Adultery भाभियों का रहस्य

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अध्याय 1
मोबाइल के रिंगटोन से मेरी नींद खुली और स्क्रीन देखते ही चहरे में मुस्कान खिल गयी
"का रे बुधारू कैसे हो ? इतना सुबह कहे फोन किये "
"ठीक है भैया …अम्मा ने कहा की बात करेंगी लो बात करो "
अम्मा का नाम सुनते ही मैं बिस्तर से उठ बैठा ..
मेरी अम्मा मतलब श्रीमती कांति देवी जी , रिश्ते में मेरी बुआ लगती है, सभी लोग उन्हें अम्मा ही कहते है कुछ बुजुर्ग ठकुराइन भी कहा करते है , अब पुरे गांव की उनसे फटती है तो मैं किस खेत का मुली था , उनके ही बदौलत शहर में पढाई कर रहा था , मेरे माता पिता तो बचपन में ही स्वर्ग सिधार गए थे ..
"प्रणाम अम्मा "
"खुश रहो .. अभी तक सो के नहीं उठे हो ??"
मेरी और फटी
"नहीं उठ गया था बस …"
"चलो ज्यादा झूठ बोलने की जरुरत नहीं है सब समझती हु मैं , एक काम करो शहर में सुवालाल जी की दूकान देखि है ना "
"जी अम्मा .."
"वंहा से कुछ रूपये लाने है , आज ही चले जाओ और शाम तक गांव आ जाओ .."
"जी .."
फोन कट हुआ तो मेरे माथे पर पसीना था , पता नहीं क्यों लेकिन अम्मा से मैं बहुत डरता था , ऐसा नहीं था की वो मुझे डांटती थी या और कुछ लेकिन बस उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था की सामने वाला उनके सामने खुद को छोटा ही समझता है ..
ऐसे अम्मा मेरे पिता जी से 10 साल छोटी थी , अभी भी उनकी उम्र कोई 35 साल की ही रही होती जबकि मैं अभी २१ साल का हो चूका था , दुधिया गोरा रंग माथे में गढ़ा सिंदूर और मस्तक में लाल रंग का गुलाल , हाथो में रंग बिरंगी चुडिया जो की अधिकतर सोने के कड़े और लाला रंग की चुडिया होते थे , महँगी जरीदार साड़ी पहने हुए वो अपने नाम से बिलकुल मैच खाती थी ..
नाम के अनुरूप ही एक कांति उनकी आभा में हमेशा ही विद्यमान रहती , रोबदार चहरे में कभी सिकन दिखाई नहीं देती जबकि उनका व्यक्तिगत जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था , पति रोग से पीड़ित और अधिकतर बिस्तर में रहते , राजनितिक आपदा हमेशा सर में नचाती रहती , उनकी ही हवेली में उनके खिलाफ षडियंत्र करने वालो की कमी नहीं थी और ये बात उन्हें अच्छे से पता भी थी , मायके था नहीं ससुराल वालो जान के दुशमन थे , एक भाई जो उन्हें अपने आँखों में बिठाकर रखता वो जा चूका था और उनकी एक निशानी मेरे रूप में उनकी जिम्मेदारी बन चुकी थी , कोई ओलाद नहीं , अपना कहने को बस मैं था वो भी उनसे दूर ही रहा ….
पति के बीमार होने के बाद से ही बिजनेस और राजनीती की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधे में आ गयी थी जिसका निर्वहन उन्होंने बहुत ही अच्छी तरह से किया था , कोई नहीं कह सकता था की वो अंगूठा छाप है , एक दो भरोसे के लोग उनके पास थे जिनके भरोसे ही उन्होंने ये सब सम्हाल रखा था , वो लोग मुझे कहते की ये सब कुछ आगे चलकर तुम्हे ही सम्हालना है , लेकिन मैं खुद को देखता मैं तो अम्मा की आभा के सामने खड़े होने की भी हैसियत नहीं रखता था आखिर मैं कैसे उनका उतराधिकारी बन सकता था ??
खैर जो भी हो अम्मा ने काम बताया था तो जल्दी से जल्दी करना ही था …
सुवालाल जी गहनों के बड़े व्यापारी थी और हमारे परिवार के मित्र भी , उनके पास जाते ही बड़े ही आत्मीयता से मेरा स्वागत किया गया ..
"कैसे है कुवर निशांत जी .."
मैं सुवालाल जी के साथ बैठा ही था की एक लड़की की आवाज आई , मैंने मुस्कुराते हुए उस ओर देखा
"काहे का कुवर यार तू भी टांग खिंच रही है "
वो मेरी कालेज की दोस्त और सुवालाल जी की बेटी अनामिका थी जिसे हम अन्नू कहा करते थे
अन्नू मेरे पास आकर बैठ गयी ,
"अरे कुवर साहब अम्मा का जो भी है वो आपका ही तो है , फिर आप कुवर ही हुए ना "
सुवालाल जी बोल पड़े
"क्या अंकल आप भी ना, ऐसे भी मुझे ये सब समझ नहीं आता "
"कोई नहीं आज गांव जा रहे हो फिर कब वापस आओगे " इस बार अन्नू ने कहा था
"नहीं पता यार ऐसे भी पढाई तो ख़त्म हो ही चुकी है , तुम भी चलो मेरे साथ गांव घुमा कर लाता हु "
मेरी बात सुनकर अन्नू ने एक बार अपने पिता की ओर देखा
"अरे हां जाओ भई ये भी कोई पूछने की बात है क्या , मैं अम्मा से बात कर लूँगा "
अपने पिता की बात सुनकर अन्नू ख़ुशी से उछल पड़ी ..
दो बॉडीगार्ड और एक ड्राईवर के साथ हम गांव की ओर निकल पड़े थे
आते ही अन्नू अम्मा के गले से लग गई , मेरे विपरीत ही अन्नू अम्मा से बिलकुल भी नहीं डरती बल्कि उनसे मिलने के लिए भी उतावली रहती , उन्हें देखकर ऐसा लगता जैसे ये दोनों माँ बेटी हो , अम्मा का व्यवहार भी अन्नू के लिए स्नेह पूर्ण रहा था , अम्मा ने पहले अन्नू के गाल खींचे ,
"कितने दिनों के बाद याद आई मेरी "
"क्या करू अम्मा ये आपका बेटा तो मुझे यंहा लाता ही नहीं "
"ओह तो गांव कितना दूर है जो तुझे इसकी जरुरत पड़ती है , और तूम इतने पैसो के साथ आ रहे हो और इसे भी साथ ले आये , अगर कुछ हो जाता तो "
अम्मा का गुस्सा मुझपर फूटा , मैं कुछ बोल पाता उससे पहले ही अन्नू ने अम्मा को माना लिया ..
************************
सफ़र के थकान मिटाने हम दोनों अपने कमरे में जाकर सो गए थे …
जब उठा तो शाम होने को थी की मैं अन्नू को लेकर बगीचे की तरफ चल दिया ,
"यार अम्मा इतनी प्यारी है तुम उनसे इतना डरते क्यों हो "
हम आम के बगीचे में टहल रहे थे , अन्नू के सवाल पर मैंने एक गहरी साँस ली
"मुझे नहीं पता की आखिर मैं उनसे क्यों डरता हु , उन्होंने मेरी परवरिस में कभी कोई कमी नहीं रखी , माँ पापा के जाने के बाद भी मुझे कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया , शायद यही कारन है की मैं उनकी बहुत इज्जत करता हु , जो की सबको डर के रूप में दीखता है "
अन्नू ने बड़े ही प्यार से मेरे गालो को सहलाया
"वो तुमसे बहुत प्यार करती है , मैंने उनकी आँखों में महसूस किया है , आखिर तुम ही तो उनका एक मात्र सहारा हो , अपना कहने को तूम्हारे सिवा उनका है ही कौन "
हम चलते चलते नदी के किनारे पहुच गए थे , ये पहली बार नहीं था जब मैं और अन्नू एक साथ यु घूम रहे थे, जब भी अन्नू और मैं गांव आते तो यही हमारा ठिकाना होता था , नदी की रेत में बैठे हुए हमने पैर पानी में डाल दिए , अन्नू का सर मेरे कंधे पर था ..
बड़ा सकुन का पल था , इधर सूर्य देव अस्त होने वाले थे , उनकी लालिमा आकाश में फ़ैल रही थी , पानी का कलरव और चिडियों की चहचहाहट , साथ में अन्नू का नर्म हाथ मेरे हाथो में था , मैं इसी पल में खुद को समेट लेना चाहता था ..
शांति के इस माहोल में किसी के गाने की आवाज ने हमारा ध्यान भंग किया ..
"बहुत प्यारी आवाज है आखिर है कौन ??'
अन्नू भी उस ओर देख रही थी जन्हा से आवाज आ रही थी
"चलो देखते है "
हम दोनों ही उस ओर निकल पड़े , थोड़ी दूर चलने पर आवाज स्पष्ट हो गई थी लगा दो तीन महिलाये एक साथ गाना गा रही है , झाड़ियो से निकलते हुए जब हम थोड़े करीब पहुचे तो वो दृश्य देखकर हम दोनों ही जम गए ..
सामने का नजारा था ही कुछ ऐसा ,
5 ओरते पूरी तरह से नग्न होकर आग के चारो ओर घेरा बनाकर नाच रही थी , सभी के बाल बिखरे हुए थे , मस्तक पर में बड़ा सा काले रंग का तिलक लगाये हुए ये महिलाये जैसे किसी और ही दुनिया में पहुच गई थी , सभी अपने में ही मग्न थी , सभी के कपडे पास ही पड़े थे साथ ही उनके घड़े भी रखे हुए थे , उनमे से एक को मैं पहचान गया था , वो बुधारू की बीबी रमा भाभी थी , बाकि की औरते भी मेरे ही गांव की लग रही थी , आखिर ये कर क्या रही है ..??
सभी जैसे किसी नशे में डूबी हुई थी , फिर उन्होंने अपने पास रखे मटके को उठा लिया और उसमे से पूरा पानी अपने उपर डाल लिया , हम दोनों आँखे फाड़े हुए उन्हें देख रहे थे , तभी …
"अरे वो देखो , पकड़ो उन्हें " उनमे से एक औरत चिल्लाई , और सभी मानो सपने से जागी हो ,
सभी की नजरे हमारी ओर थी , उनको देख कर हम बुरी तरह से डर गए और तेजी से वंहा से भागे …
अन्नू की भी हालत कुछ ठीक नहीं थी और हवेली अभी भी दूर थी ..
पीछे से कोई आवाज नहीं आ रही थी लेकिन हम पूरी ताकत से भागे जा रहे थे …….
अचानक ही अन्नू ने मेरा हाथ खिंच लिया और चुप रहने का इशारा किया , उसने इशारे से मुझे सामने दिखाया हम तुरंत ही छिप गए , सामने कुछ महिलाये हाथो में डंडा लिए खड़ी दिखी , मैं उनमे से कुछ को पहचानता था वो हमारे ही हवेली में काम करती थी ,हम धीरे से दुसरे रास्ते से भागने लगे , और तब तक भागे जब तक की हवेली ना दिख गई …..
 
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अध्याय 2
हमारी सांसे फुल चुकी थी , हमने जो देखा था वो क्या था इसका हमें जरा भी इल्म नहीं था , हमने पीछे मुड कर देखने की बिलकुल भी जहमत नहीं उठाई हम सीधे भागते ही चले गए और सीधे हवेली में जाकर रुके , हवेली में भी हम सीधे मेरे कमरे में घुस गए …
थोड़ी देर तक हममे से किसी ने कुछ भी नहीं कहा
जब थोड़ी सांसे सामान्य हुई तो मैंने अपने कमरे की खिड़की से बाहर की ओर देखा
"अन्नू यंहा देखो "
अन्नू मेरे साथ बाहर देखने लगी , निचे कुछ महिलाये अम्मा के साथ खड़ी थी , वो चिंतित लग रही थी साथ ही अम्मा भी , मैंने ध्यान से देखा तो ..
"ये तो वही है जो नदी में थी "
अन्नू ने भी हां में सर हिलाया तभी अम्मा समेत सभी का सर उठा और सभी मेरे कमरे की ओर ही देखने लगे , हम दोनों ने ही झट से अपना सर अन्दर खिंच लिया
"यार ये हो क्या रहा है …ओरते नंगी होकर नाच रही है वो भी अजीब तरीके से , और कुछ उनकी पहरेदारी कर रही है , वही ये सभी अब अम्मा के पास भी आ गई , अम्मा भी चिंतित लग रही है "
मैं तेज कदमो से अपने कमरे में चहलकदमी करने लगा ..
थोड़ी ही देर हुई थी की हमारे कमरे में दस्तक हुई , अन्नू ने दरवाजा खोला ये कामिनी भाभी थी , हमारे हवेली में ही काम करने वाले बाबूलाल की बीवी , कोई 25 साल की कामिनी देखने में बहुत ही आकर्षक और तीखे नयन नक्स वाली थी , हल्का गदराया सांवला जिस्म और चंचल आँखे उसे और भी आकर्षक बनाते , वो अकसर ही मुझसे मजाक किया करती कभी कभी गालो को खिंच देती तो कभी मेरे कुलहो पर चपत मार देती , उनकी बातो में भी एक मादकता हमेशा ही रहती ,आज भी वो उसी अजीब सी मुस्कान के साथ हमारे सामने खड़ी थी …
"आपको अम्मा ने बुलाया है "
उसने अन्नू की ओर्र देखते हुए कहा ..
"म म मुझे …" उनकी बात को सुनकर अन्नू थोड़ी हडबडाई …
"जी आपको … चलिए "
अन्नू उसके साथ जाने को हुई
"मैं भी चलता हु .."
मैंने भी तुरंत कहा
"अरे कुवर जी आप कहा चले , अम्मा ने अन्नू को बुलाया है वो भी अकेले में .. आपकी सेवा करने हम है ना , कहो तो रुक जाती हु "
कामिनी भाभी की बात सुनकर मैंने थोडा सकपकाया
"नहीं मैं ठीक हु .., अन्नू तुम जाओ मैं इन्त्त्जार कर रहा हु "
मेरी हालत देख कर कामिनी मुस्कुराई और अन्नू उनके साथ चली गई …
मैं बेचैन सा अपने कमरे में ही बैठा रहा कोई आधे घंटे के बाद अन्नू वापस आई , उसका चहरा पीला पड़ा हुआ था …
"क्या हुआ क्या कहा अम्मा ने .."
अन्नू ने एक बार मुझे देखा लेकिन वो कुछ बोली नहीं बल्कि सीधे जाकर बिस्तर में बैठ गयी
"अरे बताओगी भी की आखिर क्या कहा अम्मा ने …?"
मैं भी उसके बाजु में जाकर बैठ गया , उसने एक बार मुझे देखा
"कैसे बताऊ कुछ समझ नहीं आ रहा है …."
