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दोस्तों यह मेरी पहली कहानी है उम्मीद करता हूं आप लोगों को पसंद आएगी अगर कुछ गलती होगी तो क्षमा कर देना।
यह कहानी होती है एक छोटे से शहर की जो कि गंगा के किनारे होता है। जहां के कुछ इलाकों में एक देसी वातावरण देखने को मिलता है तो कुछ ऐसे भी इलाके होते हैं जहां बड़े शहरों की हल्की झलक मिल जाती है।
इसी शहर में एक मिडिल क्लास फैमिली होती है यह कहानी एक ऐसे परिवार की होती है जो कि ऊपर से दिखने में तो बहुत सुलझी हुई लगती है मगर अंदर से बहुत ही उल्टी होती है। जिसका हर किरदार अपने आप में ही एक रहस्य को लेकर बैठा होता है। मगर कहते हैं ना कि रहस्य और राज्य कितने भी गहरे क्यों नहीं हो वक्त ऐसी परिस्थितियां लाता है कि धीरे-धीरे खुद ही सारी गुत्थी सुलझने लगती है।
वंदना 42 साल की औरत गोरी चिट्ठी जिसकी कद अच्छी खासी होती है घने रेशमी जुल्फें जो गांड़ तक हो बदन भरा हुआ भारी भरकम गुदाज मांसल थुलथुली गांड़ बड़ी चुचि मोटी मांसल जांघ और उस मोटी जांघों के बीच में मोटी चर्बी वाली बालों से ढकी चूत जैसे मानो कि नीचे वाला अपने अंदर में कोई अनमोल खजाने को छुपाए है।
मोनू एक 20 साल का लड़का जो स्कूल में गंदे लड़कों की संगति में रह करके गंदी कहानियां पढ़ना और अपने ही मम्मी के बारे में गंदे गंदे फेंटेसी करना। वैसे तो मां की नजरों में भोलू राम होता है मगर किसी को नहीं खबर होता है कि सबकी नजरों में सीधा दिखने वाला मोनू असल में कितना चालू चीज है।
वैसे तो और भी कहानियों में पात्र आते जाते रहेंगे जो कि आप लोगों को समय-समय पर मालूम चल जाएंगे।
वंदना के पति जो कि दूसरे राज्य में नौकरी करते हैं जिस वजह से अक्सर उनको बाहर ही रहना पड़ता है।
यह बात उन दिनों की होती है जब नवंबर का महीना होता है और मोनू अपने कंबल के अंदर सोता हुआ कोई हसीन सपने देख रहा होता है। सुबह की हल्की हल्की धूप निकल चुकी होती है और सामने पेड़ों के ऊपर टहनियों के ऊपर चिड़ियों की चहचहाहट मानव पूरे वातावरण में ऐसे संगीत बिखेर रहा हो जिससे मोनू बिस्तर से उठने का नाम ही नहीं लेता है।
रोज सुबह की तरह वंदना नाइटी पहने हुए घर में झाड़ू लगा रही होती है। इसके बाद वो रसोई में जाकर के काम कर रही होती है और तभी उसे ध्यान में आता है कि मोनू तो अभी तक सोया हुआ है और आज संडे भी है। तभी उसे आ जाना कि याद आता है कि आज तो किरायेदारों का महीने का दिन हो गया है। वंदना का घर छोटा बड़ा होता है तीन मंजिला जिसको की एक्स्ट्रा इनकम के लिए किराए पर भी लगा देती है जहां पर कुछ कॉलेज जाने वाले जवान लड़के तो कुछ पारिवारिक मर्द रहते हैं तो कुछ ऐसे लोग भी रहते हैं जो कि नौकरी के वजह से इस शहर में हो।
वंदना: यह लड़का भी ना अभी तक सोया हुआ है समझ में नहीं आता है क्या होगा इसका
मोनू मोनू उठना भी है या अभी तक सोना ही है आने दो पापा का फोन बोलते हैं तुम तो रात भर फोन चलाते हो और सुबह लेट उठते हो।
इधर बंदना किचन से आवाज लगा रही होती है लेकिन उसे क्या मालूम कि उसका बेटा हूं मोनू कोई हसीन सपने में ब्लैंकेट के अंदर खोया हुआ है।
