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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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सुगना ने जब से सांड को बछिया की तरफ आकर्षित होते हुए देखा था तब से ही वह यह बात सोचती कि क्या संभोग के लिए उम्र का कोई अंतर नहीं है? वह सांड जब गाय और बछिया दोनों को चोदने की सोच सकता है तो क्या बाबूजी के मन में भी ख्याल आता होगा? जितना ही वह सोचती उतना ही उत्तेजित होती। वैसे भी सरयू सिंह सुगना के ससुर नहीं थे । हां एक रिश्ता जरूर बन गया था जो उनके और कजरी के बीच बने नाजायज रिश्ते की वजह से था।

सुगना ने अपने बाबूजी का मन टटोलने का फैसला कर लिया। वह अपनी बछिया की तरह नंगी तो नही घूम सकती थी पर उसने मन ही मन कुछ सोच लिया था।

सरयू सिंह और कजरी सुगना की मनोदशा से अनभिज्ञ थे। वह अभी भी उन्हें मासूम सी दिखाई पड़ती जिसके साथ उन्होंने न चाहते हुए भी अन्याय कर दिया था। अभी भी उन्हें ऊपर वाले पर भरोसा था पर सुगना अब और इंतजार करने की इच्छुक नहीं थी।

सुबह-सुबह आंगन में लगे हैंडपंप पर उकड़ू बैठ कर सुगना बर्तन धो रही थी सरयू सिंह दालान से आंगन में आ गए। सुगना ने अपनी सास कजरी का ब्लाउज पहना हुआ था जो उसकी मझोली चूचियों पर फिट नहीं आ रहा था। ब्लाउज थोड़ा नीचे लटका हुआ था और चुचियों का उभार साफ साफ दिखाई पड़ रहा था। काम करने की वजह से उसने अपने पल्लू पर ध्यान न दिया। वह उसके चेहरे को तो ढक रहा था पर चूचियों का ऊपरी भाग खुली हवा में सांस ले रहा था। ब्लाउज सुगना के निप्पलों का सहारा लेकर लटका हुआ प्रतीत हो रहा था।
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सरयू सिंह सुगना की चुचियों को देख कर अवाक रह गए। वह गोरी गोरी चूचियों के आकर्षण में खोए हुए कुछ देर तक उसी अवस्था में खड़े रहे। एक पल के लिए वह यह भूल गए कि वह अपनी मासूम बहू सुगना की चूँची पर ध्यान गड़ाए हुए हैं। सुगना उनकी कामुक दृष्टि को अपनी चुचियों पर महसूस जरूर कर रही थी। उसे घूंघट का फायदा मिल रहा था वो सरयू सिंह की निगाहों को पढ़ रही थी।

सुगना ने अनजान बनते हुए कहा

" बाबूजी कुछु चाहीं का?"

" ना बेटा एक लोटा पानी दे द दतुअन कर लीं" उन्होंने बेटा कह कर अपनी कामुक निगाहों के पाप को धोने की कोशिश की। पर उनके मन मस्तिष्क पर बहु की चुचीं का रंग चढ़ चुका था। आज उन्होंने जो देखा था उसने उन्हें हिला दिया था वह वापस दालान में आ गए और अपने तनाव में आ रहे लंड को ध्यान भटका कर शांत करने की कोशिश की। यह पाप है….. यह पाप है उन्होंने मन ही अपने दिमाग को समझाया और वापस अपने कार्य में लग गए.

सुगना बर्तन धो कर गिलास में दूध लेकर सरयू सिंह के पास आयी। उसने सरयू सिंह को दोहरा झटका दे दिया। उसका घूंघट उठा हुआ था.
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सुगना का बेहद सुंदर चेहरा, कोमल गुलाबी होंठ और कजरारी आंखें सब कुछ एक साथ …… बेहद खूबसूरत … सरयू सिंह सुगना की खूबसूरती में खो गए। सुगना ने घूंघट जरूर लिया था पर उसने सिर्फ अपने माथे को ढका हुआ था। सरयू सिंह उसे एकटक देखते रह गए। वह अपनी मां पदमा की प्रतिमूर्ति थी। सरयू सिंह एक बार फिर जड़ हो गए।

"बाउजी दूध ले लीं" सुगना की मधुर आवाज ने उनकी तंद्रा तोड़ी। सरयू सिंह ने कांपते हाथों से दूध ले जिया। आज सरयू सिंह जैसे मजबूत और बलिष्ठ आदमी के हाँथ अपनी सुंदर बहु के हांथों दूध लेने में कांप रहे थे। यह कंपन निश्चय ही उनके मन मे आयी गलत भावना की वजह से था।

सरयू सिंह का अंतर्मन हिला हुआ था। वह खुद को समझा भी नहीं पा रहे थे। वह पद्मा को याद करते हुए दूध पीने लगे।

पदमा सरयू सिंह के जीवन में आई दूसरी महिला थी सरयू सिंह उस समय अपनी जवानी के चरम पर थे 25 - 26 वर्ष की आयु कसरती शरीर चेहरे पर चमक और अपनी कजरी भाभी से मिले नारी शरीर का अनुभव और कामकला के ज्ञान ने उन्हें एक आदर्श पुरुष की श्रेणी में ला दिया था। सफेद धोती कुर्ता और अंग वस्त्र में वह एकदम संभ्रांत पुरुष दिखाई पड़ते। ऊपर से पटवारी का पद वह पूर्णतयः वर योग्य पुरुष थे पर उन्होंने विवाह न किया था। वैसे भी उनकी शारीरिक जरूरतें कजरी से पूरी हो ही जा रही थी।

सरयू सिंह की ननिहाल बेलापुर में उनके मामा की लड़की की शादी थी। सरयू सिंह ने वहां जाने के लिए पूरी तैयारी की और सज धज कर बेलापुर के लिए निकल पड़े।

गांव लगभग 10- 15 किलोमीटर दूर था उन्होंने पैदल ही जाने का फैसला किया उन्हें साइकिल से चलना अच्छा नहीं लगता था. अपने लंबे लंबे कदमों से उन्होंने वह दूरी डेढ़ -दो घंटे में तय कर ली. वह बेलापुर गांव के तालाब के पास आ चुके थे. यह तालाब बेहद मनोरम था यूं कहिए तो वह बेलापुर की शान था. वहां पर दो अलग- अलग घाट थे एक महिलाओं के लिए और दूसरा पुरुषों के लिए। सौभाग्य की बात थी बेलापुर जाते समय महिलाओं वाला घाट रास्ते में ही पड़ता था।

सरयू सिंह की नारी शरीर से विशेष आसक्ति थी वह ना चाहते हुए भी एक बार तालाब में नहा रही महिलाओं को नजरें बचाकर देख लेते थे। छोटी बड़ी सब प्रकार की महिलाएं उनके नजरों से एक बार जरूर गुजरतीं। आज भी तालाब के करीब आते ही उनके दिल में हलचल होने लगी।

सुबह 9-10 बजे का वक्त था कई सारी जवान युवतियां और लड़कियां तालाब में नहा रहीं थी। सरयू सिंह ने अपनी निगाहों से तालाब में नहा रही जवानीयों को अपनी निगाहों में कैद करना चाहा। वह चलते-चलते बीच-बीच में एक झलक उन्हें जरूर देख लेते। धीरे धीरे उनके नैनसुख का वक्त खत्म हो रहा था तालाब का दूसरा किनारा करीब आ चुका था तभी कुछ लड़कियों के चिल्लाने की आवाज आई

"बचाव….बचाव…..उ डूब जाइ केहू बचा ले…"

ढेर सारी लड़कियों के चीखने की आवाज आ रही थी। सरयू सिंह के कदम रुक गए उन्होंने पीछे मुड़कर देखा सारी लड़कियां उन्हें ही पुकार रही थीं। वाह भागकर तालाब तक गए। उन्होंने कंधे में टंगा हुआ बैग और लाठी जमीन पर रखी और कुर्ता खोल कर तालाब में कूद पड़े। उन्होंने अपनी धोती नहीं खोली उन्हें उन लड़कियों के सामने इस तरह नंगा होना अच्छा नहीं लगा।

वह तालाब के अंदर तैरते हुए उस जगह तक पहुंच गए जहां एक लड़की पानी में अपनी जान बचाने के लिए हाथ पैर मार रही थी।
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वह कभी वह पानी के भीतर चली जाती, कभी उसका सर बाहर दिखाई पड़ता। सरयु सिंह उसके करीब पहुंच गए वह पदमा थी उन्होंने उसे अपनी मजबूत भुजाओं से पकड़ लिया। पद्मा अमरबेल की तरह उनसे लिपट गई। पर यह क्या पदमा ऊपर से पूरी तरह नग्न थी। उसकी चूचियां सरयू सिंह के कंधे पर थी सरयू सिंह ने अपने दाहिने हाथ से पदमा के नितंबों को सहारा दिया और बाये हाथ से पानी को हटाते हुए किनारे की तरफ आ गए।

उनके बलिष्ठ शरीर पर पदमा जैसी सुंदर और गोरी युवती का अर्धनग्न शरीर बेहद आकर्षक लग रहा था। यदि वहां पर कैमरा होता तो निश्चय ही किसी हिंदी फिल्म का सीन बन सकता था।

किनारे पर खड़ी सारी लड़कियां बेहद खुश थी सिर्फ एक लड़की डरी हुई खड़ी थी वह पदमा की सहेली थी।

दरअसल पदमा और उस लड़की ने तालाब के अंदर ही एक दूसरे से छेड़खानी शुरू कर दी थी उन्होंने अपने ब्लाउज उतार कर एक दूसरे की चूचियों का आकार नापना और खेलना शुरू कर दिया था। इसी दौरान पदमा का पैर फिसल गया था और वह गहरे पानी में चली गई थी। सभी लड़कियां उस बेचारी लड़की को कोस रहीं थीं।

सरयू सिंह किनारे पर आ चुके थे
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उन्होंने पदमा को जमीन पर लिटा दिया और वहां से हटकर अपना कुर्ता पहनने लगे। पदमा अभी भी बेसुध थी लड़कियों ने फिर चिल्लाया

"भैया ई सांस नइखे लेत तनि देखीं ना। ए पद्मा उठ …...उठ ना…"

सरयू सिंह एक बार फिर पदमा के पास आ गए वह पीठ के बल लेटी हुई थी एक पल के लिए वो उसकी पतली कमर और चौड़ा सीना तथा उस पर दो मझौली आकार की चुचियां ( जिन पर अब किसी लड़की का झीना लाल दुपट्टा पड़ा हुआ था ) देखकर वह उसकी खूबसूरती में खो गए।

पद्मा का मुख मंडल बेहद खूबसूरत पर शांत पड़ा हुआ था सरयू सिंह नीचे झुके उन्हें आज की आरपीआर तकनीकी आती थी उन्होंने पदमा के पेट को दबाया पानी की एक धार पदमा के मुंह से निकलकर बगलमें गिर पड़ी। यही क्रिया दो-तीन बार कर उन्होंने पदमा के पेट में जमा हो गया पानी बाहर निकाल दिया। पदमा अभी भी होश में नहीं थी उन्होंने अपने दोनों हाथ उसकी चुचियों के ठीक नीचे रखें और उसके सीने को दबाने लगे पदमा के कोमल होठों को खोल कर उन्होंने उसे मुंह से सांस देने की भी कोशिश की।

उनकी यह कोशिश रंग लाई और पदमा ने अपनी आंखें खोल दें उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ तो उसने अपनी दोनों गोरी बाहें अपनी चुचियों पर ले गयी।

सरयू सिंह खुश हो गए उनकी मेहनत रंग लाई थी। सारी लड़कियां खुशी से चहकने लगींऔर सरयू सिंह मुस्कुराते हुए वापस अपनी लाठी के पास आ गए।

वह तालाब से बाहर आ गए लड़कियां उन्हें लगातार देखे जा रही थीं उन्होंने हाथ हिलाकर उनका अभिवादन किया और अपने मामा के घर चल पड़े। उनके दिमाग में पदमा की सुंदर और कमनीय काया घूमने लगी विशेषकर मासूम सा कोमल चेहरा, उसका कटि प्रदेश और मदमस्त चूचियाँ।

सरयू सिंह पदमा को पहले से भी जानते थे। वह उनके मामा के ठीक बगल में अपने मां-बाप के साथ रहती थी। बचपन में भी जब वह मामा के घर आया करते दोपहर में सारे बच्चे एक साथ खेलते जिसमें एक पदमा भी थी। पर आज पदमा पूरी तरह जवान थी उसका विवाह कुछ समय पहले हुई हुआ था और गवना भी हो चुका था। शायद वह भी सरयू सिंह के मामा की लड़की की शादी में ही आई हुई थी। पदमा को यौन संभोग का सुख मिल चुका था।

सरयू सिंह जब भी अपने मामा के घर आंगन में जाते आसपास की लड़कियां और युवा औरतें उन्हें घेर लेतीं। ऐसा नहीं था कि वह सब की सब उनसे चुदने के लिए आतुर रहती थीं अपितु यह एक सामान्य प्रक्रिया होती। लड़कियां उनसे बातें करतीं। वैसे भी वह गांव के ऐसे व्यक्ति थे जो नौकरी कर रहे थे और प्रतिष्ठित भी थे। इस छोटी सी उम्र में जो उपलब्धियां उन्होंने हासिल की थी वह उन्हें उस उम्र के पुरुषों से अलग खड़ा करती थीं।

शाम को एक बार फिर सरयू सिंह अपने मामा के आंगन में चारपाई पर बैठे हुए थे और महिलाओं से गिरे हुए थे उन लड़कियों में पदमा भी थी।

एक लड़की ने कहा

"ए पदमा देख सरयू भैया आईल बाड़े जो तनि सेवा वेवा कर"

कुछ लड़कियों ने पदमा को ढकेल कर सरयू सिंह के सामने कर दिया। पदमा शर्मा रही थी। उसने एक सुंदर लहंगा और चोली पहना हुआ था। चोली के अंदर उसकी गोल गोल चूचियाँ झांक रही थी पर सरयू सिंह को वह बिना कपड़ों के ही दिखाई पड़ रही थी उनकी आंखों में सुबह की नग्न छवि कैद हो गयी थी।

सरयू सिंह ने यह जानने की कोशिश की कि आखिर पदमा इतनी गहराई में कैसे चली गई थी पीछे से लड़कियों की खुश फुसाहट सुनाई पड़ी..

"जवानी फुटल बा नु चूँची लड़ावतली हा लोग"

पदमा एक बार फिर लड़कियों के पीछे छुप गयी।

द्मा ने हिम्मत जुटाकर सरयू सिंह से कहा "चली हमरा घरे, अपना हाथ से हलवा खिलाईब" तभी उसकी सहेली ने कहा

"हां भैया जाइं बहुत बढ़िया हलवा बनावेले तनी हमरो के भेज दिहे"

सरयू सिंह हंसने लगे पर पद्मा ने कहा

"हम जा तानी घरे आइब जरूर"

इतना कहकर पदमा अपने घर की तरफ चली गई। सरयू सिंह कुछ देर तक अपनी मामी से बात करते रहे और फिर वापस घर के बाहर आकर पुरुष समाज में शामिल हो गए पर उनके दिमाग में अब भी पदमा घूम रही थी। कभी वस्त्रों में कभी बिना वस्त्रों के। वह पदमा की चुचियों की तुलना कजरी से तुलना कर रहे थे। निश्चय ही पदमा की चूचियां कजरी से ज्यादा खूबसूरत और तनी हुयीं थी। कजरी की चूचियां तो उन्होंने तब देखी थी जब वह मां बन चुकी थी।

सरयू सिंह के मामा उनका परिचय गांव के और लोगों से करा रहे थे उन्हें सरयू सिंह पर हमेशा से गर्व था।

पदमा शादीशुदा थी और यौन सुख भोग चुकी पर फिर भी आज जब सरयू सिंह उसे बचा रहे थे उसे उनके बलिष्ठ शरीर का अंदाजा हो गया था वह उनके प्रति आसक्त हो रही थी। नई-नई विवाहताओं में सम्भोग को लेकर बड़ी उत्तेजना होती है। मनपसंद पुरुष का संसर्ग पाकर उनकी चूत तुरंत चुदने के लिए आतुर हो जाती है बशर्ते उस पुरुष से उन्हें प्यार हो और चुदने में मानसिक ग्लानि और प्रतिरोध ना हो। पदमा के केस में दोनो ही बातें अनुकूल थीं। अभी कल ही वह अपने पति से शुरू कर आई थी परंतु आज फिर गरमा चुकी थी

वह सरयू सिंह से बचपन से ही प्रभावित थी पर आज तो उसके मन में सरयू सिंह के प्रति प्रेम आदर और समर्पण तीनों ही भाव चरम पर थे उसकी स्वयं की उत्तेजना भी जागृत थी। सात दिनों तक मायके में अकेले रहने के बाद उसकी नई नई चुदी हुई बुर अपना साथी खोज रही थी। पद्मा ने सरयू सिंह से चुदने का मन बना लिया वह हलवा बनाते हुए अपने सरयू भैया का इंतजार करने लगी।

सरयू सिंह के मन में भी पदमा के प्रति कामुकता जाग चुकी थी। आग और फूस दोनों तैयार खड़े थे। बस उन्हें करीब लाने की देर थी।


इधर सरयू सिंह के गिलास का दूध खत्म हो गया था। आखरी घूंट में जब उन्होंने हवा निगली तो वह अपनी सोच से बाहर आ गए और मन ही मन मुस्कुराने लगे।

पदमा और पदमा की पुत्री सुगना, उन दोनों ने उनकी यादों और वर्तमान पर कब्जा जमा लिया था। वह आंखें खोल कर सुगना को ढूंढने लगे। उन्होंने सुगना का नाम एक दो बार पुकारा उत्तर ना आने पर वह आंगन में चले गए। उन्होंने एक बार फिर कोमल स्वर में सुगना का नाम पुकारा तभी कोठरी के अंदर से सुगना की मधुर आवाज आई

" बाबूजी आवतानी तनिक कपड़ा बदल लीं"

एक पल के लिए सरयू सिंह ने अपने विचारों में सुगना को कपड़े बदलते हुए सोच लिया। एक अजीब सी सनसनी उनके लंड तक पहुँच गयी। अभी उनके दिमाग में पद्मा छायी हुयी थी। एक पल के लिए उन्हें लगा कि वह कोठरी की खिड़की से सुगना को देख लें पर अभी उनका जमीर इतना भी नहीं गिरा था। वह उनकी प्यारी बहू थी और अभी भी बेटी स्वरूप थी।

तभी दरवाजे पर आवाज आई

"सरयू भैया, सरयू भैया' सुधीरवा साला केस कईले बा।

"रुक आवतानी ओकर बेटी चोदो इतना हिम्मत भईल बा"

सरयू सिंह की मर्दाना आवाज गरज उठी जिसे अंदर कपड़े बदल रही सुगना ने सुन लिया। उसने सिर्फ अपने काम की बात ही सुना "बेटी चोद"। वह भी तो किसी की बेटी थी क्या सरयू सिंह उसे चोदने के बारे में सोच सकते हैं पेटीकोट का नाड़ा बांधते सुगना के हाथ कांप रहे थे उसकी कोमल बुर सुगना की मनोदशा पढ़ रही थी।

सुधीर पास के गांव का ही एक 30 32 वर्षीय लड़का था जिसने हाल ही में वकालत की पढ़ाई एन केन प्रकारेण पूरी की थी। सरयू सिंह से उसका विवाद जमीन को लेकर था। सरयू सिंह स्वयं पटवारी थे और वह वकील दोनों एक दूसरे को हमेशा कमजोर ही आंकते थे। कद काठी में सुधीर सरयू सिंह से निश्चय ही कमजोर था पर वकालत पड़े होने की वजह से वह कागजी कार्यवाही में उनसे आगे था।

खेत विवाद का उचित समाधान न मिलने की वजह से उसने शहर में केस कर दिया था। सरयू सिंह उसकी इस हरकत से आगबबूला थे और घर के बाहर आकर अपने साथी के साथ मिलकर आगे की रणनीति बनाने लगे।

सारा दिन उस केस की बारीकियां समझने में भी बीत गया। सूरज ढल रहा था। जब वह घर पहुंचे वो पूरी तरह थके हुए थे। कजरी ने थाली में पानी लेकर उनके पैर धोए। तब तक सुगना हलवा बनाकर ले आयी। यह हलवा खाते उन्हें पद्मा का वह आमंत्रण याद आ गया जब पद्मा ने उन्हें अपने घर हलुआ खाने के लिए बुलाया था…


वह पद्मा के साथ बितायी उस कामुक शाम की यादों में खो गए…
 
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अपनी बहू सुगना (पदमा पुत्री) के हाथों बना मुलायम हलवा खाते खाते सरयू सिंह फिर पदमा की यादों में खो गए। मामा के आँगन में बैठे हुए सरयू सिंह को पद्मा ने अपने घर हलवा खाने का निमंत्रण दे दिया था वह मन ही मन पदमा के नजदीक आने की सोचने लगे।

वैसे भी अपने मामा के आंगन में इतनी देर तक लड़कियों और औरतों के बीच में बैठकर सरयू सिंह अब बोर हो चले थे ऊपर से पद्मा ने अपने घर हलवा खाने बुलाकर एक उम्मीद जगा दी थी वह घर से बाहर आकर दालान में मर्दो के बीच बैठ गए पर उनके दिलो-दिमाग में पदमा की गोरी चूचियां ही छाई रहीं ।

शाम हो चली थी चिड़ियों की चहचहाहट बढ़ रही थी सरयू सिंह अपने मामा के घर के सामने टहल रहे थे। वह कभी-कभी टहलते हुए पदमा के घर के तरफ भी आ जाते अचानक अपने घर के बाहर पदमा खड़ी हुई दिखाई पड़ी सरयू सिंह से नजर मिलते ही उसने उन्हें अंदर आने का इशारा किया सरयू सिंह धीरे धीरे पदमा के घर की तरफ बढ़ चले
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आगन के दरवाजे को खोलकर सरयू सिंह पदमा के आंगन में आ चुके थे उन्होंने पदमा की मां के चरण छुए और पास पड़ी चारपाई पर बैठ गए। पदमा अपनी मां को आज सुबह तालाब में हुआ वाकिया बताने लगी पदमा की मां बेहद खुश थी और सरयू सिंह की शुक्रगुजार भी। उन्होंने कहा

"बबुआ तू पदमा के बचा लेला हा तू सच में हमनी खातिर भगवान हवा"

सरयू सिंह अपनी तारीफ सुनकर फूले नहीं समा रहे थे. पद्मा भागकर हलवा ले आई सरयू सिंह अपनी उंगलियों से हलवा खाने लगे तभी भागती हुई एक छोटी सी लड़की आई और बोली

"चाची चला सबकेहु तोहरा के बुलावत बा" सरयू सिंह के मामा के यहां विवाह से संबंधित कोई कार्यक्रम था जिसके लिए वह लड़की पदमा की मां को बुलाने आई थी। पदमा की मां धीरे-धीरे उठ कर खड़ी हो गई और सरयू सिंह के मामा के घर जाने लगीं। उन्होंने पदमा से कहा

"तू ताला बंद करके आ जाइह"

अपनी मां के जाने के बाद पदमा और चंचल हो गयी उसने सरयू सिंह से

"पूछा हलवा मुलायम बानू"

सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे उन्होंने पदमा को छेड़ दिया

"ताहरा से कम बा"

पदमा शर्म से लाल हो गई. उसने कहा

"रउआ कइसे मालूम"

" सबरे के बात भुला गइलू"

"ओह त रहुआ हमरा के ओ घरी छुवत रहनी हां"

अब बारी सरयू सिंह की थी उनकी कटोरी में हलवा खत्म हो चुका था उन्होंने कहा "पदमा सच में तू बहुत सुंदर बाड़ू हम इतना सुंदर लईकी पहली बार देख ले रहनी हा"

"का"

"तहरा जइसन लईकी"

"साँच साँच बताई हमारा के देखत रहनी की हमार ……" उसने अपनी निगाह अपनी चुचियों की तरफ कर दी थी।

सरयू सिंह ने कहा

"तू और तहर ई दोनो बहुत सुंदर बा"

पद्मा शर्म से लाल हो गयी। वह हलवा की कटोरी उठाने के लिए झुकी और एक बार फिर सरयू सिंह की निगाहें उसकी चूची ऊपर चली गयीं। उन्होंने कहा

"देखा केतना सुंदर बा"

पदमा को उसकी खुद की चुचियां झाकतीं हुई दिखाई दे गई। वह शर्म से अपने गाल लाल किए हुए सरयू सिंह के सामने खड़ी हो गयी। सरयू सिंह ने अंतिम दांव खेल दिया

" ए पदमा, एक बार फेर दिखा द ना"

" हेने आयीं"

पद्मा ने सरयू सिंह को आंगन के कोने में बुलाया और इधर उधर देख कर अपनी चुचियों को ब्लाउज से आजाद कर दिया। लाल रंग की ब्लाउज से पद्मा की दोनों चूचियां आजाद होकर सरयू सिंह के सामने हिल रही थीं और उन्हें खुला आमंत्रण दे रही थीं। पदमा की निगाहें झुकी हुई थीं वह अपने दोनों हाथ से ब्लाउज को पकड़े हुए थी।
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सरयू सिंह ने बिना कुछ कहे उसे अपने आलिंगन में ले लिया। पदमा की नंगी चूचियां उनके सीने से छूने लगीं। पदमा के हाथ नीचे आ गए वह सावधान मुद्रा में खड़ी थी पर सरयु सिंह ने आगे बढ़कर उसके गालों को चूम लिया। पदमा शांत थी पर सरयू सिंह ने कोई ढिलाई नहीं बरती वह उसके होठों को चूमने लगे। पदमा अपनी जगह पर कसमसा रही थी पर उनका सहयोग नहीं कर रही थी। वह मन ही मन इस हो रही घटना पर विचार कर रही थी क्या यह ठीक है? वह अपनी सोच में डूबी हुई थी उधर सरयू सिंह की हथेलियां उसकी चुचियों का आकार नापने लगीं। जब सरयू सिंह की उंगलियों ने उसकी चुचियों के निप्पल को दबाया तब पदमा अपनी सोच से बाहर आयी। उसका मन और तन अब पूरी तरह मिलन के लिए तैयार था। उसकी हथेलियां सरयू सिंह की पीठ पर आ चुकी थीं। दोनों एक दूसरे में समा जाने के लिए तत्पर थे। पदमा की नई-नई चुदी हुयी बुर अपने होठों पर प्रेम रस लेकर अपने नए साथी का इंतजार कर रही थी।

सरयू सिंह के हाथ उसके नितंबों को छूने के लिए जैसे ही नीचे बढ़े एक बच्चे के आने की आहट सुनाई थी। पद्मा ने झट से अपना ब्लाउज नीचे कर लिया और सरयू सिंह से दूर हट गई। सरयू सिंह की धोती में खड़ा लंड उसने महसूस कर लिया था। आग लग चुकी थी बस उसमें पदमा और सरयू सिंह का जलना बाकी रह गया था...


सरयू सिंह के प्रति नियति शुरू से मेहरबान थी। वह अविवाहित जरूर थे पर नियति ने उन्हें उनकी कजरी भाभी से मिला दिया था जो उनका एक पत्नी की भांति ख्याल रखती थी। आज उन्हें एक और स्त्री के नजदीक आने का मौका मिल रहा था जो उनकी सुंदरता की पराकाष्ठा पर पूरी तरह खरी उतर रही थी। पदमा निश्चय ही कजरी से ज्यादा खूबसूरत और सुंदर और जवान थी।

अगले दिन सरयू सिंह के मामा की लड़की का तिलक जाना था। गांव के अधिकतर पुरुष उस तिलक में शामिल होने थे उन्हें लड़के वालों के घर जाना था।

सरयू सिंह को भी उस तिलक में जाना था पर आज सवेरे से ही उनके पेट में दर्द था। निकलने का वक्त हो चला था पर सरयु सिंह अपने पेट दर्द से परेशान थे।आखिरकार उनके मामा ने कहा

"जाए द तू एहिजे रहा" वैसे भी कुछ मर्दों को घर में रहना भी जरूरी होता था. सरयू सिंह अपने घर में रुक गए। पदमा के घर में उसकी मां और पिता ही रहते थे। पदमा का कोई भाई नहीं था। पड़ोसी होने की वजह से पदमा के पिता भी तिलक में शामिल होने चले गए। पदमा के घर और उनके मामा के घर में सिर्फ सरयू सिंह और उनके मामा का छोटा लड़का ही दो मर्द बचे थे बाकी सभी महिलाएं थीं।

शाम होते होते यह तय होने लगा की क्या आज बाहर सोना जरूरी है? सरयू सिंह की मामी ने कहा

"अरे दोनों जन भीतरे सुत रहा "

दरअसल सरयू सिंह के मामा के यहां तो विवाह में आए कई महिलाएं थीं परंतु पदमा के यहां पदमा और उसकी मा ही थीं। अंततः यह फैसला हुआ कि सरयू सिंह पदमा की दालान में सो जाएंगे और उनके मामा का लड़का घर में ही सो जाएगा। यह बात उचित भी थी और सभी को स्वीकार्य भी। सरयू सिंह मन ही मन खुश हो गए उधर पद्मा के चेहरे पर भी मुस्कान आ चुकी थी कुछ धमाल होने वाला था। नियति की साजिश कामयाब हो रही थी।

खाना खाने के पश्चात सरयू सिंह जब पद्मा के घर पहुंचे बाहर दालान में चारपाई पर मुलायम बिस्तर लगा हुआ था। उनके लिए विशेष रूप से नई चादर बिछाई गई थी। हल्की ठंड होने की वजह से ओढ़ने के लिए एक सुंदर लिहाफ भी रखा हुआ था जिसे अभी-अभी दीवान से निकाला गया लगता था। उसमें कुछ अजीब सी खुशबू आ रही थी।

पदमा उनका इंतजार ही कर रही थी। लालटेन की रोशनी में दोनों की नजरें मिलते ही आंखों ही आंखों में सारा कार्यक्रम तय हो गया। फिर भी सरयू सिंह ने पदमा को छेड़ ही दिया

"अकेले ही सुते के बा नु"

पदमा शर्मा गई और बोली

"थोड़ा देर अकेले ही सुत लीं"

यह कहकर वह अंदर चली गई उसकी मां की खासने की आवाज बाहर तक आ रही थी.

