Adultery जादुई लकड़ी(completed)

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अध्याय 47


डॉ के पास से मैं और भी बहुत दुविधा लेकर वापस आया ,एक दुविधा तो ये थी की चन्दू का असली बाप आखिर कौन था..??:?:

और मेरे पिता ने भी शैतान की साधना की थी तो क्या उनके ही खून का असर है की शैतानी वाला पेय पीने के बाद से मेरी पास कुछ अलग तरह की शक्तियां आ गई जैसे आंखों से देखकर किसी लड़की के अंदर के हवस को जगा देना ,और फिर जैसा की समीरा ने कहा मैं अपने पिता से भी शक्तिशाली हु इस मामले में ..वाह ..

लेकिन फिर भी नेहा दीदी पर इसका कोई असर क्यो नही हुआ :?:

मैं सोचता हुआ गाड़ी चला रहा था ,और मैं घर जाने की बजाय सीधे हॉस्पिटल पहुचा ..

मैं डॉ ले सामने बैठा था ..

"चंदानी साहब कैसे आना हुआ आपका "

मैं राज से चंदानी साहब कब बन गया था मुझे खुद को ही पता नही चला ..

"डॉ साहब मैं एक पेशेंट के बारे में पूछने आया हु ,कान्ता ..अभी वो कैसी है "

"ओह वो आपके घर की नॉकरानी..जी शायद मानसिक आघात बहुत ही ज्यादा है कोमा से अभी भी बाहर नही आयी है वो .."

मैंने एक गहरी सांस छोड़ी

"कब तक बाहर आएगी ??"

"कुछ कहा नही जा सकता .."

"ओके.."

मैं वंहा से निकल कर सीधे sp के पास पहुच गया वो भी मुझसे बड़े ही प्यार से मिला

"sp साहब मुझे आपसे एक काम है ,मुझे विवेक अग्निहोत्री के केस की पूरी जानकारी चाहिए ,साथ ही आप DNA मैच करवाइए विवेक के घर से उसके पर्सनल चीजो से जो भी सेमल मिलता है उसका और उस लाश का जिसे विवेक का कहा गया था "

"सर लाश का चहरा पूरी तरह से खराब था तो हमने DNA मैच पहले ही करवा लिया था उसी से कन्फर्म हुआ था की ये विवेक की लाश है "

मैं सर पकड़ कर बैठ गया था की अचानक मेरे दिमाग में एक और बात आयी

"क्या विवेक की बीवी का डीएनए मैच हुआ था .."

"नही लेकिन उसका चहरा तो ठीक था जरूरत ही नही पड़ी पहचानने के लिए "

"ओके एक काम करिए अतुल के घर से उसके कुछ पर्सनल चीजो को कलेक्ट करे और उसका डीएनए विवेक वाले डीएनए से मैच करवाये ,हो न हो मुझे शक है की जिसे हम विवेक की लाश समझ रहे है वो अतुल है और अतुल नही बल्कि विवेक गायब है "

"वाट.."

sp उछाल पड़ा

"ये आप क्यो कह रहे हो ??"

"बस दिमाग में एक बात आयी ,क्योकि ऐसा भी तो हो सकता है ना .."

"हा बिल्कुल हो सकता है क्यो नही "

"तो बस इतना काम मेरा कर दीजिये,और साथ ही विवेक के बॉडी,या कपड़ो में कुछ और मिला हो तो उसका भी जांच करवा लीजिए और एक बार विवेक के घर और जाकर तलाश कीजिये कोई सेम्पल मिल जाए बाल या कुछ भी .."

SP ने एक गहरी सांस ली

"सर ये सब .."

"देखिए सर मेरे लिए ये इम्पोर्टेन्ट है आप बोलो तो ऊपर से परमिशन दिलवा दूंगा या अगर पैसों का कोई मेटर हो तो "

"अरे सर ऐसा कुछ नही है "

लेकिन उसकी बात से मुझे समझ आ गया की वो आनाकानी क्यो कर रहा है ..

"आप फिक्र मत कीजिये ,आपकी मेहनत का पूरा इनाम आपको और आपकी टीम को मिलेगा ,कल ही मैं आपका पहला इनाम आपके पास भेजवाता हु "

"अरे सर आप ये "

वो कुछ बोलता उससे पहले मैं खड़ा हो गया

"आप फिक्र मत कीजिये बात लीक नही होगी .."

मैं मुस्कुराते हुए वंहा से निकल गया और समीर को फोन लगा दिया ..

"समीरा 3 लाख कल सुबह तक sp के पास पहुचा दो "

"ओके बॉस "

समीरा ने मुझे ये भी नही पूछा की किसलिए ,ये बात भी मुझे उसकी अच्छी लगी ….

**********

मैं अपने कमरे में बैठा हुआ छत को ही निहार रहा था ,अगर विवेक जिंदा हुआ तो ..???

तो का जवाब अभी तो एक ही शख्स दे सकता था वो थी माँ ,लेकिन उन्होंने तो पहले ही सब कुछ बता दिया है ,अगर ये विवेक की एक तरफा मोहोब्बत रही हो जैसा की माँ ने बताया था तो मुझे उनके चरित्र पर शक करने का अपराध करना होगा और उसके लिए माँ मुझे कभी माफ नही कर पाएगी ..

दूसरी चीज अगर वो जिंदा हुआ तो कहि ना कहि से तो ऑपरेट कर रहा होगा लेकिन उसतक आखिर पहुँचूँगा कैसे ??

मैं सोच ही रहा था की नेहा दीदी कमरे में आ गई ,मेरे दिमाग का तार फिर से झकार मारने लगा ,आखिर वो ही तो थी जिसपर मेरा जादू बेकार हो गया था …

वो मुस्कुराते हुए मेरे बिस्तर में आकर बैठ गई ..

"कहा खोया है तू ,सभी माँ के साथ बैठे हुए है और तू यंहा अकेले क्या सोच रहा है "

मैंने दीदी को एक बार नजर भर देखा

"अब ऐसे क्या देख रहा है ??"

"देख रहा था की आखिर आपके अंदर क्या है?? "

"मतलब ??"

"मतलब की एक तरफ तो आप मुझे भाई बहन के प्यार का वास्ता दे कर रोकती है वही दूसरी तरफ निकिता दीदी निशा और सना के साथ किये कामो को सपोर्ट भी करती है .."

मेरे सवाल से उनका चहरा गंभीर हो गया था …

"भाई...तूने कभी भाई बहन के प्यार को समझा ही नही ,हमने कभी तुझे बहनो वाला प्यार किया ही नही इसलिए तेरे लिए उनके कोई मायने नही है .."

उनका चहरा उतर सा गया था ..

"ऐसी बात नही है दीदी ,मेरे लिए आज भी निशा और निकिता दी मेरी बहने है "

उसके चहरे में एक व्यंगात्मक सी मुस्कान आ गई

"इसमे प्यार काम और हवस ज्यादा है "

"मुझे तो बस प्यार ही लगता है "

"क्योकि तुझे प्यार की समझ ही नही है "

मैं एकटक उन्हें ही देख रहा था हमारी नजर मिली और मैंने वही किया जिसका मैं आदि हो गया था ..

लेकिन उन्होंने तुरंत ही अपनी नजरे मुझसे हटा ली ..

"तू मेरे साथ वो नही कर सकता जो बाकियों के साथ करता है "

उनके आवाज में दुख था साथ ही आंखों में पानी ,मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ ..

"माफ कर दो दीदी लेकिन ..लेकिन ये मेरी आदत में शामिल हो चुकी है "

"तू हवस की पूजा करने लगा है राज प्रेम की नही "

उनकी बात में एक अजीब सा दर्द था …

"ये आप क्या बोल रही हो दीदी "

"हाँ राज ,निशा तक ठीक था वो तो तुझसे प्यार करती थी ,भाई बहन के रिश्ते से अलग प्यार था उसका ,लेकिन फिर निकिता दीदी के साथ ,जब मुझे ये बात पता चली तो मेरा आपा खो गया मैं सीधे निकिता दीदी के पास पहुच गई और उन्होंने मुझे कहा की तूने उनकी आंखों में देखा और पता नही उसके बाद उन्हें क्या हुआ वो खुद को सम्हाल नही पाई ,और फिर उन्होंने मुझे ये भी बताया की तू सेक्स के मामले में कैसा है ,मतलब की तू एक से संतुष्ट भी नही होता ...मुझे हमारे पापा की याद आ गई ,मैने उनके बारे में ये सुन रखा था की वो किसी लड़की को देख ले तो लड़की कैसी भी हो उनकी ओर आकर्षित हो जाती है ,और वो भी एक से संतुष्ट नही होते थे...मैं नही चाहती की मैं भी तेरी हवस का शिकार हो जाओ इसलिए जब भी तू ऐसा करने लगता है मैं अपनी आंखे हटा लेती हु ,क्योकि मुझे भी कुछ कुछ सा होने लगता है "

उनकी आंखों में पानी आ गया था ,उनके इस बात ने मुझे अंदर तक झंझोर कर रख दिया ,वो मेरे हवस का शिकार नही होना चाहती थी ,मतलब की निशा ,निकिता दीदी और सना मेरी हवस का शिकार है,क्या मैं एक शैतान बन रहा हु …

"तो आप उनका साथ क्यो देती हो उन्हें क्यो नही कहती की वो मुझसे अलग हो जाए "

दीदी हल्के से मुस्कुराई कितना दुख था उस मुस्कुराहट में ..

"क्योकि तू उनकी आदत बन गया है,अब पीछे जाना बहुत मुश्किल है राज ,एक बार जो हवस के गर्त में गिरा वो फिर गिरता ही जाता है ,क्या तू खुद को उनसे दूर रख सकता है ,क्या तुझे नई नई लडकिया नही चाहिए ..तू खुद से पूछ और मुझे जवाब दे .ताकत का इस्तमाल तूने गलत किया अब इसकी सजा भी भुगत "

वो उठकर जाने लगी लेकिन मैंने तुरंत ही उनका हाथ पकड़ लिया ..

इस बार मेरे आंखों में भी आंसू थे ,मेरा दिल टूट सा चुका था ..

"नही दीदी आप इस हालत में मुझे छोड़कर नही जा सकती .."

मेरे अंदर कुछ मुझे ही अपने किये पर धिक्कार रहा था ,मैंने ये क्या कर दिया था ..शायद कुछ बहुत ही गलत जिसका मुझे आभास भी नही था ..

लेकिन मेरे आंखों का पानी नेहा दीदी को वंहा रुकने पर मजबूर कर गया था ..वो मेरे पास बैठी और मेरे बालो को सहलाने लगी ,

मैं उनके सीने से जा लगा ,ये अलग ही अहसास था ,उनकी छतिया आज मेरे लिए किसी हवस का पर्याय नही थी ,वो आज मेरे लिए ममता की मूरत सी थी ..

मैं उनके छातियों के तकिए को सिहराना बना उन्हें जकड़ा हुआ था ..

वो प्रेम से मेरे बालो को सहला रही थी ,मेरे नयन गीले थे उनके नयन भी गीले थे ..वो सिसक रही थी ना जाने क्यो,मैं सिसक रहा था उनके इस प्रेम को देखकर ..

"भाई ये कोई बीमारी नही जिसका कोई इलाज हो ,ये ताकत है जिसका उपयोग किया जाता है ,लेकिन कहा उपयोग करना है ये इसे सही या गलत बनाता है ,तूने जो भी किया वो कर दिया लेकिन रुक जा भाई ,लड़की का जिस्म सिर्फ हवस के लिए नही होता ,ये प्रेम के लिए भी हो सकता है ,ये ममता में डूबा हुआ भी हो सकता है..ये तेरी बहन का भी हो सकता है भाई "

वो फफक कर रो पड़ी थी ,ना जाने कितना दर्द था जो वो इतने दिनों से दबाये हुए थी ...सब आंसुओ के जरिये बाहर आ रहा था ..

"दीदी लेकिन क्या मैंने पाप किया है ..??"

"कैसे इसे मैं पाप कह दु ..और कैसे कह दु की ये सब सही था ,मैं दोनो ही नही कह सकती ,पाप ये तब होता जब तूने जबरदस्ती की होती ,और सही ये तब होता जब तूने रिश्तो की लाज रखी होती ...तेरे लिए तेरी बहने क्या मात्रा लड़की का जिस्म भर है ??"

"नही दीदी ऐसा मत कहो ,मैं अभी बच्चा हु मुझे इन चीजो की कोई समझ नही है ,मैं तो बस अपने दिल की सुनता रहा पता ही नही चला की ये सब कैसे हो गया …"

मुझे आज पहली बार किसी ने मेरी गलती का अहसास दिलाया था ,मैं फफक रहा था किसी छोटे बच्चे की तरह ,और दीदी मुझे प्यार कर रही थी किसी माँ की तरह ..

"चुप हो जा मुझे पता है की तूने ये जानबूझ कर नही किया,लेकिन जो हुआ उसमे हमारी भी तो गलती थी ,काश हमने तुझे पहले ही समझा देती के बहन और भाई में प्यार कैसा होता है ,ये जिस्म का प्यार नही होता ये रिश्तो का प्यार होता है,हम तुझे कभी प्यार दे ही नही पाए तुझे शायद इसलिए तूने प्यार का मतलब ही गलत समझ लिया "

वो सिसकते हुए बोली

"तो आप समझाओ ना उस प्यार का मतलब "

मैंने अपना सर ऊंचा किया और उनके मासूम से चहरे को देखने लगा जिसमे अभी अभी एक मुस्कान आई थी ..

उन्होने प्यार से मेरे गालो को सहलाया

"ये समझाया नही जाता ,इसे फील किया जाता है ,तू सोच की तू रोया क्यो..?? क्योकि तुझे आज भी अपनी बहनो से प्यार है इसी प्यार को ढूंढ तुझे समझ आ जाएगा की प्रेम का अहसास क्या होता है ,बिना जिस्म को भोगे भी तो प्रेम किया जाता है ना ..उस प्रेम का अहसास समझ भाई ,तेरे अंदर अच्छाई अभी भी है तू समझ जाएगा मेरी बात …"

उनकी मासूम होठो से इतने बड़े शब्द मुझे बड़े ही प्यारे लग रहे थे,मेरा मन हुआ की मैं उनके होठो को चुम लू..

"मुझे अभी आपके होठो को चूमने का मन कर रहा है वो सच में बहुत ही प्यारे लग रहे है "

मैंने मासूमियत से कहा लेकिन मेरी बात सुनकर वो जोरो से हँस पड़ी ,फिर अचानक ही गंभीर भी हो गई

"बिना होठो को चूमे भी तो प्यार जताया जा सकता है ना "

"दिल से ...तुझे कुछ पाने की आश है तू बस अपने बारे में सोच रहा है ,प्यार भी एक एनर्जी की तरह है वो फ्लो हो रही है अब तुझे मेरे होठो को चूमने से शांति मिलेगी ,तू अपना प्यार जाता पायेगा तुझे ऐसा लग रहा है लेकिन वही प्यार तू मेरे माथे को चूमकर भी तो जाता सकता है .."

मैंने झट से उनके माथे को चुम लिया ..

हा वही अहसास था बिना किसी जिस्मानी तमन्ना के ..

"कुछ समझ आया "

उन्होंने पूछा

"सिख जाऊंगा धीरे धीरे "

मैंने मुस्कराते हुए कहा

"गुड …चलो मैं चलती हु माँ के पास .."

"लेकिन दीदी निकिता और निशा का क्या "

वो फिर से हंसी

"बेटा खुद तो चुका है अब निभा उसे "उन्होंने प्यार से मेरे सर पर अपना हाथ फेरा और वंहा से निकल गई …

मैंने टॉमी को देखा जिसे देखकर लग रहा था की सला मुझपर हँस रहा हो ..

"यार टॉमी दीदी सही कह रही थी ,अब मुझे तुझसे भी प्यार है इसका मतलब तुझे चोद थोड़े दूंगा "

टॉमी उठ खड़ा हुआ और

"भो भो भो"वो गुस्से में गुर्राया ...जिसे देखकर मैं जोरो से हँस पड़ा ….
 
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अध्याय 48

मन प्रसन्न था ,दिल खुस था ,उमंगे भी जोरो में थी लेकिन हवस की नही बल्कि प्रेम की ,अभी अभी मैंने अपने अंदर के प्रेम को समझा था ,

नेहा दीदी की बातो को याद कर मेरे शरीर में एक अजीब सी सिहराना दौड़ रही थी ,

तभी निशा आयी मैं अपने बिस्तर में लेटा हुआ नीचे लेटे टॉमी से गुफ्तगुह कर रहा था ..

"बड़े खुश दिख रहे हो भाई बात क्या है "

निशा मेरे बाजू में आकर बैठ गयी ,

"क्या कहु जानेमन कुछ मिल सा गया है "

मैं उसके गालो में एक किस कर बिस्तर में ढेर हो गया

"क्या?"

वो भी मेरे सीने में अपने सीने को टिकाकर सो गई

"प्यार .."

"वाट...रश्मि से बात हुई क्या आपकी ?:?:"
"नही नेहा दीदी से "

"वाट" उसे जैसे किसी ने करेंट मार दिया था वो झटके उसे उठ खड़ी हुई

"आपको नेहा दीदी से प्यार हो गया "उसके चहरे में एक नाराजगी भी झलक रही थी

"अरे मैं तो मेरी सभी बहनो से प्यार करता हु ,बस नेहा दीदी ने मुझे प्रेम का मतलब बता दिया .."

उसने मुझे अजीब नजरो से घूरा ..

"कैसा मतलब "

"की प्रेम में हवस की कोई जगह नही होती "

"तो ये क्या आपको पता नही था "

अब वो नार्मल हो चुकी थी और फिर से आकर मेरे बाहों में समा गयी

"पता था लेकिन, महसूस नही किया था ,अब देख ना हम दोनो प्यार के नाम पर क्या क्या करते है "

वो फिर से उठ कर बैठ गई

"आप कहना क्या चाहते हो हमारे बीच प्यार नही है ??"

