Thriller भरतपुर का जंगल (adultery+incest+thriller)

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अशोक बहुत तेजी से अपनी बुलेट चला रहा था ।
उसका दिल जोरो से धक धक कर रहा था।
हेडक्वार्टर से आए फोन ने उसे हिला के रख दिया था।
ये इस महीने की 4थी घटना थी।

अशोक के सर पे पसीने की बूंदे आ गई थी ।
वो कुछ ही देर में घटना की जगह पे पहुंच गया था ,यानी की "भरतपुर के जंगल" में।

भरतपुर का जंगल भरतपुर कस्बे के बगल में ही था।
इस जंगल के किनारे में ही ये कस्बा बसा था जिससे कस्बे का नाम भरतपुर परा।
भरतपुर का जंगल बहुत विशाल था और बहुत ही घना ।
अक्सर यहां के जंगली जानवर भरतपुर कस्बे में आ जाय करते थे और कभी कभी नुकसान भी पहुंचा देते थे।

भरतपुर जंगल के एक छोर पे बसा था तो दूसरे छोर पे चंदेली नामक शहर बसा था।
भरतपुर कस्बे के अधिकतर लोग अपनी जरूरत के सामान चंदेली से ही खरीदा करते थे और अपनी फसल और जंगल से चुनी हुई जरीबुटि वहां बेचा करते थे।

चंदेली और भरतपुर को एक पक्की सरक जोड़ती थी जो कि जंगल के बीचबीच से गुजरती थी।

अशोक जंगल पहुंच गया था ।
जहा पहले से ही उसके थाने के सिपाही उसका इंतज़ार कर रहे थे।
उसने अपनी बाइक साइड में लगाई और घटनास्थल के तरफ बढ़ गया।

"जय हिन्द सर" - सिपाहियों ने उसे देख कर सेल्यूट किया
अशोक- जय हिन्द।
अशोक अपने थाने का थानेदार था ।
उसकी नौकरी नई नई ही लगी थी।
उसकी उमर केवल 24 साल की थी ,भरतपुर में उसकी पहली पोस्टिंग थी।

और पहली पोस्टिंग में ही उसके थाना छेत्र में अजीब घटना होने लगी थी।

अशोक भारी मन से घटनास्थल के तरफ बढ़ रहा था ।

अशोक अपने सिपाहियों से - कैसे हुआ ये सब।
एक सिपाही- पता नहीं सर , रात को फॉरेस्ट विभाग के आदमी पेट्रोलिंग पे थे ,तभी उन्हें वो मिली।

अशोक- क्या वो जिंदा है ।

सिपाही - जी साहब ,मैंने एम्बुलेंस को कॉल कर दिया है वो आते ही होंगे।
अशोक - अच्छा।
वो घटनास्थल पे पहुंच चुका था ।
एक 24 साल की युवती जमीन पे बेहोश परी हुई थी ।
पुलिस ने उसके नंगे बदन का कपड़े से ढक दिया था।

अशोक लड़की के पास गया और कपड़े को हल्का सा गया के मुआयना करने लगा ।
लड़की की हालत देख के लग रहा था कि किसीने उसका बुरी तरह से बलात्कार किया है।

अशोक ने वापिस से कपड़ा लड़की के बदन पे रख दिया।
थोड़ी देर में एम्बुलेंस आयी और लड़की को हॉस्पिटल के के चली गई।

अशोक कुछ देर घटनास्थल के आसपास घूमता रहा सुराग की तलाश में लेकिन उसे कुछ हाथ नहीं लगा।

अशोक वाहा पास खड़े हवलदार से - आपको क्या लगता कमल जी ,क्या ये केवल एक आदमी का काम होगा ।
कमल भले ही हवलदार था लेकिन वो अशोक के पिता के उमर का था तो इसलिए वो उससे इज्जत से बात करता था।

