Romance कायाकल्प

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अगले दिन सवेरे सवेरे ही हमने वापस उत्तराँचल की यात्रा आरम्भ कर दी। घर वापस जाने के कारण संध्या ने साड़ी पहनी हुई थी। देहरादून में किराए पर SUV लेकर हमने संध्या के घर की यात्रा आरम्भ करी। बीच में एक जगह रुक कर हमने लंच किया, और पुनः आगे चल पड़े। हवाओं में ठंडक काफी बढ़ गई थी। इसलिए मैंने SUV में हीटर चला दिया था, जिससे गर्मी रहे।

संध्या के घर हम लोग कोई चार बजे पहुँचे! एक बात तो कहना भूल ही गया, संध्या के घर हमने किसी को भी इत्तला नहीं दी थी की हम आने वाले हैं! वो सभी लोग हमारे इस सरप्राइज से दंग रह गए और बहुत खुश भी हुए। मैंने ससुर जी को बताया की संध्या की पढाई का हर्जा हो रहा था, इसलिए जब तक शीतकालीन अवकाश नहीं शुरू हो जाते, तब तक संध्या यहीं रहेगी, और अब तक का कोर्स पूरा कर लेगी। और उसके बाद छुट्टियों में वापस बैंगलोर आ जाएगी, और फिर वापस आ कर एग्जाम इत्यादि लिख कर वापस बैंगलोर आ जायेगी। उनको सुन कर काफी तसल्ली हुई। उसका वापस आने का टिकट मैंने पहले ही बुक कर दिया था। इतनी सारी फ्लाइट लेने, और हवाई यात्रा करने के बाद मुझे उम्मीद थी की संध्या खुद हवाई यात्रा करने में अब सक्षम थी।

मैं वापस निकलना चाहता था, लेकिन सभी ने रोक लिया। वैसे भी मेरी फ्लाइट कल दोपहर बाद की थी, इसलिए अभी शुरू कर के मुझे कोई खास फायदा नहीं होना था। इसलिए मैं रुक गया। मौसम काफी ठंडा हो गया था – और रात में ठंडक और बढ़नी ही थी। खैर, सासु माँ तुरंत ही हमारे सत्कार में लग गईं – चाय पकोड़े इत्यादि! और उसके बाद रात का खाना। इसी बीच में हमने सभी को शादी इत्यादि के एल्बम दिखाए। संध्या ने पहले से ही बड़ी चतुराई से अपना ‘छोटा वाला’ एल्बम छुपा लिया था।

हमारे आने की खबर हमारे कसबे में आने के साथ ही सभी को हो गई थी। तो मुझे बहुत आश्चर्य नहीं हुआ जब संध्या की कई सारी सहेलियाँ मुझसे मिलने घर आईं। वो सभी संध्या को चिढाने के लिए मुझसे बहुत देर तक हंसी मज़ाक करती रहीं,

‘जीजू, हमारी बहना को आपने ज्यादा सताया तो नहीं?’

‘हाय राम, आपने तो इसका मुँह काला कर दिया!’

‘जिज्जू, इस बार अपने साथ आचार लेते जाइएगा!’

इत्यादि!

जब संध्या की माँ ने उनको डांट लगाई, तो फिर जाते जाते मुझसे काफी सट कर तस्वीरें भी खिंचायीं, और एक गुस्ताख ने मेरा मुँह प्यार से नोंच कर चुम्बन दिया। बदमाश लड़कियाँ!

जाड़ों में, खासतौर पर पहाड़ों पर बहुत ही जल्दी सूर्यास्त और अँधेरा हो जाता है। इसलिए सासू माँ खाने की जल्दी कर रही थीं। खैर, डिनर करीब सवा सात बजे ही परोस दिया गया, और करीब आठ बजे तक अपने सास-ससुर से बात करने के बाद, संध्या और मैं, संध्या के (हमारे सुहागरात वाले) कमरे में आ गए। मैंने नीलम को भी कमरे में बुला लिया।

“क्या हुआ जीजू?”

“अरे, पहले अन्दर तो आओ... फिर बताएँगे!”

मैंने एक एक कर के नीलम के उपहार उसके सामने सजा कर रख दिए! नीलम नए नए कपड़ों को देख कर बहुत खुश हुई, “ये सब कुछ मेरे लिये हैं?”

“हाँ!”

“दीदी के लिए क्या लिया, आपने?”

“अरे! तुम अपना देखो न!” संध्या बोली...

“नहीं.. बस ऐसे ही पूछा! ... थैंक यू, जीजू!” कहते हुए उसने मेरे दोनों गालो पर चुम्बन भी लिया। मेरे बगल में संध्या मुस्कुराती हुई अपनी बहन को देख रही थी। नीलम ने फिर संध्या को भी चूमा।

“इनको पहन कर देखो तो! ठीक फिट आते भी हैं, या नहीं?”

“ठीक है!”

कह कर नीलम ने एक जोड़ी कपडा उठाया और दूसरे कमरे में चली गई। मैंने ध्यान नहीं दिया की कौन सा उठाया था.. संध्या और मैं किसी बात में मशगूल हो गए और कुछ ही देर में नीलम कमरे में आई। मैंने देखा की वह सकुचाते हुए चल रही थी – ह्म्म्म उसने स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था। सकुचाने की वजह भी थी। यह स्कर्ट किसी और जगह के लिए मॉडेस्ट कहलाती, लेकिन यहाँ, इस छोटी जगह के लिए हो सकता है उचित न हो! स्कर्ट की लम्बाई उसके घुटने के ठीक नीचे तक ही आई। मैंने और संध्या दोनों ने ही उसकी ड्रेस का जायजा लिया और फिर मैंने नीलम को मुड़ने का इशारा किया।

पीछे मुड़ कर हमको पूरा जायज़ा करने देने के बाद नीलम ने पूछा, “ठीक है?”

मेरे बोलने से पहले संध्या ने की कहा, “अरे बहुत बढ़िया! मैंने नहीं सोचा था की इतना अच्छा लगेगा, है न?”

“बिलकुल! यह तो बहुत ही अच्छा फिट हुआ है..” मैंने कहा, “अब ये जीन्स पहन कर दिखाओ।“

नीलम पूरे उत्साह से अपना अगला कपड़ा ले कर कमरे से बाहर निकल गई, लेकिन बहुत जल्दी ही वापस आ गई। उसने अभी भी स्कर्ट और टॉप ही पहना हुआ था।

“क्या हुआ?” मैंने पूछा।

“वहाँ जगह नही है.. मम्मी पापा आ गए हैं। कल पहन कर दिखा दूं?”

“अरे! कल तो मैं सवेरे सवेरे ही चला जाऊँगा। कैसे देखूँगा?“ मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

“नीलू, यहीं बदल ले न?” संध्या ने सुझाया!

“यहीं? तुम दोनों के सामने?”

“हाँ! क्यों क्या हुआ?”

“धत्त! मुझे शर्म आएगी!”

“अरे, इसमें शरम वाली क्या बात है? हम दोनों को तुम पहले ही ‘वैसे’ देख चुकी हो... और ‘ये’ तो तुम्हारे जीजू ही हैं।”

नीलम ने कुछ देर तक संध्या की बात को तौला – संभवतः वह यह बात माप रही हो की अपने जीजा के सामने कपड़े बदलना, या निर्वस्त्र होना – क्या यह एक सहज क्रिया है? दीदी तो ऐसे ही कहती हुई मालूम हो रही है... अगर उसको कोई दिक्कत नहीं है, और मुझे नहीं है, तो फिर बिलकुल किया जा सकता है। लेकिन ये लोग कहीं शरारत में किसी को इसके बारे में कुछ बता न दें!

“पक्का? आप दोनों किसी को बताओगे तो नहीं? पापा को मालूम पड़ गया तो मेरी टाँगें तोड़ देंगे।“ ये नीलम ने मुझसे कहा था... बहुत विश्वास चाहिए, ऐसे कामों के लिए! मुझे अच्छा लगा की नीलम हम दोनों पर इतना विश्वास करती है। ठंडक में इतनी देर तक ऐसे कम कपड़े पहने रहने के कारण वह थोड़ा कांपने भी लग गई थी।

“अरे, हम लोग क्यों बताएँगे? बस जल्दी जल्दी चेंज कर के दिखा दो। ठीक है?” मैंने कहा।

“ठीक है!”
 
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कह कर नीलम ने जा कर कमरे का दरवाज़ा बंद दिया, और वापस आ कर कपड़े बदलने का उपक्रम करने लगी। अब यदि कोई ऐसा काम करे तो कोई कैसे न देखे। संध्या और मैं दोनों की नीलम को कपड़े बदलते हुए उत्सुकता से निहारने लगे। किसी के सामने निर्वस्त्र होना उतना आसान नहीं है, जितना कहने सुनने में लगता है। पति पत्नी भी पहली बार बार जब एक दूसरे के सामने निर्वस्त्र होते हैं तो अपनी नग्नावस्था के बोध से कई बार सेक्स नहीं कर पाते।

“जीजू, आप उधर देखिए न? मैं कपड़े बदल लूँ!” नीलम ने स्कर्ट का हुक खोलते हुए मुझसे कहा।

“रहने दे न! अगर मैं देख सकती हूँ, तो तेरे जीजू के देखने में क्या बुराई है?” संध्या ने प्रतिरोध किया।

“एक मिनट! नीलू, अगर तुमको मेरे देखने में शर्म आती है तो एक बार फिर से कहो। मैं आँखें बंद कर लूँगा। बोलो बंद कर लूं?”

नीलम ने मुझे एक बार देखा, दो पल यूँ ही चुप रही, और फिर उसने शर्माते हुए नजरे नीचे कर ली और सर हिला कर ‘न’ कहा। और अपनी स्कर्ट को नीचे सरका दिया। नीलम ने एक साधारण सी चड्ढी पहनी हुई थी। मैं और संध्या दोनों की नीलम को ऐसे देख रहे थे। मुझे मज़ा आने लगा। नीलम ने धीरे से अपना टॉप भी उतार दिया। उसने नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ था – लिहाजा, नीलम हमारे सामने सिर्फ चड्ढी पहने खड़ी हुई थी...

पहला विचार जो मुझे नीलम के स्तनों (?) को देख कर आया, वह यह था की कुछ समय बाद ये बड़े हो जायेंगे, और फिर किसी दिन ये स्तन किसी बच्चे को दूध पिलायेंगे। उम्र के हिसाब से उसके स्तन भी अभी छोटे ही थे – और उसके निप्पल, संध्या के निप्पलों से एकदम अलग थे। वह गहरे भूरे रंग के थे, मानो चॉकलेट रंग के... और निप्पल के बगल का परिवेश (जिसको अंग्रेजी में areola कहते हैं), न के बराबर था। एक पचास पैसे का सिक्का उसके निप्पल को ढक सकता था। उसी में से छोटे छोटे सख्त निप्पल बाहर की ओर निकले हुए थे। नीलम मेरी नज़र में एक बच्ची ही है, अतः मुझे उसके छोटे स्तनों, और उसके शरीर से किसी भी प्रकार का आकर्षण नहीं हुआ...