इसबार वो नाराज नही बल्कि गुस्सा थी ..

"अरे वो बात नही है लेकिन प्यार तो और भी बड़ी चीज होती है ना .."

"अच्छा...नेहा दीदी ने लगता है कुछ ज्यादा ही ज्ञान दे दिया है ,प्यार को समझने चले हो ,हु .."

उसने अपना मुखड़ा ही मोड़ लिया

"अब तुझे क्या हुआ ??"

"प्यार समझने की नही महसूस करने की चीज होती है ,मुझे अपनी बांहो में प्यार का अहसास होता है ,जब आप मेरे होठो में अपने होठो को रखते हो तब मुझे लगता है की लगता है की पूरी कायनात ही मेरी हो गई ,जब आप मुझे प्यार की गहराई में डूबकर मुझमे समा जाते हो तो लगता है …..तो लगता है की मैं बस आपकी हु ,आपके लिए ही बनी हु,मेरा होना सफल हो गया "

उसकी आंखों में आंसू थे और मैं हस्तप्रद ,प्यार के ये दो रंग मैंने जो आज देखे थे मैं बिल्कुल ही अचंभित सा हो गया था ,नेहा दीदी ने कहा की प्यार अहसास है लेकिन जरूरी नही की जिस्म का मिलन हो वही निशा ने जिस्म के मिलने से होने वाले प्रेम के अहसास का वर्णन कर दिया ,दोनो में सही क्या था ???

मेरे ख्याल से दोनो ही सही थे ,कही न कहि मुझे ही समझने में कोई गलती हुई …

मेरी हालत देखकर वो मेरे पास आयी और मेरे गालो को प्यार से सहलाया ..

"भाई तुम इतना क्यो सोच रहे हो ,इतना समझो की प्यार तो अहसास ही है लेकिन उसे जताने का तरीका अलग अलग होता है ,कहि छूकर तो कही किस करके ,कई एक दूसरे में डूबकर(सेक्स) तो कही बिना कुछ कहे ही बस देखकर ,कहि बस बिना कुछ किये ही प्यार जता दिया जाता है ,तो इन सब की सोचकर क्यो दिमाग खराब कर रहे हो ,जस्ट चील "

वो मेरे बांहो में फिर से समा गई थी ,मेरे जीवन में ऐसे भी बहुत सी आफ़ते थी मैं अब इन बातो को सोचकर। चिंता में नही पडना चाहता था ….

मैंने बस इतना समझा की दोनो ही अपने जगह पर सही थे बात खत्म …

*********

दूसरे दिन जब मैं ऑफिस गया तो केबिन के बाहर एक सवाली सी ,पतली दुबली सी औरत बैठी हुई मिली ,मांग में गढ़ा सिंदूर था और चहरे में जीवन का दुख झूल रहा था ,चहरे से तो सुंदर थी लेकिन कपड़ो से गरीबी झलक रही थी ,हाथ में एक फाइल लिए केबिन के बाहर सॉफ़्रे में बैठी हुई थी ,मुझे देखते ही मेरे चपरासी ने उसे कुछ इशारा किया और वो हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई …

मुझे ये थोड़ा अटपटा सा लगा मैं रुक गया ..

"जी.."

"साहब मैं आरती वर्मा ,..अतुल वर्मा की बीबी ,वो आपके एक आदमी ने मुझे कहा था की आपसे मिल लू नॉकरी के लिए "

मुझे डॉ साहब की बात याद आ गई ..

"ओह हा आइये अंदर आइए .."

वो मेरे साथ अंदर आ गई ,समीरा अभी वही मौजूद थी ,उसने आरती को प्रश्नवाचक नजर से देखा ..

"तो कहा तक पढ़ी है आप "

"जी मैंने तो 12वी पढ़कर छोड़ दिया "

"ये कौन है राज ?? रिक्रूटमेंट का काम तुम्हारा नही है वो भी 12वी वाले का "

समीरा ने मुझे मेरी पोजिशन के बारे में बताया लेकिन मैंने उसे इशारे से चुप करवा दिया

"ये थोड़ा अलग मामला है ,डोंट वारी "

समीरा जैसे सब समझ गई हो वो चुप हो गई

"तो क्या काम कर लेंगी आप "

"साहब आप जो भी बोलो "आरती की स्तिथि देखकर ही लग रहा था की बेचारी किस दौर से गुजर रही होगी ..

मैंने समीरा की ओर देखा

"इनके लायक कोई काम है हमारे पास "

"बहुत है ,चाय वगेरह बना देगी ,या साफ सफाई "

समीरा के आवाज में ही उसका प्रोफेसनल एटीट्यूड झलक रहा था ..

"नही यार कुछ और बताओ "

मुझे इतना छोटा काम उसे देंना सही नही लगा

"अपनी सेकेट्री ही बना लो "

इस बार पता नही लेकिन सामीरा के आवाज में थोडा गुस्सा था ,मुझे उसपर थोड़ी हंसी आयी क्योकि वो नाराजगी जलन की थी ,जबकि सामीरा और आरती के सटेट्स में बहुत ही ज्यादा फर्क था ..और मैं सचमे थोड़ा हँस पड़ा ..

"अकाउंट का काम कर लेंगी आप "

मैंने आरती की ओर देखा ,उसे शायद यकीन नही आया की मैं उसे थोड़ा डिसेंट टाइप का जॉब दे रहा हु ,वो कुछ बिना बोले ही मुझे घूर रही थी ..

"मतलब थोड़ा गणित से संबंधित "

"जी सर मैंने 12 आर्ट से किया है "

अब मैं हेल्पलेस था मेरी समझ में उसके लिए कोई काम नही आ रहा था और जो आ रहा था वो मैं उसे देना नही चाहता था ,मैं उसे बिना जताए उसपर थोड़ा ज्यादा अहसान करना चाहता था ताकि मेरा कुछ ऐसा काम भी वो कर दे जो मुझे उससे चाहिए था ,मलतब कुछ जानकारियां …

मैं फिर से सामीरा की ओर देखने लगा ,जैसे कह रहा हु हेल्प मि ..

वो समझ गई थी आखिर वो बहुत ही बेहतरीन सेकेट्री जो थी ..

"एक काम कीजिये आरती जी आप थोड़ी देर बाहर बैठिए मुझे बॉस से कुछ बाते करनी है "समीरा की इस बात से आरती थोड़ी डर गई ,क्योकि मुझे पता था की उसे इस जॉब की कितनी जरूरत है ,मैंने आंखों से ही उसे आश्वासन दिया और वो बाहर चली गई ..

"आखिर बात क्या है राज ..मुझे समझ नही आ रहा की तुम इस औरत पर इतना मेहरबान क्यो हो रहे हो "

अब मेरे दिमाग में एक चीज थी की क्या मैं इसे बताऊ या नही ...लेकिन मैंने सामीरा पर भरोसा किया ..

"ये अतुल वर्मा की बीबी है ,विवेक अग्निहोत्री के पास इसका पति काम करता था और अब विवेक और उसके वाईफ के मर्डर का प्राइम सस्पेक्ट है ,अतुल अपने घर का इकलौता कमाने वाला था ,और वो गायब है कई महीनों से तो सोचो घर की हालत क्या होगी ,एक बूढ़ी मा,बीबी और बच्चे ,सम्हलना भी तो पड़ता है ना यार "

"तुम एक मर्डर करने वाले के परिवार की चिंता कर रहे हो "

"अभी क्लियर नही हुआ है की उसी ने मर्डर किया ,और किया भी हो तो इन बेचारों की क्या गलती है "

मेरी बार सुनकर समीरा ने एक गहरी सांस ली

"ओके ,तो कोई छोटी मोटी जॉब दे दो ना ,इसमे इतना सोचने की क्या जरूरत "

इस बार गहरी सांस लेने की बारी मेरी थी ..

"यार इस औरत को देखो ,इसका पति एक अच्छे काम में था अच्छा कमाता भी था,इस बेचारी से मैं बर्तन धुलवाउ अच्छा लगेगा "

समीरा ने एक बार मुझे घूर कर देखा

"मुझे पता था ,तुम इसकी लेना चाहते हो है ना,वो वैसे काम करेगी फिर भी उसकी दिला दूंगी तुम्हे खुश "

उसकी बात सुनकर मुझे जोरो से गुस्सा आया ..

"पागल हो गई हो क्या "

"क्यों नही वो भी जवान है अभी ,और क्या पता तुम्हे भी अपने उम्र से बड़ी लड़कियों का शौक हो जैसा आजकल के लड़को के होता है "

"यार लेकिन मेरे पास तो तुम होही ना "

"एक से कहा दिल भरता है राज बाबु ,"उसने बड़े ही फिल्मी स्टाइल से कहा जिससे मुझे हंसी आ गई ,मैंने उसके कंधे को पकड़ कर उसे एक कुर्सी में बिठा दिया ..

"मेरी बात ध्यान से सुन ,मुझे जिसकी लेनी होगी मैं ले लूंगा,मुझे कोई नही रोक सकता ,ये बात तुम भी जानती हो है ना "

हा वो ये बात जानती थी इसलिए उसने हा में सर हिलाया …

"अब रही आरती की बात तो पता नही दिल से आवाज आ रही है की ये कुछ बड़े काम के लिए बनी है ,और साथ ही राज की बात ये भी है की मुझे लगता है की उसका पति कातिल नही है उसे कोईं फंसा रहा है साथ ही ये भी की उसका कत्ल हो चुका है,और उसका कातिल ही मेरे पिता का कातिल भी है ...अब बात समझ में आयी की उसके लिए मेरे दिल में इतनी हमदर्दी क्यो हो रही है "

मेरी बात सुनकर समीरा ने एक गहरी सांस ली ..

"ह्म्म्म तो ये बाते है ,इसलिए तुमने SP को पैसा भेजवाया था ...ठीक है ,मेरे पास इसके लिए एक काम है लेकिन .."

"लेकिन क्या ??"

"देखो मुझे लोगो की परख है और मैं इस औरत को देख कर ही बात सकती हु की इसमे क्या काबिलयत है ,इसलिए मुझे इससे जलन सी हो गई "

इस बार मैं आश्चर्य में पड़ गया

"मतलब ??"

"मतलब की तुम अगर मुझे फ्री हैंड दो तो मैं इसे ग्रूम कर सकती हु ,इसे वो बना सकती हु जो मैं हु "

"मतलब" मुझे अभी भी समझ नही आया ,और समीरा जोरो से हंसी

"मतलब बुद्धू मैं इसे बना सकती हु ,हर मर्ज की दवा,जैसे तुम्हारे पिता ने मुझे बनाया था ,एकदम पर्सनल सेकेट्री वाला मटेरियल …"

मैं बस उसे देखता ही रहा क्योकि मुझे अभी तक समीरा की असली काबिलियत का पता ही नही था,बस मुझे इतना पता था की उसे जो बोलो तो झट से कर देती है ..मेरी हर बात को बिना बोले भी समझ जाती है ,इसलिए मैंने बस हा में सर हिलाया ..

"ओके उसे बुलाओ "

समीरा के कहने पर मैंने फोन घुमाया और आरती फिर से मेरे सामने आकर खड़ी हो गई

"ओके आरती हमने फैसला कर लिया है की तुम्हे क्या काम करना है "

"जी.."

"तुम आज से ट्रेनी हो ,समीरा के अंदर "

"जी.." आरती को कुछ भी समझ नही आया,असल में मुझे भी समझ नही आ रहा था लेकिन ठीक है

"मतलब समझने की जरूरत नही है ,तुम मेरे साथ काम करोगी,चलो मेरे साथ "समीरा ने आदेश दिया और आरती चुप चाप उसके पीछे जाने लगी …….

 
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अध्याय 49


अभी दो ही दिन हुए थे की SP साहब का फोन आ गया ,और उन्होंने जो कहा उससे मेरे होठो में एक मुस्कान आ गई ,मैंने तुरंत ही डॉ चूतिया को फोन लगा दिया ..और सारी बात बता दी ..

अभी एक ही घण्टे हुए थे की मैं ,डॉ साहब और काजल SP ऑफिस में मौजूद थे…

"वेलडन मिश्रा (SP) तुमने बहुत अच्छा काम किया "

डॉ ने उसे देखकर कहा

"अरे डॉ साहब वो तो चंदानी सर का आईडिया था ,हमने तो बस उन्हें फॉलो किया "

"हम्म "

"तो डिटेल से समझे "काजल बोल उठी ..

"बिल्कुल बिल्कुल "SP मिश्रा ने बोलना शुरू किया ..

"जैसा की चंदानी साहब(राज चंदानी) ने कहा था ,पहले हम अतुल वर्मा के घर जाकर उसके पर्सनल सेम्पल लिया ,उसके बालो के कुछ नमूने हमे उसके घर की ड्रेसिंग में मिल गए थे ,घर वालो को अब भी लग रहा है की उनका बेटा वापस आ जाएगा इसलिए कोई भी समान जलाया या फेक नही गया है इसका हमे फायदा मिला ,उस सेम्पल के डीएनए को लाश के डीएनए से मिलाया गया और ….दोनो मिल रहे थे "

sp की बात सुनकर हम सबके चहरे में चमक आ गई ,वो बोलता गया ..

"ऐसे ही हम विवेक अग्निहोत्री के घर फिर से गए और उनकी पर्सनल चीजे इकठ्ठे की ,पिछली बार जो सैम्पल्स हमे मिले थे हमने उनके अलावा कुछ इकठ्ठा करने की सोची,पिछले बार हमने उनके बेडरूम से बाल के सेम्पल लिए थे ,जो की सबसे आसानी से मिल जाते है ,उससे ही हमने काम चला लिया था लेकिन इस बार नए सिरे से जांच की और कुछ बेडरूम के बिस्तर से बाल इकठ्ठे करवाये,साथ ही कुछ बाथरूम से ,साथ ही कुछ उनके ऑफिस से हमे नाखून और बल मिले …

सबकी जांच करवाई गई और कामाल हो गया ,कुछ तो लाश से मिलते थे कुछ ,विवेक की बीबी से और कुछ किसे भी भी नही ……"

"मलतब की अतुल का सेम्पल प्लाट क्या गया था विवेक के घर "डॉ बोल उठे ,लेकिन फिर मैंने उनके सवाल का जवाब दिया

"सिर्फ इतना ही नही ,इससे ये भी साबित होता है की अतुल उनके घर और ऑफिस में आया जाय करता था "

"गवाहों ने तो ये पहले ही कह दिया था की अतुल के संबंध विवेक की बीवी से थे ,ऐसा शक तो सभी को था ही ,तो इसमे आश्चर्य की बात नही है "मिश्रा बोल उठा ,और हम सबने अपना सर हिलाया ..

"तो जो लास्ट काम मैंने कहा था "मैंने मिश्रा को देखते हुए कहा

"बस सर वही आ रहा हु ,तो लास्ट में हमने विवेक के बीबी के पास से मिले समान में ढूंढना शुरू किया और उसके रिस्टवाच में हमे खून के कुछ धब्बे मिल ही गए ,कपड़ो में लगा खून उसकी बीबी का था क्योकि उसे जिस तरह से मारा गया था उसके कपड़े में उसका खून लगा हुआ मिला था हमे ,लेकिन रिस्टवाच वाला खून नया था ,मतलब कातिल और वो था ...विवेक अग्निहोत्री .."

"ये हुई ना बात "डॉ खुशी से उछाल गया

"मतलब लाश अतुल की है और गायब है विवेक अग्निहोत्री साहब "मैंने मुस्कुराते हुए कहा

"बिल्कुल सर .."मिश्रा ने भी हा में सर हिलाया ..

"तो उसके परिवार को खबर कर दीजिये ,बेचारों पर क्या गुजरेगी "

मैंने सहानुभूति दिखाई

"कर दिया है सर .."मिश्रा जी बोले ..

थोड़ी देर शांति छाई रही तभी काजल ने मुह खोला

"विवेक बहुत ही चालक इंसान था ,अब ये तो पता चल गया है की वो था लेकिन अब सवाल ये है क्यो,और अभी वो कहा है ,जिसतरह से उसने पूरे काम को अंजाम दिया वो कुछ समझ के परे है "

डॉ और मेरी आंखे मिली हम कुछ चीजे आपस में शेयर तो करना चाहते थे लेकिन मिश्रा के सामने नही ..तो हमने वंहा से विदा लिया और डॉ के ऑफिस चले गए ..

हम तीनो डॉ के केबिन में बैठे हुए थे ..

"बोलो राज तुम्हे क्या कहना था "डॉ ने उस समय मेरे आंखों का इशारा समझ लिया था ..

"सर मैं एक बार विवेक से मिला था जब उसका कत्ल हुआ बस उसी समय,उससे मेरी कुछ बाते भी हुई थी ,उसने काजल के बारे में भी बताया था की वो ही है जिसने तुम्हे काल करने को कहा ,अब बात समझ आ रही है ,असल में वो ही था जिसने काजल को हायर किया था ,उसने ही चन्दू की माँ को मेरे घर भेजा था ,"

"मतलब की चन्दू का पिता भी वही होगा.."

डॉ ने कहा ..

