Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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अगले कुछ दिनों में सुगना और सरयू सिंह की बीच अंतरंगता और बढ़ती गई. कजरी ने कुंवर जी और सुगना को खुली छूट दे रखी थी। सरयू सिंह और सुगना अब दिन में भी एकाकार हो जाते। इधर कजरी रसोई में खाना पकाती उधर दोनों प्रेमी युगल अपनी रास लीला रचाते। सुगना के अस्त-व्यस्त कपड़े और बिखरे हुए बाल देख कजरी सारा माजरा समझ जाती और मुस्कुराते हुए सुगना से पूछती

"भीतरी गिरावले हां की फिर चुचिये पर"

सुगना शर्मा जाति परंतु वह इशारों ही इशारों में कजरी को उत्तर दे जाती। एक बार कजरी के प्रश्न पूछने पर सुगना उत्तर न दे पायी उसके मुंह में लड्डू भरा हुआ था उसने अपनी साड़ी घुटनों तक उठा दी जांघों से बहता हुआ वीर्य घुटनों तक आ चुका था।

कजरी सारा माजरा समझ गई और मुस्कुराने लगी और बोली...

"अब लगाता तोहार पेट फूल जायी। अपना मन भर सुख ले ल"

बेचारी कजरी को क्या पता था जब तक सुगना लड्डू खाती रहती उसका गर्भवती होना असंभव था.

सुगना मुस्कुरा रही और सरयू सिंह द्वारा दिया हुआ लड्डू खा रही थी। कजरी ससुर बहू के इस प्रेम से अभिभूत थी परंतु लड्डू का राज उसे भी समझ ना आ रहा था।

इधर जैसे-जैसे सुगना अपनी अदाओं से सरयू सिंह को रिझा रही थी उधर सरयू सिंह भी उत्तेजना को नए मुकाम पर ले जा रहे थे। वह शहर जाकर वह सुगना के लिए तरह-तरह की डिजाइनर पेंटी और ब्रा ले आए साथ ही साथ कुछ मैक्सी भी खरीद लाये।

सुगना उनके ख्वाबों की शहजादी वह उसे परियों की तरह सजाना चाहते थे और जी भरकर उसे चोदना चाहते थे। कभी-कभी वह घंटों सुगना के साथ नग्न होकर कोठरी में बंद रहते और कजरी को मजबूरन आवाज देकर उन दोनों को अलग करना पड़ता.

सुगना मैक्सी में अपनी आकर्षक काया लिए हुए लहराती हुई इधर-उधर घूमती और सरयू सिंह मौका देख कर उसे अपनी गोद में बैठा लेते। जब-जब सुगना का चुदने का मन होता वह अपनी पैंटी न पहनती और अपने बाबू जी की गोद में बैठते ही वह जादुई लंड सुगना की पनियायी बुर में प्रवेश कर जाता। उनकी गोद मे उछल कूद करने के बाद सुगना को लड्डू मिलता और वह अपनी जांघों पर बहता हुआ वीर्य लेकर खुशी खुशी वापस कजरी के पास चली जाती.

नया महीना आ चुका था सुगना का भी और अंग्रेजी कैलेंडर का भी। कैलेंडर के नए पृष्ठ पर समुद्र की खूबसूरत फ़ोटो थी जिसे सुगना मंत्रमुग्ध होकर देखती रह गयी। सुगना के चेहरे पर खुशी आ गई।

वह एकटक उस फ़ोटो को देखे जा रही थी तभी सरयू सिह कोठरी में आ गए। सरयू सिंह ने सुगना को गोद में उठा लिया और उसके गालों को चूमते हुए बोले।

" का देख तारू?"

"कतना सुंदर बा ई जगह हमनी के कभी देखे के ना मिली."

सुगना ने अनजाने में ही बाहर घूमने की इच्छा जाहिर कर दी। कई वर्षों बाद उसके मन में यह इच्छा जागी थी। सरयू सिंह को अपनी प्रेमिका की यह इच्छा हनीमून जैसी प्रतीत हुई। सरयू सिंह ने हिम्मत जुटाई और सुगना को किसी समुद्र तट पर ले जाने की सोचा परंतु यह इतना आसान न था वह किस मुंह से सुगना को हनीमून पर ले जाते।

जहां चाह वहां राह। सरयू सिंह ने अपनी व्यूह रचना की और रात को अपनी बाहों में सुगना को लेकर उसे यह खुशखबरी दी। सुगना की प्रसन्नता की सीमा न रही। उसने सरयू सिंह को चूम लिया और एक नई उत्तेजना के साथ उनके ऊपर आ गई सच कहते हैं जब प्रसन्नता मन पर हावी हो तो चुदने चुदाने का आनंद और भी बढ़ जाता है।

सुगना ने इसकी जानकारी कजरी को दी। कजरी भी बेहद प्रसन्न हुई अभी तक सरयू सिंह अपने मन में सिर्फ सुगना का ख्याल लिए हुए हनीमून की तैयारी कर रहे थे उधर कजरी ने भी साथ चलने की इच्छा जाहर की उस बात से उनकी कल्पना में व्यवधान आया और उनके चेहरे पर थोड़ी उदासी आ गई।

नियति मुस्कुरा रही थी। जिस कजरी ने सरयू सिंह को पिछले 10 - 15 सालों से हर सुख दिया था वह उस सुख और उसका साथ भूल कर उसकी बहू सुगना के साथ रंगरलिया मना रहे थे। उन्होंने कजरी को भी साथ ले चलने की स्वीकृति दे दी। खैर कजरी की उपस्थिति से ज्यादा फर्क नहीं पड़ना था। सुगना और सरयू सिंह का मिलन तब तक निर्बाध रूप से होता रहता जब तक कि सुगना गर्भवती ना हो जाती यह बात कजरी भी जानती थी और चाहती भी।

सरयू सिंह ने अपनी जमा पूंजी इकट्ठा की और अपनी जिंदगी के सारे अरमान पूरे करने अपनी भौजी कजरी और बहू सुगना को लेकर उड़ीसा के समुद्रतट पुरी जाने की तैयारी करने लगे।

उन्होंने यह बात अपने दोस्त हरिया से कहां

"ढेर दिन हो गोहिल सोचा तानी कजरी के तीरथ (तीर्थ) करा ले आई फेर बुढ़ापा में जाने कब मौका मिली की ना मिली"

सरयू सिंह ने अपने हनीमून को कजरी के सहारे एक नया मोड़ दे दिया था वह गांव में प्रतिष्ठित तो थे ही और अपनी भौजी को तीर्थ पर ले जाने की बात से गांव में उनका सम्मान और बढ़ गया था।

हरिया भी सरयू सिंह से बेहद प्रभावित हो गया उसने पूछा

"और सुगना बेटी ?."

"अकेले उ कहां रही उ भी संग ही जायी।"

हरिया बात समझ चुका था उसने सरयू सिंह के घर की देखरेख करने का जिम्मा उठा लिया। यह पहला अवसर था जब वह अपनी भौजी को लेकर किसी दूसरे शहर में जा रहे थे और आने वाले कई दिन सिर्फ और सिर्फ पर्यटन और सुगना के साथ हनीमून का आनंद लेना चाहते थे।

कजरी भौजी की खुली सहमति और सुगना की इच्छा दोनों ही सुगना से संभोग करने के लिए उन्हें प्रेरित करती उन्होंने मन ही मन कई सारी कल्पनाएं की थी जिन्हें वह साकार करना चाहते थे। अपनी सुगना और ध्यान में रखते हुए उन्होंने स्लीपर क्लास के तीन टिकट कटा लिए और अपनी बहु सुगना और भौजी कजरी को लेकर तीर्थ यात्रा पर निकलने की तैयारी करने लगे।

सुगना को गर्भधारण से बचाने के लिए अब तक वह जिस लड्डू का प्रयोग करते आ रहे थे उसे आगे प्रयोग करना कठिन होता इस बात का अंदाजा उन्हें था। उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर गर्भनिरोध के अन्य उपायों की जानकारी ली। दूसरा उपाय एक इंजेक्शन था जिससे अनचाहे गर्भ को अगले 2 वर्ष तक रोका जा सकता था सरयू सिंह अपनी वासना के अधीन थे उन्होंने मन ही मन सुगना को वह इंजेक्शन दिलाने की सोची .

परंतु जब जब वह उसके मासूम चेहरे को देखते और उसकी मां बनने की चाह के बारे में सोचते वह अपने फैसले में पाप का अंश महसूस करते। उनकी दुविधा बढ़ रही थी और पुरी जाने के दिन नजदीक आ रहे थे इसी दौरान सुगना के हाँथ में लोहे की एक पुरानी कील चुभ गई। उन दिनों टिटनेस इंजेक्शन का बहुत प्रचलन था।

सरयू सिंह सुगना को लेकर प्राथमिक सामुदायिक केंद्र पहुंच गए। एक पल के लिए सरयू सिंह की वासना फिर हावी हो गई और सुगना को उन्होंने 2 इंजेक्शन लगवा दिए। कम्पाउंडर राजवीर उनका राजदार बन गया उसने सुगना को 2 इंजेक्शन लगाए। पहला टिटनेस का और दूसरा आने वाले 2 वर्ष तक उसकी खुशियों का।

सुगना को एक इंजेक्शन के बारे में तो पता था परंतु दूसरे इंजेक्शन से वह पूरी तरह अनजान थी उसमें अपने बाबू जी पर पूरा विश्वास किया था परंतु सरयू सिंह ने अपनी बहू से छल किया था।

इंजेक्शन सुगना के शरीर में प्रवेश कर चुका था अब उसका कोई काट ना था अगले 2 वर्ष तक सुगना को सिर्फ और सिर्फ चुदना था और प्रकृति द्वारा प्रदत गदराई हुई जवानी का भरपूर आनंद लेना था। सरयू सिंह का वीर्य उसकी बुर के लिए किसी काम का ना रह गया था उससे सिर्फ और सिर्फ सुगना की चूचियों की मालिश हो सकती थी।

कुछ ही दिनों बाद सरयू सिंह अपनी बहू सुगना और भौजी कजरी को लेकर ट्रेन में सवार हो चुके थे सबके मन में अपने अपने अरमान थे कजरी को इस बात का इल्म न था की सरयू सिंह इस अवसर को हनीमून के रूप में देख रहे हैं परंतु कजरी खुद मन ही मन यह सोच रही थी कि क्या वह तीनों लोग एक ही कमरे में रहेंगे? यदि ऐसा हुआ तो क्या उसके कुंवर जी बिना संभोग किए रह पाएंगे?

सरयू सिंह जब जब अपनी पुरी यात्रा को याद करते थे उनका ल** तनाव में आ जाता था और जब तक कि उसे सुगना कि बुर् का कोमल स्पर्श ना मिलता वह शांत ना होता.


(आइए कहानी को वर्तमान में ले आते हैं)

हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटे हुए सरयू सिंह अपनी सुनहरी यादों से वापस आ गए थे उनका लंड सुगना के साथ बिताए गए कामुक पलों को याद कर खड़ा हो गया था जिसे वह अपने हाथों से शांत करने का प्रयास कर रहे थे। जितना ही वह उसे शांत करते वह उद्दंड बालक की तरह उतना ही उत्तेजित होता। वह धोती से बाहर आ चुका था कजरी पड़ी बेंच पर सोने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह के बिस्तर पर हो रही हलचल को देखकर व उनके पास आ गई और बोली

"नींद नईखे आवत का ?"

सरयू सिंह ने अपने लंड को धोती के अंदर ढका पर उसके आकार को कजरी से न छुपा पाए। कजरी ने उसका तनाव देख लिया और बोला

"अब ई महाराज काहै खड़ा बाड़े? रउआ ई कुल मत सोचल करिन।"

सरयू सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा

"आज हमरा दीपावली वाला दिन याद आवत रहल हा।"

कजरी मुस्कुराने लगी उसे भी दीपावली की वह रात कभी न भूलती थी। उसने सरयू सिंह के लंड को अपने हाथों में ले लिया और बोली

"अब तू शांत हो जा. सुगना के लाइका दे देला अब ओकरा के तंग मत कर"

सरयू सिंह ने कहा " अब सुगना के मन ना करेला का"

कजरी ने कहा

"ना आइसन बात नइखे। लेकिन राउर दाग से चिंतित रहेले। ओकरा लागेला कि जब जब रउआ संगे सुते ले राउर दाग और बढ़ जाला"

सरयू सिंह को भी यह प्रतीत होता था कि नीचे इस दाग में कोई न कोई रहस्य अवश्य है परंतु वह इसका स्पस्ट उत्तर नही जानते थे।

कजरी उनके लंड को हाथों से सहला रही थी। उनकी प्यारी बहू सुगना अपनी सहेली लाली के घर जा चुकी थी। तभी कमरे का दरवाजा खुला और एक खूबसूरत नर्स कमरे में प्रवेश की। उस नर्स की उम्र सुगना जैसी ही थी और प्रकृति ने उसकी चुचियों, जांघों और नितंबों को भी वैसी ही खूबसूरती प्रदान की थी जैसी उनकी बहू सुगना को। सरयू सिंह के मन में वासना जाग उठी उन्हें पता था वह नर्स के साथ कुछ भी कर पाना असंभव था पर मन का क्या वह तो निराला था सरयू सिंह धोती से अपने तने हुए लंड को छुपा रहे थे।

अचानक उन्हें नर्स के हाथ में इंजेक्शन दिखाई पड़ा सरयू सिंह के होश फाख्ता हो गए। सारी उत्तेजना ढीली पड़ती गई। परंतु उनका लंड अभी भी इस अनजानी और खूबसूरत बुर की कल्पना में डूबा हुआ था। वह अपना सर झुकाने को तैयार न था।

नर्स ने कहा

"पीछे पलट जाइए कमर में इंजेक्शन देना है"

सरयू सिंह के करीब खड़ी कजरी ने उनकी धोती सरकाई और नर्स ने अपने कोमल हाथों से उनके नितंबों को थोड़ा रगड़ा और अगले ही पल इंजेक्शन घुसा दिया। सरयू सिंह दर्द से कराह उठे ज्यों ज्यों इंजेक्शन में भरी दवा अंदर जा रही थी एक तेज दर्द की लहर सरयू सिंह को महसूस हो रही थी अब उनका लंड भी अपना गुरुर भूलकर धीरे-धीरे शिथिल हो रहा था।

नर्स के जाने के पश्चात सरयू सिंह इस दर्द से निजात पाने की कोशिश कर रहे थे कजरी उनके नितंबों को से लाई जा रही थी उनका लंड अब उम्मीद खो चुका था और सिकुड़ कर छुप गया था।

कजरी ने उस लंड को वापस छूने की कोशिश की पर सरयू सिंह ने रोक लिया और बोला

"जायेद अब रहे द"

सरयू सिंह की उत्तेजना शांत हो चुकी थी और वह सोने का प्रयास करने लगे।

उधर हरिया सुगना और सूरज को लेकर लाली के घर आ गया। लाली सुगना को देखकर खुश हो गई उसने अपने पिता और सहेली का खूब स्वागत किया सरयू सिंह की स्थिति जानकर वह थोड़ा दुखी हुई पर उसे इस बात का संतोष था कि अब वह पूरी तरह होश में थे।

राजेश के घर में दो कमरे थे दोनों ही कमरे पर्याप्त बड़े थे वैसे भी रेलवे के घरों में जगह की कमी नहीं होती है राजेश और लाली ने दो चौकियों को जोड़कर एक बड़ा सा बिस्तर बना लिया था जिस पर राजेश और लाली तथा उनके दोनों बच्चे राजू और रीना सोया करते थे।

यह बिस्तर राजू और रीना की बाल सुलभ क्रीडा ओं का मैदान भी था और बच्चों के सो जाने के पश्चात वह काम क्रीड़ा के लिए भी प्रयोग में आता था।

दूसरे कमरे में उन्होंने बैठका बना रखा था जिसमें एक पतली चौकी पड़ी हुई थी जो किसी आगंतुक के सोने के काम आती घर में एक रसोई और एक गुसलखाना भी था।

लाली और सुगना रसोई खाना बना रहे थे और हरिया अपने नाती और नातिन के साथ खेल रहा था। सुगना का पुत्र सूरज एक किनारे आराम से सो रहा था। राजू और रीमा कभी उसकी पीठ पर चढ़ते कभी उसके मूंछ के बाल खींचते हरिया उनकी बाल सुलभ लीलाओं से प्रसन्न होकर ऊपर वाले को धन्यवाद दे रहा था जिसने उसकी लाली को ऐसे सुंदर और प्यारी औलाद दे दी थी। वह राजेश का भी शुक्रगुजार था जिसने लाली को हर सुख दिया था।

राजेश को आज घर नहीं आना था वह आज ही ट्रेन लेकर लखनऊ गया हुआ था। हरिया रात में खाना खाने के पश्चात बैठका में लगे हुए चौकी पर सो गया सुगना और लाली दोनों अंदर के कमरे में आ गई बच्चों को सुलाने के बाद बिस्तर पर लेटे लेटे वह दोनों बातें करने लगी।

सुगना उठकर बाथरूम की तरफ गई तभी लाली को राजेश की बातें याद आने लगी आज राजेश के ख्वाबों की मलिका उसके घर में थी घर में ही क्या उसके अपने बिस्तर पर थी काश राजेश यहां होता और अपनी सुगना को अपने बिस्तर पर देखकर उसकी कल्पनाएं आसमान छूने लगती। सुगना स्वयं लाली के बिस्तर पर आकर उत्तेजित महसूस कर रहे थे उसे पता था इस बिस्तर पर उसकी सहेली लाली जाने कितनी बार चुदी होगी।

सुगना के आने के बाद लाली ने कहा

"तोर जीजा जी आज घर में रहिते तो खुश हो जइते"

" ई काहें"

"उनके से पूछ लीह"

"खिसिया मत" ( नाराज मत हो)

लाली खुश थी उसने सुगना को राजेश की कल्पनाओं के बारे में खुलकर बता दिया जितना वह राजेश की कामुक कल्पनाओं के बारे में सुगना को बताती सुगना के कान और चौड़े हो जाते तथा बुर सावधान हो जाती.

सुगना और लाली दोनों अच्छी सहेलियां थी लाली के मुंह से ऐसी कामुक बातें सुनकर सुगना की बुर पनिया चुकी थी लाली भी उत्तेजित थी। दोनों सहेलियां अपने अपने मन में कई तरह के ख्याल लेकर सो गयीं।

अगली सुबह हरिया और सुगना वापस हॉस्पिटल चले गए। लाली और सुगना ने मिलकर कजरी और सरयू सिंह के लिए खाना बना लिया था। हॉस्पिटल पहुंचने पर सुगना को देख सरयू सिंह प्रसन्न हो गए एक ही रात में सुगना से हुई दूरी ने उन्हें कर भावुक कर दिया था वह सुगना के लिए दिन पर दिन अधीर होते जा रहे थे।

दोपहर में राजेश लखनऊ से वापस आ गया लाली ने उसे सरयू सिंह और सुगना के आने की सूचना दी राजेश एक तरफ तो सरयू सिंह के लिए थोड़ा सा दुखी हुआ पर सुगना के आगमन के बारे में सुनकर उसका दिल बल्लियों उछलने लगा उसके ख्वाबों की मलिका आज उसके इतने करीब है इस एहसास ने उसके दिल और दिमाग को अंदर तक गुदगुदा दिया वह लाली को दिखाकर बिस्तर के उस भाग को चूमने लगा जहां सुगना सोई हुई थी लाली हंस रही थी।

उसने कहा..