कमल - सर,लड़की की जैसी हालत है ये किसी एक आदमी का काम तो बिल्कुल नहीं लगता।

अशोक ने सहमति में सिर हिलाया ।

और गंभीर होते हुए बोला- ये इस महीने का चौथा केस है, एसपी साहब का बहुत ज्यादा दवाब है ,की केस जल्दी सॉल्व करो। लेकिन कैसे करू कोई सबूत मिले तब तो ,अपराधी इतना चालाक है कि वो कोई सबूत नहीं छोर रहा।

कमल - सर हमको एक बार बैठ कर ठंडे दिमाग से इस पूरे घनाक्रम पर फिर से सोचना चाहिए। सायाद कुछ क्लू मिल जाए।

अशोक - सही कहा आपने कमल जी । आज रात आप घर नहीं जाएंगे । मै भी रात में थाने पे ही रहूंगा। वहीं हम बात करेंगे।

कमल - ठीक है साहब जी ।
इतना कह वो सेल्यूट मार थाने के लिए निकल गया।

अशोक अभी भी उस जगह का मुआयना कर रहा था।
वो में ही मन सोच रहा था कि इस जगह पे तो हाथापाई के कोई निशान ही नहीं है ,हो ना हो ये घटना कहीं और हुई है और फिर लड़की को लाके यहां डाल दिया गया है।

कुछ देर जंगल में इधर उधर घूमने के बाद ,अशोक वापस अपने बाइक के पास आ गया और कुछ सोच कर अपने घर के तरफ निकल पड़ा
 
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शाम हो चुकी थी।
अशोक अपने घर पहुंचता है, तो वहां हर्ष को पाता है, जो कि सोफे पे बैठ के चाई पी रहा था और अशोक के बाबूजी (अजित, 52 वर्ष) और मां (ऋतु ,41 वर्ष) से बातें कर रहा था ।

अशोक ने बस्ती में ही एक घर किराए पर ले लिया था जहां उसके परिवार के सभी लोग रहते थे ।
परिवार के नाम पे अशोक के घर में मां,बाबूजी, और उसकी छोटी बहन थे।
अशोक को देख कर हर्ष उठ जाता है - अरे अशोक कैसा है तू ,बहुत दिन से मिला नहीं ,कहा रेहता है आजकल?
उसने सवालों की झड़ी लगा दी।

अशोक ने बस - ठीक है यार कहा और हर्ष को बैठने का कह के खुद फ्रेश होने चला गया।
अशोक के चेहरे पे परेशानी साफ झलक रही थी।

हर्ष फिर से सोफे पे बैठ गया और अशोक के मां बाबूजी से बातें करने लगा।

हर्ष और अशोक की दोस्ती लगभग दो साल पहले पुलिस ट्रेनिंग एकेडमी में ही हुई थी ।
दोनों एक ही बैच के पुलिस ऑफिसर थे और संयोग से दोनों की पोस्टिंग अगल - बगल के थानों में ही हुई थी।

अशोक भरतपुर का दारोगा था तो हर्ष रामनगर कस्बे का जो कि भरतपुर से 3 किमी की दूरी पे था।

अशोक फ्रेश होकर बाहर गेस्ट रूम में आया जहा हर्ष बैठा था।
अशोक - और भाई क्या हाल है, कैसे चल रहा काम धंधा।

हर्ष - ठीक है यार ,तू कई दिनों से मुझसे मिलने नहीं आया तो मुझे चिंता हो रही थी, इसलिए मिलने चला आया ।

अशोक - अच्छा किया ,आ गया ।मुझे भी मिलने का मन था लेकिन काम के चक्कर में फुरसत नहीं मिल रही।

ऋतु (अशोक की मां) बीच में बोल परी - काम..काम..काम, जबसे इस लड़के की नौकरी लगी है इसे काम के सिवा कुछ सूझता ही नहीं । अरे बेटा तुम ही इसे समझाओ की काम के अलावा भी जीवन है , उसपे भी ध्यान देना चाहिए।
ऋतु हर्ष को संबोधित करते हुए बोली।