वो अपना सर पकड़ कर बैठ गयी
"तुम बताओ तो सही …जो भी हो मैं तुम्हारे साथ हु "
मैंने उसका हाथ अपने हाथो में ले लिया , उसने फिर से मुझे देखा उसकी आँखे गीली थी ,डबडबाई हुई आँखों से कुछ सेकण्ड के लिए वो मुझे देखने लगी
"निशांत तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो "
वो मेरे गले से लग गई , मैं भी उसकी पीठ सहलाने लगा
"हा ये कोई बोलने की बात है क्या ??"
इस बार उसके चहरे में एक मुस्कान आई
"नहीं ये कोई बोलने की बात नहीं है लेकिन अब ये मुझे बोलना होगा क्योकि अब हमें हमारी दोस्ती से उपर एक काम करना होगा …"
वो फिर से चुप हो गई ..
उसकी रहस्य मयी बात सुनकर मैं सोच में पड़ गया की आखिर ऐसी कौन सी बात हो गई ,
मैंने उसके हाथो को अपने दोनों हाथो से थाम लिया और उसकी आँखों में देखने लगा
"जो भी हो मैं तुम्हारे लिए सब कुछ करने को तैयार हु , तुम फिक्र मत करो .. मैं तुम्हारे उपर कोई भी मुसीबत नहीं आने दूंगा , चाहे तो अम्मा से भी लड़ जाऊंगा "
मेरी बात सुनकर उसके होठो में हल्की सी मुस्कान आई और आँखों में हल्का आंसू
"ये तुम्हे मेरे लिए नहीं निशांत इस गांव के लिए करना होगा "
अन्नू ने मेरे गाल को सहलाते हुए कहा
"साफ साफ बताओ की आखिर बात क्या है ??"
वो कुछ देर के लिए चुप रही फिर एक गहरी साँस ली
"हम दोनों को सम्भोग करना होगा निशांत "
अन्नू ने एक ही साँस में ये कहा
"क्या ???" मैंने जो सुना मुझे उसपर विश्वास भी नहीं हो रहा था ,शायद मैंने कुछ गलत सुन लिया था
"क्या कहा तुमने ??"
"वही जो तुमने सुना , हमें सम्भोग करना होगा , सम्भोग का मतलब तो तुम समझते ही होगे "
अन्नू की नजरे नीचे थी , हम दोनों बचपन के दोस्त थे , साथ खेले थे सुख दुःख में एक साथ खड़े हुए , मेरे मन में उसे लेकर कभी ऐसी भावना नहीं आई थी , वो मेरी बहन तो नहीं थी लेकिन उससे कम भी ना थी ..
वो हमेशा से ही मेरी हमसाथी रही थी …
मैं अब जवान था वो भी जवान थी , जवानी की दहलीज पर आकर मन में कुछ तरंगो का उठाना लाजमी था, मेरे मन में भी ऐसी तरंगे उठती , कुछ लडकिया भी थी जिन्हें मैं पसंद करने लगा था , लेकिन उसके साथ … ये सोच कर ही मेरा दिल जोरो से धडकने लगा था ..
"तुम ये क्या बकवास कर रही हो ..??"
मेरा स्वर लड़खड़ाने लगा था , हडबडाहट और बेचैनी ने मेरे मन को घेर लिया था
"सच कह रही हु , सबसे पहले मेरे साथ और फिर …"
वो फिर से रुक गई ..
"और फिर क्या अन्नू "
अन्नू की नजरे अभी भी जमीन को घूरे जा रही थी ..
उसने फिर से एक गहरी साँस ली जैसे वो किसी चीज के लिए हिम्मत जुटा रही हो ..
"मेरी बात ध्यान से सुनो निशांत , तुम अब एक सामान्य लड़के नहीं हो , तुम इस गांव के भविष्य हो , इस गांव को एक श्राप लगा है जिसके कारण कई सालो से यंहा किसी की कोई ओलाद नहीं हुई , जो बेटिया इस गांव से बाहर ब्याही गई बस उन्हें ही संतान का सुख मिला , यंहा आने वाली बहुओ को ना संतान का सुख मिल पाया ना ही ओरत होने का जिस्मानी सुख जो उन्हें उनके पति से सम्भोग से मिलना था …
यंहा जो भी बच्चा या जवान तुम्हे दिखाई पड़ते है सभी बाहर के रहने वाले है या फिर यहाँ की बेटियों की संताने है जिनका ब्याह बाहर हुआ है , और ये बात सभी को पता है , इस श्राप से मुक्ति के लिए यंहा की सभी ओरते जो यंहा की बहुए है वो सभी मिलकर एक साधना करते है , जिसे हमने देखा था वो भी इसका ही एक अंश था ,साधना की शर्त ये थी की वो पूरी तरह से गुप्त होनी थी और कुछ सालो में श्राप का असर ख़त्म हो जाना था , लेकिन हम लोगो की गलती के कारण वो साधना भंग हो गई , लेकिन इस साधना को भंग करने वाले की भी एक सजा मुक़र्रर की गई थी और शायद ये उस श्राप का एक तोड़ भी है , तुम्हे ही अब यंहा की सभी ओरतो को माँ बनाना होगा , अब ये तुम्हारी जिम्मेदारी होगी और इसकी शुरुवात तुम्हे मेरे साथ करनी होगी क्योकि साधना को भंग करने वालो में मैं भी शामिल थी "
अन्नू की बात सुनकर मेरे तोते उड़ गए , आखिर यंहा ये कैसा चुतियापा चल रहा था , किसी लड़की के जिस्म से खेलने का मन तो मेरा भी था लेकिन इस तरह नहीं ,
"ये लोग पागल हो गए है कैसा अंधविस्वास है ये , मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा .."
मैं गुस्से से तलमला गया था
"करना तो तुम्हे पड़ेगा कुवर ,प्यार से नहीं तो जबरदस्ती से , आखिर ये हमारे भविष्य का सवाल है "
अचानक पीछे से एक आवाज आई , जब मैंने मुड़कर देखा तो गांव की कई ओरते हमारे दरवाजे के बाहर खड़ी हुई थी , उनमे से कुछ तेजी से मेरी ओर बढ़ी मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही मेरे सर में एक जोरदार चोट लगी …
"ये सब क्या है … आह .."
चोट की वजह से मेरी आँखे धीरे धीरे बंद होने लगी थी …
 
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अध्याय 3
आँखे खुली तो मैंने खुद को अपने ही बिस्तर में सोया हुआ पाया , पुरे शरीर में दर्द भरा हुआ था , भोर के सूर्य की किरने खिड़की से छानकर सीधे मेरे चहरे पर पड़ रही थी , मैं हडबडा कर उठा कल मेरे साथ जो हुआ था वो मुझे एक स्वप्न की तरह लग रहा था …
मैंने अपने सर को छुवा जहा कल जोरदार वार किया गया था लेकिन वंहा कोई भी दर्द नहीं था ..
मैंने उठ कर बैठ गया और और अपने ही ख्यालो में खोया हुआ कमरे से बाहर आया , निचे सब कुछ सामान्य चल रहा था , बड़े से सोफे में जो की सिहासन नुमा था ,अम्मा आराम से बैठे हुए नौकरों को हिदायत दे रही थी एक बार उनकी नजर मुझपर पड़ी ..
"आज बड़ी जल्दी उठ गए कुवर जी , कल से सो ही रहे हो ,खाने के लिए भी नहीं उठे , शहर में भी ऐसा ही करते हो क्या ??"
उनकी बातो से मेरा सर घुमा ,मैं जो सीढियों से निचे की ओर उतर रहा था तुरंत फिर से उपर चला गया और सीधे अन्नू के कमरे में पंहुचा जो की मेरे कमरे के बाजु में ही था ..
थोड़े देर दरवाजा खटखटाने पर उसने दरवाजा खोला और खोलकर सीधे बिस्तर में जा गिरी ..
"अन्नू अन्नू उठ न यार .."
मैंने उसे झकझोरते हुए कहा
"सोने दे ना यार तू तो पूरी नींद ले लिया और मुझे इतने जल्दी उठा रहा है … जब से आया तब से तो सो ही रहा था , अब मुझे सोने दे , अम्मा के साथ बात करते रात हो गयी थी .."
वो इतने बेफिक्री से ये बात कह गई की मुझे खुद पर अचरज होने लगा …
"कल जो हुआ उसके बाद भी तुम इतनी बेफिक्र कैसे हो सकती हो ??"
उसने एक बार मुझे मुड़कर देखा
"कल क्या हुआ ??? ओह अम्मा ने तुम्हे डाटा था की तुम इतने पैसे के साथ आ रहे हो और मुझे भी ले आये .. अब अम्मा डांटती ही रहती है इतना टेंशन क्यों लेना "
मैं सोच में पढ़ गया था , क्या जो भी कल मैंने देखा वो सिर्फ एक सपना था ???
मैं वही बिस्तर में बैठ गया , और अन्नू भी बाजु मुह करके सो गई
"मतलब कल हम नदी के किनारे घुमने नहीं गए थे " मैंने कुछ सोचते हुए उससे कहा
वो आँखे खोलकर मुझे गुस्से से देखने लगी
"तू जा ना यार क्यों सुबह सुबह दिमाग ख़राब कर रहा है "
मैंने उससे और कुछ भी पूछना सही नहीं समझा और अपने कमरे में चले आया ,अब दो ही चीजे हो सकती थी , पहली की मैं सपना देख रहा था , लेकिन इतना स्पष्ट सपना जो की बिलकुल हकीकत ही लगे ..
ये थोडा अटपटा था , दूसरी चीज हो सकती थी की ये सब सच ही हो और मेरे बेहोश हो जाने के बाद सभी मुझसे झूठ बोल रहे हो , लेकिन अगर सभी आज झूठ बोल रहे हो तो भी ये अजीब था क्योकि अगर कल की बाते सच है तो फिर मुझे सभी भाभियों के गर्भ को भरना था , और इसलिए ही तो उन्होंने मुझे पकड़ा था , फिर यु छोड़ क्यों दिया …
जब कुछ समझ नहीं आता तो सब छोड़ कर अपना काम करना चाहिए , मैंने भी यही करने की सोची और अपने कमरे में जाकर शावर लेने लगा …
नाश्ता करके मैं अपनी बुलेट में घर से निकल गया थोड़ी दूर चलकर मैं एक घर के सामने रुका
"अंकित …" घर के बाहर से ही मैंने उसे आवज दी
अंकित मेरे ही उम्र का लड़का था मेरे साथ बचपन से खेला था , वो भी अपने नाना जी के घर रहता था , तभी मुझे उसकी भाभी निकलते हुए दिखाई दी ..
"अरे कुवर जी आप "
"नमस्ते गुंजन भाभी "
"आइये न अन्दर "
"नहीं भाभी मैं बस अंकित को लेने आया हु "
"रुकिए बाबु को बुला कर लाती हु "
गुंजन भाभी अंदर चली गई और मैं उन्हें देखता ही रह गया , आज से पहले वो मुझे कभी इतनी सुन्दर नहीं लगी थी , अंकित के मामा के दो लड़के थे दोनों की ही शादी हो चुकी थी लेकिन कोई संतान अभी तक नहीं थी , गुंजन भाभी बड़े भाई की बीवी थी … अचानक से मेरे दिमाग में कल की बात पर चली गई , ये बात तो सच है की यंहा के कई लोगो के बच्चे नहीं है और खासकर लड़के तो नहीं है …..
गुंजन भाभी के चहरे में मुझे देख कर एक अलग ही मुस्कान आई थी , साड़ी के पल्लू से उन्होंने अपना सर ढक रखा था लेकिन उनके लाल रसीले होठ और उसमे आई वो मुस्कान मुझे साफ साफ दिखाई पड़ी थी , आँखों के काजल से जैसे उनकी आंखे कुछ बड़ी हो गई हो , और चंचलता से भरे मासूम आँखों ने अनजाने में ही मेरे अंदर कुछ कर दिया था , एक अजीब सी कसक मेरे मन में हुई थी जैसी की मैंने कभी महसूस नहीं की थी ..
मैं उस अजीब सी संवेदना को समझने की कोशिस ही कर रहा था की अंकित घर से बाहर आ गया
"अरे भाई इतने दिनों के बाद आया तू "
वो सीधे आकार मेरे गले से लग गया
"कल मैं हवेली गया था तो मुझे पता चला की तू आया है लेकिन तू सोया था इसलिए तुझे डिस्टर्ब नहीं किया "
"तू कल हवेली आया था ??"
"हा … क्यों ?"
"कितने समय "
"शाम के समय शायद 6-7 बजे "
उसने अपने सर को खुजलाते हुए कहा
चलो एक और आदमी ने मुझे कह दिया की मैं सोया हुआ था …
"चल बैठ घूम कर आते है, माल रख ले "
वो अंदर गया और कुछ सामान लेकर वापस बाहर आया ..
साथ ही गुंजन भाभी भी आई
"अरे कुवर जी कहा जा रहे हो , यही बैठो आपके लिए मुर्गा बना देती हु "
"नहीं भाभी ठीक है .. ऐसे भी जानते हो ना अम्मा को मेरा ये सब करना पसंद नहीं "
वो हँस पड़ी
"आप अम्मा से बहुत डरते हो , अरे खाओगे नहीं तो बल कैसे आयेगा बहुत काम करने है आपको ,पुरे गांव की जिम्मेदारी आपके ही कंधे पर है "
उनकी बात सुनकर मैं एक बार उनको देखता ही रह गया , अब ये जिम्मेदारी वाली बात तो मैं हमेशा से ही सुनता रहा हु लेकिन भाभी आज कौन सी जिम्मेदारी का कह रही थी इस बात का मुझे संदेह था ..
"फिर कभी भाभी "मैंने अहिस्ता से कहा , भाभी जी बस मुस्कुरा गई
अंकित मेरे पीछे बैठा और मैंने बुलेट बढ़ा दी , हमारा एक अड्डा हुआ करता था पहाड़ी के पास का एक छोटा सा झरना जो की कोई 5 किलोमीटर दूर था , अंकित ने सारी चीजे रख ली थी जो की हम अकसर रखा करते थे ..
हमारे गांव में घर घर ही शराब बनाई जाती थी और यंहा शराब पीना एक आम सी बात थी लेकिन अम्मा के सामने मैंने कभी शराब नहीं पि थी ना ही कभी ज्यादा पि कर उनके सामने ही गया था , अंकित के घर में भी शराब बनती थी , और गांव की शुद्ध शराब की तो महक ही कुछ और होती है , एक बोतल में शराब और कुछ खाने का सामान पकड़ कर हम निकल गए थे ,
शराब की बोतल खुली और मैंने एक बार अच्छे से उसे सुंघा
"वाह क्या सुगंध है " मैंने बोतल को अपने नाक के पास लाते हुए कहा
"अरे तुम शहरी लोग क्या जानो इसका महत्व , तू तो वो बड़ी बड़ी दारू पीते हो "
अंकित पैक बनाने लगा , ये इस गांव में मेरा इकलौता दोस्त था और जब भी मैं यंहा आता तो हम इस जगह पर जरुर आते ..