सरयू सिंह अपनी चारपाई पर लेटे हुए पदमा का ही इंतजार कर रहे थे। धोती के अंदर सरयू सिंह का लंड उन दोनों की बातचीत सुन चुका था और वह भी पदमा का इंतजार कर रहा था। सरयू सिंह के हाथों ने उसके इंतजार को और कठिन बना दिया था. वो उसे सहलाये जा रहे थे। वह पूरी उत्तेजना में तना हुआ अपनी बुर रूपी रजाई का इंतजार करने लगा जिसके अंदर वह हमेशा खुशहाल और मगन रहता था।

पदमा के कदमों की आहट सुनते सरयू सिंह सतर्क हो गए. पदमा अपने हाथ में दिया लिए हुए दालान में आ चुकी थी। दीए की रोशनी में उसका चेहरा दमक रहा था। उसने अपनी नजरें झुकायी हुई थीं। सरयू सिंह के करीब आते ही उसने अपने हाथ से दिया बुझा दिया और उसे जमीन पर रख दिया। काली अंधियारी रात में अब वह सरयू सिंह को दिखाई नहीं पड़ रही थी। वह चुपचाप आकर सरयू सिंह के बगल में लेट गई।

सरयू सिंह ने करवट लेकर उसके लिए जगह बना दी। पदमा की पीठ सरयू सिंह के सीने से हट गई थी। बातचीत करने का समय खत्म हो चुका था। सरयू सिंह ने अपना बायां हाथ पदमा के सिर के नीचे से ले जाकर उसके सर को सहारा दे दिया और इस सहारे के एवज में उसकी दाईं चूची पर अपना कब्जा जमा लिया।

सरयू सिंह की खुशी का ठिकाना ना रहा पद्मा ने ब्लाउज नहीं पहना था। उसकी नंगी चूँची पर हाथ फेर कर सरयू सिंह आनंद में खो गये। वह पदमा के प्रति कृतज्ञ थे जिसने ब्लाउज न पहनकर उनकी परेशानी कम कर दी थी अन्यथा इस अंधेरी रात में ब्लाउज के हुक खोलना समय बर्बाद करने जैसा ही था। अपनी चूँची के सहलाने पर पद्मा ने कोई आपत्ति न की अपितु अपनी बढ़ती हुई धड़कनों से अपनी रजामंदी अवश्य जाहिर कर दी। सरयू सिंह की दाहिनी हथेली ने बायीं चुची पर अपना कब्जा जमा लिया। वह अपनी दोनों हथेलियों से पदमा की दोनों चूचियों को सहलाने लगे और उसके गर्दन और कानों पर लगातार चुंबन करने लगे।

पदमा के रोएं खड़े हो गए। वह सिहर उठी। सरयू सिंह का मर्दाना स्पर्श बिल्कुल अलग था। वह उसके पति की तुलना में ज्यादा सख्त और मजबूत था। पदमा आनंद में डूबने लगी। सरयू सिंह ने अपनी बाई हथेली को चुचियों की सेवा में छोड़कर दाहिनी हथेली को नीचे ले आए पद्मा की बुर कब से उसका इंतजार कर रही थी। नितंबों को छु पाना अभी कठिन हो रहा था। सरयू सिंह के मजबूत हाथ सुगना के पेट और नाभि को सहलाते हुए नीचे आने लगे। पदमा के पेटीकोट में उनके हाथों को नीचे जाने से रोक लिया। वह पदमा को पूरी तरह नग्न करने के इच्छुक नहीं थे। बाहर दालान में यह खतरनाक हो सकता था। उन्होंने पेटीकोट से अपनी रंजिस खत्म कर दी और अपने हाथों को पदमा की जांघों पर लेकर चले गए। वह जांघों को सहलाते सहलाते उसकी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर की तरफ खींचने लगे।

कुछ ही देर में साड़ी और पेटीकोट पदमा के पेट तक आ चुके थे और पदमा के पेट के चारों तरफ एक घेरा बनाकर इकट्ठा हो गए। यह निश्चय ही पदमा को आरामदायक नहीं लग रहा होगा पर यह मजबूरी थी वैसे भी पदमा इतनी उत्तेजित थी कि उसे इन कपड़ों का आभास भी नहीं हो रहा था।

पदमा के कोमल नितम्ब और जाँघे पूरी तरह नग्न थीं सरयू सिंह की हथेलियां जांघों से होते हुए उसके जोड़ तक पहुंच गयीं।

घुंघराले घास के बीच से बहता हुआ चिपचिपा पानी का झरना उनकी उंगलियों से छू गया। वह पदमा की मादक बुर थी। पदमा की कोमल बुर को छूते ही पद्मा ने अपनी दोनों जाँघेंऊपर की तरफ उठायीं जैसे वह सरयू सिंह से हाथों को रोकना चाहती हो।

सरयू सिंह ने जैसे ही अपनी उंगलियां हटाई पद्मा ने अपनी जाँघे फिर फिर खोल दीं। उंगलियों और पदमा की कोमल बुर् का यह मेलजोल कुछ देर यूँ ही चलता रहा
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इधर लंड धोती सरका कर बाहर आ चुका था। सरयू सिंह ने अपनी कमर जैसे ही पदमा से सटाई उनका लंड पदमा की जांघों से टकराने लगा। पद्मा ने सरयू सिंह के अद्भुत लंड का आकार और तनाव महसूस कर लिया। उसकी सिहरन बढ़ गई। वह उसे छूने के लिए अपने हाथ उस पर ले गई पर वह अपनी हथेलियों से उसे पूरा न पकड़ पायी। पदमा की धड़कनें तेज थी सरयू सिंह की उंगलियां पदमा की बुर से प्रेम रस चुरा रही थीं जिसे वह उसकी बुर पर फैला रहे थे तथा उसकी गाड़ को भी सहला रहे थे। उन्हें गांड का छेद सहलाना बेहद उत्तेजक लगता था।

लंड अपनी जगह तलाश रहा था पद्मा भी बेचैन हो रही थी। वह अपने चूतड़ हिलाकर लंड को बुर के समीप लाना चाह रही थी। निशाना मिलने पर सरयू सिंह ने अपने लंड को अंदर दबाने की कोशिश पदमा चिहूक गयी। सरयू सिंह को एक बार ऐसा लगा जैसे उन्होंने गलत छेद में अपना लंड डाल दिया है। उन्होंने तुरंत उसे बाहर निकाला और एक बार फिर अपना दबाव बढ़ा दिया। खेल उल्टा हो गया था इस बार उनका लंड पदमा की गांड में जा रहा था। पदमा लगभग कराह उठी। उसने कहा

"सरयू भैया पहिल के में, ई दोसर छेद ह" सरयू सिंह को अफसोस हो गया. वह काम कला के पारखी थे पर आज पदमा जैसी सुंदरी के सामने अनाड़ी बन गए थे। दर असल पदमा की कोमल बुर ने आज उन्हें उतना ही प्रतिरोध दिखाया था जितना कजरी की गांड दिखाया करती थी।

उन्होंने एक बार फिर अपने लंड का निशाना पदमा की कोमल बुर पर किया और अपनी उंगलियों से अपने लंड और पदमा के बुर् के दाने को छूकर इस बात की तस्दीक भी कर ली कि उनका निशाना सही जगह पर है। पदमा मुस्कुरा रही थी। सरयू सिंह ने उसे चूमते हुए कहा

"पदमा हमरा के माफ कर दीह" इतना कहते हुए उन्होंने पद्मा के मुंह पर अपना हाथ रख लिया और लंड का दबाव बढ़ा दिया वह पदमा की बूर को चीरता हुआ अंदर प्रवेश कर गया। पदमा दर्द से बिलबिला उठी। उसकी आंखों में आंसू आ गए जो सरयू सिंह को दिखाई नहीं पड़ रहे थे पर हां पदमा के दांत सरयू सिंह की उंगलियों को काट रहे थे। पदमा हाफ रही थी। लंड का अभी आधा भाग ही अंदर गया था।

सरयू सिंह ने कुछ देर खुद को इसी अवस्था में रखा। वह पदमा को वापस सहलाने लगे। उसके जांघों और नितंबों को सहलाने से पदमा को दर्द से कुछ राहत मिली और वह सामान्य होने लगी। सरयू सिंह ने अपने हाथ उसके मुंह से हटा कर वापस उसकी चुचियों को सहलाना शुरु कर दिया। पद्मा ने लगभग कराते हुए कहा

"सरयू भैया तनी धीरे धीरे …..दुखाता" सरयू सिंह ने उसके कानों को चुम लिया और बोले

"थोड़ा इंतजार कर ल तहरा ई हमेशा याद रही" कुछ देर बाद सरयू सिंह ने अपने लिंग को आगे पीछे करना शुरू कर दिया. पदमा सातवें आसमान पर पहुंच गई. उसकी चूत ने इतना तनाव कभी महसूस नहीं किया था। वह लगातार प्रेम रस छोड़े जा रही थी। पदमा अपनी जांघों को कभी ऊपर करती कभी नीचे। सरयू सिंह अपने लंड को बार-बार आगे पीछे कर रहे थे। हर बार जब वह अंदर जाता वह सुगना की चूत में धीरे-धीरे आगे बढ़ जाता।
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कुछ ही देर की चुदाई में वह उसके गर्भाशय को छूने लगा। पद्मा से और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वह सरयू सिंह की उंगलियों को चूमे जा रही थी। कुछ ही देर में उसकी थरथराहट बढ़ गई। उसकी जांघें तनने लगीं।

वह कराह रही थी… सरयूऊऊऊ ….भैया…आईईईई अंम्म्म्ममम्म और वह हांफते हांफते स्खलित हो गई। सरयू सिंह उसे और चोदना चाह रहे थे पर यह संभव नहीं था। उसने अपनी कमर हटा ली और सरयू सिंह का लंड फक्क….की आवाज के साथ उसकी चूत से बाहर आ गया।

सरयू सिंह अभी भी अपना लंड उसकी बुर में रखना चाहते थे। पर पदमा की बुर संवेदनशील हो चुकी थी। पद्मा ने करवट ले ली और सरयू सिंह की तरफ हो गई। उसने सरयू सिंह को होठों पर चूम लिया और बोली

"सरयू भैया साँच में हमरा ई हमेशा याद रही"

सरयू ने कहा

"त हमरो यादगार बना द"

वह उन्हें चूमती रही और बोली

" तनी इंतजार कर लीं" वह अपने हाथों से उनके लंड को सहलाने लगी। लंड के आकार को महसूस कर वह आश्चर्यचकित थी और गनगना रही थी।

तभी अचानक पदमा के मां की खासने की आवाज आई। वह बड़ी जल्दी से चारपाई से उठी और अंधेरे में ही आंगन की तरफ भागी। जब तक सरयू सिंह अपनी टार्च जलाकर उसे जाने का रास्ता दिखाते पदमा नजरों से ओझल हो गई…

सरयू सिंह बिस्तर पर पड़े पड़े पदमा का इंतजार कर रहे थे पर उनका इंतजार लंबा हो रहा था। आधे घंटे से ज्यादा का वक्त बीत चुका था उनका तना हुआ लंड भी उदास होकर वापस अपने सामान्य आकार में आ चुका था। उसकी उम्मीद टूट चुकी थी। पद्मा की चूत का रस लंड पर सूख चुका था

सरयू सिंह की आंखें भी भारी हो रही थीं। पदमा के साथ कुछ देर पहले उन्होंने जो सुखद पल बिताए थे उसे याद करते हुए उनकी आंखें अब नींद के आगोश में आ रही थी। तभी बादलों की गड़गड़ाहट सुनाई पड़ी। इन महीनों में सामान्यता बारिश नहीं होती है परंतु आज अकस्मात ही बादलों की गड़गड़ाहट हो रही थी। कुछ ही देर में बिजली भी चमकने लगी। यह अजीब सा संयोग था। उनकी नींद एक बार फिर खुल गई। बाहर बह रही ठंडी हवा उन्हें अच्छी लग रही थी। देखते ही देखते बारिश शुरू हो गई। दालान में हवा के साथ साथ पानी के छींटे भी आ रहे थे।

सरयू सिंह अपनी चारपाई से उठ गए उन्होंने अपनी धोती ठीक की और चारपाई को खींच कर कोने में ले गए जिससे वह पानी के छीटों से बच सकें। अजीब मुसीबत थी। उनकी रात खराब हो रही थी। तभी अचानक आगन का दरवाजा खुला और पदमा एक बार फिर बाहर आ गई। पदमा को देखकर सरयू सिंह की खुशी सातवें आसमान पर पहुंच गई। उन्हें यह उम्मीद कतई नहीं थी कि इस भरी बरसात में पदमा इस तरह बाहर आ जाएगी। पदमा थोड़ा भीग भी गई थी। सरयू सिंह ने अपनी टॉर्च से उसे रास्ता दिखाया और वह उनके बिल्कुल समीप आ गई।

सरयू सिंह ने पदमा को अपने आलिंगन में ले लिया उसके शरीर पर पानी की बूंदे थी जो ठंडक का एहसास दिला रही थी। पद्मा ने कहा

"भैया भूसा वाला कमरा में चली वहां पुआल लागल बा"

सरयू सिंह उस कमरे की तरफ बढ़ चले पद्मा ने चारपाई पर पड़ी हुई चादर खींच ली. और उनके साथ कमरे में आ गयी। सरयू सिंह ने टॉर्च मारकर कमरे का मुआयना किया। कमरे में एक तरफ भूसा रखा हुआ था और नीचे कुछ पुआल बिछा हुआ था जिस पर चादर डालकर आराम से सोया जा सकता था। कमरे में एक खिड़की थी जिससे कभी-कभी बिजली की रोशनी आ रही थी। जब जब बिजली कड़कती कमरा रोशन हो जाता। अंदर आने के बाद पद्मा ने दरवाजा बंद कर दिया और सरयू सिंह के आलिंगन में आ गयी। उसके शरीर पर पानी की बूंदे देखकर सरयू सिंह ने उसे पोंछने की कोशिश की। उन्होंने अपनी धोती खोल ली और पदमा के चेहरे और कंधों को पोंछने लगे।

सरयू सिंह ने पदमा की साड़ी जो थोड़ा भीग गया थी उसे हटाने की कोशिश की। पद्मा ने कोई आपत्ति नहीं की और कुछ ही देर में पदमा कमर के ऊपर नग्न खड़ी थी। सरयू सिंह ने साड़ी को और भी खोलना चाहा कमर की गांठ खुलते ही साड़ी एक ही झटके में नीचे आ गयी। पद्मा ने पेटीकोट नहीं पहना था उसने साड़ी को सीधा ही कमर में बांध लिया था। साड़ी के हटते ही पदमा पूरी तरह नग्न हो गई।

सरयू सिंह को यह यकीन ही नहीं हुआ। अचानक बिजली कड़की और पदमा का नग्न शरीर उनकी आंखों के सामने आ गया। एक पल के लिए उन्हें लगा जैसे वह सपना देख रहे हैं। गोरी चिट्टी पदमा अपने सीने पर दो मझौली आकार की चूँचियां लिए उनके सामने खड़ी थी। सपाट पेट उस पर छोटी सी नाभि कमर का उभार और सुडौल जाँघे आह…. पदमा एक आदर्श कामुक नारी की तरह लग रही थी। जांघों के जोड़ पर काले बालों के पीछे फूली हुई हुई बूर बेजड़ आकर्षक लग रही थी।

सरयू सिंह उस खूबसूरती को देखकर मदहोश हो गए। उन्हें यह अहसास नहीं था कि वह स्वयं पदमा के सामने नग्न खड़े थे। बिजली की रोशनी जितनी पदमा के शरीर पर पड़ रही थी उतनी ही रोशनी उनके शरीर पर भी पड़ रही थी। पदमा सरयू सिंह के बलिष्ठ शरीर और उनके अद्भुत लंड को देख कर सिहर भी रही थी और मन ही मन उनकी मर्दानगी की कायल भी हो रही थी।

प्रकृति के बनाए दो अद्भुत नगीने एक दूसरे के सामने खड़े थे बिजली की गड़गड़ाहट से वह करीब आ गए और एक दूसरे से सट गए। सरयू सिंह का लंड एक बार फिर पदमा की नाभि से छूने लगा।

पदमा की चुचियां उनके सीने में समा जाने को बेताब थीं। सरयू सिंह पहली बार पदमा के नितंबों को पूरे मन से सहला रहे थे। नितंबों के बीच पदमा की गदरायी गांड पर

उनकी उंगलियां घूम रही थी उसकी गोरी पीठ भी सरयू सिंह की हथेलियों का इंतजार कर रही थी। एक दूसरे के आगोश में लिपटे हुए सरयू सिंह और पदमा के होंठ आपस में मिल गए।

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पदमा ने खुद को सरयू सिंह से अलग किया और पुवाल पर बिछी चादर पर आकर पीठ के बल लेट गई। पुवाल पर लेटी हुई नग्न सुंदरी की कल्पना मात्र से सरयू सिंह का लंड गनगना गया। उन्होंने पदमा की चूचियों पर टॉर्च मारी। श्वेत धवल चूचियाँ सांची के स्तूप की तरह तनी हुई थी। उस पर भूरा निप्पल स्तूप ले मीनार की भांति दिखाई पड़ रहा था। पद्मा ने तुरंत ही अपनी हथेलियां अपनी चुचियों पर ले जाकर उन्हें ढक लिया। सरयू सिंह ने टॉर्च का मुह बालों के पीछे छुपी बुर पर कर दिया। पद्मा के बुर की खूबसूरती बयां करने योग्य शब्द मेरे पास नहीं है वह अद्भुत थी। दो गोरी जांघों के बीच छोटे छोटे काले काले बालों के बीच पदमा की मखमली गुलाबी बुर शर्माते हुए झांक रही थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह सरयू सिंह के खड़े लंड को खुला आमंत्रण दे रही हो।पद्मा ने सिर्फ फिर एक बार अपनी हथेलियों से अपने बुर को ढक लिया।

सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे। एक सुंदर नवयौवना अपने अनमोल खजाने को छुपाने का प्रयास कर रही थी। उन्होंने अब अपनी टॉर्च का मुह पद्मा ने सुंदर चेहरे पर कर दिया। सुंदर काले बाल बिखरे हुए थे और उन बालों की बीच से पदमा का खूबसूरत चेहरा सरयू सिंह की आंखों में बस गया। टॉर्च की रोशनी चेहरे पर पढ़ते ही पद्मा ने अपनी दोनों हथेलियां अपनी आंखों पर रख लीं वह टार्च की रोशनी को सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही थी। पर वह यह भूल गई रोशनी में उसका बाकी बदन भी चमक रहा है।

सरयू सिंह ने कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना वाली कहावत चरितार्थ कर दी थी। उन्होंने टॉर्च का निशाना चेहरे की तरह किया था और पदमा के हाथों को मजबूर कर दिया था कि वह उसके चेहरे को ही ढके रहे परंतु इस दौरान पदमा की सुंदर चुची और कोमल बुर पूरी तरह खुले थे। पदमा को यह एहसास भी नहीं था कि सरयू सिंह उसके अनमोल खजाने को आंखों से ही लूट रहे हैं।

सरयू सिंह से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ। नियति ने आज जो संयोग बनाया था वह मिलन के लिए आदर्श था।
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पदमा की कोमल बुर जो अब से कुछ देर पहले एक अद्भुत चुदाई का आनंद ले चुकी थी एक बार फिर पनिया चुकी थी। सरयू सिंह ने और देर न की। पदमा पुआल पर लेट कर अपनी जांघें फैलाकर सरयू सिंह का इंतजार कर रही थी। सरयू सिंह ने अपनी टॉर्च बगल में रखी और पदमा की जांघों के बीच में आ गए।

अपना लंड पदमा की कोमल बुर् के मुहाने पर रख दिया। उन्होंने अपनी टार्च जलाई और पदमा के मुंह की तरफ देखते हुए अपने लंड का दबाव बढ़ाते गए। पदमा का मुंह खुलता गया आंखें बड़ी हो गई पर उसने सरयू सिंह के लंड को अपनी बुर में बड़े प्रेम से समाहित कर लिया।

लंड पूरा जाने के बाद पद्मा ने अपनी आंखें खोली और चेहरे पर मुस्कुराहट लायी। सरयू सिंह ने उसे चूम लिया। पद्मा ने कहा

"सरयू भैया, अब मैं भर चो……...लीं" पदमा में उत्तेजना में जिस शब्द का पहला भाग बोल दिया था वह सरयू सिंह के कानों में किसी कामुक पुकार की तरह सुनाई दिया। वह अत्यधिक उत्तेजित हो गए।

उन्होंने अपने लंड को आगे पीछे करना शुरू कर दिया। वह पदमा को चोदना शुरू कर चुके थे। जैसे जैसे बिजली कड़कती वह दोनों एक हो जाते उनके सीने आपस में सट बजाते पर सरयू सिंह की कमर नहीं रुकती वह पदमा को लगातार चोदे जा रहे थे।

बीच-बीच में वह टॉर्च जलाकर पदमा का चेहरा जरूर देख लेते जो अब आहें भर रही थी। कुछ ही देर में पदमा की जाघें फिर तनने लगीं। सरयू सिंह ने इस बार कोई ढिलाई देना उचित नहीं समझा वह बिना पदमा का इंतजार किए अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगे। पदमा थरथरा रही थी और अपनी जाघें सीधी कर रही थी पर सरयू सिंह लगातार उसे चोद रहे थे।

तभी पदमा की मां की आवाज एक बार फिर सुनाई पड़ी वह पदमा... पदमा... पुकार रही पद्मा ने भी चुदवाते हुए ही आवाज दी..

" मां रुक जा सरयू भैया के चादर बदल के आवतानी भीग गईल बा" पर बोलते समय उसकी आवाज कांप रही थी। सरयू सिंह इस दौरान भी चुदाई जारी रखे हुए थे। पदमा की कामुक कराह कमरे में गूंजने लगी।

सरयू सिंह स्वयं पदमा….पदमा... पुकार रहे थे पर उसे लगातार चोद रहे थे. कुछ ही देर में उन्होंने अपने लंड को उस कोमल बूर में जड़ तक डाल दिया। ऐसा लग रहा था जैसे वह उसकी नाभि में छेद को छूना चाहते हों।

परन्तु गर्भाशय के मुहाने पर जाकर उनके लंड ने दम तोड़ दिया वह अपना वीर्य स्खलित करने लगा। पदमा की चूत के अंदर लंड का फुलना पिचकना जारी था। पदमा हाफ रही थी पर सरयू भैया को चूमे जा रही थी। उसके गर्भाशय पर सरयू सिंह की मलाई बरस रही थी। पदमा तृप्त हो रही थी। उसी दौरान पुवाल के अंदर छिपे एक अनजान कीड़े ने शरीर सिंह के अंडकोष के ठीक बगल में जांघों पर काट लिया। सरयू सिंह दर्द से तड़प उठे। वह उस समय स्खलित हो रहे थे।

उत्तेजना और दर्द का यह मिलन अनोखा था। सरयू सिंह उस दर्द को भूल कर पदमा की मलाईदार चूत में अपनी मलाई भरते रहे। उन्होंने हाथ लगाकर उस कीड़े को हटाया। जब तक वह टॉर्च उठाकर उस कीड़े को देख पाते वह पुवाल में गायब हो गया पर जाते-जाते वह अपना निशान छोड़ गया। शरीर सिंह का ध्यान भटकते ही पद्मा ने पूछा

" भैया का भइल?"

" कुछो ना, लगाता तोहरा घर के निशानी मिल गईल"

सरयू सिंह का उफान ठंडा पड़ते ही उन्होंने पदमा को फिर चूम लिया और कहा "पदमा ई रात हमेशा याद रही"

" हमरो" पद्मा ने कहा। वह अपने कपड़े समेटने के लिए नीचे झुकी और सरयू सिंह के हाथ में रखी टॉर्च और दिमाग की टॉर्च एक साथ जल गयी। पद्मा के गोरे और गोल नितंबों के बीच से उसकी गुदांज गांड दिखाई पड़ गई। उन्होंने पद्मा के कूल्हों को चूम लिया।

पदमा उठ खड़ी हुई और मुस्कुराते हुए बोली "सबर करीं"

पदमा मुस्कुराते हुए आंगन में चली गई पर आज सरयू सिंह के जीवन में नई बहार आ गई थी….

सुगना द्वारा लाया गया हलवा खत्म हो चुका था..
सुगना की मधुर आवाज आयी
"बाबूजी का सोचा तानी?"

सरयू सिंह ने उत्तर देना उचित न समझा पर सुगना को देख मुस्कुराने लगे....
 
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उस दिन सुगना ने सरयू सिंह को दो - दो झटके दे दिए थे। सुबह हैंड पंप पर उसने अपनी चुचियों का ऊपरी भाग सरयू सिंह की नजरों के सामने परोस दिया था और कुछ ही देर बाद अपना सुंदर मुखड़ा अपने बाबूजी को दिखाकर उन्हें जड़ कर दिया था। और तो और शाम को हलवा खिला कर उसने स्वयं सरयू सिंह के मन मे अपनी माँ पद्मा की यादें ताजा कर दीं थी।
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सरयू सिंह भी सुगना में पदमा का रूप देखने लगे थे। उनका दिमाग अभी भी सुगना को अपनी बहू के रूप में ही देख रहा था पर उनकी कामुकता सुगना को पदमा के रूप में देख रही थी। सरयू सिंह के लंगोट में हलचल होने लगी थी। शाम को जब सुगना ने अपने हाथों से बनाकर उन्हें हलवा खिलाया था तब एक बार फिर सरयू सिंह मन ही मन सोच रहे थे कि काश रात में पद्मा की तरह सुगना भी उनकी चारपाई पर आ जाती वह अपनी कामुक सोच पर मन ही मन मुस्कुरा दिए उन्हें पता था यह एक कोरी कल्पना थी।

अगले कुछ दिन सरयू सिंह सुबह-सुबह हैंडपंप पर सुगना का इंतजार करते थे सुगना भी अपने बाबूजी की अंदरूनी इच्छा को पहचान चुकी थी। उसने उन्हें निराश न किया। सुबह-सुबह वह उनका दिन शुभ कर देती उसकी चुचियों का आकार दिन पर दिन ज्यादा दिखाई पड़ने लगा। सरयू सिंह की धोती का उभार भी उसी अनुपात में बढ़ रहा था। कामुकता का तापमान दोनों तरफ बढ़ रहा था। सुगना ज्यादा से ज्यादा समय अपने बाबू जी के करीब रहती और यही हाल सरयू सिंह का था। वह दोनों ढेर सारी बातें करते। कजरी को यह एहसास बिल्कुल भी नहीं था की सुगना और सरयू सिंह के बीच में इस प्रकार की नजदीकियां बढ़ रही हैं। वह सिर्फ इस बात से ही खुश थी की उसकी बहू सुगना अब खुश रहती थी।

सरयू सिंह और कजरी दोनों रात में जमकर चुदाई करते। सुगना कमरे से आ रही चारपाई की आवाज सुनकर यह तो समझ जाती की उसकी सास कजरी के जांघों के बीच काला नाग आगे पीछे हो रहा है परंतु वह न उसे चुदते हुए देख पा रही थी और न हीं सरयू सिंह के विशाल जादुई लंड के दर्शन कर पा रही थी।

होली के दिन उसने जो वासना का खेल देखा था वह उसके दिलो-दिमाग पर छाया जरूर था पर उसकी यादें अब कमजोर पड़ रही थी। वह उन दोनों को एक बार फिर देखना चाहती थी पर यह संभव नहीं हो रहा था। वह दोनों रात में दीया बुझा घर ही चुदाई किया करते थे.

इसी बीच एक दिन सुगना हैंड पंप पर लगी काई की वजह से फिसल गई। उसने अपनी हथेलियों से अपने शरीर का भार रोकना चाहा पर उसकी कोमल कलाई उसका भार न सह पाई। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी कलाई की हड्डी टूट गई थी। वह दर्द से कराह रही थी। कजरी भाग कर आई और उसके हाथों को आराम देने की कोशिश करने लगी। कुछ ही देर में सुगना के हाथों पर हल्दी चूना और प्याज लगाया गया पर यह आराम तभी तक था जब तक कि उसकी कलाई हिल नही रही थी।

जैसे ही उसकी कलाई हिलती सुगना दर्द से बिलख उठती। सरयू सिंह तक खबर चली गई। वह चौपाल से उठकर भागते हुए घर आ गए। अपनी बहू सुगना को कष्ट में देखकर उनके दिल में टीस सी उठ रही थी। उन्होंने आकर सुगना की कोमल हथेलियों को अपने हाथों में ले लिया और एक अर्ध कुशल डॉक्टर की भांति उसके दर्द का पता लगाने की कोशिश करने लगे।

जैसे ही सुगना की कोमल हथेलियां उनके हाथों में आई उनके शरीर में एक सनसनी फैल गई। कितनी कोमल थी सुगना अपनी मां पदमा से भी ज्यादा। वह सुगना की हथेलियों की कोमलता महसूस करते हुए खो से गए। तभी सुगना की मधुर आवाज आई …

"बाबू जी तनी धीरे से …….दुखाता" सुगना की यह मासूम सी मीठी आवाज उनके दिलोदिमाग पर छा गयी।

"अरे मोरा सुगना बाबू…मत रोआ ठीक हो जायी""

सुगना का कोमल और मासूम चेहरा देख सरयू सिंह में पनप रही कामुकता प्यार में बदल गई.