खैर, आगे जो नीलम ने किया वह हमारे लिए पूरी तरह से अप्रत्याशित था। उसने नीचे झुक कर अपनी चड्ढी भी उतार दी। क्यों किया उसने ऐसे? वह थोड़ा सा घबराई हुई अवश्य थी, लेकिन उसके चेहरे को देख कर लग रहा था की संभवतः उसको यह अपेक्षित था। न चाहते हुए भी उसकी छोटी सी योनि पर मेरी नज़र चली गई। मन में ग्लानि भर गई। मैंने इशारे से नीलम को अपने पास बुलाया। वो थोड़ा झिझकते हुए मेरे पास आई तो मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर अपने पास खींच लिया, और अपनी गोद में बैठा लिया। अब नीलम के शरीर की कंपकंपाहट काफी बढ़ गई थी – ठंडक शर्तिया उस पर प्रभाव डाल रही थी। उसकी नग्नता को मैंने अपने आलिंगन से छुपा लिया।

मुझे और कुछ समझ नहीं आया और मैंने उसको अपनी बाँहों में ही भरे हुए उसकी गर्दन पर एक चुम्बन दे दिया।

“यह क्यों जीजू?”

“आई ऍम सॉरी बेटा! हमें तुमसे यह सब करने को नहीं बोलना चाहिए था।“

“सॉरी मत कहिये जीजू! मैंने जो भी कुछ किया, अपनी मर्ज़ी से किया। मुझे मालूम है, आप दोनों मुझसे खूब प्यार करते हैं... इसलिए मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा... उल्टा, मुझे बहुत अच्छा लगा की आपने मुझे ऐसे देखा...”

“बिलकुल... वी लव यू वैरी मच! और तुम बहुत खूबसूरत हो, नीलू!”

कह कर मैंने नीलम के दोनों गाल बारी बारी चूमे, और एक बार फिर से उसको जोर से अपने गले से लगा लिया। मेरी देखा देखी संध्या ने भी नीलम को बहुत प्यार से कई बार चूमा और ‘आई लव यू’ बोला। नीलम शरमाते हुए ऐसे ही नग्न हम दोनों से काफी देर लिपटी रही, और फिर उसने बारी बारी से अपने बचे हुए कपड़े भी पहन कर दिखाए। सारे के सारे परिधान बढ़िया फिटिंग के थे, और उस पर बहुत फब रहे थे।

नीलम आखिरी कपड़े उतार कर अपने पहले वाले कपड़े पहनने का उपक्रम कर ही रही थी की बिजली चली गई। कमरे में घुप्प अँधेरा! संध्या ने कहा की वह बाहर जा कर मोमबत्ती का इंतजाम करती है। इस बीच नीलम उसी अवस्था (अर्धनग्न) में कमरे में खड़ी रही। मैंने ही उसको अपने पास बुला कर बिस्तर पर बैठा लिया। तीन चार मिनट बाद संध्या मोमबत्ती ले कर कमरे में आई। उतने में नीलम ने अपना वापस शलवार कुर्ता पहन लिया। जाहिर सी बात है अब सोने का उपक्रम होना था, और नीलम के बाहर जाने की बात थी। लेकिन नीलम जाने का नाम ही नहीं ले रही थी – बिस्तर पर ही बैठे बैठे संकोच भरी मुस्कान भर रही थी।

“क्या हुआ नीलू?”

“जीजू - दीदी!”, नीलम ने सकुचाते हुए हम दोनों से कहा, “आज मैं आप लोगो के साथ सो जाऊं?” वो बेचारी लड़की बड़ी उम्मीद और निरीहता से हम दोनों को बारी बारी से देख रही थी। मैंने संध्या की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डाली, और संध्या ने मुझे अत्यंत विनोदी उत्सुकता से देखा।

“मैं पहले हमेशा ही दीदी के साथ सोती थी...” नीलम ने कहना जारी रखा, “उसके जाने के बाद मैंने उसको बहुत मिस किया... और कल आप भी चले जायेंगे। और मैं आपको भी बहुत मिस करूंगी। प्लीज़!”

चूंकि संध्या ने कुछ नहीं कहा, तो मुझे ही इस स्थिति के लिए निर्णय लेना था। ‘क्या फर्क पड़ता है?’ मैंने सोचा।

“हा हा... बस इतनी सी बात? बिलकुल सो जाओ!” मैंने माहौल को थोडा विनोदी बनाते हुए आगे जोड़ा, “मेरी किस्मत तो देखो – एक साथ दो-दो सुन्दर लड़कियों के साथ सोने का मौका मिल रहा है आज!”

मेरी इस बात पर नीलम शरमा गई। हम दोनों को ही दिन भर कपड़े बदलने का समय ही नहीं मिल पाया था, इसलिए सोने से पहले कुछ आराम-दायक पहनना आवश्यक था। संध्या ने कहा की वह बड़े कम्बल लेकर आती है, और एक बार फिर से बाहर चली गई, और कुछ ही देर में संध्या दो बड़े कम्बल और चद्दर लेकर वापस कमरे में आ गई। कपड़े चेंज करने से पहले मैंने नीलम को मुँह फेरने को कहने की सोची, लेकिन फिर लगा की यह सही नहीं होगा। उसी के सामने मैंने सब कपड़े उतार कर पजामा कुरता पहन लिया – कमरे में वैसे भी अँधेरा सा ही था, इसलिए बहुत हिचकिचाहट नहीं हुई। मेरी देखा देखी संध्या ने भी अपनी साड़ी उतार दी... सिर्फ साड़ी।

“अब मुझे यह बताओ की किस तरफ लेटोगी? मेरी तरफ या दीदी की तरफ?” मैंने बिस्तर पर बैठते हुए नीलम से पूछा।

“दीदी की तरफ!” नीलम ने जब शर्म से दोहरा होते हुए कहा तो मैं और संध्या दोनों ही हँस पड़े।

जैसा मैंने पहले भी बताया है की हमारा पलंग कोई ख़ास बड़ा नहीं था, लिहाज़ा, तीन लोगो के लेटने का केवल एक ही तरीका हो सकता था, और वह यह की संध्या बीच में चित हो कर लेटे, और मैं और नीलम दोनों करवट लेकर। ऊपर से दोहरे कम्बल और चद्दर की परतें ओढ़ी हुई थीं, और साथ में तीन लोग चिपक कर लेटे थे, इसलिए गर्मी अच्छी हो गई थी। लेटने से पहले मोमबत्ती बुझा दी गई थी। मैंने करवट लेकर संध्या को अपनी दाहिनी बाँह के घेरे में ले लिया। नीलम मुझसे काफी देर तक मेरे, बैंगलोर और अंडमान के बारे में सवाल कर रही थी। उसकी बातों में, और दिन की यात्रा की थकावट के कारण नींद कब आ गई, कुछ याद ही नहीं!
 
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अगली सुबह काफी जल्दी उठ गया, और उठ कर बिस्तर से बाहर निकलते ही कड़ाके की ठंडक का एहसास हुआ।

सवेरे का कोई चार साढ़े-चार का समय हुआ था - सूर्योदय अभी भी कोसों दूर था। दरअसल इस बार पूरा प्रदेश भीषण ठंड की चपेट में जल्दी ही आ गया था। गढ़वाल हिमालय में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जैसे स्थानों पर बर्फबारी भी आरम्भ हो गई थी। हमारे जाने के बाद, और आने के पहले देहरादून और अन्य निचले इलाकों में रुक-रुक कर बारिश होती रही, जिससे ठिठुरन बढ़ गई थी। खैर, उम्मीद थी की इस कारण से सड़क पर यातायात कुछ कम रहेगा। और हुआ भी वैसा ही। मैंने सवेरे फ्रेश हो कर चाय नाश्ता किया, उस बीच संध्या को जरूरी निर्देश दिए (यही की अपना ठीक से ख़याल रखे, पढाई में मन लगाए..), उसको कुछ रुपए थमाये - जिससे वह अपना, नीलम और घर का, और यात्रा के अन्य खर्चों का वहां कर सके। उसके पास कोई बैंक अकाउंट अभी तक नहीं था, इसलिए यही एकमात्र साधन था। खैर, नाश्ते के बाद सभी से विदा ली – नीलम को प्यार से गले लगाया, और संध्या को उसके होंठों पर चूमा। सबके सामने ऐसे खुलेपन से प्रेम प्रदर्शित करने से वहां सभी लोग शरमा गए। और फिर माँ-पापा से आशीर्वाद लिया, और वापसी की यात्रा शुरू की।

मैंने देखा की सड़क पर लोगों की आवाजाही काफी कम थी, ठंडक का प्रकोप साफ़ दिख रहा था। एक तो सवेरा था, और ठंडक भी ... इसके कारण ज्यादातर लोग अपने घरों में ही दुबके हुए थे। खैर, मैंने कुछ देर तक गाडी चलाई – नींद का और ठंडक का असर अभी भी था – इसलिए बहुत आलस्य लग रहा था। कोई चालीस मिनट ड्राइव करने के बाद मैंने गाड़ी रोक दी - रास्ते में ही एक ढाबे टाइप रेस्त्राँ था, अतः वहीँ पर रुक कर गरमागरम चाय और बिस्किट का सेवन करने का सोचा। शरीर में गर्मी आई – कुछ भी हो... ठंड में गर्म चाय का आनंद ही कुछ और होता है!

यह ढाबा किसी ने अपने खेत के ज़मीन पर ही बनाया हुआ था – इसके पीछे खुला हुआ खेत था, जिसमें सारस का एक जोड़ा एक अंत्यंत आकर्षक प्रणय नृत्य में मग्न था। सारस पक्षियों का प्रणय नृत्य अत्यंत मनोहारी और सुपरिष्कृत होता है। कभी इनको ध्यान से देखना – कई सारे सारस पक्षी किसी जलाशय में उतरकर अलग अलग जोड़ों में बंट जाते हैं और अपने मनमोहक नृत्यों से अपनी प्रेमिकाओं का मन जीत लेते हैं। देखा गया है की सारस नर और मादा, एक दूसरे के प्रति पूरी तरह से समर्पित होते हैं - एक बार जोड़ा बनाने के बाद ये जीवन भर साथ रहते हैं, और यदि उनमे से एक साथी की मृत्यु हो जाए, तो दूसरा अकेले ही रहता है। इसी कारण से सारस पक्षी को देखना बहुत शुभ माना जाता है, ख़ास तौर से विवाहित जोड़ो के लिए।

पक्षियों का नृत्य जैसे मेरे देखने के लिए ही हो रहा था – कोई एक मिनट के बाद वे वापस खेत में खाने पीने में लग गए। इस नृत्य ने जहाँ मेरे मन को मोह लिया, वही मेरे ह्रदय में एक अजीब सा खालीपन भी छोड़ गया... मेरा तो सब कुछ पीछे ही छूट गया था न! इतनी उम्र हो आई, लेकिन संध्या से पहले किसी भी व्यक्ति के संग की आवश्यकता मैंने कभी महसूस नहीं करी।

मैंने फ़ोन उठाया और एक sms लिखा :

“Missing you already. Your voice, your touch, your smell, your warmth! How will I spend these days without you?”

और संध्या को भेज दिया।

चाय ख़तम किया और गाड़ी स्टार्ट ही करने वाला था की मेरे फ़ोन पर एक sms आया :

“Dear husband.. my handsome husband! I also can’t wait to see you again.”

मैं मुस्कुराया – आगे की यात्रा के लिए मुझे भावनात्मक ऊर्जा मिल गई थी।

गाड़ी यात्रा का पहला पड़ाव देहरादून था – वहां मैंने गाडी वापस सौंपी, और एक जगह खाने के लिए रुका। वही जगह, जहाँ संध्या और मैंने साथ में पहले भी लंच किया था।

खाना खाते खाते मुझे संध्या का एक और sms आया :

“Can’t wait to kiss you when we see each other. Love you.”

