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अगले दिन सवेरे सवेरे ही हमने वापस उत्तराँचल की यात्रा आरम्भ कर दी। घर वापस जाने के कारण संध्या ने साड़ी पहनी हुई थी। देहरादून में किराए पर SUV लेकर हमने संध्या के घर की यात्रा आरम्भ करी। बीच में एक जगह रुक कर हमने लंच किया, और पुनः आगे चल पड़े। हवाओं में ठंडक काफी बढ़ गई थी। इसलिए मैंने SUV में हीटर चला दिया था, जिससे गर्मी रहे।
संध्या के घर हम लोग कोई चार बजे पहुँचे! एक बात तो कहना भूल ही गया, संध्या के घर हमने किसी को भी इत्तला नहीं दी थी की हम आने वाले हैं! वो सभी लोग हमारे इस सरप्राइज से दंग रह गए और बहुत खुश भी हुए। मैंने ससुर जी को बताया की संध्या की पढाई का हर्जा हो रहा था, इसलिए जब तक शीतकालीन अवकाश नहीं शुरू हो जाते, तब तक संध्या यहीं रहेगी, और अब तक का कोर्स पूरा कर लेगी। और उसके बाद छुट्टियों में वापस बैंगलोर आ जाएगी, और फिर वापस आ कर एग्जाम इत्यादि लिख कर वापस बैंगलोर आ जायेगी। उनको सुन कर काफी तसल्ली हुई। उसका वापस आने का टिकट मैंने पहले ही बुक कर दिया था। इतनी सारी फ्लाइट लेने, और हवाई यात्रा करने के बाद मुझे उम्मीद थी की संध्या खुद हवाई यात्रा करने में अब सक्षम थी।
मैं वापस निकलना चाहता था, लेकिन सभी ने रोक लिया। वैसे भी मेरी फ्लाइट कल दोपहर बाद की थी, इसलिए अभी शुरू कर के मुझे कोई खास फायदा नहीं होना था। इसलिए मैं रुक गया। मौसम काफी ठंडा हो गया था – और रात में ठंडक और बढ़नी ही थी। खैर, सासु माँ तुरंत ही हमारे सत्कार में लग गईं – चाय पकोड़े इत्यादि! और उसके बाद रात का खाना। इसी बीच में हमने सभी को शादी इत्यादि के एल्बम दिखाए। संध्या ने पहले से ही बड़ी चतुराई से अपना ‘छोटा वाला’ एल्बम छुपा लिया था।
हमारे आने की खबर हमारे कसबे में आने के साथ ही सभी को हो गई थी। तो मुझे बहुत आश्चर्य नहीं हुआ जब संध्या की कई सारी सहेलियाँ मुझसे मिलने घर आईं। वो सभी संध्या को चिढाने के लिए मुझसे बहुत देर तक हंसी मज़ाक करती रहीं,
‘जीजू, हमारी बहना को आपने ज्यादा सताया तो नहीं?’
‘हाय राम, आपने तो इसका मुँह काला कर दिया!’
‘जिज्जू, इस बार अपने साथ आचार लेते जाइएगा!’
इत्यादि!
जब संध्या की माँ ने उनको डांट लगाई, तो फिर जाते जाते मुझसे काफी सट कर तस्वीरें भी खिंचायीं, और एक गुस्ताख ने मेरा मुँह प्यार से नोंच कर चुम्बन दिया। बदमाश लड़कियाँ!
जाड़ों में, खासतौर पर पहाड़ों पर बहुत ही जल्दी सूर्यास्त और अँधेरा हो जाता है। इसलिए सासू माँ खाने की जल्दी कर रही थीं। खैर, डिनर करीब सवा सात बजे ही परोस दिया गया, और करीब आठ बजे तक अपने सास-ससुर से बात करने के बाद, संध्या और मैं, संध्या के (हमारे सुहागरात वाले) कमरे में आ गए। मैंने नीलम को भी कमरे में बुला लिया।
“क्या हुआ जीजू?”
“अरे, पहले अन्दर तो आओ... फिर बताएँगे!”