"क्या हुआ कुवर जी आज थोडा बेचैन लग रहे हो "
दो पैक अंदर जाते ही अंकित की बकचोदी शुरू हो गई थी ,मैं हलके से हँस पड़ा
"बस यार एक अजीब सा सपना आया था कल , थोडा बेचैन हु , तू बता कैसे चल रहा है सब गांव में "
"बढ़िया है सब , ऐसे अपनी एक सेटिंग के बारे में तुझे बताया था न … अरे वही जिसे इसी झरने में लाकर पेला करता था "
मैं समझ गया था की ये किसके बारे में बात कर रहा है ..
"छि बे तू कभी नहीं सुधरेगा .."
"अरे कुवर जी इसमें छि वाली क्या बात है , लड़के और लडकियों को तो प्रकृति ने ही ऐसा बनाया है की वो सम्भोग कर सके , समझ नही आता आप क्यों इतना दूर भागते है ,या फिर कही ऐसा तो नही की हमारे सामने ही ये शराफत दिखाते हो और शहर में घपघप करने में डिग्री ले रखी हो "
मैंने पास रखा कंकड़ उसे दे मारा वो हँसने लगा
"इतनी अच्छी पर्सनाल्टी है भाई तेरी , इतना पैसा है तेरे पास , और अम्मा का रुतबा .. इस गांव के लोग तुझे कुवर कहते है , किसी भी लड़की के उपर हाथ रख दे न तू तो कोई ना नहीं बोलेगी और तू है की साधू बना बैठा है "
अंकित मुझपर ऐसे तंज अक्सर कसा करता था , मैं भी उसे कभी सीरियस नहीं लिया लेकिन आज ना जाने उससे दिल की बात कहने का मन कर रहा था ..
आँखों के सामने गुंजन भाभी का चहरा घूम रहा था और मैं अंकित को कहना चाहता था की मैं किसी और को नहीं तेरी प्यारी भाभी के साथ सम्भोग करना चाहता हु ..
क्या सच में मैं ऐसा चाहता था ..??? मुझे सच में ये नहीं पता था की मैं क्या चाहता था लेकिन घूँघट की आड़ से झलकता गुंजन का चहरा मेरे अंदर कुछ हिला रहा था , मैं अब वैसा नहीं था जैसा मैं पहले हुआ करता था , और उपर से देसी शराब का वो हल्का हल्का सुरूर ..
अंकित मेरे चहरे को जैसे पढ़ रहा हो ..
"भाई कुछ तो हुआ है तुझे तू ऐसा तो नहीं था ,"
"कुछ नही हुआ मुझे " मैंने उसकी बात को टालते हुए कहा
"नहीं कुछ तो बात है , अरे भाई समझ कर बोल दे , आखिर हम बचपन के दोस्त है , भले ही ये बात अलग है की तू कुवर है और मैं एक गरीब लड़का "
उसने मुह बनाया
"चुप बे .. जब देखो नाटक करता रहता है कुछ भी तो नहीं हुआ है मुझे , चल एक पैक और दे "
वो हलके से हँसा
"कुवर जी चहरे से दर्द छिपा लोगे , दिल में दर्द दबा लोगो लेकिन नीचे का क्या करोगे …तुम्हारा दर्द खड़ा हो गया है , ना जाने किसके बारे में सोच रहे हो हा हा हा "
वो जोरो से हँस पड़ा , मैं सकपका कर नीचे देखा तो मैंने महसूस किया की मेरा लिंग तना हुआ मेरे पेंट में तम्बू बनाये हुए है ..
गुंजन भाभी के बारे में सोचने मात्र से मेरा ये हाल हो गया था , मैं बचपन से ही शराफत की मूरत की तरह जिया था , इस उमंग को स्वीकार करना भी मेरे लिए बहुत भारी था ..
मुझे संकोच में सकुचाते हुए देखकर अंकित थोडा गंभीर हो गया .
"भाई तू मेरा दोस्त है , मेरे भाई जैसा है तुझे ऐसा देखकर दुःख लगता है , माना तू शराफत की मूरत है लेकिन अब तो तू जवान हो गया है , यार अपने अंदर की आग को स्वीकार कर वरना ये तुझे जला जाएगी …"
अंकित को इतना गंभीर होकर बात करते मैंने कभी नहीं देखा था , मैं उससे थोडा खुलना चाहता था ताकि मेरा भी बोझ थोडा हल्का हो जाए ..
"पता नहीं यार मुझे ये क्या हो गया .."
मेरा सर शर्म से झुक गया था , वो हँस पड़ा
"अबे तू लड़की है क्या जो इतना शर्मा रहा है , इतना तो मेरी वाली भी नहीं शर्माती , और लौड़ो का खड़ा नहीं होगा तो क्या होगा , लेकिन मुझे एक बात सच सच बता की आखिर किसके बारे में सोच रहा था जो ऐसा बम्बू बन गया "
"अबे छोड़ ना "
"अच्छा हमारे गांव की है क्या ??" उसने बड़े ही उत्सुकता से पूछा
मैंने हां में सर हिला दिया ..
"साले तू तो बड़ा हरामी निकला , ऐसी कौन सी लड़की है जिसे देख कर कुवर का खड़ा हो रहा है ?? शादी शुदा की कुवारी ???"
वो मुझे जांचने की निगाहों से ही देख रहा था
"अबे छोड़ ना पैक बना .."
"ओ साला यानि की शादीशुदा है , सच में कुवर जी आप तो पहुचे हुए निकले …कौन हो सकती है ,समझ गया जरुर कामिनी भाभी होगी , उसे देखकर तो मेरा भी खड़ा हो जाता है , वही है ना "
अंकित की उत्सुकता बहुत बढ़ गई थी
"अबे छोड़ न "
"भाई बता ना … जो भी तू बोल एक बार उसे यही झरने में लाना मेरा काम है तुझे दिलवा कर रहूँगा "
मैं सोच में पड़ गया था की आखिर इस गांडू को कैसे बताऊ की वो कोई और नहीं उसके ही घर की ओरत है जिसे ये माँ की तरह मानता है , अंकित जैसा भी हो लेकिन वो अपने भाइयो का बेहद आदर करता था आखिर जन्म से ही वो उनके घर में रहता था , वही वो अपनी भाभियों को अपनी माँ की तरह इज्जत करता था , ये बात उसने कई बार मेरे सामने कही भी थी … एक तरफ वो मुझे बार बार जोर दे रहा था , दूसरी तरफ मैं एक दुविधा में फंस चूका था ..
उसने मेरे सामने एक पैक बढ़ा दिया
"ये गटक जा तुझे हिम्मत आ जाएगी , चल मैं कसम खाता हु की तू जिस भी ओरत के कारन खड़ा करके बैठा है उसकी मैं तुझे दिलाऊंगा "
मैंने एक ही साँस में वो पैक पि गया , मेरे आँखों में खुमार चढ़ चूका था और साथ ही सामने गुंजन भाभी का चहरा भी घूम रहा था , नशा और हवास दोनों का काकटेल बहुत ही खतरनाक होता है , वही हालत मेरी भी थी , दिल जोरो से धडकने लगा था , दूसरा अंकित की बाते ..
"यही उसे चोदना , इसी पत्थर में झरने की आवाज और उस लड़की की चीख वाह भाई मजा ही आ जायेगा और वो भी कोई गदराई हुई भाभी हो गई तब तो मजा दुगुना ही हो जायेगा , अब बता भी दे की वो खुशनसीब कौन है जिसे कुवर जी का मिलने वाला है "
मैंने एक बार आंखे बंद की और मेरे मुह से निकल गया
"गुंजन भाभी …"
माहोल में एक शांति छा गई थी , अंकित का मुह खुला का खुला रह गया था , मैंने अपने लिंग पर अपना हाथ रखा और उसे जोरो से मसल दिया ..
"आह ..सुनना चाहता था ना , तो सुन अब , हा जब से उसे देखा हु तब से बेहाल हो रहा हु , अब बता दिलवाएगा ,लायेगा उसे यंहा "
मैं हवस और शराब के नशे में डूबा जा रहा था
वही अंकित सकते में था, वो कुछ भी बोलने को असमर्थ था, उसका चहरा पीला पड़ चूका था , गुस्से से ज्यादा आश्चर्य उसके चहरे पर झलक रहा था , वो झटके से खड़ा हो गया और बिना कुछ कहे ही पीछे मुड़कर जाने लगा , मुझे एक बार को होश आया की मैंने क्या कह दिया है लेकिन अब देर हो चुकी थी …
शायद मैंने अपने बचपन का दोस्त खो दिया था ,...
 
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अध्याय 4
एक अजीब सी हालत थी मेरी , मेरे जैसा शर्मीला लड़का जिसे हमेशा ही अपने महत्वकांक्षाओ से ज्यादा परवाह समाज के नियमो की रही थी , अपने सामाजिक रुतबे और इज्जत की परवाह करने वाला मैं ये क्या कर गया था …
मैं भी वंहा से उठा और अपने पुरे कपडे निकाल कर नग्न ही जाकर झरने के निचे खड़ा हो गया , शराब का नशा झरने के ठन्डे पानी के पड़ने से थोडा कम तो हो रहा था लेकिन साथ ही साथ आँखों में गुंजन भाभी का चहरा झूमता जा रहा था , झरने के पानी की कलकल और जंगल का वो शांत वातावरण मिलकर भी मुझे वो चहरा भुला नहीं पा रहे थे , ठन्डे पानी में कुछ देर तक यु ही खड़े रहने से मेरा मन थोडा शांत होने लगा था , लिंग का कसाव भी धीरे धीरे कम पड़ने लगा था लेकिन अपने लिंग में इतनी कसावट मैंने अपने जीवन में पहली बार महसूस की थी , ऐसी जलन ऐसी आग , वासना का ऐसा तूफान मैंने अब से पहले कभी महसूस ही नहीं किया था ..
पानी का जोर बढ़ता हुआ मालूम होने लगा और मैं शांत होकर वंहा से बाहर आया …मेरे मन में एक अजीब सी हलचल मच चुकी थी , एक तरफ वो आग थी जिसमे जलने से भी मुझे एक गजब का आनंद मिल रहा था , दुसरे तरफ मेरा अंतर्मन था जो कह रहा था की ये सब कुछ गलत है , , मेरी सामाजिक चेतना को ये स्वीकार नही था की मैं इस तरह की हरकत करू , लेकिन ये नैतिकता के सारे बोध मिलकर भी मुझे उस पाप को करने से नहीं रोक पा रहे थे , मन में द्वन्द ऐसा छिड़ा की मैं वही बैठ कर रोने लगा , कुछ भी समझ आना बंद हो चूका था , सही गलत का बोध जी मेरे मन से मिट गया हो …
कुछ देर तक रोने से मेरा मन हल्का हो गया , मैंने पहला फैसला किया की मैं जाकर अंकित से माफ़ी मांग लूँगा , लेकिन इसके लिए मुझे उसके घर जाना होगा ??? और वंहा …
नहीं मैं अगर गुंजन भाभी को फिर से देखू और मेरे मन में फिर से उनके लिए गलत विचार आने लगे तो मैं क्या करूंगा ???
मैंने उसे फोन करने की सोची लेकिन क्या वो मेरा फोन उठाएगा ???
मैंने कपडे पहने और अपनी बुलेट घर की ओर बढ़ा दी ..
मैं कुछ ही दूर गया था की गांव के आखिर में पड़ने वाले चाय की टपरी में बैठा हुआ अंकित मुझे दिखाई दिया , वो हाथो में सिगरेट लिए नीचे सर किये बैठा हुआ था ,मेरे बुलेट की आवाज भी उसको उसके विचार से नहीं जगा पाई , वो अपनी ही सोच में गुम था , मैंने गाड़ी रोकी और और उसके पास पहुच गया ..
"अंकित …अंकित "
उसने एक बार नजर उठा कर मुझे देखा , लेकिन वो कुछ भी नहीं बोला
"भाई माफ़ कर दे मैं बहक गया था ..पता नहीं मुझे क्या हो गया था "
वो अब भी कुछ नहीं बोला , बस वो खड़ा हो चूका था और …
चटाक ..
एक जोरदार झापड़ मेरे गालो में पड़ा , मैं लडखडा गया लेकिन सम्हला , टापरी का मालिक एक अधेड़ उम्र का आदमी था वो भी बाहर आ चूका था और बड़े ही आश्चर्य से हमें देख रहा था , उसे भी पता था की मैं कौन हु और ये भी की मैं और अंकित बचपन के दोस्त है …
मैंने इशारे से उसे जाने को कहा ,
"वो मेरी माँ है … तू उनके बारे में ऐसा कैसे बोल सकता है , तू तो मेरे बचपन का दोस्त है ना "
अंकित की आवाज ऊँची नहीं थी , वो बिलकुल सधे हुए अंदाज में बोल रहा था , आवाज इतनी ही तेज थी की सिर्फ मैं सुन सकू ..
लेकिन गुस्से की आग उसके एक एक शब्द में मौजूद थी ..
"भाई मुझे माफ़ कर दे , पता नही क्या हो गया था , प्लीज् घर चल "
मैंने उसका हाथ पकड़ा तो उसने हाथ झटका दिया , मैंने एक बार फिर से उसका हाथ पकड़ा
"प्लीज भाई …"
उसने एक बार मुझे देखा ..
"आज के बाद कभी मेरे घर मत आना , अब से तू मेरा कोई नहीं है "
इतना बोल कर वो फिर से वंहा से पैदल ही गांव की तरफ बढ़ गया था ….
मैं अपना सर पकड़ कर वही रखी बेंच पर जा बैठा …
कुछ देर हो चुके थे मैं वैसे ही बैठा था , अब हवस का तूफ़ान ख़त्म हो चूका था और उसकी जगह आत्मा की ग्लानी ने ले ली थी , आज मैंने अपनी नैतिकता को ताक में रखकर माँ समतुल्य भाभी पर गन्दी नजर डाली थी , आज मैंने अपना एक दोस्त खो दिया था …
"कुवर जी सिगरेट चाय लेंगे "
वही अधेड़ उम्र का आदमी मेरे पास आ गया
"हा काका एक चाय पिला दो और एक सिगरेट भी दे दो .."
एक हाथ में सिगरेट और दुसरे में चाय की प्याली , दो गहरे कस ने जैसे मुझे पुरे जन्झावातो से निकाल दिया , मैं उठ कर खड़ा हुआ जैसे मुझे अब पता था की मुझे क्या करना है …
पैसा देने के लिए जैसे ही मैं वंहा पंहुचा
"कैसे है कुवर जी…"
मैंने सर उठा कर देखा … सामने जो चहरा था मैं उसे पहचानने की कोशिस करने लगा ..