"बिल्कुल ,और उसे ये बात पता था की वसीयत के अनुसार जयजात रतन चंदानी के बेटे के पास जाएगी ,जो की चन्दू नही था लेकिन रतन चंदानी को तो यही लग रहा था की चन्दू उसका ही बेटा है और सना उसकी बेटी है …"काजल ने कहा

हम सब कुछ सोच में पड़े थे सारी बाते ओस की तरह साफ हो गई थी ..और माने कहना शुरू किया

"विवेक को वसीयत का पता था ,लेकिन पिता जी को नही ना ही माँ को ना ही किसी और को ,और उसे मेरे पिता के बारे में भी पता था की वो कितने बड़े ऐय्याश है ,इसलिए उसने दो औरतो शबीना और कान्ता को हमारे घर पिता जी के पास भेज दिया ,लेकिन कान्ता और शायद शबीना भी पहले ही उसकी रंडिया थी ,शायद उस समय कान्ता प्रैग्नेंट थी और उसके पेट में विवेक का ही बीज था ,लेकिन विवेक और कान्ता ने पिता जी को धोखे में रखा और पूरा खेल खेलते रहे ,पिता जी को लगता रहा की चन्दू और सना उनकी ही पाप का नतीजा थी और इसलिए उन्होंने उन्हें अपने बच्चों की तरह पाला भी,जब मैं बड़ा होता गया तो उन्हें ये यकीन हो गया की मुझसे कुछ नही होने वाला ,मैं निहायती निकम्मा इंसान हु और उन्हें मुझसे कोई ही खतरा नही होने वाला था ,चन्दू ने नेहा दीदी को फंसा लिया और निशा के जरिये मुझे घर से निकलवाने का भी पूरा प्लान तैयार कर लिया ,तब तक चन्दू को भी लगता था की वो भी मेरे पिता की ही औलाद है ,तो उसने भी सभी कुछ खुसी खुसी किया होगा,पूरी कहानी उनके ही हिसाब से चल रही थी ,लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आ गया जब मैं जंगल में गुम गया,सभी और खुश हुए होंगे की रास्ते का कांटा निकल गया लेकिन जब मैं वापस आया …….

मैं वो राज नही रहा था जो वंहा से गया था ,ये उनके लिए खतरे की घंटी थी ,मेरे आने के तुरंत ही बाद काजल को मेडम बना कर प्लांट कर दिया गया,और शायद काजल के ही जरिये उन्हें ये भी समझ आने लगा की मैं कोई साधारण प्रतिभा का नही बल्कि असाधारण प्रतिभा का धनी हु,जिससे निपटना बहुत ही मुश्किल होने वाला है..

विवेक से एक गलती हो गई की उसने पिता जी को वसीयत के बारे में बता दिया था,पिता जी भी चन्दू को अपना वारिस घोसित करने की सोच रहे थे क्योकि मैं तो नालायक भी था और साथ ही गायब भी ,चन्दू ने माँ और नेहा को अपने तरफ तो कर ही लिया था ,लेकिन ये विवेक की गलती हो गई क्योकि मैं वापस आ चुका था वो भी तैयार हो कर ..

...अब चन्दू आसानी से जयजात हासिल नही कर सकता था क्योकि मैं डीएनए टेस्ट की मांग करता,और उसका झूठ सामने आ जाता इसलिए उन्होंने चन्दू को ही गायब कर दिया ताकि पहले मुझे रास्ते से हटाया जा सके,.लेकिन इससे मैं और भी एक्टिव हो गया था ,विवेक की मुश्किले बढ़ सकती थी इसलिए उसने खुद को भी गायब कर दिया ,और एक तीर से दो शिकार करते हुए उसने खुद के जगह अपने बीबी के आशिक अतुल को ठिकाना लगा दिया और फिर अतुल की ही आड़ लेकर अपनी बीबी को भी ,और वो चला गया पर्दे के पीछे ,वही से वो अपना गेम खेलता रहा लेकिन चन्दू भी छटपटाया होगा,आखिर उसे भी तो पैसे की लालच थी ,लेकिन तब उसे पता चला होगा की आखिर उसे वंहा से क्यो निकाला गया है ,क्योकि वो रतन चंदानी का बेटा नही है ,अब वो किसका बेटा है ये बात पता नही उसे पता थी की नही ,क्योकि मारने से पहले उसने ये नही बताया था की वो किसका बेटा है ,लेकिन इस बात से चन्दू जरूर टूट गया होगा,वो नए ऑप्शन की तलाश में हाथ पैर मारने लगा होगा लेकिन उसके हाथ पैर तो बांध दिए गए थे ,फिर उसे आशा की किरण दिखी अघोरी के रूप में और यही विवेक की सबसे बड़ी हार हो गई ,क्योकि अघोरी के चक्कर में फंसकर चन्दू ने विवेक के सबसे बड़े हथियार काजल को भी उससे अलग कर दिया,मुझे ये बता दिया की वो चंदानी का बेटा नही है ,और खुद भी मर गया और साथ ही कान्ता और शबीना को भी ले डूबा,इतना होने के बाद विवेक बौखलाया तो जरूर होगा लेकिन कर वो कुछ भी नही सकता था ,लेकिन जिस चीज को पाने के लिए उसने इतना मेहनत किया उसे वो आखिर ऐसे ही कैसे जाने दे सकता था इसलिए उसने एक अटैक करवाया ,ताकि उसके सभी दुश्मन एक साथ मारे जा सके ...लेकिन उसमे भी सभी बच गए ,सिर्फ मा की वजह से .."

इतना बोलकर मैंने गहरी सांस ली सभी मेरे बात को ध्यान से सुन रहे थे ,की डॉ बोला

"माँ की वजह से मतलब …"डॉ मेरी बात को समझ चुके थे

"जी सर विवेक भी मेरी माँ का प्रेमी था लेकिन उनका प्यार एकतरफा ही था "

"ह्म्म्म इसका मतलब की कही न कहि विवेक के मन में उनके लिए प्रेम आज भी है "डॉ की बात सुनकर मैंने हा में गर्दन हिलाई वही काजल बोल उठी ..

"इसका एक और भी तो मतलब हो सकता है "

हम सभी चौके ..

"क्या??"
"यही की इसका मतलब ये ही हो सकता है की विवेक के मन में अभी भी तुम्हारी माँ से कुछ पाने की आशा हो .."

इस बार मैंने काजल को गुस्से से देखा लेकिन उसके पॉइंट में दम तो था ..

"हा ये भी हो सकता है लेकिन क्या ??"

मेरी आवाज में एक दुख सा आ गया था

"विवेक और उसका पिता तुम्हारे परिवार के पुराने वकील थे राज ..कोई भी बात हो सकती है जो तुम नही जानते,ऐसी कोई वसीयत या और कुछ क्या पता ??"डॉ ने चिंता जाहिर की

"तो अगर है तो वो आज भी हमारे लिए मुसीबत है ,उसे ढूंढना ही होगा "

"बिल्कुल और ना सिर्फ ढूंढना होगा बल्कि खत्म करना होगा ,वरना वो कल आकर तुम्हारी सबसे बड़ी मुसीबत बन सकता है "

डॉ ने मुस्कुराते हुए कहा ,लेकिन मैं कोई हत्यारा तो नही था ,मैं कैसे किसी को मार सकता था ..मेरी खमोशी को आखिर डॉ ने समझ ही लिया ..

"राज तुम फिक्र मत करो वो हमारे जैसे प्रोफेसनल लोगो का काम है ,अभी तक हमे नही पता था की किसे ढूंढना है लेकिन अब,अब हमे पता है की किसे ढूंढना है तो हम उसे ढूंढ लेंगे ,पुलिस भी अपना काम करेगी ,बस आशा करो की पुलिस को मिलने से पहले तो हमे मिल जाए और अब तुम्हारा चेक काटने का टाइम आ गया है "

डॉ ने मुस्कुराते हुए कहा और मैंने भी मुस्कुराते हुए 50लाख का चेक काट कर डॉ को थमा दिया ..
 
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अध्याय 50

हमे पता तो चल गया था की आखिर इन तमाशो के पीछे कौन है साथ ही डॉ के द्वारा कुछ प्रोफेशनल लोगो को भी हायर कर दिया था,लेकिन अभी तक ये नही पता था की ये सब क्यो किया गया..

दिमाग का फ्यूज उड़ा हुआ था और मुझे अब रिलेक्स होने की जरूरत थी मैं रश्मि से मिलने उसके घर पहुचा ..

भैरव के साथ उसकी पत्नी से भी मुलकात हुई लेकिन भैरव ने मुझसे ढंग से बात नही की ,करता भी कैसे उसे अभी तक शक था की मैंने उसकी बेटी को फसाया है..

"जाओ बेटा रश्मि अपने कमरे में ही होगी "

थोड़ी देर बाद रश्मि की मा ने मुस्कुराते हुए कहा

"अरे तो उसे नीचे बुला लो ना "

भैरव ने तुरत ही कहा ,मैं मन ही मन हँसने लगा था क्योकि मुझे भैरव पर हंसी आ रही थी ,हा उसका शक भी जायज ही था ,उसे मेरी शक्ति के बारे में पता है और कौन बाप चाहेगा की उसकी बेटी शादी से पहले ही मेरे जैसे किसी के संपर्क में आये .

"कोई बात नही अंकल मैं ही ऊपर चला जाता हु रश्मि से मिलने "

वो कुछ बोल पता उससे पहले ही मैं सीढ़ियों से ऊपर चला गया ..

"वाओ आज कैसे याद आ गई मेरी "

रश्मि को पता था की मैं आने वाला हु ,वो बेचैनी से मेरा इंतजार कर रही थी और जैसे ही मैं कमरे में आया उसने शिकायत की,

"बस जान थोड़ा बिजी चल रहा हु आजकल ."

मैंने सीधे उसे अपनी बांहो में भर लिया ,बिना कुछ बोले ही हमारे होठ मिल चुके थे …

बड़े दिनों के बाद मुझे उसके होठो का स्वाद मिल रहा था .

थोड़ी देर की चुम्मा चाटी के बाद हम अलग हुए ,मैने रश्मि की आंखों में आंसुओ की बून्द देखी ..

"क्या हुआ तुम्हारे आंखों में आंसू ??"

"मैने तुम्हारे बारे में कुछ सुना है "

"क्या ??"

"यही की तू सामीरा के साथ .."

वो इतना ही बोलकर चुप हो चुकी थी ,आज मुझे पहली बार भैरव पर गुस्सा आ रहा था ..

"तुमने कहा सुना .."

"पिता जी चाचा से बात कर रहे थे की वो मुझे तुमसे दूर कर देंगे ,तुम अपने पिता के जैसे हो ,वो मुझे देश से बाहर भेजना चाहते है ताकि तुम मुझसे दूर ही रहो .."

"तो तुम मुझसे दूर हो जाओगी ??"

मेरी बात सुनकर रश्मि मुझसे थोड़ा और अलग हो गई ,वो बहुत ही निराश लग रही थी

"राज मैं अपने पिता को अच्छे से जानती हुई वो कोई भी काम युही नही करते,अगर वो तुम्हे मुझसे दूर कर रहे है तो जरूर इसका कोई कारण होगा,उन्हें लगता है की तुम सामीरा के साथ ,और इतना ही नही वो तो ये भी बोल रहे थे की तुम्हारे संबंध और भी लड़कियों के साथ होंगे "

"और तुमने उनकी बात पर भरोसा कर लिया "

"वो यू ही क्यो बोलेंगे राज,उन्हें ऐसा लगता है लेकिन अभी तक शायद उनके पास तुम्हारे खिलाफ कोई सबूत नही है इसलिए उन्होंने ये मुझसे नही कहा बल्कि सिर्फ चाचा से इस बारे में बात की थी ,राज मैं तुमसे सुनना चाहती हु की क्या मेरे पिता सही है ,क्या तुम्हारा दूसरी लड़कियों के साथ भी चक्कर है .."

रश्मि की बात सुनकर मैं बिल्कुल ही चुप हो गया था ,मेरे सामने दो रास्ते थे एक तो रश्मि से झूठ बोल देना और अपने किये को छुपा लेना जो की बहुत ही आसान काम था ,दूसरा था की सच बोलकर अपने रिश्ते को खत्म कर लेना ..

मैं एक अजीब से असमंजस में फंस गया था ,मैं रश्मि से झूठ भी नही बोल सकता था आखिर मैं उससे प्यार करता था लेकिन सच बताने का मतलब था उसे हमेशा के लिए खो देना ,भैरव उसे विदेश भेजना चाहता था सच कहने का मतलब था के रश्मि इसके लिए ,मना नही करती ,वो एक खुद्दार लड़की थी और शायद मुझसे भी ज्यादा इमोशनली स्ट्रांग भी ,उसने तब मुझे सम्हाल था जब मेरे लिए सभी दरवाजे बंद थे ..

"चुप क्यो हो राज बोलो ना क्या पिता जी सच बोल रहे थे.."

मेरे दिमाग का लाइट थोड़ा सा जला

"रश्मि अंकल को मुझपर शक है ,क्योकि वो सामीरा की आदत को जानते है ,उन्हें लगता है की सामीरा मुझे वैसे ही फंसा लेगी जैसे उसने मेरे पिता को फंसाया था ,लेकिन मेरा यकीन करो रश्मि सामीरा मुझे बिल्कुल भी नही फंसा सकती ,उसके रूप का जादू मेरे ऊपर नही चलेगा,मैं सिर्फ तुमसे प्यार करता हु और तुमसे ही करूँगा .."

रश्मि का रोना बढ़ गया और वो मेरे गले से आकर लग गई ..

"ओह राज मैं जानती थी की तुम मुझे धोखा नही दे सकते ,मैं जानती हु तुम सिर्फ मेरे हो और वो सामीरा की बच्ची तुम्हे नही फंसा सकती ,लेकिन पापा ने ऐसा क्यो सोच लिया "

"अगर अंकल को ऐसा लगता है की मैं कुछ गलत कर रहा हु तो उन्हें कहना की वो मेरे पीछे अपने आदमी लगा दे ,जो करना है करे लेकिन वो कभी मुझे गलत साबित नही कर पाएंगे क्योकि मैं गलत नही हु रश्मि ..सामीरा तो क्या कोई भी लड़की मुझे नही फंसा सकती ना ही कोई भी ताकत मुझे तुमसे दूर कर सकती हो ,तुम अंकल की फिक्र मत करो वो भी समझ जाएंगे "

जब रश्मि मुझसे अलग हुई तो उसके होठो में मुस्कान थी ,मैंने फिर से उसके होठो को अपने होठो में कैद कर लिया,मैंने उसे पूरा सच नही बताया था लेकिन हा मैंने झूठ भी तो नही बोला था ..

************

कुछ दिन बीते थे की मेरे पास एक दिन डॉ चूतिया का फोन आया ..

"हैलो राज एक बहुत जरूरी बात करनी है क्या तुम अभी पुलिस स्टेशन पहुच सकते हो …"

"जी बिल्कुल क्या बात है डॉ .."

"विवेक अंगिहोत्री की लाश मिली है .."

"क्या ?? कहा "

"शहर से बहुत दूर जंगल में एक घर मिला था हमारे लोगो को ,वही लाश मिली ,पूरी तरह से सड़ चुकी है लाश ,शायद बहुत पहले मारा गया था "

"वाट लेकिन ...कब "

"शायद तुम्हारे पिता पर हमले के तुरंत बाद ही ,किसी ने पास से ही गोली मारी है ,शायद कोई जानने वाला होगा,जिसे पता था की वो कहा है ,"

"ओह माय गॉड ,मतलब .."

"हम्म सही सोच रहे हो लेकिन अभी कुछ सोचने का समय नही है ,पुलिस ने लाश को अपने कब्जे में ले लिया है ,शिनाख्त भी हो चुकी है ,सोचा की पहले शिनाख्त कर ले फिर तुम्हे बताएंगे इसलिए अभी तक नही बताया था ,तुम पुलिस स्टेशन आ जाओ जल्दी "

"जी सर बस अभी निकलता हु .."

मैं तुरंत ही पुलिस स्टेशन की ओर निकल गया,लेकिन मेरे दिमाग में बस एक ही सवाल था …….

आखिर अब विवेक को किसने मारा होगा….
 
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अध्याय 51


जब दिमाग ही काम करना बंद कर दे तो क्या किया जाए,दिमाग ने काम कारना बंद कर दिया था ,विवेक अग्निहोत्री मर चुका था और साथ ही मेरी आखरी उम्मीद भी ,सबसे बड़ी बात जो की अभी तक अधूरी रह गयी थी वो था आखिर क्यो??

आखिर उसने ऐसा किया तो क्यो किया …?

पुलिस और डॉ दोनो के पास ही इसका कोई जवाब नही था,मैं फिर से खाली हाथ घर पहुचा ,अपने कमरे में बैठा हुआ मैं रूबिक क्यूब सॉल्व कर रहा था तभी नेहा दीदी मेरे कमरे में आई ..

मेरा चहरा उतरा हुआ था ..

"क्या हुआ राज आज थोड़ा टेंशन में दिख रहे हो .."

"दीदी कुछ समझ नही आ रहा है ..?"

"क्या?"

"आपको हमारे पुराने वकील विवेक के बारे में पता है "

"हा जानती हुई उनकी तो डेथ हो गई है ना .."
"हा लेकिन पिता जी के एक्सीडेंट के बाद...मैं कई दिनों से हमारे साथ हुए हादसों के बारे में सोच रहा था,और आखिर में मैं विवेक तक पहुचा,इस परिणाम में पहुचा की विवेक अग्निहोत्री ने ही हमारे काम में बम लगाया था लगवाया था "

"वाट"

दीदी का चौकना स्वाभाविक था

"हा दीदी ,वो जिंदा था अपने मरने की खबर फैला कर जिंदा था .हमने सोचा था की हम उसे ढूंढ लेंगे लेकिन उसकी लाश मिली ,किसी ने उसे गोली मार दी थी ,बम वाले हादसे के कुछ दिनों के बाद ही "

"आखिर किसने ??"

"यही तो सबसे बड़ी समस्या बन गई है मेरे लिए,क्योकि जिसने भी उसे मारा है वो शायद वो हमारा भी दुश्मन होगा "

कमरे में थोड़ी देर तक सन्नाटा ही पसरा रहा

"राज ऐसा भी तो हो सकता है कोई हमे प्रोटेक्ट कर रहा हो और इसलिए उसने विवेक को मारा होगा .."

"लेकिन .."