वंदना: यह लड़का ऐसे सुनने वाला नहीं है मैं तेरी कदमों से चलते हुए उसके कमरे में आकर जोर से उसके ऊपर गुस्सा होती हूं और उसका ब्लैंकेट खींच देती हूं। कब से तुम को आवाज दे रही हूं सुनने का नाम ही नहीं है आज मालूम है ना संडे है । जल्दी से उठ करके फ्रेश हो जाओ नाश्ता बना देती हूं उसके बाद डैडी लेकर के जिनका जिनका महीने का किराया का समय हो गया है उनको जा करके बोलो कि मम्मी ने किराए के लिए बोला है।
मोनू: मैं मन ही मन सोच रहा होता हूं और कितना अच्छा सपना देख रहा था अपनी आंखों को मलता हुआ मैं बिस्तर से उठ जाता हूं। और कुछ देर में फ्रेश होकर के नाश्ता वगैरह करने के बारे डेयरी ले लेता हूं और बोलता हूं
आपने बोला था कि इस महीने का किराया आएगा तो मोटरसाइकिल दिलवा दोगे।
वंदना: हां बोला था ना मगर तुम्हारी लक्षण और करतूत देख कर मन नहीं करता है तुमको दिलवाने का कि तुम भी आवारागर्दी करना शुरु कर दोगे। पापा तुम्हारे हमेशा पूछते रहते हैं ठीक से पढ़ाई करता है या नहीं बताओ उस दिन तुम्हारे स्कूल गई थी तुम्हारा रिजल्ट इतना खराब था। वहां जितने भी पेरेंट्स बैठे हुए थे मुझे उनके बीच में कैसा लगा मैं ही समझती हूं नहीं तो घर में गाड़ी की तो जरूरत है क्योंकि मुझे भी बाहर जाने में मार्केट जाने में दिक्कत होती है मगर तुम्हारे ही वजह से नहीं लेती हूं।
मोनू: लगता है आज मैं लेट से सो गया इसीलिए मम्मी गरम हो गई है कहीं बात गरबर ना हो जाए यह बातें मेरे मन में चल रही होती है और तभी मुझे एक आईडिया आता है मैं बड़े ही प्यार से जाता हूं और मम्मी को पीछे से बाहों में भर लेता हूं
इतना गुस्सा करती हो मेरी मम्मी मैंने बोला था ना कि मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है इसलिए मुझे लेट हो गया उठने में। और आपको तो मालूम है ना स्कूल के जो बच्चे होते हैं वह स्कूल के टीचर से ही ट्यूशन पढ़ते हैं इसीलिए उनको मार्क्स मिलने में आसानी होती है आप ही तो कहती हो ना कि तुम्हारा जो भी मार्क्स आए तुम्हारे दम पर आना चाहिए।
(मैं मन ही मन अब खुश हो रहा होता हूं मुझे लग रहा होता है कि मम्मी को मैं मना लूंगा)
वंदना: अरे चोर मुझे पीछे से गधे जैसा हो गया है अभी तक बच्चों जैसा करता है। मेरा मन नहीं करता क्या मेरा बेटा भी गाड़ी चलाएं देखो तो बगल के जितने भी लड़के हैं कितने अच्छे अच्छे मार्क्स आते हैं सबके तुम मुझे प्रॉमिस कर दो कि तुम्हारा मार्क्स अच्छा आएगा तुम जो गाड़ी बोलोगे दिलवाने के लिए दिलवा दूंगी
जैसे ही वंदना के मुंह से यह बातें निकलती है मोनू की तो मानो मनचाही मुराद पूरी हो गई हो।
मोनू: मैं बड़ा खुश हो जाता हूं और प्यार से मम्मी के गाल पकड़ कर बोलता हूं सच्ची मम्मी फिर तो आप की कसम इस बार देखना मेरा एक्जाम कैसा जाएगा अब आप की कसम खाया हूं तो अब तो आप मुझे शाम में दिलवा देना गारी आपको मालूम है ना कि मैं आप का झूठा कसम नहीं खाता हूं।