‘किस नहीं, इतने दिनों के इंतज़ार के बाद मैं सिर्फ एक काम ही करूंगा!’ मैंने निराश होते हुए सोचा।

देहरादून एअरपोर्ट से बैंगलोर तक का सफ़र... समय मानों हवा में उड़ गया। कुछ याद नहीं। हाँ, जैसे ही बैंगलोर पहुंचा, मैंने तुरंत ही संध्या को फ़ोन लगाया और देर तक प्यार मोहब्बत की बातें करीं। जब घर पहुंचा तो सन्नाटा बिखरा हुआ था – यही सन्नाटा पहले मेरा साथी था, लेकिन आज एकदम अजनबी जैसा लग रहा था। कायाकल्प! पुनर्जीवन, जो मुझे संध्या के मेरे जीवन में आने से मिला है, वह एक अनुपम धरोहर है। और, संध्या भगवन के द्वारा भेजा हुआ उपहार है मेरे लिए। बिलकुल!!

मैंने कंप्यूटर ऑन किया, और संध्या की सबसे बेहतरीन नग्न तस्वीर ढूंढ कर उसका A4 साइज़ का प्रिंट लिया और हमारे बेडरूम की दीवार पर (ऐसे की लेटे हुए, या सो कर जागने पर बस सामने उसी तस्वीर पर नज़र पड़े) लगा दिया। रात में खाना खा कर संध्या को फ़ोन पर मैंने बहुत देर तक प्यार किया और फिर सोने से पहले एक और sms किया :

“I can almost feel you here. Kissing me. Touching me. Come in my dreams tonight.. naked!”

सवेरे देर तक सोया और जब उठा तो देखा की एक और संदेशा आया है :

“Honey! Getting ready for school. In my dream last night, we were sleeping together. We were naked and your skin was hot. I never wanted to wake up.”

बस, हमारे बिछोह भरे दिन और रातें ऐसे ही बीतने लगे – फ़ोन पर बातें (ज्यादातर रोमांटिक और सेक्सी बातें), कभी sms, तो कभी कभार पत्र-लेखन भी! मेरे वो पाठकगण जिनको इस प्रकार के बिछोह का अनुभव होगा वो मेरी इस बात से सहमत होंगे की जब एक बार साथी की आदत लग जाय, तो अकेले रहना अत्यंत मुश्किल हो जाता है! वो कहते हैं न, दिन तो कट जाता है... लेकिन रात कभी ढलती ही नहीं! दिन कैसे न कट जाय? सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ दौड़ भाग! लेकिन संध्या ने रोज़ रोज़ सम्भोग की आदत लगवा दी... अब ऐसे में रातें गुजरें तो कैसे गुजरें?

ज्यादातर पुरुष जब विरह के कष्ट में विलाप करते हैं तो उस विलाप में सिर्फ प्रेम वाली भावना होती है। प्रेम शारीरिक हो या आत्मिक – उसकी चर्चा नहीं है यहाँ। बस यह की प्रेम के कारण ही दुःख हो रहा होगा। पुरुष सिर्फ अपनी पत्नी या प्रेमिका के विरह में व्याकुल होता है। मैं भी व्याकुल था। संध्या की बातें, उसका हँसना, उसका स्पर्श, उसका शरीर, उसके शरीर की गर्माहट, उसके शरीर के कोने कोने की बनावट–नमी–और–गर्मी! यह सब बातें बस रह रह कर याद आतीं और बहुत सतातीं। और फिर दीवार पर लगा उसका चित्र! उसे देखकर हमारे पहले संसर्ग की यादें ताज़ा हो जातीं! मेरा अपने ही लिंग पर कोई काबू न रह पाता! ऐसे में हस्तमैथुन के सिवा कोई और चारा ही न बचता!

दोस्तों, हस्तमैथुन के बारे में न जाने कैसी कैसी भ्रांतियाँ फैली हुई हैं! सच तो यह है की यह एक अत्यंत प्राकृतिक क्रिया है। जब यौनपरक इच्छाएँ किसी व्यक्ति में उत्तेजना जगाती हैं, तो उनसे निवृत्त होने के लिए किए गए स्वकृत्य को ही हस्तमैथुन कहा जाता है। अर्थात कोई स्त्री या पुरूष, जब कामोन्माद की चरमसीमा का तीव्र आनन्द पाने के लिए खुद ही अपनी जननेन्द्रियों से छेड़छाड़ करता है तो उसे हस्त-मैथुन कहते हैं। हस्तमैथुन बेहद प्राकृतिक और स्वभाविक प्रक्रिया है। कुछ लोग इसको बीमारी बताते हैं, और कहते है की कमजोरी आ गई! कैसे मूर्ख लोग हैं! सच तो यह है की यह बहुत सुरक्षित, और सम्मानजनक तरीका है यौन-संतुष्टि पाने का। खुद ही सोचिये! अगर हर कोई (जिसमे अविवाहित लोग भी शामिल हैं), यौन निवृत्ति के लिए वेश्यागमन करे, या अतिशय साधन के रूप में किसी लड़की से बलात्कार करे, तो क्या यह सही बात होगी? जरा सोचिये, अपने घर के सुरक्षित एकांत में बैठ कर, किसी भी प्रकार के उन्मादक विचारों और फंतासी के साथ जब आप संतुष्ट हो सकते हैं, तो उसमें भला क्या बुराई हो सकती है?

खैर, मैं तो भई जब देखो तब, अनायास ही, मैं अपना लिंग बाहर निकाल लेता, और मन ही मन संध्या के रूप को याद करते करते हस्तमैथुन करने लगता। हमारे पुनः मिलन की बेला बहुत दूर तो नहीं थी, लेकिन इस बीच कम से कम दो सप्ताह तक मैंने हस्तमैथुन कर के ही काम चलाया। लेकिन जिस पुरुष को संध्या जैसी साक्षात् रति की प्रतिरूप पत्नी मिली हो, उसका मन हस्तमैथुन से कैसे भरे? तो अब मेरे पास क्या चारा था – सिवाय संध्या के वापस आने के?
 
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संध्या का परिप्रेक्ष्य

आज के दिन का मैं पिछले एक महीने से इंतज़ार कर रही थी। आज मेरे कृष्ण.. मेरे रूद्र से मिलने मुझे बैंगलोर की यात्रा जो करनी थी। जबसे मैं अपने मायके आई (देखिए न... कैसे ‘अपना पुराना घर’ मायका बन जाता है... यदि पति का ऐसा स्नेह मिले तो कुछ भी संभव है).. तभी से मुझे बस अपने पिया से मिलने की धुन सवार है। मैंने अनगिनत लड़कियाँ देखी हैं, जो शादी के बाद वापस अपने मायके आने के लिए मरती रहती हैं... और एक मैं हूँ जो वापस अपने पति के घर जाने के लिए मरी जा रही हूँ। ऐसा नहीं है की मुझे माँ पापा से कोई कम प्यार मिला – वो दोनों तो जान छिड़कते हैं। माँ तो मुझे घेर कर बैठ गई – ‘मेरे घर’ की हर बात के बारे में पूछा – क्या है, कैसा है, वहां के लोग कैसे हैं, रूद्र कैसे हैं, घर कैसा है, समुद्र कैसा होता है, अंडमान कहाँ है, हवाई जहाज में कैसा लगता है इत्यादि इत्यादि। एक दो दिन बाद माँ ने दबा-छुपा कर रूद्र और मेरे अन्तरंग संबंधो के बारे में भी पूछ लिया। मेरी शर्म भरी संतुष्ट मुस्कान और संकोच भरी वैवाहिक बातों से वे अवश्य ही संतुष्ट और प्रसन्न हुई होंगी।

वापस मायके आना तो मानो एक मिशन समान था। ढंग की उच्च माध्यमिक शिक्षा और अंक प्राप्त करने का मेरा उद्देश्य और बढ़ गया। ज्यादातर लड़कियाँ शादी के बाद अपनी शिक्षा की इतिश्री कर लेती हैं, लेकिन रुद्र के प्रोत्साहन, मेरी शिक्षा में उनकी रूचि और शिक्षा के लिहाज से उनके ‘लायक’ बनने की मेरी स्वेच्छा के कारण मैं इस एक महीने और आगे आने वाले समय में ठीक से पढाई करना चाहती थी। परीक्षा के लिए फार्म इत्यादि भरने का कार्य सम्पन्न हो गया था, और मैं अपने शिक्षकों और शिक्षिकाओं के साथ ज्यादातर समय पढ़ने में लगा रही थी। कुछ ही दिनों में छूटा हुस कोर्स मैंने पूरा कर लिया और वर्तमान कोर्स के बराबर आ गई। मेरी देखा देखी नीलम भी पढाई में ही मन लगा रही थी, और यह सब कुछ हमारे माँ पापा को बहुत संतुष्ट कर रहा था। वो दोनों हमेशा की ही तरह हमारी सभी सुविधाओं का ध्यान रख रहे थे, जिससे हमारी पढाई लिखाई में व्यवधान न हो। इसका यह मतलब कतई नहीं की मैंने एक महीना सिर्फ पढाई ही करी – किसी पारिवारिक मित्र के यहाँ कोई प्रयोजन हो तो हम लोग वहाँ ज़रूर गए। सर्दियों में वैसे भी खाने पीने की प्रचुरता हो जाती है, तो मैंने खाने पीने में भी कोई कोताही नहीं बरती। रोज़ रूद्र से फोन पर बात हो ही जाती थी, इसलिए हर रोज़ मुझे अवलंब (सहारा) मिलता।

मजे की बात हो और सखी सहेलियों का जिक्र न हो, ऐसा नहीं हो सकता। उनकी हंसी-चुहल, और मेरी टांग खिंचाई पूरे महीने भर चली। अंततः बात मेरे यौन अनुभवों पर आ कर रुकी। माँ ने यौन संबंधों के बारे में जब मेरे साथ पहली बार (शादी के कुछ हफ़्तों पहले) चर्चा करी थी तो मुझे इतनी शर्म और हिचक महसूस हुई की मैं आपको बता नहीं सकती। ऐसे कैसे मन से ‘इन’ विषयों पर बात की जाय? अद्भुत है न? हमारे देश में इतने सारे विवाह, और इतने सारे बच्चे होते हैं... फिर भी इन विषयों पर माँ-बाप से बच्चे शायद ही कभी बात करते हैं। संभव है इसीलिए माँ ने पड़ोस की भाभियों को मुझे कुछ ज्ञान देने को कहा होगा। झिझक तो उनके साथ भी हुई, लेकिन कम... लेकिन सहेलियों के साथ इस विषय पर खुल्लम-खुल्ला बात हो जाती है। पिछले चौदह पन्द्रह साल से एक दूसरे के दोस्त होने के कारण हम लोग हम एक-दूसरे की कई सारी निजी बातें भी जानते हैं, और ज़रुरत पड़ने पर सलाह मशविरा भी लेते-देते हैं। हमारे बीच छेड़-छाड़ और हंसी-मज़ाक उम्र के साथ साथ बढ़ती चली गई। तो आज जब सेक्स के बारे में उनको जानने बूझने का मौका मिला, तो मेरी तीन ख़ास सहेलियों ने तो मुझे घेर कर सब कुछ जानने और पूछने की ठान ली।

“शादी के बाद क्या-क्या धमाल किया मेरी बन्नो ने?” एक सहेली ने पूरी बेशर्मी से पूछा।

“अरी, शरमा मत मेरी लाडो! उस दिन हमने तुम्हारी आहें सुनी थीं... जीजू तुमको सवेरे सवेरे ही निबटाये डाल रहे थे! हाय! बता री! क्या क्या किया तुम दोनों ने?” दूसरी सखी ने पूछा – नमक मिर्च लगा कर।

“अरे बता दे! ऐसे क्यों नखरे कर रही है? अरे, हमें भी तो कुछ सीखने को मिले!” तीसरी ने और कुरेदा।

