Incest पापी परिवार की पापी वासना

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54 भंगिन बनी सेठाइन

हाँ, हाँ। बोल ना! फिर क्या हुआ, मेरे लाडले ? मम्मी को सब कुछ सच-सच बता दे।”

“मम्मी, कमलाबाई तो पहँची हुई रॉड है। पहले दिन ही अखियों से इशारे करके मुझसे सैटिंग कर ली थी। कहती थी, जय बाबा, जब से मेरा मरद मरा है, मेरा बिस्तर गरम करने को कोई नहीं। और बुढ़िया ने दे खोला अपना ब्लाऊज, और बोली , आ जय बबा, माँ का दूध पिया है तो दिखा अपने लन्ड की गर्मी। फिर क्या, मैने भी पैन्ट खोली और तब से हमारी चूत - चटाई और लन्ड चुसाई का प्रोग्राम फ़िट हो गया।”

उँह! मुई बुढ़िया के ब्लाऊज में भला क्या माल दिखा तुझे ? मरियल कुतिया से लटके हुए मम्मे होंगे!”, टीना जी दम्भ भरे स्वर में बोलीं।

“अरे मम्मी, मम्मे और चूत तो जमादारन ने ना जाने कितने मर्दो से चुद-चुद कर लटकवा लिये थे। मैं इतना गया- गुजरा नहीं की उसकी टूट सी बॉडी पर लार टपकाऊँ। कमलाबाई का जादू तो उसके रन्डीपने में है। कोई भी मर्द उसकी ललकार और गाली गलौज सुनकर लन्ड पर काबू नहीं पा सकता !” अपनी माँ के मुख पर ईष्र्या के भाव को देखकर जय झट से बोला, “नहीं मम्मी, मेरा मतलब आपके सैक्सीपन का तो लैवल ही कुछ और है ना, वो तो आपकी जूती भी नहीं !”

टीना जी ने अपने कूल्हे मटका कर पुत्र की ठोड़ी को अपने चोंचले पर टिकवा डाला।

“अच्छा, अच्छा, मादरचोद, तू ये बता कि तूने और क्या-क्या किया ? चूत चाटने के अलावा, कुछ चुदाई वुदाई भी की या नहीं ?', टीना जी ने जय से पूछा, जानती थीं कि पुत्र उनके स्वर में भड़ती उत्तेजना को भाँप रहा था। ।

“कहाँ मम्मी, उसकी चूत तो बिलकुल सूखी हुई है। साली चुदाई में जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखाती थी, बस लन्ड चूसती थी और चूत चटाती थी। फिर एक दिन बाथरूम में मैने ऐसे थूक-थूक कर उसकी चूत चाटी, कि रॉड खुद ही मुझसे अपनी भोंसड़ी में उंगल डालने की फ़र्माइश करने लगी !” ।

“फिर !”, टीना जी के शुष्क कंठ से स्वर निकला। वे अब अपने नम पेड़ को अपने बेटे की ठोड़ी पर हौले-हौले मसलने लगी थीं।

जय ने भी माँ के कूल्हों की सरगर्मी को देखकर विस्मय किया कि कहीं वे उससे प्रतिक्रिया की उपेक्षा तो नहीं कर रही थीं। “क्या मम्मी, आपका भी फिर चूत चटायी का मूड बन रहा है क्या ?”, उसने पूछा।

“नहीं। अभी नहीं, मेरे पूत ! पहले तू अपनी कहानी तो बता !” अपने दाँतों को भींचती हुई वे बोलीं, “और खबरदार, कोई भी डीटेल छोड़ना नहीं, समझा !”

। जय भली भाँती अपनी माँ की उत्सुकता का कारण जानता था। और उनकी उत्सुकता की पूर्ती करने का पूरा इरादा रखता था। वो माँ को अपनी प्रथम सैक्स-क्रीड़ा का वृत्तांत सुना कर उनकी कामेन्द्रियों को उकसाना चाहता था, ताकि जब वे वासने के आवेग में अपना आत्मनियंत्रण खो डालें, तो वो अपने लिंग को माँ की योनि में प्रवेश करा कर जी भर कर उनके संग सम्भोग का आनन्द भोगे।।

“ओके मम्मी! हाँ तो उस दिन कमला बाई की चूत को मैने ऐसा प्रेम से चाटा, को वो अपनी चूत में कुछ तो घुसवाये बगैर रह नहीं पा रही थी। उसकी चूत बाहर से बिलकुल सूखी है, और झाँटे सफ़ेद हैं।
 
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बहरहाल, उस दिन कमलाबाई कमोड पर बैठी थी और मैं घुटनों के बल उसकी जाँघों के बीच मुँह घुसेड़े हुए बैठा था।” | टीना जी अपनी आँखें मूंदे पुत्र के वर्णन की कल्पना करते हुए अपने दोनों हाथों से अपने खरबूजों से लबाबदार स्तनों को दबा रही थीं और बार-बार निप्पलों को मसलती जा रही थीं।

“जियो बेटा! भंगिन को कमोड पर बैठा कर चूत चाटता था! साले रन्डुवे, तेरे बाप को ये पता चले तो सोचेगा किसी स्वीपर से चुदकर मैने तुझे पैदा किया है!”, कराहती हुई टीना जी अपने मन में आते कलुषित विचारों को स्वच्छन्दता से अभिव्यक्त कर रही थीं। ।

