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Surya94

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बापु जी समझ गए के उनका लंड मुझे चूभ रहा है इसी लिए उसने मुझे थोडा उठा कर अपना लंड पीछे कर दिया । मुझे अब चुतडो में कुछ महसूस नहीं हो रहा था मगर मेरे गाण्ड के ऊपर वह चीज़ महसूस हो रही थी।

बापु ने अपने होंठो से मेरी पीठ को चूमते हुए मेरा पेटिकोट उतार दिया और अपनी जीभ से मेरी चिकनी गोरी पीठ को चाटने लगे । बापु ने मेरी पीठ को चाटते हुए मेरी ब्रा को भी उतार दिया और अपने हाथ आगे करते हुए मेरी ३६ की गोल चुचियों को पकड़ लिया।

बापु का हाथ अपनी नंगी चुचियों पर पडते ही मेरी साँसें बुहत ज़ोर से चलने लगी । बापु धीरे धीरे मेरी चुचियों को सहला रहा था और मैं मज़े से बुहत ज़ोर की साँसें ले रही थी, मुझे अपने पूरे शरीर में बुहत ज़ोर की उत्तेजना हो रही थी ।
बापु ने मेरी चुचियों को सहलाते हुए मुझे अपनी गोद से उठाते हुए खटिया पर सीधा लेटा दिया । बापू मेरे ऊपर आते हुए अपना मूह मेरी चुचियों पर रखकर उन्हें चूमने लगे, बापू जी की हरक़तों से मुझे अपनी चूत में बुहत ज़ोर की सिहरन हो रही थी ।

बापु ने मेरी चुचियों को चूमते हुए अचानक मेरी एक चूचि के गुलाबी निप्पल को अपने मूह में भर लिया और उसे ज़ोर से चूसते हुए मेरी दूसरी चूचि को अपने होठ से सहलाने लगे । बापु मेरी चूचि को बुहत ज़ोर से चूस रहे थे जैसे मेरी चुचियों का वह दूध पी रहें हो ।
मुझे अपनी चूचि चुसवाते हुए अपनी चूत में बुहत ज़ोर की सनसनाहट हो रही थी ।
"बापु जी हमें अपनी चूत में कुछ हो रहा है" मेने उत्तेजना के मारे बापु से कह दिया।
"पहले हमें अपनी बच्ची का मीठा दूध तो पी लेने दो" बापू ने अपना मूह मेरी चूचि से हटाते हुए कहा।

"बापु जी हमारी चुचियों में दूध किधर है जो आप पी रहे हो ?" मैंने हैंरान होते हुए बापू से पुछा।
"बेटी दूध से ज़्यादा मीठी तो तुम्हारी कुंवारी चुचियां है" बापू ने जवाब दिया ।
बापु हमारी दोनों चुचियों को बारी बारी चूसने के बाद नीचे होते हुए मेरी पेंटी तक आ गये।
"बेटी कहाँ तकलिफ हो रही है?" बापू ने मेरी गीली पेंटी को सूँघते हुए कहा "बापु जी हमारी कच्छी के अंदर" मैंने बापू को बताया ।

"बेटी तुम्हारी चूत की गंध तो बुहत बढ़िया है" बापू जी ने अपनी साँसें ज़ोर से पीछे खिचते हुए कहा । बापू जी ने यह कहते हुए मेरी कच्छी में हाथ ड़ालते हुए उसे उतारने लगे, मैंने अपने चूतड़ उठाते हुए मेरी कच्छी उतारने में बापू की मदद की ।
"वाह बेटी तुम्हारी चूत तो बुहत गोरी और फूली हुई है, तुम्हारी माँ की तो काली थी" बापू ने मेरी हलके बालों वाली गोरी चूत को देखते हुए कहा । बापू ने मेरी दोनों टांगों को अपने हाथों से चौडा कर दिया।
"हमारी बेटी की चूत से तो पानी निकल रहा है, इसी लिए तो तुम्हें यहाँ पर कुछ हो रहा था" बापू ने मेरी टांगों को चौडी होते ही मेरी चूत की तरफ देखते हुए कहा।
"हमारी बेटी तो बिलकुल जवान हो चुकी है, तुम्हें अपनी चूत में इसीलिए कुछ हो रहा है क्योंकि इसे अब अपने अंदर एक लंड चाहिए बेटी।जो इस की खुजलि को ख़तम कर सके" बापू ने मेरी टांगों को घुटनों तक मोडते हुए कहा । बापू ने मेरे चुतडो के नीचे एक तकिया दे दिया जिसकी वजह से मेरी चूत खुलकर ऊपर हो गई।
बापु ने नीचे झुकते हुए अपने होंठ मेरी चूत के दोनों पतले लबों पर रखते हुए उसे चूसने लगा।
बापु के होंठ मेरी चूत पर पडते ही मेरा सारा शरीर कम्पने लगा और मैंने चील्लाते हुए बापू से कहा।
"आह्ह्ह्ह बापू जी हमें वहां कुछ हो रहा है"

बापु ने मेरी बात सुनते ही अपना मूह खोल कर मेरी चूत के होंठो को अपने मूह में भर लिया और उन्हें ज़ोर से चूसते हुए अपने दुसरे हाथ से मेरी चूत के दाने को रगडने लगे । बापू जी की यह हरकत मुझसे बर्दाशत नहीं हुए और मेरी चूत ज़ोर के झटके खाते हुए अपना पानी छोड़ने लगी ।

"ओहहहह बापू जी इस्स्स्सस्ठ अपना मूह हटा लो। हमने पेशाब कर दिया । आह्ह" में झरते हुए अपनी आँखें बंद करके बुहत ज़ोर से चिल्ला रही थी । मुझे उस वक्त पता नहीं था की यह मेरा पहले ओर्गास्म है, मुझे लगा था के मेरी छूट से पेशाब निकल रही है ।
बापु मेरी चुत से निकलता हुआ सारा पानी चाटने लगा । मेरी चूत से इतना पानी निकला था की बापू का सारा चेहरा भीग चूका था । थोड़ी देर बाद जैसे ही मेने आँखें खोली बापू जी मेरी चूत को ही चाट रहे थे, उसकी नज़र जैसे ही मुझ पर पडी उसने कहा।
"बेटी अब कैसा लग रहा है"
"जी मुझे अपना जिस्म हल्का महसूस हो रहा है । और चूत में भी अब सिहरन नहीं हो रही है । मगर बापूजी मैंने आपके चेहरे पर मूत दिया" मैंने भोलेपन से कहा।

"नही बेटी यह तुम्हारा मूत नहीं है, यह तुम्हारी चूत का पानी है जो मरद से सेक्स करते वक़त मज़े से औरत की चूत से निकलता है" बापू ने मुझसे कहा।
"बापु जी सच में मुझे बुहत मजा आ रहा था जिस वक़त मेरा पानी निकला मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं जन्नत की सैर कर रही थी" मैने बापू की बात सुनते हुए कहा।
"बेटी अभी तुमने मजा लिया कहाँ है यह लंड जब तुम्हारी चूत में जाकर उसको गहराई तक रगड देगा तुम यह मज़ा भूल जाओगी" बापू ने अपनी धोती को उतारते हुए अपने लंड को सहलाते हुए कहा । कंचन तुम एतबार नहीं करोगी बापू जी लंड देखकर मेरा सारा बदन एक्साईटमेंट से फिर से काम्पने लगा।