"लेकिन क्या राज सोचो ऐसा भी तो हो सकता है ना ,की किसी को हमारे भले की फिक्र हो लेकिन वो सामने नही आना चाहता हो इसलिए विवेक को मार कर हमारे परिवार की रक्षा की हो .."

"हो सकता है लेकिन आखिर ऐसा आदमी हमारे परिवार पर हमला क्यो करवाएगा "

"ऐसा भी तो हो सकता है की हमला विवेक ने करवाया होगा और से रोकने के लिए ही विवेक को ही रास्ते से हटा दिया गया हो "

"हो सकता है दीदी लेकिन बात सिर्फ इतनी सी नही है असल में हर चीजे जुड़ी हुई है ,मेरा जंगल से वापस आना फिर चन्दू का गायब हो जाना और फिर चन्दू की मौत और फिर हमारे ऊपर हुए हमले ..जयजाद के सारे लोचे लफड़े ,सभी एक दूसरे से कनेक्टेड लगता है ,"

"राज तुम इसे जयजाद से ही जोड़कर क्यो देख रहे हो ,हो सकता है की कोई पर्सलन दुश्मनी होगी ,या कोई पर्सनल दोस्ती ,कुछ भी हो सकता है ना,तुम अपना ध्यान इन सबमे मत लगाओ .."

"दीदी आखिर कैसे ना लगाऊ,आप ही सोचो ना की अगर वो इंसान हमारा मित्र नही बल्कि दुश्मन होगा तो हमारे ऊपर संकट के बदल तो हमेशा ही रहेगा ,"

"भाई मेरे ख्याल से माँ से बात करनी चाहिए "

"किया था दी "

"अब फिर से क्योकि उस समय तो तुझे नही पता रहा होगा की विवेक मार चुका है "

"लेकिन मां से बात करके मुझे लगा नही ही की उन्हें कुछ पता भी होगा…"

"हो सकता है की वो कुछ छिपा रही हो "

"लेकिन वो ऐसा क्यो करेगी ??"

"जीवन में कई मजबूरियां आती है भाई जिसे हम नही समझ सकते ,हो ना हो मा को कुछ तो जरूर पता होगा "

मेरा दिमाग दीदी की बातो से मेरा दिमाग ठनक रहा था ,नेहा दीदी कितनी समझदार है उसका पता तो मुझे पहले से ही था और अगर वो कुछ बोल रही है तो जरूर उन्हें कुछ ऐसा तो पता होगा जिससे उनको कुछ शक सा हुआ हो ..

"आपको इतना भी क्या कॉन्फिडेंस है अपनी बात पर .."

वो थोड़ी सकपकाई ..

"भाई मेरे पास कारण है ,पहला भैरव सिंह ,मां का पुराना आशिक था और आज उसके पास नाम और दौलत दोनो है ,वो इतना पावरफुल है की कुछ भी करवा सकता है .."

"दीदी आप भैरव अंकल और मां के चरित्र पर दाग लगा रहे हो ??"

"भाई हरम में सब नंगे होते है ,अपनी जवानी में इन लोगो ने जो भसड़ मचाई थी उसके कारण ही तो ये सब हो रहा है,भैरव सिंह और मा एक दूसरे से प्यार करते थे,और दोनो पिता जी के जिगरी यार भी थे लेकिन हमारे पिता जी तो ठरकी और हरामियों के गुरु रहे है ,तेरे जैसे आंखों से सम्मोहन करने में उस्ताद ,मां को ही फंसा लिया,हवस में दोस्ती तो गई साथ ही साथ जिंदगी भी गई उनकी ...वो कभी शादी नही करना चाहते थे लेकिन निकिता दीदी पेट में थी और दोनो के घर वाले उस समय के सबसे बड़े बिजनेस परिवार हुआ करता था अच्छे दोस्त भी थे तो इनलोगो के ऊपर प्रेशर डालकर शादी करवा दी …लेकिन भाई प्यार तो प्यार है मां और भैरव दोनो ही जल रहे होंगे...फिर भी जैसे तैसे दोनो अपनी जिंदगी में सेट होते हमारे पिता जी ने एक और कांड कर दिया ..रश्मि की मां को फंसा कर उसे भी प्रैग्नेंट कर दिया हमारे पिता जी की ही देन है और ये बात भैरव और मां दोनो ही जानते है ,अब तू खुद सोच इसके बाद भैरव सिंह अगर पिता जी को मरना नही चाहेगा तो क्या चाहेगा...और मां के बारे में भी सोच इतना जानने के बावजूद बेचारी चुप ही रही ,आदर्श नारी बनकर ..मैं ये तो नही कहती की उन्होंने कुछ किया होगा लेकिन उन्हें पता तो रहा ही होगा कुछ न कुछ शायद,क्योकि अगर भैरव इसमे शामिल है तो वो मां को बताए बिना कुछ नही करेगा ,वही विवेक की बात करे तो वो भी तो दीवाना था ,हमारी मां ने अपने जवानी में कई लड़को को अपने पीछे घुमाया था ,बेचारी खुद ही पिता जी के जाल में फंस गई .."

उन्होंने एक गहरी सांस ली लेकिन मेरा मुह खुला का खुला रह गया था …

"आखिर आपको ये सब कैसे पता ??"

"तुझे क्या लगता है सिर्फ तुझे ही जासूसी करना आता है ,भगवान ने मुझे भी दिमाग दिया है राज ,हा बस चन्दू के मामले में मैं गलत निकली थी.."

अब मैंने एक गहरी सांस ली

"दीदी चलो मान लिया की मां को कुछ पता होगा लेकिन वो हमे क्यो बताएगी ,और अगर पता ना हुआ तो ..?? हमारे बीच के रिश्ते का क्या होगा इतना बड़ा इल्जाम आखिर हम उनपर नही लगा सकते "

"इसमे इल्जाम वाली क्या बात है भाई "

"ये इल्जाम नही तो क्या है दीदी ,जिन चीजो ने हमारे परिवार को बिखेर दिया उसका तो इल्जाम ही लगता है ना "

दीदी जोरो से हँस पड़ी

"तुझे सच में लगता है की इन चीजो ने हमारे परिवार को बिखेरा है ?? तू खुद सोच की पहले हम सब कैसे थे और अब कैसे है,एक दूजे के इतने नजदीक हम कभी भी नही थे ,हम बिखरे नही बल्कि मिल गए है ,और हमारे परिवार की सबसे बड़ी कमजोरी हमारे पिता जी भी अब नही रहे ..जिनके पापो की सजा हमे ये मिल रही है की मैंने अपने ही खून चन्दू से प्यार किया ,तूने अपने खून रश्मि से प्यार किया उसके बाद अपनी सगी बहनो के साथ भी .."

"चन्दू हमारा खून नही था दीदी "

"लेकिन उस समय तो हमे पता नही था ना ,और जो तूने किया है उसका क्या ?? ये सभी हमारे पिता जी के पाप का ही तो नतीजा था "

"लेकिन दीदी वो सुधार गए थे,"

"शैतान शैतान ही रहता है राज .."

उनकी आंखों में आंसू की कुछ बून्द आ गई थी ,दीदी को पिता जी के लिए इतना बोलते मैंने कभी नही सुना था ..वो ऐसे बोल रही थी जैसे वो उनसे नफरत करती हो

"दीदी "

मैंने उनके कंधे को पकड़ा ..

"भाई मैं वर्जिन नही हु भाई ..हमारे पिता के हवस का एक शिकार …"

"वाट.."

मेरा खून मानो जम सा गया था ,मुझे अपने कानो में भी यकीन नही हो रहा था कोई पिता अपनी ही बेटी के साथ ये सब..पिता जी के चले जाने का दुख मुझे हमेशा होता था लगता था की अंत समय में वो ठीक हो गए थे और मैंने उन्हें खो दिया लेकिन आज दीदी की बात सुनकर मैं स्तब्ध था ,मुझे उनसे घृणा हो रही थी ..

"इसलिए तुझसे हमेशा कहती हु भाई की अपने हवस पर काबू रख ,वासना की आग कुछ भी नही देखती ,कोई रिश्ता नही देखती ,मां बेटे,बाप या बेटी,भाई या बहन कुछ भी नही ,तू भी पिता जी की तरह वासना की आंधी में उड़ता चला जा रहा था ,इसलिए मैंने तुझे रोक लिया ,मैं नही चाहती थी की तू भी पिता जी की तरह वासना की आंधी में उड़ाता हुआ अपने ही घर को उजाड़ दे ,मां पिता जी से प्रेम तो करती थी लेकिन कभी वो सम्मान नही दे पाई जो एक पत्नी को अपने पति को देना चाहिए था ,आखिर आता भी तो कैसे ..इसलिए कहती हु की मां को शायद कुछ पता होगा .."

लेकिन अब मैं रोने लगा था ,मेरे अंदर ग्लानि की एक आग सी जलने लगी थी,आखिर मैं भी तो अपने पिता का ही खून था ,उन्होंने अपनी आग को बुझाने के लिए पिता पुत्री के पवित्र रिश्ते को भी नही छोड़ा...और मैं भी उनकी ही राह में चल निकला था ,जो सामने आता उसे अपने जाल में फंसा कर अपनी हवस को पूरा करता था,अगर नेहा दीदी नही रोकती तो ,शायद एक दिन मां के साथ भी मेरे नाजायज रिश्ते बन जाते ,और ना जाने कितनी औरते ,और भविष्य आखिर कैसा होता,नाजायज रिस्तो से जन्मे हुए नाजायज बच्चे,जब उन्हें मेरी हकीकत पता चलती तो ...जैसे मेरे दिल में पिता जी के लिए सम्मान खत्म हो गया था शायद वैसे ही मेरे बच्चे मेरे बारे में सोचते …

ग्लानि पश्चयताप और दुख तीनो ने ही मुझे जकड़ लिया था..

नेहा दीदी ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा …

"भाई उनके साथ मुझे भी मजा आया था ,जैसा निशा और निकिता दीदी को तेरे साथ आता है ,तो नफरत करने की बात नही है,ना ही समय ही है ,जो चला गया उसे पीछे छोड़ो और जो सामने है उसपर फोकस करो...बात ये है जो गलतियां हो चुकी चुकी है उसे बदला तो नही जा सकता लेकिन नई गलतियां करने से तो खुद को बचाया जा सकता है …"

मैंने भी अपने आंसू पोछ लिया

"हा दीदी .."

"तो मां के पास चले ,कम से कम मन का एक वहम तो खत्म हो जाएगा ……"

मैंने हा में अपना सर हिलाया ….
 
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अध्याय 52

नेहा दीदी और मैंने मिलकर एक प्लान बनाया और मां के पास गए…मां पहले से अच्छी लग रही थी

"अरे राज तू तो आता ही नही अपनी मां से मिलने ,बेटा काम में इतना भी बिजी न हो जा,अपने सेहत का भी ध्यान रखा कर "

मैं उनके पास ही बैठा लेकिन आज मेरे चहरे का भाव संजीदा था वही हाल नेहा का भी था ..

"क्या हुआ बच्चों तुम्हारे चहरे का रंग क्यो उड़ा हुआ है ..??"

"मां विवेक अग्निहोत्री मारा गया है "

"हा वो तो बहुत पहले ही मार चुका है ,है ना .."

मा ने बड़े ही भोलेपन से कहा

"माँ बनने की कोशिस मत करो "

इस बार मेरी आवाज थोड़ी कांप रही थी ,पता नही ये प्लान सही बैठता की नही लेकिन हमने इसी के सहारे आगे जाने की सोची थी ..

"क्या मतलब है तुम्हारा "

मम्मी की आवाज भी थोड़ी कठोर हो गई

"मां पुलिस को दो दिन पहले ही विवेक की लाश मिली है और उसे मारने वाले ने एक जंगल में उसे मारा है लेकिन..लेकिन उसने एक गलती कर दी उससे जुड़े सुबूत पुलिस के हाथ लग गए ,और ..और वो कोई और नही बल्कि भैरव अंकल है "

मेरी बात सुनकर मां उछल पड़ी

"ये क्या बक रहे हो तुम लोग "

"हाँ मां और उसके बाद उन्होंने आपसे बात की थी ,आप उस समय हॉस्पिटल में थी ,भैरव अंकल आपसे मिलने आये और उन्होंने आपको ये खबर सुनाई "

"वाट तुम लोग पागल हो गए हो "

"माँ सबूत कभी झूठे नही हो सकते ,हॉस्पिटल में आने का और आपके कमरे में जाने का सीसीटीव फुटेज है ,हा आप उस समय होश में नही थी इसलिए उन्होंने आपके पास खड़े होकर आपसे बात की ,आप होश में नही थी लेकिन उन्होंने फिर भी ये बात कहि की उन्होंने विवेक को मार दिया है तुम चिंता मत करो और जल्दी होश में आ जाओ ,लेकिन वो भूल गए थे की जब पेशेंट कोमा में रहता है तो उसके शरीर की हर गतिविधियों को रिकार्ड करने के लिए एक कैमरा और एक रिकार्डिंग डिवाइस कमरे में लगाई जाती है (ये सरासर गलत था,एक तुक्का) और उसमे भैरव अंकल की ये बात रिकार्ड हो गई "

इस बार माँ के चहरे का रंग उतारने लगा था ,मतलब साफ था की दाल में कुछ काला तो है ..

"अब चुप क्यो हो माँ .."

"नही राज जानकारी गलत है ,पता नही भैरव ने ऐसा क्यो कहा लेकिन ऐसा नही हो सकता भैरव इतना बड़ा कदम नही उठा सकता …"

"सबूत तो उनके खिलाफ है और उन्हें तो सजा होनी तय है ,विवेक और पिता जी दोनो की मौत के लिए "

"तुम दोनो पागल हो गए हो क्या "

माँ के चहरे में मानो अंगारे नाचने लगे थे

"सबूत तो यही कहते है "

"भाड़ में गए सबूत मैं इन्हें नही मानती भैरव ने ना ही विवेक का कत्ल किया है ना ही तुम्हारे पापा का "

"तो किसने किया है .."इस बार नेहा की आवाज में एक जोर था ..

"वो तो …" माँ इतना ही बोलकर रुक गई थी ,कमरे में सन्नाटा छाया हुआ था ,गहरा सन्नाटा …..

"वो तो क्या माँ"इस बार मेरी आवाज नार्मल थी

माँ अचानक से रोने लगी थी ,हमारी समझ में इतना तो आ गया था की जो हुआ उसमें माँ किसी ना किसी रूप में इन्वॉल्व तो है ..

"बोलो माँ अब छिपाने से कोई फायदा नही होगा "

नेहा माँ के पास आकर उनके कंधों पर अपना हाथ रखती है और उन्हें सहारा देती है ..

"वो भैरव ने एक प्रोफेसनल से करवाया था ,ये समझते देर नही लगी की बम वाली हरकत विवेक ने ही की है ,अगर मैं होश में रहती तो शायद भैरव को रोक लेती लेकिन उस समय मैं होश में ही नही थी और विवेक को रोकना भी जरूरी था वरना वो हमारे परिवार के लिए सबसे बड़ी चुनोती बन जाता इसलिए भैरव ने एक प्रोफेसनल की मदद ली और उसे रास्ते से हटा दिया "

कमरे में फिर से शांति छा गई थी …..

"इसका मतलब की आपको पता था की विवेक जिंदा है "

अगर मैं पहले से इन चीजो के लिए प्रिपेयर नही होता तो शायद ..शायद ये बात मेरे लिए कोई बहुत ही बड़ा आघात होती लेकिन नेहा दीदी और मैंने पहले से ही प्लान कर लिया था और एक रिस्क लिया था,इसलिए मैं थोड़ा नार्मल ही था ..

"हा मुझे पता था,असल में ये हमारा ही प्लान था की विवेक अपने को छिपा लेगा ताकि प्रोपेर्टी के मामले में कोई भी डिस्प्यूट ना हो ,चन्दू को लेकर कंफ्यूशन ही ऐसा था .."

"मतलब ??"

"मतलब तुम वापस आ चुके थे ,लेकिन इस बार नए राज बनकर ,"

"नही माँ यंहा से नही शुरू से ...ये सब कहा से शुरू हुआ क्यो शुरू हुआ मुझे सब जानना है "

मेरी बात सुनकर माँ ने एक गहरी सांस ली ,और बोलना शुरू किया ..

"बेटा जैसा की तुम जानते ही हो की तुम्हारे पिता के कारण मेरी और भैरव की शादी नही हो पाई ,और उसके बाद विवेक भी तो था मुझे चाहने वाला ,वो भी टूट गया था लेकिन उसने कुछ दिखाया नही बल्कि हमारे पिता को बहका कर एक वसीयत बनवाई ,ये बोलकर की कही रतन मुझे छोड़ ना दे ,मेरे पिता ने मेरी शादी तो रतन से कर दी थी लेकिन वो उसके व्यवहार से हमेशा ही परेशान रहते थे ,वही हाल तुम्हारे दादा जी का भी था ,इसलिए उन्होएँ विवेक की बात मानी और दो वसीयत बनाई एक थी सारे बच्चों के बलिक होने के बाद के लिए और दूसरी थी बलिक होने से पहले की ,जिसके बारे में मैंने तुम्हे बताया था,तुम लोगो के बलिक होने पर पहली वसीयत के द्वारा तुम्हे जयजाद दी गई थी ,लेकिन दूसरी वसीयत में एक लोचा था ,और वो था की हम अगर एक दूसरे से अलग हुए तो जयजाद का बड़ा हिस्सा जो की तुम्हारे दादा जी का था वो पूरा विवेक की ट्रस्ट में चला जाएगा ,वही मुझसे भी पूरी जायदाद का मालिकाना हक छीन लिया जाएगा और सिर्फ तुम्हारे नाना जी के जायदाद तक ही सीमित हो जाती (अब ये बात पहले भी बताई गई थी, बिल्कुल एक ही बात के दो मतलब निकलते है विस्वास नही होता तो वो अपडेट पढ़ कर देखना ) ,विवेक असल में वंहा पर खेल गया था ,जिसे ना तो उस समय मैं ना ही तुम्हारे पिता समझ पाए,यंहा तक की तुम्हारे दादा और नाना भी उसका असली मतलब नही समझ पाए,विवेक ने चालाकी दिखाई थी क्योकि ट्रस्ट उसका ही था ,हम अगर लड़ते तो उसे बहुत ज्यादा पैसे मिलने वाले थे,और उसने पूरे जीवन भर हमे लड़ाने की कोशिस की ,इसी कोशिस में उसने अपनी दो नॉकरानीयो कान्ता और शबीना को भेजा,लेकिन जब हमे धीरे धीरे इस बात का अंदाजा होता गया तो हमने एक समझौता कर लिया की बच्चों के बालिक होने तक हम अलग नही होंगे .."