चली हॉस्पिटल चल के सब केहू से मिली आईल जाओ

राजेश प्रसन्न हो गया और कुछ देर बाद लाली और अपने दोनों छोटे बच्चों को लेकर हॉस्पिटल जाने के लिए रिक्शे में बैठ गया…


शेष अगले भाग में
 
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रिक्शे में बैठा राजेश सुगना के बारे में सोचने लगा। सुगना जैसी खूबसूरत और जवान युवती के साथ भगवान ने ऐसी नाइंसाफी क्यों की थी? उसका पति हर 6 महीने में गांव आता था। उस बेचारी को पति का सुख उन 3 -4 दिनों के लिए ही मिलता था. बाकी समय उसकी गदराई और मदमस्त जवानी का कोई पूछनहार न था.

राजेश इस बात को लेकर सुगना से बेहद हमदर्दी रखता था। सुगना भी राजेश के करीब आ रही थी यह बात राजेश ने महसूस की थी। जब भी वह अपनी ससुराल जाता सुगना राजेश के लिए तरह-तरह की खानपान की सामग्री बनाती. राजेश उसकी ढेर सारी तारीफ करता और जीजा साली एक दूसरे के प्रति प्रेम का इजहार अपनी आंखों ही आंखों में कर लेते। राजेश उसके लिए उपहार भी ले जाने लगा था जिसे सुगना सहर्ष स्वीकार कर लेती।

इस बार की होली ने राजेश और लाली के बीच सुगना को लेकर आम सहमति बना दी। लाली को अब सुगना और राजेश के बीच पनप रहे कामुक संबंधों से परहेज न रहा। यही हाल राजेश का था वह लाली में सुगना के भाई सोनू के प्रति कामवासना भड़का रहा था।

दरअसल राजेश एक खुले विचार का आदमी था उसके जीवन में कामुकता और सेक्स का विशेष स्थान था। उसे पता था लाली और उसके बीच जो संबंध है उसकी डोर मजबूत थी थोड़ा बहुत व्यभिचार से यदि आनंद बढ़ता था तो उसे इसमे कोई आपत्ति न थी। अब तो लाली भी उसकी इच्छा में शामिल हो गई थी और नियति ने उनकी इच्छा पूर्ति के लिए सुगना और सोनू को उनसे मिला दिया था।

रिक्शा हॉस्पिटल के सामने पहुंच चुका था। राजेश ने राजू को गोद में लिया और लाली ने रीमा को। दोनों पति पत्नी हॉस्पिटल की सीढ़ियां चढ़ते हुए सरयू सिंह के कमरे में आ गए। सरयू सिंह बिस्तर पर पड़े हुए कमरे में घुस रहे अपने प्रतिद्वंदी को देख रहे थे। राजेश ने उन्हें नमस्कार किया और उनका हालचाल लिया। राजेश की निगाहें कुछ देर तो सरयू सिंह के ऊपर रही पर शीघ्र ही अपने लक्ष्य पर पहुंच गयीं।

सुगना के मासूम चेहरे पर प्यार बरसाने के बाद उसकी निगाहों में कामुकता जाग उठी। राजेश की निगाहें सुगना की चूचियों और कटीली कमर पर पड़ीं। कमर के उस गोरे हिस्से जो ब्लाउज और कमर पर साड़ी के घेरे के बीच दिखाई पड़ रहा था उसके बीच सुगना की सुंदर नाभि सुगना के छुपे खजाने का स्पष्ट संकेत दे रही थी। राजेश ने सुगना की नाभि को देख कर मन ही मन सुगना की कसी हुयी बुर की कल्पना कर ली।

सुगना ने राजेश की निगाहों को अपने शरीर पर महसूस कर लिया था। वह गठरी की भांति सिमट रही थी। उसने लाली की गोद से रीमा को ले लिया और लाली को अपने बगल में बैठा लिया। वह राजेश की कामुक निगाहों को अपने बाबू जी के सामने सहने की स्थिति में नहीं थी।

राजेश ने नर्स से उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी इकट्ठा की। वहां उपस्थित सारे लोगों में राजेश सबसे पढ़ा लिखा और प्रतिष्ठित व्यक्ति था। सरयू सिंह भी अपनी युवावस्था में इसी प्रकार अपनी काबिलियत के बल पर कई लड़कियों और युवतियों को प्रभावित करते थे। आज राजेश उनके सामने ही उनकी सुगना को उनसे दूर करने जा रहा था। सरयू सिंह की सोच ना चाहते हुए भी राजेश को प्रतिद्वंदी की निगाह से देख रही थी। इसके उलट राजेश उन्हें और अपने ससुर हरिया को एक ही निगाह से देखता था। सुगना उसकी साली थी और जिस अवस्था से गुजर रही थी उसने राजेश के मन में सुगना के प्रति स्वाभाविक कामवासना को जन्म दिया था। राजेश को तो यह इल्म भी न था की हॉस्पिटल के बेड पर पड़ा हुआ यह अधेड़ अपनी बहू सुगना से ऐसे संबंध बनाए हुए था।

अचानक हरिया ने कहा

"भैया आज हम गांव चल जा तानी खेत में खाद डाले के बा. कल फिर आईब"

हरिया यह जान चुका था कि राजेश आज घर पर ही रहेगा और घर की हालत ऐसी न थी जहां अधिक मेहमान एक साथ रह सकते थे उसने गांव जाना ही बेहतर समझा।

कुछ देर और बातें करने के पश्चात हरिया गांव के लिए निकल गया.

शाम हो रही थी। लाली की बेटी रीमा रो रही थी। सरयू सिंह ने राजेश से कहा..

"बेटा अब आप लोग भी जाके आराम करो बच्चा सब भी परेशान हो रहे हैं" सरयू सिंह राजेश से हिंदी में बात करने का प्रयास कर रहे थे। राजेश ने लाली की तरफ देखा और उसकी इच्छा जाननी चाही। आंखों ही आंखों में लाली की सहमति प्राप्त कर उसने कहा..

" ठीक है । अब हम लोग जा रहे है। काल फिर आएंगे"

सरयू सिंह खुश हो गए। उन्हें जाने क्यों यह उम्मीद हो गई थी कि आज सुगना राजेश के घर नहीं जाएगी। आखिर अब वहां जाने का कोई औचित्य भी न था। आज लाली का पति घर आ चुका था।

राजेश उठ कर खड़ा हो गया। लाली ने सुगना से कहा

"सुगना चला ना ता अंधेरा हो जाई"

कजरी भी यही चाहती थी कि सुगना लाली के साथ चली जाए ताकि उसके बेटे सूरज को कोई दिक्कत ना हो।

लाली ने कजरी के मुंह की बात छीन ली थी। कजरी में उसका साथ देते हुए कहा

"अरे सुगना.. सूरज बाबू के भूख लागल होइ घर जाकर कुछ खिया पिया दीह"

सूरज का नाम सुनकर सरयू सिंह शांत हो गए। एक बार फिर उनकी प्यारी सुगना उनकी आंखों के सामने उनसे दूर अपने प्रेमी राजेश के साथ जा रही थी। उनके दिल का दर्द एक बार फिर बढ़ रहा था। नियति उनके साथ यह खेल क्यों खेल रही थी वह स्वयं ना समझ पा रहे थे।

कजरी उनके मन की व्यथा जान रही थी। जब से उनके जीवन में सुगना आई थी तब से शायद ही कोई दिन ऐसा था जिस दिन उनके लंड ने वीर्य प्रवाह ना किया हो। सरयू सिंह दिन में कभी एक बार तो कभी दो बार सुगना या कजरी को जमकर चोदते तथा अपनी कामवासना को शांत करते। उनमें यह आग पिछले दो-तीन वर्षों में और भी बढ़ गई थी। निश्चय ही इसकी जिम्मेदार सुगना की मदमस्त जवानी और उनकी पुरी यात्रा थी जिसमें सरयू सिंह ने कजरी और सुगना के साथ कामकला के विविध रंग देखे थे।

सरयू सिंह अपना सोया हुआ लंड लेकर बिस्तर पर पड़े हुए थे। जब तक सुगना यहां थी वह चहक रहे थे। वह मन ही मन हॉस्पिटल के इस बिस्तर पर भी सुगना को चोदना चाहते थे। उसके जाते ही उनका चेहरा उदास हो गया कजरी ने कहा..

"अपना सुगना बाबू के याद कर तानी हां?"

कजरी ने सरयू सिंह की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. सरयू सिंह मुस्कुराने लगे वह आज कुछ तरोताजा महसूस कर रहे थे. कजरी ने फिर कहा

"अब ई कुल चोदा चोदी छोड़ दीं। हर चीज के ए गो उमर होला। सुगना त अभी जवान बिया हमनी के उम्र गइल अब ई कुल ठीक नइखे।"

( हर चीज की एक उम्र होती है सुगना तो अभी जवान है पर हम लोग अब बूढ़े हो चले हैं)

सरयू सिंह कजरी की बातें सुन तो रहे थे पर उनका लंड इस बात को सिरे से नकार रहा था। शिलाजीत का असर अभी भी उस पर था। सुगना के साथ चोदा चोदी की बातें सुनकर वह हरकत में आ गया और धोती में एक नाग की भांति अपना सर उठाने लगा। कजरी ने हॉस्पिटल के कमरे का दरवाजा बंद किया और सरयू सिंह के लंड को सहलाने लगी। उसे पता था सरयू सिंह को सबसे ज्यादा आनंद स्खलित होने में ही मिलेगा। शायद वह सुगना की कमी को कुछ हद पूरा कर पाएगी और अपने कुँवर जी के चेहरे पर वापस ताजगी ला पाएगी।

कजरी सरयू सिंह के लंड को हाथों में लेकर सहलाने लगी वह अब अपनी बुर को सन्यास दिला चुकी थी परंतु आवश्यकता पड़ने पर अपने हाथों के कमाल से शरीर सिंह को खुश कर देती। आज भी उसने सरयू सिंह के लंड को सहलाना शुरु कर दिया था।

उधर राजेश अपनी पत्नी और अपनी प्यारी साली को लेकर हॉस्पिटल के नीचे आ चुका था उसने लाली और सुगना को एक रिक्शे में बैठाया तथा दूसरे रिक्शा अपने पुत्र राजू को लेकर घर की तरफ निकल पड़ा लाली और सुनना का रिक्शा आगे आगे चल रहा था और राजेश का उनके पीछे।

राजेश को आज ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी बहुप्रतीक्षित प्रेमिका उसके घर आई हुई थी। राजेश ने घर पहुंचने के ठीक पहले रिक्शा रोक दिया और आइसक्रीम तथा मोतीचूर के लड्डू खरीद लिए। उसने शायद लाली से कभी सुन रखा था कि सुगना को मोतीचूर के लड्डू बेहद पसंद थे।

सुगना और लाली ने घर पहुंचते ही बच्चों के खान-पान का प्रबंध किया बच्चे अस्पताल के वातावरण में कुछ देर में ही तंग हो गए थे। बच्चों का खाना पीना समाप्त होते हैं वह कमरे में लगे बड़े बिस्तर पर खेलने लगे। राजेश के दोनों बच्चे उससे बेहद प्यार करते थे और उसके पीठ पर चढ़कर खेल रहे राजेश भी उनका साथ पाकर आनंदित था ।

उसने सुगना के पुत्र सूरज को अपनी गोद में लेने की चेष्टा की। सूरज राजेश के पास नहीं जाना चाहता था पर उसके हाथ में एक नया और अनजान खिलौना देखकर उसे लेने के लिए राजेश की तरफ हाथ बढ़ाया इसी समय राजेश ने अपने दोनों हाथ बढ़ा दिए और सूरज उसकी गोद में आ गया पर सूरज के हस्तांतरण के समय राजेश की हथेलियों ने सुगना के वक्ष स्थल पर तने हुए सांची के स्तूपों को छू लिया यह घटना अकस्मात हुई थी पर उसकी सिहरन जीजा और साली दोनों में हुई थी। एक पल के लिए राजेश का लंड हरकत में आ गया था। सभी चूचियां उतनी ही कोमल होती है परंतु पराई और अपरिचित चूँची की बात ही अलग थी। सुगना भी अपनी जाँघों के बीच में अनजाना करेंट महसूस कर रही थी। उसने अपनी आंखें झुका ली और कमरे से बाहर आ गई।

कुछ देर खेलने के बाद लाली के दोनों बच्चे राजू और रीमा निद्रा देवी के आगोश में चले गए। सुगना का पुत्र सूरज बिना सुगना की चुचियों का रसपान किये नहीं सोता था। वह अभी भी जाग रहा था और राजेश के साथ खेल रहा था।

सुगना जब भी कमरे की तरफ देखती उसे यह देखकर बेहद हर्ष होता की राजेश सूरज को कितना प्यार करता है जिस तरह बछड़े को प्यार करने से मां स्वतः ही करीब आ जाती है वही हाल सुगना का राजेश उसे पसंद आने लगा था।

लाली ने कहा "जा सूरज के सुता दा उ भी थक गईल होइ"

सुगना कमरे में आ गई और राजेश से बोली

"लाइए मुझे दे दीजिए आपको बहुत तंग किया होगा"

सुगना आवश्यकता पड़ने पर हिंदी बोल लेती थी वह अपनी मां और फौजी पिता के साथ जब कई वर्षों तक बाहर रही थी उस दौरान उसने यह गुण सीख रखा था परंतु यह हिंदी भाषा वह सोच समझकर बोलती थी स्वाभाविक रूप से वह अपनी मूल भाषा में ही बात करती थी।

एक बार फिर सूरज का हस्तांतरण हुआ पर राजेश के हाथों को सुगना का उभरी हुयी चूँचियों का स्पर्श प्राप्त ना हो सका।

राजेश ने कहा बहुत "प्यारा बच्चा है बिल्कुल आप पर गया है"

इतना कहकर राजेश ने सूरज के गाल पर चुंबन ले लिया सूरज का गाल और सुगना के गाल में ज्यादा दूरी न थी एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे सूरज के बाद उसकी ही बारी है तभी लाली कमरे में आ गयी।

सुगना सूरज को लेकर कमरे से बाहर जाने लगी तभी लाली ने उसे रोक लिया और बोली

"एहीजे बैठ के दूध पिया ल"

सुगना राजेश के सामने अपनी चूचियां खोलकर सूरज को दूध पिलाने में शर्मा रही थी उसकी दुविधा देखकर राजेश ने कहा

" आप आराम से बैठ जाइए मैं बाहर घूम कर आता हूं"

लाली ने अधिकार पूर्वक कहा

" अरे आप बैठिए सुगना दूसरी तरफ मुंह करके पिला लेगी।"

सुगना बिस्तर पर बैठ गई और सूरज को दूध पिलाने लगी। राजेश दीवाल पर टेक लगा कर बैठा हुआ था। सुगना ने अपने आंचल से अपनी चुचियाँ ढक लीं और सूरज को दूध पिलाने लगी। सुगना की पीठ राजेश की तरफ थी।

लाली ने राजेश को छेड़ा..

"लीजिए अब तो आपकी साली घर आ गई कीजिए उसका स्वागत जैसे हमसे बात करते थे"

राजेश शर्म से पानी पानी हो गया लाली इस तरह की बात बोल जाएगी उसने कभी न सोचा था। वह निरुत्तर हो गया। उधर सुगना अपना सर नीचे किये मुस्कुरा रही थी। पिछली रात लाली ने राजेश द्वारा उसे लेकर की जाने वाली बातों का एहसास करा दिया था। इतना तो सुगना को भी पता था कि पति-पत्नी के बीच में ढेर सारी ऐसी बातें होती हैं जिनका हकीकत से कोई लेना देना नहीं होता। खुद सरयू सिंह उसके साथ ऐसी ऐसी कल्पनाएं किया करते थे जो संभव न था पर उसका आनंद सरयू सिंह भी लेते थे और सुगना भी।

राजेश उसके प्रति आकर्षित था पर लाली जितना बोलती थी उतना सोचना तो आसान था पर करना कठिन। सुगना की जांघों के बीच तनाव बढ़ रहा था उसकी कोमल बुर सचेत हो गई थी।

राजेश ने बात बदलते हुए कहा

"आप के आदेश पर आपकी सहेली के लिए आइसक्रीम ले आया हूं"

" और वह मोतीचूर का लड्डू क्या अकेले में खिलाएगा"

लाली फिर हंस पड़ी थी वह राजेश पर प्रहार किए जा रही थी और सुगना सर नीचे किए हुए मुस्कुरा रही थी।

राजेश भी

हाजिर जवाब था उसने कहा

"अरे आप मौका दीजिएगा तब ना लड्डू खिलाएंगे"

लाली ने झूठ मुठ का गुस्सा दिखाते हुए बोला

"ठीक है हम जा रहे हैं खाना निकालने तब तक अपनी साली को लड्डू खिला लीजिए"

वह उठकर जाने लगी। सुगना ने लाली का हाथ पकड़ लिया और बोला

"हम तोरा रहते लड्डू खा लेब हमरा लड्डू खाए में कौन लाज लागल बा"

सुगना की बात सुनकर राजेश को बल मिला वह बोला "मेरी साली साहिबा ज्यादा समझदार है"

तीनों हंसने लगे थे अब तक सूरज सो चुका था। सुगना ने उसे सुलाने के लिए अनजाने में ही राजेश की तरफ मुड़ गई उसे अपनी चूचियां ढकने का ख्याल न रहा और सूरज को बिस्तर पर सुलाते समय उसने अपनी कोमल नंगी चूचि और खुले हुए निपल्ल का दर्शन राजेश को करा दिया। लाली ने राजेश की निगाहों को सुगना की चुचियों पर निशाना साधते देख लिया और सुगना से हंसते हुए बोली..

"ए सुगना एक आदमी और पियासल बा, कुछ दूध बाचल बा का?"

राजेश की चोरी पकड़ी गई थी सुगना ने राजेश की निगाहों को अपनी चुचियों पर महसूस कर लिया और तुरंत ही अपनी चूचियां ढक लीं.

उसने कुछ कहा नहीं और मुस्कुराते हुए बोली

"ते पागल हो गईल बाड़े चल खाना निकल जाऊ"

उसी समय एक व्यक्ति द्वारा दरवाजा खटखटाने का का एहसास हुआ। राजेश ने उठकर दरवाजा खोला उस व्यक्ति ने कहा

"स्टेशन मास्टर साहब ने आपको बुलाया है"

"ठीक है मैं आता हूं" राजेश ने कहा।

राजेश कपड़े पहन कर बाहर जाने के लिए तैयार होने लगा। लाली थोड़ा दुखी हो गई पर राजेश ने कहा

"अरे तुम खाना निकालो मैं थोड़ी देर में आ जाऊंगा" लाली थोड़े गुस्से में थी।

राजेश के जाने के पश्चात सुगना ने लाली का गुस्सा शांत किया और वह दोनों सहेलियां आपस में हंस-हंसकर बातें करने लगी। लाली ने सुगना से कहा...

"चल तब तक हमनी के कपड़ा बदल लीहल जाउ"

आज ही राजेश ने लखनऊ से आते समय लाली के लिए एक सुंदर नाइट गाउन लाया था। यह नाइट गाउन फ्रंट ओपन टाइप का था जिसे कमर में बने कपड़े के बेल्ट द्वारा बांधा जा सकता था उसका कपड़ा बेहद मुलायम और कोमल था सुगना उसे अपने हाथों में लेकर छू रही थी। उसने इतना अच्छा और कोमल नाइट गाउन पहले कभी नहीं देखा था।

लाली ने कहा

"ए सुगना आज तू ई हे पहिंन ला"

" हट पागल, जीजा जी तोहरा खातिर ले आईल बाड़े."

