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Adultery जादुई लकड़ी(completed)

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अध्याय 57


जब शो खत्म हो गया सभी लोगो के मुह में बस तारीफ ही तारीफ थी लेकिन मेरी नजर नेहा पर थी ..

नेहा दीदी मुझे देखकर बस एक स्माइल दे गई और सभी के साथ बाहर जाने लगी ,

शो में राज्य के मंत्री जी भी आये थे जो की मुझे उस दिन पार्टी में मिले थे ..

मैं उनकी ओर लपका

"ओह राज तुम भी यंहा आये हो ,कैसे लगा शो.."

"बेहतरीन ,क्या आप उस जादूगर से मुझे मिलवा सकते है "

"बिल्कुल क्यो नही चलो हमारे साथ अभी उससे ही मिलने जा रहा हु "

"अकेले .."

मेरे मुह से निकला

"वाट .."

"प्लीज् सर "

"ठीक है लेकिन ऐसी क्या बात हो गई की तुम्हे अकेले में मिलना है .."

वो भी आश्चर्य में थे

"वो मुझे...मुझे उनसे जादू सीखना है "

"वाट हाहा …"

वो मुझ देखने लगे

"क्या सच में ??"

उन्होंने फिर से कहा

"जी बिल्कुल "

"तुम अजीब आदमी हो यार राज ,इतना बड़ा बिजनेस है और तुम्हे जादू सीखना है ये कोई फालतू काम नही है बचपन से प्रेक्टिस करते है लोग "

"आप एक बार मिलवा तो दीजिये "

"अच्छा अभी तो अपने परिवार के साथ चलो फिर बात करते है "

मैं उनके साथ सभी को लेकर चल दिया ,मेरे घर वाले उस सेलिब्रेटी जादूगर से मिलकर खुश थे असल में बहुत भीड़ थी उनसे मिलने के लिए यंहा तक की VIP लोगो की भी ,मंत्री जी ने मुझे जादूगर के सेकेट्री से मिलवाया

"सर काम क्या है "

"यार काम नही बता सकता बस मीटिंग करवाओ ,अगर पैसे लगेंगे तो मैं देने को तैयार हु "

"सर बात पैसों की नही है असल में सर बहुत बिजी होते है .."

"आधा घंटा बस .."

सेकेट्री थोड़े सोच में पड़ गया मुझे तब समझ आया की सेलिब्रेटी होना क्या होता है ,उसके सामने पैसा भी कोई मतलब नही रखता वक्त की ये कीमत होती है ..

"ओके सर ,अब आप मंत्री जी के थ्रू आये है तो मैं कुछ करता हु ,कल सुबह गार्डन में चलेगा ,वो मॉर्निंग वाक में जाते है .."

"ओके डन .."


मैं सुबह सुबह वंहा पहुच गया था ..

मैं अपना सामान्य परिचय देने ही वाला था की वो बोल उठे

"मैं जानता हु आपको चंदानी साहब ,कल ही तो हम मिले थे आप अपने परिवार के साथ आये थे,मेरी याददाश्त इतनी भी कमजोर नही है,और ऐसे भी इस उम्र के अरबपति है ही कितने दुनिया में जो पूरा बिजनेस खुद के दम पर चला रहे है …"

मैं उनकी बात सुनकर बस मुस्कुराया ,वो बेहद ही तेज चलते थे,उनके सामने मुझे लगभग दौड़ाना पड़ रहा था

"सर मुझे आपसे के चीज जाननी है "

"बोलिये "

"वो जो आपने टंकी वाला सीन किया था ,गजब का था ऐसा लगा जैसे की आप नीचे गिर गए और मगरमच्छो ने आपको खा ही दिया लेकिन आप पीछे से आ गए ..सर मुझे बस ये जानना है की आपने ऐसा किया कैसे .."

वो अचानक से रुक गए

"आप ये जानने के लिए मुझसे मिलना चाहते थे ,क्या आपको पता नही की कोई भी जादूगर अपना सीक्रेट किसी को कभी नही बताता ..मुझे तो लगा था की आप बिजनेसमैन है कोई की बात करना चाहते होंगे लेकिन आप तो सच में एक बच्चे ही निकले .."

