एक बार घर पर बात कर लूँ और अपना फोन भी ऑफ किए थे?

तो मैंने उनको समझाया- माँ ऐसा नहीं है… मैं और आंटी घर का सामान लेने बाजार गए थे.. तो विनोद से पता चला था.. पर सामान ज्यादा होने की वजह से मैंने सोचा.. बाद में मैं खुद ही आप से मिल आऊँगा और मेरे गेम खेलने की आदत आप जानती ही हो.. तो फोन रात में ही ऑफ हो गया था और चार्जर घर पर ही है.. इसी वजह से.. आप से बात नहीं कर पाया। खैर.. आप बोलो.. कोई काम हो मैं कर देता हूँ.. फिर मुझे वहाँ भी जल्दी निकलना है.. सब्जी भी लेकर जानी है… उनके यहाँ ख़त्म हो गई है.. वरना उनको खाना पकाने में देरी हो जाएगी..

इतना सब बहाना बनाने के बाद माँ कुछ शान्त हुईं.. और बोलीं- अरे कोई काम नहीं था.. मैंने बस तेरे हाल लेने के लिए फोन किया था। तेरा सुबह से ही फोन ऑफ जा रहा था और माया जी का मेरे पास नम्बर भी नहीं था और विनोद से भी तेरे कोई हाल-चाल नहीं मिले थे.. तो मुझे चिंता हो रही थी कि क्या बात हो गई.. बस और कुछ नहीं था.. खैर कोई बात नहीं.. तुम जल्दी जाओ.. नहीं तो बहन जी को खाना बनाने में रात ज्यादा हो जाएगी और हाँ.. अपना चार्जर भी लेते जाना.. वैसे कल तुम्हारा दोस्त कितने बजे तक आ जाएगा?

तो मैंने उन्हें बताया कल सुबह 11 बजे तक..

फिर वो कुछ नहीं बोलीं।

मैंने कपड़े बदले और कुछ पार्टीवियर कपड़े लैपटॉप के बैग में रखे.. साथ ही चार्जर भी डाला और माँ से बोला- अच्छा माँ.. मैं अब चलता हूँ।

तो उन्होंने बोला- कल समय से आ जाना और अगर देर हो.. तो फ़ोन कर देना।

फिर मैं 'ओके' बोल कर अपने घर से माया के घर की ओर चल दिया।

अब बस मेरे दिमाग में माया के चिकने गोल नितम्ब नाच रहे थे कि कैसे आज मैं उसकी गांड बजाऊँगा और यूँ ही ख्यालों में खोया हुए कब मैं उनके घर पहुँचा
पता ही न चला।

फिर मैंने घंटी बजाई तो थोड़ी देर बाद माया ने दरवाज़ा खोला और मुझे देखते हुए बड़े आश्चर्य से बोली- अरे राहुल अभी तो बस गया था और इतनी जल्दी आ भी गया।

तो मैंने तुरंत बैग सोफे पर पटका और उसे बाँहों में भर कर प्यार करते हुए उसके चूचे दबा कर कहा- यार तेरी गांड ने मुझे इतना दीवाना बना रखा है कि मेरा मन कहीं लग ही न रहा था।

तो उसने मेरे गालों पर चुटकी ली और इंग्लिश में शैतानी भरे लहजे से बोली-यू आर स्वीट एंड सॉर.. तू बड़ा हरामखोर है..

तो मैंने भी उसके भोंपू कस कर दबा कर जवाब दिया- सीखा तो तुझी से ही है।" फिर वो एक शरारत भरी मुस्कान के साथ बोली- देख अभी मैं तेरे लिए चाय लाती हूँ और तब तक तू फ्रेश हो जा.. जब तक तू चाय पियेगा.. मैं तैयार होकर आ जाऊँगी.. फिर हम किसी अच्छे से होटल में डिनर करने चलेंगे।

तो मैंने भी उससे मुस्कुरा कर बोला- आज तुम मुझे बिना कहे ही चाय पिला रही हो… क्या बात है जो इतना ख्याल है मेरा..