हर्ष मुस्कुराते हुए - चाची ठीक बोल रही है यार ,थोड़ा अपनो के लिए भी टाइम निकल लिए करो।
अशोक झुंझला कर - हा ,भाई ,समझ गया निकल लूंगा टाइम ।

अशोक की बात सुन सभी चुप हो गए ।
तभी हर्ष बोला - अच्छा ,वो तेरे केस का क्या हुआ।
केस का नाम सुनते ही अशोक ने हर्ष को आंख दिखा के चुप रहने का इशारा किया।
वो इस बारे में अपने परिवार को नहीं बताना चाहता था नहीं तो वो चिंता में पर जाते।

हर्ष चुप रहना ही ठीक समझा और अशोक से विदा के निकल गया।

अशोक मां से - मां,राधा कहां है?
राधा अशोक की बहन थी जो को 19 साल की थी और बि. ए की पढ़ाई कर रही थी।
वो रोज कस्बे कि लड़कियों के साथ सायकिल से कॉलेज पढ़ने चंदेली जाती थी।

ऋतु - वो बेटा अपने सहेली के यहां गई है ।

अशोक जोर आवाज में - कितनी बार कहा कि ज्यादा शाम होने के बाद उसे घर से बाहर मत भेजा करो, अभी समय ठीक नहीं चल रहा।
बेटे का गुस्सा देख ऋतु सोच में पर जाती है।
वो अशोक के पास उससे सट के बैठ जाती है और उसके सर को झुका कर अपने सीने से लगा लेती है और उसका सर सहलाने लगती है ।

मां के मुलायम सीने में सर लगाए अशोक के सर पे जब अपने मां के कोमल हाथो का स्पर्श होता है तो वो एक पल के लिए सब कुछ भूल जाता है।

" क्या हुआ बेटा ,बहुत दिन से देख रही हूं तू बहुत परेशान है ,कुछ बात है क्या" ऋतु की कोमल ध्वनि अशोक के कानों में मिश्री की तरह घुल जाती है और वो मंत्रमुग्ध सा बोलता है - " ऑफिस की कुछ परेशानी है मां ,थोड़े दिन में ठीक हो जाएगा ,अभी काम सीख ही रहा हूं ना,इसलिए थोड़ी दिक्कत आ रही है।"

"कोई बात नहीं बेटा ,अभी हमें यहां आए कितने दिन ही हुए हैं, मुझे पूरा विश्वास है कि तुम जल्दी ही सब कुछ अच्छे से संभाल लोगे " इतना कह ऋतु अशोक के माथे पे एक चुम्बन जड़ देती है।
अपनी मां के भीगे गरम होंठों को अपने माथे पे स्पर्श होते ही अशोक का बदन सिहर जाता है और वो ऋतु से और कस के चिपक जाता है।

"आप दोनों मां बेटे का प्यार ख़तम हो गया हो तो मुझे खाना मिलेगा" राधा के बोलने से उन दोनों की आलिंगन टूटा ।

ऋतु - ले आए गई तेरी बेहना रानी।
इतना कह वो खाना लगाने चली गई ।

राधा ताना मरते हुए- क्या भैया ,केवल मा को ही प्यार करोगे मुझे नहीं ।

अशोक उठ के राधा को अपनी बाहों में भर लेता है और बोलता है - तुझे ऐसा क्यों लगता कि मैं केवल मा से प्यार करता हूं और तुझसे नहीं??

