पृकृति का रहस्य - एक प्राचीन कथा

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ये कहानी शुरू होती है लगभग छह हजार साल पहले, उस दौर में लोग छोटे छोटे कबीले में रहते थे| उनके जीवन का एक मात्र उद्देश्य था| जीवित रहना और सुरक्षित रहना लेकिन उनके दिमाग में ऐसा कोई उद्देश्य नहीं था वो ये तो उनकी प्रकृति में ही समाहित था| डर उनके अन्दर सबसे बड़ा बल था उन्हें जीवत रहने के लिए समय पे समय पे नए उपकरण खोजने का संकेत देता रहता था वो जैसे ही किसी जानवर को देखते उनकी चेतना तुरंत आने वाले संकट की तयारी का सन्देश देती| कोई नही जानता था आखिर ऐसा क्यूँ होता है, यहाँ तक की क्यूँ शब्द भी उनके लिए अजनबी था वो मिल बांटकर शिकार करते और प्रेम से रहते ना कोई रंग का भेद, ना ही कोई जाति या धर्म| सब कुछ अपने आप में परिपूर्ण था| अभी रिश्ते नाते जैसी पहिचान विकसित नही हुई थी बस पहिचान थी तो सिर्फ इतनी की कौन किस कबीले का है| कबीले में कई लोग रहते थे बच्चे, बूढ़े , युवक, और युवतियाँ| कबीले की मुखिया एक महिला होती थी जोकि सबसे समझदार, तेज, मजबूत, शिकार करने में निपुण होती थी| कबीले में बच्चों को सिर्फ अपनी माँ का पता होता था बाप कोई भी हो सकता था, उसका अपना भाई भी| कोई भी किसी के साथ भी मथुन करता था और मैथुन आसानी से मिलने के कारण बहुत ही कम अवस्था से शुरू कर देते थे नए नए तरुण और तरुणियों में तो इतना उत्साह रहता था की दिन में चार बार तक मैथुन कर लेते थे| और तरुणियाँ बहुत जल्दी माँ बन जाती थी 


इस कहानी के कबीले की मुखिया है जामवती जोकि करीब 26 वर्ष की मजबूत शरीर की महिला है जिसके अभी सिर्फ 7 बच्चे है 4 लड़के और 3 लड़कियां| कबीला कुल मिलाकर अभी 60 लोगों का निवास है जिनमें बच्चे भी शामिल है कबीले के सभी लोग जामवती को अम्मा बुलाते है जामवती से पहले इस कबीले की मुखिया उसकी ही माँ की ज्येष्ठ पुत्री कृष्णावती थी जोकि अब 40 बरस की सबसे सबसे सुन्दर महिला है जवानी के दिनों में कबीले सभी मर्द मैथुन करने के लिए उत्सुक रहते थे कृष्णावती अब शिकार पे नही जाती वो कबीले के बच्चों की देखभाल करती है बच्चों में जामवती का ज्येष्ठ पुत्र लशा, कृष्णावती को बहुत प्यारा है वो उसके कोमल अधरों को देख देख बहुत खुश होती है शिकार पे जाने योग्य होने के बाबजूद उसकी शिकार में कोई रूचि नही है जबकि लशा से छोटे तरुण जामवती के साथ शिकार पे जाने लगे थे जामवती लशा के इस स्वाभाव की वजह से बिलकुल पसंद नही करती और ना ही कबीले के और लोग लशा को पसंद करते|

लशा का व्यक्तित्व एक शिकारी पुरुष के बिलकुल विपरीत है कबीले में तेज शिकारी पुरुष बहुत सराहनीय है इससे कबीले को भोजन और सुरक्षा मिलती है हर पुरुष को शिकार में अपने जोहर दिखाने में बड़ी ख़ुशी मिलती है| पर लशा तो किसी और ही दुनिया में खोया रहता है| ना तो वो किसी से ज्यादा बात करता है और ना ही उसे इसकी परवाह है कि उसे कोई पसंद नहीं करता

उसके इस व्यवहार की वजह से अब तक किसी भी तरुणी या स्त्री ने उसके साथ मैथुन नहीं किया है और ना ही लशा, किसी की भी तरफ आकर्षित हुआ है|

आज जामवती अपनी पूरी टोली के साथ शिकार पे निकली है-

जामवती -- "आज का मौसम सघन है ठंडी हवाएं और हलके कोहरे का मिले जुला भाव है बारिश होने की आशंका भी लग रही है पता नहीं अगले कितने दिन बारिश चले| कोई बडे से शिकार की आवश्यकता है पता नहीं कितने दिन शिकार अनुकूल मौसम ना मिले|

समूह का सबसे मजबूत युवक कृष्णावती का पुत्र भद्रा(21 वर्ष) आगे आता है अपनी तेज आँखों से जामवती के दहिने और निहारता हुआ शी शी मुंह पे ऊँगली रखके इशारा करता है, "अम्मा उधर देख कोई भेड़िया जान पड़ता है" जब सब सुनिश्चित कर लेते है यही हमारा शिकार है सब हमले की तयारी में जुट जाते है 

जामवती -- "आज का शिकार बहुत बड़ा लग रहा है हमारे 15 दिनों का भोजन", चेहरे पे मुस्कान के भाव लाते हुए|

भद्रा -- अम्मा इस शिकार में तो हमे बहुत मेहनत लगेगी

जामवती -- मेहनत तो लगेगी ही तू कभी कृष्णावती के साथ शिकार पे नही गया? उसके अन्दर बहुत उर्जा और स्फूर्ति थी जब वो मुखिया थी तो मैंने उसने ने मिलके ऐसे ही एक तंदुरुस्त भेड़िया का शिकार किया था वो भी अकेले| जबकि हमारे साथ तो 14 जन है| इसकी प्रशंसा में कबीले के मर्दों हम दोनों से कई दिनों तक प्रेम किया था 

भद्रा एक रस्सी से जामवती के स्तन बंधते हुए(ताकि दौड़ना ज्यादा सुगम हो)

भद्रा -- अपने समूह को 3 3 के उपसमूह में बाँट देता है और चारो दिशाओं में अग्रसर एक एक उपसमूह को अग्रसर होने का आदेश देता है और खुद जामवती के पीछे हो लेता है 

भद्रा जामवती के पीछे चिपक के खड़ा होता है जामवती शिकार पे आक्रमण करने की तरकीब सोचती है 

जामवती आगे की ओर झुक के खड़ी होती है भद्रा की नजर के उसके उठे हुए नितम्ब पे पड़ती है भद्रा का लिंग मैथुन के विचार से तन जाता है और उसका मन शिकार से हटकर मैथुन करने को करता है वो ज्यादातर तरुणीयों से मैथुन किया करता था पर पहली बार उसके अन्दर इतनी तीव्र इच्छा थी कि वो जामवती से मैथुन करे 

अचानक चारो दिशाओं में छिपे सभी जन झाड़ी के पीछे से निकलकर भेड़िये पे हमला कर देते है जामवती भेड़िया के मुंह पे जोर से पेड़ की मजबूत पिंडी मारती है भेड़िया दर्द से भन्ना जाता है अब सब भेड़िया पे चढ़ जाते है और नुकीले डंडे से उसका पूरा शरीर घायल कर देते है भेड़िया वहीं ढेर होक पसर जाता है 

इस पूरी घटना के दौरान भद्रा हरकत में नही आ पाया था उसका लिंग पूरी तरीके से तना था जामवती उसकी तरफ देखती है और सब कुछ समझ जाती है भेड़िया के मरने के बाद वो लोग एक पेड़ की पिंडी में भेड़िया के पैर बांध देते है और सभी लेटकर थकने के कारण हांफने लगते है 

भद्रा अभी भी अपने चेहरे पे अपराध भाव लिए खड़ा था जामवती उसे अपने पास बुलाती है और उसके लिंग को हाँथ में लेके हसने लगती है और पूछती है , "क्या हुआ? कह रहे थे बड़ी मेहनत लगेगी शिकार में और फिर भी कोई मदद नही की? 

भद्रा मासूम सा चेहरा बनाते हुए में आपको देख के बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गया था 

जामवती -- तो तू मेरे साथ मैथुन करना चाहता है? 

भद्रा -- हांमी भरता है 

जामवती -- हंसती हंसती है

भद्रा कोई जवाब नही देता है| जामवती के पास आकर उसके स्तनों को रस्सी से आजाद करता हुआ दबाने लगता है| जामवती भी कसमसा जाती है| भद्रा अपनी दो ऊँगली जामवती की योनी में डाल देता है जामवती के मुंह से आह आह की घुटी हुयी आवाज निकलने लगती है उनके और साथी ये सुनके हंस पड़ते है 

जामवती के स्तन तन जाते है जामवती सम्भोग के लिए पूर्णता तैयार थी वो उस जगल में ज्यादा देर नही रुक सकते थे किसी भी वक्त भेडियों का झुण्ड आ सकता था

जामवती अपनी बलिष्ट बाजुओं से भद्रा को अपने नीचे लिटाकर एक अजीब स्फूर्ति के साथ सीने पे चढ़ जाती है और बेतहाशा चूमने लगती है उसके दिमाग में जैसे ही भेडियों के आने का डर आता है वो उठ खड़ी होती है| भद्रा को भी खड़ा होना पड़ता है जामवती उसके लिंग को एक बार टटोलती है भद्रा भी उसकी योनी का मुआयना कर लेता है|

जामवती -- दोनों हाथों से भद्रा का चेहरा पकडती है और अपने होठो को उसके होठों के पास लती हुयी आँखों में आँखों में डालके कहती है प्रिय! यहाँ से चलते है मौसम ठंडा हो रहा है

हलकी हलकी बौछार गिरना शुरू हो गयी थी है "कबीले पहुँचते ही हम लोग सम्भोग रत हो जायेंगे" जामवती ने कहा

अब तो वो बस जल्द से कबीला पहुँचना चाहता वो ख़ुशी से खिल जाता है| भद्रा इस वक्त इतनी उर्जा से भरा है कि वो कुछ भी कर गुजर सकता है 

जामवती सबको चलने का आदेश देती है सभी जन पिंडी उठाते है भेड़िया नीचे लटक जाता है पिंडी को कन्धों पे व्यवस्थित के चलने लगते है सबसे आगे जामवती ढाल बनके चल चल रही थी आज उसकी चाल में मादकता 

बारिश की हल्कि हल्कि फुवारों ने उसके चेहरे की धूल को पोंछकर खिला दिया था उसके खुले बाल नितम्बों के निचे तक थे उसकी चाल से बीच बीच में उसकी वक्राकर कमर खुल जा रही थी बड़ा अनूठा दृश्य था|

समूह के लोग बारिश में गीत गाते हुए ठुमक ठुमक कर चल रहे थे एक तो शिकार की खुशी थी दूसरा मौसम भी बहुत ही सुहावना था 

उधर कबीले में एक बच्चा रोने लगता हैं कृष्णावती एक हड्डी का टुकड़ा बच्चे को देके चुपाने लगती है बच्चा हड्डी को चूसते चूसते शांत हो जाता है जानवरों के डर की वजह से कोई भी अकेले जंगल नही जाता था जबकि लशा आज बहुत खुश था की मुखिया शिकार पे गयी है वो बुज्रुगों को चकमा देके कबीले के बाहर निकल जाता है आजाद पंक्षी की तरह जीने के लिए कबीले के बाहर भाग जाता है उसे किसी भी चीज से कोई भय थी पूर्ण रूप से अभय| वो खूंखार जानवरों के साथ भी बिना भय के क्रीडा करता| जानवर और पक्षी तो मानो हमेशा लशा की राह देखते रहते "कब वो मनुष्य आए और हमारे साथ खेले" कबीले के अन्य लोगों के लिए तो यह अनुमान लगाना भी असंभव था कि इन्सान और जानवरों के बीच ऐसे भी सम्बन्ध हो सकते है

लशा के साथ सबसे ज्यादा कृष्णावती वक्त बिताती थी कृष्णावती को लशा से सच्चा प्रेम था लशा भी तो, था ही ऐसा सबसे अलग सबसे अनूठा| उसके चेहरे का तेज बृह्म स्वरुप था कृष्णावती बचपन से ही जानती थी लशा अनूठे स्वाभाव का है लशा को वो एक पल के लिए भी दूर नही होने देना चाहती थी पर लशा तो जंगल में भटकना पसंद था जैसे उसे किसीकी तलाश है कृष्णावती अभी भी लशा में उसके बालस्वरूप को देखती थी 

लशा कभी भी कृष्णावती की नजरों से बच नही सकता था आज भी जब लशा कबीले के बाहर निकला था कृष्णावती की तेज निगाहों ने तुरंत पकड़ लिया था की अब लशा बाहर जाने वाला है लेकिन कृष्णावती ने उसे टोका नही क्युकि वो जानती थी की लशा को बाहर घूम के ख़ुशी मिलती है 

जब कबीले के लोगों को पता चलता की लशा बाहर गया था तो उसपे बहुत डांट पड़ती कृष्णावती उसे कबीले के अन्य लोगों से तो बचा लेती पर उसकी माँ जामवती के सामने कुछ नही बोल पाती आखिर माँ तो माँ होती उसे दूसरों से कहीं ज्यादा अपने बच्चे की फिकर होती है चाहे वो कितना ही बुरा हो

ऐसा भी नही है कि कृष्णावती को लशा की फिकर नही होती बस वो तो लशा को खुश देखना चाहती है| लशा के इतनी बार बाहर घूम के सुरक्षित आ जाने से उसे विश्वास हो चला था कि इतने मासूम तरुण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा

लशा को किसी भी चीज से कोई मोह नही है और ना ही कोई चीज उसे सुख या दुःख का अहसास कराती है वो तो सिर्फ प्रकृति के रहस्य को खोजने में सारी उर्जा लगाता इसके विपरीत कबीले के अन्य लोग मांस खाते और सुरा पीके नशे में मस्त रहकर नृत्य करते और फिर कबीले की किसी स्त्री के साथ सम्भोग करके सो जाते उनके प्रितिदिन का यही क्रम था

कबीले के सारे पुरुष और स्त्री प्रतिदिन सम्भोग करते लेकिन कृष्णावती को कोई भी पुरुष नही भाता वो किसी के साथ सम्भोग नही करती वो तो रात दिन लशा के ख्यालों में डूबी रहती उसका लशा के प्रति आकर्षण मातृत्व व ईश्वरीय प्रेम का मिश्रित रूप है

कृष्णावती बच्चों के बीच बैठी थी आज लशा समूह के वापस आने से पहले ही कबीले में आ गया था कृष्णावती यह देख के बच्चों की जिम्मेदारी एक बूढी औरत को सोंप के लशा को लेके अन्दर कुठरिया पहुँचती है अँधेरा होने की वजह से लकड़ियाँ जलाती है उजाले में लशा के मुख को चूम के अपने छाती से चिपका लेती है और बालों में ऊँगली फिराती है जैसे ही उसका हाँथ लशा के सिर से जुड़ता है कृष्णावती को ठंडक का अहसास होता है लशा पूरा भीगा रखा था उसका लिंग ठण्ड से सिकुड़ा हुआ था 

कृष्णावती -- तू तो बहुत ठंडा रखा है, आखिर बाहर क्यूँ जाता है?