"अब्दुल ..??? तुम अब्दुल ही हो ना "
मेरे मुह से निकला , ये अब्दुल था मेरे साथ 10th तक साथ पढ़ा था , उसके बाद मैं शहर चला गया
"हा ये मेरी ही दूकान है , अब कभी कभी यंहा बैठता हु "
उसने मुस्कुराते हुए कहा , तभी पीछे से काका आ गए जो की एक जालीदार बनियाइन और लुंगी में थे ..
"ये मेरा बेटा है कुवर जी , बहुत पढ़ लिया अब सोच रहा हु की इसे भी काम में लगा दू "
उन्होंने आते ही कहा
"बहुत दिन बाद आपको देखा कुवर जी " अब्दुल बोल उठा
"अरे यार तुम तो मुझे कुवर मत बोलो , आखिर हम एक ही साथ पढ़े है "
मैंने पैसे देते हुए अब्दुल को कहा
"आज अंकित को क्या हो गया वो ऐसा गुस्से में था " अब्दुल ने मुझे छुट्टा लौटते हुए कहा
"क्या पता ??? और तुम बताओ क्या चल रहा है …."
"कुछ नहीं बस पास के गांव से कॉलेज कर रहा हु "
अब्दुल के चहरे में एक अजीब सी उदासी थी , मुझे याद आया की वो क्लास का टापर हुआ करता था , मैंने 10 तक की पढाई गांव से की थी उसके बाद शहर चला गया था , जब तक यंहा रहा तब तक मेरे दोस्तों में सिर्फ अंकित ही रहा , बाकि किसी से मुझे कोई मतलब ही नहीं रहा , आज बहुत दिन बाद मुझे पुराना बंदा मिला था …
"अच्छा है …"
मैंने बेतकल्लुफी से कहा था
"क्या अच्छा है कुवर , जन्म से अब तक मैं हर क्लास में टॉप करता रहा , कॉलेज में भी मेरे टीचर कहते है की मैं ब्रिलिएंट स्टूडेंट हु , लेकिन मेरी तक़दीर में तो बस इस छोटे से टपरी को सम्हालना ही लिखा है "
उसके बातो में एक अजीब सा दर्द मैंने महसूस किया …
"अरे तो आगे पढो परेशानी क्या है " मैं अपनी चिन्ताओ को छोड़ कर अब अब्दुल की बातो को सुनने लगा था ,
तभी उसके पिता सामने आये
"अरे कुवर जी , आप भी कहा इन बातो में आ गए … अरे हमारे पास इतने पैसे नहीं है की इसकी पढाई करवाए , चुप चाप ये धंधे को सम्हाले या कोई और काम करके पैसे कमा ले तो इसकी शादी करवा दे .. और ये साला बोलता है की इसे और पढना है , कलेक्टर बनना है .. अरे साला गरीब आदमी का बेटा कभी कलेक्टर बनता है क्या …इतने बड़े सपने काहे को देखना , समझाओ इसे साला कालेज जाकर बिगड़ रहा है "
उसके पिता झुंझला कर बोल उठे और अब्दुल का चहरा और भी उदास हो गया , उसकी उदासी जैसे मुझे चुभने लगी थी ,
"अरे काका एक काम करते है इसे हवेली भेज दो , मैं इसे काम दिलवा दूंगा , बाकि रही पढाई की बात तो वो हम देख लेंगे "
मेरी बात सुनकर दोनों बाप बेटे की आँखे मेरे तरफ उठ गई , अब्दुल का चहरा तो जैसे खिल कर फुल हो गया हो ..
"कुवर बड़ी महेरबानी " अब्दुल ने हाथ जोड़ते हुए कहा
"अरे तू फिर से कुवर बोला , अबे नाम भूल गया है क्या …"
अब्दुल बस मुस्कुरा कर रह गया था …….
 
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अध्याय 5

हवेली आने के बाद भी मैं थोडा बेचैन था , एक दोस्त मैंने खो दिया था और फिर गुंजन भाभी का नशा अभी तक हल्का हल्का सुरूर लिए मेरे जेहन में मंडरा रहा था ..
मैं अभी अपने कमरे में था की अन्नू वंहा पहुची
"अरे कुवर जी आप तो ईद के चाँद हो गए हो , सुबह से जो निकले अभी आ रहे हो " उसने तंज कसते हुए कहा ..
मैं अभी अभी बिस्तर में लेटा ही था ..
"यार दिमाग मत खराब कर ऐसे भी आज सुबह से दिमाग का भोस…"
मैं इतना बोलते ही चुप हो गया
अन्नू अजीब निगाहों से मुझे देख रही थी
"क्या बोला तू …" उसने किसी खोजी की तरह सवाल किया
"कुछ भी तो नही .. बस आज अच्छा नहीं लग रहा "
"नही नही तूने गाली दी .."
वो मेरे और करीब आ गई थी
"पागल है क्या मैं कभी गली देता हु क्या ?? अब अजीब सा लग रहा है "
मैंने बात को बदलते हुए कहा , लेकिन जैसे उसपर इसका कोई भी असर नहीं हुआ हो , वो मेरे पास ही आकर बैठ गई और मेरे सर को छूने लगी
"बुखार तो नहीं है , आखिर हुआ क्या है जो ऐसे खुन्नस में बैठे हो "
मैं थोड़ी देर चुप रहा , लेकिन अन्नू मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी और वो मुझे बड़े ही परखी नजरो से देख रही थी , उससे मैं झूठ नहीं बोल सकता था लेकिन सच भी नहीं बोल सकता था ..
मैंने बीच का रास्ता अपनाने का सोचा ,,क्यों ना ऐसा सच बोला जाए की आधी बात ही बताई जाए
"वो यार मेरा अंकित से झगड़ा हो गया बस कुछ और नहीं , इसी बात को लेकर थोडा अजीब लग रहा है "
अन्नू अंकित से मिल चुकी थी , मेरे एकमात्र दोस्त को वो भी अच्छे से जानती थी
"अंकित से झगड़ा ??? इतने सालो से तुम दोनों को देख रही हु आज तक तो तुम कभी नहीं झगड़े .. आज आखिर क्या हो गया "
"कुछ नहीं यार वो गुंजन …." इतना बोलकर मुझे आभास हुआ की मैं तो पूरा सच बता रहा हु , मैं वही चुप हो गया
"गुंजन क्या ??? गुंजन तो उसकी भाभी का नाम है ना " उसने फिर डिटेक्टिव बनते हुए कहा
"हा गुंजन भाभी … कुछ नही बस वो शराब के लिए …तुझे तो पता है की मुझे यंहा की देशी शराब कितनी पसंद है , भाभी वो देने से मना कर रही थी तो .. बस यु ही झगड़ा सा हो गया "
मैंने अपने तरफ से बात बनाने की पूरी कोशिस की थी , लेकिन शायद मैं सफल ना हुआ
अन्नू मेरे पास आई और मेरे मुह को हल्का सा सुंघा
"शराब तो तूने पि हुई है … बात क्या है कुवर जी …"
उसकी बातो का मेरे पास जवाब नही था और मैं उसे सच नहीं बताना चाहता था
"कुछ नहीं यार तू भी ना .. चल थक गया हु सोने दे "
उसने मुझे अजीब अंदाज में देखा
"साले कितना सोयेगा तू , कल से सो ही तो रहा है "
"प्लीज यार सोने दे न "
उसने एक बार मुझे देखा और बिना कुछ बोले वंहा से चली गई ….
****************
शाम हो चुकी थी और शरीर में एक अजीब सी थकान महसूस कर रहा था ..फ्रेश होकर निचे आया तो वंहा अब्दुल अम्मा के पास खड़ा हुआ दिखा ,
"जब से आया है बस सोते ही रहता है तबियत तो ठीक है न तेरी "
मुझे देखते ही अम्मा ने कहा
"जी अम्मा ठीक है बस थोडा सुस्ती सी है "
"हम्म्म तुमने इसे काम के लिए कहा था ???"
उन्होंने फिर से सवाल दागा ..
"हा वो यंहा का लेखा जोखा करने के काम में इसे लगा देते हो अच्छा हो जाता , गरीब आदमी है और पढने में भी बहुत तेज है , हिसाब किताब अच्छे से देख लेगा "
अम्मा ने एक बार मुझे देखा और एक बार अब्द्ल को , मैंने आज तक किसी की सिफारिस नहीं की थी , उन्होंने हामी भर दी , अब्दुल की आँखों में कृतज्ञता के भाव थे , इस काम के साथ वो अपनी पढाई भी कर पायेगा , मुझे भी इस बात की ख़ुशी थी ….
कुछ देर बाद ही अनु भी वंहा आ गई ,
हम दोनों हेवली के ही बगीचे में बैठे थे ..
"तुम आज बहुत परेशान थे आखिर हुआ क्या है .."
अन्नू के चहरे की मासूमियत में एक चिंता की लकीर खिंच गई थी ..
"कुछ भी तो नहीं … "
मैंने उसी बेतकल्लुफी के साथ कह दिया , उसने मेरे हाथो को अपने हाथो में ले लिया और मेरे हाथो पर एक किस कर दिया ..
"तुम्हे ऐसे देखा नहीं जाता , तुम हसते खेलते ही अच्छे लगते हो "
उसकी मासूम सी आँखों में पानी का एक कतरा था , हलके काजल लगी आँखों में वो पानी उसकी उज्जवल आँखों को और भी बढ़ी बना रही थी ..
मैंने भी उसके हाथो को चूमा और उसके आँखों में आये पानी को अपनी उंगली से साफ़ किया
तू पागल है क्या क्यों रो रही है , मैंने उसके गालो को सहलाते हुए कहा था ..
उसने एक बार मुझे देखा और हलके से मेरे होठो को चूम लिया , उसके इस कृत्य से मैं थोडा सा चौका ..
सालो से हम साथ थे और हमारे बीच एक गहरी दोस्ती भी थी , हमने एक दुसरे के साथ बहुत समय अकेले बिताया था , प्यार से एक दुसरे को छुवा था , बाते की थी लेकिन दोस्ती की दिवार को कभी लांघा नहीं था , ना ही कभी इस पवित्र रिश्ते को अपनी वासना से बर्बाद करने की कोशिस की थी ..
अन्नू ने मेरे होठो को चूमा था , अगर कोई दूसरा समय होता तो शायद मैं इसे उसके प्रेम की प्रतिक्रिया के रूप में स्वीकार कर लेता , लेकिन आज उसके चुम्मन में एक अजीब सी बात थी , उसके दिल की धड़कने बहुत ही तेज चल रही थी , उसकी चंचल आँखे आज शांत थी और मुझे ही घुर रही थी , उसके आँखों में मेरे लिए विश्वास और प्रेम के अलावा भी कुछ दिखाई पड़ रहा था , ये वो अन्नू नहीं थी जिसे मैं जानता था , ये थोड़ी बेचैन थी , कुछ तो हुआ था इसे ..
"तुम्हे क्या हुआ है …??"
मैंने थोड़े आश्चर्य में भरकर उसे पूछा …
वो चुप ही रही और मुझे ही देखते रही ..
"कुछ हो रहा है निशांत कुछ अजीब सा ,समझ नहीं आ रहा है की क्या हो रहा है , मैंने एक अजीब सा सपना देखा और …."
वो चुप हो गयी उसके दिल की धड़कने बहुत तेज थी जो की मुझे बाजु में बैठ कर भी समझ आ रही थी ..
"क्या देखा अन्नू .."
मैंने हलके से उससे कहा ..
"कैस बताऊ … यंहा की ओरते और उन्होंने मुझे …तुम्हारे साथ … छि नहीं मैं पागल हो गई हु "
उसने तुरंत जैसे खुद को सम्हाला और खड़ी हो कर जाने लगी , लेकिन मैंने उसका हाथ थाम लिया ..
"बताओ की तुमने क्या देखा और कब देखा "
मैंने उसे थोड़े कडक स्वर में कहा
"कल रात ही , सुबह मैंने उसे एक सपना समझ कर ध्यान नही दिया , लेकिन अब अजीब सी बेचैनी हो रही है , मेरे दिमाग में अजीब अजीब से ख्याल आ रहे है , दिन भर आँखों में बस …. छि मैं ये क्या सोच रही हु "
वो जैसे खुद को कंट्रोल करने की कोशिस कर रही थी ..
मुझे जैसे कुछ समझ आया कुछ ऐसा ही तो मेरे साथ भी हो रहा था , गुंजन भाभी को लेकर
"आँखों के सामने मेरा चहरा आ रहा है ???"
मेरी बात सुनकर उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा जैसे मैंने उसके दिल की बात कह दी हो ..
"मेरा हाथ छोडो निशांत हमें अब यंहा अकेले नहीं रहना चाहिए , मैं अपने दोस्ती के इस पावन रिश्ते को गन्दा नहीं कर सकती "
उसकी आवाज लडखडा रही थी वो लगभग रोते हुए बोली थी ,मैं उसकी तकलीफ समझ सकता था , एक तरफ नैतिकता और मेरे लिए उसकी दोस्ती की जंजीरे थी तो दूसरी तरफ मन में उठने वाला वो आकर्षण जो अजीब तरह से इतना ज्यादा था की आज मैं खुद अपना आपा खो चूका था , हमारे साथ कुछ तो गलत हुआ था , अन्नू की बात ही इस बात का जीता जगाता गवाह थी , क्या उसने भी वही देखा जो मैंने देखा ???
मैं उससे पूछना चाहता था लेकिन वो इतनी बेचैन थी की मुझे उसके उपर दया आई और उसके लिए चिंता भी होने लगी , अभी तो वो बहकी थी अगर मेरे अंदर भी वो आग जल जाती तो शायद वो हो जाता जो एक दोस्ती के रिश्ते में नहीं होना चाहिए …
मैंने उसका हाथ छोड़ दिया , लेकिन वो वंहा से गई नहीं , मैंने उसे देखा
"अगर मैं तुम्हारे साथ कुछ कर बैठू तो क्या तुम मुझे माफ़ करोगे "
उसने डबडबाई हुई आँखों से देखते हुए कहा , उसकी ऐसी हालत देख एक बार मेरा दिल भी रो पड़ा था …
"तुम्हारे लिए कुछ भी ..तुम जाकर ठन्डे पानी से नहाओ , ये सपना सिर्फ सपना नहीं है .." मैं बस इतना बोल पाया ,उसने हां में सर हिलाया . मुस्कुराई और हवेली की ओर भाग गई ….

******************************
मैं बेचैन सा बगीचे में ही बैठा था कि मुझे अब्दुल आते हुए दिखाई दिया ..
"भाई धन्यवाद तुमने मेरी बड़ी मुश्किल हल कर दी "
"कोई नहीं यंहा रहकर पढाई कर और कलेक्टर बन , हमें भी तेरे उपर गर्ब होगा "
मेरी आत सुनकर वो मुस्कुराया
"पूरी कोशिस करूँगा … तुम चिंता में लग रहे हो ,क्या बात है , सुबह भी तुम्हारा अंकित से झगडा हो गया ??"