बापु जी का लंड बिलकुल काला 9 इंच लम्बा और 3 इंच मोटा था, मेरी चूत यह सोचकर ही डर के मारे झटके खा रही थी की इतना बड़ा और मोटा लंड मेरी छोटी सी चूत में घुसेगा कैसे।
"बापु जी यह तो बुहत लम्बा और मोटा है,यह मेरी चूत में कैसे घुसेगा" मैंने बापू जी के मुसल लंड को ऑंखें फाड कर देखते हुए कहा ।
"बेटी भगवान ने औरत की योनि की दीवार बनायी ही ऐसी है के मरद का कितना भी बड़ा और मोटा लंड हो उसे वह अपने आप में समां लेती है । बस पहली बार थोडा दर्द होता है" बापू ने मुझे समझाते हुए कहा।
बापु जी हमें डर लग रहा है, यह बुहत लम्बा और मोटा है हमारी चूत फट जाएगी " मैंने डर के मारे बापू से कहा।
"बेटी तुम मुझ पर भरोसा करो। मैं तुझे बुहत आराम से चोदुँगा, इसे अपनी जाभ से गीला कर दो ताकी तुम्हें तकलीफ न हो" बापू जी नीचे से उठते हुए अपना लंड मेरे मूह के पास करते हुए बोले ।

मुझे बापू के लंड से अजीब गंध आ रही थी, मैंने अपनी जीभ निकालकर उनके लंड पर फिराने लगी । पहले मुझे उसके लंड का स्वाद अजीब लगा मगर फिर मुझे उसे चाटते हुए मजा आने लगा । मैंने बापू जी के पूरे लंड को अपनी जीभ से गीला कर दिया, बापू का लंड अब और ज्यादा अकड़ता हुआ और फूला हुआ लग रहा था ।
बापु अब मेरी टांगों को जो मैंने सिधी कर दी थी फिर से घुटनों तक मोड़ दिया और अपने लंड को मेरी फूली चूत पर रगडने लगे । बापू का लंड अपनी चूत पर लगते ही मेरा पूरा शरीर काम्पने लगा और मेरे मूह से सिसकियाँ निकलने लगी।

बापु ने अपना लंड अब मेरी चूत के दोनों होठो को खोलते हुए उसमें फँसा दिया । मेरा दिल आने वाले पल के बारे में सोचते हुए बुहत ज़ोर से धडक रहा था, बापू ने मेरी टांगों को पकड कर एक धक्का मारा। बापू जी का लंड मेरी चूत में जाने के बजाये फिसल कर बाहर आ गया ।
मेरा सारा शरीर गरम हो चुका था, मैंने बापू का लंड अपनी चूत में लेने के लिए उतावली हो रही थी । बापू का लंड दुसरी बार में भी अंदर जाने की बजाये फिसल गया।

"एक मिनट ठहरो बेटी" यह कहता हुआ बापू खटिया से उठकर किचन में चला गया । बापू जब लौटे तो उसके हाथ में मक्खन था, बापू ने मक्खन को मेरी चूत के छेद में अच्छी तरह से ड़ालते हुए बाकी का बचा हुआ अपने लंड पर लगा दिया ।
बापु ने इस बार अपने लंड को मेरी चूत में ड़ालने के बजाये अपनी एक ऊँगली मेरी छूट में डाल दी और उसे अंदर बाहर करने लगा । ऐसे ही बापू ने अब दो उँगलियाँ मेरी चूत में डालकर अंदर बाहर करने लाग, मुझे बापू की उँगलियों से बुहत मजा आ रहा था । मेरी चूत से पानी टपक रहा था और वह बिलकुल गीली हो चुकी थी।

बापु ने मेरी चूत के होंठो को खोलते हुए अपना लंड उनके बीच फँसा दिया । बापू ज़ोर का धक्का देने के बजाये अपने लंड को वहां पर ही हलके हलके धक्कों के साथ सेट करने लगे । मेरा पूरा शरीर पसीने से भीग चूका था और मेरा सारा शरीर एक्साईटमेंट में कांप रहा था, मैं चाहती थी की बापू जल्दी से अपना लंड मेरी चूत में पेल दे । ऐसा करने से बापू जी लंड का मोटा टोपा मेरी चूत के होंठो को फ़ैलाता हुआ अंदर फँस चूका था ।

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बापु जी डाल दो न बुहत तडपा लिया" मैंने सिसकते हुए बापू से कहा। बापू ने मेरी बात सुनकर मेरी टांगों को पकडते हुए मेरी चूत में अपने लंड को ज़ोर का धक्का दे दिया ।
"उईईईईईई माँ मर गयी ओह्ह्ह फट गयी निकाल लो बापू निकालो" एक ही धक्के में बापू का आधा लंड घूसने से मैं ज़ोर से चील्लाते हुए रोने लगी । बापू ने इतनी ज़ोर का धक्का मारा था की उसका आधा लंड मेरी चूत की झीली को तोड़ता हुआ मेरी चूत में घुस चूका था, मुझे ऐसे महसूस हो रहा था जैसे मेरी चूत को किसी ने काट कर दो टुकडो में तक़सीम कर दिया है।

मैं दर्द के मारे बुहत ज़ोर से चील्लाते हुए बापू को अपने ऊपर से दूर करने लगी । मगर बापू ने मुझे बुहत ज़ोर से जकड रखा था, वह अपना आधा लंड मेरी चूत में डाले ही मेरे ऊपर झुक गए ।
बापु मेरी एक चूचि को अपने मूह में भरकर चूसने लगे, बापू बारी बारी मेरी दोनों चुचियों को चूसने लगे । बापू की मेरी चुचियों को चूसने से मुझे कुछ आराम मिला और मेरी चूत का दर्द भी कम होने लगा ।अब मेरे मूह से सिसकिया निकलने लगी ।

"बेटी अब दर्द कैसा है" बापू ने मेरी चुचियों से मूह हटाते हुए कहा।
"बापु अब कुछ काम है" मैंने सिसकते हुए कहा।
"बेटी देखना थोडी ही देर में तुम्हारा सारा दर्द ख़तम हो जायेगा और तुम मज़े लेकर चुदवाओगी" बापू ने मेरे ऊपर से उठते हुए कहा ।
बापु ने उठते हुए अपने लंड को मेरी चूत में धीरे धीरे आगे पीछे करना शुरू कर दिया।
"आजहहह ओफ़्फ़्फ़ बापू दर्द हो रहा है" बापू का लंड अपनी चूत में आगे पीछे होते ही मेरी चूत फिर से दर्द करने लगी जिस वजह से मैंने चिल्लाते हुए कहा।

"बेटी थोडा सबर कर तुम्हारा दर्द ग़ायब हो जाएगा। तुम्हारी चूत बुहत टाइट है इसीलिए ज़्यादह तकलीफ हो रही है" बापू ने वैसे ही धीरे से अपना लंड अंदर बाहर करते हुए कहा ।
थोड़ी ही देर बाद मेरी चूत में दर्द बुहत कम हो गया और बापू जी का लंड अंदर बाहर होने से मुझे मजा आने लगा।
"आजहहह इसशह बापू जी मुझे अब मजा आ रहा है" मैंने अपने चूतड उछालते हुए बापू से कहा।
"बेटी मैंने कहा था न की थोडी देर में तुझे मजा आने लगेंगा" बापू ने खुश होते हुए कहा ।

"हाहह बापू मुझे आपके लंड की रगड पागल बना रही है, अपना लंड मेरी चूत में थोडा तेज़ी के साथ अंदर बाहर करो" अब मुझे बापू का लंड इतना मजा दे रहा था की मैंने उसे तेज़ी के साथ अपना लंड बाहर करने को कहा ।
बापु मेरी बात सुनकर अपने लंड को तेज़ी के साथ अंदर बाहर करने लगे, मेरा पूरा शरीर अकडने लगा और मज़े से मेरे मूह से ज़ोर की सिस्क़िया निकलने लगी । बापू के लंड के हर धक्के के साथ मेरा पूरा जिस्म मज़े से काप उठता और मैं चिल्लाते हुए बापू को जोश दिलाने लगी "हाँ बापू ऐसे ही ज़ोर लगा कर धक्का मारो"।
मैं झरने के बिलकुल क़रीब थी इसीलिए मज़े से मुझे पता ही नहीं चल रहा था की बापू अपना लंड मेरी चूत में 7 इंच तक घुसा चुके हैं । बापू के हलके धक्कों से उसका लंड और आगे नहीं जा रहा था ।
अचानक मेरा बदन टूटने लगा और में अपने चूतड़ उछालते हुए दूसरी बार झरने लगी।
"यआह्ह्ह्ह शहहह बापू ओह्ह्ह ज़ोर से मुझे चोदो।मैं झर रही हूँ" मज़े से मैंने अपनी आँखें बंद करके सिसकते हुए कहा ।