मैंने एक एक कर के नीलम के उपहार उसके सामने सजा कर रख दिए! नीलम नए नए कपड़ों को देख कर बहुत खुश हुई, “ये सब कुछ मेरे लिये हैं?”
“हाँ!”
“दीदी के लिए क्या लिया, आपने?”
“अरे! तुम अपना देखो न!” संध्या बोली...
“नहीं.. बस ऐसे ही पूछा! ... थैंक यू, जीजू!” कहते हुए उसने मेरे दोनों गालो पर चुम्बन भी लिया। मेरे बगल में संध्या मुस्कुराती हुई अपनी बहन को देख रही थी। नीलम ने फिर संध्या को भी चूमा।
“इनको पहन कर देखो तो! ठीक फिट आते भी हैं, या नहीं?”
“ठीक है!”
कह कर नीलम ने एक जोड़ी कपडा उठाया और दूसरे कमरे में चली गई। मैंने ध्यान नहीं दिया की कौन सा उठाया था.. संध्या और मैं किसी बात में मशगूल हो गए और कुछ ही देर में नीलम कमरे में आई। मैंने देखा की वह सकुचाते हुए चल रही थी – ह्म्म्म उसने स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था। सकुचाने की वजह भी थी। यह स्कर्ट किसी और जगह के लिए मॉडेस्ट कहलाती, लेकिन यहाँ, इस छोटी जगह के लिए हो सकता है उचित न हो! स्कर्ट की लम्बाई उसके घुटने के ठीक नीचे तक ही आई। मैंने और संध्या दोनों ने ही उसकी ड्रेस का जायजा लिया और फिर मैंने नीलम को मुड़ने का इशारा किया।
पीछे मुड़ कर हमको पूरा जायज़ा करने देने के बाद नीलम ने पूछा, “ठीक है?”
मेरे बोलने से पहले संध्या ने की कहा, “अरे बहुत बढ़िया! मैंने नहीं सोचा था की इतना अच्छा लगेगा, है न?”
“बिलकुल! यह तो बहुत ही अच्छा फिट हुआ है..” मैंने कहा, “अब ये जीन्स पहन कर दिखाओ।“
नीलम पूरे उत्साह से अपना अगला कपड़ा ले कर कमरे से बाहर निकल गई, लेकिन बहुत जल्दी ही वापस आ गई। उसने अभी भी स्कर्ट और टॉप ही पहना हुआ था।
“क्या हुआ?” मैंने पूछा।
“वहाँ जगह नही है.. मम्मी पापा आ गए हैं। कल पहन कर दिखा दूं?”
“अरे! कल तो मैं सवेरे सवेरे ही चला जाऊँगा। कैसे देखूँगा?“ मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
“नीलू, यहीं बदल ले न?” संध्या ने सुझाया!
“यहीं? तुम दोनों के सामने?”
“हाँ! क्यों क्या हुआ?”
“धत्त! मुझे शर्म आएगी!”
“अरे, इसमें शरम वाली क्या बात है? हम दोनों को तुम पहले ही ‘वैसे’ देख चुकी हो... और ‘ये’ तो तुम्हारे जीजू ही हैं।”
नीलम ने कुछ देर तक संध्या की बात को तौला – संभवतः वह यह बात माप रही हो की अपने जीजा के सामने कपड़े बदलना, या निर्वस्त्र होना – क्या यह एक सहज क्रिया है? दीदी तो ऐसे ही कहती हुई मालूम हो रही है... अगर उसको कोई दिक्कत नहीं है, और मुझे नहीं है, तो फिर बिलकुल किया जा सकता है। लेकिन ये लोग कहीं शरारत में किसी को इसके बारे में कुछ बता न दें!
“पक्का? आप दोनों किसी को बताओगे तो नहीं? पापा को मालूम पड़ गया तो मेरी टाँगें तोड़ देंगे।“ ये नीलम ने मुझसे कहा था... बहुत विश्वास चाहिए, ऐसे कामों के लिए! मुझे अच्छा लगा की नीलम हम दोनों पर इतना विश्वास करती है। ठंडक में इतनी देर तक ऐसे कम कपड़े पहने रहने के कारण वह थोड़ा कांपने भी लग गई थी।
“अरे, हम लोग क्यों बताएँगे? बस जल्दी जल्दी चेंज कर के दिखा दो। ठीक है?” मैंने कहा।
“ठीक है!”