उनकी इस बात से मैं चौक गया

"मतलब आप लोगो को पहले से उस वसीयत के बारे में मालूम था "

"हा लेकिन सिर्फ मुझे ,तुम्हारे पिता जी और विवेक को ,लेकिन रतन उस वसीयत को खत्म करना चाहता था ,उसे पसंद नही था की उसकी इतनी मेहनत से कमाई पुरी की पूरी दौलत बच्चों को ऐसे ही मिल जाए ,ऐसे भी जैसा तुमने कहा था उसे ये शक भी था की तुम भैरव के खून हो ."

"लेकिन क्यो.."

मेरी बात सुनकर माँ थोड़ी सी मुस्कुराई

"क्योकि लोग जैसा होते है वैसे ही दुसरो को भी सोचते है ,तुम्हारे पिता ने अर्चना को .."

वो चुप ही हो गई थी

"हमे ये बात पता है माँ "इस बार नेहा दीदी ने कहा

"क्या??"

"हा माँ हमे पता है की पिता जी ने अर्चना आंटी के साथ क्या किया था "

"हम्म इसलिए रतन को लगता था की भैरव उसका बदला लेगा,जब ये बात मुझे पता चली तो मैं भी टूट गई थी,और रतन से अलग होने की सोच रही थी ,लेकिन फिर मुझे मेरे बच्चों का ख्याल आया ,अगर उस समय मैं रतन से अलग हो जाती तो ..हमारे पास कुछ खास नही बचता ,जिनके नाना और दादा इतने बड़े इंसान थे ,जिनके पिता ने अपनी मेहनत और काबिलियत के बल पर इतना बड़ा साम्राज्य बनाया था वो एक झटके में खत्म हो जाता ,और वही बच्चे एक आम इंसानों का जीवन जीते(यंहा समझने वाली बात ये है कि अलग होने पर भी राज के नाना की संपत्ति उन्हें मिलती,लेकिन वो सभी बच्चों में बराबर बात जाती जिससे अभी के मुकाबले कुछ खास नही बचता, वही रतन ने अपने पिता के बिजनेस को ज्यादा बढ़ाया था ).यही सोचकर मैं फिर से रतन से अलग नही हुई लेकिन इस हादसे के बाद से ही भैरव और मेरे बीच की कडुवाहट और भी कम हो गई ,शायद भैरव को ये समझ आ गया था की आखिर मैंने उसे क्यो धोखा दिया था ,मेरे और उसके बीच कभी शाररिक संबंध तो नही रहे लेकिन भावनात्मक रूप से हम हमेशा से ही जुड़े हुए थे..अर्चना तो इस चीज को समझती थी लेकिन तुम्हारे पिता जी नही उन्हें हमारे रिश्ते से नाराजगी थी ,उन्होंने कभी ये कहा नही लेकिन वो दिख जाती थी ,क्योकि वो इंसान खुद ही कभी किसी के साथ भावनात्मक रिश्ते में नही रहा बल्कि हमेशा उसे शारीरिक सुख ही चाहिए होता था ,शायद इसलिए उसकी मानसिकता भी गलत हो गई थी ..खैर समय निकलने लगा और तुम बड़े हुए ,रतन ने तुम्हारे साथ सौतेला व्यवहार किया ,उसके दो कारण थे एक तो ये की उसे भैरव और मुझपर शक था और दूसरा वो वसीयत थी ,उसे पता था की उसके बाद तुम सबके मालिक होंगे ,शायद इसलिए तुमसे जलन सी होती थी उसे ,वही वो तुम्हे इस काबिल भी नही मानता था की उसके मेहनत से खड़ी की गई संपदा को तुम सम्हाल पाओगे ,उसे ये भी लगता था की चन्दू भी उसका ही खून है ऐसे सभी को यही लगता था की चन्दू रतन का ही खून है इसलिए वो चन्दू को अपना वारिस बनाना चाहता था ,और ये बात विवेक को भी पता थी ,और मुझे भी इसका अनुमान होने लगा …

लेकिन मैं अपने बच्चों का हक तो नही जाने दे सकती थी ,इसलिए मैंने भैरव से इस बारे में बात किया ,निशा के बालिक होने में कुछ ही दिन बचे थे तो हमे जो भी करना था वो जल्दी जल्दी करना था ,हमने प्लान किया था की मैं इस बारे में विवेक से बात करूंगी लेकिन कुछ करने से पहले तुम ही गायब हो गए …..और तुम्हारे वापस आने के बाद हमे एक आशा की किरण दिखाई देने लगी ,विवेक अपना खेल शुरू कर चुका था उसके दिमाग में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी ,वो अब भी मुझे पाने के सपने देख रहा था और जो वो अब तक नही कर पाया था वो अब करना चाहता था ,रतन को पूरी प्रॉपर्टी से बेदखल करके प्रोपेर्टी अपने बस में करना,लेकिन फिर तुम्हारी वापसी हुई ,तुम बदले बदले से लगे तो विवेक का खेल बिगड़ने लगा ,वही मुझे एक नई उम्मीद दिखाई दी और मेरे दिमाग में पहला नाम आया चन्दू को घर से बाहर करना ,क्योकि वो नेहा के लाइफ में आ चुका था और वो कैसा लड़का है इसका मुझे इल्म था ,उस समय मेरी मजबूरी थी की मुझे दोनो के रिश्ते को मंजूरी देनी पड़ी थी लेकिन अब तुम इतने काबिल थे की प्रोपेर्टी पर हक जमा सको लेकिन चन्दू एक रोड़ा बनता,इसलिए मैंने और भैरव ने प्लान बनाया विवेक से जाकर मिले,विवेक को भैरव ने बताया की वो रतन को हटाने के आग में जल रहा है और मैंने भी उसे भरोसा दिलाया की प्रोपेर्टी के ट्रस्ट में जाने से अच्छा है की मालिकाना हक के साथ मिले और इसके लिए पहले वो उसे बच्चों के नाम में आने देते है उसके बाद उसे आधा आधा करवा लेंगे क्योकि बच्चे मेरी बात मानेगे,मुझे ये भी पता था की उसकी बीबी एक बेवफा औरत थी ,एक तीर से दो शिकार किया जा सकता था ,खुद को मारकर अपनी बीबी और उसके आशिक से बदला और उसके बाद अपने प्यार को हमेशा के लिए पा लेना ...इतना लालच विवेक के लिए काफी था ,और उसने चन्दू को अपने जाल में फंसा कर तुमसे और तुम्हारे हक से दूर कर दिया ,बाद में ये पता लगा की वो रतन नही बल्कि खुद विवेक का ही खून था और जब ये बाद हमे पता चली तो हमने विवेक से दूरी बना ली और वही से उसका और हमारा झगड़ा शुरू हो गया...विवेक ने अपनी बीबी और उसके आशिक को ठिकाने लगा दिया था लेकिन साथ ही खुद को भी मारकर अपनी भी पहचान खत्म कर दी थी ,हमारे किनारे कर दिए जाने से वो भड़क गया था ,उसे भैरव को धमकी दी लेकिन भैरव ने उसका मजाक बना दिया ,अब वो विवेक पागल हो गया था उसने तुम्हारे ऊपर हमले करवाने की कोशिस की लेकिन तुम बच निकले ,भैरव ने भी तुम्हारे प्रोटेक्शन के लिए आदमी लगा रखे थे,और फिर चन्दू जो की उसका ही खून था वो भी मारा गया और विवेक पूरी तरह से पागल हो गया ,और उसने प्लान बना कर हमारे पूरे परिवार को एक साथ मारने की सोची ,हमे लगा था की हमारी सिक्योरटी हमेशा उसे मात दे देगी और भैरव तो उसे ठिकाने लगाने की भी सोच चुका था लेकिन विवेक आखिर शातिर इंसान था ,वो बम लगाने में कामियाब हुआ और ...लेकिन शायद उसका मेरे लिए प्यार आज भी जिंदा था की वो मुझे नही मार पाया और तुम्हारे पिता को फोन कर जानकारी दे दी ,लेकिन इसमे मैं भी बुरी तरह से जख्मी हो गई थी ,मैं अचेत थी और ये बात भैरव को सहन नही हुई ,उसने पूरी ताकत लगा कर विवेक को ढूंढ ही लिया और फिर उसे मरवा दिया …"

हम सभी चुप हो चुके थे ,माँ ने जो किया वो गलत था या सही था ये मुझे नही पता लेकिन उसने जो भी किया था वो हम बच्चों के भले के लिए ही किया था ,लेकिन बोलने के लिए कुछ भी नही था ..

माँ ने बोलना जारी रखा

"मुझे कभी कभी विवेक के लिए दुख होता है ,वो मेरे बचपन का दोस्त था ,भैरव को तो अर्चना ने सम्हाल लिया लेकिन उस बेचारे के जीवन में कोई नही आया जो उससे प्यार करे,बीबी भी मिली तो वो भी बेवफा .."

माँ चुप हो गई ,वही नेहा ने माँ के कंधे पर हाथ रखा

"माँ गलती बस एक ही इंसान की थी ,वो थे पापा अगर उन्होंने अपनी दोस्ती नही तोड़ी होती तो ये सब होता ही नही ,"

माँ ने अपने आंसू पोछे और नेहा को अपने सीने से लगा लिया वही मैं भी उनकी गोद में जाकर सो गया था …...
 
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अध्याय 53

जब मेरी आंखे खुली तो मैं मां के गोद में ही लेटा हुआ था ,ना जाने कितने देर तक मैं बच्चों की माफिक रोता रहा है ,

वही मां मेरे बालो पर अपनी उंगली चला रही थी ,

"मैं कितने देर से सोया हुआ था ,??"

मैंने उठाते हुए कहा वही मां मुझे देखकर मुस्कुराने लगी थी ..

"कितने दिनों बाद तू मेरी गोद में सोया "

"हा मां आज जैसी निश्चिंतता मुझमे सालो के बाद आयी है ,आज ऐसा लग रहा है जैसे सर से मन भर का बोझ उतर गया हो ,इतनी बेफिक्री सी महसूस हो रही है ..मैं इन चीजो में इतना इन्वॉल्व हो गया था की ऐसी निश्चिंता मुझसे कोसो दूर चली गई थी ,मन के किसी कोने में बस अपने परिवार की सुरक्षा का ही ख्याल चलता रहता था "

मैं उठकर उनके पास बैठ चुका था उन्होंने मेरे बालो को हल्के से सहलाया …

"बेटा इस उम्र में तुमने इतना कर लिया ,मुझे तो कभी कभी यकीन ही नही होता "

उनकी बात सुनकर मैं हल्के से मुस्कुराया ..

"सब आप लोगो के कारण ही तो हुआ है ,पहले भी बता देते मुझे तो ये सब प्रॉब्लम्स नही आती ,चलिए ठीक है आपने जो भी किया हमारी भलाई के लिए ही किया ,लेकिन इन परेशानियों से मैं और भी निखर कर बाहर आया,वरना शायद मैं कुएं का मेढक बन कर ही रह जाता,इन्ही परेशानियों के बदौलत मुझे मेरी ताकतों और कमजोरियों का ज्ञान हुआ "

मां मुझे मुस्कराते हुए देख रही थी ,

"हा और तू इतनी बड़ी बड़ी बाते बोलना भी सिख गया "

हम दोनो ही हँसने लगे थे ,उनके चहरे में खिली हुई वो मुस्कुराहट मुझे बेहद ही सुकन दे रही थी ,

यही वो चहरा था जिसमे मैंने अपने पूरे जीवन में मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ प्यार ही देखा था ,शायद मुझे नेहा दीदी द्वारा बताई गई प्रेम की परिभाषा की समझ आने लगी थी ..

"बेटा मुझे तुझसे रश्मि के बारे में बात करनी थी "

अचानक से रश्मि का नाम आने पर मैं थोड़ा शॉक्ड हो गया ..

"क्या माँ"

"मेरी भैरव से बात हुई थी कुछ दिनों पहले ,उसने मुझे बताया की तुम्हारे अंदर भी वही पावर है जो की तुम्हारे पिता के अंदर था ,और उससे भी थोड़ा ज्यादा है ,क्या ये सच है .."

"अब मैं उनका ही खून हु मा तो इतना तो आएगा ही ना अंदर "

उनका चहरा संजीदा हो गया था ..

"बेटा ये शक्ति आदमी का जीवन बनाती भी है तो बिगाड़ भी देती है ,देखो ना तुम्हारे पिता ने इससे क्या किया ,बेटा भैरव को डर है की तुम भी अपने पिता की तरह ही निकलोगे,मैंने उसे समझाने की कोशिस भी की कि तुम अपने पिता से अलग हो लेकिन उसने कहा की बात उसके बेटी की है और वो अपनी बेटी को ऐसे आदमी के साथ नही देख सकता ,वो रश्मि के हालात मेरे जैसे नही होते देख सकता ...उसकी बात भी अपने जगह सही है बेटा,भैरव मुझे कभी ना नही कहता अगर बात उसके बेटी की ना होती ...बेटा मुझे सच सच बताओ क्या तुमने उस शक्ति के प्रयोग से रश्मि को फसाया है .."

उनकी बात सुनकर पता नही क्यो लेकिन मेरे होठो में मुस्कान आ गई

"माँ मैंने रश्मि को फसाया नही है ,हमने तो प्यार किया है ,वो भी तब जब मुझे इस शक्ति के बारे में पता भी नही था ,रश्मि से पूछकर देखो क्या मैंने उसे कभी अपनी ओर आकर्षित करने की कोई भी कोशिस की थी?? नही माँ .."

माँ ने गहरी सांस ली ..

"मेरे ख्याल से तुम्हे भैरव से मिलना चाहिए ,वो रश्मि को विदेश भेजने की सोच रहा है ..मैं उससे बात करती हु तुम आज ही उसके पास चले जाओ ,मैं चाहती हुई इस घर में खुशियां दुबारा दस्तक दे ,मैं चाहती हु की तुम्हारी शादी जल्द से जल्द हो जाए .."

मैंने मां को आश्चर्य से देखा

"अभी तो हमारा कॉलेज भी कंप्लीट नही हुआ है ??"

"तो क्या हुआ हो जाएगा,तुम दोनो आज नही तो कल शादी तो करोगे ही ,क्यो ना अभी कर लो ,साथ ही तुम्हारे निकिता दीदी की भी शादी करवा देंगे रोहित से .."

"माँ ये थोड़ी जल्दबाजी नही हो जाएगी "

मेरे माथे में चिंता की लकीरे आ गई ,अभी रोहित तैयार नही था ..

लेकिन मां ने बड़े ही प्यार से मेरे सर पर अपना हाथ फेरा

"बेटा मैंने जीवन में बहुत दुख देखे है ,अब मैं चाहती हु की मेरे परिवार में खुशियां वापस आ जाए..अगर तुम तैयार नही हो तो कोई बात नही लेकिन मुझे लगता है की तुम्हारे पास किसी ऐसे का रहना बहुत जरूरी है जो तुम्हे समझता हो और तुम्हे प्यार भी करता हो ,और जो तुम्हे सही नसियत भी दे सके ,रशमी वैसी ही लड़की है जो तुम्हे सम्हाल सकती है .."

मैं चुप ही था ,माँ ने इनडायरेक्ट ही सही लेकिन ये जरूर कह दिया था की मुझे प्यार से सम्हालने वाली की जरूरत है ,शायद वो मेरे शारीरिक बदलाव से भी वाकिफ थी और शायद उन्हें एक डर ये भी रहा हो की मैं भी अपने पिता की तरह वासना का पुजारी ना बन जाऊ ..

मैंने सहमति में अपना सर हिला दिया ..

"मैं आज ही भैरव अंकल से मिलता हु "

मैंने माँ के सर पर एक प्यारा सा चुम्मन दिया और वंहा से निकल गया ,

***************

मैं अभी भैरव अंकल के साथ अकेले में ही बैठा था ,वो मुझे देखकर असहज थे और करवट बदल रहे थे ,शायद उन्हें समझ नही आ रहा था की वो मुझसे क्या बात करे ...मैंने ही बात बढ़ानी शुरू की

"अंकल आपके मन में जो डर है वो स्वाभाविक है ,मुझे पता नही की आपको मेरी शक्तियों के बारे में कैसे पता चला (असल में मुझे पता था ये सामीरा ने उन्हें बताया था) ..लेकिन अंकल मेरा यकीन मानिए की मैं अपने पिता की तरह नही हु,ना ही कभी मैंने इन शक्तियों का प्रयोग रश्मि पर किया है,हम एक दूजे को बचपन से जानते है और ये दोस्ती कब प्यार में बदली हमे तो पता भी नही चला ,मुझे खुद इन शक्तियों के बारे में पता नही था,परिस्थितियों के कारण मुझे इसका पता चला लेकिन मैंने कभी इसका कोई गलत प्रयोग नही किया ,मैं ये भी समझता हु की प्रेम जिस्म की नही बल्कि रूह से निकलने वाली चीज है और जिस्म के अलावा भी औरत का एक बजूद होता है (नेहा दीदी के दिए ज्ञान को यंहा चिपका दिया )"

"लेकिन ये मेरी बेटी की जिंदगी का सवाल है राज .."