"पर तोरा के पहिंनले देखे लीहें तो और मस्त हो जइहें. हमार कसम पहिंन ले"

लाली की जिद के आगे सुगना की एक न चली और उसने वह नाइट गाउन पहनने के लिए अपनी रजामंदी दे दी। अचानक सुगना को याद आया उसने पेंटी नहीं पहनी थी साड़ी और पेटीकोट पहनने के बाद उसकी कोई विशेष आवश्यकता वह महसूस नहीं करती थी। आज दिन भर तो वह बिना ब्रा के रही थी दरअसल दूध भरे होने के कारण सुगना की चूचियां ज्यादा बड़ी थी।

आज सुबह नहाने के पश्चात सुगना ने लाली की साड़ी और पेटीकोट तो पहन लिया था परंतु उसकी ब्रा सुगना को फिट नहीं आ रही थी बड़ी मुश्किल से एक पुरानी ब्लाउज सुगना की चूँचियों को ढक पाने में कामयाब हुई थी। इस कसी हुई ब्लाउज की वजह से सुगना की चूचियां और तन गई थी तथा निप्पल अपनी उपस्थिति साफ साफ दिखा रहे थे जिसे सुगना अपने आंचल से ढक कर उसे छुपाने का प्रयास कर रही थी।

सुगना ने लाली से कहा

"गाउन पेटीकोट के ऊपर से पहनब हमरा भीरी नीचे के कपड़ा नईखे"

लाली सुगना की दुविधा समझ गई और अपनी अलमारी खोलकर एक सुंदर सी लाल रंग की पेंटी निकाली। सुगना के नितंब लाली के नितंबों से थोड़ा ही बड़े थे परंतु पेंटी लचीले कपड़े से बनी हुई थी थोड़ा प्रयास करने पर सुगना ने उसे पहन लिया सुगना की गोरी जांघो पर लाली की निगाहें टिक गई वो बेहद खूबसूरत थीं और केले के तने की भांति चमक रही थीं। सुगना का सिर्फ रंग ही गोरा न था उसकी त्वचा में एक अलग किस्म की चमक थी।

लाली ने कहा..

"तोर जाँघ कतना चमकत बा का लगावे ले"

सुगना मुस्कुरा रही थी उसने कोई उत्तर न दिया वह अपने गनितंबों को उस लाल पेंटी में व्यवस्थित कर रही थी।

कुछ देर में उसने लाली की साड़ी और पेटीकोट को उतार दिया तथा उस सुंदर नाइट का उनको अपने शरीर पर धारण कर लिया। सुगना की खूबसूरती देखते ही बन रही थी वह खूबसूरत तो थी ही और इस खूबसूरत निवास में एक परी की बात दिखाई पड़ रही थी। सुगना ने लाली से अपनी सुबह खोली गई ब्रा लाने को कहा।

"एक बार ऐसे ही अपना जीजा जी के दिखा दे उनकर जीवन तर जायी।"

इतने में ही दरवाजे पर एक बार फिर खटखट की आवाज हुयी। राजेश वापस आ चुका था लाली झट से भाग कर गई और सुगना की ब्रा ले आई सुगना ने आनन-फानन में ही वह ब्रा पहनी उसकी सांसे तेज चल रही थी। जब तक सुगना ब्रा के हुक फसाती लाली दरवाजे की कुंडी खोल चुकी थी। राजेश अंदर आ चुका था और सुगना कमरे से निकलकर हॉल में आ रही थी। राजेश ने सुगना को देखा... उसकी सांसे रुक गई….[/SIZE
 
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राजेश ने सुगना को लेकर अपने मन में तरह-तरह की कल्पनाएं की थी जिसमें वह सुगना को कभी सजा धजा कर,कभी कामुक वस्त्रों में अर्धनग्न स्थिति में और कभी-कभी तो उसे अपने ख्वाबों में पूर्ण नग्न कर अपनी कामुकता को शांत किया करता था आज उस गुलाबी रंग के खूबसूरत गाउन में अपनी सुगना को देखकर राजेश की सांसे रुक गई थी।

कमर पर बंधा हुआ बेल्ट सुगना के खूबसूरत वक्ष स्थल और कटी प्रदेश को अलग कर रहा था। दूध से भरी हुई सुगना की चुचियाँ अपनी मादक उपस्थिति का अहसास करा रही थी।

नाइट गाउन सुगना की चुचियों को पूरी तरह ढकने में नाकाम था। सुगना की गोरी चूचियों के बीच की घाटी साफ-साफ दिखाई पड़ रही थी।

राजेश दरवाजे पर खड़ा एक टक सुगना को देखे जा रहा था तभी लाली ने कहा..

"अभी अंदर आ जाइए सुगना भागी नहीं जा रही आराम से देख लीजिएगा" सुगना और लाली दोनों मुस्कुराने लगी सुगना ने अपना सर झुका लिया था. राजेश शर्मसार था वह हॉल में आ चुका था उसके लंड में ना चाहते हुए भी हरकत हो रही थी जो उसके पेंट में आए उभार से स्पष्ट था।

कुछ ही देर में राजेश ने अपनी लूंगी लपेटी ( एक चादर नुमा कपड़ा जो गांव में कमर के इर्द-गिर्द लपेटा जाता है।) और हाथ मुंह धो कर हॉल में खाने के लिए उपस्थित हो गया तीनों बच्चे पहले ही सो चुके थे सुगना और लाली खाना निकालने की तैयारी करने लगे। लाली ने भी आज एक दूसरा गाउन पहना हुआ था लाली की खूबसूरती किसी भी प्रकार से कम न थी पर सुगना अद्भूत थी और राजेश के लिए नई थी। राजेश की निगाहें उस पर से हट ही नहीं रही थी वह कभी उसके पैरों को देखता कभी उसकी जांघों के उभार को और जब कभी सुगना के नितंबों के दर्शन होते राजेश बाग बाग हो जाता। अपनी ख्वाबों की मलिका को अपने इतने करीब और अपने ही घर में मचलते हुए देखकर उसकी भावनाएं हिलोर मार रही थी।

लाली ने जमीन पर ही अंग्रेजी भाषा के एल आकार में चादर बिछाई जिस पर एक तरफ राजेश बैठा और दूसरी तरफ सुगना। लाली अपने छोटे मोढ़े पर ही बैठ गई उसे उस मोढ़े पर बैठना अच्छा लगता था।

सुगना का फ्रंट ओपन गाउन जमीन पर बैठते समय उसके पैरों के ढकने में नाकाम हो रहा था। सुगना चाह कर भी पालथी नहीं मार पा रही थी जब भी वह इस अवस्था में आती गाउन दो भागों में अलग होने लगता और उसकी जांघें दिखाई पड़ने लगती उसे इस बात का एहसास था अपने दोनों घुटने सटाए तथा पैरों को एक तरफ कर दिया। उसके दोनों पैर नितंबों के एक तरफ हो गए और नितंबों ने जमीन का सहारा ले लिया। सुगना का शरीर लचीला था वह अब आराम से बैठ गई थी परंतु उसकी स्थिति और मादक लग रही थी।

खाना खाते समय राजेश कनखियों से बार-बार सुगना को देख रहा था और अपनी कल्पनाओं को उड़ान दे रहा था क्या नियति आज सुगना को उसकी बाहों में ला देगी? क्या सुगना के खजाने को देखकर उसकी प्यासी आंखें तृप्त होंगी? क्या सुगना की जांघों के बीच छुपे उस मखमली छेद को वह अपने होठों से चूम पायेगा? जितना ही वह इस बारे में सोचता उसकी जांघों के बीच उभार बढ़ता जाता।

लाली राजेश की स्थिति बखूबी समझ रही थी उसने छेड़ते हुए कहा.

"सुगना को देखकर पेट नहीं भरेगा रोटी खाईये"

राजेश और सुगना दोनों मुस्कुरा दिए। थोड़ी ही देर में लाली राजेश द्वारा लाई गई आइसक्रीम ले आई राजेश स्वयं उसे अपने हाथों से निकाल कर कटोरी में रखने लगा इसी दौरान आइसक्रीम का कुछ भाग छलक पर सुगना की दोनों जांघों के बीच गिर पड़ा सुगना जिस अवस्था में बैठी थी उसके दोनों पैर सटे हुए थे आइसक्रीम का टुकड़ा दो जांघों के बीच की जगह पर गिरा था गुलाबी रंग के गाउन के बीच में वह सफेद आइसक्रीम चमक रही थी।

क्योंकि यह गलती राजेश ने की थी उसने उस आइसक्रीम हुए टुकड़े को उठाने की कोशिश की और उसने अकस्मात ही सुगना की जाँघों को छू लिया। सुगना सिहर उठी…

राजेश की उंगलियां जैसे ही उस आइसक्रीम के टुकड़े को पकड़ती वह पिघल कर उसके हाथों से फिसल जाता दो तीन बार प्रयास करने के बाद भी राजेश उस आइसक्रीम के टुकड़े को पकड़ ना पाया अपितु वह धीरे-धीरे जांघों के जोड़ तक पहुंच गया।

राजेश के हाथ रुक गए वह उस स्थान पर हाथ लगा पाने की स्थिति में नहीं था। सुगना ने स्वयं उस छोटे टुकड़े को उठाने की कोशिश परंतु वह भी नाकामयाब रही लाली ने हंसते हुए कहा..

"जायदे तोर जीजा जी के आइसक्रीम उ हो खा ली" लाली ने सुगना की जांघों के बीच इशारा कर दिया था।

लाली ने हंसते हुए एक गूढ़ बात कह दी थी राजेश की आइसक्रीम (क्रीम) और सुगना की बुर... सुगना सिहर उठी और राजेश ने भी शर्म से सर झुका लिया।

इधर लाली सुगना को छेड़ रही थी तभी सूरज के रोने की आवाज आई सुगना ने आधी खाई हुई आइसक्रीम कटोरी में छोड़ दी और भागकर सूरज के पास गयी।

सूरज उसे जान से ज्यादा प्यारा था और हो भी क्यों ना हर मां के लिए उसका बच्चा प्यारा होता है और सुगना को तो यह बच्चा काफी प्रयास के बाद मिला था। उसके प्यारे बाबूजी सरयू सिंह ने उसे तीन-चार वर्षों तक जी भर चोदने के बाद ही उसे पुत्र रत्न से नवाजा था।

उधर सुगना सूरज को एक बार फिर दूध पिला रही थी इधर लाली और राजेश बातें कर रहे थे।

राजेश अब तक पूरी तरह उत्तेजित हो चुका था उसने लाली से संभोग की इच्छा जाहिर की परंतु राजेश का दुर्भाग्य था लाली आज ही रजस्वला हुई थी उसने राजेश को लाल झंडी दिखा दी राजेश के मन में एक बार फिर सुगना की जांघों और उनके बीच छुपा खजाना देखने की तीव्र इच्छा जागृत हुई परंतु यह इतना आसान न था।

सुगना सूरज को सुला कर अपने गोद में लिए हुए हॉल में आ चुकी थी और हाल में पड़े बिस्तर पर सूरज को सुलाने लगी उसने स्वयं ही हाल में सोने का फैसला कर लिया था उसे अपनी मर्यादा मालूम थी। वह लाली और राजेश को अलग नहीं करना चाहती थी वैसे भी राजेश कभी-कभी ही घर आता था। सुगना को मर्दों की जरूरत पता थी।

लाली ने सुगना से कहा

"हमनी के भीतर सुतल जाई"

लाली ने राजेश की तरफ देख कर कहा..

"आपका मन होगा तो आप भी वही आ जाइएगा"

कुछ ही देर में लाली और सुगना अंदर कमरे में आ चुके थे। राजेश भी अंदर आया पर कुछ ही देर में वह वापस अपनी चादर लेकर हॉल में जाने लगा सुगना ने राजेश से कहा

"जीजा जी आप यहीं सो जाइए मैं आराम से हाल में सो जाऊंगी"

राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा

"अरे आज आपकी दीदी हमारे साथ नहीं सोना चाहती उन्होंने लाल झंडी दिखा दी है अब आपका ही सहारा है"

अच्छा आप चलिए मैं लाली को मनाती हूं।

राजेश हाल में आ गया और लाली ने सुगना को अपने रजस्वला होने और राजेश की चाहत के बारे में खुलकर बता दिया अब जाकर सुगना को राजेश की बात समझ आई सुगना सिहर उठी थी एक पल के लिए उसे लगा जैसे वह मन ही मन अपनी जांघें फैलाने के लिए खुद को तैयार कर रही थी।

कुछ देर बातें करने के बाद लाली उठी अलमारी के ऊपर रखा जॉनसन बेबी आयल का डिब्बा उठाया और हाल में आ गई।

कुछ ही देर मैं हाल से फुसफुस आहट की आवाज आने लगी जिसमें कभी-कभी सुगना का जिक्र आ रहा था सुगना बेचैन हो रही थी उसे पता था लाली और राजेश रोमांटिक पति पत्नी थे। परंतु उसका नाम? हो सकता है लाली राजेश के हस्तमैथुन में मदद करने गई हो परंतु उसका नाम आने का कोई औचित्य न था। वह दबे पांव दरवाजे के पास आ गयी।

दरवाजा पूरी तरह बंद न था। उसने हॉल में झांका और चौकी पर चल रहे दृश्य को देखकर उसकी आंखें राजेश के लंड पर टिक गई। लंड सरयू सिंह के मुकाबले में उन्नीस ही था परंतु वह नया और अपरिचित था।

सुगना की नजर उस पर से नहीं हट रही थी। लाली अपने दोनों हाथों से उस लंड को तेजी से आगे पीछे कर रही थी राजेश उसके होंठों को चूमते हुए उसकी दोनों चूचियों को दबा रहा था। लाली ने कहा..

आपके ख्वाबों की मलिका आपके बिस्तर पर सो रही हैं । हमेशा उसकी बातें करके यह बदमाश (लंड को दबाते हुए) मुझे तंग करता था। आज इसकी सिट्टी पिट्टी गुम है।

राजेश ने कहा

"लाली धीरे बोलो सुगना सुन लेगी"

लाली ने सुगना की चुचियों और कामुक अंगो की बातें और उनका उत्तेजक विवरण करके राजेश को शीघ्र स्खलित करा दिया राजेश तृप्त होकर लेट गया। सुगना यह दृश्य देखकर आश्चर्यचकित थी की कैसे लाली और राजेश ने उसे अपने अंतरंग पलों में स्थान दे दिया था। सुगना की बुर पनिया गई थी उसने अपनी हथेलियों से उसका गीलापन महसूस किया और न जाने कब उसकी मध्यमा उंगली उसकी बुर की रसीली गहराइयों में उतर गई थी।

जब तक लाली बाथरूम से लौट कर आती सुगना की बुर अपना पानी छोड़ चुकी थी। जीजा और साली अपनी अपनी जगह एक दूसरे को याद करते हुए तृप्त हो गए परंतु मिलन बाकी था।

सुगना अपनी आंखों और कानों से यह दृश्य देखने और सुनने के बाद यह जान चुकी थी की लाली और राजेश के बीच उसको लेकर कोई मतभेद नहीं था। लाली पहले भी राजेश की परिकल्पनाओं के बारे में उसे बताया करती थी परंतु उसे यकीन नहीं होता था आज सुगना यह जान चुकी थी की यदि वह आगे बढ़कर एक इशारा करेगी तो राजेश स्वतः उसकी जांघों के बीच उसका खेत जोत रहा होगा।

सुगना वक्त का इंतजार कर रही थी उसने धीरे-धीरे अपना मन बना लिया था।

स्टेशन मास्टर ने राजेश को आकस्मिक ड्यूटी के लिए बुलाया था उसे सुबह 4:00 बजे ही वापस जौनपुर के लिए निकलना था राजेश ने घड़ी में अलार्म सेट किया परंतु उसकी आवाज बेहद धीमी कर ली वह किसी भी हाल में अपनी प्रेमिका सुगना की नींद खराब नहीं करना चाहता था।

सुबह उठकर राजेश अपने कमरे में अपने कपड़े निकालने आया और कमरे की लाइट जला दी जो दृश्य उसकी आंखों के सामने था उसने राजेश की तन मन में आग लगा दी रात में सोते समय सुगना का नाइट गाउन घुटनों के ठीक ऊपर तक आ गया था उसकी जांघों का निचला भाग पूरी तरह नग्न था एक अकेली पायल ही सुगना के पैरों पर सुशोभित हो रही थी बाकी उसके पैरों और नंगी जांघों की कुदरती चमक स्वाभाविक रूप से ध्यान खींच रही थी

राजेश ललचायी नजरों से सुगना को देख रहा था अब तक लाली जाग चुकी थी उसने राजेश को सुगना की जांघों के बीच देखते पकड़ लिया था राजेश कुछ देर तक कामुक नयनसुख लेने के पश्चात अलमारी से अपने कपड़े निकालने लगा उसने इस बात का विशेष ख्याल रखा कि सुगना और बच्चों की नींद खराब ना हो जैसे ही राजेश अलमारी से कपड़े निकालने में व्यस्त हुआ लाली ने सुगना का गाउन और ऊपर खींच दिया सुगना करवट लेकर लेटी हुई थी तथा उसका दाहिना पैर ऊपर पेट की तरफ उठा हुआ था। गाउन को ऊपर उठाने से सुखना की लाल पेंटी दिखाई पड़ने लगी और उसके नितंब जो लाल पैंटी की कैद में थे, नजर आने लगे।

लाली ने यह कार्य कर तो दिया था परंतु उसने सुगना की नींद खोल दी उसने ऊंघते हुई अपने हाथ अपने चेहरे के उपर कर लिए तथा अपनी आंखों तथा चेहरे को ढक लिया। परंतु अपने खजाने को ढकना भूल गयी। कपड़े लेकर वापस जाते समय राजेश ने एक बार फिर सुगना को देखा सुगना का पूरा खजाना राजेश की आंखों के सामने था। सुगना की फूली हुई बुर पेंटी के नीचे से अपने आकार का प्रदर्शन कर रही थी। सुगना की कमर के नीचे का बेहद खूबसूरत हिस्सा था। पैन्टीअपनी मालकिन को कैद किए राजेश को ललचा रही थी। नंगी जाँघों का आकार अब पूरी तरह स्पष्ट था।

राजेश उन जाँघों पर अपना सिर रखकर उसके बीच उस जादुई सुरंग से रिस रहे अमृत का रसपान करना चाहता था। सुगना के खजाने भी उसे आमंत्रण दे रहे थे। लाली बिस्तर से उठ खड़ी हुई और राजेश को सुगना की जागो के बीच देखते हुए पकड़ लिया। राजेश ने शर्मा कर अपनी नजर हटायीं और बोला

"थोड़ा चाय पिला दो"

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा

"लाती हूँ, तब तक आप बैठ कर अपनी मल्लिका को निहारिये। सुगना मुस्कुरा रही थी पर अपने पूरे शरीर पर राजेश की निगाहों को महसूस कर रही थी एक पल के लिए उसके मन में आया कि काश राजेश अपने हाथ बढ़ा कर उसकी नंगी जांघों को अपने मजबूत हाथों का स्पर्श दे दे। परंतु राजेश और सुगना के बीच की यह दीवार मजबूत थी उसे टूटने में थोड़ा समय था।

उधर राजेश के पास समय बेहद कम था। लाली द्वारा बनाई गई चाय पीकर राजेश अपनी साली सुगना को छोड़कर स्टेशन की तरफ निकल गया। जाते-जाते उसने लाली से कहा हो मैं शाम को वापस आ जाऊंगा अपना ध्यान रखना और मुस्कुराते हुए धीरे से बोला और हमारी साली साहिबा का भी।