संध्या के घर हम लोग कोई चार बजे पहुँचे! एक बात तो कहना भूल ही गया, संध्या के घर हमने किसी को भी इत्तला नहीं दी थी की हम आने वाले हैं! वो सभी लोग हमारे इस सरप्राइज से दंग रह गए और बहुत खुश भी हुए। मैंने ससुर जी को बताया की संध्या की पढाई का हर्जा हो रहा था, इसलिए जब तक शीतकालीन अवकाश नहीं शुरू हो जाते, तब तक संध्या यहीं रहेगी, और अब तक का कोर्स पूरा कर लेगी। और उसके बाद छुट्टियों में वापस बैंगलोर आ जाएगी, और फिर वापस आ कर एग्जाम इत्यादि लिख कर वापस बैंगलोर आ जायेगी। उनको सुन कर काफी तसल्ली हुई। उसका वापस आने का टिकट मैंने पहले ही बुक कर दिया था। इतनी सारी फ्लाइट लेने, और हवाई यात्रा करने के बाद मुझे उम्मीद थी की संध्या खुद हवाई यात्रा करने में अब सक्षम थी।
मैं वापस निकलना चाहता था, लेकिन सभी ने रोक लिया। वैसे भी मेरी फ्लाइट कल दोपहर बाद की थी, इसलिए अभी शुरू कर के मुझे कोई खास फायदा नहीं होना था। इसलिए मैं रुक गया। मौसम काफी ठंडा हो गया था – और रात में ठंडक और बढ़नी ही थी। खैर, सासु माँ तुरंत ही हमारे सत्कार में लग गईं – चाय पकोड़े इत्यादि! और उसके बाद रात का खाना। इसी बीच में हमने सभी को शादी इत्यादि के एल्बम दिखाए। संध्या ने पहले से ही बड़ी चतुराई से अपना ‘छोटा वाला’ एल्बम छुपा लिया था।
हमारे आने की खबर हमारे कसबे में आने के साथ ही सभी को हो गई थी। तो मुझे बहुत आश्चर्य नहीं हुआ जब संध्या की कई सारी सहेलियाँ मुझसे मिलने घर आईं। वो सभी संध्या को चिढाने के लिए मुझसे बहुत देर तक हंसी मज़ाक करती रहीं,
‘जीजू, हमारी बहना को आपने ज्यादा सताया तो नहीं?’
‘हाय राम, आपने तो इसका मुँह काला कर दिया!’
‘जिज्जू, इस बार अपने साथ आचार लेते जाइएगा!’
इत्यादि!
जब संध्या की माँ ने उनको डांट लगाई, तो फिर जाते जाते मुझसे काफी सट कर तस्वीरें भी खिंचायीं, और एक गुस्ताख ने मेरा मुँह प्यार से नोंच कर चुम्बन दिया। बदमाश लड़कियाँ!
जाड़ों में, खासतौर पर पहाड़ों पर बहुत ही जल्दी सूर्यास्त और अँधेरा हो जाता है। इसलिए सासू माँ खाने की जल्दी कर रही थीं। खैर, डिनर करीब सवा सात बजे ही परोस दिया गया, और करीब आठ बजे तक अपने सास-ससुर से बात करने के बाद, संध्या और मैं, संध्या के (हमारे सुहागरात वाले) कमरे में आ गए। मैंने नीलम को भी कमरे में बुला लिया।
“क्या हुआ जीजू?”
“अरे, पहले अन्दर तो आओ... फिर बताएँगे!”
मैंने एक एक कर के नीलम के उपहार उसके सामने सजा कर रख दिए! नीलम नए नए कपड़ों को देख कर बहुत खुश हुई, “ये सब कुछ मेरे लिये हैं?”
“हाँ!”
“दीदी के लिए क्या लिया, आपने?”