“क्यों री! तुम लोगो को कुछ ज्यादा ही हवा लग गई है जवानी की!” मैंने चुटकी ली।

“अरे वाह! तू तो ब्याह कर के इतने मजे ले रही है.. अपने राजा के साथ महल में रह रही है... और हमको जवानी की हवा भी नहीं लगे! वाह भाई वाह!” तर्क वितर्क जारी था।
 
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मुझे यह नहीं मालूम की पुरुष अपने यौन संबंधो की बाते अपने मित्रों से करते हैं या नहीं, लेकिन स्त्रियों के बीच ऐसी बातें करना बहुत स्वाभाविक सा लगता है। ज्*यादातर महिलाएं जब अपनी सहेलियों से मिलती हैं, तो अक्सर यौन संबंधों की बातें करती हैं। मेरी सारी सहेलियाँ मेरी हम-उम्र थीं, और एक दो की तो शादी की बातें भी चल रही थीं (यह कोई अनहोनी बात नहीं है... पिछड़े इलाकों में सत्रह अठारह की उम्र में शादी तो बहुत ही आम बात है)। उस उम्र में वैसे भी यौन इच्छाएँ अपने पूरे शबाब पर होती हैं – सभी लड़कियाँ अपने अपने (काल्पनिक) साथी के साथ अन्तरंग संबंधो की कल्पना कर रही होती हैं। वैसे, अब उन लड़कियों में मुझे ऊँचा दर्जा मिल गया था – मैं अनुभवी जो हो गई थी।

बहुत देर तक न नुकुर करने के बाद मैंने उनको धीरे धीरे सुहागरात और हनीमून से लेकर, यहाँ वापस आने तक की सारी बातें सिलसिलेवार तरीके से बता दीं। इसमें क्या ही बुराई हो सकती है... वो कहते हैं न, ज्ञान बांटने से बढ़ता है। मैंने तो मानो साक्षात् कामदेव से यौन शिक्षा प्राप्त करी थी। इसलिए मैंने उनको सब कुछ विस्तार से बताया की कैसे मेरे पति ने मुझे हर दिन, दोनों हाथों से लूटा। उनको मैंने जब अंडमान के बीच पर सिर्फ अधोवस्त्रों में खुली धूप सेंकने के बारे में बताया तो, किसी ने यकीन ही नहीं किया।

“हाय! शर्म नहीं आती? ऐसे ही... सबके सामने?”

“अरे हम कैसे मान लें? कुछ भी बढ़ा चढ़ा कर बोल देगी, और हम मान लेंगे?”

“नहीं मानना है तो मत मान! हमने जो किया, वो मैंने बता दिया!” कह कर मैंने हाथ झाड़ा, और उठने लगी।

“अरे! तू तो नाराज़ हो गई...” सहेली ने मुझे हाथ पकड़ कर वापस बैठाया, “मान लिया भई! ये तो बता, जीजू तेरे दुद्धू पीते हैं क्या? कामिनी कह रही थी की उसके भैया उसकी भाभी के पीते हैं... उसने उन दोनों को ऐसे करते हुए देखा था। अब तू ही बता भला! दूध पीने का काम तो बच्चों का है, बड़े लोगो का थोड़े ही!”

अन्तरंग सवालों का सिलसिला थमने वाला नहीं था।

“बोल न, संध्या! जीजू पीते हैं क्या तेरे दूध?”

उत्तर में मैं सिर्फ मुस्कुरा दी।

“पीते हैं? क्या सच में! हाय राम!” उन सबको विश्वास नहीं हुआ।

“बाप रे! बोल री संध्या! कैसा लगा था तुझे?”

“अरे! मुझे कैसा लगा, तुझे कैसे बताऊँ? सभी के अनुभव अलग अलग होंगे!” मैंने समझदारी दिखाई, और टालने का प्रयास भी किया।

“नखरे करने लगी फिर से! बोल दे न, जब जीजू ने तेरा दूध पिया तो तुझे कैसा लगा?”

“नखरे कैसे? तेरे पिए जायेंगे तो तुझे भी मालूम पड़ेगा!”

“अरे वो तो जब होगा, तब होगा! लेकिन तू भी तो कुछ बता न?”

मुझे शर्म आने लगी, “हाय! कैसे बताऊँ?”

“बन्नो रानी, तुझे करते और करवाते हुए तो शर्म नहीं आई.. लेकिन हमें बताते हुए आ रही है! अब बता भी दे... नहीं तो तेरे पाँव पड़ जाएँगी हम!”

“उम्म्म... ठीक है.. नहाते-धोते समय हम सबने अपने स्तन छुवे ही हैं... लेकिन जब ‘उनके’ गर्म होठों का स्पर्श... उस जैसा अनुभव कभी नहीं हो सकता! एकदम नया एहसास! मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई.. अभी भी वैसे ही होता है। मेरे चुचक तो उनके मुँह में जाकर मानों पत्थर जैसे कड़े हो जाते हैं। और वो बदमाश, उनको किसी बच्चे की ही तरह चूसते हैं.... मैं तो अपने होश ही खो देती हूँ। उनका हमला अक्सर यहीं से शुरू होता है... शायद उनको मेरे स्तन स्वादिष्ट लगते हों! सच बताऊँ, जब वो इनको पीते हैं तो मेरा भी मन नहीं भरता... बस यही लगता है की वे मेरे दोनों चुचक लगातार पीते रहें। दर्द की भी कोई परवाह नहीं होती... इतना आनन्द जो आता है! उसके सामने यह दर्द कुछ भी नहीं। आनंद आता है, लेकिन मेरा हाल भी बुरा हो जाता है... शरीर बुरी तरह कांपने लगता है और हर अंग से गर्मी छूटने लगती है और साँसे भारी हो जाती हैं। मुझे नहीं लगता की बच्चों को दूध पिलाने पर ऐसा लगेगा!”

मेरी सहेलियाँ मेरी बातों से पूरी तरह मंत्रमुग्ध हो गईं।

“तू है ही इतनी सुन्दर! जीजू ही क्या.. अगर मैं होती तो मैं ही तेरे दुद्धू पीती रहूँ!”

“हट्ट बेशरम! इसीलिए ये सब बातें नहीं करनी चाहिए... कैसे कैसे ख़याल आने लगते हैं!” मैंने फिर से समझदारी से कहा।

मेरी सहेली मेरी बात से हतोत्साहित नहीं हुई.. और मेरे सीने को देखते हुए बोली, “सच संध्या! एक बार इन्हें छू लूँ क्या... बुरा तो नहीं मानोगी न?”

“नहीं रे! पागल हो गई है क्या? अब ये तेरे जीजू की अमानत हैं!”

लेकिन वो लगता है सुन ही नहीं रही थी। उसने संकोच करते हुए मेरे स्तन पर हाथ लगाया, और फिर कुछ देर हाथ फ़ेर कर सहलाया।

“हाय रे! कितने कड़े हैं तेरे दुद्धू!” उसने कहा। उसकी बात सुन कर जैसे सभी को मेरे स्तन छूने का लाइसेंस मिल गया हो – सभी ने बारी बारी से छुआ और सहलाया।

“अब बस! दूर रहो मुझसे तुम सब!” मैंने उनको प्यारी झिड़की दी।

सहेलियां मान गईं... और फिर एक सहेली दबी आवाज़ में बोली, “अच्छा, एक बात तो बताना, पहली बार में बहुत दर्द होता है क्या?”

अब मैं इस बात का क्या जवाब दूँ! जवाब दूँ भी की न दूँ? मैंने अनजान बनने की सोची,

“पहली बार? बताया तो! जब वो पीते हैं तो दर्द तो होता है... इतनी देर तक जो पीते हैं, इसलिए।“

“अरे यार! जब दूध पीने की बात नहीं कह रही हूँ, जब वो ‘डालते’ हैं, तब दर्द होता है – ये पूछ रही हूँ?” उसने पूरी नंगई से अपनी बात स्पष्ट करी।

“देख... जब उनके जैसा पति तुझे मिलेगा, तब तू समझेगी!” मैंने समझदारी से बात को टालते हुए कहा।

“उनके जैसा मतलब? जीजू का... बहुत बड़ा है क्या?” दूसरी सहेली ने अटखेली करी।

“हट्ट बेशरम!”

“अरी बोल न!! देख, जीजू हैं भी तो कितने हट्टे कट्टे! बहुत बड़ा होगा उनका तो! कैसे सहती है? बोल दे! कौन सा हम उनको नंगा देखे ले रहे हैं?” लड़कियाँ तो ज़िद पर अड़ गईं थीं।
 
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“अच्छा, तो सुन! मुझे देख.. मैं तो हूँ इतनी दुबली पतली सी.. और जैसा तूने कहा, तेरे जीजू हैं एकदम हट्टे कट्टे! तो उनका अंग बहुत बड़ा है मेरे लिए... लेकिन वो इतने प्यार से करते हैं की दर्द का ज्यादा पता नहीं चलता। उनकी कोशिश हमेशा मुझे खुश करने की होती है.. इसलिए बहुत देर तक मुझे प्यार करते हैं। अगर वो ऐसे ही अपने अंग को मेरे में घुसेड़ दें तो मैं तो मर ही जाऊं! इसलिए ऐसे न सोचना की बड़ा और मोटा लिंग होगा तभी तुमको बहुत मज़ा आएगा... तुम्हारे पति को ढंग से करना आना चाहिए, तभी मज़ा आएगा!”

मैंने न जाने किस भावना में आकर यह सब कह दिया!

“आय हाय! मेरी बन्नो! तू तो पूरी वात्स्यायन बन गई है!”

“हा हा हा!” सभी ने अठखेलियाँ भरीं।

“रोज़ रोज़ कामसूत्र की नयी नयी कहानियाँ जो लिखती है...!”

“अच्छा, ये बता.. और क्या क्या करती है तू?”

“और क्या?”

“अब हमें क्या मालूम होगा? देख री, तेरी इस क्लास की हम सब स्टूडेंट्स हैं... जो भी कुछ मालूम है, और जो भी कुछ किया है, वो हमको बता दे प्लीज़! हमारा भी उद्धार हो जाएगा!!”

“अच्छा, एक बात बता तो! तुम दोनों पूरी तरह से नंगे हो जाते हो क्या?”

मैं फिर से शरमा गई, “तेरे जीजू का बस चले तो मुझे हमेशा नंगी ही रखें! बहुत बदमाश हैं वो!”

“सच में? लेकिन तू तो इतनी बड़ी लड़की है, नंगी होने पर शरम नहीं आती?”

“आती तो है... लेकिन मैं क्या करूँ? वैसे भी.. अपने ही पति से क्या शरमाऊँ? वो अपने हाथों से मेरे कपड़े उतारते हैं, और मुझे पूरी नंगी कर देते हैं। लाज तो आती है, लेकिन रोमान्च भी भर जाता है।“

“हाँ! वो भी ठीक है! अच्छा, एक अन्दर की बात तो बता... तूने जीजू का .... लिंग ... छू कर देखा?”

“हा हा हा! अरे पगली, अगर छुवूंगी नहीं, तो सब कुछ कैसे होगा? हा हा!” इस नासमझ बात पर मुझे हंसी आ गई। “शादी की रात को ही उन्होंने मुझे अपना लिंग पकड़ा दिया था... मेरी तो जान निकल गई थी उसको देख कर...”

“कैसा होता है पुरुषों का लिंग?”

“बाकी लोगों का नहीं मालूम, लेकिन इनका तो बहुत पुष्ट है। इतना (मैंने हवा में ही उँगलियों को करीब सात इंच दूर रखते हुए बनाया) लम्बा, और मेरी कलाई से भी मोटा है!”

“क्या बात कर रही है? ऐसा भी कहीं होता है?”