लशा -- मुझे प्रकति का रहस्य जानना है? हम कौन है? हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? मरने के बाद क्या होता है? 

कृष्णावती -- अपने आंशु पोंछती हुयी बसकर, और लशा के माथे को चूम लेती है| "खुद पे भी ध्यान दिया कर कितना ठंडा रखा है सवालों के जवाब जानने के लिए पहली जरुरत तो ये है कि जिन्दा रहना", "खा मेरी कसम आगे से खुद पे ध्यान देगा"

कृष्णावती अपने हाँथ आग से गरम करके उसके माथे व चेहरे पे काफी देर तक रगडती है ;फिर धीरे धीरे शरीर के निचले भाग पे जाती है और उसके लिंग पे गरम हाँथ रगडती है इससे उसका लिंग तनने सा लगता है|

कृष्णावती मुस्कुराकर, "अब शरीर में गर्मी आ रही है और जोर जोर से खिलखिलाने लगती है" लशा के लिए ये पहला अनुभव था जब उसका लिंग खड़ा हुआ| कृष्णावती बैठके उसके सर को अपनी गोद में रखने लगती है लशा का मुंह कृष्णावती के स्तनों के बिलकुल करीब था और उसका लिंग पूरी तीव्रता के साथ आसमान की तरफ था लशा के सूची में एक और रहस्य जुड़ गया था जो उसके लिये समझना जरुरी था

लशा ने अपना सर उठाया और उसका मुंह कृष्णावती के स्तनों से लग गया

कृष्णावती लेटकर, अपने ऊपर आने का इशारा करती है और लशा भी उसके ऊपर लेट जाता है लशा के दिमाग में अजीब सी बैचैनी थी आज की इस घटना की वजह से| हालाँकि उससे उम्र में छोटे काफी पहले से सम्भोग करने लगे थे लशा अब तक पृकृति के सबसे प्रभावशाली आकर्षण से अपरिचित था 

कृष्णावती लशा के चेहरे को अपने स्तनों पे रख लेती है और उसके बालों में ऊँगली फिराने लगती है लशा का लिंग अब तक बैठा था कृष्णावती के स्पर्श के जादू से फिर खड़ा होने लगा 

कृष्णावती भी कई सालों से किसी मर्द से सम्बन्ध नही बनायीं थी वो भी उत्तेजित होने लगी थी कृष्णावती लशा के चेहरे को उठा के अपने चेहरे के सामने लाती है और अपने स्तनों की तरफ नजर डालके पूछती है पीना है लशा भी अपनी पलके निचे झुकाकर हामी भरता है कृष्णावती उसके होंठों की छोटी सी चुम्मी लेकर और स्तन की घुंडी लशा के मुंह में प्रवेश करा देती है लशा के दिमाग में अचानक से मानो एक लकीर गुजरती है और काँप जाता है बचपन की मिलीजुली यादों के साथ जोर जोर से स्तनपान करने लगता है 

तब तक कुठरिया में एक बुढिया आती है और पूछती है तुम लोगों को भूख लगी है? लशा मुंह उठाकर बुढिया के स्तनों की और देखता है उसके स्तन पूरे तरीके से सूख चुके थे

लशा फिर से कृष्णावती के स्तन चूसने लगता है कृष्णावती बुढिया को जवाब देती है हाँ अम्मा! भूख लगी है|

बुढिया रक्त और मांस का सूप एक कटोरेनुमा खोपड़ी में दे जाती है 

कृष्णावती -- उठो प्रिय कुछ खा लो 

लशा -- मुझे नही खाना किसी की हत्या का भोजन 

कृष्णावती -- तो क्या खायेगा? भूखा रहेगा?

लशा -- हाँ

कृष्णावती -- खा लो प्रिय ये तो प्रकृति का नियम है सभी जीव किसी तरीके से पेट भरते है सबके लिए कुछ ना कुछ भोजन है इससे हम लोग बच नहीं सकते है

लशा -- एक तरीका है! " आज में जब जंगल गया था तो बन्दर कुछ खा रहे थे मैंने भी खाया बड़ा स्वादिष्ट था और हाँ मांस नही था"

कृष्णावती मन में सोचकर हंसती है कितना अजीब है कुछ दिन पहले तक ये यही मांस खाता था अब देखो कैसी बाते कर रहा है

कृष्णावती -- लेकिन अभी तो खा क्या कल तक भूखा ही रहेगा? अगर आज समूह शिकार के साथ आया तो 10 दिन तक तू बाहर नही निकल पायेगा

लशा -- जिद करते हुए, नहींहीं.. में नही खाऊंगा

कृष्णावती -- समझ गयी ये आदर्शवादी तरुण ऐसे नही मानेगा उसने कहा चाल ठीक है मत खा| लेकिन उसे चिंता भी थी की ये कैसे भूखा रहेगा उसने एक तरकीब सोची और मुस्कराने लगी

कृष्णावती लशा को अपने पास खींच लेती है और अपने गले से लगा के प्रेम करती है फिर उसके मुंह को अपने चेहरे के पास लाके चूम लेती है लशा को बहुत अच्छा लगता है 

फिर वो उसे अपने गले से लगाकर उसका मुख अपने पीठ से सता लेती है और वो जल्दी से खोपड़ी का कटोरा उठा के मुंह में मांस का सूप भरकर कटोरा रख देती है लशा इससे अनभिज्ञ था अब कृष्णावती लशा अपने होंठों के पास लाती है लशा को होंठ खोलने का इशारा करके पूरा सूप उसके मुंह में उलटकर उसके होंठ जकड लेती है लशा खुद को छुड़ाने की कोशिश करता है पर बलशाली कृष्णावती के आगे उसका बल नाकाम रहता है और फिर लशा को भूख भी लगी थी वो पूरा गटक जाता है 

कृष्णावती -- और पिओगे

लशा -- थोडा गुस्से का भाव चेहरे पे लाता हुआ नहीं लेकिन उसका मन कर रहा था कि कृष्णावती थोडा जोर डाले तो वो खा ले

कृष्णावती -- लशा के चेहरे के भाव पड लेती है और बनाबटी ढंग से, "अब नहीं पिएगा " 

लशा -- अब थोड़े कम प्रतिरोध के साथ नहीं "उसके चेहरे पे मुस्कान थी" 

कृष्णावती फिर से अपने मुंह में भरती है और उसके पास अपने होंठ ले जाती हैं लशा अबकी बार खुद पहल करके सारा जूस पी जाता है इस तरह से दोनों मिलके पूरा सूप ख़तम करते है

कृष्णावती लशा के पूरे चेहरे को चाट के साफ़ करती है और दोनों फिर से लेट जाते है कृष्णावती अपनी दोनों बाहें फैलाकर लशा को अपने अघोष में ले लेती है 

दोनों के दिमाग बिलकुल शून्य हो जाते है| ध्यान और प्रेम के मेल से दोनों लोक परलोक में ईश्वरीय प्रेम का लुप्त उठा रहे होते है जिसकी कोई सीमा नही

भद्रा और जामवती अपने समूह के साथ कबीले की ओर बढ़ रहे थे समूह की एक महिला बोलती है जामवती हम लोग थक गये है थोड़ा आराम कर लें?

जामवती सबको आदेश देती है कि भेड़िये को नीचे रखकर आराम कर लो सब वैसा ही करते है जामवती बारिश से भीगी अपनी लटाओ को बार बार अपने चेहरे से हटा थी सुहावने मौसम से उसका शरीर रोमांचित हो गया था आज भद्रा से सम्भोग की कल्पना से उसके स्तन तन चुके थे सम्भोग के आवाहन से उसका पेट गदगद हो रहा था उसकी योनी में खुजला रही थी

भद्रा जामवती के पास आता है और उसके कानों के नीचे हाथ लेजाकर चेहरा उठाता है जामवती उसकी आँखों में देखते हुये अपने होंठ उसके होंठों से मिला देती और दोनों भीसड चुम्बन में जुट जाते है भद्रा हाँथ भी व्यस्त थे एक हाँथ जामवती के नितम्ब को मसलने में जबकि दूसरा हाँथ उसके भारी भरकम सौंदर्य से परिपूर्ण स्तनों का आकार माप रहा था भद्रा की आंखे जामवती से सम्भोग की स्वीकृति मांगती है जामवती भी भद्रा से मिलन के लिए उत्साहित थी पर कबीले के नियम उसको आगे बढ़ने से रोक रहे थे कबीले में मान्यता थी की सूर्य देवता के छिपने से पहले का सम्भोग अपसगुन होता है इससे उनपे संकट आ सकता है 

जामवती भद्रा को अलग करके एक जीव की उपस्थिति के बारे में कहती है भद्रा के अन्दर एक नयी स्फूर्ति थी वो तुरंत घोड़े के बच्चे पे झपट पड़ता है बच्चा अपने पूरे वेग से दौड़ पड़ता है भद्रा भी अपनी नुकीली लाठी लेके हवा के साथ दौड़ने लगता है उसके समूह के लोगों ने भद्रा को कभी इस वेग से दौड़ते नही देखा यहाँ तक कि भद्रा ने खुद कभी नही सोचा था की कोई मनुष्य इतने वेग को प्राप्त कर सकता है 

भद्रा बीच जंगल में था वो पेड़ की डालियों को सामने से हटाता हुआ बच्चे का पीछा कर रहा था आखिर में घोड़े का बच्चा हांफ कर गिर गया भद्रा नुकीले डंडे को बच्चे के पेट में घूस देता है| भद्रा अब हांफ रहा था वो बिना आराम किये बच्चे को अपने सिर के ऊपर, खड़ी भुजाओं पे टांग लेता है और अपने समूह की ओर तेजी से चल पड़ता है जैसे ही उसकी सांसें सामान्य होती है वो फिर से दौड़ने शुरू कर देता है 

समूह के लोग भद्रा को आता हुआ देखते है भद्रा, चौड़ी छाती मांसल जांघे, जांघों के बीच लटकता हुआ गेंहुआ लिंग, उसका पूरा सौन्दर्य किसी देवता के समतुल्य था उसका ये रूप देखके समूह की सारी स्त्रियाँ और युवतियाँ भद्रा को अपने अन्दर महसूस करने के लिए उत्तेजित थी पर भद्रा की नजरें आज सिर्फ जामवती पे टिकी थी भद्रा जामवती के सामने आता है और मर्दानी अकड के साथ घोड़े के बच्चे को जामवती के पैरों के पास पटक देता है "धडाम की आवाज होती है" जामवती अपने ठोड़ी पे ऊँगली रखके मुस्कुरा देती है 

जामवती मन में सोचती है काम उर्जा में इतनी शक्ति?, कि मनुष्य एक असंभव काम भी कर सकता है 

जामवती खुद पे गर्व करती है कि आज रात के सम्भोग के लिए उसने सही पुरुष चुना है वो सबको चलने का इशारा करती है 

समूह कबीले के पास पहुँचता है वहां से कबीले की दिवारें दिखती है जोकि तरा ऊपर पत्थरों के संयोजित करने से बनी थी 

समूह शिकार को नीचे रखकर कबीले के गेट पे लगे पत्थर और पेड़ की पिंडियों को हटाने लगता है अन्दर लोगों को गेट के पास किसी की उपश्थिति का अहसास होता है सभी हथियार लेके आ जाते और चिल्लाते है कौन है? बाहर भद्रा यकीन दिलाता है की वो लोग उसके ही साथी है 

गेट खुलता है सभी लोग शिकार देखके झूमने लगते है और अपनी ख़ुशी जताते है अन्दर पहुँचते है तो बच्चे घोड़े के बच्चे को देख के ख़ुशी के गीत गाने लगते है

समूह के लोग आराम करते है और बाकी के लोग शाम के भोजन और मदिरा का इंतजाम करते है दोनों शिकारों से आज के लिए टुकड़े काट लिए गए और बाकी के भाग को पेड़ के पत्तों से ढक कर रख दिया गया| घोड़े का मांस सिर्फ छोटे बच्चों के लिए था

जामवती थोड़े आराम वास्ते लेट जाती है उसका बच्चा(11 माह) का आता है जामवती के ऊपर चढ़ कर स्तन पकड़ता है दूध पीने की कोशिश करने लगता है जामवती अपने स्तन को ठीक से पोंछती है और उसकी निप्पल अपने बच्चे के मुंह में दे देती है आहिस्ता आहिस्ता शरीर पे हाँथ फिराकर'बच्चे को लाड करने लगती है इस तरह से समूह की सभी स्त्रियाँ अपने बच्चों को स्तनपान कराती है 

मॉस पक कर तैयार होता है सबको पत्तों पे परोसा जाता है मांस खाकर सभी एक बूढ़े के पास जाते और खोपड़ी का कटोरा उठाते बुढा उसमे सूरा कर देता सब पीकर नशे में झूमते हुए आगे बढ़ते जाते|

भोजन के पश्चात् सभी एक जगह इकट्ठे होकर गीत और नृत्य के माध्यम से खुशियाँ मनाने लगते है भद्रा हड्डियों और लकड़ियों से संगीत निकाल रहा था 

इसी बीच सभी मर्द और पुरुष रात के लिए साथी चुनते है 

कृष्णावती और लशा अभी भी एक दुसरे को गुथ्थे हुए गहरी नींद में सो रहे थे उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो ये हमेशा के लिए सो गये पर असल में उन दोनों को आज समाधि की झलक लग गयी थी

नृत्य के बाद बूढ़े और बच्चे उस जगह से दूरी बना लेते है या सो जाते है बाकी के लोग रातभर प्रेमलीला करते है

भद्रा की आंखे जामवती को खोज रही थी उधर जामवती लशा के छोटे भाई के साथ रति क्रिया में व्यस्त हो चुकी थी यह देखकर भद्रा गुस्से से भन्ना जाता है पर वो कुछ कह नही सकता था क्यूंकि जामवती कबीले की मुखिया थी