“अरे मम्मी, कमलाबाई के रन्डीपन को देख कर तो मेरा बाप भी उसकी चूत चाटने को राजी हो जाये !” जय ने माता की कीचड़ भाषा का उपयुक्त प्रतिउत्तर दिया था। “हाँ तो कमलाबाई ने मेरी ओर रन्डी जैसे दाँत पीसकर आँखों का इशारा नीचे को किया और बोली, “सूअर, बहूत हुआ चाटना, अब हाथ की सफ़ाई नहीं दिखायेगा ?” मैं बोला, “क्यों सेठानी जी, क्या कमी रह गयी चाटने में ?' मम्मी हम ऐसे ही मजा लेते हैं, कमला बाई मुझे गालियाँ देती है, और मैं उसे मालकिन कहता हूँ।

* कमलाबाई ने अपनी जाँघों के बीच मेरे मुंह के बिलकुल पास कमोड में थूका और बोली, “अबे भूतनी के, चुपचाप उंगली अन्दर डाल और मेरी चूत को उंगल कर !' ऐसा रन्डीपना दिखाती है वो मम्मी! सोचो, अपनी भंगिन हमारे ही घर में, मुझे गाली दे-दे कर अपनी चूत में उंगल - चोदी का ऑर्डर दे रही थी।”

“फिर मैंने मुँह को झुका कर कमलाबाई की जाँघों पर हाथ फेरे। फिर उसने हल्के से कराह कर अपनी गाँड को मेरी ओर उचका दिया।”

“कमलाबाई की जाँघों पर पसीने छूट रहे थे, बिलकुल तुम्हारी तरह मम्मी!”, जय ने अपनी माँ की जाँघों पर हाथों को फेरा।

टीना जी के कंठ से वासना-लिप्त कराहट निकली।

“मैने हाथ बढ़ा कर छुआ तो भोंसड़ी सूखी हुई थी, तो कमलाबाई मुझसे बोली कि बाबा थोड़ी सी वैसलीन हाथ पर ले लो, और फिर चूत में घुसाना। मैने डिबिया से उंगली भर कर वैसलीन निकाली और कमलाबाई की भोंसड़ी पर लथेड़ने लगा, जब चूत मक्खन सी चिकनी हो गयी तो मेरी पूरी की पूरी उंगली उसके अन्दर आराम से फिसल गयी। फिर तो उसका चेहरे देखने लायक था मम्मी। किसी चुडैल की तरह आँखें फाड़े हुए अपने पीले-पीले दाँतों के बीच से लाल जीभ निकाल कर वो मुस्कुरा रही थी। फिर मुझसे कहने लगी, ‘डर मत गाँडू, कस के रगड़ इसे, ये तेरी माँ की भोंसड़ी नहीं है, कमलाबाई की चूत है। बड़े-बड़े सेठों और पन्डितों से चुद चुकी है। फिर मम्मी, मैने वैसा ही किया! दे घुसाई अपनी उंगली और लगा रगड़ने हरामजादी की भोंसड़ में !” ।

| ‘फिर तो बस, कमलाबाई कमोड पर आराम से पसर कर मजे लेने लगी। चूत चटाई से ज्यादा मजा तो उसे उंगल - चोदी में आ रहा था। टीना जी अपने चोंचले पर पुत्र की ठोड़ी के दबाव, और उसके द्वारा उत्पन्न होते अश्लील रोमांच का आनन्द उठा रही थीं। जय माँ की उत्कट उत्तेजित अवस्था को देख कर मन्द-मन्द मुस्कुराता हुआ अपना वृत्तान्त आगे कहने लगा। । “हाँ, तो अब साला मेरा लन्ड भी खड़ा होकर लालम लाल हो गया था। कमलाबाई तो लन्ड चूसने का नाम ही नहीं ले रही थी, मैने ही कुछ जुगाड़ करने की ठानी।”
 
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* मैं चढ़ कर कमोड पर कमलाबाई के सामने बैठ गया और उसकी जाँघों को फैला कर अपनी जाँघों के ऊपर रख दीं। कमलाबाई को तो जैसे किसी बात की सुध नहीं थी, बस सिर्फ अपनी वैसलीन से चिकनी हो चुकी भोंसड़ को मेरी उंगली पर मसलती जा रही थी।” ।

“मैने मौका देखकर अपने लन्ड को उसकी गरम भोंसड़ी पर दबाया, अपनी उंगली के नीचे लन्ड को छुपाया और पलक झपकते ही उंगली बाहर निकाली और उसके बदले अपना लौड़ा अन्दर घुसा डाला। फिर तो हरामजादी ऐसी चीखी की अगर मैं उसके मुंह को अपनी हथेली से नहीं दबाता तो सारे पड़ोसी घर आ जाते। कुतिया छह महीने बाद पहली बार किसी लन्ड को अपनी चूत में लिये थी। पर मिनटों में उसे जवानी की यादें ताजा हो गयीं और फिर पेशेवर रन्डी की तरह लन्ड का मजा लेने लगी।”

