Thriller पता, एक खोये हुए खज़ाने का

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इस आपरेशन में समुद्री लुटेरों एवं अन्य दुश्मनों से भेंट होने की संभावना भी पुरी थी. उसके लिए बंदूकों, गोलियों और अन्य हथियारों की आवश्यकता रहती थी, पर वह अब आसानी से प्राप्त नहीं हो सकता था. इस बारें में उसने अपने दोस्तों से भी बात की, पर कोई हल न मिला.
इसी मनोमंथन में एक सुबह कुछ सोचकर उसने अपना कंप्यूटर शुरू किया. गूगल पर टॉर ब्राउज़र सर्च कर उसे इंस्टोल कर लिया. फिर डार्कवेब खँगालने बैठा. दो तीन दिनों तक उसे कोई सफलता न मिली. पर चौथे दिन उसके हाथों एक वेबसाइट लगी. जिन पर गैरकानूनी चीज़वस्तुएं उपलब्ध करवाने वालों की सूची थी. उसने कई लोगों से कॉन्टेक्ट किए और अपनी ज़रूरतें बताई. आखिर एक से सौदा पक्का हुआ, जो उसकी ज़रूरतें पुरी कर सकता था. सौदे के मुताबिक वेपन्स का पार्सल दो हफ्तों में उसके घर पहुंच जाने वाला था. और बदले में उसे बिट कोइन में एडवांस पेमेंट करना था. उसने सौदा मंजूर रखा और पेमेंट कर दिया.
पेमेंट के बाद राजू बेताबी से पार्सल की इंतजारी करने लगा. उस बात को एक महीना होने को हुआ, पर उसकी इंतजारी खत्म नहीं हो रही थी. अब तो धीरे धीरे उसकी इंतजारी चिंता में बदलने लगी.
तभी एक साम को उसकी डोरबेल बजी. उसने दरवाजा खोला. उसके नाम का कोई कूरियर था. यूँ तो कई बार वह ऑनलाइन शॉपिंग के ज़रिये सामान मँगवाता था, इसलिए हर डिलीवरी बॉय को वह जानता पहचानता भी था. पर इस बार उसे खुशी के साथ ताज्जुब भी हुआ, क्यूंकि इस बार डिलीवरी बॉय नया और अपरिचित था. उसने कूरियर रिसीव कर लिया. अपने कमरे में आकर जब उसने पार्सल खोला, तो उनकी आंखें चौंधिया गई! उसके ऑर्डर के हर हथियार चमचमाते हुए उसमे मौजूद थे. एक के बाद एक सब को निकालकर देखा और जांचा परखा. सब कुछ ठीक था. अब उसके पास हर जरूरत का सामान मौजूद था.
बीते महीने वह बैठे नहीं रहा था. इस दौरान वह आपरेशन पर बहुत कुछ मंथन कर चूका था. आपरेशन में आने वाली हर छोटी छोटी चुनौतियों पर उसने बहुत गौर किया था. उसने महसूस किया कि इस अभियान के दौरान जेसिका की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रहने वाली है. इसलिए जेसिका को उसने इस आपरेशन में अहम हिस्सा बना लिया. और हर योजना के आयोजन में जेसिका की राय भी लेता रहा. जेसिका के साथ मिलकर उसने अपनी टीम भी पक्की कर ली.
अब उनकी टीम में जेसिका के अलावा उनके हाईस्कूल के दौरान NCC के साथी दो दोस्त पिंटू और संजय भी शामिल हुए. कुछ भरोसेमंद लोगों को भी अच्छे वेतन पर जोड़ा गया. जिसमे हिरेन, दीपक, प्रताप, भिमुचाचा और रफीकचाचा थे.
हिरेन एक गेरेज में हेल्पर का काम करता था और थोड़ा बहुत इलेक्ट्रिश्यन का काम भी जानता था. जब कि दीपक एक ऑफिस केंटिन में चाय नाश्ता बनाने एवं वेइटर के रूप में काम करता था. प्रताप यूँ तो पढ़ा लिखा था,, पर नौकरी न मिलने से फिलहाल उसने एक लोहार के यहाँ अस्थाई नौकरी स्वीकार कर ली थी. भिमुचाचा निवृत्त फ़ौजी थे और बैंकों के ATM की चौकी किया करते थे. पर पिछले दिनों मंदी और बैंक मर्जर की वजह से ATM बंध हो गए थे, इसलिए उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा था. राजू ने भिमुचाचा को ख़ास करके उनके फ़ौजी की नौकरी के दरम्यान के अनुभवों की वजह से शामिल करना उपयुक्त समझा था. जब कि रफीकचाचा भी एक प्राइवेट स्कूल में गेटकीपर की नौकरी किया करते थे. राजू ने सभी को अच्छे वेतन पर रख लिया.ये सब या तो राजू के रिश्तेदार थे या फिर उनके अगल बगल में रहते थे. और राजू की सब लोगों से अच्छी जान पहचान भी थी. उसने अपनी योजना और उसमे आने वाली समस्याओं से सब को अवगत किया. और उनकी मरज़ी पाकर ही उन्हें शामिल किया. इस तरह कुल मिलाकर नौ लोगों की टीम तैयार हो गई. राजू उनका कप्तान था. सब के पासपोर्ट एवं C1/D वीज़ा की औपचारिक प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई.
आपरेशन में जंगली जीवों एवं पशु पंखियों से पाला पड़ने की पुरी संभावना थी. अतः, राजू ने अरुणाचल प्रदेश के घने जंगलों में तीन दिवसीय एक केम्प का आयोजन किया. जहां उन्हें इन चुनौतियों से निपटने का अभ्यास करना था. इस केम्प में उन्हें अपनी ज़रूरतों को सीमित रखते हुए कम से कम संसाधन के साथ दिन गुज़ारने थे.
इससे पहले राजू, पिंटू और संजय ने अपने अपने फैमिली डाक्टर की मदद से थोड़े बहुत इलाज एवं छोटी मोती सर्जरी की तालीम ले ली. जिससे आकस्मिक परिस्थिति में उपयुक्त बन सके.
तै दिन रिसर्च के बहाने केम्प में शामिल होने के लिए जेसिका ने दिल्ली के एयरपोर्ट पर टेक ऑफ किया. उसी दिन बाकी के आठ लोग भी मुंबई से दिल्ली पहुँच गए. आगे अरुणाचल प्रदेश तक की यात्रा सभी ने ट्रेन में साथ साथ की. सब की टिकट राजू ने पहले ही बुक करवा ली थी.
अरुणाचल प्रदेश पहुंचकर उन्होंने जंगल में केम्पेइनिंग एवं ट्रेकिंग के लिए आवश्यक परमिट प्राप्त की. और डेरा डालने में जुट गए.
चार टेंट लगा दिए गए. जिसमे एक जेसिका ने अपने लिए आरक्षित रखा था. बाकि के तीन टेंट में राजू सहित अन्य साथी रहे.
टेंट लगाने का काम पूरा होने पर सारी टीम भोजन के लिए प्राणियों का शिकार करने चली. इस दौरान पेड़ों पर चढ़कर फल तोड़ने का अभ्यास भी किया. मार्ग में से सूखे पेड़ों की टहनियों को काट कर और रास्ते में पड़ी लकड़ियों को बिन कर इंधन भी इकठ्ठा किया.
यह सब क्रिया उनकी तालीम का ही हिस्सा थी. जो उन्हें वास्तविक प्रयाण के दौरान उपयोगी होने वाली थी.
जेसिका को अपने रिसर्च की वजह से दूरवर्ती इलाकों में जाने की जरूरत पड़ती थी, इसलिए उसने करांटे की तालीम ली हुई थी. जिसका थोड़ा बहुत परिचय उसने केम्प के दौरान टीम मेम्बर्स को करवाया.
भिमुचाचा ने भी अपनी फ़ौजी की नौकरी के दौरान जंगल और जंगली जीवों के साथ हुए अनुभव बांटे. इस केम्प के दौरान उनका अनुभव सब को बहुत काम आया. बल्कि यूँ कहिए, इस केम्प में वह पूरी टीम का हीरो बना रहा.
राजू, पिंटू और संजय को NCC केम्प के दरम्यान थोड़ी बहुत बंदूक चलाने की तालीम मिली हुई थी. पर यहाँ भिमुचाचा ने सब को विशेष तालीम दी. भिमुचाचा से लाठी से कैसे अपनी सुरक्षा की जा सकती है, वह भी पाठ पढ़ा.
इस केम्प के दौरान जंगल में उसकी टीम ने पेड़ों की टहनियों और बेल पत्तों की मदद से झोपड़ी बनाकर रात गुजारी. खाना भी जंगली फल फूल और प्राणियों का शिकार कर प्राप्त किया. वहां मिलने वाले विशेष पौधों की पत्तियों को बदन पर मल कर और जलाकर मच्छरों से सुरक्षा का पाठ भी भिमुचाचा से पढ़ा. विशेष वनस्पतियों की जड़ों, पत्तों और बीज को उबालकर काढ़ा बनाने का ज्ञान भी अर्जित किया. जिसको पीने से हमारी रोग प्रतिकारक सकती में वृद्धि की जा सकती थी. जो ऐसे बीहड़ में जरूरी भी था. इन जड़ों और पत्तियों को इकठ्ठा कर वे अपने साथ भी लेते आये. जो उन्हें सायद भविष्य में उपयुक्त हो सकता था.भीमुचाचा ने जंगल में पायी जाने वाली एक और ऐसी वनस्पति का परिचय भी उन्हें करवाया, जो उनके काम की तो थी नहीं. पर उनका गुण जानकर सब को अजूबा हुआ. इस वनस्पति का विशेष गुण यह था कि इसके सूँघने पर कुछ वक्त के लिए नाक की सूँघने की शक्ति जाती रहती थी. जिसका सबने स्वयं अनुभव भी किया. पर संजय ने इस वनस्पति की पत्तियों को इकठ्ठा कर अपने पास रख लिया. भले ही यह उनके कोई काम की न थी, पर उनका गुण जानकर वह आकर्षित हुआ था.
इस तरह यह केम्प बहुत सफल रहा. जिसमे टीम मेम्बर्स ने आने वाली चुनौतियों से कैसे निपटा जाए, इस बारें में बहुत ही महत्वपूर्ण पाठ पढ़े थे.
आखिर सब लौटे. अब उन्हें अपने अंतिम लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करना था. जेसिका सीधे ब्रिटिश वर्जिन आयरलैंड पहुँचने वाली थी, जहां से उसका केरेबियन क्षेत्र में आदिवासियों पर रिसर्च चल रहा था. बाकी की टीम को याट से पहुँचना था.
जेसिका का रिसर्च और UK की नागरिक होने की वजह से उसे मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा था. उसने एक बहुत महत्वपूर्ण काम को आसान कर दिया था. उसने खुद को एक रिसर्चर और अन्य टीम मेम्बर्स को अपने सहायक के रूप में रजिस्टर करवा लिया. और इस सम्बन्धी दस्तावेज भी प्राप्त कर लिए. वह सीधे ही ब्रिटिश वर्जिन आयरलैंड पहुँच गई और बाकी की टीम का इंतज़ार करने लगी.
अब तक राजू के अन्य टीम मेम्बर्स के पासपोर्ट एवं वीज़ा भी आ गए थे. अतः, उन्होंने भी इंडिया से याट लेकर केरेबियन सागर तक की अपनी जर्नी शुरू कर दी. राजू के माथे पर कप्तान की जिम्मेदारी थी. दीपक को चाय नाश्ता एवं खाना बनाने का कार्य दिया गया था. इंजन की जिम्मेदारी संजय एवं पिंटू के सर थी. भीमुचाचा, रफिक्चाचा, हिरेन और प्रताप के हिस्से संजय, पिंटू एवं दीपक की सहायता करना और याट का अन्य काम देखना था.
यह पूरा क्षेत्र केरेबियन और उत्तरी एटलान्टिक महासागर से घिरा हुआ है. जिनमे करीब सात सो से ज्यादा द्वीप हैं. और ज्यादातर द्वीपों पर मानव बस्ती नहीं हैं. उत्तरी अमेरिका के इन द्वीपों की विशेषता यह हैं की यहाँ किसी एक राष्ट्र का नियंत्रण नहीं पाया जाता, बल्कि यह पूरा क्षेत्र कई स्वतंत्र देशों, अमेरिका और यूरोपियन देशों की सरकारों के आधीन हैं.
राजू की टीम के ब्रिटिश वर्जिन आयरलैंड पहुँचने पर जेसिका भी उनसे जुड़ गई. अब वे मिलकर जेन्गा बेट के लिए निकल पड़े, जहां उसे नानू को मिलना था.
जेन्गा बेट पर उनकी याट देर साम पहुंची. इसलिए उन्होंने तै किया की अब सुबह ही नानू से मिलने चलेंगे. पर यहाँ पहुंचकर उन लोगों को एक बड़ी चिंता सताने लगी कि नानू अब ज़िन्दा होगा भी या नहीं!? क्यूंकि अब तक उसको बहुत साल हो गए थे. और अगर वह ज़िन्दा भी होगा तब भी क्या वह उन लोगों का मार्गदर्शन करने की हालत में होराजू के पापा और उनके दोस्तों की यात्रा के अनुभवों से नानू के घर का पता लगाने में उन्हें कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आई. सेंट लुबरतो चर्च पहुंचकर मछ्वारों के मार्गदर्शन से वें नानू के घर तक पहुँच गए. नानू का घर भी अब नया बन चूका था. राजू ने डोरबेल बजाई. तुरंत एक अधेड़ उम्र की औरत ने दरवाजा खोला.
अपरिचित लोगों को दरवाजे पर खड़े देखकर उनके चेहरे पर प्रश्न भाव उभर आए.
क्रमशः
क्या नानू अब जिन्दा होगा? और अगर जिन्दा भी है तो क्या वह राजू की मदद करने की हालत में होगा? यदि नानू जिन्दा नहीं हैं तब क्या होगा? आगे आगे क्या होता है, पढ़ते रहे...
 
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अपरिचित लोगों को दरवाजे पर खड़े देखकर उनके चेहरे पर प्रश्न भाव उभर आए.
राजू: "नमस्ते आंटीजी! क्या हम नानू से मिल सकते हैं?"
औरत: "जी. आप घर में आइए."
उनका उत्तर सुनकर राजू को खुशी हुई कि नानू ज़िन्दा तो है. वे घर में जा कर बैठे.
औरत: "आप बैठिये; थोड़ी देर में दादा आ जायेंगे. वे चर्च गए हैं. अब लौटते ही होंगे.
औरत की बात से राजू की टीम को इतना यकीन हो गया कि नानू स्वस्थ भी है और चर्च आया जाया करते हैं. इसलिए उनकी उम्मीदें भी बढ़ गई. वें बेताबी से इंतजारी करते हुए बैठे.
घंटे भर बाद उनकी इंतजारी खत्म हुई. एक बहुत बड़ी उम्र के बुज़ुर्ग ने घर में पाँव रखे. आँखों में मोटे मोटे चश्मे थे. कानों में सुनने वाली मशीन लगी हुई थी. गाल पिचक गए थे और माथे पर बालों का निशान नहीं था.
खेर, उस बुज़ुर्ग की उम्र चाहे कितनी भी बढ़ गई हो, चाहे उसका हुलिया कितना ही बदल गया क्यूँ न हो, मगर उसके माथे का निशान और मुड़ा हुआ पैर उनके नानू होने की साक्षी देते थे.
उनको देखकर राजू खुशी से खड़ा हो गया. उनके पाँव छुए और हाथ पकड़ कर उन्हें सॉफे पर बिठाया. बाकी के सबों ने भी नमस्ते कहा और हालचाल पूछे.
फिर राजू ने मेघनाथजी के परपोते के रूप में अपना परिचय दिया. दो तीन कोशिश के बाद वह सुन और समज पाया.
मेघनाथजी का नाम सुनते ही उनके लबों पर हंसी और आँखों में पानी उमड़ आया. उसने चश्मा उतार कर आंखें पोंछी और राजू को पास बुलाकर बगल में बिठाया. उनके माथे पर हाथ फेरा और बड़े प्यार से हालचाल पूछे. राजू ने भी भावुक हो कर उनका हाथ पकड़ लिया और सहलाने लगा.