राधा इठलाते हुए - करते हो ,तभी तो लगता है।
वो बस अपने भाई को छेर रही थी ,दोनों जनो में ऐसे ही भाई बहन वाली नोक झोंक होती है।

और फिर सब खाना खाने बैठ जाते हैं।
खाना खाने के बाद अशोक रात में थाना
 
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थाने में पहुंचा तो कमल जी उसी का इंतज़ार कर रहे थे।
उसने थाने के बाहर ही कुर्सी लगाई और बैठ गया ।
कमल जी भी वहां आके बैठ गए।

अशोक - चलिए कमल जी , सूरू करते हैं।
हमें सबसे पहले लड़की मिली इस महीने की 3 तारिक को , दूसरी 7 को तीसरी 12 को और 4थी आज यानी 18 को।
कमल - जी सर , सबसे पहले जो मिली उसकी उमर 30 साल थी, दूसरे की 46 ,तीसरे की 40 और चौथे की 24।

अशोक - हूं , और ये जब मिली तो सब 1 किमी के सर्किल के अंदर ही मिली यानी उसी क्षेत्र के आसपास।
यानी मुजरिम उस एरिया को अच्छे से जानता है।

कमल - जी , सर।

अशोक - अच्छा , ये सब औरतें कहा कहा से है।

कमल- सर ,पहली दो औरत तो चंदेली शहर की है, तीसरी अपने भरतपुर की और चौथी रामपुर की।

अशोक सोचते हुवे - यानी , इन सभी औरतों के बीच कोई कनेक्शन नहीं है।

कमल - जी बिल्कुल नहीं सर , वो लोग तो एक - दूसरे को जानते भी नहीं।

अशोक - हूं , अच्छा क्राइम स्पॉट देख के आपको क्या लगता है ,मतलब इसका मोडस - ऑपरेंडी कैसा है?

कमल - सर जितनी भी औरतें हमें मिली हैं , उन सबके कपड़े हमें नहीं मिले , वे सब हमें नंगी ही मिली थी , सभी के योनि में से हमें 4 से 5 लोगों के स्पर्म मिले हैं यानी कि गैंगरेप हुई है, सभी औरतों का कहना है कि वो अचानक बेहोश ही गई और जब वो उठी तो वो एक अंधेरे कमरे में थी जहां लोग मस्क लगाए हुवे थे और एक एक कर उसका बलात्कार कर रहे थे। ये सब बात इस तरफ इशारा करते हैं की ये किसी गैंग का काम है और कोई एक ही गैंग है ।

अशोक - हूं , क्या मेरे आने से पहले भी ऐसी घटनाएं हुई है इस क्षेत्र में।

कमल - सर रेप के एक - दो केस तो साल में आते रहते हैं, पर इस तरह का रेप आज तक नहीं हुआ इधर।

अशोक - हूं ,अच्छा , कल सुबह हम दोनों सभी विक्टिम से मिलेंगे ।

कमल - जी सर ।

तभी अशोक के कानों में किसी के पायल की छन - छन की आवाज सुनाई दी।
वो उस तरफ देखा तो एक हसीन सी औरत सज - धज के हाथ में पोटली लिए उसके तरफ ही आ रही थी।

अशोक उस औरत को देखा तो देखता ही रह गया ।
वो औरत सांवली सी थी ,पर उसके नैन नक्श बिल्कुल कतार की भांति थी। उसके चेहरे की सुंदर बनावट और चमक देख अशोक ठगा सा रह गया। अशोक की आंखे उसके चेहरे से नीचे उतरी और उसके आंखों के सामने उस औरत की गोल मटोल उभर जो उसके पल्लू में छुपने की नाकाम कोशिश कर रहे थे ,दिखने लगी , समतल पेट और उभरी हुई गान्ड । उसकी मचलती जवानी को अशोक देखता ही रह गया और उसके टेंट में उसका लौड़ा खड़ा होकर झटके मारने लगा।

इसके पहले कि वो उस औरत का परिचय पूछता कमल जी उठ के उस औरत के पास गए और उससे बोलने लगे - अरे कामिनी तू यहां क्यों आयि ? मैंने कहा था ना की में लेट - सेट आके खा लूंगा । तू मेरी बात क्यों नहीं सुना करती ?