अब मैं उसे क्या बताता …
"तुम यंहा कब से हो …??" मैंने उससे सवाल किया
"जब मैं बहुत छोटा था तभी से मेरे अब्बू अम्मी यंहा कमाने आ गए थे "
"ओह … कुछ श्राप के बारे में जानते हो ??"
"श्राप …??" वो थोडा चौका फिर कुछ सोचने लगा और फिर बोल उठा
"हा सुना तो है की इस गांव में कोई श्राप है लेकिन वो क्या है ये कोई नहीं जानता , और कोई जानता भी हो तो बताता नहीं "
उसकी बात सुनकर मैं हँस पड़ा
"अगर बताता नहीं तो तुम्हे कैसे पता " मैंने हँसते हुए कहा
"मेरे एक प्रोफ़ेसर ने मुझे बताया था , मनोविज्ञान और दर्शनशास्त्र के प्रकांड विद्वान , परामनोविज्ञान के ज्ञाता , डॉ चुन्नीलाल तिवारी यरवदा वाले … हमारे ही कालेज में मनोविज्ञान पढ़ाते है , और भुत प्रेतों में बहुत ही दिलचस्पी रखते है , यंहा आकर वो कोई शोध भी करने को कह रहे थे …."
"डॉ चुन्नीलाल …???" मैं शख्स का नाम सुनकर तो लग ही नही रहा था की कोई विद्वान होगा
"हा लोग उन्हें डॉ चुतिया भी कहते है "
मैं उसका नाम सुनकर जोरो से हँस पड़ा
"अबे ये कैसा नाम है .."
"भाई नाम में मत जा बहुत पहुची हुई चीज है डॉ चुतिया , और सपनो पर तो विशेष महारत है उनकी "
"सपनो पर …???" मैं एक बार को चौका
"हा मनोविज्ञान में सपनो का बहुत महत्व होता है , कभी कोई परेशानी हो तो बताना "
उसकी बात सुनकर मैं कुछ सोच में पड़ गया ..
"अच्छा मिलवा सकता है इस चुतिया से "
वो हँस पड़ा
"बिलकुल कल ही चल …"
अब्दुल जा चूका था और मैं फिर से अपने सोच में खो गया था , दो लोगो को एक सा सपना नहीं आ सकता , लेकिन अन्नू को क्या सपना आया है ये तो मुझे भी नहीं पता था , लेकिन इन दोनों सपनो में कुछ तो समानता थी और शायद ये सपने ही ना हो ..????
क्या मुझे इस डॉ चुतिया के पास जाना चाहिए …??
इसे कैसे पता की गांव में श्राप है , शायद इसे ये भी पता हो की वो श्राप क्या है ???
मैंने फैसला कर लिया ..
चलो मिल ही लेते है डॉ चूतिया से ………….
 
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अध्याय 6
सुबह के 10 बजे थे जब हम डॉ चुतिया के पास गए , मैंने अपने साथ अन्नू को भी ले गया था , क्योकि मेरे लिए ये जानना भी जरुरी था की आखिर उसने क्या सपना देखा था ..
अब्दुल और मैं अन्नू कार से कॉलेज के लिए निकले थे , अन्नू बड़े ही मुस्किल से जाने के लिए मानी थी , उसे अब भी लग रहा था की मेरे साथ होने पर वो खुद को काबू नहीं कर पायेगी लेकिन मेरे समझाने से वो भी समझ गयी , वो अब शांत थी लेकिन जिस अन्नू को मैं जानता था वो उससे अलग थी , वो जैसे अपने ही ग्लानी में जल रही थी , मेरे समझाने पर भी उसका कोई असर नहीं हुआ , शायद डॉ चुतिया ही उसे समझा पाए , पुरे सफ़र कोई कुछ भी नहीं बोल रहा था , आखिर कालेज आने पर हम डॉ की केबिन की ओर बढे ..
"रुको आप यही बैठो हम देखकर आते है "
अब्दुल ने अन्नू से कहा , बाहर रखी एक कुर्सी पर अन्नू को बैठा कर हम दोनों अंदर गए ..
अंदर का नजारा देख कर हम दोनों ही सकते में आ गए थे , एक अधेड़ उम्र का आदमी अपनी बेंच के पीछे कुर्सी में आराम से फैला हुआ था , उसकी आँखे बंद थी , ऐसा लग रहा था जैसे की किसी आनंद में खोया हुआ हो , वही वो हलके हलके हांफ भी रहा था , उसका शरीर पसीने से भीगा हुआ था वो दुनिया भूलकर अपनी ही मस्ती में बैठा हुआ था ..
"सर …"
अब्दुल बोल उठा ..
सामने बैठा शख्स हडबडाया
"अरे अब्दुल … रामलाल ने तुम्हे रोका नहीं ??"
"सर बाहर तो कोई नहीं है "
वो चुप हो गया और जल्दी से नीचे देखते हुए कुछ करने लगा , शायद अपने पेंट की जिप लगा रहा था ..
"ये साला रामलाल पूरा काम कामचोर है , मरवाएगा एक दिन " वो खुद से बडबडाने लगा , तभी बेंचे के अंदर से एक लड़की प्रगट हुई , हम दोनों को देखकर वो भी चौकी उसके हाथ अपनी जीभ को पोछ रहे थे , इस बार तो मैं दोनों भी चौके क्योकि वो हमारे ही गांव की रमला थी , अब्दुल के साथ ही यंहा पढ़ती थी ..
"हाय दइया कुवर जी " वो बच्चो जैसे उछल पड़ी
वो वंहा से भागी और हाथ जोड़कर मेरे सामने खड़ी हो गई
"कुवर जी माफ़ी … किसी को कुछ मत कहियेगा पलीज "
मैंने आँखों से ही संतुस्ट किया की मैं किसी से कुछ नहीं करूँगा , अब तक डॉ भी सम्हाल कर बैठ चूका था
"तुम दोनों को इतनी भी तमीज नहीं है की किसी के केबिन में जाने से पहले दरवाजा खटखटा लो "
वो थोड़े गुस्से में बोला
"सॉरी सर वो .."
अब्दुल ने कुछ कहा ही था की उन्होंने चुप रहने का इशारा कर दिया , एक काला सा अधेड़ उम्र का सिंगल पसली आदमी , बड़े बड़े बाल और हलकी बढ़ी दाढ़ी कही से भी कोई विद्वान नहीं लगता था , और उपर से उसकी ऐसी हरकत …
मैं निराश हो गया था , मैं कहा इसके चक्कर में पड़ गया ये तो साला पूरा ठरकी है , अपनी स्टूडेंट से सुबह सुबह अपने केबिन में बैठा चुसवा रहा था ..
"कोई बात नहीं आओ बैठो " उसने कडक स्वर में कहा और फिर नजरे मुझपर गडा दी
"तो तुम हो कुवर निशांत जी अम्मा के भतीजे "
उसने मुझे घूरते हुए कहा , मैंने हां में सर हिला दिया
"हम्म्म तुम मेरे पास क्या कर रहे हो ..?? कही तुम्हे कोई सपना तो नहीं आया "
उसकी बात सुनकर मैंने अब्दुल को देखने लगा उसने अपने कंधे उचका दिए , अभी तक मैंने अब्दुल को सपने की बात नहीं बताई थी मैंने बस डॉ से मिलने की इच्छा जाहिर की भी , डॉ के मुह से सपने की बात सुनकर मैं भी सम्हल कर बैठ गया …
"ओह अब्दुल तुम बाहर जाओ मुझे कुवर जी से कुछ बात करनी है "
अब्दुल चुप चाप उठकर बाहर चला गया ..
डॉ ने एक बार मुझे देखा और हलके आवाज में बोले
"तुम्हारे अलावा और किसे सपना आया है, क्या तुम उसके बारे में भी जानते हो , कोई कुवारी लड़की होगी ..तुम्हारी कोई बहन तो है नहीं तो शायद कोई ऐसी जो तुम्हारे बहन के सामान हो , कोई दोस्त या कोई रिश्तेदार "
मैं बुरी तरह से चौका इसे ये सब बाते कैसे पता , मैं कुछ देर के लिए सोच में पड़ गया की आखिर ये साला है कौन ? और अपने राज इसे बताना क्या सही होगा, ये मुझे जानता है मेरा नाम और पहचान इसे पता है , और ये भी मुझे कोई सपना आया और ये भी की किसी और कोई भी ये सपना आया है जो मेरे करीब है …
मुझे सोचता देखकर वो फिर से बोल उठा
"कोई तो होगी जिसने तुम्हारे साथ कुछ अजीब सी हरकत की होगी जो उसे नहीं करनी चाहिए थी , या तुम्हारे बीच सब हो गया ??"
मैंने ना में सर हिलाया
"ओह तो तुम्हे पता है की वो कौन है ??"
वो बड़े ही परखी नजरो से मुझे देख रहा था , मैंने भी उसे सच बताने का फैसला कर लिया
"जी … वो मेरी दोस्त है अन्नू , मेरे साथ ही गांव आई है , उसे भी कुछ अजीब सा सपना आया है , क्या ये मुझे नहीं पता , लेकिन हम दोनों ही काफी परेशान है "
"ओह अभी कहा है वो??? "
"बाहर बैठी है …"
मेरी बात सुनकर डॉ का चहरा चमक गया था .. मुझे फिर से फिक्र हुई की कही मैं कुछ गलत तो नहीं कर रहा हु , लेकिन ये आदमी इतना कुछ जानता है की मुझे एक आश भी बंध गई थी की शायद ये मुझे कोई रास्ता दिखा सके , शायद ये बता सके की ये सपना था या हकीकत …
डॉ के चहरे में एक अजीब सी चमक थी वो उठ खड़ा हुआ ..
"अभी मेरे लेब चलो तुम लोगो से मुझे बहुत सारी जानकारी चाहिए , और हां अब्दुल का यंहा कोई काम नहीं उसे घर भेज दो "
उसकी इस तत्परता ने मुझे थोडा डरा दिया था , जिसे शायद वो भी भांप गए
"डरो नहीं मैं तुम दोनों की मदद कर सकता हु , और शायद मैं ही तुम दोनों की मदद कर सकता हु .."
"हमे क्या हुआ है डॉ …??"
मेरे चहरे में एक अजीब सा भय था लेकिन डॉ मुस्कुराया
"तुम अब दुनिया का सबसे खुशनशीब इंसान हो सकते हो , या फिर सबसे बदनसीब … मेरे साथ रहोगे तो मैं ध्यान रखूँगा की तुम सबसे खुशनसीब बनो , तुम्हे अब वो चीजे मिल सकती है जिसे पाने को लोग तरसते है …"
उसने बड़े ही कान्फिडेंस के साथ कहा
"क्या ये सपना सच था ..??"
मेरे सवाल पर वो फिर से मुस्कुराया
"आधा सच आधा सपना … बस अब कोई प्रश्न नहीं , लेब चलते है वही बात करेंगे "
वो अपना बेग लेकर उठ खड़ा हुआ
****************************
कालेज से थोड़े ही दूर उसका घर था जन्हा उसने एक कमरे में अपना ऑफिस बना रखा था , लेब बस कहने को था बल्कि उसे ओफ्फिस या क्लिनिक कहे तो ज्यादा अच्छा रहेगा , कुछ किताबे इधर उधर पड़ी थी जिनमे से एक पर मेरी नजरे गढ़ गई …
"साइकोलॉजी ऑफ़ सेक्स …" मैंने मन में ही बुदबुदाया , लाल रंग की मोटी सी किताब थी , डॉ मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था मैंने झट से किताब नीचे रख दी …
"पहले तुम आओ "
उसने अन्नू को देखते हुए कहा जिस अभी तक ये समझ नहीं आ रहा था की आखिर हम लोग यंहा कर क्या रहे है , ऐसे ये तो मुझे भी समझ नहीं आ रहा था , अन्नू अभी भी बहुत ही नर्वस थी लेकिन डॉ ने उसे सांत्वना और लाड दिखाते हुए उसे एक बिस्तर नुमा चेयर पर बिठा दिया , उन्होंने अपने जेब से एक बड़ा सा कांच जैसा टुकड़ा निकला जो की एक धागे से बंधा हुआ था , मैंने फिल्मो में देखा था इससे लोगो को सम्मोहित किया जाता था , उन्होंने भी ये धागा अन्नू के सामने घुमाना शुरू कर दिया ..
"बस इसे देखते जाओ , अब तुम्हे नींद आ रही है …तुम्हारी आंखे भारी हो रही है , बोझिल आँखे अब बंद होने लगी है , तुम शांत होते जा रही हो , शांत होते जा रही हो , शांत होते जा रही हो , तुम गहरी नींद में जा रही हो ,गहरी नींद में जा रही हो ,गहरी नींद में जा रही हो ,अब तुम्हे सिर्फ मेरी आवज सुनाई दे रही है , सब अँधेरा सा है , और कुछ सुनाई नै दे रहा है … अगर तुम मेरी आवाज सुन रही हो तो अपना दाया हाथ उठाओ .."
मैं फटी आँखों से ये देख रहा था , कितना आश्चर्य था की एक मिनट के अंदर ही डॉ ने अन्नू को सम्मोहित कर लिया था और अन्नू उनकी आज्ञा का पालन करने लगी थी , अन्नू ने अपना दांया हाथ उठाया
"अब इसे नीचे रख दो , अब तुम आराम की अवस्था में हो , बिलकुल आराम की अवस्था है , अब तूम पीछे जा रही हो ,तुम एक दिन पीछे जा चुकी हो , बताओ तुम क्या कर रही हो "
डॉ ने बार मेरी ओर देखा वो बहुत ही सीरियस दिख र्रहे थे ,उनकी काबिलियत पर मुझे विश्वास होने लगा था , उन्होंने अपने मुह में उंगली रखकर मुझे बिलकुल चुप रहने का इशारा किया …
वही अन्नू बोलने लगी ..
"मैं अभी बिस्तर में लेटी हुई हु "
"वक्त क्या हो रहा है "
"रात के ग्यारह बजे है "
"तुम्हे लेटकर क्या सोच रही हो "
"निक्कू , मेरा निशांत .. हाय मुझे ये सोच कर कितनी शर्म आ रही है .."
मैंने देखा अन्नू के चहरे में शर्म के भाव उभर गए वो अभी सम्मोहन में थी और आधी लेटी हुई थी , उसका शरीर भी नहीं हिल रहा था लेकिन चहरे के भाव साफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहे थे ..और वो मुझे निक्कू बोल रही थी , आज तक उसने मुझे इस नाम से नहीं बुलाया था , हा एक दो बार उसने मुझे निक नाम से बुलाने और कोई छोटा नाम बनाने की कोशिस की थी , जिसमे निक्कू भी एक था , लेकिन मुझे ये सब पसंद नहीं था , अच्छा खासा नाम था मेरे पास ..