नानू: "बरसों पहले भी एक लड़का अपने दोस्तों को लेकर यहाँ आया था. वह मालिक का धन प्राप्त करना चाहता था, पर वह अपने को मालिक का वारिस साबित न कर पाया था."
राजू: "जी वे मेरे पिताजी ही थे."
नानू: "क्या वह तेरा बाप था?"
राजू: "जी. अब वे इस दुनियाँ में नहीं रहे."
नानू: "बहुत दुख की बात है."
राजू: "जी. कुछ माह पूर्व ही वह चल बसे."
नानू: "वह आया था. पर नकली सामान लेकर आया था."
राजू: " हाँ, उसने बात बताई थी."
नानू: "क्या तुम वो सारा सामान लाए हो?"
राजू: "हाँ."
इस बार राजू ने सब असली नक्शा, चाबी और तस्वीर अपने पास ही रखी थी. उसने अपनी बेग खोलकर सब सामान निकाला. नानू ने नक्शे चाबी पर तो कोई ध्यान न दिया, पर तस्वीर को लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाया. राजू ने वह तस्वीर नानू के हाथ में रख दी.
नजर कमजोर हो जाने से वह तस्वीर को अपने चेहरे के नजदीक ले जाकर बड़े ध्यान से देखने लगा. थोड़ी देर तक आगे पीछे घूमा कर देखता रहा. धीरे धीरे उसके चेहरे पर हंसी और होंठों पर मुस्कान फैलने लगी. यह दृश्य देखकर राजू और उनकी टीम के चेहरे भी खुशी से खिल उठे. उनकी टीम के लिए यह एक शुभ संकेत था.
फिर राजू के हाथ में वह तस्वीर थमाते हुए नानू आगे बोला.
नानू राहत की सांस लेते हुए: "यह ठीक है. लड़के, तुमने मेरे सर से एक बड़ा बोझ हटा लिया. मैं कब से मालिक के घर से किसी सही आदमी के आने की बात देख रहा था! बरसों से तो उम्मीद भी जाती रही थी. अब तो मेरी उम्र भी पूरी होने को आई. पर आज तुमने आकर मुझे मालिक का कर्ज उतारने का मौका दे दिया. अच्छा हुआ जो तुम मेरे जीते जी आ गए. वर्ना मैं इस कर्ज को लिए ही उपरि दरबार में चला जाता."
नानू की आँखों में आंसू आ गए. उसको देखकर सब ज़मीं की और देखने लगे. सब भावुक हो उठे थे. सभी के ह्रदय भर आये थे.
नानू बात को आगे बढ़ाता है.
नानू: "उस वक्त मेरे घर से कोई चीज की चोरी हुई थी. और मैं तुम्हारे बाप पर संदेह कर उसकी बोट पर जा पहुंचा था. मैंने उन लोगों को मारा पिटा भी था. और पूरी बोट को छान मारा था. क्यूंकि उस चीज की जरूरत उसे ही पड़ सकती थी, जिन्हें मालिक के धन की खोज हो. और वह अपने को मालिक का सच्चा वारिस भी साबित नहीं कर पाया था." इतना कहते हुए नानू ने लम्बी सांस ली.
राजू: "हाँ, यह बात भी बताई थी. उस वक्त आप के घर से कोई तस्वीर की चोरी हुई थी. और उसी वक्त मेरे पापा की बोट से भी एक मेथ्यु नाम के लड़के ने वो चाबी, नक्शा और तस्वीर चुराई थी."नानू हँसते हुए : "हाँ, ठीक बताया तुमने! उस वक्त एक तस्वीर की ही चोरी हुई थी मेरे घर से."
राजू: "फिर क्या वह तस्वीर वापस मिली?"
नानू: "हाँ, वह मैंने बड़ी मुसीबत से वापस पाई थी."
राजू: "वह चोर का पता चला था कुछ?"
नानू: "था एक चोर. मेरी ही रिश्तेदारी में था वह शैतान."
राजू: "फिर आपने वह तस्वीर कैसे वापस पाई?"
नानू: "किनारे जाते वक्त तुम्हारे बाप ने मुझे अपनी बोट से चोरी होने की बात बताई थी. कोई नीरा बेचने वाले ने वह चोरी की थी. तब मुझे संदेह हुआ. और मेरा वह संदेह सच्चा भी साबित हुआ. मैंने जिसके बारें में सोचा था वहीँ चोर निकला. मैंने उसका पीछा किया और बड़ी मुश्किल से वह तस्वीर वापस पाई."
राजू: "तो क्या आप के घर से भी मेथ्यु ने ही चोरी की थी?"
नानू: "उसका नाम मेथ्यु नहीं, पर फ्रेड था. जो किनारे पर नीरा बेचता था. मेरे घर से सायद उसने या उसके बाप ने चोरी की होगी. पर वह पूरा कारस्तान उसके बाप डेविड का ही था. "
राजू: "इसका मतलब मेथ्यु ने अपना नाम गलत बताया था!"
नानू: "हाँ, ऐसा ही था."
राजू: "ये डेविड कौन है? क्या मेरे पापा का पीछा करनेवाला आदमी ही डेविड था?"
नानू आश्चर्य से: "हैं! क्या तुम्हारे बाप का कोई पीछा कर रहा था?"
राजू: "हाँ, पापा ने बताया था, पहली बार जब वे जेन्गा बेट पर पहुँचे थे तब से कोई मनहूस शकल वाला आदमी उसका पीछा कर रहा था. और जब वे आप को मिलकर निकले तब भी उन्होंने उस मनहूस शकल वाले आदमी को आप के घर के पिछवाड़े से निकलते हुए देखा था."
नानू: "मनहूस शकल तो डेविड की भी थी! तब तो वहीँ होगा. मगर इस बात का मुझे पता नहीं था. वर्ना मैं उस मामले को आगे बढ़ने ही नहीं देता."
राजू: "फिर पापा मेथ्यु का पीछा करते हुए कोई अनजान टापू तक पहुँच गए थे. जहां उन लोगों ने तीन लोगों की लाश देखी थी. उसमे एक वह मनहूस शकल वाला भी था. और वहां उसे चुराई हुई वह तस्वीर और नक्शा भी मिला था. पर चाबी नहीं मिली थी."
नानू फिर से आश्चर्य प्रगट करते हुए: "क्या तुम्हारा बाप वहां तक पहुंचा था?"
राजू: "हं."
नानू: "मगर मैंने वहां किसी को नहीं देखा था! और हाँ, उन लोगों को मैंने ही मारा था. जब मुझे तुम्हारे बाप ने नीरा बेचने वाले की बात बताई तो मुझे पूरी बात समझ में आ गई. मैंने तुरंत ही उसका पीछा किया. और उस बेट पर उन्हें दबोच लिया."
राजू: "तो क्या डेविड भी यह राज़ जानता था? और क्या उनकी मेरे प्रदादाजी से कोई जान पहचान थी?"
नानू" "मैं तुम्हें मालिक की पुरी बात बताता हूँ." डेविड का मेघनाथजी से कोई वास्ता है या नहीं? और किस तरह उसने यह राज़ जाना.
नानू अपनी कहानी आरम्भ करता है.
यह तब की बात है जब दूसरा विश्वयुद्ध अपने चरम पर था. व्यापार धंधे में बहुत हानि हो रही थी. व्यापार करना मुश्किल हो गया था. चारों और लूटपाट हो रही थी. सुरक्षा के प्रबंध सारे नष्ट हो चुके थे. चोर लुटेरे पूरी स्वतंत्रता से अपना काम कर रहे थे. कई बेईमान लश्करी सिपाही और अफसर भी इस मौके का बड़ा फायदा उठा रहे थे. कई व्यापारियों के जहाज़ो को लूट लिया गया था या डुबो दिया गया था. बहुत से व्यापारी इस तरह कंगाली की हालत में आ गए थे. जो बच गए थे, वे भी अपना व्यापार समेटने लगे थे.
तुम जानते ही होंगे की मेरे मालिक और तुम्हारे परदादा भी गोवा के एक बड़े सेठ के यहाँ नौकरी ही किया करते थे. उस सेठ का एक लड़का और एक लड़की थी. लड़की ने तो किसी पोर्तुगीस से भागकर शादी रचा ली थी. फिर उसका अपने बाप से नाता टूट गया था. उस सेठ की लड़की के इस तरह से भाग जाने से और उम्र की वजह से तबियत ठीक नहीं रहती थी. इसलिए उसका सारा कारोबार उसका लड़का ही देखता था.
उस वक्त वह सेठ का लड़का अपने बीवी बच्चों को अफ्रीका घुमाने के लिए लाया हुआ था. पर तभी लड़ाई बहुत फ़ैल जाने की वजह से वे लौट न पाए. फिर उसके बच्चे की तबियत बिगड़ गई. डाक्टर से बहुत इलाज करवाया, पर कोई कायमी फायदा नहीं हो रहा था. उसके बच्चे ने भी दादा दादी के पास जाने की जिद पकड़ ली थी.
एक तरफ व्यापार मंदा था और दूसरी तरफ बच्चे की तबियत बिगड़ी रहने से वह भी किसी तरह घर पहुंचना चाहता था. उसने मालिक को यह बात बताई. तब मालिक ने भी व्यापार समेट कर बाल बच्चों के पास घर पहुँच जाना उचित जानकर लौटने की तैयारी करनी शुरू कर दी.फिर सारा कारोबार समेट लिया गया. जो भी मालिक का धन था वह एक जहाज में और सेठ के धन को दूसरे जहाज में लादा गया. उस वक्त मालिक के दो जहाज और उसके सेठ के सोलह जहाज हुआ करते थे. कुल मिलाकर अठारह जहाज़ो का पूरा काफिला था. बीच में वे दोनों जहाज़ो को रखकर उसके अगल बगल बाकी के धान, कपड़ा और मसाले लदे जहाज लौटने लगे. मालिक खुद सब से आगे एक जहाज पर थे. मालिक ने सभी जहाज़ो को एक दूसरे से थोड़ी थोड़ी दूरी पर रखा था, जिससे की कोई लुटेरे आ पहुँचे तो कुछ जहाज़ो को बचकर भाग निकलने का मौका मिल जाए. हमारे साथ दूसरे व्यापारियों के जहाज भी आगे पीछे सफर कर रहे थे.
तब मैं छोटा था और मेरा भी वहां कोई न था. जो भी भली वारिस था वह मालिक ही था. मैं भी मालिक को दिल से मानता था. इसलिए मालिक ने मुझे भी साथ ले लिया. मैं भी मालिक वाले जहाज पर ही था.
उस दिन हम बीच मार्ग में ही थे, जब मालिक की बायीं आँख सुबह से ही फरकने लगी थी. वे किसी अमंगल की दहसत से व्याकुल हो उठे थे. और उसी दोपहर को सेठ के पौत्र की हालत फिर बहुत बिगड़ गई. सेठ के लड़के ने मालिक को बुलाया और कहा कि बच्चे को डाक्टर की जरूरत होगी. इसलिए नजदीक वाले बन्दर पर जाना पड़ेगा. सबसे नजदीक वाला बन्दर तो पीछे छूट गया था. तब सेठ के लड़के ने सारे जहाज़ो और ख़ास उसके धन वाले जहाज का जिम्मा मालिक के हवाले किया. कहा कि आगे के बन्दर पर राह देखे. और खुद एक जहाज में उसके बीवी बच्चे और थोड़े से आदमी को साथ लिए पीछे लौटने की तयारी करने लगा.
मालिक और दूसरें बुजुर्ग खलासियों ने सेठ के लड़के को बहुत समजाया था कि वह वापस न लौटे. आगे वाला जो बन्दर है, वह सिर्फ एक दिन ज्यादा की दूरी पर है. वहां भी डाक्टर मिल जायेगा. पर वह न माना. और लौट पड़ा.
पर उसे यह कहाँ पता था, कि उसने इस तरह वापस पलट कर बहुत बड़ी गलती कर दी थी! जैसे वह पलता नहीं था! उसके नसीब ने ही पलती मारी थी. उसका यह निर्णय सारे काफिले का नसीब ही बदल देने वाला था.
क्रमशः
सेठ के लड़के ने पीछे लौटकर क्या गलती कर दी? क्या वह पिछले बन्दर पर पहुँच पाया? या उसके साथ कोई दुर्घटना हो गई? दुर्घटना हुई तो क्या हुई? इससे सारे काफिले के नसीब पर कैसे फरक पड़ने वाला था? जानने के लिए पढ़ते रहे...
 
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पर सेठ के लड़के को यह कहाँ पता था, कि उसने इस तरह वापस पलट कर बहुत बड़ी गलती कर दी थी! जैसे वह पलता नहीं था! उसके नसीब ने ही पलती मारी थी. उसका यह निर्णय सारे काफिले का नसीब ही बदल देने वाला था.
सेठ का लड़का पीछे लौटा. बाकी के जहाज आगे बढ़े. पर चार पांच घड़ी क्या बीती होगी की आगे से जानेपहचाने जहाज़ो का काफिला आते देखा. वह काफिला हम से एक दिन आगे पर ही निकला था. उससे पता चला की आगे लुटेरों ने धावा किया है और वें वहां से भागकर आ रहे हैं. सब गभराए. हमारे कुछ जहाज़ों पर भी तोपें थी, पर वे लुटेरे की तोपों के आगे टिकने वाली नहीं थी. इसलिए सभी जहाज़ो को वापस मोड़ा गया.
जब हम लौट रहे थे तब हमने कुछ आदमियों को डूबते देखा. वे लकड़ी या किसी और सहारे तैर रहे थे. हम लोगों ने उसे बचाया. जब हमने देखा तो वे आदमी हमारे ही थे. उन लोगों ने बताया कि जब वे सेठ के लड़के के साथ वापस लौट रहे थे तब साथ सफर करने वाले व्यापारी के जहाज जो पीछे छुट गए थे, उन्हें आते देखा. वे जहाज हमारे पास आने लगे. सेठ के लड़के ने समझा की हमें वापस मुड़ता देख मामले का पता लगाने के लिए आते होंगे. इसलिए उन्होंने भी आने दिया. उन पर आदमी भी जानेपहचाने ही थे. पर वे जैसे पास आए, की तुरंत ही उसमे से बहुत से छिपकर बैठे लुटेरे निकल कर हमारे जहाज पर कूद पड़े. और देखते ही देखते जहाज पर कब्जा कर लिया. उन्होंने आते ही मारकाट मचा दी. वे सेठ के लड़के से काफिले के दूसरे जहाज और खज़ाने का पता पूछ रहे थे. फिर क्यूँ कर सेठ के लड़के को भी मार दिया. कुछ नौकरों को बंदी बना लिया. जो बचे हुए थे वे जान बचाकर पानी में कूद पड़े. थोड़ी ही देर में वहां लुटेरों के अन्य जहाज भी आ पहुँचे. सब जहाज मिलकर अब आगे गए हैं. सायद वे आप लोगों के पीछे ही गए हैं.
उनकी बात सुनकर सब दर गए. मालिक ने पूछा की सेठ के लड़के की औरत और बच्चे का क्या हुआ?
इनके उत्तर में उन्होंने बताया कि उनका कुछ पता नहीं चला.
मालिक ने तुरंत एक वफादार आदमी को पूरे काफिले का जिम्मा दे, और उसे कुछ कहकर खुद एक छोटा जहाज ले कर औरत बच्चे की खोज में लौट पड़े. हमारा काफिला फिर दूसरे रास्ते पर चल पड़ा.
चार दिन पर मालिक भी आ पहुँचे. वे बहुत दुखी थे. उसने बताया कि सेठ के लड़के वाला जहाज लावारिस भटकता हुआ मिला. पर बच्चे औरत का पता नहीं. और बाकी के नौकरों की भी लाशें पड़ी मिली. तुरंत ही कुछ जहाज को अलग अलग बन्दर पर सेठ के बहु बच्चे की खोज में भेजा गया. उसके बाद हम अमेरिका की और निकल गए.