बापु ने मुझे झरता हुआ देखकर अपने लंड को ज़ोर से मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगा । मेरी चूत से जाने कितनी देर तक पानी निकलता रहा, जब मेरा झरना बंद हुआ तो मैंने अपनी आँखें खोली ।
बापु ने मुझे देखकर मेरी टांगों को मज़बूती से पकडते हुए अपने लंड को पीछे खींचते हुए 4-5 ज़ोर के धक्के मार दिए जिससे उनका बचा हुआ लंड भी मेरी चूत में जगह बनाता हुआ अंदर घुस गया ।
"उई माँ ओह्ह्ह बापु" मेरी ऑंखों के सामने अँधेरा होने लगा, मुझे फिर से बुहत ज़ोर का दर्द होने लगा।

बापु मेरे चिल्लाने की परवाह न करते हुए अपना लंड बुहत ज़ोर से मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगे। 9-10 धक्कों के बाद ही मेरी चूत का दर्द ग़ायब हो गया और मुझे मजा आने लगा ।
बापु का लंड मेरी चूत के आखरी हिस्से तक जाकर मेरी बचचेदानी को ठोकरें मार रहा था । बापू का लंड जैसे ही पूरा अंदर घुसता मेरा अंग अंग काम्प उठता, मुझे इतना मजा आ रहा था की मैं बापू का लंड निकलते ही अपने चूतड़ ऊपर उछालते हुए उसे अपनी चूत में वापस लेने लगती और बापू जैसे ही अपना लंड ज़ोर से मेरी चूत में पेलते मेरे मूह से ज़ोर की सिसकी निकल जाती ।

बापु भी अपना पूरा लंड बाहर निकालकर अंदर डाल रहे थे, उनके हर धक्के के साथ मेरा पूरा शरीर हिल रहा था । बापू ५ मिनट तक मेरी चूत में अपना मुसल लंड अंदर बाहर करने के बाद हाँफने लगे ।
मैंने महसूस किया की बापू का लंड मेरी चूत में फूल रहा है । बापू का लंड फूलने से उनका लंड मुझे अपनी चूत में ज़ोर की रगड देने लगा, आअह्ह्ह बेटी ओह्ह्ह मैं आया । बापू ने इतना ही कहा था की उनके लंड से कुछ गरम निकलकर मेरी चूत में गिरने लगा, मेरी चूत उस गरम अह्सास के साथ ही झटके खाने लगी और मैं भी आह्ह्ह्ह इश करते हुए तीसरी बार झरने लगी।

बापु जी झरने के बाद मेरे ऊपर ही ढेर हो गये और मेरे होंठो को चूमते हुए कहने लगे "बेटी तुम बुहत अच्छी हो, मेरा कितना ख़याल करती हो" । बापू ने उस रात मुझे दो बार और चोदा, इस बार उन्होंने मुझे कई तरीक़ों से चोदा।
तींन बार की चुदाई के बाद हम दोनों को गहरी नींद आ गयी । सुबह जब मैं उठी तो खटिया पर बिछायी चादर को देखकर चोंक गयी ।
चादर पूरी मेरी चूत के निकले खून से लाल हो चुकी थी । मैंने घबराते हुए बापू को उठाया, बापू ने मुझे कहा "यह खून पहली बार में हर लड़की से निकलता है, तुम्हें घबराने के कोई ज़रुरत नही।
मैं खटिया से उठकर बाथरूम जाने लगी, मैं ठीक तरह से चल भी नही पा रही थी और मेरी चूत तीन बार बापू के मुसल लंड से चुदकर सुज चुकी थी । उस दिन बापू मेरे लिए पेन किलर गोलियां ले आये जिन्हें खाकर मेरा दर्द कम हो गया और तब से जब तक मैं बापू के साथ थी ।वह मुझे डेली चोदते थे।घर में हर जगह उन्होंने मुझे चोदा।रात तो रात दिन में भी वो मुझे चोदते थे।हर जगह उन्होंने मुझे चोदा।किचन में बाथरूम में छत पर आँगन में।

मैं अपने बाप का एक बच्चा भी गिरा चुकी हूँ । यहाँ आने के बाद मुझे अपनी चूत की खुजली तंग करने लगी, इसीलिए मैंने कॉलेज में अपने कई दोस्त बना लिये जो मेरी चूत की खुजलि मिटाते हैं ।
कंचन अपनी सहेली की सारी बात सुनकर हैंरान रह गयी।
"कंचन अब बता क्या कहती हो?" नीलम ने कंचन से पुछा।
"नीलम तुम्हारी बात सुनकर मेरी हालत ख़राब हो गई है" कंचन ने नीलम से कहा।
"तो आज ही विजय का लंड अपनी चूत में ले ले" नीलम ने कंचन को कहा ।

"नीलम सच बताओं मैंने अपने भाई को अपने हुस्न का जलवा दिखाया है और वह मुझ पर लटू हो गया है" कंचन ने नीलम से कहा।
"तो प्रॉब्लम क्या है, ले ले अपने भाई से" नीलम ने खुश होते हुए कहा ।
"नीलम मैं अपने भाई के लंड से डर गयी थी, उसका बुहत लम्बा और मोटा है" कंचन ने नीलम से कहा।
"अरे पगली तुम तो ख़ुशनसीब हो जो घर में ही तगडा लंड मिल गया, जल्दी से उससे छुडवाले कुछ नहीं होगा तुम्हें" नीलम ने कंचन को समझाते हुए कहा । दोनों को बातों बातों में पता ही नहीं चला। कॉलेज की छुट्टी हो चुकी थी।

कंचन ने नीलम से कहा "छुट्टी हो गई है, भैया मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे"।
"हा अब तुम हमें लिफ्ट कहाँ दोगी, जाओ अपने बड़े लंड वाले भैया के पास" नीलम ने कंचन को चिढाते हुए कहा ।
"नीलु की बच्ची में तुम्हें नहीं छोड़ूँगी" नीलम की बात सुनकर कंचन ने धक्का देते हुए उसे बालों से पकड लिया।
"ओह सॉरी छोड़ दे आगे से नहीं कहूँगी" नीलम ने दर्द से चिल्लाते हुए कहा । कंचन वहां से उठकर कॉलेज से बाहर जाने लगी ।
 
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गेट पर विजय और कोमल खडी थी । तीनों साथ में एक रिक्शा पर बैठ गये, रिक्शा के चलते ही कंचन ने अपना हाथ विजय की जाँघ पर रख दिया । विजय अपनी बड़ी बहन का हाथ अपनी जाँघ पर महसूस करते ही सिहर उठा।
कंचन अपना हाथ वहीँ रखे ही विजय से बातें करने लगी । कंचन रिक्शा में बीच में बैठी थी और वह थोडा आगे सरक कर बैठी थी जिस वजह से कोमल को कुछ नज़र नहीं आ रहा था । विजय ने भी मोका देखकर अपना हाथ अपनी बड़ी बहन के हाथ के ऊपर रख दिया।

विजय अपने हाथ से अपनी बड़ी बहन का हाथ सहलाने लगा । कंचन ने भी कोई विरोध नहीं किया, अचानक कंचन को ऐसा महसूस हुआ की उसका हाथ आगे सरक रहा है, कंचन ने देखा की उसका भाई उसके हाथ को आगे सरकाते हुए अपनी पेंट की तरफ कर रहा है ।
कंचन ने अपने हाथ को ढीला छोड दिया । विजय ने अपनी बड़ी बहन का हाथ ढीला होते ही अपनी पेंट की ज़िप के अंदर रख दिया, कंचन का सारा शरीर सिहर उठा क्योंके विजय की पेंट की ज़िप खुली हुयी थी ।