“जल्द ही कमलाबाई अपनी झाँटेदार चिकनी चूत को ऐसे उचकाने लगी, कि मैने सोचा बुढ़िया को अपनी जवानी के दिन याद आ गये !” टीना जी ने अपना मुँह खोला तो, परन्तु कोई स्वर नहीं निकला, उनकी स्वयं की योनि से उनके पुत्र की रगड़ती ठोड़ी पर द्रवों का प्रवाह प्रारम्भ हो गया था। मम्मी, सच, बुढ़िया की भोंसड़ी में ग़जब का जादू था। मेरा लन्ड ऐसा लग रहा था कि किसी गरम भट्टी में घुसा हुआ है !”
“साली आवारा कुतिया की तरह बिलबिला रही थी, और मैं उसे मजे से चोद रहा था। मैने नीचे देखा तो मेरा लन्ड उसकी भोंसड़ी में अन्दर-बाहर, अन्दर-बाहर चले जा रहा था। उसकी भोंसड़ी के झोल भी मेरे लन्ड के साथ फच्च - फच्च करते हुए अन्दर बाहर हिल रहे थे। जब लन्ड को बाहर खींचता तो रन्डी ऐसी स्टाइल से मेरे लन्ड पर भोंसड़ी जकड़ती थी कि सोलह साल की कुंवारी चूत हो! क्या कस के निचोड़ती है हमारी भंगिन अपनी चूत से ! साथ-साथ अपने मुंह से ऐसी गन्दी गाली-गलौज करती जा रही थी। अरे मम्मी, आप तो ऐसी गालियाँ सपने में भी नहीं सोच सकतीं !”

परन्तु टीना जी अच्छी तरह से अनुमान लगा सकती थीं कि नीच कुल की महिलायें कैसी भद्दी भाषा का उपयोग कर सकती हैं। जय अपनी माँ के हर हाव-भाव को ताड़ता हुआ आगे कहने लगा।

कहती थी, “अबे सूअरनी की औलाद, तेरी माँ ने भी संदास पर चुद कर तुझे पैदा किया है! ऍह ... ऍह ... तुम शर्मा लोग हम भंगियों से ही तो सीखे हो संडास पर चोदना! :: ऍह :: आँह ::अपनी सुअरनी माँ की चूत समझ रखी है क्या जो लन्ड से खुजा रहा है। चोद साले चोद! खैर मना, मेरा मरद जिन्दा नहीं,... आँह :: ‘नहीं तो ऐसी कमजोर चुदाई देख कर तेरी अभी गाँड मार लेता। बस मम्मी, मुझे ऐसे ही रन्डी की तरह चैलेंज दे-दे कर पागल कर रही थी हरामजादी!”

“फिर उसने मेरी गाँड पर अपनी उंगलियों के नाघूनों को गाड़ना शुरू कर दिया और मेरे लन्ड को अपनी भोंसड़ी में और अन्दर डालने की कोशिश करने लगी। मेरा लन्ड अब पूरा का पूरा अब अन्दर घुस चुका था। और मम्मी मेरे टट्टे झूल झूल कर कभी उसकी गन्डी गाँड पर टकराते तो कभी कमोड पर। पर कमलाबाई तो चुप होने का नाम नहीं लेती थी। जानती हो क्या बोली वो ?”, जय ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए पूछा।
 
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“कः ‘क्या बेटा ?”, टीना जी हकलाते हुए बोलीं। वे अपनी जाँघों के बीच पनपती हुई कामुकता की तरंगों का असफ़ल विरोध कर रही थीं, इस प्रयास में कि इस असाधारण रूप से लज्जाहीन प्रसंग की अवधि को किसी तरह से लम्बा करें।

“वो राँड मुझसे अपनी गाँड में उंगली डालने को कहने लगी, मम्मी। मम्मी, तुम मानोगी नहीं, पर वो साली, मेरी दादी की उमर की बुढ़िया, मुझी से अपनी गाँड में उंगल करने को कह रही थी !”

टीना जी को जय के कथन पर विश्वास करने में कोई आपत्ति नहीं थी, उल्टे उनका मन तो किया कि वे उसे वही हरकत अपनी गुदा पर करने का प्रस्ताव दे डालें। जय ने सांकेतिक रूप से अपनी ठोड़ी को टीना जी के पेड़ पर रगड़ कर वर्णन जारी रखा।

“लो, मैने अपने हाथों पर थोड़ी और वैसलीन ली और अपनी बीच की उंगली को उसकी चौड़ी गाँड पर दबाने लगा। हरामजादी के दोनों बटक्स मेरी हथेली पर थे। मम्मी कमलाबाई की गाँड ऐसी चौड़ी थी कि मुझे विश्वास हो गया उसका पति वाकई गाँड मारने में उस्ताद था! मैने उससे पूछा भी, क्यों कमलाबाई, लगता है तेरे पति ने ही तेरी गाँड ऐसी खोल रखी है।”