सरयू सिंह ने आज पहली बार सुगना को छुआ था. उनके स्पर्श में प्यार छुपा हुआ था जो कामुक न था पर सुगना के प्रति संवेदना को स्पष्ट जरूर करता था. उधर सुगना अपने बाबू जी से प्रभावित हो रही थी। वह मन ही मन उनके करीब आ रही थी उसका तन तो नजदीक आने के लिए तड़प ही रहा था.

बाहर रामू डाकिया दरवाजे पर खड़ा "सरयू भैया ….सरयू भैया.." पुकार रहा था.

सरयू सिंह बाहर आए और रामू से हालचाल लेने के बाद अपना सरकारी खत प्राप्त किया। पर यह क्या? यह तो कोर्ट में हाजिर होने का नोटिस था वह भी 2 दिनों बाद का। वकील सुधीर ने अपनी चाल चल दी थी। सरयू सिंह को कोर्ट में उपस्थित होना था जो उनके गांव से दूर शहर में था। उन्होंने सुधीर को कई गालियां दी परंतु उसकी चाल से बचाने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।

अंततः कोई रास्ता ना देख सरयू सिंह शहर जाने के लिए तैयार हो गए। सुगना को दर्द से कराहते हुए देखकर कजरी ने सरयू सिंह से कहा

"सुगना के भी ले ले जइतीं एकर हथवा के डॉक्टर से देखा देतीं, दिन भर रोवत रहेले"

सरयू सिंह ने कहा

"ठीक बा तब तू हूँ चला"

"हम परसो ना जा पाइब हरिया के यहां कथा बा" कजरी ने कहा।

"पतोह (बहु) के लेके घुमब त लोग का कही?"

तभी सुगना की कराह एक बार फिर सुनाई दी। वह उनकी बातें सुन रही थी और वह भी मन ही मन अपने बाबुजी के साथ शहर जाना चाहती थी।

अंततः सरयू सिंह तैयार हो गए।

शहर गांव से 40- 50 किलोमीटर दूर था जहां जाने के लिए मुख्य साधन ट्रेन थी। सरयू सिंह ने अपनी प्यारी सुगना के लिए पालकी बुला दी और चल पड़े रेलवे स्टेशन की तरफ।

कहार तेज कदमों से सुगना की पालकी लिए चले जा रहे थे और सरयू सिंह अपने तेज कदमों से उनका साथ देते हुए सुगना के पीछे चल रहे थे। एक पल के लिए उनके मन में यह ख्याल आया जैसे वह अपनी बीवी को ससुराल से विदा करा कर ला रहे हो। उधर पालकी के अंदर सुगना मन ही मन बेहद प्रसन्न थी।
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आज दिन भर उसे अपने बाबूजी के साथ रहना था अब उसे सरयू सिंह का साथ अच्छा लगने लगा था। वह जितना उनके करीब रहती उतना ही प्रफुल्लित रहती। कामुकता के अलावा वह उनसे मन ही मन प्यार करने लगी थी कभी सच में बाबू जी की तरह और कभी अपने प्रेमी की तरह उसके दिमाग पर सरयू सिंह छा गए थे। वह सरयू सिंह की मर्दानगी और उसके प्रति प्यार की कायल हो गई थी जो सुख उसे पुरुष रूप में अपने पति से प्राप्त होना था वह सुखवा सरयू सिंह में ढूंढने लगी। सुगना जब भी सरयू सिंह को एक मर्द के रूप में याद करती उसकी कोमल बुर मुस्कुराने लगती और उसके अंदर उठ रही हलचल के अंश उसकी कोमल बुर के होठों पर छलक आते।

कुछ समय बाद सुगना की पालकी स्टेशन पर उतर रही थी। सुगना प्लेटफार्म पर बने सीमेंट के चबूतरे पर बैठ गई उसने अपनी गठरी अपने बगल में रख ली जिसमें उसने रास्ते में खाने के लिए कुछ सामग्री रखी हुई थी। सरयू सिंह भी बेहद उत्साहित थे परंतु थोड़ा शर्मा भी रहे थे। प्लेटफॉर्म पर गांव के कई सारे लोग थे वह इस बात से चिंतित थे कि यदि गांव का कोई आदमी है पूछेगा कि सुगना को अकेले क्यों ले जा रहे हैं तो वह इसका क्या उत्तर देंगे। उनके मन में सुगना के प्रति पनप रही कामुकता ने उन्हें इस प्रश्न की दुविधा में डाल दिया था अन्यथा उनके पास सुगना की दुखती कलाई एक स्पष्ट उत्तर था।

ट्रेन आ चुकी थी। प्लेटफार्म पर दिख रहे लोग एकाएक जनरल डिब्बे की तरह दौड़े और पूरे गेट को लगभग घेर लिया। ट्रेन ज्यादा देर तक नहीं रुकती थी सरयू सिंह ने भी सुगना को ऊपर चढ़ाने की कोशिश की पर सुगना की एक हथेली पहले से घायल थी। सुगना को दरवाजे के दोनों तरफ लगे स्टील के डंडे पकड़ने में दिक्कत हो रही थी। भीड़ लगातार उन्हें न सिर्फ जल्दी करने की जिद कर रही थी अपितु धकेल रही थी। अंततः सरयू सिंह ने सुगना को उसकी कमर से पकड़ा और अंदर धकेला सुगना दरवाजे के अंदर प्रविष्ट हो गयी पर मन ही मन सिहर उठी। सरयू सिंह के मर्दाना हाथ आज उसके कोमल और चिकने पेट को छू गए थे। पेट ही क्या जब वह दरवाजे पर पहुंच गई तो एक पल के लिए ऐसा महसूस हुआ जैसे सरयू सिंह ने अपनी हथेलियों से उसके नितंबों को धक्का दिया था जिससे वह दरवाजे के अंदर पूरी तरह आ जाए।

सुगना के पीछे पीछे सरयू सिंह भी ट्रेन के अंदर आ गए। पीछे आ रही भीड़ सरयू सिंह पर लगातार दबाव बनाए हुए थी और वह ना चाहते हुए भी सुगना से सटे जा रहे थे। अंदर पहुंच कर उन्होंने बैठे हुए यात्रियों से सुगना के लिए जगह की याचना की और उसे एक महिला के बगल में बैठा दिया।

भाप से चलने वाला इंजन छुऊऊक...छुऊऊऊऊक……. करके बढ़ने लगा। धीरे-धीरे उसकी रफ्तार बढ़ती गई और ट्रेन ने प्लेटफार्म छोड़ दिया। सुगना खिड़की की सीट पर तो नहीं बैठी थी पर उसका ध्यान खिड़की से दिख रहे दृश्यों पर ही लगा रहा शायद वह कई वर्षों बाद ट्रेन में बैठी थी। वह अपने कलाई का दर्द भूल चुकी थी और खिड़की से दिख रहे दृश्यों को देखकर मंत्रमुग्ध थी।

अगले स्टेशन पर खिड़की के पास बैठी हुई महिला उतर गई। सुगना खिड़की की तरफ खिसक गई और अपने बाबू जी को बगल में बैठने का इशारा कर दिया। उस कंपार्टमेंट में सरयू सिंह के गांव का कोई व्यक्ति नहीं दिखाई दे रहा था वह उस लकड़ी की सीट पर सुगना के बगल में बैठे गए। उनका दो तिहाई पिछवाड़ा सीट पर था और कुछ भाग बाहर ही रह गया था पर फिर भी वह येन केन प्रकारेण अपना वजन सीट पर रख पा रहे थे। उनकी जाँघे सुगना की जांघों से छूने लगीं। वह एहसास सरयू सिंह के लिए भी उतना ही उत्तेजक था जितना सुगना के लिए। एक तरफ सरयू सिंह सुगना की जांघों की कोमलता महसूस कर रहे थे दूसरी तरफ सुगना उन मर्दाना जांघों की मांस पेशियों को। सुगना की आंखें अभी भी बाहर की तरफ देख रही थी पर दिल तेजी से धड़क रहा था वह सरयू सिंह की मर्दानगी को बड़े करीब से महसूस कर रही थी। उसकी कोमल बुर चैतन्य हो चुकी थी।

डेढ़ घंटे के सफर के बाद शहर आ गया ट्रेन से उतरते वक्त एक बार फिर सरयू सिंह को सुगना को उठाना पड़ा। उन्होंने सुगना को उसकी कमर से पकड़ा और सहारा देकर नीचे उतार दिया। इस दौरान सुगना की कोमल चूचियां उनके सीने से टकरा गयीं। सुगना की चूचियों की कोमलता महसूस कर शरीर सिंह का लंड में लहू का प्रवाह बढ़ गया जिससे सरयू सिंह थोड़ा असहज हो गए सुगना ने भी इस उनकी असहजता महसूस कर लिया था।

दोपहर तक सरयू सिंह कोर्ट कचहरी का काम करते रहे उन्होंने सुगना हो अपने वकील के स्टाल पर बैठा दिया था। सुगना ने घुंघट लेकर अपना चेहरा तो छुपा लिया था पर उसकी रमणीय और उत्तेजक काया छुपने योग्य नहीं थी। साड़ी सुगना की चूचियां और कोमल नितंबों का आकार छुपाने में असमर्थ थी। वह आसपास के लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रही।

कचहरी का काम निपटाने के बाद सरयू सिंह सुगना को लेकर एक मंदिर में आ गए जहां बैठकर दोनों ने खाना खाया घर से लाई गई रोटियां सूख चुकी थी जो सुगना के बाएं हाथ से टूट नहीं रही थी। सुगना का दाहिना हाथ किसी काम का ना रहा था। सरयू सिंह ने अपने हाथों से सुगना को खाना खिलाया। सुगना मन ही मन सरयू सिंह का यह प्यार देखकर उन पर मोहित होती रही।
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सरयू सिंह अब उसके लिए आदर्श पुरुष हो चले थे वह उनकी हो जाना चाहते थी पर वह उसके लिए बहु से प्रेमिका तक की दूरी अभी भी चंद्रमा और पृथ्वी जितनी थी। जो एक दूसरे के समीप तो कई बार आते हैं पर उनका मिलन प्रश्नचिन्ह के दायरे में था।

डॉक्टर के यहां सुगना का हाथ दिखाने और उस पर प्लास्टर चढ़ाने मैं काफी देर हो गई . सरयू सिंह ने भागते भागते दवाई ली और रिक्शा पर बैठकर रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़े। रास्ते में टेंपो पलट जाने की वजह से जाम जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी.

सरयू सिंह बार-बार अपनी घड़ी देख रहे थे. रिक्शा में बैठे हुए सरयू सिंह बेचैन हो रहे थे. वापसी के लिए यही एकमात्र यही ट्रेन थी जिसे वह किसी भी हालत में छोड़ना नही चाहते थे. उधर सुगना इन सब समस्याओं से दूर शहर की चकाचौंध में खोई हुई थी. सड़क के किनारे कितनी सुंदर सुंदर दुकानें थी. कई सारी चीजें तो ऐसी थी जो उसने पहली बार देखी थी. एक से एक सुंदर कपड़े दुकानों के बाहर टंगे हुए थे. वह मन ही मन खुद को उन कपड़ों में सोचती और खुश हो जाती.

किसी फूहड़ फिल्म का पोस्टर दीवार पर देखकर सुगना की आंखें ठहर गयीं. फिल्म की हीरोइन में उत्तेजक कपड़े पहन रखे थे उसकी जाँघे स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी और चुचियों का उभार भी. हीरोइन की उत्तेजक अवस्था को देख सुगना मन ही मन सोच रही थी यह कैसी औरत है जिसने अर्धनग्न होकर इस तरह की तस्वीरें खिंचवाई हैं. सुगना शहर की निराली दुनिया में खोई हुई थी तभी रिक्शा चल पड़ा अचानक चलने की वजह से सुगना का संतुलन बिगड़ गया. उसने अपने आप को गिरने से बचाने के लिए सरयू सिह की जांघों को पकड़ने की कोशिश की पर उसका हाथ जांघों के बीच आ गया. एक पल के लिए सुगना ने गलती से अपने बाबूजी का सोया हुआ नाग छू लिया था जो अब तक उनके लंगोट में कुंडली मार कर बैठा हुआ था.

उसने अपना हाथ तुरंत हटाया और संभल कर बैठ गई पर सरयू सिंह का लंड जाग चुका था। स्टेशन पर पहुंचते ही सरयू सिंह ने सुगना को रिक्शे से उतारा और भागते हुए प्लेटफार्म तक पहुंचे। सुगना भी लगभग दौड़ते हुए प्लेटफार्म तक आ गयी। पर दुर्भाग्य ….ट्रेन रफ्तार पकड़ चुकी थी। ट्रेन के डिब्बे से हाथ हिलाता हुआ उन्हीं के गांव का बिरजू उन्हें दिखाई पड़ा सरयू सिंह ने कहां

"भौजी के बता दिह हम कॉल आइब"

"ठीक बा"

सुगना हाफ रही थी। आज उसने कई दिनों बाद दौड़ लगाई थी। सरयू सिंह के पास आते ही उसने कहा

"बाबू जी अब का होई गाड़ी त छूट गईल उसकी आवाज में दुख स्पष्ट था"

सरयू सिंह स्वयं परेशान हो गए थे। उन्होंने स्टेशन का नजारा देखा कई सारे लोग अगली ट्रेन का इंतजार करते हुए चादर बिछाकर प्लेटफार्म पर बैठे हुए थे पर सरयू सिंह का यह इंतजार लंबा था उन्हें पूरी रात गुजारनी थी उनकी ट्रेन अब सुबह ही मिलनी थी।

आज सुगना पहली बार उनके साथ बाहर आई थी और उसे सरयू सिंह किसी हाल में कोई कष्ट नहीं देना चाहते थे। वह उनकी जान थी और वह उसके आदर्श पुरुष। पर वह करे तो क्या करें प्रश्न बहुत कठिन था। आज के पहले सरयू सिंह एक दो बार होटल में रुके थे पर आज सुगना उनके साथ थी क्या उसे लेकर वह होटल में रह सकते है…

उनके मन में आई इस दुविधा ने यह स्पष्ट कर दिया था की सुगना उनकी बेटी तो कतई नहीं थी.. सरयू सिंह अपनी सोच में डूबे हुए थे सुगना अपनी जांघों के बीच सिहरन लिए अपने बाबूजी के अगले कदम का इंतजार करने लगी…..


यह तो तय था कि वह सुगना को लेकर प्लेटफार्म पर नहीं रह सकते थे। उन्होंने सुगना से कहा

"आवा चला रहे के ठेकाना देखल जाऊ"

सुगना निरापद थी उसे यह अंदाजा कतई भी नहीं था की उसकी रात कैसे गुजरेगी और कहां पर गुजरेगी वह अपने बाबू जी पर पूरा भरोसा करते हुए उनके पीछे पीछे चल दी.

स्टेशन के बाहर कुछ छोटे होटल थे शहर इतना बड़ा नहीं था. दूर गांव से आने वाले धनाढ्य लोग जब ट्रेन पकड़ने के लिए आते थे तो ट्रेन लेट होने पर कभी-कभी इन होटलों में कुछ समय के लिए रूक जाया करते थे। सरयू सिंह के लिए भी यह पहला अनुभव था उन्होंने अपनी जेब टटोली और मन ही मन होटल में रहने का निर्णय कर लिया.

मनोरमा लाज के दरवाजे पर पहुंच कर वह उसकी सीढ़ियां चढ़ने लगे काउंटर पर बैठा व्यक्ति सरयू सिंह की दमदार कद काठी और पीछे आ रही सुगना की कमनीय काया देख कर वह प्रभावित हो गया उसने कहा

"प्रणाम चाचा... गाड़ी पकडब का" उसने चाचा संबंध स्वयं जोड़ लिया था. वह सरयू सिंह को पहचानता नहीं था पर उम्र के अनुसार उसने स्वयं रिश्ता बना लिया था. वह सुगना को लेकर अभी भी सशंकित था होटल का रजिस्टर खोलकर उसने सरयू सिंह से पूछा

"चाचा का नाम लिखीं" सरयू सिंह ने दमदार आवाज में अपना नाम बताया उस व्यक्ति ने फिर पूछा

"और ईहां के"

"पदमा"

सुगना आश्चर्यचकित थी. बाबू जी ने उसकी जगह उसकी मां का नाम क्यों लिखवाया. उस व्यक्ति ने कहां

"आई चाचा" सरयू सिंह उसके पीछे चल पड़े और और उनके पीछे सुगना। एक कमरे का दरवाजा खोला गया जिसमें एक डबल बेड लगा हुआ था सरयू सिंह ने उससे कहा

"दुगो अलग-अलग बिस्तर वाला दीजिए"

"ठीक बा चाचा"

उसने दूसरा कमरा दिखाएं जिसमें दो अलग-अलग बिस्तर लगे हुए थे

"हां, ई ठीक बा"

"ठीक बा चाचा, कोनो जरूरत होई त आवाज दे देब"

सुगना इस कमरे की खूबसूरती देखकर खुश हो गई थी पर उसे तो वह डबल बेड वाला कमरा ज्यादा पसंद आया था। कुछ ही देर में उसने अपने को सरयू सिंह के बगल में सोता हुआ देख लिया था एक पल के लिए वह सिहर उठी थी। उसके मन में कामुकता फूट पड़ी थी पर सरयू सिंह ने उसकी सोच पर पानी डाल दिया था। वह दोनों दूसरे कमरे में आ चुके थे।

उस व्यक्ति के जाने के बाद सरयू सिंह ने दरवाजा सटा दिया सरयू सिंह ने बाथरूम का मुआयना किया होटल एक औसत दर्जे का था पर सरयू सिंह के लिए वह उम्मीद से ज्यादा था। और सुगना के लिए तो वह स्वर्ग समान था।

सुगना बाथरूम में गई उसने आज पहली बार वाशबेसिन देखा था सरयू सिंह ने उसे उसका प्रयोग समझाया। बाथरूम के नल इत्यादि के बारे में भी अपनी जानकारी सुगना को बताइ पर बाथरूम मैं लगे झरने के बारे में उन्हें खुद भी ज्ञान न था। सुगना को समझाते समझाते उन्होंने वह नल खोल दिया जिससे झरने में पानी जाता था।

झरने से निकले पानी ने सुगना और शरीर सिंह दोनों को भिगो दिया दिया। सुगना जोर से हंस पड़ी सरयू सिंह थोड़ा शर्मा गए पर उन्होंने स्थिति संभाल ली उन्होंने कहा

"ई त नहाए खातिर बढ़िया बा "

सुगना अपना मुंह हाथ धुल कर कमरे में आ गई सरयू सिंह और सुगना दोनों के पास एकमात्र वही कपड़ा था जो वह पहन कर आए थे. वह दोनों आराम करने लगे अपनी बहू को अपने इतना करीब पाकर सरयू सिंह में रह-रहकर उत्तेजना जन्म लेती पर सुगना का कोमल चेहरा देखते हैं उनकी उत्तेजना शांत पड़ जाती वह उन्हें एक कोमल नवायैवना जैसी दिखाई पड़ती जो उनके बेटी की उम्र की थी उससे संभोग करना उनके दिमाग को स्वीकार न था।

दिनभर की भागदौड़ से सुगना थक गई थी होटल के बिस्तर पर लेटते ही उसे नींद आ गई सरयू सिंह भी अपने बिस्तर पर लेट कर आराम करने लगे। वह सोती हुई सुगना को देख रहे थे और सुगना से बदल रहे अपने रिश्तो के बारे में सोच रहे थे। एक तरफ तो वह उनकी बहू थी दूसरी तरफ पदमा जैसी अद्भुत खूबसूरती लिए हुए छोड़ने योग्य आदर्श स्त्री जिसने अब तक संभोग सुख न प्राप्त किया था और न हीं प्राप्त होने की कोई संभावना थी।

प्रकृति द्वारा दिये इस शरीर मैं काम भावना स्वता ही जन्म लेती है वह सुगना में भी ली होगी पर क्या वह कुवारी रह जाएगी? सरयू सिंह कई प्रकार की बातें सोचते पर किसी भी प्रकार वह अपने दिमाग को उससे संभोग करने के लिए राजी न कर पाते। उनका मन और लंड दोनों एक तरफ हो गए थे और दिमाग और जमीर से सुगना को चोदने की इजाजत मांग रहे थे पर अभी उनकी बात दिमाग द्वारा अनसुनी कर दी जा रही थी।

कुछ देर बाद सरयू सिंह की आंख खुली उन्होंने देखा सुगना उठ चुकी थी और सरयू सिंह की तरफ पीठ कर अपनी साड़ी ठीक करने का प्रयास कर रही थी। उसकी कलाई में चढ़े प्लास्टर की वजह से एक हाथ से साड़ी को पेटीकोट के अंदर करना संभव नहीं हो रहा था। सुगना परेशान हो गई थी ब्लाउज के नीचे और पेटीकोट के ऊपर सुगना की पीठ स्पष्ट दिखाई दे रही थी। बेहद चिकनी और गोरी पीठ अत्यंत सुंदर लग रही थी। सपना के कोमल चूतड़ दो छोटे फुटबॉल के जैसे दिखाई पड़ रहे थे। सरयू सिंह के मन और दिमाग में एक बार फिर युद्ध शुरू हो चुका था तभी सुगना पलटी और

"बोली बाबूजी तनी सड़ियां फसा दीं"
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सरयू सिंह का अपने बिस्तर से उठकर खड़े हो गए और सुगना के पास जाकर बोले "बताव का करे के बा"

" तनी साड़ियां भीतर करके फसा दीं "

सरयू सिंह सुगना के बिस्तर पर बैठ गए। सुगना सामने खड़ी थी। उन्होंने साड़ी की चुन्नट बनाई और सुगना की नाभि के नीचे बंधे पेटीकोट में उस चुन्नट को फसाने लगे। उनकी उंगलियां सुनना के पेट से छू रही थीं उनकी आंखों के ठीक सामने ब्लाउज में कैद सुगना की चुचियां आमंत्रित कर रही थीं। सुगना की चुची और उनके चेहरे के बीच चार अंगुल से कम का फैसला था पर वहां तक पहुचना चार योजन जितना दूर था।

सुगना जैसी सुंदर और कुंवारी स्त्री की चुची तक पहुंचना सच में कई इतना आसान न था। यह अलग बात थी कि सुनना स्वयं अपनी चूचियां अपने बाबूजी को परोसने के लिए तत्पर थी पर यह भावना सुनना के मन में थी हरकतों में नहीं। उसकी हरकतें अभी भी एक बहू बेटी जैसे ही थीं।

शरीर सिंह की नाक सुगना के बदन की खुशबू को महसूस कर रही थी। उनका मन बार-बार पर कर रहा था की वह अपने चेहरे को थोड़ा आगे कर सुनना की कोमल चुचियों को अपने मुंह में ले ले। उंगलियां पेटिकोट में और नीचे जाने के लिए लालायित थीं।

पर सरयू सिंह इतने गिरे हुए इंसान न थे। वह वासना के अधीन जरूर थे पर उन्होंने अपना दिमाग नहीं खोया था।

उधर सुगना अपने बाबूजी को इतना करीब पाकर सुगना की वासना जागृत हो गयी। उसकी जांघों के जोड़ पर कोमल बुर खुश हो गई थी और अपने होठों पर प्रेम रस लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा में थी ठीक उसी प्रकार जैसे विवाह में आया कोई दूरदराज का व्यक्ति स्टेज पर जाने की अपनी प्रतीक्षा करता है।

सुगना की बुर का इंतजार लंबा था। सुगना की साड़ी ठीक कर सरयू सिंह उठ खड़े हुए सुगना ने अपना पल्लू ठीक किया और बाबू जी से बोली

" रहुआ बहुत बढ़िया बानी"

अपनी बहू से तारीफ पाकर सरयू सिंह खुश हो गए उन्होंने कहा

"चला बाहरी घूमा दीं"

वह सुगना को लेकर बगल के बाजार में आ गए। उन्होंने सुगना और कजरी के लिए कपड़े खरीदे इसी दौरान बगल की दुकान में बाहर ब्रा और पेंटी टंगी हुई थी सुगना बहुत ध्यान से उसे देख रही थी और मन ही मन उन कपड़ों को अपने शरीर पर महसूस कर रही थी। उसने आज तक ब्रा और पेंटी का उपयोग न किया था पर दीवार पर लगे पोस्टर में ब्रा और पेंटी को उस मॉडल की चुचियों और बुर को ढके दिखाया हुआ था जिससे सुगना को उसकी उपयोगिता समझ आ चुकी थी। एक बार उसके मन में आया कि वह अपने बाबू जी से उसे खरीदने के लिए कहे पर वह हिम्मत न जुटा पायी।

कपड़े खरीदने के बाद सरयू सिंह ने पास के ठेले से सुगना को उसकी पसंद की चटपटी चीजें खिलायीं और अपनी बहू को लेकर फिर एक बार कमरे में आ गए।

होटल के गलियारे में जाते समय 3- 4 मनचले लड़के उन्हें देख रहे थे. वह सुगना की जवानी से बेहद प्रभावित हुए थे। साड़ी के अंदर सुगना का फसा हुआ सुडौल शरीर सभी के आकर्षण का केंद्र बन जाता उसकी कद काठी बेहद खूबसूरत थी। साड़ी में उसकी कमर और नितंबों का आकार खुलकर दिखाई पड़ता और सुगना की चुचियां तो अद्भुत थी।

सरयू सिंह और सुगना कमरे में जा चुके थे तभी बाहर से उन मनचले लड़कों की आवाज आने लगी

"चाचा तो बढ़िया माल ले आइल बाड़े"

"हां, ओकर चुची देखला हा"
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" बुझाता चाचा अपनहि मीस मीस के बड़ कइले बाड़े"

" लगता आज चाचा ओकर बुर चोदबे करिहें तबे चाट खियावतले हा" उन लड़कों के हंसने की आवाज आने लगी

उनमें से एक शरीफ लड़के की आवाज आई "इसन मत कह सो का जाने ओकर बहु बेटी होखे तब?"

" ए भाई अइसन हमार पतोहियो रही त हम ना छोड़ब" एक बार फिर वह हंसने लगे

सरयू सिंह इन सब बातों को सुनकर क्रोधित हो गए थे और मन ही मन उन्हें मारने की सोच रहे थे अचानक वह उठे और बाहर की तरफ जाने लगे। सुगना ने अपने कोमल हाथों से उनकी मजबूत कलाई पकड़ ली और बोली

"बाबूजी रहे दीं उ सब लफुआ हवे सो काहे झगड़ा करता करब" यह एक संयोग ही था कि वलड़के कॉरिडोर से जा रहे थे उनकी आवाज धीमी पड़ रही थी।

उन लड़कों की बातों का सबसे ज्यादा आनंद किसी ने लिया था तो वह सुगना की बुर। उन बातों में सबसे ज्यादा उसका ही जिक्र हो रहा था कोई तो ऐसा था जो उसका नाम ले रहा था और उसके बारे में सोच रहा था। यहां तो सुगना और उसके बाबूजी दोनों ही अपनी अपनी भावनाओं पर काबू किए उसे अकेला छोड़ दिए थे। सुगना की मूमल बुर तो उन लड़कों की ही शुक्रगुजार थी जिन्होंने उसकी खोज खबर ली थी वह खुशी से पनिया गई थी। उसके कोमल होठों पर मदन रस तैरने लगा था। काश सुगाना के बाबूजी उसकी खुशी देख पाते।

सरयू सिंह का लंड भी विद्रोह पर उतारू हो चुका था इन बातों से उसमें भी हरकत हुई थी पर उतनी नहीं जितनी सुगना के बुर में हो रही थी। जितनी वासना सुगना के मन में सरयू सिंह के प्रति जागृत थी शायद उतनी वासना अभी सरयू सिंह के मन में नहीं थी पर भी जरूर।

सुगना निश्चय ही अब उनकी बेटी नहीं रही थी अब वह सिर्फ एक बहू के रूप में आ चुकी थी। भावनाएं बदल रही थी समय भी बदल रहा था नियति अपनी साजिश रच रही थी और कुछ हद तक कामयाब भी हो रही थी। …..

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पर अभी सुगना की बुर का इंतजार कायम था....
 
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"मैं सुगना"

दिन भर की भागदौड़ से मैं थक गई थी। शहर के उस अनजान होटल के कमरे में लेटते ही मैं सो गई। बाबुजी दूसरे बिस्तर पर सो रहे थे.