"क्या किया निशांत ने जो तुम्हे शर्म आ रही है "
"हाय … वो कुछ करता ही तो नहीं , मैंने उसे बता दिया की मेरे दिल में क्या है , लेकिन … ये दोस्ती की लकीर ना होती तो आज .. कितनी बेचैनी लग रही है , क्यों उसने मुझे ठुकरा दिया , कब वो मेरे अंदर डालेगा हाय , आह .."
अन्नू के मुह से मादक सिसकिया सुनकर मेरी हालत ख़राब होने लगी , कल रात ये मेरे बारे में ही सोच रही थी ??
अन्नू अपनी जीभ को अपने दांतों से काट रही थी , और सिसकिया ले रही थी
"तुम क्या कर रही हो ??"
डॉ ने हलके से पूछा
"तकिये से अपनी बुर रगड़ रही हु , कितना मजा आता है इसमें , ये सोच कर मेरी खुजली बढ़ रही है की निक्कू इसमें अपना डालेगा .. आह कितना मजा है इसमें "
"तुम क्यों पीछे हट रही हो.. वो तो तुम्हे माना नहीं करेगा, वो भी तो बहक सकता है "
डॉ की बात सुनकर ,अन्नू का चहरा उदास हो गया
"वो मुझसे प्यार करता है बहुत प्यार , मेरी दोस्ती की क़द्र है उसे , वो आम लडको जैसा नहीं है जो लड़की देखकर अपनी लार टपका देते है , वो मेरे साथ ऐसा कभी नहीं करेगा , लेकिन मैं ही पापी हु जो उसके बारे में ऐसा सोच रही हु "
अन्नू रोने लगी थी , शायद फिर से ग्लानी का भाव उस पर हावी होने लगा था , एक ही समय में दो परस्पर विरोधी भावनाओ का सामना करना कितना दुखदाई होता है ये मैं साफ साफ देख रहा था ,एक तरफ जिस्म की गर्मी थी तो दूसरी तरफ प्यार की कोमलता , मखमल में जैसे आग लग गई हो और फिर भी मखमल की कोमलता का अहसास करना हो ,हाथ का जलना तो अब लाजमी ही था …
अब क्या दोस्ती के बंधन को तोड़ देना ही उचित है या फिर इसी आग में अन्नू हमेशा जलती रहेगी , क्या मुझे कुछ करना होगा ..??
मैं दुविधा और दुःख से भरा अन्नू को देख रहा था , उसकी तकलीफे मुझे तकलीफ पंहुचा रही थी , डॉ ने इस बार मुझे देखा इस बार उनका चहरा शांत था ..
"तुम और आगे जाओ एक रात पीछे जाओ , अब तुम कहा हो "
"मैं सोयी हुई हु "
"तुम अकेली हो , कहा हो तुम ??"
"हा , अपने कमरे में .."
"कैसा महसूस कर रही हो …???"
"बहुत थकान है ,गहरी नींद में हु "
डॉ के चहरे में एक सिलवट सी आई , उन्होंने मुझे थोडा अलग बुलाया
"तुम्हे सपना कब आया था "
"परसों ..??"
"क्या सपने में तुम दोनों कही गए थे ..??"
मैं चौका ये साला क्या सब जानता है ??
"हा नदी किनारे "
"समय क्या था ..??"
"शाम का समय था .."
डॉ फिर से अन्नू के पास पहुच गए
"थोडा और पीछे जाओ , देखो तुम कहा हो शाम को तुम कहा हो "
अन्नू के चहरे में हँसी आई
"मैं अम्मा के साथ हु , वो कितनी अच्छी है , कितना प्यार करती है मुझे , वो मेरे लिए मेरी फेवरेट सब्ब्जी बना रही है "
डॉ सोच में पड़ गया …थोड़ी देर तक सोचता ही रहा
"अभी निशांत कहा है .."
"वो शहर से आते ही सो गया , अभी तक नहीं उठा "
डॉ का चहरा जैसे पिला पड़ने लगा था , उसके इस अजीब से बर्ताव को देखकर मैं भी चिंतित होने लगा , आखिर वो ढूंढ क्या रहा है …??
"खाना खाकर तुम कहा गई थी …??"
"मैं अपने कमरे में सोने आ गई "
"अभी निशांत कहा है ..??"
"वो अपने कमरे में सो रहा है "
"क्या तुम उसके कमरे में जाकर उसे देखा ??"
"हा वो अपने कमरे में सो रहा है .."
"तुम अपने कमरे में आ गई हो , बताओ क्या निशांत ने तुम्हे रात में जगाया "
डॉ की बात सुनकर मैं भी अचरज में पड़ गया था , ना ये सपने से मेल खा रहा था ना ही जिसे हम हकीकत समझ रहे थे उससे , हम शाम को नदी के किनारे नहीं गए तो फिर जो भी मैंने देखा वो मात्र एक सपना होना चाहिए था , और गए थे तो रात को तो मुझे सर पर चोट लगी थी उसके बाद का कोई होश नहीं था , फिर आखिर ये रात वाला क्या सीन आ गया
अन्नू अभी भी चुप थी ..
"बताओ क्या रात में सोते हुए तुम्हे निशांत ने जगाया था "
"हा .."
डॉ ने अपनी कुर्सी में थोड़े बेचैनी से करवट लिया और माथे में आये पसीने को रुमाल से पोंछा , उसके साथ साथ मैं भी आश्चर्य में था ..
"क्या कहा उसने तुमसे .."
"उसने दरवाजा खटखटाया , मैंने उस सोते रहने को डांटा , वो मुझे हमेशा नदी घुमाने ले जाता था , लेकिन आज थके होने के कारन आते ही सो गया था , "
"उसने क्या कहा .."
"उसने कहा की आज चांदनी रात है , झरने के पास चलते है , वंहा चांदनी का उजाला भी होगा और शांति भी "
मैं अन्नू की बात सुनकर बिलकुल ही हैरान था , झरना तो गांव से बहुत दूर पड़ता था आखिर रात में मैं उसे वंहा क्यों ले जाता …
डॉ ने फिर से अपना पसीना पोंछा
"तुम वंहा पहले भी गई हो ..??"
" नहीं लेकिन निशांत वंहा अपने दोस्त के साथ जाता है , वो लोग वंहा बैठकर शराब पीते है , उसने मुझे कई बार बताया था और वंहा ले जाने का वादा भी किया था "
डॉ ने एक बार मेरी ओर देखा , मैंने हां में सर हिलाया , मैंने कई बार उससे उस झरने का जिक्र किया था जन्हा मैं और अंकित बैठकर शराब पिया करते थे ..
"उसके बाद क्या हुआ ???"
"हम दोनों झरने की ओर चल पड़े , हम उसकी बुलेट में वंहा गए थे "
"तुम्हे कैसा महसूस हो रहा है , निशांत कैसा है …"
"बहुत ही प्यारी जगह है , झरने की आवाज रोड तक आ रही है , निशांत थोडा बेचैन है , वो मेरे हाथ को पकड कर खिंच रहा है , वो कह रहा है की जल्दी से झरने के पास चलो , आज की रात बहुत अच्छी है "
डॉ और मैं दोनों ही आँखे फाडे उसकी बात सुन रहे थे आखिर ये हुआ कब था , मेरा दिमाग फटा जा रहा था
"फिर क्या हुआ " डॉ ने हलके से कहा और अन्नू ने बोलना जारी रखा ..
"वंहा एक बड़ा सा पत्थर है , किसी तबुतरे जैसा "
डॉ ने मेरी ओर देखा , हा वंहा एक बड़ा सा पत्थर है , मैं भी जानता हु , झरने के बिलकुल ही करीब , मैं और अंकित वंहा बैठकर कई बार दारू पि चुके है , झरने के पास होने पर झरने का पानी वंहा तक छिटकता है इसलिए वो पत्थर हमेशा गिला रहता है …
"आगे क्या हुआ ..??"
डॉ ने फिर अन्नू से पूछा
"वो मुझे उस पत्थर की ओर ले जा रहा है , वो बहुत ही जल्दी में है , मैं उसे ऐसा करने से माना कर रही हु लेकिन वो जैसे अपने होश में ही नहीं है "
अब मेरे चहरे में भी पसीना आ गया था , ये वही पत्थर था जिसमे अंकित ने कई लडकियों को पेला था , वो कहता था की इस पत्थर में जादू है , इसके उपर लिटा के किसी को पेलने में मजा ही आ जाता है …
अन्नू ने आगे कहा
"वो मुझे झरने के करीब उस पत्थर के पास ला चूका है "
वो चुप हो गयी
"फिर क्या हुआ .." डॉ ने बहुत ही धीरे से कहा
"नहीं निशांत ये क्या कर रहे हो , नहीं ओओहह आआआअ , मैं मर जाउंगी ये क्या हो रहा है ….. आआआ "अन्नू जोरो से चिल्लाई और छटपटाने लगी
डॉ तुरंत उसके सर के पास पंहुचा …
"शांत हो जाओ शांत हो जाओ शांत हो जाओ , तुम शांत हो तुम अपने कमरे में हो , तुम सो रही हो , तुम समय में आगे बढ़ रही हो , तुम शांत हो , तुम शांत हो .."
अन्नू को छटपटाते हुए देख कर मेरी हालत भी ख़राब हो गई थी लेकिन डॉ ने उसे तुरंत ही सम्हाल लिया , अन्नू शांत होने लगी ..
"जैसे ही मैं तुम्हे उठने कहूँगा तुम धीरे धीरे अपनी आँखे खोलोगी , मेरे चुटकी बजाते ही तुम हमें बताई सारी बाते भूल जाओगी , तुम वैसे ही रहोगी जैसा तुम यंहा आने से पहले थी , तुम्हे कुछ याद नहीं रहेगा ,,, "
डॉ ने चुटकी बजाई और अन्नू को उठ जाने को कहा ..
अन्नू ने आँखे खोली और आश्चर्य से हमें देखा ..
"आपने मेरे साथ क्या किया .." उसने उठते हुए डॉ से पूछा
"कुछ भी तो नहीं , मैं तो तुम्हे सम्मोहित करने की कोशिस करता रहा और तुम खर्राटे मरते हुए सो गई "
डॉ ये बोल कर हँसने लगा , मैं भी उनके साथ दिखावा करते हुए मुस्कुराया
"हा थोड़ी थकावट सी महसूस हो रही है मुझे "
वो अंगड़ाई लेते हुए बोली
अन्नू की ये हालत देख कर मेरा दिल बैठा जा रहा था , मैं उससे लिपटकर रोना चाहता था लेकिन मैंने खुद को काबू में किया …
"अन्नू अब तुम बाहर जाकर बैठो , चाहो तो थोड़ी देर आराम करो "
उन्होंने नौकर को बुलाकर अन्नू को गेस्ट रूम में भेज दिया ..
अन्नू के जाते ही मैं बेचैन हो उठा
'डॉ ये क्या था .. क्या अन्नू ने कोई सपना देखा था ???"
मन में अब कई सवाल थे और जवाब को जानने को मैं बेचैन हो रहा था ..
"नहीं निशांत अन्नू ने जो कहा वो सब सच है , लेकिन ये बात तुम दोनों को याद नहीं "
मैं धडाम में कुर्सी में बैठ गया , आखिर उस रात क्या हुआ था , क्यों हम दोनों को सपने आये , क्यों अन्नू मुझे पाने के लिए बेचैन थी ,क्यों मैं स्त्री सम्भोग के लिए बेचैन हुआ जा रहा था , क्या मैंने अन्नू के साथ कुछ गलत किया था , अगर किया था तो अन्नू ने आगे कुछ क्यों नहीं कहा , पत्थर के पास पहुचने के वाकये के बाद वो चिल्लाने क्यों लगी …. मेरा दिमाग फटने लगा था वही डॉ का चहरा भी गम्भीर हो गया था ..
अब इन सवाल कोई दे सकता था वो शख्स यही हो सकता था ..
डॉ चुन्नीलाल यरवदा वाले उर्फ़ डॉ चुतिया ………….[
 
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मेरी आँखे डॉ पर जमी हुई थी , मन में बेचैनी बढ़ने लगी थी
"अब क्या आप मुझे भी सम्मोहित करने वाले है डॉ "
आखिर ख़ामोशी को तोड़ते हुए मैंने कहा
"नहीं जो जवाब अन्नू ने दिया है तुम भी वही दोगे "
"आप इतने विस्वास के साथ कैसे कह सकते है ??"
"क्योकि तुम पहले नहीं हो जो इस श्राप के शिकार हुए हो "
मेरी आँखे खुल गई , मैं चौकन्ना हो गया था
"मतलब …???"
"मतलब ये की ये श्राप सदियों पुराना है ,हमने मिलकर इसे ख़त्म कर दिया लेकिन इसका कुछ असर अब भी बाकी है , और तुम इसके शिकार हो गए "
"आखिर ये श्राप है क्या …???"
मेरी उत्त्सुकता बढ़ने लगी थी
डॉ ने एक गहरी साँस ली
"ये एक राज है जिसे कई लोग जानते है , अब तुम सोचोगे की ये कैसा राज हुआ जिसे कई लोग जानते है .. यही इस राज की खासियत है की ये जितना जाहिर है उतना ही छुपा हुआ है , हर आदमी इसे अपने नजरिये से जानता है ,लेकिन इसकी असलियत मैं आज तुम्हे बताता हु , मैं इसे तुम्हे इसलिए बता रहा हु क्योकि अगर तुमने इसे नहीं समझा तो समझ लो की तुम बुरी तरह से फंस जाओगे , वासना और हवास के दलदल में फंसकर तुम अपना और दूसरो का भी नुकसान कर सकते हो …क्या तुम तैयार हो "
मैं डॉ की बात सुनकर हैरान परेशान था , ये आदमी इतना बिल्डअप किये बिना भी तो बता सकता है , साला दिल की धड़कने बढ़ा रहा है , मैंने भी एक गहरी साँस ली सोचा देखते है की आखिर क्या ऐसा राज है जो जाहिर भी है और छुपा हुआ भी है ..
"जी डॉ बोलिए मैं तैयार हु "
"सुनो बात कई साल पहले की है बादलपुर गांव को एक तांत्रिक ने श्राप दिया था ,वो तात्रिक गांव के ही प्रधान का भाई था , लेकिन गांव के नियमो का ना मानने वाला एक विद्रोही , बादलपुर गाँव कभी आसपास में सबसे समृद्ध और खुशहाल हुआ करता था , वंहा की परंपरा में प्रेम और आपसी भाईचारा घुला मिला था , लोग रिश्तो का आदर करते और प्रेम से रहते , कोई भी पाप कहे जाने वाला कृत्या वंहा बर्दास्त नही किया जाता , लेकिन प्रधान का भाई इन सबके खिलाफ था , वो कहता की जिस्म की जरूरतों के लिए किसी का भी भोग नाजायज नहीं है , प्रधान उससे परेशान हो चूका था लेकिन वो सब सह लेता अगर उसके भाई ने वो कृत्य ना किया होता …"
मैं डॉ की बात ध्यान से सुन रहा था , मेरी उत्सुकता और भी बढ़ने लगी
"कौन सा कृत्य ???"