“वो मुझे नहीं मालूम... लेकिन इनका तो ऐसा ही है। और तुझे कैसे मालूम की कैसे होता है? किस किस का लिंग देखा है तूने?“

“बाप रे! और वो तेरे अन्दर चला जाता है?” उसने मेरे सवाल की अनदेखी करते हुए पूछा।

“मैंने भी यही सोचा! उनका मोटा तगड़ा लिंग देख कर मैंने यही सोचा की यह मुझमे समाएगा कैसे! उस समय मुझे पक्का यकीन हो गया की आज तो दर्द के मारे मैं तो मर ही जाऊंगी! सोच ले, शादी करने के बाद लड़कियों को बहुत सी तकलीफ़ झेलनी पड़ती हैं। और मेरी किस्मत तो देखो.... उनका लिंग तो हमेशा खड़ा रहता है... कभी भी शांत नहीं रहता! जानती है, मेरी हथेली उनके लिंग के गिर्द लिपट तो जाती है, लेकिन घेरा पूरा बंद नहीं होता। इतना मोटा! बाप रे! और तो और, उनके लिंग की लम्बाई का कम से कम आधा हिस्सा मेरी पकड़ से बाहर निकला हुआ रहता है।” अब मैं भी पूरी निर्लज्जता और तन्मयता के साथ सहेलियों के ज्ञान वर्धन में रत हो गई।

“अरे तो फिर ऐसे लिंग को तू अन्दर लेती कैसे है?”

“मैंने बताया न... वो यह सब इतने प्यार से करते हैं की दर्द का पता ही नहीं चलता। वो बहुत देर तक मुझे प्यार करते हैं – चूमते हैं, सहलाते हैं, इधर उधर चाटते हैं। जब वो आखिर में अपना लिंग डालते हैं तो दर्द तो होता है, लेकिन उनके प्यार और इस काम के आनंद के कारण उसका पता नहीं चलता।“

ऐसे ही बात ही बात में न जाने कैसे मेरे मुंह से हमारी नग्न तस्वीरों वाली बात निकल पड़ी। कहना ज़रूरी नहीं है की ये सारी लड़कियां हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ गईं की मैं उनको ये तस्वीरे दिखाऊँ। किसी तरह से अगले दिन कॉलेज के बाद दिखाने का वायदा कर के मैंने जान छुड़ाई।

अगले दिन कॉलेज के बाद हम चारों लडकियां हमारे बुग्याल/झील वाले झोपड़े की ओर चल दीं। मैं तो आराम से थी, लेकिन बाकी तीनों जल्दी जल्दी चल रही थीं, और मुझे तो मानों घसीट रही थीं। खैर, हम लोग वहां जल्दी ही पहुँच गए।

“जानती हो तुम लोग... हम दोनों ने यहाँ पर भी.... हा हा!” मैंने डींग हांकी।

“क्या!!!? बेशरम कहीं की! और तुम ही क्या? तुम दोनों ही बेशरम हो! अब तो हमको यकीन हो गया है की तुम दोनों ने ऐसी वैसी तस्वीरें खिंचाई हैं। खैर, अब जल्दी से दिखा दे... देर न कर!“ तीनों उन तस्वीरों को देखने के लिए मरी जा रही थीं।

मैं भी उनको न सताते हुए ‘उन’ तस्वीरों को सिलसिलेवार ढंग से दिखाने लगी। शुरुवात हमारी उन तस्वीरों से हुई जब हम बीच पर नग्न लेटे सो रहे थे, और मौरीन ने चुपके से हमारी कई तस्वीरें खींच ली। उन तस्वीरों में हम पूर्णतः नग्न और आलिंगनबद्ध होकर सो रहे थे। रूद्र मेरी तरफ करवट करके लेटे हुए थे – उनका बायाँ पाँव मेरे ऊपर था, और उनका अर्ध-स्तंभित लिंग और वृषण स्पष्ट दिख रहे थे। मैं पीठ के बल लेटी हुई थी और मेरा नग्न शरीर पूरी तरह प्रदर्शित हो रहा था। सच मानिए, तो कुछ ज्यादा ही प्रदर्शित हो रहा था।

“संध्या! मेरी जान!” एक सहेली ने कहा, “तुझको मालूम है की तू कितनी सुन्दर है? तुझे देख कर मन हो रहा ही काश मैं मर्द होती तो मैं तुझसे शादी करती! सच में!” कहते हुए उसने मुझे चूम लिया।

“अरे ऐसा क्या है! तुम तीनों भी तो कितनी सुन्दर हो!”

“अगर ये सच होता, मेरी बन्नो, तो जीजू तुझे नहीं, हम में से किसी को चुनते! क्या पैनी नज़र है उनकी!” कह कर एक ने मेरे स्तन पर चिकोटी काट ली।

“चल, अब और सब दिखा..”

आगे की तस्वीरों में मैंने जम कर पोज़ लगाये थे... कभी मुस्कुराती हुई, कभी मादक अदाएं दिखाती हुई! कुछ तस्वीरों में मैं एक पेड़ के तने पर पीठ टिका कर अपने दाहिने हाथ से ऊपर की एक डाली को और बाएँ हाथ से अपने बाएँ पैर को घुटने से मोड़ कर ऊपर की तरफ खींच रही थी। यह तस्वीरें सबसे कामुक थीं – उनमें मेरा पूरा शरीर और पूरी सुन्दरता अपने पूरे शबाब पर प्रदर्शित हो रही थी। कुछ तस्वीरों में मैं अपने चूचक उँगलियों से पकड़ कर आगे की ओर खींच रही थी – शर्म, झिझक, उत्तेजना और गर्व का ऐसा मिला जुला भाव मेरे चेहरे पर मैंने पहले कभी नहीं देखा था। आगे की तस्वीरों में रूद्र अपने आग्नेयास्त्र पर प्रेम से हाथ फिरा रहे थे; फिर उनके लिंग की कुछ अनन्य तस्वीरें आईं, जिसमें पूरे लिंग का अंग विन्यास साफ़ प्रदर्शित हो रहा था।

और फिर आईं वह तस्वीरें जिनको देख कर मेरी सहेलिय दहल गईं। वे तस्वीरें थीं जिनमें मैं रूद्र का लिंग अपने मुंह में लेकर उसको चूम, चूस और चाट रही थी। मुख मैथुन का ऐसा उन्मुक्त प्रदर्शन तो मैंने भी नहीं देखा था पहले... सहेलियों की तो बात ही क्या? वो सभी मत्रमुग्ध हो कर वो सारे चित्र देख रही थीं... उनके लिंग के ऊपर से शिश्नग्रच्छद पीछे हट गया था, जिससे हलके गुलाबी रंग का लिंगमुंड साफ़ दिखाई दे रहा था। आगे की कुछ तस्वीरों में उनका लिंग मेरे मुख की और गहराइयों में समाया हुआ था।

“हाय संध्या! तुझे गन्दा नहीं लगा?”

“पहली बार तो कुछ उबकाई आई... लेकिन जब इनको गन्दा नहीं लगता (मेरा मतलब रूद्र द्वारा मुझे मुख-मैथुन करने से था) तो मुझे क्यों लगेगा?”

“अरे जीजू को तो मज़ा आ ही रहा होगा!” फिर उसका दिमाग चला, “एक मिनट... उनको क्यों गन्दा लगेगा?” उसने पूछा।

“नहीं.. मेरा मतलब वो नहीं था.. तेरे जीजू भी तो मुझे वहाँ चू...” कहते कहते मैं शर्मा कर रुक गई।

“क्या? सच में? हाय! संध्या! तू सचमुच बहुत लकी है!”

आगे की तस्वीरों में रूद्र मुझे भोगने में पूरी तरह से रत थे - वे कभी मेरे होंठो को चूमते, तो कभी मेरे स्तनों को। और फिर आया आखिरी पड़ाव – उनका लिंग मेरी योनि के भीतर!

“बाप रे! ऐसे होता है सम्भोग?!” सहेलियां बस इतना ही कह सकीं।

जब तस्वीरें ख़तम हो गईं, तब मेरी सभी सखियाँ भी शांत हो गईं। आज उनको ऐसा ज्ञान मिला था, जो वो अपने उम्र भर नहीं भूल सकेंगी।

मैंने उनको प्यार से समझाया की सेक्स विवाह का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा है। अगर सिर्फ उसी पर ध्यान लगेगा तो दिल टूटने की पूरी जुन्जाइश है! विवाह तो बहुत ही विस्तीर्ण विषय है... उनका प्यार... वो जिस तरह से मुझे सम्मान देते हैं और मेरी हर इच्छा की पूर्ती करते हैं, वह ज्यादा बड़ी बात है। इसी कारण से उनकी हर इच्छा पूरी करने का मेरा भी मन होता है। जीवन भर के इस नाते को निभाने के लिए पति-पत्नी का एक-दूसरे के प्रति वफादार होना बहुत आवश्यक है। सुख तो तभी होता है। अगर विवाह की नींव बस काम वासना की तृप्ति ही है, तो बस, फिर हो गया कल्याण! ये तो मुझे और पढ़ने, आगे बढ़ने और यहाँ तक की अपना खुद का काम करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। और मुझे मेरे खुद के व्यक्तित्व को निखारने के लिए बढ़ावा दे रहे हैं। ...वो मुझे कैसे न कैसे हंसाने की कोशिश करते रहते हैं.. ऐसा नहीं है की उनकी हर बात, या हर जोक पर मुझे हंसी आती है... लेकिन वो कोशिश करते हैं की मैं खुश रहूँ.. यह बात तो मुझे समझ में आती है! अपने माँ बाप का घर छोड़ कर, उस अनजान जगह पर, अनजान परिवेश में, एक अनजान आदमी के साथ मैं रह सकी, और रहना चाह रही हूँ, अपने को सुरक्षित मान सकी, और उनको मन से अपना मान सकी तो उसके बस यही सब कारण हैं... यह सब कुछ सिर्फ मन्त्र पढ़ने, और रीति रिवाज़ निभा लेने से तो नहीं हो जाता न!

मेरी सहेलियों ने मेरी इस बात को बहुत ध्यान से सुना। उनके मन में क्या था, यह मुझे नहीं मालूम... लेकिन जब मेरी बात ख़तम हुई, तो सभी ने मुझे कहा की वो मेरे लिए बहुत खुश हैं! और चाहती हैं, और भगवान् से यही प्रार्थना करती हैं की हमारी जोड़ी ऐसे ही बनी रहे, और हम हमेशा खुश रहें।
 
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एक महीना ज्यादा भी होता है और कम भी! उसका अंतराल इस बात पर निर्भर करता है की हमारी मनःस्थिति कैसी है? मजे की बात यह है की हम दोनों की मनःस्थिति प्रसन्न भी थी, और बेकल भी। प्रसन्न इस बात से की एक एक कर के महीने के सारे दिन बीत रहे हैं, और बेकल इस बात से की कैसे जल्दी से ये दिन बीत जाएँ। विचित्र बात है न की प्रकृति अपने निर्धारित वेग पर चलती रहती है, लेकिन हम मानव अपने मन में कुछ भी सोच सोच कर उसके विचित्र परिमाण बनाते रहते हैं – ‘यह हफ्ता कितनी जल्दी बीत गया’, ‘इस बार यह साल बहुत लम्बा था’ इत्यादि!

मैंने इस माह सिर्फ तीन काम ही किए – अपना ऑफिस का काम (भगवान् की दया से यह बहुत ही लाभकर महीना साबित हुआ), सेहत बनाना (शादी के बाद इस दिशा में कुछ लापरवाही हो गई थी.. लेकिन अब वापस पटरी पर आ गई) और संध्या की बाट जोहना!