जामवती तरुण के साथ सम्भोग करते हुये घुटी घुटी आवाजें निकाल रही थी आह आह! आह! थोडा तेज ...आह आह....जामवती आसन बदलती है और आसमान की तरह अपने नितंभ उठा लेती है जिससे उसकी योनी का द्वार और खुल जाता है उसका तरुण लह के साथ अपनी जामवती की योनी में लिंग अन्दर बाहर कर रहा था और हांथो नितंभ भी मसल रहा था

भद्रा के सारे अरमानो पे पानी फिर जाता है वो दुखी होकर किसी और से प्रेम करने की सोचता है उसकी नजर बैकुंठी पे पड़ती है बैकुंठी मैथुन करने लायक हो चुकी थी कई पुरुषों ने उसके साथ सम्भोग की करने की कोशिश की है पर वो कौमार्य भंग होने के दर्द से डर जाती इसलिए उसने कभी भी किसी मर्द को अपने पास नहीं आने दिया पर उसे सम्भोग देखेने में बढ़ा रस आता था वो यहाँ सम्भोग में विलीन जोड़ों को टुकुर टुकुर देख रही थी

भद्रा जाता है बैकुंठी के स्तन मसल देता है बैकुंठी के शरीर में दर्द की लहर दौड़ जाती है और वो रूआसी सी होकर बच्चों के पास भाग जाती है भद्रा को यहाँ पर भी मायूसी हाँथ लगी उसका मन बहुत बैचेन था अब उसने किसी और महिला के पास ना जाने की सोची और वही अपने लिंग को पकड़कर बैठ गया

उधर तरुण की रफ़्तार बढ़ गयी थी और कुछ छड बाद सारा वीर्य जामवती के योनी में उढ़ेल देता है और वही लेटकर हांफने लगता है जामवती उठती है अपने बालों को पीठ पर डाल कर तरुण के ऊपर आती है और उसके मुंह को बेतहाशा चूमती हुई उसपे ढेर हो जाती है दोनों मीठे मीठे दर्द की अनुभूति से नीद में चले जाते है अब तक लगभग सभी लोग सो गये थे आखिर में भद्रा मन मरोर कर लेट गया उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी आज बहुत तेज अन्धिरिया थी सन्नाटे से सी सी की आवाज हो रही थी 

एक बच्ची जोकि पेशाब के लिए थोड़ी दूर गयी और बैठकर पेशाब करने लगी पेशाब करने के बाद जैसे ही खड़ी हुयी एक जानवरों के गुर्राने की तेज आवाज आयी वो लड़की डरकर रोने लगी सभी लोग गहरी नींद में सो रहे थे सिवाय भद्रा के|

भद्रा रोने की आवाज सुनकर बच्चे के पास पहुँचता है और गले से चिपकाकर पूंछता है क्या हुआ?

बच्ची -- रोती हुयी, डर लग रहा है
 
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lisasexy
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भद्रा अपने जगह वापस आकर लड़की को अपने से चिपकाकर लिटा लेता है और उसके शरीर पर हाँथ फिराता है अचानक उसके दिमाग में बिजली सी दौड़ जाती है जो कामवासना आज जामवती ने जगाई थी वो उत्तेजना पकड़ रही थी हालाँकि कुछ घंटे से वो इस कामवासना का दमन कर रहा था लेकिन अब ये दमन के बाद और ज्यादा उर्जावान हो गयी थी अब इसे रोकपाना मुश्किल ही होता जा रहा था


भद्रा का लिंग तेजी से तनने लगा फिर उसके दिमाग में अपराध का भाव आता है| की वो बच्चे के पास लेटा है| अपने लिंग को दबाकर सामान्य करने की कोशिश करता है कामवासना फिर से दमित होने से उसके शरीर में घुटन होने लगी और हो भी क्यूँ ना ऐसी उर्जा जो किसी को जीवन देने की सामर्थ्य रखती है उसको कैसे दबाया जा सकता है या तो उसका प्रयोग हो या उसका रुपान्त्रण हो| उसके पास रुपान्त्रण का कोई उपाय नही था| उपाय हो भी कैसे? ये उसकी पहली कोद्शिश थी कामूर्जा के प्राकृतिक बहाव को रोकने की| दिमाग बहुत सारे विचारों से भरने लगा था ज्यादातर विचारों की तीव्र पुनरावृत्ति हो रही थी इससे पहले उसे सम्भोग के लिए कभी इतना तड़पना नही पड़ा था सम्भोग की इच्छा होते ही वो किस्सी भी तरुणी के साथ सम्भोग कर लेता था लेकिन आज वो जामवती के वजह से चूक गया और जामवती भी नही मिली| अभी तक उसे सम्भोग से आनंद मिलता था| क्या सम्भोग का ना मिलना इतना दुखदायी हो सकता है आज उसे पहली बार पता चला था क्या सम्भोग या sex का दमन मनुष्य के आधे से ज्यादा बिमारियों की जड़ है?

बच्ची भद्रा से चिपटी हुयी सो रही थी भद्रा उसका मासूम चेहरा देखता है और अपनी ओर भींचकर सीने से लगा लेता है

भद्रा सोने की कोशिश करने लगता है आखिर में सोच सोचकर थकने से उसे नींद आ ही गयी उसने आज से ज्यादा कभी खुद को इतना दुखी नही पाया था शिकार में कई बार वो गम्भीर घायल हुआ था पर आज जैसे दुःख की अनुभूति उसे जीवन में पहली बार हुयी

जामवती के पेट में दर्द होने से वो रात में ही जाग जाती है ये दर्द भोजन के तुरंत बाद भीसड सम्भोग के कारण हो रहा था वो अपना पेट पकड़कर थोडा आगे जाती है और उकरु बैठकर गुदा से मल बाहर करने की कोशिश करती है पूरा जोर लगाने पर भी कोई परिणाम नही मिला| जामवती दोनों हांथों से अपना पेट दबाने लगती है इससे उसके पेट पर दवाब बढता है और मल बाहर निकलता है इससे उसे कुछ आराम महसूस होता है कुछ देर और बैठकर पेट खाली करके पत्ता लेती है अपना हाँथ पीछे ले जाकर अपने गुदा से मल पोंछती हुयी अपनी जगह वापस लेट जाती है फिर उसे शिकार की सारी घटना याद आती है कैसे वो भद्रा के साथ सम्भोग करने को लालायित थी वो आज भद्रा को ही अपना शरीर सोंपना चाहती थी| वो याद करने लगती है सायं कल को क्या हुआ था, "भोजन के बाद ज्यादा सुरा हो जाने से हलकी हलकी नीन्द में थी और एक तरुण आकर सम्भोग शुरू कर देता है"

उधर भद्रा को आज पहली बार सपना आ रहा था उसे बस जामवती की योनी और स्तन ही नजर आ रहे थे और सपने में वो जानवरों की तरह जामवती की योनी को प्यार कर रहा था, उसका हाँथ बार बार अपने लिंग पे जा रहा था बार बार वो करवटें बदलता रहा होता है जामवती भद्रा के पास आ जाती है और उसके नए कारनामे को देखकर हैरान रह जाती है वो नहीं समझ पा रही थी, ये क्या हो रहा है 

कामौत्तेंजना जामवती के अन्दर भी आग लगा रही थी वो ज्यादा ना सोचकर भद्रा का लिंग पकड़ लेती है भद्रा तुरंत जाग जाता है उसका दिमाग आज भारी लग रहा था उसे नींद का कोई सुकून नही मिला था| 

भद्रा तुरंत जामवती को पकड़कर नीचे पटक देता है मानो वो अपनी तड़प का बदला ले रहा हो पुरुष का ये अनोखा अंदाज जामवती को बहुत पसंद आता है दोनों एक दुसरे में गुत्थम गुथ्थई करने लगते है मानो एक दुसरे का शिकार कर रहे हो| भद्रा मारे उत्तेजना के सीधे अपना लिंग योनी में घुसा देता है और बहुत ही तेजी के साथ आगे पीछे करने लगता है जामवती को दर्द हो रहा था आज उसका लिंग कुछ ज्यादा ही बड़ा लग रहा था भद्रा पूरी ताकत के साथ सम्भोग कर रहा था जामवती भी भद्रा के शरीर में अपने नाखून गडा रही थी भद्रा अब जामवती के स्तनों का मर्दन करने लगता है उन्हें नोचता है काटता है जामवती आज पहली बार सम्भोग के समय चिल्ला रही थी

दोनों ने 8 बार जबरदस्त सम्भोग किया भद्रा का मन अभी भी तृप्त नही हुआ था पर उसका शरीर में अब ताकत नही बची थी जबकि जामवती आज बहुत खुश थी आज किसी ने उसकी शरीर की कमर तोड़ कुटाई की थी उसका पूरा शरीर दर्द कर रहा था पर वो संतुष्ट थी दोनों फिर से सो जाते है

अब सूर्य उगने ही वाला को था कृष्णावती जागकर बकरी का दूध निकालर एक बुढिया के पास पहुँचती है अभी तक तो दूध का इस्तेमाल सिर्फ शरीर की मालिश के लिए होता था कृष्णावती नीचे पसर जाती है बुढिया धीरे धीरे दूध से मालिश शुरू कर देती है आज कृष्णावती बच्चों जितनी मासुम थी चेहरे पे मुस्कान, नटखट अंदाज|

बुढिया के हाँथ कृष्णावती के चेहरे व गर्दन पर चल रहे थे अब वो उसके स्तनों पर दूध डालती है और तीन उँगलियों से स्तनों के ऊपर से घुंडियों की तरफ जाती है स्तन की मालिश के बाद उसका हाँथ पेट से होता हुआ नाभि पे आ जाता है अब जैसे ही उसकी ऊँगली नाभि के अन्दर प्रवेश करती है कृष्णावती हँसी के किलकोरे लेने लगती है "अम्मा! गुदगुदी हो रही है", कृष्णावती ने कहा 

लेकिन बुढिया के हाँथ नहीं रुकते है वो अब योनी द्वार के पास आ जाते है, दो उँगलियों को दूध में डुबोकर योनी के अन्दर आधा इंच घुसेड़ देती है कृष्णावती के मुंह आह.. की आवाज निकल जाती है 

बुढिया -- कृष्णावती, तेरा छोटा बच्चा घुटनों चलने लगा अभी तक तू पेट से नहीं हुयी

कृष्णावती -- में अब किसी के साथ सम्भोग नहीं करती 

बुढिया -- लशा से कर ले दिन रात तुम दोनों साथ रहते हो 

कृष्णावती ने कोई जवाब नहीं दिया|

वो पहले चाहती थी, लशा से सम्भोग करना पर अब उसे एक अनोखे प्रेम की अनुभूति हो चुकी थी

बुढिया के हाँथ बराबर चल रहे थे अब वो जांघो और घुटनों से होते हुए पैर के अंगूठो पे आ चुके थे वो पैर के अंगूठो व उँगलियों को दूध में डूबा डुबाकर अच्छे से मालिश करती है कृष्णावती के शरीर में मालिश से कुछ गर्मी आ जाती है

बुढिया उठकर चलने लगती है 

कृष्णावती -- कहाँ? 

बुढिया उंगली देखाती है, लशा की तरफ 

कृष्णावती तुरंत खड़ी होती है और बुढिया के हांथो से दूध का कटोरा ले लेती है "आज लशा की मालिश में करुँगी", कृष्णावती ने कहा 

लशा अब उठकर बैठ चूका था उसकी आंखे अपनी प्रेमिका को खोज रही थी 

अचानक से कोई पीछे से आकर सर्पट्टा में लशा के आँखों पे हाँथ रख लेता है लशा हांथो के अहसास से तुरंत समझ जाता है इतना स्नेह से भरे हाँथ सिर्फ उसकी प्रिय, कृष्णावती के ही हो सकते है लशा के बैचैन मन को अब जाके तृप्ति मिलती है 

लशा हाँथ छुड़ाने की कोशिश नहीं करता है वैसे ही बैठे बैठे प्रेम के सागर में डुबकी लगाने लगता है कृष्णावती अब उसके सामने आकर उसका चेहरा अपने हाँथ में ले लेती है दोनों की आंखे एक दुसरे से हटने के बारे में सोच भी नही सकती थी बल्कि दोनों और बिलकुल करीब आकर गहराइ में उतरती ही जा रही थी 

कृष्णावती लशा के ऊपर व नीचे के होठों को बारी बारी से चूमती है जैसे मधुमक्खी शहद को चूसती है

अब दोनों की जीभे एक दुसरे के मुंह में थी दोनों के खिले हुए चेहरे एक दुसरे में समा जाना चाहते थे

वो दोनों एक दुसरे में खो चुके थे उन्हें तो इतना भी मलूम नहीं था की उनके चारो तरफ कबीले के लोग आ चुके है उनकी भी निगाहें इस जोड़े से हटने का नाम नहीं ले रही थी 

अब वो दोनों अलग होते है दोनों के चेहरे खिले हुए थे मानो उन्हें दुनिया में सबकुछ हासिल हो गया हो उन्हें किसी भी चीज की चाहत ना रही थी लशा का दिमाग खाली हो चूका था अब उसे कोई रहस्य को खोजने की चाह नही थी बल्कि अब वो दोनों खुद एक रहस्य बन चुके थे 

कृष्णावती लशा के शरीर पे दूध डालकर मालिश करने लगती है उसने शिर से लेके पैर तक मजे ले लेकर मालिश की कभी वो चिकोटी काटती कभी गुदगुदी मचा देती उन्हें देखकर ऐसा लगता था मानों ये अभी अभी चौथे वर्ष में लगे हो सिर्फ उनके शरीर का आकर इस भ्रान्ति को तोड़ रहा था कृष्णावती आज लशा के लिंग व वृषण की भी मालिश करती है उनके सारे अच्छे और बुरे जैसे भेद मिट चुके थे

मालिश के बाद वो उठती है और खलेते हुए बच्चों के तरफ बढती है

आज उसकी चाल रोमांच से भरी हुयी थी नितंभ आगे पीछे ले जाके हिरनी के माफिक लहरा रही थी वो बच्चो के गोले में जुड़कर हाँथ झटक झटक के कमर हिलाती हुयी वामावर्त से दक्षिणावर्त फिर दक्षिणावर्त से वामावर्त घूम रही थी सारे बच्चों में सिर्फ यही एक बड़ी महिला थी गजब का दृश्य था ऐसा लग रहा था जैसे बकरियों की टोली में एक खुशमिजाज हिरनी शामिल हो गयी हो| वाह री पृकृति तेरा करिश्मा!