लाली एक बार फिर बिस्तर पर आ चुकी थी उसने सुगना के नितंबों को ढकने की कोशिश की। सुगना ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया दोनों सहेलियों की चूचियां आपस में टकरा गई और वह दोनों एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो गयीं।

लाली ने सुगना से कहा

" देख लेले हम कहत रहनी नु ते एक बार इशारा कर बे उ तोरा बूर के पूजाई करे लगिहें"

सुगना मुस्कुरा रही थी. उसने लाली के गालों को चूम लिया और बोली

"साँच कह तारे लागत बा पुजाई करावही के परी" लाली ने भी उसे अपनी तरफ खींच लिया. लाली को राजेश की एक पुरानी बात याद आ गई वह मुस्कुराने लगी।

लाली सुगना को आलिंगन में लिए उसकी पैंटी को उतारने की कोशिश करने लगी पता नहीं सुगना किस नशे में थी उसने लाली को न रोका। लाली ने सुगना को पहनने के लिए दी हुई पेंटी को अपने हाथों से ही उतार दिया वह उपेक्षित सी बिस्तर के किनारे आ गई वह बेचारी हमेशा उत्तेजक पलों में सुगना की बुर को अकेला छोड़ देती थी।

लाली के हाथ सुगना की बुर की तलाश में लग गए और जब तक सुगना यह फैसला कर पाती कि वह लाली को आगे बढ़ने दे या रोके लाली की उंगलियों ने सुगना की बुर से प्रेम रस चुरा लिया और उसे चूमते हुए बोली

"तोर जीजा जी इ रस खाती हमेशा बेचैन रहेले एक हाली उनको के चीखा दे"

लाली ने सुगना की उत्तेजना को पहचान लिया था इस मदन रस के रिसाव में निश्चय ही राजेश का भी योगदान था। आज पहली बार लाली ने सुगना की बुर पर हाथ लगाया था।

लाली आज स्वयं रजस्वला थी उसे पता था कि वह लाली से और अंतरंग नहीं हो सकती थी। उसने इस क्रिया को वहीं पर रोक दिया और सुगना को अपने सीने से सटे हुए सोने का प्रयास करने लगी। सुगना भी अपनी उत्तेजना पर काबू पाते हुए लाली की बाहों में सो गई।

लाली सुबह उठी और सुगना की कमर से उतारी गई पेंटी को ध्यान से देखा। पेंटी के बीच में सुगना की बुर से रिस आये प्रेम रस से उसका रंग बदल चुका था। वह उसे अपनी नाक के पास ले गई और उसकी भीनी खुशबू को महसूस किया उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आई और उसने उस पेंटी को लपेटकर वापस अलमारी में रख दिया। उसने बड़ी आसानी राजेश की कल्पना को अंजाम दे दिया था।

वह एक बार फिर बिस्तर पर सुगना से सटकर ऊँघने लगी।

कुछ देर बाद दरवाजे पर आहट हुई। लाली ने ऊंघते हुए सुगना से कहा

" ए सुगना तनी दरवाजा खोल दे ना"

सुगना भी जाग चुकी थी उसने जाकर दरवाजा खोला और अपने भाई सोनू को पाकर आश्चर्यचकित हो गई।

"अरे सोनू आईल बा" उसने लाली को आवाज दी।


लाली सचेत हो गयी।
 
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सोनू के आने की बात सुनकर लाली सचेत हो गई उसके शरीर में एक अलग प्रकार की ऊर्जा का संचार हुआ वह बिस्तर से उठ खड़ी हुई और अपने कपड़े व्यवस्थित करने लगी। सोनू अंदर आ चुका था। सुगना को इन मादक कपड़ों में देखकर सोनू विस्मित था। उसने अपनी बहन सुगना के पैर छुए और ऊपर उठते समय पतले और कामुक गाउन के पीछे छुपे सुगना के पैर जांघों और कमर के उभारों और गहराइयों के दर्शन कर लिये। सुगना को भी अपनी इस उत्तेजक अवस्था का एहसास था परंतु वह कुछ कर पाने में असमर्थ थी।
सोनू सुगना के प्रति गलत भावनाएं नहीं रखता था पर अपनी बड़ी बहन का यह रूप उसने पहली बार देखा था। कई दिनों बाद मिलने पर वह अक्सर अपनी बहन ले गले लग जाता था परंतु आज वह हिम्मत न जुटा पाया। जब तक सुगना की बाहें उसे आलिंगन में लेने के लिए उठतीं सोनू उससे दूर हो गया था।
लाली भी अब हाल में आ चुकी थी सोनू ने लाली के भी पैर छुए लाली भी गाउन में ही थी। यह एक अजीब संयोग था कि सुगना की पेंटी सुबह लाली ने उतार दी थी और बीती रात राजेश का हस्तमैथुन करते समय लाली की ब्रा राजेश ने उतार दी थी और उसकी चुचियों से जी भर कर खेला था।
जैसे ही सोनू लाली के पैर छूकर ऊपर उठा लाली ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और प्यार से बोला "अरे हमार सोनू बहुत दिन बाद आइल बा"
लाली और सोनू का यह आलिंगन एक भाई बहन के आलिंगन से बेहद अलग था सोनू के सीने से लाली की चूचियां सट गई जिसका एहसास सोनू को हो रहा था उसके हाथ लाली की पीठ पर थे। उसके हाथों ने लाली की पीठ पर कामुक आलिंगन वाला दबाव बना दिया था।
सुगना ने खलल डाला और बोला
"अतना भोरे भोरे कैसे?"
"अरे दीदी 8:00 बजता"
सुगना को अब जाकर एहसास हुआ कि उसे उठने में देर हो गई थी उसे हॉस्पिटल भी जाना था वह आनन-फानन में अपनी साड़ी और ब्लाउज लेकर नहाने चली गई।
लाली रसोई में चाय नाश्ते की तैयारी कर रही थी और सोनू हाल में बैठा हुआ अपनी लाली दीदी के शरीर का मुआयना कर रहा था उसे महिलाओं के शरीर का ज्यादा अनुभव नहीं था। लाली की नंगी चुचियां वह होली के अवसर पर छू चुका था परंतु वह आकस्मिक और होली के भावावेश में हुई घटना थी।
सोनू लाली की चुचियों को देखना चाहता था और उसे अपने हाथों तथा होठों से महसूस करना चाहता था। कॉलेज में जाने के पश्चात उसका सामान्य ज्ञान बढ़ चुका था लाली की कमर और उसकी जांघों के बीच सोचते ही सोनू का लंड बेकाबू हो जाता था।
सुगना बाहर आ चुकी थी। सोनू ना चाहते हुए भी आज सुगना को बार-बार देख रहा था उसे आज पहली बार अपनी बड़ी बहन की खूबसूरती का अंदाजा हुआ था उसने अपना ध्यान हटाया और वापस अपने लक्ष्य लाली पर केंद्रित कर दिया।
कुछ ही देर पश्चात सुगना और सोनू एक ही रिक्शे में बैठकर हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े। लाली ने कहा "सुगना शाम के जल्दी आजईहे"
धीरे धीरे सोनू सुगना का वह कामुक रूप भूल गया और अपनी बहन के साथ सामान्य रूप से बातें करते हुए हॉस्पिटल आ गया।
सरयू सिंह सुगना और उसके भाई सोनू को देखकर प्रसन्न हो गए। आज वह स्वस्थ लग रहे थे और कमरे में चहलकदमी कर रहे थे। सुगना को देखकर लंगोट में छुपा उनका नाग सतर्क हो गया। अपने बाबूजी को टहलते हुए देखकर सुनना के चेहरे पर खुशी आ गयी।
सरयू सिंह के मन में राजेश को लेकर बेचैनी थी उन्होंने पूछा
" सुगना बेटा राजेश ना अइले हा"
" बाबूजी उ त रात के ही चल गइले"
सरयू सिंह ने चैन की सांस ली वह अपने मन में सुगना और राजेश को लेकर तरह तरह की गलत कल्पनाएं करने लगे थे।
उसी समय दो तीन डॉक्टरों की टीम ने कमरे में प्रवेश किया और सभी लोगों को बाहर जाने के लिए कहा। सरयू सिंह आदर्श पेशेंट की तरह तुरंत बिस्तर पर लेट गए। डॉक्टरों की टीम ने उनका चेकअप किया और बाहर निकल कर कजरी से बोले
"अब यह पूरी तरह ठीक हैं आप लोग इन्हें घर ले जा सकते हैं"
उसने अपने असिस्टेंट से कहा
"इनके डिस्चार्ज पेपर रेडी करा दीजिए"
इस बार डॉक्टर ने सुगना की तरफ देख कर कहा
"और हां एक बात का ध्यान रखिएगा कि यह हमेशा खुश रहे इनका खुश रहना बेहद आवश्यक है वैसे मैं कुछ दवाइयां लिख दे रहा हूं कुछ ही दिनों में वो पूरी तरह खेत जोतने लायक हो जाएंगे।" डाक्टर मुस्कुराने लगा।
डॉक्टर ने यह बात शारीरिक श्रम के भाव से कही थी परंतु सुगना सिहर उठी उसे अपनी जांघों के बीच कोमल खेत की याद आ गई जिसे उसके बाबूजी न जाने कितनी बार जोत चुके थे…
सुगना ने डॉक्टर से पूछा "बाबूजी के माथा के दाग कुछ कम लग रहा है आप उसकी भी दवाई दिए हैं ना?"
डॉक्टर ने कहा
"उस दाग का हमारे पास कोई इलाज नहीं है वह कब बढ़ता है और कब कम होता है यह आपको ही देखना है हमें लगता है वह समय के साथ चला जाएगा वैसे उस दाग से उनके शरीर को कोई दिक्कत नहीं है"
सुगना ने यह महसूस किया था कि पिछले दो दिनों में वह दाग कुछ कम हो गया था। एक पल के लिए उसके मन में आई यह बात फिर प्रगाढ़ हो रही थी कि कहीं यह दाग उसके और उसके बाबूजी के बीच बने अनैतिक कार्यों की वजह से तो नहीं है? उसने अपने दिमाग से यह बात निकाल दी। वैसे भी आज सुगना, कजरी और सोनू तीनों खुश हो गए थे। सुगना अंदर आकर अपने बाबू जी से लिपट गई और बोली "बाबूजी रउआ ठीक हो गईनी आज हमनी के घरे चले के"
सुगना सरयू सिंह से बेहद प्यार करती थी वह उनका आदर और सम्मान भी करती थी। यदि नियति ने साजिश रच कर उनके बीच यह कामुक संबंध न बनाए होते तो सरयू सिंह अपनी बहू सुगना को वैसे ही प्यार करते जैसे कोई आदर्श ससुर अपनी बहू बेटी को करता है बल्कि कहीं उससे ज्यादा। वही हाल सुगना का भी था।
जब तक डिस्चार्ज पेपर तैयार होते हरिया भी हॉस्पिटल आ चुका था। कुछ ही देर बाद सरयू सिंह अपनी दोनों प्रेमिकाओं को अगल-बगल लिए हुए हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे। सोनू ने सारे सामान पकड़ रखे थे और सूरज को संभालने की जिम्मेदारी हरिया ने उठा ली थी। वह नीचे रिक्शा वालों को रोके सरयू सिंह का इंतजार कर रहा था।
सरयू सिह पूरी तरह स्वस्थ थे परंतु कजरी और सुगना उनके साथ साथ चल रहे थे।
हॉस्पिटल के नीचे खड़े रिक्शे के पास पहुंचकर विदाई का वक्त आ गया रिक्शे में कुल 4 व्यक्तियों के जाने की जगह थी सोनू को यहीं से अलग होना था।
हरिया की पत्नी ने अपनी बेटी लाली और उसके बच्चों के लिए कुछ मिठाईयां बनाकर भेजी थी परंतु हरिया अब लाली के घर जाने की स्थिति में नहीं था उसने सोनू से कहा
"बेटा हॉस्टल जाने से पहले ई सामान लाली तक पहुंचा देना"
सुगना ने भी पीछे मुड़कर अपनी ब्लाउज में हाथ डाला और ₹50 के दो नोट निकाल कर सोनू को दिया और बोली
"लाली के बच्चा लोग खातिर चॉकलेट खरीद लीहे और बाकी अपना खर्चा खातिर रख लीहे।"
सुगना भावुक हो गई। सोनू ने सभी के चरण छुए और अंत में सुगना के भी आज सुबह ही उसने सुगना का नया रूप देखा था पर साड़ी में उसका यह रूप सोनू की भावनाओं से मेल खाता था सोनू मन ही मन मुस्कुरा रहा था। जैसे ही वह उठा दोनों भाई बहन स्वाभाविक आलिंगन में आ गए सुगना ने उसके माथे को चूम लिया और बोली..
"आपन ख्याल रखिहे, कोनो दिक्कत परेशानी होखे लाली दीदी भीरे चल जईहे"
हरिया ने भी सुगना की बात को आगे बढ़ाया और बोला..
"कितना बढ़िया बात बा की लाली यही शहर में है जब भी छुट्टी हो लाली के घर चले जाया करो उसका भी मन लग जाया करेगा वइसे भी राजेश बाबू अधिकतर बाहर ही रहते हैं।"
हरिया ने यह बात बोल कर सोनू को एक नई ऊर्जा दे दी। वह लाली से मिलने को बेचैन हो गया। जैसे ही सरयू सिंह और सुगना का रिक्शा स्टेशन की तरफ बड़ा सोनू मन में उमंग लिए तेज कदमों से लाली के घर की तरफ बढ़ चला। उसकी चाल धड़क पिक्चर के हीरो जैसी थी।
रास्ते में बाजार सजा हुआ था परसों ईद की तैयारियां जोरों पर थी। एक से एक सुंदर युवतीयां कुछ बुरके में तो कुछ सलवार सूट में सोनू जैसे मैंने मर्द को लुभा रही थी वह कभी अपने कदम रोक कर उन्हें देखता पर उनमें से कोई भी उसकी लाली दीदी के आसपास न था। लाली की बड़ी-बड़ी चूचियां सोनू के आकर्षण का मुख्य केंद्र थी। उसने लाली के बच्चों के लिए कई चॉकलेट खरीदी और दो चूसने वाली आइसक्रीम भी खरीदी। वह हॉस्टल जाने के बाद लड़कियों को आइसक्रीम चूसते हुए देखता और वह और उसके दोस्त उसकी तुलना अपनी मनोदशा के हिसाब से अपने लंड से कर लेते।
सोनू तेज कदमों से लाली के घर की तरफ भागता जा रहा था वह आइसक्रीम को रास्ते में पिघलने से रोकना चाहता था और उसे अपनी लाली दीदी के होठों में पिघलते हुए देखना चाहता अंततः वह लाली के दरवाजे पर खड़ा दरवाजा खटखटा रहा था….
"2 मिनट रुक जाइए आ रहे हैं लाली के बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आ रही थी.."
"ठीक है दीदी"
"सुगना कहा है"
"मैं अकेले ही आया हूँ दीदी गांव चली गयी"
"ठीक है तू रूक मैं आती हूँ"
सोनू मैं मन ही मन अंदाजा लगा लिया कि उसकी लाली दीदी बाथरूम में नहा रही थी वह उसकी कल्पनाओं में डूब गया और लाली के आने का इंतजार करने लगा।
उधर सरयू सिंह स्टेशन पर आ चुके थे और ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। आज ट्रेन में स्लीपर की बोगी में भीड़भाड़ कम थी सरयू सिंह सपरिवार अपने दोस्त हरिया के साथ स्लीपर में चढ़ गए ट्रेन के चलते ही वह खिड़की से बाहर खेतों और पेड़ों का नजारा देखने लगे 2 दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद उन्हें यह खेत खलिहान बेहद पसंद आ रहे थे। ट्रेन की यह स्लीपर बोगी उन्हें उनकी पुरी यात्रा की याद दिलाने लगी। वह पूरी यात्रा की यादों में खो गए…..
पुरी जाते समय कजरी की बेहद उत्साहित थी। आने वाले सात आठ दिन उन तीनों को एक ही कमरे में गुजारने थे सरयू सिंह की उत्तेजना इस समय चरम पर थी वह सुगना की मदमस्त जवानी का भोग लगा रहे थे।
कजरी स्वयं भी सुगना को नग्न देखकर बेहद खुश होती थी उसके मन में अक्सर सुगना को नग्न देखने की चाहत उठती वह उसके कोमल चूचियों को छूना चाहती थी। सुगना की साफ-सुथरी और कोमल बुर भी कजरी को बेहद आकर्षित करती थी। जब से उसने सरयू सिंह के होठों को सुगना के बुर की फांकों से खेलते हुए देखा था उसका मन ललच गया था।
कजरी जितना अपने मन में सुगना के साथ अंतरंग हो जाती थी उतना हकीकत में लगभग असंभव जैसा था। सुगना के मन में कजरी के प्रति इस तरह की कोई भावना न थी वह तो मासूम थी। उसने संभोग का नया नया सुख प्राप्त किया था वह भी अपने बाबूजी के साथ। उम्र का अंतर छोड़ दिया जाए तो सरयू सिंह ने उसकी मनो इच्छा पूरी करने में कोई कमी ना रखी थी। उम्र का यह अंतर उन्होंने अपने मजबूत लंड से मिटा दिया था। जितना सुख सरयू सिंह का वह जादुई लंड सुगना को दे रहा था उतना शायद उसका पति रतन या उस उम्र के लड़के भी ना दे पाते। यह अलग बात थी की नए लड़कों के अनाड़ीपन और अलहड़ता सरयू सिंह में न थी वह एक मजे हुए खिलाड़ी थे।
सरयू सिंह इस बात को लेकर पसोपेश में थे की पुरी पहुंचने के बाद वह होटल में कैसे रहेंगे? क्या एक ही कमरे में दो विवाहित महिलाओं के साथ उन्हें रहने की अनुमति होटल प्रबंधन देगा? क्या यह व्यवस्था उन्हें प्रश्नों के दायरे में नहीं खड़ा कर देगी? वह किस तरह से इस बात को होटल प्रबंधन को समझा पाएंगे?
कजरी तो उनकी पत्नी स्वरूप थी उसे तो वह अपनी भार्या बनाकर अपने कमरे में रख सकते थे परंतु विवाहित सुगना को उसी कमरे में रखना यह कठिन था। दो कमरे लेने में धन का अपव्यय था इतना धन सरयू सिंह के पास ना था कि वह दो अलग-अलग कमरे लेकर अपनी कजरी भाऊ जी और सुगना की मनो इच्छा को पूरा कर पाते।
उन्होंने यह बात कजरी से बताई कजरी एक समझदार महिला थी उसे मुसीबतों से निकलना आता था उसने कहा
"अरे जाए दी कह देब की बेटी ह। आखिर बहू और बेटी में ढेर अंतर ना होला। सुगना के उम्र भी कम बा"
सरयू सिंह को यह बात पसंद आ गई परंतु बेटी शब्द सुनकर उनके मन में अजीब से भाव पैदा हुए सुगना उनकी प्रेमिका थी।
"ओकरा माथे पर सिंदूर देखकर लागी ना कि शादीशुदा ह"
" अरे परेशान मत होई तनी मनी सिंदूर भीतेरी लगा ली और लड़की वाला कपड़ा पहनी साड़ी ब्लाउज ना पहिनी"
सरयू सिंह धीरे धीरे आश्वस्त हो गए सुगना के पास लड़कियों वाले कपड़े न थे। कुछ लहंगा और चोली अवश्य थे जिसे लड़कियां और नव युवतियां बराबरी से प्रयोग करती थीं। कजरी ने सुगना को साड़ी और ब्लाउज ना ले जाने के लिए कहा वह बार-बार जिद करती रही कि वह सिर्फ दो या तीन कपड़ों में इतने दिनों तक कैसे रहेगी परंतु उसकी सास कजरी ने उसे यह कहकर मना लिया उसके लिए नए वस्त्र वहीं खरीदे जाएंगे।
सफर के लिए तैयार होते समय कजरी ने सुगना के बाल बनाएं और उसकी मांग में बिल्कुल छोटा सा सिंदूर लगा दिया जो बालों के बीच लगभग छुप सा गया था सुगना ने पूछा
"सासू मां आज इतना कम सिंदूर"
"अरे सुगना बाबू, शहर जा तारे घूमे, शहर में असही सिंदूर लगावल जाला"
सुगना बेहद उत्साहित थी वह इस प्रपंच में नहीं पड़ना चाहती थी वैसे भी वह लहंगा और चोली में बेहद खूबसूरत लग रही थी उसे अपने विवाह के पूर्व के दिन याद आ रहे थे।
ट्रेन आ चुकी थी और सुगना अपने सास और बाबूजी के साथ ट्रेन पर सवार हो गयी। उसकी पर्यटन की इच्छा पूर्ण होने वाली थी नियति एक बार फिर उसी ट्रेन पर सवार होकर सुगना को जीवन के नए सुख दिलाने निकल पड़ी थी।
सुबह-सुबह ट्रेन उड़ीसा के पुरी रेलवे स्टेशन पर पहुंच गयी। सरयू सिंह ट्रेन के दरवाजे पर सामान लेकर खड़े थे पीछे पीछे उनकी भौजी कजरी और कोमलांगी सुगना खड़ी थी। तीनों ट्रेन के रुकने का इंतजार कर रहे थे।
टेंपो में बैठकर सरयू सिंह सपरिवार पुरी के समुद्र तट पर पहुंच गए। सड़क के एक तरफ कई प्रकार के छोटे और बड़े होटल थे तथा दूसरी तरफ बेहतरीन और आकर्षक समुद्र तट सुगना की तो जैसे आंखें समुद्र से अटक गई थी वह कजरी के पीछे पीछे चल रही थी परंतु टकटकी लगाकर समुद्र तट की तरफ देख रही कजरी उसका हाथ पकड़कर आगे आगे चल रही थी। कभी-कभी लगता जैसे कजरी सुगना को घसीट रही हो। सरयू सिंह कंधे पर झोला तथा हाथ में दो संदूक लिए हुए कुली की भांति आगे चल रहे थे।
उनके लंड ने उन्हें इस अधेड़ अवस्था में सुगना के साथ हनीमून मनाने पर विवश कर दिया था मन में उम्मीदें हिलोरे ले रही थीं।
तभी एक दलाल सरयू सिंह के पास आया और बोला
"ए चाचा चली होटल दिखा दी बहुत बढ़िया बा सस्ता में"
सरयू सिंह का बजट ज्यादा न था सस्ता शब्द ने उन्हें कुछ ज्यादा ही आकर्षित किया एक तो वह व्यक्ति उनकी भाषा बोल रहा था दूसरे उसने सस्ते होटल का आश्वासन दिया था सरयू सिंह उसके झांसे में आ गए और अपने परिवार को लेकर उसके पीछे पीछे चल पड़े होटल के अंदर प्रवेश करते ही सिगरेट की महक आ रही थी होटल भी उनकी अपेक्षा अनुरूप न था वह उन्हें अपनी प्यारी बहू सुगना के लायक न लगा।
कुछ देर और होटल देखने के बाद सुगना और कजरी के पैर थक गए और अंततः सरयू सिंह ने होटल के रिसेप्शन की चमक दमक देखकर एक होटल को पसंद कर लिया।
होटल के रिसेप्शनिस्ट जो लगभग 20 - 21 साल का युवक था ने पूछा…
"चाचा जी आप का नाम"
"सरयू सिंह"
"चाची आपका"
"कजरी"
"और दीदी का" उसने सुगना की तरफ देखते हुए पूछा।
"सुगना"
कजरी ने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ उस व्यक्ति ने सरयू सिंह और उनकी दोनों प्रेमिकाओं के बीच संबंधों की जगह पर पत्नी और पुत्री लिख दिया। सरयू सिंह अपनी आंखों के सामने उन संबंधों को देख रहे थे पर नियति जो उनके साथ साथ ही घूम रही थी उसने सरयू सिंह का ध्यान वहां से हटा दिया और वह होटल के अटेंडेंट के साथ कजरी और सुगना को लेकर कमरे की तरफ बढ़ चले।