वो फिर से चलने लगा

"अरे सर मैं जानता हु की जादूगर अपना सीक्रेट नही बताते,मैं आपसे वो पूछ भी नही रहा हु मुझे डिटेल नही जानना है बस मुझे ये जानना है की ऐसा किस तरीके से किया जा सकता है और कहा कहा किया जा सकता है ,मतलब की क्या इसे कहि भी अंजाम दिया जा सकता है ,क्योकि जब आपने इसे हाल में किया तो आपके पास पहली की तैयारी रही होगी ,आपके सपोर्ट में लोग रहे होंगे ,लेकिन क्या इसे ऐसे भी किया जा सकता है "

वो फिर से रुक गए और मेरे चहरे को ध्यान से देखने लगे

"मैं आजतक बहुत से लोगो से मिला जो की ये जानने को बेताब थे की जादू को कैसे किया गया लेकिन तुम जैसी बेताबी मैंने कभी नही देखी ..मामला सिर्फ जादू का तो नही है "

"सर मामला बेहद ही गंभीर है ,समझ लो की मेरे जीवन से बहुत ही जुड़ा हुआ है .."

"हम्म असल में हम इसे जिस टेक्निक का यूज़ करते है वो है delusion creat करना ,अब ये कैसे बनाया जाता है वो अलग अलग जगह और काम के हिसाब से अलग अलग हो सकता है ...समझ लो की सामने वाले की आंखों में एक धोखा दिखाया जाता है जिसे लोग सच समझने लगे और वो इसे कोई जादू समझे ..लेकिन इसे स्टेज में करना ही इतना मुश्किल है की बाहर करना तो ...बहुत मुश्किल होगा ,हा छोटे मोटे चीज तो कोई भी जादूगर कर सकता है लेकिन कल जैसा परफॉर्मेंस बाहर करना .. कोई बहुत ही ट्रेंड आदमी ही कर सकता है जो की इस फील्ड का उस्ताद हो ,क्योकि इसमे उस्ताद बनने के लिए बचपन से मेहनत लगती है .."

"ह्म्म्म सर एक बात और आप के अलावा इसे बाहर और कितने लोग कर सकते है ,मतलब की हमारे देश में कितने लोग होंगे इस काबिलियत के "

वो मुस्कुराये और मेरे कंधे पर अपना हाथ रख दिया

"बेटा तुम क्या करने वाले हो ये तो मुझे नही पता लेकिन ऐसे हजारों लोग है जो ये कर सकते है ,बस उन्हें अच्छा टीम मिलनी चाहिए बिना टीम के कोई भी कुछ भी नही कर सकता "

"थैंक्स सर "

"क्या बस इतना ही "

"जो जानना था वो जान लिया थैंक्स .."

मैं वंहा से निकल गया था…..


मैं अभी नेहा दीदी के कमरे में था

"अरे भाई इतनी सुबह सुबह .."

वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी

"दीदी मैं उस जादूगर से बात करके आ रहा हु ,और जो मैं समझ पाया उसके हिसाब से ….."

मैंने उन्हें घूर कर देखा

"क्या??"

"क्या मैं जो सोच रहा हु वो सही है "

"और तुम क्या सोच रहे हो मेरे भाई "

वो मेरे पास आकर बैठ गई ,मैंने उनका हाथ अपने हाथो में रख लिया था

"दीदी प्लीज मैंने ऐसी चीजे ढूंढते हुए इतना समय बिता दिया जिसको ढूंढने की मुझे जरूरत ही नही थी ,मुझे अब फिर से इस जासूसी करने का कोई मूड नही है तो प्लीज बता दो ना .."

"अरे वही तो पूछ रही हु की क्या बताऊ "

मैंने उन्हें नाराजगी से देखा वो हँस पड़ी

"अच्छा बाबा ठीक है,और जवाब है की हा .."

मैं अपना सर पकड़ कर बैठ गया

"लेकिन आखिर क्यो ??? यार मेरे घर वालो को हो क्या गया है हर चीज में इतना ड्रामा करने की क्या जरूरत है "

मैं अब भी अपना सर पकड़े हुए बैठा था

"उनसे ही पूछ लेना "

"कहा मिलेंगे ..??"

उन्होंने गहरी सांस छोड़ी

"कल चलते है ,लेकिन बस हम दोनो और किसी को पता नही चलना चाहीये वो सब कुछ छोड़ चुके है "

मैंने हा में अपना सर हिलाया ..

मुझे सच जानने के लिए कल तक रुकना था ,अजीब बात है ना की जिस सच को जानकर कुछ भी नही बदलने वाला उसे भी जानने की इतनी बेताबी होती है ,आज मुझे पता चला की मेरे पिता जिंदा है ,उन्होंने इतना बड़ा ड्रामा रच दिया था ,ये तो समझ आ गया था की कैसे लेकिन बस ये जानना था की क्यो ????