भद्रा और जामवती अभी भी चिपट कर सो रहे थे भद्रा एक दो करवट बदलकर जाग जाता है जामवती को चित्त करता है अब उसके हाँथ जामवती के स्तनों को पीस रहे थे उसका मुंह जामवती के मुंह पर चुम्बनों की बौछार शुरू कर देता है अब जामवती भी जाग गयी, आँखे बंद किये वो भी भद्रा का साथ देने लगती है भद्रा के वहसीपन से शरीर में दर्द की लहर दौड़ जाती है उसका शरीर काँप जाता है आह आह...हा..आह करके जोरों से चिल्लाने लगती है भद्रा का लिंग हड्डी की तरह कठोर हो जाता है और अपनी गुफा खोजने लगता है भद्रा अपना लिंग हाँथ में लेकर जामवती के योनिद्वार पे लगा देता है और एक सांस लेकर पूरे जोर से अन्दर कर देता है जामवती की चीख निकल जाती है उसकी आँखे खुलती है वो देखकर हैरान होती है आज इतनी जल्दी सवेरा हो गया हालाँकि सम्भोग के लिए उसका तन मन रोमांचित हो रहा था पर वो पुरखों के बनाये हुए नियमों का भली भांति पालन करने वालों में से थी

उसे भद्रा पे बहुत गुस्सा आती है ये जानता था की सूर्यास्त हो चूका है तब भी ये सम्भोग करने लगा जामवती गुस्से से तमतमा रही थी उसके शरीर की नसें तन चुकी थी वो भद्रा को बहुत जोर का धक्का मारती उसका लिंग योनी से बाहर निकलता है और भद्रा दूर गिरा जाकर 

भद्रा लगभग पागल हो चूका था वो खड़ा होकर जामवती के स्तनों के ओर हाँथ बढाता है जामवती उसका हाँथ झटककर चल देती है| 

अपना स्तन हाँथ में लेकर अपने बच्चे को घुमिती हुयी स्तनपान कराने लगती है भद्रा के दिमाग में अभी भी यही चल रहा था की जामवती उसके लिंग पे बैठकर उछल रही है इस उत्तेजना से उसकी कमौर्जा खुद ही अपना रास्ता बना लेती है उसके लिंग से वीर्य के फव्वारे छूटने लगते है थकान के अहसास के साथ वो वहीँ फिर से लेट जाता है 

जामवती स्तनपान कराके अपने बच्चे को नीचे छोडती है और अपने शरीर की मालिश कराने लगती है आज उसका शरीर बिलकुल हल्का लग रहा था भद्रा के साथ सम्भोग से उसकी योनी 10 बार रस छोड़ी थी उसका शरीर दर्द से चरमरा रहा था लेकिन उसका मन अभी भी कर रहा था कि भद्रा के मर्दाने हाँथ उसको अपनी बाहों में जकड़े, उसके स्तनों को मसले, उसकी योनी में जोर जोर से लिंग के धक्के लगाये|

बैकुंठी को आग के लिए लकड़ियाँ बीनने के लिए बोला जाता है एक तरुण उससे कहता है तू चल लकडिया इकट्ठी करना में आके लकड़ियाँ लाने में मदद करूँगा दिन होने के कारण पास के जंगल में खतरा कम था वो अकेले ही जंगल को निकल पड़ती है 

लशा अब तक लेटा लेटा कुछ सोच रहा था अचानक उसे कृष्णावती की याद आ जाती है वो तुरंत उठकर कृष्णावती को खोजने लगता है कृष्णावती दो दो तीन तीन बच्चो को लेकर झूम रही थी कभी उनको हवा झुलाकर हांथों में गुपकती कभी किसी बच्चे को छेडकर भागती बच्चे बदला लेने के लिए उसके पीछे दौड़ती अभी एक बच्चा उसके नितंभ पे थप्पड़ मरकर भाग रहा था कृष्णावती उसके पीछे धीरे धीरे दौड़ रही थी ताकि बच्चे को पकडे ना जाने का मनोवल बना रहे 

लशा सामने से आके बच्चे को उठा लेता है कृष्णावती बच्चे को उसके हवाले करने की विनती करती है लशा अपने होंठों पे ऊँगली रखके इशारा करता है "पहले एक चुम्मि दो"

कृष्णावती गर्दन हिला के स्वीकृति भरती है "पहले बच्चे को मुझे दो"

लशा बच्चे को ढील देता है वो झपटकर हँसता हुआ जीत के अहसास से भागने की कोशिश करता है पर कृष्णावती उसको झपट लेती है और उसके पुट्ठों पे 2--3 चपात लगाती है अपनी पकड़ ढीली करके लशा को देख निहार रही थी बच्चा थोडा सा जोर लगाकर खुद को कृष्णावती की बाँहों से आजाद करा लेता है वो बहुत खुश था की अपने दम पे कृष्णावती के हांथों से निकल भागा 

अब लशा और कृष्णावती के चेहरे आमने सामने को थे दोनों के होंठ जुड़ने के करीब थे पर अंतिम क्षड कृष्णावती के मन में एक शरारत सूझी वो जल्दी से अपना चेहरा पीछे करके पूरी रफ़्तार से दौड़ने लगती है 

लशा, "रुको प्रिये!"

कृष्णावती, पीछे मुडती हुयी जीभ निकालती है

लशा भी अब कृष्णावती को दौड़ कर पकड़ने की कोशिश करने लगता है पर वो कृष्णावती के वेग को प्राप्त नहीं कर पा रहा था फिर भी दौड़ता रहता है और एक समय पश्चात थककर हांफने लगता है लेकिन तब भी वो अपने प्रेमिका को पाने की रह में दौड़ता रहता है 

अब कृष्णावती से भी नही रहा जा रहा था अपने प्रेमी की तेज सांसों की आवाज सुनकर 180 डिग्री कोण पे घूम जाती है और डेढ़ गुने वेग के साथ लशा की ओर दौड़ जाती है लशा के शरीर में मिलन के विश्वास से स्फूर्ति आती है कुछ ही क्षड़ो में दोनों एक दुसरे को बेतहाशा चूम रहे होते है अब बारी लशा की थी लशा अपने दोनों हाँथ कृष्णावती के पीठ पे घुमाता हुआ भागने की तयारी करता है, 

"अचानक कृष्णावती के नितंभ पे चपाक की आवाज होती है" ये कारनामा लशा के हांथो का था लशा अब तेजी हंसकर दौड़ता है 

कृष्णावती कुछ क्षण चेहरे पे बनावटी गुस्से का भाव लाती हुयी खड़ी रहती है फिर लशा को मजा चखाने के लिए दौड़ पड़ती है पर लशा बहुत आगे निकल चूका था कृष्णावती थोडा आगे दौड़ी, उसके दिमाग में तरकीब सूझती है वो थोड़ा अभिनय के साथ लडखडाकर गिर जाती है, बच्चों के तालियों की आवाज आती है लशा बहुत आगे निकल चूका था अपने पीछे कृष्णावती को आता हुआ ना देखकर उसे चिंता होती है और उलटे पैर दौड़ पड़ता है जब देखता है की कृष्णावती नीचे पड़ी है और बच्चे ताली बजा रहे है वो और तेजी से कृष्णावती की तरफ दौड़ता है और पास आकर दुखी स्वर में आवाज देता है प्रिय!

कृष्णावती तुरंत हरकत में आती है और लशा के पैरों में अंटा डालकर लशा के पुठों पर चपात लगाने लगती है लशा को अब जाकर सारा मांजरा समझ आया कि ये गिरने का बहाना कर रही थी लशा उसके ऊपर पसर जाता है दोनों फिर से प्यारे प्यारे चुम्बनों में डूब जाते है

कबीले में बाकी पुरुष और स्त्रियाँ काफी अलग में मालिश कराके अपने अपने प्रेमियों से चिपक कर बैठे थे एक दुसरे को और अच्छे से जानने की कोशिश कर रहे थे जामवती अपने बेटे के गोद में सर रखके लेटी थी और उसका सबसे छोटा बच्चा जामवती के स्तन को मुंह लेकर दूध पी रहा था 

भद्रा अब जाग जाता है उसके आँखों में अभी भी वासना के डोरे देखे जा सकते थे उधर जामवती के भी अचेतन मन में भद्रा की ही चाह थी एक बुढिया भद्रा के शरीर की मालिश करती है "आह आह......" , भद्रा के शरीर पर जामवती के नाखूनों के घाव होने से वो दर्द के कारण सहम जाता है बुढिया घावों पर मिट्टी लगाकर छोड़ देती है और बाकी की जगहों मालिश करने लगती है बुढिया की नजर भद्रा के लिंग पर पड़ती जोकि भीसड व असंस्कृत सम्भोग से छिल गया था बुढिया कटोरे से ढेर सारा दूध लिंग पर गिराती है और दोनों हथेलियों के बीच फसा कर, हथेलियों को लिंग के सिरे तक ले जाती और सिरे से वापस जड़ तक आती|

लिंग के घाव दूध लगने से भद्दे पड़ गये थे मालिश के कारण छिलछिलाता हुआ खून पुछ गया था बुढिया पूरे शरीर की मालिश के बाद दोबारा घाव वाले क्षेत्रों पे आती है और बहुत ही साध साध के मालिश करने लगती है

अब आग जल चुकी थी सभी आग के चारो तरफ बैठकर भुनता हुआ मांस देख रहे थे बच्चे भी अब यहाँ आ गये थे जबकि लशा और कृष्णावती अभी भी एक दुसरे में चिपटे हुए थे उनके नेत्र मुंदे हुए थे बीच बीच में एक दुसरे के शरीर को सहला देते कभी कभी एक दुसरे को चुमते भी

बैकुंठी जंगल पहुच चुकी थी अपने गले में हड्डियों की माला तथा हाँथ में एक नुकीले डंडे को लिए लकड़ियाँ इकठ्ठी कर रही थी उसे एक खरा दिखता है वो सीधे डंडा फेंकर मारती है खरा वहीँ ढेर हो जाता है वो खरा को खाने लगती है और आगे को बढती जाती है उसे झाड़ियों के पीछे किसी के क़दमों की आवाज आती है उसके कान सतर हो जाते है वो डंडा तान के आवाज का पीछा करती है वहां एक तरुण खड़ा हुआ था वो गौर से देखती है "ये मेरे कबीले का तो मालूम नही होता क्या हमारे जैसे और भी प्राणी रहते है इस धरती पे और ये क्या ये अपने कमर पे पत्ते बंधा हुआ है", बैकुंठी सोच में डूबी हुई थी

वो तरुण तब तक बैकुंठी को देख लेता है और ऐसे बातें करना आरम्भ कर देता है मानों वो इसे बहुत अच्छे से जानता हो

तुम कौन हो? यहाँ क्या कर रहे हो? क्या तुम हमारे जैसे हो? पहले तुम्हे कभी नही देखा?

तरुण अब उसके पास आ जाता है और उसके एक हाँथ को अपने दोनों हांथों में दबा लेता है "हम दोनों मनुष्य है, में भी तुम्हारी तरह यहाँ लकड़ियाँ बीनने आया हूँ मेरे साथ मेरी माँ और एक तरुण आया है, हम उस नदी के उस पार रहते है", तरुण ने जवाब दिया

बैकुंठी -- क्या नदी के उस पार लकड़ियाँ नही है? और तुम्हारे बाकी के साथी कहाँ है? नदी के उस तरफ कैसा दिखता है?

तरुण -- उस पार की धरती थोड़ी अलग है वहां पुष्प और फल उगते है उधर ऐसे जंगल नही है जब हमारे लकड़ियों की पूर्ति नही पड़ती है तो कभी कभी इस पार आना पड़ता है

बैकुंठी -- फिर से, तुम्हारी माँ और साथी?

तरुण -- हाँ वो लोग सम्भोग करने गये है इधर की जलवायु कुछ ठंडी है जल्दी उत्तेजना आ जाती है 

बैकुंठी -- सम्भोग का नाम सुनकर अपने डंडे की नोंक दांतों में फसाकर मुस्कराती हुयी, तुम्हे उत्तेजना नहीं है हमारे कबीले में तो दिन में सम्भोग नहीं किया जाता है इसे अपशगुन माना जाता है, ऐसा करने से भारी संकट आ जाता है

तरुण -- हाँ मुझे उत्तेजना आती है पर कोई तरुणी नहीं आयी है मेरे साथ, मेरे कबीले में कोई भी किसी भी वक्त प्रेम या सम्भोग कर सकता है अपसगुन की कोई मान्यता नहीं है 

बैकुंठी -- कोई तरुणी?, तुम्हारे साथ तुम्हारी माँ तो आयी है

तरुण -- नहीं हम लोग अपनी माँ के साथ सम्भोग नहीं करते है 

दोनों एक दुसरे का हाँथ पकड़कर आगे पीछे झुलाते हुए मस्ती में आगे बढ़ रहे थे चिड़ियों की चेंच आहट की प्रतिध्वनी एक सगीत का माहौल बना रही थी

बैकुंठी -- हम लोगों को मिले हुए काफी देर हो चुकी है क्या तुम्हारी माँ अभी भी सम्भोग कर रही है?

तरुण -- हम लोग कभी कभार सम्भोग करते है लेकिन पूरा मन लगाकर 

बैकुंठी -- हमारे कबीले के लोग तो बहुत सम्भोग करते है पर इतनी देर तक नहीं

तरुण -- आओ, उन्हें सम्भोग करते हुए देखते है

तरुण की माँ सर जमीन पे रखे अपने नितंभ को आसमान की तरफ किये हुए थी और तरुण अपने घुटनों पे खड़ा हुआ अपना लिंग स्त्री के योनी में दे कर लह के साथ धीरे धीरे धक्का लगा रहा था हर धक्के के साथ दोनों के चेहरे खिल जा रहे थे

इतने धीमे सम्भोग किया जाता है? और सम्भोग में तो स्त्री कराहती है और ये तो खुश हो रही है, बैकुंठी ने कहा

तरुण -- नहीं ऐसा तो नहीं होता है क्या तुमने कभी सम्भोग नही किया? 