बस कुतिया को मौक़ा मिल गया, ‘ऊँह ::: ऍह ::: मेरा मरद तो साला लड़कों की गाँड ज्यादा मारता था, मेरी कम। आँह • आँह ये तो मेरे मामा ने बचपन में मारी हुई है! : ‘आँह चाहूं तो तेरे और तेरे बाप, दोनों के लन्ड को एक साथ गाँड में ले लें : ‘आँह बोल सूअर, मारेगा बाप के साथ मिलकर मेरी गाँड :: हाँ ?' मैने हाँ कर दी। ‘मेरी माँ तो हाथ से मामा का लन्ड पकड़ कर मेरी गाँड में डालती थी। ‘अँह बोल, सूअर, तू भी बाप के लन्ड को हाथ में पकड़ कर घुसायेगा ना ऍह ?' मैने फिर हाँ किया। सच मम्मी, कमलाबाई से ऐसी बातें करके बड़ा मज़ा आ रहा था।”

“लगता है उसे ऐसे बोलने में और भी मज़ा आ रहा था, बस कुछ ही मिनटों में हरामजादी कमोड पर बैठी झड़ने लगी। मेरा लन्ड अब भी उसकी भोंसड़ी में कूद रहा था, और मेरी उंगली उसकी गाँड को खोद रही थी।” | टीना जी कराहते हुए अपने स्तनों को दबोच रही थीं। अत्यन्त बेसुधी की मुद्रा में अपने निप्पलों को निचोड़ रही थीं वे । कठिनाई से अपने पुत्र के सामने उनसे सम्भोग क्रिया का प्रस्ताव रखने की कामना पर वे काबू पा सकीं। आगे की कथा जो सुनना चाहती थीं। जय की कथा उनके कामानन्द को कई गुना अवृद्ध जो कर रही थी।

“साले मुस्टंडे, तू नहीं झड़ा ?”, जय की माँ ने शरारत भरे स्वर में पूछा।

“मैं भी बस झड़ ही जाता मम्मी! कमलाबाई जब झड़ी तो उसकी भोंसड़ी सौ चूतों की तरह मेरे लन्ड को पुचकारने लगी थी। उसकी चूत में ऐसा कस-कस के मैने लन्ड मारा, कि हरामजादी हाँफ़ने लगी।”

“मम्म ::: तू मुझे बता रहा है, मुझे याद है जब मैं झड़ी तो तू कैसे जानवरों से मुझे चोद रहा था! खैर आगे कः क्या हुआ ?”, टीना जी कराहीं।
 
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मम्मी, उसकी अगली हरकत ने तो मुझे हैरान कर डाला। जब कमलाबाई ने मेरे लन्ड को अपनी भोंसड़ी में फूल कर उछलता हुआ महसूस किया, तो एक हाथ नीचे कर के मेरे लन्ड को दबोच कर बाहर निका लिया! हरामजादी बोली, “आ साले , तुझे गाँड मारना सिखाऊँ! फिर उसने खड़ा होकर एक हाथ को कमोड की टंकी पर टेका और दूसरे हाथ को अपनी टाँगों के बीच से पीछे लेकर मेरे लन्ड को पकड़ा और अपनी उचकी हुई गाँड में दबा कर सटाने लगी। बुढ़ापे में सूखी चूत से ज्यादा अब कमलाबाई को गाँड मरवाने में मजा आता है !”

टीना जी अपने सगे पुत्र के मुख से उसकी कामक्रीड़ा के स्पष्ट वर्णन को सुनकर मारे उत्तेजना के पागल हो रही थीं। यदि जय अब जल्द ही उनकी तड़प का निवारण नहीं करता, तो वे पुत्र के लिंग को बलपूर्वक अपनी योनि में घुसा कर बलात्कार करने का इरादा कर चुकी थीं।

| फिर मैने कुत्ती की गाँड से अपनी उंगली बाहर निकाली, और अपने लन्ड को उसकी बदबूदार गाँड में घुसेड़ डाला! साली और चीखने लगी, ‘साले तू माँ की चूत से नहीं : ‘आँह, गाँड से पैदा हुआ है।''आँह : ' झुक कर मेरे टट्टों को दबाती हुई बोली, “निकाल टट्टों से तेल, अँह तो तेरे लन्ड पर टट्टी कर देंगी !’ फिर चीख चीख कर मेरे लन्ड को अपनी गाँड से सिकोड़ने लगी, “ऍह आजा अन्दर, ऍह और अन्दर 'ऍह ऍह 'ऍह 'ऍह ऍह':'। गाँड मरवाते हुए कमलाबाई को थूकने की आदत है, बार बार कमोड मे थूके जा रही थी, ‘सूअर तेरी माँ की तो, थू!', तो कभी मुड़ कर मेरे मुँह पर ही थूक देती, ‘मादरचोद ! थू!' बस ऐसे ही चीख-चीख कर गन्दी गन्दी बातें करती रही और मैने भी उसकी गाँड में लन्ड रगड़-रगड़ कर आखिर उसकी गाँड को अपने वीर्य से भर दिया।” |

टीना जी अब और आत्मनियंत्रण की क्षमता नहीं रखती थी। वे तुरन्त खड़ी होकर औंध मुँह मेज पर लेट गयीं और अपनी सुडौल गोरी टांगों को फैला कर पाश्विक मुद्रा में पुत्र की वासना से बोझिल आखों के समक्ष अपनी सराबोर योनि और गुदा को प्रदर्शित करने लगीं।

“जय, मुझे चोद! मादरचोद, तुने मुझे अपनी बातों से बड़ा गर्मा डाला है, अब नहीं सहा जाता! चोद मेरे लाल ! उस राँड कमलाबाई को जैसे चोदा था, वैसे ही अपनी बेचारी मम्मी को भी तू आज चोद !”