कंचन को अपना हाथ ठीक अपने छोटे भाई के अंडरवियर में खडे लंड पर महसूस हुआ । कंचन जानबूझकर अपना हाथ अपने छोटे भाई के अंडरवियर पर घुमाने लगी, विजय अपनी बहन का हाथ अपने अंडरवियर में खडे लंड पर पड़ते ही मज़े से हवा में उड़ने लगा ।
कंचन ने अपने छोटे भाई के लंड को सहलाते हुए उसे अचानक अपनी ऊँगली दबा दिया और अपना हाथ वहां से खींचकर दूर कर दिया, आअह्ह्ह अपने लंड पर दबाव पड़ते ही विजय के मूह से हलकी चीख़ निकल गई।

"क्या हुआ भाई?" कंचन ने अन्जान बनते हुए विजय से कहा।
"कुछ नहीं मच्छर ने काट दिया" विजय ने जल्दी से कहा।
"यहां पर भी मच्छर है" कंचन ने हँसते हुए कहा । अचानक रिक्शा रुक गया उनका घर आ चुका था ।
सभी खाना खाने के बाद सोने के लिए अपने कमरों में चले गए । कंचन की आँखों से नींद ग़ायब थी वह सोच रही थी की कब रात हो और वह अपना भैया का लंड अपनी चूत में ले, अचानक उसने सोचा क्यों न वह अपने भैया के कमरे में जाकर देखे की वह क्या कर रहा है ।

कंचन अपने कमरे से जाते हुए अपने भाई के रूम में आ गयी । कंचन ने अंदर आते ही दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया, कंचन ने देखा की विजय बाथरूम में नहा रहा है। वह चुपचाप वहां बेड पर जाकर बैठ गयी ।
विजय ने जैसे ही नहाने के बाद अपना जिस्म टॉवल से पोछ लिया उसे याद आया के वह नए कपड़े तो लाना भूल गया । विजय वह छोटा सा टॉवल ही लपेट कर बाहर निकलने लगा, बाथरूम का दरवाज़ा खोलते ही उसे सामने बेड पर अपनी बड़ी बहन बैठी हुयी नज़र आई।
विजय ने पहले सोचा के पुराने कपडे ही पहन लेता हूं। मगर अचानक उसके दिमाग में ख्याल आया अरे पागल इतना अच्छा मौका को हाथ से जाने दे रहे हो और वह दरवाज़ा खोलते हुए गाना गाता हुआ बाहर आ गया जैसे उसने अपनी बड़ी बहन को देखा ही न हो ।
कंचन का जिस्म अपने भाई को सिर्फ टॉवल में देखकर गुदगुदी करने लगा, "वीजू तुम्हें शर्म नहीं आती नंगे होकर कमरे में आ गये" कंचन ने विजय को डाँटते हुए कहा।
"दीदी तुम कब आई" विजय ने चौंकने का नाटक करते हुए कहा ।

"अभी आई हूँ" कंचन ने जवाब दिया।
"मैं कपडे लेना भूल गया था, वैसे भी तुम मेरी गर्लफ्रेंड हो और मुझे एक बार नंगा देख चुकी हो" विजय ने अलमारी से अपने कपडे निकालते हुए कहा ।
"वीजू वह रात थी और अब दिन है" कंचन ने अपने भाई के गोरे जिस्म को निहारते हुए कहा।
"दीदी तुम मुझे बुध्धू मत बनाओ रात थी तो क्या हुआ। तुम ने तो सब कुछ देख लिया था" विजय ने कपड़े निकालने के बाद अलमारी को बंद करते हुए कहा । विजय ने अचानक अपना टॉवल निकाल लिया और बिलकुल नंगा होकर उस टॉवल से अपनी टांगों को पोंछने लगा।

कंचन की आँखें अचानक दिन के उजाले में अपने भाई को बिलकुल नंगा देखकर फटी की फ़टी रह गयी । विजय का लंड तना हुआ झटके मार रहा था, कंचन अपने भाई के लंड को गौर से देखने लगी ।
विजय का लंड बिलकुल गोरा था । कंचन को अपने छोटे भाई के लंड का गुलाबी मोटा सुपाडा बुहत अच्छा लग रहा था, कंचन सोच रही थी की जब मौका मिला मैं विजु के लंड के गुलाबी सुपाडे को ज़रूर अपने मूह में लेकर चूसुंगी ।

"वीजू तुम बिलकुल बेशरम हो गये हो" कंचन ने वैसे ही अपने भाई के लंड की तरफ देखते हुए कहा।
"दीदी सच कहो तो तुम्हें देखकर कपड़े पहनने का मन ही नहीं करता" विजय ने टॉवल को बेड पर रखते हुए कहा।
"वीजू तुम्हें ऐसा क्या दिख गया मुझ में जो नंगे ही रहना चाहते हो" कंचन ने मन ही मन में खुश होते हुए कहा।
"दीदी तुम्हारा जिस्म ऐसा है की कपड़ों में होते हुए भी तुम्हें देखकर मेरा लंड उछलने लगता है" विजय ने नंगे ही बेड पर बैठते हुए कहा।

"वीजू सच बताओ तुम्हें मेरे जिस्म की कौन सी चीज़ ज़्यादा पसंद है" कंचन अपने भाई को नंगा ही अपने क़रीब देखकर तेज़ साँसें लेते हुए बोली।
"दीदी वैसे तो आपकी हर चीज़ अच्छी लगती है, मगर आपकी चुचियां और आपके गुलाबी होंठ मुझे सब से ज़्यादा अच्छे लगते हैं" विजये ने अपने बहन के हाथ को पकड़ते हुए कहा ।
"वीजू तुम्हे सच में मैं तुम्हें इतनी अच्छी लगती हूँ ?" कंचन अपने भाई का हाथ अपने हाथों में आते ही तेज़ धडकनों के साथ उससे पूछा।
विजय ने देखा की उसकी बहन की चुचियां बुहत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थी और उसका कन्धा नीचे झुका हुआ था ।

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तुम्हारी कसम दीदी मुझे तुमसे प्यार होने लगा है" विजय ने अपना हाथ उसके हाथ से हटाते हुए अपनी बहन का सर अपने हाथों से ऊपर करते हुए कहा । कंचन का चेहरा अब अपने छोटे भाई के चेहरे के बिलकुल सामने था ।
विजय को अपनी बड़ी बहन की साँसें अपने मूह के बिलकुल पास महसूस हो रही थी । अपनी बड़ी बहन के प्यासे गुलाबी होंठ इतने क़रीब देखकर विजय अपने आपको रोक नहीं पाया और अपने होंठ अपनी बड़ी बहन के प्यासे रसीले होंठो पर रख दिये, कंचन की आँखें अपने भाई के होंठ अपने होंठो पर पड़ते ही मज़े से बंद हो गयी।

विजय अपनी बहन के लरज़ते गुलाबी होंठो का रस पीने लगा । विजय को उस वक्त अपनी बड़ी बहन के होंठ शहद से ज़्यादा मीठे लग रहे थे, कंचन भी अपने भाई से अपने होंठ चुसवाते हुए जन्नत की सैर कर रही थी ।
विजय के होंठ अपने होंठो पर पड़ते ही उसका सारा जिस्म मज़े से टूट रहा था । कंचन को अपने भाई का चुम्बन इतना मजा दे रहा था की वह अपने दोनों हाथों को विजय बालों में डालकर उसे सहला रही थी ।