शनिवार

सवेरे के करीब साढ़े दस बज रहे होंगे – आज वैसे भी बहुत ही आलस्य लग रहा था। सवेरे न तो जॉगिंग करने गया, और न ही कसरत! बस पैंतालीस मिनट पहले ही जबरदस्ती बिस्तर से उठ कर, काफ़ी बना कर, अखबार के साथ पीने ही बैठा था की डोरबेल बजी!

‘इतने सवेरे सवेरे कौन है!’ सोचते हुए मैंने जब दरवाज़ा खोला तो देखा की सामने हिमानी खड़ी थी। हिमानी याद है न? मेरी भूतपूर्व प्रेमिका!

“हाआआय!” हिमानी का मुस्कुराता हुआ चेहरा जैसे सौ वाट के बल्ब जैसे चमक रहा था।

मैं भौंचक्क! ‘ये यहाँ क्या कर रही है?’ दिमाग में अविश्वास और संदेह ऐसे कूट कूट कर भरा हुआ है की सहजता समाप्त ही हो चली है मेरे अन्दर। मेरे मुंह से बोल नहीं निकली।

“आज बाहर से ही दफ़ा करने का इरादा है क्या?” हिमानी ने बुरा नहीं माना। अच्छे मूड में लग रही है।

“हे! हेल्लो! आई ऍम सॉरी! प्लीज... कम इन! यू सरप्राइज्ड मी!” मैंने खुद को संयत कर के जल्दी से उसको अन्दर आने का इशारा किया।

“सरप्राइज होता तो ठीक था... तुम तो शाक्ड लग रहे हो! हा हा!” हिमानी हमारे ब्रेकअप से पहले अक्सर घर आती थी, और हम दोनों कई सारे अन्तरंग क्षण साथ में बिता चुके थे... लेकिन वो पुरानी बात है।

“कॉफ़ी पियोगी?” मैंने पूछा।

“अरे कुछ पीना पिलाना नहीं है! आज तो मस्ती करने का मूड है! संध्या कहाँ है? उसको शौपिंग करवाने लेने आई हूँ..”

“शौपिंग?” हिमानी को शौपिंग करना बहुत अच्छा लगता था (वैसे किस लड़की/स्त्री को अच्छा नहीं लगता?)।

“संध्या तो नहीं है..”

“नहीं है? कहाँ गई?”

“वो अपने मायके गई है..”

“मायके? अरे, अभी तो तुम दोनों वापस आये हो हनीमून से! अभी से दूरियाँ? या फिर तुमने कुछ कर दिया, यू नॉटी बॉय? यू क्नो! हा हा हा!”

हिमानी मेरी टांग खींचने से बाज़ नहीं आती कभी भी।

कमाल की बात है! इस लड़की का दिल वाकई बहुत बड़ा है। मैंने ब्रेकअप के बाद, जिस बेरुख़ी से हिमानी से किनारा किया था, मुझे कभी नहीं लगता था की वो मुझसे फिर कभी बात भी करना चाहेगी। लेकिन उसको इस तरह से हँसते बोलते देख कर मुझे यकीन हो गया की उसने मुझे माफ़ कर दिया था। लेकिन फिर भी, मैं अपने नए जीवन में कोई भी या किसी भी प्रकार का उलझाव नहीं आने देना चाहता था।

‘इसको जल्दी टरकाओ यार!’ मैंने सोचा।

“ऐसा कुछ नहीं है... उसकी क्लासेज हैं न! इसलिए गई है।“

“क्लासेज? कौन सी? किस क्लास में है वो अभी?”

“इंटरमीडिएट! आएगी वो दस दिन बाद! तब ले जाना उसको शौपिंग!” मुझे लगा की वो यह सुन कर चली जायेगी।

“व्हाट? इंटरमीडिएट? तुमने ‘बाल विवाह’ किया है क्या? हा हा हा! ओ माय गॉड! बालिका वधू.. हा हा हा!” हिमानी पागलो के तरह सोफे पर हँसते हुए लोट पोट हुई जा रही थी।

“सॉरी सॉरी... हा हा! मेरा वो मतलब नहीं था। मैं बस तुमसे मजे ले रही हूँ.. ओके? डोंट माइंड!” हिमानी अंततः चुप हुई.. और कुछ देर रुकने के बाद बोली,

“... संध्या वाकई बहुत प्यारी है। यू आर अ लकी मैन! उस दिन तुम्हारी रिसेप्शन क्रैश करने के लिए मुझे माफ़ कर देना... लेकिन मैं देखना चाहती थी की तुमने किससे शादी की है.. रहा नहीं गया! पुरानी आदत! सॉरी!” उसकी आवाज़ में निष्कपटता थी।

“लेकिन... उस दिन उसको देखा तो मैं अपना सारा गुस्सा भूल गई! यू डिसर्व्ड हर। वो बहुत प्यारी है... तुम बुरे आदमी नहीं हो... बस थोड़ा बच्चे जैसे हो। वो छोटी बच्ची है, लेकिन तुमको प्यार करती है – उसकी आँखों में दिखता है। शी विल टेक केयर ऑफ़ यू! और यह मत सोचना की मैं संध्या से मिल कर तुम्हारी कोई बुराई करूंगी... आई जस्ट वांट टू बी हर फ्रेंड! डू यू माइंड?” हिमानी की यह स्पीच बहुत संजीदा थी। कोई बनावट नहीं।

“आई ऍम सॉरी हिमानी। आई रियली ऍम! शायद तुम सही हो – और मैं वाकई एकदम बचकाना हूँ..”

हिमानी ने मेरी बात बीच में काट दी, “... नहीं बचकाने नहीं.. मेरा मतलब था, कि तुम मेरे छोटे भाई होने चाहिए थे.. लवर नहीं।“

“तुमने शादी की?” मैंने बात पलट दी।

“तुमको क्या लगता है?”

“ह्म्म्म....” (मतलब नहीं की।)

“प्यार वार के मामले में अपनी किस्मत थोड़ी खोटी है.. खैर, मेरी बात फिर कभी.. तुम बताओ.. नया और एक्साइटिंग तो तुम्हारी लाइफ में चल रहा है.. सबसे पहले ये बताओ की तुमको इतनी प्यारी लड़की मिली कहाँ? ... और हाँ, एक कप कॉफ़ी मेरे लिए भी बना दो!”

हिमानी से बात करके ऐसा लगा ही नहीं की उससे आखिरी बार तीन साल पहले मिला। ये लड़की बहुत बिंदास थी – पूरी तरह स्वनिर्भर, बेख़ौफ़, और अपने मन की बात कहने और करने वाली। बहुत कुछ सीखा मैंने इससे... लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था!

मैंने उसको अपनी उत्तराँचल रोड-ट्रिप और फिर संध्या और उसके परिवार वालों से मिलने, और फिर हमारी शादी की बात सिलसिलेवार तरीके से सुना दी। हिमानी को यह सुन कर अच्छा लगा की मैंने कम से कम छुट्टियाँ तो लीं..

“ये तो पूरी तरह से फेयरी-टेल है! आई ऍम सो हैप्पी फॉर यू..” फिर घड़ी देखते हुए, “अरे यार! ये तो एक बज रहा है! पूरा प्लान बेकार हो गया... बोलना अपनी बीवी को, की ऐसे इधर उधर रहेगी तो हमारी दोस्ती कैसे होगी?”

जवाब में मैं सिर्फ मुस्कुरा दिया।

“अच्छा... तो हम चलते हैं..” गाते हुए हिमानी उठने लगी।

मैं मुस्कुराया, “ओके! बाय! यू टेक केयर!”

“अरे.. दोस्तों को ऐसे विदा करते हैं?” कहते हुए हिमानी ने गले मिलने के लिए अपनी बाहें फैला दीं। अब शिष्टाचार के नाते गले तो मिलना ही चाहिए न? मैं झूठ नहीं बोल सकता – हिमानी को इतने समय बाद वापस गले लगाना अच्छा लगा... बहुत अच्छा! वही पुराना, परिचित और सुरक्षित अनुभव! मैंने उसके बालों में हाथ फिराया – प्रतिउत्तर में उसके गले से हलकी ‘हम्म्म्म’ जैसी आवाज़ निकली। उसको आलिंगन में ही बांधे, मैंने उसके बाल पर एक चुम्बन लिया।

“अरे.. ये तो गलत बात है! अगर किस करना है, तो लिप्स पर करो! बालों पर क्यों वेस्ट करना?” कहते हुए उसने मुझे होंठों पर चूम लिया। और हँसते हुए मेरे बालों में कई बार हाथ फिराया। मैं वहीँ दरवाज़े पर हक्का बक्का खड़ा यह सोचता रह गया की यह क्या हुआ?

“ओके! टाटा! संध्या आ जाय तो बताना... आई विल कम!” कहते हुए वह बाहर निकल गई। और मैं सोचता रह गया की यह सब हुआ क्या?
 
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और जल्दी ही संध्या के वापस आने दिन आ गया।

संध्या ट्राली पर अपना सामान लेकर बाहर निकली। बहुत प्यारी लग रही थी – उसने एक श्वेताभ (ऑफ व्हाइट) कुरता और नीले रंग का शलवार पहना हुआ था। दुपट्टा भी श्वेताभ ही था। नहीं भई – यह कोई यूनिफार्म नहीं था, लेकिन उससे प्रेरित ज़रूर लग रहा था। मेरे साथ तो मैंने कभी भी संध्या को सिन्दूर, मंगलसूत्र इत्यादि के लिए जबरदस्ती नहीं की – उसके कारण पूछने पर मैं उसको कहता की उसका पति तो उसके साथ है, फिर ऐसी औपचारिकताओं की क्या आवश्यकता? लेकिन उत्तराँचल में वह पूरी तरह से अपने माता पिता की रूढ़िवादी चौकसी के अधीन रही होगी, लिहाजा उसने इस समय सिंदूर, मंगलसूत्र, चूड़ियाँ और बिछिया सब पहन रखी थी। शलवार कुरता पहनने को मिल गया, यही बहुत है। संध्या कुछ सहमी सी और उद्विग्न लग रही थी। उसकी आँखें निश्चित तौर पर मुझे ही ढूंढ रही थी।

‘बेचारी! पहला लम्बा सफ़र और वो भी अकेले!’ लेकिन, हर बार तो मैं उसके साथ नहीं जा सकता न! उसको देखते ही मेरे चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ गई, एक बड़ी सी मुस्कान खुद ब खुद पैदा हो गई।

“जानू! यहाँ!” मैंने पागलों के जैसे हाथ हिलाते हुए उसका ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट करने का प्रयास किया।

संध्या ने आवाज़ का पीछा करते हुए जैसे ही मुझे देखा, उसकी बाछें खिल गईं। सामान छोड़ कर वो मेरी तरफ भागने लगी। राहत, ख़ुशी और जोश – यह मिले जुले भाव.. जैसे किसी बिछड़े हुए को कोई अपना मिल गया हो!

“जानू... जानू!!” न जाने कितनी ही बार वह यही एक शब्द भावुक हो कर दोहराते हुए मेरी बाहों में समां गई। बहुत भावुक! कितना प्रेम! ओह! मैं इस लड़की को कितना प्यार करता हूँ! मैंने जोश में आकर उसको अपने आलिंगन में ही भरे हुए उठा लिया। न जाने किस स्वप्रेरणा से, संध्या ने भी अपनी टांगें मेरे इर्द गिर्द लपेट लीं।

मैंने तुरंत ही अपने होंठ उसके होंठ पर रख दिए – मेरे लिए इससे अधिक स्वाभाविक बात और कुछ नहीं हो सकती थी। कुछ देर तक हमने यूँ ही फ्रेंच किस किया और फिर मैंने संध्या को वापस ज़मीन पर टिकाया। आस पास खड़े लोग हमारा मेल देख कर ज़रूर लज्जित हो गए होंगे!