NOTE- dosto ye update thoda chhota tha kyoki aane wala update thoda bada hoga ,use kal hi post kar dunga ,wo is story ka last update hoga to uske liye mujhe thoda kaam karna hoga,puri story ko wahi ek update me sametana hai ..
jaisa ki aap sabhi jante hai mujhe ek twist ke sath story ka end karna achcha lagta hai aur papa jinda hai ye bada twist nahi hai , main story thode unique style me end karna chahta hu jaisa aaj tak nahi kiya ,mere khyal se abhi tak ki jitani story maine likhi hai usme se sabse achcha end ye hoga,sath hi bilkul aap sabhi ke dimag ko blow bhi kar dega ..fikra mat kijiye usse apke dimag ki dahi nahi hogi balki hotho me ek muskan aa jayegi ..:)
aur kal hi naye story ko bhi aap logo se introduce karwa dunga jaise ki meri adat hai ek khatm aur last update ke sath hi dusari story shuru ..:)
 
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अध्याय 58

मुझे बार बार अपने पिता की वो आंखे नजर आ रही थी जिसे मैंने अंतिम बार देखा था ,

उन आंखों में कुछ था ,कोई तो बात थी जो दिल को छू रही थी ,एक सच्चाई थी उनकी आंखों में ,एक प्रेम था भावनाओ की उथल पुथल से शांत थी वो आंखे ..

ऐसी आंखे किसी की अचानक से नही हो सकती थी ,यही कारण था की शांत होने पर और याद करने पर मुझे ये याद आ जाता था की आखिर वो एक पल में कैसे बदल गए थे ,ये असंभव था ,ये असंभव था की कोई इतनी जल्दी बदल जाए ,बदलाव एक प्रक्रिया होती है जो समय लेती है …

शायद बदलाव की प्रक्रिया पिता जी के अंदर बहुत ही पहले से चल रही थी लेकिन मैं उसे समझ नही पाया,मैं समझ नही पाया क्योकी मैं खुद ही उलझा हुआ था ,अनेको विचारों की भीड़ में अपने खुद के मन के दंगल में फंसा हुआ था ..

सुबह ही में और नेहा दीदी निकल पड़े मेरे लिए किसी अनजान से सफर में ..

घर में बहाना ये था की बिजनेस का कोई काम है और नेहा दीदी बस इंटरेस्ट के लिए जा रही है …

बिजनेस इसलिए क्योकि रश्मि और निशा दोनो को इसमे कोई इंटरेस्ट नही था इसलिए वो साथ नही हुई ..

हमारी गाड़ी जंगल के बीच से गुजर रही थी ,हम दोनो में ही कोई बात भी नही हो रही थी ,दोनो ही अपने अपने विचारों में खोए हुए थे या फिर बस चुप रहना चाहते थे..

थोड़ी देर बाद दीदी ने कार सड़क से उतार कर एक पगडंडी में चला दी ,थोड़ी देर में हम एक आश्रमनुमा जगह पर थे ..

"ये कौन सी जगह है दीदी "

"ये वो जगह है जन्हा से पिता जी ने शुरू किया था "

"मतलब की ये उनके गुरुदेव का आश्रम है "

पिता जी के गुरुदेव ,मतलब बाबा जी के भी गुरु,तो ये जगह थी जहाँ से इन शक्तियों की शुरुवात हुई थी ..

कार से निकल कर हम आश्रम में गए,कुछ बोल वंहा दिखाई दे रहे थे ..लेकिन फिर भी ये बहुत ही सुनसान ही लग रहा था क्योकि मुझे शहरों के आश्रम को देखने की आदत हो गई थी जन्हा पर हजारों या सैकड़ो की संख्या में लोग आते जाते है ..

दीदी मुझे एक कमरे में ले गई ,सभी कमरे घास के बने हुए थे,छोटी छोटी झोपड़ियां बस थी ..

कमरे के अंदर एक व्यक्ति ध्यान लगाए बैठा था ,देखने से वो कोई सिद्ध व्यक्ति लग रहा था ,पतला देह मानो जर्जर हो रहा हो ,उम्र 90 से क्या कम रही होगी ,लेकिन देह की आभा गजब की थी ,एक तेज था ,बाल और दाढ़ी ,घने और सफेद थे ,उनकी बंद आंखे भी ऐसी लग रही थी जैसे वो हमे देख रहे हो ,उस कमरे में कोई भी नही था रोशनी बस उतनी ही थी जितनी की एक छोटी सी खिड़की से आ सकती थी,घास से ही सही लेकिन इस झोपड़ी को बेहद ही सलीके से बनाया गया था,इसलिए अंदर जगह अच्छी थी,वो साधु जमीन से थोड़े ऊंचे बैठे हुए थे आसान कुछ नही बल्कि मिट्टी का था,कोई चटाई नही कोई सुविधा नही ,लेकिन वो मस्त थे,ध्यान की अवस्था में भी मस्त लग रहे थे जैसे साक्षात कोई देव जमीन पर उतर आया हो ..