“अरे! तुम अपना देखो न!” संध्या बोली...
“नहीं.. बस ऐसे ही पूछा! ... थैंक यू, जीजू!” कहते हुए उसने मेरे दोनों गालो पर चुम्बन भी लिया। मेरे बगल में संध्या मुस्कुराती हुई अपनी बहन को देख रही थी। नीलम ने फिर संध्या को भी चूमा।
“इनको पहन कर देखो तो! ठीक फिट आते भी हैं, या नहीं?”
“ठीक है!”
कह कर नीलम ने एक जोड़ी कपडा उठाया और दूसरे कमरे में चली गई। मैंने ध्यान नहीं दिया की कौन सा उठाया था.. संध्या और मैं किसी बात में मशगूल हो गए और कुछ ही देर में नीलम कमरे में आई। मैंने देखा की वह सकुचाते हुए चल रही थी – ह्म्म्म उसने स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था। सकुचाने की वजह भी थी। यह स्कर्ट किसी और जगह के लिए मॉडेस्ट कहलाती, लेकिन यहाँ, इस छोटी जगह के लिए हो सकता है उचित न हो! स्कर्ट की लम्बाई उसके घुटने के ठीक नीचे तक ही आई। मैंने और संध्या दोनों ने ही उसकी ड्रेस का जायजा लिया और फिर मैंने नीलम को मुड़ने का इशारा किया।
पीछे मुड़ कर हमको पूरा जायज़ा करने देने के बाद नीलम ने पूछा, “ठीक है?”
मेरे बोलने से पहले संध्या ने की कहा, “अरे बहुत बढ़िया! मैंने नहीं सोचा था की इतना अच्छा लगेगा, है न?”
“बिलकुल! यह तो बहुत ही अच्छा फिट हुआ है..” मैंने कहा, “अब ये जीन्स पहन कर दिखाओ।“
नीलम पूरे उत्साह से अपना अगला कपड़ा ले कर कमरे से बाहर निकल गई, लेकिन बहुत जल्दी ही वापस आ गई। उसने अभी भी स्कर्ट और टॉप ही पहना हुआ था।
“क्या हुआ?” मैंने पूछा।
“वहाँ जगह नही है.. मम्मी पापा आ गए हैं। कल पहन कर दिखा दूं?”
“अरे! कल तो मैं सवेरे सवेरे ही चला जाऊँगा। कैसे देखूँगा?“ मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
“नीलू, यहीं बदल ले न?” संध्या ने सुझाया!
“यहीं? तुम दोनों के सामने?”
“हाँ! क्यों क्या हुआ?”
“धत्त! मुझे शर्म आएगी!”
“अरे, इसमें शरम वाली क्या बात है? हम दोनों को तुम पहले ही ‘वैसे’ देख चुकी हो... और ‘ये’ तो तुम्हारे जीजू ही हैं।”
नीलम ने कुछ देर तक संध्या की बात को तौला – संभवतः वह यह बात माप रही हो की अपने जीजा के सामने कपड़े बदलना, या निर्वस्त्र होना – क्या यह एक सहज क्रिया है? दीदी तो ऐसे ही कहती हुई मालूम हो रही है... अगर उसको कोई दिक्कत नहीं है, और मुझे नहीं है, तो फिर बिलकुल किया जा सकता है। लेकिन ये लोग कहीं शरारत में किसी को इसके बारे में कुछ बता न दें!
“पक्का? आप दोनों किसी को बताओगे तो नहीं? पापा को मालूम पड़ गया तो मेरी टाँगें तोड़ देंगे।“ ये नीलम ने मुझसे कहा था... बहुत विश्वास चाहिए, ऐसे कामों के लिए! मुझे अच्छा लगा की नीलम हम दोनों पर इतना विश्वास करती है। ठंडक में इतनी देर तक ऐसे कम कपड़े पहने रहने के कारण वह थोड़ा कांपने भी लग गई थी।
“अरे, हम लोग क्यों बताएँगे? बस जल्दी जल्दी चेंज कर के दिखा दो। ठीक है?” मैंने कहा।
“ठीक है!”