“मेरी जान..?”

“ह्म्म्म म्म्म?” वह मेरी आँखों में देख रही थी – कितनी सुन्दर! वाकई! मैंने नोटिस किया की उसका शरीर कुछ और भर गया था, उसके कोमल मुख पर यौवन के रसायनों का प्रभाव और बढ़ गया था, आँखों की बरौनियाँ और लम्बी हो गईं थीं, होंठों में कुछ और लालिमा आ गई थी... कुल मिला कर संध्या का रूप और लावण्य बस और बढ़ गया था। पहाड़ों की हवा में कुछ बात तो है!

“तुम बहुत सुन्दर लग रही हो! .. मैं बहुत बहुत हैप्पी हूँ की तुम वापस आ गई!”

उसके चेहरे पर तसल्ली, खुशी, थकान और मिलन की भाव, एक साथ थे। हम दोनों बहुत दिनों बाद मिले थे... मिले क्या थे, बस यह समझिये की जैसे अन्धे को आखें और प्यासे को पानी मिल गया हो! इतने दिनों बाद उससे मिल कर दिल भर आया! पुरानी प्यास फिर जग गई!

“मैं भी...!”

घर आते आते देर हो गई – बहुत ट्रैफिक था। रास्ते में मैंने घर पर सभी का हाल चाल लिया और संध्या की पढाई लिखाई, सेहत और मेरे काम काज, और मौसम इत्यादि की चर्चा करी। घर आते ही सबसे पहले मैंने खाना लगाया (जो की मैंने एअरपोर्ट जाते समय पहले ही पैक करवा लिया था) और हमने साथ में खाया, और फिर टेबल साफ़ कर के बेडरूम का रूख़ किया। संध्या अभी तक बेडरूम में नहीं आई थी – आकर वह जैसे ही बिस्तर पर बैठी, उसकी नज़र सामने की दीवार पर अपने नग्न चित्र पर पड़ी।

“अरे ये क्या लगा रखा है आपने? कोई अन्दर आकर देख ले तो?”

“क्या? अच्छा यह? यह तो मेरी जानेमन के भरपूर यौवन का चित्र है। आपके वियोग में इसी को देख कर मेरा काम चल रहा था।“

“आआ.. मेरा बच्चा!” संध्या ने बनावटी दुलार जताते हुए कहा, “... इतनी याद आ रही थी मम्मी की..” और फिर ये कहने के बाद खिलखिला कर हंस दी।

फिर अचानक ही, जैसे कुछ याद करते हुए, “पता है.... माँ ने आपके लिए शुद्ध... पहाड़ी फूलों के रस से बना हुआ शहद भेजा है...” कह कर उसने अटैची से एक बड़ी शीशी निकाली, “रोज़ दो चम्मच शहद पीने को बोला है... दूध के साथ! आपको पता है? शहद से विवाहित जीवन और बेहतर बनता है।“

“अच्छा जी? ऐसा क्या? तो अब ये भी बता दीजिए की कब खाना है?” मैंने भी मज़े में अपना मज़ा मिलाया।

“रात में...” संध्या ने आवाज़ दबा कर बोला.. जैसे कोई बहुत रहस्यमय बात करने वाली हो, “प्रेम संबंध बनाने से पहले... हा हा हा..!”

“हा हा! अरे मेरा शहद तो तुम हो! इसीलिए तो रोज़ तुमको खाता हूँ...” मैं अब मूड में आ रहा था, “ऊपर से नीचे तक रस में डूबी हुई... प्रेम सम्बन्ध बनाने से पहले मैं तो तुम्हारे अधर (होंठ) रस पियूँगा, फिर स्तन रस.. और आखिर में योनि रस...” कह कर मैंने संध्या को पकड़ने की कोशिश करी। लेकिन वो छिटक कर मुझसे दूर चली गई।

“छिः गन्दा बच्चा! अकेले रहते रहते बिगड़ गया है.. मम्मी से ऐची ऐची बातें करते हैं? .. ही ही!”

इस खेल में संध्या के लिए प्रतिकूल परिस्थिति थी, और वह यह की उसके हाथ में भारी सा शहद का जार था। उसने बहुत सहेज कर उसको हमारे बेड के सिरहाने की टेबल पर रख दिया। मैंने तो इसी ताक में था – इससे पहले संध्या कुलांचे भरती हुई कहीं और भाग पाती, मैंने उसको धर दबोचा। उसको पीछे से पकड़ने के कारण उसके स्तन मेरे दबोच में आ गए। महीने भर की प्यास पुनः जाग गई... मैंने उनको बेदर्दी से दबाते और मसलते हुए, उसके खुले गले पर होंठों और दांतों की सहायता से एक प्रगाढ़ चुम्बन लिया।

संध्या सिसकने लगी।

“आह... क्यों इतने बेसब्र हो रहे हो?”

चुम्बन जारी है,

“...अआह्ह्ह.... आराम से करो न! कहीं भागी थोड़े ही न जा रही हूँ...” मैंने उसके बोलते बोलते ही जोर से चूसा, “...सीईईई! आह!”

“एक महीना तुमने तड़पाया है... आज तो बदला लेने का भी दिन है, और पूरा मज़ा लेने का भी...” और वापस चूमने में व्यस्त हो गया।

संध्या अभी तक यात्रा वाले कपड़ो में ही थी.. उनसे मुक्त होने का समय आ गया था।

“बच्चे को मम्मी का दुद्धू पीना है...” मेरी आवाज़ उत्तेजनावश कर्कश हो गई, “... अपनी चूचियां तो खोलो...”

गन्दी बात शुरू! और मेरे हाथों की गतिविधियाँ भी!

मैं कभी उसके स्तन दबाता, तो कभी उसके खुले हुए अंगों पर ‘लव बाईट’ बनाता। संध्या की हल्की हल्की सिसकारियाँ निकलने लगी थी। उसने मुझे इशारे से बताया की लाइट भी जल रही है और खिड़की पर पर्दा भी नहीं खींचा है, कोई देख सकता है।

मुझे इस बात की परवाह नहीं थी... वैसे भी इतनी रात में भला कौन जागेगा? और अगर कोई इतनी रात में जागे, तो उसको कुछ पारितोषिक (ईनाम) तो मिलना चाहिए! मैंने संध्या को पलट कर अपनी तरफ मुखातिब किया। उसकी आँखें बंद थीं। मैंने अपनी उंगली को उसके नरम होंठों पर फिराया, और फिर उसके होंठों को चूमने लगा। ‘उम्म्म! परिचित स्वाद!’ संध्या भी चुम्बन में मेरा पूरा साथ देने लगी। एक दूसरे के होठों को प्रगाढ़ता से चूमने चूसने के दौरान मैंने उसकी कमर पर हाथ रख दिया और कुरते के अंदर हाथ डाल कर उसकी कमर को सहलाने लगा। बीच बीच में उसकी नाभि में उंगली से गुदगुदाने लगा।

कपड़े तो खैर मैंने भी अभी तक चेंज नहीं किये थे। संध्या भी अपनी तरफ से पहल कर रही थी – उसने मेरी पैंट की जिप खोली, और मेरी चड्ढी की फाँक में अपना हाथ प्रविष्ट कर के मेरे लिंग को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर बाहर निकाल लिया। ऊपर चुम्बन, नीचे संध्या की कमर को सहलाना, और मेरे लिंग का सौम्य मर्दन! इन सब में मुझे बड़ा मजा आ रहा था। मैंने एक हाथ को उसके कुरते के अन्दर ही ऊपर की तरफ एक स्तन की तरफ बढाया, और दूसरे हाथ को उसके शलवार और चड्ढी के अन्दर डालते हुए उसकी योनि को छुआ।

‘वैरी गुड! उत्तेजना से फूली हुई... गर्म.... नम... योनि रस निकल रहा था।‘

मैंने कुछ देर अपनी उंगली को योनि की दरार पर फिराया, और फिर उसको निर्वस्त्र करने का उपक्रम शुरू किया। कुरता उतारते ही एक अद्भुत नज़ारा दिखाई दिया। उसके गोरे गोरे शरीर पर, स्तनों को कैद किये हुए काले रंग की ब्रा थी! गले में पड़ा मंगलसूत्र दोनों स्तनों के बीच में पड़ा हुआ था। सचमुच संध्या का शरीर कुछ भर गया था - कमर और स्तनों में और वक्रता आ गई थी! इस समय संध्या किसी परी को भी मात दे सकती थी! मैंने हाथ बढा कर उसके स्तनों को हल्के से दबाया।

“ये दोनों.. थोड़े बड़े हो गए हैं क्या?”

संध्या खिलखिला कर हंस दी, “और क्या! आप नहीं थे, इसलिए आपके हाथों में समाने के लिए व्याकुल हो रहे थे ये दोनों!”

उसकी इस बात पर हम दोनों हँसने लगे। मैं पागलों के जैसे ब्रा के ऊपर से ही उनको दबाने और चूमने लगा।

“अरे रे रे..! ऐसे ही करने का इरादा है क्या?” संध्या ने कामुक अंगड़ाई लेते हुए कहा, “ब्रा को भी तो उतारिए न!”

“आज तो तुम ही उतारो मेरी जान! हम तो देखेंगे!”

संध्या मुस्कुराई और फिर बड़े ही नजाकत के साथ हाथ पीछे कर कर के अपनी ब्रा के हुक़ खोले और जैसे ही उसने वह काला कपड़ा हटाया, दोनों स्तन आज़ाद हो गए। मानों रस से भरे दो सिन्दूरी आम उसकी छाती पर परोस दिए गए हों! दोनों निप्पल इरेक्ट! और मेरा लिंग भी!

मैंने इशारे से उसको शलवार भी उतारने को कहा। संध्या ने नाड़ा खोल कर जैसे ही उसको ढीला किया, शलवार उसकी टांगो से होकर फर्श पर गिर गई। चड्ढी के सामने वाला हिस्सा कुछ गीला हो रहा था। वही हिस्सा उसकी योनि की दरार में कुछ फंसा हुआ था। अब मुझसे रहा नहीं गया; मैंने तुरंत संध्या को अपनी गोद में उठाया और बिस्तर पर पटक दिया और अपने दोनों हाथों से संध्या की चड्ढी नीचे सरका दी।

मैंने संध्या को बिस्तर पर चित लेटा कर अपने आलिंगन में भरा, और उसके पूरे शरीर को सहलाना और चूमना आरम्भ कर दिया। संध्या भी कुछ ऐसे लेटी थी, जैसे उसकी दोनों टाँगे मेरी कमर के गिर्द लिपटी हुई थीं। मैं उसके होंठो को चूमते हुए, उसके पूरे शरीर पर हाथ फिराने और सहलाने लगा।

कुछ देर ऐसे ही प्यार करने के बाद, मैं बिस्तर पर संध्या के एक तरफ लेट गया और उसकी जांघें यथासंभव खोल दीं, और फिर बारी बारी उसके होंठ और निप्पल चूमते हुए उसकी जाँघों को सहलाने लगा। उत्तेजना के मारे संध्या की जाघें और खुल गईं। संध्या के होंठ चूमते हुए मैंने उँगलियों से उसकी योनि का मर्दन आरम्भ कर दिया। योनि मर्दन करते हुए मैं रह रह कर उसके निप्पल भी चूमता और चूसता। संध्या भी एक महीने से अतृप्त बैठी हुई थी ... इसलिए फोरप्ले के बहुत मूड में नहीं लग रही थी। फिर भी ऐसी क्रियाओं में सिर्फ आनंद ही आता है।