रात में एक अनजान शख्स मेरी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर की तरफ उठा रहा था. पता नहीं क्यों मुझे अच्छा लग रहा था। मैंने अपने घुटने मोड़ लिए। मेरा पेटीकोट मेरी जांघो को तक आ चुका था। पंखे की हवा मेरे जांघों के अंदरूनी भाग को छू रही थी और मुझे शीतलता का एहसास करा रही थी। उस आदमी ने मेरी पेटीकोट को मेरे नितंबों तक ला दिया था। उसे और ऊपर उठाने के मैने स्वयं अपने नितंबों को ऊपर उठा दिया। उस आदमी के सामने मुझे नंगा होने में पता नहीं क्यों शर्म नही आ रही थी। मैं उत्तेजित हो चली थी।

पेटिकोट और साड़ी इकट्ठा होकर मेरी कमर के नीचे आ गए। घुंघराले बालों के नीचे छुपी मेरी बूर उस आदमी की निगाहों के सामने आ गयी।
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उस आदमी का चेहरा मुझे दिखाई नहीं पड़ रहा था पर उसकी कद काठी बाबूजी के जैसी ही थी। वह आदमी मेरी जाँघों को छू रहा था। उसकी बड़ी बड़ी खुरदुरी हथेलियां मेरे जाँघों को सहलाते हुए मेरी बुर तक पहुंचती पर उसे छू नही रही थीं।

मैं चाहती थी कि वह उन्हें छुए पर ऐसा नहीं हो रहा था। मेरी बुर के होठों पर चिपचिपा प्रेमरस छलक आया था। अंततः उसकी तर्जनी उंगली ने मेरी बुर से रिस रहे लार को छू लिया। उसकी उंगली जब बुर से दूर हो रही थी तो प्रेमरस एक पतले धागे के रूप में उंगली और बूर के बीच आ गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरी बुर उस उंगली को अपने पास खींचे रखना चाहती थी।

उंगली के दूर होते ही वह पतली कमजोर लार टूट गयी जिस का आधा भाग वापस मेरी बूर पर आया और आधा उसकी उंगली से सट गया। उस आदमी ने अपनी उंगली को ध्यान से देखा और अपने नाक के करीब लाकर उसकी खुशबू लेने की कोशिश की। और अंततः अपनी जीभ से उसे चाट लिया। मेरी बुर उस जीभ का इंतजार कर रही थी पर उस अभागी का कोई पुछनहार न था। मैं अपनी कमर हिला रही थी मेरी जाघें पूरी तरह फैल चुकी थी ।

अचानक वह व्यक्ति उठकर मेरी चूँचियों के पास आ गया। मेरी ब्लाउज का हुक खुद ब खुद खुलता जा रहा था। तीन चार हुक खुलने के पश्चात चूचियां उछलकर ब्लाउज से बाहर आ गयीं। उस व्यक्ति ने मेरी चूचियों को चूम लिया। एक पल के लिए मुझे उसका चेहरा दिखाई दिया पर फिर अंधेरा हो गया। वह मेरी चुचियों को चूमे जा रहा था। उसकी हथेलियां भी मेरी चुचियों पर घूम रही थी। आज पहली बार किसी पुरुष का हाथ अपनी चुचियों पर महसूस कर मेरी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गई। मेरी बुर फड़फड़ा रही थी। मैंने स्वयं अपनी उंगलियां को अपने बुर के होठों पर ले जाकर सहलाने लगी। मेरी बुर खुश हो रही थी और उसकी खुशी उसके होठों से बह रहे प्रेम रस के रूप में स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी।

अचानक मेरी चूचि का निप्पल उस आदमी के मुह में जाता महसूस हुआ। वह मेरे निप्पलों को चुभला रहा था। मैं कापने लगी। मैने इतनी उत्तेजना आज तक महसूस नहीं की थी।

कुछ देर बाद मैंने उस आदमी को अपनी धोती उतारते देखा। उसका लंड मेरी आंखों के ठीक सामने आ गया यह। लंड तो बाबुजी से ठीक मिलता-जुलता था मैं अपने हाथ बढ़ाकर उसे छूना चाह रही थी। वह मेरे पास था पर मैं उसे पकड़ नहीं पा रही थी। मेरी कोमल हथेलियां ठीक उसके पास तक पहुंचती पर उसे छु पाने में नाकाम हो रही थी।

मैं चाह कर भी उस आदमी को अपने पास नहीं बुला पा रही थी पर उसके लंड को देखकर मेरी बुर चुदवाने के लिए बेचैन हो चली थी। मैं अपनी जांघों को कभी फैलाती और कभी सिकोड़ रही थी।

वह आदमी मेरी उत्तेजना समझ रहा था कुछ ही देर में वह बिस्तर पर आ गया और मेरी जांघों के बीच बैठकर अपनी गर्दन झुका दिया वह अपने होठों से मेरी नाभि को चूम रहा था और हथेलियों से चूचियों को सहला रहा था। मैं स्वयं अपनी हथेलियों से उसके सर को धकेल कर अपनी बुर पर लाना चाहती थी पर जाने यह यह क्यों संभव नहीं हो पा रहा था । मेरी हथेलियां उसके सर तक पहुंचती पर मैं उसे छू नहीं पा रही थी।

अचानक मुझे मेरी जाँघे फैलती हुई महसूस हुयीं। लंड का स्पर्श मेरी बुर पर हो रहा था बुर से निकल रहा चिपचिपा रस रिश्ते हुए मेरी कोमल गांड तक जा पहुंचा था। मैं उत्तेजना से हाफ रही थी तभी लंड मेरी बुर में घुसता हुआ महसूस हुआ।

मैं चीख पड़ी

"बाबूजी……"

मेरी नींद खुल गई पर बाबूजी जाग चुके थे। उन्होंने कहा

"का भईल सुगना बेटी"

भगवान का शुक्र था। लाइट गयी हुयी थी। मेरी दोनों जाँघें पूरी तरह फैली हुई थी और कोमल बुर खुली हवा में सांस ले रही थी। वह पूरी तरह चिपचिपी हो चली थी मेरी उंगलियां उस प्रेम रस से सन चुकी थी। मैंने सपने में अपनी बुर को कुछ ज्यादा ही सहला दिया था। मेरी चूचियां भी ब्लाउज से बाहर थी।
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मैंने बाबूजी की आवाज सुनकर तुरंत ही अपनी साड़ी नीचे कर दी।

मुझे चुचियों का ध्यान नहीं आया। बाबूजी की टॉर्च जल चुकी थी उसकी रोशनी सीधा मेरी चुचियों पर ही पड़ी। प्रकाश का अहसास होते ही मैंने अपनी साड़ी का पल्लू खींच लिया पर बाबूजी का कैमरा क्लिक हो चुका था। मेरी चुचियों का नग्न दर्शन उन्होंने अवश्य ही कर लिया था। साड़ी के अंदर चुचियां फूलने पिचकने लगीं।

मेरी सांसे अभी भी तेज थीं। बाबू जी ने टॉर्च बंद कर दी शायद वह अपनी बहू की चूँचियों पर टार्च मारकर शर्मा गए थे। उन्होंने फिर पूछा

" सुगना बेटी कोनो सपना देखलू हा का?" उनकी बात सच थी। मैंने सपना ही देखा था पर उसे बता पाने की मेरी हिम्मत नहीं थी। मैंने कहा

"हां बाबू जी"

"चिंता मत कर….नया जगह पर नींद ठीक से ना आवेला"

" हा, आप सूत रहीं"

मैंने करवट लेकर अपनी चुचियों को बाबूजी से दूर कर लिया और मन ही मन मुस्कुराते हुए सोने लगी। डर वश मेरी बुर पर रिस आया प्रेमरस सूख गया था। मेरा बहुप्रतीक्षित लंड बगल में सो रहा था पर वह मेरी पहुंच से अभी दूर था मुझे इंतजार करना था पर कब तक?

सुगना तो करवट लेकर सो गई पर उसने अपने बाबू जी की आंखों की निंदिया हर ली. सुगना की चुचियों को साक्षात देखने के बाद उनके दिमाग पर उनके मन में काबू कर लिया. अब उन्हें सुगना उनकी प्यारी बहू बेटी जैसी न लगकर साक्षात पदमा के रूप में दिखाई देने लगी जो सिर्फ और सिर्फ कामवासना का प्रतीक थी। पदमा को सरयू सिंह ने जब जब भी और जिस जिस भी तरह से चोदा था उसने हर चुदाई का अद्भुत आनंद लिया था और हर बार सरयू सिंह के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की थी।

वह सरयू सिंह से चुद कर हर बार उनकी कायल हो जाती। आज सुगना भी उन्हें उसी रूप में दिखाई पड़ रही थी सुगना की चुचियों के बारे में सोचते हुए उनके हाथ लंड पर चले गए। नींद की खुमारी उनकी आंखों में ही नहीं दिमाग पर भी थी।

वह मन ही मन सुगना को नग्न करने लगे जब जब उनका दिमाग सुगना की मासूम चेहरे को उन्हें याद दिलाता वह अपना ध्यान वापस उसकी चुचियों पर ले आते और अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगते। अपने मन में सुगना की चूँचियों से जी भर खेलने के बाद वह उसकी नाभि और कमर को चूमने लगे पर उसके आगे वह उसे नग्न न कर पाए। एक बार फिर उनका दिमाग हावी होने लगा वह उन्हें अपनी बहू सुगना की कोमल बुर की परिकल्पना करने से रोक रहा था। आखिर उन्होंने उसे बेटी कह कर पुकारा था। सरयू सिंह गजब दुविधा में थे।

लंड से वीर्य निकलने को बेताब था। एक बार फिर उन्होंने सुगना की जगह पदमा की बुर को याद किया। लंड ने अपनी पुरानी रजाई को याद किया और वीर्य की धार फूट पड़ी। सरयू सिंह के बिस्तर पर हो रही हलचल सुगना महसूस कर रही थी पर शायद वह यह अंदाज नहीं लगा पाई थी कि उसके बाबूजी उसकी चुचियों को याद कर अपना हस्तमैथुन कर रहे थे।

सरयू सिंह का उफान थम चुका था। उनकी उत्तेजना शांत हो चुकी थी। पर अब वह आत्मग्लानि से भर चुके थे। उन्होंने अपनी सुगना बहू को मन ही मन नग्न कर हस्तमैथुन किया था जो सर्वथा अनुचित था। पर उन्हें यह नहीं पता था की वह एक निमित्त मात्र थे। नियति सरयू सिंह और सुगना पास लाने की पुरजोर कोशिश कर रही थी और अपनी योजना अनुसार साजिश भी रच रही थी।

सुगना बिना स्खलित हुए ही सो गई थी।

अगली सुबह खुशनुमा थी। सुगना और सरयू सिंह लगभग एक साथ ही उठे उनकी नजरें मिली और दोनों मुस्कुरा दिए। सुगना ने पूछा

"बाबूजी नींद आयल ह नु हम राती के जगा देनी रहली"

सरयू सिंह ने कहा

"हां तू ठीक बाड़ू नु"

"का सपना देखले रहलु"

सुगना निरुत्तर हो गई। सुगना अपने सपने की भनक भी उन्हें नहीं लगने देना चाहती थी। तभी सुगना का ध्यान सरयू सिंह की धोती पर गया। सरयू सिंह के वीर्य की कुछ बूंदे उनकी धोती पर भी लग गई थी सफेद चमकदार धोती पर वीर्य का अंश स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था।

सुगना ने वह दाग देख लिया और बोली " बाबूजी धोती पर ई का गिरल बा"

सरयू सिंह निरुत्तर थे. अभी कुछ देर पहले उन्होंने सुगना से प्रश्न पूछकर उसे निरुत्तर कर दिया था और अब स्वयं उसी अवस्था में आ गए थे।

कुछ ही देर में ससुर और बहू वापस स्टेशन जाने के लिए तैयार होने लगे। सरयू सिंह की की उंगलियों ने एक बार फिर सुगना को साड़ी पहनाने में मदद की और इसके एवज में उन्हें सुगना की कोमल कमर और पीठ को छूने का अवसर प्राप्त हो गया जिसका आनंद सरयू सिंह ने जी भर कर लिया। अब सुगना उनकी बेटी न रही थी।

साड़ी पहनाते समय सुगना की चूचियां फिर उनकी आंखों के सामने आकर उन्हें ललचा रही थी और उनका लंड एक बार फिर तनाव में आ रहा था। सुगना भी मन ही मन चुदने के लिए तैयार हो चुकी थी। उसे यह उम्मीद हो चली थी कि कभी न कभी सरयू सिंह उसके और करीब आ जाएंगे।

दोपहर में घर पहुचने पर कजरी उन दोनों का इंतजार कर रहे थी। सरयू सिंह द्वारा लाई गई साड़ी कजरी को बहुत पसंद आयी। सुगना के लिए यह शहर यात्रा यादगार थी ….

हरिया भागता हुआ सरयू सिंह के दरवाजे पर आया और बोला

" सरयू भैया उ सुधीरवा हॉस्पिटल में भर्ती बा काल शहर में ओकरा के कुछ लोग ढेर मार मरले बा. लाग ता बाची ना….

सरयू सिंह अपनी बहू सुगना के साथ एक सुखद रात बिता कर आए थे और उसी रात उन पर केस करने वाले वकील सुधीर की कुटाई हो गई थी जो अब मरणासन्न स्थिति में पड़ा हुआ था. सरयू सिंह के लिए यह एक नई मुसीबत थी उन्हें अचानक यह डर उत्पन्न हो गया कि कहीं उसकी पिटाई में सरयू सिंह का नाम ना जोड़ दिया जाए वह थोड़ा परेशान हो गए….

कजरी ने उनके आवभगत में कोई कमी नहीं रखी वैसे भी उसे चुदे हुए आज 2 दिन हो चुके थे। सामान्यतः कजरी सरयू सिंह के करीब आने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। उसे सरयू सिंह से चुदने में बेहद आनंद आता था। यह सच भी था सरयू सिंह का हथियार अनोखा था जिन जिन स्त्रियों ने उसे अपनी जांघों के बीच पनाह दी थी वह सभी उनकी मुरीद थीं।

सरयू सिंह स्वयं उत्तेजित थे। शहर के कुछ समय जो उन्होंने सुगना के साथ बिताए थे उसने उनके शरीर मे इतनी उत्तेजना भर दी थी जो सिर्फ और सिर्फ कजरी ही शांत कर सकते थी।

सरयू सिंह और कजरी शाम को छेड़खानी कर रहे थे। वह रात रंगीन करने के मूड में आ चुके थे सुगना ने यह भांप लिया था। कजरी ने शाम को खाना जल्दी बनाया और सुगना अपने बाबू जी को खाना खिलाने दालान में आ गयी। सरयू सिंह खाना खाते रहे और अपने ही हाथों सुगना को भी खाना खिलाते गए। वैसे भी उसके हाथ में प्लास्टर बधा हुआ था। यह कजरी के लिए एक मदद ही थी अन्यथा यही काम कजरी को करना पड़ता।

सुगना बेहद खुश थी। खाना खिलाते हुए वह लापरवाही से अपनी चुचियों के दर्शन सरयू सिंह को करा रही थी। खाना खाने के पश्चात सुगना ने अपनी दवाइयां खाई और सोने चली गई पर उसकी आंखों में नींद कहां थी।उसने आज उसने ठान लिया था कि किसी भी हाल में वह अपनी सास कजरी की चुदाई जरूर देखेगी।

उसने जानबूझकर आज कजरी की कोठरी में लालटेन रख दी थी। जिसे बुझाने के लिए चारपाई से उठकर थोड़ी मेहनत करनी पड़ती। सुगना के कमरे का दिया बंद होते ही कजरी और सरयू सिंह खुस हो गए। थोड़ी देर इंतजार करने के बाद कजरी अपने कमरे में आ गई ।

सरयू सिंह ने भी अपना लंगोट खोला और कजरी के पीछे पीछे कमरे में आ गए।

कजरी ने कहा

"कुंवर जी लाई रहुआ के तेल लगा दीं दिन भर चल ले बानी थक गइल होखब"

कजरी सचमुच कुंवर जी का ख्याल रखती थी वह उनके पैरों में तेल लगाने लगी।

सुगना बेसब्री से झरोखे से अपनी सास और उनके कुँवर जी कर रास लीला देख रही थी।

कजरी के हाँथ धीरे धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे….

शेष अगले भाग में..



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शहर से आने के बाद सुगना बेहद खुश थी। खाना खिलाते हुए वह लापरवाही से अपनी चुचियों के दर्शन सरयू सिंह को करा रही थी। खाना खाने के पश्चात सुगना ने अपनी दवाइयां खाई और सोने चली गई पर उसकी आंखों में नींद कहां थी। आज उसने ठान लिया था कि किसी भी हाल में वह अपनी सास कजरी की चुदाई जरूर देखेगी।

उसने जानबूझकर आज कजरी की कोठरी में लालटेन उचाई पर रख दी थी जिसे बुझाने के लिए चारपाई से उठकर थोड़ी मेहनत करनी पड़ती। सुगना के कमरे का दिया बंद होते ही कजरी और सरयू सिंह खुस हो गए। थोड़ी देर इंतजार करने के बाद कजरी अपने कमरे में आ गई ।

सरयू सिंह ने भी अपना लंगोट खोला और कजरी के पीछे पीछे कमरे में आ गए।

कजरी ने कहा...

"कुंवर जी लाई रहुआ के तेल लगा दीं दिन भर चल ले बानी थक गइल होखब"

कजरी सचमुच कुंवर जी का ख्याल रखती थी वह उनके पैरों में तेल लगाने लगी।

सुगना बेसब्र मन से झरोखे से अपनी सास और उनके कुँवर जी कर रास लीला देख रही थी।

कजरी के हाँथ धीरे धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे….

कजरी के हाथ सरयू सिंह के लंड तक पहुंच गए । कजरी ने उनकी जांघों पर लंगोट न पाकर पूछा

"पहिलही तैयारी कर के आइल बानी"

वह मुस्कुराने लगे उनका लंड अब तनाव में आ चुका था। कजरी ने उनके लंड को बाहर निकाल लिया और अपने हाथों में तेल लेकर उसे सहलाने लगी। जैसे जैसे कजरी के हाथ उस पर चल रहे थे लंड का तनाव बढ़ता जा रहा था। कुछ ही देर में वह अपने पूर्ण आकार में आ गया। काला लंड तेल लग जाने से चमक रहा था। उसका मुखड़ा चुकंदर के जैसा लाल था।

सुगना अपने झरोखे से वह दृश्य देख रही थी उसका बहुप्रतिक्षित जादुई यंत्र उसके आंखों के सामने था जिस पर उसकी सास ने अधिकार जमा रखा था। कजरी के गोरे हाथों में उस काले लंड को देखकर वह सिहर उठी। कितना सुंदर था वह लंड । वह उसे छूना चाहती थी उसे महसूस करना चाहते थी। उसके सुपारे पर बना हुआ छोटा छेद सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। यही वह द्वार था जहां से प्रेम रस आता होगा वह लंड की कल्पना में खोई हुई थी उधर उसकी हथेलियां अपने बुर तक पहुंच गयीं।

वह कभी उसे सहलाती कभी थपथपाती कभी उसे पकड़ने की कोशिश करती। बुर ने प्रेम रस छोड़ना शुरू कर दिया था जो उसकी हथेलियों को भिगो रहा था।

उधर कजरी ने लंड को तेजी से आगे पीछे करना शुरू कर दिया। सरयू सिंह की आंखें बंद हो रही थी। सरयू सिंह के हाँथ हरकत में आ गए उन्होंने कजरी की साड़ी खींचना शुरू कर दी। कजरी भी उनका साथ दे रही थी। कुछ ही देर में कजरी सिर्फ पेटीकोट में चारपाई पर थी।

सरयू सिंह ने कहा

"एकरो के खोल द"

"पहले तेल त लगा दी"

" हमु लगाइब"

कजरी खुश हो गई वह चारपाई से नीचे उतरी और अगले ही पल उसका पेटीकोट जमीन पर आ गया। लालटेन की रोशनी में सुगना के बाबूजी और उसकी सास जन्मजात नग्न अवस्था में आ गए थे।

कजरी ने कहा

"लालटेनवा त बुता (बंद) दीं"

"जरे द तहर बुर देखले ढेर दिन हो गइल बा"

सरयू सिंह के इस उदगार वाक्य में आलस और उत्तेजना दोनो का ही अंश था।

सुगना, कजरी की सुंदरता देख कर आश्चर्यचकित थी। इस उम्र में भी उसके बदन खासकर चूँचियों और नितंबों का आकार और कसाव कायम था।

कजरी अब सरयू सिंह के पेट पर बैठ चुकी थी। उसका चेहरा उनके पैरों की तरफ और सुगना की कोठरी कि तरफ था। उसकी बुर ठीक सरयू सिंह की नाभि पर थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सरयू सिंह की नाभि कजरी की बुर से रिस रहे लार को इकठ्ठा करना चाह रही हो।

सुगना अपनी सास का चेहरा देख पा रही थी जो अब वासना से ओतप्रोत था। अब सरयू सिंह का चेहरा देखना उसके लिए संभव नहीं था फिर भी सुगना को सरयू सिंह के जिस अंग से सबसे ज्यादा प्यार था वह उसकी आंखों के ठीक सामने था।

कजरी फिर अपने हाथ एक बार उस लंड पर लायी और उसे सहला दिया। वह आगे बढ़कर उनके पैरों की मालिश करने लगी।

कजरी मालिश करने के लिए जैसे ही उनके पैरों तक पहुंचती उसकी चूचियां सरयू सिंह के लंड से टकरा जाती। सरयू सिंह का लंड भी उन मुलायम चूँचियों के स्पर्श से उछल जाता। लंड की उछाल सुगना अपनी आंखों से देख रही थी ऐसा लग रहा था जैसे कजरी की चूचियाँ सरयू सिंह के काले नाग को छेड़ रही हैं वह बार-बार उछलकर चुचियों के निप्पल से टकराने की कोशिश करता तब तक कजरी आगे बढ़ जाती।

उधर सरयू सिंह कजरी की फूली हुई बुर् का दीदार कर रहे थे। जब कजरी उनके पैरों तक पहुंचती कजरी की बुर थोड़ा सिकुड़ जाती पर वापस आते समय उसका बुर के होठों में छुपा पनियाया गुलाबी मुख सरयू सिंह की आंखों के सामने आ जाता। सरयू सिंह को वह गुलाबी गुफा बेहद प्यारी थी।

आखिर में कजरी की बुर सरयू सिंह की नाभि पर आकर टिक जाती। कजरी की बुर से बह रहा चिपचिपा रस सरयू सिंह की नाभि में भर चुका था।
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जब कजरी आगे बढ़ती एक पतली चिपचिपी लार नाभि और बुर के बीच में बन जाती सरयू सिंह को स्त्री उत्तेजना का यह प्रतीक बेहद आकर्षक लगता जितना ज्यादा रस बुर से निकलता सरयू सिंह उतना ही खुश होते ।

सरयू सिंह से अब और बर्दाश्त ना हुआ उन्होंने अपनी हथेलियों में तेल लिया और कजरी की पीठ पर लगाने लगे कुछ ही समय में हथेलियों ने अपना रास्ता खोज लिया और वो कजरी की चुचियों को मीसने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे सरयू सिंह मैदे की दो बड़ी-बड़ी गोलाइयों को अपने हाथों से गूंथ रहे थे।
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सुगना सिहर उठी उनकी मजबूत हथेलियों में अपनी सास कजरी की चूँची को देखकर वह वासना से भर गई। वह अपने हाथों से ही अपनी चूचियां दबाने लगी। सुगना की चूचियां पूरी तरह तनी हुई और कड़ी थी वह चाह कर भी अपनी चुचियों को उतनी तेजी से नहीं दबा पा रही थी जितनी तेजी से सरयू सिंह कजरी की खुशियों को मसल रहे थे। सुगना के कोमल हाथ उसकी चूचियों को वह सुख दे पाने में नाकाम थे जो सरयू सिंह की हथेलियां कजरी को दे रही थी।

सरयू सिंह कजरी की चूचियों को तेजी से मसल रहे थे। कजरी ने कहा

"कुंवर जी तनी धीरे से ……..दुखाता"

सरयु सिंह ने कजरी को और पीछे खींच लिया. अब कजरी के गदराये नितंब उनके चेहरे के पास आ चुके थे। कजरी जैसे ही तेल लगाने के लिए आगे की तरफ झुकी उसने अपनी कमर पीछे कर दी। उसकी बुर सरयू सिंह के होठों पर बिल्कुल करीब आ गयी। सिंह ने देर न की और अपने होंठ अपनी भौजी कजरी के बुर् के होठों से सटा दिए।

कजरी चिहुँक उठी उसने सरयू सिंह की तरफ देखा। पर वह तो अपना चेहरा उसके नितंबों में छुपाए हुए थे। होंठ कजरी की बुर चूस रहे थे और नाक कजरी की गांड से छू रही थी।

सुगना अपने बाबू जी का चेहरा तो नहीं देख पा रही थी पर कजरी की कमर में हो रही हलचल से वह अंदाज जरूर लगा पा रही थी। तभी एक पल के लिए कजरी ऊपर उठी। सुगना को सरयू सिंह की ठुड्डी दिखाई पड़ गई। कजरी की भग्नासा सरयू सिंह की ठुड्डी से टकरा रही थी। कजरी की बुर् सरयू सिंह के होठों से सटी हुयी थी। सरयू सिंह बुर के होठों को चूसे जा रहे थे बीच-बीच में उनकी लंबी जीभ दिखाई पड़ती जो कजरी की बुर में न जाने कहां गुम हो जा रही थी।

सुगना तड़प उठी एक पल के लिए उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे सरयू सिंह के होंठ उसकी अपनी ही बुर पर आ गए हों. बुर के अंदर एक मरोड़ सी उठी। उसने अपनी जांघों को तेजी से सिकोड लिया बुर को सहला रही उसकी हथेलियां स्वतः ही सिकुड़ गई और छटक कर बाहर आ गयीं.
सरयु सिंह की जीभ अपना कमाल दिखाने लगी और कजरी की कमर तेजी से हिलने लगी। वह स्वयं अपनी बुर को अपने कुंवर जी के चेहरे पर रगड़ने लगी। कजरी ने अपने होंठ खोलें और अपने कुंवर जी के मोटे लंड को अपने होंठों के बीच ले लिया।
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सुगना से अब और बर्दाश्त ना हो रहा था। सुगना को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी सासु मां ने उसका लॉलीपॉप छीन लिया हो। बात सही थी चुदने की उम्र सुगना की थी और चुद कजरी रही थी। नियति का यह खेल निराला था। सुगना के लॉलीपॉप पर उसकी सास ने कब्जा कर रखा था।

सुगना अपनी चिपचिपी बुर को अपनी उंगलियों से फैला रही थी वह अपनी उंगली को बुर के अंदर प्रवेश कराना चाहती थी पर उसकी कौमार्य झिल्ली उसे रोक रही थी। वह जैसे ही अपनी उंगलियों का दबाव बढ़ाती एक दर्द की लहर उसकी बुर में उठती। अपनी उंगलियों को हटा लेती। इस खुशी के मौके पर वह दर्द सहने के मूड में नहीं थी। उसने अपना ध्यान बुर् की भग्नासा पर लगा दिया। उसे सहलाने में उसे अद्भुत आनंद मिलता था।

उधर कजरी सरयू सिंह के लंड को तेजी से चूसने लगी। कजरी के मुंह में उनके लंड का एक चौथाई भाग ही जा पाता इससे ज्यादा जाना संभव भी नहीं था। कजरी के मुख से लार बहने लगा था जिसमें सरयू सिंह के लंड से रिस रहा वीर्य भी शामिल था। कजरी की हथेलियां उसे लंड पर बराबरी से लगा रही थी। वह उनके अंडकोशो को भी सहला रही थी जो लंड के साथ सहबाला ( विवाह के समय दूल्हे के साथ जाने वाला छोटा बच्चा जो सामान्यतः छोटा भाई या रिश्तेदार होता है ) की तरह सटे हुए थे।

कुछ देर सरयु सिंह का लंड चूसने के बाद अचानक कजरी सरयू सिंह के ऊपर से उठ गयी। यह दृश्य देख रही सुगना अचानक हुए दृश्य परिवर्तन से हड़बड़ा गयी। वह जिस डिब्बे पर खड़ी होकर यह दृश्य देख रही थी असंतुलित होकर उसके पैरों से हट गया एक टनाक………. की आवाज आई कजरी और सरयू सिंह सचेत हो गए. आवाज सुगना के कमरे से आई थी।

कजरी ने कहा

"जाकर देखी ना का भईल बा"

"तू ही चल जा"

"हमरा कपड़ा पहिने कें परि आप धोती लपेट के चल जायीं।"

सरयू सिंह का लंड पूरी तरह तना हुआ था वह कजरी की बुर का इंतजार कर रहा था पर अचानक आई इस आवाज ने उनकी उत्तेजना में विघ्न डाल दिया था।

सुगना को देखना जरूरी था। उसके हाथ में प्लास्टर पहले से लगा हुआ था वह किसी अप्रत्याशित घटना को सोचकर घबरा गए।

तभी कजरी ने वहीं से आवाज दी

"सुगना….., सुगना……"

सुगना अपनी सास की आवाज सुन रही थी पर उसने कोई जवाब न दिया वह अपने जगे होने का प्रमाण नहीं देना चाह रही थी कजरी ने फिर कहा

"एक हाली जाके देख आयीं"

उन्होंने अपनी धोती कमर में लपेटी पर वह अपने लंड को धोती से नहीं छुपा पाये। उसे अपने हाथों से अपने पेट से सटाए हुए अपनी टॉर्च लेकर आगन में आ गए और सुगना के दरवाजे पर पहुंचकर उन्होंने टॉर्च जला दी। अंदर का दृश्य देखकर वह सन्न रह गए।

सुगना अपनी चारपाई पर लेटी हुई थी। उसकी ब्लाउज सामने से पूरी तरह खुली हुई थी दोनों चूचियां खुली हवा में सांस ले रहीं थीं। टॉर्च की रोशनी से सुगना ने आंखे मीच ली थीं जिसे सरयू सिंह ने देख लिया। कमर के नीचे सुगना के शरीर पर सिर्फ पेटीकोट था जो उसकी कमर और जाँघों को ढका हुआ था। सुगना की चूचियां उसकी सांसों के साथ ऊपर नीचे हो रही थी वह अपनी सांसों को सामान्य रखने की कोशिश कर रही थी पर यह संभव नहीं था उत्तेजना अपना अंश छोड़ चुकी थी।

कजरी के कमरे से आ रही लालटेन की रोशनी सरयू सिंह की आंखो को नजर आ गई उस झरोखे के ठीक नीचे टीन का डिब्बा लुढ़का हुआ पड़ा था।

सरयू सिंह को सारा माजरा समझ में आ गया वह यह जान चुके थे कि सुगना उनके और कजरी के बीच में चल रही रासलीला को देख रही थी और उत्तेजित होकर अपनी चुचियों और हो सकता है जांघों के बीच छुपी कोमल बुर् का मर्दन कर रही थी।

शायद इसी दौरान असंतुलित होकर वह डिब्बे से फिसल गई और अपनी लज्जा बचाने के लिए वह तुरंत ही चारपाई पर लेट गई थी।

सरयू सिंह अपनी बहू की इच्छा जान चुके थे वह हमेशा उसे खुश करना चाहते थे आज उन्होंने मन ही मन फैसला कर लिया और चुपचाप कजरी के कमरे में वापस आ गए।

उनके लंड ने उछल कर उनके फैसले पर मुहर लगाई और वह तन कर कजरी की बुर में जाने के लिए तैयार हो गया।

सरयू सिंह मन ही मन मुस्कुरा रहे थे कजरी अपनी जांघें फैलाए लेटी हुई थी। सरयू सिंह को देखते ही उसने पूछा

"सुगना ठीक बिया नु?"