"अंकल अगर आपको मेरे बातो पर यकीन नही होता तो आप रश्मि से अकेले में इस बारे में बात कीजिये,रश्मि के साथ मेरे संबंध हमेशा से ही रूहानी रहे है जिस्मानी नही ..आप खुद उससे बात कर सकते है,आप उसके पिता है और आपका डर भी स्वाभाविक है आपने इतना कुछ देखा भी है मैं समझ सकता हु ,लेकिन अब समय आ गया है की अपने बेटी के भविष्य के लिए आप उससे बात करे ,उससे खुल कर बात करे और हमारे रिश्ते के बारे में पूछे ..

अंकल उसके बाद भी आपको लगता है की मैं उसके लायक नही हु तो मैं कभी भी उसके रास्ते में नही आऊंगा ,आप जन्हा चाहे उसे भेज दे ,मैं कभी आपका रोड़ा नही बनूंगा .."

इतना कहकर मैंने उनके पैर छुए और वंहा से निकल गया ,मैं सर उठाकर देखा तो रश्मि मुझे अपने खिड़की से देख रही थी लेकिन मैं उससे बिना मिले ही वंहा से निकल गया ……

***********

रात का वक्त था और मैं अभी अभी अपने ऑफिस से घर आया था ,मैंने अपने मन में फैसला किया की मैं अब किसी बात की फिक्र किये बिना अपना काम करूँगा ,बहुत दिनों से मैं ध्यान और एक्सरसाइज नही कर पाया था ,मैंने नियम से उसे करने की बात सोची ,जीवन फिर से लाइन में लाना था मुझे ,

मैं अभी अपने कमरे में आया था की मेरा फोन बजने लगा ..

फोन रश्मि ने किया था ,

"हल्लो रश्मि .."

उधर से मुझे सिसकियों की आवाज सुनाई दी ,वो रो रही थी

"रश्मि रश्मि क्या हुआ ??"

किसी बुरे की आशंका ने मुझे घेर लिया था

"राज .." वो बस इतना ही कह पाई थी ,रोने की वजह से वो बोल भी नही पा रही थी

"क्या हुआ मेरी जान बोलो तो सही ,तुम ठीक तो हो क्या मैं वंहा आऊ,अंकल ने कुछ बोला तुम्हे ??"

मैं उठकर खड़ा हो चुका था ,शायद मैं उसके घर के लिए निकल जाता ..

"राज मेरी बात सुनो ,अभी पापा ने मुझसे बात की और .."

"और क्या .."

मेरे दिल की धड़कने थोड़ी तेज होने लगी थी

"और उन्होंने कहा की अगले महीने.."

उसका रोना फिर से बढ़ गया

"क्या..रश्मि "

मैं भी घबरा चुका था

"अगले महीने ..हमारी शादी है राज "

मैं अपना सर पकड़ कर धम से अपने बिस्तर में बैठ गया,मुझे समझ नही आया की आखिर रश्मि इतना क्यो रो रही है लेकिन फिर समझ आ गया क्योकि खुशी से मेरे आंखों में भी आंसू आ गए थे ..

"पगली इसमे कोई रोता है क्या "

असल में मेरा भी गाला थोडा भर गया था

"आई लव यू राज,मुझे लगा था की पापा कभी नही मानेगे,और मुझे विदेश भेज देंगे तुमसे दूर ..लेकिन जब उन्होंने ये कहा मैं खुद को रोक नही पाई,आई लव यू बेबी,मैं तुम्हारे बिना नही जी सकती थी ,पापा ने मुझे बचा लिया वरना मैं अपनी जान दे देती "

"खबरदार ऐसी बात की तो ..पागल कहि की .."

मैंने खुद को थोड़ा नार्मल किया

"तो मेरी रानी अब मेरी दुल्हन बनेगी .."

उधर से कुछ नही बोला गया ,वो शायद मुस्कुरा रही होगी ,बहुत ही गाढ़ी मुस्कान रही होगी मेरी जान की ,

"कुछ तो बोलो .."

"क्या.."

"तुम मेरी दुल्हन बनने वाली हो "

"ह्म्म्म "

"क्या हम्म "

"मुझे शर्म आती है"

"कब से ??"मैंने उसे छेड़ा

"चुप करो ,रखती हु .."

"अरे अपने पति से ऐसे बात करते है "

"मिस्टर अभी बने नही हो "इतने देर में अभी मुझे उसकी प्यारी हंसी सुनाई दी

"अच्छा बेटा ,तुम तो कहती थी की तुम मेरी हो .."

"वो तो हमेशा से हु जान...आई लव यू मेरे सोना,मेरे होने वाले पति देव.."

वो फिर से हंसी ,मेरे होठो में भी मुस्कान गहरी हो गई

"तुम शादी के लिए तैयार तो हो ना ,हमारी उम्र अभी बहुत छोटी है "

मैंने एक आशंका जाहिर की ,और बदले में वो जोरो से हंसी

"नही करनी है क्या पागल ,कितने मुश्किल में तो पापा का मुड़ बदला है इससे पहले फिर से उनका मुड़ बदले मुझे अपना बना लो ,अगर वो शादी नही करवाये तो मुझे उठा लेना और भगा कर शादी कर लेना "

उसकी आवाज में वही चिरपरिचित सी शरारत सुनाई दी ..

"अच्छा ,अभी भगा कर ले आता हु ,आज ही सुहागरात भी हो जाएगी "

"धत ..बदमाश चलो मैं रखती हु,बाय लव यू .."

"ऐसे ही सूखा सूखा .."

"लव यू मेरी जान ऊऊऊम्म्म्म्ममआआ ओके "

"बस इतना ही "

"आये अब ज्यादा मत उड़ो ,बाकी का गीला शादी के बाद अभी इससे ही काम चलाओ "

वो फिर से हंसी

"लव यू मेरी रानी .."

फोन कट चुका था और मैं मानो आसमान में उड़ रहा था ,तभी मुझे याद आया की मेरा रिश्ता असल में एक झूठ की बुनियाद पर खड़ा था ,मैंने ना ही रश्मि को और ना ही भैरव अंकल को पूरा सच बताया था ,मैंने अपनी शक्ति का उपयोग किया है और मेरा जिस्मानी संबंध अब भी मेरी दो बहनो के साथ था वही सामीरा के साथ भी …

मेरे चहरे में आई खुशी थोड़ी फीकी सी हो गयी ,लेकिन इसका इलाज हो सकता था और सही सलाह के लिए मेरे दिमाग में एक ही नाम कौंधा ..

नेहा दीदी ...
 
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अध्याय 54

नेहा दीदी से मिलने पर उन्होंने साफ साफ शब्दो में कहा था की जो बीत गया उन चीजो पर अपना दिमाग मत लगाओ ,बल्कि आने वाले वक्त की सोचो …

मैं भी फिर भी थोड़ा कंफ्यूशन में था ,

"दीदी लेकिन क्या ये सही होगा की मैं उनसे ये सब छिपाऊँ .."

मेरी बात सुनकर दीदी हँस पड़ी लेकिन जल्द ही संजीदा हो गई ..

"भाई झूल बोलकर रिश्ते की शुरुवात करना गलत है लेकिन तुमने झूठ नही बोला है बस सच को छुपाया है और जिस सच को तुमने छुपाया है वो अभी तुम्हारा सच है ,वो सच बदल सकता है ,तुम चीजो को और कॉम्प्लिकेटेड मत करो ,सच को ही बदल दो ,तुम रश्मि से प्यार करते हो या नही "

"जी दीदी करता हु "

"तो उसे बताओ की तुम उसे कितना प्यार करते हो ,पॉजिटिव तरीके से आगे बढ़ो ,उससे प्यार करो उसे अपने अहसासों का बयान करो ,और हा इन हवस के चक्रव्यूव से निकलो ये तुम्हे बर्बाद कर देगा .."

उनकी बात सुनकर मैं थोड़ी देर के लिए चुप रहा ..

"दीदी लेकिन निशा और निकिता दीदी को माना करे करू ?"

"आज नही तो कल करना ही होगा भाई ,उन्हें भी अपने लाइफ में एक नई दिशा ढूंढनी होगी ,अभी तो ये सब चल जाएगा लेकिन जब रश्मि घर आएगी तब कैसे करोगे …"

"तो क्या करना चाहिए.??"

"मुझे पता है की निशा और निकिता दीदी दोनो ही तुझसे सच में प्यार करते है और वो बातो को समझेंगे ,तेरे और रश्मि के बीच कभी भी कोई भी दीवार नही बनेंगे ..इसलिए तुम उनकी तरफ से बेफिक्र रहो लेकिन भाई बाहर किसी से ही कोई भी संबंध मत बनाना,ऐसे किसी के भी साथ जो तुम्हे बाद में फंसा दे या फिर जिसका पता रश्मि को किसी भी तरीके से चल जाए ,खैर मैं आशा करती हु की तुम्हे इतनी तो समझ होगी ही "

मेरे मन में सामीरा का नाम कौंधा लेकिन फिर भी मैं चुप ही रहा

"जी दीदी "

"ओके भाई अब अपने काम पर ध्यान दे आखिर तू इतने बड़े साम्राज्य का मालिक बन गया है और अब तेरी शादी भी हो रही है तो तुझपर जिम्मेदारी भी बढ़ाने वाली है …"

उन्होंने मेरे गालो को खींचा ,

**************

घर में फिर से खुसिया जन्म लेने लगी थी ,मेरी और निकिता दीदी की शादी की खबरों से कोई भी अछूता नही रह गया था ,सब कुछ ठीक चल रहा था,मैं अपने नियमित दिनचर्या को अपना रहा था ताकि मैं ज्यादा शांत रह सकू और वासना की लहरे मुझे ना छुए ,तब भी मेरा जिस्मानी संबंध निशा और निकिता दीदी के साथ बना ही हुआ था ,मैं निकिता दीदी से उनकी शादी के बाद ये संबंध खत्म कर देना चाहता था ,लेकिन अभी भी रोहित पूरी तरह से तैयार नही था,उसे मैं पूरी ट्रेनिंग दे रहा था ,कोशिस यही थी की वो दीदी के साथ आगे की जिंदगी अच्छे से बसर कर सके ..

सामीरा मेरी भावनाओ को समझती थी फिर भी कभी कभी हमारे बीच संबंध बन जाया करते थे,मैं इतना सक्षम तो था की एक साथ कई लड़कियों के साथ संभोग कर सकू लेकिन मैं चाहता था की ये जितना कम हो सके उतना ही मेरे और रश्मि के रिश्ते के लिए अच्छा है,मैं ये सच छिपा कर ही रखना चाहता था ..

सामीरा वाली बात ऐसे भी किसी को नही पता था ,वही निशा और निकिता दीदी वाली बात सिर्फ 3नो बहनो को बस पता थी,इन तीनो के अलावा किसी से भी संबंध बनाने से मैंने परहेज कर लिया था ,क्योकि मैं अपने पिता की गलती नही दोहराना चाहता था ..

अब मेरी शादी होने वाली थी और मुझे मेरी जिम्मेदारी का भी अहसास होने लगा था ,तो मैं बीजनेस में ही ज्यादा समय देने लगा था ,मैं सामीरा के साथ बैठे हुए अपने अकाउंट्स देख रहा था तभी एक नाम में आकर मैं अचानक से रुक गया …

"डागा इंटरप्राइजेज..?"

मेरे मुह से निकला

"हा राज ये डागा साहब की कंपनी थी …"

"डागा साहब ???"

"हा डेनिस चरण डागा उर्फ DCD उर्फ डागा साहब ,अलग अलग कामो के लिए अलग अलग नाम "

"मतलब .." सामीरा की बात सुनकर मेरे कान खड़े हो गए थे

"डेनिस चरण डागा ये नाम था उनके ड्राइविंग लाइसेंस और मतदाता पत्र का नाम ,अंडरवर्ड में वो DCD के नाम से जाने जाते थे और बिजनेस की दुनिया उन्हें डागा साहब बुलाती थी .."

"ओह...मगर इनका हमारी कंपनी से क्या कनेक्शन था "

"कभी तुम्हारे पिता और भैरव सिंह दोस्त हुआ करते थे,भैरव सिंह को ऊपर उठाना था तो उसने कुछ गलत धंधे भी शुरू कर दिए तब तुम्हारे पिता जी ने भी उनका साथ दिया था,उस समय ऐसे किसी भी काम को करना डागा साहब की परमिशन के बिना अधूरा होता था ,वो उस समय अंडरवर्ड के किंग हुआ करते थे ,अभी से उनका संबंध तुम्हारे पिता से हुआ था ,लेकिन बात में उन्होंने अपने बुरे कामो को बंद करना शुरू किया और सिंपल बिजनेस करने लगे,सुना है वो दिल के बहुत ही बड़े इंसान थे जितना कमाते थे उतना ही गरीबो और जरूरतमंदो में बांट देते थे,पुराने क्रिमनल होने के बावजूद उनका लोगो में बहुत सम्मान था ,तुम्हारे पिता जी की उन्होंने बिजनेस को बढ़ाने में बहुत मदद की थी दोनो में एक खास कनेक्शन भी था .."

"कैसा कनेक्शन " मैं हर एक शब्द को ध्यान से सुन रहा था

"कुछ अजीब सा कनेक्शन था ,बाद में मुझे पता चला था की वो दोनो किसी बाबा के सानिध्य में है और वंहा को साधना कर रहे है ,तुम्हारे पिता ने तो ये सब जल्दी ही छोड़ दिया लेकिन डागा साहब ने साधना जारी रखी और इससे उनके बिजनेस में बहुत ही नुकसान भी होने लगा,लेकिन फिर भी जैसे वो इस चीज को ही अपना जीवन बना लिए थे ,सारी संपत्ति बेच कर दान दे दिया और कही गायब हो गए ...तब तक तुम्हारे पिता से उनका और उनकी कंपनी का कनेक्शन खत्म हो चुका था ,सालो पहले की बात है ..फिर भी जिन लोगो को उन्होंने कंपनी बेची थी उनके साथ हमारे व्यपारिक संबंध थे ,ये उन्ही के अकाउंट्स है बाद में उन्हें जब लगा की डागा नाम का असर जब मार्किट में नही रहा तो उन्होंने कंपनी का नाम बदल लिया .."

"ओह …"

मैं कुछ सोच में पड़ा था ,मुझे जो समझ आया वो ये ही की पिता जी और बाबा दोनो एक साथ साधना करना शुरू किये थे ,लेकिन बाबा जी ने कभी भी मुझे इस बारे में नही बताया ...अजीब बात थी ,शायद वो अपनी पुरानी जिंदगी से बहुत ही आगे निकल चुके थे …

"क्या हुआ राज किस सोच में पड़ गए "

"नही नही कुछ नही बस .."

"तुम बिजनेस की ज्यादा टेंशन मत लो ,अभी तुम अपनी शादी पर फोकस करो ,तैयारिया भी तो करनी होगी .."

"हा वो भी है लेकिन अब शादी हो रही है तो जिम्मेदारियां भी तो बढ़ जाएगी "

मेरी बात सुनकर सामीरा हँस पड़ी

"तुम भैरव सिंह के दामाद बन रहे हो ,तुम्हे किस बात की फिक्र है .."

उसने मुझे ये चिढ़ाते हुए कहा था

"हमारा बिजनेस उनसे ज्यादा है "

"हा तो क्या हुआ,पावरफुल तो वो ज्यादा है ना .."

मैंने मुस्कुराते हुए सामीरा को देखा ,इसी पावर,पैसे और सेक्स के चक्कर ने मेरे पिता को डुबो दिया था ..मैंने मन ही मन कसम ली की मैं कभी इस गेम में नही फसुंग बल्कि अपनी जिंदगी में सादगी लेकर आऊंगा ,लोगो की मदद करूँगा जैसे बाबा जी किया करते थे,शक्तियां पाकर मेरे पिता ने जन्हा लोगो की जिंदगी बिगड़ दी और अपने परिवार से भी दूर हो गए वही बाबा जी ने उन्ही शक्तियों से बस दुसरो का भला ही किया,मेरे जैसे इंसान को इतना मजबूत और काबिल बना दिया …

और ये सब सोचते हुए मेरे चहरे में एक मुस्कान आ गई थी क्योकि आज मुझे जैसे अपने जीवन का असली मकसद मिल गया था ..
 
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अध्याय 55

शादी को कुछ ही दिन बचे थे ,मैं निशा के साथ सोया हुआ था ,

"भाई शादी के बाद आप तो मुझे भूल ही जाओगे क्यो ?"

निशा ने मुझे ये पहली बार नही चिढ़ाया था बल्कि वो ऐसा बोलते रहती थी लेकिन आज मैं इस बारे में थोड़ा सीरियस था ..

"तू कहे तो शादी ना करू "

मेरे ऐसे जवाब से वो भी चौक गई ..

"मैंने ऐसा तो नही कहा भाई"

"तुझे दुखी करके मैं खुश कैसे रह सकता हु मेरी जान "

मैंने बड़े ही प्यार से उसके होठो को चूमा ,उसके आंखों में मैंने कुछ बूंदे देखी..

"तू मेरी बहन है जान,हमारे बीच जिस्मानी संबंध जरूर है लेकिन फिर भी मैं तुझे अपने बहन की तरह ही प्यार करता हु ,लेकिन तुझे सोचना होगा की मैं तेरे लिए क्या हु ..और शादी हो ने से कोई बहन को नही भूल जाता,तू मेरी गर्लफ्रैंड नही है जो शादी होने पर मैं तुझे भूल जाऊंगा .."

वो सिसकते हुए मेरे सीने में आ समाई ..

मेरे छाती में उगे हुए बालो पर वो अपने हाथो को फेर रही थी ..