जय फुर्ती से माता के पीछे जा खड़ा हुआ और उनके पटे हुए योनि - कोपलों पर अपने विशाल लिंगोभार को रगड़ने लगा। जैसे ही उन्होंने अपने पुत्र के नग्न, बलिष्ठ तन का आभास पाया, टीना जी के तन में पापी वासना की एक उमंग जाग गयी।
 
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‘मेरा पहलवान चोदू बेटा।', अपने वक्राकार नितम्बों को प्रतिक्रिया में उसके तन पर मसलते हुए टीना जी ने सोचा। जय भी कंपकंपा उठा था, अपनी सुरूपा, कामाक्षी माता के संग पीछे से सम्भोग क्रिया के लिये तैयार होता हुआ, वो तीव्र दैहिक इच्छा के प्रभाव से सिहर रहा था। इस समय तक टीना जी आतुर ही नहीं बल्कि पुरुष लिंग की चाह के मारे तड़प रही थीं। एक पल की प्रतीक्षा भी अब असम्भव थी! अपनी टाँगों के बीच से हाथ पीछे बढ़ा कर, उन्होंने अपने पुत्र के लिंग को दबोचा और उस वासना-उदिक्त गौरवांग को अपनी भीगी योनि के प्रवेश द्वार का दिशा-दर्शन करवाया। माँ ही तपती उंगलियों को अपने लिंग पर लिपटते हुए पाकर, जय उतावला होकर कराहने लगा। । “वाह मम्मी! एकदम रन्डी स्टाइल है ये! अपने प्यारे हाथों से मेरे लन्ड को अपनी चूत में डालिये, फिर आपका लाडला बेटा आपको चोदेगा !” |

टीना जी की योनि से तीव्र प्रवाह हो रहा था, योनि से निकल कर द्रव उनकी जाँघों के भीतरी भाग पर बहता हुआ दोनों के गुप्तांगों को परस्पर सोख रहा था। जय के लिंग पर चुपड़ा हुआ द्रव एक प्राकृतिक चिकनाहट का काम कर रहा था जो माँ-बेटे के मध्य में होने वाली सम्भोग क्रिया के लिये अत्यन्त आवश्यक था। जय ने एक कदम आगे बढ़ कर अपने लिंग को प्रविष्टि की मुद्रा में तैयार कर लिया। टीना जी भी अधीर हो चली थीं।

हँ! पहलवान, आजा मैदान में ! डाल अपने मादरचोद लन्ड को मम्मी की चुतिया में और मुझे कस के चोद ! देखें मेरे दूध में कैसा असर है !” अपने पुत्र - लिंग के फूले हुए सुपाड़े का आभास अपनी काँपती योनि के भीगे हुए पटों पर पाकर टीना जी चीखीं। जय ने आज्ञाकारी पुत्र की तरह माँ की आज्ञा का पालन किया। |

माँ के चौड़े कूल्हों को जकड़ कर उनका सहारे लेते हुए, बलिष्ठ नौजवान जय ने एक आगे की ओर बलशाली झटका दिया, और अपने कामास्त्र लिंग को माता की टपकती, चूसती योनि के भीतर अपने अण्डकोष तक झोंक डाला।

“ऊँह हह ऊँह! ओह, मादरचोद! ऊह, चोद मुझे, जय! हे भगवान : ईंह, बेटा तेरा इतना मोटा है! • ईंह, टीना जी चिल्लायीं और अपने पुत्र के ठेलते लन्ड पर पीछे को दबाने लगीं। जय ने अपनी माँ की लिसलिसी योनि को कमलाबाई की अधेड़ योनि की भाँति कुशल शैली में लिंग पर जकड़ते हुए महसूस किया। उसने नोट किया कि माँ की योनि कमलाबाई से कहीं अधिक गहन थी, लाख प्रयत्न के बावजूद वो अपने लिंग से उसकी तह तक नहीं पहुँच पा रहा था। टीना जीन ने गर्दन घुमायी और पलट कर अपने पुत्र को वासना और ममता से सम्मिश्र भाव से देखा। । “ओह , शाबाश बेटा! दिखा अपनी माँ को तू कैसा मर्द है! आँह
“तेरे लन्ड को अपनी छाती के दूध से सींच कर मैने बड़ा किया है, 'इँह देखें कितना दम है मेरे मादरचोद बेटे! 'ईंह ऍह ईंह ऍह Smile
 