उन्हें देखते ही अंदर से ना जाने क्या हुआ मैं नतमस्तक हो गया,शरीर से नही बल्कि मन से मैंने समर्पण कर दिया था ..

मैं और दीदी अपने घुटने में आ चुके थे हमारे हाथ जुड़ गए थे..

मेरी आंखों से पानी आने लगा था ,एक प्रेम की अनुभूति मेरे पूरे मनस में फैल रही थी ,वो अद्भुत थी बिल्कुल ही निश्छल सी अनुभूति हो रही थी ..

अद्भुत ये भी था की मेरे जैसा हाल दीदी का भी हो रहा था ..

उन्होंने धीरे से अपनी आंखे खोली ,उनके आंखों में एक चमक थी ..

आ गए तुम दोनो ..

जितना हैरान मैं था उतना ही दीदी भी थी ..

"जी स्वामी जी ,हम पिता जी से मिलने आये थे"

दीदी ने कहा ..

"हा बहाने तो कई हो सकते है आने के ,लेकिन रास्तो से क्या फर्क पड़ता है जब एक ही मंजिल में जाना हो "

उन्होंने मुझे देखा ,उनके नयन ऐसे थे की जैसे कोई मुझे इतनी गहराई से देख रहा हो जितना मैंने खुद को भी नही देखा था ,

"तो तूम हो जिसे डागा ने वो लकड़ी दी थी "

मैं चौक गया और कुछ ना बोल पाया

"डागा समझदार है,हमेशा था और चंदानी बेवकूफ...वो तो तुम्हारे कारण अक्ल आ गई वरना "

वो हल्के से मुस्कुराये ,उनकी नजर दीदी पर थी दीदी भी उनकी बात सुनकर मुस्कुरा उठी ..

"जाओ मिल आओ ,लेकिन जाने से पहले प्रसाद लेकर जाना "

मैं और दीदी वंहा से निकल कर एक दूसरी कुटिया की तरफ बढ़ाने लगे पहले दीदी अंदर गई वंहा कोई भी नही था ,दीदी वापस आयी और फिर हम चलने लगे मैं उनके पीछे पीछे चल रहा था ..

चलते चलते हम एक छोटे से झरने के पास पहुचे और पास ही पत्थर में बैठा हुआ एक सन्यासी मुझे दिखाई दिया ..

मैं उन्हें पहचानता था वो मेरे पता ही थे,मेरे आंखों में आंसू आने लगे थे ...जैसे जैसे मैं उनके पास जा रहा था वैसे वैसे ही मेरी धड़कने बढ़ रही थी ..

वो पलटे और बस मुस्कुराये ,इतना सुकून था इस मुस्कराहट में ,कितनी शांति थी ,कितना प्रेम था ..

उन्होंने उठाकर पहले नेहा दीदी को फिर मुझे गले से लगा लिया ,लेकिन उनकी आंखों में एक भी बून्द आंसू के नही थे ,जैसे उन्हें पता था की ये होने वाला है ,जबकि मेरी आंखे भीगी हुई थी ..

"कैसे हो राज "उनके आवाज में भी एक अजीब सी बात थी ,जैसे ...जैसे कीसी साधक की आवाज हो ..

"आखिर क्यो पापा ..??"

मैं बस इतना ही कह पाया ,उन्होंने एक गहरी सांस ली और पास ही रखे पथ्थर में मुझे बैठने के लिए कहा ..

हम तीनो ही बैठ चुके थे …

मेरा ध्यान उनके गले में गया और जैसे मैं चौक ही गया ,उनके गले में एक ताबीज जैसा कुछ था मैं उसे पहचानता था वो वैसा ही था जैसे मेरी जादुई लकड़ी बंधी हुई ताबीज,और इसमे भी एक लकड़ी ही बंधी हुई थी ..

"ये.."

मेरे मुह से निकला ,वो फिर से मुस्कुराये .

"सब बताता हु थोड़े शांत हो जाओ .."

मैं शांत हुआ और उन्होंने बोलना शुरू किया ..

"दौलत ,शोहरत,शराब ,शबाब ...सुख सुविधा की कामनाये ये सभी जब आपकी जरूरत बन जाए आप इसके पीछे अपना असली मकसद भूलने लगे,खुद को भूलने लगे तो इसे वासना कहा जाता है ,वासना किसी की भी हो सकती है लेकिन जिसकी भी हो चाहे पैसे की हो या जिस्म की या फिर सत्ता की पावर की कोई भी वासना हो वो हमेशा बर्बाद ही करती है ,सामान्य जीवन में शायद इसका पता ना भी चले लेकिन एक साधक के जीवन में अगर वासना ने प्रवेश किया तो बस तबाही ही तबाही होती है ,और बेटा एक साधक के लिए सबसे बड़ी वासना उसकी सिद्धि ही होती है ,अगर सिद्धि में ही वासना जाग जाए तो साधक तबाह हो जाता है ..