मैंने कुछ देर उसकी योनि से छेड़खानी करने के बाद वापस उसके स्तनों पर हमला किया। मैंने उसके दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों में कुछ इस प्रकार दबाया , जिससे उसके निप्पल पूरी तरह से बाहर निकल आयें, और फिर उनको बारी बारी से देर तक जी भर के पिया। संध्या उत्तेजक बेबसी में रह रह कर सिर्फ मेरे बाल, पीठ और गाल सहला रही थी। मैं भी दया कर के बीच बीच में निप्पल छोड़ कर उसके होंठों को चूमने लगता। फिर भी स्तनों पर मेरी पकड़ नहीं छूटी।

शीघ्र ही संध्या अपनी उत्तेजना के चरम पर थी, और उसकी योनि से शहद की बारिश होने लगी। मैंने उसको बिस्तर पर ऐसे ही छोड़ा, जिससे वह अपनी साँसे संयत कर सके। जब वापस आया तो मेरे हाथ में माँ का दिया हुआ शहद का जार और एक चम्मच था।

मैंने दो चम्मच शहद अपने मुंह में डाला (लेकिन निगला नहीं), और वापस बिस्तर पर आ बैठा। बैठने से पहले जार को बिस्तर के साइड में नीचे की तरफ रख दिया था, जिससे आवश्यकतानुसार शहद का सेवन किया जा सके। वापस आकर मैंने संतृप्त संध्या को अपनी गोद मैं बैठाया और आलिंगन में भर के उसके होंठों को चूमने लगा। इस चुम्बन से माध्यम से मैं संध्या को अति सुगन्धित पहाड़ी फूलों के रस से बने शहद को पिलाने लगा। सच कहता हूँ, बाजारू उत्पाद इस शहद का क्या मुकाबला करेंगे? ऐसा स्वाद, ऐसी सुगंधि और ऐसी संरचना! थोड़ी देर में मैंने संध्या को लगभग पूरा शहद पिला दिया (मैंने थोड़ा ही पिया)। उसके बार पुनः बारी बारी से होंठों, और दोनो निप्पलों पर चुम्बन जड़ने लगा। कहने की आवश्यकता नहीं की संध्या के स्तन मीठे हो गए थे।
 
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आज तो बीवी को तबियत से भोगने का इरादा था! मैंने वापस संध्या को बिस्तर पर लेटाया और उसकी दोनों जांघे फैला कर संध्या को रिलैक्स करने को कहा। शहद के जार से एक चम्मच शहद निकाल कर मैंने एक हाथ की उँगलियों की मदद से उसकी योनि के पटल खोले और मीठा गाढ़ा शहद संध्या की योनि में उड़ेल दिया।

"क्क्क्क्या कर रहे हैं आप..?" संध्या मादक स्वर में बोली।

"आपके योनि रस को और हेल्दी बना रहा हूँ... जस्ट वेट एंड वाच!"

कह कर मैंने जैसे ही अपनी जीभ उसकी योनि में प्रविष्ट करी, तो उसकी एक तेज़ सिसकारी निकल गई। मैंने जीभ को संध्या की योनि के भीतर घुसेड़ दिया – योनि के प्राकृतिक सुगंध की जगह पर अब फूलों की भीनी भीनी और मीठी सुगंध आ रही थी... और स्वाद भी.. बिलकुल मीठा! संध्या इस एकदम नए अनुभव के कारण कामुक किलकारियाँ मारने लगी थी। उसने अपने नितम्ब उठाते हुए अपनी योनि मेरे मुँह में ठेल दी, और मेरे सिर को दोनों हाथों से ज़ोर से पकड़ कर अपनी योनि की तरफ भींच लिया। सिर्फ इतना ही नहीं, उत्तेजना के आवेश में संध्या ने अपने पाँव उठा कर मेरे गले के गिर्द लपेट लिया। ऐसा करने से मुझे उसकी पूरी की पूरी योनि को अपने मुँह में भरने में आसानी होने लगी। अगले कोई पांच मिनट तक मैंने इस अद्भुत योनि रस को जी भर के पिया – दो चम्मच शहद, जो मैंने डाला था, और दो चम्मच खुद संध्या का! संध्या तड़प रही थी, और काम की अंतिम क्रीड़ा करने के लिए अनुनय विनय कर रही थी। लेकिन, उसको और भोगा जाना अभी बाकी था। संध्या इसी बीच में एक बार और चरम सुख को प्राप्त कर लिया।

खैर, अंत में वह समय भी आया जब हम आखिरी क्रिया के लिए एक दूसरे में गुत्थम-गुत्था हो गये और एक दूसरे को कसकर पकड़ कर होंठों से होंठ मिला कर एक दूसरे का स्वाद लेने लगे। एक महीने की प्यास अब पूरी हो रही थी। मीठे होंठों और मुँह से! चूसते और चूमते हुए हम लोग जीभ से जीभ लड़ा रहे थे, रह रह के मैं उसके स्तनों को चूम, चूस और दबा रहा था, तो कभी उसकी गर्दन को चूम और चाट रहा था। मैंने जल्दी से अपने बचे खुचे कपड़े उतारे, और संध्या की योनि में मैंने अपने लिंग की करीब तीन इंच लम्बाई एक झटके में अन्दर घुसा दी। संध्या दर्द से ऐंठ गई, और उसकी चीख निकल गई।

‘यह क्या हुआ?’ संभव है, की एक महीने तक यौन सम्बन्ध न बनाने के कारण, योनि की आदत और पुराना कुमारी रूप वापस लौट आया हो! मतलब, एक और बार एकदम नई योनि को भोगने का मौका! मैंने उसकी कमर पकड़ ली जिससे वो दर्द से डर कर मना न कर दे। मैंने और धक्के लगाने रोक लिए, और लिंग को संध्या की योनि में ही कुछ देर तक डाले रखा – एक दो मिनट के विश्राम के बाद जब संध्या को कुछ राहत आई, तब मैंने धीरे-धीरे नपे-तुले धक्के लगाने शुरु किए, और लिंग को पूरा नहीं घुसाया।

मैंने संध्या को और आराम देने के लिए उसके नितम्बों के नीचे एक तकिया लगा दिया, और पहले उसके होंठों को हलके हलके चूमा और फिर दोनों होंठ अपने मुँह में भर कर चूसने लगा। संध्या अब पूरी तरह से तैयार हो गई थी - उसने भी नीचे से हल्के-हल्के धक्के लगाने शुरु कर दिए। मैंने अंततः अपने लिंग को एक ज़ोरदार धक्का लगा कर पूरे का पूरा उसकी योनि में घुसा दिया। संध्या ने घुटी-घुटी आवाज़ में चीख़ भरी।

मैंने कहा, “जानू, वाकई क्या बहुत दर्द हो रहा है?”

“बाप रे! पहली बार जैसा फील हुआ! आप करिए ... मैं ठीक हूँ!”

“पक्का?”

“हाँ पक्का! आप करिए न... आगे तो बस आनन्द ही आनन्द है।“

फिर क्या? चिरंतन काल से चली आ रही क्रिया पुनः आरम्भ हो गई। संध्या बस मज़े लेते हुए मेरे बाल सहला रही थी। उसके अन्दर कुछ करने की शक्ति नहीं बची थी। वो भले ही कुछ न कर रही हो, लेकिन उसकी योनि भारी मात्रा में रस छोड़ रही थी। इस कारण से लिंग के हर बार अन्दर-बाहर जाने से अजीब अजीब प्रकार की पनीली ध्वनि निकल रही थी। खैर, मेरा भी यह प्रोग्राम देर तक चलाने का कोई इरादा नहीं था। इतना संयम तो नहीं ही है मुझमें! कोई चार मिनट बाद ही मेरे लिंग से वीर्य की पिचकारियाँ निकलने लगीं। संध्या ने जैसे ही वीर्य को अपने अन्दर महसूस किया, उसने मुझे कस कर पकड़ लिया और मेरे होंठों, आँखों और गालों को कई बार चूमने लगी। थक गया! एक महीने का सैलाब थम गया! मैं उसकी बाँहों में लिपटा हुआ अगले लगभग दस मिनट तक उसके ऊपर ही पड़ा रहा।


**********


जब संध्या नीचे कसमसाई, तो मैं मानो नींद से जागा! संध्या ने मेरे होंठों पर दो-तीन चुम्बन और जड़े और कहा, “गन्दे बच्चे! मन भरा? ... अब जल्दी से हटो, नहीं तो मेरी सू सू निकल जायेगी!” कहते हुए उसने उँगलियों से मेरी नाक पकड़ कर प्यार से दबा दी।

“चलो, मैं तुमको ले चलता हूँ..”

मैंने संध्या को गोद में उठाया और बाथरूम की ओर ले जाने लगा। संध्या तृप्त, अपनी आँखें बंद किये हुए और मुस्कुराती हुई, अपनी बाँहें मेरे गले में डाले हुए थी। उसको बाथरूम में कमोड पर मैंने ही बैठाया। जैसे उसको किसी असीम दर्द से छुट्टी मिली हो! संध्या आँखें बंद किये, और गहरी आँहें भरते हुए मूत्र करने लगी। मैं मंत्र मुग्ध सा होकर उस नज़ारे को देखने लगा – उसके योनि से मूत्र की पतली, लेकिन तेज़ धार निकल रही थी, और अभी-अभी कूटी जाने के कारण योनि के होंठ सूज गए थे – बढ़े हुए रक्त चाप के कारण उसकी रंगत अधिक लाल हो गई थी।

संध्या को इस प्रकार मूतते देख कर मुझे भी इच्छा जाग गई। मैंने उसके सामने खड़ा होकर अपने लिंग को निशाने पर साधा, उसके शिश्नाग्रच्छद (फोरस्किन) को पीछे की तरफ सरकाया और मैंने भी अपने मूत्र की धार छोड़ दी। निशाना सच्चा था – मेरी मूत्र की धार संध्या की योनि की फाँकों के बीच पड़ने लगी। इस अचानक हमले से संध्या की आँखें खुल गईं।

“गन्दा बच्चा! ... क्या कर रहा है! उफ्फ्फ़!” संभव है की मेरे मूत्र में ज्यादा गर्मी हो!

“तुमको मार्क कर रहा हूँ, मेरी जान...! शेर अपने इलाके को ऐसे ही मार्क करता है न! हा हा!”

संध्या ने कुछ नहीं कहा। हाँलाकि उसका पेशाब मुझसे पहले ही बन्द हो गया था, फिर भी वो उसी अवस्था में बैठी रही जब तक मैं मूत्र करना न बंद कर दूं! संध्या मेरे मूत्र को भी ठीक उसी प्रकार ग्रहण और स्वीकार कर रही थी, जैसे मेरे वीर्य को! जब मैंने मूत्र करना बंद किया तो वह सीट से उठी, और फिर पांव की उँगलियों के बल उचक कर उसने मेरे होंठ चूम लिए। अब ऐसे मार्किंग (चिन्हित) करने के बाद तो हम लोग बिस्तर पर नहीं लेट सकते थे.. इसलिए हमने साथ ही हल्का शॉवर लिया और बदन पोंछ कर बिस्तर पर आ गए। मैंने लेटने से पहले कमरे की लाइट बंद कर दी थी – खिड़की के बाहर से आती हुई चाँदनी से कमरे में हल्का उजास था। संध्या मेरे हाथ के ऊपर सर रखे हुए थी, और मेरे गले में बाहें भी डाले हुए थी। हमने उस रात कुछ और नहीं कहा – बस एक दूसरे के होंठों को चूमते, चूसते सो गए!
 
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Happy Holi...
If girls are dancing or drinking or both, it is not an invitation for sexual intimacy.

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