बैकुंठी -- नहीं पहली बार तरुणी को बहुत दर्द होता है इस लिए मेंने कभी सम्भोग नही किया

तरुण तो इन सब बातों की कल्पना भी नही कर पा रहा था सम्भोग में दर्द होना और कराहना

तुम्हे इनको सम्भोग करते हुए देखकर अपनी कोई बात सच मालूम होती है?, तरुण ने पूछा 

तरुणी, गर्दन हिला कर मना करती है 

अब वो दोनों संभोगरत जोड़े के पास आ जाते है तरुण तरुणी का परिचय कराता है उसकी माँ सुझाव देती है तुम लोग भी सम्भोग करो 

तरुण और तरुणी करीब आ जाते है कुछ देर तक चुम्बन करते है और वहीँ लेट जाते है तरुण तरुणी के होंठ , गर्दन , और स्तन चूम रहा था तरुणी की सम्भोग के बारे में जो धारणा थी वो बदल रही थी उसे बहुत आनंद महसूस हो रहा था

तरुण बीच बीच में तरुणी की योनी को टटोल रहा था ये सुनिश्चित करने के लिए तरुणी की योनी से पर्याप्त काम रस रिस चूका है या नही जब तक उसे यकीन नही हो जाता है की उसकी योनी पूरे तरीके से गीली नही हो गयी, तब तक तरह तरह के तरीके अपना कर तरुणी को और उत्तेजित करने की कोशिश कर रहा था 

अब तो तरुणी पूर्ण रूप से उत्तेजित हो चुकी थी और वो खुद ही पहल करके लिंग को अपने योनी में डाल लेती है और धीमें धीमें धक्कों की शुरुआत हो जाती है तरुणी की योनी कुंवारी होने से बहुत टाईट थी इसलिए अभी सिर्फ आधे लिंग से सम्भोग हो रहा था जब उसकी योनी हलकी खुल जाती है तो तरुण आसन बदलने को कहता है दोनों अपने बगल में हो रहे सम्भोग का आसन अपनाते है जिससे तरुणी की योनी और खुल जाती है तरुण कुछ धक्के और लगाकर अपना पूरा लिंग योनी के अन्दर कर देता है लिंग बच्चेदानी से स्पर्श कर रहा था तरुणी एक क्षण के लिए हिल जाती है तरुण रुक जाता है ये सुनिश्चित करने के बाद की तरुणी ठीक है फिर से लिंग अन्दर बाहर करने लगता है अब दोनों को परमसुख की अनुभूति हो रही थी तरुणी का चेहरा खिलकर टमाटर की तरह लाल हो गया था तरुण बीच बीच में रुककर तरुणी की गर्दन, कान, व पीठ को चूम लेता जिस लहबद्ध तरीके से सम्भोग हो रहा था वो फ़िलहाल झड़ने वाले नही थे

कबीले में सभी भोजन करके थोड़ी देर बैठे रहते है और अपने अपने काम पे लग जाते कोई दीवारों का मुआयना करता कोई डंडे छीलकर उन्हें पैना करता कोई पत्ते तोड़ कर लाता कोई जानवर की खोपड़ी से कटोरा बनाता

जामवती को, मुखिया होने के कारण ये सब नहीं करना पड़ता था आज काम कम होने से शिकार के समूह को भी कुच्छ नहीं करना पड़ रहा था 

भद्रा और जामवती की नजरे मिलती है दोनों एक दुसरे के करीब बढ़ते है

जामवती -- प्रिये!

"दिन में सम्भोग नहीं कर सकते पर बाकी सब कुछ तो कर सकते है", भद्रा ने जामवती के हाँथ को अपने हाँथों में लेकर कहा

जामवती भद्रा के होंठ चूमकर स्वीकृति देती है भद्रा तुरंत जामवती के नितंभ पकड़कर उठा लेता है जामवती भद्रा के गर्दन में गुम्फी डालकर अपने दोनों पैर उसके कमर में फंसा लेती है भद्रा जामवती के नितंभ जकड़कर कुठरिया की तरफ दौड़ पड़ता है और अन्दर आकर जमीन पे पटकता है उसकी वासना ने फिर से वहसी रूप ले लिया था अब उसके लिए सम्भोग प्राकृतिक नहीं रह गया था बल्कि ये तो अब उसकी कपोलकल्पित कल्पना को पूरा करने का माध्यम बन चूका था उसकी कलपनाओं का रूप बिगड़ चूका था वो सही गलत या अच्छे बुरे का भेद ना करकर हमेशा गलत और बुरे को चुन रहीं थी 

जबकि बेचारी जामवती इसे प्रेम समझ बैठी थी

दोनों एक दूसरे को बुरे तरीके से चूमने लगते है भद्रा अपने कड़े हांथों से उसके स्तनों को मसलता इससे जामवती को मजा मिलता हालाँकि उसे दर्द भी हो रहा था पर प्रेम से मिलने वाला सुख का, दर्द के मुकाबले पलड़ा भारी था 

अभी उसके दिमाग पे प्रेम और सम्भोग हावी था इसलिए दर्द की वजह से एक दुसरे से अलग हो जाना संभव नहीं था

जामवती भद्रा लिंग को जकड़ लेती है भद्रा अपनी तीन अंगुलिया योनी में घुसेड़ देता है जामवती म्हों.. उम्म... की आवाज के साथ न्होंक जाती है अब भद्रा उठ बैठता है जमावती को पट करता है और उसकी कमर को उठाने लगता है अब जामवती के नितंभ बाहर की ओर उठे हुए थे भद्रा घुटने के बल आ जाता है और अपना लिंग उसकी योनिद्वार पे रगड़ने लगता है और और उसके नितंभ पे ताबड़तोड़ थप्पड़ बरसाने लगता है 

जामवती का दर्द और उत्तेजना से मूत्र निकल जाता है थप्पड़ों की बौछार जारी रहती है अब भद्रा एक ऊँगली जामवती के गुदा में घुसा देता जामवती के मांसपेशियों पे दवाब बढने से चीख के साथ झड़ने लगती है जामवती अपने हाँथ पीछे ले जाकर भद्रा के लिंग को मसलने लगती है भद्रा के लिंग से वीर्य छूटने लगता है अब वो एक आखिरी बार और हाँथ ढीले करके पूरी ताकत से नितंभ पे थप्पड़ मारता है अब वो झड. चूका था उर्जा की हानि के कारण भद्रा जामवती के नितम्भो पर ज्यादा देर पकड़ नहीं रख पाता और वहीँ लेटकर हांफने लगता 

जामवती की कमर अब आजाद होती है उसके पैरों में जान ना रहने से ढीले पड़ जाते है वो भी उलटी होकर वहीँ पसर जाती है दोनों दर्द और सुख के मिलेजुले भाव से हांफने लगते है| मन कितनी देर तक एक अति पे रह सकता है इसके पैर ना होने पर भी सबसे ज्यादा चलायमान होता है अब उनका मन दूसरी अति पे जाने लगता है दोनों सोचते है अब सिर्फ पहले जैसा सम्भोग करेंगे इसमें बहुत दर्द होता है आखिर इन्सान गलतियों से ही सीखता है
 
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कृष्णावती और लशा अपने नेत्र खोलते है आज उन्हें सब कुछ बदला बदला सा लग रहा था उन्हें हर चीज आनंदित कर रही थी इससे से पहले उन्होंने जगत को इन नजरों से नहीं देखा था या यूँ कहें कि उनके पास ये दृष्टि ही नहीं थी | नहीं नहीं, दृष्टि उनके अन्दर ही थी पर इसकी कुंजी नहीं थी| क्या ये कुंजी दिमाग ने कुछ जानकारी पा कर खोल ली? ये तो संभव ही नही. है क्यूंकि दोनो के दिमाग बिलकुल शून्य हो चुके है| फिर क्या है, ये रहस्य? क्या मिला है उनको, कुछ बाहरी वस्तु? नही तो, क्या इसका मतलब ये हुआ कि ये आनंद सभी के भीतर छुपा हुआ है? 


क्या इसे पाने के लिए दिमाग को शून्य करना जरुरी है? क्या दिमाग से ज्यादा बुद्धिमान भी कुछ है? या बुद्धिमत्ता ही इन सब दुःखों और असंस्कृत का कारण है? या बुद्धिमत्ता से संस्कृत बना जा सकता है? 

लेखक मुद्दे से भटकने के लिए माफ़ी चाहता है अब कहानी पर वापस लौटते है कृष्णावती लशा का एक हाँथ लेके अपने गाल से लगा लेती है और उस गाल के तरफ अपनी गर्दन झुकाकर अपने नेत्र बंद कर लेती है लशा द्वारा उसके होंठ चूमे जाने से उसके नेत्र खुल जाते है अब दोनों भोजन के लिए आगे बढ़ते है आज दोपहर होने पर भी उनकी भूख ने तीव्रता नहीं पकड़ी थी लशा कृष्णावती के पीछे अपने हाँथ कमर में फंसाकर निताम्भो से सटकर चल रहा था अब वो अपनी ठुड्डी कृष्णावती के पीठ पे रखके नेत्र बंद कर लेते हुए "प्रिये! तुम ही मेरे नेत्र और सबकुछ हो", लशा ने भाव के साथ कहा 

कृष्णावती अपना हाँथ अपने पीछे ले जाकर लशा के सिर को सहलाती हुयी अपनी मंजिल पे पहुँचती है वहां भुने हुए मांस का एक टुकड़ा भी ना था और बैकुंठी अभी लकड़ियाँ लेकर भी नहीं लौटी थी अजीब विडम्बना थी 

कृष्णावती बहुत ही असहाय नजरों से लशा के तरफ देखती है लशा को कृष्णावती की चिंता होती है उसे तो भूखे रहने की आदत थी पर वो कृष्णावती को भूखा नहीं देख सकता है

उधर कृष्णावती भी इसी उधेड़बुन में थी उसे लशा पे तरस आता है "बेचारा आज भूखा रह गया", 

कृष्णावती दोनों हांथों से लशा के गर्दन को पकड़कर अपने पास लाती है और अपने स्तन लशा के मुंह के अन्दर कर देती है लशा उनसे दूध दूध निकालता है और कृष्णावती के मुंह को खोलकर अपने मुंह से आधा दूध उढ़ेल देता है कृष्णावती के आँखों से आंशु निकल जाते है इस क्रिया के बाद दोनों चिपक कर बैठ जाते है दोनों के हाँथ एक दुसरे के पीठ को सहला रहे थे

तरुण लगभग झड़ने को होता है वो अपना लिंग निकाल लेता है और अपना वीर्य स्त्री के गुदा पे फैला देता है तरुण वीर्य को गुदा द्वार पर इकट्ठा करके उसके गुदा के आसपास की जगह को चिकना करने लगता है और अपने हांथों से अपने लिंग को सहलाता है स्त्री खड़ी हो जाती दोनों अब चुम्बन करने लगते है कुछ देर चुम्बन करने के बाद कान और गर्दन को चूमता हुआ स्तन की घुंडी के चारों ओर अपनी गरम जीभ फिराने लगता है स्त्री के हाँथ तरुण के लिंग पे चल रहे थे जब लिंग में जान आती है, स्त्री चित्त होकर लेट जाती है तरुण स्त्री के पैर अपने कंधे पे रखकर अपना लिंग गुदा पे रगड़कर वीर्य से चिकना करता है और लिंग का आठवां भाग गुदा में घुसा देता है, धीरे धीरे धक्कों से घर्षण की आवाज आने लगती है है स्त्री रोमांचित होकर झड़ने लगती है तरुण सारा रस अपने हांथों में ले लेता है और अपने लिंग और स्त्री के गुदा को और अच्छे से चिकना करता है और फिर से लिंग को गुदा में प्रवेश करा देता है इस बार आधा लिंग अन्दर गया था थोड़ी देर ऐसे ही धक्के लगाने के बाद तरुण अपने लिंग पर थूक जुटाके पूरे लिंग के साथ गुदा सम्भोग करने लगता है 

बैकुंठी और तरुण ये देख रहे थे 

बैकुंठी -- क्या गुदा में भी लिंग डाला जाता है

तरुण -- अभी योनी सम्भोग करने के बाद तुम्हारे साथ गुदा सम्भोग भी करूँगा

बैकुंठी को तरुण पे पूरा भरोसा था वो उसके साथ कुछ भी करने को तैयार थी तरुण फिर से बैकुंठी की योनी में लिंग डालकर अन्दर बाहर करना शुरू कर देता है अब वो थोड़ी तेजी से कर रहा था ताकि जल्दी झड़कर वीर्य से गुदा चिकनी करके फिर गुदा सम्भोग का कार्यक्रम शुरू कर सकें| बैकुंठी को ये नए अनुभव के अहसास से धक्कों में बदलाव अच्छा लग रहा था

बैकुंठी के पास से लकड़ियाँ लाने के लिए कबीले से दो तरुण भेजे जाते है दोनों तरुण नुकीले डंडे लेकर जंगल की तरफ बढ़ रहे थे हालाँकि दिन में कोई खतरा नहीं रहता था पर कभी कभी रात में, नदी के पास वाले जंगल से कोई खूंखार जानवर घूमता हुआ आ जाते था

लशा कुछ बैचेन सा लग रहा था कृष्णावती लशा की मनोदशा समझती हुयी पूंछती है प्रिये! क्या बात है

"अगले कुछ दिन जंगल नहीं जा पाउँगा", लशा ने उत्तर दिया 

कृष्णावती कुछ भी कहे बिना वहां से उठकर चली जाती है और कुठरिया में पहुँचती है 

अन्दर का माहौल देखके हैरान हो जाती है ये क्या है जामवती और भद्रा दोनों सो रहे थे भद्रा का एक हाँथ जामवती के योनी पे और दूसरा हाँथ स्तन पे था और जामवती अपनी मुट्ठी में भद्रा के लिंग को पकड़ें हुए थी 

"कृष्णावती जामवती को हिलाकर कहती है कि वो बहुत दिनों से जंगल नहीं देखी है", किसीको साथ लेके जाना जामवती ने आधी नींद में ही उत्तर दिया 

कृष्णावती -- लशा को ले जाउंगी 

जामवती ये सोचकर मान जाती है कि कृष्णावती के साथ लशा कुछ शिकार करना सीखेगा

कृष्णावती अब लशा के पास आती है और समाचार देती है की अब जंगल जाया सकता है पर शर्त ये है मुझे साथ लेके जाना पड़ेगा लशा के चेहरे पे रौनक लौट आती है लशा को खुश देखकर जमावती की ख़ुशी दो गुनी हो जाती है आखिर सच्चे प्रेमी वहीँ होते है जो एक दुसरे के काम आए और एक दुसरे की ख़ुशी देखकर खुश होयें 

कृष्णावती चलने की तयारी करने लगती है लशा किसी भी तरह के हथियार को साथ ले जाने से मना कर देता है, कृष्णावती को लशा की बात माननी पड़ती है 

दोनों एक दुसरे को छेड़ते हुए आगे बढ़ने लगते है कभी कृष्णावती लशा को अपने पीठ पर लादकर चलती कभी लशा कृष्णावती को पीठ पे बैठाके चलता

ये किधर जा रहा है, कृष्णावती ने कहा 

लशा, जंगल!