वैसा ही मेरे साथ भी हुआ.मैं इस गुरुकुल में आया तो था अपने पुराने कर्मो के प्रताप में साधक बनने ,लेकिन धीरे धीरे मुझे साधना की जगह सिद्धि भाने लगी ,मैं अपने मार्ग से भटक गया था ,और मेरे गुरु के रोकने पर ही नही रुका ,मुझे तो शुरुवाती सिद्धियां मिली थी मैंने उसका गलत उपयोग किया अपने वासनाओ की पूर्ति के लिए ,मैंने अपने जीवन में क्या क्या गलतियां की ये तो तुम्हे भी पता चल गया होगा .."

मैंने हा में सर हिलाय और वो फिर से बोलने लगे

"मुझे अपनी गलती का अहसास भी हो पा रहा था लेकिन एक दिन मैंने अपनी वासना की पूर्ति के लिए अपनी ही बेटी का इस्तमाल किया ,वो भी मेरे सम्मोहन में फंसकर उस आंधी में बह गई लेकिन जब उसे होश आया तब उसने मुझे मेरी गलती का अहसास दिलाया ,वासना की तूफान में मैं भी रिस्तो की मर्यादा को भला बैठा था ,मैं इतना बड़ा पाप कर बैठा था की ग्लानि से मेरा सीना ही जल गया,वो समय वही था जब तुम जंगल से वापस आये थे,मैं चन्दू को अपना खून समझता था ,और नेहा चन्दू से प्रेम किया करती थी ,मुझे खुद पर ग्लानि होने लगी थी तब नेहा ने ही मुझे सहारा दिया …

समय बीत रहा था मेरी आंखे खुल चुकी थी ,मैं चीजो को स्पष्ट देख रहा था ,मैं देख रहा था की मेरे द्वारा किये गए पापा का मुझे क्या फल मिल रहा है ,मैंने तुम्हे कान्ता और शबीना के साथ देखा,तुम्हारी ये हालत मुझसे देखी नही गई क्योकि इससे पहले तुम्हारी जगह मैं खड़ा हुआ था वासना से पीड़ित जलता हुआ उस आग में ,कुछ दिन बाद ही मैंने तुम्हारे पास मैंने ये जादुई लकड़ी देखी थी ,मुझे मेरे गुरु की बात याद आ गई,की जब तुम काबिल बन जाओगे तब मैं तुम्हे ये दूंगा ...मुझे समझ आ गया था की तुम जंगल में किसी से मिले जरूर हो ,मैंने पता किया तो मुझे पता चला वो और कोई नही बल्कि मेरा गुरुभाई और पुराना दोस्त डागा था,शायद उसे ये समझ आ गया था की तुम काबिल हो इस लकड़ी के लिए इसलिए उसने तुम्हे ये दिया,और फिर बाद में तुमने इसका गलत उपयोग किया और ये तुमसे छीन लिया गया ये उसके पास चला गया जिसे इसकी जरूरत थी ,लेकिन तुम्हारे पास ये लकड़ी देख कर मुझे और भी ग्लानि हुई ,मैंने और डागा ने एक साथ ही साधना की शुरवात की थी,उसने अपनी वासनाओ को पीछे छोड़ दिया और इतना आगे निकल गया वही मैं सांसारिक भोगों में ही उलझ कर रह गया था ,मैंने इससे अपने को दूर कर विरक्त जीवन जीने का फैसला किया ..

मैं ये कर पाता तभी मुझे ये भी आभास हुआ की हमारे परिवार पर भी कोई संकट मंडरा रहा है,चन्दू गायब हो चुका था,तुम परेशान थे ,तुम्हारी मा मुझे कोई बात बताती नही थी ,और भैरव का हमारे परिवार में दखल बढ़ गया था ,मन के साफ होने से मुझे ये भी समझ आने लगा था की तुम्हारी माँ और भैरव के बारे में जो मैं सोचता था वो महज मेरा शक था,मेरे मन का कीड़ा था ..

मैं बस मूक दर्शक बनकर देखने लगा,नेहा का प्यार उससे दगा कर चुका था और मैंने उसे भी बस देखने की सलाह दी ..

फिर घटनाएं होते गई मैं बस देखता रहा ,आखिर वो समय आ गया जब मुझे मौका मिला अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होने का ,वसीयत को अमल में लाकर अपने बच्चों को पूरी संपत्ति को सौपने का ,तक मेरे सूत्रों से मुझे विवेक के बारे में पता चला था की वो जिंदा है और भैरव और तुम्हारी मा के संपर्क में है .