डबल बेड के सुंदर बिस्तर को देखकर सरयू सिंह का लंड उछलने लगा …[/SIZE
 
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डबल बेड के सुंदर बिस्तर को देखकर सरयू सिंह का लंड उछलने लगा …

अब आगे...

कजरी और सुगना दोनों बेहद प्रसन्न थीं। होटल उनकी उम्मीदों से ज्यादा अच्छा था। वैसे भी वह दोनों गांव में रहने वाली औरतें थीं उनके लिए यह होटल किसी स्वर्ग से कम न था। सुगना तो सरयू सिंह से लिपट गई एक पल के लिए वह भूल गई कि उसकी सास कजरी ठीक बगल में खड़ी है। उसने अपनी चूचियां सरयू सिंह के सीने से सटा दी और उनके गालों को चूम लिया सरयू सिंह ने कजरी को अपने पास खींचा और उसे अपने से सटा लिया वह उसे अलग-थलग नहीं छोड़ना चाहते थे

गुसल खाने का सर्वप्रथम उपयोग सरयू सिंह ने किया तत्पश्चात सुगना ने और जैसे ही कजरी गुसल खाने की तरफ बढ़ी श्रृंगार दान के सामने बाल बना रही सुगना को सरयू सिंह ने पीछे से आकर अपने आलिंगन में ले लिया उनकी हथेलियों ने अपनी प्यारी बहू के होंठ ढक लिए। यह सिर्फ चुप रहने का इशारा था सरयू सिंह को नहीं पता था कि सुगना तो स्वयं उसका इंतजार कर रही थी।

कुछ ही देर में सुगना बिस्तर पर थी समय कम था सरयू सिंह ने उसे आज पहली बार उसे डॉगी स्टाइल में आने को कहा। सुगना के लिए यह अवस्था बिल्कुल नई थी सरयू सिंह ने उसके नितंबों और पीठ को अपने हाथों से व्यवस्थित किया तथा उसे संभोग की आदर्श स्थिति में ला दिया सुगना का लचीला और कोमल शरीर इस अवस्था मैं बेहद आकर्षक लग रहा था।

सरयू सिंह को समय का अनुमान था उन्होंने सुगना को निर्वस्त्र न किया परंतु उसके लहंगे को उठाकर उसके दोनों नितंबों को अनावृत कर दिया दोनों गोल नितंबों के बीच से सुगना की कोमल और गुदाज गांड सरयू सिंह को दिखाई पड़ गई उन्होंने घुटनो के बल आकर सुगना के नितंबों को चूम लिया सुगना थिरक उठी। कुछ ही देर में सरयू सिंह की जीभ सुगना की जांघों के बीच बुर से रस चुराने को आतुर हो उठी। गुसल खाने में नहाते समय सुगना अपनी बुर को पहले ही सहला कर गीला कर चुकी थी तौलिए से पोछने के बावजूद बुर् के होठों पर मदन रस चमक रहा था जो इस डॉगी स्टाइल में आने के कारण गुरुत्वाकर्षण से नीचे लटक रहा था। सरयू सिंह ने अपनी जीभ से उस रस को आत्मसात कर लिया तथा सुगना की कोमल बुर को अपनी जीभ का स्पर्श दे दिया सुगना की जाँघे ऐंठ गयीं और उसकी सिहरन चुचियों तक पहुंच गई।

सुगना को इस बात का अंदाजा न था वह अपने बाबूजी के लंड का इंतजार कर रही थी सुगना ने अपना चेहरा उठाया और सरयू सिंह की तरफ देखा परंतु वह तो उसके मादक नितंबों के पीछे गुम हो गए थे।

सुगना ने धीमी आवाज में कहा

"बाबुजी जल्दी करीं सासू मां जल्दी आ जईहें"

सरयू सिंह ने सुगना को छेड़ते हुए कहा

"का करीं सुगना बाबू?" सरयू सिंह ने अपना ध्यान सुगना की जांघों के बीच से हटाकर सुगना के चेहरे पर केंद्रित किया।

सुगना शर्म से लाल हो गई वह उनकी शरारत जान रही थी पर वह इस समय वार्तालाप करने के मूड में बिल्कुल नहीं थी।

सुगना का मासूम चेहरा और खुले हुए नितंब देखकर सरयू सिह मदहोश हो गए उन्होंने आगे बढ़कर सुगना को चूमने की कोशिश की और इसी दौरान उनके लंड ने सुगना की बुर को चूम लिया। सुगना ने अपने नितंब पीछे किये और उसकी पनियायी बुर ने मुहाने पर खड़े लंड का सूपड़ा लील लिया।

आगे किसी मार्गदर्शन की आवश्यकता न थी उसके बाबूजी का जादुई दंड अपनी जगह ढूंढ रहा था कुछ ही देर में कमरे में थपाथप की आवाजें गूंजने लगी। सरयू सिंह अपनी उत्तेजना और आवाज का समन्वय बनाए हुए थे। उधर कजरी गुसल खाने में नहाते वक्त तरह तरह की कल्पनाएं कर रही थी। । उसके दिमाग में आज रात्रि के संभावित अवसर घूम रहे थे क्या कुँवर आज संभोग करेंगे? और किसके साथ करेंगे क्या यह संभव हो पाएगा?

कजरी ने सुगना को गर्भवती कराने की ठान ली थी। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि यदि आवश्यकता पड़ी तो वह होटल से निकलकर बाहर बाजार में आ जाएगी तब तक सरयू सिंह सुगना के गर्भ में अपना वीर्य भर देंगे। काश वह सुगना और सरयू सिंह का संभोग इसी कमरे में देख पाती उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे और इसी दौरान कमरे में उसकी बहू सुगना चुद रही थी।

सुगना को लगा हुआ इंजेक्शन काम कर रहा था सरयू सिंह ने एक बार फिर अपना वीर्य सुगना की बुर में भर दिया था थोड़ी ही देर की चुदाई में सुगना और सरयू सिंह स्खलित हो गए थे। इससे पहले की कजरी गुसल खाने का दरवाजा खोलती सुगना के अनावृत नितंब घागरे के अंदर जा रहे थे। सरयू सिंह अपना लंड लिए हुए दीवाल की तरफ मुड़ चुके थे और उसे लंगोट में समेट रहे थे। कजरी सुगना के करीब आ गयी। सुगना की तेज सांसे कजरी को इशारा कर रही थी कजरी ने सारी बात समझ ली।

वह मुस्कुरा रही थी। सरयू सिह ने बात बदलते हुए कहा…

"चल अपना सुगना बेटा खातिर कपड़ा खरीद दिहल जाऊ"

कजरी ने हंसते हुए कहा…

"जब इहे करे के बा त कपड़ा के कौन जरूरत बा"

सुगना शरमाते हुए गुसल खाने की तरफ बढ़ गई थी उसे अपनी जांघों पर लगा हुआ वीर्य पोछना था।

सरयू सिह ने अपनी शर्म बचाने के लिए कजरी को चूम लिया। कुछ ही देर में वह सुगना और कजरी के साथ समुंदर के किनारे आ चुके थे।

मानव मन चंचल होता है यह बात हम सबको पता है पर जब इस चंचलता में कामुकता का अंश लग जाए तो यह चंचलता और प्रबल हो उठती है सरयू सिंह अपनी बहू सुगना के प्रेम जाल में अपनी उम्र भूल कर बीच पर आ चुके थे उन्होंने धोती कुर्ता पहना हुआ था साथ चल रही सुंदर कजरी साड़ी में थी सुगना ने आज फिर लहंगा और चोली पहना हुआ था।

बीच पर सरयू सिंह को एक दूसरी दुनिया दिखाई पड़ रही थी सुगना की उम्र की लड़कियां उन्हें अलग-अलग वस्त्रों में दिखाई दे रही थी. सरयू सिंह सुगना को कई दिनों से चोद रहे थे उन्हें अपनी उम्र याद न रही थी वह उन लड़कियों को भी उसी तरह देख रहे थे जिस तरह सुगना को देखते थे।

सरयू सिंह की निगाहें मदमस्त यौवनाओं के खूबसूरत नितंबों और पीठ पर घूम रही थी जब कभी कोई लड़की सामने से आती दिखाई पड़ती सरयू सिंह की पारखी निगाहें लड़कियों की चूची और जांघों के बीच की गहराई का अंदाज करने लगते। उनका लंड उन अनजानी गहराइयों में गोते लगाने की कल्पनाओं में खो जाता।

सरयू सिंह मन ही मन सुगना के बारे में सोच रहे थे वह इन वस्त्रों में कैसी दिखाई देगी। तभी एक विदेशी लड़की अपने बॉयफ्रेंड के साथ वहां से गुजरी। उस लड़की ने बेहद पतली बिकनी पहनी हुई थी चुचियाँ उभर कर बाहर आ रही थीं। सरयू सिंह के कदम धीरे हो गए सुगना और कजरी ने उनकी धीमी की चाल का कारण जान लिया था वह दोनों भी आश्चर्यचकित होकर उस लड़की की नग्नता का आनंद ले रही थीं।

सुगना ने कजरी से कहा…

"ओकर आगा पीछा कतना बढ़िया बा"

(उसका आगे और पीछे का भाग कितना सुंदर है)

"हमरा सुगना बाबू से कम सुंदर बा" कजरी ने मुस्कुराते हुए कहा और सुगना के नितंबों पर हाथ फिरा दिया।

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई पर वह अपनी प्रशंसा सुनकर खुश हो गई।

सरयू सिंह की आंखों में अभी सुगना ही नाच रही वह उसे अलग-अलग वस्त्रों में अपने कल्पनाओं में देख रहे थे। उनके मन मे सुगना के मादक और कमनीय शरीर को इन उत्तेजक वस्त्रों में देखने की इच्छा प्रबल हो रही थी। सरयू सिंह समुद्र स्नान का आनंद तो लेना चाहते थे पर यह कार्यक्रम उन्होंने अगले दिन के लिए रखा था आज वह बीच पर उपलब्ध संसाधनों का मुआयना करने आए थे। कुछ देर बीच पर चहल करने करने के पश्चात सरयू सिंह सपरिवार पास के बाजार में आ गए…

दुकानों पर रंग-बिरंगे वस्त्र सजे हुए थे जिसमें अधिकतर लड़कियों और युवतियों के वस्त्र थे सरयू सिंह का यहां कोई कार्य न वह सिर्फ अपने परिवार के रक्षक के रूप में वहां आ गए थे।

कजरी और सुगना ग्रामीण वेशभूषा में थे परंतु उनके चेहरे पर चमक थी जो उनके सभ्रांत होने का एहसास दिलाती।

"दीदी इधर आईये"

एक व्यक्ति सामने से आकर कजरी और सुगना को एक दुकान की तरफ मोड़ दिया सरयू सिंह चाह कर भी उसे ना रोक पाए। दुकान पर और भी महिलाएं थी वह दुकान से थोड़ा दूर खड़े होकर अपनी तंबाकू बनाने लगे।

दुकानदार ने कजरी और सुगना के लिए तरह-तरह के अंदरूनी वस्त्र दिखाएं जिनमें से कुछ बीच पर समुद्र में अठखेलियां करने के काम आते और कुछ अपनी उत्तेजक कल्पनाओं को जागृत करने के लिए।

सुगना नव वधु की तरह शर्माते हुए कजरी की पसंद को देख रही थी। कजरी अपने मन में सुगना के प्रति उत्तेजना लिए हुए थी। उसने भी इस यात्रा में कई कल्पनाएं की हुई थीं।वह सुगना की कोमल और मखमली जांघों के बीच उसकी मासूम बुर को सजाना संवारना चाहती थी और उसे अपने कोमल स्पर्श से अभिभूत करना चाहती थी। उसमें सुगना के प्रति यह आकर्षण क्यों पैदा हो रहा था यह बात वह नहीं जानती परंतु उसे यह आकर्षण अच्छा लग रहा था।

कजरी ने सोच रखा था अब नहीं तो कभी नहीं उसने बेझिझक होकर अपने लिए और सुगना के लिए तरह-तरह के वस्त्र खरीदें। सुगना उसे रोकती रह गई पर कजरी ने एक न सुनी वह अपने सारे सपने पूरा कर लेना चाहती थी।

सुगना अपने शरीर पर इन उत्तेजक वस्त्रों की कल्पना कर गरम हो चुकी थी उसकी जाँघों के बीच गुदगुदी हो रही थी।

दोपहर में जब सरयू सिंह होटल में आराम कर रहे थे कजरी सुगना को लेकर पास के ही सस्ते से ब्यूटी पार्लर में चली गई। आज पहली बार उसने और सुगना ने अपने बालों को थोड़ा छोटा कराया अपनी आइब्रो बनवाई और वापस आ गयीं। भगवान ने कजरी और सुगना को प्राकृतिक सुंदरता दी थी उन्हें फेशियल या ब्यूटी प्रोडक्ट की आवश्यकता न थी।

शाम को सरयू सिंह सुगना और कजरी को तैयार होने का निर्देश देकर कमरे से बाहर आ गए उन्होंने आज पहली बार धोती की जगह पैजामा पहना हुआ था परंतु कुर्ता अपनी जगह बरकरार था। इस खूबसूरत कुर्ता पायजामे में सरयू सिंह ने अपनी उम्र कुछ वर्ष कम कर ली थी। सुगना अपने छैल छबीले बाबूजी को देखकर खुश हो रही थी उसे उनके साथ एकांत में बिताए जाने वाले पलों का इंतजार था।

सुगना और कजरी अपने नए वस्त्रों में तैयार होने लगे। सुगना को यह नए वस्त्र बेहद अजीब लग रहे थे परंतु कजरी की जिद की वजह से उसने वह पहन लिए। कजरी ने भी नई साड़ी पहनी और कई वर्षों बाद साड़ी का उल्टा पल्लू लिया खुले हुए बाल पीठ पर कजरी और सुगना की सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे पार्लर में जाने की वजह से बालों की बनावट और खूबसूरती निखर आई थी।

सरयू सिंह कुछ देर होटल की लॉबी में टहलने के बाद कमरे में आये। उनके कदम ठिठक गए। एक नवयुवती नीले रंग की जींस और सफेद टॉप में आइने के सामने खड़ी थी। दूसरी युवती काली और सुनहरे पाढ़ वाली साड़ी में जींस वाली लड़की के बाल सवार रही थी।

सरयू सिह को गलत कमरे में आ जाने का आभास हुआ।

"माफ कीजिएगा….."