विजय अपनी बहन का साथ पाकर अपने एक हाथ से उसकी पीठ को सहलाने लगा और दूसरा हाथ अपनी बहन की एक चूचि पर रख दिया । विजय अपनी बड़ी बहन के फडकते होंठो को ज़ोर से चूसते हुए कंचन की चूचि को कपड़ों के ऊपर से ही सहलाने लगा ।
कंचन और विजय दो मिनट तक लगातार एक दुसरे के होंठो को चूसते रहने के बाद एक दुसरे से अलग होकर ज़ोर से साँसें लेने लगे । लगातार चुम्बन की वजह से दोनों की साँसें उखडने लगी थी, कंचन ने देखा की उसके भाई का लंड उसको चूमने के बाद तनकर ज़ोर से ऊपर नीचे उछल रहा है।

विजय ने अपनी बहन की नज़र अपने लंड की तरफ घूरते हुए देखकर आगे बढ़ते हुए उसकी साड़ी का पल्लु पकड लिया और उसे खीचने लगा, विजय के साड़ी खीचने से कंचन गोल घूम गयी और उसकी साड़ी उसके बदन से अलग होकर विजय के हाथों में आ गयी ।
कंचन अब विजय के सामने सिर्फ एक ब्लाउज और पेंटी में खडी थी और वह दिन के उजाले में शर्म के मारे अपनी आँखें बंद करके तेज़ साँसें ले रही थी ।

विजय अपनी बहन के क़रीब जाते हुए उसके माथे पर एक चुम्बन देते हुए उसे अपनी बाहों में उठा लिया । विजय ने अपनी बड़ी बहन को अपने बेड पर लेटा दिया और खुद उसके ऊपर आते हुए उसके गोरे गालों को चूमने लगा।
विजय को अपनी बहन पर बुहत प्यार आ रहा था, वह अपनी बहन के गालों को चूमते हुए उसके काँधे को चूमने लगा । कंचन की नरम चुचियां अपने भाई के ठोस सीने में दबा हुआ था और वह मज़े से आहें भर रही थी।

कंचन का सारा जिस्म तपकर आग बन चुका था।उसने अपने भाई को बालों से पकडते हुए उसके होंठ अपने होंठो पर रख दिये । कंचन हवस के मारे अपने भाई के दोनों होंठो को चूसते हुए हल्का काटने लगी, विजय की हालत भी ख़राब हो चुकी थी । उसका लंड अपने बड़ी बहन की पेंटी पर रगड रहा था ।
विजय ने अपनी जीभ अपनी बड़ी बहन के मूह में डाल दिया, कंचन फ़ौरन अपने छोटे भाई की जीभ को पकडकर चाटने लगी । कंचन अपने भाई की जीभ को जी भरकर चाटने के बाद अपनी जीभ को अपने छोटे भाई के मुँह में डाल दिया ।

विजय अपनी बहन की जीभ अपने मूह में आते ही पागल हो गया और बुहत ज़ोर से कंचन की जीभ को चाटते हुए अपना हाथ नीचे ले जाते हुए उसकी चूचि को सहलाने लगा । विजय को अपनी बहन की जीभ का स्वाद शहद से ज़्यादा मीठा लगा रहा था ।
विजय अचानक अपनी बहन के ऊपर से उठते हुए उसे उलटा कर दिया । विजय अपनी बहन को उल्टा करने के बाद उसके ऊपर लेट गया, विजय का लंड अब सीधा उसकी बड़ी बहन के मांसल चूतड के बीच रगड खा रहा था । विजय अपनी बहन के चिकने पीठ को चूमते हुए उसका ब्लाउज खोलने लगा।

ब्लॉउस खोलने के बाद विजय ने अपनी बहन की ब्रा के हुक भी खोल दिए । विजय अब अपनी जीभ को निकालकर अपनी बहन के पीठ पर घुमाते हुए नीचे होने लगा ।
"आह्हः शहहह कंचन के मूह से ज़ोर की सिसकिया निकल रही थी", विजय नीचे होता हुआ अपनी बहन की भारी चुतडो तक आ गया । विजय अपनी बहन के गोर मोटे मोटे चुतडो को अपनी जीभ से चाटते हुए उसे अपने दाँतों से हल्का काटने लगा।
"उह आह" अपने भाई के दाँत अपनी नरम मोटे चुतडों पर पड़ते ही कंचन के मूह से हलकी चीख़ निकल गयी ।

विजय ने अपने बड़ी बहन की पेंटी में हाथ डालकर उसे उतारने लगा।
"नही विजु इस वक्त नही" मगर उसी वक्त कंचन ने अचानक सीधा होते हुए कहा।
"अब क्या हुआ दीदी?" विजय ने दुखी होते हुए कहा।
"वीजू इस वक्त दिन है और कोई भी आ सकता है, मैं रात को आऊँगी" कंचन ने अपना डर विजय को बताया,
"मगर दीदी रात तक मैं सबर नहीं कर सकता" विजय ने मूह बनाते हुए कहा । कंचन को अपने भाई की यह अदा बुहत पसंद आई।
"मेरे छोटे बच्चे आओ तुम मेरी चुचियों का दूध पिलो" कंचन ने अपने भाई के बेड पर गिरते हुए उसके मूह पर अपनी एक चूचि को रखते हुए प्यार से कहा, विजय अपनी बहन की दोनों चुचियों को देखकर सब कुछ भूल गया और अपनी बहन के जिस्म से ब्लाउज और ब्रा को हटा दिया ।
विजय के सामने अब अपनी बड़ी बहन की नंगी चुचियां थी । विजय ने अपना मूह खोलते हुए अपनी बहन के एक चूचि के दाने को अपने मूह में ले लिया, मगर उसी वक्त कंचन थोडा ऊपर हो गई और हँसते हुए अपने भाई को चिढाते हुए कहा "अरे मेरा बच्चा अब दूध पियेगा"।

विजय अपनी बहन की बात सुनकर गुस्से में आते हुए उसकी कमर में हाथ ड़ालते उसे नीचे झुका दिया और अपनी बड़ी बहन की एक चूचि के कड़े दाने को अपने मूह में लेकर ज़ोर से चूसने लगा । विजय का इतनी ज़ोर से चूचि चूसने से कंचन का सारे जिस्म में सिहरन होने लगी ।
कंचन ने मज़े से सिसकते हुए अपने हाथ अपने भाई के बालों में ड़ालते हुए अपनी चूचि पर दबाव देने लगी। विजय अपनी बहन का दबाव देखकर अपना पूरा मूह खोल दिया, कंचन के दबाव से उसकी आधी चूचि विजय के मुँह में चलि गयी।

विजय अपनी बहन की आधी चूचि को अपने होंठो से चूसने लगा । कंचन ने थोडी देर बाद ही अपनी चूचि को विजय के मुँह से निकालते हुए अपनी दूसरी चूचि उसके मुँह में डाल दी ।
अचानक दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई, कंचन और विजय डर के मारे काम्पने लगे । कंचन जल्दी से अपने कपड़े उठाते हुए बाथरूम में घुस गई, विजय ने अपनी पेन्ट पहनने के बाद अपनी शर्ट पहनते हुए कहा "अभी आया कौन है"
"मैं हूँ कोमल भईया" बाहर से आवाज़ आई।

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कंचन ने बाहर आते हुए जैसे ही दरवाज़ा खोला उसका मुँह खुला का खुला रह गया । कंचन के सामने उसके पति की बहन मनीषा अपने तीनों बच्चों के साथ खडी थी।
"मानिषा तुम तो कल आने वाली थी?" रेखा ने हैंरानी से कहा ।
"भाभी वह मेरे पति का प्रोग्राम अचानक चेंज हो गया और वह सुबह चले गए इसीलिए हम भी आज आ गये" मनीषा ने अपने बच्चों के साथ अंदर आते हुए कहा।
"अरे वाह तुम्हारी बेटियाँ और बेटा तो बिलकुल जवान हो चुके हैं" रेखा ने मनीषा की दोनों बेटियों और बेटे की तरफ देखते हुए कहा।