कामिनी इठलाते हुवे - अजी ,हम सोंचे आप सरी रात भूखे कैसे रहेंगे इसलिए खाना ले के आ गई।

अशोक बारे गौर से कामिनी की मस्त अदाओं को देख रहा था और उसपे फिदा हो गया था ।

तभी कमल अशोक के पास आया और उस औरत से अशोक का परिचय कराया - साहब जी , ये मेरी घरवाली है कामिनी , वो खाना नहीं खाया था ना तो चिंता करते हुवे यहां आ गई।

कामिनी ने आगे बढ़कर अशोक का अभिनंदन किया - नमस्ते साहब जी।
अशोक - जी नमस्ते ।

अशोक को विश्वास ही नहीं हुआ की इस मचलती हुई जवानी की मालकिन ,कमल की घरवाली है, वो मन ही मन कमल के भाग्य से जलने लगा।

पर ऊपर से बिल्कुल सामान्य होता हुए बोला - कोई बात नहीं कमल जी ।आप जाइए खाना खा लीजिए हम तब तक यही बैठे है।

कमल कामिनी के हाथ से खाने कि पोटली लेता है और थाने के अंदर खाने चला जाता है।

कामिनी वहीं अशोक के पास थोड़ी दूर पर खरी होकर परी के खाने का इंतजार करने लगी।

अशोक कुर्सी पे बैठा कामिनी की मदमस्त जवानी को निहारे का रहा था। कामिनी का सृंगार उसकी सुन्दरता को और भी बढ़ा रही थी।

अशोक वाशना से भर चुका था और कामिनी के बदन के एक एक अंग को घूर रहा था ।
तभी कामिनी की नजर अशोक के परी, उसने जब अशोक की नजरो का पीछा किया तो उसे अपने रसीली चुचियों को घूरता हुए पाया । कामिनी की नजर अशोक के पैंट पे गई जहा उसके लौड़े ने एक बड़ा सा तम्बू बनाया हुआ था।

अशोक के हवस भारी नज़रों को अपने बदन पे महसूस कर और उसके उसके पैंट में बने विशाल तम्बू को देख कामिनी का बदन सिहर उठा। उसे बड़ा अजीब लगा रहा था कि उसके बेटे की उमर का लड़का उसके बदन को यू घूर रहा जैसे उसे कच्चा चबा जाएगा।कामिनी के बदन में अजीब सी गुद गुदी होने लगी।आजतक उसके साथ ऐसा नहीं हुआ था। वो ना चाहते हुवे भी बार बार अशोक के तम्बू के तरफ देख रही थी और में ही मन उसके लौड़े के साइज़ के बारे में सोचने लगा जाती है।
सोचते ही उसका शरीर में अजीब सी सिहरन दौरने लगती है।
तभी अशोक की नजर कामिनी की नजर से टकराती है और वो एकटक कामिनी की आंखो में देखता रह जाता है।
अशोक से नजर मिलते ही कामिनी शर्मा जाती है और अपना नजर फेर लेती है। वो किसी तरह अपने मन को दूसरे दिशा में मोरती है और कमल के खाने के बाद उसका डब्बा के वाहा से निकल जाती है ।
अशोक समझ जाता है कि कामिनी उसके पैंट में बने तम्बू को ही देख रही थी । वो मुस्कुरा देता है।

अशोक उसको जाते देखता रह जाता है और अपने लौड़े को कस के मसल देता है।
कमल जब खा के अशोक के पास आता है तो अशोक कुछ सोच कर उससे कहता है - क्या कमल जी , चाची इतना बढ़िया खाना लाई थी और आप अकेले अकेले खा गए।

कमल ये सुन सकपका जाता है- माफ कर दीजिए साहब ,हमको लगा आपको गरीब के घर का खाना अच्छा लगेगा या नहीं इसलिए नहीं पूछा।

अशोक - खाने में अमीरी गरीबी थोड़े ना होती ,जो खुसबू आ रही थी में दावे के साथ केह सकता हूं कि खाना जबरदस्त बना होगा।

कमल को अपनी गलती का अहसास हुआ , अशोक से हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगा ,और उसने अशोक को अपने घर आने का निमंत्रण दिया ।।
बस यही तो अशोक चाहता था वो झट से राजी हो गया।
 
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