डॉ मुस्कुराए
"एक ऐसा कृत्य जिसे दुनिया पाप मानती है और बादलपुर के लोगो के लिए तो वो परम पाप था … खून के रिश्ते में जिस्मानी सम्बन्ध बनाना , प्रधान के भाई ने अपनी सगी बहन से प्रेम करने का जुर्म कर दिया , दोनों ही एक दुसरे के प्रेम में थे और दोनों के बीच जिस्मानी संबध स्थापित हो गए … ये बात गांव वालो को पता चली तो चारो तरफ हल्ला मच गया , प्रधान का भाई उस समय वंहा नहीं था , गांव वालो ने उसकी बहन को जिन्दा जला दिया … "
हम दोनों ही खामोश थे
डॉ ने आगे बोलना जारी रखा
"गांव वालो ने जो जगह चुनी थी वो वही जगह थी जन्हा प्रधान का भाई साधना किया करता , वो काले जादू की साधना करता , जब वो वापस आया तो वो पागल सा हो गया , गांव वालो को श्राप दे दिया की तुम सब पापी हो जाओगे , होशो हवास खोकर वासना में अंधे होकर किसी से भी जिस्मानी सम्बन्ध बनाने लगोगे , उसने इसके लिए खुद की बलि दे दी , इससे पहले की वो श्राप गांव में फैलता प्रधान और गांव के पंडित ने उस श्राप को उसी जगह कैद कर दिया , गांव का पंडित बहुत ही पंहुचा हुआ जानकार था , उसने एक पत्थर के निचे तांत्रिक की आत्मा को कैद कर दिया था और उस जगह में किसी को जाने की अनुमति नहीं थी, खासकर स्त्री और पुरुष को एक साथ वंहा जाने की मनाही थी , चाहे वो कोई भी हो , सालो तक तंत्रिका का श्राप और उसकी आत्मा वही कैद रही , गांव का कोई भी इंसान वंहा नहीं जाता , वो जगह भी खंडहर हो चुकी थी , लेकिन कुछ सालो पहले तांत्रिक की आत्मा जाग उठी और बादलपुर में हाहाकार मचा दिया , रिश्तो की मान मरियादा ख़त्म हो गई , आखिर गांव के प्रधान ने मुझे बुलाया और हमने मिलकर ये सब शांत किया , तात्रिक की आत्मा को मुक्त किया और सब सामान्य हो गया ….(बादलपुर की पूरी कहानी डिटेल में जानने के लीये पढ़िए मेरी स्टोरी " तांत्रिक का श्राप " … जो अभी तक लिखना शुरू नहीं हुआ है :lol1: जब लिखूंगा तब पढियेगा )
लेकिन जिस पत्थर में तांत्रिक की आत्मा को कैद किया गया था उसमे उसकी शक्ति का अंश बाकी था , इसलिए एक निर्जन जगह में छोड़ दिया गया … ये वही पत्थर है जिसपर बैठ कर तुम लोग शराब पिया करते थे , उसी दौरान पत्थर ने तुमको चुन लिया …"
मैं बुरी तरह से चौक गया
"मुझे चुन लिया मतलब ..और इसका गांव और हमारे सपने से क्या रिलेशन है ??"
डॉ हँसने लगा ,
"एक घटना बादलपुर की थी , और दूसरी घटना तुम्हारे गांव में घटी ….वो ही एक तांत्रिक से ही जुडी हुई है , कुछ सालो पहले ही की बात है जब एक तांत्रिक तुम्हारे गांव में आया था , गांव के तालाब के पास पीपल पेड़ के नीचे उसने अपना डेरा जमाया , इधर बादलपुर में हाहाकार मचा था , ऐसे तो वंहा से बाहर किसी को इस बात की खबर नहीं थी लेकिन कुछ कानाफूसी जरुर चल रही थी की बादलपुर में किसी तांत्रिक का प्रकोप छाया हुआ है ,जब तुम्हारे गांव में वो तांत्रिक आया तो तुम्हारी गांव की महिलाये जोकि तालाब में नहाने जाया करती थी उन्होंने ठकुराइन यानि तुम्हारी अम्मा की सास से उसकी चुगली कर दी ,और सब ने मिलकर उस तांत्रिक को वंहा से भागा दिया , तांत्रिक ने गुस्से में ये श्राप दे डाला की जिस योवन के घमंड में डूब कर ये ओरते अपने पति को नाचा रही है वो यौवन ही उनका दुश्मन बनेगा , वो काम सुख को तरसेंगी और कभी पुत्र का सुख नहीं पाएंगी … उस समय तो किसी ने उसे सीरियस ही नहीं लिया लेकिन जब ये श्राप सच होने लगा तो लोगो में बेचैनी बढ़ी , गांव के मर्दों को इस बात की भनक ना लगे इस बात की जतन की गई , हा उन्हें ये तो समझ आ रहा था की गांव में पुत्र पैदा होना बंद हो चूका है , और औरते भी खोयी खोई सी रहती है , तब तुम्हारी अम्मा की नयी नयी शादी हुई थी ,और तुम्हारे फूफा जी बीमार रहने लगे थे , उस तांत्रिक को फिर से ढूंढा गया , ओरतो का एक झुण्ड उनसे मिलने गया और माफ़ी मांगी जिसमे तुम्हारी अम्मा और उनकी सास भी थी तांत्रिक भी थोडा नर्म पड़ा और उसने सुझाया की ये श्राप ख़त्म हो जायेगा जब कोई किसी शैतान की पूजा करने वाले तांत्रिक के मंत्रो से अभिमंत्रित किसी वस्तु के संपर्क में जायेगा , और वो वस्तु उसे लायक समझेगी ,और वो व्यक्ति उस वस्तु को जागृत कर दे तो उससे सम्भोग करने से हर स्त्री की तृप्ति भी होगी और पुत्र धन भी प्राप्त होगा …मजेदार बात ये थी किसी को कुछ समझ नहीं आया की वस्तु क्या होगी और कौन उसे जागृत करेगा और कैसे करेगा … तांत्रिक ने इतना ही कहा था की सब वक्त के साथ पता चल जायेगा … अब अच्छी और बुरी दोनों बाते ये है की तुम ही वो व्यक्ति हो जिसने ये सब किया है , तुमने उस पत्थर को जागृत भी कर दिया और उस पत्थर ने तुम्हे ही चुना है , ये बात किसी को पता तो नहीं लेकिन आभास सभी को हो चूका है …"
मैं अब और भी बुरी तरह से कंफ्यूज हो चूका था .. और एक सवाल मेरे जेहन में गूंजा
"आखिर ये सब आपको कैसे पता ..???"
डॉ मुस्कुराया
"उन ओरतो को तांत्रिक से मिलाने वाला व्यक्ति मैं ही था , बादलपुर के तांत्रिक की रूह को मुक्त करने के बाद मैं ही इस गाँव में उस पत्थर को ठिकाने लगाने आया था , उसी दौरान मेरी मुलाकात यंहा की ठकुराइन से हुई , मेरे बारे में जानकार उन्होंने मुझसे सभी बाते कही और मैंने उस तांत्रिक को खोज निकाला , तांत्रिक से मिलने के बाद सभी इसी पसोपेश में थे की आखिर वो वस्तु क्या होगी , और वो शैतान की पूजा करने वाले किसी तांत्रिक को कहा ढूंढें , इसका हल भी मैंने ही उन्हें दिया था क्योकि वैसा तांत्रिक खोज पाना लगभग असम्भव था , अगर कोई ऐसा करे भी तो वो दुनिया के सामने नहीं आता , लेकिन ऐसे एक तांत्रिक की एक वस्तु तुम्हारे गांव के बाहर मैंने ही रखवाई थी , वो चबूतरे जैसा पत्थर जिसके नीचे सालो तक एक दुष्ट तंत्रीक की आत्मा कैद में थी , उसमे शक्तिया तो अभी तक थी लेकिन उसे जागृत वैसे ही किया जा सकता था जैसे बादलपुर में किया गया था , उसके उपर अगर कोई सम्भोग करे … लेकिन उसकी शक्तियों का पूर्ण जागरण तभी हो पाता जब वो अनजाने में किया जाता , दूसरा की सम्भोग करने वाले के मन में वो पाप का भाव भी होता"
मुझे ये कुछ समझ नहीं आया
"मतलब कैसे सम्भोग के दौरान पाप का भाव आएगा और अगर आएगा तो वो सम्भोग ही कैसे कर पाएंगे "
डॉ फिर मुस्कुराया
"यही तो मुश्किल थी जिसके कारन इतना समय लग गया वरना अंकित ने तो ना जाने कितने बार वंहा सम्भोग किया , उससे पत्थर जाग्रत तो हुआ जिसके कारन अंकित को वंहा बहुत मजा आता था लेकिन पूर्ण जागरण नहीं हो पाया , ना ही उस पत्थर ने अंकित को उस काबिल समझा, क्योकि वो हवस से भरे हुए मन से लडकियों को वंहा लाता था , ना उनके बीच कोई खून का सम्बन्ध होता ना ही कोई घनिष्ट सम्बन्ध जिसमे प्रेम हो ना की हवस , तो पाप का बोध कैसे होगा …? लेकिन तुम्हारे और अन्नू के बीच ये था , प्रेम का घनिष्ट सम्बन्ध और एक दुसरे से जिस्मानी ताल्लुक रखने के सोच से ही ग्लानी का भाव , मतलब तुम दोनों ही इसे पाप समझते हो , तुम पत्थर के संपर्क में आये और पत्थर ने ये चीज समझ ली थी की तुम्हारे मन में प्रेम है ना की वासना , और उसने तुम्हे चुन लिया की तुम पाप करो और उसे उसकी पूर्ण शक्तियों में जागृत कर दो ..
ऐसा नहीं था की तुमसे पहले और लोगो वंहा नही आये , जब मैंने उस पत्थर और उसके नियमो के बारे में ठकुराइन को बताया था तब ही उस जगह को आने जाने के लायक बना दिया गया था , जरुरी ये था की सब को इस बारे में पता ना चले , क्योकि जो भी होना था वो अनजाने में होना जरुरी था , जानबूझ कर करने से तो पत्थर जागृत ही नहीं होता ….."
मैं डॉ की बातो पर भरोसा तो करना चाहता था लेकिन ये बिलकुल ही काल्पनिक लग रही थी , मैंने अपना तर्क दिया
"अगर ऐसी बात थी तो मैंने तो उस पत्थर में कुछ नहीं किया और वो सपना जो मुझे और अन्नू को आया वो क्या था …??"
डॉ ने गह्ररी साँस ली और बोलने लगा
"तुम कई बार उस पत्थर के संपर्क में आये थे , पत्थर ने तुम्हे चुन लिया था और तुम्हारे दिमाग को काबू करने लगी थी , दिक्कत ये थी की तुम यंहा रहते ही नही हो और ना ही तुम्हारी उम्र ही परिपक्व थी , लेकिन इस बार जब तुम आये तो तुम्हारे साथ अन्नू भी थी और तू उम्र के उस दौर में पहुच चुके थे जन्हा मन का बहकना बहुत ही आसन होता है , भावनाओ का वेग अपने चरम पर होता है , दूसरा की चांदनी रात भी थी , पत्थर ने तुम्हे आकर्षित किया , तुम्हारी नींद खुल गई और तुम बेचैन हो गए, तब तुम अन्नू के पास पहुचे , तुमने उसे कई बार उस जगह के बारे में बताया था , उस झील की सुन्दरता का वर्णन किया था , आज चांदनी रात में तुम्हे वंहा जाने की तीव्र इच्छा हुई वो भी अन्नू को लेकर , तुम उसे भी उस खुबसूरत नज़ारे को दिखाना चाहते थे .. अन्नू भी वंहा जाने को राजी हो गई , अगर ना जाती तो कुछ होता ही नहीं , लेकिन शायद किस्मत को यही मंजूर था , अन्नू किसी आकर्षण में नही थी लेकिन वो तुम्हारे विश्वास में थी , तुमपर उसे खुद से ज्यादा भरोसा था , वो तुम्हारे साथ चल दी , वंहा जाते तक तुम भी नार्मल ही थे , लेकिन जैसे ही तुम उस पत्थर के पास पहुचे तुमने अपना आपा खो दिया , पत्थर ने तुम दोनों को ही अपने वश में कर लिया था , वो जागृत होने को बेचैन थी उसने तुम दोनों के अंदर की हवस की आग को इतना भड़का दिया की तुम दोनों दुनिया भूल कर वो कर बैठे जो तुम्हे नहीं करना था , तुमने उस पत्थर को जागृत कर दिया और उसकी शक्ति तुम्हारे अंदर समां गई …."
डॉ ये बोलकर खामोश हो गए और मैं अवाक … कुछ देर तक मैं उन्हें एकटक देखता रहा फिर जैसे मुझे होश आया हो ..
"नहीं ये सब फिजूल की बाते है , मैं ऐसा नहीं कर सकता वो भी अन्नू के साथ … नहीं ये नहीं हो सकता .. और अन्नू ने सम्मोहन में सब कुछ बताया था लेकिन पत्थर में पहुचने के बाद की बाते तो उसने भी नहीं बताई थी , फिर आप इस निष्कर्स में कैसे पहुच सकते है की हमारे बीच …. नहीं आप झूठ बोल रहे है .."