"मामी नमस्कार" मनीषा के तीनों बच्चों ने अंदर आते ही रेखा से कहा ।
"ईधर आओ हमारे गले लगो । इतने दिनों के बाद आये हो" रेखा ने पहले सब से छोटी पिंकी को गले लगाया।
पिन्की की चुचियां अभी रेखा की चुचियों के सामने बिलकुल छोटी थी । रेखा से गले लगते ही उसकी चुचिया रेखा की बड़ी चुचियों में दब गई, पिंकी को रेखा से गले लगते हुए अपने बदन में करंट जैसे एक झटका लगा । रेखा भी उसे गले मिलते हुए जान गयी की पिंकी भी जवानी की दहलीज़ पर पुहंच चुकी है ।

रेखा ने पिंकी से मिलने के बाद शीला को गले लगाया ।शीला की चुचियां पिंकी जीतनी छोटी तो नहीं पर रेखा जीतनी बड़ी भी नहीं थी । शीला से गले लगते हुए रेखा के बदन में करंट दौडने लगा क्योंकी शीला का फिगर बुहत सेक्सी था ।


अब नरेश की बारी थी । नरेश का लंड अपनी मामी का फिगर देखकर ही फनफना रहा था, नरेश अपने कॉलेज की कई लड़कयों को चोद चूका था । रेखा ने जैसे ही नरेश को गले लगाया उसकी बड़ी बड़ी चुचियां अपने सीने से लगते ही उसके लंड ने एकदम छलाँग लगा कर अपनी मामी की चूत को साड़ी के ऊपर से ही प्रणाम किया।
नरेश का लंड अपनी चूत पर महसूस करते ही रेखा के जिस्म में बुहत ज़ोर की सिहरन दौड़ गयी । रेखा ने नरेश के गाल पर एक चिकोटी लेते हुए उसे घूरते हुए कहा "भान्जे तुम्हारा तो बुहत बड़ा हो गया है"।

नरेश अपनी मामी की बात सुनकर शर्म से सहम गया,
"देखो इतना बड़ा क़द है फिर भी लड़कयों की तरह शर्मा रहा है" रेखा ने हँसते हुए कहा।
"छोरो न भाभी, यह तो है ही शर्मीला" मनीषा ने रेखा की बात सुनकर कहा ।
"हा वह तो बेचारा गले लगते ही पता चल गया" रेखा ने मुस्कराते हुए कहा । नरेश का शर्म और उत्तेजना के मारे चेहरे से पसीना निकलने लगा। रेखा उन सब को लेकर अनिल के कमरे में आ गयी ।
अनिल अचानक अपनी बेटी और उनके बच्चों को देखकर हैंरानी से खुश होते हुए बेड से उठ गया । मनीषा भागते हुए अपने पिता के गले जा लगी, अनिल सिर्फ धोती में था और उसका लंड भी अभी सुस्त नहीं हुआ था ।
मनिषा के गले लगते ही उसकी चुचियां अपना पिता के सीने में दब गयी । अनिल का लंड अपनी बेटी की चुचियां अपने सीने में दबने से तनने लगी, मनीषा ख़ुशी में अपने पिता को गले लगाकर उनसे चिपक गयी थी ।मनीषा को अचानक महसूस हुआ की उसके चूत के पास कोई चीज़ रगड खा रही है।

मनिषा को जैसे ही अहसास हुआ की वह उसके पिता का लंड है वह जल्दी से अपने पिता से दूर होगई । अनिल ने अपनी बेटी के अलग होते ही शर्म से अपने लंड को अपने हाथ से अपनी टांगों के बीच छुपाने लगा।
" आप बाबू जी से बातें करो मैं अपने बच्चों को लेकर आती हू" रेखा यह कहते हुए वहां से चलि गयी । रेखा के जाते ही मनीषा की दोनों बेटियाँ और बेटे अनिल के पाँव पडकर उससे आशीवार्द लेने लगे, अनिल उनको आशीवार्द देते हुए बेड पर बैठ गया ।

अनिल के बेड पर बैठते ही मनीषा भी उनके साइड में बैठ गयी । नरेश और उसकी बहनें सोफ़े पर जाकर बैठ गये, रेखा विजय और अपनी दोनों बेटियों को लेकर कमरे में आ गयी । रेखा के तीनों बच्चे मनीषा को देखते ही उनके पाँव पडकर आशिर्वाद लेने लगे ।
मनिषा ने तीनों को अशिर्वाद देते हुए गले से लगा लिया और रेखा से कहा "भाभी भगवान की कृपा से हमारे बच्चों की तरह हमारे भाई के बच्चे भी जवान हो चुके है। विजय और उसकी दोनों बहनें अपने कजिन भाई बहनों से मिलने लगे।

"चलो हमारे कमरे में चलते है" विजय ने सब से कहा। विजय की बात सुनकर सभी वहां से उठकर विजय के कमरे में जाने लगे ।
"दीदी आप बातें करो में चाय बनाकर आती हूँ" बच्चों के जाते ही रेखा ने उठते हुए कहा ।
"बाबूजी और बताओ आप कैसी हो?" रेखा के जाते ही मनीषा ने अपने पिता से सवाल किया।
"बेटी भगवान् की कृपा से हम बुहत खुश है, हमारी बहु हमारा बुहत ख़याल रखती है" अनिल ने अपनी बेटी को जवाब देते हुए कहा।

"वो तो देख रही हूँ बापु" मनीषा ने शरारती मुसकान के साथ अपने पिता की धोती की तरफ देखते हुए कहा।अनिल अपनी चोरी पकडे जाने पर झेंपते हुए अपनी धोती को ठीक करने के बहाने अपने लंड को अपनी टांगों के बीच दबा दिया ।
"बेटी रमेश कैसा है" अनिल ने बात को बदलते हुए कहा।
"वो बिलकुल ठीक है बाबूजी" मनीषा ने अपने पिता से कहा । तभी रेखा चाय लेकर आ गयी, रेखा पहले बच्चों को चाय देने के बाद इधर आई थी । रेखा ने चाय की ट्रे टेबल पर रखते हुए उस में से दो कप उठाकर मनीषा और अनिल को दे दिए और खुद जाकर सोफ़े पर बैठ गई।
"भाभी भैया नहीं दिख रहें हें?" मनीषा ने रेखा के बैठते ही सवाल किया।
"उन्होने फ़ोन करके बताया था की उन्हें ऑफिस में काम है इसीलिए वह देर से आयेंगे" रेखा ने चाय पीते हुए कहा ।
"मानिषा दीदी हमारे घर में टोटल 6 कमरे हैं जिन में से एक ही खाली है, बच्चों को हमारे बच्चों के साथ सोना होगा" रेखा ने अपनी परेशानी के बारे में मनीषा को बताते हुए कहा ।

"अरे बेटी बच्चे अपने आप आपस में सो जाएंगे, तुम परेशान क्यों होती हो" अनिल ने अपनी बहु से कहा।
"हा दीदी बाबू सही कह रहें हैं" मनीषा ने भी रेखा को परेशान देखकर कहा । उसके बाद वह तीनों आपस में बाते करने लगे ।
इधर रेखा और मनीषा के बच्चे आपस में बुहत अच्छे दोस्त बन चुके थे । विजय की शीला, नरेश की कंचन और पिन्की की कोमल से बुहत दोस्ती हो गई थी, वह आपस में बुहत घूल मिल गए थे । क्योंके इन सब की सोच एक दुसरे से मिलती थी।

ऐसे ही बाते करते हुए मुकेश भी आ गये और अपनी दीदी और उनके बच्चों को देखकर खुश होते हुए उन सब से मिलकर बातें करने लगे । रेखा रात का खाना बनाने लगी और सभी खाना खाने के बाद सोने की तयारी करने लगे।
रेखा ने अपने बच्चों से कहा "विजय नरेश, शीला कंचन और पिन्की कोमल के कमरे में सोयेंगे" रेखा की बात सुनकर सभ ख़ुशी ख़ुशी मान गए और अपने अपने कमरों में चले गए । मनीषा अपने कमरे में जाकर अपना सामन रखते हुए लेट गयी ।