उस वक्त मालिक भी बहुत बीमार पड़ गए थे. साथ गए नौकरों ने बताया की जब से बच्चा औरत लापता है तब से मालिक ने रोटी पेट में डाली नहीं है. सब ने मालिक को कुछ खाने के लिए बहुत कहा. मैंने भी बहुत बिनती की. पर मालिक राजी ही नहीं हुए. वह कहता था अब कौन सा मुंह लेकर देश जाऊँ. सेठ को क्या मुंह दिखाऊ. सेठ का लड़का बच्चा मरा, समझो मैं भी मर गया. मेरे बालबच्चे अनाथ हो गए. फिर मैंने भी खाना छोड़ दिया. तब जा के चार दिन पर मालिक ने रोटी खाई.
जब हम केरेबियन सागर में हो कर अमेरिका की और जा रहे थे, तब रास्ते में एक नौका को डूबते पाया. उसके यात्रियों को हमने बचाया. वह नौका किसी खड़क के साथ टकरा गई थी. उसमे एक आर्थर नाम के आदमी का परिवार भी था. जिसमे मारिया नाम की लड़की थी. मालिक ने बाद में उस आदमी से बात कहकर मारिया से मेरी शादी करवा दी. और यह डेविड आर्थर का ही छोटा भाई था. तब उसको भी हमने डूबते हुए बचाया था.
जब हम उन सब को जेन्गा बेट पर छोड़ने के लिए आये, तब मालिक ने मुझे यहाँ रहने को कहा. आर्थर से कहकर घर और मछली पकड़ने की नाव भी दिलवा दी. मैं छोटा था, इसलिए मुझे भी उसके हवाले किया. मालिक फिर यह कहकर निकल गए कि सेठ के बहु बच्चे के पीछे जाऊँगा. उसे किसी भी तरह धुंध निकालूँगा. मैं भी मालिक के साथ रहना चाहता था, पर मालिक राजी न हुए. तब से मैं यहाँ रह रहा हूँ. मैंने आर्थर की मदद से मछली पकड़ना शुरू कर दिया. इससे मेरी घर गृहस्थी भी चलने लगी.आठ दस माह के अंतराल पर मालिक फिर आ पहुँचे. अब तो वे बहुत बीमार हो चुके थे. उसे सेठ के बहु बच्चे का कोई पता नहीं मिला था. उनके साथ सिर्फ दो नौकर थे. बाकी के नौकरों को उसने थोड़ा थोड़ा धन देकर बिदा कर दिया था.
उस रात हम सब बैठे थे. आर्थर और उनका भाई डेविड भी था. मालिक ने आर्थर को कहा कि कुछ ख़ास बात करनी है. मालिक की बात सुनकर आर्थर ने अपने भाई को बाहर भेजा. और दरवाजा बंध कर दिया.
तब मालिक ने आर्थर को मेरे लिए थोड़े पैसे और कुछ सोने चांदी के सिक्के सौंपे. कहा की मुझे जरूरत पड़े तो दें. और मुझे एक तस्वीर देते हुए कहा कि इसे संभालकर रखना. मेरे घर से परबत या कोई आएगा. उसे ये तस्वीर देना. मैंने अपने बाल बच्चे के लिए कुछ धन बचाकर छिपाया है. मैंने उसकी चाबी और इस तस्वीर का एक हिस्सा मेरे घर भिजवाया है. दोनों को मिलाने से पता मिल जाएगा.
तभी बारी का पलड़ा जरा हिला. आर्थर ने देखा तो डेविड था. वह छिपकर हमारी बातें सुन रहा था. उसने सारा सामान देखने के लिए बारी का पलड़ा जरा खोला था. आर्थर ने उसे दांत कर भगा दिया. सायद तभी से वह इस भेद को जान गया था. फिर तो मालिक की बात भी खत्म हो गई थी इसलिए आर्थर भी अपने घर लौटे. और हम सोने चले.
पर दूसरी सुबह मालिक ने निराला पा कर असली और नकली तस्वीर पहचानने का तरीका मुझे बताया. तस्वीर के दूसरे भेद भी बताए. बहुत कुछ मुझे समझाया भी.
एक दो हफ्ता रुकने के बाद मालिक जाने लगे. पर मैंने और आर्थर ने रोका. कहा कि अभी आप की तबियत ठीक नहीं है; थोड़े दिन और रुक जाओ; जब तबियत भली हो जाए तो चले जाना. उनके दोनों नौकरों ने भी यही बात उसे समझाई. इसलिए मालिक रुक गए. वे नौकरों का भी कोई वारिस न था, तो वे भी मालिक के साथ ही रुक गए.
मालिक की तबियत भी दिन ब दिन बिगड़ती ही जा रही थी. डाक्टर को भी दिखाया; दवाई से थोड़ा ठीक रहता था; पर कभी मालिक भले चंगे न हुए. वे कई बार जाने की बात करने लगते, पर मैंने उसे इस हालत में कभी जाने न दिया. क्यूंकि वह सेठ के बहु बच्चे के बिना घर तो जाना ही नहीं चाहते थे! उसके बाद उसने भी जाने की बात कभी न की. फिर तो मालिक मेरे साथ तीन चार साल रहे.
पर एक बरस बहुत कड़ाके की ठंड पड़ी. उस ठंड में मालिक को दमा हो गया. हमने बहुत सेवा की. दवाइयाँ भी की. पर बीस पच्चीस दिनों के बाद दमे ने आखिरकार मालिक की साँसों को हंमेशा के लिए रोक दिया.
मैंने उसके लड़के की तरह उसका दाह संस्कार किया. देश में होता है वैसा क्रिया करम तो नहीं करवा पाया, पर फाधर को बुलवा कर मालिक की आत्मा की शांति के लिए प्रेयर करवाई. उसकी अस्थियां मैंने आज तक संभालकर रखी हैं. सोचा था, जब मालिक के घर से कोई आएगा तब उनके हवाले करूँगा. इसी इंतज़ारी में बरसों बीत गए. अब जा के तुम आए हो. इतना कहते ही नानू की आंखें भर आई.
उनका धैर्य; उनकी स्वामीभक्ति; उनकी निष्ठा और वफादारी के सामने सब नतमस्तक हो गए. राजू नानू का हाथ पकड़े फफक फफक कर रो पड़ा. नानू ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. बाकी के बैठे हुए लोग भी अपने आंसू न रोक पाए.
फिर नानू उठा और घर के अन्दर जा कर पीतल के तीन कलश ले आया. उसमे से एक कलश राजू के हाथ में देते हुए बोला. "यह मालिक की अस्थियां हैं. और ये उन दोनों नौकर की हैं. जो बारी बारी से कुछ साल के अंतर पर चल बसे थे. इसे भी तुम ले जाओ और गंगा में बहाकर सद्गति कर दो.
राजू ने वे तीनों कलश लिए. बारी बारी से सब ने बड़े भक्तिभाव से कलशों को अपने सर से लगाए. फिर राजू ने संभालकर अपनी बेग में रख दिए.
थोड़ी देर तक सब भाव विह्वल होकर बैठे रहे. फिर नानू ने कहना आरम्भ किया.उन दिनों आर्थर के घर से मालिक के दिए हुए वे सोने चांदी के सिक्के की चोरी हुई थी. आर्थर को डेविड पर शक गया. क्यूंकि वह पहले भी ऐसे मामलों में शामिल रह चूका था. आर्थर ने दांत डपट लगाई तो सच बोल गया. फिर तो वे सिक्के वापस पा लिए गए, पर थोड़े सिक्के उसने बेच डाले थे. बाद में आर्थर ने उसकी शादी करवा कर अलग घर में भेज दिया. पर वह कभी सुधरा नहीं. धंधा वंधा तो उसको करना ही नहीं था. ऊपर से घर गृहस्थी का जिम्मा सर आने पर वह और बिगड़ गया. चोरी और जुआ ही उसका धंधा बन गया था.
उसको दो लड़के और तीन लड़कियाँ हुई. फ्रेड उसमे छोटा लड़का था. लड़कियों की शादी तो मैंने और आर्थर ने करवा दी है. पर जब डेविड जहन्नुम में गया, तब अपने बड़े लड़के और एक दोस्त को भी साथ लेता गया. फ्रेड भी डेविड की राह पर चलकर बर्बाद हो गया.
नानू की बात सुनकर राजू की टीम ने अफसोस प्रगट किया.
नानू का बयान अब खत्म हुआ था. वह फिर खड़ा हुआ और अन्दर गया. जब वापस लौटा तो उसके हाथ में एक तस्वीर थी. उसने वह तस्वीर सब को दिखाई. और कहा:
"यह वहीँ तस्वीर है जो मालिक ने मुझे संभालने के लिए दी थी. और जिसकी चोरी हुई थी."
राजू ने तस्वीर हाथ में ली. वह एक निर्जन बेट की तस्वीर थी.
नानू ने आगे बताना शुरू किया.
"तुम्हारे पास जो तस्वीर है, वह सेंत ल्युसिया का एक चित्र है. और मेरी तस्वीर में उसके सामने वाले एक द्वीप का चित्र है. जो बिलकुल निर्जन है. डेविड वहीँ मेरे हाथों मारा गया था. और तुम्हारा बाप भी वहीँ पहुंचा था."
नानू ने आगे जोड़ते हुए कहा: "मालिक ने बहुत उस्तादी का काम करते हुए गलत लोगों को बड़े भरम में डाला. अगर कोई समुद्र को जानने वाला देखे तो वह सीधे सेंत ल्युसिया ही पहुँच जाए."
अब मेघनाथजी के वे नौकरों के भेदी तरह से मारे जाने की बात का भेद खुला. जब वे मेघनाथजी का छिपा धन लेने गए थे. वे भी सायद उसी सेंत ल्युसिया के सामने वाले बीहड़ टापू पर पहुँच गए होंगे. और उसकी भूलभुलैया में फंसकर रह गए होंगे. पर उनके इस तरह से मारे जाने से गाँव में खजाने के अभिशापित होने की अफवा फैली थी. राजू को यह सब बात याद आ गई.
राजू ने आगे सवाल किया. : "पर पापा ने जो असली तस्वीर की नक़ल बनाई थी, वह भी असल जैसी ही होगी. फिर उनसे कोई काम क्यूँ निकल नहीं सकता था?"
नानू: "ये तस्वीरें तो एक भरम मात्र है. मगर असल बात कुछ और ही है." इतना कहते हुए नानू बड़े रहस्यमय तरीके से हंसा.
नानू की ऐसी भेदभरी हंसी से सब उत्सुकता से उनकी और देखने लगे.
क्रमशः
तस्वीर में ऐसी कौन सी बात है? जो नानू उसे भरम मात्र कहता है? और उनके भेदी तरीके से हंसने की क्या वजह है? जानने के लिए पढ़ते रहे...
 
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नानू: "ये तस्वीरें तो एक भरम मात्र है. मगर असल बात कुछ और ही है." इतना कहते हुए नानू बड़े रहस्यमय तरीके से हंसा.
नानू की ऐसी भेदभरी हंसी से सभी उत्सुकता से उनकी और देखने लगे.
नानू ने सभी पर एक नजर डाली. फिर "यह लो... अभी भेद खोल देता हूँ." इतना कहते हुए उसने एक हाथ में राजू की तस्वीर ली और दूसरे हाथ में अपनी तस्वीर ली. फिर दोनों तस्वीरों को एक दूसरे से लगा दिया. दोनों तस्वीर एक दुसरे से जुड़ गई. नानू वाली तस्वीर में एक छेद था, उसमे राजू की चाबी मिलाकर घूमाई. एक खटके की आवाज हुई. फिर ऊपर की तस्वीर लटकाने वाली पल्ली को खींचा.
अरे ये क्या!? सब की आंखें अचरज से फ़ैल गई. दोनों तस्वीरें जैसे किसी संदूक के पलड़े हो ऐसे खुल गई थी. वे दोनों तस्वीरों में से अन्य एक एक तस्वीर निकल पड़ी, जो हाथों से बनी हुई थी. उन तस्वीरों में से एक में छोटी सी मगर बीहड़ नुमा पहाड़ी और तालाब था. तो दूसरी तस्वीर में एक गुफा का मुहाना बना हुआ था.
दोनों तस्वीरों को राजू के हाथों में रखते हुए नानू बोला: इन तस्वीरों को धूप में सुखाना. यह सारा राज़ जानती है. खुद ब खुद तुम्हें रास्ता बतलाएगी. इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं जानता."
राजू ने वह दोनों तस्वीरों को संभालकर बेग में रख लिया.
साम तक राजू की टीम नानू के घर पर ही रही. दोपहर का भोजन भी वहीँ किया. साम को नानू के साथ चर्च गए. जब तक वे अपनी याट पर पहुँचे, तब तक रात्रि की कालिमा ने आसमान पर कब्जा कर लिया था. अब वक्त था सुबह के सूरज का इंतज़ार करने का. सब ने खाना बनाया, खाया और देर रात तक तस्वीरों के बारें में ही अटकलें लगाते रहे. सब के मन में बड़ी खलबली मची हुई थी.
दूसरी सुबह जैसे ही सूरज के दर्शन हुए, राजू ने वे तस्वीरों को धूप में सुखाने के लिए छोड़ दिया. बारी बारी से सब उस तस्वीरों की चोकी कर रहे थे. जैसे जैसे तस्वीरें सूखती जा रही थी, उन पर बना चित्र धुंधला पड़ता जा रहा था. पर साम को सूरज ढलने तक कुछ भेद न खुला, कि आखिर तस्वीर का राज़ क्या है. हाँ, इतना मालूम पड़ गया कि ये तस्वीरें कोई ऐसे रंगों से बनी हुई थी, जो धूप लगने से भांप बनकर उड़ जाते हैं.
अब एक और सुबह का इंतज़ार शुरू हुआ. दूसरे दिन भी वहीं क्रम दोहराया गया. पर इस बार सब की उम्मीद को बल मिला. साम होने तक तस्वीर पर बना चित्र काफी धुंधला पड़ गया था. और उसके पीछे से कोई लिखावट उभरने लगी थी. पर वह लिखावट क्या थी, पढ़ी नहीं जा सकती थी.
तीसरे दिन चित्र करीब करीब साफ़ हो गया. सूरज के ढलने तक चित्र के पीछे की लिखावट साफ़ पढ़ी जा सकती थी. पर फिर एक परेशानी पैदा हो गई. तस्वीर को पढ़ने से पता चला कि लिखावट का आधा हिस्सा ही गायब है. दूसरी तस्वीर का भी यहीं हाल था. पर जब दोनों तस्वीरों को अगल बगल में रखा गया तो दोनों की लिखावट मिलकर एक हो गई. अब सब कुछ साफ़ हो गया था.
लिखावट का मज़मून कुछ यूँ था.
जब तुम उस आग के गोले के सिराने पर पहुँच जाओ, तो रात होने का इंतज़ार करो. वहां तुम्हें एक दो मुंह वाले सर्प के दर्शन होंगे. जैसे ही तुम उस सर्प के सामने वाले मुंह की दक्षिण वाली आँख को छुओगे, तुरंत ही तुम हजारों बरस पीछे लौट जाओगे. वहां तुम्हें कई परबत दिखेंगे. उस पर्वतों में कई खोह हैं. उसमे से एक परबत में बड़ी खोह है, जो एक देवी का निवास है. उस खोहद्वार की चौकी तीन शिलपरिरक्षक कर रहे हैं. जो एक एक उत्तर दक्खन और एक पूरब में है. वहां तुम्हें इकादसी की भेंट होगी. वह श्रीकृष्ण की बानी सुनेंगी, तब वह राज़ खोलेगी. ध्यान रहे, पल पल जान जाने का जोखिम है, बड़ी सावधानी से आगे बढ़े.मेघनाथजी ने एक और भूलभुलैया खड़ी कर दी थी. राजू की टीम के लिए यह भी एक बड़ी पहेली ही साबित हुई. सोच में पड़ गए सब. सर खुजलाने लगे. यह सर्प की पहेली क्या है? कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
आखिर वहीँ पहुंचकर कुछ तै करेंगे, यह सोचकर आगे बढ़ने का फैसला किया.