कृष्णावती, पर जंगल तो इधर है इशारा करती है

लशा, नदी के पास वाले जंगल की तरफ इशारा करता है

कृष्णावती, खौफ से उसमें तो बहुत ही खतरनाक जानवर रहते है हमारे पास कोई हथियार भी नहीं है

लशा, हथियार की क्या जरुरत है सभी प्राणी, जीव और पेड़ पौधे प्रेम के पात्र होते है

आखिर कृष्णावती को हार माननी पड़ती है और लशा के हाँ में हाँ मिलाने लगती है| और दूसरा कारण ये भी था कृष्णावती खुदसे ज्यादा लशा पे भरोसा करने लगी थी उसे विश्वास होने लगा था कि शायद लशा ठीक कह रहा पर उसके अचेतन मन में अभी भी उधेड़बिन चल रही थी जानवरों से प्रेम? जो देखेते देखते ही किसी भी मनुष्य के टुकड़े कर देते है| कितने ही जन उसके कबीले के जानवरों द्वारा मारे गये थे "पूर्वजों के समय में जब दीवारें नहीं थी, जानवर बच्चों पर भी रहम नहीं करते थे", ऐसा उसने अन्य लोगों से सुना था 

प्रश्न उत्तर पर विराम लग गया था अब दोनों जंगल की तरफ थोड़ी तेजी से बढ़ रहे थे 

लकड़ी लाने के लिए दोनों तरुण जंगल पहुँच जाते है उन्हें लकड़ी का ढेर दिखता है, "बैकुंठी कहाँ है", एक तरुण ने कहा 

दोनों बैकुंठी को खोजने लगते है जंगल ज्यादा बड़ा नहीं था उन्हें एक ओर कुछ लोग मालूम पड़ते है दोनों वहां पहुँच जाते है वहां जो हो रहा था उसे देखकर दोनों गुस्से से तमतमा जाते है बैकुंठी के गुदा में एक तरुण लिंग अन्दर बाहर कर रहा था और वहां पे दो जन पैर पसारे बैठे हुए आसमान की तरफ देख रहे थे 

उन दोनों में से एक संभोगरत तरुण को धक्का देता है और दूसरा बैकुंठी को घसीटकर चलने लगता है| 

अब स्त्री दोनों तरुण के साथ लकडीयां लादकर चलने लगती है हालाँकि तरुण को बैकुंठी को छोड़ जाने का मन नहीं हो रहा था 

उसकी माँ तरुण को समझा रही थी छोड़ उन्हें, देख नहीं रहा था? मनुष्य है फिर भी जानवरों की तरह जंगली थे| हमारी मुखिया सिखाती है सभी जीवों पे दया करो और मनुष्यों के साथ प्रेम से रहो हमे उनसे झगडा नहीं करना है 

बैकुंठी तन व मन से खुद को समर्पित कर चुकी थी आज जितनी पूर्णता, उसने कभी महसूस नहीं की थी वो अपने हाँथ पैर झटक रही थी, छूटकर भागने के लिए पर तरुणों की पकड़ बहुत मजबूत थी दोनों साथ में कुछ लकड़ियाँ ले लेते है और कबीले की तरफ बढ़ते है 

उधर वो स्त्री और तरुण नदी के किनारे पहुँचते है नदी का रुख देखकर स्त्री का दिल धड़कने लगता है नदी में पानी बहुत ही कम हो था स्त्री जानती थी की किसी भी वक्त पानी का स्तर बहुत तेजी से बढ़ सकता है हो सकता है की बाढ़ भी आ जाये वो भडभडाहट में तरुणों को सचेत करती है "अपना भार कम करके तेजी से चलों हम लोग खतरे में है, किसी भी वक्त जल खतरा बनके आ सकता है"

उधर लशा और कृष्णावती भी बहुत आगे निकल आए थे उनके दाहिने हाँथ पे आधा कोस दूर, नदी स्थित थी वो नदी के बहने की दिशा में जंगल की तरफ बढ़ रहे थे 

कृष्णावती, "अच्छा, दौड़ लगाते है कौन पहले जंगल पहुँचता है"

लशा हामी भरता हुआ दौड़ना शुरू कर देता है 

कुछ ही समय में सूर्यास्त होने वाला था बादलों में तेज गरजना हो रही थी उजाले की एक लकीर गुजरती है और बिजली जोरों से तड़क रही थी चारो तरफ सायें... सायें.. हवा की ध्वनि आ रही थी पेडो के तने लहरा रहे थे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे आज पेड़ों को स्वतंत्रता मिली है नृत्य करने की| हवा इतनी तेज थी की नदी के जल में हलकी हलकी तरंगे उठ रही थी 

स्त्री और तरुणों के कमर में बंधे पत्ते फडफडाहट के साथ हवा का साथ दे रहे थे अब वो नदी पार करके दूसरी तरफ पहुँच जाते है| नदी की स्थिति के बारे में चिल्लाते हुए, अपने कबीले की तरफ लम्बे लम्बे कदम रखकर बढ़ते जा रहे थे नदी के इस पार जीवन ज्यादा सुगम था यहाँ बसने वालों के पूर्वज शायद अनुकूल वातावरण के खोजी रहे होंगे यहाँ नदी के दुसरे तरफ की तुलना में ज्यादा मनुष्य थे और चौड़ी और गहरी नदी जंगल के खूंखार जानवरों से बचाव के लिए ढाल का काम करती थी बहुत ही कम मनुष्यों को तैरना आता था

बैकुंठी और तरुण कबीले में पहुँच जाते है तरुण नए मनुष्य और आज की घटना के बारे में बताते है बुजुर्गों आने वाले संकट के परिणाम से शोर मचाने लगते है बैकुंठी के नियम तोड़ने से अब हमे प्रकोप से कोई नहीं बचा सकता है

क्या जरुरत थी एक "परदेशी" से सम्भोग करने की, एक बुजुर्ग ने कहा

अब यहाँ से रिश्तों की नीव पड़ना शुरू होती है 

बैकुंठी चुपचाप सहमी हुयी बैठी थी एक बुढिया अपने पूर्वजो को याद करके दो कटोरे लाती है एक कटोरे से जानवर का रक्त लेके तरुणी के चेहरे पे पोत देती है और दुसरे कटोरे के दूध से उसकी योनी और गुदा को साफकर तरुणी को संस्कृत करती है एक बुजुर्ग इस प्रकोप से बचने का उपाय बताता है की कोई भी जन बैकुंठी से प्रेम नहीं करेगा और ना ही कोई इससे सम्भोग करेगा बैकुंठी रोटी हुयी वहीँ सो जाती है सभी जन उस बेचारी के साथ अछूत जैसा व्यवहार शुरू कर देते है नदी के इस तरफ के लोग' अपने पूर्वजों के सच्चे भक्त थे इससे उनके स्वाभाव व विचारों में जड़ता आ गयी थी हो सकता है इधर के मनुष्यों को नदी के उस पर सुगम जीवन की भनक लगी हो पर ये अपनी जड़ता से ना लड़ पाए हों और अपने पूर्वजों की भूमि को छोड़ने का विचार ना बना पाए हों

अब कबीले में शाम के भोजन की तयारी होने लगी थी जामवती और भद्रा एक ही आसन में, अपने पैरों को हांथों में भींचे हुए अपने घुटनों पे सिर रखके उदासी में बैठे थे उनका मन बैचैन था मन करोड़ों विचारों से भरा था एक ही विचार, एक क्षड में असंख्य बार आ रहा था कि अब ऐसा दोबारा नहीं करना है| 

कृष्णावती और लशा जंगल में प्रवेश कर जाते है कृष्णावती का भय अब शून्य हो चूका था लशा को आता देखकर जानवर हरकत में आने लगे थे बन्दर अब पेड़ की डालियों पे उछलकूद करने लगे थे ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर, कभी ऊपर से ऊपर कभी नीचे से नीचे वाली डाली पे छलांग लगा रहे थे कभी एक डाली को पकडे हुए अपने शरीर का संतुलन बना के डाली की धुरी पे 360 डिग्री के कोण पर घूम जाते भेड़िया और चीते अपनी जगह पे कुला मुंडी खाने लगते है मानो सभी लशा का स्वागत कर रहे हों लशा जैसे दिव्य व्यक्ति के जंगल में कदम पड़ते ही सारी ही काया पलट गयी थी अब जानवरों में किसी तरह का भेद नहीं था तथा खूंखार जानवरों से छोटे जानवरों को भय की कोई गुंजाईश नहीं रही थी सभी प्रेम से एक दुसरे के साथ नृत्य कर रहे थे चिड़ियाँ एक जानवर से दुसरे जानवर पर फडफडाती हुयी मस्ती में मधुर संगीत सुना रही थी 

अचानक जंगल का राजा, शेर आँख में लाल डोरे लाते हुए तेजी से कृष्णावती की ओर बढ़ता है जंगल में फिर से भय की आंधी चल जाती है ख़ुशी का प्रकाश एक घनी अन्धिरिया का रूप लेने लगती है सभी जानवर शांत होकर अपने बिल की तरफ भागने की तयारी में खड़े थे कृष्णावती के शरीर का अंग अंग आगे आने वाले संकट से काँप रहा था अब तो वो भाग भी नहीं सकती थी शेर कृष्णावती के मुंह के नीचे चित्त साधे हुए अपने विकराल जबड़ों को खोलकर तेजी के साथ बिल्कुल समीप आ रहा था कृष्णावती को पूरा यकीन था आज तो बच पाना मुमकिन ही नहीं है वो मन में सोचती है "लशा बेचारा तो अपरिपक्व है कम से कम उसे तो समझदारी से काम लेना चाहिए था" पर अब पछताने से, क्या कुछ हो सकता था? या कभी कुछ हुआ है? पिछले कुछ दिनों में बेचारी ने क्या क्या सपने सझाये थे वो हमेशा युहीं हंसती खेलती लशा के साथ जीवन गुजारेगी उसका प्रेमी मेरे कबीले को एक नई दिशा में ले जायेगा फिर सभी कितने खुश रहेंगे,

सभी इच्छाओं पे शंका के बादल मंडरा रहे थे अभी तो सिर्फ उसकी इतनी मात्र इच्छा थी कि वो बस अपनी और लशा की जान बचा सके| क्या इतने पराक्रमी चित्त के मनुष्य लशा को अपनी रक्षा के लिए किसी की आवश्यकता थी? या क्या कोई भी उन्हें इस परिस्थिति थे से निकल सकता था? 

लशा बिना हिले ढूले सीधे खड़ा हुआ था उसके अन्दर जान का भय तो बहुत दूर, चिंता की एक लकीर तक ना थी वो तो खुले आसमान की तरफ गर्दन किये हुए मानो समाधि की अवस्था में खड़ा हो 

कृष्णावती, कहाँ खो गया है? लशा शेर के इस रूप को देखके काँप गया उसने अपने जीवन में किसी जानवर का ये रूप नहीं देखा था शेर कृष्णावती को झपटने को ही था कि लशा अपनी पूरी ताकत से शेर की गर्दन को अपने हांथो में जकड लेता है, "प्रिय! भागो" 

कृष्णावती -- अकेले नहीं जाउंगी 

लशा - ये मुझे कुछ नहीं करेगा सिर्फ तुम्हे देख के बिजुक रहा है

कृष्णावती -- में यहाँ शेर के हांथो मर जाना पसंद करूंगी पर में अकेले नहीं जाउंगी 

लशा, अब कृष्णावती के चेहरे पे चित्त लगाता है ताकि उसे समझाया जा सके 

अचानक से उसकी नजर कृष्णावती के गर्दन पे पड़ती है, "प्रिय अपने गले में हड्डियों की माला को तोड़कर दूर फेंको ये तुम्हे अन्य जनों की तरह शिकारी समझ रहा है"

कृष्णावती, हांफती हुयी, अपने गले की रस्सी को तोडके फेंक देती है 

लशा, इधर आओ!

कृष्णावती का एक हाँथ थामकर शेर के सिर पे फिराने लगता है शेर ज्यादा देर तक क्रोध नहीं साध पाता है

अब दोनों जमीं पे पिन्ती मार के खुद को सुविधाजनक आसन में लाते है और शेर को अपनी गोद में लिटा लेते है शेर की ठुड्डी लशा के जांघ पे रखी थी बाकी गर्दन का हिस्सा कृष्णावती के गोद में था

दोनों शेर के शरीर को सहला रहे थे शेर भी मस्ती में लौटने को तैयार था सारे जानवर फिर से अपनी अपनी कला दिखाकर जंगल को शुशोभित करने लगते है

दोनों के आनंद की कोई सीमा नहीं थी लशा एक हाँथ से कृष्णावती का हाँथ मसक देता है दोनों की नजरें मिलती है दोनों मंद मंद मुस्कराने लगते है

अब शेर मस्ता के कुलामुन्डी खा रहा था अपने राजा के इस कारनामे को देखकर सभी जंगल वासी दोगुनी उर्जा के साथ मस्ती में झूमने लगते है

काफी रात हो चुकी थी सभी खाने पीने के बाद प्रेमलीला में जुट गये थे पिछले दो दिन से असंस्कृत प्रेम कला के कारण भद्रा की बहुत उर्जा का क्षय हुआ था इस थकान के कारण भोजनौप्रान्त ही ही ढेर होकर सो जाता है

जामवती अपने बच्चों से प्रेम कर रही थी सभी मिलके खिलखिला रहे थे उनमे सबसे ज्येष्ठ तरुण मैथुन के नजरिये से जामवती पे हाँथ रखता है जामवती हाँथ हटा देती है तरुण समझ जाता है की ये आज प्रेम के रंग में नहीं है

जामवती आज बच्चों के बीच में ही लेट जाती है सबसे छोटा बच्चा जामवती के ऊपर पट हो जाता है 

जामवती बच्चे का प्यारा सा नन्हा हाँथ अपने चेहरे पे रखकर कोमलता के अहसास में डूबके नींद में चली जाती है

बैकुंठी की आँखों में नींद नहीं थी उसका चेहरा आंसुओं से भीगा रखा था "हे इश्वर(पूर्वज) मुझे उस तरुण से मिला दे", "मेंने उसके साथ कुछ ऐसा अहसास किया है जिससे में पूरे जीवन बंचित रही", "वो अहसास जो मैंने आज तक किसी प्रेम संगत जोड़े में नहीं देखा"

"कितना प्यारा! कितना सरल! कितना सुबोध! कितना अच्छा प्रेमी था वो, में एक पल भी अब अकेले नहीं रहना चाहती हूँ", "जीत लूँगी में नदी के पार को" 

पर नदी का पार है क्या? और ये मिलेगा कहाँ? में तो कभी शिकार पे भी नहीं गयी हूँ| लोग बोलते है की जहाँ शिकार करने जाते है वहां से लगभग दो कोस पे है, ये बात तो सब पूर्वजों से सुनते आए है पर कभी कोई गया क्यूँ नहीं वहां?