कहकर वह उल्टे पैर बाहर आ गए। अंदर दो अनजान महिलाओं को देखकर उन्हें यह भ्रम हो गया कि वह किसी दूसरे कमरे में आ गए उनकी सांसें तेज चल रही थी उन्होंने एक बार फिर कमरे की चौखट पर पीतल के स्टिकर पर गुदा हुआ नंबर देखा।

कमरा तो उन्हीं का था उनकी आंखें एक बार फिर उस नंबर पर केंद्रित हुयीं और दिमाग सक्रिय हो गया उन्होंने पुनः दरवाजा खोला और अंदर आ गए उनका संदूक टेबल के नीचे दिखाई पड़ गया कजरी उनकी तरफ मुखातिब हुई और बोली

"आज हमार सुगना बाबू एकदम शहर के लईकी लाग तिया"

सरयू सिंह के लिए सुगना का यह नया रूप बेहद आकर्षक और उत्तेजक था। अपनी जवानी के दिनों से उन्होंने शहर में कई लड़कियों को इस तरह की चुस्त जींस और टॉप मैंने देखा था और न जाने कितनी बार अपनी कल्पनाओं में उस जींस को अपने हाथों से उतारा था।

सरयू सिंह सुगना को ऊपर से नीचे तक घूरे जा रहे सुगना का टॉप तो ढीला था परंतु जीन्स ने सुगना के पैरों पर एक चुस्त आवरण दे दिया था। वह सुगना की जाँघों के कसाव को छुपा पाने में असमर्थ थी।

दोनों जांघों के जोड़ पर जींस सुगना की कोमल बुर से चिपकी हुई थी और उसके ठीक नीचे बुर और जांघों के मिलन पर एक दिलनुमा आकार बन गया था जो अत्यंत मनमोहक लग रहा था सुगना की बुर की फाँकों ने उस खाली जगह को दिल का रूप दे दिया था। सफेद टॉप में सुगना की सूचियां उभरकर दिखाई दे रही थी निश्चय ही उन दिलकश चूचियों को ब्रा का भी समर्थन प्राप्त था।

सरयू सिंह को इस तरह घूरते हुए देखकर कजरी ने सुगना को गालों पर चूम लिया और कहा

" हमरा सुगना बाबू के नजर मत लगायीं"

कजरी तो उसके खूबसूरत होंठ चूमना चाहती थी परंतु वह हिम्मत न जुटा पा रही थी।

सरयू सिंह का ध्यान कजरी पर गया वह आज जितना खूबसूरत कभी नहीं लगी थी कजरी ने अपने बाल खुले रखे थे और वह उसकी बाई चुचियों को ढक रहे थे काले रंग की साड़ी कजरी के गोरे शरीर पर खूब जच रही थी सुनहरे रंग के ब्लाउज में उसकी बड़ी बड़ी चूचियां सांची के स्तूप की भांति तन कर खड़ी थीं

सरयू सिंह का लंड एक बार फिर खड़ा हो चुका था। परंतु समय का आभाव था।कुछ ही देर में सरयू सिंह सपरिवार पवित्र मंदिर के दर्शन हेतु निकल चुके थे।

कजरी ने मंदिर में सुगना के गर्भवती होने की कामना की और प्रभु से उसके लिए आशीर्वाद मांगा उधर सरयू सिंह सुगना की खुशियों की कामना कर रहे थे परंतु उस कामना में उसके गर्भवती होने का जिक्र न था उसका यह हक वह स्वयं छीन चुके थे सुगना को लगाया गया इंजेक्शन अगले 2 वर्षों तक उसे गर्भधारण से बचाए रखता।

सुगना ने भी भगवान से प्रार्थना की परंतु वह कुछ मांग पाने की स्थिति में न थी। उसे पिछले कुछ दिनों में इतनी खुशियां मिली थी कि वह भगवान के प्रति कृतज्ञता जाहिर करती रह गयी उसे और कुछ ना चाहिए था।

रात करीब आ रही थी सरयू सिंह के मन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे खाना खाने के पश्चात होटल जाते समय सुगना और कजरी आगे आगे चल रहे थे। पीछे कसी हुई जींस में सुगना के नितंब सरयू सिंह को आकर्षित कर रहे थे सुगना की चाल के साथ वह गोल नितंब एक लय में हिलते और सरयू सिंह को उन्हें अपनी हथेलियों में भर लेने को आमंत्रित करते।

उनका सारा ध्यान सुगना के कोमल नितंबों पर ही टिका था परंतु जब कभी उनकी निगाह कजरी पर पड़ती उनका लंड एक बार फिर उछल पड़ता।

कमरे में प्रवेश करते करते ही कजरी बाथरूम चली गई। सुगना की जींस का बटन बेहद टाइट था। सरयू सिंह बिस्तर पर बैठ कर अपना कुर्ता उतार रहे थे तभी सुगना उनके पास आई और बोली

" बाबूजी ई बटन खोल दीं"

सरयू सिंह ने तुरंत ही अपनी उंगली जींस के पीछे कर दीं और अंगूठे की मदद से बटन को खोल दिया उनकी उंगलियां यही ना रुकीं वह सुगना की जींस को नीचे करते गए। ज्यों ज्यों जींस नीचे उतरती गयी सुगना का वस्ति प्रदेश सरयू सिंह की आंखों के सामने आता गया। लाल रंग की पेंटिं ने सुगना की कोमल बुर और उसके ऊपरी भाग को ढक रखा था परंतु गोरा और चमकदार वस्ति प्रदेश उनकी आंखों के सामने उन्हें ललचा रहा था सुगना ने उन्हें रोकने की कोशिश न की और जींस कुछ ही देर में उसके घुटनों तक आ गई थी।

तभी कजरी के आने की आहट हुई सुगना ने बिस्तर पर पड़ा तोलिया अपनी कमर में लपेट लिया और दूसरी तरफ बैठकर अपनी जींस को उतारने लगी।

कजरी के बाहर आते हैं सुगना बाथरूम में चली गई. कजरी सरयू सिंह के करीब आई और सरयू सिंह ने उसे अपने आलिंगन में भर लिया। जितनी उत्तेजना उन्होंने सुगना की जींस खोलने में बटोरी थी वह सारी उन्होंने कजरी पर उड़ेल दी कजरी ने उनके तने हुए लंड को महसूस कर लिया और उसे दबाते हुए बोला।

"तब महाराज आज कैसे शांत होइहें"

"जे खड़ा करलए बा उहे शांत करी " सरयू सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा" कजरी उनकी बात को पूरी तरह न समझ पायी। एक पल के लिए उसे लगा जैसे उसे नहाने के बाद इस मादक अवस्था में देखकर सरयू सिंह का लंड खड़ा हुआ था। परंतु उसे क्या मालूम था आज सरयू सिंह ने अपनी जवान बहू सुगना को एक मनचली लड़की का रूप देकर उसके जींस के बटन खोले थे। वह अपनी सुगना के इस नए रूप से बेहद उत्तेजित थे।

कजरी में इस पचड़े में न पड़ते हुए कि कुँवर जी का लंड किसने खड़ा किया है, अपने होंठ सरयू सिंह की तरफ बढ़ा दिया और प्रत्युत्तर में सरयू सिंह उसके होठों का रसपान करने लगे कजरी के नितंब सरयू सिंह की मजबूत हथेलियों में आ चुके थे और उनकी उंगलियां धीरे-धीरे कजरी की बुर की तरफ बढ़ रही थीं।

सरयू सिंह कजरी को उसी समय कसकर चोदना चाहते थे परंतु उनकी जींस वाली सुगना अभी बाथरूम में नहा रही थी उन्होंने मन ही मन आज रात की कई कल्पनाएं की थीं उन्होंने कजरी को उस समय चोदने का विचार दिमाग से निकाल दिया तथा उसे उत्तेजित करने पर अपना ध्यान केंद्रित किए रखा। कजरी पूरी तरह उत्तेजित हो गई थी और उत्तेजना से हाफ रही थी।

तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और एक अति सुंदर नाइट गाउन में अपने बाल झटकती हुई सुगना कमरे में आ चुकी थी सुगना का यह नाइट गाउन कजरी ने आज ही खरीदा था। कजरी और सरयू सिंह सुगना को एकटक तक देखे जा रहे थे। सुगना धीरे धीरे चलते हुए ड्रेसिंग टेबल पर आकर तौलिए से अपने बाल सुखाने लगी।

कजरी ने सरयू सिंह से कहा

"जायीं रउओ नहा लीं"

जब तक सरयू सिंह बाथरूम में नहा कर बाहर निकलते उनकी दोनों परियां बेहद खूबसूरत गाउन में तैयार हो चुकी थीं। कजरी सुगना के नाइट गाउन व्यवस्थित कर रही थी। कजरी ने अपनी युवावस्था में जिस सुंदरता के दर्शन न कर पायी थी आज वह अपनी बहू को सजा संवार कर वह सारे अरमान पूरे कर रही थी।

कजरी ने कहा

"अब हमार सुगना बाबू एकदम रानी लागत बिया. आज कुँवर जी से कहब मलाई भितरे भरिहें। भगवान तोर मा बने के इच्छा पूरा करसु।"

कजरी ने सुगना के माथे को चूम लिया और सुगना को अपने आलिंगन में लेकर नाइटी के अंदर छुपी नंगी चुचियों (बिना ब्रा के आवरण की) को सुगना की खूबसूरत चूँचियों से सटा दिया।

सुगना के जवान बदन की खुशबू कजरी के नथुने से टकराई कजरी स्वयं बहुत उत्तेजित थी और इस रात के लिए कई अरमान संजोये हुए थी।

सरयू सिंह बाथरूम का दरवाजा खोल कर आ चुके थे उन्होंने अपनी कमर पर तौलिया लपेटा हुआ परंतु अपने जादुई लंड के उभार को छुपा पाने में पूरी तरह नाकाम थे। उनकी प्यारी बहु सुगना और भौजी कजरी बेहद उत्तेजक कपड़ों में एक दूसरे के पास घड़ी थीं। वह एक टक उन्हें देखे जा रहे थे। तभी अचानक कमरे की लाइट चली गई..

शेष अगले भाग में।

 
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लाइट जाने के बाद कमरे में अंधेरा हो गया था। बाहर गलियारे में कई लोगों के आने-जाने की आवाज आ रही थी। किसी ने चिल्लाया

"लाइट कब आएगी क्या फालतू होटल है जनरेटर नहीं है क्या?"

होटल वाले वेटर की आवाज आई

" पूरे शहर की लाइट गई है देखिए कब तक आती है हमारे पास जनरेटर नहीं है कहिए तो मोमबत्ती दे दूं।"

सरयू सिंह के मन में एक बार आया कि वह जाकर मोमबत्ती ले लें। परंतु वह तौलिया पहने हुए थे और इस स्थिति में बाहर जाना उचित न था। उन्होंने लाइट का इंतजार करना ही उचित समझा। कजरी और सुगना दोनों बिस्तर पर आकर बैठ चुकी थीं।

कजरी ने कुंवर जी को छेड़ा

"अच्छा केकर कपड़ा ज्यादा सुंदर लागतल हा?"

" तू कभी खराब काम करेलू का? तू जवन भी करेलू उ सब अच्छा होला"

सरयू सिंह ने कजरी की तारीफ कर दी उनके दोनों हाथ में लड्डू थे जिनकी तुलना वह नहीं करना चाह रहे थे। बिस्तर पर बैठे उत्तेजना में डूबे सरयू सिंह और कजरी लाइट आने का इंतजार कर रहे थे। परंतु लाइट आने में विलंब हो रहा था। धीरे धीरे वह तीनों बिस्तर पर लेटते गए एक किनारे सरयू सिंह थे बीच में कजरी और दूसरी तरफ अपनी सास और अपने ससुर की चहेती सुगना।

कजरी जानबूझकर बीच में नहीं आई थी वह अकस्मात थी उन दोनों के बीच आ गई थी।

सरयू सिंह का लंड अब इंतजार करने के मूड में नहीं था। उसे वैसे भी उसे अंधेरी गुफा की यात्रा करनी थी। बाहरी दुनिया और उसके आडंबर उसके किसी काम के नहीं थे। उसे तो उस गहरी और चिपचिपी गुफा में प्रवेश कर उस गर्भाशय को चूमना था जिसका चेहरा आज तक कोई नहीं देख पाया था। कजरी की पीठ सरयू सिंह की तरफ थी और चेहरा सुगना की तरफ।

सरयू सिंह से और बर्दाश्त नहीं हो रहा था उन्होंने कजरी के पेट पर हाथ लगाया और उसके नितंबों को अपनी तरफ खींच लिया।

उनका लंड कजरी के नितंबों के बीच से उसकी गॉड से टकराने लगा। कजरी स्वयं भी उत्तेजित थी। उसकी बुर से रिस रही लार उसकी अनछुई गांड तक पहुंच चुकी थी। एक पल के लिए कजरी को लगा यदि उसने सरयू सिंह के लंड को सही रास्ता न दिखाया तो वह आज उसकी गांड में ही छेद कर देंगे। सरयू सिंह आज दोहरी उत्तेजना के शिकार थे। एक तो उनकी सुगना बहू आज एक नए रूप में उपस्थित थी और वह भी अपनी सास कजरी के सामने।

कजरी ने अपनी कमर थोड़ी और पीछे की तथा सरयू सिंह के लंड को उस चिपचिपी चूत का द्वार मिल गया। सरयू सिंह ने आव देखा न ताव और एक ही झटके में अपना लंड अपनी भौजी की बुर में उतार दिया।

उनका मजबूत लंड कजरी की बुर को चीरता हुआ गर्भाशय तक जा पहुंचा कजरी चिहुँक पड़ी.

सुगना ने पूछा

"सासु मां का भइल?"

जब तक कजरी उत्तर देती तब तक सरयू सिंह तेजी से अपना लंड उसकी बुर में आगे पीछे करने लगे। कजरी की आवाज लहरा गई वह बड़ी मुश्किल से बोली

"कुछो….ना"

सरयू सिंह का लंड आज भी कजरी की बुर में पूरे कसाव के साथ जाता था।उसमें इतनी ताकत थी वह जब बाहर आता कजरी को खींचे लाता और जब वह अंदर की तरफ जाता कजरी दो -चार इंच ऊपर की तरफ उठ जाती। बिस्तर पर हो रही यह हलचल सुगना ने महसूस कर ली।

अंधेरा होने के बावजूद बिस्तर पर होने वाली इस गतिविधि ने सुगना का ध्यान खींच लिया था। उसे कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था परंतु वह कुछ उत्तेजक महसूस कर पा रही थी। वह कजरी की तरफ मुंह करके करवट लेट गयी। सरयू सिंह की हथेलियां कजरी की चुचियों को अपने आगोश में लेने के लिए आगे आयीं परंतु इससे पहले कि वह कजरी की चुचियों को पकड़ पाती, हथेली के पिछले भाग को सुगना की सूचियों का स्पर्श मिल गया।

सुगना की कोमल चुचियां सरयू सिंह कैसे भूल सकते थे। सरयू सिंह पसोपेश में आ गए। वह सुगना की चुचियाँ सहलाना चाहते थे परंतु उनका हाथ कजरी के सीने के ऊपर था। यदि वह कजरी की चुचियाँ ना पकड़ते कजरी तुरंत ही समझ जाती।

उन्होंने बड़ी ही चतुराई से कजरी की चुचियों को अपनी हथेलियों में भर लिया और बीच-बीच में वह अपनी पकड़ ढीली करते और उनकी हथेलियों के पिछले भाग को सुगना की चुचियों का स्पर्श मिलता।

सुगना अब समझ चुकी थी कि उसके बाबूजी कजरी की चुचियों को मीस रहे हैं। सुगना की की बुर सिहर उठी। अपने ठीक बगल में अपनी सास कजरी की चुदाई होने के ख्याल मात्र से उसकी कोमल और संवेदनशील बुर के मुंह में पानी आ गया।

वो आगे आ कर अपनी चुचियों को सरयू सिंह की हथेलियों से सटाने लगी।

सरयू सिह कजरी की चुचियों को मीस रहे थे और उधर सुगना अपनी चुचियों को उनकी हथेली के पिछले भाग पर रगड़ रही थी। अचानक सुगना के निप्पल उनकी दो उंगलियों के बीच आ गए सरयू सिंह से बर्दाश्त ना हुआ और उन्होंने सुगना के निप्पल को दबा दिया। सुगना कराह उठी

"बाबूजी…. "

उसने अपने आगे के वाक्यांश को अपने मुंह में ही रोक लिया और उस मीठे दर्द को सह लिया। कजरी ने पूछा

"सुगना बाबू का भइल"

सरयू सिंह का लंड सकते में आ गया वह कजरी की बुर में पूरा जड़ तक घुस कर शांत हो गया। एक पल के लिए सरयू सिह घबरा गए उन्हें लगा इस प्रेम क्रीडा में विघ्न आ गया।

तभी सुगना ने बात संभाल ली उसने कहा "बाबूजी लाइट कब आई?"

सरयू सिंह अपनी भौजी की बुर चोदते चोदते हाफ रहे थे उन्होंने उत्तर न दिया परंतु कजरी ने कहा

"नींद नईखे आवत का? सुते के कोशिश कर"

कजरी उत्तेजना में पूरी तरह डूब चुकी थी वह किसी हाल में भी बिना स्खलित हुए सरयू सिंह के लंड को नहीं छोड़ना चाहती थी। सुगना भी इस दर्द को समझती थी वह शांत हो गयी। परंतु अपनी चुचियों को अपने बाबुजी की हथेलियों के पीछे रगड़ती रही।

सरयू सिंह का पिस्टन एक बार फिर आगे पीछे होने लगा। कजरी अपनी कमर हिला कर उनका साथ दे रही थी। उसे अब बिस्तर पर हो रही हलचल से कोई लेना-देना नहीं था। उत्तेजना में उसका दिमाग वैसे भी कम काम कर रहा था। वह अपनी बहू के सामने एक ही बिस्तर पर पूरी तन्मयता से अपने नितंबों को आगे पीछे कर चुदवा रही थी।

अचानक सरयू सिंह ने अपना हाथ ऊपर उठाया उसी दौरान सुगना ने उनकी हथेलियों की तलाश में अपनी चूचियां और आगे बढ़ा दी जो सीधे-सीधे कजरी की चुचियों से सट गयीं। कजरी जिन चुचियों को वह हमेशा से छूना और महसूस करना चाहती थी आज उसकी बहू ने वह चूचियां स्वयं ही उसकी चुचियों से टकरा दी थी। इससे पहले की सुगना इस अप्रत्याशित स्थित से बचने के लिए अपनी चुचियाँ पीछे कर पाती कजरी ने तुरंत अपना हाथ ऊपर किया और सुगना को अपनी तरफ खींच लिया सुगना कुछ बोल ना पायी और उसकी मझोली चुचियाँ अपनी सास की भारी चूँचियों में समा गयीं।

सरयू सिंह ने अपने हाथ वापस उसी अवस्था में लाने की कोशिश परंतु सास और बहू की चूचियों के बीच उनके हाथ के लिए जगह नहीं थी परंतु उन्होंने हार न मानी और उन दोनों की चुचियों को अपनी हथेली से सहलाने लगे।

एक ही पल में सास बहू और सरयू सिंह के बीच की शर्म की दीवार लगभग गिर चुकी थी वह उन दोनों की छातियों के बीच ढेर सारी चुचियों को सहलाते हुए मदमस्त हो रहे थे और इसका एक तरफा आनंद कजरी की चूत उठा रही थी।

अचानक कजरी ने अपने शरीर को थोड़ा नीचे किया उसके होंठ सुगना के गर्दन के ठीक नीचे आ गए थे इससे ज्यादा नीचे आना संभव न था सरयू सिंह का लंड कजरी को लगातार ऊपर धकेल रहा था सुगना ने कजरी की मनोदशा का अंदाजा लगा लिया आज वह भी पूरे उन्माद में थी। उसने अपने शरीर को ऊपर की तरफ धकेला और अपनी कोमल चुचियों के निप्पलों को अपनी सास कजरी के मुंह में दे दिया।

सुगना ने उत्तेजना में एक बड़ा कदम उठा लिया था जो कजरी की मनोदशा के अनुरूप था सरयू सिंह अपनी हथेलियों से सुगना की चुचियों को ढूंढते हुए ऊपर की तरफ गए और कजरी के चेहरे पर हाथ लगते ही उन्हें वस्तुस्थिति का अंदाजा हो गया। सरयू सिंह स्वयं आनंद के अतिरेक से अभिभूत अपने लंड को अपनी भौजी की बुर में बेहद तेज गति से आगे पीछे करने लगे कजरी से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ। उसकी कई इच्छाएं एक साथ पूरी हो रही थी कजरी के पैर सीधे होने लगे परंतु सरयू सिंह ने उसे चोदना जारी रखा। कजरी की बुर पानी छोड़ रही थी जितना रस वह अपनी बुर से बाहर छोड़ रही थी वह सुगना की कोमल चुचियों से उतना रस दूह लेना चाहती थी परंतु सुगना की चुचियां भी कच्चे आम जैसी थीं जिसे आप चूस तो सकते थे पर उसमें से रस निकलना असंभव था। उधर कजरी की मेहनत से सुगना की बुर भी पूरी तरह भजन कीर्तन के लिए आतुर थी।

स्खलन के दौरान कजरी ने अनजाने में ही सुगना के निप्पलों को जोर से दबा दिया सुगना से बर्दाश्त ना हुआ वह बोल उठी..