नक्शे को पृथ्वी के मानचित्र के साथ मिलाने से अब तो यह पक्का था कि आग के गोले वाला स्थान केरेबियन सागर में स्थित फ्रेंच प्रशासित मार्टिनिक प्रदेश है. और वह आग का गोला माउंट पेले ज्वालामुखी है. जिसने 1902 में फट कर करीब करीब पूरी मानव बस्ती को खाक कर दिया था. किसी को कुछ सोचने समझने का मौका ही नहीं दिया था. सिर्फ दो - चार मिनटों में सारा खेल खत्म कर दिया था.
इस भयंकर दैत्य नुमा ज्वालामुखी के परबत पर जाने की बात सोचकर ही सब के रोंगटे खड़े हो गए. पर फिर हिम्मत इकठ्ठा कर जाने की तैयारी करने लगे.
बिना कोई विशेष अनुभव के उन लोगों को माउंट पेले पर पहुँचने में दो दिन लग गए. जब वे ऊपर पहुँचे तब तक थकान के मारे चूर हो गए थे. इसलिए तीन टुकड़ियां बनाकर बारी बारी से जगने का फैसला किया. रात भर इधर उधर देखते रहे. कुछ मालूम नहीं पड़ रहा था. इस प्रकार दो टुकड़ियों की बारी खत्म हो गई. और तीसरी टुकड़ी की बारी आ गई. दूसरी टुकड़ी में राजू शामिल था, उसने तीसरी टुकड़ी को अब तक जो भी निरीक्षण हुआ था, बता दिया.
तीसरी टुकड़ी में भीमुचाचा थे. उसे जंगल, परबत पहाड़, नदी घाटियों का बड़ा अनुभव था. और उसमे फ़ौजी की चौकसी भी थी. उसकी नज़र चारों और निरीक्षण करने लगी. उसकी पैनी नजर ने दूर क्षितिज पर एक घटना को आकार लेते देख लिया. वह उसी पर दूरबीन गड़ाए बैठे रहा.
दूर आकाश में एक तारों का झुंड था. वे सारे तारे मिलकर एक सर्प की आकृति बना रहे थे. पर यह तो एक मुंह वाले सर्प की ही आकृति थी! दूसरा मुख कहाँ? नहीं था.
भीमुचाचा बहुत देर से निरीक्षण कर रहे थे. उसका जी अब बेचैन होने लगा था. वह अब जरा उठ कर टहलने और फ्रेश होने की सोच रहे थे. तभी वो हुआ, जो उसने सोचा नहीं था! इसके साथ ही भीमुचाचा चिल्ला उठे.
"मिल गया..! मिल गया..!"
उसकी चीख पुकार सुनकर उनकी टुकड़ी के अन्य दो साथी भी उन्हें अचरज से देखने लगे. भीमुचाचा ने उन्हें पास बुलाया और वो दृश्य दिखाया. वे भी खुशी से उछल पड़े.
उन लोगों का शोर सुन, बाकी के लोग भी नींद से जाग उठे. दौड़ कर वे वहां जा पहुँचे. अपनी अपनी दूरबीन निकाली और देखने लगे. दृश्य देखकर वे भी ताज्जुब और खुशी से उछल पड़े.
वहां आकाश में एक सितारे का उदय हुआ था और थोड़ा ऊपर पहुंचकर सर्प नुमा सितारों के झुंड में जा मिला था. सितारे के उदय होते ही सर्प की आकृति का दूसरा मुख बन गया था. उस सितारे ने दूसरे मुंह का स्थान ग्रहण किया था. और उसकी आँखों के स्थान पर जुगनू की रोशनी से रोशन होते दो द्वीप थे.
आखिरकार एक पहेली का हल मिल गया था. यह एक बड़ी सफलता थी. बची हुई रात ख़ुशियाँ मनाते बीती. सारी थकान चली गई थी. अब राजू की टीम को उस दक्षिण वाले द्वीप पर पहुंचना था.
हल्का सा उजाला होते ही वे निकल पड़े. वह दक्षिणी द्वीप डॉमिनिका क्षेत्र में आता था. इस क्षेत्र में बहुत से द्वीपों पर मानव आबादी नहीं है. सायद बहुत से द्वीप तो अब तक इंसानी पहुँच से भी बाहर ही रहे हैं.
राजू की टीम सोच रही थी. जैसे मेघनाथजी ने बताया था:जैसे ही हम उस द्वीप पर पहुँचेंगे, वैसे ही हजारों बरस पीछे की दुनियाँ में लौट जाएंगे."
इसका मतलब यह हो सकता है कि वहां अभी भी हजारों बरस पुराने पेड़ पौधे होंगे. और हो सकता है कि वहां हजारों साल पहले पाए जाने वाले पशु प्राणी पंखी भी हो! यानी हम वक्त के गर्क में गोटा लगाने वाले है! मतलब टाइम मशीन! अर्थात हम ऐसे प्राणी पंखियों से भी रूबरू हो सकते हैं, जो बाकी की धरती पर सायद उस अवस्था में न पाए जाते हो! यानी हर पल खतरा भी था! जैसे मेघनाथजी ने सावधान किया था.
वे इस टाइम मशीन की कल्पना से रोमांचित हो उठे. अति कल्पनाशील होते हुए उन्होंने तो डायनासोर से भेंट होने की भी कल्पना कर ली.
पर फिर उनका मन सोच में पड़ा. मेघनाथजी की दूसरी पहेली थी, जिसमे एक देवी का उल्लेख था. उसका क्या मतलब हो सकता है?
क्या वह देवी का मतलब जंगल के किसी शक्तिशाली प्राणी का सूचितार्थ हो सकता है? जो उस खोह में रहता हो? और जिसे हम जंगल की रानी कह सके? फिर वह प्राणी कौन हो सकता है? यह पहेली अनसुलझी ही रही. जिनका उत्तर वहां पहुँचे बिना मिल ही नहीं सकता था.
यहाँ उन्होंने एक अहम फैसला किया. जेसिका ने सब को प्रतिज्ञा करवाई कि अगर कोई अत्यंत जरूरत न पड़े तब तक बिना वजह के कोई भी हिंसा का सहारा नहीं लेंगे. और प्रकृति के तत्वों को भी नुक्सान नहीं पहुँचाएंगे. इस प्रतिज्ञा के साथ वे रवाना हुए.
आखिर वे उस द्वीप के नजदीक पहुँच गए. अभी किनारा काफी अंतर पर था. दूर से देखा, द्वीप घने जंगलों से भरा पड़ा था. लगता था, यह द्वीप मानव पहुँच से दूर ही रहा है. बेट के चारों और पानी ही पानी था. नजदीक में कोई अन्य द्वीप के दर्शन नहीं हो रहे थे. इसका जोड़ी दार उत्तरी द्वीप भी दसियों मील दूर था.
क्रमशः
इस अंजान द्वीप पर उनको क्या मिलेगा? क्या वे हजारो बरस पहले पाए जाने वाले प्राणियों से भेंट कर पायेंगे? जानने के लिए पढ़ते रहे...
 
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आखिर वे उस द्वीप के नजदीक पहुँच गए. अभी किनारा काफी अंतर पर था. दूर से देखा, द्वीप घने जंगलों से भरा पड़ा था. लगता था, यह द्वीप मानव पहुँच से दूर ही रहा है. बेट के चारों और पानी ही पानी था. नजदीक में कोई अन्य द्वीप के दर्शन नहीं हो रहे थे. इसका जोड़ी दार उत्तरी द्वीप भी दसियों मील दूर था.
राजू की टीम ने द्वीप पर पाँव रखने से पहले पूरे द्वीप की प्रदक्षिणा कर लेना और द्वीप का मुआइना कर हर तरह से जांच पड़ताल कर लेना उचित समझा. वे धीरे धीरे बेट के किनारों का निरीक्षण करते हुए आगे बढ़ रहे थे.
ज्यादातर किनारा दलदल और खड़ी चट्टानों से भरा पड़ा था. जहां से अगर वे घूसे और कोई संकट आ पड़ा. या किसी जंगली प्राणी का हमला हुआ और उन्हें भागने की जरूरत पड़ी, तो भाग नहीं पाएंगे. फँस कर रह जाते. एक दो जगहों पर बेट से ज़र्रे निकल कर समंदर में मिल रहे थे. पर वहां से घूसे तब भी फायदा मिलने की उम्मीद कम ही थी. क्यूंकि ज़र्रे बहुत संकरे और दलदली थे. और यहाँ से भी भाग निकलना आसान नहीं होता. पर कुछ जगहों पर पहाड़ी ढलान नुमा किनारा था. यूँ तो इस ढलान पर भी घनी झाड़ियाँ एवं पेड़ों का जंगल था. पर सब्जहारी प्राणियों ने बेल पत्तियों को आहार में ग्रहण कर कई जगह जमीन को साफ़ कर रखा था. और यहाँ उपलब्ध रास्तों में यही तो सबसे कम जोखिम वाला रास्ता था! इसलिए राजू की टीम ने यहीं से बेट पर पाँव रखने का फैसला किया.
वे आगे बढ़े. एक जगह पर खाड़ी जैसा स्थान नजर आया. उन्हें यह जगह अपनी याट को ठहराने के लिए उपयुक्त लगी. यहाँ याट को छिपाया भी जा सकता था और यह याट की सुरक्षा के लिए भी अच्छी जगह थी. पूरे द्वीप की प्रदक्षिणा करने के बाद उन्होंने याट को उस खाड़ी में मोड़ दिया.
साम ढल जाने की वजह से अब आगे कुछ किया नहीं जा सकता था. अतः, सभी ने भोजन ग्रहण किया. और पूरी टीम को तीन टुकड़ियों में बाँट कर बारी बारी से चौकी करने का फैसला कर सो गए.
चारों और गहरा सन्नाटा था. इस सन्नाटे में हलके हलके किनारे से समंदर की लहरों के टकराने की मधुर आवाज़ आ रही थी. पवन बेट से किनारे कि और बह रहा था. जो बहुत सुकून दे रहा था. ऐसे में जंगल से एक विचित्र सी आवाज़ आनी शुरू हुई. आवाज़ तो ऐसी थी जैसे बहुत से आदमी हूऊऊऊ... हूऊऊऊ... कर जोर जोर से चिल्ला रहे हो. हवा के जोंको के साथ आवाज़ घटती बढ़ती रही. पर यह आवाज कैसे और किसकी है, पता नहीं चल रहा था. देर रात होते यह आवाज़ आनी बंध हो गई. कभी कभार किसी प्राणी के चित्कारने की भी आवाज़ आती रहती थी.
*********
दूसरे दिन उजाला होने से बहुत पहले ही वे निकल पड़े. सूरज की किरण निकलने तक तो वे पहाड़ी की ढलान तक आ पहुँचे. सब से पहले उन्होंने अपनी लाइफ बोट को बेल पत्तियों से ढंक दिया. जिससे कि किसी की नजर न पड़े. फिर आरोहण आरम्भ किया. उन्होंने घुटनों तक के जूते एवं हेलमेट भी पहन रखे थे. हाथों में दस्ताने थे. इसलिए जंगली छोटे कीट मकोड़ों और साधारण जंगली प्राणी के हमलों से जोखिम नहीं के बराबर था. फिर भी बड़े जीव नुकसान पहुंचा सकते थे. इसलिए वे बड़े डंडों से झाड़ियों पौधों को टटोलते जा रहे थे. अगर वहां कोई बड़ा जीव छिपा हो तो पीछे हट जाए. छिपते छिपाते, इधर उधर नजर डालते वे धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे.
मेघनाथजी की बात उन्हें याद आ रही थी. यहाँ हजारों बरस पहले पाए जानेवाले प्राणी हो सकते थे. पर इस चढ़ाई के दौरान ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा था. हाँ, भिन्न भिन्न प्रकार के पक्षी, बिल्लियाँ, सर्प, जंगली भेड़, बन्दर, सूअर, इत्यादि नजर पड़ रहे थे. कुछ जगहों पर गीधड़ अपनी जमात लगाए मिज़बानी उड़ा रहे थे. कहीं कहीं छोटे छोटे तालाब और ज़र्रे भी नजर आ जा रहे थे. पर उन्हें ये कोई अजूबा नहीं लगा.तो अब उन्हें ऐसा क्या देखने को मिलेगा कि उन्हें ऐसा लगे कि जैसे वे हजारों बरस पीछे की दुनियाँ में लौट गए हैं?
रास्ता आसान नहीं था. पर मुश्किल भी नहीं था. वे किनारे से घंटे भर के करीब आगे बढ़े होंगे, कि मार्ग में एक दस बारह फूट ऊँची खड़ी चट्टान आ गई. इस चट्टान को पार करना अपने बल संभव नहीं था. तुरंत भीमुचाचा का अनुभव काम आया. उसने जंगल में से बड़े और मजबूत तीन चार बांस काट लिए. और उसकी सीढ़ी बना ली. पर ये सीढ़ी भी दो तीन फूट कम पड़ गई. अब उन्हें तीन चार फूट सीढ़ियों से कूदकर चट्टान को पार करना था. सबसे पहले राजू सावधानी से चढ़ा. फिर बारी बारी से सभी सदस्यों ने एक दूसरे की सहायता से चट्टान को पार कर लिया. ऊपर चढ़ने के बाद वह सीढ़ी भी अपने साथ ले ली. अगर रास्ते में ऐसी अन्य चट्टान आ गई तो काम आ जाये.
पहाड़ी के शिखर तक पहुँचे, तब तक दोपहर होने को आई थी. अब आगे पहाड़ी की नीचे की और ढलान शुरू हो जाती थी. इसलिए आगे और ज्यादा आरोहण संभव नहीं था.
सब से पहले वे पूरे बेट का मुआइना करना चाहते थे. पर पहाड़ी की टॉच पर पहुंचकर भी ये काम मुश्किल लग रहा था. यूँ तो यहाँ की जमीन थोड़ी बहुत साफ़ थी, पर फिर भी पेड़ों की वजह से तलहटी में दूर तक देखना संभव नहीं हो पा रहा था. उन्होंने एक बड़ा पेड़ ढूंढा. राजू एवं पिंटू ऊपर चढ़ कर दूरबीन से चारों और नजर दौड़ाने लगे. यहाँ से बेट के एक बड़े हिस्से को देखा जा सकता था.
"अरे ये क्या!?" पिंटू दूर तलहटी में देखकर आश्चर्य से चौंकते हुए जोर से चीखा.
"क्या है?" राजू ने चोंक कर पूछा.
पिंटू: "देखो वहां!"
नीचे खड़े लोग भी दोनों की बातचीत सुन, क्या है, क्या है के सवाल करने लगे.
राजू: "वो तालाब!?"
पिंटू: "जी हाँ, वहीँ तालाब! उसमे देखो!! क्या है!"
राजू: "अरे ये क्या!? पानी में आग!?"
पिंटू: "पानी में आग नहीं! वो आग का प्रतिबीम है."
आग की बात सुन, संजय, दीपक, प्रताप और हिरेन भी अगल बगल वाले पेड़ पर चढ़ते हैं.
राजू: "हाँ, आग का प्रतिबीम ही है."
पिंटू: "तो फिर आग कहाँ होगी?"
राजू: "ये देखो. वहाँ पहाड़ी है, उसकी जरा दायिनी और तालाब पड़ता है. लगता है, पहाड़ी की दूसरी बाजू कहीं आग है! इसलिए हमें यहाँ से दिखाई नहीं दे रही."
पिंटू: "तो क्या जंगल में आग लगी होगी?"
राजू: "अगर जंगल की आग होती तो ये अब तक हमें दिखाई दी जाती. और ये देखो. कोई जंगली प्राणी पक्षी भी भागते दौड़ते दिखाई नहीं देते. अगर ऐसा होता तो अब तक जंगल में हुड़कम मच गया होता."
पिंटू: "हां. सच्ची बात है."
दूसरे पेड़ से दीपक: "तो ये क्या कुदरती जंगल की आग नहीं है?"
राजू: "ऐसा तो नहीं लगता."
प्रताप: "फिर ये आग किसने लगाई होगी?"