"भाई मैं भी आपको बहुत बहुत बहुत ज्यादा प्यार करती हु ,हा आप मेरे भाई हो लेकिन भाई से बहुत ज्यादा भी हो ,मैं ये नही कहती की आप शादी मत करो ,मुझे बेहद खुशी है की जिसे आप प्यार करते हो वो आपके जीवन में आ रही है ,रश्मि को मैं बेहद प्यार दूंगी और रही बात जिस्मानी संबंधों की तो …

मैं किसी और के साथ ये नही कर पाऊंगी ,बस मेरे लिए इतना करना होगा की मुझे हमेशा अपने पास रखना होगा,मैं आपसे कुछ भी नही माँगूँगी ,मैं समझती हु अगर आपको सिर्फ ये संबंध रश्मि के साथ रखना हो तो भी मुझे कोई दुख नही होगा लेकिन ...लेकिन मुझे किसी और के साथ जाने को मत कहना "

उसकी इस बात में मुझे इतना प्यार आया की मैंने उसके गालो को अपने हाथो में पकड़ कर उसके होठो में अपने होठो को डाल दिया..

थोड़ी देर तक उसके प्यारे से गालो को चूमता रहा,उसकी आंखों से अपने होठो को लगाया .और हल्के से उसके नाक पर अपने नाक को रगड़ा ,वो भी हल्के से मुस्कुराई ..

"निशा मैं तुझे हमेशा अपने साथ ही रखूंगा ,कोशिस करूँगा की शायद रश्मि हमारे रिश्ते को समझ पाए मुझे नही लगता की वो समझ पाएगी ,इसे लोग नाजायज और पाप ही समझते है और हमेशा ऐसा ही समझेंगे ,इसलिए दुनिया की मुझे कोई फिक्र नही है ,अगर ये नाजायज है और पाप है तो मैं ये पाप जीवन भर करूँगा,चाहे ये सब रश्मि से छिपकर ही क्यो न करना पड़े .."

मैं उसके होठो में अपने होठो को डाल चुका था,वही मेरे मन में ये बात भी आ रही थी की मैं जो बोल रहा हु उसे करना कितना कठिन होने वाला है ,रश्मि मूर्ख नही थी हमारी शादी होने वाली थी और एक बार जब वो घर आ गई तो निशा के साथ मुझे जिस्मानी रिश्ते तोड़ने पड़ेंगे ,रश्मि इसी शहर में रहती थी मायके जाने वाला कोई सिस्टम ही नही था,पाप करना जितना आसान होता है उसे छिपाना उतना ही कठिन और कोई चीज तब तक पाप होती है जब तक उसे छिपकर किया जाए ….

मुझे रश्मि से बात करनी होगी ,मैं अपनी बहन को ऐसे नही छोड़ सकता ,अगर वो किसी से शादी नही करेगी ,हमेशा मेरे साथ रहेगी तो इसका मतलब साफ था की मुझे उसके जिस्मानी जरूरतों को भी पूरा करना होगा ,और छिपकर मैं कितना ही कर पाऊंगा...मुझे इसकी बिल्कुल भी उम्मीद नही थी की रश्मि इसे समझ पाएगी लेकिन अगर किसी तरह उसे शादी के बाद ये सब पता चला तो शायद वो खुद को भी मार दे ,शायद वो इसे सहन ही नही कर पाए,वो मुझे छोड़ देती तो कोई बात नही थी लेकिन वो खुद भी इससे टूट जाएगी और ये मेरे लिए सबसे बड़ी बात थी जिसे मैं खुद इतना प्यार करता था मैं उसे टूटने कैसे दे सकता हु …

मैंने मन ही मन ये फैसला कर लिया था की शादी से पहले मैं उसे ये बात दूंगा …

************

शहर से बाहर एक पहाड़ी के ऊपर बैठा हुआ मैं सिगरेट के गहरे कस खीच रहा था ,सामने मेरे नजर में पास गहरी खाई दिख रही थी ,ये एक पर्यटन स्थल था जो की घुमावदार पहाड़ी रास्ते में बनाया गया था जन्हा लोग रुककर फ़ोटो वोट खिंचा करते थे,यंहा से पूरी खाई साफ साफ दिखाई देती थी साथ ही मेरा शहर भी ,और शहर से लगी नदी भी ..

इस मनोरम दृश्य को देखते हुए भी मेरे चहरे पर चिता के भाव गहरा रहे थे सिगरेट के कस इतने गहरे खीच रहा था की कोई भी देखकर कह सकता था की मेरे मन में कोई बहुत ही गहरा द्वंद चल रहा है ,मैं किसी बेहद ही गंभीर चिंता में डूबा हुआ हु ..

पास ही टॉमी भी टहल रहा था ,

जब मैं मुड़ा तो सामने से मेरी दिल की रानी,हुस्न की मलिका रश्मि आती हुई दिखी,आंखों में आंसू लिए और चहरे में ढेर सारा गुस्सा था ,उसके पीछे निशा चल रही थी उसके भी आंखों में आंसू था लेकिन चहरा मायूस था ..रश्मि मेरी ओर तेजी से बढ़ रही थी उसे देखते ही मेरे हाथो में रखी सिगरेट अपने आप ही नीचे गिर गई वो मेरे पास आ चुकी थी …

चटाक …

एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गालो में पड़ा,उसके हाथो इतने कोमल थे की मुझे किसी फूलों के टकराने सा आभास हुआ लेकिन वजन उसके हाथो में नही बल्कि उसकी भावनाओ में था..

आंखों से निर्झर आंसू बहने लगे थे,मेरी आंखे भी चंद बूंदों का रिसाव प्रारंभ कर चुकी थी ..

"तुम इतने बड़े कमीने निकलोगे मैंने सोचा भी नही था,जिसे मैंने अपने जान से ज्यादा चाहा वो ऐसा निकलेगा छि ...वो भी अपने ही बहन के साथ "

वो रोते हुए खाई के पास जाकर बैठ गई,एक बार मुझे डर लगा की कहि वो खुद ही ना जाए..

इसलिए मैं तुरंत ही उसके पास पहुचा और उसके पास बैठ गया ..उसकी दूसरी ओर निशा बैठ गई थी ..

रश्मि और निशा दोनो ही रो रहे थे ,मैं बस खाई को निहार रहा था ..

मैंने एक फैसला किया था रश्मि को अपने और निशा के बारे में बताने का फैसला ,मैं कुछ भी बोलने की हालत में नही था इसलिए मैं उसे और निशा को यंहा लेकर आया था ,और निशा ने उसे सब कुछ बता दिया था ,वो मानो किसी और ही दुनिया में खोई हुई बस रोये जा रही थी ..

ना जाने कितना समय ऐसे ही बीत गया था मैं उसे चुप कराने की कोशिस भी नही कर रहा था …..

"मैं ये शादी नही कर सकती "

आखिर उसने बोला ..

"मैं तुम्हारे फैसले का सम्मान करता हु रश्मि अगर तुम नही चाहती तो …"

मैं कुछ भी ना बोल पाया ..

लेकिन उसने अजीब आंखों से मुझे देखा

"मुझे इसकी उम्मीद नही थी राज की तुम ऐसे निकलोगे ..तुमने ये बात मुझसे छिपाई लेकिन ..लेकिन अब तुम मुझे यू ही जाने दे रहे हो .."

उसकी बात से मैं चौक गया

"तो .."

मैं हड़बड़ाया

"तो का क्या मतलब है ,जब हमारे परिवारों को ये पता है और उन्होंने रिश्ते के लिए मना नही किया तो हम क्यो पीछे हटे.."

इस बार मेरा सर पूरी तरह से चकराया ..

"वाट .."

"ऐसे क्या अनजान बन रहे हो सबको पता है की तुम और मैं भाई बहन है ,हम दोनो के पिता एक ही है "

मैंने घूरकर निशा की ओर देखा ..वो सर गड़ाए हुए मुस्कुरा रही थी ,अब इस लड़की का मैं क्या करू,मैंने इसे क्या बोलने के यंहा लाया था और ये क्या बोल गई ..

"रश्मि …"अब मैं क्या बोलता मुझे समझ ही नही आ रहा था असल में रश्मि इसलिए गुस्से में थी की मैंने उसे ये बात नही बताई थी जबकि मुझे पहले से ही पता चल गया था ..

"अब कुछ बोलोगे भी .."

वो मुझे गुस्से में देख रही थी ,मैंने एक गहरी सांस ली

"रश्मि बात बस इतनी नही है .."

इस बार निशा ने मुझे सर उठाकर देखा उसने ना में सर हिलाया ..

लेकिन मैंने बोलना जारी रखा

"रश्मि ये बात अपनी जगह है लेकिन मैं तुम्हे यंहा कुछ और बताने के लिए लाया हु ."

"नही भइया "

निशा अनजान डर से कांप गई थी जो बात उसे बतानी चाहिये थी वंहा वो खेल गई थी ,मैं समझता था वो नही चाहती थी की एक सच में मेरे और रश्मि के रिश्ते में कोई दरार आये लेकिन मैं झूठ के सहारे नही जी सकता था …

"क्या हुआ राज कौन सी बात "

रश्मि बुरी तरह से चौक गई थी और हमे संदेह की निगाहों से देख रही थी ..

"रश्मि कैसे कहु ..लेकिन कहना भी तो जरूरी है "

मैं अपना सर पकड़ कर बैठ चुका था ,रश्मि का रोना पूरी तरह से बंद हो गया था ..

"राज तुम मुझे डरा रहे हो क्या बात है .."

"नही भईया ऐसा मत करो "इस बार निशा फफक कर रो पड़ी थी

मैंने एक गहरी सांस ली ,और रश्मि का हाथ अपने हाथो में ले लिया

"रश्मि एक बात ये जान लो की मैं तुमसे बेहद प्यार करता हु ,तुम्हारे बिना मेरे लिए ऐसा है जैसे सांस लिए बिना जीना ,तू अगर मुझसे दूर हुई तो मैं तड़फ जाऊंगा ,इसलिए मैंने ये बात अभी तक तुमसे छिपा कर रखी है मैं नही चाहता था की मैं तुमसे दूर हो जाऊ लेकिन ...लेकिन मैं अपने रिश्ते की बुनियाद झूठ से नही रखना चाहता ,मुझे बोलना ही होगा ,ये झूठ मैं तुमसे नही बोल सकता .."

रश्मि ने मेरे आँखों में देखा वो सच में घबराई हुई थी

"क्या राज ..??"

"रश्मि...मेरे और निशा के बीच ..जिस्मानी संबंध है .."

मैं इतना ही बोलकर चुप हो गया था ,वही रश्मि का हाथ किसी बर्फ की तरह ठंडा हो चुका था,वो बस मुझे देख रही ही उसकी आंखों में एक आंसू भी नही था ,चहरा किसी मुर्दे की तरह पिला पड़ चुका था ,

"रश्मि .."

मैंने उसे हिलाया ,निशा भी और मैं दोनो ही उसकी इस हरकत से डर गए थे .

"रश्मि उठो ..रश्मि "

वो कुछ भी नही बोली ,उसकी आंखे तो खुली हुई थी लेकिन वो बस चुप थी ..

चटाक ,चटाक चटाक

मैंने पूरी ताकत से उसे तीन झापड़ लगा दिए ,तब जाकर उसकी नजर मुझसे मिली …

बस हमारी नजर मिली थी हम एक दूसरे को देख रहे थे,पता नही वो क्या बोलने वाली थी लेकिन वो चुप थी बिल्कुल ही चुप ,मैं चाहता था की वो मुझे मारे मुझे गालियां दे लेकिन वो चुप थो...और उसकी यही चुप्पी मुझे डरा रही थी ...बेहद ही डरा रही थी ..

"रश्मि कुछ बोलो "

मेरी आवाज भर गई थी

"माफ नही कर सकती तो कम से कम गालियां ही दे दो ,मुझे मारो रश्मि ,लेकिन ऐसे चुप तो ना रहो "

मैंने उसके चहरे को पकड़ कर झिंझोरा ,वो हल्के से हंसी

"बहुत खूब राज पिता जी सही कहते थे तुम रतन चंदानी के खून हो ,और उसपर कोई भी भरोसा नही कर सकते ..तुमने अपनी ही बहन के साथ ..वाह राज वाह.."

तभी निशा ने रश्मि का हाथ पकड़ लिया

"रश्मि ये मेरी गलती थी ,मैं ही भाई को उकसाती रही ,मैंने ही उनसे प्यार कर बैठी थी ,उन्होंने तो बस मुझसे प्यार किया था ,ये कब जिस्मानी हो गया मुझे पता ही नही चला ,प्लीज् रश्मि भाई को मत छोड़ना,मैं तुम्हारे जीवन से बहुत ही दूर चली जाऊंगी ,मेरा साया भी इनके ऊपर नही पड़ेगा ,रश्मि प्लीज ..ये तुम्हे बहुत प्यार करते है तुम्हारे बिना नही जी सकते "

निशा ,उसके पैर को पकड़ कर गिड़गिड़ा रही थी ..

रश्मि ने उसके बालो पर अपने हाथ फेरे ..

"नही निशा तू कहि नही जाएगी ,तूने अपने भाई से प्यार किया है और ये प्यार तुझे मुबारक हो ,जाऊंगी तो मैं तुम्हारे जीवन से "

इससे पहले ही कोई कुछ समझ पाता रश्मि खड़ी हुई और सीधे खाई में खुद गई ..

"रश्मि.." दो आवाजे तेजी से निकली ..और फिर

"भाई .."निशा चिल्लाई ,क्योकि मैं भी रश्मि के पीछे खुद गया था …

जैसे ही रश्मि खाई की तरफ भागी थी मुझे समझ आ गया था की वो क्या करने वाली है और मैं उसके पीछे दौड़ा वो कूदी और उसके पीछे मैं भी कूद गया ,इतने दिनों के बाद मैंने फिर से अपनी शक्तियों का प्रयोग किया मेरा दिमाग बिल्कुल ही शांत हो चुका था,मेरे हाथो में रश्मि का हाथ आ चुका था,मैंने उसकी कलाई को जकड़ लिया और अपने दूसरे हाथ से पहाड़ में उगे एक पेड़ को पकड़ लिया,नीचे खाई थी और हम अधर में लटके हुए थे …

"छोड़ दो मुझे राज मुझे मर जाने दो मैं ऐसे नही जी सकती "

रश्मि चिल्लाई

"चुप चुप बिल्कुल चुप.."उसकी इस हरकत से मेरा दिमाग गर्म हो चुका था

"क्या सोच कर अपनी जान दे रही है तू ,तेरे जाने के बाद क्या मैं खुश रह पहुँगा ..क्या निशा कभी अपने को माफ कर पाएगी ,अगर हम इसे तुझसे छिपाते तो जिंदगी भर कभी इसकी खबर नही होती और आज सच बोलने की तू मुझे ये सजा दे रही है "

"राज तुम मुझपर गुस्सा हो रहे हो तुम्हे इसका कोई हक नही है ,तुमने गलती की है .."

वो रोते हुए चिल्लाई

"गलती की है तो क्या खुद की जान ले लेगी,अरे मरना है तो मैं मारूंगा तू क्यो मारने को खुद गई ,और जब हम दोनो ही मारने वाले है तो सुन ..सिर्फ निशा ही नही बाली निकिता दीदी से भी मेरे सबन्ध रहे और हा मैं लड़कियों को सिर्फ देखकर ही उन्हें आकर्षित कर सकता हु लेकिन कभी तुझे किया क्या नही ना,क्योकि मैं तुझसे प्यार करता था ,और निकिता दीदी के साथ साथ सामीरा और सना से भी हो चुका है ,और कान्ता और शबीना से भी .."

खाई के उपर लटक रही थी ,उसकी कलाई को मैंने पकड़ के रखा था हम दोनो ही मौत में झूल रहे थे ..

वो आश्चर्य से मुझे देख रही थी ..

"क्या ...क्यो मेरे प्यार में ऐसी क्या कमी रह गई थी राज "

वो रोने लगी थी

"क्या कमी ?? तुझे उस लकड़ी के बारे में बताया था न और आठ ही ये भी की उसने मेरे अंदर कितनी ताकत भर दी ,तो वो ताकत मेरे सेक्स में भी बढ़ गई ..मैं पागल रहने लगा था सेक्स के लिए तभी मुझे निशा ने प्रपोज कर दिया ,तू तो शादी से पहले कुछ भी नही करना चाहती थी तो क्या करता तेरे साथ जबरदस्ती करता क्या,जो मिला उससे ही काम चला लिया "

ये सब बोलते ही मुझे थोड़ा भी डर नही लग रहा था मुझे बस ये लग रहा था की मारने से पहले बस उसे सब सच सच बता दु,मुझे अब ऐसा भी नही लग रहा था जैसे मैंने जिस्मानी संबंध बनाकर कोई गलती की हो मुझे सब बिल्कुल भी नार्मल सा लग रहा था और इसलिए मैं ये बोल पा रहा था ..

"तो तुम मुझे बता तो सकते थे ना की तुम्हे क्या परेशानी है ,मैं तुम्हे संतुष्ट करती "

मैं जोरो से हँस पड़ा

"तू..तू तो मुझे अकेले अभी भी सन्तुष्ट नही कर पाएगी ,शायद तुझे पता नही की ये आग क्या है रश्मि,मैं तुझे कभी भी धोखा नही दे सकता इसलिए मैंने शादी से पहले के सभी संबंध खत्म करने के लिए भी सोच लिया लेकिन ...लेकिन जब ये आग भड़कती है तो ..तो तुझे बता नही सकता की क्या हो जाता है मैं जानवर बन जाता हु ,एक लड़की के बस का नही है पगली "

वो मुह फाडे देख रही थी

"अगर सच्चाई बता देते तो मैं कुछ ना कुछ तो कर हि सकती थी "

"ले अब बात दिया ना सच्चाई कर ले क्या कर सकती है "

मैं ये बोलकर हँस पड़ा था वही रश्मि मुझे खा जाने वाली निगगहो से देख रही थी ,मैंने एक गहरी सांस ली और उसे ऊपर उछाल दिया ,वो हवा में उछली और मैंने उसके कमर को पकड़कर अपने से चिपका लिया ..