हूँ हम्म...करके अपने शरीर में अंगड़ाई लेके हाँथ और पैर में जकड़न लाती है 

"ये पूर्वजों का आदेश! इसने तो ", पता नहीं कब तक चलेंगे ये आदेश और कब तक इस कबीले के लोग नियमों का पालन करेंगे, उस कबीले के लोगों को देखो कितने शालीन थे कितने खुश थे और सबसे बड़ी बात हमारे जैसे थोथे नियमी नहीं थे, "काश में कभी उनके साथ रह पाती!"

इस कबीले के लोगों से बस एक बात सुनो सुरक्षित रहो, सुरक्षित रहो, सुरक्षित रहो क्या खुश रहना आवश्यक नहीं?, उसने अपने मन से सवाल किया

पर कोन है जो मेरे कबीले को दृष्टि दे सकता है? कोन है वो जो मुझे मेरे तरुण से मिला सकता है?

बुढिया चिल्लाकर, क्या लशा और कृष्णावती अभी भी नहीं लौटे? ये दोनों भी धतूरे खाए हुए से रहते है, बुदबुदाती हुयी फिर से सो जाती है

बैकुंठी हाँ लशा, लशा नियमों को नहीं मानता है पर क्या वो मेरी मदद करेगा? वो तो कृष्णावती के सिवाय किसी से बात तक नहीं करता है, फिर कैसे?

वो कृष्णावती से कहेगी वो जरूर कुछ हल निकालेगी और फिर वो उसकी जन्मदाता भी तो है, वो इस अंतिम विचार के साथ नींद में ना चले जाने तक कुछ नही सोचती है 

अब नदी अपने पूरे वेग पे थी बहुत ही भयानक दृश्य था छोटे मोटे जीव जो नदी में जल पी रहे थे नदी में डूबकर मरने से जल की उपरी सतह पर, नदी के वेग से , तैरते हुए प्रतीत हो रहे थे 

बादलों में तेज गरजना हो रही थी हलकी हलकी बारिश की फुआरें पहले ही आरम्भ हो चुकी थी 

जंगल, प्रेम और आनंद के प्रकाश से जगमगा रहा था लशा और कृष्णावती कभी भालू को देख के भालू की तरह कभी बंदरिया को देख के उसकी तरह नृत्य कर रहे थे 

अब कृष्णावती लशा से छूटकर अकेले ही जंगल का अन्वेषण करने लगती है, उसके बड़े स्तन बाहर की तरफ उठे हुए नितंभ, सहेज सहेज के सावधानी में छोटे छोटे पग, लटाओं के माध्यम से कमर पे उतरता हुआ बारिश का जल, पूरा दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कुछी माह पहले पैदा हुयी हथनी जंगल में बारिश की क्रीड़ा के लिए निकली हो 

कृष्णावती मन में, कितना आनंद है इस जंगल में? कितने प्यारे जीव! कितने सुन्दर वृक्ष! कितनी ठंडक का माहौल है यहाँ?, 

"अगर जंगल का यही जीवन है तो अब लशा और में इस जंगल से कभी नहीं जायेंगे" , कृष्णावती निश्चय कर लेती है| हम क्यूँ जायें कबीले हम साथ मिलकर इकट्ठे, कबीले की बंदिशों में क्यूँ रहते है इन्ही जानवरों के वजह से, पर देखो तो सही ये कितने प्यारे है और खूंखार जानवर? वो तो भीतर से सबसे ज्यादा कोमल है देखो तो सही कैसे शेर और भेडीये बच्चों के तरह नटखटी खेल खेल रहे है

नदी के इस पार के लोगों ने काफी तरक्की कर ली थी, अपने शरीर को पत्ते और पेड़ की छालों से ढकते थे यहाँ नयी कलाओं का बहुत सम्मान था और कलाकारों को प्रोत्साहन भी मिलता था कलाकारों के अतिरिक्त बहुत सारे खोजी व दार्शनिक भी थे 

यहाँ के समझदार लोगों ने भाषा भी विकसित कर ली थी नदी के उस ओर के कबीले के विपरीत यहाँ पे लोगों के पास अपने नाम थे यहाँ के कबीलों में समन्वय था सभी मिलके रहते थे खोजी, दार्शनिक व कलाकार कहीं भी जा के रह सकते थे उन्हें इस बात का पता था कि सिर्फ यही या इन्ही के तरह के लोग जीवन को श्रेष्ठ बना सकेगे यहाँ के पुरुष कुछ क्षेत्रों में महिलाओं से आगे थे पुरुष और महिलाओं दोनों की बुध्धि से लगातार खोजों पे खोजें हो रही थी एक तरुण इधर के सारे कबीलों में बहुत विख्यात था आज पूरे दिन लेटा हुआ असमान को देखता रहा रात होने पर भी आसमान की तरफ देखता हुआ कबीले में लौट रहा था 

जंगल से लकड़ी लाने वाले स्त्री और तरुणों ने नदी की स्थिति के बारे में आगाह किया था पर लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया, "हमारा कबीला नदी से बहुत दूर है वहां का पानी यहाँ तक नहीं आ पायेगा" 

अब वो तरुण अपने कबीले में घुस आता है सारी तरुणी अपने अपने काम को छोड़कर उसे निहारने लगती है आपस में देख सखी "आंखे तरस गई थी क्रन्थ को देखने के लिए सुबह से अब दिखा"

"तेरा दिल तो नहीं आ गया कहीं क्रन्थ पे, बहुत अजीब व्यक्ति है"

"एक तरुणी इसके साथ नदी के पास गई थी उसने सोचा था शायद वहां इसका प्रेम मिल सके" 

"जानती है इसने क्या किया? तरुणी को नदी में धकेल दिया वो मरने के करीब थी वो तो किसी तरह से बाहर निकल पाई"

दूसरी तरुणी, "पर वो नदी में चलना(तैरना) भी तो सीख गई थी उसकी वजह से| अपने कबीले में मुश्किल से 4-6 लोगों को ही तैरना आता है सोच उस तरुणी को कितना गर्व महसूस हुआ होगा सभी कितना सम्मान करते है उसका"

पहली तरुणी, "पर वो तरुणी अब क्रन्थ के पास भी नहीं भटकती उसे बहुत डर लगता इससे"

"कुछ भी हो मेरा तो उसपे दिल आ चूका है", "तो ठीक है मरने के लिए तैयार रह किसी भी वक्त", सखियाँ हंसने लगी 

क्रन्थ, मस्ती में तरुणियों को छेड़ता हुआ अन्दर आ जाता है 

मुखिया जोकि कबीले में सबसे ज्यादा उम्र की महिला थी यहाँ पर यही नियम था इनका जीवन शिकार पे निर्भर नहीं था

क्रन्थ, को देखके कबीले के अन्य बुद्धिमान जलते थे बल्कि नफरत करते थे इसके अनेकों कारण थे 

एक तो सारे बुद्धिमान क्रन्थ से बड़े थे दूसरा क्रन्थ किसी का सम्मान नहीं करता था जबकि वो बुद्धिमान लोग कबीले के लोगों को सिखाते भी थे पर क्रन्थ उनके अपमान करने में कभी पीछे नहीं हटता था "वो मजाक उडाता था ये और इनके पुरखे दो पीड़ीयों से तैरने जैसे सामान्य काम सिखा रहे है फिर भी कबीले में आधे भी तैराक नहीं बन पाए जबकि उसने एक तरुणी को पहले ही दिन एक सबसे बहतरीन तैराक बना दिया"

क्रन्थ का मानना था ये लोग मेहनत नहीं करते है और हमेशा काम बाँटने में लगे रहते है और खुद भी किसी काम से बचते है ये कहकर ये काम किसी दुसरे का है

एक बार कबीलों की प्रतियोगिता में तो उसने सभी बुद्धिमानों की बेज्जती की थी यह कहके "ये मुझसे परतियोगिता करेंगे, कुछ है भी इनके पास एक ही ज्ञान को बटोर के रखे है कुछ भी नया किया इन्होने आज तक"

एक तरुण क्रन्थ को देखके उसको नदी का हाल बताता है, क्रन्थ अंदाजा लगाता है कि पानी यहाँ तक आ सकता है

क्रन्थ, सुनो! सुनो! सब गुस्साने लगते है अब ये क्या समस्या खड़ी करेगा 

"हम लोग बहुत जल्द मरने वाले है इसलिए मरने के लिए तैयार रहो"

मरने का नाम सुनकर सब खड़े होकर उसकी बात गौर से सुनने लगते है

नदी में बाढ़ आने वाली है इसलिए जल्दी से औजार और रस्सियाँ लेके मेरे साथ चलो

जंगल में खुशियाँ छाई हुयी थी लशा, चलो कबीले वापस चलते है

कृष्णावती, हम लोग यहीं रहेंगे

लशा, यहाँ पर खायेंगे क्या?

कृष्णावती, उस दिन तू कुछ बता रहा था खाने के लिए जोकि मॉस नहीं था 

"हाँ पर आज बंदरों के हाँथ में वो है ही नहीं, मुझे तेज भूख लगी है"

आखिर कृष्णावती को लशा की बात माननी पड़ती है दोनों कबीले को लौट पड़ते है

भद्रा के दिमाग में फिर से जामवती चलने लगती है सोते हुए ही उसके हाँथ अपने उत्तेजित लिंग पे चले जाते है

भद्रा मन में अपने विचारों से लड़ रहा होता है "नहीं बहुत दर्द हुआ था अब जामवती के साथ पहले जैसा सम्भोग नहीं करना है, मैंने उससे वायदा किया था कि उसके साथ करना ही नहीं है"
 
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पर बार बार उसके मन में तस्वीरें आ रही थी कि वो जामवती के स्तन चूस रहा है उसके नितंभ मसल रहा है कामवासना उसके सिर पे चढ़ चुकी थी| और कुछ ख्याल ही नहीं आ रहा था यहाँ तक वो विचार "दर्द हुआ था" अपनी उर्जा खोता हुआ दिख रहा था और धीरे धीरे वो भूल चूका था सम्भोग के उस बुरे अनुभव के बारे में "अब वो जामवती के साथ सम्भोग में लीन था"


उसका हाँथ उसके लिंग पे चल रहा था "जामवती की योनी में एक तेज धक्का मारता है", जिसका असर उसके हाँथ की तेजी पे हुआ, उसके शरीर में दर्द की लहर दौड़ जाती है क्यूंकि लिंग पिछले दिन ही तो छिला था|

दर्द के कारण नींद से जाग जाता है अपने लिंग को देखकर, मनहींन होता है उसके साथ क्या हो रहा है"

दर्द का उसे कोई उपचार नहीं सूझता है तो वो हड्डी के कटोरे में बकरी का दूध निकाल लेता है और अपने लिंग की मालिश शुरू कर देता है

हाँथ की मालिश से उसका लिंग तन जाता है उसके विचार फिर से जागने लगते है 

"जैसे पहले सम्भोग करता था वैसा तो कर ही सकता हूँ उसमें तो अच्छा लगता था क्यूँ ना जामवती को जगाया जाये? नहीं लिंग मेरे लिंग में दर्द हो रहा है" 

क्रन्थ, चलो चलो जल्दी चलो हम लोग वैसे भी बहुत देरी से है

कबीले की मुखिया, पर अन्य बुद्धिमानो का मानना है पानी यहाँ तक नहीं पहुंचेगा

क्रन्थ, फिर से, अम्मा वो सब निठल्ले वो कुछ भी करना चाहते है?

इसके जवाब में एक व्यक्ति खड़ा हुआ, "हम लोगों का अंदाजा एक दम सही है पानी यहाँ नही पहुंचेगा"

क्रन्थ, साथियों जिनको मेरा साथ देना है वो मेरे पीछे आए|

बुद्धिमानो ने विचार किया और जवाब दिया सभी लोग क्रन्थ के साथ जाओ|

क्रन्थ, तुम निठल्लों को भी चलना पड़ेगा वहां बहुत लोगों की जरुरत पड़ेगी

"ये मेरा काम नहीं है क्या तू ये नहीं जानता, ज्यादा लोगों की जरुरत है तो अन्य कबीलों से लोगों को बुलाओ"

क्रन्थ, साथियों चलना शुरू करो अगर पानी कबीले के पास तक पहुँच गया तो इन निठल्लों को उसी में फेंक के भाग चलेंगे

"सभी हंसने लगते है", बुद्धिमानों से बार बार बेज्जती बर्दाश्त नहीं हो रही थी

मुखिया ने आदेश दिया, आज कबीले से सभी लोगों को जाना पड़ेगा में पास के कबीलों से भी लोगों को इकठ्ठा करके ला रही हूँ

क्रन्थ, दौड़ता हुआ अपनी टोली लेके चल देता है नदी की तरफ कबीले और नदी के मध्य में सबको रुकने को बोलता है और सबसे पत्थर लाने को बोलता है अपने कबीले की 4 गुनी लम्बाई बराबर जगह पे पत्थर लगा देते है फिर उसके ऊपर मिट्टी और पेड़ डाल देते है

निठल्लों आज तो मेहनत करनी पड़ गयी क्यूँ?, क्रन्थ ने चिडाया

बुद्धिमान अपना गुस्सा पीकर वहीँ खड़े रहे तब तक अन्य कबीले के लोग भी आ गये उन्हें इन्ही के माध्यम से जानकारी हुयी थी की बाढ़ आने वाली है

उन्हें भी अपने कबीले की चिंता थी पानी वहां तक भी पहुँच सकता था वो बांध को देखते है जोकि काफी लम्बा व ऊँचा था

वो सभी इस कबीले को अपना आभार प्रकट करते है और सभी अपने अपने कबीले को लौटने लगते है

मुखिया, क्रन्थ अब हमे क्या करना चाहिए?