राजू: "यहीं तो मैं भी सोच रहा हूँ. ये नियंत्रित आग है. प्राकृतिक आग नहीं!"
नीचे से जेसिका चिल्ला उठती है: "नियंत्रित आग! देखो देखो, वहां कोई इंसान तो नहीं?"
पिंटू: "कोई नहीं दिखाई दे रहा."
तभी हिरेन की नजर पानी में हिलती हुई कोई परछाई पर पड़ती है. "देखो, देखो, वहां कुछ है!"
'ये तो कोई इंसानी साए जैसा लगता है!" पिंटू ने कहा.
राजू: "हाँ! लगता तो कुछ ऐसा ही है!"
दीपक: "तो क्या यहाँ कोई इंसान बसते होंगे?"
हिरेन: "हो सकता है!"
संजय: "पर ये कोई बन्दर भी तो हो सकते हैं?"
दीपक: "पर कोई बन्दर थोड़े ही आग जला सकते हैं!"
राजू: "पर मैंने कहीं पढ़ा हुआ है कि गोरिल्ला और अन्य एक दो किस्म के बन्दर को भी आग जलाते और मांस भुन कर खाते हुए देखा गया हैं. इसलिए हम तै नहीं कह सकते की ये लोग कोई इंसान ही होंगे."
हिरेन: "हा हा हा. मैंने एक वीडियो में एक बन्दर को सिगारेट पीते हुए भी देखा था!"
संजय: "और ये देखो! अब तो बहुत से साए आ गए."
राजू: "ये साए तो कहीं जा रहे हैं!"
पिंटू: "हाँ, ये तो चले!"
अब राजू और पिंटू थक चुके थे. दोनों बहुत देर से पेड़ पर खड़े थे. आगे ज्यादा कुछ मालूम भी नहीं पड़ रहा था. अतः दोनों नीचे उतर आते हैं. पर हिरेन, प्रताप, दीपक और संजय अभी भी ऊपर ही थे.
हिरेन: "ये देखो. जिन पहाड़ियों में हमें खोह की तलाश करनी है, वे इधर दक्षिण और पूर्व में फैली हैं."
संजय: "अरे हाँ! वहां देखो! तालाब के उस पार दूर वाली पहाड़ी की तलहटी दूसरी पहाड़ियों की तलहटी से कुछ अलग मालूम पड़ती है."दीपक: "हाँ! इसका रंग कुछ अलग है."
सब आगे कुछ पता करने की कोशिश करते हैं, पर ज्यादा मालूमात न लगने पर थक कर नीचे उतर आते हैं. तब तक बहुत वक्त भी गुजर चूका होता है.
अब उन लोगों के सामने कुछ पहेलियाँ थी. क्या वे साए किसी इंसान के ही थे या फिर वे कोई बन्दर थे? और वे इंसान ही थे तो वो आग भी क्या उनकी ही लगाई हुई थी?
अब इन सवालों के उत्तर पाने का वक्त नहीं रहा था. इसलिए दूसरे दिन तालाब और उनके भेदों का पता लगायेंगे. इतना तै कर वे लौटे.
जब तक वे याट पर पहुँचे तब तक साम हो गई थी. उन्होंने अब तै किया कि अब वे पूरे साजो सामान के साथ चलेंगे और मेघनाथजी की बताई खोह की तलाश करेंगे. साथ ही साथ उन भेदी सायों, अलग दिखने वाली तलहटी और आग का रहस्य पता करने की भी कोशिश करेंगे. इस दौरान कुछ दिन जंगल में ही रहेंगे, तभी कोई काम बन सकता है. वर्ना यूँ ही आने जाने में वक्त बर्बाद होता रहेगा.
क्रमशः
अगले दिन जब वे धन की खोज में निकलेंगे तो क्या होगा? वे साए कौन थे? क्या वे साए उनके लिए कोई मुसीबत खड़ी करेंगे? अब कहानी अत्यंत रोचक दौर में प्रवेश करने वाली है. जानने के लिए पढ़ते रहे...
 
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जब तक वे याट पर पहुँचे तब तक साम हो गई थी. उन्होंने अब तै किया कि अब वे पूरे साजो सामान के साथ चलेंगे और मेघनाथजी की बताई खोह की तलाश करेंगे. साथ ही साथ उन भेदी सायों, अलग दिखने वाली तलहटी और आग का रहस्य पता करने की भी कोशिश करेंगे. इस दौरान कुछ दिन जंगल में ही रहेंगे, तभी कोई काम बन सकता है. वर्ना यूँ ही आने जाने में वक्त बर्बाद होता रहेगा.
मेघनाथजी की रची शिलपरिरक्षक वाली तीसरी पहेली उन्होंने याद की. जिसमे कहा था, एक खोहद्वार की रक्षा उत्तर, दक्षिण और पूर्व में एक एक शिलपरिरक्षक कर रहे हैं. ये शिलपरिरक्षक कौन हैं? यह तो उनकी समझ में न आया. पर इससे कुछ संकेत अवश्य मिल रहे थे कि उस खोह का मुहाना पूर्व में खुलता होना चाहिए. मतलब उन्हें हर पहाड़ी को पूर्व से जांचना है. दूसरा यह कि खोह के उत्तर, दक्षिण और पूर्व में एक जैसी समान चीज होनी चाहिए. यह दो संकेत उन्हें उस खोह तक पहुंचा सकते थे.
दूसरे दिन वे फिर से पहाड़ी की चोटी पर पहुँचे. और आगे की तलाशी शुरू की. पिछले दिन हिरेन की दिखाई दक्षिण दिशा में वे बढ़े. ख़ास तो वे उस साये, आग और अलग दिखाई देने वाली तलहटी का भेद पता करना चाहते थे. वे जंगल और पहाड़ी का चप्पा चप्पा छान मारते जा रहे थे. मार्ग में आने वाली हर पहाड़ी और खोहों की बारीक जांच करते जा रहे थे. पर अब तक उन्हें ऐसा कोई खोह का मुहाना न दिखाई दिया था. जिसके अगल बगल और सामने कोई समान चीज हो.
अभी भी वे तालाब और अलग दिखने वाली घाटी से थोड़े दूर थे. पर तब तक सूरज ढलने को हुआ. उन्हें अब यहीं कहीं अपना डेरा डालना था. इसलिए वे उपयुक्त जगह की तलाश करने लगे. उन्हें ऐसी जगह चाहिए थी, जिसके नजदीक में ही कहीं पानी का तालाब या ज़र्रा हो. यूँ तो वे किसी पहाड़ी पर मध्य ऊँचाई पर ही थे. उस स्थान पर उन्हें पानी मिलने की सम्भावना पूरी थी. पानी की तलाश में वे थोड़े और नीचे उतरे. यहाँ उन्हें थोड़े दूर ही एक ज़र्रा बहता दिखाई दिया. अब उन्होंने उसी स्थान पर डेरा डालने की तैयारी शुरू कर दी.
इस बार वे दो टेंट भी साथ लाए थे. सो उन्होंने एक उपयुक्त स्थान देखकर जगह साफ़ की. और टेंट लगा दिए.
इतना करते रात्रि का अंधकार पूरी तरह से ढल गया. उन्होंने टॉर्च सुलगा कर रोशनी कर ली.
वे अपने साथ काफी मात्रा में तैयार खाना लाए थे. इसलिए खाने की कोई चिंता नहीं थी. उपरान्त रफिक्चाचा और दीपक ने दिन में सूअर और खरगोश का शिकार भी किया था. और रास्ते में से जलावन की लकड़ियाँ भी इकठ्ठा कर लाए थे. सो आसपास की जमीन साफ़ कर भूनने के लिए आग सुलगाने लगे. जेसिका और प्रताप ज़र्रे से पानी लाने गए हुए थे.
आग के चारों और सब गोला बनाकर बैठे थे. हवा में गोश्त भूनने की गंध फ़ैल रही थी. अब उनको एक और चिंता ने घेरा. कहीं इस गोश्त की गंध से आकर्षित हो कर कोई जंगली हिंसक पशु यहाँ न आ पहुँचे. वे थोड़े सावधान हुए. तभी ज़र्रे की और से किसी की चीख सुनाई दी. चीख सुनकर सब दहशत में आ गए. थोड़ी देर में बंदूक से गोली चलने की भी आवाज़ सुनाई दी. सब कुछ छोड़ कर वे अपनी अपनी बंदूक लिए ज़र्रे की और भागे.
रास्ते में ही प्रताप और जेसिका भागते हुए मिले. वे बहुत गभराए हुए थे. अपने साथियों को आता देख वे रुके. जेसिका तो वहां हाँफते हुए बैठ ही गई. दोनों दहशत के मारे कांप रहे थे.
राजू और अन्य साथी: "क्या हुआ!?"
दोनों की साँसे फूली हुई थी. अतः, भीमुचाचा ने ज़रा देर के लिए सब को शांत रहने के लिए कहा.
थोड़ी देर बाद जब दोनों की साँसे कुछ शांत हुई, तब प्रताप बोला.
"राक्षस!"
"क्या?" जैसे सुनाई न दिया हो ऐसे सब ताज्जुब और प्रश्न दृष्टि से उसे देखने लगे.प्रताप: "राक्षस है!"
"कहाँ?" सब एक साथ बोले.
वहां...!" प्रताप ने ज़र्रे की दिशा में पेड़ों के पीछे हाथ से इशारा किया. अब भी वह बहुत गभराया हुआ था. उनकी सांस फूल रही थी और उसे बोलने में दिक्कत आ रही थी.
सब ने उनकी दिखाई दिशा में देखा, पर वहां कुछ नहीं दिखाई दिया.
राजू संजय को लेकर पता लगाने के इरादे से ज़र्रे की और जाने लगा. भीमुचाचा भी उनके साथ चले. बाकी के टीम मेम्बर्स जेसिका और प्रताप को साथ लिए पड़ाव की और निकले.
ज़र्रे के पास पेड़ों के पीछे राजू , भीमुचाचा और संजय पहुँचे ही थे कि पीछे से दीपक और हिरेन की आवाज़ सुनाई दी. वे उन्हें आवाज़ लगा रहे थे.
हिरेन और "दीपक: "भीमुचाचा... राजू... वापस चलो."
उनकी आवाज़ सुन तीनों ने पीछे मुड़कर देखा. दीपक और हिरेन दौड़ते हुए उन्ही की और आ रहे थे.
संजय: "अब क्या हुआ!"
राजू: "क्या जाने अब कौन सी नई मुसीबत आ गई."
तीनों तेजी से वापस लौटे. उन्हें लौटता देख दीपक और हिरेन भी मुड़कर वापस टेंट की और भागे. मार्ग में जेसिका और प्रताप के हाथ से गिरे हुए पानी के केन भी वे उठाते चले.
जब वे अपने पड़ाव पर पहुँचे, तो वहां का हाल देखकर तीनों की आंखें फटी की फटी रह गई. जो उन्होंने आग सुलगाई हुई थी, वह बूझ गई थी. उसकी लकड़ियों को कि सीने इधर उधर फेंक मारा था. उस पर भूनने रखे मांस के टुकड़े भी यहाँ वहां मिट्टी में बिखरे पड़े थे. ज्यादा वक्त तक आग पर रह जाने से वे अब जल चुके थे. और उनकी तीव्र कड़वी बास ने आस पास की हवा को कसैला बना दिया था.
तीनों ने प्रश्न दृष्टि से अन्य मेम्बर्स की और देखा.
पिंटू ने उन्हें टेंट में अन्दर जाकर देखने का इशारा किया.
पिंटू का इशारा पा कर वे जल्दी से टेंट में दौड़े. वहां का नज़ारा भी कुछ ऐसा ही था. सारा सामान बिखरा पड़ा था. जैसे यहाँ किसी ने तलाशी ली हो! टेंट की नीव भी किसी ने हिला दी थी. हाँ, एक अच्छी बात थी कि उनका कोई सामान गायब नहीं हुआ था.
अब तक उनके सामने कई घटनाएँ भेद बनकर खड़ी थी. इन में एक और भेद खड़ा हो गया. यह हुल्लड़ मचा जाने वालों का पता लगाने राजू और भीमुचाचा टॉर्च लिए टेंट के बाहर निकले.
जेसिका अभी भी दरी हुई थी. संजय, प्रताप, पिंटू और रफीकचाचा मिलकर सारा सामान एवं टेंट ठीक करने में लगे. दीपक और हिरेन फिर से लकड़ियाँ इकठ्ठा कर आग सुलगाने में लगे. सब कुछ ठिकाने लगाने में काफी देर हो गई.
भीमुचाचा और राजू आसपास की मिट्टी में किसी के पैरों के निशान धुंध रहे थे. उनकी टीम मेम्बर्स के जूतों के निशान के अलावा उन्हें किसी और के आने जाने के पैरों के निशान भी दिखाई दिए. ये निशान लगते तो इंसानों के पैरों के निशान जैसे ही थे, पर थोड़े से अलग और छोटे थे. उनकी उँगलियों के निशान जरा बड़े थे.
"ये तो बन्दर के पैरों के निशान जैसे लगते हैं." भीमुचाचा ने अनुमान लगाया.
वे और कोई सुराग पाने की उम्मीद में निशान का पीछा करने लगे. ये निशान उनके पड़ाव से उत्तर पूर्व की और जा रहे थे. वे टॉर्च लेकर उनके पीछे पीछे गए. पर जरा दूर जाकर घाँस लताओं कि वजह से वे निशान गायब हो गए थे. चारों दिशा में और ऊपर पेड़ों पर टॉर्च की रोशनी डाली. रोशनी पड़ते ही ऊपर पेड़ पर कुछ हिलचाल हुई. पर घने पत्तों की वजह से साफ़ कुछ मालूम न पड़ा.
वहां से अब वे अपने पड़ाव की और आने वाले पैरों के निशान का पीछा करते हुए लौटे. ये निशान उन्होंने जहां आग झलाई थी वहां तक आते थे. फिर वे निशान उनके टेंट तक गए थे.
राजू और भीमुचाचा आपस में मसलत करने लगे.
मतलब सबसे पहले वे आग तक आये. फिर आग की लकड़ियों और भूनने रखे मांस को बिखेर दिया. फिर टेंट में घूसे. जहां उसने वह धमाल मचाई. और उनके लौटने से पहले वे भाग गए.
पर उनके सामने एक सवाल था. अगर किसी प्राणी को छेड़ा नहीं जाता तब तक ये ऐसा बर्ताव तो नहीं करते? हाँ, अगर कोई खाने की चीज हो तो वे खा जरूर लेते हैं. फिर उनके छिड़े जाने की वजह क्या हो सकती है?
दोनों ने दिमाग पर जोर डाला.
उन्हें याद आया कि जब वे लौटे तब मांस जल जाने से हवा कसैली हो गई थी. अब वे हवा के रुख को परखने लगे. हवा दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की और बह रही थी. मतलब जहां से ये धमाली आये हुए थे उसी दिशा में.
अब कुछ कुछ तस्वीर साफ़ होने लगी. जब वे प्रताप और जेसिका की चीख सुनकर भागे तब मांस आग पर ही रह गया था. और ज्यादा वक्त तक मांस आग पर रह जाने से जलने लगा. इसकी तीव्र बदबू ने इस हुल्लड़बाजों की नाक में घुसकर सुरसुरी की होगी. इसी लिए उनको गुस्सा आ गया और तभी वे आकर ये सारा फसात मचा गए.
दोनों ने बंदरों का सुराग पाने का काम सुबह तक स्थगित कर यह जांच पड़ताल यहीं रोक दी. और अपनी टीम मेम्बर्स को यह बतला दिया कि ये सारा कांड बंदरों का मचाया हुआ है. इसके समर्थन में जो जो सुराग उन्हें मिले थे वे भी कह सुनाए. इससे टीम मेम्बर्स को तसल्ली हुई और उनकी गभराहट हुई.
अब प्रताप और जेसिका का मामला सुलझाना था. पर उनकी बात सुनने से पहले उन्होंने भोजन कर लेना उचित समझा. मांस सारा नष्ट हो गया था, इसलिए साथ लाए तैयार भोजन से ही उन्हें चलाना पड़ा.