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| माता की वासना से बावली चीखों ने जय की कामोत्तेजना की अग्नि में घी का काम किया। पाठकों, आप ही बतायें, ऐसी स्त्री, जो साधरणतय कुलीनता की मूर्ती हो, यदि आपके साथ सम्भोग के समय, वही स्त्री, अपने मुख से ऐसी गन्दी और निर्लज्ज बातें करे, तो क्या आपका पौरुष चुनौती पाकर नहीं भड़केगा ? क्या आपको सैक्स के आनन्द में कोटि-कोटि वृद्धि नहीं होगी ? दोस्तों, अगर आप भी जय की तरह भाग्यवान होते और अपनी सगी माता के संग प्रणय क्रिया के समय उनके श्रीमुख से ऐसे गन्दे वचनों द्वारा अपने परुष को उकसाते हुए सुन लेते, तो आपका लिंग भी जय ही की तरह सूज कर दैत्यकारी आकर ले चुका होता।

“बिलकुल चोदूंगा, मम्मी! तेरे दूध का कर्ज मैं तेरी ही कोख को चोद कर उतारूंगा! मेरी रन्डी मम्मी, तू मेरे बाप की चुदाई भूल जायेगी !”, जय नथुने फुला कर मस्त साँड की तरह अपनी माँ की उठी हुई योनि के भीतर लिंग के क्रमवार प्रहार करता हुआ बोला।

टीना जी जय की कहानी में कमलाबाई की मुँहफट अश्लील बाषा से बड़ी उत्तेजित हुई थीं। साथ ही कुछ ईष्र्या भी थी कि भंगिन ने किस तरह उनके पुत्र को अपनी अश्लीलता से रिझा लिया था। अपनी कुलीन शिक्षा और सभ्य व्यव्हार को त्याग कर टीना जी भी आज वेश्या अवतार में उतर कर अपने सैक्स जीवन में एक नवीन अनुभव पाना चाहती थीं। साथ ही पुत्र के समक्ष अपनी पाश्विक वासना का प्रदर्शन कर अपने व्यक्तित्व के रूद्र पहलू को उजागर करने और खुद को सर्व-गुण सम्पन्न दिखलाने का ध्येय भी रखती थीं वे । वो स्त्री ही है जो पुरुष को रिझाने के वास्ते खुद को किसी भी रूप में ढाल सकती है। आज तो उनके त्रिया-चरित्र का पात्र पुरुष स्वयं उनका पुत्र था!

“आँह :: अबे तेरे बाप ने जिस चूत को चोदकर तुझे पैदा किया है, आज तू उसे ही चोद रहा है! : ‘आँह ‘ऐंह 'ई' 4 : ‘आँह ऊँह जिस लन्ड से जमादारिन की गाँड मारी, ''आइँह उसी से मम्मी को चोदता है!”

अबे उचक! मादरचोद जब लन्ड चूत में अन्दर घुसाता हैं तो एड़ी को उचका कर अन्दर झटका दे! 'आँह कमलाबाई ने तुझे नहीं सिखाया ?”

“ऊँह ‘आँह मादरचोद, तेरी मम्मी की चूत को छोड़ कर परायी जमादारिन को चोदता है? आँह फिर मम्मी को चुदवाने वास्ते क्या बाजार जाना होगा ? ''आँह ऊँह आँह ऊँह बोल साले, धंधा करवायेगा माँ से

“राँड, मैं तेरी चूत चोदूंगा, और तेरी गाँड को किराये पर उठा दूंगा!”, जय ने भी हिम्मत दिखायी।

“जा सूअर, तुझसे नहीं चुदने की!' 'आह' ‘भोंसड़ी चोद कर शेर बनता है ? ' 'ईयाँह 'टीना की कसैल चूत चोदते - चोदते बड़े-बड़े पहलवान झड़ गये ईयाँह ‘आँह मादरचोद, तेरे टट्टे सूख जायेंगे ‘ऐंह, जय तो गाली-गलौज का आदी था, पर टीना जी का रक्त अपने पुत्र के एक ही वाक्य को सुन कर खौलने लगा था।
 
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लगी शर्त कुतिया! मैं झड़ा तो गाँड मरवा दूंगा!” । ६ : ‘आइंह 'ऐ ऐंह डैडी से मरवानी होगी !” “ओके! तू झड़ी तो मेरा वीर्य पियेगी !”

लगी शर्त, मादरचोद ! : ‘आँह ऐंह : ', टीना जी बड़ी अदा से मुँह फेर कर पलटीं, और मेज पर लेटे हुए ही प्रेमपूर्वक शरारत में अपने बेटे के मुंह पर थूक दिया, “थू! ले मादरचोद, तेरा ईनाम!: ‘आँह . ) ।

जय ने बड़ी बेतकल्लुफ़ी से माँ की थूक को चेहरे से पोंछा और लन्ड पर मल कर सैक्स क्रीड़ा को जारी रखा। टीना जी अपने पुत्र की ढीठता को देख कर एक पल स्तब्ध हो गयीं, और दूसरे ही पल शेरनी सी उत्तेजित हो गयीं। माता की पाश्विकता का जय ने ईंट से पत्थर वाला उत्तर दिया था। जय अब माँ पर अपने पौरुष का स्वामित्व स्थापित कर चुका था। प्रमाण के तौर पर उसने अपनी माँ को लम्बे काले बालों को दोनो हाथों से समेटा और एक मुट्ठी मे बाँध कर हल्के-हल्के खींचने लगा। टीना जी अब एक लाचार घोड़ी की तरह थीं, जिसकी लगाम जय के हाथों में थी। जय अपने लिंग पर भरपूर आत्म-नियंत्रण किये हुए था। पर टीना जी बेसुध होकर कामुकता के प्रवाह में बह रही थीं।

हरामजादी, बोल कितना किराया लेगी गाँड का ?” ८ : ‘आँह सौ रुपये में एक बार ।” बच्चों और बूढ़ों की फ्री एन्ट्री !”, जय गुर्राया, “यानी तेरे बाप और ससुर को फ्री है, समझी राँड ?”