"हां आराम से सुतल बिया एगो टीन के डिब्बा बिलरिया गिरा देले रहे" सरयू सिंह ने अपना उत्तर कुछ तेज आवाज में ही दिया था। सुगना ने भी सरयू सिंह का वह उत्तर सुन लिया और अपनी चोरी न पकड़े जाने से वह खुश हो गयी। खुशी ने उसकी उत्तेजना को फिर जागृत कर दिया और वह एक बार फिर टिन के डब्बे पर चढ़कर अपनी सास की चुदाई देखने आ गयी।

सुगना की चूचियों को देखने के बाद सरयू सिंह सिंह की उत्तेजना नए आयाम पर जा पहुंची थी। उनके दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सुगना घूम रही थी।
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कजरी अचानक उन्हें सुगना दिखाई पड़ने लगी। कजरी की दोनों जाँघों के बीच उस फूली हुई चूत में वह सुगना की बुर ढूंढने लगे। उनके मन से सुगना के प्रति बहू और पुत्री का भाव बिल्कुल खत्म हो चुका था। वह उन्हें कामोत्तेजना से भरी एक युवा नारी के रूप में दिखाई पड़ने लगी जो अब से कुछ देर पहले उनकी और कजरी की रासलीला देख रही थी।

सरयू सिंह ने जब सुगना की मां पदमा को चोदा था तब उसकी उम्र भी सुगना के लगभग बराबर थी। सुगना की कामुकता और मादकता ने सरयू सिंह के मन में सुगना को एक भोगने योग्य नारी के रूप में प्रस्तुत कर दिया था। रिश्तो की मर्यादा को तार-तार कर जब सुगना स्वयं ही उनके करीब आना चाहती थी तो उनका यह कर्तव्य बनता था कि वह कामोत्तेजना से भरी उस सुंदरी की इच्छा पूरी करें।

उधर कजरी और सरयू सिंह के बीच हुआ वार्तालाप सुगना ने सुन लिया था उसने अपने न पकड़े जाने पर ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया और एक बार फिर उसी टीन के डिब्बे पर चढ़कर कजरी और सरयू सिंह की रास लीला देखने लगी।

सरयू सिंह का दिमाग लंड के आधीन हो चुका था। उन्होंने मन ही मन यह सोच लिया की उनकी बहू सुगना एक बार फिर झरोखे से उनकी चुदाई देख रही होगी इस ख्याल मात्र से ही उनकी उत्तेजना भड़क उठी वह अपनी सुगना बहू को अद्भुत नजारा दिखाने के लिए बेताब हो उठे। उन्होंने झुककर कजरी की बुर को चूम लिया।


उन्होंने कजरी की जांघों को फैला कर उसके बुर को सुगना की निगाहों के ठीक सामने कर दिया। वह अपनी उंगलियों से कजरी की बुर फैलाने लगे। सुगना सिहर रही थी। सरयू सिंह कजरी के बगल में थे उन्होंने अपनी जीभ कजरी के भगनासे पर रगड़ना शुरू कर दिया।
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कजरी अपनी जाँघें कभी फैला रही थी और कभी सिकोड रही थी।

सरयू सिंह अपनी एक हथेली से अपने लंड को सहला रहे थे वह बार बार उस झरोखे को देख रही थे। सुगना वह दृश्य देख रही थी कभी-कभी उसे लगता जैसे आज कुछ नया हो रहा है। कभी-कभी वह सोचती कहीं उसके बाबूजी को उसकी इस चोरी का पता तो नहीं चल गया? परंतु उसकी उत्तेजना इस संभावना को नजरअंदाज कर उसे झरोखे पर बनाए रखती।

उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसके बाबू जी उसकी इस चोरी को पकड़ चुके थे। उधर कजरी अब पूरी तरह गर्म हो चुकी थी उसने कहा

"कुंवर जी अब तड़पाई मत आ जायीं"

सरयू सिंह ने कहा

"का जाने काहें आज तहरा के खूब चोदे के मन करता"

" का बात बा शहर में कोनो नया छोकरी पसंद आई गइल हा का?"

सुगना को अचानक ही उस होटल में हुयी रात की घटना याद आ गई जब उसके बाबूजी ने उसकी चुचियों पर टॉर्च मारा था और आज एक बार फिर उसकी चूचियां उसकी बाबूजी के टॉर्च से प्रकाशमान हो गई थीं। सरयू सिंह ने कजरी की चारपाई को खींचकर इस तरह व्यवस्थित कर दिया जिससे सुगना को चुदाई स्पस्ट दिखाई पड़े।

कजरी सरयू सिंह के उत्साह को देखकर आश्चर्यचकित हो गयी उसने पूछा

" चारपाई काहे खींच तानी" उन्होंने उत्तर दिया

"आज शुभ दिन भर पूरब ओरे मुंह करके चोदला पर ढेर मजा मिली"

कजरी और सुगना दोनों को यह बात कतई समझ ना आई पर सुगना मुस्कुरा रही थी अब कजरी की बुर उसे और अच्छे से दिखाई देने लगी थी।

सरयू सिंह ने अपना लंड अपनी कजरी भौजी की चूत में डालना शुरू कर दिया। कजरी की आंखें बड़ी होती चली गई। दस पंद्रह साल चुदने के बाद भी जब सरयू सिंह का मूसल कजरी की ओखली में प्रवेश करता उसकी आंखें फैल जाती। वह आज भी एक नवयौवना की तरह चुदने का आनंद लेती सरयू सिंह भी अपनी कजरी भौजी की चूत के मुरीद थे।

सुगना इस बात से घबरा रही थी कि जब उसकी सास की फूली हुई चुदी चुदाई बुर सरयू सिंह के लंड को आसानी से नहीं ले पा रही थी तो वह अपनी छोटी सी कोमल बुर में यह मोटा मुसल कैसे ले पाएगी। वह सिहर रही थी। उसकी उत्तेजना ने उसके डर को नजरअंदाज कर दिया था। वह उसकी आंखों के सामने हो रही इस चुदाई से अभिभूत थी। सरयू सिंह ने अपना लंड आगे पीछे करना शुरू कर दिया। वह कजरी की चूचियों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगे।

कमरे में घपा... घप ….घपा….घप... की आवाजें गूंजने लगी. कजरी के कहा…

"कुंवर जी तनी धीरे धीरे……"

सरयू सिंह उसे लगातार चोद रहे थे। बीच-बीच में वह अपनी निगाह झरोखे के तरफ ले जाते जैसे वह सुगना से पूछना चाहते हों

"सुगना बाबू ठीक लगा ता नु"

जब भी सुगना उन्हें अपनी तरफ देखते हुए पाती वह सिहर उठती। उसके मन में एक बार फिर डर आ जाता कि कहीं बाबूजी उसकी असलियत जान तो नहीं रहे हैं। जितना ही वह सोचती उतना ही वह सिहर उठती पर उत्तेजना ने उसे अब बेशर्म बना दिया था। सुगना अपनी बुर को तेजी से सहलाए जा रही थी। वह इस अद्भुत चुदाई को देखकर सुध बुध खो बैठी थी। एक हाथ से कभी वह अपनी चूची सहलाती कभी बुर। दूसरा हाँथ प्लास्टर लगे होने के कारण अपनी उपयोगिता खो चुका था।

कजरी की जाँघे तनने लगीं। वह " कुंवर जी….. कुंवर जी… आह…..ईईईई।।।।आ।।ई…..हुऊऊऊ हम्म्म्म। की आवाजें निकालते हुए स्खलन के लिए तैयार हो गयी। सरयू सिंह ने आज अपने मन में अपनी बहू सुगना को कमर के नीचे भी नग्न कर लिया था। वह उसकी कोमल बुर के आकार की कल्पना तो नहीं कर पा रहे थे और उन्होंने मन ही मन उसकी खूबसूरती को जरूर सोच लिया था। कजरी की बुर चोदते समय उनके दिमाग में कभी सुगना की मां पदमा आ रही थी कभी स्वयं सुनना ।

सरयू सिंह सुगना को अपने जहन में रखकर कजरी की बुर चोद रहे थे इसी कारण अब वह उस झरोखे की तरफ देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। आज उन्होंने कजरी के साथ साथ अपनी बहू सुगना को भी अपनी वासना के दायरे में ले लिया था।

कजरी की हिलती हुई चूचियां उन्हें सुगना की चूचियां प्रतीत होने लगी। सरयू सिंह से अब बर्दाश्त ना हुआ। उन्होंने झुक कर सुगना ( कजरी) की चुचियों को मुंह में भर लिया उनकी आत्मग्लानि एक पल के लिए गायब हो गयी। कजरी की चुचियों को चूसते हुए उन्हें सुगना की चूचियां ही याद आती रहीं। वह मन ही मन सुगना की चूचियों को चूसते रहें और अपने ख्वाबों में अपनी बहू सुगना की बुर चोदते रहे। कुछ पलों के लिए वासना पूरी तरह उनके दिमाग पर हावी हो चली थी।

कजरी सरयू सिंह के इस उत्तेजक व्यवहार से आश्चर्यचकित थी । सरयू सिंह की अद्भुत चुदाई और चूची पीने के अंदाज से वह अद्भुत तरीके से झड़ने लगी। वह कभी अपनी जांघों को फैलाती कभी सिकोडती कभी उनकी कमर पर लपेट लेती।

वह हांफ रही थी और उनकी पीठ पर नाखून गड़ा रही थी। वह सरयू सिंह के विशाल शरीर में समा जाना चाहती थी। कजरी के शरीर की हलचल कम होते ही सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाल लिया। लंड से वीर्य की धार फूट पड़ी। कजरी के गोरे शरीर पर लंड से निकल रहा सफेद वीर्य गिर रहा था। कभी वह कजरी के चेहरे पर जाता कभी गर्दन पर कभी चुचियों पर। सरयू सिंह अपने हाथों से अपने लंड को पकड़ कर अपनी भाभी के हर अंग को सींच रहे थे।
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उत्तेजना से भरे उनके मन में एक बार आया कि वह वीर्य की एक धार अपनी बहू सुगना के लिए झरोखे की तरफ भी उछाल दें पर वह ऐसा नहीं कर पाए।

उत्तेजना का खेल खत्म हो रहा था वीर्य की आखिरी बूंद निकल चुकी थी तना हुआ लंड सरयू सिंह अपनी कजरी भाभी के भग्नासे पर अभी भी पटक रहे थे। कजरी अपनी हथेलियों से अपनी बुर को ढक कर उस प्रहार से बचना चाह रही थी। उसकी बुर अब संवेदनशील हो चली थी।

उधर सुगना आज अपनी उंगलियों से ही स्खलित हो गई थी। आज देखे गए दृश्य उसके जेहन पर छा गए थे। सरयू सिंह अब उसकी ख्वाबों के शहजादे बन गए थे। उसने मन ही मन सरयू सिंह से चुदने के लिए ठान लिया था। वह उसके आदर्श और अपेक्षित पुरुष बन गए थे। रिश्ते नाते त्याग कर सुगना अपनी जांघें फैलाकर अपने बाबू जी का स्वागत करने को तैयार हो रही थी। वह सरयू सिंह से मिलन के लिए भगवान से प्रार्थना कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह ससुर और बहू को मिलाने का प्रण कर चुकी थी।

शेष अगले भाग में......
 
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सुबह सुबह दालान में बैठे हुए सरयू सिंह धूप सेंक रहे थे। कजरी ने जो तेल कल रात उनके शरीर पर लगाया उसका अंश अब भी उनके शरीर पर था। वह अपने घर की बदली हुई परिस्थितियों के बारे में सोच रहे थे।

सुगना को ससुराल आए को चार-पांच महीने बीत चुके थे। सुगना जब इस घर में आई थी उन्होंने उसे एक बहू और पुत्री के रूप में ही माना था। उसके प्रति उनके मन में कामुकता कतई न थी। ऐसा नहीं था की सुगना की कद काठी उन्हें दिखाई नहीं पड़ती थी। वह तो नारी शरीर के पारखी थे पर जब मन में भाव गलत ना हो तो यह आवश्यक नहीं कि सुंदरता हमेशा उत्तेजना को जन्म दे।

परन्तु पिछले एक दो महीनों में सुगना के व्यवहार में परिवर्तन आया था। वो उस परिवर्तन के बारे में खो गए। कैसे उन्होंने हैण्डपम्प पर बर्तन धोते समय उसकी चूँचियों का उपरी भाग देखा वो भी एक बार नहीं की कई बार। क्या सुगना उन्हें वह दिखाना चाहती थी? क्या वह अकस्मात हुआ था ? पर कई बार? यह महज संयोग था या सुगना उन्हें उकसा रही थी? प्रश्न कई थे और उत्तर सरयू सिंह के विवेकाधीन था। उत्तेजना और पारिवारिक संबंध दो अलग-अलग पलड़ों पर थे तराजू की डंडी सरयू सिंह के हाथ में थी। दिमाग पारिवारिक संबंधों का साथ दे रहा था पर लंड उत्तेजना की तरफ झुक रहा था। नियति समय-समय पर उत्तेजना का पलड़ा भारी कर रही थी। उनके और सुगना के बीच दूरियां तेजी से कम हो रही थीं।

विशेषकर होटल में बितायी गयी उस रात जब उन्होंने सुगना की चूँचियों को नग्न देखा था उनकी उत्तेजना ने सुगना से पुत्री का दर्जा छीन लिया। और कल की रात …. वो उत्तेजना की पराकाष्ठा थी… सारे संबंध कामुकता की भेंट चढ़ गए थे।

कैसे वह अपनी भौजी कजरी को चोद रहे थे वह भी सुगना को दिखा दिखा कर और तो और उत्तेजना के उत्कर्ष पर वह अपने मन मे अपनी पुत्री समान बहु को चोदने लगे थे।

उन्हें एक बार फिर आत्मग्लानि होने लगी। सुगना जवान थी उसे सम्भोग सुख प्राप्त नहीं हो रहा था इसके कारण भी वही थे जिन्होंने बिना रतन की सहमति से उसका विवाह सुगना से कर दिया था। ऐसी युवती यदि किसी जोड़े को सम्भोग करते हुए यदि देखती भी हो तो उसमें क्या बुराई थी? क्या इस देखने मात्र से वह उनकी बहू बेटी न रहेगी?

सरयू सिंह की दुविधा कायम थी। तभी सुगना की पायल की आवाज आई वो पास आ रही थी…

"बाबुजी दूध ले लीं" सुगना ने अपनी नजरें झुकाई हुई थी कल रात के दृश्य के बाद वह अभी उनसे बात कर पाने की स्थिति में नहीं थी।

सरयू सिंह ने दूध ले लिया। सुगना वापस जा रही थी और सरयू सिंह की निगाहें उसकी गोरी और बेदाग पीठ से चिपक गयीं जब तक वो निगाहें फिसलते हुए नितंबो तक पहुंचतीं सुगना निगाहों से ओझल हो गयी।

सुगना जिस आत्मीयता से उन्हें बाबूजी कहती थी वह भाव सरयू सिंह के विचारों पर तुरंत लगाम लगा देता। सरयू सिंह की कामुक सोच तुरंत ठंडी पड़ जाती। उन्हें यह प्रतीत होने लगता कि सुगना उनके बारे में कभी कामुक तरीके से नहीं सोच सकती। वह कभी-कभी दुखी भी हो जाते। परंतु मन के किसी कोने में उनकी कामुकता ने सुगना को अपनी मलिका का दर्जा दे दिया था।

कुछ ही दिनों बाद दशहरा आने वाला था. सुगना का पति रतन सुगना के आने के कुछ दिनों बाद मुंबई चला गया था जो अभी तक नहीं लौटा था वह साल में दो बार आया करता एक बार दशहरा या दिवाली पर दूसरी बार होली के अवसर पर।

शहर में उसकी महाराष्ट्रीयन पत्नी बबीता एक होटल की रिसेप्शनिस्ट थी वह अनुपम सुंदरी थी और शहर की आधुनिकता में ढली हुई थी।

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होटल के रिसेप्शन पर रहने के कारण उसे हमेशा टिपटॉप रहना पड़ता था। रतन से उसकी मुलाकात भी उसी होटल में हुई थी जब वह अपने बॉस के साथ उस होटल में किसी कार्य के लिए गया हुआ था। रतन एक आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था। वह सरयू सिंह का भतीजा था और सरयू सिंह के परिवार का अंश था। उसमें सरयू सिंह जैसी मर्दानगी तो नहीं थी पर कम अभी नहीं थी।

बबीता और रतन करीब आते गए । बबीता की गोरी चिकनी चूत में अपना लंड डालकर रतन सारी दुनिया भूल गया था। उसे एक पल के लिए भी सुगना का ख्याल नहीं आया था। जब एक बार बबीता की मलाईदार चूत का चस्का रतन को लग गया वह दिन प्रतिदिन उसके करीब आता गया। गांव के भोले भाले रतन को दुनिया का अनोखा सुख प्राप्त हो चला था। उसका भोलापन बबीता ने हर लिया और उसे एक शहर का इंसान बना दिया चतुर और चालाक।

बबीता ने रतन पर विवाह करने का दबाव बढ़ाया तब जाकर रतन को सुगना का ख्याल आया। रतन दुविधा में फंस गया अंत में वह बबीता का आग्रह न ठुकरा पाया और सरयू सिंह और कजरी से अनुमति लिए बिना विवाह कर लिया। उसने मन ही मन अपने और सुगना के बीच हुए बाल विवाह को नकार दिया था।

बबीता सच में सुंदर थी छोटी-छोटी मझौली चूचियां और छोटे चिकने गोलनितंब लिए हुए वह शहर की एक सुंदर लड़की थी। रतन उसकी खूबसूरती में पूरी तरह खो गया था यही कारण था कि जब वह गवना के बाद अपनी पत्नी सुगना को देखा तो ग्रामीण और शहरी लड़की का जो अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है उसमें बबीता सुगना से कहीं ज्यादा खूबसूरत दिखाई पड़ी। रतन वैसे भी व्यभिचारी नहीं था। उसने सुगना को हाथ तक नहीं लगाया और वह उसे सुहाग की सेज पर अकेला छोड़कर वापस चला गया.

कजरी के मन में अभी भी उम्मीद कायम थी कि शायद इस बार रतन और सुगना के बीच कुछ नजदीकियां बढें और सुगना को पत्नी सुख की प्राप्ति हो जिसके लिए वह अब अधीर हो चली थी।

कजरी को इस बात की भनक न थी की सुगना और सरयू सिंह इस तरह करीब आ रहे हैं। वह उन्हें घुल मिलकर बात करते हुए देखती और सुगना की खुशी देखकर वह बेहद प्रसन्न हो जाती पर इन नज़दीकियों में उसे कामुकता की उम्मीद कतई न थी। उसे यह भी ज्ञात नहीं था कि कल रात नियति ने उसे भी अपनी साजिश का एक हिस्सा बना लिया था।

सुगना के हाथ में प्लास्टर चढ़ा हुआ था कजरी ने उसे पूरा आराम करने के लिए कहा. वैसे भी एक हाथ से कोई काम होना संभव न था. वह सरयू सिंह के पास ज्यादा समय व्यतीत करती. सरयू सिंह को भी उसका साथ अच्छा लगता था। वह उनकी नई नई प्रेमिका बन रही थी। सरयू सिंह ने अब उसे पदमा के रुप में देखना शुरू कर दिया था। वह एक विवाहिता थी जो उनके भतीजे की पत्नी थी। यह नियति का खेल था कि वह अब तक कुंवारी थी अन्यथा यह वही अवस्था थी जब पद्मा ने उनके साथ पहली बार संभोग किया था। सरयू सिंह का हृदय परिवर्तन हो रहा था। अभी दो-चार दिन पहले ही उन्होंने कजरी को सुगना बनाकर अपनी वासना शांत की थी और सुगना ने अपनी सास को उन्हें चोदते हुए देखा था.

घर के पिछवाड़े में अमरूद के पेड़ पर फल आये हुए थे। सुबह-सुबह सुगना नहा कर लहंगा और चोली पहने टहल रही थी।

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लहंगे का कपड़ा बेहद मुलायम था। सुगना को कभी-कभी यह एहसास होता जैसे वह नग्न ही घूम रही हो हाथ मे लगे प्लास्टर को छोड़कर उसका कमनीय शरीर बेहद आकर्षक लग रहा था। सरयू सिंह अचानक घूमते हुए सुगना के पास आ गए। सुगना चहक उठी। उसकी निगाह एक अमरुद पर टिकी थी जो लगभग पक चुका था। उसने सरयू सिंह से कहा

"बाबूजी उ अमरुदवा तूर दी"

सरयू सिंह ने उसे अपने हाथों से तोड़ने की कोशिश की पर उसकी ऊंचाई कुछ ज्यादा थी. वह अगल-बगल किसी उचित लकड़ी की तलाश करने लगे। तभी सुगना ने कहा "बाबू जी हमरा के उठायीं हम तूर लेब"

सरयू सिंह को एक पल के लिए यह अजीब लगा अपनी जवान बहु को उपर उठाने का मतलब उसके शरीर को बेहद करीब से छूना पड़ता।

सुगना अपने दोनों हाथ ऊपर कर अमरूद की डाली को पकड़ने की कोशिश करने लगी। वह सरयू सिंह को उसे उठाने के लिए आमंत्रित कर रही थी। सरयू सिंह ने कोई रास्ता न देख सुगना को पीछे जाकर उसकी जांघों को पकड़ लिया और ऊपर उठाने लगे। सुगना आगे की तरफ गिरने लगी। सुगना ने फिर कहा

"बाबूजी आगे से पकड़ीं ना त हम गिर जाइब"

अब तक सरयू सिंह में पिस्टन में लहू भरना प्रारंभ हो चुका था। कामुकता जाग चुकी थी।

सरयू सिंह ने सुगना को सामने से पकड़ लिया। उनकी मजबूत बांहों ने सुगना के नितंबों के नीचे अपना घेरा बना लिया और सरयू सिंह सुगना को लेकर खड़े हो गए। सुगना के मुलायम और कोमल नितंब उनकी मजबूत भुजाओ पर टिक गए। लहंगे का मुलायम कपड़ा सरयू सिंह और सुगना के नितंबों के बीच कोई अवरोध उत्पन्न नहीं कर पा रहा था सरयू सिंह को एक पल के लिए ऐसा एहसास हुआ जैसे उन्होंने नंगी सुगना को अपनी गोद में उठा लिया हूं उनका लंड थिरक उठा।

सरयू सिंह का चेहरा सुगना की नंगी नाभि से टकरा रहा था। सरयू सिंह को एक साथ सुगना के कई अंगों का स्पर्श मिल रहा था। एक तरफ सुगना के कोमल नितम्ब उनकी भुजाओं से छूकर एक सुखद एहसास दे रहे थे वहीं वह अपने गालों और चेहरे से सुगना ने चिकने और नग्न पेट को महसूस कर रहे थे।

अचानक उन्होंने अपने होंठ उसकी नाभि से सटा दिए। सुगना सिहर उठी। उसने अपने हाथ अपने बाबूजी के सर पर रख दिए। वह इस दुविधा में थी कि अपने बाबूजी के सर को अपने पेट की तरफ खींचे या बाहर की धकेले। दरअसल सरयू सिंह के नाक के नीचे खुजली हुयी थी जिसे उन्होंने सुगना के पेट से रगड़ कर शांत करने की कोशिश की थी। सुगना तो अब सरयू सिंह की हर हरकत से ही उत्तेजित जो जाती थी चाहे वह अकस्मात ही क्यों न हुआ हो।

सुगना ने कहा

"बाबू जी थोड़ा और ऊपर उठायीं"

सरयू सिंह ने अपनी भुजाएं और ऊपर कर दी. सुगना और ऊपर उठ गई। सरयू सिंह का चेहरा सुगना की जाँघों के जोड़ पर आ गया। सरयू सिंह के होंठ अब ठीक सुगना की बूर के उपर थे यदि लहंगा न होता तो सरयू सिंह अपनी बहू की पवित्र गुफा का न सिर्फ स्पर्श महसूस कर लेते अपितु उस पर आए मदन रस का स्वाद भी ले लेते।

सुगना की वह अद्भुत दरार गीली हो चुकी थी। उसकी खुसबू सरयू सिंह के नथुनों से टकरा रही थी। चुदी हुयी चूत की खुश्बू सरयू सिंह बखूबी पहचानते थे पर सुगना वह तो पाक साफ और पवित्र थी।

वो सुगना की बुर पर ध्यान लगा कर आंनद लेने लगे। उनकी उत्तेजना जागृत हो चली थी। धोती के नीचे लंड लंगोट फाड़कर बाहर आने को तैयार था। सुगना सरयू सिंह की गर्म सांसे अपनी बुर पर महसूस कर रही थी।

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वह जान बूझ कर अमरूद तोड़ते हुए अपनी जांघो के जोड़ को अपने बाबुजी चेहरे पर रगड़ रही थी।

नियति यह प्रेमालाप देख रही थी। सरयू सिंह इस अद्भुत पल का आनंद ले रहे थे तभी सुगना ने वह अमरुद पकड़ लिया। उधर सुगना ने अमरुद पकड़ा और उधर सुगना की बुर का भग्नासा सरयू सिंह की नाक से टकरा गया। ससुर और बहू दोनों इस छुअन से सिहर उठे।

सुगना खिलखिला कर हंसी और बोली "बाबूजी अमरूद मिल गईल अब उतार दीं"

सरयू सिंह ने सुगना को धीरे-धीरे नीचे करते गए. नीचे उतरते उतरते एक बार सुगना की चूँचियां उनके चेहरे से छूती हुई नीचे चली गई। उनकी हथेलियों में भी सुगना के नितंबों का स्पर्श महसूस कर लिया था। एक पल के लिए सरयू सिंह की उंगलियों ने सुगना के मुलायम नितंबों को दबाना चाहा पर सरयू सिंह ने दिमाग ने रोक लिया।

यह उत्तेजना सरयु सिंह के लिए बिल्कुल नयी थी। वह बेहद खुश थे। जब सुगना नीचे उतर रही थी वह भी पूरी तरह सचेत थी सरयू सिंह के लंड में आया उभार सुगना ने भी महसूस कर लिया था। ससुर और बहू तेजी से करीब आ रहे थे। नियति मुस्कुरा रही थी उसकी साजिश कामयाब होने वाली थी.

इधर सरयू सिंह सुगना से अंतरंग हो रहे थे उधर उनका दुश्मन सुधीर वकील जिंदगी की जंग लड़ रहा था……..


शेष अगले भाग में।

Have a nice sunday.
 
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इधर सरयू सिंह सुगना से अंतरंग हो रहे थे उधर उनका दुश्मन सुधीर वकील जिंदगी की जंग लड़ रहा था……..

हरिया बाहर दरवाजे पर खड़ा सरयू भैया... सरयु भैया... पुकार रहा था।

"का भईल हो."

"हम शहर जा तानी। तू हूँ चलके.. सुघीरवा के देख आवा। ओकरा होश आ गईल बा का जाने पुलिस ले तोहरा के मत फसा दे"

बात सच थी। सुधीर वकील था जितना चतुर उतना ही हरामी। संयोग से उस दिन सरयू सिंह भी शहर में थे जिस दिन सुधीर की कुटाई हुई थी। यदि वह पुलिस के सामने उनका नाम ले लेता तो सरयू सिंह के लिए नई मुसीबत खड़ी हो जाती। उन्होंने हरिया का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

"ठीक बा हम तैयार हो के आवतानी"

वह आगन में आ गए और कजरी और सुगना को शहर जाने की सूचना दी। वह दोनों झटपट उनके लिये नाश्ते की तैयारी में लग गयीं। उन्हीने कजरी और सुगना से पूछा

"शहर से कुछ ले आवे के बा?"

सुगना चाहती तो बहुत कुछ पर उसने कहा "कब ले आइब"

सुगना के मुंह से यह शब्द सुनकर सरयू सिंह खुश हो गए. उनकी प्यारी सुगना अब उनका इंतजार किया करती है यह बात इनके दिल को छू गई.

कजरी ने कहा

"देखीं सुगना बेटी राउर केतना ख्याल राखे ले"

यह कह कर कजरी ने किए धरे पर पानी फेर दिया। सुगना की कुवारी बुर सूंघने के बाद सरयू सिंह ने सुगना से बेटी का दर्जा छीन लिया था।

रास्ते भर वो सुगना के साथ अपनी रेल यात्रा के दौरान उसके स्पर्श को याद करते रहे। धोती के अंदर लंड परेशांन होकर उन्हें गरिया रहा था। लेना एक नया देना दो, वो बेचारा खामखां परेशान हो रहा था।

दोपहर तक सरयू सिंह हरिया के साथ अस्पताल पहुंच चुके थे। उन्हें अस्पताल दुनिया की सबसे गंदी जगह लगती थी जहां सिर्फ और सिर्फ दर्द था। यहां भी वह अपना दर्द लेकर ही आए थे पर यह दर्द उनके डर के कारण जन्मा था और उन्हें मजबूरन सुधीर से मिलने आना पड़ा था।

हॉस्पिटल के बेड पर लेटा हुआ सुधीर अपनी आंखें खोल कर टुकुर-टुकुर देख रहा था। उसने सरयू सिंह और हरिया को पहचान लिया। सरयू सिंह ने पूछा

"कैसे हो गईल हो?"