मैं जिम्मेदारी से मुक्त तो होना ही चाहता था लेकिन साथ ही साथ मैं अपना ये वजूद मिटाकर नई जिंदगी भी जीना चाहता था,मुझे पता था की विवेक हमारे परिवार और खासकर मेरे खून का प्यासा है इसलिए उसे खत्म करने का भी यही सही समय लगा ,अभी तक जो मैं चुपचाप खेल को होता हुआ देख रहा था मैं अब इसमे अंतिम बार कूदने की सोच ली ..

मैंने नेहा के साथ मिलकर एक प्लान बनाया और एक बड़े एलुजानिस्ट से जाकर मिला ,उसे बताया की कैसे मुझे एक एक्सीडेंट का सीन क्रिएट करना है , जिसमे मैं तो मार जाऊ ऐसा लोगो को लगे और फिर पूरे नियम से मेरा अंतिम संस्कार भी किया जाए लेकिन फिर भी मैं बच जाऊ ..

पूरा प्लान उसने डिजाइन किया ,उसने हिदायत भी दी थी की इसमे मुझे बहुत ही खतरा भी हो सकता है क्योकि मेरे जख्म और ब्लास्ट असली होने वाले थे ,छोटी सी गलती और जान जा सकती थी ,लेकिन मुझे तो मरना ही था..

प्रॉपर्टी तुम्हे सौपने के बाद प्लान के हिसाब से नेहा ने अनुराधा ( माँ) को अपने साथ चलने को राजी किया ..

मैं सिर्फ अपने ही कार को उड़ा सकता था लेकिन इसके बाद शक विवेक पर पूरी तरह से नही जाता और तुम भी शक नही करते ,और कभी अपने माँ के त्याग को नही समझ पाते इसलिए हमने ये प्लान किया था...हमारे साथ हमारे टीम के मेंबर भी थे जिनकी संख्या करीब 30 की थी ,वंहा तुम्हारे आस पास जो लोग भी दिख रहे थे उनमे से अधिकतर उस टीम में था ,ब्लास्ट असली था,तुम्हारी माँ को निकनलने में थोड़ी देरी जरूर हो गई और उसके कारण मुझे भी बुरी तरह से चोट आयी थी ,सांसो की मंद करने की प्रेक्टिस मुझे पहले ही करवा दी गई थी ,इसीतरह ब्लास्ट में मेरा चहरा बुरी तरह से जख्मी हुआ था इसलिए उसे बनाना मेकअप वालो के लिए और भी आसान हो गया था,लाश को उस समय बदाल दिया गया था जब उसे मरचुरी में रखा गया था ..और बस काम खत्म "

वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे

"लेकिन आपके कारण विवेक का कत्ल हो गया "

वो हल्के से हँसे

"वो इसी के लायक था ,उसे नही मारा जाता तो हमारे पूरे परिवार को मार देता,और सबसे पहले तुम्हारी माँ को क्योकि उसे ये लगने लगा था की तुम्हारी माँ और भैरव ने मिलकर उसे धोखा दिया है ,और ये कुछ हद तक सही भी था ,ऐसे विवेक का पता भैरव के लोगो तक हमने ही पहुचाया था .."

"ह्म्म्म लेकिन आपने मुझे ये अब क्यो पता लगने दिया,अब मुझे समझ आ रहा है की कैसे नेहा दीदी ने मेरी मदद की थी माँ से सब कुछ उगलवाने में और फिर जादू वाला खेल दिखाकर आप तक पहुचने में "

इस बात को सुनकर दीदी और पापा दोनो ही मुस्कुराये ..

"वो सिर्फ इसलिए क्योकि अगर तुझे नही बताया जाता तो तू बेवजह ही भटकता रहता ,तुझे आज भी यही लगता की कोई तेरे परिवार का दुश्मन है जिससे सबको खतरा है और अगर खोज बिन करके तुझे कुछ पता भी चल जाता तो भी तू बस निराश ही होता क्योकि उसके लिए तुझे बहुत ही मेहनत करनी पड़ती ,हमने तो तुझे बस मेहनत से बचा लिया…"

मैंने एक गहरी सांस छोड़ी ..

"ह्म्म्म तो अब "

"तो अब ये हमारा अंतिम मिलन है ,ये तू रख ये तेरे लिए है तू अब इसके काबिल हो चुका है और हा जो गलती मैंने अपने जीवन में की वो तू मत करना ,किसी भी वासना के पीछे मत भागना,वो सिर्फ तुझे बहकाएंगी और जो हासिल होगा वो है सिर्फ दुख .."

उन्होंने अपने गले से वो ताबीज निकाल कर मुझे दे दी ..