मनिषा को अपने बापू के ब्यवहार से बुहत शक हो रहा था, वह करवटे लेते हुए सोचने लगी की जब वह आये तो दरवाज़ा अंदर से बंद था । और रेखा ने बुहत देर के बाद दरवाज़ा खोला था ।
अपने बापू को जब वह गले लगी तो उनका लंड खडा होकर मनीषा की चूत टकरा रहा था, इससे पहले कभी उसके बापू से मिलते हुए उसके साथ ऐसा नहीं हुआ था । मनीषा का दिमाग चकरा रहा था उसे पूरा शक था के ज़रूर उसके बापू और रेखा के बीच कोई खिचड़ी पक रही है और वह पता लगाकर रहेगी के आखिर चक्कर क्या है।

इधर नरेश विजय के साथ बेड पर लेटते ही उससे गप मारते हुए पुछा।
"यार विजु कभी किसी लड़की को चोदा है?" । विजु और नरेश दोनों गर्मी होने के सबब सिर्फ अंडरवियर में सोये थे ।
"नही यार हमारी ऐसी किस्मत कहा" विजय ने मायूस होते हुए कहा।
"अरे यार फिर तुम कैसे अपने लौडे को ठण्डा करते हो। मैं तो कॉलेज की कई लड़कियों को चोद चूका हू" नरेश ने विजय से कहा।
"यार बस मुठ मार लेता हू" विजय ने नरेश से कहा ।
 
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नरेश की बात सुनकर विजय का लंड उसके अंडरवियर में तनने लगा था।
"यार तुम्हारा तो बुहत तगडा लगता है, इसे यों ही क्यों घिस रहे हो" नरेश ने विजय के अंडरवियर के उभार को देखते हुए कहा ।
"क्या करुं यार मेरा नसीब तुम्हारे जैसे नहीं है" विजय ने नरेश की बात सुनते हुए कहा।
"यार एक बात कहूं बुरा मत मानना" नरेश ने विजय से कहा।
"हा पूछो यार" विजय ने जल्दी से कहा।
"यार मुझे कंचन दीदी बुहत ख़ूबसूरत लग रही थी, साली को देखकर लौडा एकदम खडा हो जाता है" नरेश ने सीधे सीधे कह दिया ।

नरेश की बात सुनकर विजय का लंड तनकर ज़ोर से झटके खाने लगा ।
"यार वह तो सही है मगर शीला दीदी भी बुहत मस्त है, उसे देखते ही अपनी बाहों में लेने का दिल करता है" नरेश की बात सुनकर गुस्सा होने की बजाये विजय ने मजा लेते हुए कहा ।
नरेश का लंड भी अपनी बहन के बारे में सुनकर झटके खाने लगा । नरेश ने उत्तेजना में अपने अंडरवियर को भी अपने जिस्म से हटा दिया, विजय ने भी नरेश को देखकर अपना अंडरवियर उतार दिया ।

नरेश और विजय बिलकुल नंगे सोये हुए अपने लन्डों को सहला रहे थे । दोनों के लंड एक दुसरे से कम नहीं थे।
"यार तूने कभी शीला को नंगा देखा है?" विजय ने अपने लंड को हिलाते हुए नरेश से पुछा ।
"पूरा नंगा तो नहीं देखा। मगर एक बार झाडू देते हुए उसकी चुचियों को पूरा नंगा देखा था" विजय की बात सुनकर नरेश ने भी अपने लंड को हिलाते हुए कहा।
"क्यों साली ब्रा नहीं पहनती क्या?" विजय ने फिर से कहा।
"यार उस दिन नहीं पहनी थी" नरेश ने विजय से कहा।

"नरेश साली ने जानबूझकर तुझे अपनी चुचियां दिखाई होंगी और तुम उसका इशारा समझ नहीं पाये" विजय ने नरेश से कहा।
"तुम सुनाओ लगता है इस में तुम्हारा तजूरबा ज़्यादा है" नरेश ने विजय से पुछा ।
"यार क्या बताउं मैंने तो कंचन को पूरा नंगा देखा है, साली बुहत गरम माल है" विजय ने बड़ी बेशरमी से अपनी बहन के बारे में बात करते हुए कहा।
"कैसे देखो यार बताओ न फिर, मैं किसी को नहीं बताऊँगा" विजय की बात सुनकर नरेश ने उत्तेजित होते हुए विजय से कहा ।
"तुम से क्या छुपाना यार" यह कहते हुए विजय ने अपनी दीदी का अपने साथ हुआ सब कुछ बता दिया,
"यार तुम तो बुहत लकी हो" विजय की बात सुनकर उत्तेजना के मारे थूक गटकते हुए कहा।
"मगर यार मेरे लंड ने तो अभी किसी चूत का स्वाद नहीं चखा" विजय ने मायूस होते हुए कहा।
"हम आ गये हैं न कुछ न कुछ तो इन्तज़ाम कर देंगे" नरेश ने विजय को तसल्ली देते हुए कहा।
"विजय वैसे तू है बड़ा लकी, तेरी माँ भी कम नहीं है । साली के गले लगते ही मेरा लंड उछलने लगा" नरेश ने अपनी मामी के बारे में बात करते हुए कहा।

"साले वह तुम्हारी माँ की उम्र की है, उसमें क्या दिख गया" विजय अपनी माँ के बारे में सुनकर उत्तेजित होते हुए कहा।
"यार उम्र को छोड़ो, साली की चुचियां और गांड ऐसी है की देखते ही उसे चोदने का मन करता है" नरेश ने बेशरमी से कहा ।
"साले कह तो सही रहा है मगर तुम्हारी माँ भी काम नहीं है । साली को देखकर बिलकुल नहीं लगता के वो तीन जवान बच्चों की माँ है, बिलकुल कॉलेज की लोंडिया लगती है" नरेश की बात सुनकर विजय ने उसकी माँ की तारीफ करते हुए कहा ।

"आहहह साले तेरी माँ और बहन के बारे में सोचते ही मेरा पानी निकलने वाला है" नरेश ने उत्तेजना के मारे अपना लंड ज़ोर से हिलाते हुए कहा।
"हाहहह साले इधर भी वही हाल है" विजय ने भी सिसकी लेते हुए कहा ।
दोनों कुछ देर तक चुप होकर अपने लन्डों को सहलाते रहे और अचानक दोनों एक साथ बुहत ज़ोर से चिल्लाकर सिसकते हुए "ओहहह आह्हः दीदी ओफ़्फ़्फ़ " कहते हुए झरने लगे । दोनों के लन्डों से एक दुसरे की माँ और दीदी के बारे में सोचकर बुहत देर तक पानी निकलता रहा ।

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परिवारChapter 21


कंचन और शीला एक दुसरे से बुहत खुल चुकी थी । बुहत ज्यादा गर्मी होने के सबब दोनों सिर्फ एक नाइटी पहनकर सोयी थी, नींद दोनों के आँखों से दूर थी,
"शीला एक बात पूछूँ" कंचन ने शीला की तरफ करवट लेते हुए कहा।
"हा पूछो" शीला ने जवाब दिया।
"यार तुमने कॉलेज में कोई बॉयफ्रेंड वग़ैरह बनाया है की नही" कंचन ने शीला की तरफ देखते हुए कहा।
"यार मुझे कौन उल्लु का पठा गर्लफ्रेंड बनाएग, तुम अपनी बात करो कॉलेज के सारे लड़के तुम्हारे पीछे लटू बनकर घुमते होंगे" शीला ने कंचन की बात सुनने के बाद कहा।