भोजन समाप्त करने के बाद उन्होंने अपने टेंट के आसपास तीन चार जगह आग जला दी. आसाम के जंगल से लायी हुई मच्छर भगाने वाली पत्तियाँ भी उन्होंने आग में दाल दी. जिससे मच्छरों से बचा जा सके. फिर वे प्रताप और जेसिका का हाल सुनने बैठे.
प्रताप और जेसिका का हाले बयान आरम्भ हुआ.
प्रताप ने कहना शुरू किया.
जब हम ज़र्रे से पानी भरकर वापस लौट रहे थे, तब मार्ग में हमें पंद्रह बीस मीटर के फासले पर पेड़ों के पीछे से किसी प्राणी के ग़ुर्राने की आवाज़ सुनाई दी. हम यह जानने के लिए जरा बगल में हटे कि वहां क्या है. और वहां टॉर्च की रोशनी डाली. तभी रोशनी पड़ने से एक भयंकर राक्षस ने पेड़ के पीछे से चेहरा निकालकर झांका. उनका भयंकर रूप देखकर हम दोनों ठिठक गए. जेसिका तो जोर से चीख कर लड़खड़ा पड़ी.
क्रमशः
वह टेंट में धमाल मचाने वाले क्या सचमुच में बन्दर ही थे? या इनका कोई और ही राज़ निकल कर सामने आता है? प्रताप और जेसिका को दिखाई देने वाले राक्षस का भेद क्या है? जानने के लिए पढ़ते रहे... कहानी अब रोचक दौर में प्रवेश कर गई है.
 
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जब हम ज़र्रे से पानी भरकर वापस लौट रहे थे, तब मार्ग में हमें पंद्रह बीस मीटर के फासले पर पेड़ों के पीछे से किसी प्राणी के ग़ुर्राने की आवाज़ सुनाई दी. हम यह जानने के लिए जरा बगल में हटे कि वहां क्या है. और वहां टॉर्च की रोशनी डाली. तभी रोशनी पड़ने से एक भयंकर राक्षस ने पेड़ के पीछे से चेहरा निकालकर झांका. उनका भयंकर रूप देखकर हम दोनों ठिठक गए. जेसिका तो जोर से चीख कर लड़खड़ा पड़ी.
पूरा काला बदन. बड़ा सर. लाल लाल आँख. और बड़े बड़े नुकीले सफेद दांत. पूरे सात आठ फूट लम्बा होगा वह.
मैं भी उनका हुलिया देखकर कांप उठा. मगर मुश्किल से हिम्मत इकठ्ठा कर मैंने बंदूक से गोली चलाई. गोली कहाँ लगी यह तो पता नहीं चला, पर वह राक्षस पेड़ के पीछे छिप गया. तभी मैंने जेसिका को उठाया और उसका हाथ पकड़े भागा. और सामने से आप लोगों को आते हुए देखा.
प्रताप का हाल सुन, और उस राक्षस के हुलिये की कल्पना कर सब कांप उठे. फिर से मेघनाथजी की हजारों बरस पहले वाले प्राणी की बात उन्हें याद आ गई. वे उसी संदर्भ में बात करने लगे.
फिर सब इस मामले की जांच पड़ताल सुबह करना तै कर सोने चले. इस बार भी उन्होंने टुकड़ियों में रात्रि चौकी करना तै किया था.
राजू की बारी अंत में थी. इसलिए वह भी सोने चला. उनके दिमाग में अभी भी राक्षस की बात चल रही थी. राक्षस की बात को लेकर उनके मन में संदेह था. वह हकीकत का पता लगाना चाहता था. मन में ही वह सोचने लगा. उनके पास जो टॉर्च है, वह पंद्रह बीस मीटर तक तो ठीक से रौशनी फेंक नहीं सकती! इसलिए जो कुछ जेसिका और प्रताप ने देखा होगा, वह साफ़ तो बिलकुल नहीं दिखाई दिया होगा. मतलब राक्षस की बात पर संदेह करना संभव है. फिर क्या हो सकता है? उनके मन में एक खयाल आया. उसने मन में ही कहा: हाँ, यह हो सकता है. फिर इसका पता सुबह ही लगाया जा सकता है, सोच कर वह सो गया.
मध्य रात्रि के दौरान जिस टुकड़ी की चौकी करने की बारी थी, उसमे संजय, पिंटू और दीपक थे. वे अभी थोड़ी देर पहले ही गहरी नींद से उठे थे. इसलिए उनका सर भारी हो रहा था. अतः, उन्होंने जरा हल्का होने के इरादे से चाय बनाई. और प्याला हाथ में लिए, टेंट के बाहर निकल चाय की चुस्कियां लेते हुए हंसी मजाक करते टहलने लगे.
चारों और रात्रि का गहरा अंधकार छाया हुआ था. निशाचर प्राणी एवं पंखियों की हरकत कान में दस्तक दे रही थी. तभी उनके कानों में एक ऐसी आवाज़ पड़ी, जिनको सुनकर उनकी सारी हंसी ठिठोली हवा में उड़ गई. पाँव से सर तक वे सिहर उठे.
उनके कान में साफ़ आवाज़ पड़ रही थी. कहीं दूर कोई बच्चा रो रहा था. और साथ ही साथ जंगली कुत्ते और भेड़ियों के रोने की भी आवाज़ आ रही थी.
इस जंगल में इतनी रात को कोई बच्चा! ये कौन होगा? और क्यूँ रो रहा होगा? उनके मन में प्रश्न थे.
उन्होंने दिन भर में यहाँ अगल बगल कोई मानव बस्ती नहीं देखी थी. फिर ये क्या होगा? यह कोई सचमुच इंसानी बच्चा होगा या कोई भूत प्रेत? वे सोच में पड़े. उनकी हिम्मत नहीं पड़ी कि आवाज़ का पीछा करे और पता लगाए कि वास्तव में वह क्या है. फिर उनके दिमाग में जेसिका और प्रताप को राक्षस दिखाई जाने की बात भी ताजा थी ही. और बचपन में ऐसे भूत प्रेतों की कहानियां भी सुन रखी थी, जो रात्रि के दौरान बच्चे का रूप लेकर धोखा देते हैं. रात्रि के अंधकार व अकेलेपन में तार्किक विचार के बदले यह सब नकारात्मक पुरानी यादें अब उनके दिमाग पर कब्जा करने लगी. थोड़ी देर के लिए तो उन्हें अन्य टीम मेम्बर्स को जगाने का खयाल भी आया. पर फिर मजाक बनने के दर से सब चुप रहे. और डरते काँपते अपनी बारी खत्म होने का इंतज़ार करते रहे.
जब उनकी चौकी करने की बारी खत्म हुई और राजू की अंतिम टुकड़ी की बारी आई तब उन्हें सारी बीना कह सुनाई. जिसे राजू ने गौर से सुना. और उन्हें अब सो जाने के लिए कहा.
सुबह राजू ने अपनी टीम को बताया कि वह रात्रि की घटनाओं का पता लगाना चाहता है. और बिना पता लगाए आगे बढ़ना नहीं चाहता. क्यूंकि इस भेद का बिना पता चले वे भविष्य के ख़तरों से सावधान नहीं हो सकते. जिसका भीमुचाचा और रफिक्चाचा ने भी समर्थन किया.सुबह की चाय जब तक तैयार होती, राजू और भीमुचाचा हुल्लड़बाजों के पैरों के निशान जहाँ गायब हो जाते थे, वहां तक पहुँच गए. उन्हें वह संदेहास्पद बंदरों का सबूत चाहिए था. जो उन्हें तुरंत मिल गया. वहां पेड़ों पर कई बन्दर एक डाली से दूसरी डाली कूद रहे थे. रात्रि को जो उन्होंने अनुमान लगाया था, वह सच साबित हुआ था. लौटकर उन्होंने अन्य टीम मेम्बर्स को भी इस डंगलबाज़ बंदरों के बारें में बताया. बाकी के मेम्बर्स भी उन धमालियों का हुलिया मुसकुराते हुए देख आये. जो रात को इतनी सारी आफत मचा गए थे. और उनके मन को संदेह और दर से भर गए थे.
अब वह राक्षस और रोने की आवाज़ की गुत्थी सुलझानी थी. चाय नाश्ता करने के बाद रफिक्चाचा और हिरेन शिकार को निकले. दीपक और संजय टेंट को संभालने रुके. एवं राजू, भीमुचाचा, पिंटू, प्रताप और जेसिका राक्षस की जांच पड़ताल करने निकले.
वे संदिग्ध राक्षस के स्थान पर पहुँचे. जेसिका और प्रताप ने राक्षस किस पेड़ के पीछे और कहाँ खड़ा था, वह बताया. अपने अपने हथियार संभाले वे जेसिका और प्रताप की दिखाई दिशा में सावधानी से आगे बढ़े. पर अब वहां कुछ नहीं था. जो कुछ था वह सायद रात्रि को ही निकल गया था.
राजू और भीमुचाचा ने अगल बगल निरीक्षण शुरू किया.
जिस पेड़ को जेसिका और प्रताप ने बताया था, उस पेड़ के पास वाली घाँस और बेल पट्टियाँ बुरी तरह कुचली हुई थी. कुछ कुछ मिट्टी भी निकल आई थी. जिसका मतलब साफ़ था, यहाँ जरूर कुछ तो था. उनका शरीर भी बहुत भारी रहा होगा. तभी घांस पट्टीयां और मिट्टी का यह हाल हुआ है. पर दृश्य तो यह कह रहा है कि यहाँ लड़ाई हुई थी.
उन्होंने पेड़ पर नजर डाली. पेड़ के टने पर कुतरे जाने के निशान थे.
"यह किसी मजबूत और तीक्ष्ण नाखून से कुतरा गया होगा." राजू बोला.
ऊपर देखा. दाल पर एक मधुमक्खी का टूटा हुआ छज्जा लटक रहा था. उसके कुछ छोटे छोटे टुकड़े नीचे भी बिखरे पड़े थे. और उनपर मक्खियाँ और अन्य की टक अब भिनभिना रहे थे. राजू ने बड़े ध्यान से जमीन का निरीक्षण किया. वहां कुछ बाल भी पड़े मिले. जो राजू ने उठा लिए.
आस पास की जमीन और पेड़ों का मुआयना किया. बगल के एक पेड़ पर बंदूक की गोली का निशान था. वह भी दोनों ने गौर से देखा. जरा दूर पर एक पेड़ के नीचे भी घाँस पट्टियाँ दबी हुई थी. पर वहां यहाँ जैसा हाल नहीं था. लगता था, जैसे कोई प्राणी यहाँ बैठा हो. आसपास सूखे हुए लहू के निशान भी थे. वहां से भी कुछ बाल प्राप्त हुए.
राजू और भीमुचाचा ने वे दोनों बालों के सेंपल को देखा. भीमुचाचा का अनुभव कह रहा था कि यह किसी भालू के बाल हैं. दोनों ने आपस में मशवरा कर यह तै किया कि यह कोई जंगली भालू का काम है. और जेसिका और प्रताप ने जिस राक्षस को देखा था, वह भी यह भालू ही था. उन्होंने अपने अनुमान के समर्थन में प्रमाण भी दिए.
भालू कई बार पेड़ के टने के सहारे दो पैरों पर खड़ा हो जाता है. और अपने नाखून से पेड़ के टने को कुरेदता भी है. उनके दांत भी लम्बे होते हैं. भालू को शहद भी बहुत प्रिय है. और वह मधुमक्खियों के छज्जे को अपने घने बालों की वजह से आसानी से खा भी लेता है.
दोनों ने सारे घटनाक्रम का बयान कुछ यूँ दिया.
पेड़ पर लटके मधुमक्खी के छज्जे को कोई एक भालू खा रहा होगा. तभी दूसरा भालू आ गया होगा. मधुमक्खी के छज्जे को लेकर दोनों के बीच लड़ाई हो गई होगी. जिसके फलस्वरूप ये घाँस पट्टियाँ कुचली गई है. फिर कमजोर भालू हार कर वहां उस दूसरे पेड़ के नीचे जाकर बैठा होगा. वह थोड़ा बहुत घायल भी हुआ होगा. जिसके खून के निशान भी वहां है. वह बैठे बैठे कराह रहा होगा. जिसको जेसिका और प्रताप ने सुना होगा. और जिसको दोनों देखना चाह रहे होंगे.
लड़ाई के बाद दूसरा भालू अपने पिछले दो पैरों पर खड़े होकर मधुमक्खी का शहद खा रहा होगा. तभी जेसिका और प्रताप ने टॉर्च की रोशनी फेंकी होगी. जिसको देखकर वह दूसरे भालू ने पेड़ से झांका होगा. उसी को टॉर्च की कम रौशनी में देखकर दोनों को लगा होगा कि यह कोई सात आठ फूट लम्बा राक्षस है. जिसके नाखून से कुतरे जाने के निशान भी यहाँ इस पेड़ पर मौजूद है. प्रताप ने उस वक्त गोली चलाई. मगर निशान चुक जाने से वह गोली बगल के पेड़ में लगी. जिसका निशान भी उस पेड़ पर मौजूद है. और रात्रि को संजय, दीपक और पिंटू को जो बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी थी, वह भी उस घायल भालू की ही होगी. क्यूंकि भालू भी कई बार इंसानों जैसी आवाज़ में रोता है. खासकर तब, जब वह किसी परेशानी में होता है.राजू और भीमुचाचा के खुलासे से जेसिका, प्रताप और पिंटू को संतोष हुआ. सब मुसकुराते हुए अपने पड़ाव पर लौटे. राजू ने अन्य सदस्यों को भी सारा घटनाक्रम खुलासे के साथ कह सुनाया. वे बाल भी दिखलाये. उन्हें भी इस खुलासे से संतोष हुआ.
पर राजू और भीमुचाचा ने अब सबको सावधान किया. "देखो, यहाँ इस जंगल में भालू भी बसते हैं. जो हमारे लिए कभी भी खतरा बन सकते हैं. इसलिए अब हमें बड़ी सावधानी रखनी होगी. और अकेले तो कभी पड़ना ही नहीं हैं.
यह सारा मामला सुल्जा तब तक दोपहर हो गई. अब ज्यादा आगे बढ़ना संभव नहीं था. अतः, यह तै हुआ कि साम होने से पहले सामने वाली पहाड़ी पर पहुंचा जाए. इसलिए रफिक्चाचा, संजय, दीपक और प्रताप को टेंट और अन्य सामान लेकर सीधे ही उस पहाड़ी पर भेजा. और उसे वहां अगला पड़ाव डालने को कहा. बाकी की टीम आसपास में जो भी खोह होंगी, उसकी तहक़ीक़ात करते हुए साम तक पहाड़ी पर पहुँच जाएगी.
संध्या होने तक दूसरी टुकड़ी पहाड़ी पर पहुंची. तब तक पहली टुकड़ी ने टेंट लगा दिए थे. दिन रहते पानी भी भर लाए थे. और खाना भी तैयार कर दिया था. इसलिए रात्रि का अंधकार छाने से पहले ही सब फ्री हो गए. पिछली रात के मुकाबले इस रात उनके पास आराम का ज्यादा वक्त था. इस रात बीती रात जैसा कोई हंगामा भी नहीं हुआ था. अतः, सब खुश थे. वे सब टेंट के बाहर आग के पास गोलाई में बैठे बातें कर रहे थे. साथ साथ खाना भी चल रहा था. इस दिन भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा था. जैसी खोह की उन्हें तलाश थी, वैसी खोह इस दिन भी उनकी नजर को न पड़ी थी. न तो वे साए और आग का भेद कुछ मालूम हुआ था.