"पत्थर में लेटने के बाद की घटना सम्मोहन से इसलिए पता नहीं चली क्योकि तब तुम दोनों ही पत्थर के वश में थे , इसलिए उस रात क्या हुआ तुम दोनों के चेतन मन को नहीं पता , तुम दोनों को बस इतना याद रहा की तुम दोनों सोने गए थे , जब उठे तब तुम थके हुए थे लेकिन रातं में तुमने क्या किया ये तुम्हारे चेतन दिमाग से मिट चूका था,लेकिन तुम्हारा अचेतन मन हर चीज को जानता है , सम्मोहन से अन्नू के अवचेतन ने वो बाते याद कर ली लेकिन पत्थर में लिटाये जाने के बाद से उसका मन उसका ना रहा था …तुम दोनों को वो सपने भी इसीलिए आये क्योकि तुम्हारे अवचेतन मन ने तुम्हे एक संकेत दिया की तुम्हारे साथ कुछ बुरा हुआ है , अवचेतन मन की शक्तियों का पता तो अभी विज्ञान भी नहीं लगा पाया है ,इसे ही काबू में कर लोग सिद्ध हो जाते है ,ये बहुत पॉवरफुल है ,इतना कि उन चीजों को भी जान ले जो जिसका हमसे कोई वास्ता नही ,अवचेतन मन की एक और विशेषता है कि वो तर्क नही करता चीजो को सीधे समझता है ,इसका प्रयोग साधक अपनी साधना में करते है और मनोविज्ञान में इसी खासियत का प्रयोग करके आत्मसमोहन द्वारा लोगो की पुरानी से पुरानी आदतों को बदला जाता है,जिस संकल्प और सम्मोहन की हम बात करते है सब अवचेतन से ही संभव हो पाता है,,यही सपने दिखता है कभी भूत का कभी वर्तमान का तो कभी भविष्य का भी ,इसने ही वो सपने बनाये थे ,समझ लो तुम्हारे मन ने तुम्हे आगाह किया था और शायद तुम्हारी जिम्मेदारी के बारे में संकेत किया था …"
डॉ की बात सुनकर मैं झल्ला गया था
"मेरी कोई जिम्मेदारी नही है " मैंने झल्लाते हुए कहा
डॉ हँसने लगा
"चाहो या ना चाहो अब ये तुम्हारी जिम्मेदारी है ,हो सके तो इसे खुश होकर निभाओ …"
डॉ की बात सुनकर मुझे सपने में देखी बात याद आ गयी उसमे भी औरतों ने मुझे पकड़ कर यही कहा था ,चाहो या न चाहो करना तो पड़ेगा …
मै अपना माथा पकड़ कर बैठ गया ,पता नही मेरा भविष्य क्या होने वाला था ,उस पत्थर ने मुझे क्यों चुना ,अंकित को चुन लेता तो वो मजे से ये सब करता
"मन से द्वन्द हटाओ निशांत अपनी किस्मत को स्वीकार करो , इसे खुशनशिबी बनाओ ना की बदनाशीबी "
डॉ ने फिर से कहा था , मेरे आँखों में आंसू गए थे , ये किस्मत मेरे साथ ऐसे खेल क्यों खेल रही थी
"मैंने अन्नू के साथ जो किया … मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाउँगा डॉ "
मैंने अपना चहरा निचे कर लिया था , डॉ ने मेरे बालो को सहलाया
"जो बिता गया उसे भूल जाओ , अब अन्नू के साथ तुम्हारा रिश्ता केवल दोस्ती का नहीं हो सकता , तुम दोनों को अब जानकर एक होना होगा .."
मैंने डॉ को देखा
"मैं यंहा से भाग जाऊंगा "
मैंने उठते हुए कहा , लेकिन डॉ ने बड़े ही प्यार से मुझे फिर से बिठा दिया
"गलती से भी ये गलती मत करना , तुम अब गांव छोड़कर नहीं जा सकते , अगर बाहर गए तो हवास की आंधी में डूबकर ना जाने क्या कर जाओ , तुम्हे होश तब तक है जब तक तुम उन लोगो के बीच हो जो खुद इस श्राप का शिकार है , इनके बीच रहो जीवन के मजे करो , बाहर जाओगे तो पता नहीं किस लड़की के उपर चढ़ जाओ और रेप केस में अंदर कर दिए जाओगे … गांव की सभी बहुए श्राप से जूझ रही है , उन्हें संतुष्ट करो , उनके जीवन में खुशिया लाओ , अरे यार अब इतने भी स्वार्थी क्यों बन रहे हो , तुम्हे नैतिकता की पड़ी है और यंहा सभी नैतिकता की माँ चुदी पड़ी है ,उन ओरतो के बारे में सोचा है कभी जो सालो से तुम्हारा ही इन्तजार कर रही थी और अब तुम भागने की बात कर रहे हो … अभी अपनी अम्मा के बारे में सोचा है "
मैं अम्मा का जिक्र आते ही चौक पड़ा , मेरे पुरे शरीर में जैसे करेंट दौड़ गया हो
"नहीं ये पाप मुझसे नहीं होगा , इससे अच्छा तो मैं मर ही जाऊ "
डॉ ने मुझे शांत किया
"अभी अम्मा को छोड़ो लेकिन उस दर्द को महसूस करो जो वो भुगत रही है , अच्छा एक काम करो खुद से कुछ मत करो लेकिन जो होता है उसे रोको भी मत .. ये तो कर सकते हो ??"
मै कुछ देर सोच में पड़ा रहा और फिर हां में सर हिला दिया
"मैं अन्नू को गांव से भेज देता हु "
मैं अपनी किस्मत को भुगतने को तैयार था लेकिन अन्नू को यंहा रखना मतलब उसकी जिंदगी बेकार करना था ,
"अभी नहीं जब वक्त आएगा तो वो भी चली जाएगी , अभी उसे अपने साथ ही रखो उसका ख्याल रखो , जब तुम्हारी ये हालत है सोचो की उसकी क्या होगी , वो तुम्हे पाने को बेताब है उसकी बेताबी बुझाओ .. "
मैं फिर से सकते में आ गया था , डॉ ने अपना सर खुजलाया
"अरे भाई कुछ मत कर तू , बस जो होगा उसे होने देना .. साला पत्थर ने भी किस चुतिये को चुन लिया , मुझे चुन लेटा तो गांव में नंगा घूम रहा होता अभी …अब जा "
डॉ गुस्से में बोला , मैंने उनके सामने हाथ जोड़ लिए
"आप वादा करो की मुझे इस श्राप से मुक्ति दिलाओगे …"
"श्राप तुझे नहीं लगा है … तुझे तो एक शक्ति मिली है , लेकिन तू साले चुतिया है , अब दो मिनट भी और मेरे सामने रहा तो यही चप्पल उठा कर मरूँगा , भाग यहाँ से … समय आने पर मैं तुझसे मिलने आऊंगा , तू मुह उठा कर यंहा मत आ जाना "
डॉ का गुस्सा देख मुझे अजीब जरुर लगा , इतने देर से जो आदमी इतने प्यार से मुझे समझा रहा था वो अचानक ही गुस्से में आ गया था , लेकिन उन्होंने मेरे लिए जो किया था वो भी काफी था , उन्होंने मेरी दुविधा दूर कर दी थी , अब आगे क्या होगा ये तो मुझे नहीं पता था लेकिन जो भी होगा मैं तैयार था ….
अब सबसे पहले मुझे अन्नू का सामना करना था ….[/
 
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अध्याय 8
मन उदास था , बेहद ही उदास ऐसा लग रहा था जैसे जीवन में अब कुछ भी ना बचा हो , मैं अन्नू का सामना करने से भी डर रहा था , चारो तरफ अन्धकार के बादल थे और कही से कोई उम्मीद की किरण दिखाई नही दे रही थी , जैसे रात का घोर अँधेरा हो और बियाबान जंगल में मैं अकेला छोड़ दिया गया हु , नहीं से कोई आस आ जाये ये मात्र एक उम्मीद बाकि थी , वो भी धुंधली पड़ते जा रही थी …
स्वामी विवेकानंद करते थे की सबकुछ खोने से बुरा है उस उम्मीद को खो देना जिसके भरोसे सब कुछ वापस पाया जा सकता है …
मैंने खुद से कहा "उम्मीद पर दुनिया टिकी है मैं इतने जल्दी उस उम्मीद को नहीं खो सकता , अगर मेरे किस्मत में ये करना लिखा है तो वही सही , लेकिन मैं इस श्राप को भी हराने की पूरी कोशिस करूँगा , जितना हो सके मन को शांत रखूँगा ताकि वासना की आंधी में मेरे मूल्य मेरा जमीर उड़ ना जाए "
मैंने गहरी साँस ली , अब जो होगा देखा जायेगा , जीवन बहुमूल्य है और मैं इसे यु हारकर खोना नहीं चाहता था ..
मैं अन्नू के पास पंहुचा
उसे देखकर ही मेरी आँखे नम हो गयी , इतनी मासूम सी उस जान से पता नहीं मैंने क्या सलूक किया था , वो किसी मुरझाये फुल के जैसे सिमटी हुई बैठी थी , चहरे में थकान साफ़ झलक रही थी , कभी हर वक्त हँसता हुआ उसका चहरा गंभीर हो गया था , एक बार उसने मुझे सर उठा कर देखा ..
"क्या कहा डॉ ने , क्या मुझे कोई मानसिक बीमारी है .."
उसकी आवाज धीमी थी ,मैंने ना में सर हिलाया और उसे वंहा से चलने को कहा ..
अब्दुल पहले से ही जा चूका था , मैं ड्राईवर सिट पर बैठा था और अन्नू मेरे बगल में , हम दोनों ही एक दुसरे से कोई बात नहीं कर रहे थे , मैंने गाड़ी चला दी ..
शहर से गाँव तक आने के लिए जंगल के बीच से रास्ता जाता है , सुनसान से रास्ते में हम दोनों ही अकेले थे ,हम शहर से निकले ही थे की अन्नू ने अपना हाथ मेरे जन्घो पर रख दिया , वो उसे सहला रही थी , मैंने एक बार उसकी ओर देखा , उसकी आँखे बंद थी और आँखों में पानी भी , मैं समझ चूका था की वो वासना के गिरफ्त में है और मुझे पाना चाहती है , उसके हाथो के कोमल स्पर्श से मेरा लिंग भी बड़ा होने लगा था , अन्नू की इस हालत को देखकर मुझे तरस तो आ रहा था लेकिन मैं अब जानता था की अब बहुत देर हो चुकी है ,
अन्नू आँखों को ताकत से बंद किये हुए थी , वो अपनी भावनाओ के आवेग को काबू में करने की कोशिस कर रही थी , वो उनसे जितना लडती वो उतने ही प्रबल होते जाते , मैं चाहता था की अब अन्नू सत्य को स्वीकार ले और खुद से ये लड़ाई बंद कर दे , जितना वो लड़ेगी उतने ही तकलीफ में रहेगी , मैं उसे फिर से खुश और खिलखिलाता हुआ देखना चाहता था और इसके लिए मुझे जो करना पड़े मैं करता ..
मैंने उसका हाथ पकड कर अपने लिंग पर रख दिया ,
उसने चौक कर आँखे खोली ..
वो आश्चर्य से मुझे देख रही थी ….
"अब मत लड़ो अन्नू जो होता है हो जाने दो , खुद से लड़ाई तुम्हे तोड़ देगी , हम नदी के विपरीत नहीं तैर सकते तो हमें नदी के धार के साथ ही बह जाना चाहिए ..हम दोस्त है और इस जन्म के अंत तक हम दोस्त रहेंगे , मेरा वादा है तुमसे की मैं जीवन भर तुम्हे वही प्यार और सम्मान दूंगा , लेकिन अब मैं तुम्हे ऐसे घुट घुट कर जीते नहीं देख सकता "
मेरी बात सुनकर अन्नू मुझसे लिपट गई , मैं अभी गाड़ी चला रहा था जिसका थोडा सा बैलेंस बिगडा लेकिन मैंने उसे सम्हाल लिया , अन्नू ने बिना कुछ बोले ही पेंट के उपर से ही मेरे लिंग पर एक किस कर दिया …
"मेरा निक्कू मेरा प्यारा निक्कू … मुझे अपना बना लो निक्कू "
उसने बड़े ही प्यार से मुझे देखा , एक अजीब सी फिलिंग मेरे शरीर और मन में दौड़ पड़ी , जीवन का ये आनन्द भी मुझे भोगना ही था , मैंने गाड़ी रोड के किनारे लगा दिया और अन्नू को बाहर निकाल कर जंगल के थोड़े अंदर ले गया , उसने मुझसे लिपट कर सीधे अपनी जीभ मेरे जीभ में डाल दिया , हम दोनों एक दुसरे के चुम्मन में खोने लगे थे , थोड़ी देर बाद जब हम अलग हुए तो एक दुसरे को ही देखने लगे …
जिस्म में गर्मी बढ़ने लगी थी , अन्नू के मुरझा गए चहरे में एक राहत का भाव था ,
"आई लव यु निक्कू "
उसने मेरे चहरे को सहलाया
"आई लव यू मेरी जान "
मैंने उसकी कमर को पकड़ कर उसे अपनी ओर खिंच लिया हमारे होठ फिर से मिल चुके थे , इस बार मैंने उसके कमीज के उपर से ही उसके उन्नत स्तनों को सहला दिया , वो उचक गई ..
वो बेसब्र हो रही थी उसने मेरे हाथो को सीधे अपने योनी पर रख दिया , इन सबका प्रकोप ये था की मेरा लिंग इतना कड़ा हो चूका था की मुझे दर्द देने लगा , मैंने एक हाथ से अन्नू की योनी को हलके से सहलाया तो दुसरे हाथो से अपनी पेंट उतरने की कोशिस करने लगा , मैं निचे से नंगा था और मेरा लिंग वक्राकर होकर ताना हुआ था , मैंने उसे अन्नू की सलवार के उपर से उसकी योनी में रगडा ,
"आह " उसके मुह से एक सिसकी निकली उसके सलवार का वो जगह भी थोडा गिला प्रतीत हो रहा था , मैंने उसके नाड़े को खोलने में देर नहीं की , कुछ ही देर में हम दोनों ही मरजात नंग हो चुके थे , मैंने उसे एक पेड़ से टिका दिया था और उसकी टांगो को फैला कर खड़े खड़े ही उसके योनी में अपना लिंग डाल चूका था …
"मर गई मैं … मेरी जान तुम मेरे हो मुझे अपना बना लो " अन्नू की मादक आवाज मेरे कानो में पड़ी ..
मैं भी उसे पूरा भोग लेना चाहता था , मैंने स्पीड बड़ा दी थी , उसने अपना एक पैर उपर करके मेरे कमर में टिका दिया , अभी हम दोनों ही खड़े थे , मैंने अन्नू के दुसरे पैर को उठा कर उसे जोरो से धक्के देने लगा , वो पेड़ से टिकी हुई थी और अपना चहरा मेरे कंधे पर छिपा रखा था , उसके पैर मेरे कमर से बंधे हुए थे और मैं पूरी ताकत से अपने लिंग को उसकी योनी के अंदर डाल रहा था , हम दोनों ही दुनिया को भूल कर काम क्रीडा में मगन थे ,
"हे भगवान् ये क्या हो रहा है यंहा …???"
मुझे एक आवाज सुनाई दी , मैंने पलट कर देखा तो …
गुंजन भाभी मुह फाड़े हुए हमसे कुछ दूर पर खड़ी थी , वही उसके पीछे अंकित भी वंहा पंहुचा वो दोनों ही हमें देख कर स्तब्ध थे , मैंने उन्हें एक बार देखा और फिर पुरे जोर लगा कर अन्नू से सम्भोग में मस्त हो गया , मुझे अब किसी की कोई फिक्र ना रही थी , मैं अन्नू के गर्भ को अपने वीर्य की धार से भर देना चाहता था और जब तक मैंने ऐसा नहीं किया तब तक मैंने उसे नहीं छोड़ा ……………
 

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