"लेकिन ये तो आपकी... "मैं कुछ बोल पाता उससे पहले वो बोल उठे

"नही बेटा ये मेरी आखिरी जिम्मेदारी थी ,अब मुझे सन्यास लेना है ,मैं बस इसी दिन के लिए रुका हुआ था ,अब समय आ गया है की मैं पूर्ण सन्यास ले लू और आश्रम छोड़ दु ..जैसे डागा ने छोड़ दिया था ..अब मुझे इसकी कोई जरूरत नही है ,"

बोलते हुए उनका चहरा खिल गया था ,उन्होंने अंतिम बार हमे गले से लगाया और वही से बिना आश्रम गए ही जंगल की ओर निकल गए …….

हम वापस आश्रम में आ चुके थे और गुरु जी की कहे अनुसार प्रसाद लेने पहुच गए ..

हम उनके पास ही बैठे थे...

उन्होंने पास एक मिट्टी के कटोरे में रखी हुई राख उठा ली

दीदी को एक चुटकी राख दी दीदी ने उसे अपने मुह में रख लिया उनकी आंखे बंद हो चुकी थी ,

अब मेरी बारी थी मैंने भी हाथ फैलाये..

"सोच लो इसे खाने से तुम्हारी सारी शक्तियां खत्म हो जाएगी और ये तुम्हारी जादुई लकड़ी भी किसी काम की नही रह जाएगी "

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा

"आप के हाथो से प्रसाद के लिए तो सब मंजूर है "

उन्हें मुझे भी वो प्रसाद दिया और मैंने उसे बड़े ही प्रेम से ग्रहण भी कर लिया ..

प्रसाद मुह में रखते ही मेरी आंखे बंद हो गई ऐसा लगा की मेरे सामने एक फ़िल्म चल गई हो ..

मेरी आंखे अचानक से खुली मेरी आंखों में आंसू थे साथ ही साथ उन साधु की आंखों में भी आंसू थे ,मैं दीदी के पैरो में गिर पड़ा ..मैं खूब रोया खूब रोया ..

वही दीदी ने मेरे कंधे से पकड़कर मुझे उठा लिया और अपने गले से लगा लिया ..

"मुझे माफ कर दो माँ .."

मैंने रोते हुए कहा

"मुझे भी बेटा ,गलती सिर्फ तेरी नही थी मेरी भी थी .."

"आप दोनो को आपके गलती की सजा मिल चुकी है "

साधु की आवाज सुनकर मैंने उस साधु को बड़े ही प्रेम से देखा ..

"भाई ,तुम्हारा लाख लाख शुक्रिया "

वो मुस्कराया ..

"वो जन्म अलग था आप दोनो का ये जन्म अलग है अब उसकी यादों से निकल कर बाहर आइये ,इस जन्म में आपको बहुत सारी जिम्मेदारियों का निर्वाहन करना है ,आप दोनो ही साधक रह चुके हो और कर्म के बंधन को समझते हो आपके कर्म ने आपको इतने दिन दुखी किया ,साधक होंने के बावजूद आपने अपनी सिद्धि का गलत उपयोग किया था अपनी माँ के रूपजाल में फंसकर उन्हें सम्मोहित किया उनके साथ संबंध बनाया ,सम्मोहन का असर टूटने के बाद भी हमारी माँ ने आपको रोका नही बल्कि साथ दिया,दोनो ने अपनी साधना को वासना के चपेट में आकर नष्ट किया था,और वासना से मुक्त होने पर अपनी ग्लानि की वजह से आत्महत्या कर लीया और इसकी सजा के रूप में साधक होते हुए भी एक सामान्य मनुष्य और वैसे ही वासनाओ के लगाव के साथ आप लोगो का जन्म हुआ ,उसी तरह एक ही घर में ,लेकिन इस बार माँ-बेटे की जगह भाई बहन बनकर ,बचपन में दुख भोगकर आपने अपने कर्मो की सजा पा ली वही इन्हें भी इनके पिता ने इनकी इक्छा के विरूद्ध संभोग कर मानसिक दुख दिया वही इनके प्रेम ने इन्हें मानसिक प्रताड़ित किया ...हमारा हर दुख और सुख हमारा ही कमाया हुआ होता है ,इस जन्म का हो या फिर दूसरे जन्मों को लेकिन कर्म का फल तो मिलता ही है ,और जन्हा बुरे कार्मो का फल आप भोग रहे थे वही पिछले जन्म की साधना भी आपके पीछे ही रही ,जन्म सम्पन्न घर में हुआ ,और कर्म का बंधन कट जाने पर साधको के संपर्क में भी आये ,साधको-साधुओं का संपर्क भी पिछले जन्म के साधना से ही मिल पाता है वरना लोग तो उनके साथ रहकर भी साधना से अछूते रह जाते है ,आपको मेरे शिष्य (डागा) का संपर्क हासिल हुआ जिसने पुराने कर्मो को थोड़ा सा जग दिया जिससे आपके अंदर मौजूद सारी शक्तियां जो पहले के जन्मों में कमाई थी वो बाहर आने लगी उन्हें आप पहचानने लगे ,वही इन्हें दूसरे शिष्य (चंदानी) का संपर्क प्राप्त हुआ ,इनके कारण ही उसके मन ने वासना के प्रति अपना रवैया बदला और फिर से साधना की ओर अग्रसर हुआ ,वही ये ही आपके वासना से पीड़ित मन को पवित्रता की ओर ले जाने का कारण बनी ..