"यार मेरे पीछे तो बुहत पड़े थे मगर मैंने डर के मारे किसी को लिफ्ट नहीं दी, वैसे तुम्हारी फिगर भी कम नहीं । तुम्हें पाने का तो हर लड़का ख्वाब देखता होगा" कंचन ने शीला की तारीफ करते हुए कहा ।
"कंचन झूटी तारीफ मत करो ऐसा क्या दिख गया मुझ में तुम्हें" शीला ने कंचन की बात सुनकर शरमाते हुए कहा।
"सच कह रही हूँ यार तुम्हारा फिगर बुहत मस्त है,मैं अगर लड़का होता तो तुझे ज़रूर गर्लफ्रेंड बनाता" कंचन ने हँसते हुए कहा।

"शीला कभी तुम्हारा जिस्म किसी और ने नंगा देखा है" कंचन ने थोडी देर चुप रहने के बाद कहा।
"कंचन तुम क्या बोल रही हो" शीला ने शरमाते हुए कहा।
"मैं किसी गैर की बात नहीं कर रही तुम्हारी माँ, बहन या भाई ने" कंचन ने बात को बढाते हुए कहा ।
"कंचन भगवान के लिए चुप करो मुझे बुहत शर्म आ रही है" शीला ने शरमाते हुए कहा।
"शीला इस वक्त तुम्हारे साथ सिर्फ में हूँ शर्मा क्यों रही हो, सच सच बताओ" कंचन ने शीला को समझाते हुए कहा।
"दीदी एक बार मुझे अपना भाई ने नंगा देखा था" शीला ने शर्म से अपना कन्धा नीचे करते हुए कहा।
"वाह मेरी छमकछल्लो नंगी हुई तो भी अपने भाई के सामने घर की बात घर में, बता न कैसे हुआ यह सब" कंचन ने खुश होते हुए शीला के गालों की चिकोटी काटते हुए कहा।

"दीदी एक बार मैं कॉलेज से जल्दी घर आ गयी थी।मैं जब नहाने बाथरूम में गयी तो पानी नहीं आ रहा था, उस वक़त भैया घर में नहीं थे तो मैं उनके बाथरूम में घुस गयी । मैंने जल्दी में दरवाज़ा बंद करना भूल गई, मैं जैसे ही शावर ऑन करके नहा रही थी की भैया कहीं से आ गये और बाथरूम का दरवाज़ा खोल दिया । मैं बाथरूम का दरवाज़ा खुलने से डर के मारे सीधी हो गई और भैया ने मुझे पूरा नंगा देख लिया" ।
फिर क्या हुआ शीला?" कंचन ने उत्तेजना से पूछा।
"भइया मुझे देखते ही वहां से चले गये, मैं जब नहा कर बाहर निकली तो वह घर में नहीं थे" शीला ने आगे बताते हुए कहा।
"उसके बाद फिर कभी कोई ऐसा कुछ हुया" कंचन ने शीला से कहा।
"दीदी सच बताओं तो मैं बाहर के लड़कों से डरती थी की उनके साथ कुछ गलत करने पर बदनामी होगी, मगर मुझे जिस्म की आग तडपाती रहती थी तो मैं कई बार भैया को अपने जिस्म के जलवे दिखाये मगर उनपर कोई असर नहीं हुया" शीला ने मायूस होते हुए कहा।

"तुमने कभी अपने भैया का लंड देखा है" कंचन ने यह बात कहते हुए अपना कन्धा शर्म से झुका दिया,
"दीदी एक बार देखा था जब मैं उसे लिफ्ट दे रही थी, मुझे पता था की वह कॉलेज से लोटते ही नहाने चला जाता है और वह बाहर सिर्फ तोलीया लपेट कर निकलता था तो मैं जैसे ही भइया कॉलेज से आकर बाथरूम में घुसे मैं भी उनके कमरे में जाकर बैठ गई ।भैया जैसे ही तौलीया लपेट कर बाहर निकले मैं जान बूझकर खडी हो गयी। भैया मुझे अचानक देखकर डर गए और तौलीया उनके हाथ से गिर गया । दीदी सच बताऊँ तो उनका टोलिया गिरते ही मेरा पूरा जिस्म काम्पने लगा। उनका लंड बुहत मोटा और लम्बा बिलकुल सीधा खडा था जिसे मैं देखकर वहां से भाग गई ।

"शीला तुम्हारी बातें सुनकर तो मेरी चूत से पानी टपक रहा है" कंचन ने शीला की बात सुनने के बाद कहा।
"कंचन मेरी हालत भी खराब है, तुम भी तो कुछ बताओ ना" शीला ने कंचन से कहा।
"शीला मेरी बात सुनकर तो तुम्हारी चूत पानी छोड देगी, एक काम करते हैं । नाइटी को उतार दो वेसे भी हम दोनों ही यहाँ हैं" कंचन ने शीला को सलाह देते हुए कहा । शीला ने कंचन की बात मान ली और दोनों ने अपनी अपनी नाइटी उतार दी ।

अब दोनों लड़क़ियां सिर्फ ब्रा और पेंटी में थी । दोनों के गोरे जिस्म बल्ब की रौशनी में चमक रहे थे और दोनों की पेंटी बाटें करते हुए भीग चुकी थी, कंचन ने नीलम की बातों से लेकर अपने भैया के साथ होने वाला सारा किस्सा शीला को बता दिया ।
"कंचन तुम्हारी बातें सुनकर तो मेरी बुरी हालत है, मेरा कुछ करो वरना मैं मर जाऊँगी। कंचन की बातें सुनने के बाद शीला ने उत्तेजना के मारे कहा।
"शीला एक काम करते हैं कल से तुम मेरे भाई को लाइन दो। मैं तुम्हारे भाई को लिफ्ट देति हूँ" कंचन ने शीला को सलाह देते हुए कहा।
"कल का कल सोचेंगे मगर अभी कुछ करो ना" शीला ने कंचन की तरफ देखते हुए कहा।
"शीला मैंने एक फिल्म देखी थी जिसमें लड़की लड़की से प्यार करती है, हम भी वैसा ही करके देखते है" कंचन ने शीला को बाहों में लेते हुए कहा ।
शील बुहत गरम हो चुकी थी उसने कंचन को सीधा करते हुए उसके ऊपर चढ़ गयी और अपनी चुचियों को कंचन की चुचियों से रगडने लगी। अपनी चुचियां एक दुसरे की चुचियों से टकराते ही दोनों के मूह से एक साथ उत्तेजना के मारे सिसकिया निकलने लगी।

कंचन ने उत्तेजना में आकर अपनी टांगों को खोल दिया। जिस वजह से अब शीला उसकी टांगों के बीच आ गयी और दोनों की रस टपकाती चुते एक दुसरे से रगडने लगी । दोनों के मूह से हवस और उत्तेजना के मारे ज़ोर की सिसिकयां निकलने लगी ।
कुछ ही देर बाद दोनों के बदन अकडने लगी । कंचन ने उत्तेजना के मारे अपने गुलाबी होंठ शीला के होंठो पर रख दिये । शीला ने कंचन के होंठो को अपना पूरा मुँह खोलकर अपने मुँह में ले लीया और बुहत ज़ोर से चूसने लगी।

कंचन को अपने पूरे जिस्म में बुहत ज़ोर से सिहरन हो रही थी । कंचन ने अपने होंठ शीला के मूह से हटाते हुए उसके ब्रा के ऊपर बने उसकी चुचियों के उभार पर रख दिये,
"आजहहहह इस्स्सस्स शीला कंचन के होंठ अपनी चुचियों के उभार पर लगते ही बुहत ज़ोर से सिसकते हुए झर गयी ।
कंचन अपनी पेंटी पर शीला का गरम गरम पानी महसूस करके काम्पने लगी । शीला ने झरते हुए अपने दोनों हाथों से कंचन की गांड पर अपने नाख़ून गडा दिये, जिनकी वजह से कंचन भी काँपते हुए अपनी चूत से पानी छोड़ते हुए झरने लगी ।
 
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