* : ‘हा हा मादरचोद, मेरे बाप का लन्ड तो अब खड़ा भी नहीं होता है! : ‘आँह 'ऊँह बोल हरामी, करेगा चूस कर नाना जी का लन्ड खड़ा ?”, टीना जी कच्ची खिलाड़ी नहीं थीं। सुनकर जय ने अपने कूल्हों की गति को अधिक तीव्र कर दिया, मेज अब चूं-चू कर रही थी।

“सुअरनी, तूने होमो को नहीं जना है चूत से! रिश्ते में चोदता हूँ पर चोदता सिर्फ औरतों को ही हूँ !” जय ने कलाई का झटका देकर माँ के बालों को खींचा। टीना जी ने दाँत भींच लिये और भौहें उठा कर रणचण्डी सा आगबबूला निगाहों से पीछे देखा।

: ‘आँह लन्डचूस! आँह होमो नहीं तो झड़ता क्यों नहीं ?”, टीना जी त्रिया-चरित्र के हर दाँव को पहचानती थीं। टीना जी पसीने से तरबतर थीं, किसी भी समय सम्भोग के चरमानन्द को प्राप्त कर सकती थीं।

“थू!” इस बार थूकने वाला जय था। जय ने माँ के केश पकड़ कर उनका चेहरा पीछे फेर लिया था, और उसी चेहरे पर नटखटता से थूक दिया। “ले झड़ गया! राँड, फिर दो बार, “थू! थू!” । हर स्त्री पुरुष के स्वामित्व और संरक्षण की इच्छा रखती है। जय ने माँ की ललकारों से दबे बिना अपने पौरुष का लोहा मनवा लिया था। टीना जी के अन्तरमन ने जय के खुद पर स्वामित्व को अपने तन व मन दोनो से स्वीकर कर उसे जीवन में पुरुष का दर्जा दे दिया था। स्वीकृति की यही वो अलौकिक घड़ी होती है जब नारी सर्वोच्च आत्मिक और दैहिक सुख की प्राप्ति पाती है। सहसा इसी अनुबोध ने टीना जी को ऑरगैस्म दिला दिया। उनकी देह में एक बाँध टूटा
और जाँघों के बीच से उमंग की लहरें उठने लगीं, जो फैल कर उनके रोम-रोम को पुलकित करने लगीं। जय के पौरुष-पाश में जकड़ी हुई वे निर्बल नवयौवना की तरह कामतृप्ति के प्रभाव से चीत्कार करने लगीं।

“ऊँह 'आआह 'मेरे लालः ''आह अआआहहहः 'मेरा बेटा, मेरा मरदः ‘आँहः आँहः जय, अब मम्मी तेरी रखैल है !” जय माँ की आत्मसमर्पण भरी बातें सुनकर फूला नहीं समा रहा था। उसे अपने पौरुष बोध और माँ को ऐसा आनन्द दे पाने पर बहुत गर्व हो रहा था।
 
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57 सवेरे वाली गाड़ी

* शर्त तो तुम हार गयी, मम्मी। कहो, कैसी रही ?”, जय ने अपनी आनन्द में घुलती माँ से पूछा।

मम्म मजा आ गया, मेरे लाल ::: लाइफ़ में ऐसी मस्ती शायद ही पहले कभी की होगी !”, उन्होंने उत्तर में कहा। टीना जी की देह अब भी उनके जबरदस्त ऑरगैस्म के झटकों के तले थरथरा रही ती। उनकी टाँगें दुर्बल होकर ढीली पड़ चुकी थीं, बस उनका धड़ केवल मेज के सहारे लेटा हुआ था।

जय ने अपने सदैव-उत्तिष्ठ लिंग को माँ की गुलाबी कोपलों वाली योनि की लिसलिसी तपन के अन्दर निरन्तर आगे-पीछे चलाना जारी रखा था। इस तरह वह अपनी माता के बदन में काम की धधकती ज्वाला को बरकरार किये हुआ था।

“मम्मी, तेरे बेटे में अब भी बहत दमखम बाकी है! बोल तो और चोदूं ?”, टीना जी के कन्धों को चूमता हुआ और उनकी गर्दन पर गरम साँसें छोड़ता हुआ जय पूछ बैठा।