तभी सुधीर की पत्नी ने घुंघट के अंदर से कहा

"इहे चारों ओर केस करत चलेले। रामपुर के तीन चार गो लड़का मरले रहले हा सो"

सरयू सिंह को यह जानकर हर्ष हुआ की सुधीर को मारने वाले लोग पहचान लिए गए थे और उनका इस केस से कोई संबंध नहीं था। सुधीर की आंखों में भी नफरत कम दिखाई पड़ रही थी। सरयू सिंह का हॉस्पिटल आना लगभग सफल हो गया था।

वह कुछ देर सुधीर के साथ रहे साथ में लाया हुआ फल उन्होंने सुधीर की पत्नी को पकड़ाया और बोले

"भगवान इनका के जल्दी ठीक करो फेर केस भी त लड़े के बा।"

उन्होंने सुधीर को हंसाने की कोशिश की थी। सुधीर की नफरत निश्चय ही घट चुकी थी वह मुस्कुराने लगा। घुंघट के अंदर से सुधीर की पत्नी की हंसी सुनाई दी।

सरयू सिंह खुश हो गए और हरिया के साथ हॉस्पिटल से बाहर आ गए। आज का दिन शुभ हो गया था। उन्होंने खेती किसानी से संबंधित शहर के कुछ और कार्य निपटाए और वापसी में स्टेशन जाने के लिए निकल पड़े। रिक्शे पर आज सुगना की जगह हरिया बैठा हुआ था।

एक वह दिन था जब उत्तेजना चरम पर थी और एक आज का दिन था। वह रास्ते में फिर सुगना की यादों में खो गए। उन्हें वह होटल दिखाई दे गया जिसमें उन्होंने सुगना के साथ रात गुजारी थी और उसकी मदमस्त चूचियों के दर्शन किए थे। होटल से कुछ ही दूर पर वह कपड़े की दुकान भी दिखाई पड़ी। उस दुकान के बगल में लटके हुए औरतों के अंग वस्त्र देखकर सरयू सिंह का मन ललच गया। वह मॉडल उन्हें सुगना दिखाई देने लगी। उनके मन में आया कि वह रिक्शा रोककर अपनी सुगना के लिए वह अंतर्वस्त्र ले लें और उसे मॉडल की तरह सजा कर …...आगे वह स्वयं शर्मा गए। उनकी सोच पर दिमाग का नियंत्रण कायम था परंतु उनकी लंगोट में हलचल होने लगी लगी। लंड का तनाव बढ़ रहा था उन्हें दर्द का एहसास होने लगा।

हरिया ने कहा

"कहां भुलाईल बाड़ा भैया"

सरयू सिंह चाह कर भी हरिया को हकीकत नहीं बता सकते थे. जहां उनका सुखचैन खोया था वह उनकी अपनी बहू सुगना की बुर थी। उन्होंने बात टाल दी।

स्टेशन पर उतरने के बाद उन्होंने सुगना और कजरी के लिए उनकी पसंद की मिठाइयां लीं और वापस ट्रेन पकड़ने के लिए चल पड़े.

उधर सुधीर की पत्नी रानी ने कहा

"सरयू जी.. केतना अच्छा आदमी हवे आपके देखे आईल रहले हा"

सुधीर ने रानी की बात से सहमति जताई उसे अब सच में अफसोस हो रहा था कि उसने सरयू सिंह पर बिना मतलब केस कर दिया था। उस विवाद का समाधान बैठकर भी निकाला जा सकता था जिसमें हर व्यक्ति को अपना अपना रुख थोड़ा नरम करना था। रानी सरयू सिंह के व्यक्तित्व से प्रभावित हो गई थी। मजबूत कद काठी के सरयू सिंह वैसे भी स्त्रियों के पसंदीदा थे।

जिस तरह सुंदर स्त्री हर वर्ग के पुरुषों को पसंद आती है वही हाल सरयू सिंह का था जिस स्त्री के योनि से प्रेम रस बहता हो वह सरयू सिंह को देख कर एक बार जरूर उनकी कद काठी की तारीफ करती होगी। उनसे अंतरंग होना या ना होना वह स्त्री की मानसिकता पर निर्भर था पर शरीर सिंह का व्यक्तित्व स्त्रियों को प्रभावित करने में सक्षम था.

घर पहुंच कर सुगना थाली में पानी लेकर अपने बाबुजी के पैर धोने लगी। उसकी कोमल हथेलियां उनके पैरों को पानी से धुलते हुए मालिश भी कर रहीं थीं।

सरयू सिंह की निगाह उसकी चूचियों पर टिकी थी। सुगना का ध्यान पैर धोने पर लगा हुआ था और उसका आंचल छाती से हट गया था चूँचियों की झलक सरयू सिंह के मन में उत्तेजना पैदा कर रही थी उधर सुगना की निगाह बीच बीच मे सरयू सिंह के लंगोट पर जा रही थी उसके अंदर छुपा जीव अपना आकार बढ़ा रहा था। सुगना अब समझदार हो चली थी। उसने अपनी चूचियों पर नजर डाली और आँचल खींच लिया।

कजरी गुड़ और पानी लेकर आ गयी थी। सरयू सिंह के झोले में सिर्फ मिठाई देखकर सुगना थोड़ा मायूस हो गई। अपने मन के किसी कोने में उसने कल्पना की थी कि उसके बाबुजी उसके लिए वह अंतर्वस्त्र खरीद लाएंगे पर यह सिर्फ और सिर्फ उसकी कोरी कल्पना थी। उसे पता था यह संभव नहीं होगा फिर भी मन तो मन होता है खुद ही बेतुकी चीजें सोचता है और उनके पूरा न होने पर स्वयं दुखी हो जाता है।

नियति ने सुगना को निराश न किया। आज सुगना का जन्मदिन था. उसने आज सुबह सुबह ही घर के सारे काम निपटाये और स्नान करके अपनी वही खूबसूरत लहंगा चोली पहन ली जो सरयू सिंह ने उसे होली के दिन उपहार स्वरूप दिया था। जब भी सुगना सुंदर कपड़े पहनती वह खुद को उस मॉडल के रूप में देखती पर उसके पास अंतर्वस्त्र नहीं थे लहंगे के नीचे उसे अपनी नग्नता का एहसास होता वह सिहर उठती और मन ही मन आनंदित होती। कपड़े पहन कर वह घर के पिछवाड़े में बाल सुखाने लगी।

सरयू सिंह सब्जियों की क्यारी में कार्य कर रहे थे। कजरी रसोई में सुगना के लिए मालपुआ बना रही थी। आज घर में खुशी का माहौल था। सरयू सिंह सुगना को मुस्कुरा कर देख रहे थे वह आज बहुत सुंदर लग रही थी। ससुर और बहू में कुछ नजदीकियां तो आ ही चुकी थीं दोनों मन ही मन एक दूसरे के प्रति कामुकता लिए हुए थे।

नियति ने तरह-तरह की परिस्थितियां बनाकर उन दोनों को इतना करीब ला दिया था और आज फिर नियत ने अपनी एक चाल चल दी थी। एक उड़ने वाला कीड़ा सुगना के लहंगे में घुस गया। फर्रर्रर... फुर्ररर….की आवाजें आने लगी सुगना परेशान हो रही थी। आवाज उसके बिल्कुल करीब से आ रही थी पर वह जीव उसे दिखाई नहीं पड़ रहा था तभी वह उसकी नग्न जांघों से छू गया। वह कीड़ा स्वयं एक अनजाने घेरे में आ चुका था। वह कभी सुगना के घुटने को तो कभी उसके कोमल जाँघों को छू रहा था।

सुगना अपने हाथों से उसे पकड़ना चाहती पर वह अपनी जगह लगातार बदल रहा था। सुगना ने उसे पकड़ने का प्रयास किया पर असफल रही वह बेचैन थी। वो अपने हाथ इधर-उधर कर रही थी तभी सरयू सिंह की निगाह उस पर पड़ गई उन्होंने पूछा

"का भईल सुगना "

उसने कहा

"लागा ता कोनो कीड़ा घुस गईल बा"

सरयू सिंह क्यारी छोड़कर सुनना के पास आ गये और उस कीड़े को पकड़ने का प्रयास करने लगे। सुगना ने अपने हाथों से अपने लहंगे को घुटनों तक उठा लिया था उसके कोमल पैर सरयू सिंह की आंखों के सामने थे। इस प्रक्रिया में उनके हाथ सुगना के पैरों से छूने लगे। वह कभी उसकी जांघों को छूते कभी घुटनों को। सुगना परेशान तो थी अब उत्तेजित भी हो चली थी। उसे मन ही मन यह डर भी था कि कहीं वह कीड़ा उसे काट ना ले अंततः सुगना ने स्वयं ही वह कीड़ा पकड़ लिया। वह उसकी दाहिनी जांघ के ठीक ऊपर था जिसे सुगना ने अपनी उंगलियों में पकड़ रखा था।

कीड़े और सुगना के उंगलियों के बीच सुगना का खूबसूरत लहंगा था । अब मुश्किल यह थी कि उस कीडे को बाहर कैसे निकाला जाए। उसके हाथ में प्लास्टर बधे होने की वजह से वह अपने दूसरे हाथ का प्रयोग नहीं कर पा रही थी. उसने कहा

"बाऊजी हम पकड़ ले ले बानी इकरा के निकाल दी" सरयू सिंह उत्साहित हो गए वह पास आकर सुगना का लहंगा ऊपर उठाने लगे. सुगना की निगाह अपने लहंगे की तरफ जाते वह सिहर उठी सरयू सिंह जमीन पर उकड़ू बैठे हुए थे और सुगना का लहंगा घुटनों के ठीक ऊपर आ चुका था। सरयू सिंह इसी पसोपेश में थे कि वह लहंगे को और ऊपर उठाएं या नहीं पर कीड़ा पकड़ने के लिए उन्हें अपने हाथ तो अंदर ले ही जाने थे।

सरयू सिंह ने सुगना की तरफ देखा और सुगना ने अपनी आंखें शर्म से बंद कर लीं। अब तक नैनों की भाषा सरयू सिंह और सुगना समझने लगे थे ।

सरयू सिंह ने लहंगा और ऊपर उठा दिया उनकी निगाहें पहले तो कीड़े को देख रहीं थीं पर उन्हें सुगना की जांघों के बीच का जोड़ दिखाई पड़ गया। वह कीड़े को एक पल के लिए भूल ही गए सुगना की हल्की रोयेंदार कमसीन बुर को देखकर को वह मदहोश हो गए। उनका ध्यान कीड़े पर से हट गया।

बाहर बहती हुई हवा ने जब सुगना की कोमल बुर को छुआ सुगना भी सिहर उठी। उसे अपनी नग्नता का एहसास हो गया उसने यह महसूस कर लिया कि उसके बाबूजी उसकी कोमल बुर को देख रहे हैं यह सोचकर वह थरथर कांपने लगी।

उसके हाथों की पकड़ ढीली हो रही थी. सरयू सिंह उस कीड़े को पकड़ने का प्रयास करने लगे। उन्होंने अपनी उंगलियां कीड़े को पकड़ने के लिए लहंगे के अंदर की उसी समय उनकी हथेलियों का पिछला भाग सुगना की जांघों के ऊपरी भाग से छू गया। आज पहली बार किसी मर्द ने सुगना की जांघों को छुआ था। सुगना सिहर गई उसके हाथ से वह कीड़ा छूट गया और लहंगा भी।

एक बार फिर वह कीड़ा सुगना के लहंगे में गुम हो गया और सुगना का लहंगा उसके बाबूजी के हाथों पर टिक गया। फुर्ररर…फर्रर्रर ….. की आवाजें आने लगी. सरयू सिंह और सुगना दोनों कीड़े को पकड़ने का प्रयास करने लगे. अंततः सरयू सिंह ने सुगना के लहंगे को स्वयं ही ऊपर उठा दिया जांघों तक आते-आते उनकी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई.

सरयू सिंह सुगना की कोमल बुर को निहार रहे थे उसी समय कीड़ा सुगना की जांघों के बीच से निकलकर उनके माथे को छूता हुआ उड़ गया पर जाते-जाते उनके माथे पर अपना दंश दे गया। सरयू सिंह के माथे पर लाल निशान दिखने लगा उन्हें अपनी कुंवारी बहू की कोमल चूत देखने का नियति ने अवसर भी दिया था और दंड भी।

परन्तु सरयू सिंह का लंड इस दंश के दंड को भूल कर उदंड बालक की तरह घमंड में तन कर खड़ा था आखिर उसके एक सुकुमारी की कोमल बुर में प्रवेश होने की संभावना योगबल ही रही थी।

सरयू सिंह ने लहंगा छोड़ दिया। सुगना अपने बाबूजी का माथा सहलाये जा रही थी। सुगना झुक कर उस जगह पर फूंक मारने लगी जहां कीड़े ने काटा था।

उसकी इस गतिविधि ने उसकी कोमल चूचियों को एक बार फिर सरयू सिंह की निगाहों के सामने ला दिया जो चोली में से झांकते हुए उन्हें ललचा रही थीं।

सरयू सिंह कीड़े का दर्द भूल चुके थे वह सुगना के प्यार में खो गए थे। आज सरयू सिंह ने सुगना का खजाना देख लिया था। और वह मन ही मन प्रसन्न थे।

सुगना भी मन ही मन प्रसन्न थी उसकी कोमल बुर उत्तेजना से पनिया गई थी पर उस पर लहंगे का आवरण आ चुका था उसके बाबूजी ने उसकी कुंवारी बुर तो देख तो ली थी पर वह उसकी उत्तेजना न देख पाए थे। सुगना ऊपर वाले को धन्यवाद दे रही थी।

आंगन में आने के बाद मालपुआ खाते समय कजरी ने सरयू सिंह से पूछा

ई माथा प का काट लेलस हा?"

सुगना भी अब हाजिर जवाब को चली थी. सुगना ने हंसते हुए बोला..

"बाबूजी मालपुआ में भुलाईल रहले हा तबे कीड़ा काट लेलस हा"

सरयू सिंह मुस्कुराने लगे. वह सच में आज अपनी बहू सुगना की कोमल बुर में खोए हुए थे। सुगना की बूर मालपुए से किसी भी तरह कम न थी वह उतनी ही मीठी, उतनी ही रसीली और मुलायम थी। सरयू सिंह की जीभ मालपुए में छेद करने के लिए लप-लपाने लगी।

कजरी भी मालपुए का नाम सुनकर शर्मा गयी। उसके कुँवर जी उसकी बुर को भी कभी कभी मालपुआ बुलाया करते थे।

सुगना ने अनजाने में सरयू सिंह के तार छेड़ दिए थे...[/SIZE
 
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अपने जन्मदिन के दिन सुगना ने अनजाने में ही अपनी कोमल और रसीली बुर सरयू सिंह को दिखा दी थी
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सुगना का मालपुआ

जिसका एहसास सुगना को भी था। सरयू सिंह तो पूरी तरह उस मालपुए में मगन हो गए थे। सुगना का नशा आंखों और दिमाग पर चढ़ चुका था। सुगना उन्हें अब हर जगह दिखाई पड़ने लगी। उनके सपनों पर अब सुगना का एकाधिकार हो चला था।
सरयू सिंह कि अब वह उम्र न थी जब उन्हें कामोत्तेजक सपने आते पर उनके सपनों में मचलती हुई सुगना अवश्य आती। कभी उसकी चूचियां झलक जाती कभी सुगना की कोमल बूर। वह आज भी सपनों में सुगना को पूरा नग्न नहीं देख पाए थे। पर अब वह सुगना को अपनी खुली आंखों से नग्न कर पाने में सक्षम थे।
सुगना के शरीर का लगभग हर भाग उन्होंने देख लिया था पर एक भाग अभी भी बाकी था वह थी सुगना के नितंब और उनके बीच छुपा सुगना का वह अपवित्र द्वार।
इन दो जादुई अंगों के अलावा सुगना का खजाना सरयू सिंह देख चुके थे। उस खजाने को छू पाने की अभी न अनुमति थी न हीं सुगना की तरफ से कोई निमंत्रण। नियति दोनों तरफ आग सुलगा कर तमाशा देख रही थी। जैसे ही आग धीमी पड़ती नियति अपना खेल कर देती…
सुगना के हाथ में चढ़ा हुआ प्लास्टर कटने का समय आ गया था। एक बार फिर सुगना अपने बाबुजी के साथ शहर जाने को तैयार थी। सरयू सिंह ने जाने की तारीख मुकर्रर कर दी पर इस बार दाव उल्टा पड़ गया था।
पिछली बार उन्होंने कजरी को चलने का न्योता सामने से दिया था पर इस बार कजरी ने स्वयं शहर चलने की इच्छा जाहिर कर दी। सरयू सिंह पसोपेश में थे पिछले दो-तीन दिनों से वह बस सुगना के साथ शहर घूमने का मन बनाए हुए थे और उसे हर तरीके से खुश करना चाहते थे. खैर कजरी उनकी दुश्मन नहीं थी उन्होंने और कजरी ने जीवन के कई सुखद वर्ष एक साथ गुजारे थे सरयू सिंह कजरी और सुगना को लेकर शहर के लिए निकल पड़े। इस बार भी ट्रेन पर चढ़ते उतरते समय उन्हें सुगना को छूने का अवसर मिला पर कजरी की मदद से सुगना आसानी से चढ़ गई।
सरयू सिंह ने पिछले दो-तीन दिनों में जिन परिस्थितियों की कल्पना कर सुगना को छूने का मन बनाया था वह सब धरी की धरी रह गयीं।
सुगना अपने बाबूजी का मर्म समझ रही थी। उसे इतना तो ज्ञात हो ही चुका था की सरयू सिंह की उत्तेजना में उसका स्थान आ चुका था। सुगना ने उनकी उदासी दूर करने की सोच ली थी। जैसे ही साईकिल रिक्शा पर बैठने का वक्त आया सुगना जानबूझकर सरयू सिंह और कजरी के बीच बैठ गयी। सुगना की कोमल जाँघें सरयू सिंह की मांसल जांघों से सट गई। जैसे-जैसे रिक्शा उछलता गया उनकी जांघों के बीच घर्षण बढ़ता गया। सुगना बीच-बीच मैं उनकी जांघों को पकड़कर अपना संतुलन बनाए रखती। सरयू सिंह के लिए तो सुगना का यह स्पर्श वियाग्रा की गोली के समान था। उसके स्पर्श मात्र से उनके लंड में तनाव आ जाता था और इस समय तो सुगना अपने बाबूजी पर लगभग लदी हुई थी। कजरी ने कहा
" ए सुगना ठीक से बैठ बाबूजी के दिक्कत होत होइ"
सरयू सिंह का बस चलता तो वह सुगना को अपनी गोद में ही बैठा लेते. उन्हें सुगना के किसी भी कार्यकलाप से दिक्कत होना असंभव था। वह उनकी करिश्माई बहु थी जो अब प्रेमिका बन रही थी। सुगना थोड़ा संभल कर बैठ गयी पर उसने अपने बाबूजी को निराश ना किया वह अपनी जाँघे अभी भी सटाए हुए थी। जब कभी सुगना अपना हाँथ इधर उधर हटाती सरयू सिंह की कोहनी सुगना की चूँचि से सट जाती। उन्हें लगता जैसे उन्होंने किसी गर्म मक्खन को छू लिया हो। कितनी कोमलता थी सुनना की चूचियों में। सरयू सिंह उसकी कोमलता में खो गए…
" बाबुजी अस्पताल आ गइल" सुगना ने सरयू सिंह की जांघों को पकड़कर हिलाया उसने अनजाने में उसकी उंगलियों ने लंगोट में छुपे पालतू नाग को छू लिया जो संयोग से जगा हुआ था। सुगना भी सिहर उठी….
हॉस्पिटल पहुंचकर सुगना का प्लास्टर काट दिया गया। उसके कोमल हाथ एक बार फिर आजाद हो गए। सुगना ने अपने हाथ और कलाइयां हिलाई। सरयू सिंह की प्रसनन्ता की सीमा न रही उन्होंने सुगना के हाथों को चूम लिया। आखिर इन्ही हांथों में सरयू सिंह के लंड को खेलना था।
कजरी भी बेहद खुश थी डॉक्टर ने एक क्रीम दी और कहा इसे हर 10 - 15 मिनट पर लगाते रहिएगा. सरयू सिंह कजरी और सुगना को लेकर मंदिर गए फिर उन्होंने कजरी के लिए उसकी जरूरत की चीजें खरीदी और एक बार फिर रिक्शे पर बैठकर वापस आने लगे.
सुगना उस होटल को देखकर तुरंत पहचान गई उसने खुशी से कजरी को बताया
"हमनी के येही होटल में ठहरल रहनी जा।"
"ह तहरा नींद ना लागल, रात भर सपनात रहलु"
सरयू सिंह ने सुगना को छेड़ दिया।
सुगना शर्म से पानी पानी हो गयी उसने अपनी कोमल मुठ्ठीयों से सरयू सिंह की जांघ पर प्रहार कर अपनी नाराजगी जतायी साथ ही साथ वह अपना स्वप्न याद करने लगी।
उसके सपनों का मर्द उसके ठीक बगल में बैठा अपनी जाँघे उसकी कोमल जांघों से रगड़ रहा था। कजरी ने सुगना का पक्ष लिया और कहा
"हां नया जगह में सुते में सपना अइबे करेला"
सुगना पिछली बार जिस दुकान पर अपने बाबुजी के साथ जाने की हिम्मत न जुटा पाई थी उसने इस बार उस दुकान में जाने की ठान ली थी। वह मन ही मन अपनी सुंदर काया की तुलना उस मॉडल से करने लगी थी जिसने सिर्फ और सिर्फ अंग वस्त्र ही पहने हुए थे। ब्रा और पेंटी में वह मॉडल बेहद खूबसूरत थी पर सुगना उससे कतई कम न थी।
आज कजरी उसके साथ थी दुकान सामने दिखाई देते ही सुगना ने कजरी के पैर दबा कर इशारा कर दिया। कजरी ने कहा
" ए रेक्सा एहिजे रुका हमनी के कुछ सामान खरीद कर आवतानी जा"
कजरी और सुगना दुकान की तरफ पर बढ़ चले। पहले तो सुगना और कजरी उसी दुकान में गए जहां से सरयुसिंह ने पिछली बार साड़ी खरीदी थी।
फिर कुछ ही देर बाद दोनों सास बहू बगल वाली दुकान में चली गयीं जहां पर ब्रा और पेंटी टंगी हुई थी। सरयू सिंह सुगना को उस दुकान में जाते हुए देख रहे थे वह मन ही मन सुगना को उस मॉडल की जगह रख कर देखने लगे। काश वह सुगना के लिए अपनी पसंद के कपड़े खरीद पाते।
उधर दुकानदार एक 28 - 30 वर्ष का युवक था जो इन 2 सुंदरियों को देखकर प्रसन्न हो गया उसने कहा
"दीदी का दिखाएं"
सुगना और कजरी ने आज तक अंतर्वस्त्र नहीं खरीदे थे. उन्हें ब्रा और पेंटी के बारे में बिल्कुल भी जानकारी न थी। गांव में वैसे भी यह सब कौन पहनता है। यह तो सुगना थी जिसने वह खरीदने की जिद कर ली थी और कजरी को लेकर यहां तक आ गई थी।
कजरी ने खुद को समझदार दिखाते हुए उस मॉडल की चूचियों की तरफ इशारा किया. दुकानदार कजरी की शर्म को समझ गया और उसने नमूने के तौर पर कुछ ब्रा बाहर निकाल दीं। सुगना की आंख तो उसी मॉडल पर गड़ी हुई थी उसने कहा
"वइसन ही दिखायीं ना"
"ठीक बा दीदी निकाला तानी"
दुकानदार ने पूछा
"कउन साइज पहिने नी"
यह प्रश्न बेहद कठिन था. उत्तर न मिलने पर दुकानदार ने कजरी और सुगना की असलियत पहचान ली पर उसने उन्हें शर्मसार न किया और अपनी आंखें सुगना की छाती पर गड़ा दीं। साड़ी के भीतर से वह सूचियों का आकार नापने लगा अपने अनुमान से उसने 34 साइज की वही ब्रा निकाल दी जो मॉडल ने पहनी हुई थी उसने कहा
"दीदी ई बिल्कुल ठीक आई। छोट बड़ होइ त बदल देब।"
सुगना ने कहा वह
"नीचे वाला भी दिखायीं" दुकानदार समझ चुका था साइज पूछने का कोई मतलब ना था. उसने सुगना की कमर पर निगाह डाली और 30 साइज की पैंटी निकाल कर रख दी यह ठीक वही पेंटी थी जो मॉडल ने पहनी हुई थी ब्रा और पेंटी दोनों ही जालीदार नेट से बनी हुई थी और बेहद खूबसूरत थी.
कजरी मन ही मन सुगना की मनोदशा के बारे में सोच रही थी उस बेचारी के भाग्य में पति का सुख न था और वह एक कामुक युवती की भांति अपने अंतर्वस्त्र खरीद रही थी। कजरी को क्या पता था एक सुकुमारी अपने नए प्रेमी उसके बाबुजी के लिए तैयार हो रही थी।
दुकानदार ने कजरी से कहा
"दीदी आप भी कुछ ले लीं"
दुकानदार ने कजरी के मन की बात कह दी. कजरी तो आज भी सरयू सिंह के दिल की रानी थी। उसकी जांघों के बीच खिला गुलाब सरयू सिंह कभी सूंघते, कभी चूमते कभी उस की गहराइयों में अपनी उंगलियां फिराते कभी अपना जादुई लंड।
सुगना ने दुकानदार की बात का समर्थन किया और एक बार फिर कजरी का नाप होने लगा। दुकानदार ने 36 साइज की ब्रा और 32 साइज की पेंटिंग निकाल कर बाहर कर दीं। सुगना सोच रही थी यह व्यक्ति चूँचियों और कमर का कितना बड़ा ज्ञानी है। इसने कैसे हमारे मन की बात समझ ली और उचित साइज की ब्रा निकालकर दे दी।
कजरी और सुगना ने सामान लिया और पैसे देकर बाहर आ गए दुकानदार पीछे पीछे कुछ और पैसे मांगते रह गया पर कजरी ने उसे समझाते हुए कहा
"भैया हम लोग हमेशा ले जानी, इतना में ही मिलेला'
कजरी में अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दे दिया पर दुकानदार असलियत जान रहा था. वह मन ही मन उन दोनों युवतियों के बारे में सोचने लगा उसके अनुसार निश्चय ही दोनों की रात गुलजार होने वाली थी पर उसे क्या पता था नियत ने तो कजरी के भाग्य में तो सरयू सिंह का लंड रखा था पर प्यारी सुगना के भाग्य में इंतजार का दंड.
घर आने के बाद कजरी और सुगना ने अपने नए नए अंतर्वस्त्र को पहन कर देखना चाहा। पहल कजरी ने ही की थी वह सुगना को नग्न देखना चाहती थी। वह भी सुगना की खूबसूरती की कायल हो रही थी।
उधर सुगना कजरी की कद काठी से बेहद प्रभावित थी उस उम्र में जब औरतें में बेढंगी हो जाती हैं कजरी अभी भी अपनी काया को गठीला बनाए हुए थी। चूचियाँ और चूतड़ गदरा गए थे पर आकार में थे। सुगना ने मन ही मन प्रार्थना की कि हे भगवान! बढ़ती उम्र के साथ मेरा भी शरीर कजरी माँ जैसा बनाए रखिएगा। कुछ ही देर में दोनों सास बहू अपने नए अंतरवस्त्रों में आ चुकी थीं।
कजरी ने काले रंग की ब्रा और पेंटी पहनी हुई थी और सुगना ने लाल। उन दोनो अद्भुत सुंदरियों को देखकर नियति ने मन ही मन कुछ अच्छा सोच लिया। दोनों सास बहू आज अपने इस नए अवतार पर प्रसन्न होकर एक दूसरे के गले लग गयीं। कजरी की बड़ी-बड़ी चूचियां सुगना की चुचियों से सट गयीं। दोनों के सपाट पेट एक दूसरे से के मिलने की कोशिश कर रहे थे पर चूचियाँ उन्हें रोक रही थीं।
सुगना की कोमल पर कठोर चूचियाँ कजरी महसूस कर रही थी। अनजाने में सास और बहू कुछ देर तक आलिंगन में बंधे रहे जब सुगना की अपनी बुर के गीला होने का एहसास हुआ उसके हाथ ढीले पड़ने लगे। सूगना ने सोचा यह कौन सा नया आकर्षण था? जो उसके और कजरी के बीच पैदा हो रहा था।
बाहर सरयू सिंह की आवाज सुनाई दी। कजरी और सुगना सचेत हो गए। उन्होंने फटाफट अपने वस्त्र पहने। जब नई पेंटी उतर रही थी दोनों सास बहू एक दूसरे को देख रहे थे। आह ….एक अधखिली गुलाब की कली और एक खिला हुआ गुलाब दोनो अद्भुत सुंदर।
कली फूल बनना चाहती थी और फूल कली। नियति मुस्कुरा रही थी सुगना को कली से फूल बनने का वक्त आ रहा था।
सरयू सिंह ने कहा
"दोनों सास बहू का कर तारू" खाना पीना मिली।
कजरी ने भी अनजाने में सरयु सिंह के तार छेड़ दिए उसने कहा
"जो कपड़वा कीन के ले आईल रहनी हां उहे पहन के देखा तानी जा"