वंदना: मुस्कुरा कर के मोनू से अपने आप को चुरा लेती हूं और बोलती हो मेरे बेटे को अच्छी तरीके से मालूम है मुझे कैसे मनाया जाता है। जा अब जल्दी से महीने का रेंट लेकर के आ जाओ।
बेटा सुनो ना दूसरे वाले फ्लोर पर जो फैमिली रहती है उनके पास तुम मत जाना उनसे मैं बात कर लूंगी थोड़ा उन लोगों के साथ में अभी प्रॉब्लम है तो उनको थोड़ा लेट लगेगा।
मोनू: मैं मुंह बना लेता हूं और बोलता हूं यह क्या बात हुई मम्मी लेट लगेगा लेकिन वक्त तो हो गया है ना।
दूसरे फ्लोर पर जो फैमिली रहती है मैंने उनके बारे में कुछ बोलना सही नहीं समझा क्योंकि उनसे मम्मी की अच्छी खासी बनती है।
कुल मिलाकर के मैं वहां से गाड़ी ले कर के निकल जाता हूं और 1 घंटे लग जाते हैं मुझे यह सब करते हुए फिर मैं मम्मी के पास आता हूं और उनको पैसे दे देता हूं। और हर बार की तरह इस बार भी उसमें से मम्मी मुझे ₹500 दे देती है। क्योंकि जब भी मैं घर के काम करता हूं जैसे सब्जियां लाना या कोई सामान लगा तो मम्मी खुद कुछ ना कुछ मुझे दे देती है।
थोड़ी देर तक फोन में फेसबुक वगैरा सब कुछ चलाने के बाद मुझे अचानक याद आता है कि ऊपर की आंटी ने बोला होता है। मम्मी को बोलना ऊपर आने के लिए उन्होंने कोई साड़ी वगैरह खरीदी है दिखानी हैं।
मैं जाता हूं और मम्मी के कमरे से बाहर उनको बोलता हूं मम्मी मैं बोलना भूल ही गया था कि आंटी ऊपर मैं बोल रही थी कि आपको ऊपर आने के लिए कुछ दिखानी है उनको शायद पता नहीं कोई कपड़ा वगैरह खरीदा है उन्होंने।
वंदना: खाना खा लिए हो ना तुम खाने का मन करेगा तो किचन में लेकर के खा लेना जरा देख लेना खिड़की दरवाजे तो नहीं खुले हैं नहीं तो बिल्ली आकर के दूध गिरा देती।
यह कहानी होती है एक छोटे से शहर की जो कि गंगा के किनारे होता है। जहां के कुछ इलाकों में एक देसी वातावरण देखने को मिलता है तो कुछ ऐसे भी इलाके होते हैं जहां बड़े शहरों की हल्की झलक मिल जाती है।
इसी शहर में एक मिडिल क्लास फैमिली होती है यह कहानी एक ऐसे परिवार की होती है जो कि ऊपर से दिखने में तो बहुत सुलझी हुई लगती है मगर अंदर से बहुत ही उल्टी होती है। जिसका हर किरदार अपने आप में ही एक रहस्य को लेकर बैठा होता है। मगर कहते हैं ना कि रहस्य और राज्य कितने भी गहरे क्यों नहीं हो वक्त ऐसी परिस्थितियां लाता है कि धीरे-धीरे खुद ही सारी गुत्थी सुलझने लगती है।
वंदना 42 साल की औरत गोरी चिट्ठी जिसकी कद अच्छी खासी होती है घने रेशमी जुल्फें जो गांड़ तक हो बदन भरा हुआ भारी भरकम गुदाज मांसल थुलथुली गांड़ बड़ी चुचि मोटी मांसल जांघ और उस मोटी जांघों के बीच में मोटी चर्बी वाली बालों से ढकी चूत जैसे मानो कि नीचे वाला अपने अंदर में कोई अनमोल खजाने को छुपाए है।
मोनू एक 20 साल का लड़का जो स्कूल में गंदे लड़कों की संगति में रह करके गंदी कहानियां पढ़ना और अपने ही मम्मी के बारे में गंदे गंदे फेंटेसी करना। वैसे तो मां की नजरों में भोलू राम होता है मगर किसी को नहीं खबर होता है कि सबकी नजरों में सीधा दिखने वाला मोनू असल में कितना चालू चीज है।
वैसे तो और भी कहानियों में पात्र आते जाते रहेंगे जो कि आप लोगों को समय-समय पर मालूम चल जाएंगे।