“मादरचोद ::! बेटा तू आदमी है या साँड! इतनी जल्द फिर चोदने को तैयार ? तेरा बाप तो इतने में कब का पस्त हो गया होता! चल साले, तू साँड है तो मैं वो कुतिया हूँ जिसकी चूत की प्यास कभी नहीं मिटती !”, टीना जी अपनी संज्ञा के पात्र प्राणी की तरह ही बिलबिला रही थीं, “आजा मेरे पहलवान साँड, चोद दे फिर एक बार अपनी कुतिया मम्मी को !” टीना जी का मन जय के विशालकाय लिंग से अभी कहाँ भरा था! युवावस्था में ही सैक्स कला में कैसे कौशल का प्रदर्शन किया था उसने । सम्भोग में ऐसा दिव्य आनन्द उन्होंने बरसों बाद पाया था। अपनी सन्तान को जिस प्रेम और दुलार से उन्होंने पालपोस कर बड़ा किया था, उन्हें आज अपनी ममता का सचा फल मिल गया था। उनकी स्वयं की कोख से जना लाल अपने लिंग को उसी कोख में ठेलता हुआ, टीना जी को अविस्मर्णीय दैहिक सुख की अनुभुतियाँ फलस्वरूप दे रहा था! काश यदि उनके दो पुत्र होते, तो दोनो ही से सम्भोग कर पातीं। वो भी एक ही साथ! हाँ, हाँ जरूर, एक उनकी योनि में लिंग घुसाये होता, दूसरा उनकी गुदा में लिंग डालता। “ऊउहहह, हाँ! ऐसे बड़ा मजा आता!”, सहसा उनके मुख से मन की बात निकल पड़ी।

क्या, मम्मी ? कैसे आता मज़ा ? कह तो सही, मैं करूंगा!", जय ने पूछा।

“अरे, कुछ नहीं! मैं तो यूँ ही बड़बड़ा रही थी !”, टीना जी ने झूठ बोलकर मन की इच्छा को छिपाया।

तू बस चोदता रह, जय! और इस बार तुझे भी झड़ना है। बोल मेरे लाल, मम्मी की चूत में अपना गाढ़ा और गरम वीर्य डालेगा ना ?”
 
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क्यों नहीं मम्मी, तूने ही तो अपने मम्मों से दूध पिला-पिला कर मेरे टटटों में ये वीर्य बनाया है। अब जिस चूत से पैदा हुआ था, उसमें अपने टट्टों को खाली करना तो मेरा फ़र्ज है ना, मम्मी!”, गर्वयुक्त स्वर में नौजवान जय बोला, “आज तो मम्मी, मेरे टट्टों मे तेरे वास्ते उतना ही ज्यादा दूध उबल रहा है, जितना डैडी ने आपको पिछली गर्मियों में ट्रेन के सफ़र दे दौरान दिया था। याद है, पिछली गर्मियों की छुट्टियों में हम ट्रेन में ननिहाल से घर वापस आ रहे थे, और आप और डैडी ने रात को ट्रेन में ही चुदाई चालू कर दी थी। डैडी ने इतना वीर्य निकाला था, कि आपको जाँघों पर बहने लगा था, और आपको रात को उठकर बर्थ पोंछनी पड़ी थी ?” टीना जी को वो ट्रेन का रात का सफ़र अच्छी तरह से याद था। मिस्टर शर्मा का लिंग तो उस रात खुले नल की तरह बह रहा था, पूरे दस मिनट तक लिंग से वीर्य-स्त्राव होता ही रहा था।

“मम्मी, मैं ऊपर की बर्थ पर लेटा सब देख रहा था। आप तो बिलकुल सैक्सी लग रही थीं। डैडी का काला, मोटा लन्ड कैसे आपकी गोरी चूत को चीर कर घुसा हुआ था, मम्मी! ठीक वैसी ही फ़ोटो मैने एक मैगजीन में देखी थी, जिसमे एक गोरी-चिट्टी चमड़ी की फ़िरंगिन औरत की गुलाबी चूत में एक काले हब्शी ने अपना एक फ़त का मोटा लन्ड घुसाया हुआ था। वही मैगजीन, जो घर आने के बाद आपने मेरे बिस्तर के नीचे से खोज निकाली थी।” | टीना जी को वो पत्रिका ठीक तरह से याद थी। अपने पुत्र के बिस्तर के नीचे ऐसी अश्लील पत्रिका पाकर,
और यह जान कर, की जय बहशः उन चित्रों को देख कर हस्तमैथुन करता होगा, टीना जी के हृदय में एक पाप भरी चुलबुलाहट कौंधी थी। पत्रिका के पन्नों में गोरी औरतों के साथ अति-दीर्घ लिंग के स्वामी काले हब्जियों को,
और अधेड़ उम्र की महिलाओं के संग किशोर बालकों को सैक्स करते हुए चित्रित किया गया था। चित्रों को देख कर वे ऐसी विचलित हो गयी थीं, कि जय डाँट-फटकार कर उन्होंने पत्रिका जब्त कर ली और मिस्टर शर्मा के साथ एक रात उन चित्रों का सूक्ष्म अध्ययन भी किया। उस रात मिस्टर शर्मा ने ऐसे जोश के साथ बढ़-चढ़ कर सैक्स किया था, जो सुबह की पहली किरणों के बाद जाकर थमा था। वो घटना उन्हें बड़ी अच्छी तरह से स्मृत थी!

“मम्मी, मैने ट्रेन में मुठ मारी थी! नीचे डैडी आपको चोद रहे थे, ऊपर में लन्ड हाथ में लिये रगड़ रहा था! सोच रहा था, कि आपको चोदने वाला मैं ही हूँ, मम्मी!”
 

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