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सुगना और कजरी

कजरी को यह बात पता न थी कि सरयू सिंह यह बात जानते थे कि आज इन दोनों ने ब्रा और पेंटी भी खरीदी थी। वह अपनी सुगना को उस सुंदर मॉडल की तरह याद करने लगे.
सरयू सिंह ने कजरी से कहा
"तनी पहीन के हमरो के दिखावा लोग"
कोठरी के अंदर कजरी और सुगना दोनों सिहर गयीं। वह दोनों अपने यह वस्त्र लाई तो उन्हीं के लिए थीं पर ये पहन कर उन्हें दिखाना…. सुगना ने कजरी से कहा…
"जायीं राउर कुँवर जी बुलावतारे"
सुगना ने कजरी को छेड़ दिया था।
कजरी ने सरयू सिंह से ऊंची आवाज में कहा
"अभी देर होता बाद में दिखाएब"
सुगना अपनी सास से धीरे-धीरे खुल रही थी उसने कहा
"जाई ना अपना कुंवर जी के दिखा दीं"
" हट पगली, कुछो बोलले"
सुगना और कजरी कपड़े पहन चुकी थी। कजरी उत्तेजित हो चली थी उसकी बहु सुगना ने माहौल को कामुक बना दिया था।
सुगना ने अपने बाबूजी की जांघों पर अपनी जाएंगे रगड़ कर उन्हें जो सुख दिया था उसने उनके लंगोट में आग लगा दी थी। सुगना की लगाई आग को बुझाना कजरी को ही था।
रात होते-होते सरयू सिंह पूरी तरह तैयार हो गए वह कजरी के आगे पीछे घूमने लगे। सुगना अपने बाबूजी को कजरी के पीछे घूमते हुए देखकर सारा माजरा समझ गई। सुगना आज होने वाले घटनाक्रम के लिए खुद को तैयार कर रही थी। उसने खाना खाया और आंगन में जम्हाई लेते हुए बोली "हम त ढेर थाके गईल बानी जा तानी सुते" और अपने कमरे में चली गई कुछ ही देर में उसके कमरे में जल रहा दिया बुझ गया।
कजरी ने अपने कमरे में जाकर अपने कुंवर जी के लिए तैयार होना शुरु कर दिया। काली पैंटी और ब्रा पहनते समय वह स्वयं उत्तेजित हो चली थी। कजरी की बुर् के घुंघराले बाल पेंटी के किनारों से झांक रहे थे। कजरी ने बड़ी मुश्किल से उन्हें पेंटी के अंदर किया उसकी बुर पर बालों का गुच्छा इकट्ठा हो गया। पेंटी ने सारे बालों को जकड़ कर उसकी बुर पर सजा दिया था। उसने अपनी बुर को छूकर बालों के गद्देदार आवरण को महसूस किया।
उसने अपनी आजाद चूँचियों को भी उस खूबसूरत ब्रा में कैद किया। कजरी की ढीली पड़ चुकी चूचियां ने भी ब्रा के अंदर आकर और भी गोल हो गयीं। ब्रा और पेंटी में कजरी ने अपनी उम्र 4- 5 साल और कम कर ली थी. उसकी चूचियां और नितंब बेहद आकर्षक लगने लगे. गोरी चिट्टी कजरी खुद को पूरा नहीं देख पा रही थी. उसने आज तक आदम कद आईना नहीं देखा था. आज उसके मन में खुद को देखने की इच्छा हुई पर यह संभव न था। वह सरयू सिंह का इंतजार करने लगी उसने अपने बाकी कपड़े पहनने की जरूरत न समझी और यह उचित ही था।
कुछ ही देर में सरयू सिंह कजरी की कोठरी में प्रवेश कर गये। कजरी दरवाजे के पीछे छुपी हुई थी। सरयू सिंह ने अंदर देखा कजरी को न पाकर वह बाहर निकलने लगे उसी समय कजरी साक्षात उनके सामने आ गई। अपनी भौजी को ब्रा और पेंटी में देखकर शरीर सिंह की खुशी की सीमा न रही। उन्होंने यह कल्पना नहीं की थी कि ब्रा और पेंटी में कजरी भौजी उन्हें दिखाई पड़ जाएंगी। वह तो उस ब्रा और पेंटी में सुगना को ही अपनी कल्पना में संजोये हुए थे जिसकी अद्भुत काया के दर्शन में आज नहीं तो कल होना ही था जिस तरह वह और सुगना नजदीक आ रहे थे उन्हें पता था वह दिन दूर न था।
वह अपनी तरफ से उत्सुकता न दिखा रहे थे अन्यथा ऐसा हो ही नहीं सकता की उन्हें याद कर यदि किसी सुंदर स्त्री की बुर ने अपने होंठों पर मदन रस लाया हो और सरयू सिंह का लंड वहां पहुंचना न गया हो। उन्हें पता था सुगना की मासूम बुर भी उनका इंतजार कर रही थी और वह स्वयं सुगना का इंतजार।
उन्होंने कजरी को अपने आलिंगन में ले लिया और लगभग उठा सा लिया। कजरी का पेट सरयू सिंह के पेट से चिपक गया सरयू सिंह के हाथ उसकी पीठ पर अपना मजबूत घेरा बनाए हुए थे। कजरी के पैर अब हवा में आ चुके थे उसने अपने पैर मोड लिए। सरयू सिंह उसे लिए लिए चारपाई पर आ गए। उन्होंने कजरी को चारपाई पर लिटा दिया।
यह विधि का विधान था की कजरी जैसी सुंदर युवती आज यहां चारपाई पर लेटी थी अन्यथा यदि वह किसी धनाढ्य घर में पैदा हुई होती तो एक सुंदर बिस्तर की खूबसूरती को बढ़ा रही होती। चारपाई पर हीरा बिछा हुआ था। सरयू सिंह उस खूबसूरती में खो गए। वह कजरी की बुर देखना चाहते थे जिसे न जाने उन्होंने कितनी बार चूसा था और चोदा था पर आज उन्हें उसकी पेंटी हटाने का मन नहीं कर रहा था।
कभी-कभी वस्त्रों का आवरण नग्नता से ज्यादा अच्छा लगता है यही स्थिति सरयू सिंह की थी। कजरी ने उनकी मनोदशा को पढ़ लिया वह चारपाई पर उठ कर बैठ गई।
उसने अपने कुंवर जी से कहा
"दिया बुता दीं"
सरयू सिंह यह बात जानते थे कि उनकी प्यारी बहू सुगना निश्चय ही झरोखे पर उनका प्रेमालाप देख रही होगी। वह उसे निराश नहीं करना चाहते थे अपितु उसकी कामुकता को और बढ़ाना चाहते थे। जितना ही सुगना उत्तेजित होती उतनी ही जल्दी उनकी बाहों में होती।
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उन्होंने कजरी से कहा
" इतना सुंदर लागा तारू, जरे द दिया, मन भर देख देख त लीं तहर नया रूप. एक दम सिनेमा के हीरोइन लागतारु"
कजरी सरयू सिंह की बातों से प्रसन्न हो गई वैसे भी उसे इस बात का इल्म न था की सुगना झरोखे पर खड़ी होकर उस की चुदाई देखा करती है।
कजरी ने एक ही झटके में उनकी धोती खोल दी। सरयू सिंह का लंड उछल कर बाहर आ गया। कजरी के हाथ स्वतः ही उसकी तरफ बढ़ चले। कजरी चारपाई से उठकर नीचे आ गई और पैर के पंजों के बल बैठ गयी।
सरयू सिंह का लंड कजरी के चेहरे से सटने लगा। कजरी ने अपने हाथों से लंड को अपने होंठों तक पहुँचा दिया और वह उनके अंडकोशों को सहलाने लगी। कजरी के होंठ अपना करतब दिखाने लगे।
उधर सुगना अपने झरोखे पर आ चुकी थी।
अब वह चुदाई देखना नहीं अपितु स्वयं चुदना चाहती थी। उसकी बुर अब पूरी तरह बेचैन हो चली थी। आज जब वह ब्रा और पेंटी पहन कर कजरी के आलिंगन में आई थी तब से ही वह उससे अपने मन की बात कजरी से कहना चाहती थी। वह कजरी से धीरे-धीरे खुल रही थी। उसके मन के किसी कोने में यह बात अवश्य थी कि वह अपनी सास कजरी से अपनी व्यथा जरूर कहेगी आखिर कब तक वह विरह का दुख झेलेगी।
अपने बाबूजी का लंड अपनी सास कजरी के मुंह में देखकर उसकी जीभ में पानी आ गया। उसने पहली बार अपने बाबूजी के लंड को कजरी के मुंह में देखा था। कितना जादुई है या लंड हर जगह सुख देता है जांघों के बीच भी और होठों के बीच भी। सुगना की बुर पनिया रही थी उसके होठों पर लार आ चुकी थी।
आज सुगना अपने होंठ गोल किए अपनी आंखों से व दृश्य देख रही थी। जिस तरह दर्शक क्रिकेट मैच देखते हुए अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग कर खिलाड़ी को अपने मन में ही सलाह देते हैं उसी प्रकार सुगना भी मन ही मन कजरी को लंड चूसने का तरीका समझा रही थी। वह अपने होठों को कभी गोल करती कभी अपनी जीभ को बाहर निकालती और मन ही मन उस सुपारे को छूने की सोचती।
सुगना बेचैन थी यदि सरयू सिंह उस झरोखे से अपना लंड सुगना की तरफ कर देते तो सुगना बिना किसी शर्म हया के अपनी तमन्ना पूरी कर लेती। आज कजरी द्वारा दिया जा रहा मुखमैथुन सुगना के लिए बिल्कुल नया था परंतु उसे यह बिल्कुल भी अटपटा ना लग रहा था। सुगना में वासना और कामुकता कूट-कूट कर भरी थी जिसका रूप अब दिखाई पड़ने लगा था।
सुगना अपने बुर को अपनी उंगलियों से सहला रही थी और अपने मुंह में आई लार को गटक रही थी। उसके मुह में लार अवश्य थी पर उसका गला सूख गया था। सुगना अपनी लार को निगल रही थी।
उधर कजरी के होठों की रफ्तार बढ़ गयी। सरयू सिंह उसके सर को पकड़कर अपने लंड की तरफ खींच रहे थे। जब लंड गर्दन तक जाता कजरी गू ...गू... गू ..करने लगती.
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सरयू सिंह अपनी कजरी भौजी को कभी कष्ट नहीं देना चाहते थे वह तुरंत अपना लंड पीछे खींच लेते। कजरी उन्हें अपनी आंख उठा कर देखती और सरयू सिंह शर्म से पानी पानी हो जाते। कजरी के छोटे से मुख में उतना बड़ा लंड जा पाना असंभव था पर सरयू सिंह का मन मतवाला था। उनका बस चलता तो वह एंडोस्कोपी के पाइप की तरह अपना लंड उसके अंदर तक प्रवेश करा देते।
कल्पना तो कल्पना है वह सरयू सिंह ने भी की और हम आप ने भी।
लंड स्खलन के लिए तैयार हो चुका था। कुँवर जी अपने आनंद में डूबे हुए थे अचानक उन्हें झरोखे का ध्यान आया उन्होंने। अपना लंड कजरी के मुंह से निकाल लिया। लंड उछल रहा था। कजरी की लार लंड से टपक रही थी जिसमें उनका वीर्य भी मिला हुआ था। सुगना उस चमकते हुए लंड को देखकर भावविभोर हो गयी। वह झरोखे से अपने कोमल हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ लेना चाहती थी।
सरयू सिंह ने कजरी को इशारे से डॉगी स्टाइल में आने के लिए इशारा किया। कजरी ने बांस की चारपाई पर खुद को डॉगी स्टाइल में व्यवस्थित कर लिया। उसके गोल और भरे हुए चूतड़ सरयू सिंह की निगाहों के सामने आ गए। सुगना के नितंबों की सुंदर गोलियों को देखकर वह अत्यधिक उत्तेजित हो गए। कितनी सुंदर थी कजरी के नितंब! काले रंग की पेंटी में दो चांद नुमा नितंब कैद थे। काले रंग की पेंटी ने चंद्रमा को आधा ढक रखा था। गोरे नितंबों पर पैन्टी ने चतुर्थी का चांद बना दिया था जो बेहद बखूबसूरत लग रहा था।
दो चांदो के बीच छुपी कजरी की बुर पनिया चुकी थी। वह बुर् के बालों को पूरी तरह भीगोने के बाद ह पेंटी के कपड़े को भी चिपचिपा कर चुकी थी। सरयू सिंह ने अपनी प्यारी बुर् के ऊपर पड़ा पेंटी का आवरण थोड़ा खिसका दिया। बालो का गुच्छा फैल गया और बालों के पीछे छुपी रसीली बुर ने अपने होंठ फैला दिए।
सरयू सिंह के लंड को उनकी भौजी के बुर में गजब का चुंबकीय आकर्षण था। लंड मुलायम मक्खन में गर्म रोड के जैसा प्रवेश कर गया पर कजरी की बुर ने अपना प्रतिरोध दिखाते हुए लंड को और भी खुश कर दिया। इतना चिपचिपा और उत्तेजित होने के बावजूद कजरी की बुर अपने कुँवर जी के लंड को अपने आगोश में लेते समय पूरा प्रतिरोध करती थी उसे हारना पसंद था पर संघर्ष करके।
सरयू सिंह अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करते हुए चोदने लगे।
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वह बीच बीच मे झरोखें की तरफ देखकर अपनी बहू को अपनी क्षमता का एहसास कराते।
कजरी की बूर में सिहरन बढ़ रही थी। सरयू सिंह ने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया और कजरी की गोल-गोल चुचियों को मीसने लगे। सरयू सिंह के हाथों को कजरी की ब्रा का आवरण पसंद ना आया उन्होंने उस ब्रा को ऊपर कर दिया और चूचियों को आजाद कर दिया। हथेलियों को चूँचियों का मुलायम स्पर्श मिल गया कजरी के निप्पल सरयू सिंह की उंगलियों के बीच खेलने लगे। कभी उंगलियां उसे प्यार से सहला देती कभी मसल देतीं।
कजरी स्वयं भी अपने चूतड़ों को तेजी से आगे पीछे करने लगी। वह सरयू सिंह के लंड को पूरी तरह अपने अंदर समाहित कर लेना चाहती थी। पर सरयू सिंह का लंड जितना उसके अंदर जाता उतना ही फूलता और उसका आकार बढ़ जाता।
लंड कजरी की नाभि को छूने लगा पर कजरी की बुर को अंडकोशों का स्पर्श अब तक नहीं मिल रहा था। अंततः सरयू सिंह ने अपना लंड कजरी की बूर में जड़ तक ठाँस दिया। कजरी चिहुक उठी। सुगना ने कजरी का चेहरा देखा दर्द और तृप्ति कजरी के चेहरे पर एक साथ दिखाई दे रहा था। सुगना की सांसे रोक गयी पर बुर को मसल रहीं उसकी उंगलियां न रूकीं।
सरयू सिंह के अंडकोष कजरी की बुर की भगनासा से टकराने लगे। कजरी को तृप्ति का एहसास होने लगा। सरयू सिंह की उंगलियां कभी कजरी की पेंटी को नीचे खींचती कभी वापस ऊपर चढ़ा देती। सरयू सिंह अपने जादुई मुसल से अपनी भौजी की बुर को चोद रहे थे पर मन में सुगना छाई हुई थी। वह सुगना की तरफ देख रहे थे सुगना भी कभी उनके चेहरे को देखते कभी उनके लंड को।
सरयू सिंह का उन्माद बढ़ रहा था। वह कजरी को दोहरी उत्तेजना से चोद रहे थे। कजरी के मुख से आवाज आई
"कुंवर जी ...तनी धीरे से ……..दुखाता"
कजरी हाफ रही थी. उसकी बूर फूल और पिचक रही थी। सरयू सिंह को यह बेहद पसंद था। उन्होंने अपनी कजरी भाभी की मांग को पूरा न किया। उन्हें पता था कजरी के दिमाग और बूर में विरोधाभास था। बूर लंड का तेज आवागमन पसंद करती थी। सरयू सिंह ने अपनी रफ्तार बढ़ाई और अपनी पिचकारी से कजरी के बूर में रंग भरने लगे।
कजरी हाफ रही थी और झड़ रही थी।पूरी तरह स्खलित हो जाने के बाद सरयू सिंह ने अपना लंड खींच लिया कजरी की बूर से चिपचिपा वीर्य निकलकर कजरी की जांघों पर बहने लगा।
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सुगना की बुर भी स्खलित हो रही थी परंतु उसकी बूर वीरान थी।
सरयू सिंह के वीर्य का एक भी कतरा उसे नसीब ना हुआ और यहां कजरी की बूर उस अद्भुत वीर्य को दुत्कार रही थी। नियति का खेल निराला था सुगना को अपने बाबूजी का वह गाढ़ा वीर्य पसंद आ गया था। उसने अपने गर्भधारण के लिए मन ही मन अपने बाबूजी को पसंद कर लिया था।
बस उसे हिम्मत जुटाकर अपनी बात अपनी सासू मां( जो अब धीरे-धीरे उसकी सहेली बन रही थी) से कहनी थी। बात जितनी छोटी थी उतनी ही कठिन। वह किस मुंह से अपने बाबू जी से चुदने की बात कह सकती थी। उत्तेजना के आवेश में वह यह सब बातें सोच तो लेती पर हकीकत में अपने होठों पर वह बात लाना भी पाप समान था। वह नवयौवना थी व्यभिचार उसके मन मे था दिमाग मे नहीं।
काश कजरी से वह यह बात कह पाती। क्या उसके मन की इच्छा सासू मां नहीं पढ़ सकती? सुगना अपने बुर को सह लाते हुए यही सब बातें सोच रही थी अपने बाबुजी के जादुई लंड को याद करते हुए और अपने मालपुए को सहलाते हुए उसे नींद आ गई।

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दरवाजे पर खड़ी सुगना की बछिया इन दो चार महीनों में और बड़ी हो गई थी। सरयू सिंह जब उसकी बछिया को नहलाते तो सुगना आज भी सिहर उठती थी विशेषकर जब सरयुसिंह उसके पेट और चूचियों पर हाथ लगाते।

बछिया रंभा रही थी सरयू सिंह अपने खेतों पर काम करने गए हुए थे। सुगना अपनी बछिया की आवाज सुनकर बाहर आ गई। वह उसके पास जाकर उसे सहला रही थी पर बछिया बार-बार आवाज किए जा रही थी। कजरी आंगन में बर्तन धो रही थी। सुगना ने कहा

"मां बछिया काहे बोल तिया"

कजरी ने कहा

छोड़ द असहिं बोलत होइ"

सुगना ने कजरी को फिर बुला लिया. कजरी आखिरकार बाहर आ गई

कजरी ने बछिया की योनि से बहती हुई लार देख ली। उसे बछिया के रंभाने का कारण पता चल चुका था। सुगना की निगाह अब तक उस पर नहीं पड़ी थी। उसने कजरी से फिर पूछा

" माँ बछिया काहे बोल तिया" कजरी ने उसका हाथ पकड़ा और खींच कर बछिया के पीछे ले आयी। उसने कुछ कहा नहीं पर बछिया की योनि की तरफ इशारा कर दिया। उसकी योनि से बहती हुई लार अब सुगना ने देख ली थी। कहने समझने को कुछ ना रहा। सास और बहू दोनों ने बछिया का मर्म समझ लिया। कुछ ही देर में सरयू सिंह आते हुए दिखाई दिए। सुगना को आभास हो चुका था कि आगे क्या होने वाला है। वह अपने बाबू जी से नजरें मिलाने में असमर्थ थी। वह आंगन में चली गई।

आज उसकी बछिया चुदने वाली थी। सुगना की जांघों के बीच स्वता ही गीलापन आ चुका था। आज उसकी सहेली भी चुदने जा रही थी। सुगना कान लगाकर कजरी और सरयू सिंह के बीच हो रही बात सुन रही थी। अंततः भूवरा अपना सांड लेकर शाम को दरवाजे पर आ चुका था। सरयू सिंह की गाय भी उस सांड को देख रही थी। पर आज उसे वह सुख नहीं मिलना था।

आज का दिन बछिया का था। बछिया चुपचाप शांत खड़ी थी। सांड ने बछिया की योनि से बहता हुआ द्रव्य देख लिया वह उसे सुंघने लगा। कुछ ही देर में वह बछिया पर चढ़ गया।

सुगना वह दृश्य देख रही थी उसकी जांघें गीली हो चली थी आज उसकी सबसे प्रिय सहेली भी चुद रही थी। वह रूवासी हो चली थी। उसका इंतजार अब कठिन हो रहा था। उसने मन ही मन कजरी से बात करने की ठान ली। आखिर यह उसका हक भी था और उसके युवा शरीर की जरूरत भी.

वह यह बात अपनी सास कजरी से कैसे कहेगी यह प्रश्न उसके लिए अभी यक्ष प्रश्न जैसा था। क्या कोई बहू अपनी सास से अपनी चुदने की इच्छा को इस तरह खुलकर व्यक्त कर पाएगी और तो और सुगना के मन में उसके बाबूजी बसे हुए थे वह किस मुंह से अपने बाबू जी से संभोग करने के लिए कहेगी। सुगना अपनी सोच में डूबी हुई थी उधर नियति सुगना की मासूमियत पर मुस्कुरा रही थी। नियति ने सुगना के लिए जो सोच रखा था वह समय के साथ होना तयः था सुगना की अधीरता कुछ ही दिनों में शांत होने वाली थी वह भी पूरी धूमधाम से।

रात में सास और बहू के बीच में उस बछिया को लेकर ढेर सारी बातें हुई पर सुगना अपनी बात कहने की हिम्मत न जुटा पाई

2 दिनों बाद हरिया की लड़की लाली गांव आई वह गर्भवती हो चुकी थी। वह अपने मायके आई हुई थी। वह अपना फूला हुआ पेट लेकर सुगना के पास आती और अपनी गर्भावस्था के अनुभव सुनाती। सुगना अपने मन में दुख भरे हुए उसके अनुभव सुनती जो उसे बिल्कुल बेमानी लगते। उस सुंदरी की कोमल बुर पर आज तक किसी पुरुष का हाथ तक नहीं लगा था वह गर्भावस्था के अनुभव सुनकर क्या करती। फिर भी उसे यह बात सोच कर ही खुशी मिलती की लाली के जीवन में उसका एक और करीबी आ जाएगा जो समय के साथ बड़ा होगा और उसके बुढ़ापे की लाठी बनेगा। सुगना के मन में भी मां बनने की इच्छा प्रबल हो उठी।

इतना तो तय था की वह बिना चुदे हुए मां नहीं बन सकती थी। जब उसका पति उसे हाथ लगाने को तैयार ही नहीं था तो यह कैसे संभव होगा? क्या बाबू जी उसके साथ …... करेंगे? उसने खुद से ही प्रश्न किया और उसके उत्तर में शर्म से पानी पानी हो गई. पर जितना वह इस बारे में सोचती उतना ही उसे उसे सुकून मिलता.

उसने अंततः अपने मन की बात कजरी से बता दी. उसने कजरी से यह तो नहीं कहा कि वह अपने बाबू जी से चुदना चाहती है पर इतना जरूर कहीं कि उसकी मां बनने की इच्छा अवश्य है। सुगना ने मां बनने की इच्छा जाहिर कर बिना कहे संभोग की इच्छा जाहिर कर दी थी यह उसका हक भी था और उसके शरीर की मांग भी जिसको कजरी और सरयू सिंह कई महीनों से नजरअंदाज किए हुए थे।

कजरी रुवासी हो गई। अपनी बहू की वेदना उससे सहन ना हुई। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था। सरयू सिंह और सुगना के बीच जो कामुकता पनप रही थी उसका आभास कजरी को बिल्कुल भी नहीं था। कजरी के जहन में भी कभी सरयू सिंह का ख्याल नहीं आ सकता था।

कजरी ने उस दिन के बाद से इस बारे में सोचना शुरू कर दिया। कजरी ने सुन रखा था की कई गांव में जब पति बच्चा पैदा करने में अक्षम हो तो स्त्रियां अपने जेठ या देवर से संभोग कर बच्चे को जन्म देती हैं। और यह यह एक गलत कार्य नहीं माना जाता पर यह सुगना का दुर्भाग्य ही था कि दूर दूर तक देखने पर ऐसा कोई देवर या जेठ नहीं दिखाई पड़ रहा था जिससे सुगना संभोग कर गर्भवती हो सके।

कजरी ने मन ही मन रतन से मिन्नतें करने करने को सोची। उसने प्रण कर लिया कि इस बार जब रतन घर आएगा तो वह उससे सुगना से संभोग करने के लिए अनुरोध करेगी और उसे गर्भवती कराने का प्रयास करेगी। सुगना को आए 6 महीना भी चुका था।

इस बार रतन दशहरा के अवसर पर आया. वह सभी के लिए उपहार भी लाया था। सुगना के लिए कजरी के मन में उम्मीद जाग उठी थी पर सुगना का मन रतन से खट्टा हो चुका था जिस पुरुष ने उससे सुहाग की सेज पर संभोग करने से इंकार कर दिया था वह उस से दोबारा मिलना नहीं चाहती थी। हालांकि यह बात उसने कजरी को नहीं बताई पर उसके व्यवहार से यह स्पष्ट था। उधर कजरी ने रतन से बात की लाख मिन्नतें करने के बाद भी वह रतन को तैयार न कर सकी। कुछ दिन रह कर रतन वापस चला गया

इसी दौरान एक बार कजरी की मुलाकात पदमा से हो गयी। वह दोनों किसी विशेष पूजा के लिए एक मंदिर में गए हुए थे दोनों एक दूसरे को पहचानती थी वह आपस में हिल मिलकर बातें करने लगी सुगना की बात करते-करते कजरी ने सुगना की इच्छा को पदमा से खुलकर बता दिया। दोनों इस गंभीर विषय पर बात करने लगीं। बातों ही बातों में सरयू सिंह का नाम पदमा की जुबान पर आ गया उसने कहा एक बार अपने देवर जी से बात करके देखिए।

कजरी सन्न रह गई उसने कहा

"सुगना उनका के बाबूजी बोले ले"

पद्मा ने कहा

" हां ठीक बा बाबू जी बोले ले पर बाबूजी हवे ना नु"

पद्मा ने अपना सुझाव सोच समझ कर ही दिया था। वैसे भी वह एक हष्ट पुष्ट मर्द थे यदि वह तैयार हो जाते हैं तो सुगना को एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति होगी वैसे भी यह कुछ मुलाकातों की बात थी। पदमा को कजरी और सरयु सिंह के बीच हुए चल रहे संबंधों की भनक थी।

कजरी सोच में पड़ गई वह पदमा से कुछ बोल नहीं पा रही थी पर मन ही मन उसके दिमाग में यह बातें घूमने लगी क्या यह संभव है क्या सरयू सिंह सुगना के साथ संभोग कर पाएंगे वह उसे अपनी पुत्री समान मानते हैं। पर जब बात निकल ही गई थी तो कजरी ने मन ही मन इस बात की संभावना को तलाशने की जिम्मेदारी ले ली।

उसे सुगना और उसके बाबू जी दोनों को तैयार करना था। वह अब उसी नियति की प्रतिनिधि बन चुकी थी जिसे सुगना और सरयू सिंह को करीब लाना था। सुगना का इंतजार खत्म होने वाला था कजरी मन ही मन मुस्कुरा रही थी और आने वाली घटनाक्रम का ताना-बाना बुन रही थी।

रतन को गए 1 हफ्ते भी चुके थे कुछ ही दिनों बाद दिवाली आ रही थी कजरी की बहू सुगना की यह पहली दीपावली थी दीपावली का त्यौहार सभी के लिए खुशियां लेकर आता है। कजरे ने भी अपनी बहू सुगना को खुश करने की ठान ली। सुगना की मां पदमा ने जो उपाय सुझाया था अब वह उससे संतुष्ट हो गई थी और उस दिशा में सोचने भी लगी थी। उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि सरयू सिंह और सुगना पहले ही काफी नजदीक आ चुके है। इन दोनों का मिलन नियत ने पहले ही सुनियोजित कर रखा था कजरी को सिर्फ उस मिलन का भागीदार बनना था।

कजरी ने एक बात और महसूस की थी कि पिछले कुछ महीनों में सरयू सिंह की कामुकता और उत्तेजना में एक नयापन था उसे लगता जैसे शरीर सिंह कोई दवाई खा रहे हो जिससे वह इतने उत्तेजित रहते थे और उसकी बुर चोदते समय कुछ ज्यादा ही उत्साह में रहते थे।

आखिर एक दिन कजरी ने हिम्मत जुटा ली। कजरी ने जी भरकर अपने कुंवर जी का लंड चूसा और उनके लंड पर बैठ कर धीरे धीरे उन्हें चोद रही थी। सरयू सिंह सुगना के मालपुए में डूबे हुए थे। तभी कजरी ने कहा

"हमनी के जवान जइसन सुख भोगतानी जा लेकिन सुगना बहू के बारे में कुछ सोच ले बानी"

सरयू सिंह को एक पल के लिए सुगना की चूचियां और उसकी कोमल बुर नजर आ गई

"काहे का भइल"

"ओकर बछियो माँ बने जा तिया और सहेली लाली भी, बेटी सुगना के करम फुटल बा. रतनवा अबकी हाली भी ओकरा संगे ना सुतल हा। बेचारी काल रोवत रहे. बेचारी मां बन जाइत तो कम से कम ओकर जीवन कट जाइत।"

"उ त ठीक बा बाकी लेकिन ई होइ कइसे?"

सरयू सिंह खुद अपना नाम नही सुझा सकते थे। वो विचार मुद्रा में आ गए पर लंड अपनी जगह न सिर्फ तना रहा अपितु उछल रहा था।

कजरी ने कहा..

"हम भी ढेर सोचनी पर केहू विश्वाशी आदमी दिखाई नइखे देत"

सरयू सिंह गंभीर थे वह कजरी के मुह से अपना नाम सुनना चाहते थे पर कजरी उनकी मनोदशा से अनभिज्ञ उनका नाम लेने में डर रही थी।

कजरी ने चाल चली. ..