क्रन्थ, आप लोग जाओ में यहीं जल का निरीक्षण करूँगा अगर खतरा जान पड़ा तो आगाह करूँगा

"तुम अकेले रहोगे?" तब तक तरुणी, अम्मा में रुक जाती हूँ यहाँ

अब वहां सिर्फ दो जन बांध के ऊपर अपने पैर लटकाए हुए बैठे थे

भद्रा बहुत कोशिश कर रहा था खुद से लड़ने की पर उसका लिंग तनता ही चला रहा था आखिर में वो हार मानकर जामवती के पास पहुँचता है उसके ऊपर लेते बच्चे को हटाकर जामवती की योनी में ऊँगली डाल देता है

जामवती तुरंत जगती है अपने पास भद्रा को खड़ा देखकर मुस्कराने लगती है

"यहाँ से कहीं और चलते है बच्चे सो रहे है"

भद्रा जामवती को अपनी पीठ पे लाद लेता है जामवती गले में गुम्फी डालकर अपने पैर भद्रा के कमर में फंसा लेती है

भद्रा उसे काफी दूर ले जाता है और एक पेड़ के सहारे जामवती को टिका कर बेसबरी से उसका उपरी होंठ अपने होंठ में लेके चूमने लगता है

अब जामवती पेड़ से हाँथ टिका कर खड़ी हो जाती है भद्रा उसके पीछे आकर अपना लिंग पूरी ताकत से योनी में डाल देता है 

"आह आह दर्द से चीख जाती है"

पर भद्रा पीछे से धक्के पे धक्का मार रहा था बीच बीच में उसके निताम्भों तपे तेज थप्पड़ जड़ देता है कभी उसकी पीठ में नाखून गढ़ा देता वो दर्द से चिल्ला रही थी पर भद्रा की पकड़ भी बहुत मजबूत थी वो बच नहीं सकती थी भद्रा अब उसके पैर उठाकर अपनी कमर में फंसा लेता जामवती के हाँथ पेड़ पे टिके थे भद्रा पीछे से पूरी उत्तेजना के साथ धक्के मार रहा था

जामवती झड चुकी थी उसका शरीर अकड़ रहा था बाद में भद्रा जामवती को अपनी तरफ घुमाकर अपनी गोद में लटकाए हुए उसकी योनी में धक्का मार रहा था उसकी योनी नितंभ के साथ लिंग पे झूल रही थी

अब उसकी योनी से रक्त निकल रहा था उसकी चीखे और तेज हो रही थी वो बेहोश हो जाती है भद्रा फिर भी धक्के लगा रहा था अब कबीले के लोग चीखो से जाग गये थे वो चीखों का पीछा करते हुए आ रहे थे

अब भद्रा भी झड़ता है उसका वीर्य बहुत पतला था आज साथ में रक्त भी आया था झड़ने के बाद भद्रा को खुद पे बहुत गुस्सा आता है अपना सिर पेड़ पे पटकने लगता है उसे पता था आज का ये कृत्य बहुत महँगा पड़ेगा उसे कबीले की सजा का शिकार होना पड़ेगा वो निश्चय करता है और कबीले की दीवार फांदता है उसके पीछे कबीले के कुछ लोग दौड़ते है पर अँधेरा होने से वो सबकी आँखों से ओझल हो जाता है

सब भद्रा की निंदा करते है जामवती के लड़के का सीधा आदेश होता है भद्रा जहाँ कहीं भी मिले उसकी हत्या कर दी जाये

अब जामवती को बेहोशी की हालत में उठाकर लाया जाता है और उसके उपचार की शुरुआत हो जाती है सभी कामना करते है जामवती स्वस्थ हो जाये पर वो तो बेहोश पड़ी थी उसकी योनी का रक्त अभी भी थमा नहीं था

क्या लगता है जल यहाँ तक पहुंचेगा, तरुणी ने कहा

क्रन्थ, पता नहीं

"फिर तुमने लोगों से इतनी मेहनत क्यूँ करवाई?"

में अपनी जिम्मेदारी निभाया हूँ में अपने कबीले को सुरक्षित देखना चाहता हूँ क्या पता बारिश भी हो जाये नदी के पानी का वेग और बढ़ जाये कोई व्यक्ति किस आधार पे कह सकता है कि पानी यहाँ नहीं पहुंचेगा

हमारे कबीले में अगर ऐसे ही दार्शनिक पैदा होते रहे तो अपना अंत बहुत नजदीक है, क्रन्थ ने तरुणी से कहा

अब वो दोनों नजदीक आ गये थे उनके बदन एक दुसरे से सटे थे

क्रन्थ, ये पत्ते हवा के चलने से आवाज कर रहे है क्यूँ ना इन्हें उतार दो

तरुणी, अपने सीने पे हाँथ रखकर तुम खुद क्यूँ नहीं हटा देते "हाय में तो कब से व्याकुल हूँ कि तुम मेरे पत्ते हटाओ"

क्रन्थ, गले की रस्सी छोर देता है तरुणी के स्तन अब हरे की जगह भूरे दिख रहे थे

उसके कपोल खिल रहे थे उसके केश बार बार उसकी सुन्दरता को ढकने की नाकाम कोशिश कर रहे थे क्यूंकि तरुणी उन्हें झटककर पीठ पे रख ले रही थी

क्रन्थ बहुत ही शांति से ये ये नजारा देख देख रहा था

तरुणी क्या निहार रहे हो, अपने स्तनों पे हाँथ रखकर

क्रन्थ तुरंत ही तरुणी की गर्दन पकड़ लेता है उसके होंठ चूमने लगता है

तरुणी की तो जैसे मनोकामना पूरी हो गयी वो भी साथ देने लगती है दोनों की गुलाब सी पंखुड़िया आपस में क्रीडा कर रही थी

क्रन्थ के हाँथ तरुणी की जांघ पर थे और तरुणी अपने हांथो से क्रन्थ की पीठ सहला रही थी

तरुणी क्रन्थ को वहीँ लिटाकर उसके ऊपर आ जाती है और उसके कान चूमने लगती है क्रन्थ अपने मुंह में स्तन भर लेता है और बहुत ही मस्ती के साथ स्तनों से प्रेम करने लगता है

अचानक से एक तेज आवाज "सर सर द दद दड सर सर" आती है

क्रन्थ तुरंत उठ खड़ा होता है प्रिय नदी अपने पूर्ण वेग से बहती हुयी जा रही है "हे इश्वर हमारे पास ना आए ऐसे ही बहती हुयी आगे निकल जाये"

जामवती को कुछ होश आता है भद्रा के इस व्यवहार को याद करके रोने लगती है सभी उसको चारो तरफ से घेर रखे थे

जामवती आंखे लाल करके, "भद्रा कहाँ है" वो भाग गया है उसे मारने का आदेश दिया जा चूका है, जामवती को जवाब मिला

लशा और कृष्णावती कबीले पहुंचकर अपने खाने की तयारी करते है

नदी का पानी अपना रास्ता बनाता हुआ बांध की तरफ बढ़ता है 

क्रन्थ चिल्लाता हुआ कबीले की तरफ जा रहा था "भागो भागो पानी कुछ घंटों में बांध तक पहुँच जायेगा मिट्टी के घर खाली करके बाहर निकलो"

क्रन्थ बुरे तरीके से हांफ रहा था कबीले के लोग आने वाले संकट से परेशान थे कबीले की सभा निर्णय करती है सभी लोग बैठ के पृकृति से प्रार्थना करेंगे

सभी आंखे बंद करके बैठ जाते है सभा से एक बुजुर्ग बोला क्रन्थ जल्दी से प्राथना में शामिल हो 

क्रन्थ साफ इंकार कर देता है "में पानी का निरीक्षण करूँगा"

लशा और कृष्णावती प्रेम से खाना ख़तम करते है फिर उन्हें कबीले की सारी घटनाओं के बारे में पता चलता है कृष्णावती को अपनी पुत्री बैकुंठी के बारे में सुनकर बहुत बुरा लगा हालाँकि उसे कबीले के नियमों पे संदेह हो चला था उसका मानना था ये नियम पुराने हो चुके है आज की परिश्थितियों के अनुकूल नहीं है तब भी उसे अपने बेटी के साथ अछूत वाला व्यवहार ही करना था

लशा और कृष्णावती एक दुसरे की तरफ करवट लेके बराबरी में लेट जाते है कृष्णावती "आज जंगल का अनोखा स्वरुप देख के मुझे सब कुछ अलग दिख रहा है मानो मुझे नये नेत्र मिले हों"

लशा कृष्णावती के नाभि में ऊँगली घुमाता हुआ मुस्कराता है

कृष्णावती को लशा का मुस्कराता हुआ मसूस चेहरा बड़ा प्यारा लगता है उसे मुंह चूमे बिना रहा नहीं गया लशा भी आँखे बंद करके चुम्बनों का साथ देने लगता है

भद्रा जंगल में भटकता हुआ अपने लिए निवास खोज रहा था उसके मन में अपराध भाव भी था "मेरी अच्छी जिन्दगी गुजर रही थी सारी स्त्रियाँ मुझे प्रेम करती थी पर ये क्या से क्या होता चला गया" आज की रात वो पेड़ पे चढके गुजारने की सोचता है

क्रन्थ पानी के बलबूले देखकर मन में ठानता है कुछ भी हो जाये पानी तुझे अपने कबीले तक नहीं पहुँचने दूंगा उसका मनोबल इतना तीव्र था कि वो पानी को रोकने के लिए कुछ भी कर गुजर सकता है अब बारिश भी अपने जोरों पे थी मोटी मोटी बुँदे सिर पे कंकडो के भांति चोट कर रही थी हवाएं इतनी तेज के छोटे पेड़ों की डालियाँ जमीन छू जा रही थी

क्रन्थ बांध से अपने कबीले की तरफ भयंककर गति से दौड़ता है उसे मन में ऐसा लग रहा था जैसे वो हवाओं से आगे चल रहा हो 

कबीले को, सभा के लोगों के साथ, अब तक डर से प्रार्थना में डूबे रहने से क्रन्थ का खून खोल जाता है वो ताव में आकर सभा के लोगों पे मिट्टी के डेले बरसाने लगता है सब चिल्लाते हुए बिखरना शुरू हो जाते है "क्रन्थ पागल हो गया है..आज इसने अपनी हदें पार कर दी अब ये इस कबीले में नही रह सकता"

क्रन्थ चीखते हुए "हाँ में पागल हो गया हूँ वो भी तुम निकम्मों की वजह से बुद्धिमानो पे कुछ जिम्मेदारी होती है हमारे पूर्वजो ने दिन रात मेहनत करके एक सभ्यता की नीव डाली थी हमारी ख्याति दूर दूर तक है फिर तुम लोग पैदा हुए जड बुद्धि, खुद तो निकम्मे हो ही पूरे कबीले को निकम्मापन सिखा रहे हो और तुम लोग लो..तुम भी लो..डेले खाओ..खाओ डेले तुम्हे पका पकाया ज्ञान खाने की आदत है खूब अँधा अनुसरण करते हो सभा का...लो..और लो..."

"और नहीं रहना है मुझे इस कबीले में, जब कबीला ही नहीं रहेगा तो में रह के क्या करूँगा"

सभा की प्रतिक्रिया "निकम्मा तो क्रन्थ खुद है हमारे ऊपर वैसे ही संकट है इसे इतनी भी समझ नहीं है कि इस समय लोगों को परेशान न करे"

क्रन्थ वक्ता के सिर पे डेले का निशाना साधता है सभा, "ये नहीं सुधर सकता मारो इसे"

मुखिया किसी को भी अपने जगह से हिलने की चेतावनी देती है "क्रन्थ शांत होकर बताओ तुम क्या चाहते हो"

"प्रार्थना में समय व्यर्थ न करके बांध को और ऊँचा बनाया जाये नही तो पानी बहुत जल्द कबीले तक आकर मिट्टी की दीवारे धसा देगा"

एक तरुणी बोलती है अम्मा क्रन्थ सही कह रहा है मेरे भी दिमाग में यही आ रहा था पर सभा के डर से...आखिर मेरा काम ये नही है..

कई और कबीले भी इस कबीले में आकर शामिल हो जाते है 

मुखिया सबको तैयार होने को कहती है "सभी पुरुष व सभी नारी अपने शरीर के पत्ते हटा दे वो आंधी में दिक्कत देंगे" "आज में पहली बार एक नया कदम उठाने जा रही हूँ, जब तक इस संकट का निवारण न हो जाये तब तक कबीले में कोई सभा न रहेगी, सबसे बड़ी बात अब से इस कबीले का और अन्य कबीलों का मुखिया क्रन्थ है जो कबीले इस बात से सहमत हों वो रुके रहे बाकी के चले जाये"

कबीलों को क्रन्थ पे यकीन था उनका मानना था कि क्रन्थ थोडा अजीब जरुर है पर उसमे कुछ बात है जबकि उसके अपने कबीले की सभा और उसके बुद्धिमान लोग हमेशा उसके खिलाफ रहते थे

आज क्रन्थ के मनोबल से एक नई चीज उपजी एक गीत एक संगीत जो किसी को भी प्रेरणा दे सके "ॐ" वो इस शब्द से गीत बना के अपने मन से तरह तरह के संगीत निकालकर चिल्ला रहा था

ये गीत संगीत सभी के मन को ख़ुश करते हुए एक ऊर्जा का सुहावना अहसास दिला रहा था लोग बांध पे एक पत्थर रख न पाते दुसरे के लिए उत्साहित हो जाते पानी बांध तक पहुंच चूका था और तेजी से बांध की ऊंचाई की तरफ बढ़ रहा था

क्रन्थ अपने सगीत व गीत के शब्दों से लोगों के मनोवल को साधे हुए था पूरी रात सभी ने जमकर मेहनत की भोर के समय एक करिश्मा हुआ घनघोर बारिश बौछारों में तब्दील हो गयी आंधी का तो नाम भी जाता रहा पानी बांध को पार करके कबीले की सीमाओं से दस कदम की दूरी पे ही रुककर वेग की ऊर्जा खो दिया

अब सभी ख़ुशी और थकान से कबीले में लेटे थे सभी की आंखे क्रन्थ की अहसानमंद थी "अगर क्रन्थ न होता तो कबीला बह चूका होता हमारे बच्चे भटक रहे होते"

क्रन्थ अभी भी पानी पे निगाहें टिकाये था

भूतपूर्व मुखिया "क्रन्थ अब आराम कर लो"

क्रन्थ "तुम लोग करो में पानी को देखता हूँ किसी भी वक्त कुछ भी हो सकता है"

सभी कबीले के मुखिया क्रन्थ के मनोबल की दाद देते है

जारी रहेगी...
 

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