वंदना के पति जो कि दूसरे राज्य में नौकरी करते हैं जिस वजह से अक्सर उनको बाहर ही रहना पड़ता है।
यह बात उन दिनों की होती है जब नवंबर का महीना होता है और मोनू अपने कंबल के अंदर सोता हुआ कोई हसीन सपने देख रहा होता है। सुबह की हल्की हल्की धूप निकल चुकी होती है और सामने पेड़ों के ऊपर टहनियों के ऊपर चिड़ियों की चहचहाहट मानव पूरे वातावरण में ऐसे संगीत बिखेर रहा हो जिससे मोनू बिस्तर से उठने का नाम ही नहीं लेता है।
रोज सुबह की तरह वंदना नाइटी पहने हुए घर में झाड़ू लगा रही होती है। इसके बाद वो रसोई में जाकर के काम कर रही होती है और तभी उसे ध्यान में आता है कि मोनू तो अभी तक सोया हुआ है और आज संडे भी है। तभी उसे आ जाना कि याद आता है कि आज तो किरायेदारों का महीने का दिन हो गया है। वंदना का घर छोटा बड़ा होता है तीन मंजिला जिसको की एक्स्ट्रा इनकम के लिए किराए पर भी लगा देती है जहां पर कुछ कॉलेज जाने वाले जवान लड़के तो कुछ पारिवारिक मर्द रहते हैं तो कुछ ऐसे लोग भी रहते हैं जो कि नौकरी के वजह से इस शहर में हो।
वंदना: यह लड़का भी ना अभी तक सोया हुआ है समझ में नहीं आता है क्या होगा इसका
मोनू मोनू उठना भी है या अभी तक सोना ही है आने दो पापा का फोन बोलते हैं तुम तो रात भर फोन चलाते हो और सुबह लेट उठते हो।
इधर बंदना किचन से आवाज लगा रही होती है लेकिन उसे क्या मालूम कि उसका बेटा हूं मोनू कोई हसीन सपने में ब्लैंकेट के अंदर खोया हुआ है।
वंदना: यह लड़का ऐसे सुनने वाला नहीं है मैं तेरी कदमों से चलते हुए उसके कमरे में आकर जोर से उसके ऊपर गुस्सा होती हूं और उसका ब्लैंकेट खींच देती हूं। कब से तुम को आवाज दे रही हूं सुनने का नाम ही नहीं है आज मालूम है ना संडे है । जल्दी से उठ करके फ्रेश हो जाओ नाश्ता बना देती हूं उसके बाद डैडी लेकर के जिनका जिनका महीने का किराया का समय हो गया है उनको जा करके बोलो कि मम्मी ने किराए के लिए बोला है।
मोनू: मैं मन ही मन सोच रहा होता हूं और कितना अच्छा सपना देख रहा था अपनी आंखों को मलता हुआ मैं बिस्तर से उठ जाता हूं। और कुछ देर में फ्रेश होकर के नाश्ता वगैरह करने के बारे डेयरी ले लेता हूं और बोलता हूं
आपने बोला था कि इस महीने का किराया आएगा तो मोटरसाइकिल दिलवा दोगे।
वंदना: हां बोला था ना मगर तुम्हारी लक्षण और करतूत देख कर मन नहीं करता है तुमको दिलवाने का कि तुम भी आवारागर्दी करना शुरु कर दोगे। पापा तुम्हारे हमेशा पूछते रहते हैं ठीक से पढ़ाई करता है या नहीं बताओ उस दिन तुम्हारे स्कूल गई थी तुम्हारा रिजल्ट इतना खराब था। वहां जितने भी पेरेंट्स बैठे हुए थे मुझे उनके बीच में कैसा लगा मैं ही समझती हूं नहीं तो घर में गाड़ी की तो जरूरत है क्योंकि मुझे भी बाहर जाने में मार्केट जाने में दिक्कत होती है मगर तुम्हारे ही वजह से नहीं लेती हूं।
मोनू: लगता है आज मैं लेट से सो गया इसीलिए मम्मी गरम हो गई है कहीं बात गरबर ना हो जाए यह बातें मेरे मन में चल रही होती है और तभी मुझे एक आईडिया आता है मैं बड़े ही प्यार से जाता हूं और मम्मी को पीछे से बाहों में भर लेता हूं