तो माया बोली- अरे कुछ नहीं.. जब तू मेरा इतना ख़याल रखता है.. तो मेरा भी फर्ज बनता है।

इतना कह कर वो रसोई में चली गई और मैं वाशरूम चला गया। मैंने चेहरा वगैरह साफ किया और अपना बैग खोल कर कपड़े निकाले।

तब तक माया चाय ले आई और मेरे कपड़े देख कर बोली- ओहो… क्या बात है राहुल किसी और को भी नीचे गिराने का इरादा है।

तो मैंने बोला- ऐसा नहीं.. वो तो मैं इसलिए लाया था क्योंकि पहली बार किसी के साथ मैं डिनर पर जा रहा हूँ.. तो इस पल को और अच्छा करने के लिए मैंने ऐसा किया है।

तो बोली- वैसे जो पहने हो.. वो भी ठीक हैं.. पर जब लाए हो.. तो बदल लो… अब तो मुझे भी तेरी तरह सजना पड़ेगा.. ताकि मैं तेरे इस पल को और हसीन कर दूँ। अब तुम चाय की चुस्कियों का आनन्द लो और मैं चली तैयार होने..

तो मैंने झट से एक हाथ से चाय का मग पकड़ा और दूसरे हाथ से उनके चूचे मसके..

तो बोली- अरे छोड़ो.. अभी रात भी अपनी ही है.. नहीं तो जाने में देर हो जाएगी। मैंने बोला- चुस्कियों का मज़ा जो तेरे मम्मे देते हैं वो चाय में कहाँ..

और एक बार उसके मस्त मम्मों को फिर से दबा दिया।

तो माया बोली- अच्छा.. अब जाने भी दो.. रात को जी भर के चुस्कियां ले ले कर पी लेना.. पर अभी तुम सिर्फ चाय पियो।

इतना कहकर वो चली गई और मैंने भी चाय ख़त्म की। मैं अपने कपड़े पहनने लगा और तैयार हो गया और वहीं सोफे पर बैठ कर माया का इन्तजार करने लगा घड़ी देखी.

तो आठ बज चुके थे पर माया अभी तक नहीं आई।

मैंने मन में सोचा पता नहीं ये कितना देर लगाएगी तो मैंने आवाज़ लगाई- आंटी और कितनी देर लगाओगी?

तो वो बोली- बस थोड़ा और वेट करो..

देखते ही देखते साढ़े आठ बज गए.. मैंने फिर जोर से आवाज़ दी- आंटी जल्दी करो..

तो वो बोली- बस हो गया अभी आई..

करीब पांच मिनट बाद आंटी आ गई और मुझसे बोली- तुमको इतनी बार बोला मुझे आंटी-वांटी नहीं.. माया बोला करो.. पर तुम्हें समझ नहीं आता क्या?

पर उनकी इस बात का मेरे ऊपर कोई असर नहीं पड़ा कि वो क्या कह रही है क्योंकि मैं उसे देखता ही रह गया था। आज वो किसी मॉडल से कम नहीं दिख रही थी.. क्या बला की खूबसूरत लग रही थी जैसे priyanka chopra..

उसने अपने बालों को पोनी-टेल की तरह बांध रखा था और नेट वाला अनारकली सूट पहना हुआ था.. आँखों में काजल और मस्कारा वगैरह लगा कर मेकअप कर रखा था.. आज वो वाकयी बहुत सुन्दर सी किसी परी की तरह दिख रही थी। उसके होंठों पर जो सुर्ख लाल रंग की लिपस्टिक थी.. वो भी शाइन मार रही थी।

मैं तो उसके रूप-सौंदर्य में इतना खो गया था कि मुझे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था और सिर्फ वही दिखाई भी दे रही थी।

यार क्या गजब का माल लग रही थी.. देख कर लग ही नहीं रहा था कि ये रूचि की माँ है या उसकी बड़ी बहन है.. मैंने उसे अपनी बाँहों में लेकर चूम लिया उसके गर्दन और उसके कपड़ों से काफी अच्छी सुगंध आ रही थी.. जो की किसी इम्पोर्टेड सेंट की लग रही थी।

मैंने उससे पूछा- कौन सी कंपनी का कमाल है.. जो इतना मादक महक दे रही है?

तो उसने बताया- अभी पिछली बार मेरे पति लाए थे।

'अरे मैंने कंपनी पूछी है…'

तो बोली- 'ह्यूगो बॉस' का है।

तो मैंने भी मुस्कुरा कर बोला- फिर तो फिट है बॉस.. वैसे आज इतना सज-धज के चलोगी तो पक्का दो-चार की जान तो ले ही लोगी।

तो बोली- मुझे तो बस अपने इस आशिक से मतलब है और मैंने तुम्हारी ख़ुशी के लिए ये सब किया है ताकि तुम्हारी पहली डेट को हसीन बना सकूँ।


कहानी जारी रहेगी।
 

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