भोजन समाप्त करने के बाद भीमुचाचा और रफीकचाचा खाना पचाने के उद्देश्य से टेंट के अगल बगल टहलने लगे. टहलते हुए वे टेंट की पीछे की साइड को निकले. तभी रफिक्चाचा की नजर को कहीं से हलकी हलकी रौशनी आती दिखाई दी. शुरू में उसे जुगनू की रौशनी का अंदाज़ा हुआ. पर ध्यान से देखने पर पता चला कि यह अलग रौशनी है. उसने भीमुचाचा को इस रौशनी से अवगत किया. दोनों सोच मे पड़े. रौशनी कहीं दूर से आ रही थी. साफ़ कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. उन्होंने राजू और अन्य टीम को भी यह रौशनी दिखाई. पर किसी को इस रौशनी का भेद मालूम न पड़ा. क्यूंकि उन लोगों की झलाई आग की रौशनी में यह रौशनी दब जा रही थी. उन्हें एक विचार यह आया कि पेड़ पर चढ़ कर रौशनी का भेद मालूम किया जाए. पर रात्रि के दौरान पेड़ पर चढ़ना उचित न जान यह विचार छोड़ना पड़ा. काफी सोच विचार के बाद यह तै किया कि थोड़ी देर के लिए अपनी बाली आग को बूझा दिया जाए.
गहरा अंधकार होते ही वह रौशनी कुछ साफ़ हुई. दूरबीन से देखने पर पता लगा कि यह भी किसी आग की ही रौशनी है. उनके मन में प्रश्न पैदा हुआ. तो क्या यह वहीँ आग है, जिसका प्रतिबीम उन्होंने दो दिन पहले देखा था?
देर तक सोच विचार किया. पर आगे कुछ मालूम न चला.
फिर से आग जला ली गई और सब सोने की तैयारी में पड़े.
चौकी करने वाली शुरूआती टुकड़ी में भीमुचाचा, हिरेन और रफिक्चाचा शामिल थे. जब उनकी बारी खत्म होने में थोड़ा वक्त शेष रह गया था, तब एक नई घटना घटित होनी आरम्भ हुई.
क्रमशः
वह रौशनी का राज़ क्या है? क्या अब उन लोगों के लिए कोई नयी मुसीबत पैदा होने वाली है? कहानी अब रोचक दौर में प्रवेश कर चुकी है. जानने के लिए पढ़ते रहे.
 
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चौकी करने वाली शुरूआती टुकड़ी में भीमुचाचा, हिरेन और रफिक्चाचा शामिल थे. जब उनकी बारी खत्म होने में थोड़ा वक्त शेष रह गया था, तब एक नई घटना घटित होनी आरम्भ हुई.
वे दूरबीन से उस रौशनी की दिशा में वक्त वक्त पर नज़र बनाए हुए थे. इस उम्मीद में कि वहां कुछ घटित हो. हिरेन के हाथों में दूरबीन थी. अचानक वह अचंभे में पड़ गया. उसने देखा, वह रौशनी चलने लगी थी. उसने रफिक्चाचा और भीमुचाचा को भी इस अचरज की बात दिखलाई. वे भी अजूबे में पड़े. पेड़ों की वजह से कभी कभार वह रौशनी कम होकर गायब हो जा रही थी, तो कभी कभी पूरी तरह से साफ़ हो जा रही थी. तुरंत उन्होंने अपनी आग बूझा दी. और गौर से देखने लगे. वह रौशनी उनकी और ही आ रही थी.
तब तक दूसरी टुकड़ी भी जाग गई थी. उन्होंने अंतिम टुकड़ी को भी जगा दिया. और यह अद्भुत दृश्य दिखाया. सब को कोई नई मुसीबत की बू आई. वे अपने अपने हथियार संभाले सावधान हो गए.
पर फिर उस रौशनी ने अपना रुख मोड़ा. वह दाहिनी और मुड़कर पहाड़ी के पीछे तलहटी में गायब हो गई.
तब उनका ध्यान पड़ा कि वह रौशनी, जो उन्होंने शुरुआत में देखी थी, वह तो वहीँ है. तो यह रौशनी कोई और रौशनी थी, जो उनकी और आ रही थी और अब पहाड़ी के पीछे गायब हो गई थी. अब वे सोच में पड़े. वह रौशनी क्या थी और क्यूँ कर चल रही थी.
रात्रि को अन्य कोई अजूबे की बात पैदा न हुई. अतः, शेष टीम सो गई. और जिनकी बारी थी वह टुकड़ी चौकी करती रही. सुबह तक सब कुछ शांत रहा.
सूरज की किरण निकलने पर सब फ्रेश हुए, चाय नाश्ता किया और अपना डेरा उठाया. वे आगे बढ़ने लगे. हर छोटी बड़ी पहाड़ियों के पूर्व में एक एक खोह की तह लेते वे आगे बढ़ रहे थे. ऐसे वे एक पहाड़ी पर पहुँचे. अब उन्हें वह तालाब और वह अलग सी दिखने वाली घाटी नजदीक दिखाई दे रही थी. दोपहर हो गई थी. अब वे थके थे. अतः, बिछावन बिछाया और बैठे. नाश्ता किया. पानी पिया. फिर सुसताते पड़े.
पिंटू, संजय और हिरेन लघुशौच के लिए पेड़ों के पीछे गए हुए थे. यहाँ से पहाड़ी की तलहटी साफ़ दिख रही थी. तभी संजय की नजर तलहटी में होने वाली गतिविधि पर पड़ी. उसने गले में लटकी दूरबीन आँख पर लगाई.
"ओह! इंसान...!" वह चिल्लाया.
"क्या?" पिंटू और हिरेन ने उनकी और नजर की. संजय को दूरबीन लगाए घाटी में देखते देख दोनों ने तुरंत अपनी अपनी दूरबीन आँख को लगाई.
"अरे! ये तो आदमी हैं!" दोनों के मुंह से निकल पड़ा.
तुरंत हिरेन दौड़ा. उसने दूर से ही अपने टीम मेम्बर्स को चीख कर और हाथ के इशारे से आने को कहा. उनके चेहरे के भाव देखकर टीम मेम्बर्स को कोई नयी चीज घटित होने की भनक लगी. सभी जल्दी जल्दी उस और दौड़े. सब वहां पहुँचे, जहां संजय और पिंटू थे. पहुँचकर सभी ने अपनी अपनी दूरबीन निकाली और देखा. इस वीरान भूमि पर इंसान को देखकर वे भी हैरान रह गए.
तुरंत राजू ने कहा. "चलो आगे बढ़ते हैं. नजदीक पहुँचकर देखें. वे कौन हैं और क्या कर रहे हैं?"
सारा सामान उठाया और निकल पड़े. वे पहाड़ी की ढलान उतर रहे थे. छीपते छिपाते और सावधानी से वे तोह लेते बढ़ते जा रहे थे. पहाड़ी की मध्य ऊँचाई तक वे उतर आये. अब वे इंसान दूरबीन की मदद से साफ़ दिख रहे थे.
उनका हुलिया देख वे दंग रह गए. बदन का रंग काला था. औरत मर्द सब बिना कपड़ों के बिलकुल नंगे थे. नीचे पहाड़ी की तलहटी में कई गुफा जैसे मुहाने थे. और वे उनमें अन्दर बाहर आया जाया करते थे.
तो क्या वे गुफा निवासी थे? उनके मन में प्रश्न पैदा हुआ.मेघनाथजी की बात अब उन्हें समझ में आने लगी. जो उन्होंने हजारों बरस पीछे जाने वाली बात कही थी, वह सायद इन्हीं गुफा निवासी आदिवासियों के सम्बन्ध में ही कही होगी. आखिर उनके दिमाग में यह बात रही ही होगी की हजारो साल पहले हमारे शुरुआती पुरखें गुफाओं में ही बसते थे. ऐसा सब अपनी स्कूली किताबों से ही पढ़ते आ रहे हैं. तभी उन्होंने हजारो बरस पीछे लौट जाने की बात कही होगी.
उन्होंने एक त्वरित निर्णय लिया. वे उस स्थान से थोड़े बगल में हटे. और उन इंसानों की नजर में न पड़े ऐसे पेड़ों के पीछे अच्छी जगह देखकर अपने टेंट गाड़ दिए. अब उन्होंने उस इंसानों की तोह लेना तै किया था. उन्होंने सोचा, सायद उनकी तलाश का पता इन्हीं लोगों से होकर निकलता हो!
इन इंसानों के मिलने से जेसिका इतनी ज्यादा खुश हुई कि इन लोगों पर से उनकी नजर हट ही नहीं रही थी. क्यूंकि उनका रिसर्च का सब्जेक्ट भी आदिवासियों पर ही था. और इसमें भी ये तो अति आदिम मनुष्य! जो अभी भी बिलकुल अपनी प्राकृतिक अवस्था में ही बस रहे थे. वह अपनी तरह से उन लोगों का अभ्यास कर रही थी. उनकी हर गतिविधि पर वह नजर बनाए हुए थी. इधर उधर होते हुए वह आगे ही आगे उन आदिम लोगों के नजदीक पहुँच रही थी. और निरिक्सं करती हुई अपनी डायरी में नोट्स लिखती जा रही थी. वह अपने टेंट में भी नहीं गई थी. अपने कार्य में वह इतनी मग्न हो गई थी कि उसे वह कहाँ है और कहाँ जा रही है यह भी पता नहीं चल रहा था. वह दूरबीन से देखती जा रही थी और डायरी में लिखती जा रही थी. इस क्रिया में उन्हें यह भी ज्ञान न रहा की उनके प्राणों पर संकट आ पड़ा है.
जब उसने अपने बगल में कोई आवाज़ सुनी, तब वह वास्तविक दुनियाँ में लौटी. उसने बगल में देखा. उसके होश उड़ गए. स्वयं मौत जबड़ा फैलाए उनकी और बढ़ रही थी.
दूसरी और देखा. वहां भी काल उनकी और ललचाई नजर गड़ाए खड़ा था.
तभी पीछे से किसी ने उनको धक्का दिया. और वह गिर पड़ी.
***************
सब कार्य से निवृत्त हुए तब राजू की टीम को जेसिका की गैरहाजिरी का पता चला. रात्रि होने को हुई थी पर जेसिका अभी तक लौटी नहीं थी. तुरंत उनको बुलाने दीपक और रफिक्चाचा को भेजा. वे जहाँ उसे छोड़ गए थे, वहां वे पहुँचे. पर वहां अब जेसिका नहीं थी. वे गभराए. चारों और दोड़ कर दूर तक खोजबीन की. जेसिका के नाम की आवाज़ भी लगाई. पर सब व्यर्थ! उनकी साथी, जो अभी तक उनके साथ थी, अब वह नहीं थी. उनका कोई अतापता भी नहीं था.
वे जेसिका के लापता होने की खबर देने के लिए पड़ाव की और मुड़ रहे थे. तभी उनके कानों में जंगली भेड़ियों की आवाज़ पड़ी. उनके दिमाग में तुरंत एक खयाल पैदा हुआ कि कहीं इस भेड़ियों की वजह से जेसिका कोई संकट में न पड़ गई हो!
पड़ाव की और जाने का खयाल छोड़ वे आवाज़ की दिशा में दौड़े. अचानक उनको रुकना पड़ा. आगे मार्ग में करीब पंद्रह फीट नीचे कि और खड़ी चट्टान थी. वे यहाँ से आगे जा नहीं सकते थे. पर सामने का दृश्य देख उनके रोंगटे खड़े हो गए.यहाँ पड़ाव में दीपक और रफिक्चाचा को गए लम्बा वक्त गुजर गया था. उनके और जेसिका के न लौटने से अन्य टीम मेम्बर्स को कुछ अनहोनी होने की दहशत पैदा हुई. वे जल्दी से खड़े हुए. और तीनों की तलाश में निकले. चारों और उनको ढूंढा. पर कोई न दिखाई दिया. तीनों के नाम की पुकार भी लगाई. पर कोई उत्तर न पाकर वे उनकी तलाश में आगे बढ़े. तभी उन्होंने एक कानफोड़ु धमाका सुना. साथ ही एक तेज रोशनी का गोला भी देखा. उन्हें कोई बड़े संकट की भनक लगी. वे गभराए. और धमाके की दिशा में भागे.
क्रमशः
जेसिका के साथ क्या हुआ? उनके अगल बगल में ऐसा क्या था की वह गभरा गई? दीपक और रफीकचाचा ने ऐसा क्या देख लिया था की उनके रोंगटे खड़े हो गए? राजू और उनकी शेष टीम को सुनाई देने वाले धमाके और रौशनी का क्या राज़ था? इन सब का हाल पता करने के लिए अगले हप्ते तक इन्तेजार करें.
कहानी अब अत्यंत रोचक दौर में प्रवेश कर चुकी है, अतः जानने के लिए पढ़ते रहे.
 
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यहाँ पड़ाव में दीपक और रफिक्चाचा को गए लम्बा वक्त गुजर गया था. उनके और जेसिका के न लौटने से अन्य टीम मेम्बर्स को कुछ अनहोनी होने की दहशत पैदा हुई. वे जल्दी से खड़े हुए. और तीनों की तलाश में निकले. चारों और उनको ढूंढने लगे. पर कोई न दिखाई दिया. तीनों के नाम की पुकार भी लगाई. पर कोई उत्तर न पाकर वे उनकी तलाश में आगे बढ़े.
तभी उन्होंने एक कानफोड़ु धमाका सुना. साथ ही एक तेज रोशनी का गोला भी देखा. उन्हें कोई बड़े संकट की भनक लगी. वे गभराए. और धमाके की दिशा में भागे.
***
दीपक और रफिक्चाचा एक खड़ी चट्टान के ऊपर खड़े थे. उनके सामने ही दस बारह भेड़ियों का झुंड हमले की फिराक में था. दूसरी और से दो भालू भी अपने शिकार पर टूट पड़ने की तैयारी में थे. और बीच में जेसिका इन सब से बेखबर आँखों में दूरबीन लगाए देखे जा रही थी. दोनों के पास वक्त बिलकुल नहीं था. अगर वे बंदूक का इस्तेमाल करते तब भी एक दो भेड़ियों को ही मार सकते. पर तब गभराए हुए दूसरे भेड़िये बिफर कर जेसिका को नुकसान पहुंचा सकते थे. और वे भालू तो उनकी बंदूक की रेंज में भी नहीं थे. ऊपर से पेड़ों की वजह से बंदूक का निशाना चुक जाने की ज्यादा संभावना थी. उनके पास हथगोले भी थे. पर उसके इस्तेमाल से जेसिका को भी नुकसान पहुँच सकता था. क्यूंकि जेसिका और भेड़ियों के बीच अंतर बहुत कम था.
तुरंत दीपक ने एक त्वरित निर्णय लिया. उसने अपने पास रखे हथगोले रफिक्चाचा के हाथ में थमाते हुए कहा, "देखो, जैसे ही मैं जेसिका को पेड़ के पीछे धक्का दूँ, तुरंत आप भेड़ियों के पीछे ये हथगोले फोड़ना." रफिक्चाचा कुछ कहते, उससे पहले दीपक दौड़ा. और नीचे के एक पेड़ की मजबूत दाल पर कूदा. यह भी खयाल न किया की उस दाल पर कई सर्प हैं. और जान जाने का जोखिम है. उसने दोनों हाथों से एक अन्य दाल को पकड़ा और लटक पड़ा. वह दाल दीपक के बोझ से नीचे की और झुकी. अब दीपक दाल के सहारे इतनी ऊँचाई पर लटकने लगा था, जहां से जमीन पर कूद पड़ना आसान था.
तभी जेसिका को होश आया और उसने अगल बगल देखा. दोनों और मौत को पाकर वह गभराई.
उसी वक्त दीपक ने दाल से सीधे नीचे जंप लगाई और तुरंत जेसिका के पास पहुंचकर उसे पीछे से धक्का दिया. जेसिका इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. वह नीचे गिरी और साथ ही दीपक भी गिरा. दीपक ने रेंगते और लुढ़कते हुए उसे पेड़ के पीछे किया.
अपने शिकार पर दूसरे को कब्जा करते देख, वे भेड़िये बिफर पड़े. और उन्होंने हमला कर दिया.
पर एन वक्त पर रफिक्चाचा ने कमाल कर दिया. भेड़ियों के पीछे उनके छोड़े हुए हथगोले का बड़ा धमाका हुआ. जैसे आकाश में बिजली चमकी और बादल फटा. धुल मिट्टी का गुब्बार उठा. पेड़ पौधे सारे हिल गए.