"आआआ…..तनी धीरे से दुखाता"

सुगना की इस कराह ने सरयू सिंह को पूरी तरह उत्तेजित कर दिया उन्होंने कजरी की बुर में लंड जड़ तक घुसा कर गर्भाशय को अंतिम विदाई दी और फक्कक कि आवाज के साथ अपना फनफनाता आता हुआ लंड बाहर निकाल लिए जो अब पूरी तरह कजरी के रस से भीगा हुआ था। आज कजरी की बुर ने इतना पानी स्खलित किया था कि उनके अंडकोष भी भीग गए थे।।

कजरी को अगले कदम का आभास हो गया था। सरयू सिंह का लंड अब भी स्खलित नहीं हुआ था और उन्हें अब अपनी बहू सुगना की कसी हुयी बुर की तलाश थी। कजरी बिना बात किए उनके बीच से उठी और सुगना की तरफ आ गई सुगना भी आतुर थी उसने तुरंत ही कजरी की जगह ले ली।

सरयू सिंह अब यह जान चुके थे की सुगना और कजरी दोनों ही इस खेल में शामिल हो चुके हैं। उन्होंने सुगना की जाँघे पकड़कर उसे खींच लिया और उसकी जांघों के बीच आ गए। उन्होंने अपनी हथेली से सुगना की कोमल बुर का मुआयना किया और बुर के होठों पर भरपूर प्रेम रस देखकर खुश हो गए। उन्होंने झुककर सुगना के निचले होठों को चूम लिया। सुगना के प्रेम रस से अपने होठों को भी भिगोने के पश्चात व सुगना को चूमने के लिए उसके चेहरे की तरह बढ़े।

तभी उन्हें कजरी के हाथ अपने और सुगना के सीने के बीच रेंगते महसूस हुए । कजरी सुगना की चुचियों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी।

सरयू सिंह सुगना के कोमल होठों को घूमते हुए सुगना को उसका ही प्रेमरस चटा रहे थे उधर उनके तने हुए लंड ने सुगना की बुर को चूम लिया। वह रसीली बुर के अंदर प्रवेश करता गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अब वह किसी इशारे की प्रतीक्षा में न था। सुगना भी अपनी जांघें फैला कर उसे खुला आमंत्रण दे रही थी। थोड़ी ही देर में सरयू सिह की कमर तेजी से हिलने लगी। सरयू सिंह ने खुद को सुगना अलग किया और उसकी जांघों को पकड़ कर उसके पेट के दोनों तरफ कर दिया और अपने लंड से उसकी बुर को पूरी गहराई तक हुमच हुमच कर चोदने लगे।

कजरी सरयू सिह का उत्तेजक रूप महसूस कर घबरा गयी। वह अपनी बहू सुगना के चिंतित थी जो अपने बाबूजी की इस अद्भुत उत्तेजना का आनंद ले रही थी।

कजरी ने कहा

"तनी धीरे धीरे… लइका बिया"

सरयू सिंह कजरी की इस बात पर और भी ज्यादा उत्तेजित हो गए उन्होंने सुगना के होंठ काट लिए तथा अपने लंड से उसके गर्भाशय में छेद करने को आतुर हो उठे। उधर कजरी सुगना की चूचियों को सहलाये जा रही थी। कभी-कभी वह अपनी उंगलियां सुगना की भग्नासा पर ले आती परंतु सरयू सिंह के लंड के तेज आवागमन को महसूस कर वह अपनी उंगलियां हटा लेती। उसे कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता जैसे उसकी उंगली भी सरयू सिंह के लंड के साथ सुगना की बुर में चली जाएगी इतना आवेग था सरयू सिंह के लंड में।

सुगना हाफ रही थी। ऐसी उत्तेजना उसने जीवन में पहली बार महसूस की थी। कजरी कभी उसके होठों को चूमती कभी उसके गालों को सहलाती कभी अपने हाथों से उसकी चुचियों को सहलाती। अपनी चुचियों पर अपनी सास और अपने प्रिय बाबुजी की हथेलियां एक साथ पाकर सुगना सिहर उठी।उसकी बुर में कसाव आ गया वह स्खलित होते हुए बोली

बाबूजी... "आआआआआ…..ई….असहिं….आ..आ…सासु....माआआआआआ….आ ईईईई"

वह अपने पैर सीधा करना चाह रही थी परंतु सरयू सिंह का लंड अब भी और गहराइयां खोज रहा था। वह उसकी अंतरात्मा में उतर जाना चाहते थे।सुगना की उत्तेजक कराह ने सरयू सिंह को स्खलन पर मजबूर कर दिया और उनके लंड ने अपनी पहली धार सुगना के गर्भाशय पर छोड़ दी।

सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाल लिया और अपने चिर परिचित अंदाज में अपने वीर्य से अपनी प्यारी बहू को भिगोने लगे। तभी उन्हें कजरी का ध्यान आया उन्होंने अपने लंड की दिशा घुमा ली और अपने पुराने खेत को भी उसी तरह खींचने की कोशिश की जिस तरह वह अपने आंगन की क्यारी सींच रहे थे।

परंतु दुर्भाग्य यह था की सुगना के शरीर में लगा हुआ इंजेक्शन खेत की जुताई और सिंचाई होने के बावजूद बीजारोपण में अक्षम था।

वीर्य स्खलन समाप्त होते ही उनकी हथेलियां कजरी और सुगना की चुचियों पर लगे वीर्य को बराबरी से फैलाने की कोशिश करने लगीं इसी दौरान लाइट आ गई।

अचानक आई रोशनी की वजह से सभी की आंखें मूंद गई परंतु सरयू सिंह इस अद्भुत दृश्य को देखना चाहते थे। उन्होंने अपनी आंखें खोल दी और अपनी दोनों नंगी प्रेमिकाओं को एक दूसरे से सटे और अपने वीर्य से भीगा हुआ देखकर अभिभूत हो गए। कजरी भी अब अपनी आंखें खोल कर सुगना को निहार रही थी।

परन्तु सुगना ने अपनी आंखें ना खोली। वह पूरी तरह शर्मसार थी। उसने पास पड़ा तकिया अपने चेहरे पर डाल लिया परंतु उसके खुले खजाने पर सरयू सिंह और कजरी का पूरा अधिकार और नियंत्रण था। वह दोनों उसकी खूबसूरत और कोमल शरीर को सहला रहे थे। सुगना की चुदी हुई फूली बुर को देखकर कजरी से न रहा गया उसने उसे चूम लिया। सुगना को यह अंदाजा न था उसने अपनी जांघें सिकोड़ी परंतु कजरी की जीभ को प्रेम रस चुराने से ना रोक पाइ उसने कहा..

"बाबूजी बत्ती बंद कर दीं"

सरयू सिह अपना झूलता हुआ लंड लेकर बिस्तर से उठे और उन्होंने ट्यूब लाइट बंद कर दी। कमरे में जल रहा नीला नाइट लैंप थोड़ी-थोड़ी रोशनी कमरे में फैला रहा था। सुगना अब उठ कर सिरहाने टेक लगाकर बैठ चुकी थी। कजरी उसकी नंगी जांघों को सहला रही थी। सरयू सिंह भी सुगना के दूसरी तरफ आकर बैठ गए थे। वह बेहद थके हुए थे। उसने सुगना को अपने सीने से लगा लिया और उसके गालों पर चुंबन लेते हुए बोले…

"तोहन लोग के बीच अतना प्यार बा हमरा आज मालूम चलल।

कजरी ने कहा..

"रहुआ आज भी ओकरा चूची पर गिरा देनी हां सुगना बाबू के इच्छा कैसे पूरा हुई?."

सुगना भी अब हाजिर जवाब हो चली थी उसने मुस्कुराते हुए कहा

"सासु मां अभी त रात बाकीये बा" और अपनी आंखें शरारत से मीच लीं।

सुगना की बात सुनकर सरयू सिंह और कजरी सुगना की तरफ मुड़ गए। उनकी नंगी जांघे सुगना कोमल जांघों पर आ गयीं। उन्होंने सुगना के गाल को चूम लिया। वह उन दोनों को जान से प्यारी हो गई थी। आज रात सुगना ने कजरी के मन में कई दिनों से उठ रही काम इच्छाओं को पूर्ण किया था और एक अलग किस्म की उत्तेजना को जन्म दिया था.

सरयू सिंह और कजरी दोनों सुगना के दोनों गालों को चूमे जा रहे थे तथा अपनी हथेलियों से वीर्य से सने सुगना की चुचियों को सहला रहे थे।

सुगना को आज की रात बहुत कुछ देखना और सीखना था।


तभी सुगना की मधुर आवाज सुनाई पड़ी..

"बाबूजी आपन स्टेशन आवे वाला बा"

ट्रेन में बैठे सरयू सिंह भी आज रात का ही इंतजार कर रहे थे। अपनी पूरी यात्रा को याद करते करते उनके लंड में तनाव भर चुका था। कजरी ने उनके जांघों के बीच उभार को महसूस कर लिया। सरयू सिंह अपनी कामुक दुनिया से लौटकर हकीकत में आ चुके थे। हरिया ने सारा सामान उठाया और सरयू सिंह कजरी के साथ ट्रेन की गेट पर आ गए। सुगना अपने ससुर द्वारा दी गई भेंट सूरज को लेकर खुशी खुशी उनके पीछे आ गई।

घर पहुंचने के बाद गांव वालों के आने-जाने का ताता लग गया। सरयू सिंह जैसा प्रभावशाली और मजबूत आदमी आज हॉस्पिटल में 2 दिन रह कर वापस आया था। सभी लोग उनका कुशलक्षेम पूछने उनके दरवाजे पर आ रहे थे। हरिया के परिवार वाले आगंतुकों का स्वागत कर रहे थे इधर कजरी और सुगना अपने घर को व्यवस्थित करने का प्रयास कर रही थीं।

सुधीर वकील भी उनका हालचाल घर में आया हुआ था यह वही वकील था जिसने सरयू सिंह पर केस किया परंतु अब वह उनका दोस्त बन चुका था।

सुधीर ने पूछा

"सरयू भैया तोहरा जैसा मजबूत आदमी कईसे हॉस्पिटल के चक्कर में पड़ गईल हा"

सरयू सिंह को कोई उत्तर न समझ रहा था उन्हें पता था उन्हें जो तकलीफ हुई थी वह सुगना को जरूरत से ज्यादा चोदने के कारण हुयी थी। सरयू सिंह हकीकत बयां कर पाने में असमर्थ थी उन्होंने मन मसोसकर कहा

"लागता अब हमनी के बुढ़ापा आ जायी…" सरयू सिंह मुस्कुराने लगे। अंदर आगन में सुगना और कजरी ने उनकी यह बात सुन ली और कजरी ने हंसते हुए कहा

"कुंवर जी के मुसल हमेशा ओसही रही. पूरा रास्ता खड़ा रहल हा….दुइये तीन दिन में तोरा खातिर बेचैन हो गइल बाड़े"

सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा

"आज उनका के खुश कर दीयायी"

"सुगना बेटा उनका ले मेहनत मत करवइह"

सरयू सिंह खाना पीना खाने के पश्चात दालान में आराम करने चले गए आज उनकी इच्छा एक बार फिर सुगना से संभोग करने की थी परंतु लज्जावश उन्होंने यह बात न बोली।

कुछ देर बाद कजरी दालान में आई उसने कुँवर जी के पैर दबाए और जाने लगी। सरयू सिंह ने कहा...

"सुगना बाबू से दवाइयां और दूध भेज दीह. तनि शहद भी भेज दीह मीठा खाये के मन करता"

कजरी ने सुगना से कहा..

"कुंवर जी के दूध के साथ दवाई खिला दीह मीठा में तनी आपन शहद चटा दीह" इतना कहकर कजरी ने अपना चेहरा घुमा लिया और मुस्कुराने लगी।

सुगना ने सूरज को दूध पिलाया और उसे कजरी के हवाले कर अपने बाबू जी की सेवा में निकल पड़ी। शहद चटाने की बात ने उसके मन मे कामुकता को जन्म दे दिया था। सुगना मन ही मन मुस्कुरा रही थी और अपने बाबूजी के कमरे की तरफ बढ़ रही थी...

शेष अगले भाग में।

 
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जब तक सुगना अपने बाबूजी को दूध पिलाने के लिए उनके पास पहुंचे सोनू का हाल चाल ले लेते है...

सोनू तेज कदमों से लाली के घर की तरफ भागता जा रहा था वह आइसक्रीम को रास्ते में पिघलने से रोकना चाहता था और उसे अपनी लाली दीदी के होठों में पिघलते हुए देखना चाहता था। कुछ ही देर में वह लाली के दरवाजे पर खड़ा दरवाजा खटखटा रहा था….

"2 मिनट रुक जाइए आ रहे हैं"

लाली के बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आ रही थी.."

"ठीक है दीदी"

"दीदी" शब्द सुनकर लाली ने सोनू की आवाज पहचान ली परंतु वह इस स्थिति में नहीं थी कि जाकर तुरंत दरवाजा खोल दे पर लाली सोनू को इंतजार भी नहीं कराना चाहती थी।

लाली बाथरूम में पूर्ण नग्न होकर स्नान का आनंद ले रही थी सोनू के आने के बाद अचानक ही उसके शरीर में सिहरन बढ़ गई। चुचियों पर लगा साबुन साफ करते करते उसकी चूचियां तनाव में आने लगी निप्पल खड़े हो गए। चूचियों पर लगे साबुन का झाग नाभि को छूते हुए दोनों जांघों के बीच आ गया था लाली की हथेली जैसे उस साबुन के झाग के साथ साथ स्वतः ही जांघों के बीच आ गयी और उसने अपनी रसीली बुर को छू लिया। उसकी जांघों के जोड़ पर जितना पानी था उससे ज्यादा उस मखमली बुर के अंदर था। जो अब रिस रहा था।

सोनू के आगमन ने लाली को उत्तेजित कर दिया था।

लाली लाख प्रयास करने के बावजूद अपने शरीर पर लगा साबुन साफ नहीं कर पा रही थी आज वह इत्मीनान से स्नान करने के मूड में थी परंतु सोनू के आकस्मिक आगमन ने उसे जल्दी बाजी में नहाने पर मजबूर कर दिया था परंतु धन्य हो वह रेलवे का नल जिस पर पानी थोड़ा-थोड़ा ही आ रहा था।

अंततः लाली ने यह फैसला किया कि वह अपनी नाइटी पहन कर जाकर दरवाजा खोल देगी और वापस आकर इत्मीनान से स्नान करेगी।

लाली ने जल्दी-जल्दी अपना अर्ध स्नान पूरा किया और अपनी लाल रंग की बेहद खूबसूरत नाइटी पहन कर बाहर आ गई। एकमात्र वही वस्त्र था जिसे लेकर वह बाथरूम में गई थी जो उसके शरीर पोछने और ढकने दोनों के काम आता था। दरअसल राजेश नाइटी, गाउन और अंतर्वस्त्र का बेहद शौकीन था वह लाली के लिए तरह-तरह की नाइटी और नाइट गाउन लाया करता था आखिर वही उसके सपनों की रानी थी जिसे सजा धजा कर वह कामकला के विविध रंग देखता था।

लाली ने दरवाजा खोला …

सोनू लाली को लगभग भीगी हुई अवस्था में नाइटी पहने देखकर सन्न रह गया. उसका ध्यान लाली की चुचियों पर चला गया जो पूरी तरह भीगी हुई थी . लाल रंग की नाइटी उस पर चिपक कर उन्हें और भी आकर्षक रूप दे रही थी. लाली के कड़े निप्पल उस नाइटी का आवरण छेद कर बाहर आने को तैयार थे. सोनू कुछ बोल नहीं पाया जुबान उसके हलक में अटक गई जब तक वह कुछ सोच पाता तब तक लाली ने कहा…

"सोनू बाबू थोड़ी देर बैठो मैं नहा लेती हूँ "

सोनू कुछ बोला नहीं उसने सिर्फ अपनी गर्दन हिलाई और अपने सूखे मुख से थूक गटकने का प्रयास करने लगा लाली। धीमे कदमों से बाथरूम के अंदर प्रवेश कर गयी परंतु वापस जाते समय उसके गोल नितंब लय में हिलते हुए सोनू के मन में हलचल पैदा कर गए।

कुछ ही देर में बाथरूम से पानी गिरने की आवाज फिर से आने लगी सोनू बेचैन हो गया उसका ध्यान न चाहते हुए भी उस पानी की आवाज की तरफ जा रहा था जो उसकी नंगी लाली दीदी के शरीर पर गिर रहा होगा। क्या लाली दीदी नंगी होकर नहा रही होंगी? या उन्होंने वह नाइटी पहनी हुई होगी? सोनू अपनी उधेड़बुन में खोया हुआ था. पता नहीं भगवान ने उसे कौन सी शक्ति दी उसके कदम धीरे धीरे बाथरूम के दरवाजे की तरफ बढ़ने लगे. रेलवे का दरवाजा कितना अच्छा होगा यह आप अंदाजा लगा सकते हैं।

अंततः सोनू को वह दरार मिल गई जिससे उसे जन्नत के दर्शन होने थे। उसकी पुतलियां फैल गई और उस छोटे से दरार से उसने नारी का वह रूप देख लिया जो सोनू जैसे नवयुवक को मर्द बनने पर मजबूर कर देता।

लाली पूरी तरह नंगी होकर पीढ़े पर बैठकर नहा रही थी। लाली पूरी तरह नंगी थी परंतु दरवाजे की तरफ उसका दाहिना हिस्सा था उसकी दाहिनी चूँची उभरकर दिखाई पड़ रही थी तथा उसकी मुड़ी हुई जाँघे अपने खूबसूरत आकार का प्रदर्शन कर रही थीं।

लाली को यह आभास नहीं था की सोनू उसे नहाते हुए देखने की हिम्मत कर सकता है पर सोनू भी अब बड़ा हो चुका था और उसका लंड भी ।

लाली बेफिक्र होकर अपनी चुचियों पर लगा साबुन धो रही थी तथा अपनी जांघों के बीच उस अद्भुत गुफा को भी साफ कर रही थी जो हर मर्द की लालसा थी।

सोनू उत्तेजना से कांप रहा था वह डर कर वापस चौकी पर बैठ गया। कुछ देर बाद उसने फिर हिम्मत जुटाई और एक बार फिर दरवाजे पर जाकर उसी दरार पर अपनी आंख लगाने लगा तभी लाली ने दरवाजा खोल दिया सोनू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई।

सोनू का मुंह खुला का खुला रह गया उसके हाव-भाव को देखकर लाली ने यह अंदाज लगाया की सोनू निश्चय ही उसे देखने के लिए यहां आया था लाली सब कुछ समझ गई पर उसने सोनू को शर्मसार न किया और बोली…..