इतना गुस्सा करती हो मेरी मम्मी मैंने बोला था ना कि मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है इसलिए मुझे लेट हो गया उठने में। और आपको तो मालूम है ना स्कूल के जो बच्चे होते हैं वह स्कूल के टीचर से ही ट्यूशन पढ़ते हैं इसीलिए उनको मार्क्स मिलने में आसानी होती है आप ही तो कहती हो ना कि तुम्हारा जो भी मार्क्स आए तुम्हारे दम पर आना चाहिए।
(मैं मन ही मन अब खुश हो रहा होता हूं मुझे लग रहा होता है कि मम्मी को मैं मना लूंगा)
वंदना: अरे चोर मुझे पीछे से गधे जैसा हो गया है अभी तक बच्चों जैसा करता है। मेरा मन नहीं करता क्या मेरा बेटा भी गाड़ी चलाएं देखो तो बगल के जितने भी लड़के हैं कितने अच्छे अच्छे मार्क्स आते हैं सबके तुम मुझे प्रॉमिस कर दो कि तुम्हारा मार्क्स अच्छा आएगा तुम जो गाड़ी बोलोगे दिलवाने के लिए दिलवा दूंगी
जैसे ही वंदना के मुंह से यह बातें निकलती है मोनू की तो मानो मनचाही मुराद पूरी हो गई हो।
मोनू: मैं बड़ा खुश हो जाता हूं और प्यार से मम्मी के गाल पकड़ कर बोलता हूं सच्ची मम्मी फिर तो आप की कसम इस बार देखना मेरा एक्जाम कैसा जाएगा अब आप की कसम खाया हूं तो अब तो आप मुझे शाम में दिलवा देना गारी आपको मालूम है ना कि मैं आप का झूठा कसम नहीं खाता हूं।
वंदना: मुस्कुरा कर के मोनू से अपने आप को चुरा लेती हूं और बोलती हो मेरे बेटे को अच्छी तरीके से मालूम है मुझे कैसे मनाया जाता है। जा अब जल्दी से महीने का रेंट लेकर के आ जाओ।
बेटा सुनो ना दूसरे वाले फ्लोर पर जो फैमिली रहती है उनके पास तुम मत जाना उनसे मैं बात कर लूंगी थोड़ा उन लोगों के साथ में अभी प्रॉब्लम है तो उनको थोड़ा लेट लगेगा।
मोनू: मैं मुंह बना लेता हूं और बोलता हूं यह क्या बात हुई मम्मी लेट लगेगा लेकिन वक्त तो हो गया है ना।
दूसरे फ्लोर पर जो फैमिली रहती है मैंने उनके बारे में कुछ बोलना सही नहीं समझा क्योंकि उनसे मम्मी की अच्छी खासी बनती है।
कुल मिलाकर के मैं वहां से गाड़ी ले कर के निकल जाता हूं और 1 घंटे लग जाते हैं मुझे यह सब करते हुए फिर मैं मम्मी के पास आता हूं और उनको पैसे दे देता हूं। और हर बार की तरह इस बार भी उसमें से मम्मी मुझे ₹500 दे देती है। क्योंकि जब भी मैं घर के काम करता हूं जैसे सब्जियां लाना या कोई सामान लगा तो मम्मी खुद कुछ ना कुछ मुझे दे देती है।
थोड़ी देर तक फोन में फेसबुक वगैरा सब कुछ चलाने के बाद मुझे अचानक याद आता है कि ऊपर की आंटी ने बोला होता है। मम्मी को बोलना ऊपर आने के लिए उन्होंने कोई साड़ी वगैरह खरीदी है दिखानी हैं।
मैं जाता हूं और मम्मी के कमरे से बाहर उनको बोलता हूं मम्मी मैं बोलना भूल ही गया था कि आंटी ऊपर मैं बोल रही थी कि आपको ऊपर आने के लिए कुछ दिखानी है उनको शायद पता नहीं कोई कपड़ा वगैरह खरीदा है उन्होंने।
वंदना: खाना खा लिए हो ना तुम खाने का मन करेगा तो किचन में लेकर के खा लेना जरा देख लेना खिड़की दरवाजे तो नहीं खुले हैं नहीं तो बिल्ली आकर के दूध गिरा देती।