अपने पीछे इतना बड़ा धमाका और रौशनी का गोला देख, वे भेड़िये गभरा कर हमले का खयाल छोड़ आगे की और भागे. जहां उनके मार्ग में वे भालू खड़े थे. भेड़ियों और भालू के बीच गुत्थमगुत्थी हो गई.
जेसिका और दीपक को मौका मिला. दोनों खड़े हुए. दीपक को देखकर जेसिका उससे लिपट कर रो पड़ी. दीपक ने उसकी पीठ ठपठपाई और जल्दी से उसका हाथ थाम भागने लगा. वे सुरक्षित स्थान पर पहुँच गए. तभी रफिक्चाचा भी उनसे आ मिले.
वह दोनों का हालचाल पूछ ही रहे थे, उसी वक्त सामने से उनके अन्य साथी आते दिखाई दिए.
रफिक्चाचा और दीपक ने सारा माजरा उन्हें कह सुनाया. सभी ने दोनों की तारीफ की. और जेसिका को इस जंगल में आगे से सावधान रहने की सलाह दी. जेसिका भी अपनी इस बेवकूफाना हरकत पर शर्मिंदा हुई. उसने सबसे माफी मांगी. और अपनी जान बचाने के लिए दीपक एवं रफिक्चाचा के प्रति दिल से आभार प्रगट किया.
सभी अपने पड़ाव पर पहुँचे. तभी रौशनी के गोले नीचे तलहटी से उपर की और आते दिखाई दिए. उनको यह पता लगते देर न लगी कि ये रौशनी के गोले वास्तव में मशाल हैं. और वे आदि मनुष्य ही मशाल लेकर पहाड़ी पर आ रहे हैं. सायद वह हथगोले के धमाके की आवाज़ उन तक भी पहुंची थी. और वे उसी की तोह लेने आ रहे थे. ये लोग देर रात तक धमाके का पता लगाने पहाड़ी पर इधर से उधर घूमते रहे.
राजू की टीम ने अपनी झलाई हुई सभी आग और टॉर्च की रौशनी बूझा दी. उन्हें इस बात का अंदेशा था कि अगर उन मनुष्यों को उनका पता चला, तो उसे दुश्मन जानकर नया बवाल खड़ा कर सकते हैं. उन लोगों से मिलने पर ये आदि मनुष्य कैसा बर्ताव करेंगे, ये तो उन्हें नहीं पता था. पर अंडमान में बसने वाले सेंटाइन्लीस आदिमानवों के बर्ताव से उन्हें यह अंदाजा था कि ये लोग किसी बाहरी इंसान के आगमन को सहन नहीं करते. इसलिए वे चुपचाप अपने टेंट में पड़े रहे. पर वे लगातार इन मनुष्यों की हिलचाल पर निगाह रखे हुए थे. इस दौरान वे मनुष्य पास से भी गुज़रे. पर रात्रि के अंधकार एवं पेड़ों के झुरमुट में छिपे होने की वजह से उन्हें इन लोगों की हाजिरी का पता न चल पाया.
इसी दौरान एक बेहद चौंकाने वाली खबर जेसिका ने

यहाँ पड़ाव में दीपक और रफिक्चाचा को गए लम्बा वक्त गुजर गया था. उनके और जेसिका के न लौटने से अन्य टीम मेम्बर्स को कुछ अनहोनी होने की दहशत पैदा हुई. वे जल्दी से खड़े हुए. और तीनों की तलाश में निकले. चारों और उनको ढूंढने लगे. पर कोई न दिखाई दिया. तीनों के नाम की पुकार भी लगाई. पर कोई उत्तर न पाकर वे उनकी तलाश में आगे बढ़े.
तभी उन्होंने एक कानफोड़ु धमाका सुना. साथ ही एक तेज रोशनी का गोला भी देखा. उन्हें कोई बड़े संकट की भनक लगी. वे गभराए. और धमाके की दिशा में भागे.
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दीपक और रफिक्चाचा एक खड़ी चट्टान के ऊपर खड़े थे. उनके सामने ही दस बारह भेड़ियों का झुंड हमले की फिराक में था. दूसरी और से दो भालू भी अपने शिकार पर टूट पड़ने की तैयारी में थे. और बीच में जेसिका इन सब से बेखबर आँखों में दूरबीन लगाए देखे जा रही थी. दोनों के पास वक्त बिलकुल नहीं था. अगर वे बंदूक का इस्तेमाल करते तब भी एक दो भेड़ियों को ही मार सकते. पर तब गभराए हुए दूसरे भेड़िये बिफर कर जेसिका को नुकसान पहुंचा सकते थे. और वे भालू तो उनकी बंदूक की रेंज में भी नहीं थे. ऊपर से पेड़ों की वजह से बंदूक का निशाना चुक जाने की ज्यादा संभावना थी. उनके पास हथगोले भी थे. पर उसके इस्तेमाल से जेसिका को भी नुकसान पहुँच सकता था. क्यूंकि जेसिका और भेड़ियों के बीच अंतर बहुत कम था.
तुरंत दीपक ने एक त्वरित निर्णय लिया. उसने अपने पास रखे हथगोले रफिक्चाचा के हाथ में थमाते हुए कहा, "देखो, जैसे ही मैं जेसिका को पेड़ के पीछे धक्का दूँ, तुरंत आप भेड़ियों के पीछे ये हथगोले फोड़ना." रफिक्चाचा कुछ कहते, उससे पहले दीपक दौड़ा. और नीचे के एक पेड़ की मजबूत दाल पर कूदा. यह भी खयाल न किया की उस दाल पर कई सर्प हैं. और जान जाने का जोखिम है. उसने दोनों हाथों से एक अन्य दाल को पकड़ा और लटक पड़ा. वह दाल दीपक के बोझ से नीचे की और झुकी. अब दीपक दाल के सहारे इतनी ऊँचाई पर लटकने लगा था, जहां से जमीन पर कूद पड़ना आसान था.
तभी जेसिका को होश आया और उसने अगल बगल देखा. दोनों और मौत को पाकर वह गभराई.
उसी वक्त दीपक ने दाल से सीधे नीचे जंप लगाई और तुरंत जेसिका के पास पहुंचकर उसे पीछे से धक्का दिया. जेसिका इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. वह नीचे गिरी और साथ ही दीपक भी गिरा. दीपक ने रेंगते और लुढ़कते हुए उसे पेड़ के पीछे किया.
अपने शिकार पर दूसरे को कब्जा करते देख, वे भेड़िये बिफर पड़े. और उन्होंने हमला कर दिया.
पर एन वक्त पर रफिक्चाचा ने कमाल कर दिया. भेड़ियों के पीछे उनके छोड़े हुए हथगोले का बड़ा धमाका हुआ. जैसे आकाश में बिजली चमकी और बादल फटा. धुल मिट्टी का गुब्बार उठा. पेड़ पौधे सारे हिल गए.
अपने पीछे इतना बड़ा धमाका और रौशनी का गोला देख, वे भेड़िये गभरा कर हमले का खयाल छोड़ आगे की और भागे. जहां उनके मार्ग में वे भालू खड़े थे. भेड़ियों और भालू के बीच गुत्थमगुत्थी हो गई.
जेसिका और दीपक को मौका मिला. दोनों खड़े हुए. दीपक को देखकर जेसिका उससे लिपट कर रो पड़ी. दीपक ने उसकी पीठ ठपठपाई और जल्दी से उसका हाथ थाम भागने लगा. वे सुरक्षित स्थान पर पहुँच गए. तभी रफिक्चाचा भी उनसे आ मिले.
वह दोनों का हालचाल पूछ ही रहे थे, उसी वक्त सामने से उनके अन्य साथी आते दिखाई दिए.
रफिक्चाचा और दीपक ने सारा माजरा उन्हें कह सुनाया. सभी ने दोनों की तारीफ की. और जेसिका को इस जंगल में आगे से सावधान रहने की सलाह दी. जेसिका भी अपनी इस बेवकूफाना हरकत पर शर्मिंदा हुई. उसने सबसे माफी मांगी. और अपनी जान बचाने के लिए दीपक एवं रफिक्चाचा के प्रति दिल से आभार प्रगट किया.
सभी अपने पड़ाव पर पहुँचे. तभी रौशनी के गोले नीचे तलहटी से उपर की और आते दिखाई दिए. उनको यह पता लगते देर न लगी कि ये रौशनी के गोले वास्तव में मशाल हैं. और वे आदि मनुष्य ही मशाल लेकर पहाड़ी पर आ रहे हैं. सायद वह हथगोले के धमाके की आवाज़ उन तक भी पहुंची थी. और वे उसी की तोह लेने आ रहे थे. ये लोग देर रात तक धमाके का पता लगाने पहाड़ी पर इधर से उधर घूमते रहे.
राजू की टीम ने अपनी झलाई हुई सभी आग और टॉर्च की रौशनी बूझा दी. उन्हें इस बात का अंदेशा था कि अगर उन मनुष्यों को उनका पता चला, तो उसे दुश्मन जानकर नया बवाल खड़ा कर सकते हैं. उन लोगों से मिलने पर ये आदि मनुष्य कैसा बर्ताव करेंगे, ये तो उन्हें नहीं पता था. पर अंडमान में बसने वाले सेंटाइन्लीस आदिमानवों के बर्ताव से उन्हें यह अंदाजा था कि ये लोग किसी बाहरी इंसान के आगमन को सहन नहीं करते. इसलिए वे चुपचाप अपने टेंट में पड़े रहे. पर वे लगातार इन मनुष्यों की हिलचाल पर निगाह रखे हुए थे. इस दौरान वे मनुष्य पास से भी गुज़रे. पर रात्रि के अंधकार एवं पेड़ों के झुरमुट में छिपे होने की वजह से उन्हें इन लोगों की हाजिरी का पता न चल
 
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सुनाई. उसने कहा.
"हम जिस मनुष्यों को देख रहे हैं, ये सायद दुनियाँ के लिए हमारी नई खोज हो सकती है. जहां तक मैं जानती हूँ, ये आदि मनुष्यों की प्रजाति अपने आप में अनोखी है. इसके बारें में अब तक दुनियाँ कुछ नहीं जानती. और अब तक ये हमारी पहुँच से बाहर ही रही है. इसलिए यह हमारे लिए एक खुशी की खबर हो सकती है."
जेसिका की बात सुनकर सभी चकित रह गए. उन्हें इस बात का ज्ञान ही नहीं था कि वे जिस इंसानों को देख रहे हैं, उससे दुनियाँ अब तक अपरिचित ही रही है. वे इस बात का एहसास करते अभिभूत हो गए कि वे सब अनजाने में ही इस खोज अभियान का हिस्सा बन गए थे. और उनके ह्रदय में उन आदि मनुष्यों के प्रति विशेष आदर और बंधुत्व की भावना उभर आई.
इसी दौरान उन्हें एक और भेद का पता चला. उन्होंने जो पिछली रातों को चलती हुई रोशनी देखी थी, वह इन्हीं मनुष्यों की हरकतें थी. ये मनुष्य हाथों में मशाल लिए पहाड़ियों पर घूम रहे थे. जो उन लोगों ने पिछली रात में देखि थी.
अगली सुबह जब दीपक और जेसिका आमने सामने हुए. दोनों की आंखें चार हुई. वे एक दूसरे को देखते ही रह गए. दीपक मुसकुराया और आँखों ही आँखों से उसकी छेड़खानी की. जेसिका हंसी. और शर्मा कर भाग गई. दीपक लाचार होकर उसे दूर जाते देखता रहा.
अब इन लोगों को इतना तो पता चल ही गया था कि इस टापू पर कोई मनुष्य आबादी है. पर वे अब सीधे उनके नजदीक नहीं जा सकते थे. क्यूंकि अनजाने में ही हथगोले के धमाके की वजह से वे उनके दुश्मन बन बैठे थे. अब इन्हें कोई ठोस रणनीति बनानी थी और आगे की योजना पर कार्य करना था.
अब उन्होंने यह तै किया कि जेसिका उन इंसानों की खोज खबर लेने जाएगी. और इनके साथ एक दो साथियों को भेज दिया जाए. और अन्य मेम्बर्स खोह की तलाश में निकलेंगे. टेंट को नजदीक की पहाड़ी पर ही लगा देंगे. जहां सभी को साम होने से पहले पहुँच जाना था. इतना तै कर वे अलग हुए.
जेसिका के साथ दीपक ने जाना पसंद किया था. उन दोनों ने आदि मनुष्यों के कार्यकलापों की तोह लेना तै किया. इसलिए सुबह को वे पहाड़ी से नीचे तलहटी में उतर आये. और वे आदि मनुष्य क्या कर रहे हैं, छिपकर देखने लगे. वे अलग अलग स्थानों पर जा कर उनकी हिलचाल की नोंद ले रहे थे.
वे मनुष्य तरह तरह की प्रवृति में व्यस्त दिखाई दे रहे थे. कई मर्द जंगल से शिकार कर ला रहे थे. तो कुछ लोग शिकार किए हुए प्राणियों की चमड़ी उतार कर सुखा रहे थे. कोई इस चमड़ी से किसी प्रकार के साधन बना रहे थे, तो कोई मछलियों, पंखियों, प्राणियों की हड्डियाँ, सींग, पंखे, इत्यादि का इस्तेमाल कर कोई न कोई वस्तु या साधन बना रहे थे. उनके कन्धों पर तीर कमान भी लटक रहे थे. जिनका इस्तेमाल वे शिकार के लिए करते होंगे.
उनके बातचीत के तरीके में शब्द मर्यादित महसूस हो रहे थे. वाक्य भी छोटे छोटे थे. कई बार तो वे अपने संवाद में शब्द के बजाय सिर्फ विचित्र ध्वनि से ही चला रहे थे. और उन ध्वनियों में कई ध्वनि तो प्राणी एवं पंखियों की आवाज़ और प्रकृति की ध्वनि से प्रेरित थी.
उनकी औरतें सायद किसी चीज की तैयारी कर रही थी. वे जंगल से लाए हुए फूल फल, सफेद लाल काली मिट्टी, पेड़ पौधों, इत्यादि को पीसकर अलग अलग रंग का पाउडर बनाकर लकड़ी से बने बर्तन में भर रही थी.
कुछ बच्चों ने अपने पूरे बदन पर इस पाउडर को मल कर अपना हाल कुछ ऐसा बना रखा था कि असल हुलिया पहचानना मुश्किल हो रहा था. सफेद काले, लाल पीले, हरे रंगों और चेहरे पर भिन्न भिन्न प्राणियों के मुखौटे पहन ये बच्चे जैसे होली खेल रहे थे. एक दूसरे को रंग, और धूल मिट्टी उड़ा रहे थे.
उन बच्चों को देख कर दीपक के दिमाग में शरारत सूजी. वह बोला: "चलती है क्या होली खेलने?"
जिसके उत्तर में जेसिका सिर्फ हंसी.
कुछ वक्त गुजरने पर वे औरतें, कुछ मर्द और बच्चे मिलकर उस चमड़ी, हड्डियों, सींग से बने साधन और रंग भरे लकड़ी के बरतनों एवं जंगल से लाए फल फूल को उठाये कहीं जाने की तैयारी करने लगे. जेसिका को यह समझ नहीं आया कि वे इस साधनों, फल फूल और रंगों को लिए कहाँ और क्यूँ जा रहे हैं.
"सायद ये कोई त्यौहार मना रहे हैं या उसके कोई देवता की पूजा करने जा रहे हैं." जेसिका ने बगल में छिपकर बैठे हुए दीपक को धीरे से कहा.
यह सुनते ही दीपक के चेहरे पे कोई रहस्यमय सी चमक आ गई. जो जेसिका ने न देखी.
दीपक ने एक्साईट होकर जेसिका की पीठ थपथपाते हुए कहा. "तब तो हमें उनका पीछा करना ही पड़ेगा!"
क्रमशः
वे आदिम मनुष्य कहाँ जा रहे थे? दीपक के एक्साईट होने का राज़ क्या है? क्या वे आदिम लोगों का पीछा करेंगे? वहां उसे क्या मिलता है? अगले हप्ते इस राज़ से पर्दा उठेगा.
कहानी अब अत्यंत रोचक दौर में प्रवेश कर चुकी है
 

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