"देखा तेरे होने वाले पति में इतनी ताकत है की तुझे किसी गुड़िया की तरह उछाल दिया "

मैं जोरो से हंसी ..

"पति हु .."

भले ही हम जिंदा बचे या ना बचे लेकिन रश्मि की नाराजगी का गायब होना मेरे लिए इतना सुखद था की मैं अब हँसते हँसते ही मर सकता था ..

"ये पगली ,आई लव यू,और शादी के बाद किसी से कोई भी संबंध नही ,मेरा प्रोमिश है "

"और निशा के साथ "

"तेरी इजाजत से ,वो भी तो मुझे बेहद प्यार करती है और मेरे सिवा किसी और की नही होना चाहती "

"वो तुम्हारी बहन है "

"तू भी तो है .."

मेरी बात सुनकर रश्मि शर्मा गई

"मेरी बात अलग है .."

मैंने उसके चहरे में एक फूक मारी ,मेरे हाथो में अब दर्द होने लगा था,ये हमारे जीवन का अंतिम समय हो सकता था और मैं इसे और भी हसीन बनाना चाहता था ,

"हम शायद अब मारने वाले है मारने से पहले मुझे माफ कर दे जान ,मैं तेरा हु और सिर्फ तेरा ही रहूंगा,आई लव यू मेरी रानी "

मैंने रश्मि के नाक में अपनी नाक रगड़ी..

उसकी आंखों में पानी था ,उसने अपने हाथ मेरे गले में जकड़ लिए थे,और पैर मेरे कमर में ..

हमारे होठ मील गए ..

जीवन में ऐसा किस मैंने कभी भी नही किया था ,इसमे इतना प्रेम था इतनी गहराई थी …..

मेरा हाथ फिसलने लगा था ,और अब मैं अपनी जान के बांहो में समाए हुए अपने जीवन का अंत करना चाहता था ..

"मैं इसी तरफ से मरना चाहता था जान "

हम दोनो की आंखे मिल गई थी ..

"लेकिन अब मैं मरना नही चाहती ,तुम्हारे साथ जीना चाहती हु "

उसने सुबकते हुए कहा ,

"अरे वो कोई जगह है क्या रोमांस करने की ,रस्सी को पकड़ो "

ऊपर से निशा चिल्लाई ,देखा तो पास में एक रस्सी अभी अभी लटक रही थी शायद निशा ने फेंकी थी ..

"तुम साथ हो तो मैं कैसे मर सकता हु "

मैंने ताकत लगाई और अपनी पकड़ और भी मजबूत कर दी और उसे रस्सी को अपनी ओर खिंचने के लिए कहा,रस्सी से मैंने उसे अपनी और मेरी कमर को जोरो से बंधने के लिए कहा ,जब उसने आश्वस्त किया की हमारी कमर रस्सी से अच्छे से बंध चुकी है तो मैंने रस्सी को दोनो हाथो से पकड़ लिया,रश्मि मुझे जोरो से पकड़े हुए थी ..

ये मेरे ताकत की परीक्षा थी ,मैं पुरी ताकत लगाकर ऊपर चढ़ रहा था ,हाथो में गजब का दर्द था लग रहा था की कहि ये शून्य ना हो जाए लेकिन मैं गहरी सांस लेकर ऊपर चढ़ रहा था ……..

ऊपर आने के बाद जन्हा निशा रोते हुए हमसे लिपट गई वही ,रश्मि ने मुझसे अलग होते ही एक तेज करारा झापड़ मेरे गालो में झड़ दिया …

"अकेले मरने भी नही दे सकते क्या "

वो गुस्से में बोली

मैंने मुस्कुराते हुए हा में सर हिलाया और वो फिर से मुझसे लिपट गई …...
 
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अध्याय 56

आखिरकार वो ही दिन आ गया जब हमारी शादी हुई ,पूरा माहौल खुश था,शहनाइयां बज रही थी ,दिल झूम रहा था ..

पहले मेरी बारात गई और फिर दूसरे दिन निकिता दीदी की शादी होनी थी ,बारात आने ही वाली थी और में दीदी के कमरे में गया …

वो दुल्हन के परिधान में बैठी हुई बहुत ही प्यारी लग रही थी ..

मैंने सबसे उनसे अकेले बात करने के लिए थोड़ा समय मांगा…

"क्या हुआ भाई"

मुझे अपने चहरे को इतना गौर से देखते हुए दीदी ने कहा

"आप बहुत ही सुंदर लग रही हो "

मैंने उनके माथे को चुम लिया..

वो भी मुस्कुरा रही थी

"दीदी ,रोहित जैसा भी है आपसे बहुत ही प्यार करता है "

"जानती हुई इसलिए तो इस शादी के लिए राजी हो गई,और तू तो है ना सब सम्हालने के लिए "

वो मुस्कुराई

"सब का मतलब…"

मैं उन्हें देखकर मुस्कुराया

"सब का मतलब सब ..अगर रोहित मुझे खुश नही कर पाया तो "

मैं हल्के से मुस्कुराने लगा

"वो कर लेगा फिक्र मत कीजिये,हमारे बीच जो भी हुआ है आजतक उसे सब पता है ,लेकिन आज के बाद आप उसकी है,मैंने उसे ट्रेन किया है वो अब मानसिक और शारीरिक रूप से पहले से बहुत ही अच्छा और मजबूत इंसान बन चुका है.."

"जानती हु भाई लेकिन उसकी बस वो देखने वाली बीमारी उसके सर में ना चढ़े वरना करने की जगह बाद देखता रह जाएगा "

हम दोनो ही इस बात पर जोरो से हँस पड़े

"डोंट वरी वो सम्हाल लेगा अब "

"और भाई रश्मि को खुश रखना,ये बड़ी बात है की वो तुमसे इतना प्यार करती है,तू नसीबवाला है की तुझे समझने वाली बीबी तुझे मिल रही है और एक बात और अपने हैवान को अपने काबू में रखना ,बेचारी के लिए सब कुछ नया होगा "

मैंने मुस्कराते हुए हा में सर हिलाया और उनका माथा फिर से चूम लिया …

दीदी की बिदाई हो चुकी थी ,सही शादी के भागदौड़ में थके हुए थे..दूसरे दिन मेरी सुहागरात होनी थी ..


मुझे सुबह से ही अपने कमरे में घुसने नही दिया गया था ,रात में जब मैं वंहा पहुचा तो पूरा कमरा अच्छे से सजाया गया था..

अंदर मेरी दो बहने मेरा इंतजार कर रही थी …

"भाई पहले शगुन दो फिर हम जाएंगे "

निशा ने इठलाते हुए कहा ,मेरी जान रश्मि अभी सिकुड़ी हुई अंदर ही अंदर मुस्कुराते हुए बैठी थी ..

वही निशा और नेहा दीदी मेरे बिस्तर पर आराम से बैठी थी ,टॉमी भी मानो कोई शगुन की आस में उनके साथ ही बैठा हुआ था ..

"क्या शगुन चाहिए "

मेरी बात सुनकर दोनो एक दूसरे को देखने लगी

फिर निशा ने ही आगे की बात की

"भाई पूरा पर्स खाली करेंगे तब ही भाभी के पास आने देंगे वरना हम यही बैठे है "

"अच्छा तो बैठे रहो मेरी जान से प्यार करने में मैं शरमाउंगा क्या ??"

"हा तू तो बेशर्म ही है,चल चुप चाप शगुन निकाल "

इस बार नेहा दीदी ने मुझे झाड़ा "

"अरे तो बताओ तो की कितना ??"

मेरी बात सुनकर फिर से दोनो बहने एक दूसरे को देखने लगे ..

"मुझे एक शगुन चाहिए "निशा बोल उठी

"अरे मेरी जान मेरा जो भी है वो तेरा ही तो है तू बोल ना तुझे क्या चाहिए "

आखिर मैंने भी बोला

"मुझे चाहिये...कि ..आप भाभी से बेहद प्यार करोगे और साथ ही उनका पूरा ख्याल रखोगे "

निशा की मासूम सी आवाज मेरे कानो में पड़ी

मेरे और नेहा दीदी के साथ साथ रश्मि भी मुस्कुराने लगी थी

"अच्छा तुझे क्या लगता है की मैं तेरी भाभी को प्यार नही करूँगा "

मैंने निशा को छेड़ा

"मैं जानती हु की आप भाभी से कितना प्यार करते हो लेकिन फिर भी मुझे कसम दो "

निशा का बालहठ जारी था

""तू बोले तो जान दे दु तेरी भाभी के लिए ."

मेरी बात सुनकर सब थोड़ी देर के लिए चुप हो गए

"अच्छा खाई में लटक कर भी दिमाग ठिकाने नही आया ना आपका ,चलो सीधे सीधे प्रोमिश करो मुझसे "

निशा की इस बात ने कहि ना कहि मेरा दिल ही जीत लिया था ,मैं उसके हाथ में अपना हाथ रखकर बोल पड़ा..

""मैं तेरी भाभी से जान से भी ज्यादा प्यार करूँगा ,वो मेरी जान है उसके लिये कुछ भी करूँगा ओके .."

मेरी बात सुनकर जन्हा निशा के चहरे में नूर आ गया वही रश्मि थोड़ी और सहम सी गई ,ना जाने घूंघट के अंदर का क्या माजरा था ..

"भाई अब शगुन दे और हमे बिदा कर "

नेहा दीदी ने साफ शब्दो में कहा

"अरे तो बोलो ना,अपनी बहनो के लिए तो जान हाजिर है "

"जान नही बस तू पर्स इधर दे "

मैंने मुस्कुराते हुए अपना पर्स उन्हें दे दिया…

" छि कैसा कंगाल आदमी है ,इतनी बड़ी प्रॉपर्टी का मालिक हो गया है फिर भी जेब में सिर्फ 2 हजार रुपये "

"अरे दीदी क्रेडिट कार्ड रख लो जो लेना हो ले लेना "

"हमे बस नेंग के लिये चाहिए,अभी यंहा से निकलेंगे तो पूरे परिवार वाले पूछेंगे की भाई ने कितना दिया ,ये क्रेडिट नही केस होता है "

"ओह..कैश तो इतना ही है "

"कोई बात नही इतने में काम चला लेंगे "

दीदी ने पैसे अपने पास रख लिए और रश्मि के सर पर एक किस किया साथ ही मेरे माथे को भी चूमा ,वही निशा ने भी किया ..

"बेस्ट ऑफ लक भाई"

दोनो मुस्कुराते हुए वंहा से निकल गई ,साथ ही टॉमी को भी ले गयी ..

"अरे उसे तो छोड़ दो ,उसे कहा ले जा रही हो "

मेरी बात सुनकर दोनो ही हँस पड़ी वही मुझे रश्मि की भी हंसी की आवाज सुनाई दी ..

"आज इसे हम लोगो के पास रखने दे ओके.."

मैंने कोई बहस नही किया ,क्योकि अगर वो ऐसा कर रही थी तो कुछ सोचकर ही कर रही थी ...

ये परम्पराए भी अजीब होती है ,इतनी दौलत होते हुए भी मेरी बहने 2 हजार में खुश हो गई ..

खैर सामने रश्मि शरमाई और सहमी ही बैठी थी ,ऐसे जिनकी लव मैरिज हुई हो उन्हें ऐसे शर्माना तो शोभा नही देता लेकिन सच कहो तो ये शर्म एक औरत को और भी खूबसूरत बना देता है ..

मैंने धीरे से उसका घूंघट उठाया,वो हल्के हल्के मुस्कुरा रही थी ..

"हाय मेरी जान कितनी खूबसूरत लग रही हो "

सच में वो बेहद ही सूंदर लग रही थी ,सुंदरता सिर्फ जिस्म की नही होती असल में सूंदर होना और सूंदर दिखना दोनो में फर्क है ,कोई दुनिया की नजर में सूंदर हो सकता है लेकिन आप को सूंदर ना लगे वही कोई दुनिया की नजर में सुंदर नही हो वो आपको बेहद ही सूंदर लगे ,जैसे की मा को उसके बच्चे हमेशा से सूंदर लगते है चाहे वो जैसे भी हो ..

प्रेम में होने से सुंदरता और भी बढ़ जाती है ,मैं प्रेम में था एक गहरे प्रेम में था और रश्मि भी शायद मेरे लिए वैसा ही महसूस करती थी..

मुस्कराती हुई रश्मि को देखकर मुझे समझ ही नही आ रहा था की मैं शुरू कहा से करू क्योकि मैं जो भी करता तो हो सकता है उसकी मुस्कराहट चली जाती और मै ये नही होने देना चाहता था ..

"इन लोग टॉमी को भी ले गए "

मैंने बात बढ़ाने के लिए कहा,हमारे रिलेशन को इतना दिन हो गया था फिर भी मुझे यंहा बैठकर नर्वस सी फिलिंग आ रही थी ..

मेरी बात सुनकर वो हंसी

"मैंने ही कहा था "

"वाट ? क्यो??"

"मुझे शर्म आती ना इसलिए "

"अरे तो टॉमी से क्या शर्माना "

वो फिर से हल्के से हंसी "

"नही पता लेकिन उसके सामने "

"उसके सामने क्या ?"

"वो मेरा देवर जो है "

रश्मि की बात सुनकर मुझे बेहद प्यार आया और मैंने उसके गालो को चुम लिया

"अच्छा वो तुम्हारा देवर है "

"अब आप मेरे पति हो "

मुझे अचानक ही ये याद आया की मैं सच में उसका पति हु ,ये हो गया था ..ये फिलिंग भी मेरे दिमाग से निकल गई थी ,पति होने की फिलिंग ..वो मेरी पत्नी थी इसका मतलब बहुत ही बड़ा था.एक जिम्मेदारी साथ थी ,और उसके साथ ही एक अधिकार भी ..

मैंने रश्मि को जोरो से जकड़ लिया था .

"क्या हुआ आपको "

वो मुझे आप कहने लगी थी ,मेरे चहरे में ये सुनकर मुस्कान आ गई

"तुम मेरी हो गई जान "

"मैं तो हमेशा से ही आपकी हु "

"लेकिन आज दुनिया के सामने भी हो गई ,"

"और आप भी अब मेरे हो "

"हा मेरी जान "

मैंने रश्मि के होठो पर अपने होठो को रख दिया ,झलकते हुए पैमानों से होठो का रस मेरे होठो में घुलने लगा था ,उसने भी अपनी बांहे मेरे गले में डालकर मुझे खुद को सौप दिया था..

हम आगे बड़े और तब तक नही रुके जब तक हम एक दूसरे में खो ही नही गए …..


*********

शादी को 10 दिन हो चुके थे ,हम कही घूमने जाने का प्लान भी कर रहे थे ,तभी नेहा दीदी ने मुझे एक गिफ्ट दिया ..

उसमे एक जादू के शो की कुछ टिकटे थी ,कोई बहुत बड़ा जादूगर शहर आया था,देश विदेश में उसका नाम था ,शहर के बड़े बड़े लोग भी वंहा पहुचे थे..

"अरे दी मुझे ये जादू वादु में कोई इंटरेस्ट नही है "

"देख हम सभी तो जा रहे है तू अपना देख ले लेकिन याद रख नही गया तो जीवन भर पछतायेगा "

उनकी बात मुझे थोड़ी अजीब लगी ,मैंने उनके आंखों में देखा कुछ तो अजीब था ...वही रश्मि और निशा बहुत ही एक्साइटेड थे क्योकि उन्होंने उस जादूगर के कुछ खेल यु ट्यूब और टीवी में देखा था,उन्होंने भी मुझे जाने के लिए बहुत फ़ोर्स किया आखिर मैं भी मान ही गया……

शो शानदार था और कुछ ऐसा था जो हजारों सवाल मेरे दिमाग में ला रहा था ,जैसे उस जादूगर ने खुद को ऊपर लटकाया था उसके हाथ पैर बांध दिए गए थे,मजबूत ताले लगा दिए गए थे,वही

नीचे बड़े बड़े मगरमच्छ से भरा हुआ शीशे की बानी टंकी थी ,अगर वो नीचे गिरता तो मगरमच्छ उसे खा जाते ,ऊपर की रस्सी को भी जला दिया गया था जो की एक मिनट बाद ही टूट जाती ,जिससे वो नीचे गिर जाता ..

अब उसे अपने हाथ और पैर के ताले खोलकर टंकी के बाजू में खुद जाना था वो भी सिर्फ 1 मिनट के अंदर वरना वो मारा जाता ,सभी अपनी उंगली दांत से दबा चुके थे ,समय निकल रहा था और वो अपने हाथो को खोलने में कामियाब रहा था लेकिन पैरो को नही खोल पा रहा था .1 मिनट पूरा होगा गया चारो तरफ लाल लाइट जलने लगी और आखिर रस्सी टूट गई ,जादूगर का शरीर सीधे उस टब में गिरा और चारो तरफ से चीखों की आवाज गूंज गई ,मेरा दिल ही जोरो से धड़का ,टब के अंदर के मगरमच्छो ने उसके शरीर के चिथड़े चिथड़े उड़ा दिए …

पूरा हाल शांत हो गया था तभी एक आवाज आय

"क्या आप मुझे यंहा देखना चाहते है"

ये आवाज हाल के पीछे से आई सही का सर उधर घुमा और तालियों की गड़गड़ाहट से फिर से पूरा हाल गूंज गया ..वो जादूगर हाल के एंट्री पॉइंट में खड़ा था .

सभी जैसे पागल हो गए थे और तालिया बजा रहे थे ,और ये तो बस एक ही आइटम था उसने कुछ और भी चीजे दिखाई जिसे देखकर मेरे दिमाग में बस एक ही सवाल गुंजा …

आखिर कैसे ….????
 

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