"सोनू बाबू कुछ चाहिए क्या"

सोनू की जान में जान आई उसने अपना सिर झुका लिया और तेजी से भागते हुए आइसक्रीम के पैकेट की तरफ गया और उसे हाथ में लेकर बोला

"दीदी आइसक्रीम फ्रिज में रखना है पिघल जाएगी।"

लाली ने उसे किचन में रखें फ्रिज को दिखाया और मुस्कुराते हुए कहा " फ्रिज में रख दो मैं 5 मिनट में कपड़े बदल कर आती हूं"

सोनू ने लाली को अपने कमरे में जाते हुए देखा वह लाली के कामुक शरीर से बेहद प्रभावित हुआ था। उसके लंड में अब भी सिहरन कायम थी।

लाली के कमरे का दरवाजा आसानी से बंद नहीं होता था दरअसल कभी इसकी जरूरत भी नहीं पड़ती थी। परंतु आज लाली दरवाजे को बंद करना चाहती थी उसने प्रयास किया परंतु असफल रही।

कमरे के अंदर उसकी पुत्री रीमा सो रही थी। लाली ने दरवाजा सटा दिया और अपने शरीर पर पड़ी नाइटी को उतार कर पूर्ण रूप से नग्न हो गई उसने उसी नाइटी से अपने शरीर को पोछा। उसे सोनू का ध्यान आया क्या वह बाथरूम में उसे नंगा देखने के लिए आया था यह सोच कर उसका तन बदन सिहर उठा।

सोनू चौकी पर बैठे-बैठे लाली के कमरे की तरफ ही देख रहा था वह दोबारा दरवाजे पर जाकर अपनी बेइज्जती करवाने का इच्छुक नहीं था। वह मन मसोसकर अपनी कल्पनाओं में ही लाली को कपड़े बदलते हुए देखने लगा।

उधर लाली अलमारी पर रखे जैतून के तेल के डिब्बे को उठाने गई पर डिब्बा फिसल कर नीचे गिर पड़ा। अंदर हुई आवाज ने सोनू को मौका दे दिया और वह लाली के दरवाजे के करीब आकर अंदर झांकने लगा।

अंदर का दृश्य देखकर सोनू के सारे सपने एक पल में ही पूरे हो गए लाली पूरी तरह नीचे झुकी हुई थी और गिरे हुए जैतून के तेल के डिब्बे को उठा रही थी उसके भरे भरे गोल और गदराये नितंब सोनू की आंखों के ठीक सामने थे। लाली की गांड तो नितंबों ने छुपा ली थी परंतु लाली की बुर बालों के आवरण के पीछे से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी।

बाल उसे पूरी तरह ढकने में असमर्थ थे लाली की बुर् के दोनों होंठ उसकी बुर को सुनहरा आकार दे रहे थे और उन होठों के बीच से लाली का गुलाबी छेद सोनू को आकर्षित कर रहा था।

लाली की नजर अपने दोनों पैरों के बीच से दरवाजे पर पड़ी उसे वहां सोनू के होने का एहसास हुआ लाली तेजी से उठ खड़ी हुई उसने अपनी बुर तो छुपा ली पर अपने मदमस्त यौवन का अद्भुत नजारा सोनू की आंखों के सामने परोस दिया। भरे भरे गोल नितंब पतली कमर और भरा भरा सीना…..आह सोनू सिहर उठा। ऊपर वाले ने लाली को भरपूर जवानी थी जिसका नयन सुख उसका मुंह बोला भाई सोनू उठा रहा था।

लाली और सोनू दोनों उत्तेजना के शिकार हो चले थे अब जब सोनू ने लाली के नग्न शरीर का दर्शन कर लिया था और यह बात लाली जान चुकी थी उसमें सोनू को और उत्तेजित करने की सोची उसने अपना एक पैर बिस्तर पर रखा और अपने हाथों से अपनी जाँघों और पैरों पर जैतून का तेल मलने लगी। लाली यहां भी ना रुकी उसने अपनी चुचियों पर भी तेल मला तथा अपनी जाँघों के अंदरूनी भाग तक अपनी हथेलियों को ले गयी। एक पल के लिए उसके मन में आया की वह अपनी जांघों को फैलाकर अपनी बुर के दर्शन सोनू को करा दे परंतु उसे यह छिछोरापन लगा। बेचारी लाली को क्या पता था उसके खजाने का दर्शन सोनू अब से कुछ देर पहले कर चुका था।

स्वाभाविक रूप से ही आज लाली ने सोनू को भरपूर खुशियां प्रदान कर दी थीं। लाली ने अपने हाथ रोक लिए और अपने कपड़े पहनने शुरू कर दीये। सोनू अपनी लाली दीदी को देखकर भाव विभोर हो चुका था और अपने हाथों से अपने लंड को सहला रहा था।

लाली की नग्न काया पर एक-एक करके वस्त्रों के आवरण चढ़ते गए और उसकी सुंदर लाली दीदी हाल में आने के लिए कदम बढ़ाने लगी सोनू अपनी सांसों को नियंत्रण में किए हुए चौकी पर आकर बैठ गया।

लाली ने बड़ी आत्मीयता से कहा सोनू

"बाबू तुमको बहुत इंतजार करवा दिए"

"सुगना कहां चली गई"

सोनू ने हॉस्पिटल का पूरा वृतांत लाली को सुना दिया लाली और सोनू अब सामान्य हो चले थे उत्तेजना का दौर धीमा पढ़ रहा था। सोनू की सांसें भी अब सामान्य हो रही थीं।

लाली ने झटपट सोनू और अपने लिए लिए खाना निकाला और उसके बगल में बैठ कर खाना खाने लगी।

लाली ने बमुश्किल 1- 2 कौर खाए होंगे तभी उसकी बेटी रीमा रोने लगी हालांकि रीमा अब 2 वर्ष की हो चुकी थी परंतु उसे सुलाते समय लाली को अब भी अपनी चूचियां पकडानी पड़ती थीं। लाली अपना खाना छोड़कर रीमा की तरफ भागी और उसे अपनी चूचियां पिलाकर सुलाने लगी।

लाली को आने में देर हो रही थी उधर खाना ठंडा हो रहा था। सोनू ने आवाज दी

"दीदी खाना ठंडा हो रहा है रीमा को लेकर यहीं आ जाइए"

लाली ने रीमां को गोद में उठाया और अपनी चूचियां पकड़ाये हुए ही लेकर हाल में आ गई उसने अपनी चुचियों को आंचल से ढक रखा था।

लाली सोनू के बगल में बैठ गई और रीमा को सुलाने का प्रयास करने लगी परंतु उसके दोनों ही हाथ रीमा को सुलाने में व्यस्त थे अभी खाना खा पाना उसके बस में न था तभी सोनू ने एक निवाला लाली के मुंह में डालने की कोशिश की…

लाली ने अपना सुंदर मुंह खोला और उस निवाले को स्वीकार कर लिया उसे सोनू पर बेहद प्यार आया कितना अच्छा था सोनू।

सोनू बाबू तुम खाना खा लो मैं रीमा को सुला कर खा लूंगी

दीदी मैं अपने हाथ से खिला देता हूं ना खाना ठंडा हो जाएगा

लाली मुस्कुराने लगी और बोली…

आज अपनी लाली दीदी पर खूब प्यार आ रहा है होली के दिन तो मुझको पकड़ कर अपनी सुगना दीदी से रंग लगवा रहे थे

दीदी पकड़म पकड़ाई में तो आपको भी अच्छा लग रहा था क्या आप गुस्सा थीं ? सोनू ने मासूमियत से पूछा

नहीं पगले अपने सोनू बाबू से कोई गुस्सा होगा क्या तू तो इतना प्यार करता है मुझे। लाली ने उसके गालों को प्यार से चुम लिया।

लाली में इस बार निवाला लेते समय उसकी उंगलियों को चूस लिया था..

सोनू की उंगलियों को लाली के सुंदर होठों का यह स्पर्श बेहद उत्तेजक और आकर्षक लगा वह बार-बार लाली से इसकी उम्मीद करने लगा लाली ने भी उसे निराश ना किया जब भी सोनू उसे खिलाता वह उसकी उंगलियों को चूम लेती कभी अपने होंठों के बीच लेकर चुम ला देती सोनू को लाली का वह स्पर्श सीधा अपने लंड पर प्रतीत हो रहा था जो अब पूरी तरह तन कर खड़ा था और जांघों के बीच उधार बनाए हुए था।

खाना समाप्त होने के पश्चात लाली ने कहा

सोनू बाबू अपने जीजा जी के लुंगी पहनकर आराम कर लो

सोनू ने मन ही मन अपनी तुलना अपने जीजा जी से कर ली और उनकी लुंगी पहनकर हॉल में लगी चौकी पर लेटने की तैयारी करने लगा लाली रीमा को लेकर अंदर अपने कमरे में आ गई।

सोनू बिस्तर पर लेट कर आराम करने लगा तभी उसे बिस्तर के नीचे कुछ गड़ने का एहसास उसने बिस्तर हटाकर देखा वहां पर कुछ पतली पतली किताबें पढ़ी हुई थी सोनू ने उत्सुकता बस किताब अपने हाथ में ले ली परंतु पन्ने पलटते ही उसके होश एक बार फिर उड़ गए।

वह किताब एक सचित्र कामुक कहानियों की पुस्तक की जिसमें देसी विदेशी लड़कियों को अलग-अलग सेक्स मुद्राओं में दिखाया गया था और कई तरीके की उत्तेजक कथाओं के मार्फत कामुक पुरुषों और युवतियों की उत्तेजना जागृत करने का प्रयास किया गया था।

सोनू ने अपने सिरहाने की दिशा बदल दी अब उसके पैर लाली के दरवाजे की तरफ से और वह लेट कर उस किताब को देखने लगा उसका लंड एक बार फिर तन कर खड़ा हो गया।

जैसे-जैसे सोनू के लंड में खून का प्रवाह बढ़ता गया उसका दिमाग शांत होता गया वह पूरी तन्मयता से किताब के अंदर बनी नंगी लड़कियों के अंदर खोता गया परंतु जो नग्नता उन्होंने अब से कुछ देर पहले देखी थी वह उसके दिलो-दिमाग पर चढ़ी हुई थी। फोटो में एक से एक सुंदर लड़कियां थी परंतु सोनू को लाली से ज्यादा कोई भी खूबसूरत नहीं दिखाई पड़ रही थी। परंतु अब अपना कच्छा खिसका कर लंड को सहलाने लगा बल्कि अपनी मुठीयों में भरकर उसे तेजी से आगे पीछे करने लगा। उसे इस बात का आभास न रहा की लाली कभी भी यहां आ सकती है। उत्तेजना के अतिरेक में लूंगी का पतला कपड़ा जाने कब लंड के ऊपर से हट गया।

नियति आज लाली और सोनू के बीच सारी दीवार गिरा देना चाहती थी अचानक लाली को पेशाब करने की इच्छा हुई और वह न चाहते हुए भी उठकर अपने दरवाजे के पास आ गई।

उसके कानों में "लाली दीदी" की कामुक कराह सुनाई पड़ रही थी उसने अपना सर दरवाजे से बाहर कर सोनू को देखा जो बेफिक्र होकर अपने सुकुमार पर सुदृढ़ लंड को मसल रहा था।

लाली की आंखें फटी रह गई अब से कुछ घंटों पहले उत्तेजना का जो खेल खेल उसने सोनू को दिखाया था नियति उसे प्रत्युत्तर में उसी खेल को दिखा रही थी। सोनू अपने लंड को लगातार आगे पीछे कर रहा था और उसके मुख से "लाली दीदी" का नाम धीमे स्वर में आ रहा था। सोनू का लंड नितांत ही कोमल पर बेहद खूबसूरत था लाली के होठों में एक मरोड़ से उत्पन्न हुई वह अपने पति राजेश का लंड तो कई बार चुसती थी परंतु सोनू का लंड चूसने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त था कितना सुंदर था वह बेहद मासूम कोमल और तना हुआ।

एक बार के लिए लाली के मन में इच्छा हुई कि वह अचानक ही कमरे में प्रवेश कर सोनू को रंगे हाथों पकड़ ले परंतु उसने अपने आप को रोक लिया वह भी उत्तेजना में डूब चुकी थी उसकी बुर पनिया गई थी।

सोनू के हाथों की गति बढ़ती गई और अचानक उसने अपनी कमर के नीचे से पीले रंग की पेंटी निकाली जो लाली अब से कुछ घंटों पहले नहाने के पश्चात सुखाने के लिए बाथरूम के सामने रस्सी पर डाली थी।

सोनू के लंड से वीर्य धारा फूट पड़ी और उसने लाली की पेंटी में अपना सारा माल भर लिया। लाली को अब जाकर यह बात समझ में आ रही थी कि सारे पुरुष स्त्रियों की पेंटी में जाने कौन सा रस पाते हैं। राजेश भी पेंटी का दीवाना था और अब यह छोटा सोनू भी उसकी पैंटी पर अपना वीर्य गिरा कर तृप्त हो गया था।

सोनू फटाफट बिस्तर से उठा और वह पेंटिं मोड़ कर खूंटी पर टंगे अपने पैंट की जेब में डाल ली और बिस्तर पर आ कर वापस लेट गया।

लाली ने दरवाजा खोला और हाल में प्रवेश कर गयी सोनू आंखें बंद कर लेटा हुआ था।

लाली बाथरूम गई और वापस आ गई तथा किचन में चाय बनाने लगी इसी दौरान जब सोनू बाथरूम गया तो लाली ने अपनी पेंटी उसकी जेब से निकालकर छुपा ली।

तभी दरवाजे पर घंटी बजी और लाली ने पुकारा

कौन है

दरवाजे पर राजेश खड़ा था….

सोनू ने राजेश की आवाज पहचान ली…

वह थोड़ा घबराया और आनन-फानन में जल्दी से हाल में आया।

उसने राजेश के चरण छुए और तभी उसकी निगाह चौकी पर रखी उस गंदी किताब पर गई उसने राजेश की नजर बचाकर उसे उसकी ही लूंगी से ढक दिया और राजेश के अंदर जाते ही उसे वापस उसी जगह पर रख दिया जहां से उसने वह किताब ली थी।

सोनू यथाशीघ्र वहां से निकल जाना चाहता था।

अब तक लाली चाय बना चुकी थी। चाय पीने के पश्चात सोनू ने लाली और राजेश से विदा ली और बाहर आने के बाद अपने पैंट की जेब चेक की जिसमें उसने अपनी लाली दीदी की चूत का आवरण अपने वीर्य से भिगोकर रखा हुआ था।

अपनी जेब पर हाथ जाते हैं वह सन्न रह गया जेब से पैंटी गायब थी वह घबरा गया वह पेंटी किसने निकाली? क्या लाली दीजिए ने? क्या उन्होंने उसे हस्तमैथुन करते हुए देख लिया?

हे भगवान यह क्या हो गया वह अपने मन में अफसोस और उत्तेजना लिए हॉस्टल की तरफ चलता जा रहा था.

उधर सुगना अपनी जांघों के बीच उत्तेजना लिए और अपने बाबूजी सरयू सिंह को खुश करने के लिए दूध और दवाइयां लेकर उनके कमरे में पहुंच गई राजेश और लाली से मिलने के पश्चात वह रह-रहकर कामूक ख्यालों में हो जाया करती थी।

"बाबूजी ली दूध पी ली"

सुगना ने अपनी मधुर आवाज में पुकारा परंतु सरयू सिह सो गए थे। शायद हॉस्पिटल में भी जा रहे दवाओं की वजह से वह थोड़ा सुस्त हो गये थे। अब से कुछ ही देर पहले अपना तना हुआ लंड लिए सुगना का इंतजार कर रहे थे पर अब उनके चेहरे पर सुकून भरी नींद थी।

सुगना ने अपनी उत्तेजना पर नियंत्रण कर लिया और सरयू सिंह के माथे को सहलाते हुए उन्हें उठाया दवाइयां खिलाई और दूध पिलाया।

वह कजरी का आग्रह पूरा न कर पाई । सरयू सिह की स्थिति उसकी जांघों के बीच रिस रहा शहद चाटने लायक न थी। सुगना ने पूरी आत्मीयता से उनके पैर दबाये और वो पुनः एक सुखद नींद सो गए।

अगले दिन सुगना की मां पदमा, सुगना की दोनों छोटी बहनों सोनी और मोनी के साथ सरयू सिंह के घर पर आ गई उनका यह आना अकस्मात न था। निश्चय ही वह सरयू सिंह को देखने के लिए यहां आई थीं।

सोनी और मोनी युवावस्था की दहलीज पर खड़ी थीं। प्रकृति के गूढ़ रहस्य उन्हें पता चल चुके थे। जांघो के बीच की दिव्य चीज का ज्ञान उन्हें ही चुका था और उसकी उपयोगिता भी यह अलग बात थी कि उन्होंने उसका उपयोग आज तक न किया था। भगवान ने उन्हें सुंदरता उसी प्रकार दी थी जैसे सुगना और पद्मा को। ऐसा प्रतीत होता था जैसे पदमा की फैक्ट्री से निकलने वाली कलाकृतियों का में कामुकता का सृजन नियति ने विशेष प्रयोजन के लिए किया था।

सुगना पुत्र सूरज को देखते ही सोनी ने उसे अपनी गोद में ले लिया सूरज वैसे भी बहुत प्यारा बच्चा था। सोनी जैसी सुंदरी की गोद में जाकर वह और भी खिल गया सोनी भी बड़ी आत्मीयता से उसे अपने सीने से लगाए हुए थी।

सूरज करते हुए अपने छोटे पैर सोनी के पेट पर मार रहा था तथा वह सोनी के हाथों पर बैठकर सोनी के सानिध्य का आनंद ले रहा था तभी सोनी का ध्यान सूरज के दाहिने अंगूठे पर गया उस अंगूठे पर नाखून लगभग नहीं के बराबर था और नाखून की जगह एक गुलगुला सा उभरा हुआ भाग था वह स्वता ही ध्यान आकर्षित कर रहा था।

सोनी उस विलक्षण अंगूठे को देखकर खुद को रोक न पाए और उसे अपने अंगूठे और तर्जनी से कौतूहल वश सहलाने लगी...

अचानक सोनी को अपनी चूँचियों पर कुछ गड़ने का एहसास हुआ। उसने सूरज को तुरंत अपने दोनों हाथों में उठाया और सुगना से बोला…

दीदी लगता है बाबू पेशाब करेगा

तो करा देना..

सोनी ने सूरज का कच्छा उतारा और अपने हाथों का सहारा देख कर उसे सु सु कराने लगी…

सूरज की मुन्नी तन गई थी पर वह सुसु नही कर रहा था..

अंत में सोनी ने परेशान होकर उसका कच्छा ऊपर किया और उसे सुगना की गोद में देकर सरयू सिह के पास चली गयी जहां उसकी माँ पद्मा घूंघट ओढ़े हुए बैठी हुई थी…

नियति आंगन में बैठी हुयी सोनी और सूरज को निहार रही थी सोनी ने सूरज के जिस अंगूठे को सहलाया था वह नियति ने किसी विशेष प्रयोजन के लिए बनाया था जिसे सोनी ने अनजाने में छू दिया था… नियति मुस्कुरा रही थी सोनी ने अनजाने में ही गलत उतार छेड़ दिया था जिस की सरगम उसे सुनाई पड़नी थी...

शेष अगले भाग में….
 

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