"एक बात कहीं खिसियाईब मत "

" बोल……"

"हरिया से बतियायीं ना आपके दोस्त भी ह उ केहू के ना बताई और सुगना के काम भी हो जायीं"

सरयू सिंह गुस्सा हो गए

"उ साला हमार सुगना के हांथ लगाई"

"त आपे हाँथ लगा दी। घर के बात घरे में रह जायीं"

सरयू सिंह प्रसन्न हो गए। खुशी में क्रोध का प्रदर्शन कठिन था फिर भी वो नाराज होते हुए बोले…

"का कह तारू, बहु बेटी नियन होले हमारा से ई कइसे होई"

सरयू सिंह की बात में प्रतिरोध तो था पर मनाही नही थी।

कजरी ने पद्मा की बात दोहरा दी।

" उ त हमार पतोह ह नु, उ ना आपके पतोह ह ना बेटी"

दोनो एक दूसरे से बात करते रहे। जब दोनों पक्षों में आम सहमति हो तो तर्क वितर्क ज्यादा देर तक नहीं चलता कुछ ही देर में कजरी ने शरीर सिंह को मना लिया सरयू सिंह ने कहा

"तू सुगना से पूछ ले रहलु हा।"

कजरी ने कहा

"पहिले रउआ से तब पूछ ली तब ता ओकरा से बतियायीं"

सरयू सिंह को पूरी उम्मीद थी सुगना कजरी का यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लेगी। अब तक जितनी भी पहल हुई थी वह सुगना ने स्वयं की थी। वह तो उसकी प्रेम धारा में बहते बहते इस स्थिति तक आ पहुचे थे।

कजरी की कमर की रफ्तार बढ़ती गई। सरयू सिंह कजरी के बदन में सुगना खोजते रहे। उन्होंने आंखें बंद कर ली और अपनी प्यारी बहू सुगना को याद करते लगे। उनकी कमर हिलने लगी ।

कजरी आनंद में डूब रही थी।उसे दोहरा आनंद प्राप्त हो रहा था। उसने सुगना की समस्या दूर कर दी थी और सरयू सिंह का फुला हुआ लंड उसकी बुर की मसाज कर रहा था। वह सरयू सिंह को चूमती हुई स्खलित होने लगी।

सरयू सिंह उसके नितंबों को सहलाते हुए अपनी सुनना को याद कर रहे थे और उसके बुर में अपना वीर्य भरने को तैयार थे। सब्र का बांध टूट गया। कजरी की बुर एक बार फिर सरयू सिंह के वीर्य से सिंचित हो रही थी। कजरी सरयू सिंह को चूम रही थी। उन्होंने उसकी जिंदगी तो सवार ही दी थी और अब वह उसकी बहू की जिंदगी संवारने वाले थे। वह उनके प्रति कृतज्ञ थी।

सरयू सिंह की रजामंदी मिलने के बाद अगले दिन दोपहर में कजरी ने सुगना से बात की।

"सुगना बेटी एक आदमी तैयार भईल बा लेकिन तुम मना मत करिह, हमरा और केहू विश्वासी आदमी ना मिलल हा. दो-चार दिन अपना मान मर्यादा के ताक पर रखकर एक बार गर्भवती हो जा, औरो कोई उपाय नइखे"

सुगना ने कहा

"मां रउवा जउन सोचले होखब उ ठीके होइ लेकिन उ के ह?"

सुगना ने अपने इष्ट देव को याद कर कजरी के मुख से अपने बाबूजी का नाम सुनने के लिए प्रार्थना करने लगी। वह उनके अलावा किसी और को अपना शरीर नहीं छूने देना चाहती थी। वह अपनी आंखें बंद किए मन ही मन प्रार्थना रात हो गई।

कजरी अपने मन में हिम्मत जुटा रही थी पर यह बोल पाने की उसकी हिम्मत नहीं थी। परंतु जो नियति ने लिखा था वह होना तय था। कजरी ने अपनी लड़खड़ाती जीभ को नियंत्रण में किया और बोली

" सुगना बेटा , हमार कुंवर जी"

वह इससे आगे सुगना से बात करने की हिम्मत न जुटा पाई और उठकर आगन में आ गयी। जाते जाते उसने सुगना से कहा "सुगना बेटा सब आगे पीछे सोच लिहा हमरा पास और कोनो उपाय नइखे। लेकिन तू जइसन चहबू उहे होइ"

सुगना ने उन कुछ पलों में खुद को अपने बाबूजी के साथ नग्न अवस्था में देख लिया। वह आनंद से अभिभूत हो रही थी। उसकी दिली इच्छा पूरी होने वाली थी। वह भी उसकी सास कजरी की रजामंदी से। वह अपने इष्ट देव को तहे दिल से धन्यवाद कर रही थी। उधर सुगना की कोमल बुर मुस्कुरा रही थी उसके होठों पर प्रेम रस छलक रहा था।

कुछ देर बाद सुगना रसोई में आई कजरी ने उसे प्रश्नवाचक निगाहों से देखा। सुगना ने कहां

" मां बाबुजी मनिहें?"

सुगना की रजामंदी ने कजरी को खुश कर दिया। उसने कहा

" अपना सुगना बाबू के खतिर हम उनका के मना लेब"

कजरी ने समस्या का अद्भुत निदान निकाल लिया था। वह खुशी खुशी खाना बनाने लगी। उसने सुगना से कहा

"जा हमरा कुंवर जी के खाना खिला द और अब उनका के बाबुजी मत बोलीह" कजरी मुस्कुरा रही थी।

सुगना ने भी सिर झुकाए हुए खाना थाली में निकाला और अपने बाबुजी माफ कीजिएगा कुँवर जी के पास खाना लेकर चली गई।

शेष अगले भाग में
 
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अंततः सरयू सिंह और सुगना के मिलन का दिन निर्धारित हो गया. सुगना के रजस्वला होने के दिनों के को ध्यान में रखते हुए कजरी ने अपने अनुभव से सुगना को गर्भवती करने के लिए चुना था वह संयोग से दिवाली का दिन था।

सरयू सिंह और सुगना दोनों बेहद प्रसन्न हो गए उनके मिलन की सारी बाधाएं दूर हो चुकी थी। कजरी स्वयं उनके मिलन का दिन निर्धारित कर चुकी थी। आज से ठीक 7 दिनों बाद सुगना का स्वप्न पूरा होने वाला था।

सरयू सिंह और सुगना ने बड़ी ही मासूमियत से अपने बीच पनपी कामुकता को कजरी से छुपा लिया था। कजरी ने अपनी बहू सुगना की खुशी के लिए अपने कुंवर जी को सुगना से संभोग करने के लिए तैयार कर लिया था। वह कुंवर जी के प्रति कृतज्ञ थी जिन्होंने अपनी बहू जिसे वह सुगना बेटा बुलाया करते थे के साथ संभोग कर उसे गर्भवती करने के लिए अपनी रजामंदी दे दी थी।

कजरी को सिर्फ और सिर्फ एक चिंता खाए जा रही थी वह सुगना की कोमलता। सुगना का प्रथम संभोग उस अद्भुत लंड के साथ होना था। वह सुकुमारी सरयू सिंह का वेग कैसे झेल पाएगी यह बात सोच सोच कर कजरी परेशान हो जाती।

पर उसे एक बात की तसल्ली थी की सरयू सिंह किसी भी स्थिति में सुगना को दुख नहीं पहुंचाएंगे। वह उनकी प्यारी बेटी समान बहु थी । वह निश्चय ही उसके प्रथम संभोग पर उसका ख्याल रखेंगे। कजरी ने अपने मन के डर को हटा लिया। वैसे सुगना स्वयम भी इस सम्भोग के लिए तैयार थी।

सुगना और सरयू सिंह अब तक बेहद करीब आ चुके थे। सरयू सिंह ने अबतक सुगना के सारे अंग प्रत्यंग देख लिए थे। सिर्फ सुगना का वह अपवित्र द्वार (गांड)उनकी निगाहों से अछूता था। परन्तु वह वासना का अतिरेक था जिसे सिर्फ सरयू सिंह जानते थे सुगना उससे बिल्कुल अनजान और अनभिज्ञ थी।

आज दोपहर में जब सुगना खाना लेकर आई और पंखा जलते हुए अपने बाबू जी को खाना खिलाने लगी उसने अब अपनी चूचियां पूरी तरह ढक ली थी। अब जब मिलन का दिन निर्धारित हो ही चुका था इन छोटी मोटी उत्तेजनाओं का कोई औचित्य न था। खाना खाते खाते सरयू सिंह ने कहा "अब खुश बाड़ू नु। दिवाली पर तोहार इच्छा पूरा हो जायी"

"एकर मतलब खाली हमारे इच्छा बा"

सरयू सिंह मुस्कुराने लगे. सुगना उनसे बच्चों की तरह लड़ रही थी। उन्होंने फिर कहा "हम त बूढ़ा गईनी. तू ही नया बाड़ू. तहरे मन ज्यादा होइ"

बात सच थी सुगना कुछ उत्तर न दे पायी। उसने अपने बाबू जी को एक रोटी और दिया और मुस्कुराने हुए बोली

"अच्छा अब खाना खायीं"

सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे उनकी नई प्रेमिका उनके सामने बैठी हुई पंखा झल रही उसकी सेवा का फल उसे दिवाली के दिन मिलना तय हो चुका था। लंगोट के अंदर उनका लंड झांक झांक कर अपनी होने वाली नयी नवेली बुर की मालकिन को देख रहा था।

कजरी हरिया की पत्नी के साथ दीपावली का सामान खरीदने के लिए बाजार चली गई। दीपावली को लेकर वह बेहद उत्साहित थी। जाते-जाते वह सुनना को कमरे में रखी मक्खन की हांडी रसोई घर तक पहुंचाने और उसे गर्म कर घी बनाने की हिदायत दे डाली।

सुगना ने घर के बाकी काम निपटाये और नहा धोकर वहीं लहंगा चुन्नी पहन लिया जिसे पहन कर उसने अपने बाबू जी की मदद से अमरूद तोड़ा था और अपने बाबूजी को पहली बार अपनी बुर की खुशबू सुंघाई थी।

वह अपने कमरे में गई और मक्खन की हांडी उतारने लगी तभी एक चूहा तेजी से भागता हुआ उसके पैरों से टकरा गया सुगना घबरा गई और वह हांडी उसके शरीर पर गिर पड़ी हांडी का मक्खन कुछ उसके शरीर पर और कुछ जमीन पर गिर पड़ा हांडी फूड चुकी थी। सुगना घबरा गई उधर दालान में आराम कर रहे सरयू सिंह इस आवाज को सुनकर सुगना के कमरे में आ गए।

सुगना परेशान थी वह मक्खन से सराबोर थी। वह अपनी चोली उतार रही थी जो उसके शरीर से बाहर आकर उसके हाथों में आ गई थी। सरयू सिंह को अपने करीब देखकर वह सिहर गई उसकी चोली उसका साथ छोड़ चुकी थी और उसकी चूचियां सरयू सिंह के ठीक सामने थीं। गर्दन और कंधों पर गिरा हुआ मक्खन सरकता हुआ उसकी चुचियों पर आ चुका था।

सरयू सिंह से और बर्दाश्त ना हुआ उन्होंने अपने हाथ उस मक्खन को पोछने के लिए बढ़ाएं पर वह उसी मक्खन को सुगना की चूँचियों पर मलने लगे। वह सुगना की मक्खन जैसी मुलायम त्वचा वाली कठोर चुचियों पर मक्खन लगाने लगे।

मक्खन से सराबोर अपनी मजबूत हथेलियों से अपनी बहू सुगना की कोमल चूँचियों को सहलाते हुए सरयू सिंह भाव विभोर हो गए। जिन चूँचियों को देखकर और अपने मन में कल्पना कर सरयू सिंह ने होटल में अपना हस्तमैथुन किया था वह आज उनकी हथेलियों में थीं।

अपनी बहू की चूँचियों का पहला स्पर्श उनके लिए यादगार बन रहा था। सुगना अपने बाबू जी से सटती चली जा रही थी।
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वह उनसे नजरे मिला पाने की स्थिति में नहीं थी इसलिए उसने अपनी पीठ अपने बाबूजी की तरफ की हुयी थी।

सरयू सिंह की हथेलियों को उसकी चुचियों को और भी अच्छे से पकड़ने का मौका मिल गया। उनके दोनों हाथ अब दोनों चुचियों पर बराबरी से घूमने लगे। सुगना आनंद में डुबने लगी। उसे मक्खन की सुध बुध न रही उसकी कोमल बुर से प्रेम रस बहना शुरू हो गया था। सरयू सिंह ने अपनी एक हथेली को नीचे की तरफ बढ़ाया। मक्खन लगे सरयू सिंह के हाथ सुगना की नाभि तक जा पहुंचे।

वह नाभि के छेद में थोड़ी देर अपनी उंगलियां घुमाते रहे सुगना मन ही मन अपने बाबू जी से कहती रही

"बाबूजी अउरु नीचे"

वह मदहोश हो रही थी। एक बार उसके मन मे आया कि वह उनकी हथेलियों को अपनी बुर तक पहुंचा दे। उसके बाबूजी इस कला के माहिर खिलाड़ी थे और यह भी तय था कि वह उससे बहुत प्यार करते थे उसने अपनी अधीरता को रोक लिया। सुगना अपनी जाँघे सिकोड रही थी। जब सरयू सिंह सुगना की चुचीं को तेजी से दबाते वह आगे की तरफ झुक जाती।

यही वह अवसर होता जब वह अनजाने में ही अपने कोमल नितंब अपने बाबूजी के लंड से सटा देती। उस मजबूत लंड को अपने नितंबों के बीच महसूस कर सुगना की उत्तेजना चरम पर जा पहुंची। वह अपने ख्यालों में खोई हुई थी तभी उसने अपना लहंगा नीचे सरकते हुए महसूस हुआ।

जब तक वह उसे पकड़ने के लिए अपने हाथ नीचे लाती लहंगा घुटनों को सहलाता हुआ जमीन पर आ गया। सुगना सिर्फ बाबूजी….कह पाई और प्रत्युत्तर में सरयू सिंह ने उसके गाल चुम लिये। सरयू सिंह के हाथ अब नीचे बढ़ रहे थे। सुगना की धड़कने तेज हो रही थी। उसे पता था आगे क्या होने वाला है। आज उसकी कोमल बुर पर किसी मर्द का हाथ लगने वाला था। सरयू सिंह उसकी जांघों के जोड़ तक पहुंचने ही वाले थे तभी उन्होंने सुगना को अपने शरीर से थोड़ा दूर कर दिया सुगना को यह अप्रत्याशित सा लगा।

सुगना अभी भी अपने बाबूजी की तरफ पीठ करके खड़ी थी। उसने अपनी गर्दन घुमाई और बाबूजी को देखा जो अब अपनी धोती खोल चुके थे और लंगोट से लंड बाहर आ रहा था। लंड लगभग तन चुका था। सुगना सिहर उठी उसने अपनी आंखें बंद कर ली। क्या आज ही उसकी बुर की दीवाली मन जाएगी?
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वह सिहर उठी। उसका रोम रोम कांपने लगा। वह एक खरगोश की भांति अपने अंगों को सिकोड़े खड़ी रही। सरयू सिंह ने अपने हाथों में गिरा हुआ ढेर सारा मक्खन ले लिया और वापस सुगना के पास आ गए। उन्होंने मक्खन सुगना की जांघों के जोड़ पर रख दिया और उस मक्खन से सुगना की जांघों को छूने लगे।

इनकी मोटी उंगलियां सुगना की जांघों के अंदरूनी भाग पर घूमने लगी सुगना की बूर से रिस रही लार उस मक्खन से मिल रही थी। सरयू सिंह को उस लार का लिसलिसापन तुरंत ही समझ में आ जाता था। वह जान चुके थे कि सुगना आनंद ले रही है। उनकी उंगलियां सुगना की जांघों के बीच से होते हुए उसके अपवित्र द्वार( गांड) तक पहुंच रही थीं। सुगना के नितंब अभी भी मक्खन की कोमलता से बचे हुए थे.

सरयू सिंह ने सुगना का चेहरा अपनी तरफ कर लिया. वह सुगना के माथे को चूम रहे थे। सुगना उत्तेजना के अधीन थी उसने अपनी गर्दन ऊपर उठाई कुछ ही देर में उसके होंठ उसके बाबूजी के होंठों के करीब आ गए। उन सुंदर गुलाबी होठों को अपने बेहद नजदीक पाकर सरयू सिंह मदहोश हो गए।

सुगना आगे बढ़ी या सरयू सिंह यह कहना मुश्किल था। पर चारों होंठ एक दूसरे में खो गए। एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति एक कमसिन युवती के होंठ चूस रहा था। जब तक सरयू सिंह सुगना के होंठ चूस रहे थे उनकी हथेलियों ने सुगना के नितंबों को मक्खन से सराबोर कर दिया। सुगना को इस बात का एहसास तब हुआ जब उसके बाबूजी की उंगलियों ने सुगना की कोमल गांड को सहला दिया।

सुगना एक बार फिर थरथरा उठी। उसे वह एहसास अद्भुत लगा था। उसने अपनी कोमल गांड को सिकोड़ लिया और अपने बाबूजी की उंगलियों को अपने कोमल नितंबों के बीच दबा लेने का प्रयास किया। पर मक्खन की फिसलन बेहद ज्यादा थी। सरयू सिंह की उंगलियां फिसल कर उसकी जांघों पर आ गयीं।

सरयू सिंह के लिए तो सुगना के शरीर का हर अंग ही अद्भुत था कितना कसाव था सुगना के शरीर में। उन्होंने मन ही मन सुगना और कजरी के शरीर की तुलना कर डाली एक अध पके केले और पके हुए केले में जो अंतर होता है वही सुगना और कजरी के शरीर में था। सरयू सिंह ने अपने कदम थोड़े पीछे लिए और वह पास पड़ी चौकी पर बैठ गए। सुगना भी उन से सटी हुई पीछे आती गई।

सरयू सिंह ने उसे अपनी बाईं जांघ पर बैठा लिया।
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सुगना के नितंब सरयू सिंह की बाई जांघ पर टिक गए उसके कोमल पैर सरयू सिंह की दोनों जांघों के बीच से होते हुए जमीन पर छू रहे थे। मक्खन की फिसलन से बचने के लिए सुगना अपने दाहिने हाथ से बाबूजी की पीठ को पकड़ी हुई थी। सरयू सिंह ने भी अपनी प्यारी बहू को सहारा देने के लिए अपना बाया उसकी पीठ से होते हुए उसके सीने तक ले आए और उसकी दाहिनी चूची को पकड़ लिया।

सुगना का चेहरा उनके चेहरे के ठीक सामने था। वह उसके गालों को चूमने लगे सुगना ने अपना चेहरा अपने बाबू जी की तरफ कर लिया और उनके होठों को चूमने लगी। ससुर बहु का यह प्यार नियत देख रही थी वह मुस्कुरा रही थी।

इधर सुगना अपने बाबूजी के होंठ चूसने में व्यस्त थी उधर सरयू सिंह की उंगलियां उसकी जांघों के बीच घूमने लगीं। वह बीच-बीच में सुगना की पनियायी बुर को छू रहीं थीं।
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जब जब उसकी उनकी उंगलियां सुगना की बुर को छूतीं सुगना सिहर उठती। वह अपने बाबूजी के होठों को और तेजी से चूसने लगती। सरयू सिंह अद्भुत आनंद में थे। एक तो उनके हाथ पहले ही मक्खन से सराबोर थे ऊपर से सुगना की कुवारी बुर से बह रहा प्रेम रस उनके हाथों को और भी ज्यादा चिपचिपा बना रहा था। उनकी उंगलियां बेहद आसानी से जांघों के बीच फिसल रही थीं। सुगना भी अपनी जांघों का दबाव अपनी इच्छानुसार घटा और बढ़ा रही थी।

धीरे धीरे सरयू सिंह की मध्यमा उंगली सुगना की बुर् की फांकों के बीच घूमने लगी। सुगना कांप गयी। बुर् के अंदरूनी भाग पर सरयू सिंह की उंगलियां अजीब किस्म की सनसनी पैदा कर रही थीं। सुगना के लिए यह आनंद अनूठा था उसका रोम रोम आनद में था। सरयू सिंह ने थोड़ा झुक कर और मक्खन अपने हाथों में लिया जिस का आधा भाग उन्होंने सुगना के हाथ में दिया और आधा फिर से उसकी जांघों के बीच रख दिया। सुगना ने पूछा

"बाबूजी इकरा के का करीं?"

"जउन अंग तहरा सबसे प्यारा लागे ओकरे पर लगा द"

सुगना अपने बाबूजी का इशारा समझ चुकी थी। उसने वह मक्खन अपने पसंदीदा अंग अपने बाबू जी के तने हुए लंड के सुपारे पर लगा दिया। अपनी बहू की कोमल हथेलियों का स्पर्श पाकर सरयू सिंह का लंड अभिभूत हो गया। उसने उछल कर अपनी नई मलिका का स्वागत किया और सुगना के हाथों में खेलने लगा। सुगना का हाथ ज्यादा मुलायम था या वह मक्खन यह कहना कठिन था। लंड के लिए वह दोनों ही बेहतरीन थे। वह उनके साथ मगन होकर खेलने लगा।

एक बार बाबुजी की उंगलियां उसकी कोमल बुर पर घूमने लगीं। कभी-कभी वह अपनी उंगलियों को सुगना के उस अपवित्र द्वार तक भी ले जाते और उसे गुदगुदा देते। सुगना उत्तेजना से कांप रही थी। वह आंखें बंद किए अपने कभी अपने बाबूजी के होठों को चूसती कभी उन्हें गालों पर चुंबन लेती। ससुर बहु का यह प्यार दर्शनीय था पर उसे देखने वाला कोई नहीं था सिर्फ और सिर्फ नियति थी जिसने उन्हें इतना करीब लाया था।

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अब तक शरीर सिंह की उंगलियों ने यह भांप लिया था की सुगना अक्षत यौवना थी। उसकी कौमार्य झिल्ली सुरक्षित थी। उन्हें इस बात का आभास था कि जब सुगना की कौमार्य झिल्ली टूटेगी उसे निश्चय ही दर्द होगा। शायद यह दर्द और भी ज्यादा होगा जब उनका विशाल और मजबूत लंड उस छोटी सी कोमल बुर में प्रवेश करेंगा।

वह दीपावली की रात की कल्पना कर उत्तेजित हो गए पर अपनी बहू सुगना के लिए चिंतित भी। एक पल के लिए उन्हें लगा वह अपनी बहू सुगना की दीपावली खराब कर देंगे। दर्द में कराहती हुई सुनना को वह कैसे चोद पाएंगे?

यह उन्हें कतई पसंद नहीं आएगा। वह उसका आनंद तो लेगी या नहीं यह बात बाद में ही समझ में आती पर यह तय था कि उस मोटे लंड से उसकी झिल्ली टूटने पर उसे दर्द होता। सरयू सिंह यह भी सोच रहे थे की सुगना का कौमार्य भंगअपने अपवित्र लंड से न करें।

उनके मन में दीपावली की रात को लेकर कई तरह की भावनाएं आ रही थी उन्हें उस दिन सुगना को पहली बार चोदना था पर वह सुगना की रात नहीं खराब करना चाहते थे. उस खुशी के मौके पर अपनी प्यारी बहू को वह दर्द से कराहता नहीं देखना चाहते थे। अंततः उन्होंने मन ही मन फैसला कर लिया। उन्होंने सुगना के होठों को जोर से चुम्मा और अपनी उंगलियों का दबाव बढ़ा दिया। उनकी मध्यमा उंगली बुर् की कोमल होंठो के बीच से मांसल भाग पर छूने लगीं। सुगना उत्तेजना से कांप रही थी। बुर् के कोमल मुख पर दबाव बढ़ते हैं उसे तेज दर्द की अनुभूति हुई। सुगना ने कहा…

"बाबू जी तनी धीरे से……. दुखाता"

शरीर सिंह को पता था दर्द तो होना है उन्होंने अपनी उंगलियों का दबाव थोड़ा कम किया और एक बार फिर उतना ही दबाव दिया. सुगना फिर चिहुँक उठी।

सरयू सिंह ने सुगना के कान में कहा सुगना "सुगना बाबू अबकी दुखाई त हमार होंठ काट लीह हम रुक जाइब"

सुगना खुश हो गई. कुछ ही देर में सरयू सिंह सुगना के बुर् अंदरूनी भाग को एक बार फिर छेड़ने लगे। जैसे ही वह दबाव ज्यादा बढ़ाते सुगना अपने दांत उनके होठों पर गड़ाकर उन्हें रोक लेती। सरयू सिंह की दूसरी हथेली सुगना की चूँची और निप्पलों को लगातार सहला रही थी।

उनका लंड सुगना के कोमल हाथों में खेलते खेलते अब स्खलन के लिए तैयार था। सुगना स्वयं भी कांप रही थी वह भी झड़ने के लिए पूरी तरह तैयार थी। अपनी बाबूजी की उंगलियों को अपनी पनियायी बुर पर अब ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पा रही थी। शरीर सिंह बुर् के कंपन को अच्छे से पहचानते थे।

जिस समय सुगना की बुर के कंपन चरम पर थे उसी समय उन्होंने अपनी मध्यमा उंगली को उसको बुर में तेजी से उसे अंदर घुसा दिया। सुगना दर्द से तड़प उठी उसने अपनी हथेलियो से सरयू सिंह के लंड को तेजी से दबा दिया। उसके कोमल हाथों में इतनी ताकत जाने कहां से आई। उसी दौरान उन्होंने अपने बाबूजी के होठों को काट लिया। वह अपनी झिल्ली टूटने के दर्द से तड़प उठी थी। इसके बावजूद दर्द और स्खलन की खुशी में खुशी का पलड़ा भारी था।

सरयू सिंह की उंगली उसकी बुर के अंदर तेजी से आगे पीछे हो रही थी। उनका अंगूठा सुगना की भग्नासा को सहलाकर सांत्वना दे रहा था। सुनना उनकी हथेली में अपना प्रेम रस छोड़ रही थी। कुछ देर अपनी उंगली से सुगना के अंदरूनी भागों को सहलाने के पश्चात उन्होंने सुगना के शरीर की हलचल को शांत होते हुए महसूस किया। सुगना तृप्त हो चुकी थी।

उधर सुगना की हथेली के तेज दबाव के कारण सरयू सिंह भी स्खलित हो रहे थे वीर्य की तेज धार सुगना के पेट और चूचियों पर पढ़ रही थी। सुगना को उस उत्तेजना में कुछ भी समझ ना आ रहा था। वह लंड को पकड़े हुए थी। वीर्य वर्षा ससुर और बहू दोनों को बराबरी से भीगो रही थी।

सुगना ने अनजाने में ही अपने ससुर के होंठ काट लिए थे। पर अब वह उसे सहला रही थी।

सरयू सिंह ने सुगना को अपने सीने से सटा रखा था। कुछ ही देर में सुगना उनसे अलग हुई। सरयू सिंह अपनी बहू को देख रहे थे जो उनके वीर्य और उस मक्खन से सराबोर थी। उसकी जांघों पर रक्त आया हुआ था।

उधर सर्विसिंग के होठों पर भी रक्त के निशान आ गए थे। सुगना ने सचमुच में जोर से काटा था। सुगना एक बार फिर पास आई और अपने हाथों से अपने बाबूजी के होठों का रक्त पोछने लगी। शरीर सिंह के हाथ भी एक बार फिर उसकी जांघों पर चले गए। सुगना की बुर अब संवेदनशील हो चली थी। वह अपनी कमर पीछे कर रही थी।

शरीर सिंह ने उठ कर उसे अपने सीने से लगा लिया। और उसके माथे को चूमते हुए बोले

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"सुनना बाबू जायेदा अब दिवाली अच्छा से मनी" सुगना में उन्हें चुम लिया पर वह शर्म से पानी पानी हो गयी। उसके प्यारे बाबुजी दीपावली के दिन उसकी बुर में दीवाली मनाएंगे यह सोच कर वह मदमस्त जो गयी।

एक बार खुशी में वह उनके चरण छूने के लिए झुकी। उसके कोमल नितंब सरयू सिंह कि निगाहों में आ गए। सुगना सच में बेहद खूबसूरत थी। भगवान ने उसे कामुकता का अद्भुत खजाना दिया था उसका हर अंग सांचे में ढला हुआ था। सरयू सिंह ने अपना सर ऊपर उठाया और नियति को इस अवसर के लिए धन्यवाद प्रेषित किया। उनके आने वाले दिन बेहद उत्तेजक और खुशियों भरे होने वाले थे.

सुगना ने कोठरी में फैले हुए मक्खन को देखकर अपने बाबू जी से कहा

"सासू मां घीव बनावे के केहले रहली अब का होई"

सरयू सिंह सुगना की मासूमियत से द्रवित हो गए. उन्होंने नंगी सुगना को अपने सीने से सटाया और उसके माथे पर चूम लिया और कहां
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"जायेदा तू साफ सफाई कर ल हम घीव मंगवा दे तानी"

सुगना मुस्कुरा दी उसने अपनी एडियां उची की और बाबूजी के गालो को चूम लिया।

ससुर और बहू का यह प्रेम निराला था। नियति ने आज सुगना का कौमार्य हर कर उसे अद्भुत संभोग के लिए तैयार कर लिया था। दीपावली शुभ होने वाली थी। सुगना नीचे बैठकर मक्खन उठाने लगी उसकी सुंदर और गोल मटोल चूतड़ देखकर सरयू सिंह ललचा रहे थे वह एकटक उन्हें देखे जा रहे थे। आज उन्हें इतना कुछ एक साथ मिल चुका था पर उनका मन ही नहीं भर रहा था।

तभी सुगना ने पलट कर देखा और बोली "बाबूजी अब जायीं सब राउरे ह"

शरीर सिंह अपनी धोती बांधते हुए कोठरी से बाहर आ गए पर उनका दिल बल्लियों उछल रहा था। उनके खजाने में कोहिनूर हीरा आ चुका था।

सुगना ने मक्खन साफ कर लिया था अचानक उसका ध्यान अपने पेट और चुचियों पर गया जो मक्खन और शरीर सिंह के घी(वीर्य) से सने हुए थे। उसने एक बार अपने हाथों से अपनी चुचियों को सहला लिया अपने बापू जी का वीर्य हाथों में लिए अपनी चुचियों को मसलने के समय व बेहद खुश दिखाई पड़ रही थी उसका स्वप्न पूरा हो रहा था।

दीपवली का इंतजार सुगना को भारी पड़ रहा था….


 
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