जिसके कारण पिछले जन्म में साधना से भटके थे वो इस जन्म में साधना के जन्म लेने का कारण बनी …

मैं इसी कुटिया में आप लोगो का इंतजार करता रहा ,आखिर आप मेरे भाई और माँ है ...मुझे रिश्तो से कोई लगाव नही रह गया है लेकिन मैं एक साधक की साधना को सफल होते देखना चाहता था ,आप लोगो को ये याद दिलाने के लिए जिंदा था की आप कोई सामान्य आत्मा नही है बल्कि पुराने साधक है जो मार्ग से भटक गए …"

"तो क्या हरिया भी "

मैंने कापते हुए आवाज में कहा ,मैं अपनी खुसी को सम्हाल नही पा रहा था ,मेरी आवाज कांप रही थी ..

"हा आप लोगो के संभोग को खिड़की से देखते हुए भी नही रोकने वाला हमारा नॉकर हरिया आज भी वही कर रहा है आपके पालतू टॉमी के रूप में ,उसके पास आप जैसे साधना की कमाई भी नही थी जिससे वो मनुष्य योनि पा सकता "

मैं और माँ (नेहा दीदी) दोनो ही गदगद थे

"अब मेरा काम पूरा हुआ मैं ये शरीर छोड़कर जा सकता हु "

वो मुस्कुराये

"नही ,हमे दीक्षा दिए बिना आप नही जा सकते ,हमे फिर से दीक्षित करो ,हमे फिर से साधक बनाओ "

मेरी बात सुनकर वो मुस्कराए

"अभी नही ,अभी आप इस जन्म की जिम्मेदारियों से मुक्त नही हुए है ,मेरा शिष्य डागा अब साधना के उस मुकाम में पहुच चुका है की आपको फिर से दीक्षित कर साधक बना सकता है ,अब मुझे आज्ञा दे ,आने वाले समय में डागा ही आपके इस जन्म का गुरु होगा "

उन्होंने फिर से आंखे बंद कर ली ,हम तीनो के आंखों में ही पानी था ,एक प्रेम था जो इन्हें अभी तक समाधि में जाने से रोके रखा था उनका काम अब खत्म हो चुका था ,वो समाधि में जा चुके थे इस शरीर को छोड़ चुके थे …

मैंने अपने गले से वो ताबीज निकाल कर उनके चरणों में रख दी क्योकि ये जादुई लकड़ी अब मेरे किसी काम की नही रही थी ..


उस कुटिया से निकलने पर मेरा मन इतना प्रफुल्लित था की मुझे मानो दुनिया की सभी खुशियां मिल गई हो ..

दीदी ने शादी ना करने का फैसला किया और वो भी आश्रम में हमेशा के लिए रहने चली आयी ,वही मैं अपने जीवन का सामान्य तरीके से निर्वाहन करने लगा था ..

बाबा जी (डागा) ने मुझे ,रश्मि और निशा को गृहस्थ साधना के लिए पति पत्नी के रूप में दीक्षित किया ,क्योकि निशा की जिम्मेदारी मुझपर ही थी और इस बात को रश्मि ने भी मान लिया था ,मेरे सम्बन्ध दोनों से ही कायम थे ,वही नेहा दीदी को सन्यास के लिए ..

अब वासना नही बल्कि प्रेम ही रह गया था ,अब जिम्मेदारियां तो थी लेकिन उनका बोझ नही रह गया था,

क्योकि मुझे पता था की मेरा असली ठिकाना कहा है …….


************ समाप्त *********



NOTE- dosto aap logo ne is story ko itana pyar diya iske liye aap sabhi ko bahut bahut dhnaywad ..

Ise padkar jo bhi prashn aapke dimag me aaye kripiya khulkar aur bina kisi jhijhak ke bataye ,main sabhi prashno ka detail se jawab dene ki koshis karunga ..

Abhi jiwan thoda busy chal raha hai isliye jo story likhne wala tha wo nahi likh paa raha hu ek dusari story shuru kar raha hu
 

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